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तलाशे हक

म कैसे और
यो अहले हदीस ह आ ?

ु रहमान रहमतुलाह (फैसलाबाद)


मौलाना अदल
पािक!तान
फाि़जल दा$ल उलूम देवबंद
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हक को तलाश करने वालो को मंि़जल िमल ही जाया करती है

िजन के िदल मे तलाशे हक क तड़प होती है आिखर उहे मंि़जले मुराद िमल ही जाया करती है । हज़रत
सलमान फारसी रिज0 इसे ज़$बे से तलाशे हक के िलये घर से िनकले सफर क परेशािनयां झेलते िगरते पड़ते
आिखर उहे मंिजले मकसूद ि़जयारते हज़रत मुह*मद स+ला+लाह, अलैिह वस+लम क सूरत मे िमल गई । इसी
तरह हमारे अजीज आिलमे दीन फािजले दा/ल उलूम देवबंद हज़रत मौलाना अ1दुर2हमान फैसलाबादी रहमतु+लाह
अलैह भी अपने आबाई मसलक हनफ देवबंदी से मुतमईन न थे, तलाशे हक क जु6तजू मे लगे रहे आिखरकार
अ+लाह तआला ने उन को भी राहे िहदायत नसीब फरमाई । हज़रत मौलाना इस व7त अ+लाह को 8यारे हो चुके है
अ+लाह तआला उहे जनतुल िफरदौस मे अआला मकाम अता फरमाए (आमीन) उहोने मसलक अहले हदीस
कै से और 7यो कू बूल िकया ये आप को उन क अपनी ही तहरीर पढ़कर मालूम होगा जो हम आप क िखदमत मे
ह?ता रोजा अहले हदीस लाहौर, िज+द नंबर 16, शुमारा नं0 46 से उन के शुिCया के साथ पेश करने क
सआदत हािसल कर रहे है । उ*मीद है िक मौलाना मरह,म क ये तहरीर बहDत से मु7किलद भाईयो के िलये भी
िहदायत का बाईस बनेगी । इंशा+लाह

मै अहले हदीस 7यो हDआ ?

बंदा हनफ देवबंदी मसलक का पै/कार था और दा/ल उलूम देवबंद से फाEरग होकर असा2 तक इसी
मसलक पर अमल पैरा रहा िफर तहकक करके 1966 मे मसलक अहले हदीस को इिGतयार िकया और इसका
बकायदा अखबारात मे एलान भी िकया िफर भी बहDत से लोग पूछते है तुमने एैसा 7यो िकया ?

इस के जवाब मे ये चंद पेज तहरीर कर रहा ह, िजस मे अपनी िजदगी के मुGतिलफ िह6से बताए है िजन
से गुजर कर ये तहकक के बाद इस मकाम पर पहDंचा िजस का एलान करना ज/री समझा नीज ये भी बताया है िक
जहां तक सहीह मसलक का ता+लुक है तो वो िसफ2 मसलक अहले हदीस है ।

