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स्तुति-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी

सुतमर ं आतद एक करिारू । जेतह तजउ दीन्ह कीन्ह संसारू ॥ कीन्हे तस प्रथम जोति परकासू । कीन्हे तस िेतह तपरीि कैिासू ॥
कीन्हे तस अतिति, पवि, जि खेहा । कीन्हे तस बहुिै रं ि उरे हा ॥ कीन्हे तस धरिी, सरि, पिारू । कीन्हे तस बरि बरि औिारू ॥
कीन्हे तस तदि, तदिअर, सतस, रािी । कीन्हे तस िखि, िराइि-पााँिी ॥ कीन्हे तस धू प, सीउ औ छााँहा । कीन्हे तस मे घ, बीजु िेतहं मााँ हा ॥
कीन्हे तस सप्त मही बरम्हं डा । कीन्हे तस भुवि च दहो खंडा ॥ कीन्ह सबै अस जाकर दू सर छाज ि कातह ।
पतहिै िाकर िावाँ िै कथा कर ं औिातह ॥1॥

कीन्हे तस साि समु न्द अपारा । कीन्हे तस मे रु, खखखखंद पहारा ॥ कीन्हे तस िदी िार, औ झरिा । कीन्हे तस मिर मच्छ बहु बरिा ॥
कीन्हे तस सीप, मोिी जेतह भरे । कीन्हे तस बहुिै िि तिरमरे ॥ कीन्हे तस बिखाँढ औ जरर मू री । कीन्हे तस िररवर िार खजूरी ॥
कीन्हे तस साउज आरि रहईं । कीन्हे तस पं खख उडतहं जहाँ चहईं ॥ कीन्हे तस बरि सेि ओ स्यामा । कीन्हे तस भूख िींद तबसरामा ॥
कीन्हे तस पाि फूि बहु भ िू । कीन्हे तस बहु ओषद, बहु रोिू ॥ तितमख ि िाि करि ओतह,सबै कीन्ह पि एक ।
ििि अं िररख राखा बाज खंभ तबिु टे क ॥2॥

कीन्हे तस अिर कसिुरी बेिा । कीन्हे तस भीमसेि औ चीिा ॥ कीन्हे तस िाि, जो मु ख तवष बसा । कीन्हे तस मं त्र, हरै जेतह डसा ॥
कीन्हे तस अमृ ि , तजयै जो पाए । कीन्हे तस तबक्ख, मीचु जेतह खाए ॥ कीन्हे तस ऊख मीठ-रस-भरी । कीन्हे तस करू-बेि बहु फरी ॥
कीन्हे तस मधु िावै िै माखी । कीन्हे तस भ रं , पंखख औ पााँखी ॥ कीन्हे तस िोबा इं दुर चााँटी । कीन्हे तस बहुि रहतहं खति माटी ॥
कीन्हे तस राकस भूि परे िा । कीन्हे तस भोकस दे व दएिा ॥ कीन्हे तस सहस अठारह बरि बरि उपरातज ।
भुिुति दु हेतस पुति सबि कहाँ सकि साजिा सातज ॥3॥

कीन्हे तस मािु ष, तदहे तस बडाई । कीन्हे तस अन्न, भुिुति िेतहं पाई ॥ कीन्हे तस राजा भूाँजतहं राजू । कीन्हे तस हखस्त घोर िेतह साजू ॥
कीन्हे तस दरब िरब जेतह होई । कीन्हे तस िोभ, अघाइ ि कोई ॥ कीन्हे तस तजयि , सदा सब चाहा । कीन्हे तस मीचु , ि कोई रहा ॥
कीन्हे तस सु ख औ कोतट अिं दू । कीन्हे तस दु ख तचंिा औ धं दू ॥ कीन्हे तस कोइ तभखारर, कोइ धिी । कीन्हे तस साँपति तबपति पुति घिी ॥

कीन्हे तस कोई तिभरोसी, कीन्हे तस कोइ बररयार । छारतहं िें सब कीन्हे तस, पुति कीन्हे तस सब छार ॥4॥

धिपति उहै जेतहक संसारू । सबै दे इ तिति, घट ि भाँडारू ॥ जावि जिि हखस्त औ चााँटा । सब कहाँ भुिुति राति तदि बााँटा ॥
िाकर दीतठ जो सब उपराहीं । तमत्र सत्रु कोइ तबसरै िाहीं ॥ पखख पिंि ि तबसरे कोई । परिट िुपुि जहााँ िति होई ॥
भोि भुिुति बहु भााँति उपाई । सबै खवाई, आप ितहं खाई ॥ िाकर उहै जो खािा तपयिा । सब कहाँ दे इ भुिुति ओ तजयिा ॥
सबै आस-हर िाकर आसा । वह ि काहु के आस तिरासा ॥ जुि जुि दे ि घटा ितहं , उभै हाथ अस कीन्ह ।
और जो दीन्ह जिि महाँ सो सब िाकर दीन्ह ॥5॥

आतद एक बरि ं सोइ राजा । आतद ि अं ि राज जेतह छाजा ॥ सदा सरबदा राज करे ई । औ जेतह चहै राज िेतह दे ई ॥
छत्रतहं अछि, तिछत्रतहं छावा । दू सर िातहं जो सरवरर पावा ॥ परबि ढाह दे ख सब िोिू । चााँटतह करै हखस्त-सरर-जोिू ॥
बज्ांह तििकतहं मारर उडाई । तिितह बज् करर दे ई बडाई ॥ िाकर कीन्ह ि जािै कोई । करै सोइ जो तचत्त ि होई ॥
काहू भोि भुिुति सुख सारा । काहू बहुि भूख दु ख मारा ॥ सबै िाखस्त वह अहतथर, ऐस साज जे तह केर ।
एक साजे औ भााँजै , चहै साँवारै फेर ॥6॥

अिख अरूप अबरि सो किाा । वह सब सों, सब ओतह सों बिाा ॥ परिट िुपुि सो सरबतबआपी । धरमी चीन्ह, ि चीन्है पापी ॥
िा ओतह पूि ि तपिा ि मािा । िा ओतह कुटु ब ि कोई साँि िािा ॥ जिा ि काहु, ि कोइ ओतह जिा । जहाँ िति सब िाकर तसरजिा ॥
वै सब कीन्ह जहााँ िति कोई । वह ितहं कीन्ह काहु कर होई ॥ हुि पतहिे अरु अब है सोई । पुति सो रहै रहै ितहं कोई ॥
और जो होइ सो बाउर अं धा । तदि दु इ चारर मरै करर धंधा ॥ जो चाहा सो कीन्हे तस, करै जो चाहै कीन्ह ।
बरजिहार ि कोई, सबै चातह तजउ दीन्ह ॥7॥

एतह तवतध चीन्हहु करहु तियािू । जस पुराि महाँ तिखा बखािू ॥ जीउ िातहं , पै तजयै िुसाईं । कर िाहीं, पै करै सबाईं ॥
जीभ िातहं , पै सब तकछु बोिा । िि िाहीं, सब ठाहर डोिा ॥ स्रवि िातहं , पै सक तकछु सुिा । तहया िातहं पै सब तकछु िुिा ॥
ियि िातहं , पै सब तकछु दे खा । क ि भााँति अस जाइ तबसेखा ॥ है िाहीं कोइ िाकर रूपा । िा ओतह सि कोइ आतह अिू पा ॥
िा ओतह ठाउाँ , ि ओतह तबिु ठाऊाँ । रूप रे ख तबिु तिरमि िाऊ ॥ िा वह तमिा ि बेहरा, ऐस रहा भररपूरर ।
दीतठवंि कहाँ िीयरे , अं ध मू रुखतहं दू रर ॥8॥

और जो दीन्हे तस रिि अमोिा । िाकर मरम ि जािै भोिा ॥ दीन्हे तस रसिा और रस भोिू । दीन्हे तस दसि जो तबहाँ सै जोिू ॥
दीन्हे तस जि दे खि कहाँ िै िा । दीन्हे तस स्रवि सुिै कहाँ बैिा ॥ दीन्हे तस कंठ बोि जेतह माहााँ । दीन्हे तस कर-पल्ल , बर बाहााँ ॥
दीन्हे तस चरि अिू प चिाहीं । सो जािइ जेतह दीन्हे तस िाहीं ॥ जोबि मरम जाि पै बूढा । तमिा ि िरुिापा जि ढूाँढााँ ॥
दु ख कर मरम ि जािै राजा । दु खी जाि जा पर दु ख बाजा ॥ काया-मरम जाि पै रोिी, भोिी रहै तितचंि ।
सब कर मरम िोसाईं (जाि) जो घट घट रहै तिं ि ॥9॥

अति अपार करिा कर करिा । बरति ि कोई पावै बरिा ॥ साि सरि ज कािद करई । धरिी समु द दु हुाँ मतस भरई ॥
जावि जि साखा बिढाखा । जावि केस रोंव पाँखख -पाखा ॥ जावि खेह रे ह दु तियाई । मे घबूाँद औ ििि िराई ॥
सब तिखिी कै तिखु संसारा । तिखख ि जाइ िति-समु द अपारा ॥ ऐस कीन्ह सब िुि परिटा । अबहुाँ समु द महाँ बूाँद ि घटा ॥
ऐस जाति मि िरब ि होई । िरब करे मि बाउर सोई ॥ बड िुिवंि िोसाईं, चहै साँवारै बेि ।
औ अस िुिी साँवारे , जो िुि करै अिे ि ॥10॥

कीन्हे तस पुरुष एक तिरमरा । िाम मु हम्मद पूि -करा ॥ प्रथम जोति तबतध िाकर साजी । औ िेतह प्रीति तसतहट उपराजी ॥
दीपक िे तस जिि कहाँ दीन्हा । भा तिरमि जि, मारि चीन्हा ॥ ज ि होि अस पुरुष उजारा । सूतझ ि परि पंथ अाँ तधयारा ॥
दु सरे ढााँवाँ दै व वै तिखे । भए धरमी जे पाढि तसखे ॥ जेतह ितहं िीन्ह जिम भरर िाऊाँ । िा कहाँ कीन्ह िरक महाँ ठाउाँ ॥
जिि बसीठ दई ओतहं कीन्हा । दु इ जि िरा िावाँ जेतह िीन्हा ॥ िुि अविुि तबतध पूछब, होइतहं िे ख औ जोख ।
वह तबिउब आिे होइ, करब जिि कर मोख ॥11॥

चारर मीि जो मु हमद ठाऊाँ । तजन्हतहं दीन्ह जि तिरमि िाऊाँ ॥ अबाबकर तसद्दीक सयािे । पतहिे तसतदक दीि वइ आिे ॥
पुति सो उमर खखिाब सुहाए । भा जि अदि दीि जो आए ॥ पुति उसमाि पंतडि बड िुिी । तिखा पुराि जो आयि सुिी ॥
च थे अिी तसंह बररयारू । स हं ाँ ि कोऊ रहा जुझारू ॥ चाररउ एक मिै, एक बािा । एक पंथ औ एक साँधािा ॥
बचि एक जो सुिा वइ सााँचा । भा परवाि दु हुाँ जि बााँचा ॥ जो पुराि तबतध पठवा सोई पढि िरं थ ।
और जो भूिे आवि सो सुति िािे पंथ ॥12॥

सेरसातह दे हिी-सुििाि । चाररउ खंड िपै जस भािू ॥ ओही छाज छाि औ पाटा । सब राजै भु इाँ धरा तििाटा ॥
जाति सूर औ खााँडे सूरा । और बुतधवंि सबै िुि पूरा ॥ सूर िवाए िवखाँड वई । सािउ दीप दु िी सब िई ॥
िह िति राज खडि करर िीन्हा । इसकंदर जुिकरि जो कीन्हा ॥ हाथ सुिेमााँ केरर अाँ िूठी । जि कहाँ दाि दीन्ह भरर मू ठी ॥
औ अति िरू भूतमपति भारी । टे क भूतम सब तसतहट साँभारी ॥ दीन्ह असीस मु हम्मद, करहु जुितह जुि राज ।
बादसाह िुम जिि के जि िुम्हार मु हिाज ॥13॥

बरि ं सूर भूतमपति राजा । भूतम ि भार सहै जेतह साजा ॥ हय िय सेि चिै जि पूरी । परबि टू तट उडतहं होइ धू री ॥
रे िु रै ति होइ रतबतहं िरासा । मािु ख पंखख िे तहं तफरर बासा ॥ भुइाँ उतड अं िररक्ख मृ िमं डा । खंड खंड धरिी बरम्हं डा ॥
डोिै ििि, इं द्र डरर कााँपा । बासुतक जाइ पिारतह चााँ पा ॥ मे रु धसमसै, समु द सुखाई । बि खाँड टू तट खेह तमि जाई ॥
अतितितहं कहाँ पािी िे इ बााँ टा । पतछितहं कहाँ ितहं कााँद ं आटा ॥ जो िढ िएउ ि काहुतह चिि होइ सो चूर ।
जब वह चढै भूतमपति सेर सातह जि सूर ॥14॥

अदि कह ं पुहुमी जस होई । चााँटा चिि ि दु खवै कोई ॥


ि सेरवााँ जो आतदि कहा । सातह अदि-सरर सोउ ि अहा ॥
अदि जो कीन्ह उमर कै िाई । भइ अहा सिरी दु तियाई ॥
परी िाथ कोइ छु वै ि पारा । मारि मािु ष सोि उछारा ॥
िऊ तसंह रें ितह एक बाटा । दू ि पाति तपयतहं एक घाटा ॥
िीर खीर छािै दरबारा । दू ध पाति सब करै तििारा ॥
धरम तियाव चिै ; सि भाखा । दू बर बिी एक सम राखा ॥

सब पृथवी सीसतहं िई जोरर जोरर कै हाथ ।


िंि-जमु ि ज िति जि ि िति अम्मर िाथ ॥15॥

पुति रूपवंि बखाि ं काहा । जावि जिि सबै मु ख चाहा ॥


सतस च दतस जो दई साँवारा । िाहू चातह रूप उाँ तजयारा ॥
पाप जाइ जो दरसि दीसा । जि जुहार कै दे ि असीसा ॥
जैस भािु जि ऊपर िपा । सबै रूप ओतह आिे छपा ॥
अस भा सूर पुरुष तिरमरा । सूर चातह दस आिर करा ॥
सह ं दीतठ कै हे रर ि जाई । जेतह दे खा सो रहा तसर िाई ॥
रूप सवाई तदि तदि चढा ।तबतध सुरूप जि ऊपर िढा ॥

रूपवंि मति माथे, चंद्र घातट वह बातढ ।


मे तदति दरस िोभािी असिुति तबिवै ठातढ ॥16॥

पुति दािार दई जि कीन्हा । अस जि दाि ि काहू दीन्हा ॥


बति तवक्रम दािी बड कहे । हातिम करि तियािी अहे ॥
सेरसातह सरर पूज ि कोऊ । समु द सुमेर भाँडारी दोऊ ॥
दाि डााँक बाजै दरबारा । कीरति िई समुं दर पारा ॥
कंचि परतस सूर जि भयऊ । दाररद भाति तदसंिर ियऊ ॥
जो कोइ जाइ एक बेर मााँिा । जिम ि भा पुति भूखा िािा ॥
दस असमेध जिि जेइ कीन्हा । दाि-पुन्य-सरर स ह ं ि दीन्हा ॥

ऐस दाति जि उपजा सेरसातह सु ििाि ।


िा अस भयउ ि होइतह, िा कोइ दे इ अस दाि ॥17॥

सैयद असरफ पीर तपयारा । जेतह मोंतह पंथ दीन्ह उाँ तजयारा ॥
िे सा तहयें प्रेम कर दीया । उठी जोति भा तिरमि हीया ॥
मारि हुि अाँ तधयार जो सूझा । भा अाँ जोर, सब जािा बूझा ॥
खार समु द्र पाप मोर मे िा । बोतहि -धरम िीन्ह कै चेिा ॥
उन्ह मोर कर बूडि कै िहा । पायों िीर घाट जो अहा ॥
जाकहाँ ऐस होइ कंधारा । िुरि बेति सो पावै पारा ॥
दस्तिीर िाढे कै साथी । बह अविाह, दीन्ह िेतह हाथी ॥

जहााँिीर वै तचस्ती तिहकिं क जस चााँद ।


वै मखदू म जिि के, ह ं ओतह घर कै बााँद ॥18॥

ओतह घर रिि एक तिरमरा । हाजी शेख सबै िुि भरा ॥


िेतह घर दु इ दीपक उतजयारे । पंथ दे इ कहाँ दै व साँवारे ॥
सेख मु हम्मद पून्यो-करा । सेख कमाि जिि तिरमरा ॥
दु औ अचि धु व डोितह िाहीं । मे रु खखखखद तिन्हहुाँ उपराहीं ॥
दीन्ह रूप औ जोति िोसाईं । कीन्ह खंभ दु इ जि के िाईं ॥
दु हुाँ खंभ टे के सब महीं । दु हुाँ के भार तसतहट तथर रही ॥
जेतह दरसे औ परसे पाया । पाप हरा, तिरमि भइ काया ॥

मु हमद िेइ तितचंि पथ जेतह सि मु रतसद पीर ।


जेतहके िाव औ खेवक बेति िाति सो िीर ॥19॥

िुरु मोहदी खेवक मै सेवा । चिै उिाइि जेतहं कर खेवा ॥


अिुवा भयउ सेख बुरहािू । पंथ िाइ मोतह दीन्ह तियािू ॥
अहिदाद भि िेतह कर िुरू । दीि दु िी रोसि सुरखुरू ॥
सैयद मु हमद कै वै चेिा । तसद्द-पुरुष-संिम जेतह खेिा ॥
दातियाि िुरु पंथ िखाए । हजरि ख्वाज खखतजर िेतह पाए ॥
भए प्रसन्न ओतह हजरि ख्वाजे । तिये मे रइ जहाँ सैयद राजे ॥
ओतह सेवि मैं पाई करिी । उघरी जीभ, प्रेम कतव बरिी ॥

वै सुिुरू, ह ं चेिा , तिि तबिव ं भा चेर ।


उन्ह हुि दे खै पायउाँ दरस िोसाईं केर ॥20॥

एक ियि कतब मु हमद िुिी । सोइ तबमोहा जेतह कतब सुिी ॥


चााँद जैस जि तवतध औिारा । दीन्ह किं क, कीन्ह उतजयारा ॥
जि सूझा एकै ियिाहााँ । उआ सूक जस िखिन्ह माहााँ ॥
ज ितह अं बतहं डाभ ि होई । ि ितह सुिाँध बसाइ ि सोई ॥
कीन्ह समु द्र पाति जो खारा । ि अति भयउ असूझ अपारा ॥
ज सुमेरु तिरसूि तबिासा । भा कंचि-तिरर, िाि अकासा ॥
ज ितह घरी किं क ि परा । कााँच होइ ितहं कंचि-करा ॥

एक ियि जस दरपि औ तिरमि िेतह भाउ ।


सब रूपवंिइ पाउाँ ितह मु ख जोहतहं कै चाउ ॥21॥

चारर मीि कतब मु हमद पाए । जोरर तमिाई तसर पहुाँ चाए ॥
युसूफ मतिक पाँतडि बहु ज्ञािी । पतहिे भेद-बाि वै जािी ॥
पुति सिार कातदम मतिमाहााँ । खााँडे-दाि उभै तिति बाहााँ ॥
तमयााँ सि िे तसंघ बररयारू । बीर खेिरि खडि जुझारू ॥
सेख बडे , बड तसद्ध बखािा । तकए आदे स तसद्ध बड मािा ।
चाररउ चिुरदसा िुि पढे । औ संजोि िोसाईं िढे ॥
तबररछ होइ ज चंदि पासा । चं दि होइ बेतध िेतह बासा ॥

मु हमद चाररउ मीि तमति भए जो एकै तचत्त ।


एतह जि साथ जो तिबहा, ओतह जि तबछु रि तकत्त ?॥22॥

जायस ििर धरम अस्थािू । िहााँ आइ कतब कीन्ह बखािू ॥


औ तबििी पाँतडिि सि भजा । टू ट साँवारहु, िे रवहु सजा ॥
ह ं पंतडिि केर पछिािा । तकछु कतह चिा िबि दे इ डिा ॥
तहय भंडार िि अहै जो पूजी । खोिी जीभ िारू कै कूाँजी ॥
रिि-पदारथ बोि जो बोिा । सुरस प्रेम मधु भरा अमोिा ॥
जेतह के बोि तबरह कै घाया । कह िेतह भूख कहााँ िेतह माया ?॥
फेरे भेख रहै भा िपा । धू रर-िपेटा मातिक छपा ॥

मु हमद कतब ज तबरह भा िा िि रकि ि मााँसु ।


जेइ मु ख दे खा िे इ हसा, सुति िेतह आयउ आाँ सु ॥23॥

सि िव सै सत्ताइस अहा । कथा अरं भ-बैि कतब कहा ॥


तसंघिदीप पदतमिी रािी । रििसेि तचिउर िढ आिी ॥
अिउद्दीि दे हिी सुििािू । राघ चेिि कीन्ह बखािू ॥
सुिा सातह िढ छें का आई । तहं दू िुरुकन्ह भई िराई ॥
आतद अं ि जस िाथा अहै । तिखख भाखा च पाई कहै ॥
कतव तबयास कविा रस-पूरी । दू रर सो तियर, तियर सो दू री ॥
तियरे दू र, फूि जस कााँटा । दू रर जो तियरे , जस िुड चााँटा ॥

भाँवर आइ बिखाँड सि काँवि कै बास ।


दादु र बास ि पावई भितह जो आछै पास ॥24॥

(1) उरे हा = तचत्रकारी । सीउ = शीि । कीन्हे तस...कैिासू = उसी ज्योति अथााि् पैिंबर मु हम्मद की प्रीति के कारण स्विा की सृति की ।
(कुराि की आयि) कैिास - तबतहश्त, स्विा । इस शब्द का प्रयोि जायसी िे बराबर इसी अथा में तकया है ।
(2)खखखखंद = तकखकंधा । तिरमरे = तिमा ि । साउज = वे जािवर तजिका तशकार तकया जािा है । आरि = आरण्य । बाज = तबिा । जैसे
दीि दु ख दाररद दिै को कृपा बाररतध बाज
(3)बेिा = खस । भीमसेि, चीिा = कमू र के भेद । िीबा = िोमडी । इं दुर=चूहा । चााँटी=चींटी । भ कस=दािव । सहस अठारह=अठारह
हजार प्रकार के जीव (इसिाम के अिु सार)
(4)भूाँजतहं =भोििे हैं । बररयार=बिवाि ।
(5) उपाई=उत्पन्न की । आस हर=तिराश ।
(6) भााँजै=भंजि करिा है , िि करिा है ।
(7) तसरजिा=रचिा ।
(8) बेहरा=अिि (तबहरिा=फटिा)।
(11) पूि करा=पूतिा मा की किा । प्रथम....उपराजी=कुराि में तिखा है तक यह संसार मु हम्मद के तिये रचा िया, मु हम्मद ि होिे िो यह
दु तिया ि होिी । जिि-बसीठ=संसार में ईश्वर का संदेसा िािे वािा , पैिंबर । िे ख जोख=कमों का तहसाब । दु सरे ठााँव....वै तिखे = ईश्वर िे
मु हम्मद को दू सरे स्थाि पर तिखा अथााि् अपिे से दू सरा दरजा तदया । पाढि = पढं ि, मं त्र, आयि । (12) तसतदक = सच्चा । दीि =धमा , मि
। बािा = रीति ,ढं ि । संधाि = खोज, उद्दे श्य, िक्ष्य
(13) छाि = छत्र । पाट = तसंहासि । सूर =शेरशाह सूर जाति का पठाि था । जुिकरि = जुिकरिैि, तसकंदर की एक अरबी उपातध कााँद
= कदा म, कीचड ।
(15) अहा = था । भई अहा = वाह वाह हुई । िाथ = िाक में पहििे की िथ । पारा = सकिा है । तििारा = अिि 2(तिणाय)।
(16)मु ख चाहा = मुाँ ह दे खिा है । आिर =अग्र, बढकर । चातह = अपेक्षाकृि (बढकर) । करा = किा। सतस च दतस=पू तणामा (मु सिमाि प्रथम
चंद्रदशाि अथााि तििीया से तितथ तिििे हैं , इससे पूतणामा को उि की च दहवीं तितथ पडिी है ।)
(17) डााँक = डं का । स ह ं ि दीन्हा = सामिा ि तकया ।
(18) िे सा =जिाया । कंधार = कणाधार, केवट । हाथी दीन्ह = हाथ तदया, बााँह का सहारा तदया । अाँ जोर = उजािा । खखखखंद = तकखकंध
पवाि ।
(19) खेवक = खेिेवािा, मल्लाह ।
(20) खेवा = िाव का बोझ । सु रखुरू = सुखारू, मु ख पर िेज धारण करिे वािे । उिाइि = जल्दी । मे रइ तिये = तमिा तिया । सैयद राजे
= सैयद राजे हातमदशाह । उन्ह हुि = उिके िारा ।
(21) ियिाहााँ = ियि से, आाँ ख से । डाभ = आम के फि के मुाँ ह पर का िीखा चेप ।चोपी ।
(22) मतिमाहााँ = मतिमाि् । उभै = उठिी है । जुझारू = योद्धा । चिुरदसा िुि = च दह तवद्याएाँ ।
(23) तबििी भजा = तबििी की (करिा हूाँ )। टू ट = त्रु तट, भूि । डिा = डु ग्गी बजािे की िकडी । िारु = (क) िािू । (ख) िािा कूाँजी =
कुाँजी । फेरे भेष = वेष बदििे हुए । िपा = िपस्वी ।
(24) आछै = है । जैसे - कह कबीर कछु अतछिो ि जतहया ।
तसंहििीप -वणाि खंड / मतिक मोहम्मद जायसी

तसंघिदीप कथा अब िाव ं । औ सो पदतमिी बरति सुिाव ं ॥


तिरमि दरपि भााँति तबसेखा । ज जेतह रूप सो िैसई दे खा ॥
धति सो दीप जहाँ दीपक-बारी । औ पदतमति जो दई साँवारी ॥
साि दीप बरिै सब िोिू । एक दीप ि ओतह सरर जोिू ॥
तदयादीप ितहं िस उाँ तजयारा । सरिदीप सर होइ ि पारा ॥
जंबूदीप कह ं िस िाहीं । िं कदीप सरर पूज ि छाहीं ॥
दीप िभस्थि आरि परा । दीप महुस्थि मािु स-हरा ॥

सब संसार परथमैं आए साि ं दीप ।


एक दीप ितहं उतत्तम तसंघिदीप समीप ॥1॥

ग्रंध्रबसेि सुिंध िरे सू । सो राजा, वह िाकर दे सू ॥


िं का सुिा जो रावि राजू । िेहु चातह बड िाकर साजू ॥
छप्पि कोतट कटक दि साजा । सबै छत्रपति औ िढ -राजा ॥
सोरह सहस घोड घोडसारा । स्यामकरि अरु बााँक िुखारा ॥
साि सहस हस्ती तसंघिी । जिु कतबिास एरावि बिी ॥
अस्वपतिक-तसरमोर कहावै । िजपिीक आाँ कुस-िज िावै ॥
िरपिीक कहाँ और िररं दू ?। भूपिीक जि दू सर इं दू ॥

ऐस चक्कवै राजा चहूाँ खंड भय होइ ।


सबै आइ तसर िावतहं सरबरर करै ि कोइ ॥2॥

जबतह दीप तियरावा जाई । जिु कतबिास तियर भा आई ॥


घि अमराउ िाि चहुाँ पासा । उठा भूतम हुि िाति अकासा ॥
िररवर सबै मियतिरर िाई । भइ जि छााँह रै ति होइ आई ॥
मिय-समीर सोहावि छाहााँ । जे ठ जाड िािै िेतह माहााँ ॥
ओही छााँ ह रै ति होइ आवै । हररयर सबै अकास दे खावै ॥
पतथक जो पहुाँ चै सतह कै घामू । दु ख तबसरै , सुख होइ तबसरामू ॥
जेइ वह पाई छााँह अिू पा । तफरर ितहं आइ सहै यह धू पा ॥

अस अमराउ सघि घि, बरति ि पार ं अं ि ।


फूिै फरै छव ऋिु , जािहु सदा बसंि ॥3॥

फरै आाँ ब अति सघि सोहाए । औ जस फरे अतधक तसर िाए ॥


कटहर डार पींड सि पाके । बडहर, सो अिू प अति िाके ॥
खखरिी पातक खााँड अस मीठी । जामु ि पातक भाँवर अति डीठी ॥
िररयर फरे फरी फरहरी । फुरै जािु इं द्रासि पुरी ॥
पुति महुआ चुअ अतधक तमठासू । मधु जस मीठ, पुहुप जस बासू ॥
और खजहजा अिबि िाऊाँ । दे खा सब राउि-अमराऊ ॥
िाि सबै जस अमृ ि साखा । रहै िोभाइ सोइ जो चाखा ॥

िवि सुपारी जायफि सब फर फरे अपूर ।


आसपास घि इतमिी औ घि िार खजूर ॥4॥

बसतहं पंखख बोितहं बहु भाखा । करतहं हुिास दे खख कै साखा ॥


भोर होि बोितहं चुहुचूही । बोितहं पााँडुक "एकै िूही"" ॥
सार ं सुआ जो रहचह करही । कुरतहं परे वा औ करबरहीं ॥
"पीव पीव"कर िाि पपीहा । "िुही िुही" कर िडु री जीहा ॥
`कुहू कुहू' करर कोइि राखा । औ तभंिराज बोि बहु भाखा ॥
`दही दही' करर महरर पुकारा । हाररि तबिवै आपि हारा ॥
कुहुकतहं मोर सोहावि िािा । होइ कुराहर बोितह कािा ॥

जावि पंखी जिि के भरर बैठे अमराउाँ ।


आपति आपति भाषा िे तहं दई कर िाउाँ ॥5॥

पैि पैि पर कुआाँ बावरी । साजी बैठक और पााँवरी ॥


और कुंड बहु ठावतहं ठाऊाँ। औ सब िीरथ तिन्ह के िाऊाँ ॥
मठ मं डप चहुाँ पास साँवारे । िपा जपा सब आसि मारे ॥
कोइ सु ऋषीसुर, कोइ सन्यासी । कोई रामजिी तबसवासी ॥
कोई ब्रह्मचार पथ िािे । कोइ सो तदिंबर तबचरतहं िााँिे ॥
कोई सु महे सुर जंिम जिी । कोइ एक परखै दे बी सिी ॥
कोई सुरसिी कोई जोिी । तिरास पथ बैठ तबयोिी ॥

सेवरा, खेवरा, बािपर, तसध, साधक, अवधू ि ।


आसि मारे बैट सब जारर आिमा भूि ॥6॥
मािसरोदक बरि ं काहा । भरा समु द अस अति अविाहा ॥
पाति मोिी अस तिरमि िासू । अमृ ि आति कपूर सुबासू ॥
िं कदीप कै तसिा अिाई । बााँधा सरवर घाट बिाई ॥
खाँड खाँड सीढी भईं िरे री । उिरतहं चढतहं िोि चहुाँ फेरी ॥
फूिा काँवि रहा होइ रािा । सहस सहस पखुररि कर छािा ॥
उिथतहं सीफ , मोति उिराहीं । चुितहं हं स औ केति कराहीं ॥
खति पिार पािी िहाँ काढा । छीरसमु द तिकसा हुि बाढा ॥

ऊपर पाि चहूाँ तदतस अमृ ि-फि सब रूख ।


दे खख रूप सरवर कै िै तपयास औ भूख ॥7॥

पाति भरै आवतहं पतिहारी । रूप सुरूप पदतमिी िारी ॥


पदु मिंध तिन्ह अं ि बसाहीं । भाँवर िाति तिन्ह साँि तफराहीं ॥
िं क-तसंतघिी, साराँ ििै िी । हं सिातमिी कोतकिबैिी ॥
आवतहं झुंड सो पााँतितहं पााँिी । िवि सोहाइ सु भााँ तितहं भााँिी ॥
किक किस मु खचंद तदपाहीं । रहस केति सि आवतहं जाहीं ॥
जा सहुाँ वै हे रैं चख िारी ।बााँक िै ि जिु हितहं कटारी ॥
केस मे घावर तसर िा पाईं । चमकतहं दसि बीजु कै िाईं ॥

माथे किक िािरी आवतहं रूप अिू प ।


जेतह के अस पिहारी सो रािी केतह रूप ॥8॥

िाि ििाव बरति ितहं जाहीं । सूझै वार पार तकछु िाहीं ॥
फूिे कुमु द सेि उतजयारे । मािहुाँ उए ििि महाँ िारे ॥
उिरतहं मे घ चढतह िे इ पािी चमकतहं मच्छ बीजु कै बािी ॥
प रं तह पं ख सुसंितहं संिा । सेि पीि रािे बहु रं िा ॥
चकई चकवा केति कराहीं । तितस के तबछोह, तदितहं तमति जाहीं ॥
कुररतहं सारस करतहं हुिासा । जीवि मरि सो एकतहं पासा ॥
बोितहं सोि ढे क बििे दी । रही अबोि मीि जि-भेदी ॥

िि अमोि िेतह िाितहं तदितहं बरतहं जस दीप ।


जो मरतजया होइ िहाँ सो पावै वह सीप ॥9॥

आस-पास बहु अमृ ि बारी । फरी ं अपूर होइ रखवारी ॥


िारि िीबू सुराँि जंभीरा । औ बदाम बहु भेद अाँ जीरा ॥
िििि िुरज सदाफर फरे । िाराँ ि अति रािे रस भरे ॥
तकसतमस सेव फरे ि पािा । दाररउाँ दाख दे खख मि रािा ॥
िाति सुहाई हरफारयोरी । उिै रही केरा कै घ री ॥
फरे िूि कमरख औ न्योजी । रायकर द ं ा बेर तचर जं ी ॥
संििरा व छु हारा दीठे । और खजहजा खाटे मीठे ॥

पाति दे तहं खाँडवािी कुवतहं खााँड बहु मे ति ।


िािी घरी ग्हट कै सीचतहं अमृ िबेि ॥10॥

पुति फुिवारर िाति चहुाँ पासा । तबररछ बेतध चंदि भइ बासा ॥


बहुि फूि फूिीं घिबेिी । केवडा चंपा कुंद चमे िी ॥
सुराँि िुिाि कदम और कूजा । सुिाँध बक री िंध्रब पूजा ॥
जाही जू ही बिुचि िावा । पुहुप सुदरसि िाि सुहावा ॥
िािेसर सदबरि िे वारी । औ तसं िारहार फुिवारी ॥
सोिजरद फूिीं सेविी । रूपमं जरी और माििी ॥
म ितसरी बेइति औ करिा । सबै फूि फूिे बहुबरिा ॥

िेतहं तसर फूि चढतहं वै जे तह माथे मति-भाि ।


आछतहं सदा सुिंध बहु जिु बसंि औ फाि ॥11॥

तसंििििर दे खु पुति बसा । धति राजा अस जे कै दसा ॥


ऊाँची प री ऊाँच अवासा । जिु कैिास इं द्र कर वासा ॥
राव रं क सब घर घर सुखी । जो दीखै स हाँ सिा-मु खी ॥
रतच रतच साजे चंदि च रा । पोिें अिर मे द औ ि रा ॥
सब च पारतह चंदि खभा । ओंठाँतघ सभासद बैठे सभा ॥
मिहुाँ सभा दे विन्ह कर जुरी । परी दीतठ इं द्रासि पुरी ॥
सबै िुिी औ पंतडि ज्ञािा । संसतकररि सबके मु ख बािा ॥

