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महात्मा गांधी
मोहनदास करमचंद गाँधी
राष्ट्रीयता भारतीय
मोहनदास करमचंद गांधी (2 अक्तूबर 1869 - 30 जनवरी 1948) भारत एवं भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रमुख राजनैतिक एवं आध्यात्मिक नेता थे। वे
सत्याग्रह - व्यापक सविनय अवज्ञा के माध्यम से अत्याचार के प्रतिकार के अग्रणी नेता थे, उनकी इस अवधारणा की नींव संपूर्ण अहिंसा पर रखी गई थी जिसने भारत
को आजादी दिलाकर पूरी दुनिया में जनता के नागरिक अधिकारों एवं स्वतंत्रता के प्रति आंदोलन के लिए प्रेरित किया।उन्हें दुनिया में आम जनता महात्मा गांधी के नाम से
जानती है। संस्कृत: महात्मा अथवा महान आत्मा एक सम्मान सूचक शब्द जिसे सबसे पहले रवीन्द्रनाथ टेगौर ने प्रयोग किया और भारत में उन्हें बापू के नाम से भी याद
किया जाता है। गुजराती બાપુ (बापू अथवा पिता) उन्हें सरकारी तौर पर राष्ट्रपिता[कृपया उद्धरण जोड़ें] का सम्मान दिया गया है २ अक्टूबर को उनके जन्म दिन राष्ट्रीय पर्व
गांधी जयंती के नाम से मनाया जाता है और दुनियाभर में इस दिन को अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के नाम से मनाया जाता है।
सबसे पहले गांधी ने रोजगार अहिंसक सविनय अवज्ञा प्रवासी वकील के रूप में दक्षिण अफ्रीका, में भारतीय समुदाय के लोगों के नागरिक अधिकारों के लिए संघर्ष हेतु
प्रयुक्त किया। १९१५ में उनकी वापसी के बाद उन्होंने भारत में किसानों , कृषि मजदूरों और शहरी श्रमिकों को अत्याधिक भूमि कर और भेदभाव के विरूद्ध आवाज उठाने
के लिए एकजुट किया। १९२१ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की बागडोर संभालने के बाद गांधी जी ने देशभर में गरीबी से राहत दिलाने, महिलाओं के अधिकारों का विस्तार,
धार्मिक एवं जातीय एकता का निर्माण, आत्म-निर्भरता के लिए अस्पृश्यता का अंत आदि के लिए बहुत से आंदोलन चलाएं। किंतु इन सबसे अधिक विदेशी राज से मुक्ति
दिलाने वाले स्वराज की प्राप्ति उनका प्रमुख लक्ष्य था।गाँधी जी ने ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीयों पर लगाए गए नमक कर के विरोध में १९३० में दांडी मार्च और इसके
बाद १९४२ में , ब्रिटिश भारत छोड़ो आन्दोलन छेडकर भारतीयों का नेतृत्व कर प्रसिद्धि प्राप्त की। दक्षिण अफ्रीका और भारत में विभिन्न अवसरों पर कई वर्षों तक
उन्हें जेल में रहना पड़ा।
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गांधी जी ने सभी परिस्थितियों में अहिंसा और सत्य का पालन किया और सभी को इनका पालन करने के लिए वकालत भी की। उन्होंने आत्म-निर्भरता वाले आवासीय समुदाय
में अपना जीवन गुजारा किया और पंरपरागत भारतीय पोशाक धोती और सूत से बनी शॉल पहनी जिसे उसने स्वयं ने चरखे पर सूत कात कर हाथ से बनाया था। उन्होंने सादा
शाकाहारी भोजन खाया और आत्मशुद्धि तथा सामाजिक प्रतिकार दोनों के लिए लंबे-लंबे उपवास भी किए।
प्रारंभिक जीवन
मोहनदास करमचंद गांधी गुजराती(एल में गांधी का अर्थ है " पंसारी " आर गाला, पापुलर कम्बाइन्ड
डिक्शनरी, अंग्रेजी-अंग्रेजी-गुजराती एवं गुजराती-गुजराती-अंगेजी, नवनीत) अथवा हिंदी में परफ्यूमर
भार्गव की मानक व्याख्या वाली हिंदी-अंग्रेजी डिक्शनरी, का जन्म पश्चिमी भारत के वर्तमान गुजरात,
में पोरबंदर नामक स्थान पर २ अक्तूबर १८६९ .एक तटीय शहर में हुआ। उनके पिता करमचंद गांधी हिंदु
मोध समुदाय से संबंध रखते थे और अंग्रेजों के अधीन वाले भारत के काठियावाड़ एजेन्सी में एक छोटी
सी रियासत पोरबंदर प्रांत के दीवान अर्थात प्रधान मंत्री थे। परनामी वैष्णव हिंदू समुदाय की उनकी माता
पुतलीबाई करमचंद की चौथी पत्नी थी, उनकी पहली तीन पत्नियाँ प्रसव के समय मर गई थीं। भक्ति
करने वाली माता की देखरेख और उस क्षेत्र की जैन पंरपराओं के कारण युवा मोहनदास पर वे प्रभाव
प्रारम्भ मे ही पड़ गए,जो उनके जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले थे। इन प्रभावों में दुर्बलों में
जोश की भावना, शाकाहारी जीवन, आत्मशुद्धि के लिए उपवास तथा विभिन्न जातियों के लोगों के बीच
सहिष्णुता शामिल थीं।
मई १८८३ में जब वे १३ साल के थे तब उनका विवाह १४ साल की कस्तूरबा माखनजी से कर दिया गया
जिनका पहला नाम छोटा करके कस्तूरबा था और उसे लोग प्यार से बा कहते थे। यह विवाह एक
व्यवस्थित बाल विवाह था जो उस समय उस क्षेत्र में प्रचलित लेकिन , उस क्षेत्र में वहां यही रीति
थी कि किशोर दुल्हन को अपने मातापिता के घर और अपने पति से अलग अधिक समय तक रहना पड़ता
था।१८८५ में , जब गांधी जी १५ वर्ष के थे तब इनकी पहली संतान ने जन्म लिया लेकिन वह केवल
कुछ दिन ही जीवित रहीं और इसी साल के प्रारंभ में गांधी जी के पिता करमचंद गाधी भी चल
बसे।मोहनदास और कस्तूरबा के चार संतान हुई जो सभी पुत्र थे- हरीलाल १८८८ में जन्में, मणिलाल
१८९२ में जन्में, रामदास , १८९७ में जन्में, और देवदास १९०० में जन्में,पोरबंदर में उनके मिडिल स्कूल
और राजकोट में उनके हाई स्कूल दोनों में ही शैक्षणिक स्तर पर गांधी जी एक औसत छात्र रहे। उन्होंने
अपनी मेट्रिक की परीक्षा भावनगर गुजरात के समलदास कॉलेज कुछ परेशानी के साथ उत्तीर्ण की और एक युवा गांधी ई (१८८६)
जब तक वे वहां रहे अप्रसन्न ही रहे क्योंकि उनका परिवार उन्हें बेरिस्टर बनाना चाहता था।
गांधी की राय में , १९०६ का मसौदा अध्यादेश भारतीयों की स्थिति में किसी निवासी के नीचे वाले स्तर के समान लाने जैसा था। इसलिए उन्होंने सत्याग्रह
(Satyagraha), की तर्ज पर "काफिर (Kaffir)s " .का उदाहरण देते हुए भारतीयों से अध्यादेश का विरोध करने का आग्रह किया। उनके शब्दों में , " यहाँ तक कि
आधी जातियां और काफिर जो हमसे कम आधुनिक हैं ने भी सरकार का विरोध किया है। पास का नियम उन पर भी लागू होता है किंतु वे पास [3] नहीं दिखाते हैं।
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चंपारण और खेड़ा
गांधी की पहली बड़ी उपलब्धि १९१८ में चम्पारन (Champaran) और खेड़ा सत्याग्रह, आंदोलन में
मिली हालांकि अपने निर्वाह के लिए जरूरी खाद्य फसलों की बजाए नील (indigo) नकद पैसा देने
वाली खाद्य फसलों की खेती वाले आंदोलन भी महत्वपूर्ण रहे। जमींदारों (अधिकांश अंग्रेज) की ताकत
से दमन हुए भारतीयों को नाममात्र भरपाई भत्ता दिया गया जिससे वे अत्यधिक गरीबी से घिर गए। गांवों
को बुरी तरह गंदा और अस्वास्थ्यकर (unhygienic); और शराब , अस्पृश्यता और पर्दा से बांध
दिया गया। अब एक विनाशकारी अकाल के कारण शाही कोष की भरपाई के लिए अंग्रेजों ने दमनकारी
कर लगा दिए जिनका बोझ दिन प्रतिदिन बढता ही गया। यह स्थिति निराशजनक थी। खेड़ा (Kheda),
गुजरात में भी यही समस्या थी। गांधी जी ने वहां एक आश्रम (ashram) बनाया जहाँ उनके बहुत सारे
समर्थकों और नए स्वेच्छिक कार्यकर्ताओं को संगठित किया गया। उन्होंने गांवों का एक विस्तृत
अध्ययन और सर्वेक्षण किया जिसमें प्राणियों पर हुए अत्याचार के भयानक कांडों का लेखाजोखा रखा
गया और इसमें लोगों की अनुत्पादकीय सामान्य अवस्था को भी शामिल किया गया था। ग्रामीणों में
विश्वास पैदा करते हुए उन्होंने अपना कार्य गांवों की सफाई करने से आरंभ किया जिसके अंतर्गत स्कूल
और अस्पताल बनाए गए और उपरोक्त वर्णित बहुत सी सामाजिक बुराईयों को समाप्त करने के लिए
ग्रामीण नेतृत्व प्रेरित किया।
लेकिन इसके प्रमुख प्रभाव उस समय देखने को मिले जब उन्हें अशांति फैलाने के लिए पुलिस ने
गिरफ्तार किया और उन्हें प्रांत छोड़ने के लिए आदेश दिया गया। हजारों की तादाद में लोगों ने विरोध
प्रदर्शन किए ओर जेल, पुलिस स्टेशन एवं अदालतों के बाहर रैलियां निकालकर गांधी जी को बिना शर्त
रिहा करने की मांग की। गांधी जी ने जमींदारों के खिलाफ़ विरोध प्रदर्शन और हड़तालों को का नेतृत्व १९१८ में खेड़ा और चंपारन सत्याग्रह के समय १९१८ में गांधी
