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मंती
ससता सािितय मणडल
एन-66, कनॉट सककस, नई ििलली-110001
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पाचवी बार : 2001
पितयॉँ : 1,000
मूलय : र. 30.00
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मुदक
बुकमैन िपनटसक
ििलली-92
िमारे िेश मे और ििुनया मे छोटा -बडा शायि िी कोई ऐसा िो, ििसे लोक-कथाओं के पढन य े ा स ुननमे े आननिन
आता िो। िमारे गावो मे तो आि भी ऐसे लोग मौिूि िै , िो चौधरी की चौपाल पर या और किी गाववािसयो को बडे िी रोचक ढंग
से लोक-कथाए स ं ु न ातेि-ैऔ किानी कभी-कभी कई-कई रात तक चलती िै। कया मिाल िक सुनन व
एकरउनकीएक े ालेऊब
िाय।ं
इस पुसतक मे िमन अ े ,े ेशिवशे
पनि कीषकर ििनिी-पिरवार की भाषाओं की, चुनी िईु लोक-कथाए ि ं ी िै।िमचािते
तो यि थे िक सारे भारत के पतयेक अंचल की किािनया अपन प े , लेिकन
ते थोडे-से पृषो मे इतनी सामगी आ निी
ाठकोकोिे
सकती थी। इसिलए िमन उ े , िो सरलनािो, सरस िो और मनोरिंक िो।
न किािनयोकोचु
िमे पूणक िवशास िै िक इस पुसतक को एक पुसतक को एक बार िाथ मे उठा लेन प े र प ा ठ किबनासमापतिकयेछोडनिी
सकेगे।
इस माला मे िमन औ े र भ , सकतके
ीपु ुछ ििनकाली
नकालीिैिा रिी िै। पाठको से िमारा अनुरोध िै िक वे इन सारी
पुसतको को पढे और िमे बताये िक उनिे कैसी लगी। उससे िमे आगे छापन क े े ि ल ए पु सतकोकाचुनावकरनमेेसिायतािमलेग
-
्
्
o
● यण उपाघयाय सेवा का फल
लकमीिनवास िबडला चोर और रािा अजात बडा कौन?
भागीरथ कानोिडया बुआिी की आंखे ●
● नागेशर िसिं ‘शशीनद’ सोन क े ाचूिा
िशवसिाय चतुवेिी बुिि बडी या पैसा ● -
रामकानत िीिित पछ ं ी बोला चार पिर मनोिर लाल करम का फल
● ● -
चनदशेखर सवा मन कंचन शयामचरण िबुे भागय बात
िवकम कुमार िैन सब समान ● -
● - शिशपभा गोयल बिी का फल
लखनपताप िसंि मनुषय का मोल ● -
● िशवाननि चनिन वन
गोिवनि चातक फयूंली आननि नरिवक का िाियतव
● िशव मिाकाल की ििृि
यशपाल िैन चतुरी चमार ● -
आिशक कुमारी िसंिलदीप की पििनी झवेरचंि मेघाणी िटा िलकारा
● ● -
भगवानचनद िवनोि खंिडी की खनक मुरलीधर िगताप चार िमत
● - oo
िशवनारायण उपाधयाय वाताकार और
ु ारा िेनवेाला
िंक
●
िकसी िेश मे एक रािा राि करता था। उसके िलए पैसा िी सबकुछ था। वि सोचता था िक पैसे के बल पर ििुनया के
सब काम-काि चलते िै। ‘ताबे की मेख तमाशा िेख 6, किावत झूठ निी िै। मेरे पास अटूट धन िै , इसीिलए मै इतन बेडे
िेश पर राि करता िूं। लोग मेरे सामन ि े ा थ ि ो ड े ख ड े र ि त े िै। चािूं तोअभीरपयोकीसड
ू पैसे के बूते पर मेरे पास एक िबरिसत फौि िै। उसके दारा िकसी भी िेश
िसर उठाये खडे इन पिाडो को खुिवाकर िफकवा िं।
को िण-भर मे कुचल सकता िूं। वि सबसे यिी किता था िक इस संसार मे धमक -कमक, सती-पुत, िमत-सखा सब पैसा िी िै।
रािा िसर से पैर तक पैसे के मि मे डू बा था ; ं ु उसकी रानी बडी बिदमती थी। वि पैसे को तुचछ और बिद को शेष
परत
समझती थी। रानी की चतुराई के कारण राि का सब काम -काि ठीक रीित से चलता था। उसका किना था िक ििुनया पैसे के
बूते उतनी निी चलती, िितनी बुिद के बूते पर। लेिकन रािा के सामन स े ा फब ा तकिनमेेसंकोचकरतीथी।
एक ििन रािा न पेूछा, “रानी, सच किो, ििुनया मे बुिद बडी या पैसा?”
े गी, सतय का मुख रखा िोता िै। रािा के मन मे िो पैसे का मूलय बसा था
रानी बडे असमंिस मे पडी। सोचन ल ,
उसे वि अचछी तरि िानती थी। कुछ उतर तो िेना िी था। वि बोली , “मिाराि, यिि आप सच पूछते िै तो मै बुिद को बडा
समझती िं।
ू बुिद से िी पैसा आता िै। और बुिद से िी सब काम चलते िै। बुिद न िो तो सब खिान य े ो -रािपाट
िीलु टिातेिै
चौपट िो िाते िै।”
ु गुससा आया। बोला ,
पैसे की इस पकार िनिंा सुनकर रािा को बित “रानी तुमिे अपनी बुिद का बडा घमंड िै। मै
िेखना चािता िंू िक तुम िबना पैसे के बुिद के सिारे कैसे काम चलाती िो। ˝ ऐसा किकर उसन र े ा नी कोनगरकेबािरएक
मकान मे रख ििया। सेवा के िलए िो -चार नौकर भेि ििये। खचक के िलए न तो एक पैसा ििया और न िकसी तरि का कोई सामान
रानी के शरीर पर िो िेवर थे , वे भी उतरवा िलये। रानी मन -िी-मन किन ल े ग ी ि क म ै ए कििनरािाकोििखािंगूीिक
संसार मे बुिद भी कोई चीि िै, पैसा िी सब कुछ निी िै।
नये मकान मे पिंच
ु कर रानी न न े ौ कर द ा र ा क ु म ि ा र क ेअवेसेिोईटेमंगवाईऔरउनिेसफ
अपन न े ा म क ी म ु ि , “तुम मेरी इस धरोिर
रलगािी।िफरनौकरकोबु को धनू सेठ के घर ले िाओ। किना
लाकरकिा , रानी
नय े , िस ििार
ि धरोिरभे िीिै रपये मंगाये िै। कुछ ििनो मे तुमिारा रपया मय सूि के लौटा ििया िायगा और धरोिर वापस
कर ली िायगी।”
नौकर सेठ के यिा पिंच
ु ा। धरोिर पर रानी के नाम की मुिर िेखकर सेठ समझा िक इसमे कोई कीमती िवािर िोगे।
उवसे िस ििार रपया चुपचाप िे ििया। रपया लेकर नौकर रानी के पास आया। रानी न इ े न र प योसे वयापारशुर िकया।
नौकर-चाकर लगा ििये। रानी िेख-रेख करन ल े ग ी ।थ ो ड े ि ी ि ि न ो मे उसनइे तनापैसापैिाकरिलया
गया और काफी पैसा बच रिा। इस रपये से उसन ग े र ी बोकेिलएमु,फतिवाखाना
पाठशाला तथा अनाथालय खुलवा ििये। चारो
ओर रानी की िय-ियकार िोन ल े ग ी । शि रक -से ेममकान
ेबािररानीक ेआसपासबित
कानकबन गये औरु विा अचछी रौनक
े गी।
रिन ल
इधर रानी के चले िान प े र र ा ि ा अ क े ला र ि ा ग य ा।रानीथीतबविमौकेकेकामोकोस
उिचत सलाि िेती थी। धूतों की िाल उसके सामन न े ि ी ग ल न प े ा त ी थ ी ।अबउसकेचलेिानपेरधूतोंकीब
आ-आकर रिा को लूटन ल े ग े । अ ं ध े र ग ि ी ब ढ ग ई।नतीिायििआ
ु िकथोडे िीििन
कमकचारी राजय की सब आमिनी िडप िाते थे। अब नौकरो का वेतन चुकाना किठन िो गया। राजय की ऐसी िशा िेख रािा घबरा
गया। वि अपना मन बिलान क े े ि ल ए र ा ि क ािमंितयोकोसौपकरिेशाटनकेिलएिनकलपडा।
िाते समय नगर के बािर िी उसे कुछ ठग िमले। उनमे से एक काना आिमी रािा के पास आकर बोला , “मिाराि,
मेरी आंख आपके यिा िो ििार मे िगरवी रखी थी। वािा िो चुका िै। अब आप अपन र े प य े लेकरमेरीआंख मुझे वापस
कीििये।”
रािा बोला, “भाई, मेरे पास िकसी की आंख-वाख निी िै। तुम मंती के पास िाकर पूछो।”
ठग बोला, “मिाराि, मै मंती को कया िानूं? मैन त े ो आ प , आप
क ेपासआं खिगरवीरखीथी
िी मेरी आंख िे। िब
बाड िी फसल खान ल े ग ी त बरिाकाकयाउपाय ? आप रािा िै, िब आप िी इसंाफ न करेगे तो िसूरा कौन करेगा? आप मेरी
आंख न िेगे तो आपकी बडी बिनामी िोगी।˝
ु । बिनामी से बचन क े
रािा बडा परेशान िआ े -तैसे े चारैसे ििार रपये िेकर उसे िविा िकया। कुछ िरू
िलएउसनि
आगे चला था िक एक बूचा आिमी उसके सामन आ े कर ख डा ि ो ग , “कमिाराि
या।पिले , मेरा एके गा
ेसमानविभीकिनल
कान आपके यिा िगरवी रखा था। रपया लेकर मेरा कान मुझे वापस कीििये।” रािा न उ े स े भ ी रपयािेकरिविािकया।इस
पकार रासते मे कई ठग आये और रािा से रपया ऐठंकर चले गये। िो कुछ रपया -पैसा साथ लाये थे , वि ठगो न ल े ू टिलया।
वि खाली िाथ कुमारी चौबोला के िेश मे पिंच
ु े।
कुमारी चौबोला उस िेश की रािकनया थी। उसका पण था िक िो आिमी मुझे िुए मे िरा िेगा उसी के साथ िववाि
करंगी। रािकुमारी बित ु सुनिर थी। िरू -िरू के लोग उसके साथ िुआ खेलन आ े त े थ े औ र ि ारकरिेल कीिवाखाते थे।
सैकडो रािकुमार िेल मे पडे थे।
मुसीबत के मारे यि रािा सािब भी उसी िेश मे आ पिंच
ु े। चौबोला की सुनिरता की खबर उनके कानो मे पडी तो उनके
मुंि मे पानी भर आया। उनकी इचछा उसके साथ िववाि करन क े ी ि ई ु । र ा ि क ुमारीनमे िलसे कुछ िरूीपरएकबगंल
ििया था। िववाि की इचछा से आनवेाले लोग इसी बगंले मे ठिरते थे। रािा भी उस बगंले मे िा पिंच ु ा। पिरे ि ार न त े ुरत
ं बेटी
को खबर िी। थोडी िेर बाि एक तोता उडकर आया और रािा की बाि पर बैठ गया। उसके गले मे एक िचटठी बध ं ी थी , ििसमे
िववाि की शते ि ं ल खी थ ी । अ ं त म े य ि भ ी ि ल ख ा थ ा िकयिितुम िुए मे िारगये तो
िचटठी पढकर िेब मे रख ली।
थोडी िेर बाि रािा को रािकुमारी के मिल मे बुलाया गया। िुआ शुर िआ
ु और रािा िार गया। शतक के अनुसार वि
िेल भेि ििया गया।
रािा की िालत िबगडन औ े र न ग र छ ो ड क र च ल े :ख
े ासमाचारिबरानीकोमालू
ि ानक िआ
ु । मिआ ु तोउ
रािा का पता लगान व े ि भ ी प ि ि े श क ो ि न क ल ी । क ु छिीिरूचलीथीिकविीपुरानठे गि
े गा,
आया। किन ल “रानी सािब, आपके पास मेरी आंख िो ििार मे िगरवी रखी थी। आप अपना रपया लेकर मेरी आंख वापस
िीििये।”
रानी बोली, “बितु ठीक, मेरे पास बित
ु -से लोगो की आंखे िगरवी रखी िै, उनिी मे तुमिारी भी िोगी। एक काम
ू री आंख िनकालकर मुझे िो। उसके तौल की िो आंख िोगी , वि तुमिे िे िी िायगी।”
करो। तुम अपनी िस
ु घबराया। रानी बोली,
रानी का िवाब सुनकर ठग की नानी मर गई। वि बित “िेर मत करो। िसूरी आंख िलिी
िनकालो। उसी के तौल की आंख िे िी िायगी।”
ठग िाथ-पैर िोडकर माफी मागन ल , “सरकार, मुझे आंख-वाख कुछ निी चाििए। मुझे िान क े
े गा।बोला ीआजा
िीििये।”
रानी बोली, “निी, मै िकसी की धरोिर आपनपेास रखना उिचत निी समझती। तुम िलिी अपनी आंख िनकालकर
मुझे िो, निी तो िसपािियो से किकर िनकलवा लूंगी।”
अंत मे ठग न ि े व न त ी क र क े च ा र ि ि ा र र प यािेकरअपनीिानबचायी।य
नौकर िस ू रा कान काटन ि े ी व ा ल ा ि ै त ो उ स े ीचारििाररपयािेकररानीसेअपनािपड
न भ ं छुडाया।
ठगो से िनपटकर रानी आगे बढी और पता लगाते-लगाते कुमारी चौबाला के िेश मे िा पिंच
ु ी। रािा के िेल िान क
े ा
समाचार सुनकर उसे िु :ख िआ ु । अब वि रािा को िेल से छुडान क े ा उ प ा य े गी।उसनपे तालगायािक
