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पकाशक

यशपाल जैन
मंती ससता सािितय मणडल
एन ९९ कनॉट सककस, नई ििलली ११०००१

तीसरी बार: १९८८
मूलय: र ५.००

मुदक
कंवलिकशेर एणड कमपनी
नई ििलली-

ु था, लेिकन उनका पेम अपन ि


मिातमा गाधी का जनम भारत मे िआ े े श , सारी ििुनया को उसने
त किीसीिमतनिीरिा
अपन अ े ं क म े भ र ि ल ‘बापू किलये
य ा।अपनइ े सअननतपे
। विमिजस मागक पर चले, वि िकसी एक वयिित के
केकारणिीवि
िित का निी, समपूणक मानव-जाित के कलयाण का मागक था।
इस पुसतक मे बापू के उसी मागक की सूकम झाकी ििखान क े ा प य त ि क य ा ग यािै।पाथकनातथापेमऔरभिितकेभज
उनकी आतमा के खुराक थे ; ईसा का ‘िगिर पवचन’ उनकी मानयताओं का पेरक था; एकािश वरत उनके जीवन की आधार -िशला
थे और उनके रचनातमक कायककम भारत ओर उसके सवराजय की बुिनयाि को पका करन व े ा ल े थ े।इनसबकोपाठकइसपुसतक
मे पायगंे।
साथ िी, बापू के जीवन के कुछ िशकापि पसंग और भारत के भावी सवरप के िवषय मे उनके िवचारी भी पाठको को इसमे
पढन क े ोिमलेगे।
बापू का पथ पेम का पथ था, नीित का पथ था, उस पर चल-कर िी िमारा, िमारे िेश का और िवशास का भला िो
सकता िै।
िमे िवशास िै िक इस पुसतक को पतयेक आतम शोधक और िेश -पेम पढेगा , िवशेषकर िमारी नई पीढी, िजस पर िेश
का भिवषय िनभकर करता िै, इसे आवशय पढेगी और अपन ज े ी वन क े िनमाणमेइससेपेरणापापतकरेगी।

-
वैषणव जन नरसी
गाधीजी की पाथकनाएं संकालन
पात:काल की पाथकना
सायकाल की पाथकना
िपय भजन संकलन
िगिर पवचन अनु. डॉ. कािमल बुलके
एकािश वरत गाधीजी
रचनातमक कायककम गाधीजी
जीवन पसंग िविवध
“मेरी िबसतरा इसी पर” मिािेव िेसाई
िौड से गमी मनु गाधी
अलपजीवी निी बनना संकलन
सतय का साधक और अपमाि कािशनाथ ितवेिी
“यि किा का इसंाफ िै” संकलन
मंती जनता के सेवक मनु गाधी
पेिसलका टुकडा मनु गाधी
“यिि मै ताना शाि बना” पयारे लाल
जयािा ताकत की इचछा ियो संकलन
एक घट ं े अचछी नीि संकलन
वि राषट भाषा सममेलन सीताराम सेकसिरया
ताज के सचचे िकिार आर. के. पभु
तुमिारे भी उतन बेालक संकलन
“आटा पीसना बितु अचछा िै” काका कालेलकर
“तब तो नौकर तुमसे बढ गए” शाित कुमार
सामूििक मृतयु का आननि िवनुभाई शाि
गाधीजी के सपनो का भारत गाधीजी

वैशणव जन तो तेन क े ि ी ए ; पीडपराईजाणरे


जे
परिु :खे उपकार करे तोये,मन अिभमान न आणे रे।
सकल लोकमा सिनु व े िं े ;
िननिानकरे केनीरे
वाच काछ,मन िनशल राखे धन धन जनती तेनी रे।
समििृि न त े ृ ;
ष णापरसतीजे नमेातरे
िजहा थकी असतय न बोले परधन नव झले िाथ रे।
मोि माया वयापे निि जेने , िढ
ृ वैरकगय जेना मनमा रे ;
रामनामशूं ताली लागी, सकल तीरथ तेना तनमा रे।
वणलोथभी न क ,पटरिितछे
े काम वतोध िनवाया रे;
भणे नरसैयो तेनु िरसन करता, कुल एकोतेर तायक रे।
: ।


(:)
: ।।
इस जगत मे जो कुछ भी जीवन िै , वि सब ईशर का बसाया िआ
ु िै। इसिलए ईशर के नाम से मयाग करके तू यथापापत
िकया कर। िकसी के धनकी वासना न कर।

:
: -
- - - ।
- -
- : ।। ।।
१. मै सवेरे अपन ह े ि य म े स फ ू ि र (सत्
तिोनवेालेआ , जो जान
तमततवकासमरणकरतािूं।जोआतमासिचचिा
और सुखमय) िै, जो परमिस
ं ो की अिनतम गित िै, जो चतुथक अवसथारप िै, जो जागित, सवप और िनदा, तीनो अवसथाओं को
िमेशा जानता िै और जो शुद बहा िै, विी मै ि- ं मिाभूतो से बनी िईू यि िेि मै निी िंू।
ंू पच


‘ ’
- ।।2।।
२. जो मन ओर वाणी के िलए अगोचर िै , िजसकी कृपा से चारो तरि की वाणी पकट िोती िै , वेि भी िजसका वणकन
‘विी यि निी, यि निी’ किकर िी कर सके िै , उस बहा का सवेरे उठकर मै भजन करता िंू। ऋिषयो न उ
े से ‘िेवो का िेव’,
‘अजनमा’, ‘पतनरिित और सबका आिि किा िै।
: -

- ।
-
।।3।।
३. मै सवेरे उठकर उस सनाति पि को नमन करता िूं, जो अनधकार से परे िै, सूयक के समान िै , पूणक पुरषोतम
नाम से पिचाना जाता िै और िजसके अननत सवरप के भीतर यि सारा जगत् उसी तरि ििखाई िेता िै , िजस तरि रससी मे
साप।
- ! ! - - !
- ! ; -
।। ।।
४. समुदो के वसतवाली , पवकतो के सतनवाली , िवषणु की पती, िे पृथवीमाता ! मै तुझे नमसकार करता िूं। मै तुझे
अपन प े ै ; छमेूतरेािइस
रसे ूं अपराध को कमा कर।
- - - -
- - - - ।
- - :
: - ।।5।।
५. जो कुनि , चनद यार बरफ के िार के समान गौरवपूणक िै , िजसन स े फ ेि,वसतपिले
िजसके िाथ
िै वीणा के सुनिर
िणड से सुशोिभत िै, जो सफेि कमल पर बैठी िै , बिा, िवषणु मिेश आिि सभी िेव िमेशा िजसकी सतुित करते िै , समसत
अजान और जडता का जो नाश करनवेाली िै, वि िेवी सरसवती मेरी रका करे।
- ! ! - - - !
! - ।। ।।
६. बाके मुंिवाले , िवशाल शरीरवाले, करोडो सूयक की-सी कािनत वाले, िे िसिि िवनायक! मेरे सभी कमों मे मुझे
िनिवकध करो।
गुरर ब्हा, गुरर ि्वषणुर् , गुरर ि ् ेवोमिे:श।र
गर: साकात् परबिा; तसमै शीगुरवे नम: ।।७।।
७. गुर िी बहा िै, गुर िी िवषणु िै, गुर िी मिािेव िै; गुर साकात् परबहा िै। उन शीगुर को मै नमसकार करता िूं।
- - :
- ।
- - -

- - - - ।। ।।
८. संसार के भय का नाश करन वेाले , सब लोगो के एकमात सवामी शी िवषणु को मै नमसकार करता िूं। उनका आकार
शानत िै, वे शेषनाग पर लेटे िै , वे आकश की तरि अिलपत िै और उनका वणक मेघ की तरि शयाम िै ,वे कलयाणकारी गातवाले िै,
सब समपित के सवामी िै , उनके नत
े कमल के समान िै। योगी उनिे धयान दारा िी जान सकते िै।
- -
- ।

! ! ! ।। ।।
९. िाथ से या पैर से, वाणी से या शरीर से, कान से या आंख से मै जो भी अपराध करं, वि कमक से उतपन िो या
केवल मानिसक िो , अमुक करन स े े ि ो य ,क
ा अमु करणाे-सागर
िे नकरनस ेिो , कलयाणकारी मिािेव! उन सबके िलए तू मुझे
कमा कर। (मेरे हिय मे और जीवन मे) तेरा िी जयजयकार िो।

: - - ।। ।।
१०. अपन ि े लए न ,मैराजयचािताि
न सवगक कीूं इचछा करता िूं। मोक भी मै निी चािता। मै तो यिी चािता िूं िक
िु :ख से तपे िएु पािणयो की पीडा का नाश िो।
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: : ।। ।।
११. पजा का कलयाण िो, राजयकता लोग नयाय के मागक से पृथवी का पालन करे , (खेती और जान-पसार के िलए )
गाय और बाहाणो का सिा भला िो और सब लोग सुखी बने।

- ।
- -
।। ।।
१२. जगत् के कारणरप , सत् सवरप िे परमेशर ! तुझे नमसकार। सार िवशास के आधाररप िे चैतनय ! तुझे
नमसकार। मुिित िेन व -ततव
े ालेिेअदैत ! तुझे नमसकार। िे शाशत और सवकवयापी बहा ! मुझे नमसकार।

- - ।
- -
।। ।।
१३. े ोगय-
तू िी एक शरण लेन य आशय का सथान िै। तू िी एक वरणीय-इचछा करन ल े ा य क िै।तूिीएकजगत्
का पालन करलेवाला िै और अपन ि े ी प क ा शस े प क ा िशतिै।तू,िीएकइससृ
पालनव े ाला और
ििकोपै े ला
िाकरनव
इसका
संिार करनवेाला िै और तू िी एक िनशल और िनिवककलप िै।

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:
; ।। ।।
१४. तू भयो को भय ििखान व े ,ालािैभयक
ं रो का भय
ं कर िै। तू पािणयो की गित िै और पिवत वसतुओं को भी पिवत
करन व े ा ल ा त ू ि ी िै । श े ष स था न ो का एकमातिनयनतातूिै।तूपरसेभीपरिैऔररककोकाभीर

- : ।। ।।
१५. िम तेरा समरण करते िै और तुझे भजते िै ; जगत् के साकीरप तुझको िम नमसकार करते िै। िम सत् सवरप
एकमात िनधान, िनरालमब और इस भव-सागर के िलए नौकारप तेरी शरण लेते िै।

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।।
ं ा, सतय, असतेय, बहचायक, अपिरगि, शरीरशम, असवाि, अभय सब धमों के पित समानता , सविेशी और
अििस
असपृशता-िनवारण, इन गयारि वरतो का सेवन नमतापूवकक वरत के िनशय से करना चाििए।

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।।

शरण लेता िूं मै अललाि की, पापातमा शैतान से बचन क े ेिलए।


पिले िी पिल नाम लेता िूं अललाि का, जो िनिायत रिमवाला मिेरबान िै।
िर तरि की सतुित भगवान के िी योगय िै।
वि सारे िवश का पालने -पोसन व े , परमकृपालु , परमियालु िै। चुकौती के ििन का विी मािलक िै।
ालाऔरउिरक
(पाप-पुणय का फल िेन क े ा वि ) ेअधीनिै।
तउसीक
िम तुमिारी िी आराधना करते िै और तुमिारी िी मिि मागते िै।

ले चलो िमको सीधी राि-उन लोगो की राि, िजन पर तुमिारा कृपा -पसाि उतरा िै।
उनके रासते निी , िजन तुमिारी अपसनता िईु िै या जो मागक भूले िएु िै।
तथासतु
--

। ।
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।।
पिले िी पिल नाम लेता िंू अललाि का, जो िनिायत रिमवाला मेिरबान िै।
(ऐ पैगमबर ! लोग तुमिे खुिा का बेटा किते िै और तुमसे िाल खुिा का पूछते िै , तो तुम उनसे)
किो िक वि अललाि एक िै और अललाि बेिनयाज िै (उसे िकसी की भी गरज निी) न उसका कोई बेटा िै और न वि
िकसी से पैिा िआ
ु िै और न कोई उसकी बराबरी का िै।


-

।।
ऐ िोरमजि ! सवोतम िीन (धमक) के कलाम (शबि) और कामो के बारे मे मुझसे कि , तािक मै नक
े ी के रासते रिकर
तेरी मििमा का गान करं। तू िजस तरि चािे उस तरि मुझे आगे चला। मेरी िजनिगी को ताजगी बखश और मुझे सवगक का सुख
िे।
( )