मसलक अहले हदीस यही है िक कोई बात इस व7त तक त6लीम न क जाए जब तक वो कु रआन व हदीस
के मुतािबक न हो और अगर कु रआन व हदीस के िखलाफ िकसी बड़े से बड़े आिलम क बात भी आ जाए तो वह
भी कािबले कू बुल नहI । हम अ+लाह तआला और इस के रसुल स+ला+लाह, अलैिह के मुकाबले मे न िकसी आिलम
क बात को सनद और दलील मानते है और न ही िकसी इमाम क ज़ाती राय को शरीयत मानते है बि+क सहाबा
िकराम रिज0 के भी िसफ2 वही इरशादाद कािबल कु बूल है जो िकताबु+लाह और सुनते रसुल स+ला+लाह, अलैिह
वस+लम के मुतािबक हो यही मेरा मसलक है ।
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मेरी िजदगी
दगी का पहला दौर
मJ एक िकसान घराने मे पैदा हDआ जब से होश संभाला वालदैन और माहौल से तीन अकदे सीखे -
1 हमारा खािलक अ+लाह है और इस का कोई शरीक नहI ।
2 हमारे पैग*बर हज़रत मुह*मद स+ला+लाह, अलैिह वस+लम है
और हम आप के उ*मती है ।
3 मरने के बाद दोबारा िजदा करके हमारे आमाल का िहसाब िकताब लेगा और िफर बिहNत या
दोज़ख मे भेज देगा ।
इसी तरह मैने उन से ये अकदा भी हािसल िकया िक हम हफ है ओर हमारा मज़हब हफ है । यािन हम
इमाम अबू हनीफा रह0 के मुकिPद है । कमउQी के व7त ज़ेहन मे न िकसी तनकद क कािबिलयत होती है और न
ही कोई इंसान अकाईद पर तनकद करना पसंद करता है सो मैने भी इही अकाईद को अपने िलये पसंद कर िलया
और िदलोजान से इस चीज को इGतेयार कर िलया िक यही वह अकाईद है िजन क िबना पर एक आदमी अपने
आप को मुसलमान समझता है । कलमा तRयबा तो हम लोग िसफ2 पढ़ते है अ+फाज का मतलब कु छ नहI समझते,
मै ने भी कलमा पढ़ना अपने माहौल से सीख सीख िलया और मायने व मतलब से कोई गज2 न रखी इस के बाद मJ
इ6लामी तालीम हािसल करने के िलये घर से /खसत हो गया और मुखतिलफ उ6तादे िकराम से बेशुमार उलूम
फनून पढ़ता रहा िसफ2 मतक, फलसफा, िफकहा, उसूले िफकहा वगैरह और जब उन उलूम के बारे मे अ6ताजह से
पूछा जाता िक हम ये उलूम 7यो पढ़ रहे है तो वह ये बताता िक इन उलूम के ज़Eरये कु रआन व हदीस को इंसान
अSछी तरह समझ सकता है । गोया उन उलूम क तालीम कु रआन व हदीस समझने क िलये िज*मेदार थी । इस
पर मुझे बारहा अपने असताजा से ये अज2 करना पड़ता िक आप उन उलूम के साथ साथ कु रआन व हदीस भी
पढ़ाईये तो जवाब ये िमलता िक उन से फाEरग होकर तुम आिखरी साल दौरा हदीस पढ़ोगे तो उस व7त आप को
कु रआन व हदीस का उलूम हािसल हो सके गा ।

ये पहला मौका था िक मेरे िदल को इस तजT अमल से एक धचका सा लगा मगर ये वाकई हादसा था जो
िदल मे आया और गुजर गया और मेरे उ6तादो का इस मे कोई कसूर भी ना था इस िलये िक सारे माशरे मे वो
िनसाब तालीम पढ़ा और पढ़ाया जा रहा था जो शाहजहां के दौर मे एक सरकारी आिलम मु+ला िनज़ामुVीन ने मत2ब
िकया था और इसी िलये इस िनसाब का नाम भी दसT िनज़ामी है और अहले हदीस के अलावा सब िशया, सुनी,
बरेलवी, और देवबंदी यही िनसाब आज तक पढ़ते पढ़ाते आ रहे है तो मेरे उ6ताद भी इसी माशरे मे रहते थे इस
िलये उहोने भी यही िनसाब पढ़ाना था और पढ़ाया । मेरे इन उसताद मे से बाज़ तो बुलंद दजT के आिलम थे िक
इन के फैज से रब ने मुझे दौलते इ+म से नवाजा और मेरे िदल से हमेशा इन के िलये दुआएं िनकलती है ओर इन
उलमा िकराम ने ही मेरा ये ज़हन बनाया िक जो इ+म तुझे पढ़ाया जा रहा है ये खुदा िक तरफ से अमानत है जो हम
तेरे सुपुद2 िकये जा रहे है अब ये तेरा फज2 है िक ये अमानत इसी तरह दूसरे लोगW तक पहDंचा दो । इसी तलकन से
मुXतािसर होकर मै ने िजदगी के इ1तादाई दस साल तालीम हािसल करने के िलये व7फ िकये और फरागत के बाद
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भी बीस साल तालीम का काम करता रहा । अलह*दुिPाह ये काम मैने खािलस रज़ा ए इलाही के िलये िकये,
अ+लाह तआला कु बूल फरमाए (आमीन)