किया जिन्होंने अंग्रेजी सरकार के मार्गदर्शन में उस क्षेत्र के गरीब किसानों को अधिक क्षतिपूर्ति
मंजूर करने तथा खेती पर नियंत्रण , राजस्व में बढोतरी को रद्द करना तथा इसे संग्रहित करने वाले एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस संघर्ष के दौरान ही, गांधी जी को
जनता ने बापू पिता और महात्मा (महान आत्मा) के नाम से संबोधित किया। खेड़ा में सरदार पटेल ने अंग्रेजों के साथ विचार विमर्श के लिए किसानों का नेतृत्व किया जिसमें
अंग्रेजों ने राजस्व संग्रहण से मुक्ति देकर सभी कैदियों को रिहा कर दिया गया था। इसके परिणामस्वरूप , गांधी की ख्याति देश भर में फैल गई।
असहयोग आन्दोलन
गांधी जी ने असहयोग, अहिंसा तथा शांतिपूर्ण प्रतिकार को अंग्रेजों के खिलाफ़ शस्त्र के रूप में उपयोग किया। पंजाब में अंग्रेजी फोजों द्वारा भारतीयों पर जलियावांला
नरसंहार जिसे अमृतसर नरसंहार के नाम से भी जाना जाता है ने देश को भारी आघात पहुंचाया जिससे जनता में क्रोध और हिंसा की ज्वाला भड़क उठी। गांधीजी ने ब्रिटिश
राज तथा भारतीयों द्वारा प्रतिकारात्मक रवैया दोनों की की। उन्होंने ब्रिटिश नागरिकों तथा दंगों के शिकार लोगों के प्रति संवेदना व्यक्त की तथा पार्टी के आरंभिक विरोध
के बाद दंगों की भंर्त्सना की। गांधी जी के भावनात्मक भाषण के बाद अपने सिद्धांत की वकालत की कि सभी हिंसा और बुराई को न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता है। [4]
किंतु ऐसा इस नरसंहार और उसके बाद हुई हिंसा से गांधी जी ने अपना मन संपूर्ण सरकार आर भारतीय सरकार के कब्जे वाली संस्थाओं पर संपूर्ण नियंत्रण लाने पर केंद्रित
था जो जल्दी ही स्वराज अथवा संपूर्ण व्यक्तिगत, आध्यात्मिक एवं राजनैतिक आजादी में बदलने वाला था।
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दिसंबर १९२१ में गांधी जो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस.का कार्यकारी अधिकारी नियुक्त किया गया। उनके
नेतृत्व में कांग्रेस को स्वराज.के नाम वाले एक नए उद्देश्य के साथ संगठित किया गया। पार्दी में
सदस्यता सांकेतिक शुल्क का भुगताने पर सभी के लिए खुली थी। पार्टी को किसी एक कुलीन संगठन
की न बनाकर इसे राष्ट्रीय जनता की पार्टी बनाने के लिए इसके अंदर अनुशासन में सुधार लाने के लिए
एक पदसोपान समिति गठित की गई। गांधी जी ने अपने अहिंसात्मक मंच को स्वदेशी नीति — में शामिल
करने के लिए विस्तार किया जिसमें विदेशी वस्तुओं विशेषकर अंग्रेजी वस्तुओं का बहिष्कार करना था।
इससे जुड़ने वाली उनकी वकालत का कहना था कि सभी भारतीय अंग्रेजों द्वारा बनाए वस्त्रों की
अपेक्षा हमारे अपने लोगों द्वारा हाथ से बनाई गई खादी पहनें। गांधी जी ने स्वतंत्रता आंदोलन [5] को
सहयोग देने के लिएपुरूषों और महिलाओं को प्रतिदिन खादी के लिए सूत कातने में समय बिताने के लिए
कहा। यह अनुशासन और समर्पण लाने की ऐसी नीति थी जिससे अनिच्छा और महत्वाकाक्षा को दूर
किया जा सके और इनके स्थान पर उस समय महिलाओं को शामिल किया जाए जब ऐसे बहुत से विचार
साबरमती आश्रम (Sabarmati Ashram), गुजरात में गांधी का घर
आने लगे कि इस प्रकार की गतिविधियां महिलाओं के लिए सम्मानजनक नहीं हैं। इसके अलावा गांधी जी
ने ब्रिटेन की शैक्षिक संस्थाओं तथा अदालतों का बहिष्कार और सरकारी नौकरियों को छोड़ने का तथा
सरकार से प्राप्त तमगों और सम्मान (honours)को वापस लौटाने का भी अनुरोध किया।
असहयोग को दूर-दूर से अपील और सफलता मिली जिससे समाज के सभी वर्गों की जनता में जोश और भागीदारी बढ गई। फिर जैसे ही यह आंदोलन अपने शीर्ष पर पहुंचा
वैसे फरवरी १९२२ में इसका अंत चोरी - चोरा (Chauri Chaura), उत्तरप्रदेश में भयानक द्वेष के रूप में अंत हुआ। आंदोलन द्वारा हिंसा का रूख अपनाने के डर को
ध्यान में रखते हुए और इस पर विचार करते हुए कि इससे उसके सभी कार्यों पर पानी फिर जाएगा, गांधी जी ने व्यापक असहयोग [6] के इस आंदोलन को वापस ले लिया।
गांधी पर गिरफ्तार किया गया १० मार्च, १९२२, को राजद्रोह के लिए गांधी जी पर मुकदमा चलाया गया जिसमें उन्हें छह साल कैद की सजा सुनाकर जैल भेद दिया गया।
१८ मार्च, १९२२ से लेकर उन्होंने केवल २ साल ही जैल में बिताए थे कि उन्हें फरवरी १९२४ में आंतों (appendicitis)के ऑपरेशन के लिए रिहा कर दिया गया।
गांधी जी के एकता वाले व्यक्तित्व के बिना इंडियन नेशनल कांग्रेस उसके जेल में दो साल रहने के दौरान ही दो दलों में बंटने लगी जिसके एक दल का नेतृत्व सदन में
पार्टी की भागीदारी के पक्ष वाले चित्त रंजन दास (Chitta Ranjan Das) तथा मोतीलाल नेहरू ने किया तो दूसरे दल का नेतृत्व इसके विपरीत चलने वाले चक्रवर्ती
राजगोपालाचार्य और सरदार वल्लभ भाई पटेल ने किया। इसके अलावा , हिंदुओं और मुसलमानों के बीच अहिंसा आंदोलन की चरम सीमा पर पहुंचकर सहयोग टूट रहा था।
गांधी जी ने इस खाई को बहुत से साधनों से भरने का प्रयास किया जिसमें उन्होंने १९२४ की बसंत में सीमित सफलता दिलाने वाले तीन सप्ताह का उपवास करना भी शामिल
था।[7]
लार्ड एडवर्ड इरविन (Lord Edward Irwin)द्वारा प्रतिनिधित्व वाली सरकार ने गांधी जी के साथ विचार विमर्श करने का निर्णय लिया। यह इरविन गांधी की संधि
(Gandhi–Irwin Pact) मार्च १९३१ में हस्ताक्षर किए थे .सविनय अवज्ञा आंदोलन को बंद करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने सभी राजनैतिक कैदियों को रिहा
करने के लिए अपनी रजामंदी दे दी। इस समझौते के परिणामस्वरूप गांधी को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एकमात्र प्रतिनिधि के रूप में लंदन में आयोजित होने वाले गोलमेज
सम्मेलन में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया। यह सम्मेलन गांधी जी और राष्ट्रीयवादी लोगों के लिए घोर निराशाजनक रहा, इसका कारण सत्ता का हस्तांतरण करने
की बजाय भारतीय कीमतों एवं भारतीय अल्पसंख्यकों पर केंद्रित होना था। इसके अलावा , लार्ड इरविन के उत्तराधिकारीलार्ड विलिंगटन (Lord Willingdon), ने
राष्ट्रवादियों के आंदोलन को नियंत्रित एवं कुचलने का एक नया अभियान आरंभ करदिया। गांधी फिर से गिरफ्तार कर लिए गए और सरकार ने उनके अनुयाईयों को उनसे
पूर्णतया दूर रखते हुए गांधी जी द्वारा प्रभावित होने से रोकने की कोशिश की। लेकिन , यह युक्ति सफल नहीं थी .१९३२ में , दलित नेता बी के चुनाव प्रचार के माध्यम
सेआर अम्बेडकर (B. R. Ambedkar), सरकार ने अछूतों को एक नए संविधान के अंतर्गत अलग निर्वाचन मंजूर कर दिया। इसके विरोध में गांधी जी ने सितंबर १९३२
में छ: दिन का अनशन ले लिया जिसने सरकार को सफलतापूर्वक दलित क्रिकेटर से राजनैतिक नेता बने पलवंकर बालू द्वारा की गई मध्यस्ता वाली एक समान व्यवस्था
को अपनाने पर बल दिया। अछूतों के जीवन को सुधारने के लिए गांधी जी द्वारा चलाए गए इस अभियान की शुरूआत थी। गांधी जी ने इन अछूतों को हरिजन का नाम दिया
जिन्हें वे भगवान की संतान मानते थे। ८ मई (8 May)१९३३ को गांधी जी ने हरिजन आंदोलन [9] में मदद करने के लिए आत्म शुद्धिकरण का २१ दिन तक चलने वाला
उपवास किया। यह नया अभियान दलितों को पसंद नहीं आया तथापि वे एक प्रमुख नेता बने रहे।बीआर अम्बेडकर (B. R. Ambedkar)ने गांधी जी द्वारा हरिजन शब्द
का उपयोग करने की निंदा की कि दलित सामाजिक रूप से अपरिपक्व हैं और सुविधासंपन्न जाति वाले भारतीयों ने पितृसत्तात्मक भूमिका निभाई है। अम्बेडकर और उसके
सहयोगी दलों को भी महसूस हुआ कि गांधी जी दलितों के राजनीतिक अधिकारों को कम आंक रहे हैं। हालांकि गांधी जी एक वैश्य जाति में पैदा हुए फिर भी उन्होनें इस बात
पर जोर दिया कि वह अम्बेडकर जैसे दलित कार्यकर्ता के होते हुए भी वह दलितों के लिए आवाज उठा सकता है।
१९३४ की गर्मियों में , उनकी जान लेने के लिए उन पर तीन असफल प्रयास किए गए थे ।.