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-
: : ।।
बहा, वरण, इनद, रद और मरत् ििवयश् सतोतो से िजसकी सतुित करते िै , सामवेि का गान करन व े ालेम,ुिनअं
पिग, कम
और उपिनषि के साथ वेिमंतो से िजसकी सतुित करते िै , योगीजन समािध लगाकर परमातमा मे लीन मन दारा िजसके िशकन करते
िै तथा िेवता और िैतय िजसकी मििमा का पार निी पाते , उस परमातमा को मै नमसकार करता िूं।

:
!
: ।।1।।
अजुकन बोले:
1. िे केशव ! िसथतपज या समािधसथ के लकण िया िै ? िसथतपज िकस तरि बोलता, बैठता और चलता िै?
:
! ।
: ।। 3।।
शी भगवान बोले:
2. िे पाथक ! जब मनुषय मन मे पैिा िोनवेाली सभी कामनाओं को छोड िेता िै और आतम दारा आतमा मे िी सतुि
रिता िै, तब वि िसथतपज किलाता िै।
: - - :।
- - - : ।। 3।।
3. जो िु :ख से िु :खी निी िोता, सुख की चाि निी करता और जो राग, भय और ऋोोध से रिित िोता िै, वि
िसथरबुिद मुिन किलाता िै।
: ।
।। 4।।

4. जो सब किी िनरासित रिकर शुभ या अशुभ पान प े र न , शनिोतािै


खु ं मनाता िै, उसकी बुिद िसथर िै।
रज
:।
।। ।।
५. िजस तरि कछुआ सब ओर से अपन अ े ं ग ,ोकोिसकोडले तािैजब पुरष अपनी इिनदयो को उनके
उसी तरि
िवषयो से अलग कर लेता िै, तब वि िसथरबुिि किाजाता िै।
:।
।। ।।
६. जब िेिधारी िनरािारी रिता िै, तब उसके िवषय ढीले पड जाते िै , पर रस निी छूटता ; रस तो परमातमा का
साकातकार िोन प े र िीछूटतािै।
: ।
: ।। ।।
७. िे कुनतीपुत ! जानी पुरष के यतशील रिन प े र भ ी इ ि न दय ा इ तनीमसतिोतीिैिकवेउसकेमनकोजबर
खीच ले जाती िै।
:।
।। ।।
८. इन सब इिनदयो को वश मे रखकर योगी को चाििए िक वि मुझमे तनमय िोकर िरे; ियोिक िजसकी इिनदया
अपनवेश मे िै उसकी बुिि िसथर िै।
: ।
: ।। ।।
९. िवषयो का िचनतन करन व े ा ल े पु र ष क ो उ न ि व षयोमेआसिितपैिािोतीिै।िफर
िै और कामना से कोध पैि िोता िै।
: :।
- ।। ।।
१०. कोध से मूढता पैिा िोती िै , मूढता से समृित-लोप िोता िै और समृित-लोप से बुिि नि िोती िै और िजसकी
बुिि नि िो जाती िै, वि मरे के बराबर िै।

।। ।।

११. लेिकन िजस मनुषय का मन उसके वश मे िोता िै ओर िजसकी इिनदया राग -देष-रिित िोकर उसके
अधीन रिती िै, वि मनुषय इिनदयो से काम लेता िआ
ु भी िचत की पसनता पा जाता

- : ।
- : ।। ।।
१२. िचत की पसनता से उसके सब िु :ख िमअ जाते िै। और पसन मनुषय की बुिि तुरनत िी िसथर िो जाती िै।

: : ।। ।।
१३. िजसमे समतव निी, उसमे िववेक निी, भिित निी और िजसमे भिित निी, उसे शािनत निी और जिा शािनत
निी, विा सुख किा से आये ?

।। ।।
१४. िजसका मन िवषयो मे भटकती िईु इिनदयो के पीछे िौडता िै , उसका मन उसकी बुिि को उसी तरि चािे जिा
खीच ले जाता िै, िजस तरि िवा नाव को पानी मे खीच ले जीती िै।
! :।
।। ।।
१५. इसिलए, िे मिाबािो ! िजसकी इिनदयो सब तरफ से िवषयो से िटकर उसके वश मे आ जाती िै , उसकी बुिद
िसथर िो जाती िै।
- । ,
: ।। ।।
१६. जब सब पाणी सोये िोते िै , तब संयमी पुरष जागता िै। जिा लोग जागते िोते िै , विा जानवान मुिन सोता िै।
-
: ।

।। ।।

१७. निियो से लगातार भरा जाते िएु भी समुद िजस तरि अचल रिता िै , उसी तरि िजस मनुषय के सारे काम -भोग उसके पास
आते िै, विी शािनत पाता िै, कामनाओं वाला मनुषय निी।
: : :।
: ।। ।।
१८. सभी कामनाए छ ं ो , ममताषयइचछा
डकरजोमनु ं ार-रिित िोकर िवचरता िै,विी शािनत पाता िै।
और अिक
: ।
- ।। ।।
(भगवदगीता, २.५४-७२)
१९. िे पाथक ! इिनदय-जय करन व े ा ल े क ी य ि ी ब ा ह ी ि सथ ितिै।इसेपानपेरमनुषयमोिकेवशनि
मरते समय भी यिी िसथित बनी रिे , तो वि बह िनवाणयानी मोक पाता पाता िै।
(भगवदगीता, २.५४-७२)

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(“यिि तेरी पुकार सुनकर कोई न आये तो तू अकेला िी चल पड। अरे ओ अभागे ! यिि तुझसे कोई बात न क े रे,
यिि सभी मुंि िफरा ले, सब (तेरी पुकार से) डर जायं, तो तू पाण खोलकर अपन म े न क ी व ा णीअकेलािीबोल।अरेओ
अभागे ! यिि सभी लौट जायं, यिि किठन मागक पर चलते समय तेरी ओर कोई िफरकर भी न िेेखे , तो रासते के काटो को अपने
खून से लथपथ चरणो दारा अकेला िी रौिता िआ ु आगे बढ। अरे ओ अभागे ! यिि तेरी मशाल न जले और आंधी और तूफान से
भरी अनधेरी रात मे (तुझे िेखकर) सब लोग िरवाजा बनि कर ले, तो िफर अपन क े ो ज ल ाकरतू-अ
पजं केल
र ािीहिय
जला।
यिि तेरी पुकार सुनकर कोई तेरे पास न आये तो िफर अकेला िी चलता चल , अकेला िी चलता चल। सतवनन सुनी अवाज। ˝

Lead , kindly light, amid the encircling gloom


Lead Thou me on :
The night is dark and I am far from home
Lead Thou me on :
Keep Thou my feet, I do not ask to see
The distant scene; one step enough for me.
I was not ever thus, nor prayed that Thou

Shouldst lead me on;


I loved tochoose and see my path; but now
Lead Thou me on :

I lonved the garish day, and spite of fears,


Pride ruled my will: remember not past years
So long Thy power hath blest me, sure it still
Will lead me on,
O’er moor and fen. O’er crag and torrent, till
The night is gone;
And with the morn, those angel faces smile,
Which I have loved long since and lonst a
while
(िलऐ चलो, जयोितमकय, मुझको सघन ितिमर से िलये चलो।
रात अनधेरी, गेि िरू िै, मुझे सिारा ििये चलो।।
थामो ये मेरे डगमग पग,
िरू िशृय चािे न लगे िगृ-
मुझे अलं िै िेव , एक डग।
कभी न मैन ि े नस-“सिायिोमागा
मुझको िलए चलो।˝
िनज पथ आप खोजता-लखता ! पर तुम अब तो िलये चलो।
िलये चलो, जयोितमकय, मुझको सघन ितिमर से िलये चलो।
पयारा था मुझको जगमग ििन,
िेय मुझे थे ये भय अनिगन ,
ं ार से गया सभी िछन।
अिक
मेरे िपछले जीवन को िपय, मन मे रखकर अब न छलो।
िलये चलो, जयोितमकय, मुझको सघन ितिमर से िलये चलो।
जबतक िै तेरा बल िसर पर ,
िूंगा मै गितशील िनरनतर
बीिड-िलिल, शैल पलय पर
तबतक, जबतक रात अनधेरी, रमय उषा मे आ बिलो,
ू वे, मुसकाते िफर मुझे िमलो।
िचरिपय खोये िेवित
िलये चलो, जयोितमकय, मुझको सघन ितिमर से िलये चलो।
-अनु0 (ड 0) सुधीनद

* * *

When I survey the wondrous Cross


On which the Prince of Glory died,
My richest gain I count but loss,
And pour contempt on all my pride.

Forbid it,m Lord, that I should boast


Save in the Cross of Chirst, my God;
Forbid it, Lord, that I should boast
Save in the Cross of Chist, my God;
All the vain things that charm me most,
I sacrifice them to His Blood.
See from His Head, His Hands, His Feet,
Sorrow and love flow mingling down;
Did e’er such love and sorrow meet,
Or thorns compose so rich a crown ?
Were the whole realm of nature mine,
That were an offering for too small;
Love so amazing, so divine,
De,ands my soul, my life, my all.
To Chirst, Who won for sinners grace

By bitter grief and anguish sore,


Be paraise from all the ransomed race,
For ever and for evermore.
(करता िूं जब ििृिपात आशयकजनक सूली पर,

तयागे िजस पर पाण मिा मििमामय पभु ने


तब लगन ल े ग त ी ि ैमुझकोअपनीसबसेमूलयवानिनिध
और निी कुछ , कवे ल घाटा ,
और अवजा छा जाती िै मेरे सारे अिक
ं ार पर।
रोको, मेरे सवामी, मुझको निी करं गुणगान िकसी का
िजन िनससर वसतुओं मे रमता मेरा मन मन सबसे जयािा,
उन सबको नयौछावर कर िं म ू ै उ नकेपावनलोिूपर।
उनके मसतक , िाथो औ’ चरणो से
िमलाकर बिती िै धारा िु :ख और पेम की।
कया िोता िै कभी पेम और िु :ख का ऐसा संगम,
अथवा काटो से बनता िै इतना मुकुट मनोरम ?
मेरे िनसगक की सारी ििुनया िै िकतना नगणय सा अपकण ,
िवसमयकारी और भागवत पेम चािता
मेरी आतमा, मेरा जीवन, मेरा सबकुछ।
िकया पािपयो का उिार िजनिोने
घोर यातना औ’ पीडा से,
अिपकत िो उन पभु मसीिा के चरणो मे
सिा-सिा के िलए समूची मुित जाित के साधुवाि।

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१. ईसा िवशाल जनसमूि िेखकर पिाडी पर चढे और बैठ गये। उनके िशषय उनके पास आये और वि यि किते िएु
े गे:
उनिे िशका िेन ल
“धनय िै वे, जो अपन क े ोिीन -िीन समझते िै, सवगक का राजय उनिी का िै।
धनय िै वे, जो नम िै, उनिे पितजात िेश पापत िोगा।
धनय िै वे, जो शोक करते िै, उनिे सानतवना िमलेगी।
धनय िै वे, जो धािमककता के भूखे और पयासे िै , वे तृपत िकये जायेगे।
धनय िै वे, जो ियालु िै, उन पर िया की जायेगी।
धनय िै वे, िजनका हिय िनमकल िै वे ईशर के िशकन करेगे।
धनय िै वे, जो मेल कराते िै, वे ईशर के पुत किलायेगे।
धनय िै वे, जो धािमककता के कारण अनयाचार सिते िै , सवगक का राजय उनिी का िै।
धनय िो तुम, जब लोग मेरे कारण तुमिारा अपमान करते िै , तुम पर अतयाचार करते और तरि-तरि के झूठे िोष लगाते
िै। खुश िो और आननि मजाओ, सवगक मे तुमिे मिान् पुरसकार पापत िोगा। तुमिारे पिले के निबयो पर भी उनिोन इ े सीतरि
अतयाचार िकया।
तुम पृथवी के नमक िो। यिि नमक फीका पड जाये , तो वि िकससे नमकीन िकया जायेगा ? वि िकसी काम का निी
रि जाता। वि बािर फेका और मनुषयो के पैरो तले रौिा जाता िै।
ु नगर िछप निी सकता। लोग िीपक जलाकर पैमान क े
तुम संसार की जयोित िो। पिाड पर बसा िआ ेनीचे,निी
बिलक िीवट पर रखते िै, जिा से वि घर के सब लोगो को पकाश िेता िै। उसी पकार तुमिारी जयोित मनुषयो के सामन च
े मकती
रिे, िजससे वे तुमिारे कामो को िेखकर तुमिारे सविगकक िपता की मििमा करे।
यि न समझो िक मै संििता अथवा निबयो के लेखो को रद करन आ े य ा ि , रदकरनन
ूं ।उनिे बिलक े पूिी े या
रा करन आ
िूं। मै तुम लोगो से यि किता िूं-आकाश और
पृथवी भले िी टल जाये, िकनतु संििता की एक माता अथवा एक िबनि भ ु ी ि ब न ा प ू रािए-ु निीटले
से- गा।इसीिलएजोउनछोट
ू सो को ऐसा करना िसखाता िै, वि सवगक के राजय मे छोटा समझा जायेगा।
छोटी आजाओं मे से एक को भी भगं करता और िस