मेरा दूसरा दौर

बहरहाल जब इ+मी दौर का वह आिखरी साल आया जब मुझे दौरा हदीस पढ़ना था तो मै इ+मे हदीस
हािसल करने के िलये िहदु6तान गया देवबंदी मसलक के मशह,र मदरसा दा/ल उलूम देवबंद मे चोटी के उलमा से
दौरा हदीस पढ़ा िजस मे मौलाना श1बीर अहमद उ6मानी भी शािमल थे जो पािक6तान मे शेखल ू इ6लाम के मंसब
पर रहे है । उन तमाम उ6तादो िकराम का इ+म हर िक6म के शक व शुबहा से बाला था उन का तकवा व
दयानतदारी मुि6लम थी मगर तरीका तालीम तो वही था जो तमाम हनफ उलमा मे था, चुनांचे दौरा हदीस के दौरान
मेरे िदल को दो बातो से जबरद6त धचका लगा अZवल ये िक दौरा हदीस मे हदीस क छै िकताबे पढ़ाई जा रही थी
िजन को िसहाह िसXता कहते है । यािन सहीह बुखारी, सहीह मुि6लम, सुनन अबू दाऊद, सुनन ितिम2जी, सुनन
नसई, और सुनन अबू माज़ा । इन सब िकताबो के मुसि\फो (िलखने वाले) मे से कोई एक भी िकसी इमाम का
मु7किलद नहI था । और मेरे िदल पर ये बात भी बहDत गरा गुजरी क हदीसे जमा करने वाले मुहिVस उलमा मे से
कोई भी हनफ नहI और न हनफ उलमा क कोई हदीस क िकताब हमारे दस2 मे शािमल थी 7योिक अहनाफ के
हां एैसी िकताब है ही नहI । दूसरी बात िजस से मेरे िदल को जबरद6त चोट लगी वो हमारे असातज़ा का साल भर
इन हदीसो क तावीलो पर तकरीर करना था जो हनफ िफकहा के िखलाफ थी । हXता क बाज़ हदीसो पर तो दस
दस िदन और महीना महीना तकरीरे होती रहती िजन को हम तुलबा (िव]ाथ^,शािग2द) याद भी करते और िलखते
भी थे मगर इन तकरीरो क हैिसयत महज गलत तावीलो के िसवा कु छ भी नहI था । मुझे याद है िक हमारे साथ
दौरा हदीस मे जज़ीरा (टापू) मालाबार का एक शाफाई तािलबे इ+म भी शरीक था वो कहा करता था हमारे
असाताज़ा अपने मज़हब के मसाइल को दलाईल क बजाए मु7को के ज़ोर से सािबत करते है । और बाज़
असाताज़ा तो दौराने दस2 जोश मे जोर जोर से ितपाई पर मु7के भी मारा करते थे । इस सुरते हाल से मेरा ज़हन
मु_ािसर हDए बगैर न रह सका मगर इस के बावजूद बीस साल मJ िसफ2 इस कदर िफकहा क तरदीद िकया करता था
िक जो मसाइल िफकहा मे िगरोही (आम) नहI बि+क शहंशाहो और जािगरदारो को खुश करने के िलये िलखे गये है
वो गलत है । तो मेरी इस तरदीद से हनफ उलमा नाराज़ हो जाया करते थे मगर इंसाफ पसंद और तालीमय?ता
हज़रात इस को पसंद करते थे । खुलासा ये िक मेरे ज़हनी इंकलाब का ये दूसरा वा7या था ।