स ोचनल
चौबीला िकस पकार िुआ खेलती िै। सारा भेि समझकर उसन प े ु र ष क ा भ े ष बनायाऔरबगंले परिापिंच
ु ी।
खबर िी। थोडी िेर मे तोता उडकर आया। रानी न उ े सक े ग ल े स े िचटठीखोलकरपढी।कुछसमयबािबुलावाआय
रानी पुरषज-वेश मे कुमारी चौबोला के मिल मे पिंच
ु ी। इनिे िेखकर चौबोला का मन न िान क े य े गा।उसे
ोिगरनल
ऐसा मालूम िोन ल े ग ा ि क म ै इ स र ा ि क ु म ा र े े िलएच
कोिीतनसकूं गी।खेलनक
िबलली के िसर पर िीपक रखती थी। िबलली को इस पकार िसखाया गया था िक कुमारी का िाव िब ठीक निी पडता था और उसे
मालूम िोता था िक वि िार रिी िै , तब वि िबलली के िसर ििलान स े े ि ी प क क ी जयोितडगमगानल े गतीथी।इस
अपना पासा बल िेती थी। रानी यि बात पिले िी सुन चुकी थी। िबलली का धयान आकिषकत करन क े े ि ल एउसनएेकचूिापाल
िलया था और उसे अपन क े ु ते क ी ब ा ि म े ि छ प ा र खाथा।चौसरकाखेल खलनल े
तब उसन ि े ब ल ल ी क ो इ श ा र ा ि क य ा । र ानीतोपिले से िीसिगथी।इसकेपिल
बािर कर िलया। िबलली की िनगाि अपन ि े श क ा र प र ि म ग ई । रािकुमारीकेइशारे काउसपरकोई
रािकुमारी के बार -बार इशारा िेन प े र -से-मस न िईु। िनिान रािकुमारी िार गई। तुरतं सारे नगर मे खबर फैल
भीिबललीटस
गयी। रािकुमारी के िववाि की तैयािरया िोन ल े , “िववाि तो शतक पूरी िोते िी िो गया। रिा भावरे पडन क
गी।रानीबोली े ा
िसतूर, वि घर चलकर कर िलया िायगा। विी से धूम-धाम के साथ शािी की िायगी।”
चौबोला रािी िो गई। पुरष वेशधारी रानी बोली, “एक बात और िै। यिा से चलन स े े प िले, उििनिे
नसबलोगोको
िेल मे डाल रखा िै , छोड िो। लेिकन पिले एक बार उन सबको मेरे सामन बेुलाओ।”
कैिी सामन ल े ा य े ग ए । ि र े क क ै ि ी क ी नाकछेिकरकौडीपिनाईगईथी।
गले मे चमडे का खलीता पडा था। इस खलीते मे उनके खान क े े ि ल ए ख ा ल ी र ख ीिातीथी।खलीतेपरिरकैिीकान
था। इनिी कैिियो के बीच रानी के पित (रािासािब) भी थे। रानी न ि े ब उ क ी ि श ा िेखीतोउसकािीभरआया।उस
अपन म े न क े भ ा व क ो त ु र त ं ि छ प ा िलया।सबकैिियोकीनाकसे क
अचछे कपडे पिनाकर उतम भोिन कराके उनको छुटटी िे िी गई। रािा न र े ा ि क ु म ारकीियबोलकरसीधीघरकीर
पकडी।
ू रे ििन सवेरे रानी रािकुमारी चौबोला को िविा कराकर िाथी -घोडे, िास-िासी और धन-ििेि के साथ अपन नेगर
िस
को चली। रानी पुरष-वेश मे घोडे पर बैठी आगे -आगे चल रिी थी। पीछे -पीछे चौबोला की पालकी चलरिी थी। कुछ ििन मे वि
अपन न े ग र म े आप ि ं चु ीऔरनगरकेबािरअपनबेगंलेमेठिरगई।
रािा िब लौटकर अपन न े ग र म े आय े तो िे , पाठशाला
खतेकयािैिकरानीक , अनाथालय
ेमकानकेपासऔषधालय
आिि कई इमारते बनी िै, िेखकर रािा अचंभे मे आ गया। सोचन ल े गा, रानी को मैन ए े क प ै , उसन येे
सातोिियानिीथा
लाखो की इमारते कैसे बनवा ली। पैसे का मितव उसकी निरो मे अभी तक वैसा िी बना िआु था।
संधया-समय उसन र े ानीकोबु,लवाया
पूछा, “किो रानी, अब भी तुमिारी समझ मे आया िक बुिद बडी िोती या
पैसा?”
रानी कुछ निी बोली। चुपचाप उसन र े ा , खलीता, िक
ि ाकेनाककीकौडी ं न और खली का टुकडा सामन रे ख
े गा, ये चीिे इसे किा से िमली। इतन म े
ििया। रािा िविसमत िोकर रि गया। सोचन ल े र ा न ीकुमारीचौबोलाकोबुलाकरउनके
सामन ख े ड ा क र ि ि य ा । अ ब र ा िा क ी आ ं , ुली।विसमझगयेिकचौबोल
खेख
उसकी बुिदमती रानी िी थी।
रािा न ल े ि ज ि त ि ो क र ि स, रनीचाकरिलया।िफरकु
“रानी, अभी तक मै छबडी े गा
िेरसोचकरकिनल
भूल मे
था। तुमन म े े र ी आ ं ख े खो ल ि , पर आि पमेैसरीेकमसझ
ी।अभीतकमै ोिीसबकु
मे छआया िक बुिद के आगे पैसा
समझताथा
कोई चीि निी िै।”
शुभ मुिूतक मे चौबोला का िववाि रािा के साथ धूमधाम के साथ िो गया। िोनो रािनया ििल -िमलकर आनिंपूवकक रिने
लगी। □
□
पुरान स े म य क ी ब ा त ि ै । ए क र ा ि ा थ ा ।विबडासमझिारथाऔरिरनई
उसके मिल के आंगनमे एक बकौली का पेड था। रात को रोि िनयम से एक पिी उस पेड पर आकर बैठता और रात के चारो पिरो
के िलए अलग -अलग चार तरि की बाते किा करता। पिले पिर मे किता :
“िकस मुख िधू िपलाऊं,
ू िपलाऊं”
िकस मुख िध
िस
ू रा पिर लगते बोलता :
“ऐसा किंू न िीख,
ऐसा किंू न िीख !”
िब तीसरा पिर आता तो किन ल े गता:
“अब िम करबू का,
अब िम करबू का ?”
िब चौथा पिर शुर िोता तो वि किता :
“सब बममन मर िाये,
सब बममन मर िाये !”
रािा रोि रात को िागकर पिी के मुख से चारो पिरो की चार अलग -अलग बाते सुनता। सोचता, पिी कया किता
?पर उसकी समझ मे कुछ न आता। रािा की िचनता बढती गई। िब वि उसका अथक िनकालन म े े अ सफलरिातोिारकर
उसन अ े प न प े ु र ो ि ि तक ो ब ु ल ा य ा ।उसे सबिालसुनायाऔरउसस
निी िे सका। उसन क े ु छ स म य क ी म ु ल त मा ग ी औ र िचंिततिोकरघरचलाआया।उस
ु ेरा सोचता , पर उसे कोई िवाब न सूझता। अपन प
बराबर चकर काटती रिी। वि बित े ि त क ो िैर,ानिेखकरबाहणीनपेू छा
“तुम इतन प े र ेश?ानकयोिीखते
मुझे बताओिो, बात कया िै ?”
े िा,
बाहाणी न क “कया बताऊं ! एक बडी िी किठन समसया मेरे सामन आ े िईु िै। रािा के मिल का िो आंगन
खडी
िै, विा रोि रात को एक पिी आता िै और चारो पिरो मे िनतय िनयम से चार आलग -अलग बाते किता िै। रािा पिी की उन
बातो का मतलब निी समझा तो उसन म े ु झ स े उ न क ा मत ल ब प ू छा।परपिीकीपिेिलयामेरीसम
िाकर कया िवाब िं ू, बस इसी उधेड-बुन मे िूं।”
बाहाणी बोली, “पिी किता कया िै? िरा मुझे भी सुनाओ।”
बाहाणी न च े ा र ो प ि र ो क , यि ककौन
“ीचारोबाते िसुनकिठन
ायी।सुबात िै! इसका उतर
नकरबाहाणीबोली।वाि
ू िचंता मत करो। िाओ, रािा से िाकर कि िो िक पिी की बातो का मतलब मै बताऊंगी।”
तो मै िे सकती िं।
बाहाण रािा के मिल मे गया और बोला , “मिाराि, आप िो पिी के पशो के उतर िानना चािते िै , उनको मेरी सती
बता सकती िै।”
पुरोिित की बात सुनकर रािा न उ े स क ी स त ी क ो ब े -े िरानी
ुलानक े से िी।बाहाणीआगई।रािा
लएपालकीभे
नउ
आिर से िबठाया। रात िईु तो पिले पिर पिी बोला:
“िकस मुख िधू िपलाऊं,
िकस मुख िध ू िपलाऊं ?”
रािा न के िा, “पिंडतानी, सुन रिी िो, पिी कया बोलता िै?”
वि बोली, “िा, मिाराि ! सुन रिी िूं। वि अधकट बात किता िै।”
रािा न पेूछा, “अधकट बात कैसी ?”
पिंडतानी न उ , “रािन्, सुनो, पूरी बात इस पकार िै-
े तरििया
लंका मे रावण भयो बीस भुिा िश शीश,
माता ओ की िा किे, िकस मुख िध ू िपलाऊं।
िकस मुख िध ू िपलाऊं ?”
लंका मे रावण न ि े , उसकी बीस भुिाए ि ं ै औ र ि
नमिलयािै श श ी श ि ै -
।उसकीमाताकितीिै िकउसेउसक
से मुख से िधू िपलाऊं?”
राि बोला, “बित ु ठीक ! बित ु ठीक ! तुमन स े ”
ि ीअथकलगािलया।
िसू रा पिर िआु तो पिी किन ल े गा:
ऐसो किूं न िीख,
ऐसो किंू न िीख।
रािा बोला, ‘पिंडतानी, इसका कया अथक िै ?”
े मझाया,
पिडतानी नस “मिाराि ! सनो, पिी बोलता िै :
“घर िमब नव िीप
िबना िचंता को आिमी,
ऐसो किूं न िीख,
ऐसो किूं न िीख !”
चारो ििशा, सारी पृथवी, नवखणड, सभी छान डालो, पर िबना िचंता का आिमी निी िमलेगा। मनुषय को कोई-न-कोई
िचंता िर समय लगी िी रिती िै। कििये, मिाराि! सच िै या निी ?”
रािा बोला, “तुम ठीक किती िो।”
तीसरा पिर लगा तो पिी न र े ो ि क ी :
तरिअपीबातकोिोिराया
“अब िम करबू का,
अब िम करबू का ?”
बहाणी रािा से बोली, “मिाराि, इसका ममक भी मै आपको बतला िेती िंू। सुिनये:
पाच वषक की कनया साठे िई बयाि ,
बैठी करम िबसूरती, अब िम करबू का,
अब िम करबू का।
पाच वषक की कनया को साठ वषक के बूढे के गले बाध िो तो बेचारी अपना करम पीट कर यिी किेगी -‘अब िम करबू
का, अब िम करबू का ?” सिी िै न, मिाराि !”
रािा बोला, “पिंडतानी, तुमिारी यि बात भी सिी लगी।”
चौथा पिर िआु तो पिी न च े ोचखोली :
“सब बममन मर िाये,
सब बममन मर िाये !”
तभी राि न ब , “कसुिानो, पिंडतानी, पिी िो कुछ कि रिा िै ,
े हाणीसे कया वि उिचत िै ?”
बिाणी मुसकायी और किन ल े गी, “मिाराि ! मैन प े ि ले ि ी क ि ा ि ै िकपिीअधकटबातकितािै।
सब बहाणो के मरन क े ी :
बातकितािै
िवशा संगत िो करे सुरा मास िो खाये,
िबना सपरे भोिन करे, वै सब बममन मर िाये
वै सब बममन मर िाये।
िो बाहाणी वेशया की संगित करते िै , सुरा ओर मास का सेवन करते िै और िबना सनान िकये भोिन करते िै , ऐसे सब
बहाणो का मर िाना िी उिचत िै। िब बोिलये, पिी का किना ठीक िै या निी ?”
े िा,
रािा न क “तुमिारी चारो बाते बावन तोला, पाव रती ठीक लगी। तुमिारी बुिद धनय िै !”
रािा-रानी न उ े स क ो ब -सममानऔसेरगिनि
िढयाकपडे िविाे ेक
िकया।
रमान अब पुरोिित का आिर भी राििरबार
मे पिले से अिधक बढ गया। □
● -
□
एकबार की बात िै। सूरि , िवा, पानी और िकसान के बीच अचानक तनातनी िो गई। बात बडी निी थी , छोटी-सी
थी िक उनमे बडा कौन् िै ? सूरि न अ े प न क े ो ब , पानी और िकसान
डाबतायातोिवानअे पनक
े भीो पीछे न रिे। उनिोने
अपन ब े ड े ि ो न क े ा ि ा व ा ि क य ा । आ ि खर ितलकाताडबनगया।खूब
चारो न त े य ि क य ा ि क व , िकसक
ककलसे के ोईकामनिीकरे
िबना ििुनया का
गे।काम
िेखे रकता िै।
पशु-पिियो को िब यि मालूम िआ
ु तो वे िौडे आये। उनिेन उ े न क े म े , पर उनिे े ापयतिकया
लकारासताखोिनक
सफलता निी िमली।
ू रे ििन सूरि निी िनकला, िवा न च
िस े ,ं करििया
ल नाबि पानी सूख गया और िकसान िाथ-पर-िाथ रखकर बैठ
गया। चारो ओर िािकार मच गया। लोग पाथकना करन ल े गेिकवे-अ पना काम करे; लेिकन वे टस-से-मस न िएु। अपनी
अपना
आप पर डटे रिे। लोग िैरान िोकर चुप िो गये। पर ििुनया का काम रका निी। ििा मुगा निी बोलता , विा कया सवेरा निी
िोता ?