जो उनका पालन करता और उनिे िसखाता िै, वि सवगक के रजय मे बडा समझा जायेगा। मै तुम लोगो से किता िूं -यिि तुमिारी
धािमककता शािसतयो ओर फरीिसयो की धािमककता से गिरी निी िईु, तो तुम सवगक राजय मे पवेश निी करोगे।
तुम लोगो न स े ु न ा ि ै -ितया
िकपूवकजमत िागयािैयिि कोई ितया करे,
ोसेककरो। तो वि कचिरी मे िणड के योगय
ठिराया जायेगा। परनतु मै तुमसे यि किता िूं- जो अपन भ े ाईसे,किे“रे मूखक !” तो वि मिासभा मे िणड के यागय ठिराया
जायेगा।
जब तुम वेिी पर अपनी भेट चढा रिे िो और तुमिे विा याि आये िक मेरे भाई को मुझसे कोई िशकायत िै , तो अपनी
भेट विी वेिी के सामन छ े ो ड कर प ि ल े अ प न भ े ाईसेमेलकरनज
े ाओऔरतबआकरअपनीभेटचढाओ।
कचिरी जाते समय रासते मे िी अपन म े ु द ई स े सम झ ौ त ा कर लो।किीऐसानिोिकवितुमिेनयाय
िे, नयायकता तुमिे पयािे के िवाले कर िे और पयािा तुमिे बनिीगृि मे डाल िे। मै तुमसे यि किता िूं - जबतक कोडी-कौडी न
चुका िोगे, तब-तक विा से निी िनकल पाओगे।
तुम लोगो न स े ु न -
ािैिककिागया । परनतु मै तुमसे किता िूं-जो बुरीइचछा से िकसी सती पर
ििृि डालता िै, वि अपन म े न म े उ स केसाथवयिभचारकरचुकािै।
यिि तुमिारी िाििनी आंख तुमिारे िलए पाप का कारण बनती िै , तो उसे िनकालकर फेक िो। अचछा यिी िै िक तुमिारे
अंगो मे से एक नि िो जाये, िकनतु तुमिारा सारा शरीर नरक मे न डाला जाये। और यिि िाििना िाथ तुमिारे िलए पाप का कारण
बनता िै, तो उसे काटकर फेक िो। अचछा यिी िै िक तुमिारे अंगो मे से एक नि िो जोय, िकनतु तुमिारा सारा शरीर नरक मे न
जाये।
यि भी किा गया िै-जो अपनी पती का पिरतयाग करता िै, वि उसे तयागपत िे िे। परनतु मै तुमसे किता िूं-वयिभचार
को छोड िकसी अनय कारण से जो अपनी पती का पिरतयाग करता िै, वि उससे वयिभचार कराता िै और जो पिरतयिता से िववाि
करता िै, वि वयिभचार करता िै।
तुम लोगो न य े िस ु न ा ि ैि-कपूवकजझूोसे
ठीकशपथ मत खाओ। पभु के सामन ख
िागयािै े ा ई ि ई ु शपथपूरीकरो।परनतुमै
तुमसे किता िूं-शपथ कभी निी खानी चाििए, न तो सवगक की, कयोिक वि ईशर का िसंिासन िै, न पृथवी की, ियोिक वि
उसका पाविास िै; नयेरसलाम की, ियोिक वि राजािधराज का नगर िै और न अपन ि े स, रकी
ियोिक तुम इसका एक भी बाल
सफेि या काला निी कर सकते। तुमिारी बात

इतनी िो- िा की िा, निी की निी। जो इससे अिधक िै, वि बुराई से उतपन िोता िै।
तुम लागो न स े ु न ा िै-िककिागयािै
आंख के बिले आंख , और िात के बिले िात। परनतु मै तुमसे किता िंू -िि
ु का
सामना न करो। यिि कोई तुमिारे िाििन ग े ा ,
लपरथपपडमारे
तो िसू रा भी उसके सामन क े र ि ो ।जोमुकमालडकरतुमिारा
कुरता लेना चािता िै , उसे अपनी चािर भी ले लेन ि े ो । औ र य ि ि क ोईतु,मिेआ उसके साथ
तोधाकोसबे गारमेकोस
लेजाये
भर चले जाओ। जो तुमसे मागता िै, उसे िे िो और जो तुमसे उधार लेना चािता िै, उससे मुंि न मोडो।
तुम लोगो न स े ु न ा िै-िककिागयािै
अपन प े ड ो स ी स े प े मक र - अपने े ैरीसेबैर।परनतुमैतूमसेकि
ोऔरअपनब
शतुओं से पेम करो और जो तुम पर अतयाचार करते िै, उनके िलए पाथकना करो। इससे तुम अपन स े व िगककिपताकीसतान
बनजाओगे; ियोिक वि भले और बुरे, िोनो पर अपना सूय उगाता तथा धमी ओर अधमी, िोनो पर पानी बरसाता िै। यिि तुम
उनिी से पेम करते िो, जो तुमसे पेम करते िै, तो पुरसकार का िावा कैसे कर सकते िो , तो कौन-सा बडा काम करते िो?
इसिलए तुम पूणक बनो, जैसे तुमिारा सविगकक िपता पूणक िै।
सावधान रिो। लोगो का धयान आकिषकत करन क े -कायोे का
ेिलएअपनध मक पिशकन न करो, निी तो तुम अपने
सविगकक िपता के पुरसकार से विंचत रि जाओगे।
जब तुम िान िेते िो , तो इसका िढंढोरा मत िपटवाओ। ढोगी सभा-गृिो और गिलयो मे ऐसा िी िकया करते िै, िजससे
लोग उनकी पशंसा करे। मै तुम लोगो से यि किता िूं- वे अपना पुरसकार पा चुके िै। जब तुम िान िेता िो , तो तुमिारा बाया
िाथ यि न जानन प े ा य े ि क त ु म ि ा र ा ि , जो सबकुछ।तुिेख
ायािाथियाकररिािै ता िै , पतरिेऔरतुमिारािपता
मिारािानगु
तुमिे पुरसकार िेगा।
ढोिगयो की तरि पाथकना निी करो। वे सभागृिो मे और चौको पर खडा िोकर पाथकना करना पसि करते िै , िजससे
लोग उनिे िेखे। मै तुम लोगो से यि किता िूं-वेअपना पुरसकार पा चुके िै। जब तुम पाथकना करते िो , तो अपन क े मरेमेजाकर
दार बनि कर लो और एकानत मे अपन ि े प त ा सेप,ाथकजो
नाकरो।तु
एकानत मको भी िेखता िै, तुमिे पुरसकार िेगा।
िारािपता
पाथकना करते समय गैर-यूििू ियो की तरि रट मत लगाओ। वे समझते िै िक लमबी लमबी पाथकनाए क े ेिमारी
ं रनस
सुनवाई िोती िै। उनके समानमत बनो , ियोिक तुमिारी मागन स े े प ि ल े ि ी -िकन चीजो कीिकतुमिेिकन
तुमिारािपताजानतािै
जररत िै। तो इस पकार पाथकना िकया करो:

िे सवगक मे िवराजमान िमोर िपता !


तेरा नाम पिवत माना जाये।
तेरा राजय आये।
तेरी इचछा जैसे सवगक मे , वैसे पृथवी पर भी पूरी िो।
आज िमारा पितििन का आिार िमे िे।
िमारे अपराध कमा कर, जैसे िमन भ े ी अ प न े परािधयोकोकमािकयािै।

और िमे परीका मे न डाल, बिलक बुराई से िमे बचा।
ू रो के अपराध कमा करोगे ,
यिि तुम िस तो तुमिारा सविगकक िपता भी तुमिे कमा करेगा। परनतु यिि तुम िस
ू रो को निी
कमा करोगो, तो तुमिारा िपता भी तुमिारे अपराध कमा निी करेगा।
ढोिगयो की तरि मुिं उिास बनाकर उपवास निी करो। वे अपना मंि मिलन कर लेते िै , िजससे लोग यि समझे िक वे
उपवास कर रिे िै। मै तुम लोगो से यि किता िूं-वे अपना पुरसकार पा चुके िै। जब तुम उपवास करते िो , तो अपन ि े स रमे
तेल लगाओ ओर अपना मुिं धो लो, िजससे लोगो को निी, केवल तुमिारे िपता को , जो अिशृय िै, तुमिे पुरसकार िेगा।
पृथवी पर अपन ि े ल ए पूंज,ीजमामतकरो
जिा मोरचा लगता िै, कीडे खाते िै और चोर सेध लगाकर चुराते िै। सवगक
मे अपन ि े ल येप,ूंजजिा न तो मोरचा िै, विी तुमिारा हिय भी रिेगा।
ीजमाकरो
आंख शारीर का िीपक िै। यिि तुमिारी आंख अचछी िै, तो तुमिारा सारा शरीर
पकाशमान िोगा; िकनतु यिि तुमिारी आंख बीमार िै, तो तुमिारा सारा शरीर अनधकारमय िोगा। इसिलए जो जयोित तुममे िै, यिि
विी अनधकार िै, तो यि िकतना घोर अनधकार िोगा।
ू रे से पेम करेगा , या एक का आिर और
कोई भी िो सवािमयो की सेवा निी कर सकता। वि या तो एक से बैर और िस
ू रे का ितरसकार करेगा। तुम ईशर और धन -िोनो की सेवा निी कर सकते।
िस
मै तुम लोगो से किता िूं,ख् िचनता मत करो-नअपन ज
े ीवन-िनवाि की, िक िम िया खाये और न अपन श े रीरकीख्
िक िम िया पिने। िया जीवन भोजन से बढकर निी? और िया शरीर कपडे से बढकर निी? आकश के िकयो को िेखो। वे न
तो बोते िै, न लुनते िै और न बखारो मे जमा करते िै। िफर भी तुमिारी सविगकक िपता उनिे िखलाता िै। िया तुम उनसे बढकर
निी िो? िचनता करन स े े त ु म म े स े क ? और कपडो
ौनअपनीआयु की िचनता करन स े
घडीभरभीबढासकतािै े तुममेसेकौन
अपनी आयु घडी भर भी बढा सकता िै ? और कपडो की िचनता ियो करते िो ? खेत के फूलो को िेखो । वि कैसे बढते िै !
वे न तो शम करते िै और न कातते िै। िफर भी मै। तुमिे िवशास ििलाता िंू िक सुलेमान अपन पेूरे -ठाट-बाट मे उनमे से एक की
भी बराबरी निी कर सकता था। रे अलप-िवशािसयो ! खेत की घास आज भर िै और कल चूले मे झोक िी जायेगी। उसे भी यिि
ईशर इस पकार सजाता िै, तो वि तुमिे ियो निी पिनायेगा।?
इसिलए यि किते िएु िचनता मत करो-िम िया खाये, िया िपये, िया पिने? इन सब चीजो की खोज मे गैर-यिूिी
लगे रिते िै। तुमिारा सविगकक िपता जानता िै, िक तुमिे इनसब चीजो की जररत िै। तुम सबसे पिले ईशर के राजय और उसकी
धािमककता की खोज मे लगे रिो और ये सब चीजे तुमिे यािी िमल जायेगी। कल की िचनता मत करो। कल अपनी िचनता सवय कर
लेगा। आज की मुसीबत आज के िलए बित ु िै।
िोष मत लगाओ, िजससे तुम पर भी िोष न लगाया जाये; ियोिक िजस पकार तुम िोष लगाते िो, उसी पकार तुम पर
भी िोष लगाया जायेगा और िजस नाम से तुम नापते िो, उसी से तुमिारे िलए भी नापा जायेगा। जब तुमिे अपनी िी आंख के शितीर
का पता निी, तो तुम अपन भ े ा ई क ी आ ं?
खकाितनकाियोिे िो मे शितीर िै, तो तुम अपन भ
जब तुमिारी िीखआंतेख े ाईसे
कैसे कि सकते िो , “मै तुमिारी आंख का ितनका िनकाल िं ू?” रे ढोगी ! पिले अपनी िी आंख के शितीर िनकाल लो। तभी
अपन भ े ा ई क ी आं ख क ा ितनकािनकालनक े ेिलएअचछीतरििेखसकोगे।
पिवत वसतु कुतो को मत िो और अपन म े ो त ी स ू अ र ो क े स ा म नमेतफेको।किीऐसानिोिकवेउनिेअ
कुचल िे और पलटकर तुमिे फाड डाले।