मेरा तीसरा दौर

तीसरा वा7या ये हDआ िक मै अपने बीस साला दौरे तरदीस मे तुलबा को तजु2मा कु रआन और हदीस क
इ1तदाई िकताब िमNकात शरीफ का दस2 लाज़मी िदया करता था और ये दोनो मजमून हनफ िनसाब मे दािखल नहI
थे । शु/ मे तािलबे इ+म मुखिलस होते थे और वो मेरे इस काम क कदर करते थे मगर तकसीमे मु+क के बाद
तािलबे इ+म मेरे इन जबरी काम को बेगार समझने लगे और मु+क के हर कोने से मुझे इस काम पर लानत भेजी
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जाने लगी िक वो सGत तबीयत का मािलक है और तुलबा से जबरन बेगार लेता है, उनको जबरन तजु2मा कु रआन
और िमNकात शरीफ नहI पढ़ाना चािहये । मै अपने िखलाफ इस िक6म के ताने और इ+ज़ामात सुनता तो मेरी
तबीयत एैसे तािलबे इ+मो से बेज़ार हो जाती िक इंसानो के िलखे हDए उलूम को तो शौक से पढ़ते है मगर अ+लाह
और उस के रसुल स+ला+लाह, अलैिह वस+लम के अता करदा उलूम को पढ़ना बेगार समझते है । एैसे लोगW को
पढ़ा कर आिलम बनाकर मुझे अ+लाह के घर 7या अजर (बदला) िमलेगा ? 7योिक मै उन को दुिनया के माल व
मताअ के िलये तो नहI पढ़ा रहा था मै तो िसफ2 रज़ा-ए-इलाही के िलये पढ़ा रहा था तो जब अ+लाह क िकताब
और पैग*बर स+ला+लाह, अलैिह वस+लम क हदीस के साथ उन का ये बता2व है तो उन को पढ़ाने से न पढ़ाना ही
बेहतर है ।