अस कै मं तदर साँवारे जिु तसविोक अिू प ।


घर घर िारर पदतमिी मोहतहं दरसि-रूप ॥12॥

पुति दे खी तसं घि फै हाटा । िवो तिखद्ध ितछमी सब बाटा ॥


किक हाट सब कुहकुहाँ िीपी । बैठ महाजि तसंघिदीपी ॥
रचतहं हथ डा रूपि ढारी । तचत्र कटाव अिे क सवारी ॥
सोि रूप भि भयऊ पसारा । धवि तसरीं पोितहं घर बारा ॥
रिि पदारथ मातिक मोिी । हीरा िाि सो अिबि जोिी ॥
औ कपूर बेिा कस्तूरी । चंदि अिर रहा भरपूरी ॥
तजन्ह एतह हाट ि िीन्ह बेसाहा । िा कहाँ आि हाट तकि िाहा ?॥

कोई करै बेसातहिी, काहू केर तबकाइ ।


कोई चिै िाभ सि, कोई मू र िवाइ ॥13॥

पुति तसंिारहाट भि दे सा । तकए तसंिार बैठी ं िहाँ बेसा ॥


मु ख िमोि िि चीर कुसुंभी । कािि किक जडाऊ खुंभी ॥
हाथ बीि सुति तमररि भुिाहीं । िर मोहतहं सुति, पैि ि जाहीं ॥
भह ं धिु ष, तिन्ह िै ि अहे री । मारतहं बाि साि स ं फेरी ॥
अिक कपोि डोि हाँ तस दे हीं । िाइ कटाछ मारर तजउ िे हीं ॥
कुच कंचुक जाि जुि सारी । अं चि दे तहं सुभावतहं ढारी ॥
केि खखिार हारर िेतह पासा । हाथ झारर उतठ चितहं तिरासा ॥

चेटक िाइ हरतहं मि जब ितह होइ िथ फेंट ।


सााँठ िातठ उतट भए बटाऊ, िा पतहचाि ि भेंट ॥14॥

िे इ के फूि बैतठ फुिहारी । पाि अपूरब धरे साँवारी ॥


सोंधा सबै बैठ िे िााँधी । फूि कपूर खखर री बााँधी ॥
किहूाँ पंतडि पढाँ तहं पुरािू । धरमपंथ कर करतहं बखािू ॥
किहूाँ कथा कहै तकछु कोई । किहूाँ िाच-कूद भि होई ॥
किहुाँ तचरहाँ टा पंखी िावा । किहूाँ पखंडी काठ िचावा ॥
किहूाँ िाद सबद होइ भिा । किहूाँ िाटक चेटक-किा ॥
किहुाँ काहु ठितवद्या िाई । किहुाँ िे तहं मािु ष ब राई ॥

चरपट चोर िाँतठछोरा तमिे रहतहं ओतह िाच ।


जो ओतह हाट सजि भा िथ िाकर पै बााँच ॥15॥

पुति आए तसंघि िढ पासा । का बरि ं जिु िाि अकासा ॥


िरतहं कररन्ह बासुतक कै पीठी । ऊपर इं द्र िोक पर दीठी ॥
परा खोह चहुाँ तदतस अस बााँका । कााँपै जााँ घ, जाइ ितहं झााँका ॥
अिम असूझ दे खख डर खाई । परै सो सपि-पिारतहं जाई ॥
िव प री बााँकी, िवखंडा । िव जो चढे जाइ बरम्हं डा ॥
कंचि कोट जरे िि सीसा । िखितहं भरी बीजु जिु दीसा ॥
िं का चातह ऊाँच िढ िाका । तिरखख ि जाइ, दीतठ िि थाका ॥

तहय ि समाइ दीतठ ितहं जािहुाँ ठाढ सुमेर ।


कहाँ िति कह ं ऊाँचाई, कहाँ िति बरि ं फेर ॥16॥

तिति िढ बााँतच चिै सतस सूरू । िातहं ि होइ बातज रथ चूरू ॥


प री िव बज् कै साजी । सहस सहस िहाँ बैठे पाजी ॥
तफरतहं पााँच कोिवार सुभ रं ी । कााँपै पावैं चपि वह प री ॥
प रतह प रर तसंह ितढ काढे । डरपतहं िोि दे खख िहाँ ठाढे ॥
बहुतबधाि वै िाहर िढे । जिु िाजतहं , चाहतहं तसर चढे ॥
टारतहं पूाँ छ, पसारतहं जीहा । कुंजर डरतहं तक िुंजरर िीहा ॥
किक तसिा ितढ सीढी िाई । जिमिातह िढ ऊपर िाइ ॥

िव ं खंड िव प री , औ िहाँ बज्-केवार ।


चारर बसेरे स ं चढै , सि स ं उिरे पार ॥17॥
िव प री पर दसवाँ दु वारा । िेतह पर बाज राज-घररयारा ॥
घरी सो बैतठ ििै घररयारी । पहर सो आपति बारी ॥
जबहीं घरी पूतज िेइाँ मारा । घरी घरी घररयार पुकारा ॥
परा जो डााँड जिि सब डााँडा । का तितचंि माटी कर भााँडा ?॥
िुम्ह िेतह चाक चढे ह कााँचे । आएहु रहै ि तथर होइ बााँचे ॥
घरी जो भरी घटी िुम्ह आऊ । का तितचंि होइ सोउ बटाऊ ?॥
पहरतहं पहर िजर तिति होई । तहया बजर, मि जाि ि सोई ॥

मु हमद जीवि-जि भरि, रहाँ ट-घरी कै रीति ।


घरी जो आई ज्यों भरी , ढरी,जिम िा बीति ॥18॥

िढ पर िीर खीर दु इ िदी । पतिहारी जैसे दु रपदी ॥


और कुंड एक मोिीचूरू । पािी अमृ ि, कीच कपूरु ॥
ओतह क पाति राजा पै पीया । तबररध होइ ितहं ज ितह जीया ॥
कंचि-तबरतछ एक िेतह पासा । जस किपिरु इं द्र-कतविासा ॥
मू ि पिार, सरि ओतह साखा । अमरबेति को पाव, को चाखा ?॥
चााँद पाि औ फूि िराईं । होइ उतजयार ििर जहाँ िाई ॥
वह फि पावै िप करर कोई । तबरतध खाइ ि जोबि होई ॥

राजा भए तभखारी सुति वह अमृ ि भोि ।


जेइ पावा सो अमर भा, िा तकछु व्यातध ि रोि ॥19॥

िढ पर बसतहं झारर िढपिी । असुपति, िजपति, भू-िर-पिी ॥


सब ध राहर सोिे साजा । अपिे अपिे घर सब राजा ॥
रूपवंि धिवंि सभािे । परस पखाि प रर तिन्ह िािे ॥
भोि-तविास सदा सब मािा । दु ख तचंिा कोइ जिम ि जािा ॥
माँ तदर माँ तदर सब के च पारी । बैतठ कुाँवर सब खेितहं सारी ॥
पासा ढरतहं खेि भि होई । खडिदाि सरर पूज ि कोई ॥
भााँट बरति कतह कीरति भिी । पावतहं हखस्त घोड तसंघिी ॥

माँ तदर माँ तदर फुिवारी, चोवा चंदि बास ।


तितस तदि रहै बसंि िहाँ छव ऋिु बारह मास ॥20॥

पुति चति दे खा राज-दु आरा । मािु ष तफरतहं पाइ ितहं बारा ॥


हखस्त तसंघिी बााँधे बारा । जिु सजीव सब ठाढ पहारा ॥
क ि सेि, पीि रििारे । क ि ं हरे , धू म औ कारे ॥
बरितहं बरि ििि जस मे घा । औ तिन्ह ििि पीठी जिु ठे घा ॥
तसंघि के बरि ं तसंघिी । एक एक चातह एक एक बिी ॥
तिरर पहार वै पैितह पेितहं । तबररछ उचारर डारर मु ख मे ितहं ॥
मािे िेइ सब िरजतहं बााँधे । तितस तदि रहतहं महाउि कााँधे ॥

धरिी भार ि अिवै, पााँव धरि उठ हाति ।


कुरुम टु टै, भुइाँ फाटै तिि हखस्ति के चाति ॥21॥

पुति बााँधे रजबार िुरंिा । का बरि ं जस उन्हकै रं िा ॥


िीि, समं द चाि जि जािे । हााँ सुि, भ रं , तियाह बखािे ॥
हरे , कुरं ि, महुअ बहु भााँिी । िरर, कोकाह, बुिाह सु पााँिी ॥
िीख िुखार चााँड औ बााँके । साँ चरतहं प रर िाज तबिु हााँके ॥
मि िें अिमि डोितहं बािा । िे ि उसास ििि तसर िािा ॥
प ि-समाि समु द पर धावतहं । बूड ि पााँव, पार होइ आवतहं ॥
तथर ि रहतहं , ररस िोह चबाहीं । भााँजतहं पूाँ छ, सीस उपराहीं ॥

अस िुखार सब दे खे जिु मि के रथवाह ।


िै ि-पिक पहुाँ चावतहं जहाँ पहुाँ चा कोइ चाह ॥22॥

राजसभा पुति दे ख बईठी । इं द्रसभा जिु परर िै डीठी ॥


धति राजा अतस सभा साँवारी । जािहु फूति रही फुिवारी ॥
मु कुट बााँतध सब बैठे राजा । दर तिसाि तिि तजन्हके बाजा ॥
रूपवंि, मति तदपै तििाटा । माथे छाि, बैठ सब पाटा ॥
मािहुाँ काँवि सरोवर फूिे । सभा क रूप दे खख मि भूिे ॥
पाि कपूर मे द कस्तूरी । सुिाँध बास भरर रही अपूरी ॥
मााँझ ऊाँच इं द्रासि साजा । िंध्रबसेि बैठ िहाँ राजा ॥

छत्र ििि िति िाकर, सूर िवै जस आप ।


सभा काँवि अस तबिसै, माथे बड परिाप ॥23॥

साजा राजमं तदर कैिासू । सोिे कर सब धरति अकासू ॥


साि खंड ध राहर साजा । उहै साँवारर सकै अस राजा ॥
हीरा ईंट, कपूर तििावा । औ िि िाइ सरि िै िावा ॥
जावि सबै उरे ह उरे हे । भााँति भााँति िि िाि उबेहे ॥
भाव कटाव सब अिबि भााँिी । तचत्र कोरर कै पााँ तितहं पााँिी ॥
िाि खंभ-मति-मातिक जरे । तितस तदि रहतहं दीप जिु बरे ॥
दे खख ध रहर कर उाँ तजयारा । छतप िए चााँद सुरुज औ िारा ॥

सुिा साि बैकुंठ जस िस साजे खाँड साि ।


बेहर बेहर भाव िस खंड खंड उपराि ॥24॥

वरिों राजमं तदर रतिवासू । जिु अछरीन्ह भरा कतविासू ॥


सोरह सहस पदतमिी रािी । एक एक िें रूप बखािी ॥
अतिसुरूप औ अति सुकुवााँरी । पाि फूि के रहतहं अधारी ॥
तिन्ह ऊपर चंपावति रािी । महा सुरूप पाट-परधािी ॥
पाट बैतठ रह तकए तसंिारू । सब रािी ओतह करतहं जोहारू ॥
तिति ि रं ि सुरंिम सोई । प्रथम बैस ितहं सरवरर कोई ॥
सकि दीप महाँ जेिी रािी । तिन्ह महाँ दीपक बारह-बािी ॥

कुाँवर बिीसो-िच्छिी अस सब मााँ अिू प ।


जावि तसंघिदीप के सबै बखािैं रूप ॥25॥

(1) बारी = बािा, स्त्री । सरिदीप-अरबवािे िंका को सरिदीप कहिे थे । भूिोिि का ठीक ज्ञाि ि होिे के कारण कतव िे स्वणादीप और
तसंहि को तभन्न तभन्न िीप मािा है । हरा = शून्य
(2) िुखार =िुषार दे श का घोडा । इं दू =इं द्र । चातह = अपेक्षा (बढकर) बतिस्बि। कतविास = स्विा ।
(3) भूतम हुि = पृथ्वी से (िे कर) िाति = िक ।
(4) पींड = जड के पास की पेडी । फुरै = सचमु च । खजहजा = खािे के फि । अिबि =तभन्न तभन्न
(5) चुहचू ही =एक छोटी तचतडया तजसे फूि सुाँघिी भी कहिे हैं । सार ं = साररका, मै िा । महरर = महोख से तमििी जुििी एक छोटी तचतडया
तजसे ग्वातिि और अहीररि भी कहिे हैं । हारा = हाि, अथवा िाचारी, दीििा ।
(6) पैि पैि पर = कदम कदम पर । पााँवरी = सीढी । ब्रह्मचार = ब्रह्मचया । सुरसिी = सरस्विी (दसिातमयों में ) खेवरा = से वडों का एक
भेद ।
(7) भईं = घूमी हैं । िरे री = चक्करदार । पाि = ऊाँचा बााँध या तकिारा, भीटा ।
(8) मे घावर = बादि की घटा । िा पाईं = पैर िक । बीजु - तबजिी ।
(9) बािी = वणा, रं ि, चमक । सोि,ढे क, बि, िेदी = िाि की तचतडया । मरतजया = जाि जोखखम में डािकर तवकट स्थािों से व्यापार की वस्तुएाँ
िािे वािे , जीवतकया, जैसे, िोिा खोर ।
(10) हरफार् ््योरी = िविी । न्योजी = िीची । खाँडवािी =कााँड का रस ।
(11) कूजा = कुब्जक । पहाडी या जंििी िुिाब तजसके फूि सफेद होिे हैं ।घिबेिी =बेिा की एक जाति । िािेसर = िािकेसर । बक री =
बकाविी । बिुचा = (िट्ठा) ढे र, रातश । तसंिार-हार = हररतसंिार । शेफातिका ।
(12) मेद = मे दा एक सुिंतधि जड । ि रा = िोरोचि । ओठाँ तव = पीठ तटकाकर ।
(13) कुहकुहाँ = कुंकुम, केसर । धवि = सफेदी । तसरी = श्री, रोिी, िाि बुकिी । बेिा =खस वा िंधबेि । बेसाहिी = खरीद ।
(14) बेसा = वेश्या । खुंभी = काि में पहििे का एक िहिा, ि ि ं या कीि । सारी = सारर, पासा । िथ = पूाँजी ।
(15) सााँठ =पूाँजी । िातठ = िि हुई । सोंधा = सुिंध द्रव्य । िााँधी = िंधी । खखर री = केवडा दे कर बााँधी हुई या कत्थे की तटतकया ।
तचरहाँ टा = बहे तिया । पखंडी = कठपुििीवािा ।
(16) कररन्ह = तदग्गजों ।
(17) पाजी = पैदि तसपाही । कोिवार । कोटपाि, कोिवाि । िुं जरर िीहा = िरज कर तिया । (18) बसेरा = तटकाि ।
(19) रहाँ ट-घरी =रहट में ििा छोटा घडा । घररयार = घंटा । घरी भरी = घडी पूरी हुई (पुरािे समय में समय जाििे के तिये पािी भरी िााँद
में एक घतडया या कटोरा महीि महीि छे द करके िैरा तदया जािा था । जब पािी भर जािे पर घतडया डूब जािी थी िब एक घडी का
बीििा मािा जािा था ।
(20) परस पखाि = स्पशामतण, पारस पत्थर । सारी =पासा ।
(20) झारर = तबल्कुि या समू ह । सरर पूज = बराबरी को पहुाँ चिा है । खडिदाि =ििवार चिािा ।
(21) बारा = िार । ठे घा = सहारा तदया । अाँ िवै = शरीर पर सहिी है ।
(22) रजबार = राजिार । समं द = बादामी रं ि का घोडा । हाँ सुि = कुम्मैि तहिाई, मे हाँदी के रं ि का और पैर कुछ कािे । भ रं = मु श्की ।
तकयाह = िाड के पके फि के रं ि का । हरे = सब्जा । कुरं ि = िाख के रं ि का या िीिा कुम्मेि । महुअ = महुए के रं ि का िरर =
िाि और सफेद तमिे रोएाँ का, िराा । कोकाह = सफेद रं ि का । बुिाह = बुल्लाह, िदा ि और पूाँछ के बाि पीिे । िाजा - िातजयािा, चाबुक
। अिमि = आिे । िुखार = िुषार दे श के घोडे , यहााँ घोडे ।
(23) दर =दरवाजा । मे द =मे दा, एक प्रकार की सुिंतधि जड । िवै = िपिा है
(24) उरे ह = तचत्र । उबेहे =चुिेहुए, बीछे हुए । कोररकै = खोद कर । बेहर बेहर = अिि अिि ।
(25) बारह-बािी = िादशवणी, सूर्य्ा की िरह चमकिे वािी ।
जन्म-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी

चंपावति जो रूप साँवारी । पदमावति चाहै औिारी ॥


भै चाहै अतस कथा सिोिी । मे तट ि जाइ तिखी जस होिी ॥
तसंघिदीप भए िब िाऊाँ । जो अस तदया बरा िेतह ठाऊाँ ॥
प्रथम सो जोति ििि तिरमई । पुति सो तपिा माथे मति भई ॥
पुति वह जोति मािु-घट आई । िेतह ओदर आदर बहु पाई ॥
जस अवधाि पूर होइ मासू । तदि तदि तहये होइ परिासू ॥
जस अं चि महाँ तछपै ि दीया । िस उाँ तजयार तदखावै हीया ॥

सोिे माँ तदर साँवारतहं औ चंदि सब िीप ।


तदया जो मति तसविोक महाँ उपिा तसंघिदीप ॥1॥

भए दस मास पूरर भइ घरी । पदमावति कन्या औिरी ॥


जाि सूर तकररि-हुति काढी । सुरुज-किा घातट, वह बाढी ॥
भा तितस महाँ तदि कर परकासू । सब उतजयार भएउ कतविासू ॥
इिे रूप मू रति परिटी । पूि ससी छीि होइ घटी ॥
घटितह घटि अमावस भई । तदि दु इ िाज िातड भुइाँ िई ॥
पुति जो उठी दु इज होइ िई । तिहकिं क सतस तवतध तिरमई ॥
पदु मिंध बेधा जि बासा । भ रं पिंि भए चहुाँ पासा ॥

इिे रूप भै कन्या जेतहं सरर पूज ि कोइ ।


धति सो दे स रुपवंिा जहााँ जन्म अस होइ ॥2॥

भै छतठ राति छठीं सुख मािी । रइस कूद स ं रै ति तबहािी ॥


भा तवहाि पं तडि सब आए । कातढ पुराि जिम अरथाए ॥
उतत्तम घरी जिम भा िासू । चााँ द उआ भूइाँ, तदपा अकासू ॥
कन्यारातस उदय जि कीया । पदमाविी िाम अस दीया ॥
सूर प्रसंसै भएउ तफरीरा । तकररि जातम, उपिा िि हीरा ॥
िेतह िें अतधक पदारथ करा । रिि जोि उपिा तिरमरा ॥
तसंहिदीप भए औिारू । जंबूदीप जाइ जमबारू ॥

राम अजुध्या ऊपिे िछि बिीसो संि ।


रावि रूप स ं भूतितह दीपक जै स पिंि ॥3॥

कहे खन्ह जिमपत्री जो तिखी । दे इ असीस बहुरे जोतिषी ॥


पााँच बरस महाँ भय सो बारी । कीन्ह पुराि पढै बैसारी ॥
भै पदमावति पंतडि िुिी । चहूाँ खंड के राजन्ह सुिी ॥
तसंघिदीप राजघर बारी । महा सुरुप दई औिारी ॥
एक पदतमिी औ पंतडि पढी । दहुाँ केतह जोि िोसाईं िढी ॥
जा कहाँ तिखी िखच्छ घर होिी । सो अतस पाव पढी औ िोिी ॥
साि दीप के बर जो ओिाहीं । उत्तर पावतहं , तफरर तफरर जाहीं ॥

राजा कहै िरब कै अह ं इं द्र तसविोक ।


सो सरवरर है मोरे , कास ं कर ं बरोक ॥4॥

बारह बरस माहाँ भै रािी । राजै सुिा साँजोि सयािी ॥


साि खंड ध राहर िासू । सो पदतमति कहाँ दीन्ह तिवासू ॥
औ दीन्ही साँि सखी सहे िी । जो साँि करैं रहतस रस-केिी ॥
सबै िवि तपउ संि ि सोईं । काँवि पास जिु तबिीस कोईं ॥
सुआ एक पदमावति ठाऊाँ । महा पाँतडि हीरामि िाऊाँ ॥
दई दीन्ह पंखखतह अस जोिी । िै ि रिि, मु ख मातिक मोिी ॥
कंचि बरि सुआ अति िोिा । मािहुाँ तमिा सोहाितहं सोिा ॥

रहतहं एक साँि दोउ, पढतहं सासिर वेद ।


बरम्हा सीस डोिावहीं, सुिि िाि िस भेद ॥5॥

भै उिं ि पदमावति बारी । रतच रतच तवतध सब किा साँवारी ॥


जि बेधा िेतह अं ि-सुबासा । भाँवर आइ िु बुधे चहुाँ पासा ॥
बेिी िाि मियातिरर पैठी । सतस माथे होइ दू इज बैठी ॥
भह ं धिु क साधे सर फेरै । ियि कुरं ि भूति जिु हे रै ॥
िातसक कीर, काँवि मु ख सोहा । पदतमति रूप दे खख जि मोहा ॥
मातिक अधर, दसि जिु हीरा । तहय हुिसे कुच किक-िाँभीरा ॥
केहरर िं क, िवि िज हारे । सुरिर दे खख माथ भुइाँ धारे ॥

जि कोइ दीतठ ि आवै आछतह िै ि अकास ।


जोति जिी संन्यासी िप साधतह िेतह आस ॥6॥

एक तदवस पदमावति रािी । हीरामि िइाँ कहा सयािी ॥


सुिु हीरामि कह ं बुझाई । तदि तदि मदि सिावै आई ॥
तपिा हमार ि चािै बािा । त्रसतह बोति सकै ितहं मािा ॥
दे स दे स के बर मोतह आवतहं । तपिा हमार ि आाँ ख ििावतहं ॥
जोबि मोर भयउ जस िंिा । दे इ दे इ हम्ह िाि अिं िा ॥
हीरामि िब कहा बुझाई । तवतध कर तिखा मे तट ितहं जाई ॥
अज्ञा दे उ दे ख ं तफरर दे सा । िोतह जोि बर तमिै िरे सा ॥

ज िति मैं तफरर आव ं मि तचि धरहु तिवारर ।


सुिि रहा कोइ दु रजि, राजतह कहा तवचारर ॥7॥

राजि सुिा दीठी भै आिा । बुतध जो दे तह साँि सुआ सयािा ॥


भएउ रजायसु मारहु सूआ । सूर सुिाव चााँद जहाँ ऊआ ॥
सत्रु सुआ के िाऊ बारी । सुति धाए जस धाव माँ जारी ॥
िब िति रािी सुआ छपावा । जब िति ब्याध ि आवै पावा ॥
तपिा क आयसु माथे मोरे । कहहु जाय तविव कर जोरे ॥
पंखख ि कोई होइ सुजािू । जािै भृिुति तक जाि उडािू ॥
सुआ जो पढै पढाए बैिा । िेतह कि बुतध जेतह तहये ि िै िा ॥

मातिक मोिी दे खख वह तहये ि ज्ञाि करे इ ।


दाररउाँ दाख जाति कै अवतहं ठोर भरर िे इ ॥8॥

वै ि तफरे उिर अस पावा । तबिवा सुआ तहये डर खावा ॥


रािी िुम जुि जुि सुख पाऊ । होइ अज्ञा बिवास ि जाऊाँ ॥
मोतितहं मतिि जो होइ िइ किा । पुति सो पाति कहााँ तिरमिा ? ॥
ठाकुर अं ि चहै जेतह मारा । िेतह सेवक कर कहााँ उबारा ?॥
जेतह घर काि-मजारी िाचा । पं खतह पाउाँ जीउ ितहं बााँचा ॥
मैं िुम्ह राज बहुि सुख दे खा । ज पूछतह दे इ जाइ ि िे खा ॥
जो इच्छा मि कीन्ह सो जेंवा । यह पतछिाव चल्ों तबिु सेवा ॥

मारै सोइ तिसोिा, डरै ि अपिे दोस ।


केरा केति करै का ज ं भा बैरर परोस ॥9॥

रािी उिर दीन्ह कै माया । ज तजउ जाउ रहै तकतम काया ? ॥


हीरामि ! िू प्राि परे वा । धोख ि िाि करि िोतहं सेवा ॥
िोतहं सेवा तबछु रि ितहं आख ं । पींजर तहये घाति कै राख ं ॥
ह ं मािु स, िू पंखख तपयारा । धरि क प्रीति िहााँ केइ मारा ? ॥
का स प्रीति िि मााँह तबिाई ?। सोइ प्रीति तजउ साथ जो जाई ॥
प्रीति मार िै तहयै ि सोचू । ओतह पंथ भि होइ तक पोचू ॥
प्रीति-पहार-भार जो कााँधा । सो कस छु टै , िाइ तजउ बााँधा ॥

सुअटा रहै खुरुक तजउ, अबतहं काि सो आव ।


सत्रु अहै जो कररया कबहुाँ सो बोरे िाव ॥10॥
(1) उपिा = उत्पन्न हुआ ।
(2) तबहाि = सबेरा । तफरीरा-भएऊ = तफरे रे के समाि चक्कर ििािा हुआ । रिि = राजा रििसेि की ओर िक्ष्य है । तिरमरा = तिमा ि ।
जमबारू = यमिार ।
(4) बेसारर दीन्ह = बैठा तदया । बरोक =(बर+रोक) बरच्छा । कोंई = कुमु तदिी ।
(8) मजारी = माजाारी, तबल्ली ।
(9) पाति = आब, आभा; चमक । जेंवा =खाया । बैरर = बेर का पेड । उिं ि = ओिं ि, भार से झुकी (य वि के), `बारी' शब्द के कुमारी और
बिीचा दो अथा िे िे से इसकी संिति बैठिी है ।
(10) आाँ ख ं = (सं0 आकांक्षा) चाहिी हूाँ , अथवा कहिी हूाँ ,। कररया = कणाधार, मल्लाह ।
मािसरोदक-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी

एक तदवस पून्यो तितथ आई । मािसरोदक चिी िहाई ॥


पदमावति सब सखी बुिाई । जिु फुिवारर सबै चति आई ॥
कोइ चंपा कोइ कुंद सहे िी । कोइ सु केि, करिा, रस बेिी ॥
कोइ सु िुिाि सुदरसि रािी । कोइ सो बकावरर-बकुचि भााँिी ॥
कोइ सो म ितसरर, पुहपाविी । कोइ जाही जूही सेविी ॥
कोई सोिजरद कोइ केसर । कोइ तसंिार-हार िािेसर ॥
कोइ कूजा सदबिा चमे िी । कोई कदम सुरस रस-बेिी ॥

चिीं सबै मािति साँि फूिीं कवाँि कुमोद ।


बेतध रहे िि िाँधरब बास-परमदामोद ॥1॥

खेिि मािसरोवर िईं । जाइ पाि पर ठाढी भईं ॥


दे खख सरोवर हाँ सै कुिे िी । पदमावति स ं कहतहं सहे िी
ए रािी ! मि दे खु तबचारी । एतह िै हर रहिा तदि चारी ॥
ज िति अहै तपिा कर राजू । खेति िे हु जो खेिहु आजु ॥
पुति सासुर हम िविब कािी । तकि हम, तकि यह सरवर-पािी ॥
तकि आवि पुति अपिे हाथा । तकि तमति कै खेिब एक साथा ॥
सासु ििद बोतिन्ह तजउ िे हीं । दारुि ससुर ि तिसरै दे हीं ॥

तपउ तपयार तसर ऊपर, पुति सो करै दहुाँ काह ।


दहुाँ सुख राखै की दु ख, दहुाँ कस जिम तिबाह ॥2॥

तमितहं रहतस सब चढतहं तहं डोरी । झूति िे तहं सु ख बारी भोरी ॥


झूति िे हु िै हर जब िाईं । तफरर ितहं झूिि दे इतहं साईं ॥
पुति सासुर िे इ राखतहं िहााँ । िै हर चाह ि पाउब जहााँ ॥
तकि यह धू प, कहााँ यह छााँहा । रहब सखी तबिु मं तदर माहााँ ॥
िुि पूछतह औ िाइतह दोखू । क ि उिर पाउब िहाँ मोखू ॥
सासु ििद के भ ह ं तसकोरे । रहब साँकोतच दु व कर जोरे ॥
तकि यह रहतस जो आउब करिा । ससुरेइ अं ि जिम भरिा ॥

तकि िै हर पुति आउब, तकि ससुरे यह खेि ।


आपु आपु कहाँ होइतहं परब पंखख जस डे ि ॥3॥

सरवर िीर पदतमिी आई । खोंपा छोरर केस मु किाई ॥


सतस-मु ख, अं ि मियतिरर बासा । िातिि झााँतप िीन्ह चहुाँ पासा ॥
ओिई घटा परी जि छााँहा । सतस के सरि िीन्ह जिु राहााँ ॥
छतप िै तदितहं भािु कै दसा । िे इ तितस िखि चााँद परिसा ॥
भूति चकोर दीतठ मु ख िावा । मे घघटा महाँ चंद दे खावा ॥
दसि दातमिी, कोतकि भाखी । भ ह ं ैं धिु ख ििि िे इ राखी ॥
िै ि -खाँजि दु इ केति करे हीं । कुच-िाराँ ि मधु कर रस िे हीं ॥

सरवर रूप तबमोहा, तहये होिोरतह िे इ ।


पााँव छु वै मकु पाव ं एतह तमस िहरतह दे इ ॥4॥

धरी िीर सब कंचुतक सारी । सरवर महाँ पैठी ं सब बारी ॥


पाइ िीर जाि ं सब बेिी । हुिसतहं करतहं काम कै केिी ॥
कररि केस तबसहर तबस-हरे । िहरैं िे तहं कवाँि मु ख धरे ॥
िवि बसंि साँवारी करी । होइ प्रिट जािहु रस-भरी ॥
उठी कोंप जस दाररवाँ दाखा । भई उिं ि पेम कै साखा ॥
सरवर ितहं समाइ संसारा । चााँद िहाइ पैट िे इ िारा ॥
धति सो िीर सतस िरई ऊईं । अब तकि दीठ कमि औ कूईं ॥

चकई तबछु रर पुकारै , कहााँ तमि ,ं हो िाहाँ ।


एक चााँद तितस सरि महाँ , तदि दू सर जि मााँह ॥5॥

िािी ं केति करै मझ िीरा । हं स िजाइ बैठ ओतह िीरा ॥


पदमावति क िुक कहाँ राखी । िु म सतस होहु िराइन्ह साखी ॥
बाद मे ति कै खेि पसारा । हार दे इ जो खेिि हारा ॥
साँवररतह सााँ वरर, िोररतह । आपति िीन्ह सो जोरी ॥
बूतझ खेि खेिहु एक साथा । हार ि होइ पराए हाथा ॥
आजुतह खेि, बहुरर तकि होई । खेि िए तकि खेिै कोई ?॥
धति सो खेि खेि सह पेमा । रउिाई औ कूसि खेमा ? ॥

मु हमद बाजी पेम कै ज्यों भावै त्ों खेि ।


तिि फूितह के साँि ज्यों होइ फुिायि िेि ॥6॥
सखी एक िेइ खेि िा जािा । भै अचेि मति-हार िवााँिा ॥
कवाँि डार ितह भै बेकरारा । कास ं पुकार ं आपि हारा ॥
तकि खेिै अइउाँ एतह साथा । हार िाँवाइ चतिउाँ िे इ हाथा ॥
घर पैठि पूाँछब यह हारू । क ि उिर पाउब पैसारू ॥
िै ि सीप आाँ सू िस भरे । जाि मोति तिरतहं सब ढरे ॥
सखखि कहा ब री कोतकिा । क ि पाति जेतह प ि ि तमिा? ॥
हार िाँवाइ सो ऐसै रोवा । हे रर हे राइ िे इ ज ं ख वा ॥

िािी ं सब तमति हे रै बूतड बूतड एक साथ ।


कोइ उठी मोिी िे इ, काहू घोंघा हाथ ॥7॥

कहा मािसर चाह सो पाई । पारस-रूप इहााँ िति आई ॥


भा तिरमि तिन्ह पायाँन्ह परसे । पावा रूप रूप के दरसे ॥
मिय-समीर बास िि आई । भा सीिि, िै िपति बुझाई ॥
ि जि ं क ि प ि िे इ आवा । पुन्य-दसा भै पाप िाँवावा ॥
ििखि हार बेति उतिरािा । पावा सखखन्ह चंद तबहाँ सािा ॥
तबिसा कुमु द दे खख सतस-रे खा । भै िहाँ ओप जहााँ जोइ दे खा ॥
पावा रूप रूप जस चहा । सतस-मु ख जिु दरपि होइ रहा ॥

ियि जो दे खा कवाँि भा, तिरमि िीर सरीर ।


हाँ सि जो दे खा हं स भा, दसि-जोति िि हीर ॥8॥

(1) केि = केिकी । करिा = एक फूि । कूजा = सफेद जंििी िुिाब ।


(2) पाि =बााँध, भीटा, तकिारा ।
(3) चाह = खबर । डे ि = बहे तिए का डिा ।
(4) खोंपा = चोटी का िुच्छा, जूरा । मु किाई = खोिकर । मकु =कदातचि् ।
(5) कररि = कािे । तबसहर = तबषधर, सााँप, करी किी । कोंप कोंपि । उिं ि = झुकिी हुई ।
(6) साखी = तिणाय-किाा, पंच । वाद मे ति कै = बाजी ििाकर । रउिाई = रावि या स्वामी होिे का भाव, ठकुराई । फुिायि = फुिे ि ।
(8) चाह = खबर, आहट
सुआ-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी

पदमावति िहाँ खेि दु िारी । सु आ माँ तदर महाँ दे खख मजारी ॥


कहे तस चि ं ज ितह िि पााँ खा । तजउ िै उडा िातक बि ढााँखा ॥
जाइ परा बि खाँड तजउ िीन्हें । तमिे पाँखख, बहु आदर कीन्हें ॥
आति धरे खन्ह आिे फरर साखा । भुिुति भेंट ज ितह तबतध राखा ॥
पाइ भुिुति सु ख िेतह मि भएऊ । दु ख जो अहा तबसरर सब िएऊ ॥
ए िुसाइाँ िूाँ ऐस तवधािा । जावि जीव सबन्ह भुकदािा ॥
पाहि महाँ ितहं पिाँि तबसारा । जहाँ िोतह सु तिर दीन्ह िुइाँ चारा ॥

ि ितह सोि तबछोह कर भोजि परा ि पेट ।


पुति तबसरि भा सुतमरिा जब संपति भै भेंट ॥1॥
पदमावति पहाँ आइ भाँडारी । कहे तस माँ तदर महाँ परी मजारी ॥
सुआ जो उत्तर दे ि रह पूछा । उतडिा, तपंजर ि बोिै छूाँछा ॥
रािी सुिा सबतहं सुख िएऊ । जिु तितस परी, अस्त तदि भएऊ ॥
िहिे िही चााँद कै करा । आाँ सु ििि जस िखिन्ह भरा ॥
टू ट पाि सरवर बतह िािे । कवाँ ि बूड, मधुकर उतड भािे ॥
एतह तवतध आाँ सु िखि होइ चूए । ििि छााँ सरवर महाँ ऊए ॥
तचहुर चुईं मोतिि कै मािा । अब साँकेिबााँधा चहुाँ पािा ॥