जब कांग्रेस पार्टी के चुनाव लड़ने के लिए चुना और संघीय योजना के अंतर्गत सत्ता स्वीकार की तब गांधी जी ने पार्टी की सदस्यता से इस्तीफा देने का निर्णय ले लिया।
वह पार्टी के इस कदम से असहमत नहीं थे किंतु महसूस करते थे कि यदि वे इस्तीफा देते हैं तब भारतीयों के साथ उसकी लोकप्रियता पार्टी की सदस्यता को मजबूत करने
में आसानी प्रदान करेगी जो अब तक कम्यूनिसटों, समाजवादियों, व्यापार संघों, छात्रों, धार्मिक नेताओं से लेकर व्यापार संघों और विभिन्न आवाजों के बीच विद्यमान थी।
इससे इन सभी को अपनी अपनी बातों के सुन जाने का अवसर प्राप्त होगा। गांधी जी राज के लिए किसी पार्टी का नेतृत्व करते हुए प्रचार द्वारा कोई ऐसा लक्ष्य सिद्ध
नहीं करना चाहते थे जिसे राज [10] के साथ अस्थायी तौर पर राजनैतिक व्यवस्था के रूप में स्वीकार कर लिया जाए।
गांधी जी नेहरू प्रेजीडेन्सी और कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन के साथ ही १९३६ में भारत लौट आए।हालांकि गांधी की पूर्ण इच्छा थी कि वे आजादी प्राप्त करने पर अपना
संपूर्ण ध्यान केंद्रित करें न कि भारत के भविष्य के बारे में अटकलों पर। उसने कांग्रेस को समाजवाद को अपने उद्देश्य के रूप में अपनाने से नहीं रोका।१९३८ में राष्ट्रपति
पद के लिए चुने गए सुभाष बोस के साथ गांधी जी के मतभेद थे। बोस के साथ मतभेदों में गांधी के मुख्य बिंदु बोस की लोकतंत्र में प्रतिबद्धता की कमी तथा अहिंसा में
विश्वास की कमी थी। बोस ने गांधी जी की आलोचना के बावजूद भी दूसरी बार जीत हासिल की किंतु कांग्रेस को उस समय छोड़ दिया जब सभी भारतीय नेताओं ने गांधी
[11]
जी द्वारा लागू किए गए सभी सिद्धातों का परित्याग कर दिया गया।
सफलता ही मिली लेकिन आंदोलन के निष्ठुर दमन ने १९४३ के अंत तक भारत को संगठित कर दिया। युद्ध के अंत में , ब्रिटिश ने स्पष्ट संकेत दे दिया था कि संत्ता का
हस्तांतरण कर उसे भारतीयों के हाथ में सोंप दिया जाएगा। इस समय गांधी जी ने आंदोलन को बंद कर दिया जिससे कांग्रेसी नेताओं सहित लगभग १००,००० राजनैतिक बंदियों
को रिहा कर दिया गया।
हत्या
मैनचेस्टर गार्जियन , १८ फरवरी, १९४८, की गलियों से ले जाते हुआ दिखाया गया था।
३० जनवरी, १९४८, गांधी की उस समय गोली मारकर हत्या कर दी गई जब वे नई दिल्ली (New
Delhi).के बिड़ला भवन (बिरला हाउस (Birla House)) के मैदान में रात चहलकदमी कर रहे थे।
गांधी का हत्यारा नाथूराम गौड़से (Nathuram Godse)हिन्दू राष्ट्रवादी थे जिनके कट्टरपंथी हिंदु
महासभा (Hindu Mahasabha)के साथ संबंध थे जिसने गांधी जी को पाकिस्तान [17] को भुगतान
करने के मुद्दे को लेकर भारत को कमजोर बनाने के लिए जिम्मेदार ठहराया था। गोड़से और उसके उनके
सह षड्यंत्रकारी नारायण आप्टे (Narayan Apte) को बाद में केस चलाकर सजा दी गई तथा १५
नवंबर१९४९.को इन्हें फांसी दे दी गई। ) राजधाट (Rāj Ghāt), नई दिल्ली (New Delhi), में
गांधी जी के स्मारक ( या समाधि पर "देवनागरी:में हे राम " लिखा हुआ है।राम या , वह ( ( IAST |
राज घाट (Raj Ghat):आगा खान पैलेस में गांधी की अस्थियां ( पुणे ,
भारत ) . राम) )) , जिसका अनुवाद " अरे परमेश्वर " .किया जा सकता है। ऐसा व्यापक तोर पर माना जाता है
कि जब गांधी जी को गोली मारी गई तब उनके मुख से निकलने वाले ये अंतिम शब्द थे। हालांकि इस
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कथन पर विवाद उठ खड़े हुए हैं। जवाहरलाल नेहरू ने रेडियो के माध्यम से राष्ट्र को संबोधित किया :
गांधी जी की राख को एक अस्थि-रख दिया गया और उनकी सेवाओं की याद दिलाने के लिए संपूर्ण भारत में ले जाया गया। इनमें से अधिकांश को इलाहाबाद के संगम
(Sangam at Allahabad)पर १२ फरवरी १९४८ को जल में विसर्जित कर दिया गया किंतु कुछ को अलग [19] पवित्र रूप में रख दिया गया। १९९७ में , तुषार गाँधी
(Tushar Gandhi) ने बैंक में नपाए गए एक अस्थि-कलश की कुछ सामग्री को अदालत के माध्यम से ,इलाहाबाद में संगम (Sangam at
Allahabad).[19][20] नामक स्थान पर जल में विसर्जित कर दिया। ३० जनवरी२००८ को दुबई में रहने वाले एक व्यापारी द्वारा गांधी जी की राख वाले एक अन्य
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अस्थि-कलश को मुंबई संग्रहालय [19] में भेजने के उपरांत उन्हें गिरगाम चौपाटी (Girgaum Chowpatty) नामक स्थान पर जल में विसर्जित कर दिया गया। एक
अन्य अस्थि कलश आगा खान (Aga Khan) जो पुण[19] े में है, ( जहाँ उन्होंने १९४२ से कैद करने के लिए किया गया था १९४४ ) वहां समाप्त हो गया और दूसरा
आत्मबोध फैलोशिप झील मंदिर (Self-Realization Fellowship Lake Shrine) में लॉस एंजिल्स.[21] रखा हुआ है। इस परिवार को पता है कि इस पवित्र
राख का राजनीतिक उद्देश्यों के लिए दुरूपयोग किया जा सकता है लेकिन उन्हें यहां से हटाना नहीं चाहती हैं क्योंकि इससे मंदिरों .[19] को तोड़ने का खतरा पैदा हो सकता
है।
गांधी के सिद्धांत
इन्हें भी देखें: गांधीवाद
सत्य
गांधी जी ने अपना जीवन सत्य, या सच्चाई की व्यापक खोज में समर्पित कर दिया। उन्होंने इस लक्ष्य को प्राप्त करने करने के लिए अपनी स्वयं की गल्तियों और खुद
पर प्रयोग करते हुए सीखने की कोशिश की। उन्होंने अपनी आत्मकथा को सत्य के प्रयोग का नाम दिया।
गांधी जी ने कहा कि सबसे महत्वपूर्ण लड़ाई लड़ने के लिए अपने दुष्टात्माओं , भय और असुरक्षा जैसे तत्वों पर विजय पाना है। .गांधी जी ने अपने विचारों को सबसे पहले
उस समय संक्षेप में व्यक्त किया जब उन्होंने कहा भगवान ही सत्य है बाद में उन्होने अपने इस कथन को सत्य ही भगवान है में बदल दिया। इस प्रकार , सत्य में गांधी
के दर्शन है " परमेश्वर " .
अहिंसा
हालांकि गांधी जी अहिंसा के सिद्धांत के प्रवर्तक बिल्कुल नहीं थे फिर भी इसे बड़े पैमाने [22]पर राजनैतिक क्षेत्र में इस्तेमाल करने वाले वे पहले व्यक्ति थे। अहिंसा
(nonviolence), अहिंसा (ahimsa) और अप्रतिकार (nonresistance)का भारतीय धार्मिक विचारों में एक लंबा इतिहास है और इसके हिंदु, बौद्ध, जैन, यहूदी
और ईसाई समुदायों में बहुत सी अवधारणाएं हैं। गांधी जी ने अपनी आत्मकथा द स्टोरी ऑफ़ माय एक्सपेरिमेंट्स विथ ट्रुथ " (The Story of My Experiments
with Truth)में दर्शन और अपने जीवन के मार्ग का वर्णन किया है। उन्हें कहते हुए बताया गया था:
जब मैं निराश होता हूं तब मैं याद करता हूं कि हालांकि इतिहास सत्य का मार्ग होता है किंतु प्रेम इसे सदैव जीत लेता है। यहां अत्याचारी और हतयारे भी
हुए हैं और कुछ समय के लिए वे अपराजय लगते थे किंतु अंत में उनका पतन ही होता है -इसका सदैव विचार करें।
" मृतकों, अनाथ तथा बेघरों के लिए इससे क्या फर्क पड़ता है कि स्वतंत्रता और लोकतंत्र के पवित्र नाम के नीचे संपूर्णवाद का पागल विनाश छिपा है।
एक आंख के लिए दूसरी आंख पूरी दुनिया को अंधा बना देगी।
मरने के लिए मैरे पास बहुत से कारण है किंतु मेरे पास किसी को मारने का कोई भी कारण नहीं है।
इन सिद्धातों को लागू करने में गांधी जी ने इन्हें दुनिया को दिखाने के लिए सर्वाधिक तार्किक सीमा पर ले जाने से भी मुंह नहीं मोड़ा जहां सरकार, पुलिस और सेनाए भी
अहिंसात्मक बन गईं थीं। " फॉर पसिफिस्ट्स."[23] नामक पुस्तक से उद्धरण लिए गए हैं।
विज्ञान का युद्ध किसी व्यक्ति को तानाशाही , शुद्ध और सरलता की ओर ले जाता है। अहिंसा का विज्ञान अकेले ही किसी व्यक्ति को शुद्ध
लोकतंत्र के मार्ग की ओर ले जा सकता है।प्रेम पर आधारित शक्ति सजा के डर से उत्पन्न शक्ति से हजार गुणा अधिक और स्थायी होती है। यह कहना
निन्दा करने जैसा होगा कि कि अहिंसा का अभ्यास केवल व्यक्तिगत तौर पर किया जा सकता है और व्यक्तिवादिता वाले देश इसका कभी भी अभ्यास
नहीं कर सकते हैं। शुद्ध अराजकता का निकटतम दृष्टिकोण अहिंसा पर आधारित लोकतंत्र होगा;;;;;;संपूर्ण अहिंसा के आधार पर संगठित और चलने
वाला कोई समाज शुद्ध अराजकता
वाला समाज होगा।
मैं ने भी स्वीकार किया कि एक अहिंसक राज्य में भी पुलिस बल की जरूरत अनिवार्य हो सकती है। पुलिस रैंकों का गठन अहिंसा में विश्वास रखने वालों
से किया जाएगा। लोग उनकी हर संभव मदद करेंगे और आपसी सहयोग के माध्यम से वे किसी भी उपद्रव का आसानी से सामना कर लेंगे ...श्रम और
पूंजी तथा हड़तालों के बीव हिंसक झगड़े बहुत कम होंगे और अहिंसक राज्यों में तो बहुत कम होंगे क्योंकि अहिंसक समाज की बाहुलता का प्रभाव समाज
में प्रमुख तत्वों का सम्मान करने के लिए महान होगा। इसी प्रकार साम्प्रदायिक अव्यवस्था के लिए कोई जगह नहीं होगी;;;;;;
।
शांति एवं अव्यवस्था के समय सशस्त्र सैनिकों की तरह सेना का कोई
अहिंसात्मक कार्य उनका यह कर्तव्य होगा कि वे विजय दिलाने वाले समुदायों को एकजुट करें जिसमें शांति का प्रसार, तथा ऐसी गतिविधियों का समावेश
हो जो किसी भी व्यक्ति को उसके चर्च अथवा खंड में संपर्क बनाए रखते हुए अपने साथ मिला लें। इस प्रकार की सैना को किसी भी आपात स्थिति से
लड़ने के लिए तैयार रहना चाहिए तथा भीड़ के क्रोध को शांत करने के लिए उसके पास मरने के लिए सैनिकों की पर्याप्त नफरी भी होनी
चाहिए;;;;;;सत्याग्रह (सत्यबल) के बिग्रेड को प्रत्येक गांव तथा शहर तक भवनों के प्रत्येक ब्लॉक में संगठित किया जा सकता हैयदि अहिंसात्मक