चारो बडे िी कमेरे थे खाली बैठे तो उनिे थोडी िी िेर मे घबरािट िोन ल े ग ी । स मयकाटनाभारीिोगया।उनका
अिभमान गलन ल े ग ा ? छोटा कौन िै? सबके अपने -अपन क े ा म
।अिखरबडाकौनिै ि ै , काम से िोतानिी
।बडाकोईआनसे
िै।
सबसे जयािा छटपटािट िईु सूरि को। अपन त े ा प स े स व य ि ं े गा।उसनअ
लनल े पनीिकरण
िी। िनकममे बैठे िोन स े े ि व ा कर ि म घ ु ट न ल े -अपन क े ाममेलग
ग ातोविभीचलपडी।इसीतरिपानीऔरिकसानभीअपन
गये।
वे अचछी तरि समझ गये िक संसार मे न कोई छोटा िै , न कोई बडा िै। सब समान िै। छोटे -बडे का भेि तो ऊपरी
िै।□
● -
□
िवकमािीत नाम के एक रािा थे। वि बडे नयायी थे। उनके नयाय की पशंसा िरू -िरू तक फैली थी। एक बार िेवताओं
के रािा इदं न ि े व , कयोिक उनिे
क माीीतकीपरीिाले डर था िक किी ऐसा न िो िक अपनी नयायिपयता के कारण रािा
नीचािी
िवकमािीत उनका पि छीन ले। इसके िलए उनिोन आ े ि म ी क े त ी न क ट े िएु िसरभेिकरकिलाभेिािकयिि
मूलय बतला सकेगे तो उनके राि मे सब िगि सोन क े ी व ष ा ि ो ग ी । य ि ि नबतासकेतोगाििगरेगीओरराज
ं र संिार िोगा। रािा न ि
भयक े र ब ा र म े त , “आपिएुलोग
ी नोिसररखते सारे िइन िसरों डतोसे
रबारीपि का मूकलिा
य
बतलाइये।” पर कोई भी उनका मूलय न बतला सका, कयोिक तीनो िसर िेखन म े े ए क स म ा न थे औरएकिीआिमीकेिान
पडते थे। उनमे राई बराबर भी फकक न था। सारे सभासि म ् ौनथे-।िरबार ु था, सब एक-िस
राि मे सनाटा छाया िआ ू रे का मुंि
ताक रिे थे। पिंडतो का यि िाल िेखकर रािा िचंितत िएु। उनिोन प े ु , “तुलमिेाकरकिा
रोिितकोबु तीन ििन की छुटटी िी
िाती िै। िो तुम इन तीन ििनो मे इनका मूलय बता सकोगे तो मुंिमागा पुरसकार ििया िायगा , निी तो फासी पर लटका ििये
िाओगे।”
िो ििन तक पुरोिितिी न ब ु ,सोचा
े ित परतं ु वि िकसी भी फैसले पर न पिंच ु , तो वि
ु । तब तीसरा ििन शुर िआ
ु वयाकुल िो उठे। खाना -पीना सब भूल गये। िचंता के मारे चदरओढकर लेटे रिे। पिंडताइन से न रिा गया। वि उनके पास
बित
े गी,
गई और चदर खीचकर किन ल “आप आि यो कैसे पडे िै ? चिलये, उिठये, निाइये, खाइये।”पिंडत न उ े नतीनोिसरो
का सब िकससा पिंडताइन को कि सुनाया। सुनते िी पिंडताइन िोश -िवास भूल गई, बडे भारी संकट मे पड गयी। मन मे किने
लगी-िे भगवान, अब मै कया करं ? किा िाऊं ? कुछ भी समझ मे निी आता। उसन स े ो च ा ि क कलतोपिंडतकोफासीिो
िी िायगी, तो मै पिले िी कयो न पाण तयाग िं ू? पिंडत की मौत अपनी आंखो से िेखन स े े त ो अ च े ी
छािै।यिसोचकरमरनक
ठान आधी रात के समय पिंडताइन शिर से बािर तालाब की ओर चली।
इधर पावकती न भ े ग व ा न श ं क र स े , कुछ करना चाििए।
किािकएकसतीक ेऊपरसंकटआपडािै
े िा,
शंकर भगवानन क “यि संसार िै। यिा पर यि सब िोता िी रिता िै। तुम िकस -िकसकी िचंता करोगी ?” पर
पावकती न ए े क , “निी, कोई-न-कोई उपाय तो करना िी िोगा।” शंकर भगवान् न क
नमानी।किा े िा , “अगर तुम निी मानती
िो तो चलो।” िोनो िसयार और िसयािरन का भेष बनाकर तालाब की मेड पर पिंच ु े , ििा पिंडताइन तालाब मे डू बकर मरन के ो
आई थी। पिंडताइन िब तालाब की मेड के पास पिंच ु ी तो उसन स े ु न ा -िोर से िसं रिा िै।
ि क एकिसयारपागलकीतरििोर
कभी वि िस ं ता िै और कभी “िूके -िकु े , िवुा-िआ
ु ” करता िै। िसयार की यि िशा िेखकर िसयािरन न पेूछा , “आि तुम पागल
िो गये िो कया? कयो बेमतलब इस तरि िस ं रिे िो ?” िसयार बालो, “अरे, तू निी िानती। अब खूब खान क े ोिमले,गा ,
खूब खायेगे और मोटे -तािे िो िायेगे।” िसयािरन न क े िा, “कैसी बाते करते िो ? कुछ समझ मे निी आती ; िो कुछ समझूं तो
िवशास करं।” िसयार न क े िा, “रािा इनद न र े ा ि ा ि व कम ा ि ी त क े यिातीनिसरभेिे िै औरयिशतक र
उनका मोल बता सकेगा तो राजय भर मे सोना बरसेगा ; िो न बता सकेगा तो गािे िगरेगी। तो सुनो , िसरो का मूलय तो कोई बता
न सकेगा िक सोना बरसेगा। अब राजय मे िर िगि गाि िी िगरेगी। खूब आिमी मरेगे। िम खूब खायेगे और मोटे िोगे।” इतना
ु े -िक
किकर िसयार िफर “िक ु े , िवुा-िआ
ु ” किकर िस
ं नल े , “कया तुे मूछइन
ग ा।िसयारिरननप ा िसरो का मूलय िानते िो ?
” िसयार बोला,“िानता तो ि,ूं िकंतु बतलाऊंगा निी, कयोिक यि िी िकसी न स े ु न ि ल य ” ल िीिबगडिायगा।
ातोसाराखे
िसयािरन बोली, “तब तो तुम कुछ निी िानते , वयथक िी डीग मारते िो। यिा आधी रात कौन बैठा िै , िो तुमिारी बात सुन लेगा
और भेि खुल िायगा!” िसयार को ताव आ गया। वि बोला, “तू तो मरा िवशास िी निी करती ! अचछा तो सुन, तीनो िसरो
का मूलय मै बतलाता िूं। तीनो िसरो मे एक िसर ऐसा िै िक यिि सोन क े ी स ल ा ई ल े क रउसकेकानमे से डाले औरचारोओ
ििलाने -डुलान स े े स ला ई म ु ं ि स े नि न क -डुलानलयअमू
ल े तोउसकामू े े लयिै।िस
स ू रे िसरमेसलाई
यिि मुिं से िनकल िाय तो उसका मूलय िस ििार रपया िै। तीसरा िसर लेकर उसके कान से सलाई डालन प े , िं
र यििविमु
नाक, आंख सब िगि से पार िो िाय तो उसका मूलय िै , िो कौडी।” पिंडताइन यि सब सुन रिी थी। चुपचाप िबे पाच घर की
ओर चल पडी।
पिंडताइन खुशी-खुशी घर पिंच
ु ी। पिंडत अब भी मंि पर चािर डाले पिले के समान िचंता मे डू ब पडे थे। पिंडताइन ने
चािर उठाई और किा, “पडे-पडे कया करते िो ? चलो उठो, निाओ-खाओ। कयो वयथक िचंता करते िो ! मै बतमाऊंगी उन
िसरो का मूलय।”
सवेरा िोते -िोते पिंडत उठे तो िेखा , िरवािे पर रािा का िसपािी खडा िै। पिंडत न ठ े ा ठ केसाथिसपािीको
फटकारते िएु किा, “सवेरा निी िोन प े ा ! िाओ
य ाऔरबु े , गये
लानआ रािा सािब से कि िेना िक निा ले, पूिा-पाठ कर ले,
खा-पी-ले, तब आयगंे।” िसपािी चला गया। पिंडत आराम से निाये -धोये, पूरा-पाठ और भोिन िकया, िफर पिंडताइन से भेि
पूछकर राि-िरबार कीओर चले। पिंडत न प े िंच , ि“ीकिा
ु ते रािन, मंगवाइये वे तीनो िसर किा िै ?”
रािा न त े ी न ो ि स र म -उधर ।उलट
ं गवाििये -पलटकर िेखा और किा,
े निेचारोओरइधर
पिंडतनउ “एक सोन के ी
सलाई मंगवा िीििये।” सलाई मंगवायी गई। पिंडत न ए े क ि स र को उ ठ ा करउसक - े कानमे सलाईडाली।चार
धुलाई, पर विकिी से न िनकली। पिंडत किन ल े गा, “यि आिमी बडा गंभीर िै, इसका भेि निी िमलता। िेिखये मिाराि,
ू रा उठाकर उसके कान मे सलाई डाली। ििलाई -डुलाई तो सलाई उसके मुंि से िनकल आई।
इसका मूलय अमूलय िै।” िफर िस
वि किन ले गा, “आिमी कानका कुछ कचचा िै , िो कान से सुनता िै , वि मुंि से कि डालता िै। िलिखये , मिाराि, इसका
मूलय िस ििार रपया।” पिंडत न त े , उसके कान से सलाई डालते िी उसके मुंि , नाक, आंख सभी िगि से
ीसरािसरउठाया
पार िो गई।
उसन म े , “अरे, यि आिमी िकसी काम का निी। यि कोई भेि निी िछपा सकता। िलिखये ,
िुं बनाकरकिा
मिाराि, इकस मूलय िो कौडी। ऐसे कान के कचचे तथा चुगलखोर आिमी का मूलय िो कौडी भी बित
ु िै।”
पिंडत का उतर सुनकर रािा पसन िआ
ु । उसन प -सा धन
े िंडतकोबितु , िीरा-िवािारात िेकर िविा िकया।
इधर रािा न त े ी न ो ि स र ो का म ू ल य ि ल ख कररािाइनदकेिरबारमेिभिवाि
बरसा। पिा खुशिाल िो गयी।□
● -
□
पिाड की चोटी पर, खेतो की मेडो पर, एक पीला फूल िोता िै। लोग उसे ‘फयूंली’ किते िै।
किी एक घना िगंल था। उस िगंल मे एक ताल था और उस ताल के पास नरी -िैसी एक वन-कनया रिती थी।
उसका नाम था फयूंली।
कोसो तक विा आिमी का नाम न था। वि अकेली थी , बस उसके पास वनके िीव -िनतु और पिी रिते थे। वे उसके
भाई-बिन थे-बस पयार से पाले-पोसे िएु। यिी उसका कुटुमब था। वि उन सबकी अपनी -िैसी थी। ििरनी उसके गीतो मे अपने
को भूल िाती थी। फूल उसे घेरकर िसं ते थे , िरी-भरी िबू उसके पैरो के नीचे िबछ िाती और भोर के पछ े ो
ं ी उसे िगान क
चिचिा उठते थे। विउनसबकी पयारी थी।
वि बितु खुश थी। सुनिर भी थी। उसके चेिरे पर चाि उतर आया था। उसके गालो मे गुलाब िखले थे। उसके बालो
पर घटाए ि ं घ र ी थ ी । त ा ल क े प ा न ी क ी त र ि ,न
उसकीिवानीभरतीिारिीथी।उ
िाथो से छुआ था।
उस धरती पर कभी आिमी की काली छाया न पडी थी। पाप के िाथो न क े भ ी फ ू ल ोकीपिवतताकोमैलानिकया
था। इसीिलए ििनिगी मे किी लोभ न था, शोक न था। सब ओर शाित और पिवतता थी। फयूंली िनडर िोरक वनो मे घूमती ,
कु ंिो मे पेडो के नये पते िबछाकर लेटती , लेटकर पिंछयो के सुर मे अपना सुर िमलाती , िफर फूलो की माला बनाती और निियो
की कल-कल के साथ नाचन ल , पर ेलउसकी
े ग ती।थीतोअक ी ििनिगी अकेली न थी।
एक ििन वि यो िी बैठी थी। पास िी झरझर करता एक पिाडी झरना बि रिा था विा एक बडे पतथर का सिारा िलए
वि िलमे पैर डाले एक ििरन के बचचे को िल
ु ार रिी थी। आंखे पानी की उठती तरगंो पर लगी थी , पर मन न िान िेकस
मनसूबे पर चािनी-सा मुसकरा रिा था। तभी िकसी के आन क े ी आ ि ट ि ई ु ।ििरनकाबचचाडरसे चौका।फयूल
िेखा तो एक रािकुमार खडा था। कमलके फल िैसा कोमल और ििमालय की बरफ िैसा गोरा। फयूल
ं ीनआ े ितकिकसी
आिमी को निी िेखा था। उसे िेखकर वि चाि-सी शरमा गई, फूल -सी कुमिला गई। रािकुमार पयासा था। मन उसका पानी मे
था, पर फयूली को िेखते िी वि पानी पीला भूल गया। फयूंली अलग सरक गयी। रािकुमार न अ े ं ि ुिलबनायीऔरपानीपीने
लगा। पानी िपया तो फयूंली न र े ािकु,मारसे
“िशकार
पूछा करन आ े ?”
