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मुकलेदीन के एतराज़ का
जवाब हािज़र है
पेशकश
ये छोटा सा रसाला िलखते हए हमे बेहद मसरत हो रही है िक हम अपने मुखािलफ
भाईयो क गलतफिहमयो का जवाब दे रहे है, कम से कम उ&होने अपनी गलतफिहमय' का
इजहार तो िकया वना अब तक तो हमारे भोले भाले भाई बेबुिनयाद बाते जो नाम नमुद के
उलमा इकराम ने उड़ाई हई है उ&हे ही ल*जे आिखर समझते रहे और उनक बातो मे आकर
अपने आप को कु रआन व हदीस से दूर ही रखा /योिक उ&हे ये घु1ी िपलाइ गई िक ये
कु रआन व फरमाने रसुल स2ला2लाह अलैिह वस2लम आपके समझ मे आने वाली बाते नह3
है और हमारे भाईयो को अपने हाथो से िलखी हई िकताबे जो कु रआन व हदीसे से कोसो दूर
है पकड़ा दी वो बेचारे उ&हे ही कु रआन व हदीस समझ बैठे और अपने पैदा करने वाले
खािलक के कलाम :-
’’ हमने ही इस िज:
िज: को नाि़जल िकया और हम ही इसक िहफाज़त करने वाले
है’’(
’’’’(सुरह अल िह> आयत नं0 99))
इस कालम मे हमारे भाईयो ने हमारा इशारा कु रआन क कु छ सुरह जैसे सुरह तौबा-
88,100, सुरह हदीद 10, सुरह बकरा 137 वगैरह क तरफ कराया है जो हमे िदलो जान
से कु बुल है बेशक सहाबा िकराम रिजअ2लाह अ&हQम का मतबा अ2लाह के नज़दीक बहत
Tयादा है /योिक रसुले करीम स2ला2लाह अलैिह वस2लम ने एक हदीस मे फरमाया िक
िजसने इमान क हालत मे मेरा दीदार िसफ दूर से कर िलया तो आने वाला बड़े से बड़ा वली
उस शOस क बराबरी को नह3 पहंच सकता । हम ये कु बुल करते है िक सहाबा िकराम के
न/शे कदम पर ही हम भी चलने क कोिशश करते है और आपको भी चलने क दावत देते
है /योिक उन अज़ीम शिOसयतो ने दीन या तो अ2लाह के कलाम को समझा या िफर
मुहKमद स2ला2लाह अलैिह वस2लम के फरमान को और इसके आगे िकसी और के कौल
को हTजत नह3 समझा बेशक अ2लाह हम सब को भी उनके ही जैसा जT़बा दे आमीन ।
जवाब
हदीस नं0 1
‘’अY उमर उबई िबन काब व तमीमदारी अन यकौव मा ललनास फ रमज़ान बा हदी
अशरतह रकअत’’
हज़रत उमर रि़जअ2लाह अ&हQम ने उबई िबन काब को हक्म िदया िक वो मदZ को
और इमाम तमीमदारी को ह/म िदया िक औरतो को [यारह रकअत पढ़ाये । (मुअ\ता इमाम
मिलक, सलातुल लैल, बाब फ कयाम रमज़ान 98)
हदीस नं02
02
अबू सलमा िबन अ^दुरहमान रिजअ2लाह अ&हQम ने हज़रत आयशा रिजअ2लाह
अ&हा से पूछा िक नबी करीम स2ला2लाह अलैिह वस2लम रमज़ान मे िकतनी रकअते पढ़ते
थे? उ&हो ने कहा रमज़ान हो या कोई और महीना, आप [यारह रकअत' से अिधक नह3
पढ़ते थे । पहले चार रकअते पढ़ते थे, उन क खूबी और लंबाई का हाल मत पूछो िफर चार
रकअते पढ़ते, उन क खूबी और लंबाइ का हाल मत पूछो । िफर तीन रकअते पढ़ते थे । मैने
एक बार आप से पूछा ऐ अ2लाह के रसुल स2ला2लाह अलैिह वस2लम /या आप िव] पढ़ने