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समाज पर हमला किया जाता है तब अहिंसा के दो मार्ग खुलते हैं। अधिकार पाने के लिए हमलावर से सहयोग न करें बल्कि समर्पण करने की अपेक्षा
मृत्यु को गले लगाना पसंद करें। दूसरा तरीका होगा ऐसी जनता द्वारा अहिंसक प्रतिरोध करना हो सकता है जिन्हें अहिंसक तरीके से प्रशिक्षित किया गया
हो ...इस अप्रत्याशित प्रदर्शन की अनंत राहों पर आदमियों और महिलाओं को हमलावर की इच्छा लिए आत्मसमर्पण करने की बजाए आसानी से मरना
अच्छा लगता है और अंतंत: उसे तथा उसकी सैनिक बहादुरी के समक्ष पिघलना जरूर पड़ता है;;;;। ऐसे किसी देश अथवा समूह जिसने अंहिंसा को अपनी
अंतिम नीति बना लिया है उसे परमाणु बम भी अपना दास नहीं बना सकता है। उस देश में अहिंसा का स्तर खुशी-खुशी गुजरता है तब वह प्राकृतिक तौर पर
इतना अधिक बढ़ जाता है कि उसे सार्वभोमिक आदर
मिलने लगता है।
[24]
इन विचारों के अनुरूप १९४० में जब नाजी जर्मनी द्वारा अंग्रेजों के द्वीपों पर किए गए हमले आसन्न दिखाई दिए तब गांधी जी ने अंग्रेजों को शांति और युद्ध में
अहिंसा की निम्नलिखित नीति का अनुसरण करने को कहा।
मैं आपसे हथियार रखने के लिए कहना पसंद करूंगा क्योंकि ये आपको अथवा मानवता को बचाने में बेकार हैं।आपको हेर हिटलर और सिगनोर मुसोलिनी को
आमत्रित करना होगा कि उन्हें देशों से जो कुछ चाहिए आप उन्हें अपना अधिकार कहते हैं।यदि इन सज्जनों को अपने घर पर रहने का चयन करना है तब
आपको उन्हें खाली करना होगा।यदि वे तुम्हें आसानी से रास्ता नहीं देते हैं तब आप अपने आपको , पुरूषों को महिलाओं को और बच्चों की बलि देने की
अनुमति देंगे किंतु अपनी निष्ठा के प्रति झुकने से इंकार करेंगे।
१९४६ में युद्ध के बाद दिए गए एक साक्षात्कार में उन्होंने इससे भी आगे एक विचार का प्रस्तुतीकरण किया।
यहूदियों को अपने लिए स्वयं कसाई का चाकू दे देना चाहिए था।उन्हें अपने आप को समुद्री चट्टानों से समुद्र के अंदर फैंक देना चाहिए था।
फिर भी गांधी जी को पता था कि इस प्रकार के अहिंसा के स्तर को अटूट विश्वास और साहस की जरूरत होगी और इसके लिए उसने महसूस कर लिया था कि यह हर
किसी के पास नहीं होता है। इसलिए उन्होंने प्रत्येक व्यक्ति को परामर्श दिया कि उन्हें अहिंसा को अपने पास रखने की जरूरत नहीं है खास तौर पर उस समय जब इसे
कायरता के संरक्षण के लिए उपयोग में किया गया हो।
गांधी जी ने अपने सत्याग्रह आंदोलन में ऐसे लोगों को दूर ही रखा जो हथियार उठाने से डरते थे अथवा प्रतिरोध करने में स्वयं की अक्षमता का अनुभव
करते थे। उन्होंने लिखा कि मैं मानता हूं कि जहां डरपोक और हिंसा में से किसी एक को चुनना हो तो मैं हिंसा के पक्ष में अपनी राय दूंगा।[25]
प्रत्येक सभा पर मैं तब तक चेतावनी दोहराता रहता था जब तक वन्हें यह अहसास नहीं हो जाता है कि वे एक ऐसे अंहिसात्मक बल के अधिकार में आ
गए हैं जिसके अधिकार में वे पहले भी थे और वे उस प्रयोग के आदि हो चुके थे और उनका मानना था कि उन्हें अहिंसा से कुछ लेना देना नहीं हैं तथा
फिर से हथियार उठा लिए थे। खुदाई खिदमतगार (Khudai Khidmatgar)के बारे में ऐसा कभी नहीं कहना चाहिए कि जो एक बार इतने बहादुर थे
कि बादशाह खान (Badshah Khan)के प्रभाव में अब वे डरपोक बन गए। वीरता केवल अच्छे निशाने वालों में ही नहीं होती है बल्कि मृत्यु को हरा
देने वालों में तथा अपनी छातियों को गोली [26]
खाने के लिए सदा तैयार रहने वालों में भी होती है।
शाकाहारी रवैया
बाल्यावस्था में गांधी को मांस खाने का अनुभव मिला। ऐसा उनकी उत्तराधिकारी जिज्ञासा के कारण ही था जिसमें उसके उत्साहवर्धक मित्र शेख मेहताब का भी योगदान
था। वेजीटेरियनिज्म का विचार भारतकी हिंदु और जैन प्रथाओं में कूट-कूट कर भरा हुआ था तथा उनकी मातृभूमि गुजरात में ज्यादातर हिंदु शाकाहारी ही थे। इसी तरह जैन भी
थे। गांधी का परिवार भी इससे अछूता नहीं था। पढाई के लिए लंदन आने से पूर्व गांधी जी ने अपनी माता पुतलीबाई और अपने चाचा बेचारजी स्वामी से एक वायदा किया था
कि वे मांस खाने, शराब पीने से तथा संकीणता से दूर रहेंगे।उन्होने अपने वायदे रखने के लिए उपवास किए और ऐसा करने से सबूत कुछ ऐसा मिला जो भोजन करने से नहीं
मिल सकता था, उन्होंने अपने जीवन पर्यन्त दर्शन के लिए आधार जो प्राप्त कर लिया था। जैसे जैसे गांधी जी व्यस्क होते गए वे पूर्णतया शाकाहारी (vegetarian)बन
गए। उन्होंने द मोरल बेसिस ऑफ वेजीटेरियनिज्म तथा इस विषय पर बहुत सी लेख भी लिखें हैं जिनमें से कुछ लंदन वेजीटेरियन सोसायटी के प्रकाशन द वेजीटेरियन [27]में
प्रकाशित भी हुए हैं। गांधी जी स्वयं इस अवधि में बहुत सी महान विभूतियों से प्रेरित हुए और लंदन वेजीटेरियन सोसायटी के चैयरमेन डॉ० जोसिया ओल्डफील्ड के मित्र बन
गए।
हेनरी स्टीफन साल्ट (Henry Stephens Salt)की कृतियों को पढने और प्रशंषा करने के बाद युवा मोहनदास गांधी शाकाहारी प्रचारक से मिले और उनके साथ
पत्राचार किया। गांधी जी ने लंदन में रहते समय और उसके बाद शाकाहारी भोजन की वकालत करने में काफी समय बिताया। गांधी जी का कहना था कि शाकाहारी भोजन न
केवल शरीर की जरूरतों को पूरा करता है बल्कि यह आर्थिक प्रयोजन की भी पूर्ति करता है जो मांस से होती है और फिर भी मांस अनाज, सब्जियों और फलों से अधिक
मंहगा होता है। इसके अलावा कई भारतीय जो आय कम होने की वजह से संघर्ष कर रहे थे, उस समय जो शाकाहारी के रूप में दिखाई दे रहे थे वह आध्यात्मिक परम्परा ही
नहीं व्यावहारिकता के कारण भी था.वे बहुत देर तक खाने से परहेज रखते थे , और राजनैतिक विरोध के रूप में उपवास (fasting) रखते थे उन्होंने अपनी मृत्यु तक खाने से
इनकार किया जब तक उनका मांग पुरा नही होता उनकी आत्मकथा में यह नोट किया गया है कि शाकाहारी होना ब्रह्मचर्य (Brahmacharya) में गहरी प्रतिबद्धता होने
की शुरूआती सीढ़ी है, बिना कुल नियंत्रण ब्रह्मचर्य में उनकी सफलता लगभग असफल है.
गाँधी जी शुरू से फलाहार (frutarian),[28] करते थे लेकिन अपने चिकित्सक की सलाह से बकरी का दूध पीना शुरू किया था.वे कभी भी दुग्ध -उत्पाद का सेवन नही
करते थे क्योंकि पहले उनका मानना था की दूध मनुष्य का प्राकृतिक आहार नहीं होता और उन्हें गाय के चीत्कार सेघृणा (cow blowing),[29] थी और सबसे
10
ब्रह्मचर्य
जब गाँधी जी सोलह साल के हुए तब उनके पिताश्री की तबियत बहुत ख़राब थी उनके पिता की बीमारी के दौरान वे हमेशा उपस्थित रहते थे क्योंकि वे अपने माता-पिता के
प्रति अत्यंत समर्पित थे. यद्यपि, गाँधी जी को कुछ समय की राहत देने के लिए एक दिन उनके चाचा जी आए वे आराम के लिए शयनकक्ष पहुंचे जहाँ उनकी शारीरिक
अभिलाषाएं जागृत हुई और उन्होंने अपनी पत्नी से प्रेम किया नौकर के जाने के पश्चात् थोडी ही देर में ख़बर आई की गाँधी के पिता का अभी अभी देहांत हो गया है.गाँधी जी
को जबरदस्त अपराध महसूस हुआ और इसके लिए वे अपने आप को कभी माफ नहीं कर सकते थे उन्होंने इस घटना का जिक्र दोहरी शर्म में किया इस घटना का गाँधी पर
महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा और वे ३६ वर्ष की उम्र में ब्रह्मचर्य (celibate) की और मुड़ने लगे, जबकि उनकी शादी हो चुकी थी.[30]
यह निर्णय ब्रह्मचर्य (Brahmacharya) के दर्शन से पुरी तरह प्रभावित था आध्यात्मिक और व्यवहारिक शुद्धता बड़े पैमाने पर ब्रह्मचर्य और वैराग्यवाद
(asceticism) से जुदा होता है.गाँधी ने ब्रह्मचर्य को भगवान् के करीब आने और अपने को पहचानने का प्राथमिक आधार के रूप में देखा था अपनी आत्मकथा में वे
अपनी बचपन की दुल्हन कस्तूरबा (Kasturba) के साथ अपनी कामेच्छा और इर्ष्या के संघर्षो को बतातें हैं उन्होंने महसूस किया कि यह उनका व्यक्तिगत दायित्व है
की उन्हें ब्रह्मचर्य रहना है ताकि वे बजाय हवस के प्रेम को सिख पायें गाँधी के लिए, ब्रह्मचर्य का अर्थ था "इन्द्रियों के अंतर्गत विचारों, शब्द और कर्म पर
नियंत्रण".[31]
सादगी
गाँधी जी का मानना था कि अगर एक व्यक्ति समाज सेवा में कार्यरत है तो उसे साधारण जीवन (simple life) की और ही बढ़ना चाहिए जिसे वे ब्रह्मचर्य के लिए
आवश्यक मानते थे. उनकी सादगी (simplicity) ने पश्चमी जीवन शैली को त्यागने पर मजबूर करने लगा और वे दक्षिण अफ्रीका में फैलने लगे थे इसे वे "ख़ुद को
शुन्य के स्थिति में लाना" कहते हैं जिसमे अनावश्यक खर्च, साधारण जीवन शैली को अपनाना और अपने वस्त्र स्वयं धोना आवश्यक है.[32]एक अवसर पर जन्मदार की
और से सम्मुदय के लिए उनकी अनवरत सेवा के लिए प्रदान किए गए उपहार को भी वापस कर देते हैं.[33]
गाँधी सप्ताह में एक दिन मौन धारण करते थे.उनका मानना था कि बोलने के परहेज से उन्हें आतंरिक शान्ति (inner peace) मिलाती है. उनपर यह प्रभाव हिंदू मौन
सिद्धांत का है, (संस्कृत: - मौन) और शान्ति (संस्कृत: -शान्ति)वैसे दिनों में वे कागज पर लिखकर दूसरों के साथ संपर्क करते थे 37 वर्ष की आयु से साढ़े तीन वर्षों
तक गांधी जी ने अख़बारों को पढ़ने से इंकार कर दिया जिसके जवाब में उनका कहना था कि जगत की आज जो स्थिर अवस्था है उसने उसे अपनी स्वयं की आंतरिक
अशांति की तुलना में अधिक भ्रमित किया है।
जॉन रस्किन (John Ruskin) की अन्टू दिस लास्ट (Unto This Last), पढने के बाद उन्होंने अपने जीवन शैली में परिवर्तन करने का फैसला किया तथा एक
समुदाय बनाया जिसे अमरपक्षी अवस्थापन कहा जाता था.