ये
िो
े िा ,
रािकुमार न क “िा।”
फयूंली बोली, “तो आप चले िाइये। यि मेरा आशम िै। यिा सब िीव-िनतु मेरे भाई-बिन िै। यिा कोई िकसी को
निी मारता। सब एक-िस
ू रे को पयार से गले लगाते िै।”
ं ा। बोला ,
रािकुमार िस “मै भी निी मारंगा। यिा खेल-खेल मे चला आया था। खैर, न िशकार िमला, न अब
िशकार करन क े ी इ च छ ा ि ै।.....”
इतनीिरूभटकगयािूंिक
इतना किकर रािकुमार चुप िो गया। िफर कुछ समय के िलए कोई कोई िकसी से निी बोला। फयूंली न आ े ं ख ोकीकोरसेउसे
िफर एक बार िेखा। वि सोच न पाई िक आगे उससे कया किे, कया पूछे, पर न िान व े ि क योउसेअचछालगा।
यो िी उसके मुख से िनकल पडा , “आप थके िै। आराम कर लीििये।”
रािकुमार एक पतथर के ऊपर बैठ गया। संधया िान ल े ग ी थ ी ।आ -पिियोु ।वनमे
स मानलालिआ का लौटतेिएुपश
कोलािल गूंि उठा। िेखते-िी-िेखते फयूली के सामन क
े ं ि -मूल और िगंली फलो का ढेर लग गया। यि रोि की िी बात थी।
रोि िी तो वन के पशु -पिी-उसके वे भाई -बिन-उसके िलए फल -फूल लेकर आते थे। वि उन सबकी रानी िो थी।
रािकुमार न य े , “वनिेवी, तुम धनय िो! िकतना सुख िै यिा
ि िेखातोबाला ! िकतना अपनापन िै ! काश, मै
यिा रि पाता !”
े ोका,
फयूंली न ट “बडो के मुंि से छोटी बाते शोभा निी िेती। तुम यिा रिकर कया करोगे ? रािकुमार को वनो से
कया लेना-िेना। उनिे तो अपनमेिल चाििए, बडे-बडे शिर चाििए, ििा उनिे राि करना िोता िै।”
रािकुमारन के िा , “िगंल मे िी मंगल िै, तुम भी तो राि िी कर रिी िो यिा।”
फयूंली मुसकरा उठी। बोली, “निी।”
अंधेरा िो चुका था। फयूंली न र े ा ि क ु म ा र क ा फू लोसे अिभननिनिकयाओरिफरव
रािकुमार भी पेड के नीचे लेट गया।
साझ का असत िोता सूरि िफर सुबि को पिाड की चोटी पर आ झाका। रािकुमार िागा तो उसे घर का खयाल
आया। वि उिास िा उठा। फयूंली उसके पाणो मे िखलनके ो आकुल िो उठी। अब उसका िान क े ा ि ी न िीकररिाथा।सुबि
कलेवा लेकर फयूंली आई तो रािकुमार मन की बात न रोक सका , बाला, “एक बात किना चािता िूं। सुनोगी ?”
फयूंली न पेूछा,“कया ?”
रािकुमार कुछ िझझका , पर ििममत करके बोला , “मेरे साथ चलोगी ? मै तुमिे रािरानी बनाकर पूिूंगा।”
े िा,
फयूंली न क “निी, रानी बनकर मै कया करंगी।”
े िा ,
रािकुमार न क “मै तुमिे पयार करता िूं। तुमिारे िबना िी निी कसता।”
फयूंली न ि , “पर विा यि वन, ये पेड, ये फूल , ये नििया और ये पिी निी िोगे।”
े वाबििया
रािकुमार न के िा , “विा इससे भी अचछी-अचछी चीिे िै। मेरे रािमिल मे िर तरि से सुख से रिोगी। यिा वन मे
कया रखा िै !”
े िा, “आिमी न अ
फयूंली न क े प न ि े ल ए ए कब न ावटीििनिगीबनारखीिै ” ।उसेमैसुखनिीमानती।
रािकुमार इसका कया िवाब िेता ! फयूंली न स े ोचा-इतनी सुंिरता, इतना पयार, सचमुच मुझे आििमयो के बीच किा
िमलेगा ? आिमी एक-िस ू रे को सुखी बनान क े े ि ल ,एसंपर ु िै उसके िु :खो का कारण भी िै।
विी सिगंठन
गिठतिररिआ
आि मै अकेली िूं , पर मेरे ििल मे डाि निी िै, कसक निी िै। पर विा? विा इतना खुलापन किा िोगा।
पर उसके भीतर बैठा कोई उससे कुछ और भीकि रिा था। आिखर नारी को सुिाग भी तो चाििए। यौवन मे लालसा
िाती िी िै।
वि एकिम काप उठी; पर अंत मे उसकी भावना उसे रािकुमार के साथ खीच ले िी गई।उसन र े ा िकुमारकीबातमान
ली।
िफर कया था ! वे िोनो उसी ििन चल पडे। पशु -पिी आये। सबन उ े न ि े ि व िािी।उनकीआंखोमेआसं ू थे ।
रािकुमार उसे लेकर अपन र े ा ज य म े प ि ु ं च ा । ि ानोबेििखुश थे। विअबरानीथी।
पयार करता था। विा वन से भी जयािा सुख था। रािमिल मे भला िकस बात की कमी िो सकती थी ! खान क े -तरि
ेिलएतरि
के भोिन थे , सेवा के िलए िािसया ओर ििल बिलान ि े क ि ल,एनतक
ििखान क े
िकया।यिीनिी े ि ल े ेिलए
ए ऐशयक औरितानक
अिधकार था।
ििन बीतते गये। सुबि का सूरि शाम को ढलता रिा। कई ििनो तक उसके भाई -बिन उसे याि करते रिे। पर विी
तो गई थी, बाकी िो ििा था, विी था। कुछ ििन बाि पछ े गे , फूल फूलन ल
ं ी पिले की तरि बोलन ल े गे।
पर एक ििन फयूंली को लगा, िैसे उसके िीवन की उमंग खो गई िो।
रािमिल मे िीरे ओर मोितयो की चमक िरर थी, पर न फूलो का -सा भोलापन ,था और न पिंछयो की-सी पिवतता थी। अब
रािमिलकी िीवारे िैसे उसकी सास घोटे िे रिी थी।उसे लगता , िैसे वि वनउसे पुकार रिा िै। अब उसके पास उसके भाई -
बिन किा थे? आिमी थे, डाि थी, लोभ था, लालच था। पर वि तो िनमकल पयार की भूखी थी।
िफर उस िीवन मे उसके िलए कोई रस न रिा। वि उिास रिन ल े ग ी । उ े गा।रािकुमार
से एकातअचछालगनल
नउे से खुश करन क े ी , पर उसका
लाखकोिशशे की कुमिलाया मन िरा न िो सका। कुछ ििन मे उसकी तबीयत खराब िो गई और
वि िबसतर पर िा पडी।
थोडी िी ििनो मे उसका चमकता चेिरा पीला पड गया। वि मुरझा गई। िकसी पौधे को एक िगि से उखाडकर
ू री िगि लगा िेन क े
िस ी क ो ि श श ब े कारगई।उसकेिीनक े ीअबकोईआशानरिी।
एक ििन उसन र े ािकु,मारसे
“मैकअब
िा निी िीऊंगी। मेरी एक आिखरी चाि िै। पूरी करोगे?”
े िा ,
रािकुमार न क “िरर।”
फयूंली न ल े म , “तकभी
ब ीसासले अगर िशकार को िाओ तो मेरे वन के उन भाई -बिनो को मत मारना और
ेिएुकिा
िब मै मर िाऊं तो मुझे पिाड की उसी चोटी पर गाड िेना, ििा वे रिते िै।”
इसके बाि , उसके पाण पखेर उड गये।
रािकुमार न उ े स े उ स ी प ि ा ड क ी -पिियो ने-उसके उन रीकी।वनकेपशु
च ोटीपरगाडकरउसकीआिखरीइचछापू
भाई-बिनो ने -सुना तो बडे िु :खी िएु। िवा न ि े स ,सकीभरी
फल िगर गये और लताए क ं ु म िलाउठी।रािकुमारमनमसोसकर
रि गया।
आिमी िी मरते िै। धरती सिा अमर िै। एक ओर पेड सूखता िै , िस
ू री ओर अंकुर फूटते िै। इसी का नाम ििनिगी
िै। कुछ ििन बाि िफर पाणो की एक िससकी सुनाई िी। पिाड की चोटी पर , ििा फयूंली गाड िी गई थी, विा पर एक पौधा
और उस पर एक सुनिर-सा फूल उग आया और लोग उसे फयूंली किन ल
े गे।□
● -
□
िकसी गाव मे एक चमार रिता था। वि बडा िी चतुर था। इसीिलए सब उसे ‘चतुरी चमार’ किा करते थे। घर मे वि
और उसकी सती थी। उनकी गुिर-बसर िैसे-तैसे िोती थी, इससे वे लोग िैरान रिते थे। एक ििन चतुरी न स े ो चािकगावमे
, तब कयो न वि कुछ ििन के िलए शिर चला िाय और विा से थोडी कमाई कर लाय ?
रिकर तो उनकी िालत सुधरन स े ेरिी
सती से सलाि की तो उसन भ े ी ि ा न क े ी ं गया।
िअनुमितिेिी।विशिरपिच
मेिनती तो वि था िी। सूझबूझ भी उसमे खूब थी। कुछ िी ििनो मे उसन स े ौ र प य े कमािलये।इसकेबािविगाव
को रवाना िो गया। रासते मे घना िगंल पडता था। िगंल मे डाकू रिते थे। चतुरी न मेन -िी-मन किा िक वि रपये ले िायगा
तो डाकू छीन लेगे। उसन उ े प ा य ख ो ि ा । ए क घ ो -िेखते छ रपये उसकीपूंछ मे बाधक
डीखरीिीओरकु
डाकुओं न उ े सेघेर,ा।बोले
“बडी कमाई करके लाया िै चतुिरया। ला , िनकाल रपये।”
े िा,
चतुरी न क “रपये मेरे पास किा ीै, िो थे उससे यि घोडी खरीि लाया िूं। इस घोडी की बडी करामात िै। मुझे
यि रोि पचास रपये िेती िै।” इतना किकर उसन म े ा र ा पूंछ-मेखन
डड करके पचास रपये िनकल पडे।
ं ािकखन
डछाकुओं का सरिार बोला , “सुन भाई, यि घोडी तुमन ि े क ?”
तनमे े ख
चतु
रीिीिै े िा, “कयो ?
री न क उससे
तुमिे कया ?”
वि बोला, “िमे रपये निी चाििए। यि घोडी िे िो।”
“निी,” चतुरी न ग , “मैकऐसा
े मभीरतासे िा निी कर सकता, मेरी रोिी की आमिनी बिं िो िायेगी।”
सरिार बोला, “ये ले, घोडी के िलए सौ रपये।”
चतुरी न औ े र आ ग ि क र न ा ठी क न ि ी स म झ ा।रपयेलेकरघोडीउनिे िेिीऔरग
े िा,
सारा िकससा अपनी सती को सुना ििया। उसन क “िो-न-िो, िो-चार ििन मे डाकू यिा आये िबना निी रिेगे। िमे तैयार
रिना चाििए।”
अगले ििन वि खरगोश के िो एक -से बचचे ले आया। एक उसन स े त , “मै रात को बािर की कोठरी
ीकोििया।बोला
मे बैठ िाया करंगा। िैसे िी डाकू आये , इस खरगोश के बचचे को यि किकर छोड िेना िक िा , चतुरी को िलवा ला। आगे मै
संभाल लूंगा।”
डाकुओं का सरिार घोडी को लेकर अपन घ े र ग य ा और र ा तक ो आ ं गनमे, खडाकरकेपूंछ मे डड
ं ामाराऔ
“ला, रपये।” रपये किा से आते ? उसन क
े स-कसकर कई डड
ं े पिले तो पूंछ मे मारे , िफर कमर मे। घोडी न ल े ,
ीिकरिी
पर रपये निी ििये। सरिार समझ गया िक चतुरी न ब े , पर उसन अ
िमाशीकीिै े प न स े ा िथयोसे कुछ भीनिीकिा।घोडी
ू रे के यिा गई , तीसारे के यिा गई , उसकी खूब मरममत िईु, पर रपये बेचारी किा से िेती? चतुरी न उ
िस े न , कबीे नाििया
िेमूख
िकन इस बात को अपन स े ा थ ीसेक ?िेतउसकी ं ाई िो िोगी। आिखर पाचवे डाकू के यिा िाकर घोडी न ि े मतोड
ोकैसे िस
ििया। तब भेि खुला।
िफर सारे डाकू िमलकर एक रात को चतुरी के घर पिंच
ु गये। िरवािा खटखआया। चतुरी की घरवाली नख े ोल ििया।
सरिार न पेूछा, “किा िै चतुरी का बचचा?”
सती बोली, “वि खेत पर गये िै। आप लोग बैठे। मै अभी बुला िेती िूं।”
इतना किकर उसन ख े र ग ो शक े ब च च े , ल“ेकिारिरवािे
क ोिाथमे रे बी ािरछोडिियाऔरबोली
रे चतुक को
फौरन िलवा ला।”
िण भर बाि िी डाकुओं न ि े े ख ा ि क च तु र ी ख र ग ो शकेब,चच्“ीेकआप
ोिाथमेिलएचलाआरिािै।आतेि
लोगो न म े झ े ब ला य ा ि ै ।इसकेप!िंच
ु ”तेिीमैचलाआया।वािरेखरगोश
डाकू गुससे मे भरकर आये थे , पर खरगोश को िेखते िी उनका गुससा काफूर िो गया। सरिार न अ े चरिमेभरकर
पूछा, “यि तुमिारे पास पिंचुा कैसे ?”