उतड यह सुअटा कहाँ बसा खोजु सखी सो बासु ।


दहुाँ है धरिी की सरि, प ि ि पावै िासु ॥2॥

ज ितह पींजर अहा परे वा । रहा बंतद महाँ , कीन्हे तस सेवा ॥


िेतह बंतद हुति छु टै जो पावा । पुति तफरर बंतद होइ तकि आवा ?॥
वै उडाि-फर ितहयै खाए । जब भा पाँखी, पााँख िि आए ॥
पींजर जेतहक स तं प िे तह िएउ । जो जाकर सो िाकर भएउ ॥
दस दु वार जेतह पींजर मााँहा । कैसे बााँच माँ जारी पाहााँ ?॥
चहूाँ पास समु झावतहं सखी । कहााँ सो अब पाउब, िा पाँखी ॥
यह धरिी अस केिि िीिा । पेट िाढ अस, बहुरर ि ढीिा ॥

जहााँ ि राति ि तदवस है , जहााँ ि प ि ि पाति ।


िेतह बि सुअटा चति बसा क ि तमिावै आति ॥3॥

सुए िहााँ तदि दस कि काटी । आय तबयाध ढु का िे इ टाटी ॥


पैि पैि भुईं चापि आवा । पंखखन्ह दे खख तहए डर खावा ॥
दे खखय तकछु अचरज अिभिा । िररवर एक आवि है चिा ॥
एतह बि रहि िई हम्ह आऊ । िररवर चिि ि दे खा काऊ ॥
आज िो िररवर चि, भि िाहीं । आवहु यह बि छााँतड पराहीं ॥
वै ि उडे और बि िाका । पंतडि सुआ भूति मि थाका ॥
साखा दे खख राजु जिु पावा । बैठ तितचंि चिा वह आवा ॥

पााँच बाि कर खोंचा, िासा भरे सो पााँच ।


पााँख भरे िि अरुझा, तकि मारे तबिु बााँच ॥4॥

बाँतधिा सुआ करि सुख केिी । चूरर पााँख मे िेतस धरर डे िी ॥


िहवााँ बहुि पंखख खरभरहीं । आपु आपु महाँ रोदि करही ॥
तबखदािा तकि होि अाँ िूरा । जेतह भा मरि डह्न धरर चूरा ॥
ज ं ि होि चारा कै आसा । तकि तचररहार ढु कि िे इ िासा ?॥
यह तबष चअरै सब बुतध ठिी । औ भा काि हाथ िे इ ििी ॥
एतह झूठी माया मि भूिा । ज्यों पंखी िैसे िि फूिा ॥
यह मि कतठि मरै ितहं मारा । काि ि दे ख, दे ख पै चारा ॥

हम ि बुखद्ध िाँवावा तवष-चारा अस खाइ ।


िै सुअटा पंतडि होइ कैसे बाझा आइ ?॥5॥

सुए कहा हमहूाँ अस भूिे । टू ट तहं डोि-िरब जेतह भूिे ॥


केरा के बि िीन्ह बसेरा परा साथ िहाँ बैरी केरा ॥
सुख कुरबारर फरहरी खािा । ओहु तवष भा जब व्याध िुिािा ॥
काहे क भोि तबररछ अस फरा । आड िाइ पंखखन्ह कहाँ धरा ?॥
सुखी तितचंि जोरर धि करिा । यह ि तचंि आिे है मरिा ॥
भूिे हमहुाँ िरब िेतह माहााँ । सो तबसरा पावा जेतह पाहााँ ॥
होइ तितचंि बैठे िेतह आडा । िब जािा खोंचा तहए िाडा ॥

चरि ि खुरुक कीन्ह तजउ, िब रे चरा सुख सोइ ।


अब जो पााँद परा तिउ, िब रोए का होइ ? ॥6॥

सुति कै उिि आाँ सु पुति पोंछे । क ि पंखख बााँधा बुतध -ओछे ॥


पंखखन्ह ज बुतध होइ उजारी । पढा सुआ तकि धरै मजारी ?॥
तकि िीतिर बि जीभ उघेिा । सो तकि हाँ करर फााँद तिउ मे िा ॥
िातदि व्याध भए तजउिे वा । उठे पााँख भा िावाँ परे वा ॥
भै तबयातध तिसिा साँि खाधू । सूझै भुिुति, ि सूझ तबयाधू ॥
हमतहं िोभवै मे िा चारा । हमतहं िबावै चाहै मारा ॥
हम तितचंि वह आव तछपािा । क ि तबयाधतह दोष अपािा ॥

सो औिुि तकि कीतजए तजउ दीजै जेतह काज ।


अब कहिा है तकछु िहीं, मस्ट भिी, पखखराज ॥7॥

(1) बिढााँख = ढाक का जंिि, जंिि । अहा = था ।


(2) पाि = बााँध, भीटा, तकिारा । तचहुर = तचकुर, केश । साँकेिा = साँकरा, िंि ।
(3) हुति = से ।
(4) ढु का = तछपकर बैठा । आऊ = आयु । काऊ = कभी । खोंचा = तचतडया फाँसािे का बााँस ।
(5) डे िी = डिी, झाबा । डहि = डै िा, पर । तचररहार = बहे तिया । ढु कि = तछपािा । ििी = िग्गी, बााँस की छड । फूिा = हषा और िवा
से इिराया । अाँ िूरा = अं कुर ।
(6) कुरवारर = खोद ,खोदकर, चोंच मार-मारकर, जैसे -धरिी िख चरिि कुरवारति-सूर। िुिािा = आ पहुाँ चा । जे तह पाहााँ = तजस (ईश्वर) से
। तिउ = ग्रीवा, ििा ।
(7) खाधु = खाद्य । िोभवै = िोभ ही िे । मस्ट = म ि ।
रत्नसेि-जन्म-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी

तचत्रसेि तचिउर िढ राजा । कै िढ कोट तचत्र सम साजा ॥


िेतह कुि रििसेि उतजयारा । धति जििी जिमा अस बारा ॥
पंतडि िुति सामु तद्रक दे खा । दे खख रूप औ िखि तबसेखा ॥
रििसेि यह कुि-तिरमरा । रिि-जोति मि माथे परा ॥
पदु म पदारथ तिखी सो जोरी । चााँद सुरुज जस होइ अाँ जोरी ॥
जस मािति कहाँ भ रं तवयोघी । िस ओतह िाति होइ यह जोिी ।
तसंघिदीप जाइ यह पावै । तसद्ध होइ तचिउर िे इ आवै ॥
मोि भोज जस मािा, तवक्रम साका कीन्ह ।
परखख सो रिि पारखी सबै िखि तिखख दीन्ह ॥1॥
(1) पदु म = पद्माविी की ओर िक्ष्य है । भोज = राजा भोज । िखि = िक्षण ।
बतिजारा-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी

तचिउरिढ कर एक बतिजारा । तसंघिदीप चिा बैपारा ॥


बाम्हि हुि तिपट तभखारी । सो पुति चिि बैपारी ॥
ऋि काहू सि िीन्हे तस काढी । मकु िहाँ िए होइ तकछु बाढी ॥
मारि कतठि बहुि दु ख भएऊ । िााँतघ समु द्र दीप ओतह िएऊ ॥
दे खख हाट तकछु सू झ ि ओरा । सबै बहुि, तकछु दीख ि थोरा ॥
पै सुतठ ऊाँच बतिज िहाँ केरा । धिी पाव, तिधिी मु ख हे रा ॥
िाख करोररन्ह बस्तु तबकाई । सहसि केरर ि कोउ ओिाई ॥

सबहीं िीन्ह बेसाहिा औ घर कीन्ह बहोर ।


बाम्हि िहवााँ िे इ का ? िााँतठ सााँ तठ तसतठ थोर ॥1॥

झूरै ठाढ ह ,ं काहे क आवा ? बतिज ि तमिा, रहा पतछिावा ॥


िाभ जाति आएउाँ एतह हाटा । मू र िाँवाइ चिे उाँ िेतह बाटा ॥
का मैं मरि-तसखावि तसखी । आएउाँ मरै , मीचु हति तिखी ॥
अपिे चिि सो कीन्ह कुबािी । िाभ ि दे ख, मूर भै हािी ॥
का मैं बोआ जिम ओतह भूाँजी ? । खोइ चिे उाँ घरहू कै पूाँजी ॥
जेतह व्योहररया कर व्य हारू । का िे इ दे व ज छें तकतह बारू ॥
घर कैसे पैठब मैं छूछे । क ि उििर दे ब ं िेतह पूछे ॥

सातथ चिे , साँि बीछु रा, भए तबच समु द पहार ।


आस-तिरासा ह ं तफर ,ं िू तबतध दे तह अधार ॥2॥

िबतहं व्याध सुआ िे इ आवा । कंचि-बरि अिू प सुहावा ॥


बेंचै िाि हाट िै ओही । मोि रिि मातिक जहाँ होहीं ॥
सुअतहं को पूछ ? पिंि-माँ डारे । चि ि, दीख आछै मि मारे ॥
बाम्हि आइ सुआ स ं पूछा । दहुाँ , िुिवंि, तक तिरिुि छूछा ?॥
कहु परबत्ते ! िुि िोतह पाहााँ । िु ि ि छपाइय तहरदय माहााँ ॥
हम िुम जाति बराम्हि दोऊ । जातितह जाति पूछ सब कोऊ ॥
पंतडि ह ि सुिावहु वेदू । तबिु पूछे पाइय ितहं भेदू ॥

ह ं बाम्हि औ पंतडि, कहु आपि िुि सोइ ।


पढे के आिे जो पढै दू ि िाभ िेतह होइ ॥3॥

िब िुि मोतह अहा, हो दे वा !। जब तपंजर हुि छूट परे वा ॥


अब िुि क ि जो बाँद, जजमािा । घाति माँ जूसा बेचै आिा ॥
पंतडि होइ सो हाट ि चढा । चह ं तबकाय, भूति िा पढा ॥
दु इ मारि दे ख ं यतह हाटा । दई चिावै दहुाँ केतह बाटा ॥
रोवि रकि भएउ मु ख रािा । िि भा तपयर कह ं का बािा ?॥
रािे स्याम कंठ दु इ िीवााँ । िेतहं दइ फंद डर ं सुतठ जीवा ॥
अब ह ं कंठ फंद दु इ चीन्हा । दहुाँ ए चाह का कीन्हा ?॥

पढी िुि दे खा बहुि मैं , है आिे डर सोइ ।


धुं ध जिि सब जाति कै भूति रहा बुतध खोइ ॥4॥

सुति बाम्हि तबिवा तचररहारू । करर पंखखन्ह कहाँ मया ि मारू ॥


तिठु र होइ तजउ बधतस परावा । हत्ा केर ि िोतह डर आवा ॥
कहतस पंखख का दोस जिावा । तिठु र िेइ जे परमाँ स खावा ॥
आवतहं रोइ, जाि पुति रोिा । िबहुाँ ि िजतहं भोि सुख सोिा ॥
औ जाितहं िि होइतह िासू । पोखैं मााँसु पराये मााँसू ॥
ज ि होंतहं अस परमाँ स-खाधू ।तकि पंखखन्ह कहाँ धरै तबयाधू ?॥
जो व्याधा तिि पंखखन्ह धरई । सो बेचि मि िोभ ि करई ॥

बाम्हि सुआ वेसाहा सुति मति बेद िरं थ ।


तमिा आइ कै सातथन्ह, भा तचिउर के पंथ ॥5॥

िब िति तचत्रसेि सर साजा । रििसेि तचिउर भा राजा ॥


आइ बाि िेतह आिे चिी । राजा बतिज आए तसंघिी ॥
हैं िजमोति भरी सब सीपी । और वस्तु बहु तसंघि दीपी ॥
बाम्हि एक सुआ िे इ आवा । कंचि-बरि अिू प सोहावा ॥
रािे स्याम कंठ दु इ कााँठा । रािे डहि तिखा सब पाठा ॥
औ दु इ ियि सुहावि रािा । रािे ठोर अमी-रस बािा ॥
मस्तक टीका, कााँध जिे ऊ । कतव तबयास, पंतडि सहदे ऊ ॥

बोि अरथ स ं बोिै , सुिि सीस सब डोि ।


राज-मं तदर महाँ चातहय अस वह सुआ अमोि ॥6॥

भै रजाइ जि दस द राए । बाम्हि सुआ बेति िे इ आए ॥


तबप्र असीस तबिति औधारा । सु आ जीउ ितहं कर ं तििारा ॥
मैं यह पेट महा तबसवासी । जेइ सब िाव िपा सन्यासी ॥
डासि सेज जहााँ तकछु िाहीं । भुइाँ परर रहै िाइ तिउ बाही ॥
आाँ धर रहे , जो दे ख ि िैिा । िूाँि रहै , मु ख आव ि बैिा ॥
बतहर रहै , जो स्रवि ि सुिा । पै यह पेट ि रह तिरिुिा ॥
कै कै फेरा तिति यह दोखी । बारतहं बार तफरै , ि साँिोखी ॥

सो मोतहं िे इ माँ िावै िावै भूख तपयास ।


ज ि होि अस बैरी केहु कै आस ॥7॥

सुआ असीस दीन्ह बड साजू । बड परिाप अखंतडि राजू ।


भािवंि तबतध बड औिारा । जहााँ भाि िहाँ रूप जोहारा ॥
कोइ केहु पास आस कै ि िा । जो तिरास तडढ आसि म िा ॥
कोइ तबिु पूछे बोि जो बोिा । होइ बोि माटी के मोिा ॥
पतढ िुति जाति वेद-मति भेऊ । पूछे बाि कहैं सहदे ऊ ॥
िुिी ि कोई आपु सराहा । जो तबकाइ, िुि कहा सो चाहा ॥
ज िति िुि परिट ितहं होई । ि ितह मरम ि जािै कोई ॥

चिुरवेद ह ं पंतडि, हीरामि मोतहं िावाँ ।


पदमावति स ं मे रव ,ं सेव कर ं िेतह ठावाँ ॥8॥
रििसेि हीरामि चीन्हा । एक िाख बाम्हि कहाँ दीन्हा ॥
तबप्र असीतस जो कीन्ह पयािा । सुआ सो राजमं तदर महाँ आिा ॥
बरि ं काह सुआ कै भाखा । धति सो िावाँ हीरामि राखा ॥
जो बोिै राजा मु ख जोवा । जाि मोतिि हार परोवा ॥
ज बोिै ि मातिक मूाँ िा । िातहं ि म ि बााँध रह िूाँिा ॥
मिहुाँ मारर मु ख अमृ ि मेिा । िुरु होइ आप, कीन्ह जि चेिा ॥
सुरुज चअाँ द कै कथा जो कहे ऊ । पेम क कहति िाइ िहे ऊ ॥

ज ज सुिै धु िै तसर, राजतहं प्रीति अिाहु ।


अस, िुिवंिा िातहं भि, बाउर कररहै काहु ॥9॥

(1) बतिजारा = वातणज्य करिवािा, बतिया । मकु = शायद, चाहे , जैसे, ििि मिि मकु मे घतहं तमिई-िुिसी । बहोर = ि टिा । सााँतठ = पूाँजी,
धि । सुतठ = खूब ।
(2)झूरै = तिष्फि, व्यथा । कुबािी = कुबातणज्य, बुरा व्यवसाय । भूाँतज = बोआ भुिकर बीज बोया ( भूिकर बोिे से बीज िहीं जमिा )।
(3) पिंि-माँडारे = तचतडयों के मडरे में वा झाबे में । चि =चंचि, तहििा-डोििा ।
(4) माँ जूसा, डिा । कंठ = कंठा, कािी िाि िकीर जो िोिों के ििे पर होिी है । धुं ध = अं धकार । परमाँ स = दू सरे का मााँस । खाधू =
खािे वािा ।
(6) सर साजा = तचिा पर चढा; मर िया ।
(7) तबसवासी = तवश्वासघािी । िाव =िवािा है , िम्र करिा है । ि रह तिरिुिा = अपिे िुण या तक्रया के तबिा िहीं रहिा । बारतहं बार =
िार-िार
(8) तडढ = दृढ । मे रवााँ = तमिाऊाँ ।
(9) बाउर =बाविा, पििा ।
िािमिी-सुवा-संवाद-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी

तदि दस पााँच िहााँ जो भए । राजा किहुाँ अहे रै िए ॥


िािमिी रूपवंिी रािी । सब रतिवास पाट-परधािी ॥
कै तसंिार कर दरपि िीन्हा । दरसि दे खख िरब तजउ कीन्हा ॥
बोिहु सुआ तपयारे -िाहााँ । मोरे रूप कोइ जि माहााँ ?॥
हाँ सि सुआ पहाँ आइ सो िारी । दीन्ह कस टी ओपतिवारी ॥
सुआ बाति कतस कहु कस सोिा । तसंघिदीप िोर कस िोिा ?॥
क ि रुप िोरी रुपमिी । दहुाँ ह ं िोति, तक वै पदतमिी ?॥

जो ि कहतस सि सुअटा िेतह राजा कै आि ।


है कोई एतह जिि महाँ मोरे रूप समाि ॥1॥

सुतमरर रूप पदमावति केरा । हाँ सा सुआ, रािी मु ख हे रा ॥


जेतह सरवर महाँ हं स ि आवा । बिुिा िेतह सरस हं स कहावा ॥
दई कीन्ह अस जिि अिू पा । एक एक िें आिरर रूपा ॥
कै मि िरब ि छाजा काहू । चााँद घटा औ िािेउ राहू ॥
िोति तबिोति िहााँ को कहै । िोिी सोई कंि जेतह चहै ॥
का पूछहु तसं घि कै िारी । तदितहं ि पूजै तितस अाँ तधयारी ॥
पुहुप सुवास सो तिन्ह कै काया । जहााँ माथ का बरि ं पाया ?॥

िढी सो सोिे सोंधे, भरी सो रूपै भाि ।


सुिि रूखख भइ रािी, तहये िोि अस िाि ॥2॥

ज यह सुआ माँ तदर महाँ अहई । कबहुाँ बाि राजा स ं कहई ॥


सुति राजा पु ति होइ तवयोिी । छााँडे राज, चिै होइ जोिी ॥
तबख राखखय ितहं , होइ अाँ कूरू । सबद ि दे इ भोर िमचूरू ॥
धाय दातमिी बेति हाँ कारी । ओतह स प ं ा हीये ररस भारी ॥
दे खु सुआ यह है माँ दचािा । भएउ ि िाकर जाकर पािा ॥
मु ख कह आि, पेट बस आिा । िेतह औिुि दस हाट तबकािा ॥
पंखख ि राखखय होइ कुभाखी । िे इ िहाँ मारू जहााँ ितहं साखी ॥

जेतह तदि कहाँ मैं डरति ह ,ं रै ति छपाव ं सूर ।


िै चह-दीन्ह कवाँि कहाँ , मोकहाँ होइ मयू र ॥3॥
धाय सुआ िे इ मारै िई । समु तझ तियाि तहये मति भई ॥
सुआ सो राजा कर तबसरामी । मारर ि जाइ चहै जेतह स्वामी ॥
यह पंतडि खंतडि बैरािू । दोष िातह जे तह सूझ ि आिू ॥
जो तिररया के काज ि जािा । परै धोख, पाछे पतछिािा ॥
िािमति िातिति-बुतध िाऊ । सुआ मयूर होइ ितहं काऊ ॥
ज ि कंि के आयसु माहीं । क ि भरोस िारर कै वाही ?॥
मकु यह खोज तितस आए । िुरय-रोि हरर-माथे जाए ॥

दु इ सो छपाए िा छपै एक हत्ा एक पाप ।


अं ितह करतहं तबिास िे इ, सेइ साखी दे इाँ आप ॥4॥

राखा सुआ, धाय मति साजा । भएउ क ज तितस आएउ राजा ॥


रािी उिर माि स ं दीन्हा । पं तडि सुआ मजारी िीन्हा ॥
मैं पूछा तसंघि पदतमिी । उिर दीन्ह िुम्ह, को िातििी ?॥
वह जस तदि, िुम तितस अाँ तधयारी । कहााँ बसंि; करीि क बारी ॥
का िोर पुरुष रै ति कर राऊ । उिू ि जाि तदवस कर भाऊ ॥
का वह पंखख कूट मुाँ ह कूटे । अस बड बोि जीभ मु ख छोटे ॥
जहर चुवै जो जो कह बािा । अस हतियार तिए मु ख रािा ॥

माथे ितहं बैसाररय ज सुतठ सुआ सिोि ।


काि टु टैं जेतह पतहरे का िे इ करब सो सोि ?॥5॥

राजै सुति तवयोि िस मािा । जै से तहय तवक्रम पतछिािा ॥


बह हीरामि पंतडि सूआ । जो बोिै मु ख अमृ ि चूआ ॥
पंतडि िुम्ह खंतडि तिरदोखा । पं तडि हुिें परै ितहं धोखा ॥
पंतडि केरर जीभ मु ख सूधी । पं तडि बाि ि कहै तबरूधी ॥
पंतडि सुमति दे इ पथ िावा । जो कुपंतथ िेतह पाँ तडि ि भावा ॥
पंतडि रािा बदि सरे खा । जो हत्ार रुतहर सो दे खा ॥
की पराि घट आिहु मिी। की चति होहु सुआ साँि सिी ॥

तजति जािहु कै औिुि माँ तदर सोइ सुखराज ।


आयसु मे टें कंि कर काकर भा ि अकाज ?॥6॥

चााँद जैस धति उतजयारर अही । भा तपउ-रोस, िहि अस िही ॥


परम सोहाि तिबातह ि पारी । भा दोहाि सेवा जब हारी ॥
एितिक दोस तबरतच तपउ रूठा । जो तपउ आपि कहै सो झूठा ॥
ऐसे िरब ि भूिै कोई । जेतह डर बहुि तपयारी सोई ॥
रािी आइ धाय के पासा । सुआ मु आ सेवाँर कै आसा ॥
परा प्रीति-कंचि महाँ सीसा । तबहरर ि तमिै , स्याम पै दीसा ॥
कहााँ सोिार पास जे तह जाऊाँ । दे इ सोहाि करै एक ठाऊाँ ॥

मैं तपउ -प्रीति भरोसे िरब कीन्ह तजउ मााँह ।


िेतह ररस ह ं परहे िी, रूसेउ िािर िाहाँ ॥7॥

उिर धाय िब दीन्ह ररसाई । ररस आपुतह, बुतध औरतह खाई ॥


मैं जो कहा ररस तजति करु बािा । को ि ियउ एतह ररस कर घािा ?॥
िू ररसभरी ि दे खेतस आिू । ररस महाँ काकर भयउ सोहािू ?॥
जेतह ररस िेतह रस जोिे ि जाई । तबिु रस हरतद होइ तपयराई ॥
तबरतस तबरोध ररसतह पै होई । ररस मारै , िेतह मार ि कोई ॥
जेतह ररस कै मररए, रस जीजै । सो रस ितज ररस कबहुाँ ि कीजै ॥
कंि-सोहाि तक पाइय साधा । पावै सोइ जो ओतह तचि बााँधा ॥

रहै जो तपय के आयसु औ बरिै होइ हीि ।


सोइ चााँद अस तिरमि, जिम ि होइ मिीि ॥8॥

जुआ-हारर समु झी मि रािी । सु आ दीन्ह राजा कहुाँ आिी ॥


मािु पीय ! ह ं िरब ि कीन्हा । कंि िुम्हार मरम मैं िीन्हा ॥
सेवा करै जो बरह मासा । एितिक औिुि करहु तबिासा ॥
ज ं िुम्ह दे इ िाइ कै िीवा । छााँ डहुाँ ितहं तबिु मारे जीवा ॥
तमििहु महाँ जिु अह तििारे । िुम्ह स ं अहै अदे स, तपयारे !॥
मैं जािे उाँ िुम्ह मोही माहााँ । दे ख ं िातक ि ह सब पाहााँ ॥
का रािी, का चेरी कोई । जा कहाँ मया करहु भि सोई ॥

िुम्ह स ं कोइ ि जीिा, हारे बररुतच भोज ।


पतहिै आपु जो खोवै करै िुम्हार सो खोज ॥9॥

(1) ओपतिवारी = चमकािे वािी । बाति =वणा । कतस = कस टी पर कसकर । िोिी, िावण्यमयी, सुंदरी । आि =शपथ, कसम ।
(2) स धं े = सुिंध से ।
(3) िमचूर = िाम्र चूड, मु िाा । "शब्द ि दे इ....िमचूरू" अथााि मु िाा कहीं पद्माविी-रूपी प्रभाि की आवाज ि दे तक हे राजा उठ! तदि
की ओर दे ख । कतव ऊपर कह चुका है तक "तदितहं ि पूजै तितस अाँ तधयारी "। धाय = दाई, धात्री । दातमिी = दासी का िाम । मयूर =
मोर । मोर िाि का शत्रु है , िािमिी के वाक्य से शुक के शत्रु होिे की ध्वति तिकििी है । `कमि' में पद्माविी की ध्वति है ।
(4) तबसरामी = मिोरं जि की वस्तु । खं तडि बैरािू =बैराग्य में चूक िया इससे िोिे का जन्म पाया । काऊ = कभी । मकु = शायद, कदातचि
। िुरय = िुरि, घोडा । िाऊ= उसकी । हरर = बंदर । िुरय...जाए = कहिे हैं तक घुडसाि में बंदर रखिे से घोडे िीरोि रहिे हैं , उिका
रोि बंदर पर जािा है । सेइ = वे ही । हत्ा और पाप ही ।
(5) कूट = कािकूट, तवष । कूटे =कूट कूटकर भरे हुए बैसाररये = बैठाइए ।
(6) िुम्ह खंतडि = िुमिे खंतडि या िि तकया । सरे ख =सज्ञाि, चिुर ,। मिी = तवचार करके ।
(7) दोहाि = दु भााग्य । तवरतच = अिु रक्त होकर । दे इ सोहाि (क) स भाग्य, (ख) सोहािा दे । परहे िी = अवहे ििा की, बेपरवाही की ।
(8) आिू = आिम, पररणाम । जोि ि जाई =रक्षा िहीं तकया जािा । तबरस = अिबि । साधा = साध या िािसा मात्र से । हीि = दीि, िम्र

राजा-सुआ-संवाद-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी

राजै कहा सत् कहु सूआ । तबिु सि जि सेंवर कर भूआ ॥


होइ मु ख राि सत् के बािा । जहााँ सत् िहाँ धरम साँघािा ॥
बााँधी तसतहतट अहै सि केरी । ितछमी अहै सत् कै चेरी ॥
सत् जहााँ साहस तसतध पावा । औ सिबादी पुरुष कहावा ॥
सि कहाँ सिी साँवारे सरा । आति िाइ चहुाँ तदतस सि जरा ॥
दु इ जि िरा सत् जेइ राखा । और तपयार दइतह सि भाखा ॥
सो सि छााँ तड जो धरम तबिासा । भा मतिहीि धरम करर िासा ॥

िुम्ह सयाि औ पंतडि, असि ि भाख ं काउ ।


सत् कहहु िुम मोस ,ं दु हुाँ काकर अतियाउ ॥1॥

सत् कहि राजा तजउ जाऊ । पै मु ख असि ि भाख ं काऊ ॥


ह ं सि िे इ तिसरे उाँ एतह बूिे । तसंघिदीप राजघर हूाँ िे ॥
पदमावति राजा कै बारी । पदु म-िंध सतस तबतध औिारी ॥
सतस मु ख, अं ि मियतिरर रािी । किक सुिंध दु आदस बािी ॥
अहैं जो पदतमति तसंघि माहााँ । सुिाँध रूप सब तिन्हकै छाहााँ ॥
हीरामि ह ं िेतहक परे वा । कंठा फूट करि िेतह सेवा ॥
औ पाएउाँ मािु ष कै भाषा । िातहं ि पंखख मू तठ भर पााँ खा ॥

ज ितह तजऔं राि तदि साँवर ं ओतह कर िावाँ ।


मु ख रािा, िि हररयर दु हूाँ जिि िे इ जावाँ ॥2॥

हीरामि जो कवाँि बखािा । सु ति राजा होइ भाँवर भुिािा ॥


आिे आव, पंखख उतजयारा । कहाँ सो दीप पिाँि कै मारा ॥
अहा जो किक सुबातसि ठाऊाँ । कस ि होइ हीरामि िाऊाँ ॥
को राजा, कस दीप उिंिू । जेतह रे सुिि मि भएउ पिंिू ॥
सुति सतमद्र भा चख तकितकिा । कवाँितह चह ं भाँवर होइ तमिा ॥
कहु सुिंध धति कस तिरमिी । भा अति-संि, तक अबहीं किी ?॥
औ कहु िहाँ जहाँ पदतमिी िोिी । घर-घर सब के होइ जो होिी ॥

सबै बखाि िहााँ कर कहि सो मोस ं आव ।


चह ं दीप वह दे खा,सुिि उठा अस चाव ॥3॥

का राजा ह ं बरि ं िासू । तसं घिदीप आतह कैिासू ॥


जो िा िहााँ भुिािा सोई । िा जुि बीति ि बहुरा कोई ॥
घर घर पदतमति छतिस जािी ।सदा बसंि तदवस औ रािी ॥
जेतह जेतह बरि फूि फुिवारी । िेतह िेतह बरि सुिंध सो िारी ॥
िंध्रबसेि िहााँ बड राजा । अछररन्ह महाँ इं द्रासि साजा ॥
सो पदमावति िेतह कर बारी । जो सब दीप मााँह उतजयारी ॥
चहूाँ खंड के बर जो ओिाही । िरबतह राजा बोिै िाहीं ॥
उअि खंड के बर जो ओिाही । िरबतह राजा बोिै िाहीं ॥

उअि सूर जस दे खखय चााँद छपै िेतह धू प ।


ऐसे सबे जातहं छतप पदमावति के रूप ॥4॥

सुति रतव-िावाँ रिि भा रािा । पंतडि फेरर उहै कहु बािा ॥


िें सुरंि मू रि वह कही । तचि महाँ िाति तचत्र होइ रही ॥
जिु होइ सुरुज आइ मि बसी । सब घट पूरर तहये परिसी ॥
अब ह ं सुरुज, चााँद वह छाया । जि तबिु मीि, रकि तबिु काया ॥
तकररि-करा भा प्रेम -अाँ कूरू । ज सतस सरि, तमि ं होइ सूरू ॥
सहस करा रूप मि भूिा । जहाँ जहाँ दीठ कवाँि जिु फूिा ॥
िहााँ भवाँर तजउ काँविा िंधी । भइ सतस राहु केरर ररति बंधी ॥

िीति िोक च दह खंड सबै परै मोतहं सूतझ ।


पेम छाँ तड ितहं िोि तकछु , जो दे खा मि बूतझ ॥5॥

पेम सुिि मि भूि ि राजा । कतठि पेम, तसर दे इ ि छाजा ॥


पेम-फााँद जो परा ि छूटा । जीउ दीन्ह पै फााँद ि टू टा ॥
तिरतिट छं द धरै दु ख िेिा । खि खि पीि, राि खि सेिा ॥
जाि पुछार जो भा बिबासी । रोंव रोंव परे फाँद ििवासी ॥
पााँखन्ह तफरर तफरर परा सो फााँदू । उतड ि सकै, अरुझा भा बााँदू ॥
`मु यों मु यों' अहतितस तचल्लाई । ओही रोस िािन्ह धै खाई ॥
पंडुक, सुआ, कंक वह चीन्हा । जेतहं तिउ परा चातह तजउ दीन्हा ॥

तितिर-तिउ जो फााँद है , तितत्त पु कारै दोख ।


सो तकि हाँ कार फााँद तिउ (मे िै) तकि मारे होइ मोख ॥6॥

राजै िीन्ह ऊतब कै सााँसा । ऐस बोि तजति बोिु तिरासा ॥


भिे तह पेम है कतठि दु हेिा । दु इ जि िरा पेम जेइ खेिा ॥
दु ख भीिर जो पेम-मधु राखा । जि ितहं मरि सहै जो चाखा ॥
जो ितहं सीस पेम-पथ िावा । सो तप्रतथमी महाँ काहे क आवा? ॥
अब मैं पंथ पेम तसर मे िा । पााँव ि ठे िु , राखु कै चेिा ॥
पेम -बार सो कहै जो दे खा । जो ि दे ख का जाि तवसे खा ?॥
ि िति दु ख पीिम ितहं भेंटा । तमिै , ि जाइ जिम-दु ख मे टा ॥

जस अिू प, िू बरिे तस, िखतसख बरिु तसंिार ।


है मोतहं आस तमिै कै, ज मे रवै करिार ॥7॥

(1) भूआ = सेमि की रूई । मु ख राि होई = सुखारू होिा है । सरा = तचिा ।
(2) घर हूाँ िे = घर से (प्रा0 पंचमी तवभखक्त `तहिो') दु वादस बािी = बारह बािी, चोखा (िादश वणा अथााि् िादश आतदत् के समाि ) कंठा फूट
= ििे में कंठे की िकीर प्रकट हुई । सयािा हुआ ।
(3) पिंि कै मारा = तजसिे पिंि बिाकर मारा । उिंिू = ऊाँचा । तकितकिा = जि के ऊपर मछिी के तिये माँ डरािे वािा एक जिपक्षी ।
होिी =बाि, ब्यवहार ।
(4) अछरी - अप्सरा । ओिाहीं = झुकिे हैं ।
(5) करा = किा । िोि = सुंदर ।
(6) छं द = रूप रचिा । पुछार = मयूर, मोर । ििवासी = िािों का फंदा अथााि् िािपाश ।
(6) धै =धरकर । चीन्हा = तचह्न, िकीर, रे खा ।
(7) ऊतब कै सााँस िीन्ह = िं बी सााँस िी । दु हेिा = कतठि खेि । पााँव ि ठे िु = पैर से ि ठु करा, तिरस्कार ि कर । तबसेखा = ममा
िखतशख खंड / मतिक मोहम्मद जायसी

का तसंिार ओतह बरि ,ं राजा । ओतहक तसंिार ओतह पै छाजा ॥


प्रथम सीस कस्तूरी केसा । बति बासुतक, का और िरे सा ॥
भ रं केस, वह मािति रािी । तबसहर िु रे िे तहं अरघािी ॥
बेिी छोरर झार ज ं बारा । सरि पिार होइ अाँ तधयारा ॥
कोंपर कुतटि केस िि कारे । िहरखन्ह भरे भुअंि बैसारे ॥
बेधे जिों मियतिरर बासा । सीस चढे िोटतहं चहाँ पासा ॥
घुाँघरवार अिकै तवषभरी । साँकरैं पेम चहैं तिउ परी ॥

अस फदवार केस वै परा सीस तिउ फााँद ।


अस्ट कुरी िाि सब अरुझ केस के बााँद ॥1॥

बरि ं मााँि सीस उपराहीं । सेंदुर अबतहं चढा जेतह िाहीं ॥


तबिु सेंदुर अस जािहु दीआ । उतजयर पंथ रै ति महाँ कीआ ॥
कंचि रे ख कस टी कसी । जिु घि महाँ दातमति परिसी ॥
सरु-तकररि जिु ििि तबसेखी । जमु िा मााँह सुरसिी दे खी ॥
खााँडै धार रुतहर िु भरा । करवि िे इ बेिी पर धरा ॥
िेतह पर पूरर धरे जो मोिी । जमु िा मााँझ िंि कै सोिी ॥
करवि िपा िे तहं होइ चूरू । मकु सो रुतहर िे इ दे इ सेंदूरू ॥

