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अरब दे शों में मचा उथल-पथ

ु ल

अरब दे शों में कई दशकों से चली आ रही सत्ता परिवर्तन की माँग वहाँ के लोगों द्वारा
की जा रही है | आश्चर्य की बात तो यह है क़ि ये माँगें एक क्रांति का रूप धारण कर रही
हैं| इस क्रांति का मख्
ु य उद्देश्य लोकतंत्र की बहाली है और वे दशकों से चली आ रही
सत्ता में परिवर्तन चाहते हैं|

इसी तरह की क्रांति पहले ट्यन


ू ीशिया में हुई और मिस्र में भी, जिसे "मिस्र जैस्मिन
क्रांति" के नाम से जाना गया| कमोवेश यही क्रांति फिलहाल लीबिया में भी जारी है | यह
आंदोलन किसी बाहर तत्व जैसे अलकायदा या किसी आतंकवादी संगठन द्वारा नहीं
चलाया जा रहा है बल्कि वहाँ के स्थानीय लोगों द्वारा इसका नेतत्ृ व किया जा रहा है |

मिस्र के सन्दर्भ में वहाँ के स्थानीय लोग ३० वर्षों से सत्ता पर आसीन राष्ट्रपति हुस्नी
मुबारक को सत्ता से हटाना था, जिसमें अंततः वे विफल रहे | इस क्रांति की प्रेरणा अरब
राष्ट्र ट्यन
ू ीशिया रहा, जहाँ के निरं कुश शासक "जिन-अन आबिदिन वेन अली" को
सफलतापर्व
ू क सत्ता से बाहर कर दिया| सरु क्षा बलों द्वारा दर्जनों व्यक्तियों की हत्या ने
आग में घी डालने का काम किया| इसी तरह लीबिया में भी वहाँ के लोगों द्वारा गद्दाफ़ी
के खिलाफ आंदोलन जारी है | गद्दाफ़ी उनको दबाने के लिए अपनी सेना का प्रयोग कर
रहें हैं| वैसे अन्तर्राष्ट्रीय भू-राजनीतिक मानचित्र पर लीबिया को लाने में गद्दाफ़ी की
महत्वपूर्ण भूमिका रही है | ऐसे में लोगों द्वारा विरोध प्रदर्शन चौकाने वाला ज़रूर है | पर
गद्दाफ़ी द्वारा 'नरसंघार' शब्द के प्रयोग पर संयुक्त राष्ट्र संघ और अन्य दे शों में उसके
राजदत
ू ों ने त्यागपत्र तक दे दिया| इसमें भारत में लीबिया के राजदत
ू 'अली अल ईसावी'
भी शामिल हैं|

इन आंदोलन का मुख्य कारण अरब दे शों में व्याप्त ग़रीबी, मंहगाई, सामाजिक वंचन
एवं बहिष्करण, भ्रष्टाचार को लेकर आम आदमी में गस्
ु सा है | इन आंदोलनों से उद्‍योग
एवं पर्यटन बरु ी तरह प्रभावित हुआ है तथा तेल मल्
ू यों में बढ़ोत्तरी आई है | स्वेज़ नहर
में अशांति से यातायात प्रभावित हो रहा है | यमन, जॉर्डन, लीबिया, बहरीन एवं अन्य
दे शों में विरोध प्रदर्शन आरं भ हो चुकें हैं| चीन में तो इन घटनाओं से संबधित इंटरनेट
वेबसाइट पर ही प्रतिबंध लगा दिया गया है |
यह सर्वविदित है कि वैश्वीकरण व संचार क्रांति के इस यग
ु में संपूर्ण अरब विश्व व चीन
प्रजातांत्रिक प्रक्रिया से वंचित रह गये| वहाँ नाममात्र की प्रजातांत्रिक व्यवस्थाओं की
स्थापना तो हुई लेकिन वहाँ महिलाओं के साथ-साथ अन्य वर्गों के मानवाधिकारों व
प्रजातांत्रिक संस्थाओं की स्थिति संतोषजनक नहीं है | ये क्रांतियाँ गैर-इस्लामिक
समर्थन व पाश्चात्य दे शों के समर्थन से मुक्त है | यह आंदोलन स्वतः प्रेरित है | इसी
कारण अरब विश्व के अन्य दे शों में इसकी सफलता की उम्मीद लगाई जा सकती है |

अर्पित सचान
पोतकार प्रशिक्षु
501430-R

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