चतुरी बोला, “यिी तो इसकी तारीफ िै। मै सातवे आसमान पर िोऊं, तो विा से भी िलवा ला सकता िै।”
सरिार न क े िा, “चतुरी, यि खरगोश िमे िे िे। िमलोग इधर-उधर घूमते रिते िै और िमारी घरवाली परेशान रिती
िै। वि इसे भेिकर िमे बुलवा िलया करेगी।”
ू रा डाकू बोला ,
िस “तून ि े म ा र े स ा थ ब ड ा ध ो ख ा िकयािै। रपये ले आयाऔरऐसी
पैसा भी निी ििया और मर गई। खैर, िो िआ ु । अब यि खरगोश िे।”
ु सो िआ
चतुरी न ब े ि त ु मन ा ि क,यातोसरिारनस
“यि ले। ला, िे खरगोश
े ौरपये बोला”
िनकाले।को।
चतुरी न र े प य े ल ेिलयेऔरखरगोशिेििया।
डाकू चले गये। चतुरी न आ े ग े क े ि ल ए ि फ र ए क च ालसोची।उधरडाकुओं केसर
िाकर अपनी सती को ििया ओर उससे कि िियािक िब खाना तैयार िो िाय तो इसे भेि िेना। और वि बािर चला गया। िोसतो
के बीच बैठा रिा। राि िेखते -िेखते आधी रात िो गई , पर खरगोश निी आया, तो वि झललाकर घर पिंच
ु ा और सती पर उबल
े िा, “तुम नािक नाराि िोते िो। मैन त े
पडा। सती न क ो घ ट ं ो पिले”खरगोशकोभेििियाथा।
सरिार समझ गया िक यि चतुरीकी शैतानी िै। वे लोग तीसरे ििन रात को िफर चतुरी के घर पिंच
ु गये।
उनिे िेखते िी चतुरी न अ े , “कइनक
प नीसतीसे िा े रपये लाकर िे िे।”
सती बोली, “मै निी िेती।”
“निी िेती ?” चतुरी गरिा और उसन क े ु ल ा ड ी उ ठ ा क रअपनीसतीपरवारिकया।सत
े िा ,
िगर पडी और आंखे मुंि गई। डाकू िगं रि गये। उनिोन क “अरे चतुरी, तून य े ि ?”
कयाकरडाला
चतुरी बोला, “तुम लोग िचंता न करो। यि तो िम लोगो की रोि की बात िै। मै इसे अभी िििंा िकये िेता िूं।”
इतना किकर वि अंिर गया और विा से एक सारगंी उठा लाया। िैसे िी उसे बिाया िक सती उठ खडी िईु।
चतुरी न उ े से प ि ल े स े िी ि स ख ा र ख ा े ेिलएवैसारगंतैया
थ ाओरखूनििखानक
े िा ,
समझकर डाकुओं का सरिार चिकत रि गया। उसन क “चतुरी भैया, यि सारगंी तू िमे िे िे।”
चतुरी न ब ु -आना
े ित कानी की तो सरिार न स े ौ र प य े ि न क ा ल क रिसे औरिे िियेऔरसारगंीलेकर
घर पिंच
ु ते िी सरिार न स े त ी क ो फ ट क ा र ा , छकतेुलिाडी
औ र सतीकु लेकर गिकेन विे
िोगईतोउसनआ अलग खानताव
कर
िी। िफर सारगंी लेकर बैठ गया। बिाते -बिाते सारगंी के तार टूट गये , लेिकन सती न आ े ं ख े निीखोली।सरिारअपनी
मूखकता पर िसर धुनकर रि गया। पर अपनी बेवकूफी की बात उसन ि े क स ी क ो ब त ा ई निीऔरएककेबािएकसारीिसत
िसर कट गये।
भेि खुला तो डाकुओं का पारा आसमान पर चढ गया। वे फौरन चतुरी के घर पिंच
ु े और उसे पकडकर एक बोरी मे बिं
कर निी मे डुबोन ल े े च ल े । र ा त भ र च ल क र स व े र ेवेएकमंििरपरपिंच
ु े।थोडीिरूप
ििया और और सब िनबटन च े लेगये।
उनके िाते िी चतुरी िचललाया , “मुझे निी करनी। मुझे निी करनी।” संयोग से उसी समय एक गवाला अपी गाय -
भैस लेकर आया। उसन आ े व ा िस ु न “ी त ोबोरीक?” ेपचतु े िा, “कया बताऊं। रािा के लोग
ासगया।बोलाकयाबातिै
री न क
मेरे पीछे पडे िै। िक रािकुमारी से िववाि कर लू। लेिकन मे कैसे करं , लडकी कानी िै। ये लोग मुझे पकडकर बयाि करन ल े े
िा रिे िै।”
गवाला बोला, “भेया, बयाि निी िोता । मै इसके िलए तैयार िूं।”
इतना किकर गवाले न झ े ट प ट ब ो र ी क ो ख ो ल क रचतुरीकोबािरिनकालिियाऔरस
गाय-भैस लेकर नौ-िी-गयारि िो गया।
थोडी िेर मे डाकू आये और बोरी ले िाकर उनिोन न े ि ी म े प ट क ि ी । उ निेसत
ं ोषिोगयािकचतुरीसेउनक
गया, लेिकन लौटे तो रासते मे िेखते कया िै िक चतुरी सामन ि े ै । उ न ि े अ प न ीआंखोपरिवशासनिीिआ
ु ।पास
पूछा, “कया बे, तू यिा कैसे ?”
वि बोला, आप लोगो न म े ु झ े , थले
न िीमे उ इसिलए
पानीमेगाय-भैस िी मेरे िाथ पडी, अगर गिरे पानी मे
डाला
डाला िोता तो िीरे-िवािरात िमलते।”
िीरे-िवािरात का नाम सुनकर सरिार के मुंि मे पानी भर आया। बोला , “भैया चतुरी, तू िमे ले चल और िीरे -
िवािरात ििलवा िे।”
चतुरी तो यि चािता िी था। वव उनिे लेकर निी पर गया। बोला , “िेखो, िितनी िेर पानी मे रिोगे, उतना िी लाभ
िोगा। तुम सब एक-एक भारी पतथर गले मे बाध लो।”
लोभी कया निी कर सकता ! उनिोन अ े पन ग े ल ो म े प त थ र -एकऔरएककतारमेखडेिोगये।
ब ाधिलये
को धका िेकर निी मे िगरा ििया।
सारे डाकुओं से िमेशा के िलए छुटकारा पाकर चतुरी चमार गाय -भैस लेकर खुशी-खुशी घर लौटा और अपनी सती के
साथ आननि से रिन ले गा। □
□
ं फैलाये तेिी से अपने -अपेन घोसलो की ओर लौट रिे थे। िगंली पशु ििन भर िशकार की
ं ी पख
साझ िो गई थी। पछ
तलाश मे भटकन क े े ब ा ि ि क स ी ि ला श य म े प , न े गे।लेिकनसेमलकेगा
ा नीपीकरलौटनल
डुली। उसके चेिरे पर उिासी का भाव था। गुमसुम िोकर वि डू बते िएु सूरि की लाली को िेख रिी थी। सेमल के गाछ पर
िबखरन व े ा ल ी ल ा ल ी सेफूलऔरभीलालिोरिेथे।
ििरनी को उिास िेखकर ििरन उसके पास आया। अपनी बडी -बडी आंखो से उसे िेखकर बाला, “कयो, आि तुमिे
कया िो गया िै ? मै िेख रिा िमं िक तुम आि सवेरे से िी इस गाछ के नीचे गुमसुम खडी िो ?”
ििरनी चुप रिी। कुछ निी बाली। उसकी सागर -सी गिरी आंखो मे आि सूनापन था। ििरन की बात सुनते िी उस
सूनपेन को आंसुओं की बूंिो न भ े र ि ि य ा । ि प ी ु र व े आंसू ढुलकपडे। ििरनिव
आंसू उसन आ े ि प ि ली ब ा र ि े ख े थ , ििरनी
े।निानिे कसआशं
फटीकिई
ासे
ु उ े े खा
आंसकाहियकापउठा।उसनि
खो से
अब भी िेख रिी िै। उसकी सास की गित बढ गई िै। उसके पैर काप रिे िै।
ििरन न स े प श क स े , “कया िो गया
अपनीििरनीकोिल िै तुमिे ?छाकया तुमिारी चारागाि सूख गया िै। या
ु ारा।िफरपू
िकसी िगंली िानवर का डर िै?
बोलो, तुमिारी उिासी और तुमिारा मौर मेरे ििल को चीरे डालरिा िै।”
ििरनी के िोठो मे थोडा -सा कमपन िआ
ु ।
िफर वि सािस बटोरकर बोली, “सुना िै, इस िेश के रािा के यािा रािकुमारी का िनम -ििन मनाया िानवेाला िै।
बडे-बडे रािाओं को िनमंतण भेिे गये िै। कल बडा भारी उतसव िोगा। और ....और......इस अवसर पर तरि-तरि के
पकवानबनेगे........ििसके िलए तुमिारा ..............
वि बात पूरी िकये िबना िबलख उठी। आंखो से आंसुओं की धार बिन ल े ग ी । च ा रोओरअंधेराछागया।बेचाराििरन
कया किे !
े िा ,
एक िण तक वि मौन रिा। िफर धीरि के साथ उसन क “अरी पगली, इतनी-सी छोटी बात के िलए तू िु :खी
िोती िै ! ऐसे अचछे अवसर पर अगर मूझे बिलिान िोना पडा तो यि मेरा िकतना बडा सौभागय िोगा ! रािा के िगंल मे रिने
वाले िम सब उनिी के तो सेवक िै। इस बिानमेै उनके ऋण के बोझ से छूट िाऊंगा। मुझे सवगक िमलेगा। अिखर एक ििन मरना तो
िै िी ! िकसी िशकारी के तीर से मरन क े ी बि ा य र ा ि ा केबेट”ेकेिलएबिलिानिोनाकिीअचछािै।
ििरनी फफक-फफक कर रो पडी। रोते-रोते बोली, “मेरे पाणनाथ, मेरी ििुनया सूनी मत करो। तुमिारे िबना कैसे
िीऊंगी? मैन त े ु म ि े अ प न ी आंख ....
ोसेकबस मेरे िलए....ऐसा
भीओझलनिीिोनि े िया।मे ेिलए ”
मतरकरा।
“तू बडी रासमझ िै !” ििरन न प े य ा रसेिफरसमझानाचािा।
“ठीक िै, मै नासमझ िूं।” ििरनी नक े िा, “लेिकन अपन प े ा ण ो स े ब ढ क रपयारे िेवताकोमै किीनिीिानिे ंगू
एक बार, बस एक बार, मेरी बात मान लो। िम इसीसमय इस राजय को छोडकर िकसी िस ू रे िगंल मे भाग चले। इतनी िरू
चले....िक ििा और कोई न िो....।”
ििरनी सारी रात इससे िवनय करती रिी, लेिकन ििरन निी माना। एक ओर पयार था, िस ू री ओर कतकवय, उनके बीच
उसे फैसला करना था। उसकी िनगाि मे कतकवय का मितव अिधक था , तभी तो वि अपन प े य ा र कीबिलचढारिाथा।
िोनो एक-िस ू रे का सिारा िलए, सेमलकी छाया मे, बैठे रिे। आंखे बिं थी। सनाटा इतना छाया था िक ििल की
धडकने साफ सुनाई िेती थी।
सूखे पतो की खडखडािट से अचानक िगंल िाग उठा। िोनो न च े ौ कक र ि ेखा।पूरबमे सूरिकीलालीमुसकरा
रिी थी और िो बिधक नगी तलवारे िलये खडे थे।
घबराकर ििरनी न आ े ं ख े ब ि ं क र ल ी ।उ स क े हियकीधडकनबढगयी।मारेपी
आंखे खोलकर िेखा तो न विा बिधक थे और न उसका पाणो से पयारा ििरन।
तभी आसमान मे लाली ओर अिधक वयापत िो गयी। उसे लगा , िैसे उसके ििरन का लिू बिकर चारो तरफ फैल गया
िो।
ििरनी के ििल बडा धका लगा। वि बेसुध िो गयी। ििन -भर अचेत पडी रिी। शाम को उसकी चेतना पल-भर के िलए
लौटी। तब न लािलमा थी, न रोशनी। चारो तरफ भयानक सूनापन और अंधेरा छाया था।
ििरनी न ि े क स ी त र ि स ा ि स ि ु ट -चलते वि मिल रमेोसेरािमिलकीओरचलिी।
ाया।विउठीऔरभारीपै
ु ी। तबतक रािमिल मे िनम-मिोतसव समापत िो चुका था। मिारानी अपन छ
पिंच े ो ट े र ा िकुमारकोगोिमे िलये बैठीथी।
ििरनी न उ े न ि े ि स र झु , “मिारानी िी ! मै आपके राजय
काकरपणामिकयाऔरकातरसवरमे िवनतीकी
कीएक अभािगनी ििरनी
िूं। आि के मिोतसव मे मेरे पाणाथ का वध िकया गया िै। उससे आपकी रसोई की शोभा बढी , मेिमानो का आिर-सतकार िआ
ु ,
यि सब ठीक िै; िकंतु मेरा तो सुिाग िी लुट गया। अब मेरा कोई निी रिा। मै अनाथ िो गई....।”
उसकी आंखो से आंसू बिन ल े गे, पर धीरि धर कर वि िफर बाली, “मिारानीिी! अब एक मेरी आपसे िवनती िै।
आप कृपा कर मेरे ििरनकी खाल मुझे िे िे। मैन उ े स े अ प न ी आ ं ख ो से कभीओझलनिीिोनिेिया।उसख
के गाछ पर टाग िंगूी और िरू से िेख -िेखकर समझ िलया करंगी िक मेरा ििरन मरा निी, िीिवत िै। मिारानीिी ! वि मेरे
सुिाग की िनशानी िै।”
लेिकन मिारानी न ि े ि र न ी क , न“ासवीकारनिीकी।उनिोनक
ीपाथक उस खाल की तो मै खंे ििाडी बनवाऊंगी और
उसे बिा-बिाकर मेरा बेटा खेला करेगा।”
ििरनी का हिय टूक -टूक िो गया। उसकी आशा की धुंधली जयोित िवा के एक झोके से बुझ गयी। िनराश और भारी मन
से वि िगंल को पुन: लौट आयी।
उसके बाि िब भी रािमिल मे खंिडी खनकती तो ििरनी एक िण के िलए बेसुध िो िाती िै। वि उस खनक को
सुन-सुनकर घट
ं ो आंसू बिाती रिती िै। □
● -
□
एक गाव मे एक वाता किनवेाला रिता था। उसे लमबी वाता किन क े ा श ौ क थ ा ु ारािेनवे ालान
।लेिकनकोईिंक
िमल रिा था। इसिलए उसन स े ो चा , शशायि
िकपरिे मेचलनाचाििए
विा कोई िमल िाये।
चलते-चलते वषों बीत गये। कई गावो ओर नगरो की याता की, पर कोई िंक
ु ारा िेनवेाला निी िमला।
लाचार िो वि एक छोटे -से गाव के बािर नीम की ठणडी छाव िेखकर उसके नीचे िवशाम करन ब े ै ठ गया।इतनमेेविा
से एक आिमी िनकला और उसन पेूछा, “कयो भई, तुम कौन िो ? कया काम करते िो ?”