किक दु वासि बाति होइ चह सोहाि वह मााँि ।


सेवा करतहं िखि सब उवै ििि जस िााँि ॥2॥

कह ं तििार दु इज कै जोिी । दु इजि जोति कहााँ जि ओिी ॥


सहस तकररि जो सुरुज तदपाई । दे खख तििार सोउ छतप जाई ॥
का सरवर िेतह दे उाँ मयंकू । चााँद किं की, वह तिकिंकू ॥
औ चााँदतह पुति राहु िरासा । वह तबिु राहु सदा परिासा ॥
िेतह तििार पर ििक बईठा । दु इज-पाट जािहु ध्रु व दीठा ॥
किक-पाट जिु बैठा राजा । सबै तसंिार अत्र िे इ साजा ॥
ओतह आिे तथर रहा ि कोऊ । दहुाँ का कहाँ अस जुरै साँजोिू ॥

खरि, धिुक, चक बाि दु इ, जि-मारि तिन्ह िावाँ ।


सुति कै परा मु रुतछ कै (राजा) मोकहाँ हए कुठावाँ ॥3॥

भ हैं स्याम धिु क जिु िािा । जा सहुाँ हे र मार तवष-बािा ॥


हिै धु िै उन्ह भ ह
ं ति चढे । केइ हतियार काि अस िढे ?॥
उहै धिु क तकरसुि पर अहा । उहै धिु क राघ कर िहा ॥
ओतह धिु क रावि संघारा । ओतह धिु क कंसासुर मारा ॥
ओतह धिु क बैधा हुि राहू । मारा ओतह सहस्राबाहू ॥
उहै धिु क मैं थापहाँ चीन्हा । धािु क आप बेझ जि कीन्हा ॥
उन्ह भ ह ं ति सरर केउ ि जीिा । अछरी छपीं, छपीं िोपीिा ॥

भहं धिु क, धति धािु क, दू सर सरर ि कराइ ।


ििि धिु क जो ऊिै िाजतह सो छतप जाइ ॥4॥

िै ि बााँक,सरर पूज ि कोऊ । मािसरोदक उथितहं दोऊ ॥


रािे काँवि करतहं अति भवााँ । घूमतहं माति चहतहं अपसवााँ ॥
उठतह िुरंि िे तहं ितहं बािा । चहतहं उितथ ििि कइाँ िािा ॥
पवि झकोरतहं दे इ तहिोरा । सरि िाइ भुइाँ िाइ बहोरा ॥
जि डोिै डोिि िैिाहााँ । उितट अडार जातहं पि माहााँ ॥
जबतहं तफरातहं ििि ितह बोरा । अस वै भ रं चक्र के जोरा ॥
समु द-तहिोर तफरतहं जिु झूिे । खंजि िरतहं , तमररि जिु भूिे ॥

सुभर सरोवर ियि वै, मातिक भरे िरं ि ।


आवि िीर तफरावहीं काि भ रं िेतहं संि ॥5॥

बरुिी का बरि इतम बिी । साधे बाि जािु दु इ अिी ॥


जुरी राम रावि कै सेिा ।बीच समु द्र भए दु इ िै िा ॥
बारतहं पार बिावरर साधा । जा सहुाँ हे र िाि तवष-बाधा ॥
उन्ह बािन्ह अस को जो ि मारा ?। बेतध रहा सिर संसारा ॥
ििि िखि जो जातहं ि ििे । वै सब बाि ओही के हिे ॥
धरिी बाि बेतध सब राखी । साखी ठाढ दे तहं सब साखी ॥
रोवाँ रोवाँ मािु ष िि ठाढे । सूितह सूि बेध अस िाढे ॥

बरुति-बाि अस ओपहाँ , बेधे रि बि-ढाख ।


स जतहं िि सब रोवााँ, पं खतह िि सब पााँख ॥6॥
िातसक खरि दे उाँ कह जोिू । खरि खीि, वह बदि-साँजोिू ॥
िातसक दे खख िजािे उ सूआ । सू क अइ बेसरर होइ ऊआ ॥
सुआ जो तपअर तहरामि िाजा । और भाव का बरि ं राजा ॥
सुआ, सो िाक कठोर पाँवारी । वह कोंवर तिि-पुहुप साँवारी ॥
पुहुप सुिंध करतहं एतह आसा । मकु तहरकाइ िे इ हम्ह पासा ॥
अधर दसि पर िातसक सोभा । दाररउाँ तबंब दे खख सुक िोभा ॥
खंजि दु हुाँ तदतस केति कराही । दहुाँ वह रस कोउ पाव तक िाहीं ॥

दे खख अतमय-रस अधरन्ह भएउ िातसका कीर ।


प ि बास पहुाँ चावै, अस रम छााँड ि िीर ॥7॥

अधर सुरंि अमी-रस-भरे । तबंब सुरंि िातज बि फरे ॥


फूि दु पहरी जाि ं रािा । फूि झरतहं ज्यों ज्यों कह बािा ॥
हीरा िे इ सो तवद्रु म-धारा । तबहाँ सि जिि होइ उतजयारा ॥
भए माँ झीठ पािन्ह राँ ि िािे । कुसुम -रं ि तथर रहै ि आिे ॥
अस कै अधर अमी भरर राखे । अबतहं अछूि, ि काहू चाखे ॥
मु ख िाँबोि-राँ ि-धारतह रसा । केतह मु ख जोि जो अमृ ि बसा ?॥
् रािा जिि दे खख राँ िरािी । रुतहर भरे आछतह तबहाँ सािी ॥

अमी अधर अस राजा सब जि आस करे इ ।


केतह कहाँ कवाँि तबिासा, को मधु कर रस िे इ ?॥8॥

दसि च क बैठे जिु हीरा । औ तबच तबच रं ि स्याम िाँभीरा ॥


जस भाद - ं तितस दातमति दीसी । चमतक उठै िस बिी बिीसी ॥
वह सुजोति हीरा उपराहीं । हीरा-जाति सो िेतह परछाहीं ॥
जेतह तदि दसिजोति तिरमई । बहुिै जोति जोति ओतह भई ॥
रतव सतस िखि तदपतहं ओतह जोिी । रिि पदारथ मातिक मोिी ॥
जहाँ जहाँ तबहाँ तस सुभावतह हाँ सी । िहाँ िहाँ तछटतक जोति परिसी ॥
दातमति दमतक ि सरवरर पूजी । पुति ओतह जोति और को दू जी ?॥

हाँ सि दसि अस चमके पाहि उठे झरखक्क ।


दाररउाँ सरर जो ि कै सका , फाटे उ तहया दरखक्क ॥9॥

रसिा कह ं जो कह रस बािा । अमृ ि-बैि सुिि मि रािा ॥


हरै सो सुर चािक कोतकिा । तबिु बसंि यह बैि ि तमिा ॥
चािक कोतकि रहतहं जो िाहीं । सुतह वह बैि िाज छतप जाहीं ॥
भरे प्रेम-रस बोिै बोिा । सुिै सो माति घू तम कै डोिा ॥
चिुरवेद-मि सब ओतह पाहााँ । ररि,जजु, सअम अथरबि माहााँ ॥
एक एक बोि अरथ च िुिा । इं द्र मोह, बरम्हा तसर धुिा ॥
अमर, भािवि, तपंिि िीिा । अरथ बूतझ पंतडि िही जीिा ॥

भासविी औ ब्याकरि, तपंिि पढै पुराि ।


बेद-भेद स ं बाि कह, सुजिन्ह िािै बाि ॥10॥

पुति बरि ं का सुरंि कपोिा । एक िाराँ ि दु इ तकए अमोिा ॥


पुहुप-पंक रस अमृ ि सााँधे । केइ यह सुराँि खर रा बााँधे ?॥
िेतह कपोि बाएाँ तिि परा । जे इ तिि दे खख सो तिि तिि जरा ॥
जिु घुाँघची ओतह तिि करमु हीं । तबरह-बाि साधे सामु हीं ॥
अतिति-बाि जाि तिि सूझा । एक कटाछ िाख दस झूझा ॥
सो तिि िाि ितहं िएऊ । अब वह िाि काि जि भएऊ ॥
दे खि िै ि परी पररछाहीं । िेतह िें राि साम उपराहीं ॥

सो तिि दे खख कपोि पर ििि रहा धु व िातड ।


खखितहं उठै खखि बूडै, डोिै ितहं तिि छााँतड ॥11॥

स्रवि सीप दु इ दीप साँवारे । कुाँडि किक रचे उतजयारे ॥


मति-मं डि झिकैं अति िोिे । जिु क ध ं ा ि कतह दु इ कोिे ॥
दु हुाँ तदतस चााँद सुरुज चमकाहीं । िखिन्ह भरे तिरखख ितहं जाहीं ॥
िेतह पर खूाँट दीप दु इ बारे । दु इ धु व दु औ खूाँट बैसारे ॥
पतहरे खुंभी तसंििदीपी । जि ं भरी कचपतचआ सीपी ॥
खखि खखि जबतह चीर तसर िहै । कााँपति बीजु दु औ तदतस रहै ॥
डरपतहं दे विोक तसंघिा । परै ि बीजु टू तट एक किा ॥

करतहं िखि सब सेवा स्रवि दीन्ह अस दोउ ।


चााँद सुरुज अस िोहिे और जिि का कोउ ?॥12॥

बरि ं िीउ कंबु कै रीसी । कंचि-िार-िाति जिु सीसी ॥


कुंदै फेरर जािु तिउ काढी । हरी पुछार ठिी जिु ठाढी ॥
जिु तहय कातढ परवा ठाढा । िेतह िै अतधक भाव तिउ बाढा ॥
चाक चढाइ सााँच जिु कीन्हा । बाि िुरंि जािु ितह िीन्हा ॥
िए मयूर िमचूर जो हारे । उहै पुकारतहं सााँ झ सकारे ॥
पुति िेतह ठााँव परी तिति रे खा । घूाँट जो पीक िीक सब दे खा ॥
धति ओतह िीउ दीन्ह तबतध भाऊ । दहुाँ कास ं िे इ करै मे राऊ ॥

कंटतसरी मु कुिाविी सोहै अभरि िीउ ।


िािै कंठहार होइ को िप साधा जीउ ?॥13॥

किक-दं ड दु इ भुजा किाई । जाि ं फेरर कुाँदे रै भाई ॥


कदति-िाभ कै जाि जोरी । औ रािी ओतह काँवि-हथोरी ॥
जािो रकि हथोरी बूडी । रतव-परभाि िाि, वै जूडी ॥
तहया कातढ जिु िीन्हे तस हाथा । रुतहर भरी अाँ िुरी िेतह साथा ॥
औ पतहरे िि-जरी अाँ िूठी । जि तबिु जीउ,जीउ ओतह मू ठी ॥
बाहूाँ कंिि, टाड सिोिी । डोिि बााँह भाव िति िोिी ॥
जाि िति बेतडि दे खराई । बााँह डोिाइ जीउ िे इ जाई ॥

भुज -उपमा प ि ं ार ितहं , खीि भयउ िेतह तचंि ।


ठााँवतह ठााँव बेध भा, ऊतब सााँस िे इ तिं ि ॥14॥

तहया थार, कुच कंचि िारू । किक कच र उठे जिु चारू ॥


कुंदि बेि सातज जिु कूाँदे । अमृ ि रिि मोि दु इ मूाँदे ॥
बेधे भ रं कंट केिकी । चाहतहं बेध कीण्ह कंचुकी ॥
जोबि बाि िे तहं ितहं बािा । चाहतहं हुितस तहये हठ िािा ॥
अतिति-बाि दु इ जाि ं साधे । जि बेधतहं ज ं होतहं ि बााँधे ॥
उिाँि जाँभीर होइ रखवारी । छु इ को सकै राजा कै बारी ॥
दारउाँ दाख फरे अिचाखे । अस िाराँ ि दहुाँ का कहाँ राखे ॥

राजा बहुि मु ए ितप िाइ िाइ भुइाँ माथ ।


काहू छु वै ि पाए , िए मरोरि हाथ ॥15॥

पेट परि जिु चंदि िावा । कुहाँ कुहाँ -केसर-बरि सुहावा ॥


खीर अहार ि कर सुकुवााँरा । पाि फूि के रहै अधारा ॥
साम भुअंतिति रोमाविी । िाभी तिकतस कवाँि कहाँ चिी ॥
आइ दु औ िाराँ ि तबच भई । दे खख मयूर ठमतक रतह िई ॥
मिहुाँ चढी भ रं न्ह पााँिी । चंदि-खााँभ बास कै मािी ॥
की कातिं दी तबरह-सिाई । चति पयाि अरइि तबच आई ॥
िातभ-कुंड तबच बारािसी । स ह ं को होइ, मीचु िहाँ बसी ॥

तसर करवि, िि करसी बहुि सीझ िि आस ।


बहुि धू म घुतट घुतट तमए, उिर ि दे इ तिरास ॥16॥

बैररति पीतठ िीन्ह वह पाछे । जिु तफरर चिी अपछरा काछे ॥


मियातिरर कै पीतठ साँवारी । बेिी िातिति चढी जो कारी ॥
िहरैं दे ति पीतठ जिु चढी । ...........केंचुिी मढी ॥
दहुाँ का कहाँ अस बेिी कीन्हीं । चंदि बास भुअंिै िीन्हीं ॥
तकरसुि करा चढा ओतह माथे । िब ि छूट,अब छु टै ि िाथे ॥
कारे कवाँि िहे मु क दे खा । सतस पाछे जिु राहु तबसेखा ॥
को दे खै पावै वह िािू । सो दे खै जेतह के तसर भािू ॥
पन्नि पंकज मु ख िहे खंजि िहााँ बईठ ।
छत्र, तसंघासि, राज, धि िाकहाँ होइ जो डीठ ॥17॥

िं क पुहुतम अस आतह ि काहू । केहरर कह ं ि ओतह सरर िाहू ॥


बसा िं क बरिै जि झीिो । िेतह िें अतधक िं क वह खीिी ॥
पररहाँ स तपयर भए िेतहं बसा । तिए डं क िोिन्ह कह डसा ॥
मािहुाँ िाि खंड दु इ भए । दु हूाँ तबच िं क-िार रतह िए ॥
तहय के मु रे चिै वह िािा । पैि दे ि तकि सतह सक िािा ?॥
छु द्रघंतटका मोहतहं राजा । इं द्र-अखाड आइ जिु बाजा ॥
मािहुाँ बीि िहे कातमिी । िावतह सबै राि रातििी ॥

तसंघ ि जीिा िं क सरर, हारर िीन्ह बिबासु ।


िेतह ररस मािु स-रकि तपय, खाइ मारर कै मााँसु ॥18॥

िातभकुंड सो मयि-समीरू । समु द-भाँवर जस भाँवै िाँभीरू ॥


बहुिै भाँवर बवंडर भए । पहुाँ तच ि सके सरि कहाँ िए ॥
चंदि मााँझ कुरं तििी खोजू । दहुाँ को पाउ , को राजा भोजू ॥
को ओतह िाति तहवंचि सीझा । का कहाँ तिखी, ऐस को रीझा ?॥
िीवइ कवाँि सुिंध सरीरू । समु द-िहरर सोहै िि चीरू ॥
भूितहं रिि पाट के झोंपा । सातज मै ि अस का पर कोपा ?॥
अबतहं सो अहैं कवाँि कै करी । ि जि क ि भ रं कहाँ धरी ॥

बेतध रहा जि बासिा पररमि मेद सुिंध ।


िेतह अरघाति भ रं सब िु बुधे िजतहं ि बंध ॥19॥

बरि ं तििंब िंक कै सोभा । औ िज-िवि दे खख मि िोभा ॥


जुरे जंघ सोभा अति पाए । केरा-खंभ फेरर जिु िाए ॥
कवि-चरि अति राि तबसेखी । रहैं पाट पर, पुहुतम ि दे खी ॥
दे विा हाथ हाथ पिु िे तहं । जहाँ पिु धरै सीस िहाँ दे हीं ॥
माथे भाि कोउ अस पावा । चरि-काँवि िे इ सीस चढावा ॥
चूरा चााँद सुरुज उतजयारा । पायि बीच करतहं झिकारा ॥
अिवट तबतछया िखि िराई । पहुाँ तच सकै को पायाँि िाईं ॥

बरति तसंिार ि जािे उाँ िखतसख जैस अभोि ।


िस जि तकछु इ ि पाएउाँ उपमा दे उाँ ओतह जोि ॥20॥

(1) साँकरैं = श्रृंखिा, जंजीर । फाँदवार = फंद में फाँसािे वािे । बति = तिछावर हैं । िू रे = िु ढाँिे या िहरिे हुए । अरघाति = महाँ क, आघ्राण ।
अस्टकुरी = अिकुििाि (ये हैं - वासुतक, िक्षक, कुिक, ककोटक, पद्म, शंखचूड, महापद्म, धिं जय )।
(2) उपराहीं = ऊपर । रुतहर = रुतधर । करवि = कर-पत्र, कुछ िोि तत्रवेणी संिम पर अपिा शरीर आरे से तचरवािे थे, इसी को करवट िे ि
कहिे थे । वहााँ एक आरा इसके तिए रखा रहिा था । काशी में भी एक स्थाि था तजसे काशी करवट कहिे हैं । िपा = िपस्वी । सोहाि
=(स भाग्य), (ख) सोहािा ।
(3) ओिी = उििी । अत्र = अस्त्र । हए = हिें, मारा
(4) सहुाँ - सामिे । हुि =था । बेझ = बेध्य, बेझा तिसािा ।
(5) उिथतहं - उछििे हैं । भवााँ =फेरा,चक्कर । अपसवााँ चहतहं = जािा चाहिे हैं , उडकर भाििा चाहिे हैं (अपस्रवण )।
(6) उितट....पि माहा = बडे बडे अडिे वािे या खस्थर रहिे वािे पि भर में उिट जािे हैं ।तफरावहीं = चक्कर दे िे हैं ।अिी =सेिा ।
बिावररं = बाणावति, िीरों की पं खक्त । साखी = वृक्ष । साखी = साक्ष्य, िवाही । रि = अरण्य ।
(7) जोिु दे उाँ = जोड तमिाउाँ । समिा में रखूाँ । पाँवारी = िोहारों का एक औजार तजससे िोहे में छे द करिे हैं । तहरकाइ िे इ = पास सटा
िे ।
(8) हीरा िे इ...उतजयारा = दााँिों की स्वेि और अधरों की अरुण ज्योति के प्रसार से जिि में उजािा होिा, कहकर कतव िे उषा या
अरुणोदय का बडा सुन्दर िूढ संकेि रखा है । मजीठ = बहुि िहरा मजीठ के रं िका िाि धार = खडी रे खा ।
(9) च क =आिे के चार दााँि । पाहि = पत्थर, हीरा । झरखक्क उठे । झिक िए । अिे क प्रकार के रत्नों के रूप में हो िए । झरखक्क उठे
= झिक िए । अिे क प्रकार के रत्नों के रूप में हो िए ।
(10) अमर = अमरकोश । भासविी = भास्विी िामक ज्योतिष का ग्रंथ । सुजिन्ह = सुजािों या चिुरों को ।
(11) सााँधे = सािे , िूाँधे, खर रा = खााँड के िड् डू । खाँड रा ।घुाँघची =िुाँजा । करमुाँ हा = कािे मुाँ हवािा
(12) ि कतहं = चमकिी है , तदखाई पडिी है । खूाँट = काि का एक िहिा । खूाँट = कोिे । खुं भी = काि का एक िहिा । कचपतचया =
कृतिका िक्षत्र तजसमें बहुि से िारे एक िुच्छे में तदखाई पडिे हैं । िोहिे = साथ में , सेवा में ।
(13) कंबु = शंख । रीसी =ईर्ष्ाा (उत्पन्न करिे वािी ) अथवा `करोसी' कैसी, जैसी; समाि । कुंदै = खराद । पुछार =मोर । सााँ च =सााँचा । भाई
=तफराई हुई खराद पर घुमाई हुई ।
(14) िाभ = िरम कल्ला । हथोरी = हथेिी । िाि =िरम । टाड = बााँह पर पहििे का एक िहिा । बेतडि = िाचिे िािे वािी एक जाति ।
पिं ार = पद्मिाि =कमि का डं ठि । ठााँवतहं ठााँव..तिं ि = कमििाि में कााँटे से होिे हैं और वह सदा पािी के ऊपर उठा रहिा है ।
(15) कचोर =कटोरे । कूाँदे = खरादे हुए । मोि = मोिा, तपटारा, तडब्बा । बारी = (क) कन्या (ख) बिीचा ।
(16) अरइि = प्रयाि में वह स्थाि जहााँ जमु िा िंिा से तमििी है । करवि = आरा । करसी = उपिे या कंडे की आि तजसमें शरीर तसझािा
बडा िप समझा जािा था ,
(17) करा = किा से, अपिे िेज से। कारे = सााँप । पन्नि पंकज....बईठ = सपा के तसर या कमि पर बैठै खंजि को दे खिे से राज्य
तमििा है , ऐसा ज्योतिष में तिखा है ।
(18) पुहुतम = पृतथवी बसा =बरट, तभड, बरैं । पररहाँ स = ईर्ष्ाा, डाह । मािहुाँ िाि.. ...िए = कमि के िाि को िोडिे पर दोिों खंडों के
बीच महीि महीि सूि ििे रह जािे हैं िािा =सूि । छु द्र-घंतटका = घुाँघरूदार करधिी ।
(19) भाँव = घूमिा है , चक्कर खािा है । खोजू = खोज, खुर का पडा हुआ तचन्ह । तहवंचि = तहमाचि । िीवह = स्त्री । समु द्र िहरर =
िहररया कपडा । झोंपा = िुच्छा । अरघति = आघ्राण, महाँ क ।
(20) फेरर =उिटकर । िाए = ििाए ।
प्रेम-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी

सुिितह राजा िा मु रझाई । जाि ं िहरर सुरुज कै आई ॥


प्रेम-घाव-दु ख जाि ि कोई । जे तह िािै जािै पै सोई ॥
परा सो पेम-समु द्र अपारा । िहरतहं िहर होइ तबसाँभारा ॥
तबरह-भ रं होइ भााँवरर दे ई । खखिखखि जीउ तहिोरा िे ई ॥
खखितहं उसास बूतड तजउ जाई । खखितहं उठै तिसरै बोराई ॥
खखितहं पीि, खखिहोइ मु ख सेिा । खखितहं चेि, खखि होइ अचेिा ॥
कतठि मरि िें प्रेम-बेवस्था । िा तजउ तजयै, ि दसवाँ अवस्था ॥

जिु िे तिहार ि िे तहं तजउ, हरतहं िरासतहं िातहं ।


एििै बोि आव मु ख, करैं िरातह िरातह" ॥1॥

जहाँ िति कुटुाँ ब िोि औ िे िी । राजा राय आए सब बेिी ॥


जावि िुिी िारुडी आए । ओझा, बैद, सयाि बोिाए ॥
चरचतहं चेटाा पररखतहं िारी । तियर िातहं ओषद िहाँ बारी ॥
राजतहं आतह िखि कै करा । सकति-काि मोहा है परा ॥
ितहं सो राम,हतिवाँि बतड दू री । को िे इ आव सजीवि -मू री ?॥
तबिय करतहं जे िढपिी । का तजउ कीन्ह, क ि मति मिी ?॥
कहहु सो पीर, काह पु ति खााँिा ?। समु द सुमेरु आव िुम्ह मााँिा ॥

धावि िहााँ पठावहु, दे तहं िाख दस रोक ।


होइ सो बेति जेतह बारी, आितहं सबै बरोक ॥2॥

जब भा चेि उठा बैरािा । बाउर जि ं सोइ उतठ जािा ॥


आवि जि बािक जस रोआ । उठा रोइ `हा ज्ञाि सो ख आ ' ॥
ह ं िो अहा अमरपुर जहााँ । इहााँ मरिपुर आएउाँ कहााँ ?॥
केइ उपकार मरि कर कीन्हा । सकति हाँ कारर जीउ हरर िीन्हा ॥
सोवि रहा जहााँ सुख-साखा । कस ि िहााँ सोवि तबतध राखा ?॥
अब तजउ उहााँ, इहााँ िि सूिा । कब िति रहै पराि-तबहूिा ॥
ज तजउ घटतह काि के हाथा । घट ि िीक पै जीउ -तिसाथा ॥

अहुठ हाथ िि-सरवर, तहया कवाँि िेतह मााँह ।


िै ितहं जािहु िीयरे , कर पहुाँ चि औिाह ॥3॥

सबन्ह कहामि समु झहु राजा । काि सेंति कै जूझ ि छाजा ॥


िास ं जूझ जाि जो जीिा । जािि कृष्ण िजा िोपीिा ॥
औ ि िे ह काहू स ं कीजै । िााँव तमटै , काहे तजउ दीजै ॥
पतहिे सुख िे हतहं जब जोरा । पु ति होइ कतठि तिबाहि ओरा ॥
अहुठ हाथ िि जैस सुमेरू । पहुाँ तच ि जाइ परा िस फेरू ॥
ज्ञाि-तदखस्ट स ं जाइ पहुाँ चा । पेम अतदस्ट ििि िें ऊाँचा ॥
धु व िें ऊाँच पेम-धु व ऊआ । तसर दे इ पााँव दे इ सो छूआ ॥

िुम राजा औ सुखखया, करहु राज-सुख भोि ।


एतह रे पंथ सो पहुाँ चै सहै जो दु ुःख तबयोि ॥4॥
सुऐ कहा मि बूझहू राजा । करब तपरीि कतठि है काजा ॥
िुम रजा जेईं घर पोई । कवाँि ि भेंटेउ,भेंटेउ कोई ॥
जाितहं भ रं ज िे तह पथ िू टे । जीउ दीन्ह औ तदएहु ि छूटे ॥
कतठि आतहं तसंघि कर राजू । पाइय िातहं झूझ कर साजू ॥
ओतह पथ जाइ जो होइ उदासी । जोिी, जिी िपा, सन्यासी ॥
भ ि तकए ज ं पावि भोिू । ितज सो भो कोइ करि ि जोिू ॥
िुम राजा चाहहु सुख पावा । भोितह जोि करि ितहं भावा ॥

साधन्ह तसखद्ध ि पाइय ज िति सधै ि िप्प ।


सो पै जािै बापुरा करै जो सीस किप्प ॥5॥

का भा जोि-कथति के कथे । तिकसै तघउ ि तबिा दतध मथे ॥


ज ितह आप हे राइ ि कोई । ि ितह हे रि पाव ि सोई ॥
पेम -पहार कतठि तबतध िढा । सो पै चढै जो तसर स ं चढा ॥
पंथ सूरर कै उठा अाँ कूरू । चोर चढै , की चढ मं सूरू ॥
िू राजा का पतहरतस कंथा । िोरे घरहतह मााँझ दस पंथा ॥
काम,क्रोध, तिस्ना, मद माया । पााँच चोर ि छााँडतहं काया ॥
िव सेंध तिन्ह कै तदतठयारा । घर मू सतहं तितस, की उतजयारा ॥

अबहू जािु अजािा, होि आव तितस भोर ।


िब तकछु हाथ ि िाितहं मू तस जातहं जब चोर ॥6॥

सुति सो बाि राजा मि जािा । पिक ि मार, पेम तचि िािा ॥


िै िन्ह ढरतहं मोति औ मूाँ िा । जस िुर खाइ रहा होइ िूाँिा ॥
तहय कै जोति दीप वह सूझा । यह जो दीप अाँ तधयारा बुझा ॥
उितट दीठी माया स ं रूठो । पतट ि तफरी जाति कै झूठी ॥
झझ पै िाहीं अहतथर दसा । जि उजार का कीतजय बसा ॥
िुरू तबरह-तचििी जो मे िा । जो सुििाइ िे इ सो चेिा ॥
अब करर फतिि भृंि कै करा । भ रं होहुाँ जेतह कारि जरा ॥

फूि फूि तफरर पूछ ं ज पहुाँ च ं ओतह केि ॥


िि िे वछावरर कै तमि ं ज्यों मधुकर तजउ दे ि ॥7॥

बंधु मीि बहुिै समु झावा । माि ि राजा कोउ भुिावा ॥


उपतज पेम-पीर जेतह आई । परबोधि होइ अतधक सो आई ॥
अमृ ि बाि कहि तबष जािा । पेम क बचि मीठ कै मािा ॥
जो ओतह तवषै माररकै खाई । पूाँ छहु िेतह सि पेम-तमठाई ॥
पूाँछहु बाि भरथररतह जाई । अमृ ि-राज िजा तवष खाई ॥
औ महे स बड तसद्ध कहावा । उिहूाँ तवषै कंठ पै िावा ॥
होि आव रतव-तकररि तबकासा। हिु वाँि होइ को दे इ सुआसा ॥

िुम सब तसखद्ध मिावहु तहइ ििे स तसतध िे व ।


चेिा को ि चिावै िुिै िुरू जेतह भेव ?॥8॥

(1) तबसाँभरा = बेसाँभाि, बेसुध । दसवाँ अवस्था = दशम दशा, मरण । िे तिहार = प्राण िे िे वािे । हरतहं = धीरे धीरे । िरासतह =त्रास तदखािे
हैं ।
(2) िारुडी = सााँप का तबष मं त्र से उिारिे वािा । चरचतह = भााँ पिे हैं । करा = िीिा , दशा । खााँिा =घटा । रोक = रोकड,रुपया । पाठांिर
-"थोक"। बरोक = बरच्छा, फिदाि ।
(3) तवहूिा = तबहीि, तबिा । घट =शरीर । तिसाथा = तबिा साथ के । अहुठ = साढे िीि ।
(4) काि सेंति = काि से । धु व = ध्रु व । तसर दे इ....छूआ = तसर काटकर उसपर पैर रखकर खडा हो ।
(5) पोई = पकाई हुई । िुम....पोई =अब िक पकी पकाई खाई अथााि आराम चैि से रहे । पोई = पकाई हुई । साधन्ह =केवि साध या
इच्छा िे । किप्प करै =काट डािे
(6) सूरर = सूिी । तदतठयार = दे खा हुआ । दे खा हुआ । भू तस जातहं = चुरा िे जायाँ ।
(7) अहतथर -खस्थर । उजार =उजाड । बसा = बसे हुए । फतिि =फििा, फतिंिा, पिंि । भृंि = कीडा तजसके तवषय में प्रतसद्ध है तक और
पतिंिों को अपिे रूप का कर िे िा है । करा = किा , व्यापार । कैि = ओर, िरफ, अथवा केिकी ।
(8) अमृि = संसार का अच्छा से अच्छा पदाथा । तवषै = तवष िथा अध्यात्म पक्ष में तवषय । पहिे यतद संजीविी बूटी आ जायिी िो वे बचेंिे
िब राम को हिु माि जी िे ही आशा बाँधाई थी । िुिै िुरू जेतह मे व = तजस भेद िक िुरु पहुाँ चिा है , तजस ित्त्व का साक्षात्कार िुरु करिा है

जोिी-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी

िजा राज, राजा भा जोिी । औ तकंिरी कर िहे उ तबयोिी ॥


िि तबसाँभर मि बाउर िटा । अरुझा पेम, परी तसर जटा ॥
चंद्र-बदि औ चंदि-दे हा । भसम चढाइ कीन्ह िि खेहा ॥
मे खि, तसंघी, चक्र धाँ धारी । जोिबाट, रुदराछ, अधारी ॥
कंथा पतहरर दं ड कर िहा । तसद्ध होइ कहाँ िोरख कहा ॥
मु द्रा स्रवि, खंठ जपमािा । कर उदपाि, कााँध बघछािा ॥
पााँवरर पााँव, दीन्ह तसर छािा । खप्पर िीन्ह भेस करर रािा ॥

चिा भुिुति मााँिै कहाँ , सातध कया िप जोि ।


तसद्ध होइ पदमावति, जे तह कर तहये तबयोि ॥1॥

ििक कहतहं िति ि ि ि आजू । तदि िे इ चिहु, होइ तसध काजू ॥


पेम-पंथ तदि घरी ि दे खा । िब दे खै जब होइ सरे खा ॥
जेतह िि पेम कहााँ िेतह मााँसू । कया ि रकि, िै ि ितहं आाँ सू ॥
पंतडि भूि, ि जािै चािू । तजउ िे ि तदि पूछ ि कािू ॥
सिी तक ब री पू तछतह पााँडे । औ घर पैतठ तक सैंिै भााँडे ॥
मरै जो चिै िंि िति िे ई । िेतह तदि कहााँ घरी को दे ई ?॥
मैं घर बार कहााँ कर पावा । घरी के आपि , अं ि परावा ॥

ह ं रे पतथक पखेरू; जे तह बि मोर तिबाहु ।


खेति चिा िेतह बि कहाँ , िुम अपिे घर जाहु ॥2॥

चहुाँ तदतस आि सााँटया फेरी । भै कटकाई राजा केरी ॥


जावि अहतहं सकि अरकािा । सााँभर िे हु, दू रर है जािा ॥
तसंघिदीप जाइ अब चाहा । मोि ि पाउब जहााँ बेसाहा ॥
सब तिबहै िहाँ आपति सााँठी । सााँतठ तबिा सो रह मु ख माटी ॥
राजा चिा सातज कै जोिू । साजहु बेति चिहु सब िोिू ॥
िरब जो चडे िुरब कै पीठी । अब भुइाँ चिहु सरि कै डीठी ॥
मं िर िे हु होहु साँि-िािू । िुदर जाइ ब होइतह आिू ॥

का तितचंि रे मािु स, आपि चीिे आछु ।


िे तह सजि होइ अिमि, मि पतछिाव ि पाछु ॥3॥

तबिवै रििसेि कै माया । माथै छाि, पाट तिति पाया ॥


तबिसहु ि िख िखच्छ तपयारी । राज छााँ तड तजति होहु तभखारी ॥
तिति चंदि िािै जेतह दे हा । सो िि दे ख भरि अब खेहा ॥
सब तदि रहे हु करि िुम भोिू । सो कैसे साधव िप जोिू ?॥
कैसे धू प सहब तबिु छाहााँ । कैसे िींद पररतह भुइ माहााँ ?॥
कैसे ओढव काथरर कंथा । कैसे पााँव चिब िुम पंथा ?॥
कैसे सहब खीितह खखि भूखा । कैसे खाब कुरकुटा रूखा ?॥

राजपाट, दर; पररिह िुम्ह ही स ं उतजयार ।


बैतठ भोि रस मािहु, खै ि चिहु अाँ तधयार ॥4॥

मोंतह यह िोभ सुिाव ि माया । काकर सुख, काकर यह काया ॥


जो तिआि िि होइतह छारा । माटतह पोखख मरै को भारा ?॥
का भूि ं एतह चंदि चोवा । बैरी जहााँ अं ि कर रोवााँ ॥
हाथ, पााँव,सरि औं आाँ खी । ए सब उहााँ भरतह तमति साखी ॥
सूि सूि िि बोितहं दोखू । कहु कैसे होइतह िति मोखू ॥
ज ं भि होि राज औ भोिू । िोतपचंद ितहं साधि जोिू ॥
उन्ह तहय-दीतठ जो दे ख परे बा । िजा राज कजरी-बि सेवा ॥

दे खख अं ि अस होइतह िुरू दीन्ह उपदे स ।


तसंघिदीप जाब हम, मािा ! दे हु अदे स ॥5॥

रोवतहं िािमिी रतिवासू । केइ िुम्ह कंि दीन्ह बिबासू ?॥


अब को हमतहं कररतह भोतििी । हमहुाँ साथ होब जोतििी ॥
की हम्ह िावहु अपिे साथा । की अब मारर चिहु एतह हाथा ॥
िुम्ह अस तबछु रै पीउ तपरीिा । जहाँ वााँ राम िहााँ साँि सीिा ॥
ज ितह तजउ साँि छााँड ि काया । कररह ं सेव, पखररहों पाया ॥
भिे तह पदतमिी रूप अिू पा । हमिें कोइ ि आिरर रूपा ॥
भवै भिे तह पुरुखि कै डीठी । तजितहं जाि तिन्ह दीन्ही पीठी ॥