मागो और तुमिे ििया जायेगा; ढू ढ


ं ो और तुमिे िमल जायेगा; खटखटाओ और तुमिारे िलए खोला जायगा; ियोिक जो
मागता िै, उसे ििया जाता िै; जो ढू ढ
ं ता िै, उसे िमल जाता िै। और जो खटखटाता िै, उसके िलए खोला जाता िै।
मागो और तुमिे ििया जायेगा; ढू ढ
ं ो और तुमिे िमल जायेगा; खटखटाओ और तुमिारे िलए खोला जायगा; ियोिक जो मागता िै,
उसे ििया जाता िै; जो ढू ंढता िै; जो ढू ंढता िै, उसे िमल जाता िै और जो खटखटाता िै, उसके िलए खोल ििया जाता िै।
यिि तुमिारा पुत तुमसे रोटी मागे, तो तुममे ऐसा कौन िै, जो उसे पतथर िेगा, अथवा मछली मागे, तो उसे साप िेगा? बुरे िोने
पर भी यिि तुम लोग अपन ब े चचोको
सज िी अचछी चीजे िेते िो, तो तुमिारा सविगकक िपता मागन व े ा ल ो ? ियोनिीिेगा
क ोअचछीचीजे
िस
ू रो से अपन स े ा थ जै,सावयविारचािते िो े साथ वैसा िी िकया करो। यिी संििता और निबयो की
तो तुम भी उनक
िशका िै।
संकरे दार से पवेश करो। चौडा िै वि फाटक और िवसतृत िै वि मागक , जो िवनाश की ओर ले जाता िै। उस पर चलने
वालो की संखया बडी िै। िकनतु संकरा िै वि दार और संकीणक िै वि मागक , जो जीवन की ओर ले जाता िै। जो उसे पाते िै ,
उनकी संखया थोडी िै।
झूठे निबयो से सावधान रिो। वे भेडो के भेस मे तुमिारे पास आते िै , िकनतु वे भीतर से खूंखार भेिडया िै। उनके फलो
से तुम उनिे पिचान जाओगे। िया लोग कंटीली झािडयो से अंगूर या ऊंटकटारो से अंजीर तोडते िै ?इस तरि िर अचछा पेड
अचछे पेड अचछे फल िेता िै और बुरा पेड बुरे फल िेता िै। अचछा पेड बुरे फल निी िेसकता और न बुरा पेड अचछे फल। जो
पेड अचछा फल निी िेता, वि काटा और आग मे झोक ििया जाता िै इसिलए उनके फलो से तुम उनिे पिचान जाओगे।
जो लोग मृझे “पभु ! पभु ! किकर पुकारते िै, उनमे से सब-के-सब सवगक के राजय मे पवेश निी करेगे। जो मेरे
सविगकक िपता की इचछा पूरी करता िै, विी सवगक के राजय मे पवेश करेगा। उस ििन बित
ु -से लोग मुझसे किेगे, पभु! िया िमने
आपका नाम लेकर भिवषयवाणी निी की ? आपका नाम लेकर अपित ू ो को निी िनकाला ? आपका नाम लेकर बित ु -से चमतकार
निी ििखाये ?” तब मै उनिे साफ-साफ बात िंगूा, “मै तुम लोगो को कभी निी जाना। रे कुकिमकयो ! मुझसे िरू िटो।”
जो मेरी ये बाते सुनता और उन पर चलता िै, वि उस समझार मनुषय के सिश ृ िै , िजसन च े ट ानपरअपनाघर
बनवाया था। पानी बरसा, निियो मे बाढ आयी, आंिधया चली और उस घर से टकरायी। तब भी वि घर निी ढिा, ियोिक
उसकी नीव चटान पर डाली गयी थी।
जो मेरी ये बाते सुनता िै, िकनतु उन पर निी चलता, ृ िै ,
वि उस मूखक के सिश िजसन ब े ा ल ू परअपनाघरबनवाया।पानी
बरसाया, निियो मे बाढ आयी, आंिधया चली और घर से टकरायी। वि घर ढि गया और उसका सवकनाश िो गया।”
ु , तो लोग उनकी िशका पर बडे अचमभे मे पड गये ; ियोिक वि उनके पिंडतो की
जब ईसा का वि उपिेश समापत िआ
तरि निी, बिलक अिधकार के साथ िशका िेते थे।
0: 0

१. -सतय िी परमेशर िै। सतय-आगि, सतय-िवचार, सतय-वाणी और सतय-कमक ये सब उसके अंग िै। जिा
सतय िै, विा शुद जान िै। जिा शुि जान िै , विा आननि िी िो सकता िै।
२. -सतय िी एक परमेशर िै। उसके साकातकार का एक िी मागक , एक िी साधन, अििसंा िै। बगैर
ं ा के सतय की खोज असमभव िै।
अििस
३. -बहचयक का अथक िै, बह की-सतय की–खोज मे चया, अथात् उससे समबनध रखन वेाला
आचार। इस मूल अथक मे से सवेिनदय-संयम का िवशेष अथक िनकलता िै। केवल जननेिदय -संयम के अधूरे अथक को तो िमे भूल
जाना चाििए।
४. -मनुषय जबतक जीभ के रसो को न जीते तबतक बहाचयक का पालन अित किठन िै। भोजन केवल
शरीर-पोषण के िलए िो , सवाि या भोग के िलए निी।
५. ( )-िसूरे की चीज को उसकी इजाजत के िबना लेना तो चोरी िै िी , लेिकन मनुषय
अपनी कम-से-कम जररत के अलावा जो कुछ लेता या संगि करता िै , वि भी चोरी िी िै।
६. -सचचे सुधार की िनशानी पिरगि-वृिद निी, बिलक िवचार और इचछापूवकक पिरगि कम करना उसकी
िनशानी िै। जयो-जयो पिरगि कम िोता िै, सुख और सचचा सतोष बढता िै, सेवा-शिित बढती िै।
७. -जो सतयपरायण रिना चािे, वि न तो जात-िबरािरी से डरे, न सरकार से डरे, न चोर से डरे, न बीमारी
या मौत से डरे, न िकसी के बुरा मानन स े ेडरे।
९. -िनवारण-छुआछू त ििनिू -धमक का अंग निी िै; इतनािी निी, बिलक उसमे घुसी िईु सडन िै, विम िै,
पाप िै और उसका िनवारण करना पतयेक ििनि क ू ाधमक , कतक
िै वय िै।
९. -शम-िजनका शरीर काम सकता िै, उन सती-पुरषो को अपना रोजमरा का सभी काम, जो खुि करने
लायक िो, खुि िी कर लेना चाििए और िबना कारण िस ू रो से सेवा न लेनी चाििए।

जो खुि मेिनत न करे, उनिे खान क े ा ि ?


किीियािै
१०. -समभाव-िजतनी इजजत िम अपन ध े म ,क कीकरते उतनी िीिै इजजत िमे िस ू रो के धमक की करनी
चाििए। जिा वृित िै, विा एक-िस ू रे के धमक का िवरोध िो िी निी सकता , न परधमी को अपन ध े म क म े ीकोिशशिीिो
े लानक
सकती िै, बिलक िमेशा पाथकना यिी की जानी चाििए िक सब धमों मे पाये जानवेाले िोष िरू िो।
११. -अपन आ े स प ा स र ि नवेालोकीसे -धमक विैामे।ओजोतपोतिोजानासविे
िनकटवालो कीशसेी वा
छोडकर िरूवलो की सेवा करन क े , वि सविेशी का भगं करता िै।
ोिौडतािै

ं ातमक साधनो दारा पूणक सवराजय की रचना किा जा सकता िै।...उसके


रजचातमक कायककम को सतय और अििस
एक-एक अंग पर िवचार करे।
१. -एकता का मतलब िसफक राजनिैतक एकता निी िै...सचचे मानी तो िै वि ििली िोसती, जो तोडे
न टूटे। इसतरि की एकता पैिा करन क े े ि ल , वे िकसी भी धमक
ए स ब स े पिलीजररतइसबातकीिै के माननव
िककागे सजने ाले
िो, अपन क े ोििनिू
, मुसलमान, ईसाई, पारसी, यिूिी सभी कौमो का नुमाइिंा समझे।
२. -िनवारण-ििरजनो के मामले मे तो िरेक ििनि क ू ो य ि स म झनाचाििएिकििरजनोकाकाम
उसका अपना काम िै।
३. - -अफीम, शराब, वगैरि चीजो के वयसन मे फंसे िएु अपन क े -बिनो के भिवषय को सरकार की
रोडोभाई
मेिरबानी या मरजी पर झूलता निी छोड सकते।...इन वयसनो के पज
ं े मे फंसे िएु लोगो को छुडान क े े उपायिनकालनिेोगे।
४. -खािी का मतलब िै िेश के सभी लोगो की आिथकक सवततंता और समानता का आरमभ। खािी को अपनाना
चाििए। खािी मे जो चीजे समाई िईु िै, उन
सबके साथ खािी को अपनाना चाििए। खािी का एक मतलब यि िै िक िममे से िरेक को समपूणक सविेशी की भावना बढानी और
िटकानी चाििए।
५. -िाथ सेपीसना, िाथ से कुटना और पछोरना , साबुन बनाना, कागज बनाना,
िियासलाई बनाना, चमडा कमाना, तेल पेरना और इस तरि के िस
ू रे सामािजक जीवन के िलए जररी और मितव के धध
ं ो के िबना
गावो की आिथकक रचना समपूणक निी िो सकती।
६. - िेश मे जगि-जगि सुिावन औ े -छोटे गावो
रमनभावनछे ोटे के बिले िमे घूरे -जैसे गाव
िेखन क े ...ििमारा
ोिमलते ै। फजक िो जाता िै िक गावो को सब तरि से सफाई के नमून बेनावे।
७. -बुिनयािी तालीम ििनिसुतान के तमाम बचचो को , चािे वे गावो के रिनवेाले िो या शिरो
के; ििनिसुतान के सभी शेष ततवो के साथ जोड िेती िै। यि तालीम बालक के समन और शरीर िोनो का िवकास करती िै।
८. - -बडी उम के िेशवािसयो को जबानीयानी सीधी बातचीत दारा सचची राजैितक िशका िी
जाय।
९. -सती को अपना िमत या साथी मानन क े े ब ि ल े प ु े पनक
रषनअ े ोउसकासवामीमान
कागेसवालो का यि खास कतकवय िै िक वे ििनिसुतान की िसतयो को इस िगरी िईु िालत से िाथ पकडकर ऊपर उठावे।
१०. -िमारे िेश की िसूरो िेशो से बढी-चढी मृतयु-संखया का जयािातर कारण
िनशय िी वि गरीबी िै, जो िेशवािसयो के शरीरो को कुरेि -कर खा रिी िै; लेिकन अगर उनको तनिर ु सती के िनयमो की ठीक -
ठीक तालीम िी जाय तो उसमे बित
ु कमी की जा सकती िै।
जब बीमार पडे तब अचछे िोन क े े ि ल ए अप न स े ाधनोकीमायािाकेअनुसारपाकृितकिचिकतसाकर।
११. -ििनिसुतान की मिान भाषाओं की अवगणना की वजि से
ु िै , उसका कोई अनिाजा िम निी कर सकते।....जब-तक जन-साधारण को अपनी बोली
ििनिसुतान को जो बेिि नुिसान िआ
मे लडाई के िर पिलू व किम को अचछी तरि से निी समझाया जाता , तबतक उनसे यि उममीि कैसे की जा सकती िै िक वे
उसमे िाथ बटावे ?
१२. -समूचे ििनिसुतान के साथ वयविार करन क े े -भाषाओं मे से एक ऐसी
िलएिमकोभारतीय
भाषा की जररत िै, िजसे आज जयािा-से-जयािा