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से पहले सो जाते है ? आप ने फरमाया आंखे तो सो जाती है मगर िदल नह3 सोता । (सहीह
बुखारी, िकताबु सलाित\तरावीह , हदीस नं0 2013)
एतराज नं0 2
जुमे क पहली अज़ान को हजरत उNमान के ह/म से जारी हई (िजस पर िकसी
सहाबा ने इOतेलाफ नह3 िकया) गैर मुकिbदीन ने मानने से इंकार कर िदया और िबदअत-
ए-उसमान करार दे िदया ।
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जवाब
यहां भी मेरे कािबल दोNत से गलती हो गई उ&होने िफर से हदीस का मुताला िकये
िबना और उसे पेश िकये िबना और हदीस पर हए कलाम को देखे िबना अपना एतराज
कायम कर िदया सबसे पहले मै चाहता हQं िक उ&हे गैर मुकिbदीन का मायना समझा दूं िजस
तरह िदन का उ2टा रात होता है सुबह का उ2टा शाम होता है औरत का उ2टा मद होता,
/या कभी औरत का उ2टा गैर औरत होता है उसी तरह मुक2लीद का उ2टा गैर मुकिbद
नह3 बि2क मुcबेअ होता है शायद उ&हे तकलीद का मायना भी नह3 पता तकलीद का
मतलब होता है अपने गले मे प1ा डालना यािन िबना दलील गैर नबी क बात को तसलीम
करना तकलीद कहलाता है । अब असल जवाब िक िबदअत ए उसमान रिजअ2लाह अ&हQ
/या है, और वह हदीस भी पेश करते है :-
‘’ हज़रत साईब िबन यज़ीद रिजअ2लाह अ&हQम बयान करते है िक नबी करीम
स2ला2लाह अलैिह वस2लम के ज़माना मे और अबू ब: रिज0 के ज़माना मे भी जुमा के
िदन पहली अज़ान उस समय हआ करती थी जब इमाम खु\बा के िलये िमंबर पर बैठ जाता
था । मगर उNमान रिज0 के ज़माना मे जब लोगो क आबादी बढ़ गयी तो तीसरी अज़ान
बढ़ा दी गयी जो ‘’ज़ौरा’’ (बक अ का बाज़ार) क जगह पर दी जाती थी । अबू अ^दु2लाह
(इमाम बुखारी) ने कहा ‘जौरा’ मदीना के बाज़ार मे एक जगह का नाम है ।(सहीह बुखारी,
िकताबुल जुमअ:, हदीस नं0 912)
अगर मेरे कािबल दोNत हदीस का मुताला करे तो वो पायेगे िक हज़रत उNमान
रिजअ2लाह अ&हQ ने व/त क नज़ाकत को देखते हए ये पहली अज़ान मकाम-ए-ज़ौरा
(बक अ का बाज़ार) मे िदलवाई थी न क मिNजद मे, मेरे अज़ीज अगर आपको हज़रत
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यहां एक बात और वाजेह करना पसंद करते है िक बड़े बड़े सहाबा िकराम िज&हे
हनिफयो ने गैर फकही (नाऊजुिब2लाह) करार िदया है जैसे अनस िबन मिलक रिज0,
अबुहरैरा रिज0, हज़रत िबलाल रिज0, हज़रत अ^दु2लाह िबन उमर रिज0(िज&होने
रफायदैन क हदीस को रवायत िकया तो िसफ इसिलए इंकार िकया िक वो गैर फक ह है, ये
अलग बात है िक उनके अलावा भी कसीर सहाबा रिज0 क जमात रफायदैन को सहीह तौर
पर रवायत करती है और ये रवायते 400 के करीब है) । तो मेरे कािबल दोNत ये बताने क
मेहरबानी करेगे क वो हज़रत साईब िबन यजीद रिज0 को िकस जमात मे रखते है फक ह
या गैर फक ह ?