उसन क े िा, “मै वाताकार िंू और लमबी वाता किना मेरा काम िै। लेिकन वाता सुनाऊं तो िकसे ? कोई िंक
ु ारा
िेनवाला निी िमल रिा िै।”
े
े िा,
उस आिमीन क “वाि भाई वाि! तुम खूब िमले ! ु ारा िेन क े
मै िसफक िंक ा का म कर तािंू औरवषोंसे एकऐसे
आसिमी को खोि रिा ि,ंू िो लमबी वाता कि सके। आि तुम िमल गये तो मेरी खुशी का िठकाना निी िै।”
इस तरि एक-िस
ू रे को पाकर िोनो बडे पसन िएु। िफर उनिोन स , भोिन िकया ओर भगवान का धययान
े नानिकया
करके वाताकार न अ े प न ी , मिीन औ रकी।ििन
ल मबीवाताकिनीशु -पर-वषक बीतते गये, लेिकन न वाता खतम िईु और
े रवषक
न िंक
ु ारे।
कुछ ििनो बाि लोगो न ि े े ख ा ि कउ स ि ग ि ि ो ि ि ड ड य ोकेढाचेपडेिएुिै।लोगोकीकुछसम
वे उनिो कोई चमतकारी संत समझकर पणाम कर लौट िाते थे।
ु ारा िेनवेाले की पितया अपने -अपन प
उधर वाताकार और िंक े ि त य ो -िेखतेे िनराश
केघरलौटनक ीराििेखिोते गई।
वे िानो पितवरता थी। इसिलए उनिोन ि े ि म म त न िी ि ा , िोनो उसी पेड कचे लिी।सं
र ीऔरपितयोकीखोिमे नीचे योगकीबात
ु ी, ििा ििडडयो के िो ढाचे पडे िएु थे। एक न ि
पिंच े स , प“ूछकयो
ू रीसे ा बिन, तुमिारे पित कया काम करते थे ?”
उसन के िा, “वे वाताकार थे और उनिे लमबी वाता किन क े ा शौ क थ ा । वे,ऐसेिो
आिमीकीखोिमे
सालो तक थे
ं ारा िेता रिे।”
िक
िस े िा,
ू री न क “मेरे पित िंक
ु ारा िेन व े ा ल े थ े , िोवाताकारकीखोिमे
औरऐसे थ”े
लमबी वाता किे।
िोनो न से ोचा, िो न िो, ये िोनो ढाचे िमारे पितयो के िोन च े ा -सािकनउनमे
ि ि ए।ले ढाचा वाताकार
सेकौन का था
और कौन-सा िंकु ारे वाले का, यि िानना मुिशकल था। तब िोनो न त े , वषोंरकरिी
प सयाशु बीत गये। इस बीच एक संत विा
से िनकले। उनिोन उ े न क ी , ‘िेपिेसनिोकरकिा
तपसयासे िवयो ! यिि तुम भगवान से पाथकना करके इन पर गंगा -िल
िछडको तो तुमिारे पित तुमिे िमल सकते िै।”
तुरत ि ं ी ए क स त ,े गवानसे
ीनभ “भगवान पथक,नाकी ं कर िे।” ओर उसने
यिि मै सती िोऊं तो मेरे पित वाता पारभ
उन ढाचो पर गंगा-िल िछडका िकएक ढाचे मे िलचल िईु और उसन व े ा त ा क ि न ा पारभ ू रीसतीनपे
ं करििया।िफरिस
की, “िे भगवान यिि मै सती िोऊं तो मेरे पित िंक
ु ारा िेन प े ा ”र भ ं क र ि े । औरउसनढ े ाचेपरिलिछडका।
मे िलचल िईु और उसन ि े ं क ु ारािेनापारभ ं करििया।
तब से आि तक वाताए च ं ल र ि ी ि ै औ र ि ंक □
ु ारोकीआवािभीबराबरआतीरितीिै ।
□
भूख, पयास, नीि और आशा चार बिने थी। एक बार उनमे लडाई िो गई। लडती-झगडती वे रािा के पास पिंच
ु ी।
े िा,
एक न क “मै बडी िं।ू ” िसूरी न क े िा, “ मै बडी िंू।” तीसरी न के िा, “मै बडी िंू।” चौथी न क
े िा, “मै
बडी िंू।” सबसे पिले रािा न भ े ू खसे , प“ूछकयो
ा बिन, तुम कैसे बडी िो ?”
भूख बोली, “मै इसिलए बडी िंू, कयोिक मेरे कारण िी घर मे चूले िलते िै , पाचो पकवान बनते िै और वे िब मुझे
थाल सिाकर िेते िै , तब मै खाती िूं, निी तो खाऊं िी निी।”
रािा न अ े े ,मकच“ािरयोसे
प नक िाओ,कराजय
िा भर मे मुनािी करा िो िक कोई अपन घ े र म ेचूलेन,िलाये पाचो
पकवान न बनाये, थाल न सिाये, भूख लगेगी तो भूख किा िायगी ?”
सारा ििन बीता, आधी रात बीती। भूख को भूख लगी। उसन य े िाखोिा , विा खोिा; लेिकन खान क े ोकिीनिी
े गी।
िमला। लाचार िोकर वि घर मे पडे बासी टुकडे खान ल
पयास न य े ििे,खतो
ा वि िौडी-िौडी रािा के पास पिंच
ु ी। बोली , “रािा! रािा ! भूख िार गई। वि बासी टुकडे
खा रिी िै। िेिखए, बडी तो मै िूं।” रािा न पेूछा, तुम कैसे बडी िो ?
पयास बोली, “मै बडी िूं कयोिक मेरे कारण िी लोग कुए ं , तालाब बनवाते िै, बिढया बतानो मे भरकर पानी रखते िै
और वे िब मुझे िगलास भरकर िेते िै , तब मै उसे पीती ि,ूं निी तो पीऊं िी निी।”
रािा न अ े प नके ,मकच“ािरयोसे
िाओ,कराजय
िा मे मुनािी करा िो िक कोई भीअपन घ े र म े ,
पानीभरकरनिीरखे
िकसी का िगलास भरकर पानी न िे। कुए ं -तालाबो पर पिरे बैठा िो। पयास को पयास लगेगी तो िायगी किा?”
सारा ििन बीता, आधी रात बीती। पयास को पयास लगी। वि यिा िौडी। विा िौड , लेिकन पानी की किा एक बूंि न
े गी।
िमली। लाचार वि एक डबरे पर झुककर पानी पीन ल
नीि निेेखा तो वि िौडी-िौडी रािा के पास पिंच
ु ी बोली , “रािा ! रािा ! पयास िार गई। वि डबरे का पानी पी रिी
िै। सच, बडी तो मै िूं।”
रािा न पेूछा, “तुम कैसे बडी िो ?”
नीि बोली, “मै ऐसे बडी िंू िक लोग मेरे िलए पलंग िबछवाते िै , उस पर िबसतर डलवाते िै और िब मुझे िबसतर
िबछाकर िेते िै तब मै सोती िंू, निी तो सोऊं िी निी।
रािा न अ े प नके ,मकच“ािरयोसे
िाओ,कराजय
िा भर मे यि मुनािी करा िो कोई पलंग न बनवाये , उस पर गदे न
डलवाये ओर न िबसतर िबछा कर रखे। नीि को नीि आयेगी तो वि िायगी किा ?”
सारा ििन बीता। आधी रात बीती। नीि को नीि आन ल े , विाे ढूिाढू
गी।उसनय ं ा,ढ
ढ ं ा लेिकन िबसतर किी निी
िमला। लाचार वि ऊबड-खाबड धरती पर सो गई।
आशा न ि -िौडी रािा के पा पिंचुी। बोली , “रािा ! रािा ! नीि िार गयी। वि ऊबड-खाबड
े े खातोवििौडी
धरती पर सोई िै। वासतव मे भूख, पयास और नीि, इन तीनो मे मै बडी िूं।”
रािा नपेूछा, “तुम कैसे बडी िो ?”
आशा बोली, “मै ऐसे बडी िूं िक लोग मेरी खाितर िी काम करते िै। नौकरी -धनधा, मेिनत और मििरूी करते िै।
परेशािनया उठाते िै। लेिकन आशाके िीप को बुझन न े िीिे”ते।
रािा न अ े े ,मकच“ािरयोसे
प नक िाओ,किा
राजय मे मुनािी करा िो। कोई काम न करे , नौकरी न करे। धध
ं ा,
मेिनत और मििरूी न करे और आशा का िीप न िलाये। आशा को आश िागेगी तो वि िायेगी किा ?”