दक्षिण अफ्रीका, जहाँ से उन्होंने वकालत पूरी की थी तथा धन और सफलता के साथ जुड़े थे वहां से लौटने के पश्चात् उन्होंने पश्चमी शैली के वस्त्रों का त्याग
किया.उन्होंने भारत के सबसे गरीब इंसान के द्वारा जो वस्त्र पहने जाते हैं उसे स्वीकार किया, तथा घर में बने हुए कपड़े (खादी) पहनने की वकालत भी की.गाँधी और उनके
अनुयायियों ने अपने कपड़े सूत के द्वारा ख़ुद बुनने के अभ्यास को अपनाया और दूसरो को भी ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित किया हालाँकि भारतीय श्रमिक बेरोज़गारी के
कारण बहुधा आलसी थे, वे अक्सर अपने कपड़े उन औद्योगिक निर्माताओं से खरीदते थे जिसका उद्देश्य ब्रिटिश हितों को पुरा करना था. गाँधी का मत था कि अगर
भारतीय अपने कपड़े ख़ुद बनाने लगे, तो यह भारत में बसे ब्रिटिशों को आर्थिक झटका लगेगा. फलस्वरूप, बाद में चरखा (spinning wheel) को भारतीय राष्ट्रीय झंडा
में शामिल किया गया. अपने साधारण जीवन को दर्शाने के लिए उन्होंने बाद में अपनी बाकी जीवन में धोती पहनी
विश्वास
गाँधी का जन्म हिंदू धर्म में हुआ, उनके पुरे जीवन में अधिकतर सिधान्तों की उत्पति हिंदुत्व से हुआ. साधारण हिंदू कि तरह वे सारे धर्मों को समान रूप से मानते थे, और सारे
प्रयासों जो उन्हें धर्म परिवर्तन के लिए कोशिश किए जा रहे थे उसे अस्वीकार किया. वे ब्रह्मज्ञान के जानकार थे और सभी प्रमुख धर्मो को विस्तार से पढ़तें थे. उन्होंने
हिंदू धर्म के बारे में निम्नलिखित कहा है.
हिंदू धर्म के बारें में जितना मैं जानता हूँ यह मेरी आत्मा को संतुष्ट करती है, और सारी कमियों को पूरा करती है जब मुझे संदेह घेर लेती है, जब निराशा मुझे घूरने
लगती है, और जब मुझे आशा की कोई किरण नजर नही आती है, तब मैं भगवद् गीता को पढ़ लेता हूँ और तब मेरे मन को असीम शान्ति मिलती है और तुंरत ही मेरे
चेहरे से निराशा के बादल छंट जातें हैं और मैं खुश हो जाता हूँ.मेरा पुरा जीवन त्रासदियों से भरा है और यदि वो दृश्यात्मक और अमिट प्रभाव मुझ पर नही छोड़ता,
मैं इसके लिए भगवत गीता के उपदेशों का ऋणी हूँ.
11
गाँधी ने भगवद गीता की व्याख्या गुजराती में भी की है.महादेव देसाई ने गुजराती पाण्डुलिपि का अतिरिक्त
भूमिका तथा विवरण के साथ अंग्रेजी में अनुवाद किया है गाँधी के द्वारा लिखे गए प्राक्कथन के साथ
इसका प्रकाशन १९४६ में हुआ था .[34][35]
गाँधी का मानना था कि प्रत्येक धर्म के मूल में सत्य और प्रेम होता है ( संवेदना, अहिंसा और स्वर्ण
नियम (the Golden Rule)) ढोंग, कुप्रथा आदि पर भी उन्होंने सभी धर्मो के सिधान्तों से सवाल
किए और वे एक अथक समाज सुधारक थे.उनकी कुछ टिप्पणियां विभिन्न धर्मो पर है ;
यदि मैं ईसाई धर्म को आदर्श के रूप में या महानतम रूप में स्वीकार नहीं कर सकता तो कभी भी
मैं हिन्दुत्व के प्रति इस प्रकार दृड़ निश्चयी नहीं बन पाता. हिंदू दोष दुराग्रह्पुर्वक मुझे दिखाई गाँधी स्मृति ( जिस घर में गाँधी ने अपने अन्तिम ४ महीने बिताएं वह आज
देती थी यदि अस्पृश्यता हिंदुत्व का हिस्सा होता तो वह इसका सबसे सडा अंग होता.सम्प्रदायों एक स्मारक बन गया है ,नई दिल्ली)
की अनेक जातियों और उनके अस्तित्व को मैं कभी समझ नहीं सकता इसका क्या अर्थ है कि
वेद परमेश्वर के शब्द से प्रेरित है?यदि वें प्रेरित थे तो क्यों नहीं बाइबल और कुरान ?ईसाई दोस्त मुझे परिवर्तित करने का प्रयास करते हैं तो मुस्लिम दोस्त क्या
करेंगे अब्दुल्लाह शेठ मुझे हमेशा इस्लाम का अध्ययन करने के लिए प्रेरित करते थे और निश्चित रूप से हमेशा इस्लाम की सुन्दरता का ही बखान करते थे ( स्रोत
: उनकी आत्मकथा (his autobiography))
जितना जल्दी हम नैतिक आधार से हारेंगे उतना ही जल्दी हममे धार्मिक युद्ध समाप्त हो जायेगी ऐसी कोई बात नहीं है की धर्म नैतिकता के उपर हो उदाहरण के
तौर पर कोई मनुष्य असत्यवादी, क्रूर या असंयमी हो और वह यह दावा करे की परमेश्वर उसके साथ हैं कभी हो ही नहीं सकता
मुहम्मद की बातें ज्ञान का खजाना है सिर्फ़ मुसलमानों के लिए ही नहीं बल्कि पूरी मानव जाति के लिए
बाद में उनके जीवन में जब पूछा गया कि क्या तुम हिंदू हो, उन्होंने कहा:
"हाँ मैं हूँ.मैं भी एक ईसाई, मुस्लिम, बौद्ध और यहूदी हूँ."
एक दूसरे के प्रति गहरा आदर भाव होने के बावजूद गाँधी और रबिन्द्रनाथ टैगोर एक से अधिक बार लम्बी बहस में लगे रहे. ये वाद विवाद दोनों के दार्शनिक मतभेद को
दर्शाती है और ये दोनों ही उस समय के प्रसिद्ध भारतीय दार्शनिक थे १५ जनवरी १९३४ में बिहार में एक भूकंप आया और जिसके कारण व्यापक नुकसान हुआ और कई
जानें गईं गाँधी जी ने अपने आप को संभाला क्योंकि यह पाप हिंदू धर्म के उच्च जाती वर्गों के द्वारा किया गया था जो अपने मंदिरों में अछूतों को अंदर जाने से मना करते
थे ( गाँधी के कारण ही छुआछुत में वृद्धि हुई थी क्योंकि उन्होंने उन्हें हरिजन (Harijan), कृष्ण के लोग कहा था, गाँधी के विचारों का टगोर (Tagore) ने जोरदार
विरोध किया और कहा कि भूकंप नैतिक कारणों से नही प्राकृतिक शक्तियों से होती हैं, चाहे वह अस्पृश्यता की प्रथा के कितने ही विरुद्ध हो.[36]
लेखन
गाँधी जी एक सफल लेखक थे.कई दशकों तक वे अनेक पत्रों का संपादन कर चुके थे जिसमे गुजराती (Harijan), हिन्दी और अंग्रेजी में हरिजन (Indian
Opinion), इंडियन ओपिनियन ( जब वे दक्षिण अफ्रीका में थे) और अंग्रेजी में (Young India)यंग इंडिया, और जब वे भारत में वापस आए तब उन्होंने नवजीवन
नामक मासिक पत्रिका निकाली. बाद में नवजीवन का प्रकाशन हिन्दी में भी हुआ.[37] इसके अलावा उन्होंने लगभग हर रोज व्यक्तियों और समाचार पत्रों को पत्र लिखा
गाँधी ने कुछ किताबें भी लिखी अपनी आत्मकथा के साथ, एक आत्मकथा या सत्य के साथ मेरे प्रयोग (An Autobiography or My Experiments with
Truth), दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह, वहां के संघर्षो के बारें में, हिंद स्वराज या इंडियन होम रुल (Hind Swaraj or Indian Home Rule), राजनैतिक
प्रचार पत्रिका, और जॉन रस्किन (John Ruskin) की अन्टू दिस लास्ट (Unto This Last) की गुजराती में व्याख्या की है.[] अन्तिम निबंध को उनका
अर्थशास्त्र से सम्बंधित कार्यक्रम कहा जा सकता है उन्होंने शाकाहार ,भोजन और स्वास्थ्य, धर्म, सामाजिक सुधार पर भी विस्तार से लिखा है.गाँधी आमतौर पर गुजराती
में लिखतें थे परन्तु अपनी किताबों का हिदी और अंग्रेजी में भी अनुवाद करते थे.
