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हनिफय का इ ज़ाम

ज़ाम क
बड़े सहाबा जैसे
रिज0, उमर फाख् रिज0
अबूब िसीक रिज0 रिज0,
और हज़रत अली रिज0
रिज0
ने रफायदैन क हदीस %रवायत नह' क

उनके झूठ के खु लासे


ासे के िलए हदीसे मय
सनद क तहकक के पेश है
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हज़रत अली िबन अबी तािलब रिज0


रिज0 से रफायदैन क हदीस

‘’सैयदना अली रिज0 फरमाते है िक नबी सलालाह अलैिह वसलम जब


नमाज के िलए खड़े होते तो तकबीर कह कर कंधो तक हाथ उठाते और िकरअत ख&म
कर के 'कू जाते हए भी इसी तरह करते और 'कू से उठ कर भी इसी तरह करते
और बैठने क+ हालत मे िकसी भी जगह रफायदैन न करते और जब दो रकअते पढ़
कर खड़े होते तो इसी तरह रफायदैन करते और तकबीर कहते थे ।‘’

(सहीह इ1ने खुजैमा िज0 1, 294, 295 हदीस 584, सहीह इ1ने ह1बान 5/277,
सुनन ितिम<जी 5/487, 488 हदीस 3423 इमाम ितिम<जी ने कहा हदीस सहीह
हसन, अहमद िबन हंबल नसबुल >रयाया िज0 1 412, दराया िज0 153, और
तलखीस अल हबीर िज0 1 219, और इ1ने तैिमया फतावा अल कु बरी िज0 1
105, मजमुआ फतावा 22,483)

सनद क तहकक

इस सनद के सब रावी िबल इ&तेफाक िसका है िसवाए अ1दुर<हमान िबन अबी


अल जनाद के उसे अबी मुईन और अबू हाितम वगैरह ने जईफ करार िदया है ।
मािलक, ितिम<जी ने उसे िसका करार िदया है ।
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लेहाज़ा वो जCहDर के नज़दीक िसका है हािफज ज़ैहबी ने कहा :- इस क+ हदीस


हसन क+ िकGम से है वो हसन हसन अल हदीस है और बाज़ उसे हHजत समझते है ।
इस तमाम िजरह के मुकाबले मे इमाम इ1ने अल मदीनी का कौल है िक :-
‘’मैने उन से सुलेमान िबन दाऊद अल हाशमी क+ अहािदस को देखा है (जांच
पड़ताल क+ है) उसक+ हदीस मुकर<ब है । (तारीखे बगदाद 10/229 से 5359 व
सनद सहीह)

अ1दुल हई लखनवी हनफ+ साहब ने मुकर<ब हदीस को हसन हदीस से पहले


िजN िकया है ।(िजरह व इतेदाल सफा 72)

याद रहे िक िकसी इमाम ने इ1ने अबी अल िजनाद को जब इस से सुलेमान िबन


दाऊद हैशमी >रवायत करते तो जईफ नहO करार िदया बिक मुहPेसीन ने उस हदीस
को तसलीम िकया है, लेहाज़ा इस से सुलेमान क+ तमाम >रवायत को सहीह व हसन
तसलीम िकया जायेगा ।