सारा ििन बीता। आधी रात बीती। आशा को आश िगी। वि यिा गयी, विा गयी। लेिकन चारो ओर अंधेरा छाया िआ
ु
था। िसफक एक कुमिार िटमिटमाते िीपक के पकाश मे काम कर रिा था। वि विा िाकर िटक गयी।
और रािा न िेेखा, उसका सोन क े , रपये की बाती तथा कंचन का मिल बन गया।
ाििया
िैसे उसकी आशा पूरी िईु, वैसे सबकी िो। □
● -
□
‘ ’
सरैसा के नरिन मोखा िनपि मे एक वयापारी रिता था। उसे िुआ खेलन क े ी ल त थ ी । एकबारवििुए मे अपनी
सारी समपित िार गया। इससे उसे इतना िु :ख िआ
ु िक एक ििन वि मर गया। उसकी पती गभकवती थी। कुछ ििनो बाि उसने
एक लडके को िनम ििया। उन ििनो उसके घर मे बेिि तगंी थी।
वयापारी की पती न अ े -तैसबे ेटपाला।
प न इेकलौते ेकोिैसिब लडका पाच साल का िआ
ु तो वि अपन प े ुतकेसाथ
पित के एक धिनक िमत कीशरण मे चली गयी। विा वि बारि वषक तक रिी। एकििन अवसरपाकर लडके की मा न प े ितकेिमत
से पाथकना की िक सेठिी, मेरे पुत को कुछ पढा -िलख िेते तो वि अपन प े ा व ो प र खड ा िोिाता।लडकेकीमाकपाथकना
सेठ न ए े क अ ध य ा -िलखना और ेििसाब
पकरखििया।उसनउ सेकुछ-पढना
िकताब िसखा ििया।
एक ििन की बात िै िक वि लडका सेठ के िरवािे पर बैठा चुपचाप कुछ सोच रिा था। आगे कया िोगा , इस िचंता मे
उसकी आंखे गीली िो गई। उसी समय उसकी मा भी विा आ गई। मा न आ े ं च ल स े बेट,ेकामु
“ंिबेपोछते
टा, तुिमएुकिा
रोते
कयो िो? तुम वयापारी के लडके िो। इसिलए कोई छोटा -मोटा धध ं ा शुर कर िो। पास के मोिलले मे एक सेठ रिता िै , िो
िीन-िखु ी लडको को वयापार मे पूंिी लगान क े े ि ल ए ि बन ा ब य ा ि क े पैसाउधारिेिेतािै।तुमउनकेपा
रपया ले आओ।˝
सवेरा िोते िी लडका सेठ के पास गया। ििस समय वि उसकी गदी पर पिंचु ा , वि िकसी लडके को डाटते िएु समझा
रिा था िक तुम इस तरि अपन ि े ी व न म े म ु , वि भी।कोई
छ निीकरसकोगे िोआिमीमे िै ! िबना
आिमीिनतनिीकरता
उदोग िकये तुम सुखी निी रि सकोगे। तुमिारा िीवन बेकार चला िायगा। उदम के िबना िकसी का मनोरथ आि तक पूरा निी
ु िै। िेखते िो , सामन ि े
िआ ो म , िकसी
राचू
िापडािैयोगय और कमकठ वयापारी का बेटा उसे बेचकर भी पैसा बना सकता िै।
सामन ि े ो ि ,म उससे वि सोना बना सकता िै। चूले की राख से वि लाख बना सकता िै। मैन त े ुमिेइतने
टटीऔरकोयलािै
रपये ििये और तुम खाली िाथ लौटकर और रपये मागन आ े य े ि ो । यि ा स े े ीश
च ले िाओ।तुम मे कामकरनक
तुम अपन प े ि त भीईमानिारनिीिो।
इस लडके न ि े ब ि ो न ो के ब , “सेठिीन,ीतोउसनस
ी चकीबातचीतसु मै इस े मरेेठसेिएक चूिे को आपसे पूंिी
ु िा
के रप मे उधार ले िाना चािता िूं। ˝
यि किकर वि लडका विा रका निी, बिलक उसमरे चूिे को पूंछ के सिारे उठाकर विा से चला गया। सेठ न उ
े स
लडके का पिरचय िानन क े े ि ल ए अ पन म े ु न ी म क ो उ स कीखोिमेभेिा।परविलडकातोनगरक
लौटकर मुनीम न स े े ठ क ो इ स ब ा त क ी स ू , “मुनबीमडीिचं
च नािीतोउसे िीत,ािईु।उसनअ
े पनमे ुनीमसे कि
वि लडका बडा िोनिार िै। एक ििन वि अवशय लखपित बनगेा। अगर मै उसकी कुछ मिि कर सकता तो मुझे बडी खुशी
िोती।˝
उसे मरे चूिे को आिखर कौन लेतो ? एक बिनये के बेटे न अ े प न ी ि ब ल ल ीकेिशकारकेिलएउसे कुछ पैसे िेकर
खरीि िलया। लडके न उ े न प ै स ो स े क ु छ चन औ े र ए क घ डाखरीिा।िफरउसघडेमेिलभ
के नचे बैठ गया। उस रासते से गुिरन व े ा ल े ल ो ग ो क ो व ि ब ड ी न मतासेकुछचनिेेकरिलिपलाता
खुश िोकर वे उसे कुछ पैसे िे िेते।
लकडी काटन क े े क ा म स े ब ढ ई लो ग भ ी उ स ी र ा सतेसेगुिरतेथे।वेलोगभीविापान
मे लकिडया िे िाते। इस तरि विा लकिडयो का ढेर लग गया। एक ििन लकडी के एक वयापारी के िाथ उस लडके न स
े ारी
लकिडया बेच िी। लकडी की उस पूंिी से उसन क े ु छऔरचनख े रीिे।
वि पिले की तरि रािगीरो को चन ि े ख ल ा क र प ा न ी ि प-लातारिाऔरबिले
धीरे मे पैसे औरलक
उसकी पूंिी बढन ल े ग ी । ि ब उ स के प ा स क ु छ ज य ािापैसािोगयातोविलकिडयाभीख
लाभ िआ ु ।
लेिकन वषा ऋतु के आन स े े ल क ि ड य ो क ा ध ध ं ा म े गा।लोगपानीभीक
ं िपडनल
चौरािे पर िमा लकिडयो को लेकर बािार मे बेच ििया और उसी पूंिी से विा उसन ए े क ि कु ानखोलिी।थोडे िीििनोमे
उसकी िक ु ान चल पडी। रोि के काम मे आनवेाली सभी चीिे उस िक
ु ान पर ससते िामो मे िमल िाती थी। लडका कुछ िी ििनो
मे बडा वयापारी बनगया। उसन व े ि ी अ प न ि े ल ए ए क म क ा नबनवािलया।उसमे विअपनी
लगा।
ु ान पर बैठा था , उसे अचानक उस सेठ की याि आ गई, ििसके यिा से वि मरा िआ
एक ििन िब वि अपनी िक ु चूिा
लाया था। उसन उ े सक े ऋ ण स े म ु क त ि ो न के े ि े ाचूिाबनवायाऔरउस
ल एसोनक
किा, “सेठिी, आपके चूिे न म े ु झ े ल ख प ि ˝ ।मेरेिीवनकीधारािीबिलिीिै।
त ब न ािियािै
सेठ उस घटना को भूल गये थे। िब लडके न स े ा र ी क ि ा न ी स ु न ाईतोउसपरविइतनमेुगधिोगयेिक
अपन प े ा स ग द ी प र ब ै ठ ा □ अपनीलडकीकािववािउसकेसाथकरििया।
ि ल या।बािमे
● -
एक लडकी थी। वि बडी सुनिर थी, शरीर उसका पतला था। रगं गोरा था। मुखडा गोल था। बडी -बडी आंखे कटी
िईु अिमबयो िैसी थी। लमबे -लमबे काले-काले बाल थे। वि बडा मीठा बोलती थी। धीरे-धीरे वि बडी िो गई। उसके िपता ने
कुल के पुरोिित तथा नाई से वर की खोि करन क े ोकिा, उन िानो न ि े म ल क र ए क वरतलाशिकया।नलडकीनिेोनवेा
ू े को िेखा, न िल
िल ू ेनि े ोनवेालीिल
ु नको।
धूम-धाम से उनका िववाि िो गया। िब पिली बार लडकी न प े ि त क ोिेख-ातोउसकीकाली
कलूटी सूरत को िेखकर
वि बडी िु :खी िईु। इसके िवपरीत लडका सुनिर लडकी को िेखकर फूला न समाया।
ू औटाकर उसमे गुड या शकर िमलाकर बिू को कटोरा थमा िेती और किती ,
रात िोती तो लडकी की सास िध “िा,
े ाडे (पित) को िपला आ।˝ वि कटोरा िाथ मे लेकर, पकत के पास िाती और िबना कुछ बोले चुपचाप खडी िो िाती।
अपन ल
उसका पित िध ू का कटोरा लेलेता और पी िाता। इस तरि कई ििन बीत गये। िर रोि ऐसे िी िोता। एक ििन उसका पित
े गा, आिखर यि बोलती कयो निी। उसन ि
सोचन ल े न श य ि क य ा ि क आिइसे बुलवाये िबनामानूंगानि
ू पी लो, मै इसके िाथ से कटोरा निी लूंगा।
निी िक लो िध
उस ििन रात को िब वि िध ू लेकर उसके पास खडी िईु तो वि चुपचाप लेटा रिा। उसन क े ट ो रानिीथामा।पतीभी
कटोरे को िाथ मे पकडे खडी रिी , कुछ बोली निी। बेचारी सारी रात खडी रिी , मगर उसन म े ु ं िनिीखोला।उसिठीले
आिमी न भ े ी ि ध ू काकटोरानिीिलया।
, इस
सुबि िोन क े ो ि ईुतोपितनसे ोचाबेचारी न म े े र े ि ल ए ि क त न ाकिसिािै।यिमेरेसाथरिक
इसे अपन प े ा स र ख न ाइसकेसाथघोरअनयायकरनािै।
इसके बाि वि उसे उसके पीिर छोड आया। बेचारी विा भी पसन कैसे रिती ! वि मन-मन िी कुढती। वि घुटकर
मरन ल े ग ी ।उ स े को ई ब ी -िपता को उसकेएिविचत
मारीनथी।विबािरसे किमठीकलगतीथी।माता
रोग की िचंता िोने
ु -से वैदो और जयोितिषयो के पास गये , पर िकसी की समझ मे उसका रोग निी आया।
लगी। वे बित
अंत मे एक बडे जयोितषी न ल -रपेरगंऔर चाल-ढाल को िेखकर असली बात िानली। उसन उ
े डकीक े सकेिाथ
की रेखाए ि ं , “बेटी!े ताया
े खी।जयोितषीनब िपछले िनम मे तून ि े ै से,कतुमकझे ठीक
िकये थे वैसा िी फल िमल रिा िै। इसमे
नतेरा िोष िै, न तेरे पित का। तेरे पित न ि े प छ ल े ि न म म े स फ े िमोितयोकािानिकयाथाऔरतून
वालो की झोिलयो मे डाले थे। सफेि मोितयो के िानके फल से तेरे पित को सुंिर पती िमली िै और तुझे उडिो िैसा काला -
कलूटा आिमी िमला िै।
“ऐसी िालत मे तेरे िलए यिी अचछा िै िक तू अपन प े ि त क े घ र च ल ी ि ा औरमनमेिकसीभीपकारकीबुरीभ
लाये िबना उसी से सातोष कर, िो तुझे िमला िै , ओर आगे के िलए खूब अचछे -अचछे काम कर। उसका फल तुझे अगले िनम मे
अवशय िमलेगा।”
जयोितषी की बात उस लडकी की समझ मे आ गई और वि खुश िोकर अपन प े ि त क े प ासचलीगई।वे लोगआंनिं
े गे। □
से रिन ल
● -
िकसी गाव मे िो िमत रिते थे। बचपनसे उनमे बडी घिनिता थी। उनमे से एक का नाम था पापबुिद और िस
ू रे का
धमकबुिद। पापबुिद पाप के काम करन म े े ि ि च ि क , िबिक वि कोई-न-कोई पाप ने
च ातानिीथा।कोईभीऐसाििननिीिाताथा
करे, यिा तक िक वि अपन स
े गे-समबिंधयो के साथ भी बुरा वयविार करन म े े निीचूकताथा।
ू रा िमत धमकबुिद सिा अचछे -अचछे काम िकया करता था। वि अपन ि
िस े म त ो क ,
ी क िठनाइयोकोिर े ेिलएतन
ू करनक
मन, धन से पूरा पयत करता था। वि अपन च े ि र त क े क ा र -पोषण करना
ण पिसदथा।धमक बुिदकोअपनबेडेपिरवारकापालन
पडता था। वि बडी किठनाईयो से धनोपािकन करता था।
एक ििन पापबुिद न ध े म क , े प“ासिाकरकिा
बुिदक िमत ! तून अ े ब त क ि क स ीिस
ू रे सथानोकीयातानिीकी।
इसिलए तुझे और िकसी सथान की कुछ भी िानकारी निी िै। िब तेरे बेटे -पोते उन सथानो के बारे मे तुझसे पूछेगे तो तू कया
िवाब िेगा ? इसिलए िमत, मै चािता िूं िक तू मेरे साथ घूमन च
े ल।”
धमकबुिद ठिरा िनषकपट। वि छल-फरेब निी िानता था। उसन उ े स क ी ब ा त मानली।बाहाणसे शुभ मुित
ू क िनकलवा
कर वे याता पर चल पडे।
चलते-चलते वे एक सुनिर नगरी मे िाकर रिन ल े गे । प -साे मकधन
ा पबुिदनध बुिदकीसिायतासे
कमाया। िबबित
ु
अचछी कमाई िो गई तो वे अपन घ े र क ी ओ र र -िीु-।रासते
वानािए मन सोचन ल िदमने
मे पापबु गा ि क मै इसधमकबुिदकोठग
ं
कर इस सारे धन को ििथया लूं और धनवान बन िाऊ। इसका उपाय भी उसन ख े ोििलया।
िोनो गाव के िनकट पिंच
ु े। पापबुिद न ध , “किमत
े मकबुिदसे िा , यि सारा धनगाव मे ले िाना ठीक निी।”
यि सुनकर धमकबुिद न पेूछा, “इसको कैसे बचाया िा सकता िै ? ”
े िा,
पापबुिद न क“सारा धन अगर गाव मे ले गये तो इसे भाई बटवा लेगे और अगर कोई पुिलस को खबर कर िेगा तो
िीना मुिशकल िो िायगा। इसिलए इस धन मे से आवशयकता के अनुसार थोडा -थोडा लेकर बाकी को िकसी िगंल मे गाड िे।
िब िररत पडेगी तो आकर ले िायेगे।”
यि सुनकर धमकबुिद बित ु खुश िआ
ु । िोनो न व े ै स ा ि ीिकयाऔरघरलौटगए।
कुछ ििनो बाि पापबुिद उसी िगंल मे गया और सारा धन िनकालकर उसके सथान पर िमटटी के ढेले भर आया। उसने
वि धन अपन घ े र म -चार ििन बाि वि धमकबूिद के पास िाकर बोला ,
े िछपािलया।तीन “िमत, िो धन िम लाये थे वि सब
खतम िो चुका िै। इसिलए चलो, िगंल मे िाकर कुछ धन और ले आये।”
धमकबुिद उसकी बात मान गया और अगलेििन िोनो िगंल मे पिंच
ु े। उनिोन ग े ु प त ध ,
नवालीिगिगिरीखोिडाली
मगर धन का किी भी पता न था। इस पर पापबुिद न ब े डे , से “ाथकिा
कोधक धमकबुिद, यि धन तून ल े ” ।
ेिलयािै
धमकबुिद को बडा गुससा आया। उसन क े िा, “मैन य े ि ध न न ि ी ि ल य ा े पनीििगंीमे आितकऐस
।मैनअ
कीभी निी िकया ।यि धन तून ि े ीचुर”ायािै।
पापबुिद न के िा, “मैन न े िीरचु,रायातून ि े ी चुर-ायािै सच िे और आधा धन मुझे िे िे , निी तो मै
सच।बता
नयायधीश से तेरी िशकायत करंगा।”
धमकबुिद न य े ि ब ा त स व ी क ा र क र ल ी ।िोनोनयायालयमे पिंच
ु े। नययाधीश
की बात मान ली और पापबुिद को सौ कोडे का िणड ििया। इस पर पापबुिद कापन ल े , “मिाराि, वि पेड पिी िै।
गाऔरबोला
िम उससे पूछ ले तो वि िमे बता िेगा िक उसके नीचे से धन िकसन ि े न ”कालािै।
यि सुनकर नयायधीश न उ े न ि ो न ो क ो स ा थ ल े क रविािानक े ािनशयचिकया।पापबुिदन
मागा और वि अपन ि े प त ाकेप,ासिाकरबोला
“िपतािी, अगर आपको यि धन और मेरे पाण बचान ि े ो त ो आपउसपेड की
खोखर मे बैठ िाय औ ं र न य ा यध ी ”े रचोरीकेिलएधमकबुिदकानामलेिे।
श क े पूछनप
िपता रािी िो गये। अगले ििन नयायधीश, पापबुिद और धमकबुिद विा गये। विा िाकर पापबुिद न पेूछा, “ओ वृि !