गाँधी का पूरा कार्य महात्मा गाँधी के संचित लेख नाम से १९६० में भारत सरकार द्वारा प्रकाशित किया गया है.यह लेखन लगभग ५०००० पन्नों में समाविष्ट है और
तक़रीबन सौ खंडों में प्रकाशित है.सन २००० में गाँधी के पुरा कार्यों का संशोधित संस्करण विवादों के घेरे में आ गया क्योंकि गाँधी के अनुयायियों ने सरकार पर राजनितिक
उदेश्यों के लिए परिवर्तन शामिल करने का आरोप लगाया.[38]
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गाँधी पर पुस्तकें
कई जीवनी लेखकों ने गाँधी के जीवन वर्णन का कार्य लिया है उनमें से दो कार्य अलग हैं;डीजी तेंदुलकर अपने महात्मा के साथ. मोहनदास करमचंद गाँधी का जीवन आठ
खंडों में है और महात्मा गाँधी के साथ प्यारेलाल (Pyarelal) और सुशीला नायर (Sushila Nayar) १० खंडों में है.कर्नल जी बी अमेरिकी सेना के सिंह ने कहा की
अपने तथ्यात्मक शोध पुस्तक गाँधी: बेहायिंड द मास्क ऑफ़ डिविनिटी (Gandhi: Behind the Mask of Divinity) के मूल भाषण और लेखन के लिए उन्होंने
अपने २० वर्ष[] लगा दिए
गांधी और कालेनबाख
महात्मा गांधी और उनके दक्षिण अफ्रीकी मित्र हरमन कालेनबाख से संबंधित दस्तावेजों को 1.28 मिलियन डॉलर (करीब 6.88 करोड़ रुपए) में खरीद कर भारत लाया
गया है। 2012 में नीलाम होने से पहले भारत सरकार ने इन्हें सोदबी नीलामी घर से गोपनीय करार में खरीदा था। कालेनबाख दक्षिण अफ्रीका में जिम्नास्ट, बॉडी बिल्डर
और आर्किटेक्ट थे। उन्होंने एमके गांधी को कुछ ऐसे भी पत्र भेजे थे जिन्हें कुछ समीक्षक ‘प्रेम पत्र’ कहते हैं। इन दोनों लोगों का रिश्ता काफी विवादित रहा था।[41]
अनुयायियों और प्रभाव
महत्वपूर्ण नेता और राजनीतिक गतिविधियाँ गाँधी से प्रभावित थी अमेरिका के नागरिक अधिकार आन्दोलन (civil rights movement) के नेताओं में मार्टिन लूथर
किंग (Martin Luther King) और जेम्स लाव्सन (James Lawson) गाँधी के लेखन जो उन्हीं के सिद्धांत अहिंसा को विकसित करती है से काफी आकर्षित
हुए थे.[42] विरोधी-रंगभेद कार्यकर्ता और दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला, गाँधी जी से प्रेरित थे.[43] और दुसरे लोग खान अब्दुल गफ्फेर खान
(Khan Abdul Ghaffar Khan),[44]स्टीव बिको (Steve Biko), और औंग सू कई (Aung San Suu Kyi) हैं.[45]
गाँधी का जीवन तथा उपदेश कई लोगों को प्रेरित करती है जो गाँधी को अपना गुरु मानते है या जो गाँधी के विचारों का प्रसार करने में अपना जीवन समर्पित कर देते हैं.
यूरोप के, रोमेन रोल्लांड पहला व्यक्ति था जिसने १९२४ में अपने किताब महात्मा गाँधी में गाँधी जी पर चर्चा की थी और ब्राजील की अराजकतावादी (anarchist) और
नारीवादी मारिया लासर्दा दे मौरा (Maria Lacerda de Moura) ने अपने कार्य शांतिवाद में गाँधी के बारें में लिखा.१९३१ में उल्लेखनीय भौतिक विज्ञानी अलबर्ट
आइंस्टाइन, गाँधी के साथ पत्राचार करते थे और अपने बाद के पत्रों में उन्हें "आने वाले पीढियों का आदर्श" कहा.[46]लांजा देल वस्तो (Lanza del Vasto) महात्मा
गाँधी के साथ रहने के इरादे से सन १९३६ में भारत आया; और बाद में गाँधी दर्शन को फैलाने के लिए वह यूरोप वापस आया और १९४८ में उसने कम्युनिटी ऑफ़ द आर्क
(Community of the Ark) की स्थापना की.( गाँधी के आश्रम से प्रभावित होकर)मदेलिने स्लेड (Madeleine Slade) (मीराबेन) ब्रिटिश नौसेनापति की बेटी
थी जिसने अपना अधिक से अधिक व्यस्क जीवन गाँधी के भक्त के रूप में भारत में बिताया था.
इसके अतिरिक्त, ब्रिटिश संगीतकार जॉन लेनन (John Lennon) ने गाँधी का हवाला दिया जब वे अहिंसा पर अपने विचारों को व्यक्त कर रहे थे.[47] २००७ में केन्स
लिओंस अन्तर राष्ट्रीय विज्ञापन महोत्सव (Cannes Lions International Advertising Festival), अमेरिका के पूर्व उपराष्ट्रपति और पर्यावरणविद
अल गोर ने उन पर गाँधी के प्रभाव को बताया.[48]
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पैतृक सम्पति
२ अक्टूबर (2 October) गाँधी का जन्मदिन है इसलिए गाँधी जयंती (Gandhi Jayanti) के
अवसर पर भारत में राष्ट्रीय अवकाश (national holiday in India) होता है १५ जून २००७ को
यह घोषणा की गई थी कि "सयुंक्त राष्ट्र महा सभा (United Nations General
Assembly)" एक प्रस्ताव की घोषणा की, कि २ अक्टूबर (2 October) को "अंतर्राष्ट्रीय
अहिंसा दिवस (International Day of Non-Violence)" के रूप में मनाया जाएगा.[49]
अक्सर पश्चिम में महात्मा (Mahatma) शब्द का अर्थ ग़लत रूप में ले लिया जाता है उनके अनुसार
यह संस्कृत से लिया गया है जिसमे महा का अर्थ महान और आत्म का अर्थ आत्मा होता है.ज्यादातर
सूत्रों के अनुसार जैसे दत्ता और रोबिनसन के रबिन्द्रनाथ टगोर: संकलन में कहा गया है कि रबिन्द्रनाथ
शत वर्षीय महात्मा गाँधी की मूर्ति व्यापारिक क्षेत्र के केंद्रीय स्थान
टगोर ने सबसे पहले गाँधी को महात्मा का खिताब दिया था.[50] अन्य सूत्रों के अनुसार नौतामलाल
पिएतेर्मारित्ज्बुर्ग (Pietermaritzburg), दक्षिण अफ्रीका में है. भगवानजी मेहता (Nautamlal Bhagavanji Mehta) ने २१ जनवरी १९१५ में उन्हें यह खिताब
दिया था.[51] हालाँकि गाँधी ने अपनी आत्मकथा में कहा है कि उन्हें कभी नही लगा कि वे इस सम्मान
के योग्य हैं.[52] मानपत्र के अनुसार, गाँधी को उनके न्याय और सत्य के सराहनीये बलिदान के लिए महात्मा नाम मिला है.[53]
१९३० में टाइम (Time) पत्रिका ने महात्मा गाँधी को वर्ष का पुरूष (Man of the Year) का नाम दियाI १९९९ में गाँधी अलबर्ट आइंस्टाइन जिन्हे सदी का पुरूष
(Person of the Century) नाम दिया गया के मुकाबले द्वितीय स्थान जगह पर थे . टाइम पत्रिका ने दलाई लामा (The Dalai Lama) , लेच वालेसा (Lech
Wałęsa) , डॉ मार्टिन लूथर किंग, जूनियर (Dr. Martin Luther King, Jr.) , सेसर शावेज़ (Cesar Chavez), औंग सान सू कई (Aung San Suu
Kyi) , बेनिग्नो अकुइनो जूनियर (Benigno Aquino, Jr.), डेसमंड टूटू (Desmond Tutu) और नेल्सन मंडेला को गाँधी के पुत्र के रूप में कहा और उनके
अहिंसा के आद्यात्मिक उतराधिकारी.[54] भारत सरकार प्रति वर्ष उल्लेखनीय सामाजिक कार्यकर्ताओं, विश्व के नेताओं और नागरिकों को महात्मा गाँधी शांति पुरुस्कार
(Mahatma Gandhi Peace Prize) से पुरुस्कृत करती है. नेल्सन मंडेला, साऊथ अफ्रीका के नेता जो कि जातीय मतभेद और पार्थक्य के उन्मूलन में संघर्षरत
रहे हैं, इस पुरूस्कार के लिए एक प्रवासी भारतीय के रूप में प्रबल दावेदार हैं.
१९९६ में, भारत सरकार ने महात्मा गाँधी की श्रृंखला के नोटों (rupee) के मुद्रण को १ ,५ ,१० ,२०, ५० ,१०० ,५०० और १००० के अंकन के रूप में आरम्भ किया.
आज जितने भी नोट इस्तेमाल में हैं उनपर महात्मा गाँधी का चित्र है.१९६९ में यूनाइटेड किंगडम ने डाक टिकेट की एक श्रृंखला महात्मा गाँधी के शत्वर्शिक जयंती के
उपलक्ष्य में जारी की.
यूनाइटेड किंगडम में ऐसे अनेक गाँधी जी की प्रतिमाएँ उन ख़ास स्थानों पर हैं जैसे लन्दन विश्वविद्यालय
कालेज (Tavistock Square) के पास ताविस्तोक चौक ,लन्दन (University College
London) जहाँ पर उन्होंने कानून की शिक्षा प्राप्त की. यूनाइटेड किंगडम में जनवरी ३० को
“राष्ट्रीय गाँधी स्मृति दिवस” मनाया जाता है.संयुक्त राज्य में , गाँधी की प्रतिमाएँ न्यू यार्क शहर
(Union Square) में यूनियन स्क्वायर के बहार और अटलांटा (Martin Luther King, Jr.
National Historic Site) में मार्टिन लूथर किंग जूनियर राष्ट्रीय ऐतिहासिक स्थल और वाशिंगटन
डी सी में भारतीय दूतावास के समीप मेसासुशैट्स मार्ग में हैं.सी. (Washington, D. C.), भारतीय
दूतावास के समीप पितर्मरित्ज़्बर्ग (Pietermaritzburg) , दक्षिण अफ्रीका, जहाँ पर १८९३ में
गाँधी को प्रथम-श्रेणी से निकल दिया गया था वहां उनकी स्मृति में एक प्रतिमा स्थापित की गए है.गाँधी नई दिल्ली में गाँधी स्मृति (New Delhi) पर सहादत स्तम्भ उस
की प्रतिमाएँ मदाम टुसौड (Madame Tussaud's) के मोम संग्रहालय, लन्दन में, न्यू यार्क और स्थान को चिन्हित करता है जहाँ पर उनकी हत्या हुयी.
गाँधी को कभी भी शान्ति का नोबेल पुरस्कार (Nobel Peace Prize) प्राप्त नही हुआ, हालाँकि उनको १९३७ से १९४८ के बीच, पाँच बार मनोनीत किया गया जिसमे
अमेरिकन फ्रेंड्स सर्विस कमिटी द्वारा दिया गया नामांकन भी शामिल है (American Friends Service Committee).[55] दशको उपरांत नोबेल समिति ने
सार्वजानिक रूप में यह घोषित किया कि उन्हें अपनी इस भूल पर खेद है, और यह स्वीकार किया कि पुरूस्कार न देने की वजह विभाजित राष्ट्रीय विचार थे.महात्मा गाँधी को
यह पुरुस्कार १९४८ में दिया जाना था, परन्तु उनकी हत्या के कारण इसे रोक देना पड़ा.उस साल दो नए राष्ट्र भारत और पाकिस्तान में युद्ध छिड़ जाना भी एक जटिल
कारण था.[56] गाँधी के मृत्यु वर्ष १९४८ में पुरस्कार इस वजह से नही दिया गया कि कोई जीवित योग्य उम्मीदवार नही था, और जब १९८९ में दलाई लामा (Dalai
Lama) को पुरुष्कृत किया गया तो समिति के अध्यक्ष ने ये कहा कि "यह महात्मा गाँधी की याद में श्रधांजलि का ही हिस्सा है."[57]
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बिरला भवन ( या बिरला हॉउस ), नई दिल्ली जहाँ पर ३०जन्वरी, १९४८ को गाँधी की हत्या की गयी का
अधिग्रहण भारत सरकार ने १९७१ में कर लिया तथा १९७३ में गाँधी स्मृति के रूप में जनता के लिए खोल
दिया. यह उस कमरे को संजोय हुए है जहाँ गाँधी ने अपने आख़िर के चार महीने बिताये और वह मैदान भी
जहाँ रात के टहलने के लिए जाते वक्त उनकी हत्या कर दी गयी. एक शहीद स्तम्भ अब उस जगह को
चिन्हित करता हैं जहाँ पर उनकी हत्या कर दी गयी थी.