एतराज़ नं0 3
हज़रत अ^दु2लाह िबन मसऊद रिजअ2लाह अ&हQ ने हजुर स2ला2लाहQ अलैिह
वस2लम से तकf रफायदैन क हदीस रवायत क तो उन पर इलज़ामात क बौछार कर दी ।
पहला जवाब
यहां भी मेरे भाई से िफर वह3 खता हो गई काश उसने तहक क क होती खैर हम उसे
तकक क जवाब देते है :-
मेरे अज़ीज हज़रत अ^दु2लाह िबन मसऊद पर इ2जामात क बौछार नह3 बि2क
उनक तरफ जो झूठ मसूंब िकया गया उससे उनका बचाव िकया गया, हदीस आपने पूरी
नह3 िलखी हम बसनद िलखते है मुलािहजा हो –
अ&हQम ने नमाज़ पढ़ी और हाथ नह3 उठाये िसवाए पहली दफा के ।‘’(सुनन ितिमजी 357,
सुनन अबू दाऊद 748)
इस हदीस को दजf ज़ेल मुहkेसीन ने ज़ईफ करार िदया उनमे से इमाम अ^दु2लाह
िबन मुबारक, इमाम हाितम रजाई रह0, इमाम शाफाई रह0, इमाम अहमद िबन हंबल रह0,
इमाम दारे कु तनी रह0, इमाम इ^ने ह^बान रह0, और हदीस को अपनी सुनन मे जमा करने
के बाद इमाम दाऊद खुद िलखते है िक ये हदीस मुOतसीर है तवील हदीस से और इन
अ2फाज़ के साथ हरिगज़ सहीह नह3 (सुनन अबू दाऊद 255)
दुसरा जवाब
अमीन ओकरवी हंफ देवबंदी ने भी सुिफयान सूरी रह0 को मुदिbस करार देकर
इन क अन वाली रवायत पर िजरह कर रखी है (मजमुआ रसाईल 331/3)
इसी तरह िफकह हंफ के दुसरे तकलीदी nुप के अहमद रज़ा बरेलवी फरमाते है :-
‘’और मुदिbस जमहQर मुहkसीन के मजहब मे मरदूद न मुसनद है (फतावा रजिवया
245/5)’’
‘’यानी सुिफयान सुरी रह0 मुदिbस है और ये रवायत उ&होने आिसम िबन कलीब से
अन के साथ ली है और उसूल मुहkसीन के तहत मुदिbस का अन अना गैर मकबूल है’’
तीसरा जवाब
(1) अहनाफ खुद िव] क नमाज मे पहली दफा के बाद भी दुआए कु नुत से पहले
रफायदैन करते है । (ये अलग मसला है िक वो एैसा िकस दलील क िबला पर
करते है)
(1) इसी तरह नमाज इदैन मे मे पहली दफा के बाद भी जायद तकबीरात मे रफायदैन
करते है ।
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अगर कहा जाए िक िव] और इदैन क तखसीस दूसरी रवायत से सािबत है तो Vकू से
पहले और Vकू के बाद वाली रफायदैन के तखसीस भी दूसरी सहीह रवायत से सािबत है ।
इस हदीस से इNतदलाल करने वालो के िलये जVरी है िक वो इस हदीस के अमूम से िव]
और इदैन के रफायदैन को बचाने क िफ: करे /योिक वो तो इस हदीस को सहीह बावर
करवाते है िफर इस हदीस के िखलाफ िव] मे कु नुत से पहले और इदैन क नमाज मे जायद
तकबीरात के साथ रफायदैन /यो करते है ?