दे तहं असीस सबै तमति, िुम्ह माथे तिि छाि ।


राज करहु तचिउरिढ, राखउ तपय! अतहबाि ॥6॥

िुम्ह तिररया मति हीि िुम्हारी । मू रुख सो जो मिै घर िारी ॥


राघव जो सीिा साँि िाई । रावि हरी, कवि तसतध पाई ?॥
यह संसार सपि कर िे खा । तबछु रर िए जाि ं ितहं दे खा ॥
राजा भरथरर सुिा जो ज्ञािी । जे तह के घर सोरह सै रािी ॥
कुच िीन्हे िरवा सहराई । भा जोिी, कोउ संि ि िाई ॥
जोितह काह भ ि स ं काजू । चहै ि धि धरिी औ राजू ॥
जूड कुरकुटा भीखतह चाहा । जोिी िाि भाि कर काहा ?॥

कहा ि मािै राजा, िजी सबाईं भीर ।


चिा छााँतड कै रोवि, तफरर कै दे इ ि धीर ॥7॥

रोवि माय, ि बहुरि बारा । रिि चिा, घर भा अाँ तधयारा ॥


बार मोर ज राजतह रिा । सो िै चिा, सुआ परबिा ॥
रोवतहं रािी, िजतहं परािा । िोचतहं बार, करतहं खररहािा ॥
चूरतहं तिउ-अभरि, उर-हारा । अब कापर हम करब तसंिारा ?॥
जा कहाँ कहतहं रहतस कै पीऊ । सोइ चिा, काकर यह जीऊ ॥
मरै चहतहं , पै मरै ि पावतहं । उठे आति, सब िोि बुझावतहं ॥
घरी एक सुतठ भएउ अाँ दोरा । पुति पाछे बीिा होइ रोरा ॥

टू टे मि ि मोिी , फूटे मि दस कााँच ।


िान्ह समे तट सब अभरि, होइिा दु ख के िाच ॥8॥

तिकसा राजा तसंिी पूरी । छााँडा ििर मै ति कै धू री ॥


राय राि सब भए तबयोिी । सोरह सहस कुाँवर भए जोिी ॥
माया मोह हरा सेइ हाथा ।दे खेखन्ह बूतझ तिआि ि साथा ॥
छााँडेखन्ह िोि कुटुाँ ब सब कोऊ । भए तििाि सुख दु ख ितज दोऊ ॥
साँवरैं राजा सोइ अकेिा । जेतह के पंथ चिे होइ चेिा ॥
ििर ििर औ िााँवतहं िााँवााँ । छााँतड चिे सब ठााँवतह ठावााँ ॥
काकर मढ, काकर घर माया । िाकर सब जाकर तजउ काया ॥

चिा कटक जोतिन्ह कर कै िेरुआ सब भेसु ।


कोस बीस चाररहु तदतस जािों फुिा टे सु ॥9॥

आिे सिुि सिुतिये िाका । दतहिे माछ रूप के टााँका ॥


भरे किस िरुिी जि आई । `दतहउ िे हु' ग्वातिति िोहराई ॥
मातिति आव म र तिए िााँथे । खंजि बैठ िाि के माथे ॥
दतहिे तमररि आइ बि धाएाँ । प्रिीहार बोिा खर बाएाँ ॥
तबररख साँवररया दतहिे बोिा । बाएाँ तदसा चापु चरर डोिा ॥
बाएाँ अकासी ध री आई । िोवा दरस आई तदखराई ॥
बाएाँ कुररी, दतहिे कूचा । पहुाँ चै भुिुति जैस मि रूचा ॥

जा कहाँ सिुि होतहं अस औ िविै जेतह आस ।


अस्ट महातसतध िेतह कहाँ , जस कतव कहा तबयास ॥10॥

भयउ पयाि चिा पुति राजा । तसंति-िाद जोतिि कर बाजा ॥


कहे खन्ह आजु तकछु थोर पयािा । काखि पयाि दू रर है जािा ॥
ओतह तमिाि ज पहुाँ चै कोई । िब हम कहब पुरुष भि सोई ॥
है आिे परबि कै बाटा । तबषम पहार अिम सुतठ घाटा ॥
तबच तबच िदी खोह औ िारा । ठावतहं ठााँव बैठ बटपारा ॥
हिु वाँि केर सुिब पुति हााँका । दहुाँ को पार होइ, को थाका ॥
अस मि जाति साँभारहु आिू । अिुआ केर होहु पछिािू ॥
करतहं पयाि भोर उतठ, पंथ कोस दस जातहं ।
पंथी पंथा जे चितहं , िे का रहतहं ओठातहं ॥11॥

करहु दीठी तथर होइ बटाऊ । आिे दे खख धरहु भुइाँ पाऊ ॥


जो रे उबट होइ परे बुिािे । िए मारर, पथ चिै ि जािे ॥
पााँयि पतहरर िे हु सब प रं ी कााँ ट धसैं, ि िडै अाँ कर री ॥
परे आइ बि परबि माहााँ । दं डाकरि बीझ-बि जाहााँ ॥
सघि ढााँख-बि चहुाँ तदतस फूिा । बहु दु ख पाव उहााँ कर भूिा ॥
झाखर जहााँ सो छााँडहु पंथा । तहिति मकोइ ि फारहु कंथा ॥
दतहिे तबदर, चाँदेरी बाएाँ । दहुाँ कहाँ होइ बाट दु इ ठाएाँ ॥

एक बाट िइ तसंघि, दू सरर िं क समीप ।


हैं आिे पथ दू औ, दहु ि िब केतह दीप ॥12॥

ििखि बोिा सुआ सरे खा । अिुआ सोइ पंथ जे इ दे खा ॥


सो का उडै ि जेतह िि पााँखू । िे इ सो परासतह बूडि साखू ॥
जस अं धा अं धै कर संिी । पंथ ि पाव होइ सहिं िी ॥
सुिु मि , काज चहतस ज ं साजा । बीजाििर तवजयतिरर राजा ॥
पहुच जहािोंड औ कोिा । ितज बाएाँ अाँ तधयार, खटोिा ॥
दखक्खि दतहिे रहतह तििं िा । उत्तर बाएाँ िढ-काटं िा ॥
मााँझ रििपुर तसंघदु वारा ।झारखं ड दे इ बााँव पहारा ॥

आिे पाव उडै सा, बाएाँ तदए सो बाट ।


दतहिावरि दे इ कै, उिरु समुद के घाट ॥13॥

होि पयाि जाइ तदि केरा । तमररिारि महाँ भएउ बसेरा ॥


कुस-सााँथरर भइ स रं सुपेिी । करवट आइ बिी भुइाँ सेंिी ॥
चति दस कोस ओस िि भीजा । काया तमति िेतहं भसम मिीजा ॥
ठााँव ठााँव सब सोअतहं चेिा । राजा जािै आपु अकेिा ॥
जेतह के तहये पेम-रं ि जामा । का िेतह भूख िीद तबसरामा ॥
बि अाँ तधयार, रै ति अाँ तधयारी । भादों तबरह भएउ अति भारी ॥
तकंिरी हाथ िहे बैरािी । पााँच िंिु धु ि ओही िािी ॥

िै ि िाि िेतह मारि पदमावति जेतह दीप ।


जैस सेवातितह सेवै बि चािक, जि सीप ॥14॥

(1) तकंिरी = छोटी सारं िी या तचकारा । िटा = तशतथि, क्षीण । मे खि = मे खिा । तसंघी = सींि का बाजा जो फूाँकिे से बजिा है । धाँ धारी
= एक में िुछी हुई िोहे की पििी कतडयााँ तजिमें उिझे हुए डोरे या क डी को िोरखपंथी साधु अद् भुि रीति से तिकािा करिे हैं ; िोरखधं धा ।
अधारी = झोिा जो दोहरा होिा है । मु द्रा = स्फतटक का कुंडि तजसे िोरखपंथी काि में बहुि बडा छे द करके पहििे हैं । उदपाि =
कमं डिु । पााँवरर = खडाऊाँ । रािा = िेरुआ ।
(2) िब दे खै = िब िो दे खे; िब ि दे ख सकिा है । सरे खा = चिुर, होशवािा । सैंिे = साँभाििी या सहे जिी है ।
(3) आि = आज्ञा, घोषणा । सााँ तटया = ड डीवािा । कटकाई = दिबि के साथ चििे की िैयारी अरकािा = अरकाि-द िि; सरदार । सााँभर
= संबि, किे ऊ । सााँतठ =पूाँजी । िुरय =िुरि । िुदर होइतह = पेश होइए । आपति चीिे आछु = अपिे चेि या होश में रह । आिमि =
आिे, पहिे से ।
(4) माया = मािा । िखच्छ = िक्ष्मी । कंथा =िुदडी । कुरहटा = मोटा कुटा अन्न । दर = दि या राजिार । पररिह = पररग्रह, पररजि,
पररवार के िोि ।
(5) तिआि = तिदाि, अं ि में । पोखख = पोषण करके । साखी भरतहं =साक्ष्य या िवाही दे िे हैं । दे ख परे वा = पक्षी की सी अपिी दशा दे खी
। कजरीबि = कदिीवि ।
(6)भाँवै = इधर-उधर घूमिी है । तजितहं ..पीठी = तजिसे जाि पहचाि हो जािी है उन्हें छोड िए के तिये द डा करिी है ।
(7) मिै =सिाह िे । िाि भाि= िरम िाजा भाि ।
(8) बारा = बािक, बेटा । खररहाि करतहं = ढे र ििािी है । अाँ दोरा = हिचि, कोिाहि
(9) पूरी = बजाकर । िेति कै =ििाकर । तििार = न्यारे , अिि । मढ = मठ
(10) सिुतिया = शकुि जिािे वािा । माछ मछिी । रूप = रूपा, चााँदी । टााँका = बरिि । म र = फूिों का मु कुट जो तववाह में दू िे को
पहिाया जािा है । िााँथे = िूथे हुए । तबररख = वृ ष, बैि । साँवररया = सााँविा, कािा । चाषु = चाष, िीिकंठ । अकासी ध री = क्षेमकरी चीि
तजसका तसर सफेद और सब अं ि िाि या खेरा होिा है । िोवा = िोमडी । कुररी = तटतटहरी । कूचा = क्र च ं , कराकुि, कूज ।
(11) तमिाि = तटकाि, पडाव । ओठातहं = उस जिह ।
(12) बटाऊ = पतथक । उबट = ऊबड-खाबड कतठि मािा । दं डाकरि = दं डकारण्य । बीझबि = सघि वि । झााँखर = काँटीिी झातडयााँ ।
तहिति =सटकर ।
(13) सरे ख =सयािा, श्रेष्ठ, चिुर । िे इ सो...साखू =शाखा डूबिे समय पत्ते को ही पकडिा है । परास =पिास, पत्ता । सहिं िी = साँिििा;
साथी । बीजाििर = तवजयाििरम् । िोंड औ कोि = जंििी जातियााँ । अाँ तधयार = अाँ जारी जो बीजापुर का एक महाि था । खटोिा =
िढमं डिा का पतिम भाि िढ काटं ि - िढ कटं ि, जबिपुर के आसपास का प्रदे श । रििपुर =तविासपुर के तजिे में आजकि है । तसंघ
दु वारा = तछं दवाडा (?)। झारखं ड =छत्तीसिढ और िोंडवािे का उत्तर भाि । स रं = चादर । सेंिी = से ।
राजा-िजपति-संवाद-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी

मासेक िाि चिि िेतह बाटा । उिरे जाइ समु द के घाटा ॥


रििसेि भा जोिी-जिी । सुति भेंटै आवा िजपिी ॥
जोिी आपु ,कटक सब चेिा । क ि दीप कहाँ चाहतहं खेिा ॥
" आए भिे तह, मया अब कीजै । पहिाई कहाँ आयसु दीजै"
"सुिहु िजपिी उिर हमारा । हम्ह िुम्ह एकै, भाव तिरारा ॥
िे विहु िेतह जेतह ितहं यह भाऊ । जो तिहचै िेतह िाउ िसाऊ ॥
इहै बहुि ज बोतहि पाव ं । िु म्ह िैं तसंघिदीप तसधाव ं ॥

जहााँ मोतहं तिजु जािा कटक होउाँ िे इ पार ।


ज ं रे तजऔं ि बहुर ,ं मर ं ओतह के बार" ॥1॥

िजपिी कहा "सीस पर मााँिा । बोतहि िाव ि होइतह खााँिा ॥


ए सब दे उाँ आति िव-िढे । फूि सोइ जो महे सुर चढे ॥
पै िोसाइाँ सि एक तबिािी । मारि कतठि, जाब केतह भााँिी ॥
साि समु द्र असूझ अपारा । मारि मिर मच्छ घररयारा ॥
उठै िहरर ितहं जाइ साँभारी । भाितह कोइ तिबहै बैपारी ॥
िुम सुखखया अपिे घर राजा । जोखउाँ एि सहहु केतह काजा ?॥
तसंघिदीप जाइ सो कोई । हाथ तिए आपि तजउ होई ॥

खार, खीर, दतध, जि उदतध, सुर, तकितकिा अकूि ।


को चतढ िााँघै समु द ए, है काकर अस बूि ?"॥2॥

"िजपिी यह मि सकिी-सीऊ । पै जेतह पेम कहााँ िेतह जीऊ


जो पतहिे तसर दै पिु धरई । मूए केर मीचु का करई ?॥
सुख त्ािा, दु ख सााँभर िीन्हा । िब पयाि तसंघि-मुाँ ह कीन्हा ॥
भ रं ा जाि कवाँि कै प्रीिी । जे तह पहाँ तबथा पेम कै बीिी ॥
औ जेइ समु द पेम कर दे खा । िेइ एतह समु द बूाँद करर िे खा ॥
साि समु द सि कीन्ह साँभारू । ज ं धरिी, का िरुअ पहारू ?॥
ज पै जीउ बााँध सि बेरा । बरु तजउ जाइ तफरै ितहं फेरा ॥

रं ििाथ ह ं जा कर, हाथ ओतह के िाथ ।


िहे िाथ सो खैंचै, फेरे तफरै ि माथ ॥3॥

पेम-समु द्र जो अति अविाहा । जहााँ ि वार ि पार ि थाहा ॥


जो एतह खीर-समु द महाँ परे । जीउ िाँवाइ हं स होइ िरे ॥
ह ं पदमावति कर तभखमं िा । दीतठ ि आव समु द औ िंिा ॥
जेतह कारि तिउ काथरर कंथा । जहााँ सो तमिै जावाँ िेतह पंथा ॥
अब एतह समु द परे उाँ होइ मरा । मु ए केर पािी का करा ?॥
मर होइ बहा किहुाँ िे इ जाऊ । ओतह के पंथ कोउ धरर खाऊ ॥
अस मैं जाति समु द महाँ परऊाँ । ज कोइ खाइ बेति तिसिरऊाँ ॥

सरि सीस, धर धिी, तहया सो पे म-समु द ।


िै ि क तडया होइ रहे , िे इ िे इ उठतहं सो बुंद ॥4॥

कतठि तवयोि जाि दु ख-दाहू । जरितह मरितह ओर तिबाहू ॥


डर िज्जा िहाँ दु व िवााँिी । दे खै तकछु ि आति ितहं पािी ॥
आति दे खख वह आिे धावा । पाति दे खख िेतह स ह ं धाँ सावा ॥
अस बाउर ि बुझाए बूझा । जेतह पथ जाइ िीक सो सुझा ॥
मिर-मच्छ-डर तहये ि िे खा । आपुतह चहै पार भा दे खा ॥
औ ि खातह ओतह तसंघ सदू रा । काठहु चातह अतधक सो झूरा ॥
काया माया संि ि आथी । जेतहह तजउ स प ं ा सोई साथी ॥
जो तकछु दरब अहा साँि दाि दीन्ह संसार ।
िा जािी केतह सि सेंिी दै व उिारै पार ॥5॥

धति जीवि औ िाकर हीया । ऊाँच जिि महाँ जाकर दीया ॥


तदया सो जप िप सब उपराहीं । तदया बराबर जि तकछु िाहीं ॥
एक तदया िे दशिुि िहा । तदया दे खख सब जि मु ख चहा ॥
तदया करै आिे उतजयारा । जहााँ ि तदया िहााँ अाँ तधयारा ॥
तदया माँ तदर तितस करै अाँ जोरा । तदया िातहं घर मू सतहं चोरा ॥
हातिम करि तदया जो तसखा । तदया रहा धमा न्ह महाँ तिखा ॥
तदया सो काज दु व जि आवा । इहााँ जो तदया उहााँ सब पावा ॥

"तिरमि पंथ कीन्ह िेइ जेइ रे तदया तकछु हाथ ।


तकछु ि कोइ िे इ जाइतह तदया जाइ पै साथ" ॥6॥

(1) िजपति = कतिं ि के राजाओं की पुरािी उपातध जो अब िक तवजयाििरम् (ईजाििर) के राजाओं के िाम के साथ दे खी जािी है । खेिा
चाहतहं मि की म ज में जािा चाहिे हैं । िाउ = िाव, ििाव, प्रेम ।
(2) सीस पर मााँिा = आपकी मााँ ि या आज्ञा तसर पर है । खााँिा = कमी ।तकितकिा = एक समु द्र का िाम । अकूि = अपार । बूि =बूिा,
बि । सााँभर = संबि, राह का किे वा । बेरा = िाव का बेडा । रं ििाथ ह ं = रं ि या प्रेम में जोिी हूाँ तजसका । िाथ = िकेि, रस्सी । माथ
= तसर या रुख िथा िाव का अग्रभाि ।
(4) हं स = शुद्ध आत्म-स्वरूप, उज्ज्वि हं स । मर = मरा,मृ िक । क तडया = क तडल्ला िाम का पक्षी जो पािी में से मछिी पकडकर तफर
ऊपर उडिे िििा है ।
(5) सदू रा = शादू ा ि, एक प्रकार का तसंह । आथा = अखस्त; है । सेंिी = से ।
(6) यह मि...सीऊ = यह मि शखक्त की सीमा है । दीया = तदया, हुआ, दाि, दीपक
बोतहि-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी

सो ि डोि दे खा िजपिी । राजा सत्त दत्त दु हुाँ सिी ॥


अपिे तह काया, आपिे तह कंथा । जीउ दीन्ह अिुमि िेतह पंथा ॥
तिहचै चिा भरम तजउ खोई । साहस जहााँ तसखद्ध िहाँ होई ॥
तिहचै चिा छााँतड कै राजू । बोतहि दीन्ह, दीन्ह सब साजू ॥
चढा बेति, िब बोतहि पेिे । धति सो पुरुष पेम जेइ खेिे ॥
पेम-पंथ ज ं पहुाँ चै पारा । बहुरर ि तमिै आइ एतह छारा ॥
िेतह पावा उतत्तम कैिासू । जहााँ ि मीचु , सदा सुख-बासू ॥

एतह जीवि कै आस का ? जस सपिा पि आधु ।


मु हमद तजयितह जे मु ए तिन्ह पुरुषन्ह कह साधु ॥1॥

जस बि रें ति चिै िज-ठाटी । बोतहि चिे , समु द िा पाटी ॥


धावतह बोतहि मि उपराहीं । सहस कोस एक पि महाँ जाहीं ॥
समु द अपार सरि जिु िािा । सरि ि घाि ििै बैरािा ॥
ििखि चािा एक दे खावा । जिु ध िातिरर परबि आवा ॥
उठी तहिोर जो चाि िराजी । िहरर अकास िाति भुइाँ बाजी ॥
राजा सेंिी तकाँवर सब कहहीं । अस अस मच्छ समु द महाँ अहहीं ॥
िेतह रे पंथ हम चाहतहं िविा । होहु साँजूि बहुरर ितहं अविा ॥

िुरु हमार िुम राजा, हम चेिा िुम िाथ ।


जहााँ पााँ व िुरु राखै , चेिा राखै माथ ॥2॥

केवट हाँ से सो सुिि िवेजा । समु द ि जािु कुवााँ कर मे जा ॥


यह ि चाि ि िािै कोहू । का कतहह जब दे खखह रोहू ?॥
सो अबहीं िुम्ह दे खा िाहीं । जेतह मु ख ऐसे सहस समाहीं ॥
राजपंखख िे तह पर मे डराहीं । सहस कोस तिन्ह कै परछाहीं ॥
िेइ ओतह मच्छ ठोर भरर िे हीं । सावक-मु ख चारा िे इ दे हीं ॥
िरजै ििि पंखख जब बोिा । डोि समु द्र डै ि जब डोिा ॥
िहााँ चााँद औ सूर असूझा । चढै सोइ जो अिुमि बूझा ॥

दस महाँ एक जाइ कोइ करम, धरम, िप, िे म ।


बोतहि पार होइ जब िबतह कुसि औ खेम ॥3॥
राजै कहा कीन्ह मैं पेमा । जहााँ पेम कहाँ कूसि खेमा ॥
िुम्ह खेवहु ज खैवै पारहु । जैसे आपु िरहु मोतहं िारहु ॥
मोतहं कुसि कर सोच ि ओिा । कुसि होि ज जिम ि होिा ॥
धरिी सरि जााँि-पट दोऊ । जो िेतह तबच तजउ राख ि कोऊ ।
ह ं अब कुसि एक पै मााँि ं । पेम-पंथ ि बााँतध ि खााँि ं ॥
ज सि तहय ि ियितहं दीया । समु द ि डरै पैतठ मरजीया ॥
िहाँ िति हे र ं समु द ढाँ ढोरी । जहाँ िति रिि पदारथ जोरी ॥

सप्त पिार खोतज कै काढ ं वेद िरं थ ।


साि सरि चतढ धाव ं पदमावति जेतह पंथ ॥4॥

(1) सत्त दत्त दु हुाँ सिी = सत् या दाि दोिों में सच्चा या पक्का है ।पेिे = झोंक से चिे ।
(2) ठाटी = ठट्ठ, झंुड । उपराहीं = अतधक (बेि से)। घाि ि ििे = पसंिे बराबर भी िहीं तिििा, कुछ िहीं समझिा । घाि = घिु आ, थोडी
सी और वस्तु जो स दे के ऊपर बेचिे वािा दे िा है । चािा = एक मछिी, चेिवा । िराजी = िाराज हुई । भु इाँ बाजी = भूतम पर पडी ।
साँजूि = सावधाि, िैयार । िवेजा =बािचीि । मे जा =में ढक । कोहू = तकसी को ।
(4) ओिा = उििा । पट = पल्ला । खााँि = कसर ि करू ाँ । मर-जीया = जी पर खेिकर तवकट स्थािों से व्यापार की वस्तु (जैसे
,मोिी,तशिाजीि, कस्तूरी) िािे वािे , तजवतकया । ढाँ ढोरी = छािकर ।
साि समु द्र-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी

सायर िरे तहये सि पूरा । ज तजउ सि, कायर पुति सूरा ॥


िेइ सि तबतहि कुरी चिाए । िे इ सि पवि पंख जिु िाए ॥
सि साथी, सि कर संसारू । सत्त खेइ िे इ िावै पारू ॥
सत्त िाक सब आिू पाछू । जहाँ िहाँ मिर मच्छ औ काछू ॥
उठै िहरर जिु ठाढ पहारा । चढै सरि औ परै पिारा ॥
डोितहं बोतहि िहरैं खाही । खखि िर होतहं , खखितहं उपराहीं ॥
राजै सो सि तहरदै बााँधा । जेतह सि टे तक करै तिरर कााँधा ॥

खार समु द सो िााँघा, आए समु द जहाँ खीर ।


तमिे समु द वै साि , बेहर बेहर िीर ॥1॥

खीर-समु द का बरि ं िीरू । सेि सरूप, तपयि जस खीरू ॥


उिथतहं मातिक, मोिी, हीरा । दरब दे खख मि होइ ि थीरा ॥
मिु आ चाह दरब औ भोिू । पंथ भुिाइ तबिासै जोिू ॥
जोिी होइ सो मितहं साँभारै । दरब हाथ कर समुद पवारै ॥
दरब िे इ सोई जो राजा । जो जोिी िेतहके केतह काजा ?॥
पंथतह पंथ दरब ररपु होई । ठि, बटमार, चोर साँि सोई ॥
पंथी सो जो दरब स ं रूसे । दरब समे तट बहुि अस मू से ॥
खीर-समु द सो िााँघा, आए समु द-दतध मााँह ॥
जो है िे ह क बाउर तिन्ह कहाँ धू प ि छााँह ॥2॥

दतध-समु द्र दे खि िस दाधा । पेम क िु बुध दिध पै साधा ॥


पेम जो दाधा धति वह जीऊ । दतध जमाइ मतथ काढे घीऊ ॥
दतध एक बूाँद जाम सब खीरू । कााँजी-बूाँद तबितस होइ िीरू ॥
सााँस डााँतड ,मि मथिी िाढी । तहये चोट तबिु फूट ि साढी ॥
जेतह तजउ पेम चदि िेतह आिी । पेम तबहूि तफरै डर भािी ॥
पेम कै आति जरै ज ं कोई । दु ख िेतह कर ि अाँ तबरथा होई ॥
जो जािै सि आपुतह जारै । तिसि तहये सि करै ि पारै ॥

दतध-समु द्र पुति पार भे, पेमतह कहा साँभार ?।


भावै पािी तसर परै , भावै परै अाँ िार ॥3॥

आए उदतध समु द्र अपारा । धरिी सरि जरै िेतह झारा ॥


आति जो उपिी ओतह समुं दा । िं का जरी ओतह एक बुंदा ॥
तबरह जो उपिा ओतह िें िाढा । खखि ि बुझाइ जिि महाँ बाढा ॥
जहााँ सो तबरह आति कहाँ डीठी । स ह
ं जरै , तफरर दे इ ि पीठी ॥
जि महाँ कतठि खडि कै धारा । िेतह िें अतधक तबरह कै झारा ॥
अिम पंथ जो ऐस ि होई । साथ तकए पावै सब कोई ॥
िेतह समु द्र महाँ राजा परा । जरा चहै पै रोवाँ ि जरा ॥

ििफै िेि कराह तजतम इतम ििफै सब िीर ।


यह जो मियतिरर प्रेम कर बेधा समु द समीर ॥4॥

सुरा-समु द पुति राजा आवा । महुआ मद-छािा तदखरावा ॥


जो िेतह तपयै सो भााँवरर िे ई । सीस तफरै , पथ पैिु ि दे ई ॥
पेम-सुरा जेतह के तहय माहााँ । तकि बैठे महुआ कै छाहााँ ॥
िुरू के पास दाख-रस रसा । बैरी बबुर मारर मि कसा ॥
तबरह के दिध कीन्ह िि भाठी । हाड जराइ दीन्ह सब काठी ॥
िै ि-णीर स ं पोिा तकया । िस मद चुवा बरा जस तदया ॥
तबरह सरािखन्ह भूाँजै मााँसू । तिरर परै रकि कै आाँ सू ॥

मु हमद मद जो पेम कर िए दीप िेतह साथ ।


सीस ि दे इ पिंि होइ ि िति िहै ि खाध ॥5॥

पुति तकितकिा समु द महाँ आए । िा धीरज, दे खि डर खाए ॥


भा तकितकि अस उठै तहिोरा । जिु अकास टू टै चहुाँ ओरा ॥
उठै िहरर परबि कै िाईं । तफरर आवै जोजि स िाईं ॥
धरिी िे इ सरि ितह बाढा । सकि समु द जािहुाँ भा ठाढा ॥
िीर होइ िर ऊपर सोई । माथे रं भ समु द जस होइ ॥
तफरि समु द जोजि स िाका । जैसे भाँवै केहााँर क चाका ॥
भै परिै तियरािा जबहीं । मरै जो जब परिै िेतह िबहीं ॥

िै औसाि सबन्ह कर दे खख समु द कै बातढ ।


तियर होि जिु िीिै , रहा िैि अस कातढ ॥6॥

हीरामि राजा स ं बोिा । एही समु द आए सि डोिा ॥


तसंहिदीप जो िातहं तिबाहू । एही ठााँव सााँकर सब काहू ॥
एतह तकितकिा समु द्र िाँभीरू । जेतह िुि होइ सो पावै िीरू ॥
इहै समु द्र-पंथ मझधारा । खााँडे कै अतस धार तििारा ॥
िीस सहस्र कोस कै पाटा । अस सााँकर चति सकै ि चााँटा ॥
खााँडै चातह पैति बहुिाई । बार चातह िाकर पिराई ॥
एही ठााँव कहाँ िुरु साँि िीतजय । िुरु साँि होइ पार ि कीतजय ॥

मरि तजयि एतह पंथतह, एही आस तिरास ।


परा सो िएअउ पिारतह, िरा सो िा कतबिास ॥7॥

राजै दीन्ह कटक कहाँ बीरा । सु पुरुष होहु, करहु मि धीरा ॥


ठाकुर जेतहक सूर भा कोई । कटक सूर पुति आपुतह होई ॥
ज ितह सिी ि तजउ सि बााँधा । ि ितह दे इ कहााँर ि कााँधा ॥
पेम-समु द महाँ बााँधा बेरा । यह सब समु द बूाँद जेतह केरा ॥
िा ह ं सरि क चाह ं राजू । िा मोतहं िरक सेंति तकछु काजू ॥
चाह ं ओतह कर दरसि पावा । जेइ मोतहं आति पेम-पथ िावा ॥
काठतह काह िाढ का ढीिा ? । बूड ि समु द, मिर ितहं िीिा ॥

काि समु द धाँ तस िीन्हे तस, भा पाछे सब कोइ ।


कोइ काहू ि साँभारे , आपति आपति होइ ॥8॥

कोइ बोतहि जस प ि उडाहीं । कोई चमतक बीजु अस जाहीं ॥


कोई जस भि धाव िुखारू । कोई जैस बैि िररयारू ॥
कोई जािहुाँ हरुआ रथ हााँका । कोई िरुअ भार बहु थाका ॥
कोई रें ितहं जािहुाँ चााँ टी । कोई टू तट होतहं िर माटी ॥
कोई खातहं प ि कर झोिा । कोइ करतहं पाि अस डोिा ॥
कोई परतहं भ रं जि माहााँ । तफरि रहतहं , कोइ दे इ ि बाहााँ ॥
राजा कर भा अिमि खेवा । खे वक आिे सुआ परे वा ॥

कोइ तदि तमिा सबेरे, कोइ आवा पछ-राति ।


जाकर जस जस साजु हुि सो उिरा िेतह भााँति ॥9॥
सिएाँ समु द मािसर आए । मि जो कीण्ह साहस, तसतध पाए ॥
दे खख मािसर रूप सोहावा । तहय तहिास पुरइति होइ छावा ॥
िा अाँ तधयार, रै ि-मतस छूटी । भा तभिसार तकररि-रतव फूटी ॥
`अखस्त अखस्त सब साथी बोिे । अं ध जो अहे िै ि तबतध खोिे ॥
कवाँि तबिस िस तबहाँ सी दे हीं । भ रं दसि होइ कै रस िे हीं ॥
हाँ सतहं हं स औ करतहं तकरीरा । चुितहं रिि मुकुिाहि हीरा ॥
जो अस आव सातध िप जोिू । पूजै आस, माि रस भोिू ॥

भ रं जो मिसा मािसर, िीन्ह काँविरस आइ ।


घुि जो तहयाव ि कै सका , झर काठ िस खाइ ॥10॥

(1) सायर = सािर । कुरी = समू ह । बेहर-बेहर = अिि-अिि ।


(2) मिु आ = मिु र्ष् या मि । पवारे = फेंकें । रूसे = तवक्त हुए । मू से = मू से िए, ठिे िए ।
(3) दिध साधा = दाह सहिे का अभ्यास कर िे िा है । दाधा = जिा । डााँतड =डााँडी, डोरर । अाँ तबरथा = वृथा, तिष्फि । तिसि = सत्
तवहीि । भावै =चाहे ।
(4) झार ज्वािा, िपट । उपिी =उत्पन्न हुई । आति कह डीठी = आि को क्या ध्याि में िािा है । स ह ं = सामिे । यह जो मियतिरर =
अथााि् राजा ।
(5) छािा = पािी पर फैिा फूि पत्तों का िुच्छा । सीस तफरै = तसर घूमिा है । मि कसा = मि वश में तकया । काठी = ईंधि । पोिा
=तमट्टी के िे प पर िीिे कपडे का पुचारा जो भबके से अका उिारिे में बरिि के ऊपर तदया जािा है । सराि = सिाख, शिाका,सीख तजसमें
िोदकर मााँस भूििे हैं । खाध = खाद्य, भोि ।
(6)धरिी िे इ = धरिी से िे कर । माथे =मथिे से । रं भ = घोर शब्द । औसाि = होश-हवास ।
(7) सााँकर = कतठि खस्थति । सााँ कर =सकरा, िंि ।
(8) सेंति = सेिी, से । िाढ कतठि । ढीिा =सुिम । काि = कणा, पिवार ।
(9) िररयारू = मट्टर, सुस्त । हरुआ = हिका । थाका = थक िया । झ िा = झोंका, झकोरा । अिमि = आिे । पछ-राति = तपछिी राि ।
हुि = था ।
(10) पुरइति कमि का पत्ता। रै िमतस = राि की स्याही । `अखस्त अखस्त' = तजस तसं हि िीप के तिए इििा िप साधा वह वास्तव में है ,
अध्यात्मपक्ष में `ईश्वर या परिोक है ' तकरीरा = क्रीडा । मु किाहि = मु क्ताफि । मिसा = मि में संकल्प तकया । तहयाव = जीवट , साहस ।
तसंहििीप-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी

पूछा राजै कहु िुरु सूआ । ि जि ं आजु कहााँ दहुाँ ऊआ ॥


प ि बास सीिि िे इ आवा । कया दहि चंदिु जिु िावा ॥
कबहुाँ ि एस जुडाि सरीरू । परा अतिति महाँ मिय-समीरू ॥
तिकसि आव तकररि-रतवरे खा । तितमर िए तिरमि जि दे खा ॥
उठै मे घ अस जािहुाँ आिे । चमकै बीजु ििि पर िािै ॥
िेतह ऊपर जिु सतस परिासा । औ सो चंद कचपची िरासा ॥
और िखि चहुाँ तदतस उतजयारे । ठावतहं ठााँव दीप अस बारे ॥

और दखखि तदतस िीयरे कंचि-मेरु दे खाव ।


जिु बसंि ऋिु आवै िैतस िैतस बास जि आव ॥1॥

िूाँ राजा जस तबकरम आदी । िू हररचंद बैि सिबादी ॥


िोतपचंद िुइाँ जीिा जोिू । औ भरथरी ि पूज तबयोिू ॥
िोरख तसखद्ध दीन्ह िोतह हाथू । िारी िुरू मछं दरिाथू ॥
जीि पेम िुइाँ भूतम अकासू । दीतठ परा तसंघि-कतबिासू ॥
वह जो मे घ िढ िाि अकासा । तबजुरी किय-कोट चहु पासा ॥
िेतह पर सतस जो कचपतच भरा । राजमं तदर सोिे िि जरा ॥
और जो िखि दे ख चहुाँ पासा । सब रातिन्ह कै आतहं अवासा ॥