मेरा चौथा दौर


चौथा वा7या ये हDआ िक आज कल दीनी मदाEरस भी दुकानदारी बन कर रह गई है । और दीनी इ+म पढ़ने
पढ़ाने वालो ने भी अपना मकसद दुिनया हािसल करना ही बना िलया है, सदाकत और अमानतदारी से ये कोसो दूर
है जैसा िक 1963 क बात है िक लायल पूर (फैसलाबाद) शहर मे नमाज़े तरावीह का इGतलाफ मसला िछड़ गया
मुझे अSछी तरह याद है िक मंटगमरी बाजार क मि6जद अहले हदीस मे एक जलसा आम मे इमाम मुनाि़जर हज़रत
मौलाना अहमद साहब मरह,म व हज़रत मौलाना हािफज अ1दुल कािदर रह0 ने यह चैलेज करके कहा िक अगर बीस
रकअत नमाज तरावीह कोई हनफ आिलम सािबत करना चाहे तो हम मुनाज़रा के िलये तैयार है मेरे मदरसा के दो
तािलबे उलमो ने /7का िलखा िक हम इस के िलये तैयार है उहोने ने वािपस आकर मुझ से मुनाज़रा के िलये कहा
तो मै ने कहा मुनाज़रो से मसाइल सािबत नहI हDआ करते । मै ज+द ही नमाज तरावीह पर एक Eरसाला िलखने
वाला ह,ं िफर जब मै ने Eरसाला िलखने का अ$म िकया तो चूंिक मै भी दूसरे हनफ उ+मा क तरह दीगर उलूम व
फनून का तो मािहर था, मगर हदीस चूंिक हमारे हा कोई पढ़ता ही नहI था इस िलये हदीस मे मुझे भी कोई महारत
न थी । चुनांचे मै Eरसाले का मटेEरयल हािसल करने के िलये मौलाना सरफराज खान सफदर के पास ककहड़ गया
7योिक वो अहले हदीस मसलक के िखलाफ इGतेलाफ मसाईल पर िकताबे िलखते रहते थे तो उहोने ने मुझे बीस
रकअत तरावीह के हक मे दो दलील पेश क एक मुव_ा इमाम मािलक रह0 क Eरवायत थी िजस मे रावी बयान
करता है िक हज़रत उमर रिज0 के ज़माने मे लोग रमज़ान क रातो मे बीस रकअत तरावीह कयाम िकया करते थे ।
मौलाना सरफराज़ ने कहा चूंिक ये मुवXता क Eरवायत है इस िलये ये मुसतनद है और दूसरी दलील ये पेश क क
सुनन बैहक मे Eरवायत है िक नबी अकरम स+ला+लाह, अलैिह वस+लम ने तीन िदन बा जमाअत जो नमाज
तरावीह पढ़ाई थी वो बीस रकअत थी । मौलाना सरफराज खान सफदर ने फरमाया िक इस Eरवायत मे अबू शैबा
एक रावी है िजसको अहले हदीस जईफ करार देते है मगर अ6माए रजाल क िकताब मीज़ान अअला मे िलखा है िक
इमाम बुखारी रह0 ने इस रावी को जईफ करार नहI िदया और मुझे मीजान आला क ये इबारत नकल कर िदखाई
और िलखवाई । इबारत यू है िक अबू शैबा का िजC करते हDए मुसि\फ िलखता है िक ‘सकता अदल बुखारी’ यािन
इस रावी के बारे मे इमाम बुखारी रह0 ने खामोशी इGतेयार फरमाई । मौलाना साहब ने फरमाया िक ‘सका’ मतलब
ये है िक इमाम बुखारी रह0 ने इस रावी पर कोई तनकद नहI क और जब इमाम बुखारी रह0 तनकद नहI करते
तो दूसरे मुहिVसीन क तनकद क 7या अहिमयत है मै ने वािपस आकर Eरसाला िलख कर शाया कर िदया और ये
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इबारत भी िलख दी इस पर एक अहले हदीस आिलम क तरफ इNतेयार शाया हDआ िक अगर मौलाना अ1दुल
रहमान ये सािबत कर दे िक बुखारी रह0 ने अबू शैबा को जईफ करार नहI िदया तो मै मौलाना साहब को एक हज़ार
/पये का इनाम दूंगा । जब मुझे ये इNतेयार पहDंचा तो बड़ी हैरत हDई िक मीज़ान अला मे ये इबारत मैने खुद देखी है
तो िफर ये चैलेज कै सा ? िफर मैने सोचा शायद जो जुमला मै ने नकल िकया है इस के इसमे कोई इबारत रह न
गई हो जो मैने न देखी हो, चुनांचे मैने बा हालत रोज़ा लाहौर का सफर िकया और िकताब मीजान अला अतराल दो
सौ /पये मे जाकर खरीदी और जब उस िकताब का मुताला िकया तो इबारत िब+कु ल दु/6त थी और इस के आगे
पीछे मे भी कोई एैसा अ+फाज न था िजस मे इस जुमले क नफ होती हो मेरी हैरत और बढ़ गई और वािपस
लायलपूर (फैसलाबाद) आ गया । यहां आकर मीजान अला का मुकदमा पढ़ा तो वहां ये िलखा हDआ था िक जब
असनाद (सनद) हदीस क बहस मे ये जुमला आ जाए िक ‘सकु नत अनल बुखारी’ तो इस का मतलब ये होगा िक
इमाम बुखारी रह0 या दूसरे मुहिVसीन ने इस रावी को हद से $यादा जईफ करार िदया और इस को इस कािबल ही
नहI समझा क इस के मुXतािलक कोई बहस क जाये । यािन वो ना कािबले एतबार है और इस मुXतािलक कहा