चौथा जवाब
िमसाल के तौर पर सैhयदना अ^दु2लाह िबन मसऊद रिजअ2लाह अ&हQम Vकू करते
हए हाथो को बजाए घुटनो पर रखने के रानो के दरिमयान रखने के कायल थे (िजसे ततबीक
कहा जाता है) और इसे ही सु&नत समझते और अपने शािगदZ को भी इसी क तालीम देते
थे । (देिखये सहीह मुिNलम िकताबुNसलात बाब Vकू मे हाथो को घुटनो पर रखना और
ततबीक का मंसूख होना)
सहीह बात तो यही है िक रफायदैन का तक सैhयदना अ^दु2लाह िबन मसऊद रिजअ2लाह
अ&हQम से सहीह सािबत ही नह3 जैसा िक बा दलाईल बयान िकया जा चुका है, अ2लाह
समझने क तौफ क दे –‘’आमीन’’
एतराज नं0 4
सहाबा िकराम क इTतेहाद, फतव' और तफसीर को ना कािबले इतेमाद करार िदया ।
जवाब :
बड़ा अजीब सा एतराज़ है भाई का ना कोई फतवा, न कोई इTतेहाद ना कोई तफसीर
िजसका इंकार िकया गया नह3 िलखी और कह िदया िक ना कािबले इतेमाद करार िदया मेरे
अज़ीज भाई /या आप तकलीफ करेगे क िकस इTतेहाद को हदीसे सहीह क ना मौजुदगी
मे ना कािबले इतेमाद कहा, िकस सहाबा के फतवे को सहीह हदीस क ना मौजुदगी मे ना
कािबले एतमाद कहा, िकस तफसीर को ना कािबले इतेमाद करार िदया बि2क हम तो चीख
च3ख कर कह रहे है िक आज के उलेमा क तफसीर को अलग रिखये और तफसीरे इ^ने
अ^बास रिजअ2लाह अ&हQ क तफसीर का ही मुताला िकया करे । भाई शायद जोश मे आकर
कह बैठे अ2लाह िहदायत दे ।
एतराज नं0 5
बाज़ जलीलो कo सहाबा पर बु[ज़ व नफरत का इज़हार िकया । जैसे शेखुल कु ल
िमयां नज़ीर साहब देहेलवी का फतवा, नवाब िसkीक हसन का फतवा, अ2लामा शौकानी
का कौल, नुVल हसन साहब, और आगे के सफो मे हज़रत अबूब: रिज0 और हज़रत उमर
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रिज0 हज़रत आयशा रिज0 वगैरह के बारे मे दीगर कु छ लोगो क तहरीर को िलख कर कहा
िक ये हमारे िलए हTजत है ।
जवाब :-
अरे भाई िफर जोश मे आ गए और जो इ2ज़ामात का पचा शाया िकया उसके पेज नं0
4 पर अपनी खुद क तहरीर ‘’उ&
‘’उ&होने
होने ने सहाबा के मुकाम ऐ बुलदं को नह3 समझा
और कहा के रसुल को मानो और सहाबी के कौल और फे अल को नह3’’
नह3’’
ये अलग बात है िक ये जुमला उ&होने हमे बेइTजत करने के िलए िलखा मगर चूंिक
अ2लाह भी मुखािलफे इNलाम के मूंह से कभी कभी हक कहलवा ही देता है अलहKदुिbाह
इस जुमले से जो मतलब िनकल रहा है िक जब रसुले करीम स2ला2लाह अलैिह वस2लम
का कोई फे अल, कौल, और तकरीर (हदीस क िकNमे) सहीह तौर पर सािबत हो जाए और
सहाबा िकराम रिजअ2लाहQ अ&हQ का कौल और फेअल इसके मुखािलफ होगा तो छोड़ िदया
जाएगा और यही हक है मेरे अज़ीज । हम तो इससे भी एक कदम आगे है मेरे दोNत अगर
हमारे इमामे आज़म हज़रत मुहKमद स2ला2लाह अलैिह वस2लम का कौल अगर मुसा
अलैिहNसलाम, और ईसा अलैिहNसलाम के कौल से टकरा जाये तो हम उन रसुलो के कौल