बाज़ लोगो ने इस हदीस के मुकाबले मे हज़रत अली रिज0 का असर (एैसे


अकवाल जो सहाबा क+ तरफ मंसूब हो) पेश िकये है िक :- सैयदना अली रिज0
नमाज मे पहली तकबीर के साथ रफायदैन करते थे िफर नहO करते थे । (नसबुल
>रयाया 1/406, तहावी 1/225)
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इस हज़रत अली रिज0 वाले असर (>रवायत) से दलील पकड़ना दो वजह से मरदूद है
1) इस पर खास तौर पर िजरह है :-
सुिफयान सुरी रह0 ने इस असर का इंकार िकया है (ज़जाए रफायदैन अल
बुखारी सफा 47, हदीस 11)
इमाम उGमान िबन सयद दारमी रह0 ने इस को कमज़ोर कहा (अल सुनन कु बरी
2, 80-81)
इमाम अहमद िबन हंबल रह0 ने इसका इंकार िकया है (अल मसायल अहमद
243)
इमाम बुखारी रह0 ने इसे जईफ कहा (शरह अल ितिम<जी ब हवाला जलाए अल
एैनीन सफा 48)
इ1ने अल मलकन रह0 ने कहा अली रिज0 के तरफ मंसूब असर जईफ है, उनसे
सहीह सािबत नहO और बुखारी रह0 ने उसे जईफ करार िदया है ।(अल बद'ल मुनीर
3/499)
इमाम शाफाई रह0 ने कहा ‘’और ये अली रिज0 वाला असर अली रिज0 से
सािबत नहO है (अल सुनन अल कु बरी अल बैहक+ 2/81)

लेहाज़ा ये असर मलूल (जईफ) है िकसी कािबल इतेमाद मुहPेसीन ने उस असर


को सहीह नहO कहा लेहाज़ा सहीह >रवायत के मुकाबले मे इसे पेश करना मदूद< है ।
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2) इस असर मे 'कू क+ सराहत नहO है यािन ये आम है और रफायदैन वाली हदीस


खास व सरीह है, ये गुज़र चुका है िक खास आम पर मुकPम होता है ।

वरना िफर तरक+ने रफायदैन (रफायदैन जैसे अज़ीम सुRनत को तक< करने वाले)
कु नूत और इदैन मे Sयो रफायदैन करते है ?
अगर अमी'ल मोमेनीन से मंसूब इस >रवायत को तसलीम कर िदया जाय तो
इस के अमूमी मफहDम क+ वजह से ईदैन और कु नूत का रफायदैन ख&म हो जाता है ।
अगर वो दूसरे दलाईल से मखसूस है तो 'कू के पहले और बाद का रफायदैन सहीहीन
(बुखारी, मुिGलम) क+ मरफू अहािदस क+ वजह से मखसूस Sयो नहO है ।

हज़रत अबूब िसीक रिज0


रिज0 से रफायदैन क हदीस

‘’अता िबन अबी रबाह रह0 (उGताद इमाम अबू हनीफा रह0) ने कहा मैने
अ1दुलाह िबन जुबैर रिज0 के पीछे नमाज़ पढ़ी है वो नमाज़ शु' करते वSत 'कू से
पहले और 'कू के बाद रफायदैन करते थे, मैने उनसे पूछा तो अ1दुलाह िबन जुबैर
रिज0 ने कहा मैने अबूबN रिज0 के पीछे नमाज पढ़ी है वो नमाज़ शु' करते वSत,
'कु से पहले और 'कू के बाद रफायदैन करते थे । और सयदना अबूबN रिज0 ने
फरमाया िक मैने रसुलुलाह सलालाह अलैिह वसलम के पीछे नमाज पढ़ी है आप
नमाज़ शु' करते वSत, 'कू से पहले और 'कू के बाद रफायदैन करते थे ।‘’
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(सुनन अल कु बरी बैहक+ 2/73, जैहबी 2/49 हदीस 1943, असकलानी


1/219 हदीस 328,)
सनद क तहकक

अबू अ1दुलाह मुहCमद िबन अ1दुलाह को ज़हबी, बैहक+ वगैरह ने िसका करार िदया
है, हािकम और जैहबी ने उन क+ बयान करदा हदीस को ‘’सहीह अला शतUएन
शैखने ’’ कह कर उन क+ तौसीक कर दी है । (देिखये अल मुGतदरक िज0 1 सफा
30 हदीस 82)
उन के हालात दजU ज़ेल िकताबो मे मज़कू र है :-
अखबार असबहान (2/271) अला नसाब (3/546) अल मुRतिजम
(6/368), उRहोने इमाम अ1दुलाह िबन अहमद िबन हंबल से ‘’अल मुGनद अल
कबीर’’ का समाअ िकया था (अल नबला 15/437)
मुहCमद िबन अ1दुलाह ने अबू इGमाईल अल सलमी से हदीस सुनी है (देिखये
अल मुGतदरक िज0 1 सफा 117 हदीस 403)
वो मुPिलस नहO थे (हािशया जलाए एैनीन तखरीज >रवायत जज़ाए रफायदैन
सफा 8)
मुहCमद िबन इGमाईल को हमने नसई, दा'कु तनी, हािकम, अबूबN, अल
खलाल और इ1ने िहब्बान वगैरह हम ने िसका कहा (तहज़ीब अल तहज़ीब 0/53
54)
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इ1ने अबी हाितम का कौल ‘’तकलामु अफ+या’’ कई लेहाज से मदूद< है -