तािाि मे लोग जानते और समझते िो , बाकी के लोग िजसे झट से सीख सके , और वि भाषा ििनिी (ििनिसुतानी) िी िो सकती
िै।
१३. -आिथकक समानता के िलए काम करन क े ा म त ल बि ै पूंजीऔरमजिरूोकेबीचझगडोको
िमेशा के िलए िमटा िेना। ....अगर धनवान लोग अपन ध े न क ो औ र -खुशी सेे ालीसताकोखुिराजी
उ स केकारणिमलनव
छोडकर और सबके कलयाण के िलए सबो के साथ िमलकर बरतन क े ो त ै य ा र न ि ो ं
ग ेतोयितयसमिझयेिकिमारेमुलकमेििस
और खूंखार काित िएु िबना निी रिेगी।
१४. -सवराजय की इमारत एक जबरिसत चीज िै, िजसे बनान म े े अ स स ी करोडिाथोकाकामिै।इनबनाने
वालो मे िकसानो की तािािसबसे बडी िै। सच तो यि िै िक सवराजय की इमारत बनानवेालो मे जयािातर (करीब ८० फीसिी) वे
िी लोग िै; इसिलए असल मे िकसान िी कागेस िै, ऐसी िालत पैिा िोनी चाििए।
१५. -अिमिाबाि के मजिरू -संघ का नमूना समूचे ििनिसुतान के िलए अनुकरणीय िै , ियोिक वि शुि अििसंा की
बुिनयाि पर खडा िै।....मेरा बस चले तो ििनिसुतान की सब मजिरू-संसथाओ का संचालन अिमिाबाि के मजूिर -संघ की नीित
पर करं।
१६. -आििवािसयो की सेवा भी रचनातमक कायककम का एक अंग िै।....समूचे ििनिसुतान मे आििवािसयो
की आबािी िो करोड िै।...उनके िलए कई सेवक काम रिे िै। िफर भी उनकी संखया काफी निी िै।
१७. -यि एक बिनाम शबि िै। िफर भी िममे जो सबसे शेष या बढे चढे िै। , उनिी की तरि कुष
रोगी भी िमारे समाज के अंग िै। पर िकीकत यि िै िक िजन कुष -रोिगयो की सार-संभाल की सबसे जयािा जररत िै, उनिी
की िमारे यिा जान-बूझकर उपेका की जाती िै।
१८. -िवदाथी भिवषय की आशा िै। इनिी नौजवान िसतयो और पुरषो मे से तो राषट के भावी नतेा
तैयार िोन व े ा -वाली
लेिै।िवदािथक राजनीित मे कभी शािमल निी िोना चाििए। उनिे राजनिैतक िडताले निी करनी
योकोिलबनिी
चाििए। सब िवदािथकयो को सेवा की खाितर शासतीय तरीके से कातना चाििए। अपन पेिनने -ओढन क
े े िलए वे िमेशा खािी का
इसतेमाल करे।
१९. -गोरका मुझे बितु िपय िै। मुझे कोई पूछे िक ििनि ध ू मकक-ाबडे
से-बडा बाह सवरप िया िै, तो मै
गोरका बताऊंगा। मुझे वषों से िीख रिा िै िक िम इस धमक को भूल गये िै। ििुनया मे ऐसा कोई िेश मैन क े ि ी निीिेखाजिागाय
के वश
ं की ििनिसुतान जैसी लावािरस िालत िो।

-
“ ”

यरविा-जेल मे रात को जब बािरश आती तब खाट उठाकर बरामिे मे लाना भारी पडता था। इसिलए गाधीजी न मेेजर
से िलकी खाट मागी।
े िा,
उसन क “नािरयल की रससी की चारपाई िै। िया उससे काम चलेगा? आप किे तो नािरयल की रससी
िनकालकर उसे िनवाड से बुन ििया जाय।˝
शाम को खाट आई। गाधीजी बोले, “यि ठीक िै। इस पर िनवाड चढान क े ी क ो ई जररतनिी।मेरािबसतराआज
इसी पर करना।˝
े िा, “िया किा? इस पर भी सोते िै ? गदे मे नािरयल के बाल िया कम िै , जो नािरयल की रससी पर सोना िै
वललभभाई न क
! बस चारो कोनो पर नािरयल बाधना बाकी िै। ऐसी बिशगुन खाट से काम न चलेगा। इसमे कल िनवाड भरवा िंगूा।˝
गाधीजी बोले, “निी, वललभभाई, िनवाड मे धूल पर भर जाती िै। वि धूलती निी। इस पर पानी उंडेलना तो साफ।
˝
वललभभाई न उ , “िनवाड धोबी को िो तो िसूरे ििन धुलकर आई।˝
े तरििया
गाधीजी बोले, “मगर यि रससी िनकालनी निी पडती, यिी धुल जाती िै।˝
मिािेवभाई नभे ी गाधीजी का समथकन िकया। किा, “यि तो गमक पानी से धोई जा सकती िै और इसमे खटमल भी निी
रिते।˝
वललभभाई बोले, “चलो, अब तुमन भ े ी र ा य ि े िी।इसखाटमे -खटमल तइतन
ोिपससूि े ो त ेिैिकपू˝छोमत।
गाधीजी न के िा, “मै तो इसी पर साऊंगा। मुझे याि िै, बचपन मे िमारे यिा ऐसी िो खोटे काम मे आती थी। जब
अिरक का अचार डालना िोता तो अिरक को चाकू से साफ न करके मेरी मा इस खाट पर िघस लेती थी। इससे सब िछलके साफ
िो जाते थे।”
वललभभाई बोले, “इसयी तरि इन मुटी भर िििडयो पर से चमडी उधड जायेगी। इसीिलए किता िंू िक िनवाड लगवा
लीिजये।”
गाधीजी न उ , “िनवाड तो ‘बूढी घोडी लाल लगाम’ जैसी िो जायगी। इस खाट पर िनवाड शोभा निी िेगी।
े तरििया
इस पर तो नािरयल की रससी िी अचछी लगेगी।
पानी डालते िी वि िबलकुल धुल जायगी , जैसे कपडे धुल जाते िै , और वि कभी सडेगी निी यि िकतना आराम िै !”
े िा, “खैर, मेरा किना न माने तो आपकी मजी।”
वललभभाई न क
और गाधीजी न उ े स ी खाटकापयोगिकया।
-

उस ििन गाधीजी शीमती अरणा आसफअली के साथ वाइसराय से िमलन ग े य े ि ए ु थेिकपिंडतजवािरलालनिेर


ु े। एक कोन म े
भगंीबसती मे आ पिंच े क ू ि न क , उसे उठाकर
े ीरससीरखीिई
ु थी।बस
कूिन ल े ग े।मनु,सेबोले
“तुमिे रोज
सवेरे सौ बार कूिना चाििए और ऊपर से िध
ू पी लेना चाििए। इससे तुम पिलवान बन जाओगी। िफर बुखार कैसे आ सकता िै ?
और तुमिारी जैसी जवान लडकी को जुकाम ियो िो !”
ये बाते िो िी रिी थी िक गाधीजी न क े म र े मे पै र , “िया िोनोिे ाथमेरससीिेखकरबोले
रखा।जवािरलालजीक
कूिन क े ी ? ” िो
ि ोडलगारिे
ं ते -िस
ं पडे। िस
सब लोग िस ं ते जवािरलालजी बोले, “इस लडकी को रससी बूिन क े े ल ा भ बतारिाथा।विइस
पकार करे तो जुकाम और बुखार, जो इसे बार-बार परेशान करते िै , भाग जाय। े ाििए।”
ं इसे आसन भी करन च
गाधी जी न उ , ‘‘िबलकुल सच बात िै। जब मै इगंलैड मे था तो मेरे पास बितु गमक कपडे निी थे। विा बडी सखत
े तरििया
सिी थी, िफर भी निाये िबना अचछा निी लगता था। इसिलए मै खूब िौडता था, िजससे शरीर मे गमी आ जाती थी। मै विा
अपना सवासथय िबिढया रख सका, तो केवल कसरत के पाताप से िी। लोगो का यि िवचार था िक यिि मै मासािारी निी बनूंगा ,
तो काम निी चलेगा।’’

एक बार सुपिरिचत जैन िवदान पिंडत सुखलालजी को आशम मे भोजन के िलए आमिनतत िकया गया। पाथकना के बाि
गाधीजी न स े ब क ो भ ो ज न , ि“ंक
प रोसा।गे ु मीठा कुछ भी निी िै। िया यि सब भायेगा ?
ीरोिटयाऔरसागपरोसकरविबोले
यिा तो सिा िी फीकापन रिता िै। आपन क े भ ी ?˝
फीकाखानाखायािै

गाधीजी न ि े स , “तब तो तुमिे यि आशम सुिा जायगा।˝


ं करकिा
उस ििन एकािशी थी। गाधीजी नािरयल का िध ू और खजूर आिि लेकर िी बैठे थे िक एक सजजन उनसे िमलन क
े े
िलए आ पिंच
ु े। गाधीजी न उ े नसे,क“िाजरा बैिठए, मै भोजन करके अभी आता िूं। ”
लेिकन गाधीजी का भोजन िया पाच-िस िमनट मे समापत िोनवेाला था? वि सजजन बैठे-बैठे ऊब गये और बडी नमता
से बोले, “आपको तो बितु समय लग गया।˝
ं पडे। किा, “अभी एक घट
गाधीजी िस ं ा किा िआ ु िै?”
वि सजजन बोले, “ऐसे फलािार और खजूर भर खान म े े ए कघ ट ं !”ालगानातोआशयककीबातिै
गाधीजी न उ , “इसमे अशयक कैसा ! मुझे कोई तुम जैसा अलपजीवी थोडे िी बनना िै। ˝
े तरििया
वि सजजन बोले, “तो िया आप इतन ध े ी र े खानसे ?”
ेिीघकजीवीबनजायगंे
गाधीजी न उ , “जरर, मुझे तो पूरे सौ वषक जीना िै और उसका उपाय यिी िै। ”
े तरििया
-

एक ििन गाधीजी सूत कातन क े े ब ा ि उ स े ल प े ट े े ारिेथेिकअचानकिकसीआवश


प रलपेटनज
बािर जाना पडा। जाते समय उनिोन अ े पनसे-टेटाइिपसट
नो शी सुबैया से किा, “सूत लपेटे पर उतार लेना , तार िगन लेना
और पाथकना के समय से पिले मुझे बता िेना। ”
सुबैया न उ , “जीिा, मै कर लूंगा।”
े तरििया
गाधीजी चले गये। साधया-पाथकना के समय आशमवािसयो की िािजरी ली जाती थी। पतयेक उपिसथत वयिित अपना नाम
बोले जान प े र ॐ क ि त ा थ ा । उ सीसमयउसनि, उनकी संे कतनस
खया ेभीूतबता
केतारकाते
िेता था।
िै उसी सूची मे सबसे
पिला नाम गाधीजी का था। उस ििन भी िनयमानुसार सब लोग पाथकना के िलए इकटे िएु। गाधीजी का नाम पुकारा गया। उनिोने
उतर मे किा, “ॐ”।
लेिकन सूत के तारो की संखया तो उनिे मालूम िी निी थी। उनिोन स े ू ब ै य ा क ीओरिेखा।सुबैयाचुपरिगये।गाधीज
भी चुप रिे।

िािजरी समापत िो गई। पाथकना भी समापत िो गई। पाथकना के बाि गाधीजी आशमवािसयो से कुछ बातचीत िकया करते थे , लेिकन
उस ििन गमभीर थे, जैसे उनके अनतर मे गिरी वेिना िो , जैसे मन मे मनथन चल रिा िो। उनिोन वेयथा-भरे सवर मे किना
आरमभ िकया, “मैन आ े ज भ ा ई स ु ब ै य ा स े क ि ा थ ा ि कमेरासूतउतारलेनाऔरमुझेतारो
गया। सोचा था, सुबैया मेरा काम कर लेगे, लेिकन यि मेरी भूल थी। मुझे अपना काम आप करना चाििए था। मै सूत कात
चुका था, तभी एक जररी काम सामन आ े और मै सुबैया से सूत उतारन क े
गया ो क ि क र ब ािरचलागया।जोकाममुझेपिले
करना था, वि निी िकया। भाई सुबैया का इसमे कोई िोष निी िोष मेरा िै। मैन ि े य ो अ ? मुझेभसेरोसेछोडा
पनाकामउनक
ु ? सतय के साधक को ऐसे पमाि से बचना चाििए। उसे अपना काम िकसी िस
यि पमाि ियो िआ ू रे के भरोसे निी छोडना चाििए।
आज की इस भूल से मैन ए े क ब ि त ु बड ा प ा ठ सीखािै”।अबमैिफरऐसीभूलकभीनिीकरंगा।

“ ”
उस वषक लािौर मे कागेस-अिधवेशन के साथ -साथ चखासंघ की ओर से खािी पिशकनी भी िोन व , उसके िलए
े ालीथी
िचत आिि तैयार करन क े ा भ ा र श ी र ा व ज , जोलपरथा।उनिे
ीभाईपटे अनपढ जनताऐसेकीसमझ
िचतोकीआवशयताथी
मे भी

आ जाय।
आशम मे ऐसा कोई िचतकार निी था। नगर के एक िचतकार दारा िी वे िचत तैयार कराये गए। वे बारि िचत थे।
उसका मूलय िआ
ु १२० रपये।
ु पसन िएु, पूछा, “िकतना खचक िआ
गाधीजी उन िचतो को िेखकर बित ु ?”
शी पटेल न उ , “१२० रपये।”
े तरििया
ु िु :खी िएु। बोले,
यि सुनकर गाधीजी बित “ये िचत तो िकसी धनवान के घर को सुशोिभत करन ल े ा यकिै।वेिी
इतन प े ै स े ि े सक त े ि ै । ि म त ो ि ि र दनारायणकेपितिनिधिै।िमारेिलएइ
िै। अगर िमन ख े ा ि ी प ि श क नीक-ेिलएिकसीसे
न-कोई ऐसा िमल िी जाता।” िफर सिसा पूछा,
किािोतातोकोई “ये िचत
िकतन ि े ि न ?”
ोमेतैयारिएुिै
शी पटेल न उ , “लगभग बारि ििन लगे िै।”
े तरििया