को भी अपने िलए हTजत नह3 समझते मेरे pयारे भाई । तो िफर आपने िकस तरह समझ
िलया िक शेखुल कु ल िमया नज़ीर साहब, नवाब िसkीक हसन खा क&नौजी, नवाब नुVल
हसन वगैरह वगैरह का कौल और फे अल हमारे िलए हTजत होगा, अगर उ&होने कोई बात
हक क कही यािन कु रआन व सु&नत के मुवािफक तो अ2लाह उ&हे इसका अ> व सवाब
अता करे और अगर कोई एैसी बात कह3 जो कु रआन व सु&&त से टकरा जाये तो अ2लाह
उ&हे दोज़ख के गड़q मे फे क दे हमारी बला से और उ&हे ही /यो िजसने रसुलु2लाह
स2ला2लाह अलैिह वस2लम के कलाम पर कलाम िकया अ2लाह उसे जह&नम रसीद करे ।
आमीन या र^बुल आलेमीन । आपके इ2म के िलए बता दूं िक हमारे िलए िसफ 2 ही चीज़े
हTजत है जो हमारे इमामे आज़म हज़रत मुहKमद स2ला2लाह अलैिह वस2लम ने हTजतुल
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शायद भाई को ठीक से पता नह3 िक हनफ िफकहा क मोतबर िकताब मे ये फतवा
िलखा हआ है िक सुरह फातेहा पेशाब से िलखी जा सकती है नाऊजुिब2लाह सुKमा
नाऊजुिब2लाह, और हज़रत अनस िबन मिलक रिजअ2लाह और हज़रत अबुहरैरा
रिजअ2लाह अ&हQम, हज़रत अ^दु2लाह िबन उमर रिजअ2लाह अ&हQम िज&हे तारीख मे
‘’मुcबए सु&नत’’ के लकब से याद िकया जाता है, और 2630 हदीसो क रवायत का
एजाज़ उ&हे हािसल है, हज़रत िबलाल रिज0 िजनके चलने क आहट आप स2ला2लाह
अलैिह वस2लम ने ज&नत मे सुनी, और िज&हे 44 हदीसो को रवायत करने का एजाज
हािसल है, जैसे जलीलुलकo सहाबा िकराम क जमात को गैर फकही के िखताब से नवाजा
नाऊजुिब2लाह, हज़रत वाईल िबन ह> रिज0 जो यमन के अज़ीम बादशाहो क औलाद मे
से है और जब आप मदीना तशरीफ लाये तो आप स2ला2लाह अलैिह वस2लम खुद िमKबर
से उठे और उ&हे उनक सवारी से उतारा और अपने साथ िमKबर पर बैठा िलया, और
हज़रत अमीर मुआिवया रिज0 को ह/म िदया िक उनका Oयाल रखे और उनके साथ
बादशाहो जैसा सुलूक करे, एैसे अज़ीम सहाबा रिज0 को देहाती के िखताब से आप ने नवाज़
कर /या सािबत िकया मेरे दोNत । सहाबा के गुNताख हम या आप अगर आप इस कौल को
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वैसे तो हमारा Oयाल है िक जवाब पूरा हआ मगर मेरे कािबल दोNत ने अपने एतराज
के पचf के सफा नं0 6 मे 2 हदीसे नकल क है िमaकात शरीफ से उनके बारे मे िज: कर
देना अपने िलए अ2लाह के तरफ से ह/म समझते हए उसका जवाब देना जVरी समझता हQं
हदीस नं0 1
‘’मेरे सहाबा िसतारो के तरह है उनमे से िजसक पैरवी करोगे िहदायत को पा लोगे’’
जवाब :
मेरे कािबल दोNत ने िबना हदीस क सेहत को परखे उसे रवायत कर िदया अ2लाह
उन पर रहम करे /या उ&होने इस हदीस पर गौर व िफ: नह3 िक उनक इ\तेला के िलए