ििि सरोवर, सतस-काँवि कुमु द-िराइन्ह पास ।


िू रतव उआ, भ रं होइ प ि तमिा िे इ बास ॥2॥

सो िढ दे खु ििि िें ऊाँचा । िैिन्ह दे खा, कर ि पहुाँ चा ॥


तबजुरी चक्र तफरै चहुाँ फेरी । औ जमकाि तफरै जम केरी ॥
धाइ जो बाजा कै मि साधा । मारा चक्र भएउ दु इ आधा ॥
चााँद सुरुज औ िखि िराईं । िे तह डर अाँ िररख तफरतहं सबाई ॥
प ि जाइ िहाँ पहुाँ चै चहा । मारा िैस िोतट भुइाँ रहा ॥
अतिति उठी, जरर बुझी तिआिा । धु आाँ उठा, उतठ बीच तबिािा ॥
पाति उठा उतठ जाइ ि छूआ । बहुरा रोइ, आइ भुइाँ चूआ ॥

रावि चहा स ह
ं होइ उिरर िए दस माथ ।
संकर धरा तििाट भुइाँ और को जोिीिाथ ?॥3॥

िहााँ दे खु पदमावति रामा । भ रं ि जाइ, ि पंखी िामा ॥


अब िोतह दे उाँ तसखद्ध एक जोिू । पतहिे दरस होइ, िब भोिू ॥
कंचि-मेरु दे खाव सो जहााँ । महादे व कर मं डप िहााँ ॥
ओतह-क खंड जस परबि मे रू । मे रुतह िाति होइ अति फेरू ॥
माघ मास, पातछि पछ िािे । तसरी-पंतचमी होइतह आिे ॥
उघरतह महादे व कर बारू । पूतजतह जाइ सकि संसारू ॥
पदमावति पुति पूजै आवा । होइतह एतह तमस दीतठ-मे रावा ॥

िुम्ह ि िहु ओतह मं डप, ह ं पदमावति पास ।


पूजै आइ बसंि जब िब पूजै मि-आस ॥4॥

राजै कहा दरस ज ं पाव ं । परबि काह, ििि कहाँ धाव ं ॥


जेतह परबि पर दरसि िहिा । तसर स ं चढ ,ं पााँव का कहिा ॥
मोहूाँ भावै ऊाँचै ठाऊाँ । ऊाँचै िेउाँ तपरीिम िाऊाँ ॥
पुरुषतह चातहय ऊाँच तहयाऊ । तदि तदि ऊाँचे राखै पाऊ ॥
सदा ऊाँच पै सेइय बारा । ऊाँचै स कीतजय बेवहारा ॥
ऊाँचै चढै , ऊाँच खाँड सूझा । ऊाँचे पास ऊाँच मति बूझा ॥
ऊाँचे साँि संिति तिति कीजै । ऊाँचे काज जीउ पुति दीजै ॥

तदि तदि ऊाँच होइ सो जेतह ऊाँचे पर चाउ ।


ऊाँचे चढि जो खतस परै ऊाँच ि छााँतडय काउ ॥5॥

हीरामि दे इ बचा कहािी । चिा जहााँ पदमावति रािी ॥


राजा चिा साँवरर सो ििा । परबि कहाँ जो चिा परबिा ॥
का परबि चतढ दे खै राजा । ऊाँच माँ डप सोिे सब साजा ॥
अमृ ि सदाफर फरे अपूरी । औ िहाँ िाति सजीवि-मू री ॥
च मु ख मं डप चहूाँ केवारा । बैठे दे विा चहूाँ दु वारा ॥
भीिर माँ डप चारर खाँभ िािे । तजन्ह वै छु ए पाप तिन्ह भािे ॥
संख घंट घि बाजतहं सोई । औ बहु होम जाप िहाँ होई ॥

महादे व कर मं डप जि मािु स िहाँ आव ।


जस हींछा मि जेतह के सो िैसे फि पाव ॥6॥

(1)कचपची = कृतत्तका िक्षत्र ।


(2) आतद = आदी, तबिकुि । बैि = वचि अथवा वैन्य (वेि का पुत्र पृथु) िारी =िािी, कुंजी । मछं दरिाथ = मत्स्येंद्रिाथ, िोरखिाथ के िुरु ।
किय = किक, सोिा । जमकाि = एक प्रकार का खााँडा (यमकत्तारर) । बाजा = पहुाँ चा,डटा । िैस = ऐसा । तिआि = अं ि में । जोिीिाथ
= योिीश्वर ।
(4) पछ = पक्ष । उघरतह = खु िेिा बारू =बार, िार । दीतठ-मे रवा = परस्पर दशाि ।
(5) बूझा =बूझ, समझिा है । खतस परै = तिर पडे ।
(6)बचा कहािी = वचि और व्यवस्था । ििा = पद्मििा,पद्माविी । परबिा =सुआ (सुए का प्यार का िाम) का दे खै = क्या दे खिा है तक ।
हींछा = इच्छा ।
मं डपिमि-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी

राजा बाउर तबरह-तबयोिी । चेिा सहस िीस साँि जोिी


पदमावति के दरसि-आसा । दं डवि कीन्ह माँ डप चहुाँ पासा ॥
पुरुब बार कै तसर िावा । िावि सीस दे व पहाँ आवा ॥
िमो िमो िारायि दे वा । का मैं जोि, कर ं िोरर सेवा ॥
िूाँ दयाि सब के उपराहीं । सेवा केरर आस िोतह िाहीं ॥
िा मोतह िुि, ि जीभ-बािा । िूाँ दयाि, िुि तिरिुि दािा ॥
पुरवहु मोरर दरस कै आसा । ह ं मारि जोव ं धरर सााँसा ॥

िेतह तबतध तबिै ि जाि ं जेतह तबतध अस्तुति िोरर ।


करहु सुतदखस्ट मोतहं पर, हींछा पू जै मोतह ॥1॥
कै अस्तुति जब बहुि मिावा । सबद अकूि माँ डप महाँ आवा ॥
मािु ष पेम भएउ बैकुंठी । िातहं ि काह, छार भरर मू ठी ॥
पेमतह मााँह तबरह-रस रसा । मै ि के घर मधु अमृ ि बसा ॥
तिसि धाइ ज ं मरै ि काहा । सि ज ं करै बैतठ िेतह िाहा ॥
एक बार ज ं मि दे इ सेवा । सेवतह फि प्रसन्न होइ दे वा ॥
सुति कै सबद माँडप झिकारा । बैठा आइ पुरुब के बारा ॥
तपंड चडाइ छार जे ति आाँ टी । माटी भएउ अं ि जो माटी ॥

माटी मोि ि तकछु िहै , औ माटी सब मोि ।


तदखस्ट ज ं माटी स ं करै , माटी होइ अमोि ॥2॥

बैठ तसंघछािा होइ िपा । `पदमावति पदमावति' जपा ॥


दीतठ समातध ओही स ं िािी । जेतह दरसि कारि बैरािी ॥
तकंिरी िहे बजावै झूरै । भोर सााँझ तसंिी तिति पूरै ॥
कंथा जरै , आति जिु िाई । तवरह-धाँ धार जरि ि बुझाई ॥
िै ि राि तितस मारि जािे । चढै चकोर जाति सतस िािे ॥
कुंडि िहे सीस भुाँइ िावा । पााँ वरर होउाँ जहााँ ओतह पावा ॥
जटा छोरर कै बार बहार ं । जेतह पथ आव सीस िहाँ वार ं ॥

चाररहु चक्र तफर मैं , डाँ ड ि रह ं तथर मार ।


होइ कै भसम प ि साँि (धाव ) जहााँ पराि-अधार ॥3॥

(1)तिरिुि = तबिा िुणवािे का ।


(2) अकूि = आप से आप, अकस्माि् । मै ि = मोम । िाह = िाभ । तपंड = शरीर । जोति = तजििी । आाँ टी = अाँ टी; हाथ में समाई । माटी
सो तदखस्ट करै = सब कुछ तमट्टी समझे या शरीर तमट्टी में तमिाए । माटी = शरीर । िपा = िपस्वी ।
(3) झूरै = व्यथा । धाँ धार = िपट । राि =िाि । पााँवरर = जूिी । पावा = पैर । बहार ं = झाडू ििाऊाँ । तथर मार = खस्थर होकर ।
पदमाविी-तवयोि-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी

पदमावति िेतह जोि साँजोिा । परी पेम-बसे तबयोिा ॥


िींद ि परै रै ति ज ं आबा । सेज केंवाच जािु कोइ िावा ॥
दहै चंद औ चंदि चीरू दिध करै िि तबरह िाँभीरू ॥
किप समाि रे ति िेतह बाढी । तिितिि भर जुि जुि तजतम िाढी ॥
िहै बीि मकु रै ति तबहाई । सतस-बाहि िहाँ रहै ओिाई ॥
पुति धति तसंघ उरे है िािै । ऐसतह तबथा रै ति सब जािै ॥
कहाँ वह भ रं कवाँि रस-िे वा । आइ परै होइ तघररि परे वा ॥

से धति तबरह-पिंि भइ, जरा चहै िेतह दीप ।


कंि ि आव तभररं ि होइ, का चंदि िि िीप ?॥1॥

परी तबरह बि जािहुाँ घेरी । अिम असूझ जहााँ िति हे री ॥


चिुर तदसा तचिवै जिु भूिी । सो बि कहाँ जहाँ मािति फूिी ?॥
कवाँि भ रं ओही बि पावै । को तमिाइ िि-िपति बुझावै ?॥
अं ि अं ि अस काँवि सरीरा । तहय भा तपयर कहै पर पीरा ॥
चहै दरस रतब कीन्ह तबिासू । भ रं -दीतठ मिो िाति अकासू ॥
पूाँछै धाय, बारर ! कहु बािा । िुइाँ जस काँवि फूि राँ ि रािा ॥
केसर बरि तहया भा िोरा । मािहुाँ मितहं भएउ तकछु भोरा ॥

प ि ि पावै संचरै , भ रं ि िहााँ बईठ ।


भूति कुरं तिति कस भई, जािु तसंघ िुइाँ डीठ ॥2॥

धाय तसंघ बरू खािेउ मारी । की ितस रहति अही जतस बारी ॥
जोबि सुिेउाँ की िवि बसंिू । िेतह बि परे उ हखस्त मै मंिू ॥
अब जोबि-बारी को राखा । कुंजर-तबरह तबधं सै साखा ॥
मैं जािे उाँ जोबि रस भोिू ।जोबि कतठि साँिाप तबयोिू ॥
जोबि िरुअ अपेि पहारू । सतह ि जाइ जोबि कर भारू ॥
जोबि अस मैमंि ि कोई । िवैं हखस्त ज ं आाँ कुस होई ॥
जोबि भर भाद ं जस िंिा । िहरैं दे इ, समाइ ि अं िा ॥
पररउाँ अथाह, धाय! ह ं जोबि-उदतध िाँभीर ।
िेतह तचिव चाररहु तदतस जो ितह िावै िीर ॥3॥

पदमावति ! िुइ समुद सयािी । िोतह सर समु द ि पूजै, रािी ॥


िदी समातहं समु द महाँ आई । समु द डोति कहु कहााँ समाई ॥?
अबतहं कवाँि-करी तहि िोरा । आइतह भ रं जो िो कहाँ जोरा ॥
जोबि-िुरी हाथ ितह िीतजय । जहााँ जाइ िहाँ जाइ ि दीतजय ॥
जोबि जोर माि िज अहै । िहहुाँ ज्ञाि-आाँ कुस तजतम रहै ॥
अबतहं बारर पेम ि खेिा । का जाितस कस होइ दु हेिा ॥
ििि दीतठ करु िाइ िराहीं । सु रुज दे खु कर आवै िाहीं ॥

जब िति पीउ तमिै ितहं , साधु पेम कै पीर ।


जैसे सीप सेवाति कहाँ िपै समु द माँ झ िीर ॥4॥

दहै , धाय! जोबि एतह जीऊ । जािहुाँ परा अतिति महाँ घीऊ ॥
करबि सह ं होि दु इ आधा । सतह ि जाइ जोबि कै दाधा ॥
तबरह समु द्र भरा असाँभारा । भ रं मे ति तजउ िहररन्ह मारा ॥
तबहि-िाि होइ तसर चतढ डसा । होइ अतिति चंदि महाँ बसा ॥
जोबि पंखी, तबरह तबयाधू । केहरर भयउ कुरं तिति-खाधू ॥
किक-पाति तकि जोबि कीन्हा । औटि कतठि तबरह ओतह दीन्हा ॥
जोबि-जितह तबरह-मतस छूआ । फूितहं भ रं , फरतहं भा सूआ ॥

जोबि चााँद उआ जस, तबरह भएउ साँि राहु ।


घटितह घटि छीि भइ, कहै ि पार ं काहु ॥5॥

िै ि ज्य ं चक्र तफरै चहुाँ ओरा । बरजै धाय, समातहं ि कोरा ॥


कहे तस पेम ज ं उपिा, बारी । बााँ धु सत्त, मि डोि ि भारी ॥
जेतह तजउ महाँ होइ सत्त-पहारू । परै पहार ि बााँकै बारू ॥
सिी जो जरे पेम सि िािी । ज ं सि तहये ि सीिि आिी ॥
जोबि चााँद जो च दस -करा । तबरह के तचििी सो पुति जरा ॥
प ि बााँध सो जोिी जिी । काम बााँध सो कातमति सिी ॥
आव बसंि फूि फुिवारी । दे व-बार सब जैहैं बारी ॥

िुम्ह पुति जाहु बसंि िे इ, पूतज मिावहु दे व ।


जीउ पाइ जि जिम है , पीउ पाइ के सैव ॥6॥

जब िति अवतध आइ तियराई । तदि जुि-जुि तबरहति कहाँ जाई ॥


भूख िींद तितस-तदि िै द ऊ । तहयै मारर जस किपै कोऊ ॥
रोवाँ रोवाँ जिु िाितह चााँटे । सूि सूि बेधतहं जिु कााँटे ॥
दितध कराह जरै जस घीऊ । बेति ि आव मियतिरर पीऊ ॥
क ि दे व कहाँ जाइ के परस ं । जेतह सु मेरु तहय िाइय कर स ं ॥
िुपुति जो फूति सााँस परिटै । अब होइ सुभर दहतह हम्ह घटै ॥
भा साँजोि जो रे भा जरिा । भोितह भए भोति का करिा ॥

जोबि चंचि ढीठ है , करै तिकाजै काज ।


धति कुिवंति जो कुि धरै कै जोबि मि िाज ॥7॥

(1) िेतह जोि साँजोिा = राजा के उस योि के संयोि या प्रभाव से । केंवाच = कतपकच्छु तजसके छू जािे से बदि में खुजिी होिी है , केमच ।
िहै बीि.....ओिाई = बीि िे कर बैठिी है तक कदातचि इसी से राि बीिे, पर उस बीि के सुर पर मोतहि होकर चंद्रमा का वाहि मृ ि
ठहर जािा है तजससे राि और बडी हो जािी है । तसंघ उरे है िािै = तसंह का तचत्र बिािे िििीहै तजससे चंद्रमा का मृ ि डरकर भािे ।
तघररि परे वा = तिरहबाज कबूिर ।धति = धन्या स्त्री । कंि ि आव तभररं ि होइ = पति रूप भृं ि आकर जब मु झे अपिे रं ि में तमिा िे िा
िभी जििे से बच सकिी हूाँ । िीप =िे प करिी हो ।
(2) तहय भा तपयर = कमि के भीिर का छत्ता पीिे रं ि का होिा है । परपीरा = दू सरे का दु ुःख या तवयोि । भ रं -दीतठ मिो िाति अकासू
= कमि पर जैसे भ रं े होिे हैं वैसे ही कमि सी पद्माविी की कािी पुितियााँ उस सूया का तवकास दे खिे को आकाश क ओर ििी हैं । भोरा
= भ्रम ।
(3) मै मंि = मदमत्त । अपेि = ि ठे ििे योग्य ।
(4) समु द्र = समु द्र सी िंभीर । िुरी = घोडी । माि = मािा हुआ, मिवािा । दु हेिा = कतठि खेि । ििि दीतठ ... िराहीं = पहिे कह
आए हैं तक "भ र-दीतठ मिो िाति अकासू " ।
(5) दाधा =दाह, जिि । होइ अतिति चंदि महाँ बसा = तवयोतियों को चंदि से भी िाप होिा प्रतसद्ध है । केहरर भएउ....खाधू = जैसे तहरिी
के तिये तसंह, वैसे ही य वि के तिये तवरह हुआ । औटि =पािी का िरम करके ख िाया जािा । मतस =कातिमा । फूितह भ रं ...सूआ =
जैसे फूि को तबिाडिे वािा भ रं ा और फि को िि करिे वािा िोिा हुआ वैसे ही य वि को िि करिे वािा तवरह हुआ ।
(6) कोरा =कोर, कोिा । पहारू = पाहरू, रक्षक ।
(7) परसों = स्पशा करू ाँ , पूजि करू
ाँ । जेतह...करसों = तजससे उस सुमेरु को हाथ से हृदय में ििाऊाँ । होइ सुभर = अतधक भरकर,
उमडकर । घटैं = हमारे शरीर को । तिकाजै =तिकम्मा ही । जोबि = य विावस्था में ।
पदमाविी-सुआ-भेंट-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी

िेतह तबयोि हीरामि आवा । पदमावति जािहुाँ तजउ पावा ॥


कंठ िाइ सूआ स ं रोई । अतधक मोह ज ं तमिै तबछोई
आति उठे दु ख तहये िाँभीरू । िै ितहं आइ चुवा होइ िीरू ॥
रही रोइ जब पदतमति रािी । हाँ तस पूछतहं सब सखी सयािी ॥
तमिे रहस भा चातहय दू िा । तकि रोइय ज ं तमिै तबछूिा ?
िेतह क उिर पदमावति कहा । तबछु रि-दु ख जो तहये भरर रहा ॥
तमिि तहये आएउ सुख भरा । वह दु ख िै ि-िीर होइ ढरा ॥

तबछु रं िा जब भेंटै सो जािै जेतह िे ह ।


सुक्ख-सुहेिा उग्गवै दु ुःख झरै तजतम मे ह ॥1॥

पुति रािी हाँ तस कूसि पूछा । तकि िविे हु पींजर कै छूाँछा ॥


रािी! िुम्ह जुि जुि सुख पाटू । छाज ि पंखखतह पीजर -ठाटू ॥
जब भा पंख कहााँ तथर रहिा । चाहै उडा पंखख ज ं डहिा ॥
पींजर महाँ जो परे वा घेरा । आइ मजारर कीन्ह िहाँ फेरा ॥
तदि एक आइ हाथ पै मे िा । िेतह डर बिोबास कहाँ खेिा ॥
िहााँ तबयाध आइ िर साधा । छूतट ि पाव मीचु कर बााँधा ॥
वै धरर बेचा बाम्हि हाथा । जंबूदीप िएउाँ िेहतह साथा ॥

िहााँ तचत्र तचिउरिढ तचत्रसेि कर राज ।


टीका दीन्ह पुत्र कहाँ , आपु िीन्ह सर साज ॥2॥

बैठ जो राज तपिा के ठाऊाँ । राजा रििसेि ओतह िाऊाँ ॥


बरि ं काह दे स मतियारा । जहाँ अस िि उपिा उतजयारा ॥
धति मािा औ तपिा बखािा । जे तहके बंस अं स अस आिा ॥
िछि बिीस कुि तिरमिा । बरति ि जाइ रूप औ किा ॥
वै ह ं िीन्ह, अहा अस भािू । चाहै सोिे तमिा सोहािू ॥
सो िि दे खख हींछा भइ मोरी । है यह रिि पदारथ जोरी ॥
है सतस जोि इहै पै भािु । िहााँ िुम्हार मैं कीन्ह बखािू ॥

कहााँ रिि रििािर, कंचि कहााँ सुमेर ।


दै व जो जोरी दु हुाँ तिखी तमिै सो क िे हु फेर ॥3॥

सुिि तबरह-तचििी ओतह परी । रिि पाव ज ं कंचि-करी ॥


कतठि पेम तवरहा दु ख भारी । राज छााँ तड भा जोति तभखारी ॥
मािति िाति भ रं जस होइ । होइ बाउर तिसरा बुतध खोई ॥
कहे तस पिंि होइ धति िे ऊाँ । तसंघिदीप जाइ तजउ दे ऊाँ ॥
पुति ओतह कोउ ि छााँड अकेिा । सोरह सहस कुाँवर भए चेिा ॥
और ििै को संि सहाई ?। महादे व मढ मेिा जाई ॥
सूरुज पुरुष दरस के िाईं । तचिवै चंद चकोर कै िाईं ॥

िुम्ह बारी रस जोि जेतह , काँवितह जस अरघाति ।


िस सूरुज परिास कै, भ रं तमिाएउाँ आति ॥4॥

हीरामि जो कही यह बािा । सुतिकै रिि पदारथ रािा ॥


जस सूरुज दे खे होइ ओपा । िस भा तबरह कामदि कोपा ॥
सुति कै जोिी केर बखािू । पदमावति मि भा अतभमािू ॥
कंचि करी ि कााँचतह िोभा । ज ं िि होइ पाव िब सोभा ॥
कंचि ज ं कतसए कै िािा । िब जातिय दहुाँ पीि की रािा ॥
िि कर मरम सो जतडया जािा । जडै जो अस िि दे खख बखािा ॥
को अब हाथ तसंघ मु ख घािै । को यह बाि तपिा स ं चािै ॥
सरि इं द्र डरर कााँपै, बासुतक डरै पिार ।
कहााँ सो अस बर तप्रतथमी मोतह जोि संसार ॥5॥

िू रािी सतस कंचि-करा । वह िि रिि सूर तिरमरा ॥


तबरह-बजाति बीच का कोई । आति जो छु वै जाइ जरर सोई ॥
आति बुझाइ परे जि िाढै । वह ि बुझाइ आपु ही बाढै ॥
तबरह के आति सूर जरर कााँपा । रातितह तदवस जरै ओतह िापा ॥
खखितहं सरि खखि जाइ पिारा । तथर ि रहै एतह आति अपारा ॥
धति सो जीउ दिध इतम सहै । अकसर जरै , ि दू सर कहै ॥
सुिति भीिर होइ सावााँ । परिट होइ ि कहै दु ख िावााँ ॥

काह कह ं ह ं ओतह स ं जेइ दु ख कीन्ह तिमे ट ।


िेतह तदि आति करै वह (बाहर) जेतह तदि होइ सो भेंट ॥6॥

सुति कै धति,` जारी अस कया' मि भा मयि, तहये भै मया ॥


दे ख ं जाइ जरै कस भािू । कंचि जरे अतधक होइ बािू ॥
अब ज ं मरै वह पेम-तबयोिी । हत्ा मोतहं , जे तह कारि जोिी ॥
सुति कै रिि पदारथ रािा । हीरामि स ं कह यह बािा ॥
ज ं वह जोि साँभारै छािा । पाइतहं भुिुति ,दे हुाँ जयमािा ॥
आव बसंि कुसि ज ं पाव ं । पू जा तमस मं डप कहाँ आव ं ॥
िुरु के बैि फूि ह ं िााँथे । दे ख ं िै ि, चढावैं माथे ॥

कवाँि-भवर िुम्ह बरिा, मैं मािा पुति सोइ ।


चााँद सूर कहाँ चातहए, ज ं रे सूर वह होइ ॥7॥

हीरामि जो सुिा रस-बािा । पावा पाि भएउ मु ख रािा ॥


चिा सुआ, रािी िब कहा । भा जो परावा कैसे रहा ?॥
जो तिति चिै साँवारे पााँ खा । आजु जो रहा, काखि को राखा ?॥
ि जि ं आजु कहााँ दहुाँ ऊआ । आएहु तमिै , चिे हु तमति, सूआ ॥
तमति कै तबछु रर मरि कै आिा । तकि आएहु ज ं चिे हु तिदािा ? ॥
ििु रािी ह ं रहिेउाँ रााँधा । कैसे रह ं बचि कर बााँधा ॥
िाकरर तदखस्ट ऐतस िुम्ह सेवा । जैसे कुंज मि रहै परे वा ॥

बसै मीि जि धरिी, अं बा बसै अकास ।


ज ं तपरीि पै दु व महाँ अं ि होतहं एक पास ॥8॥

आवा सुआ बैठ जहाँ जोिी । मारि िै ि, तबयोि तबयोिी ॥


आइ पेम-रस कहा साँदेसा । िोरख तमिा, तमिा उपदे सा ॥
िुम्ह कहाँ िुरू मया बहु कीन्हा । कीन्ह अदे स, आतद कतह दीन्हा ॥
सबद, एक उन्ह कहा अकेिा । िुरु जस तभंि, फतिि जस चेिा ॥
तभंिी ओतह पााँखख पै िे ई । एकतह बार छीति तजउ दे ई ॥
िाकहु िुरु करै अतस माया । िव औिार दे इ, िव काया ॥
होई अमर जो मरर कै जीया । भ रं कवाँि तमति कै मधु पीया ॥

आवै ऋिु-बसंि जब िब मधुकर िब बासु ।


जोिी जोि जो इतम करै तसखद्ध समापि िासु ॥9॥

(1) तबछोई = तबछु डा हुआ । रहस = आिन्द । तबछूिा = तबछु डा हुआ । सुहेिा = सु हैि या अिस्त िारा । झरै = छाँ ट जािा है , दू र हो जािा
है । मे ह = मे घ, बादि ।
(2) छाज ि = दह ं अच्छा िििा । पींजर-ठाटू = तपंजरे का ढााँ चा । तदि एक ..मे िा = तकसी तदि अवश्य हाथ डािे िी । िर = िरसि,
तजसमें िासा ििाकर बहे तिए तचतडया फाँसािे हैं । तचत्र =तवतचत्र । सर साज िीन्ह = तचिा पर चढा; मर िया ।
(3) मतियार = र िक,सोहाविा । अं स = अविार । रििािर = रत्नाकर, समु द्र ।
(4) तचििी = तचििारी । कंचि-करी = स्वणा कतिका । िाति = तिये, तितमत्त । मे िा पहुाँ चा । दरस के िाईं = दशाि के तिये । रािा =
अिु रक्त हुआ । ओप =दमक । िािा = िरम । पीि तक रािा = पीिा तक िाि, पीिा सोिा मध्यम और िाि चोखा मािा जािा है ।
(6) करा = किा, तकरि । बजाति = वज्ाति । अकसर = अकेिा । सावााँ =श्याम, सााँविा । काह कह ं ह . ं ..तिमे ट= =सूआ रािी से पूछिा है
तक मैं उस राजा के पास जाकर क्या संदेसा कहूाँ तजसिे ि तमटिे वािा दु ुःख उठाया है ।
(7) बािू = वणा, रं िि । छािा = मृ िचमा पर । फूि ह ं िााँथे = िुम्हारे (िुरु के) कहिे से उसके प्रेम की मािा मैं िे िूाँथ िी ।
(8) पावा पाि = तबदा होिे का बीडा पाया । चिै = चिािे के तिए । रााँधा =पास, समीप । िाकरर =रििसेि की । िुम्ह सेवा = िुम्हारी सेवा
में । अं बा = आम का फि । बसै मीि...पास = जब मछिी पकाई जािी है िब उसमें आम की खटाई पड जािी है ; इस प्रकार इस प्रकार
आम और मछिी का संयोि हो जािा है । तजस प्रकार आम और मछिी दोिों का प्रेम एक जि के साथ होिे से दोिों में प्रेम-संबंध होिा है ,
उसी प्रकार मे रा और रििसेि का प्रेम िुम पर है इससे जब दोिों तववाह के िारा एक साथ हो जायाँिे िब मैं भी वहीं रहूाँ िा । मारि = मािा
में (ििे हुए) । आतद = प्रेम का मू ि मं त्र ।
(9) फतिि = फििा ,फतिंिा । समापि = पूणा ।
बसंि-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी

दै ऊ दे उ कै सो ऋिु िाँवाई । तसरी-पंचमी पहुाँ ची आई ॥


भएउ हुिास िवि ऋिु माहााँ । खखि ि सोहाइ धू प औ छाहााँ ॥
पदमावति सब सखी हाँ कारी । जावि तसंघिदीप कै बारी ॥
आजु बसंि िवि ऋिुराजा । पं चतम होइ, जिि सब साजा ॥
िवि तसंिार बिस्पति कीन्हा । सीस परासतह सेंदुर दीन्हा ॥
तबितस फूि फूिे बहु बासा । भ रं आइ िु बुधे चहुाँ पासा ॥
तपयर-पाि -दु ख झरे तिपािे । सुख पल्लव उपिे होइ रािे ॥

अवतध आइ सो पूजी जो हींछा मि कीन्ह ।


चिहु दे विढ िोहिे , चहहुाँ सो पूजा दीन्ह ॥1॥

तफरी आि ऋिु-बाजि बाजे । ओ तसंिार बाररन्ह सब साजे ॥


कवाँि-किी पदमावति रािी । होइ मािति जाि ं तबिसािी ॥
िारा-माँ डि पतहरर भि चोिा । भरे सीस सब िखि अमोिा ॥
सखी कुमोद सहस दस संिा । सबै सुिंध चढाए अंिा ॥
सब राजा रायन्ह कै बारी । बरि बरि पतहरे सब सारी ॥
सबै सुरूप, पदतमिी जािी । पाि, फूि सेंदुर सब रािी ॥
करतहं तकिोि सुरंि-राँ िीिी । औ चोवा चंदि सब िीिी ॥

चहुाँ तदतस रही सो बासिा फुिवारी अस फूति ।


वै बसंि स ं भूिीं, िा बसंि उन्ह भूति ॥2॥

भै आहा पदमावति चिी छतत्तस कुरर भइाँ िोहि भिी ॥


भइाँ िोरी साँि पतहरर पटोरा । बाम्हति ठााँव सहस अाँ ि मोरा ॥
अिरवारर िज ि ि करे ई । बैतसति पावाँ हं सिति दे ई ॥
चंदेतिति ठमकतहं पिु धारा । चिी च हाति, होइ झिकारा ॥
चिी सोिारर सोहाि सोहािी । औ किवारर पेम-मधु -मािी ॥
बातिति चिी सेंदुर तदए मााँिा । कयतथति चिी समाइाँ ि आाँ िा ॥
पटइति पतहरर सुराँि-िि चोिा । औ बरइति मु ख खाि िमोिा ॥

चिीं पउति सब िोहिे फूि डार िे इ हाथ ।


तबस्विाथ कै पूजा , पदमावति के साथ ॥3॥

कवाँि सहाय चिीं फुिवारी । फर फूिि सब करतहं धमारी ॥


आपु आपु महाँ करतहं जोहारू । यह बसंि सब कर तिवहारू ॥
चहै मिोरा झूमक होई । फर औ फूि तिएउ सब कोई ॥
फािु खेति पु ति दाहब होरी । सैं िब खेह, उडाउब झोरी ॥
आजु साज पुति तदवस ि दू जा । खेति बसंि िे हु कै पूजा ॥
भा आयसु पदमावति केरा । बहुरर ि आइ करब हम फेरा ॥
िस हम कहाँ होइतह रखवारी । पुति हम कहााँ, कहााँ यह बारी ॥

पुति रे चिब घर आपिे पूतज तबसेसर-दे व ।


जेतह काहुतह होइ खेििा आजु खेति हाँ तस िे व ॥4॥

काहू िही आाँ ब कै डारा । काहू जााँबु तबरह अति झारा ॥


कोइ िाराँ ि कोइ झाड तचर ज ं ी । कोइ कटहर, बडहर, कोइ न्य जी ॥
कोइ दाररउाँ कोइ दाख औ खीरी । कोइ सदाफर, िुराँज जाँभीरी ॥
कोइ जायफर, ि ि ं , सुपारी । कोइ िररयर, कोइ िुवा, छोहारी ॥
कोइ तबज रं , कर दं ा-जूरी । कोइ अतमिी, कोइ महुअ, खजूरी ॥
काहू हरफारे वरर कस द ं ा । कोइ अाँ वरा, कोइ राय-कर द
ं ा ॥
काहू िही केरा कै घ री । काहू हाथ परी तिं बक री ॥

काहू पाई णीयरे , कोउ िए तकछु दू रर ।


काहू खेि भएउ तबष, काहू अमृ ि-मू रर ॥5॥

पुति बीितहं सब फूि सहे िी । खोजतहं आस-पास सब बेिी ॥


कोइ केवडा, कोइ चंप िे वारी । कोइ केितक मािति फुिवारी ॥
कोइ सदबरि, कुंद, कोइ करिा । कोइ चमे ति, िािेसर बरिा ॥
कोइ म ितसरर, पुहुप बक री । कोई रूपमं जरी ि री ॥
कोइ तसंिारहार िेतह पाहााँ । कोइ सेविी, कदम के छाहााँ ॥
कोइ चंदि फूितहं जिु फूिी । कोइ अजाि-बीरो िर भूिी ॥

(कोइ) फूि पाव, कोइ पािी, जेतह के हाथ जो आाँ ट ॥


(कोइ) हारचीर अरुझािा, जहााँ छु वै िहाँ कााँट ॥6॥

फर फूिन्ह सब डार ओढाई । झुंड बााँतध कै पंचम िाई ॥


बाजतहं ढोि दुं दुभी भेरी । मादर, िूर, झााँझ चहु फेरी ॥
तसंति संख, डफ बाजि बाजे । बं सी, महुअर सुरसाँि साजे ॥
और कतहय जो बाजि भिे । भााँति भााँति सब बाजि चिे ॥
रथतहं चढी सब रूप-सोहाई । िे इ बसंि मठ-माँ डप तसधाई ॥
िवि बसंि; िवि सब बारी । सेंदुर बुक्का होइ धमारी ॥
खखितहं चितहं ; खखि चााँचरर होई । िाच कूद भूिा सब कोई ॥

सेंदुर-खेह उडा अस, ििि भएउ सब राि ।


रािी सिररउ धरिी, रािे तबररछन्ह पाि ॥7॥

एतहं तबतध खेिति तसंघिरािी । महादे व-मढ जाइ िुिािी ॥


सकि दे विा दे खै िािे । तदखस्ट पाप सब ििछि भािै ॥
एइ कतबिास इं द्र कै अछरी । की कहुाँ िें आईं परमे सरी ॥
कोई कहै पदतमिी आईं । कोइ कहै सतस िखि िराईं ॥
कोई कहै फूिी फुिवारी । फूि ऐतस दे खहु सब बारी ॥
एक सुरूप औ सुंदर सारी । जािहु तदया सकि मतह बारी ॥
मु रुतछ परै जोई मु ख जोहै । जािहु तमररि तदयारतह मोहै ॥

कोई परा भ रं होइ, बास िीन्ह जिु चााँप ।


कोइ पिंि भा दीपक, कोइ अधजर िि कााँप ॥8॥

पदमावति िै दे व-दु वारा । भीिर माँ डप कीन्ह पैसारा ॥


दे वतह संसै भा तजउ केरा । भाि ं केतह तदतस मं डप घेरा ॥
एक जोहार कीन्ह औ दू जा । तिसरे आइ चढाएतस पूजा ॥
फर फूिन्ह सब माँ डप भरावा । चंदि अिर दे व िहवावा ॥
िे इ सेंदुर आिे भै खरी । परतस दे व पुति पायन्ह परी ॥
`और सहे िी सबै तबयाहीं । मो कहाँ दे व ! किहुाँ बर िाहीं ॥
ह ं तिरिुि जेइ कीन्ह ि सेवा । िुति तिरिुति दािा िुम दे वा ॥