करते थे िक छोड़ो इस रावी को ये भी कोई मुहVीस है ? िक इस पर कोई तव$जो दी जाये यािन िसरे से ये इस
कािबल ही नहI िक इस का मुहिVसीन क िल6ट मे नाम िलया जाए तो ‘सकु नत अनल बुखारी’ का मतलब इस
कायदा के मुतािब ये हDआ िक इमाम बुखारी रह0 ने इस के मुXतािलक कोई बात करना ही गंवारा नहI िकया । जब ये
हककत मुझ पर खुली तो मैने मौलाना सरफराज खान साहब को िलखा िक मज़हबी ताअ्असुब मे आकर
दयानतदारी छोड़ देना एक आिलम के शान शायान नहI तो उहोने ने मुझे इस का कोई जवाब ही नहI िदया । असा2
के बाद जब उन से मुलाकात हDई तो िसफ2 जबानी फरमाया िक मौलवी साहब एैसे इGतलाफ मसाईल मे हककत ये
है िक अहािदस हनिफयो के िखलाफ है बस एैसे जईफ सहारो से ही काम लेना पड़ता है । इस से मेरे ज़हन पर
जबरद6त चोट लगी और अफसोस हDआ िक दीन के मामले मे ये तजT अमल तो खािलस यह,दी उलमा के है चुनांचे
इन वजूहात क िबना पर मैने एक तरफ मदरसा चलाने से मआज़रत (माफ) कर ली और दूसरी तरफ तकलीदी
जहनीयत को िब+कु ल तक2 कर िदया और इ+मी मज़ािहब का मुताला शु/ िकया और मुसलमानो के मुGतिलफ
िफकc का खुले िदमाग से मुताला गया । और कु रआन व हदीस को को खुले िदमाग से समझना अपना नसबूल एैन
बना िलया । चूनांचे चंद बरसो के मुताला के बाद मै इस नतीजे पर पहDंचा िक मुसलमानो के इGतेलाफ मसाईल मे
हक ये है िक जो कु छ कु रआन व हदीस मे िमले इस को कु बूल िकया जाये, और वो बाते जो कु रआन व हदीस के
िखलाफ हो उन को रV िकया जाये, 7योिक पैग*बर स+ला+लाह, अलैिह वस+लम के िसवा कोई इंसान मासूम नहI
तो िफर हम गैर मासूम इंसानो क तकलीद 7यो करे तकT तकलीद ना िसफ2 ये िक मैने अपना मसलक बना िलया
बि+क मेरे नजदीक िकसी भी आिलम के िलये तकलीद जायज नहI और गरीब अवाम तो उलमा के ताबे होते है वो
माजूर है मगर उलमा के िलये तकलीद करना कतअन हराम है जब एक मुसलमान कलमा ला ईलाहा इ+ला+लाह
मुह*मदर रसूलु+लाह पढ़ता है तो इस के पहले िह6से का मतलब है िक इंसान िदल से ये अहद करे िक मैने अपना
मािलक व हािकम िसफ2 अ+लाह को बनाया है और इसी के हD7मो पर मैने चलना है और दुसरे िह6से का मतलब है
िक ये हज़रत मुह*मद स+ला+लाह, अलैिह वस+लम क नबूवत का वही हD7म मैने मानना है जो हज़रत मुह*मद
स+ला+लाह, के ज़Eरये मुझ तक पहDंचा है । हर मुसलमान जब िदल से िसफ2 अ+लाह और उस के रसूल क बातो को
मानने का अहद करता है तो िफर िकसी मुसलमान के िलये ये कतअन जायज़ नहI िक वह कु रआन व हदीस के
िसवा िकसी दूसरे इंसान क तकलीद करे और ताअ्असुब मे आकर आंखे बंद कर ले । याद रखे िजस तरह अ+लाह
के िसवा िकसी दूसरे का हD7म मानना िशक2 है इसी तरह हज़रत मुह*मद मु6तफा स+ला+लाह, अलैिह वस+लम के
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िसवा िकसी दूसरे का हD7म माना भी िशक2 फ अल Eरसालत है । तकलीद तो अवाम के िलये भी हराम है और उलमा
के िलये तो इस से भी $यादा हराम है । मगर उलमा इस जुम2 मे अवाम क तरफ से भी िज*मेदार है 7योिक वो
अवाम को िगरोहबंदी मे बांट कर तकलीद करने पर मजबूर करते है हालांिक इमान का तकाज़ा ये है िक कु रआन व
हदीस के मुकाबले मे िकसी बड़े से बड़े शGस क बात को भी ठु करा दे । हज़रत अ1दु+लाह िबन उमर रिज0 का ये
वा7या तारीख-ए-इ6लाम मे मशह,र है िक हज के मौके पर उन से िकसी ने मसला पूछा तो आप ने फरमाया इस
मसले मे रसुल स+ला+लाह, अलैिह वस+लम का फरमान ये है तो साईल ने कहा आप के वािलद मोहतरम हज़रत
उमर रिज0 तो इस के िखलाफ बयान करते थे हज़रत अ1दु+लाह िबन उमर रिज0 गु6से मे आ गये और फरमाया
7या मुह*मद रसुल स+ला+लाह, अलैिह वस+लम इXतेबाअ िकये जाने के $यादा हकदार है या उमर रिज0
(अहकामुल हािकम िज+द 2 बहस रVे तकलीद) है । सSचे ईमान क िनशानी िक अ+लाह और उस के रसुल
स+ला+लाह, अलैिह वस+लम के फरमान के िखलाफ Gवाह िकसी जलीलुकe सहाबी क बात ही 7यो न हो उस को
भी रV कर िदया जायेगा । यही दावत जमाअते अहले हदीस क है ।