बता दे ये हदीस मौजू (गढ़ी हई) है । इसका तज़िकरा मौजुआत मे हो चुका है, शेख इ^ने
हजर, शेख अलबानी वगैरह ने इसे मौजू सािबत िकया है । देिखये अल हािकम िफल उसूल
64/5, िसलिसलातुल मौजुआत 66, नीज देिखये जामेए बयानुल इ2म व फजीलत इ^न
अ^दुल बर (91/2)
अगर मेरे अज़ीज आप इस हदीस पर गौर करते तो आप भी जान जाते िक ये मौजू है
/योिक ये कु रआन से टकरा रही है मुलािहजा हो :-
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1) और अ2लाह और उसके रसुल क इतआत करो, तािक तुम पर रहम िकया जाये
(आले इमरान -132)
2) और कहो यही मेरा सीधा राNता है बस तुम उसी क ताबेदारी करो, और दुसरे राNतो
क ताबेदारी न करो वरना तुम को अ2लाह क राह से िततर-िबतर कर देगे । इसी का
अ2लाह ने ह/म िदया तािक तुम परेहजगार हो (सुरह अनआम-152)
3) ऐ लोगो जो ईमान लाये हो, अललाह क इताअत करो व उसके रसुल क इताअत
करो और अपने आमाल बरबाद मत करो (मुहKमद-33)
‘’मु
‘’मुझ पर झूठ ना बांधो /योिक
योिक जो मुझ पर झूठ बांधता है वो आग मे दािखल होगा ।‘
।‘
(बुखारी िकताबुल इ2म 106, ितिमजी िकताबुल इ2म 2660, इ^ने माजा 31)
वाजेह रहे िक जईफ या मौजू हदीस को बयान करने वाला दो हालातो से खाली नह3 है
1) उसे हदीस के जईफ या मौजू होने का इ2म हो
2) उसे इसके जईफ या मौजू होने का इ2म न हो
‘’िजस
‘’िजस ने मुझ से कोई हदीस बयान क और वो जानता भी है िक ये झूठ है तो वो
खुद झूठो मे से एक है ‘’ (मुकदमा मुिNलम, ितिमजी 2662, इ^ने माजा 41, अहमद
20242, इ^ने ह^बान 29, तबिलसी 38/1, इ^ने अबी शैबा 595:6)
‘’आदमी
‘’आदमी के झूठा होने के िलए यही काफ है िक वो जो सुने उसे आगे बयान कर दे’’’’
(मुिNलम मुकदमा 5, अबू दाऊद 4992, इ^ने अबी शैबा 59/8, इ^ने ह^बान 30, हािकम
381/1)
इस हदीस पर इमाम मुिNलम रह0 ने यह बाब बांधा है -
‘’हर वो बात िजसे इंसान सुने िबला तहक क उसे आगे बयान करना मना है’’
चुनांचे अ2लाह फरमाता है :-
‘’ऐ मुसलमानो अगर तुKहे कोई फािसक खबर दे तो तुम उस क अFछी तरह तहक क
कर िलया करो एैसा न हो िक नादानी मे िकसी कौम को अज़ा पहंचा दो िफर अपने िकये पर
शिम&दगी उठाओ’’ (सुरह तलाक -2)
हदीस नं0 2
‘’मै िजस तरीके पर हQं और मेरे सहाबा िजस तरीके पर है, उस तरीके क पैरवी करने
वाले के िलए ही िनजात है’’
जवाब
मेरे कािबल दोNत ने एक यही रवायत सहीह पेश कर दी उ&हे मेरी तरफ से ढेर सारी
मुबारकबाद, ये हदीस मुतवाितर का दजा रखती है, और इसको रवायत करने वाले सहाबा
कसरत से है, मुसनद अहमद, और दीगर कु तुबे हदीस मे ये रवायत सहीह तौर पर सािबत
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शुदा है, काश मेरे भाई आप इसे िसफ रवायत ही न करते और इस पर गौर व िफ: करके
इस पर अमल पैरा भी हो जाते काश ।