बर स ं जोि मोतह मे रवहु, किस जाति ह ं माति ।


जेतह तदि हींछा पूजै बे ति चढावहुाँ आति ॥9॥

हींतछ हींतछ तबिवा जस जािी । पुति कर जोरर ठातड भइ रािी ॥


उिरु को दे इ, दे व मरर िएउ । सबि अकूि माँ डप महाँ भएउ ॥
कातट पवारा जैस परे वा । सोएव ईस, और को दे वा ॥
भा तबिु तजउ ितहं आवि ओझा । तबष भइ पूरर, काि भा िोझा ॥
जो दे खै जिु तबसहर-डसा । दे खख चररि पदमावति हाँ सा ॥
भि हम आइ मिावा दे वा । िा जिु सोइ, को मािै सेवा ? ॥
क हींछा पूरै, दु ख खोवा । जे तह मािै आए सोइ सोवा ॥

जेतह धरर सखी उठावतहं , सीस तवकि ितहं डोि ।


धर कोइ जीव ि जाि ,ं मु ख रे बकि कुबोि ॥10॥
ििखि एक सखी तबहाँ सािी । क िुक आइ ि दे खहु रािी ॥
पुरुब िार मढ जोिी छाए । ि जि ं क ि दे स िें आए ॥
जिु उन्ह जोि िंि िि खेिा । तसद्ध होइ तिसरे सब चेिा ॥
उन्ह महाँ एक िुरू जो कहावा । जिु िुड दे इ काहू ब रावा ॥
कुाँवर बिीस िच्छि रािा । दसएाँ िछि कहै एक बािा ॥
जाि ं आतह िोतपचंद जोिी । की सो आतह भरथरी तवयोिी ॥
वै तपंििा िए कजरी-आरि । ए तसंघि आए केतह कारि ?॥

यह मू रति,यह मुद्रा, हम ि दे ख अवधू ि ।


जाि ं होतहं ि जोिी कोइ राजा कर पूि ॥11॥

सुति सो बाि रािी रथ चढी । कहाँ अस जोिी दे ख ं मढी ॥


िे इ साँि सखी कीन्ह िहाँ फेरा । जोतिन्ह आइ अपछरन्ह घेरा ॥
ियि कचोर पेम-पद भरे । भइ सुतदखस्ट जोिी सहुाँ टरे ॥
जोिी तदखस्ट तदखस्ट स ं िीन्हा । िै ि रोतप िै ितहं तजउ दीन्हा ॥
जेतह मद चढा परा िेतह पािे । सुतध ि रही ओतह एक तपयािे ॥
परा माति िोरख कर चेिा । तजउ िि छााँतड सरि कहाँ खेिा ॥
तकंिरी िहे जो हुि बैरािी । मरतिहु बार उहै धु ति िािी ॥
जेतह धं धा जाकर मि िािै सपिेहु सूझ सो धं ध ।
िेतह कारि िपसी िप साधतहं , करतहं पेम मि बंध ॥12॥

पदमावति जस सुिा बखािू । सहस-करा दे खेतस िस भािू ॥


मे िेतस चंदि मकु खखि जािा । अतधक सूि, सीर िि िािा ॥
िब चंदि आखर तहय तिखे । भीख िे इ िुइ जोि ि तसखे ॥
घरी आइ िब िा िूाँ सोई । कैसे भुिुति परापति होई ?॥
अब ज ं सूर अह सतस रािा । आएउ चतढ सो ििि पुति सािा ॥
तिखख कै बाि सखखि स ं कही । इहै ठााँव ह ं बारति रही ॥
परिट होहुाँ ि होइ अस भंिू । जिि या कर होइ पिंिू ॥

जा सहुाँ ह ं चख हे र ं सोइ ठााँव तजउ दे इ ।


एतह दु ख किहुाँ ि तिसर ,ं को हत्ा अतस िे इ ?॥13॥

कीन्ह पयाि सबन्ह रथ हााँका । परबि छााँतड तसंिििढ िाका ॥


बति भए सबै दे विा बिी । हात्ारर हत्ा िे इ चिी ॥
को अस तहिू मु ए िह बाहीं । ज ं पै तजउ अपिे घट िाहीं ॥
ज ितह तजउ आपि सब कोई । तबिु तजउ कोइ ि आपि होई ॥
भाइ बंधु औ मीि तपयारा । तबिु तजउ घरी ि राखै पारा ॥
तबिु तजउ तपंड छार कर कूरा । छार तमिावै स तहि पूरा ॥
िेतह तजउ तबिु अब मरर भा राजा । को उतठ बै तठ िरब स ं िाजा ॥

परी कथा भुइाँ िोटे , कहााँ रे तजउ बति भीउाँ ।


को उठाइ बैठारै बाज तपयारे जीव ॥14॥

पदमावति सो माँ तदर पईठी । हाँ सि तसंघासि जाइ बईठी ॥


तितस सूिी सुति कथा तबहारी । भा तबहाि कह सखी हाँ कारी ॥
दे व पूतज जस आइउाँ कािी । सपि एक तितस दे खखउाँ , आिी ॥
जिु सतस उदय पुरुब तदतस िीन्हा । ओ रतव उदय पतछउाँ तदतस कीन्हा ॥
पुति चति सूर चााँद पहाँ आवा । चााँद सुरुज दु हुाँ भएउ मेरावा ॥
तदि औ राति भए जिु एका । राम आइ रावि-िढ छे कााँ ॥
िस तकछु कहा ि जाइ तिखेधा । अरजुि-बाि राहु िा बेधा ॥

जािहु िं क सब िू टी, हिु वाँ तबधंसी बारर ।


जाति उतठउाँ अस दे खि, सखख! कहु सपि तबचारर ॥15॥

सखी सो बोिी सपि-तबचारू । काखि जो िइहुाँ दे व के बारू ॥


पूतज मिाइहुाँ बहुिै भााँिी । परसि आइ भए िुम्ह रािी ॥
सूरुज पुरुष चााँद िुम रािी । अस वर दै उ मे रावै आिी ॥
पखच्छउाँ खंड कर राजा कोई । सो आवा बर िुम्ह कहाँ होई ॥
तकछु पुति जूझ िाति िुम्ह रामा । रावि स ं होइतह साँिरामा ॥
चााँद सुरुज स ं होइ तबयाहू । बारर तबधं सब बेधब राहू ॥
जस ऊषा कहाँ अतिरुध तमिा । मे तट ि जाइ तिखा पुरतबिा ॥

सुख सोहाि जो िुम्ह कहाँ पाि फूि रस भोि ।


आजु काखि भा चाहै , अस सपिे क साँजोि ॥16॥

(1) दे उ दे उ कै = तकसी प्रकार से, आसरा दे खिे दे खिे । हाँ कारा = बुिाया । बारी =कुमाररयााँ । िोहिे =साथ में , सेवा में ।
(2) आि = राजा की आज्ञा, ड ड ं ी । होइ मािति = श्वेि हास िारा माििी के समाि होकर । िारा-मं डि = एक वस्त्र का िाम, चााँद िारा ।
कुमोद =कुमु तदिी । आहा = वाह वाह, धन्य धन्य । छतत्तस कुरर = क्षतत्रयों के छत्तीसों कुिों की । ब तसति =बैस क्षतत्रयों की खस्त्रयााँ । बातिति =
बतियाइि । पउति =पािे वािी, आतश्रि, प िी परजा । डार =डािा ।
(4) धमारर = होिी की क्रीडा । जोहार =प्रणाम आतद । मिोरा झूमक = एक प्रकार के िीि तजसे खस्त्रयााँ झाँुड बााँधकर िािी हैं ; इसके प्रत्ेक
पद में "मिोरा झूमक हो" यह वाक्य आिा है । सैंिब = समे ट कर इकट्ठा करें िी ।
(5) जााँबु...झारा = जामु ि जो तवरह की ज्वािा से झुिसी सी तदखाई दे िी है । न्योजी = तचििोजा । खीरी = खखरिी । िुवा =िुवाक, दखक्खति
सुपारी ।
(6) कूजा = कुब्जक , सफेदजंििी िुिाब । ि री =श्वेि मखल्लका । अजािबीरो = एक बडा पेड तजसके संबंध में कहा जािा है तक उसके िीचे
जािे से आदमी को सुध-बुध भूि जािी है । पंचम = पंचम स्वर में । मादर = मदा ि, एक प्रकार का मृ दंि ।
(8) जाइ िुिािी = जा पहुाँ ची । तदयारा = िु क जो िीिे कछारों में तदखाई पडिा है ; अथवा मृ ििृष्णा । चााँप = चंपा, चंपे की महक भ रं ा िहीं
सह सकिा ।
(9) एक...दू जा = दो बार प्रणाम तकया
(10) हींतछ =इच्छा करके । अकूि = परोक्ष, आकास-वाणी । ओझा = उपाध्याय, पुजारी । पू रर =पूरी । िोझा = एक पकवाि, तपराक । खोवा =
खोव । धर =शरीर ।
(11) िंि = ित्त्व दसएाँ िछि = योतियों के बत्तीस िक्षणों में दसवााँ िक्षण `सत्' है । तपंििा = तपंििा िाडी साधिे के तिये अथवा तपंििा
िाम की अपिी रािी के कारण । कजरी आरि = कदिीबि ।
(12) कचोर = कटोरा । जोिी सहुाँ = जोिी के सामिे , जोिी की ओर । िै ि रोतप...दीन्हा =आाँ खों में ही पद्माविी के िे त्रों के मद को िे कर
बेसुध हो िया ।
(13) मकु = कदातचि् । सूि = सोया । सीर = शीिि, ठं डा । आखर =अक्षर । ठााँव = अवसर, म का । बारति रही = बचािी रही । भिू
=रं ि में भंि, उपद्रव ।
(14) िाका =उस ओर बढा। मरर भा = मर िया, मर चुका । बति भीउाँ = बति और भीम कहिािे वािा । बाज = तबिा, बिैर, छोडकर, ।
(15) तबहार = तबहार या सैर की । मे रावा = तमिि । तिखेधा = वह ऐसी तितषद्ध या बुरी बाि है । राहु =रोहू मछिी । राहु िा बेधा =
मत्स्यबेध हुआ ।
(16) जूझ ...रामा = हे बािा ! िुम्हारे तिये राम कुछ िडें िे (राम =रत्नसेि, रावण = िंधवासेि)। बारर तबधं सब =संभोि के समय श्रंिार के
अस्तव्यस्त होिे का संकेि ।बिीचा पुरतबिा = पूवा जन्म का । संजोि = फि या व्यवस्था ।
राजा-रत्नसेि-सिी-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी

कै बसंि पदमावति िई । राजतह िब बसंि सुतध भई ॥


जो जािा ि बसंि ि बारी । िा वह खेि, ि खेििहारी ॥
िा वह ओतह कर रूप सुहाई । िै हे राइ, पुति तदखस्ट ि आई ॥
फूि झरे , सूखी फुिवारी । दीतठ परी उकठी सब बारी ॥
केइ यह बसि बसंि उजारा ?। िा सो चााँद, अथवा िे इ िारा॥
अब िेतह तबिु जि भा अाँ धकूपा । वह सुख छााँह, जर ं दु ख-धू पा ॥
तबरह-दवा को जरि तसरावा ?। को पीिम स ं करै मे रावा ?॥

तहये दे ख िब चंदि खेवरा, तमति कै तिखा तबछोव ।


हाथ मींतज तसर धु ति कै रोवै जो तिचींि अस सोव ॥1॥

जस तबछोह जि मीि दु हेिा । जि हुाँ ि कातढ अतिति महाँ मे िा ॥


चंदि-आाँ क दाि तहय परे । बुझतहं ि िे आखर परजरे ॥
जिु सर-आति होइ तहय िािे । सब िि दाति तसंघ बि दािे ॥
जरतहं तमररि बि-खाँड िेतह ज्वािा । औ िे जरतहं बैठ िेतह छािा ॥
तकि िे आाँ क तिखे ज ं सोवा । मकु आाँ कन्ह िेइ करि तबछ वा ॥
जैस दु संितह साकुंििा । मधवािितह काम-कंदिा ॥
भा तबछोह जस िितह दमावति । मै िा मूाँ तद छपी पदमावति ॥

आइ बसंि जो तछप रहा होइ फूिन्ह के भेस ।


केतह तबतध पाव ं भ रं होइ, क ि िुरू-उपदे स ॥2॥

रोवै रिि-माि जिु चूरा । जहाँ होइ ठाढ, होइ िहाँ कूरा ॥
कहााँ बसंि औ कोतकि-बैिा । कहााँ कुसुम अति बेधा िैिा ॥
कहााँ सो मू रति परी जो डीठी । कातढ तिहे तस तजउ तहये पईठी ॥
कहााँ सो दे स दरस जेतह िाहा ?। ज ं सुबसंि करीितह काहा ?॥
पाि-तबछोह रूख जो फूिा । सो महुआ रोवै अस भुिा ॥
टपकैं महुअ आाँ सु िस परहीं । होइ महुआ बसमि ज्यों झरहीं ॥
मोर बसंि सो पदतमति बरी । जेतह तबिु भएउ बसंि उजारी ॥

पावा िवि बसंि पुति बहु बहु आरति बहु चोप ।


ऐस ि जािा अं ि ही पाि झरतहं , होइ कोप ॥3॥

अरे मतिछ तबसवासी दे वा । तकि मैं आइ कीन्ह िोरर सेवा ॥


आपति िाव चढै जो दे ई । सो ि पार उिारे खे ई ॥
सुफि िाति पि टे केउाँ िोरा । सुआ क सेंबर िू भा मोरा ॥
पाहि चतढ जो चहै भा पारा । सो ऐसे बूडै मझ धारा ॥
पाहि सेवा कहााँ पसीजा ?। जिम ि ओद होइ जो भीजा ॥
बाउर सोइ जो पाहि पूजा । सकि को भार िे इ तसर दू जा ?॥
काहे ि तजय सोइ तिरासा । मु ए तजयि मि जाकरर आसा ॥

तसंघ िरें दा जेइ िहा पार भए िेतह साथ ।


िे पै बूडे बाउरे भेंड-पूंतछ तजन्ह हाथ ॥4॥

दे व कहा सुिु, बउरे राजा । दे वतह अिुमि मारा िाजा ॥


ज ं पतहिे तह अपिे तसर परई । सो का काहुक धरहरर करई ॥
पदमावति राजा कै बारी । आइ सखखन्ह सह बदि उघारी ॥
जैस चााँद िोहिे सब िारा । परे उाँ भुिाइ दे खख उतजयारा ॥
चमकतहं दसि बीजु कै िाई । िै ि-चक्र जमकाि भवााँई ॥
ह ं िेतह दीप पिंि होइ परा । तजउ जम कातढ सरि िे इ धरा ॥
बहुरर ि जाि ं दहुाँ का भई । दहुाँ कतविास तक कहुाँ अपसई ॥

अब ह ं मर ं तिसााँसी, तहये ि आवै सााँस ।


रोतिया की को चािै , वेदतह जहााँ उपास ?॥5॥

आितह दोस दे हुाँ का काहू । संिी कया, मया ितहं िाहू ॥


हिा तपयारा मीि तबछोई । साथ ि िाि आपु िै सोई ॥
का मैं कीन्ह जो काया पोषी । दू षि मोतहं , आप तिरदोषी ॥
फािु बसंि खेति िई िोरी । मोतह िि िाइ तबरह कै होरी ॥
अब कस कहााँ छार तसर मे ि ं ?। छार जो होहुाँ फाि िब खेि ं ॥
तकि िप कीन्ह छााँतड कै राजू । िएउ अहार ि भा तसध काजू ॥
पाएउ ितहं होइ जोिी जिी । अब सर चढ ं जर ं जस सिी ॥

आइ जो पीिम तफरर िा, तमिा ि आइ बसंि ।


अब िि होरी घाति कै, जारर कर ं भसमं ि ॥6॥

ककिू पंखख जैस सर साजा । िस सर सातज जरा चह राजा ॥


सकि दे विा आइ िुिािे । दहुाँ का होइ दे व असथािे ॥
तबरह -अतिति बज्ाति असूझा । जरै सूर ि बुझाए बूझा ॥
िेतह के जरि जो उठै बजािी । तििउाँ िोक जरैं िेतह िािी ॥
अबतह तक घरी सो तचििी छूटै । जरतहं पहार पहि सब फूटै ॥
दे विा सबै भसम होइ जाहीं । छार समे टे पाउब िाहीं ॥
धरिी सरि होइ सब िािा । है कोई एतह राख तबधािा ॥

मु हमद तचंििी पेम कै ,सुति मतह ििि डे राइ ।


धति तबरही औ धति तहया, िहाँ अस अतिति समाइ ॥

हिु वाँि बीर िं क जेइ जारी । परवि उहै अहा रखवारी ॥


बैतठ िहााँ होइ िं का िाका । छठएाँ मास दे इ उतठ हााँका ॥
िेतह कै आति उह पु ति जरा ।िं का छातड पिं का परा ॥
जाइ िहा वै कहा संदेसू । पारबिी औ जहााँ महे सू ॥
जोिी आतह तबयोिी कोई । िुम्हरे माँ डप आति िेइ बोई ॥
जरा िाँ िूर सु रािा उहााँ । तिकतस जो भाति भएउाँ करमु हााँ ॥
िेतह बज्ाति जरै ह ं िािा । बजरअं ि जरितह उतठ भािा ॥

रावि िं का ह ं दही, वह ह ं दाहै आव ।


िए पहार सब औतट कै, को राखै ितह पाव ?॥8॥

(1) उकठी = सूख कर ऐंठी हुई । अथवा = अस्त हुआ । खेवरा = ख रा हुआ, तचतत्रि तकया या ििाया हुआ ।
(2) हुाँ ि =से । परजरे = जििे रहे । सर-आति = अतिबाण । सब...दािे = मािों उन्हीं अतिबाणों से झुिसकर तसंह के शरीर में दाि बि
िए हैं और बि में आि ििा करिी है । तकििे आाँ क...सोवा = जब सोया था िब वे अं क क्यों तिखे िए; दू सरे पक्ष में जब जीव अज्ञाि-
दशा में िभा में रहिा है िब भाग्य का िे ख क्यों तिखा जािा है । दमावति = दमयंिी ।
(3) कहााँ सों दे स....िाहा ? = बसंि के दशाि से िाभ उठािे वािा अच्छा दे श चातहए, सो कहााँ है ? करीि के वि में वसंि के जािे ही से
क्या ? आरति = दु ुःख । चोप =चाह ।
(4) ओद = िीिा, आद्रा । िरें दा = िैरिे वािा काठ बेडा ।
(5) िाजा = िाज, बज् । धरहरर = धर-पकड, बचाव । िोहिे = साथ या सेवा में । अपसई =िायब हो िई । तिसााँसी = बेदम । को चािै =
क ि चिावै ?
(6) हिा = था, आया था । सर = तचिा ।
(7) ककिू = एक पक्षी तजसके संबंध में प्रतसद्ध है तक आयु पूरी होिे पर वह घोंसिे में बैठकर िािे िििा है तजससे आि िि जािी है और
वह जि जािा है । पहि = पाषाण,पत्थर। पिं का = पिाँ ि, चारपाई अथवा िं का के भी आिे`पिं का' िामक कखल्पि िीप ।
पावािी-महे श-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी

ििखि पहुाँ चे आइ महे सू । बाहि बैि, कुखस्ट कर भेसू ॥


काथरर कया हडावरर बााँधे । मुं ड-माि औ हत्ा कााँधे ॥
सेसिाि जाके काँठमािा । ििु भभुति, हस्ती कर छािा ॥
पहुाँ ची रुद्र-कवाँि कै िटा । सतस माथे औ सुरसरर जटा ॥
चाँवर घंट औ डाँ वरू हाथा । ि रा पारबिी धति साथा ॥
औ हिु वंि बीर साँि आवा । धरे भेस बादर जस छावा ॥
अवितह कहे खन्ह ि िावहु आिी । िेतह कै सपथ जरहु जेतह िािी ॥

की िप करै ि पारे हु, की रे िसाएहु जोि ?।


तजयि जीउ कस काढहु ? कहहु सो मोतहं तबयोि ॥1॥

कहे तस मोतहं बािन्ह तबिमावा । हत्ा केरर ि डर िोतह आवा ॥


जरै दे हु ,दु ख जर ं अपारा । तिस्तर पाइ जाउाँ एक बारा ॥
जस भरथरी िाति तपंििा । मो कहाँ पदमावति तसंघिा ॥
मै पुति िजा राज औ भोिू । सु ति सो िावाँ िीन्ह िप जोिू ॥
एतह मढ सेएउाँ आइ तिरासा । िइ सो पू तज, मि पूतज ि आसा ॥
मैं यह तजउ डाढे पर दाधा । आधा तिकतस रहा, घट आधा ॥
जो अधजर सो तविाँ ब ि आवा । करि तबिं ब बहुि दु ख पावा !!

एििा बोि कहि मु ख, उठी तबरह कै आति ।


ज ं महे स ि बुझावि, जाति सकि जि िाति ॥2॥

पारबिी मि उपिा चाऊ । दे खों कुाँवर केर सि भाऊ ॥


ओतह एतह बीच, की पेमतह पू जा । िि मि एक, तक मारि दू जा ॥
भइ सुरूप जािहुाँ अपछरा । तबहाँ तस कुाँवर कर आाँ चर धरा ॥
सुिहु कुाँवर मोस ं एक बािा । जस मोतहं रं ि ि औरतह रािा ॥
औ तबतध रूप दीन्ह है िोकों । उठा सो सबद जाइ तसव-िोका ॥
िब ह ं िोपहाँ इं द्र पठाई । िइ पदतमति िैं अछरी पाई ॥
अब िजु जरि, मरि, िप जोिू । मोस ं मािु जिम भरर भोिू ॥

ह ं अछरी कतबिास कै जेतह सरर पूज ि कोइ ।


मोतह ितज साँवरर जो ओतह मरतस, क ि िाभ िेतह होइ ?॥3॥

भिे तहं रं ि अछरी िोर रािा । मोतहं दू सरे स ं भाव ि बािा ॥


मोतहं ओतह साँवरर मु ए िस िाहा । िै ि जो दे खतस पूछतस काहा ?॥
अबतहं िातह तजउ दे इ ि पावा । िोतह अतस अछरी ठातढ मिावा ॥
ज ं तजउ दे इह ं ओतह कै आसा । ि जाि ं काह होइ कतबिासा ॥
ह ं कतबिास काह िै करऊाँ ?। सोइ कतबिास िाति जेतह मरऊाँ ॥
ओतह के बार जीउ ितहं बार ं । तसर उिारर िे वछावरर सार ं ॥
िाकरर चाह कहै जो आई । दोउ जिि िेतह दे हुाँ बडाई ॥

ओतह ि मोरर तकछु आसा, ह ं ओतह आस करे उाँ ।


िेतह तिरास पीिम कहाँ , तजउ ि दे उाँ का दे उाँ ? ॥4॥

ि रइ हाँ तस महे स स ं कहा । तिहचै एतह तबरहािि दहा ॥


तिहचै यह ओतह कारि िपा । पररमि पेम ि आछे छपा ॥
तिहचै पेम-पीर यह जािा । कसे कस टी कंचि िािा ॥
बदि तपयर जि डभकतहं िै िा । परिट दु व पेम के बैिा ॥
यह एतह जिम िाति ओतह सीझा । चहै ि औरतह, ओही रीझा ॥
महादे व दे वन्ह के तपिा । िुम्हरी सरि राम रि तजिा ॥
एहूाँ कहाँ िसमया केरहू । पुरवहु आस, तक हत्ा िे हू ॥

हत्ा दु इ के चढाए कााँधे बहु अपराध ।


िीसर यह िे उ माथे, ज िे वै कै साध ॥5॥

सुति कै महादे व कै भाखा । तसखद्ध पुरुष राजै मि िाखा ॥


तसद्धतह अं ि ि बैठे माखी । तसद्ध पिक ितहं िावै आाँ खी ॥
तसद्धतह संि होइ ितहं छाया । तसद्धतह होइ भूख ितहं माया ॥
जेतह िज तसद्ध िोसाईं कीन्हा । परिट िुपुि रहै को चीन्हा ?॥
बैि चढा कुस्टी कर भेसू । तिरजापति सि आतह महे सू ॥
चीन्हे सोइ रहै जो खोजा । जस तबक्रम औ राजा भोजा ॥
जो ओतह िंि सत्त स ं हे रा । िएउ हे राइ जो ओतह भा मे रा ॥

तबिु िुरु पंथ ि पाइय, भूिै सो जो मे ट ।


जोिी तसद्ध होइ िब जब िोरख स ं भेंट ॥6॥

ििखि रििसेि िहबरा । रोउब छााँतड पााँव िे इ परा ॥


मािै तपिै जिम तकि पािा । जो अस फााँद पेम तिउ घािा ?॥
धरिी सरि तमिे हुि दोऊ । केइ तििार कै दीन्ह तबछोऊ ?॥
पतदक पदारथ कर-हुाँ ि खोवा । टू टतह रिि, रिि िस रोवा ॥
ििि मे घ जस बरसै भिा । पुहुमी पूरर सतिि बतह चिा ॥
सायर टू ट, तसखर िा पाटा । सू झ ि बार पार कहुाँ घाटा ॥
प ि पाति होइ होइ सब तिरई । पेम के फंद कोइ जति परई ॥

िस रोवै जस तजउ जरै , तिरे रकि औ मााँसु ।


रोवाँ रोवाँ सब रोवतहं सूि सूि भरर आाँ सु ॥7॥

रोवि बूतड उठा संसारू । महादे व िब भएउ मयारू ॥


कहे खन्ह "िरोव, बहुि िैं रोवा । अब ईसर भा, दाररद खोवा ॥
जो दु ख सहै होइ दु ख ओकााँ । दु ख तबिु सुख ि जाइ तसविोका ॥
अब िैं तसद्ध भएतस तसतध पाई । दरपि-कया छूतट िई काई ॥
कह ं बाि अब ह ं उपदे सी । िािु पंथ, भूिे परदे सी ॥
ज ं िति चोर सेंतध ितह दे ई ।राजा केरर ि मू सै पेई ॥
चढें ि जाइ बार ओतह खूाँदी । परै ि सेंतध सीस-बि मूाँ दी ॥

कह ं सो िोतह तसं हििढ, है खाँड साि चढाव ।


तफरा ि कोई तजयि तजउ सरि-पंथ दे इ पाव ॥8॥

िढ िस बााँक जैतस िोरर काया । पुरुष दे खु ओही कै छाया ॥


पाइय िातहं जूझ हतठ कीन्हे । जे इ पावा िेइ आपु तह चीन्हे ॥
ि प री िेतह िढ मतझयारा । औ िहाँ तफरतहं पााँच कोटवारा ॥
दसवाँ दु आर िुपुि एक िाका । अिम चडाव, बाट सुतठ बााँका ॥
भेदै जाइ सोइ वह घाटी । जो ितह भेद, चढै होइ चााँटी ॥
िढाँ िर कुंड , सुराँि िेतह माहााँ । िहाँ वह पंथ कह ं िोतह पाहााँ ॥
चोर बैठ जस सेंतध साँवारी । जु आ पैंि जस िाव जुआरी ॥
जस मरतजया समु द धाँ स, हाथ आव िब सीप ।
ढूाँतढ िे इ जो सरि-दु आरी चडै सो तसंघिदीप ॥9॥

दसवाँ दु आर िाि कै िे खा । उितट तदखस्ट जो िाव सो दे खा ॥


जाइ सो िहााँ सााँस मि बंधी । जस धाँ तस िीन्ह कान्ह कातिं दी ॥
िू मि िाथु मारर कै सााँसा । जो पै मरतह अबतहं करु िासा ॥
परिट िोकचार कहु बािा । िुपुि िाउ कि जास ं रािा ॥
"ह ं ह "
ं कहि सबै मति खोई । ज ं िू िातह आतह सब कोई ॥
तजयितह जूरे मरै एक बारा । पुति का मीचु, को मारै पारा ?॥
आपुतह िुरू सो आपुतह चेिा । आपुतह सब औ आपु अकेिा ॥

आपुतह मीच तजयि पुति, आपुतह िि मि सोइ ।


आपुतह आपु करै जो चाहै , कहााँ सो दू सर कोइ ? ॥10॥

(1)कुखस्ट = कुिी, कोढी । हडावरर = अखस्त की मािा । हत्ा = मृ त्ु , काि ? रुद्र-काँवि = रुद्राक्ष । िटा = िट्टा, िोि दािा ।
(2) तिस्तर = तिस्तार, छु टकारा ।
(3) ओतह एतह बीच....पूजा = उसमें (पद्माविी में ) और इसमें कुछ अं िर रह िया है तक वह अं िर प्रेम से भर िया है और दोिों अतभन्न
हो िए हैं । रािा = ितिि, सुंदर । िोकााँ = िुझको
(4)िस =ऐसा कतबिास = स्विा । बार ं =बचाऊाँ सार ं = करू ाँ । चाह =खबर । तिरास = तजसे तकसी की आशा ि हो; जो तकसी के आसरे
का ि हो ।
(5) आछे = रहिा है । कसे = कसिे पर । िािा = प्रिीि हुआ । डभकतहं = डबडबािे है , आद्रा होिे हैं । परिट...बैिा = दोिों (पीिे मु ख
ओर िीिे िे त्र) प्रेम के बचि या बाि प्रकट करिे हैं । हत्ा दु इ = दोिों कंधों पर एक एक ।
(6) िाखा =िखा, पहचािा । मे रा = मे ि, भेंट । जो मे ट = जो इस तसद्धान्त को िहीं माििा ।
(7) िहबरा = घबराया । घािा डािा । पतदक = िाबीज, जंिर । िा पाटा =(पािी से) पट िया ।
(8) मयारू = मया करिे वािा, दयाद्रा । ईसर = ऐश्वया । ओकााँ = उसको । मू सै पेई = मू सिे पािा है । चढें ि...खूाँदी = कूदकर चढिे से
उस िार िक िहीं जा सकिा ।
(9) िाका = उसका । जो ितह ...चााँटी = जो िुरु से भेद पाकर चींटी के समाि धीरे धीरे योतियों के तपपीतिका मािा से चढिा है । पैंि =
दााँव ।
(10) िाि कै िे खा = िाड के समाि (ऊाँचा) । िोकचार = िोकाचार की । जुरै = जुट जाय ।
राजा-िढ-छें का-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी

तसतध-िुतटका राजै जब पावा । पुति भइ तसखद्ध ििे स मिावा ॥


जब संकर तसतध दीन्ह िुटेका । परी हुि, जोतिन्ह िढ छें का ॥
सबैं पदतमिी दे खतहं चढी । तसंघि छें तक उठा होइ मढी ॥
जस घर भरे चोर मि कीन्हा । िेतह तबतध सेंतध चाह िढ दीन्हा ॥
िुपुि चोर जो रहै सो सााँचा । परिट होइ जीउ ितहं बााँचा ॥
पोरर प रर िढ िाि केवारा । औ राजा स ं भई पुकारा ॥
जोिी आइ छें तक िढ मे िा । ि जिों क ि दे स िें खेिा ॥

भयउ रजायसु दे ख , को तभखारर अस ढीठ ।


बेति बरज िेतह आवहु जि दु इ पठैं बसीठ ॥1॥

उिरर बसीठन्ह आइ जोहारे ।"की िुम जोिी, की बतिजारे ॥


भएउ रजायसु आिे खेितहं । िढ िर छााँतड अिि होइ मे ितहं ॥
अस िािेहु केतह के तसख दीन्हे । आएहु मरे हाथ तजउ िीन्हे ॥
इहााँ इं द्र अस राजा िपा । जबतहं ररसाई सूर डरर छपा ॥
ह बतिजार ि बतिज बेसाह । भरर बैपार िे हु जो चाह ॥
ह जोिी ि जुिुति स ं मााँि ं । भुिुति िे हु, िै मारि िाि ॥
इहााँ दे विा अस िए हारी । िुम्ह पतिंि को अह तभखारी ॥

िुम्ह जोिी बैरािी , कहि ि मािहु कोहु ।


िे हु मााँति तकछु तभच्छा , खेति अिि कहुाँ होहु" ॥2॥

" आिु जो भीखख ह ं आएउाँ िे ई । कस ि िे उाँ ज ं राजा दे ई ॥


पदमावति राजा कै बारी । ह ं जोिी ओतह िाति तभखारी ॥
खप्पर िे इ बार भा मााँि ं । भुिुति दे इ दे इ मारि िाि ं ॥
सोई भुिुति-परापति भूजा । कहााँ जाउाँ अस बार ि दू जा ॥
अब धर इहााँ जीउ ओतह ठाउाँ । भसम होउाँ बरु िज ं ि िाऊाँ ॥
जस तबिु प्राि तपंड है छाँ छा । धरम िाइ कतहह ं जो पूछा ॥
िुम्ह बसीठ राजा के ओरा । साखी होहु एतह भीख तिहोरा ॥

जोिी बार आव सो जेतह तभच्छा कै आस ।


जो तिरास तदढ आसि तकि ि िे केहु पास "?॥3॥

सुति बसीठ मि उपिी रीसा । ज पीसि घुि जाइतह पीसा ॥


जोिी अस कहुाँ कहै ि कोई । सो कहु बाि जोि जो होई ॥
वह बड राज इं द्र कर पाटा । धरिी परा सरि को चाटा ?॥
ज ं यह बाि जाइ िहाँ चिी । छूटतहं अबतहं हखस्त तसं घिी ॥
औं ज ं छु टतह बज् कर िोटा । तबसररतह भुिुति, होइ सब रोटा ॥
जहाँ केहु तदखस्ट ि जाइ पसारी । िहााँ पसारतस हाथ तभखारी ॥
आिे दे खख पााँव धरु, िाथा । िहााँ ि हे रु टू ट जहाँ माथा ॥

वह रािी िेतह ज ि है जातह राज औ पाटु ।


सुंदर जाइतह राजघर, जोितह बााँदर काटु ॥4॥

ज ं जोिी सि बााँदर काटा । एकै जोि, ि दू सरर बाटा ॥


और साधिा आवै साधे । जोि-साधिा आपुतह दाधे ॥
सरर पहुाँ चाव जोति कर साथू । तदखस्ट चातह अिमि होइ हाथू ॥
िुम्हरे जोर तसंघि के हाथी । हमरे हखस्त िुरू हैं साथी ॥
अखस्त िाखस्त ओतह करि ि बारा । परबि करै पााँव कै छारा ॥
जोर तिरे िढ जावि भए । जे िढ िरब करतहं िे िए ॥
अं ि क चििा कोइ ि चीन्हा । जो आवा सो आपि कीन्हा ॥

जोतितह कोह ि चातहय, िस ि मोतहं ररस िाति ।


जोि िंि ज्य ं पािी, काह करै िेतह आति ?॥5॥

बतसठन्ह जाइ कही अस बािा । राजा सुिि कोह भा रािा ॥


ठावतहं ठााँव कुाँवर सब माखे । केइ अब िीन्ह जोि, केइ राखे ?॥
अबतहं बेितह कर साँजोऊ । िस मारहु हत्ा ितहं होऊ ॥
मं तत्रन्ह कहा रह मि बूझे । पति ि होइ जोतिन्ह स ं जूझे ॥
ओतह मारे ि काह तभखारी । िाज होइ ज ं मािा हारी ॥
िा भि मु ए, ि मारे मोखू । दु व बाि िािै सम दोखू ॥
रहे दे हु ज ं िढ िर मे िे । जोिी तकि आछैं तबिु खेिे ?॥