और मै अहले हदीस हो गया


अब मेरे सामने दो ही रा6ते थे एक तकलीदी मज़हब का िजस का मतलब ये था िक जो मसाईल हनफ
िफकहा क िकताबो मे दज2 है उन को मै िदल से अ+लाह के अहकाम मान कर उन के मुतािबक अमल क/ं । और
दसूरा रा6ता तहकक मज़हब का था िजस का मतलब ये था िक मै िकताबु+लाह और सुनते रसुल स+ला+लाह,
अलैिह वस+लम के मुतािबक अमल करने का अहद करता । तो मैने दयानतदारी से दूसरा रा6ता इGतेयार िकया
और पहले रा6ते को रV कर िदया यही दूसरा रा6ता मसलक अहले हदीस है । िजस का मतलब िकसी खास तबके
क तकलीद करना नहI बि+क कु रआन व हदीस पर इमान लाकर उन के मुतािबक अमल करना है । लेहाज़ा मैने
मज़कु रा बाला मुGतिलफ दौर से गुजरने के बाद मसलक अहले हदीस को इGतेयार िकया और इस का एलान भी
कर िदया । इस के बाद नमाज़ तरावीह, फाितहा खलफु ल इमाम, अहकाम-ए-नमाजे जनाज़ा वगैरह जैसे मसले पर
छोटे छोटे Eरसाले भी िलख कर तकसीम करा चुका ह,ं तािक दूसरे मुसलमानो को भी खुदावंद कु Vसु िहदायत नसीब
फरमा दे । और वो तकलीद तक2 कर के सुनते रसुल स+ला+लाह, अलैिह वस+लम पर अमल पैरा होकर अपनी
आकबत (आिखरत) संवारे । इस मुGतिसर सी तहरीर का मतलब यही है िक अ+लाह ततआला इस के मुताला से
मुसलमानो को इXतेबाए सुनत रसुल स+ला+लाह, अलैिह वस+लम क तौफक मरहमत फरमाएं (आमीन)

इ6लािमक
लािमक दावाअ
दावाअ सेटर
टर,
रायपुर छXतीसगढ़
तीसगढ़

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