वि बोले, “तो मेिनताना िस रपये रोज पडा। आज ििनिसुतान मे िकतन ल े ो ग ो क ोिसरपये ! कातनरोजिमलते
व े िाले
ै और
बनजारे को िया िमलता िै ? यि तुमन ि े क ? सीसे
इस ािै मुलक मे मजिरूी उतनी िी िनिशत करनी चाििए, िजससे कोई
पूछगरीब
भूखो न मरे !”
उस समय बुनकर शी रामजीभाई आ गये। गाधीजी न उ े नसे, पूछ“ा ियो रामजी, तुम रोज िकतन ग े ज बुनतेिोओर
उससे तुमिे िया िमलता िै?”
रामजीभाई न उ , “बापू, लगातार काम करे तब मिीन म े े
े तरििया -बीस रपये
ब डीकिठनतासेपनदििमल जाते िै।”
शी पटेल की ओर िेखकर गाधीजी बोले , “िेखो, सारा ििन काम करन प े र भ ी र ा म े ेजयािानिी
जीभाईकोआठआनस
िमलते और एक िचतकार को िस रपये िमल जाते िै ! यि किा का इस ं ाफ िै ? मेरा बस चले तो िर तरि के मजिरू के िलए एक
आना घटं ा किा का इसं ाफ िै? मेरा बस चले तो िर तरि के मजिरू के िलए एक आना घट ं ा िनिशत कर िं।
ू वि चािे वकील िो या
डािटर या पुिलस अिधकारी या सरकारी अफसर, कोई भी ियो न िो ! इस िेश मे िर वयािित को आठ घणटे काम करना
चाििए।”
-

िेश के िवभाजन से कुछ ििन पूवक गाधीजी ििलली से कलकता जा रिे थे। मागक मे पटना सटेशन पर मंितमंडल के सभी
मंती उनसे िमलन आ े य े । ज न त ा क ी भ ी अ प ा र भ ीडथी।खूबचनिाइकटािकया।त
के रवाना िोन क े ा स म -मासटर सनौकर
यआगया।परनतु टेशन आिमी ठिरे। मंितगण गाधीजी से बातो मे वयसत िो, तो वि गाडी
कैसे चलाये ! सािस करके वि गाधीजी के पास आये। बोले , “रेल के चलन क े , परनतु आपको जररत िो
ा स मयतोिोगया
तो रोकूं। िजस समय किे, उस समय रवाना करं?”
कोई मनती इस पश का उतर िे, उससे पिले िी गाधी जी बोल उठे , “आप यि पूछन आ े ,येिइसमे
ै मै आपका िोष
निी पाता। आपको तालीम िी ऐसी िमली िै। लेिकन आप जैसे यिा पूछन आ े य े ि ै वै ? यििमेपविा
सेियािरिडबबे ूछनजने ायगंे
जाय त ं ो आप क ो य िा भ ी न आन ा च ा , परनतु
ििएथा।मै ये सता के भाव
कोईिािकतनिीि ूं।येसेमंतीआपकेिािकमजररिै
मुझसे िमलन न े ि ी आये।आपकाफजकिैिक

आप कानून के रल से जब गाडी रवाना करनी िै तब सीटी बजा िे। िा , आपको अफसरो न ि े कस ी कारणसेआपकोसिाकी
कोई िलिखत कायककम ििया िो तो बात िस
ू री िै। परनतु ऐसा निी तो आपको सिा की तरि काम करते रिना चाििए। मंितयो को
िेखकर आपको घबराना निी चाििए। मंितयो को भी आप लोगो को नौकर न समझकर छोटा भाई समझना चाििए। तभी िम सचचे
लोकतनत का आननि लूट सकेगे।.....आपको उलािना निी िेता, आप िु :ख न माने। परनतु यि िम सबको िशका िेनवेाला
मोका िमल गया, इसिलए इस समबनध मे न किूं तो आपको िया पता चले और अनतरातमा को भूल मालूम िो तब उसे सुधारे िबना
मुझसे निी रिा जाता। चिलये, आपको इतन ि े म न ट ि ि य े । अब ” िवधासेगाडीरवानाकरनमेेसंक
आपअपनीसु
सटेशन -मासटर न ग े ा ध ी ज ी , “मिातमाजीु खुकीशथेक।ैसबोले
क ोपणामिकया।विबित ी मिानता और िवशलता
िै। नौकरी लगन क े े ब ा ि तै त ा ल ी स व ष क क ,ीउममेऐसीिनडरताऔरबडे
इसीिलए तो अनुशासनकायिपिल
मिातमाजी िेश के राषटिपता किलाते िै। ”

सन् १९४७ मे गाधीजी जब िबिार की याता कर रिे थे, तो मनु न ि े े ख ा ि क उ नकीपेिसलबित


ु छोटीिोगईिै।
उसन उ े स क ी ज ग ि न ई प े ि स ल , “मेरा वि पेबिारिबजे
रखिी।रामकोसाढे टुकडा े तोसेउठाया।किा
सल कागाधीजीनउ
ले आओ।”
मनु बेचारी कुछ नीि मे थी। घबरा गई। लेिकन वि टुकडा तो ढू ढ
ं ना िी था। उसे याि निी था िक वि उसन क े िा
रखा िै। सवा बज गया तो गाधीजी अनिर आये और पूछा, “ियो, निी िमलती?”
े िा,
मनु न क “बापूजी, किी-न-किी रखकर मै भूल गई िूं।”

गाधीजी बोले, “ठीक िै, सवेरे ढू ढ


ं लेना। अब सो जाओ।”
सवेरे साढे तीन बजे पाथकना िईु। गाधीजी न ि े फ र प े ि -झोले की जेब मे से
स लकीयािििलाई।बडीकिठनतासे बगल
वि पेिसल िनकली। मनु न उ े स े तु र न त ग , “ििया।शानतभावसे
ा धीजीकोिे ठीक िै, िमल गगई
ाधीजीनके िारख
तो अब
िो। अभी जररत निी िै।”

मनु को बडा कोध आया। इतना परेशान िकया। खुि भी परेशान िएु और जब िमल गई तो किते िै , अब निी चाििए। खैर, कुछ
भी िो, उस टुकडे कोउसन स े ं भ ा ल क र र ख ि ि य ा ।लगभगिोिफतेबािगाधीज
भिवषय के समबनध मे चचा चल रिी थी। उनिे जरा भी फुसकत निी िोती थी , लेिकन अचानक रात को बारि बजे उनिोन म े नुको
उठाया। किा, “पटना मे मैन त े ु म ि े , वििसलकाटु
कालीपे लाना तो।”
कडािियाथा
मनु तुरनत वि टुकडा ले आई। संभालकर जो रखा िआ ु था। गाधीजी बोले, “अब तुम मेरी परीका मे उतीणक िो गई।
तुम जानती िो िक िमारा िेश िकतना गरीब िै। िजारो गरीब बालको को पेिसल का इतना छोटा टुकडा भी िलखन क े ोनिी
िमलता। तब िमे िया अिधकार िै िक इस तरि जिा-तिा पेिसल का टुकडा रख िे अथवा बेकार समझकर फेक िे? अभी तो
ु काम िे सकता िै। िमारे िेश मे इतना -सा पेिसल का टुकडा सोन क े
बित े ट ु क ड े क ेबराबरिै।यिजानकरतुमिेपिलेिी
ििनउसे संभालकर रखना चाििए था, परनतु तुमन ल े ा प र व , इियोिक
ािीसे तुमिारा खयाल िोगा िक बापू के
सेकिीरखिियाथा
पास बितु ेरी पेिसल आती िै। आज तुम तुरनत ले आयी, इसिलए परीका मे पास िो गई। मुझे अब िवशास िो गया िै िक तुमिारे
िाथ मे चीजे सौपी जा सकती िै।”
-

“ ”
“आराम करन क े ी ि ि ृ िस े ए कब ा रगं,धपतकार ीजीमसूरउनक
ीमेठिरे िएुथे-।पीछे
े पीछे वेकविी
िीभीजायं
पिंच

े -िमशन भारत मे िनिध न उ
जाते। उन ििनो तो कैिबनट , प“ूछअगर
े ससे ा आपको एक ििन के िलए भारत का तानाशाि बना ििया
जाय तो आप िया करेगे?”
गाधीजी न उ , “पिले तो मै उसे सवीकार िी निी करंगा, परतंु यिि मै
े तरििया
एक ििन के िलए तानाशाि बन िी गया तो ििलली के ििरजनो के झोपडे , जो वाइसराय भवन के असतबल जैसे िै , साफ करन मेे
वि ििन िबताऊंगा।”
े िा,
पितिनिध न क “मान लीिजये िक लोग आपकी तानाशािी िसूरे ििन भी जारी रखे?”
गाधीजी सिज भाव से बोले, “तो िस
ू रे ििन भी विी पिले ििन का काम जारी रिेगा।”
-

बित
ु पिले गाधीजी न क े च च ा अ न ा ज खा न क े ा प य ोगिकयाथा।औरवयिितयोकेसाथशीरिव
िलया था। गाधीजी पेट मे ििक िोन क े े क , लेु िकन
ा रणबित िबुलेवयास
िोगये को कोई िवशेष कि निी िआ
ु ।
एक मिीन क े े ब ा ि ग ा ध ी जी क ी , लेिकन शी वयास
े ेभीडनिे
य ििसथितिोगईिकबोलनम जबकउनके े गा
ििोनल
पास गये तो डािटर की आजा का उललंघन करते िएु उनिोन पेूछा, “तुमिारा शरीर कैसा िै ?”
वयासजी न उ , ठीक िै।”
े तरििया
गाधीजी न पेूछा, “वजन िकतना कम िआ ु ?”
वयासजी न उ , “जयािा निी, तीन पाव िी कम िआ
े तरििया ु , परनतु कमजोरी बित
ु मालूम िोती िै।”
गाधीजी न पेूछा, “काम करते िो?”
वयासजी न के िा, “सारे ििन सूत कातता रिता िूं। िकसी ििन सफाई आिि का काम िोता िै तो वि भी कर िलया
ू ”
करता िं।
गाधीजी न ि े फ ,रपू“छइतना
ा काम कर लेते िो?”
े िा,
वयासजी नक “जी िा।”
इस पर गाधीजी बोले, “तब और जयािा ताकत की इचछा ियो करते िो? जररत से जयािा ताकत शरीर मे िवकार
उतपन करती िै और आतमशिित का हास करती िै। ििकण अफीका मे इकीस मील पैिल चलकर मै वकालत करन ज े ाताथा।
शिनवार को तो बाईस मील पैिल चलता था। बडे सवेरे उठकर रात की रोिटया और नीबू का अचार साथ मे बाध लेता था। रासते
मे जो झरना पडता था, उसमे सनान करके िफतर पिंच
ु ता और खाना खाकर काम मे लग जाता। शिनवार को छोडकर और ििन
शाम के समय गाडी मे लौटता , इसिलए शरीर से िजतन क े ा म , उतनी िी ताकत की इचछा िोनी चाििए।˝
कीजररतिोतीिै

शी थमबी नायडू गाधीजी के ििकण अफीका के साथी थे। उनिोन अ े प न ल े ड क े गाधीजीकोसौपिियेथे।उनिीमेएक


लडका मरण-शैया पर पडा िआ
ु था।

िवाए क ं र क र क े बे च ा र ा घ ब र ा गयाथा।आशममेविइसिलएआयाथािकमौतआवेतोयिीआवे।
बारी-बारी से सभी आशमवासी उसकी िेखभाल करते थे। उनिी मे गाधीजी भी एक थे। अपनी बारी के अितिरित जब
कभी िवशेष िेखभाल की आवशयकता िोती, तब भी उनिे िािजर िोना पडता था।
एक रात की बात िै। बारि अजे उनकी बारी समापत िईु। उसक बाि शी फडके की बारी थी। गाधीजी न उ
े नसे
किा, “मुझे एक घटंे के बाि जगा िेना। “
बीमार के पास बैठन स े े त ो न ी ि आन क -उधर घूमन ल े इधरग े ।१५िमनटक
े ाडरथा।इसिलएशीफडक , ेबाि
गाधीजी के िबसतर के पास बजाकर उनिोन प े ा य ा ि क व ि ग ि र ी न ी ि मेसोएिएुिै।बीमारकीइतनीअिधक
नीि ! शी फडके आशयकचिकत िो उठे।
धीरे-धीरे एक घट
ं ा बीत गया। शी फडके गाधीजी को उठान ज े ा र ि े थ े ि ,
क एकिमनटपिले िीउनिोनपेूछिलया
“ियो, वित पूरा िो गया न?”
शी फडके को और भी आशयक िआ ु । गाधीजी बोले , “एक घटं े अचछी नीि आई।“
और वि बीमार के पाव जा बैठे। आध घटं े बाि बीमार न उ े न िी क ी ग ो ि मेिसररखकरपाणछोडे।उससमयउनिो
िकसी को निी जगाया।
-