1) ये अकस>रयत के तौसीक के िखलाफ है 2) ये िजरह गैर मुWफसीर है 3)
इस का िजरह नामालूम है

हािफज अहमद िबन अली असकलानी ने कहा – ‘’ये िसका हािफज है और उन


मे इ1ने अबी हाितम का कलाम गैर वाजेह है (अल तकरीब 5738)
हािफज जैहबी ने जो ये कहा िक ये आिखरी उY मे इZतेलात (गलतफहमी) का
िशकार हो गये थे और मौत से पहले तगीर (जईफ हािफजा) हो गये थे तो ये >रवायत
उनके इZतेलात से पहले क+ है और इZतेलात और तगीर क+ हालात मे उRहोने कोई
>रवायत बयान नहO क+ लेहाज़ा ये >रवायत इZतेलात से पहले क+ है और िबकु ल
सहीह है । वलाह आलम

हज़रत उमर फाख रिज0


रिज0 से रफायदैन क हदीस

‘’इमाम बैहक+ ने इ1ने वहब के तरीक से इमाम अ1दुलाह िबन कािसम रह0 से
>रवायत क+ है िक हम मिGजद नबवी सलालाह अलैिह वसलम मे लोगो के साथ
नमाज़ पढ़ रहे थे िक हज़रत उमर रिज0 तशरीफ लाये और हमारी तरफ मुतवHजो हए
और कहा Sया मै आप के साथ रसुलुलाह सलालाह अलैिह वसलम क+ नमाज़ न
पढ़ू वो जो आप सलालाह अलैिह वसलम हमे पढ़ाते और इसी का हSम देते थे पस
आप रिजअलाह अRहD खड़े हए और िकबला 'ख होकर तकबीर कह कर रफायदैन
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िकया यहां तक िक हाथ कंधो के बराबर हो गये िफर आप रिज0 ने 'कू करते वSत
और 'कू से सर उठाते वSत तकबीर कहते हए इसी तरह िकया िजस तरह पहली
मत<बा िकया था और लोगो से कहा िक इसी तरह नमाज़ पढ़ते रसुलुलाह सलालाह
अलैिह वसलम हमारे साथ ।‘’ (नसबुल >रयाया िज0 1 सफा 416)

सनद क तहकक
अब बेचारे तकU सुRनत के कायलो ने ये एतराज कर िदया िक इसमे रफायदैन का
िजN ही नहO जो बड़ी अजीब बात है Sयोिक ये बात >रवायत के अफाज़ के िखलाफ
है । अलावा इसके इस >रवायत क+ ताईद हGबे जैल >रवायत से भी होती है िक :-

‘’मैने रसुलुलाह सलालाह अलैिह वसलम को देखा िक आप जब तकबीर


कहते और 'कू करते और 'कू से सर उठाते तो रफायदैन करते थे (नसबुल >रयाया
सफा 416 िज0 1)