प्रति वर्ष ३० जनवरी को, महात्मा गाँधी के पुण्यतिथि पर कई देशों के स्कूलों में अहिंसा और शान्ति का
स्कूली दिन (School Day of Non-violence and Peace) ( DENIP (DENIP) )
मनाया जाता है जिसकी स्थापना १९६४ स्पेन में हुयी थी. वे देश जिनमें दक्षिणी गोलार्ध कैलेंडर इस्तेमाल
राज घाट (Rajghat), नई-दिल्ली (New Delhi), भारत में , उस
स्थान को चिन्हित करता है जहाँ पर १९४८ में गाँधी का दाह-संस्कार हुआ किया जाता हैं, वहां ३० मार्च को इसे मनाया जाता है.
था
आदर्श और आलोचनाएँ
गाँधी के कठोर अहिंसा (ahimsa) का नतीजा शांतिवाद (pacifism) है, जो की राजनैतिक क्षेत्र से
आलोचना का एक मूल आधार है.
विभाजन की संकल्पना
नियम के रूप में गाँधी विभाजन (partition) की अवधारणा के खिलाफ थे क्योंकि यह उनके धार्मिक
एकता के दृष्टिकोण के प्रतिकूल थी.[58] ६ अक्तूबर १९४६ में हरिजन (Harijan) में उन्होंने भारत
(6 October) का विभाजन पाकिस्तान बनाने के लिए, के बारे में लिखा:
(पाकिस्तान की मांग) जैसा की मुस्लीम लीग द्वारा प्रस्तुत किया गया गैर-इस्लामी है
और मैं इसे पापयुक्त कहने से नही हिचकूंगाइस्लाम मानव जाति के भाईचारे और एकता
के लिए खड़ा है, न कि मानव परिवार के एक्य का अवरोध करने के लिए.इस वजह से
जो यह चाहते हैं कि भारत दो युद्ध के समूहों में बदल जाए वे भारत और इस्लाम दोनों
के दुश्मन हैं. वे मुझे टुकडों में काट सकते हैं पर मुझे उस चीज़ के लिए राज़ी नहीं कर
सकते जिसे मैं ग़लत समझता हूँ[...] हमें आस नही छोडनी चाहिए, इसके बावजूद कि महात्मा गांधी (Józef Gosławski, 1932)
ख्याली बाते हो रही हैं कि हमें मुसलमानों को अपने प्रेम के कैद में अबलाम्बित कर
लेना चाहिए.[59]
फिर भी, जैक होमर गाँधी के जिन्ना के साथ पाकिस्तान के विषय को लेकर एक लंबे पत्राचार पर ध्यान देते हुए कहते हैं- "हालाँकि गांधी वैयक्तिक रूप में विभाजन के
खिलाफ थे, उन्होंने सहमति का सुझाव दिया जिसके तहत कांग्रेस और मुस्लिम लीग अस्थायी सरकार के नीचे समझौता करते हुए अपनी आजादी प्राप्त करें जिसके बाद
विभाजन के प्रश्न का फैसला उन जिलों के जनमत द्वारा होगा जहाँ पर मुसलमानों की संख्या ज्यादा है."[60].
भारत के विभाजन के विषय को लेकर यह दोहरी स्थिति रखना, गाँधी ने इससे हिन्दुओं और मुसलमानों दोनों तरफ़ से आलोचना के आयाम खोल दिए. मुहम्मद अली जिन्ना
तथा समकालीन पाकिस्तानियों ने गाँधी को मुस्लमान राजनैतिक हक़ को कम कर आंकने के लिए निंदा की.विनायक दामोदर सावरकार और उनके सहयोगियों ने गाँधी की निंदा
की और आरोप लगाया कि वे राजनैतिक रूप से मुसलमानों को मनाने में लगे हुए हैं तथा हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचार के प्रति वे लापरवाह हैं और पाकिस्तान के निर्माण के
लिए स्वीकृति दे दी है (हालाँकि सार्वजानिक रूप से उन्होंने यह घोषित किया था कि विभाजन से पहले मेरे शरीर को दो हिस्सों में काट दिया जाएगा).[61] यह आज भी
राजनैतिक रूप से विवादस्पद है, जैसे कि पाकिस्तानी-अमरीकी इतिहासकार आयेशा जलाल (Ayesha Jalal) यह तर्क देती हैं कि विभाजन की वजह गाँधी और कांग्रेस
मुस्लीम लीग के साथ सत्ता बांटने में इक्छुक नही थे, दुसरे मसलन हिंदू राष्ट्रवादी (Hindu nationalist) राजनेता प्रवीण तोगडिया (Pravin Togadia) भी गाँधी
के इस विषय को लेकर नेतृत्व की आलोचना करते हैं, यह भी इंगित करते हैं की उनके हिस्से की अत्यधिक कमजोरी की वजह से भारत का विभाजन हुआ.
गाँधी ने १९३० के अंत-अंत में विभाजन (partition) को लेकर इस्राइल के निर्माण के लिए फिलिस्तीन के विभाजन के प्रति भी अपनी अरुचि जाहिर की थी
(partition of Palestine to create Israel). २६ अक्तूबर १९३८ (26 October) को उन्होंने हरिजन में कहा था:
मुझे कई पत्र प्राप्त हुए जिनमे मुझसे पूछा गया कि मैं घोषित करुँ कि जर्मनी में यहूदियों के उत्पीडन और अरब-यहूदियों के बारे में क्या विचार रखता हूँ
(persecution of the Jews in Germany). ऐसा नही कि इस कठिन प्रश्न पर अपने विचार मैं बिना झिझक के दे पाउँगा. मेरी सहानुभूति
यहुदिओं के साथ है.मैं उनसे दक्षिण अफ्रीका से ही नजदीकी रूप से परिचित हूँ कुछ तो जीवन भर के लिए मेरे साथी बन गए हैं.इन मित्रों के द्वारा ही मुझे
लंबे समय से हो रहे उत्पीडन के बारे में जानकारी मिली. वे ईसाई धर्म के अछूत रहे हैं पर मेरी सहानुभूति मुझे न्याय की आवश्यकता से विवेकशून्य नही
15
करती यहूदियों के लिए एक राष्ट्र की दुहाई मुझे ज्यादा आकर्षित नही करती. जिसकी मंजूरी बाईबल में दी गयी और जिस जिद से वे अपनी वापसी में
फिलिस्तीन को चाहने लगे हैं. क्यों नही वे, पृथ्वी के दुसरे लोगों से प्रेम करते हैं, उस देश को अपना घर बनाते जहाँ पर उनका जन्म हुआ और जहाँ पर
उन्होंने जीविकोपार्जन किया. फिलिस्तीन अरबों का हैं, ठीक उसी तरह जिस तरह इनलैंड अंग्रेजों का और फ्रांस फ्रंसिसिओं का. यहूदियों को अरबों पर
अधिरोपित करना अनुचित और अमानवीय है जो कुछ भी आज फिलिस्तीन में हो रहा हैं उसे किसी भी आचार संहिता से सही साबित नही किया जा
सकता.[62][63]
राज्य विरोधी
गाँधी राज विरोधी (anti statist) उस रूप में थे जहाँ उनका दृष्टिकोण उस भारत का हैं जो कि किसी सरकार के अधीन न हो.[85] उनका विचार था कि एक देश में सच्चे
स्वशासन (self rule) का अर्थ है कि प्रत्यक व्यक्ति ख़ुद पर शासन करता हैं तथा कोई ऐसा राज्य नही जो लोगों पर कानून लागु कर सके.[86][87] कुछ मौकों पर
उन्होंने स्वयं को एक दार्शनिक अराजकतावादी कहा है (philosophical anarchist).[88] उनके अर्थ में एक स्वतंत्र भारत का अस्तित्व उन हजारों छोटे छोटे
आत्मनिर्भर समुदायों से है (संभवतः टालस्टोय का विचार) जो बिना दूसरो के अड़चन बने ख़ुद पर राज्य करते हैं.इसका यह मतलब नही था कि ब्रिटिशों द्वारा स्थापित
प्रशाशनिक ढांचे को भारतियों को स्थानांतरित कर देना जिसके लिए उन्होंने कहा कि हिंदुस्तान को इंगलिस्तान बनाना है.[89] ब्रिटिश ढंग के संसदीय तंत्र पर कोई विश्वास
न होने के कारण वे भारत में आजादी के बाद कांग्रेस पार्टी को भंग कर प्रत्यक्ष लोकतंत्र (direct democracy) प्रणाली को [90] स्थापित करना चाहते थे.[91]
गांधी जी की आलोचना
गांधी के सिद्धान्तों और करनी को लेकर प्रयः उनकी आलोचना भी की जाती है। उनकी आलोचना के मुख्य बिन्दु हैं-
• दोनो विश्वयुद्धों में अंग्रेजों का साथ देना
• खिलाफत आन्दोलन जैसे साम्प्रदायिक आन्दोलन को राष्ट्रीय आन्दोलन बनाना
• सशस्त्र क्रान्तिकारियों के अंग्रेजों के विरुद्ध हिंसात्मक कार्यों की निन्दा करना
• गांधी-इरविन समझौता - जिससे भारतीय क्रन्तिकारी आन्दोलन को बहुत धक्का लगा।
• भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर सुभाष चन्द्र बोस के चुनाव पर नाखुश होना
• चौराचौरी कांड के बाद असहयोग आन्दोलन को सहसा रोक देना
• भारत की स्वतंत्रता के बाद नेहरू को प्रधानमंत्री का दावेदार बनाना
• स्वतंत्रता के बाद पाकिस्तान को ५५ करोड़ रूपये देने की जिद पर अनशन करना
17
इसे भी देखें
• महात्मा गाँधी के कलात्मक वर्णन की सूची
• अथ श्री गान्धीजी कथा- हिन्दी विकीस्रोत पर [92]
नोट्स
सन्दर्भ
[1] गांधी नामक दस्तावेज से अवतरित महात्मा गांधी की संग्रहित कृतियां वॉल्यूम ५ दस्तावेज # दैवत्य के मुखैटे के पीछे पेज १०६
[2] http:/ / www. gandhism. net/ sergeantmajorgandhi. phpसार्जेंट मेजर गांधी
[3] महात्मा गांधी की संग्रहित रचनाएं वॉल्यूम ५ पेज ४१०
[4] आरगांधी , पटेल : एक जीवन, पी.८२ .
[5] आरगांधी , पटेल : एक जीवन, पी.८९ .