!
ु था। उसी के साथ िआ
सन् १९१७ मे राषटीय कागेस का वािषकक अिधवेशन कलकता मे िआ ु था राषटभाषा सममेलन।
लोकमानय बाल गंगाधर ितलक इसके सभापित थे। कागेस और बगंाल के सभी नत
े ा इसमे भाग लेन आ े य े थ े।लेिकनवेसबबोले
अंगेजी मे। सरोिजनी नायडू भी अंगेजी मे िी बोली , यिा तक िक सभापित का भाषण भी अंगेजी मे िी िआ
ु । लेिकन जब गाधीजी
बोलन क े े ि ल ए ख ड े ि ए ु , तोजै
उसी े िा,थे
सीििनिीविउनििनोजानते
मे बोले। उनिोन क “लोकमानय िमारे सबसे बडे नतेा
िै। वि चािे जो करे , वि मितव का िै। परनतु राषटभाषा का सभापित यिि िविेशी भाषा मे बोले तो वि राषटभाषा सममेलन
कैसा ?”
लोकमानय न उ , “आप ठीक किते िै, पर मेरी तो लाचारी िै। मै जरा भी ििनिी निी जानता।”
े तरििया

े िा,
बडी नमता से गाधीजी न क “आप मराठी जानते िै, संसकृत जानते िै। ये िमारे िेश की भाषाए ि ं ै औ र येसरोिजनीिेवीतो
बित
ु अचछी उिक ज ू ा न त ी िै । य ?” गेजीमेिीबोलसकतीिै
िभीियाअं
उस कण के बाि िवा िी बिल गई। एक वयिित भी अंगेजी मे निी बोला। संधया के समय लोकमानय एक सावकजिनक सभा
मे भाषण िेन क े े ि ल ए ग ये।,ििनिीबोलते
“आज मैिएुपिले -पिल
उनिोनके िा ििनिी मे बोल रिा िूं। मेरी भाषा समबनधी िकतनी
गलितया िोगी, यि मै निी जानता, पर मै मानता िूं िक िमारी राषटभाषा ििनिी िै और िमे इसमे िी अपना काम करना चाििए।”
-

गाधीजी जब िकण अफीका से लौटे तो घूमते -घामते मदास गये। विा उनका बडा सवागत-सतकार िकया गया। उनिे और कसतूरबा
को एक मान-पत भेट िकया गया। उस मान-पत मे उनकी बित
ु अिधक पशंसा की गई थी। उसका उतर िेते िएु गाधीजी ने
किा, “अधयक मिोिय, इस मान-पत मेमेरे और मेरी पती के िलए िजस भाषा का पयोग िकया गया िै , यिि िम उसके िसवे
ििससे के भी िकिार िै तो मै निी जानता िक आप उन लोगो के िलए िकस भाष का पयोग करेगे , िजनिोन ि े िकणअफीकामे
अपन प े ी ि ड त ि े श व ? िे लएअपनप
ािसयोक और नारायणसवामी जैसे सति-अठारि वषक के
नागपपने ािणयोकीिचनताभीनिीकी
लडको को आप िकस भाषा मे याि करेगे, िजनिोन अ े प न ी म ा त ृ भ ू िमकीपितषाकेिलएिनिशलशदाकेस
अपमान सिे? उस सति वषक की पयारी लडकी वली अममा के बारे मे आप कौन -सी भाषा काम मे लेना चािेगे, जो मैिरतसवगक जेल
से कंकाल बनकर छूटी थी , और उसी के पिरणामसवरप एक मिीन क े े भ ?
ीतरचलबसीथी
ु ागय की बात िै िक मेरे और पती के काम के समबनध मे सभी लोग जानते िै। िमन ज े
यि िभ ो कुछ,िकयािै
उसका आपन बेेिि
बढा-चढाकर बखान िकया िै, लेिकन वासतव मे आप जो ताज िमारे िसर पर रखना चािते िै , उसके सचचे िकिार ये वयिित
िै।”
- 0 0

...
सेवागाम मे नाना पकार के वयिित आते रिते थे। िशव की बारात की तरि उनके नाना रप िोते थे। एक बार िया िआ
ु िक कुछ
अछू त जाितयो के सतयागिी अपन स े म ा ज की ि क सी क ि थ तिशकायतकेिवरदसतयागिकरनक
े ेिलएआशम
गाधीजी तो अजातशतु थे। उनिोन उ े न स त य , “आप लोग अपन रकिा े ि
ागिियोकासवागतिकया।उनसे न े ेिलएजगिका

चुनाव कर ले। आप चािे तो मै। कुिटया आपके िलए खाली कर िं।
ू ”
लेिकन उन लोगो न क े स तू र ब ा क ी क ु ि ट ,यामेरिनक “मै किा
े ीइचछापकटकी।िस
ं तेिएुकसतूरबानपेूछ
रिंूगी?”
गाधीजी बोले, “तुमिे जयािा सथान की जररत निी िागी और िया तुम जानती िो िक मैन त े ो अपनीकुिटयािेनपेसताव
िकया था।”
बा बोली, “आपन इ े स ी ि ल ए ”
िकयाथािकवे आपकेबालकिै।
े िा, “िया वे तुमिारे भी उतन ि े
गाधीजी न क ी ?”
बालकनिीिै
िनरतर बा मौन िो रिी और वे मेिमान जबतक रिे , उनिी की कुिटया मे रिे।
-

“ ”
गाधीजी की एक बिन थी। जब वि ििकण अफीका मे थे तो उनके पास जो कुछ था वि उनिोन आ े श मकोिेििया
था। भारत लौटे तो यिा भी उनिोन अ े प न ी स म प ि त प र स े अिधकारछोडिियाथा।सबकुछिेकरव
लेिकन अब उनकी बिन का िया िो? वि िवधवा थी। गाधीजी अपन ि े नज ी खच क किे लएिकसीसेपस
ै ानिीलेते
थे। लेिकन बिन का तो कुछ पबनध िोना िी चाििए। उनिोन अ े प न प े ु र ा न िेमतडािटरपाणजीवनिासमेितासेकि
गोकीबिन को िस रपये मिीना भेज ििया करे।
े गे,
मेिता सािब रपये भेजन ल लेिकन कुछ ििन बाि गोकीबिन की लडकी भी िवधवा िो गई और मा के पास आकर रिन ल
े गी।
िस रपये मािसक मे िोनो का गुजारा िोना असमभव था। बिनन ग , “अब खचक बढ गया िै और उसे पूरा करने
े ाधीजीकोिलखा
के िलए िमे पडोिसयो का अनाज पीसन क े ा ”
क ामकरनापडतािै ।
गाधीजी न उ े तरमे,िलखा “आटा पीसना बितु अचछा िै। िोनो का सवासथय अचछा रिेगा। िम भी आशम मे आटा
पीसते िै। और जब जी चािे , तुम िोनो को आशम मे आकर रिन औ े र बनस -े सेोजन
वा करन क े ा प ू राअिधकारिै।जैसेिम
रिते

िै वैसे िी तुम भी रि सकती िो। मै घर पर कुछ निी भेज सकता। न िमतो से िी कुछ कि सकता िूं। ”
जो बिन आटा पीसन क े ी म , ू ीकरसकतीथी
जिर उसे आशम का जीवन कुछ किठन निी मालूम िोना चाििए था।
लेिकन आशम मे तो ििरजन भी रिते थे न। उनके साथ रिना -सिना, खाना-पीना पुराना ढंग के लोग कैसे कर सकते थे ? बिन
निी आई। गाधीजी न भ े ी उ न क ेपैसेकापबनधनिीिकया।
-

“ ”

ु े तो पता चला िक पेट और िसर पर पितििन गीली िमटी को जो पिटया चढती थी, वे पीछे
जुिू से िविा िोकर जब गाधीजी पूना पिंच
निी छूट गई िै। तुरनत शािनतकुमार को पत िलखा िक पिटया भेज िे।
पत पाकर शािनतकुमारजी न इेधर -उधर पूछताछ की, पर वे पिटटया निी िमली। इसिलए उनिोन ख े ािीकीनईपिटया
बनवाकर उनिे भेज िी। गाधीजी का उतर आया, “मुझे नई पिटयो की जररत निी थी, पुरानी पिटया िी भेजो।”
बेचारे शािनतकुमार पुरानी पिटटया किा से लाते ! नौकरो न ब े ि त ु प ि
ल े िीउनिेचीथडेसमझकरफेकिि
गाधीजी थे िक फटे िएु कपडो मे से काटकर पिटया बनवा लेते थे।
े चछा -खासा भाषण िे डाला।
जब यि समाचार गाधीजी को िमला और शािनतकुमार से उनकी भेट िईु तो उनिोन अ
े िा,
उनिोन क “नई खािी की पिटया बनवाकर ियो भेजी? यि ियो मान िलया िक पुरानी पिटया फेक िी िेनी थी। तुमिे
िकफायतशारी की बात िकस तरि समझाऊं?”
शािनतकुमार न अ े प न ा , “बापूिएुजउतरििया
बचावकरते ी, मैन न े िीफे,कनौकरो
ी नि े ी फेक”िीथी।
गाधीजी बोले, “तब तो नौकर तुमसे बढ गये !”
-
अिमिाबाि मे गाधीजी का आशम साबरमी निी के तट पर था। १९२३ की वषा ऋतु मे इतन ज े ो र कापानीपडािक
निीमे भयानक बाढ आ गई। आशम के

ं ते थे,
िनचले भाग मे पानी भर गया। विा पर जो पशु बध उनिे ऊंचे सथान पर ले जाना पडा, लेिकन निी का पानी तो िकलोले
ु ऊंचा, और ऊंचा, चढता आ रिा था।
मारता िआ
शिर से सरिार वललभभाई पटेल का संिेशा आया िक आशम खाली कर ििया जाय और सब लोग शिर चले आवे। इसके
िलए सवारी का पबनध िकया जा रिा िै।
यि सिेशा पाकर गाधीजी िचनतामगन िो गये। उनिोन स े भ ी आ शम व ा िसयोकोतुरनतपाथकनासथलमेइकटेि
आिेश ििया। निी का पानी आशम के मागों पर लिराता िआ
ु चला आ रिा था। चारो ओर काल भगवान का रद रप उपिसथत िो
गया था।
सब लोग आ गये तब गाधीजी बोले, “भगवान काल-रप मे िशकन िेन क े े ि लए आ ए िै।मैइनकीलपलपातीजीभम
एक कण मे समा जान क े ी त ै य ा र ी क र र ि ा ि ू ं ।आशमखालीकरकेअिमिाबािशिरज
चािता िै? मै तो आशम के पशुओं को छोडकर शिर जान क े ी ”
इचछानिीरखता।
उन ििनो बमबई के एक वृद खोजा गुिसथ आशम मे आये थे। गाधीजी न उ े न स े , े ाआगििकया
शिरजानक लेिकन
गाधीजी कोअकेला छोड जान स े े उ न ि ो नसेपिइक -सथल मे निी का पानी निकललोल
ं ारकरििया।उससमयपाथक ा करता िआ

बढा जा रिा था। एक भाई न ग , “पमृूछतयुा के समुख आ जान प
े ाधीजीसे े र भ ी ?”सै ाआननििै
यिक
गाधीजी न त े , “यि सामूििक मृतयु का आननि िै।”
ुरनतउतरििया
-

भारत की िर चीज मुझे आकिषकत करती िै। सवोिय की आकाकाए र ं ख न व े ा लेिकसीवयिितकोअपनिेवकासकेिल


जो कुछ चाििए , वि सब उसे भारत मे िमल सकता िै।...
ू रे िेशो के धयेय से कुछ अलग िै। भारत मे ऐसी योगयता िै िक वि धमक के केत मे
मेरा िवशास िै िक भारत का धयेय िस
ििुनया मे सबसे बडा िो सकता िै। भारत न आ े त म श ु ि ि, केिलएसवेिि
उसका चछापू
ु नयावकक
मे जै
िस
ू सरा
ापयतिकयािै
उिािरण
निी िमलता...