मजहबी ताअGसुब मे आकर अलाह के रसुल सलालाह अलैिह वसलम से


इZतेलाफ करना यक+कन आिखरत मे मंहगा सािबत होगा Sयोिक ये बेचारे जानते है
िक झूठ Sया है और सच Sया है मगर अवाम मे अपनी झूठी शान बनाये रखने के िलए
एक के बाद एक झूठ गढ़ना पड़ता है िजससे अवाम मुतमईन हो जाये । एैसे ही लोगो के
िलए अलाह ने अपने कलाम मे फरमाया :-
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‘’S
‘’Sया उन लोगो ने अलाह
लाह के साथ एैसे शरीक बना रखे है िजRहोने
होने एैसे
दीनी हSम मुकर<र िदये है जो अलाह
लाह क+ तरफ से नहO है, अगर फैसले के िदन
का वादा न होता तो हम अभी उनका फैसला कर देते । बेशक जािलमो के िलए
अज़ाब है । (सुरह शुरा – 21)
21)

रफायदैन क हदीस मुतवाितर है


हदीस क+ तमाम िकताबो मे रफायदैन क+ हदीस इस कसरत से >रवायत है िक ये
हदे मुतवाितर को पहंची हई है । हािफज इ1ने कयुम रह0 फरमाते है िक :- रफायदैन
नमाज़ मे तीन मुकामात पर तकरीबन 30 सहाबा िकराम रिज0 से मरवी है और इस
क+ >रवायत अशरा मु1बशरा (वो 10 खुशनसीब सहाबी िजRहे दुिनया मे जRनत मे
बशारत हािसल है) से है और आप सलालाह अलैिह वसलम से इस के िखलाफ
यक+कन सािबत नहO बिक आप का ये तरीका हमेशा रहा यहां तक क+ दुिनया से
'खसत हो गये ।(जादुल मआद िज0 1 सफा 55)
सहाबुल मुगनी और साहब शरह अल कु बरी शCसुPीन इ1ने कदामा रफायदैन पर
बहस करते हए िलखते है िक :-
‘’रफायदैन कसरत >रवायत और सनद क+ सेहत क+ वजह से इस मुतवाितर क+
तरह हो गया है िजस मे शक क+ कोई गुजांईश नहO और सहाबा िकराम रिज0 और
ताबईन रह0 ने ये अमल िकया है और जो इस का कायल नहO उसने इंकार िकया है
(अल कु बरी शरह िज0 1 सफा 539)
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इमाम इ1ने तैिमया रह0 फरमाते है िक :-


‘’रफायदैन क+ अहदीस सहाबा िकराम रिज0 और रसुलु लाह सलालाह
अलैिह वसलम से तवाितर से सािबत है ।(अल कवाईद नु'ल िफकहा सफा 70)
इमाम शाफाई रह0 फरमाते है िक :-
‘’रफायदैन क+ अहदीस को इतने सहाबा िकराम रिज0 ने >रवायत िकया है िक
तादाद मे इस से Hयादा रावी िकसी हदीस के भी नहO (तलखीस अल हसीर िज0 1
सफा 220)
इमाम अ1दुलाह िबन मुबारक रह0 फरमाते है िक :-
‘’कसरत अहदीस और उन क+ सनद क+ उमदगी से मुझे यूं मालूम होता है िक मै
रसुलुलाह सलालाह अलैिह वसलम को देखता हD्ं िक वो नमाज़ मे रफायदैन कर
रहे है । (अल सुनन कु बरी अल बैहक+ िज0 2 सफा 79)
हािफज इराक+ रह0 तकरीब अला मे फरमाते है िक :-
‘’मालूम होना चािहए िक रफायदैन करने क+ पास सहाबा रिज0 से अहदीस
मरवी है िजन मे अशरा मु1बशरा भी शािमल है ।
इस फे ह>रGत को मजीद लंबी िकया जा सकता है मगर हमारा मंशा अयमा के
अकवाल जमा करना नहO है वरना अलामा इ1ने जौजी, हािफज इ1ने हजर, अलामा
जक>रया अंसारी, मौलाना अ1दुल अजीज हंफ+, अलामा मुत<जा हंफ+, ने रफायदैन
क+ अहदीस को मुतवाितर कहा है ज'रत महसूस हई तो इंशाअलाह बहवाला उन
क+ इबारते भी िजN कर दी जायेगी ।
इGलािमक दावाअ सेRटर,
रायपुर छ&तसीगढ़

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