[6] आरगांधी , पटेल : एक जीवन, पी.१०५ .
[7] आरगांधी , पटेल : एक जीवन, पी.१३१ .
[8] आरगांधी , पटेल : एक जीवन, पी.१७२ .
[9] आरगांधी , पटेल : एक जीवन, पीपी .२३० -३२ .
[10] आरगांधी , पटेल : एक जीवन, पी.२४६ .
[11] आरगांधी , पटेल : एक जीवन, पीपी .२७७ - ८१ .
[12] आर०गांधी , पटेल : एक जीवन, पीपी२८३-८६
[13] आर० गांधी , पटेल : एक जीवन, पी.३०९
[14] आरगांधी , पटेल : एक जीवन, पी.३१८ .
[15] आरगांधी , पटेल : एक जीवन, पी.४६२ .
[16] आरगांधी , पटेल : एक जीवन, पीपी .४६४ - ६६ .
[17] आरगांधी , पटेल : एक जीवन, पी.४७२ .
[18] विनय लाल . ' हे राम ' : गांधी के अंतिम शब्दों की राजनीति (http:/ / www. sscnet. ucla. edu/ southasia/ History/ Gandhi/ HeRam_gandhi. html) ह्यूमेन ८ , संख्या. १ (
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[19] "गांधी जी की राख को समुद्र में आराम करने के लिए रखा गया" (http:/ / www. guardian. co. uk/ world/ 2008/ jan/ 16/ india. international) The Guardian (The
Guardian), १६ जनवरी २००८
18
[20] गांधी जी की राख को [[30 जनवरी|३० जनवरी (http:/ / www. highbeam. com/ doc/ 1G1-67892813. html)] १९९७ को ]सिनसिनाती चौकी (The Cincinnati Post)पर बिखेर
दिया गया था। कारण किसी को पता नहीँ था राख के एक भाग को नई दिल्ली (New Delhi)के दक्षिणपूर्व में एक सुरक्षित डिपाजिट बॉक्स (safe deposit box)में कटक , के निकट समुद्र तट पर
रख दिया गया था। तुषार गाँधी (Tushar Gandhi) ने १९५५ में अखबारों द्वारा समाचार प्रकाशित किए जाने पर कि गांधी जी की राख बैंक में रखी हुई है, को अपनी हिरासत में लेने के लिए अदालत का
दरवाजा खटखटाया।
[23] भारतन कुमारप्पा, संपादक फॉर पसिफिस्ट्स एम;के; द्वारा लिखित।गांधी , नवजीवन प्रकाशन हाउस, अहमदाबाद , भारत , १९४९ .
[25] बोदुरेट पी२८ .
[26] बोंदुरेट पी१३९ .
[28] गोखले के धर्मादा (http:/ / en. wikisource. org/ wiki/ The_Story_of_My_Experiments_with_Truth/ Part_IV/ Gokhale's_Charity), सत्य के साथ मेरे प्रयोग,
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[29] रोलेट बिल्स और मेरी दुविधा (http:/ / en. wikisource. org/ wiki/ The_Story_of_My_Experiments_with_Truth/ Part_V/
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[30] टाइम मैगजीन पीपुल ऑफ़ द सेंचुरी (http:/ / www. time. com/ time/ time100/ poc/ magazine/ mohandas_gandhi12b. html)
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[33] द स्टोरी ऑफ़ माय एक्सपेरिमेंट्स विथ ट्रुथ — एक आत्मकथा (http:/ / www. mahatma. org. in/ books/ showbook. jsp?id=195& link=bg& book=bg0001&
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[39] http:/ / www. bhaskar. com/ article/ NAT-special-on-gandhi-4163034-PHO. html?seq=9& RHS-badi_khabare=
[40] http:/ / www. bhaskar. com/ article/ NAT-special-on-gandhi-4163034-PHO. html?seq=9& RHS-badi_khabare=
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[59] The एसेंसियल गाँधी में पुनः प्रकाशित हुवा : उनके जीवन, कार्यों, और विचारों का संग्रह (http:/ / www. amazon. com/ gp/ reader/ 0394714660/ ). लूईस फिशर, २००२(पुनर्मुद्रित
संस्करण) पी.३०८-९
[60] जैक, होमर . गाँधी के पाठक (http:/ / books. google. com/ books?id=XpWO-GoOhVEC& pg=PR13& lpg=PR11& dq=The+ Gandhi+ Reader:+ A+
Sourcebook+ of+ His+ Life+ and+ Writings& sig=mu7B1to2ve7qqIYNmXQMd5jifsY),p ४१८
[61] बी.बी.सी समाचार पर "महात्मा गाँधी का जीवन और मृत्य" (http:/ / news. bbc. co. uk/ 2/ hi/ 50664. stm), देखिये अनुभाग "स्वतंत्रता और विभाजन. "
[62] द एसेंसियल गाँधी में पुनः प्रकाशित : उनके जीवन, कार्यों, और विचारों का संग्रह (http:/ / www. amazon. com/ gp/ reader/ 0394714660/ ). लुईस फिशर,२००२ (पुनर्मुद्रित
संस्करण)२८६-२८८
19
[63] एस.ऐ.ऍन.ई.टी-एमजी संग्रह-सितम्बर २००१ (#३०३) (http:/ / lists. ifas. ufl. edu/ cgi-bin/ wa. exe?A2=ind0109& L=sanet-mg& P=31587. )
[64] भगत सिंह पर महात्मा गाँधी (http:/ / www. kamat. com/ mmgandhi/ onbhagatsingh. htm)
[65] गाँधी और ऍन.बी.एस.पी ;- 'महात्मा' या दोषयुक्त प्रतिभावान? (http:/ / india_resource. tripod. com/ gandhi. html).
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[67] जैक, होमर. गाँधी के पाठक (http:/ / books. google. com/ books?id=XpWO-GoOhVEC& pg=PR13& lpg=PR11& dq=The+ Gandhi+ Reader:+ A+
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[68] जैक होमर. गाँधी के पाठक ,पी ३२२
[69] जैक होमर .गाँधी के पाठक , पी पी ३२३-४
[70] जैक होमर , गाँधी के पाठक , पी पी ३२४-६
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[78] रोरी कैरोल, "गाँधी को नस्लवादी कहा गया जैसे ही जोहान्सबर्ग में उन्हें स्वतंत्रता सेनानी का सम्मान दिया गया" (http:/ / www. guardian. co. uk/ world/ 2003/ oct/ 17/
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[79] एक राजनैतिक सुधारक का सृजन: दक्षिण अफ्रीका में गाँधी, १८९३-१९१४ (https:/ / www. vedamsbooks. com/ no49854. htm)
[80] द मेकिंग ऑफ़ अ पोलिटिकल रिफोर्मार : गाँधी इन साऊथ अफ्रीका,१८९३-१९१४. सुरेन्द्र भाना और गुलाम वाहेद,२००५.
[81] द मेकिंग ऑफ़ अ पोलिटिकल रिफोर्मार : गाँधी इन साऊथ अफ्रीका, १८९३-१९१४. सुरेन्द्र भाना और गुलाम वाहेद, २००५:पृष्ठ ४५.
[82] द मेकिंग ऑफ़ अ पोलिटिकल रिफोर्मार : गाँधी इन साऊथ अफ्रीका, १८९३ - १९१४. सुरेन्द्र भाना और गुलाम वाहेद, पृ १४९.
[83] द मेकिंग ऑफ़ अ पोलिटिकल रिफोर्मार : गाँधी इन साऊथ अफ्रीका, १८९३-१९१४. सुरेन्द्र भाना और गुलाम वाहेद, २००५: पीपी. १५०-१.
[84] एक राजनैतिक सुधारक का निर्माण: दक्षिण अफ्रीका में गाँधी, १८९३-१९१४. सुरेन्द्र भाना और गुलाम वाहेद, २००५: पृ. १५१.
[85] जेसुदासन, ईग्नेसिअस आजादी के लिए गाँधी का धर्मग्रन्थ गुजरात साहित्य प्रकाशन: आनंद इंडिया , १९८७, पीपी २३६-२३७
[86] मूर्ती, श्रीनिवास महात्मा गाँधी और लियो टालस्टाय के पत्र लांग बीच प्रकाशन : लांग बीच, १९८७ पीपी १३
[87] मूर्ति , श्रीनिवास .महात्मा गाँधी और लियो टालस्टाय के पत्र लांग बीच प्रकाशन : लांग बीच, १९८७, पीपी १८९.
[88] गाँधी पर और उनके द्वारा आलेखों को (http:/ / www. mkgandhi. org/ articles/ snow. htm), ७ जून, २००८ को पुनः समीक्षा किया गया
[89] छठा अध्याय, हिंद स्वराज, मोहनदास करमचंद द्वारा .गांधी
[90] भट्टाचार्य , बुधदेवगाँधी के राजनैतिक दर्शन का विकास कलकत्ता पुस्तक घर: कलकत्ता, १९६९, पीपी ४७९
[91] छठा अध्याय, हिंद स्वराज, मोहनदास करमचंद द्वारागाँधी
[92] http:/ / wikisource. org/ wiki/
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[93] http:/ / www. forget-me. net/ en/ Gandhi/ satyagraha. pdf
बाहरी कड़ियाँ
• (http://nazehindsubhash.blogspot.com/2010/12/54.html) गाँधी-नेहरू और सुभाष
• गांधी की अब चल रही है आंधी (http://man-dil-heart.blogspot.com/2008/09/blog-post_06.html) (हिन्दी ब्लॉग, 'कुछ नया करता
चल')
• हिन्दी विकीस्रोत पर महात्मा गाँधी की आत्मकथा (हिन्दी में) (http://wikisource.org/wiki/सत्य_के_प्रयोग_अथवा_आत्मकथा)
• अंग्रेज़ी विकीस्रोत पर महात्मा गाँधी की आत्मकथा (अंग्रेज़ी में)
• गाँधी की प्रासंगिकता ( पुण्यतिथि विशेष) - प्रोफ़ेसर महावीर सरन जैन (http://hindi.webdunia.com/religion/religion/article/0901/
30/1090130017_1.htm)
• गाँधी स्मृति और एनबीएसपी (http://www.gandhismriti.gov.in/indexb.asp) ( भारत सरकार की वेबसाइट)
• महात्मा गाँधी समाचार अनुसन्धान और मीडिया सेवा (http://www.gandhiserve.org/)
• महात्मा गाँधी चिरस्थायी जीवन के समर्थक (http://www.boloji.com/people/04004.htm)
• डिजाइनर पाठ्यक्रम के प्रथम पुरुष गांधी (http://www.bhaskar.com/2009/01/16/0901161054_management_guru_gandhi.
html)
• मणि भवन गाँधी संग्रहालय गाँधी संग्रहालय एवं पुस्तकालय (http://www.gandhi-manibhavan.org/)
• गाँधी पुस्तक केन्द्र (http://www.mkgandhi.org/)
• महात्मा गाँधी द्वारा किया गया कार्य
• गाँधी हाल और प्रतिमा (http://www.soka.edu/page.cfm?p=204) सोका विश्वविद्यालय अमेरिका में (Soka University of America)
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लाइसेंस
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//creativecommons.org/licenses/by-sa/3.0/