मै भारत की भिित करता ि,ंू ियोिक मेरे पास जो कुछ भी िै , वि सब उसी का ििया िआ
ु िै, मेरा पूरा िवशास िै िक
उसके पास सारी ििुनया के िलए एक संिेश िै। ...
ं ा ि,ूं
मै भारत से उसी तरि बध िजस तरि कोई बालक अपनी मा की छाती से िचपटा रिता िै, ियोिक मै। मिसूस
करतािूं िक वि मुझे मेरा आवशयक आधयाितमक पोषण िेता िै। उसके वातावरण मे मुझे अपनी उचचतम पुकार का उतर िमलता िै।
यिि िकसी कारण मेरा यि िवशास ििल जाय या चला जाये तो मेरी िश उस अनाथ के जैसी िोगी , े ी
िजसे अपना पालक पान क
आशा िी न रिी िो....
ं और बलवान बना िआ
मै भारत को सवतत ु िेखना चािता िूं, ियोिक मै चािता िूं िक वि ििुनया के भले के िलए
सवेचछापूवकक अपनी पिवत आििुत िे सके। भारत की सवतत
ं ता से शाित और युद के बारे मे ििुनया की ििृि मे जडमूल से काित िो
जायेगी।....

भारत का भिवषय पिशम के उस रित् -रिंजत मागक पर निी िै, िजस पर चलते-चलते पिशम अब सवय थ ं कगयािै।
उसका भिवषय तो सरल धािमकक जीवन दारा पापत शािनत के अििस
ं क रासते पर चलन म े े ि ी ि ै । भारतकेसामनइेससमयअपनी
आतमा को खोन क े ा खत र ा उप ि स थ त ि ै औ र य िसंभविैिकअपनीआतमाकोखोजकरभीविज
आलसी की तरि उसे लाचारी पकट करते िएु ऐसा निी किना चाििए िक “पिशम की इस बाढ से मै निी बच सकता।” अपनी
और ििुनया की भलाई के िलए उस बाढ को रोकन य े ो ग य ... बननािीिोगा।
श िितशालीतोउसे
मै ऐसे संिवधान की रचना करवान क े , ं गाजो भारत को िर तरि की गुलामी और परावलमबन से मुित कर
ापयतकर
िे।....मै ऐसे भारत के िलए कोिशश करंगा , िजसमे गरीब-से-गरीब लोग भी यि अनुभव करेगे िक वि उनका िेश िै-िजसके
िनमाण मे उनकी आवाज का मितव िै। मै ऐसे भारत के िलए कोिशश करंगा , िसमे ऊंचे और नीचे वगों का भेि निी िोगा और
िजसमे िविवध समपिायो मे पूरा मेलजोल िोगा। ऐसे भारत मे असपृशयता या शराब और िसू री नशीली चीजो के अिभशाप के िलए कोई
सथान निी िो सकता। उसमे िसतयो को विी अिधकार िोगे, जो पुरषो के िोगे। चूंिक शेष सारी ििुनया के साथ िमारा समबनध
शािनतकर िोता, यानी न तो िम िकसी का शोषण करेगे और न िकसी के दारा अपना शेषण िोन िेेगे , इसिलए िमारी सेना छोटी-

से-छोटी िोगी। ऐसे सब िितो का, िजनका करोडो मूक लोगो के िितो से कोई िवरोध निी िै , पूरा सममान िकया जायगा।
यि िै मेरे सपनो का भारत।......

सवराजय एक पिवत शबि िै-वि एक वैििक शबि िै , िजसका अथक आतम-शासन और आतम-संयम िै।.....
सवराजय िमारी आंतिरक शिित पर, बडी किठनाइयो से जूझन क े ी ि म ा र ी त ा कतपरिनभकरकरतािै।सचपूछ
सवराजय, िजसे पान क े े ि ल ए अ नव र त प , सवराजय
यतऔरबचाये
रखनके ेिलएसततजागितनिीचाििए
किलान क े ेयोगयनिी
िै।....
मै वचन और कायक से यि ििखलान क े ी -पुरषोिकसती
क ोिशशकीिै के िवशाल समूि का राजनिैतक सवराजय एक -एक
वयिित के सवराजय से कोई जयािा अचछी चीज निी िै और इसिलए उसे पान क े ा , जो एक आिमी के आतम -सवराजय
तरीकाविीिै
या आतमसंयम का िै।....
सवराजय की रका केवल निी िो सकती िै , जिा िेशविसयो की जयािा बडी संखया ऐसे िेश-भितो कीिो, िजनके िलए
ू री सब चीजो से-अपन ि
िस े -िेश कीभभलाई
न जीलाभसे ी का अिधक मितव िो। सवराजय का अथक िै िेश की बिस
ु ंखयक जनता
ु ंखयक जनता नीित-भि िोया सवाथी िो, विा उसकी सरकार अराजकता की िी िसथित पैिा
का शासन। जाििर िै िक जिा बिस
कर सकती िै, िस
ू रा कुछ निी। ....
मेरे-िमारे-सपनो के सवराजय मे जाित या धमक के भेिो को कोई सथान निी िो सकता। उस परी िशिकतो या धन वालो का
एकािधपतय निी िोगा। वि सवराजय सबके िलए -सबके कलयाण के िलए -िोगा। सबकी िगनती मे िकसान तो आते िी िै, िकनतु
लूले, लंगडे, अंधे और भूख से मरन व े ालेल-ाखो
करोडो मेिनतकश मजिरू भी अवशय आते िै।.....

ं का सार यि िै िक उसमे िरेक वयिित उन िविवध सवाथों का पितिनधतव करता िै , िजनसे राषट बनता िै।
पजातत
ं मे नीचे-से-नीचे और ऊंचे-से-
ं का अथक यि समझा िूं िक इस तत
पजातत

ऊंचे आिमी को आगे बढन क े ा स ; लेिकन िसवा अििसंा के ऐसा कभी निी िो सकता।
मानअवसरिमलनाचाििए
ं वािी वि िोता िै,
जनमजात लोकतत जो जनम से िी अनुशासन कापालन करन व े ा ल ा ं सवाभािवकरपम
िो।लोकतत
उसी को पापत िोता िै, जो साधारण रप मे अपन म े ा न व ी ओ र ि ै वीसभीिनयमोकासवेचछापूवककप
ले।....लोक-तत ं वािी को िन:सवाथक तो िोना िी चाििए। उसे अपनी या अपन ि े , ृ िसे
ल कीिि बिलक ं की
निीएकमात लोकतत
िी ििृि से सबकुछ सोचना चाििए।
सवोचचकोिट की सवतत ं ता के साथ सवोचचकोिट का अनुशासन और िवनय िोता िै। अनुशासन और िवनय से िमलने
वाली सवततं ता को कोई छीन निी सकता। संयमिीन सवचछनिता संसकारिीनता की दोतक िै। उससे वयिित की अपनी और
पडोिसयो की भी िािन िोती िै।...
वयिितगत सवतत ं ता की मै कद करतािंू, लेिकन आपको यि ििगकज निी भूलना चाििए िक मनुषय मूलत: एक
सामािजक पाणी िै। वयिितगत सामािजक पगित की आवशयकताओं के अनुसार अपन व े य ि ित तवकोढालनासीखकरिीवतकमान
िसथित तक पिंच ं ता और सामािजक संयम के बीच समनवय
ु ा िै। अबाध वयिितवाि वनय पशुओं का िनयम िै। िमे वयिितगत सवतत
करना सीखना िै। समसत समाज के िित के खाितर सामािजक संयम के आगे सवेचछतापूवकक िसर झुकान स े े ,
वयिितऔरसमाज
िजसका िक वि एक सिसय िै, िोनो का िी कलयाण िोता िै।
जो वयिित अपन क े त क व ,यकाउिचतपालनकरतािै
उसे अिधकार अपन आ े प ि म ल ज ा तेिै।सचतोयििैिक
एकमात अपन क े त क व य क , िजसके िलए िी मनुषय को जीना और मरना चाििए। उसमे सब
ेपालनकाअिधकारिीऐसीअिधकार
उिचत अिधका समावेश िो जाता िै।...

िमन ि े े ख ा ि क म न ु ष -धूपितयाचं
यकीवृ िकयाचकरता
लिै।उसकामनबे
िै। उसकाकशरीर जैसे-जैसे
ारकीिौड
जयािा िेते जायं , वैसे-वैसे जयािा मागता िै। जयािा लेकर भी वि सुखी निी िोता। भोग भोगन स े े भ ो गकीइचछाबढतीिै।
इसिलए िमारे पुरखो न भ े ो ग क ी ि ि ब ा -िु :खु सोचकरउनिोनि
धिी।बित तो मन के कारण
े ेखिैािकसु
। अमीर
ख अपनी
अमीरी की वजि से सुखी निी िै, गरीब अपनी गरीबी के कारण िु :खी निी िै। अमीर िु :खी िेखन म े , तािैगरीब सुखी
ेआ
िेखन म े ेआतािै।
करोडो लोग गरीब िी रिेगे, ऐसा िेखकर पूवकजो न भ े ो गकीवासनाछुडवाई।
उनिोन ि े े ख ा ि कर ा ज ा ओ ं औ र उनकीतलवारोकेबिनसबतनीितकाबलजयािा
राजाओं को नीितवान पुरषो-ऋिषयो और कलाकारो-से कम िरजे का माना।......
इस राषट मे अिालते थी, वकील थे, डािटर-वैद थे, लेिकन वे सब ठीक ढंग से, िनयम के अनुसार , चलते थे। वे
लोगो के मािलक बनकर निी रिते थे। आम पजा उनसे सवतत ं रिकर अपन ख े े त ो , खेती करके अपना
कामािलकीिकभोगतीथी
िनवाि करती थी। उसके पास सचचा सवराजय था।
भगवान के नाम पर ियका गया और उसे समिपकत िकया गया कोई भी काम छोटा निी िै। इस तरि िकये गए िरेक छोटे
या बडे काम का समान मूलय िै। ....
ं ा का पुजारी ‘सवकभूतििताय’ यानी सबके अिधकतम लाभ के िलए िी पयत करेगा।
अििस .....
जबतक सेवा की जड पेम या अििसं ा मे न िो, तबतक यि समभव िी निी िै। सचचा पेम समुद की तरि िनससीम िोता
िै और हिय के भीतर जवार की तरि उठकर बढते िएु वि बािर फैल जाता िै ओर सीमाओं को पार करके ििुनया के छोरो तक जा
ु ता िै।.......
पिंच
ं ार भूलकर शूनयता की िसथित पापत निी कर लेते, तबतक
जब िम अपना अिक
तबतक िमारे िलए अपन ि े ो ष ो ...
कोजीतनासमभवनिीिै ।
सतय की भिित के कारण िी िमारी िसती िो। उसी के िलए िमारा िरेक काम ,
िरेक पवृित िो।.....
सतय की खोज करनवेाला, अििस
ं ा बरतन वेाला, पिरगि निी कर सकता। परमातमा पिरगि निी करता। अपन िेलए
जररी चीज वि रोज-की-रोज पैिा करता िै। इसिलए अगर िम उस पर पूरा भरोसा रखते िै तो िमे समझना चाििए िक िमारी
जररत की चीजे वि रोजाना िेता िै और िेता रिेगा। ....
लाग किते िै, “आिखर साधन तो साधन िी िै।” मै किंग ू ा, “आिखर तो साधन िी सबकुछ िै। ” जैसे साधन िोगे,
वैसा िीसाधय िोगा। साधन और साधय को अलग करन व े ा ल ी क ो ई ि ी व ा र निीिै।गंिेसाधनोसेिमलनवेालीची
िोगी।
कोई असतय को निी पा सकता। सतय को पान क े े ि ल ए ि म े श ा सतयकाआचरणकरनािीिोगा।अिि
की जोडी िै न ? ं ा
ििगकज निी। सतय मे अििस
ं ा मे सतय।....पूरी-पूरी पिवतता के िबना अििस
िछपी िईु िै और अििस ं ा और सतय िनभ निी सकते। शरीर या मन की अपिवतता
िछपान स े े अ सत य औ ं ािीपै, िािोगी।इसिलएसतयवािी
रििस ं क और पिवत समाजवािी िी ििुनया मे ििनिसुतानी मे
अििस

समाजवाि फला सकता िै।
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मणडल दारा पकािशत
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● पथ के आलोक
● िमारे संत मिातमा
● िमारे पमुख तीथक
● िमारी आिशक नािरया
● बेताल पचचीसी
● िमारी बोध कथाएं

● िमारी नििया
● माताजी का ििवय िशकन
● बडो की बडी बात
● भारतीय लोक-कथाएं
● ईट की िीवार
● िवश की शेष किािनया
● िसंिासन बतीसी
● संतो की सीख
● बापू का पथ
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ससता सािितय मणडल

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