सच बता, यिा का धन िकसन च े ुर”ायािै।
े िा ,
खोखर मे िछपे उसके िपता न क “धमकबुिद न।े”
यि सुनकर नयायधीश धमकबुिद को कठोर कारावास का िणड िेन क े े ि ल ए , “आप
त ैयारिोगये
।धमक
मुझबुिे दनक
े िा
इस वृि को आग लगान क े ी आ ज ा ि े , उसे
ि े।बािमे मै सिषक सवीकार कर लूंगा।”
िोउिचतिणडिोगा
नयायधीश की आजा पाकर धमकबुिद न उ े स प े ड के चा र ो ओ र खोखरमेिमटटीकेतेलकेचीथडेतथ
लगा िी। कुछ िी िणो मे पापबुिद का िपता िचललाया “अरे , मै मरा िा रिा िूं। मुझे बचाओ।”
िपता के अधिले शरीर को बािर िनकाला गया तो सचचाई का पता चल गया। इस पर पापबुिद को मृतयु िणड ििया
गया। धमकबुिद खुशी-खुशी अपन घ े □
रलौटगया।
● -
एक नौका िनल मे िविार कर रिी थी। अकसमात् आकाश मे मेघ िघर आये और घनघोर वषा िोन ल -पकोप
े गी।वायु
नत े ू फ ा न क ो भ ी ष ण क र ि ि या े
। य ातीघबराकरिािाकारकरनल
लान क े -िान से पिरशम करना पारमभ कर ििया। वि अपन म
े िलएिी े िब ू त , िब
ि ाथोसे नावकोखे
तक तिक
ािीरिा
वि
िबलकुल थक िी न गया। िकंतु थकन प े र भ ी व ि ? विैसअपन
नावकोक ेछोडिेथ े के श र ी र स ेभीनौकाकोपारकरनमेेिुट
गया।
धीरे-धीरे नौका मे िल भरन ल े ग ा औ र य ा ि त य ो क े द ा े ापयतक
रापानीकोिनकालनक
गया। नौका धीरे-धीरे भारी िोन ल
े गी, पर नािवक सािसपूवकक िुटा िी रिा। अंत मे उसे िनराशा न घ े े रिलया।अभीिकनारा
काफी िरू था और नौका िल मे डू बन ल े गी ।न ा , और
िवकनिे ाथसे
िसरपतवारफे
पकडकरकिीबैठ गया। कुछ िी िणो मे
मौका डू ब गयी। सभी याती पाणो से िाथ धो बैठे। यमराि के पाषकि आये और नािवक को नरक के दार पर ले गये। नािवक ने
पूछा, “कृपा करके मेरा अपराध तो बताओ िक मुझे नरक की ओर कयो घसीटा िा रिा िै ?”
पाषकिो न उ , “नािवका, तुम पर मौका के याितयो को डुबान क े ा पापलगािै
े तरििया ” ।
नािवक चिकत िोकर बोला, “यि तो कोई नयाय निी िै। मैन त े ो भ र स ”
क प य तिकयािकयाितयोकीरिािोसके।
पाषकिो न उ , “यि ठीक िै िक तुमन प
े तरििया , िकंतु तुमे अंत मे नौका चलाना छोड ििया था। तुमिारा
े िरशमिकया
कतकवय था िक अंितम शयास तक नौका को खेते रिते। नौका के याितयो की ििममेिारी तुम पर थी। तुम पर उनकी ितया का िोष
लगा िै।” □
□
ं क पित की घरवाली-सी वि शोकभरी शाम थी। अगले िनम की आशा के समान कोई तारा चमक रिा था। अंधेरे
नपुस
पखवाडे के ििन थे।
ऐसी नीरस शाम को आंबला गाव के चबूतरे पर ठाकुरिी की आरती की सब बाट िेख रिे थे। छोटे -छोटे अधनगंे बचचो
की भीड लगी थी। िकसी के िाथ मे चाि -सी चमकती कासे की झालर झूल रिी थी तो कोई बडे नगाडे पर चोट लगान क
े ी
पतीिा कर रिा था। छोटे -छोटे बचचे इस आशा से नाच रिे थे िक पसाि मे उनिे िमसी का एकाध टुकडा , नारिरयल की एक-िो
फाके तथा तुलसी िल से सुगंिधत मीठा चरणमृत िमलेगा। बाबािी न अ े भ ी त क म ं ि ि र कोखोलानिीथा।कु ंएकेिकना
बाबािी सनान कर रिे थे।
बडी उम के लोग ननिे बचचो को उठाये आरती की पतीिा मे चबूतरे पर बैठे थे। सब चुपपी साधे थे। उनके अंतर अपने
आप गिरारई मे ब्ीैठते िा रिे थे। यि ऐसी शाम थी।
ं धीमी आवाि मे िकसी न ब
बडी उिास थी आि की शाम। अतयत े :डेख
िु से किा, “ऋतुए म ं ं िपडतीिारिी
िै।”
ू रा इस िु :ख मे वृिद करते िएु बोला ,
िस “यि किलयुग िै। अब किलयुग मे ऋतुए ि ं ख ल त ीनिीिै। िखले तोकैसे
िखले!”
े िा,
तीसरे न क “ठाकुरिी का मुखारिबनि ि ु क त ”
नामलानपडगयािै ।
चौथा बोला, “िस वषक पिले उनके मुख पर िकतना तेि था।”
बड-बूढे लोग धीमी आवाि मे तथा अधमुंिी आंखो से बातो मे तललीन थे। उसी समय आंबला गाव के बािार मे िो वयिकत
सीधे चले आ रिे थे। आगे पुरष और पीछे सतीी्र। पुरष की कमर मे तलवार और िाथ मे लकडी थी। सती के िसर पर बडी गठरी
थी। पुरष को एकिम पिचाना निी िा सकता था, परत
ं ु रािपूतनी अपन प े ै र ो क ी च ालसे ओरघेरिारलिगंे तथाओ
पिचानी िाती थी।
रािपूत न ल े -राम’ निी िकया, इससे गाव के लोग समझ गये िकये अिनबी िै। अपनी ओर से िी लोगो ने
‘ोगोकोराम
किा, ‘राम-राम’।
उतर मे ‘राम-राम’ किकर याती िलिी-िलिी आगे चल पडा। उसके पीछे रािपूतनी अपन प े ै र ोकीएिडयोकोढकती
िईु बढ चली। एक-िस े िा ,
ू रे के मुिं की ओर िेखकर लोगो न क “ठाकुर , िकतनी िरू िाना िै ?”
“यिी कोई आधा मील।” िवाब िमला।
“तब तो आत लोग यिा रक िाइये ? ”
“कयो ? इतना िोर कयो िे रिे िै?” याती न क े ु छतेिीसेकिा।
“इसका कोई खास कारण तो निी िै, परतंु समय अिधक िो गया और साथ मे मििला िै। इसी से िम कि रिे िै।
अंधेरे मे अकारण िोिखम कयो लेते िै ? िफर यिा िम सब आपके िी भाई -बिं तो िै। इसिलए आप रक िाइये।”
मुसािफर न ि , “अपनी ताकत का अंिािा लगा करके िी मै सफर करता िूं। मािों के िलए समय -समय
े वाबििया
कया िोता िै ! अब तक तो अपन स े े ब ”
ढ क रकोईबिािर ु िेखानिीिै।
आगि करन व े ा ल े ल ो , “ठीक
ग ोकोबडाबु िै, वरना चािते
रालगा।िकसीनक े िा िै तो इनिे मरन िेो।”
रािपूत और रािपूतानी आगे बढ गये।
िोनो िगंल मे चले िा रिे थे। सूयक असत िो गया था। िरू से मंििर मे आरती के घट
ं े की धविन सुनाई िे रिी थी। िरू के
गावो के िीपक िटमिटमा रिे थे और कुते भौक रिे थे।
मुसािफर न अ े च ा न क प ी छ े घ ु ं घ र क ीआवािसुीी।रािपूतनीनपेीछे मुडक
कंधे पर डाक की थैली लटकाये, िाथ मे घुंघर वाला भाला िलये, िाते िएु ििखाई ििया। उसकी कमर मे फटे मयानवाली
तलवार लटकी िईु थी। िटा िलकारा ििुनया की आशा -िनराशा और शुभ-अशुभ की थैली कंधे पर लेकर िा रिा था। कुछ
परिेश गये पुतो की वृद माताए ओ ं र प -छ: मिीन म े
वािसयोकीिसतयासाल े ि च ट ठ ी ि म,लनक
े ीआसलगायेबैठीराििेख
यि सोचकर निी,बिलक िेरी िो िायेगी तो वेतन कट िरयगा , इस डर से िटा िलकारा िौडा िा रिा था। भाले के घुंघर इस
अंधेरे एकात रात मे उसके साथी बन ि े एुथे।
िेखते-िी-िेखते िलकारा पीछे चलती रािपूतनी के पास पिंच
ु गया। िोनो न एेक -िस
ू रे की कुशल पूछी। रािपूतनी का
मायका सणोसरा मे था। िलकारा सणोसरा से िी आ रिा था। इसिलए रािपूतनी अपन मेा-बाप के समािचार पूछन ल े गी।पीिर
के गाव से आनवेाले अपिरिचत पुरष को भी सती अपन स े गेभ-ाईसा समझती िै। िोनो बाते करते िएु साथ चलन ल
े गे।
रािपूत कुछ किम आगे था। रािपूतनी को पीछे रि िाते िेखकर उसन म े ु ड कर ू रे आिमीकेसाथबाते
िेखा।िस
करते िेखकर उसन उ -बुरा किा और धमकाया।
े सकोभला
े िा,
रािपूतनी न क “मेरे पीिर का िलकारा िै। मेरा भाई िै।”
“िेख िलया तेरा भाई ! चुपचाप चली आ।” रािपूत न भ े ौिे च,ढाकरकिा
िफर िलकारे से बोला, “तुम भी तो
आिमी-आिमी को पिचानो।”
ठीक िै, बापू !” यो किकर िलकारे न अ े प न न ी च ा ल ध ी मीकरिी।एकखेतिितनीिरूीरखकर
िब यि रािपूत िोडी निी पर पिंच े लकारा,
ु ी तो एक साथ बाररि आििमयो न ल “खबरिार, िो आगे बढे ! तलवार
नीचे डाल िो।”
रािपूत के मुिं से िो -चार गािलया िनकली, परत
ं ु मयान से तलवार निी िनकल पायी। आंबला गाव के बािर कोिलयो ने
आकर उस रािपूत को रससी से बाध ििया और िरू पटक ििया।
“बाई, गीिन उ े ”त ा र ि ो ।एकलुटेरेनरेािपूतनीसेकिा।
बेचारी रािपूतनी अपन श े -एकएकगिना उतारन ल
र ीरपरसे , पैर, सीना आिि अंग लुटेरो की आंखो के
े गी।िाथ
आगे आये। उसकी भरी िईु िेि न ल े ु -वासना
ट ेरोकीआं खोमेक
उभार
ाम िी। िवान कोिलयो न प े ि ल ेतोउसकामिाकउडाना
शुर िकया। रािपूतनी शात रिी, लेिकन िब लुटेरे बढकर उसके िनकट आन ल े ग े त ो ि िरीलीनािगनकीतरिफुफकारती
रािपूतनी खडी िो गई।
कोिलयो न य े ि ि े , “अरे ! उस समी
खकरअटटिासकरते की पूंछ को धरती पर पटक िो !”
िएुकिा
अंधेरे मे रािपूतनी न आ े क श क ी ओर ि े ख ा । िटािलकाराकेघघ
ुं रकीआवािउसकेकानोमेपडी।
रािपूतनी चीख उठी, “भाई, िौडो ! बचाओ !”
िलकारे न त े ल व ा र ख ी च , “खबरिार,विािापिं
लीऔरपलकमारते िो उसच ु पर िाथ उठाया !”
ा।बोला
बारि कोली लािठया लेकर उस पर टूट पडे। िलकारे न त े ल व ा र च ला यीऔरसातकोिलयोकोमौतकेघाटउ
ििया। उसके िसर पर लािठयो की वषा िो रिी थी , परत े ोर
ं ु िलकारे को लािठयो की चोट का पता िी निी था। रािपूतनी न श
मचा ििया। मारे डर के बचे िएु लुटेरे भाग गये। उनके िाते िी िलकारा चकर खाकर िगर पडा ओर उसके पाण -पखेर उड
गये।
रािपूतनी न अ े प न प े ि त क , “अब िम चले।”िीरािपूतबोला
ीरिससयाखोलिी।उठते
“किा चले?” सती न िेु :खी िोकर किा, “तुमिे शमक निी आती ! िो किम साथ चलनवेाला वि बाहाण, घडी भर
की पिचान के कारण , मेरे शील की रिा करते मरा पडा िै। और मेरे िनम भर के साथी , तुमिे अपना िीवन पयारा लगता िै !
ठाकुर , चले िाओ अपन र े ा स त े । अ ब ि म ा र ा क ा ग औरिस ं कासाथनिीिोसकता
िचता मे िी भसम िो िाऊंगी !”
“ठीक िै, तेरी िैसी मुझे और िमल िायगी।” किता िआ ु रािपमत विा से चला गया।
िलकारे के शव को गोि मे लेकर रािपूतनी सवेरे तक उस भयक
ं र िगंल मे बैठी रिी। उिाला िोन प े -िगिके िक
रउसनइ
से लकिडया इकटठी करके िचता रची। शव को गोि मे लेकर सवय ि ं च त ा प र च ढ गई।अिगनसुलगउठी।िोनोिल
िो गये। कायर पित की सती सती िैसी शोकातुर संधया की उस घडी मे िचता की िीण जयोित िेर तक चमकती रिी।
आंबला और रामधारी के बीच के एक नाले मे आि भी िटा और सती की समृित सुरिित िै। □
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