आछे दे हु जो िढ िरे , जति चािहु यह बाि ।


िहाँ जो पाहि भख करतहं अस केतहके मु ख दााँि ॥6॥

िए बसीठ पुति बहुरर ि आए । राजै कहा बहुि तदि िाए ॥


ि जिों सरि बाि दहुाँ काहा । काहु ि आइ कही तफरर चाहा ॥
पंख ि काया, प ि ि पाया । केतह तबतध तमि होइ कै छाया ?॥
साँवरर रकि िै ितहं भरर चूआ । रोइ हाँ कारे तस माझी सूआ ॥
परी जो आसु रकि कै टू टी । रें ति चिीं जस बीर-बहूटी ॥
ओतह रकि तिखख दीन्ही पािी । सुआ जो िीन्ह चोंच भइ रािी ॥
बााँधी कंठ परा जरर कााँठा । तबरह क जरा जाइ तकि िाठा ?॥

मतस िै िा, तिखिी बरुति, रोइ रोइ तिखा अकत्थ ।


आखर दहै , ि कोइ छु वै, दीन्ह परे वा हत्थ ॥7॥

औ मु ख बचि जो कहा परे वा । पतहिे मोरर बहुि कतह सेवा ॥


पुति रे साँवार कहे तस अस दू जी । जो बति दीन्ह दे विन्ह पूजी ॥
सो अबतहं िुम्ह सेव ि िािा । बति तजउ रहा, ि िि सो जािा ॥
भिे तह ईस हू िुम्ह सेव ि िािा । बति तजउ रहा, ि िति सो जािा ॥
ज िुम्ह मया कीन्ह पिु धारा । तदखस्ट दे खाइ बाि-तबष मारा ॥
जो जाकर अस आसामु खी । दु ख महाँ ऐस ि मारै दु खी ॥
िै ि-तभखारर ि माितहं सीखा । आिमि द रर दे तहं पै भीखा ॥
िै ितहं िै ि जो बेतध िए, ितहं तिकसैं वे बाि ।
तहये जो आखर िुम्ह तिखे िे सु तठ िीन्ह पराि ॥8॥

िे तबष-बाि तिख ं कहाँ िाईं । रकि जो चुआ भीतज दु तियाईं ॥


जाि जो िारै रकि-पसेऊ । सुखी ि जाि दु खी कर भेऊ ॥
जेतह ि पीर िेतहं काकरर तचंिा । पीिम तिठु र होइाँ अस तिं िा ॥
कास ं कह ं तबरह कै भाषा ?। जास कह ं होइ जरर राखा ॥
तबरह -आति िि बि बि जरे । िै ि-िीर सब सायर भरे ॥
पािी तिखी साँवरर िुम्ह िावााँ । रकि तिखे आखर भए सावााँ ॥
आखर जरतहं ि काहू छूआ । िब दु ख दे खख चिा िे इ सूआ ॥

अब सुतठ मर ;ं छूतछ िइ (पािी) पेम-तपयारे हाथ ।


भेंट होि दु ख रोइ सुिावि जीउ जाि ज ं साथ ॥9॥

कंचि -िार बााँतध तिउ पािी । िे ई िा सुआ जहााँ धति रािी ॥


जैसे काँवि सूर के आसा । िीर कंठ ितह मरि तपयासा ।
तबसरा भ ि सेज सुख-बासा । जहााँ भ रं सब िहााँ हुिासा ॥
ि िति धीर सुिा ितहं पीऊ । सुिा ि घरी रहै ितहं जीऊ ।
ि िति सुख तहय पेम ि जािा । जहााँ पेम कि सुख तबसरामा ?॥
अिर चंदि सुतठ दहै सरीरू । औ भा अतिति कया कर चीरू ॥
कथा-कहािी सुति तजउ जरा । जािहुाँ घीउ बसंदर परा ॥

तबरह ि आपु साँभारै , मै ि चीर, तसर रूख ।


तपउ तपउ करि राति तदि जस पतपहा मु ख सू ख ॥10॥

ििखि िा हीरामि आई । मरि तपयास छााँह जिु पाई ॥


भि िुम्ह सुआ ! कीन्ह है फेरा । कहहु कुसि अब पीिम केरा ॥
बाट ि जाि ,ं अिम पहारा । तहरदय तमिा ि होइ तििारा ॥
मरम पाति कर जाि तपयासा । जो जि महाँ िा कहाँ का आसा ?॥
का रािी यह पूछहु बािा । तजि कोइ होइ पेम कर रािा ॥
िुम्हरे दरसि िाति तबयोिी । अहा सो महादे व मठ जोिी ॥
िुम्ह बसंि िे इ िहााँ तसधाई । दे व पूतज पु ति ओतह पहाँ आई ॥

तदखस्ट बाि िस मारे हु घायि भा िेतह ठााँव ।


दू सरर बाि ि बोिै , िे इ पदमावति िााँव ॥11॥

रोवाँ रोवाँ वै बाि जो फूटे । सूितह सूि रुतहर मु ख छूटे ॥


िै ितहं चिी रकि कै धारा । कंथा भीतज भएउ रििारा ॥
सूरुज बूतड उठा होई िािा । औ मजीठ टे सू बि रािा ॥
भा बसंि रािी ं बिसपिी । औ रािे सब जोिी जिी ॥
पुहुतम जो भीतज, भएउ सब िेरू । औ रािे िहाँ पंखख पखे रू ॥
रािी सिी अतिति सब काया । ििि मे घ रािे िेतह छाया ॥
ईंिुर भा पहार ज ं भीजा । पै िु म्हार ितहं रोवाँ पसीजा ॥
िहााँ चकोर कोतकिा, तिन्ह तहय मया पईतठ ।
िै ि रकि भरर आए ,तिन्ह तफरर कीन्ह ि दीठ ॥12॥

ऐस बसंि िुमतहं पै खेिहु । रकि पराए सेंदुर मेिेहु ॥


िुम्ह ि खेति माँ तदर महाँ आईं । ओतह क मरम पै जाि िोसाईं ॥
कहे तस जरै को बारतह बारा । एकतह बार होहुाँ जरर छारा ॥
सर रतच चहा आति जो िाई । महादे व ि री सुतध पाई ॥
आइ बुझाइ दीन्ह पथ िहााँ । मरि-खेि कर आिम जहााँ ॥
उिटा पंथ पेम के बारा । चढै सरि, ज परै पिारा ॥
अब धाँ तस िीन्ह चहै िेतह आसा । पावै सााँस, तक मरै तिरासा ॥

पािी तिखख सो पठाई, इहै सबै दु ख रोइ ।


दहुाँ तजउ रहै तक तिसरै , काह रजायसु होइ ?॥13॥

कतह कै सुआ जो छोडे तस पािी । जािहु दीप छु वि िस िािी ॥


िीउ जो बााँधा कंचि-िािा । रािा सााँव कंठ जरर िािा ॥
अतिति सााँस साँि तिसरै िािी । िरुवर जरतहं िातह कै पािी ॥
रोइ रोइ सुआ कहै सो बािा । रकि कै आाँ सु भएउ मु ख रािा ॥
दे ख कंठ जरर िाि सो िेरा । सो कस जरै तबरह अस घेरा ॥
जरर जरर हाड भयउ सब चूिा । िहााँ मासु का रकि तबहूिा ॥
वह िोतह िाति कथा सब जारी । िपि मीि, जि दे तह पवारी ॥

िोतह कारि वह जोिी, भसम कीन्ह िि दाह ।


िू अतस तिठु र तिछोही, बाि ि पू छै िातह ॥14॥

कहे तस"सुआ ! मोस ं सुिु बािा । चह ं िो आज तमि ं जस रािा ॥


पै सो मरम ि जािा भोरा । जािै प्रीति जो मरर कै जोरा ॥
ह ं जािति ह ं अबही कााँचा । िा वह प्रीति रं ि तथर रााँचा ॥
िा वह भएउ मियतिरर बासा । िा वह रतव होइ चढा अकासा ॥
िा वह भयउ भ रं कर रं िू । िा वह दीपक भएउ पिंिू ॥
िा वह करा भृंि कै होई । िा वह आपु मरा तजउ ख ई ॥
िा वह प्रेम औतट एक भएउ । िा ओतह तहये मााँझ डर ियऊ ॥

िेतह का कतहय तजउ रहै जो पीिम िाति ।


जहाँ वह सुिै िे इ धाँ तस, का पािी, का आति ॥15॥

पुति धति किक=पाति मतस मााँिी । उिर तिखि भीजी िि आाँ िी ॥


िस कंचि कहाँ चतहय सोहािा । ज ं तिरमि िि होइ ि िािा ॥
ह ं जो िई तसव-मं डप भोरी । िहाँ वााँ कस ि िााँतठ िैं जोरी ? ॥
भा तबसाँभार दे खख कै िै िा । सखखन्ह िाज का बोि ं बैिा ?॥
खेितहं तमस मैं चंदि घािा । मकु जाितस ि ं दे उाँ जयमािा ॥
िबहुाँ ि जािा, िा िू सोई । जािे भेंट ि सोए होई ॥
अब ज ं सूर होइ चढै अकासा । ज ं तजउ दे इ ि आवै पासा ॥

ि िति भुिुति ि िे इ सका रावि तसय जब साथ ।


क ि भरोसे अब कह ं ? जीउ पराए हाथ ॥16॥

अब ज ं सूर ििि चतढ आवै । राहु होइ ि सतस कहाँ पावै ॥


बहुिन्ह ऐस जीउ पर खेिा । िू जोिी तकि आतह अकेिा ॥
तबक्रम धाँ सा प्रेम के बारा । सपिावति कहाँ िएउ पिारा ॥
मधू पाछ मु िुधावति िािी । िििपूर होइिा बैरािी ॥
राजकुाँवर कंचिपुर ियऊ । तमरिावति कहाँ जोिी भएऊ ॥
साध कुाँवर खंडावि जोिू । मधु -मािति कर कीन्ह तवयोिू ॥
प्रेमावति कहाँ सुरपुर साधा । ऊषा िति अतिरुध बर बााँधा ॥

ह ं रािी पदमाविी, साि सरि पर बास ।


हाथ चढ ं मैं िेतहके प्रथम करै अपिास ॥17॥

ह ं पुति इहााँ ऐस िोतह रािी । आधी भेंट तपरीिम-पािी ॥


िहुाँ ज प्रीति तिबाहै आाँ टा । भ रं ि दे ख केि कर कााँटा ॥
होइ पिंि अधरन्हहु िहु दीया । िे तस समु द धाँ तस होइ सीप सेवािी ॥
चािक होइ पुकारु, तपयासा । पीउ ि पाति सेवाति कै आसा ॥
सारस कर जस तबछु रा जोरा । िै ि होइ जस चंद चकोरा ॥
होतह चकोर तदखस्ट सतस पाहााँ । औ रतब होतह काँविदि माहााँ ॥

महुाँ ऐसै होउाँ िोतह कहाँ , सकतह ि ओर तिबाहु ।


रोहु बेतध अरजुि होइ जीिु दु रपदी ब्याहु ॥18॥

राजा इहााँ ऐस िप झूरा । भा जरर तबरछ छार कर कूरा ।


िै ि िाइ सो िएउ तबमोही । भा तबिु तजउ दीन्हे तस ओही ॥
कहााँ तपंििा सुखमि िारी । सू ति समातध िाति िइ िारी ॥
बूाँद समु द्र जैस होइ मे रा । िा हे राई अस तमिै ि हे रा ।
रं ितह पाि तमिा जस होई । आपतह खोइ रहा होइ सोई ॥
सुऐ जाइ जब दे खा िासू । िै ि रकि भरर आए आाँ सू ॥
सदा तपरीिम िाढ करे ई । ओतह ि भुिाइ,भूति तजउ दे ई ॥
मू रर सजीवि आति कै औ मु ख मे िा िीर ।
िरुड पंख जस झारै अमृ ि बरसा कीर ॥19॥

मु आ तजया बास जो पावा । िीन्हे तस सााँस, पे ट तजउ आवा ॥


दे खेतस जाति तसर िावा । पािी दे इ मु ख बचि सुिावा ॥
िुरू क बचि स्रवि दु इ मेिा । कीन्ह सुतदखस्ट, बेिु चिु चेिा ॥
िोतह अति कीन्ह आप भइ केवा । ह ं पठवा िुरु बीच परे वा ॥
प ि सााँस िोस ं मि िाई । जोवै मारि तदखस्ट तबछाई ॥
जस िुम्ह कया कीन्ह अति-दाहू । सो सब िुरु कहाँ भएउ अिाहू ॥
िव उदं ि तिखख दीन्हा । वेति आउ , चअहै तसध कीन्हा ॥

आवहु सातम सुिचछिा, जीउ बसै िुम्ह िााँव ।


िै ितहं भीिर पंथ है , तहरदय भीिर ठावाँ ॥20॥

सुति पदमावति कै अतस मया । भा बसंि, उपिी िइ कया ॥


सुआ क बोि प ि होइ िािा । उठा सोइ, हिु वाँि अस जािा ॥
चााँद तमिै कै दीन्हे तस आसा । सहस किा सूर परिासा ॥
पाति िीन्ह, िे इ सीस चढावा । दीतठ चकोर चंद जस पावा ॥
आस-तपयासा जो जे तह केरा । जों तझझकार, ओतह सहुाँ हे रा ॥
अब यह क ि पाति मैं पीया । भा िि पााँख, पिाँि मरर जीया ॥
उठा फुति तहरदय ि समािा । कंथा टू क टू क बेहरािा ॥

जहााँ तपरीिम वै बसतहं यह तजउ बति िेतह बाट ।


वह ज बोिावै पावाँ स ,ं ह ं िहाँ चि तििाट ॥21॥

जो पथ तमिा महे सतह से ई । िएउ समु द ओतह धाँ तस िे ई ॥


जहाँ वह कुंड तवषम औिाहा । जाइ परा िहाँ पाव ि थाहा ॥
बाउर अं द पेम कर िािू । स हाँ धाँ सा, तकछु सूझ ि आिू ॥
िीन्हे तसतध सााँसा मि मारा । िुरू मछं दरिाथ साँभारा ॥
चेिा परे ि छााँडतह पाछू । चेिा मच्छ , िुरू जस काछू ॥
जस धाँ तस िीन्ह समु द मरजीया । उघरे िै ि, बरै जस दीया ॥
खोतज िीन्ह सो सरि-दु आरा । बज् जो मूाँ दे जाइ उघारा ॥

बााँक चढाव सरि-िढ, चढि िएउ होइ भोर ।


भइ पुकार िढ ऊपर, चढे सेंतध दे इ चोर ॥22॥

(1) परी हूि = कोिाहि हुआ । जस घर भरे ...कीन्हा = जैसे भरे घट में चोरी करिे का तवचार चोर िे तकया हो । िाि =ििे , तभड िए ।
खेिा = तवचरिा हुआ आया । रजायसु = राजाज्ञा ।
(2) खेितहं = तबचरें , जायाँ । अस िािेहु = ऐसे काम में ििे । कोहु = क्रोध ।
(3) आएउाँ िे ई = िेिे आया हूाँ । भूजा = मे रे तिये भोि है । धरम िाइ = धमा तिए हुए , सत् सत् । भीख तिहोरा = भीख के संबंध में,
अथवा इसी भीख को मैं मााँििा हूाँ । तिरासा =आशा या कामिा से रतहि
(4) धरिी परा...चाटा = धरिी पर पडा हुआ क ि स्विा या आकाश चाटिा है ? कहावि है - " रहै भूईं औ चाटै बादर" । िोटा = िोिा ।
रोटा = दबकर िूाँधे आाँ टे की बेिी रोटी के समाि । बााँदर काटु = बंदर काटे , मु हातवरा - अथााि् जोिी का बुरा हो, जोिी चूिे में जायाँ ।
(5) सि =स । सरर पहुाँ चाव = बराबर या तठकािे पहुाँ चा दे िा है । तदखस्ट चातह....हाथू = दृति पहुाँ चिे के पहिे ही योिी का हाथ पहुाँ च जािा
है । चातह = अपेक्षा, बतिस्बि । िए =िम्र हुए ।
(6) साँजोऊ =समाि । पति =बडाई, प्रतिष्ठा जोिी....खेिे = योिी कहााँ रहिे हैं तबिा (और जिह) िए ?
(7) चाहा = चाह खबर । माझी =मध्यस्थ । िाठा जाइ = िि तकया या तमटाया जािा है । मतस =स्याही । तिखिी = िे खिी, किम । अकल्
= अकत्थ बाि ।
(8) सेवा कतह -तविय कहकर । साँवार = संवाद, हाि । बति तजउ रहा...जािा = जीव िो पहिे ही बति चढ िया था, ( इसी से िुम्हारे आिे
पर) वह शरीर ि जिा । ईस = महादे व । भाव = भािा है । आसामु खी = मु ख का आसरा दे खिे वािा ।
(9) जाि =जाििा है । सावााँ = श्याम । छूाँतछ = खािी ।
(10) िीर कंठ ितह ....तपयासा = कंठ िक पािी में रहिा है तफर भी प्यासों मरिा है । बसंदर = बैश्वािर, अति ।तबरह = तवरह से ।
रूख= तबिा िेि का ।
(12) रििारा = िाि । िै ि रकि भरर आए = चकोर और पहाडी कोतकिा की आाँ खें िाि होिी हैं ।
(13) दीन्ह पथ िहााँ = वहााँ का रास्ता बिाया मरि खेि...जहााँ = जहााँ प्राण तिछावर करिे का आिम है । उिटा पंथ = योतियों का अं ि-
मुा ख मािा; तबषयों की ओर स्वभाविुः जािे हुए मि को उिटा पीछे की ओर फेरकर िे जािे वािा मािा ।
(14) िातह कै पािी = उसकी उस तचट्ठी से । दे खु कंठ जरर ..िेरा = दे ख, कंठ जििे ििा कंठ जििे ििा (िब) उसे तिरा तदया । दे तह
पवारी = फेंक दे ।
(15) कााँचा =कच्चा । रााँचा = राँ ि िया । औतट = पिकर ।
(16) धति =स्त्री । किक पाति = सोिे का पािी । तबसाँभार = बेसुध । घािा =डािा, ििाया । किक पाति = सोिे का पािी । तबसाँभार =
बेसुध घािा = डािा, ििाया । मकु = कदातचि् ।जािे भेंट....होई = जाििे से भेंट होिी है , सोिे से िहीं ।
(17) अपिास = अपिा िाश ।
(18) तिबाहैं आाँ टा = तिबाह सकिा है । केि = केिकी । महुाँ , मैं भी । ओर तिबाहु = प्रीति को अं ि िक तिबाह ।
(19) कूरा = ढे र । तपंििा = दतक्षण िाडी । सुखमि = सुषुम्ना, मध्य िाडी । सूति समातध = शून्यसमातध । िारी = त्राटक, टकटकी । िाढ =
कतठि अवस्था ।
(20) केवा = केिकी । अिाहू भएउ = तवतदि हुआ । उदं ि = संवाद, वृत्तान्त । छािा = पत्र । सातम =स्वामी ।
(21) हिु वाँि = हिुमाि् के ऐसा बिी । तझझकार = तझडके । सहुाँ =सामिे बेहरािा =फटा ।
(22) धाँ तस िे ई = धाँ सकर िेिे के तिए । िािू =िाि, ििि । परे = दू र । बााँक = टे ढा, चक्करदार । सरिदु वार = दू सरे अथा में दशम िार ।
िंधवासेि-मं त्री-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी

राजै सुति, जोिी िढ चढे । पू छै पास जो पं तडि पढे ॥


जोिी िढ जो सें तध दै आवतहं । बोिहु सबद तसखद्ध जस पावतहं ॥
कहतहं वेद पतढ पं तडि बेदी । जोति भ र जस मािति-भेदी ॥
जैसे चोर सेंतध तसर मे ितहं । िस ए दु व जीउ पर खेितहं ॥
पंथ ि चितहं बेद जस तिखा । सरि जाए सूरी चतढ तसखा ॥
चोर होइ सूरी पर मोखू । दे इ ज सूरर तिन्हतह ितहं दोखू
चोर पुकारर बेतध घर मू सा । खे िै राज-भाँढार माँ जूसा ॥

जस ए राजमाँ तदर महाँ दीन्ह रे ति कहाँ सेंतध ।


िस छें कहु पुति इन्ह कहाँ , मारहु सूरी बेतध ॥1॥

रााँध जो मं त्री बोिे सोई । एस जो चोर तसखद्ध पै कोई ॥


तसद्ध तिसंक रै ति तदि भवाँहीं । िाका जहााँ िहााँ अपसवहीं ॥
तसद्ध तिडर अस अपिे जीवा । खडि दे खख कै िावतहं िीवा ॥
तसद्ध जाइ पै तजउ बध जहााँ । औरतह मरि-पंख अस कहााँ ?॥
चढा जो कोतप ििि उपराहीं । थोरे साज मरै सो िाहीं ॥
जंबूक जूझ चढै ज राजा । तसंध साज कै चढै ि छाजा ॥
तसद्ध अमर, काया जस पारा । छरतहं मरतह, बर जाई ि मारा ॥

छरही काज कृस्न कर, राजा चढै ररसाइ ।


तसद्धतिद्ध तजन्ह तदखस्ट ििि पर, तबिु छर तकछु ि बसाइ ॥2॥

अबहीं करहु िुदर तमस साजू । चढतहं बजाइ जहााँ िति राजू ॥
होतहं साँजोवि कुाँवर जो भोिी । सब दर छें तक धरतहं अब जोिी ॥
च तबस िाख छ्त्रपति साजे । छपि कोतट दर बाजि बाजे ॥
बाइस सहस हखस्त तसंघिी। सकि पहार सतहि मतह हिी॥
जिि बराबर वै सब चााँपा। डरा इं द्र बासुतक तहय कााँपा॥
पदु म कोट रथ साजे आवतहं । तिरर होइ खेह ििि कहाँ धावतहं ॥
जिु भुइाँचाि चिि मतह परा। टू टी कमठ-पीतठ, तहय डरा॥

छत्रतह सरि छाइिा, सूरुज ियउ अिोतप।


तदितहं राति अस दे खखय, चढा इं द्र अस कोतप॥3॥

दे खख कटक औ मै माँि हाथी। बोिे रििसेि कर साथी॥


होि आव दि बहुि असूझा। अस जातिय तकछु होइतह जूझा॥
राजा िू जोिी होइ खेिा। एही तदवस कहाँ हम भए चेिा॥
जहााँ िाढ ठाकुर कहाँ होई। संि ि छााँडै सेवक सोई॥
जो हम मरि-तदवस मि िाका। आजु आइ पूजी वह साका॥
बरु तजउ जाइ, जाइ ितहं बोिा। राजा सि-सुमेरु ितहं बोिा॥
िुरू केर ज ं आयसु पावतहं । स ह
ं होतहं औ चक्र चिावतहं ॥

आजु करतहं रि भारि सि बाचा दे इ राखख।


सत् दे ख सब क िुक, सत् भरै पुति साखख॥4॥

िुरू कहा चेिा तसध होहू। पेम-बारहोइ करहु ि कोहू॥


जाकहाँ सीस िाइ कै दीजै। रं ि ि होइ ऊभ ज कीजै॥
जेतह तजउ पेम पाति भा सोई। जे तह राँ ि तमिै ओतह राँ ि होई॥
ज पै जाइ पेम स ं जूझा। तकि िप मरतहं तसद्ध जो बूझा? ॥
एतह सेंति बहुरर जूझ ितहं कररए। खडि दे खख पािी होइ ढररए॥
पातितह काह खडि कै धारा। ि तट पाति होइ सोइ जोप मारा॥
पािी सेंिी आति का करई ? । जाइ बुझाइ ज पािी परई॥

सीस दीन्ह मैं अिमि पेम-पाति तसर मे ति।


अब सो प्रीति तिबाह ,ं चि ं तसद्ध होइ खेति॥5॥

राजै छें तक धरे सब जोिी । दु ख ऊपर दु ख सहै तबयोिी॥


िा तजउ धरक जरि होइ कोई। िाहीं मरि तजयि डर होई॥
िाि-फााँस उन्ह मे िा िीबा। हरख ि तबसम ं एक जीवा॥
जेइ तजउ दीन्ह सो िे इ तिकासा। तबसरै ितहं ज ितह िि सासा॥
कर तकंिरी िेतह िंिु बजावै। इहै िीि बैरािी िावै॥
भिे तह आति तिउ मे िी फााँसी। है ि सोच तहय, ररस सब िासी॥
मैं तिउ फााँद ओतह तदि मे िा। जेतह तदि पेम-पंथ होइ खेिा॥

परिट िुपुि सकि महाँ पूरर रहा सो िावाँ।


जहाँ दे ख ं िहाँ ओही, दू सर ितहं जहाँ जावाँ॥6॥

जब िति िुरु ह ं अहा ि चीन्हा। कोतट अाँ िरपट बीचतह दीन्हा॥


जब चीन्हा िब और ि कोई। िि मि तजउ जीवि सब सोई॥
'ह ं ह 'ं करि धोख इिराहीं। जय भा तसद्ध कहााँ परछाहीं? ॥
मारै िुरू, तक िुरू तजयावै। और को मार? मरै सब आवै॥
सूरी मे िु, हखस्त करु चुरू। ह ं ितहं जाि ;ं जािै िुरू॥
िुरू हखस्त पर चढा सो पेखा। जिि जो िाखस्त, िाखस्त पै दे खा॥
अं ध मीि जस जि महाँ धावा। जि जीवि चि तदखस्ट ि आवा॥

िुरु मोरे मोरे तहये, तदए िुरंिम ठाठ।


भीिर करतहं डोिावै, बाहर िाचै काठ॥7॥

सो पदमावति िुरु ह ं चेिा। जोि-िंि जेतह कारि खेिा॥


ितज वह बार ि जाि ं दू जा। जेतह तदि तमिै , जािरा-पूजा॥
जीउ कातढ भु इाँ धर ं तििाटा। ओतह कहाँ दे उाँ तहये महाँ पाटा॥
को मोतहं ओतह छु आवै पाया। िव अविार, दे इ िइ काया॥
जीउ चातह जो अतधक तपयारी। मााँिै जीउ दे उाँ बतिहारी॥
मााँिै सीस, दे उाँ सह िीवा। अतधक िर ज ं मारै जीवा॥
अपिे तजउ कर िोभ ि मोहीं। पेम-बार होइ मााँि ं ओही॥

दरसि ओतह कर तदया जस, ह सो तभखारर पिंि।


जो करवि तसर सारै , मरि ि मोर ं अं ि॥8॥

पदमावति काँविा सतस-जोिी। हाँ से फूि, रोवै सब मोिी॥


बरजा तपिै हाँ सी औ रोजू। िािे दू ि, होइ तिति खोजू॥
जबतहं सुरुज कहाँ िािा राहू। िबतहं काँवि मि भएउ अिाहू॥
तबरह अिस्त जो तबसम उएऊ। सरवर-हरष सूखख सब िएऊ॥
परिट ढारर सके ितहं आाँ सू। घतट घतट मााँसु िुपुि होइ िासू॥
जस तदि मााँझ रै ति होइ आई। तबिसि काँवि िएउ मुरझाई॥
रािा बदि िएउ होइ सेिा। भाँवि भाँवर रतह िए अचेिा॥

तचत्त जो तचंिा कीन्ह धति, रोवै रोवाँ समे ि।


सहस साि सतह, आतह भरर, मु रुतछ परी, िा चेि॥9॥

पदमावति साँि सखी सयािी। ििि िखि सब रै ति तबहािी॥


जाितहं मरम काँवि कर कोई। दे खख तबथा तबरतहि के रोईं॥
तबरहा कतठि काि कै किा। तबरह ि सहै , काि बरु भिा॥
काि कातढ तजउ िे इ तसधारा। तबरह-काि मारे पर मारा॥
तबरह आति पर मे िै आिी। तबरह घाव पर घाव बजािी॥
तबरह बाि पर बाि पसारा। तबरह रोि पर रोि साँचारा॥
तबरह साि पर साि िवेिा। तबरह काि पर काि दु हेिा॥
िि रावि होइ सर चढा, तबरह भयउ हिु वंि।
जारे ऊपर जारै , तचि मि करर भसमं ि॥10॥

कोइ कुमोद पसारतहं पाया। कोइ मियतिरर तछरकतहं काया॥


कोइ मु ख सीििि िीर चुवावै। कोइ अं चि स ं प ि डोिावै॥
कोई मु ख अमृ ि आति तिचोवा। जिु तबष दीन्ह, अतधक धति सीबा॥
जोवतहं सााँस खखितह खखि सखी। कब तजउ तफरै प ि-पर पाँखी॥
तबरह काि होइ तहये पईठा। जीउ कातढ िै हाथ बईठा॥
खखितहं म ि बााँधे, खखि खोिा। िही जीभ मु ख आव ि बोिा॥
खखितहं बेतझ कै बािन्ह मारा। काँतप काँतप िारर मरै बेकरारा॥

घरर चारर इतम िहि िरासी। पुति तबतध तहये जोति परिासी॥
तिसाँस ऊतभ भरर िीन्हे तस सााँसा। भा अधार, जीवि कै आसा॥
तबिवतहं सखी, छूट सतस राहू। िु म्हरी जोति जोति सब काहू॥
िू सतस-बदि जिि उतजयारी। केइ हरर िीन्ह, कीन्ह अाँ तधयारी?॥
िू िजिातमति िरब-िरे िी। अब कस आस छााँड िू, बेिी॥
िू हरर िं क हराए केहरर। अब तकि हारर करति है तहय हरर? ॥
िू कोतकि-बैिी जि मोहा। केइ व्याधा होइ िहा तिछोहा?॥

काँवि-किी िू पदतमति! िइ तितस भयउ तबहाि।


अबहुाँ ि संपुट खोितस जब रे उआ जि भािु ॥12॥

भािु िावाँ सुति काँवि तबिासा। तफरर कै भ रं िीन्ह मधु बासा॥


सरद चंद मु ख जबतहं उघेिी। खं जि-िै ि उठे करर केिी॥
तबरह ि बोि आव मु ख िाई। मरर मरर बोि जीउ बररयाईं॥
दवैं तबरह दारुि, तहय कााँपा। खोति ि जाइ तबरह-दु ख झााँ पा॥
उदतध-समु द जस िरि दे खावा। चख घू मतहं , मु ख बाि ि आवा॥
यह सुति िहरर िहरर पर धावा। भाँवर परा, तजउ थाह ि पावा॥
सखख आति तबष दे हु ि मरऊाँ। तजउ ि तपयार, मरै का डरऊाँ?॥

खखितहं उठै , खखि बूडै, अस तहय काँवि साँकेि।


हीरामितह बुिावतह, सखी! िहि तजउ िे ि॥13॥

चेरी धाय सुिि खखि घाई। हीरामि िे इ आइाँ बोिाई॥


जिहु बैद ओषद िे इ आवा। रोतिया रोि मरि तजउ पावा॥
सुिि असीस िै ि धति खोिे । तबरह-बैि कोतकि तजतम बोिे ॥
काँवितहं तबरह-तबथा जस बाढी। केसर-बरि पीर तहय िाढी॥
तकि काँवितहं भा पेम-अाँ कूरू। जो पै िहि िे तह तदि सूरू॥
पुरइति-छााँह काँबि कै करी। सकि तबथा सुति अस िुम हरी॥
पुरुष िभीर ि बोितहं काहू। जो बोितहं ि और तिबाहू॥

एििै बोि कहि मु ख पुति होइ िई अचेि।


पुति को चेि साँभारै ? उहै कहि मु ख सेि॥14॥

और दिध का कह ं अपारा। सिी सो जरै कतठि अस झारा॥


होई हिु बंि पैठ है कोई। िं कादाहु िािु करै सोई॥
िं का बुझी आति ज िािी। यह ि बुझाइ आाँ च बज्ािी॥
जिहु अतिति के उठतहं पहारा। औ सब िाितहं अं ि अं िारा॥
कतट कतट मााँसु सराि तपरोवा। रकि कै आाँ सु मााँसु सव रोबा॥
खखि एक बार मााँसु अस भूाँजा। खखितहं चबाइ तसंघ अस िूाँजा॥
एतह रे दिध हुाँ ि उतिम मरीजै। दिध ि सतहय,जीउ बरु दीजै॥

जहाँ िति चंदि मियतिरर औ सायर सब िीर।


सब तमति आइ बुझावतहं , बुझै ि आति सरीर॥15॥

हीरामि ज ं दे खेतस िारी। प्रीति-बेि उपिी तहय-बारी॥


कहे तस कस ि िुम्ह होहु दु हेिी। अरुझी पेम जो पीिम बेिी॥
प्रीति-बेति तजति अरुझै कोई ।अरुझे,, मु ए ि छूटै सोई ॥
प्रीति-वेति ऐसै िि डाढा। पिु हि सुख, बाढि दु ख बाढा॥
प्रीति-बेति कै अमर को बोई? । तदि तदि बढै , छीि ितहं होई॥
प्रीति-बेति साँि तबरह अपारा। सरि पिार जरै िेतह झारा॥
प्रीति अकेति बेति चतढ छावा। दू सर बेति ि साँचरै पावा॥

प्रीति-बेति अरुझै जब िब सुछााँह सुख-साख।


तमिै पीरीिम आइ कै,दाख-बेति-रस चाख॥16॥

पदमावति उतठ टे कै पाया। िुम्ह हुाँ ि दे ख ं पीिम-छाया॥


कहि िाज औ रहै ि जीऊ। एक तदतस आति दु सर तदतस पीऊ॥
सूर उदयतिरर चढि भुिािा। िहिे िहा, काँवि कुाँतभिािा॥
ओहट होइ मर ं ि झूरी। यह सु तठ मर ं जो तियर, ि दू री॥
घट महाँ तिकट, तबकट होइ मे रू। तमितह ि तमिे , परा िस फेरू॥
िुम्ह सो मोर खेवक िुरु दे वा। उिर ं पार िेही तबतध खे वा॥
दमितहं िितहं जो हं स मे रावा। िु म्ह हीरामि िावाँ कहावा॥

मू रर सजीवि दू रर है , सािै सकिी-बािु ।


प्राि मु कुि अब होि है , बेति दे खावहु भािु ॥17॥

हीरामि भुई धरा तििाटू । िुम्ह रािी जुि जुि सुख-पाटू ॥


जेतह के हाथ सजीवि मू री। सो जातिय अब िाहीं दू री॥
तपिा िुम्हार राज कर भोिी। पूजै तबप्र मरावै जोिी॥
प रं र प रं र कोिवार जो बैठा। पेम किु बुध सुरि होइ पैठा॥
चढि रै ति िढ होइिा भोरू। आबि बार धरा कै चोरू॥
अब िे इ िए दे इ ओतह सूरी। िेतह स ं अिाह तबथा िुम्ह पूरी॥
अब िुम्ह तजउ काया वह जोिी। कया क रोि जािु पै रोिी॥

रूप िुम्हार जीउ कै (आपि) तपंड कमावा फेरर।


आपु हे राइ रहा, िेतह काि ि पावै हे रर॥18॥

हीरामि जो बाि यह कही। सूर िहि चााँद िब िही॥


सूर के दु ख स ं सतस भइ दु खी। सो तकि दु ख मािै करमु खी? ॥
अब ज ं जोति मरै मोतह िे हा। मोतह ओतह साथ धरति िििे हा॥
रहै ि कर ं जिम भरर सेवा। चिै ि, यह तजउ साथ परे वा॥
कहे तस तक क ि करा है सोई। पर-काया परवेस जो होई॥
पितट सो पंथ क ि तबतध खेिा। चेिा िुरू, िुरू भा चेिा॥
क ि खंड अस रहा िु काई। आवै काि, हे रर तफररजाई॥

चेिा तसखद्ध सो पावै, िुरु स ं करै अछे द।


िुरू करै जो तकररपा, पावै चेिा भेद॥19॥

अिु रािी िुम िुरु, वह चेिा। मोतह बूझहु कै तसद्ध िवेिा? ॥


िुम्ह चेिा कहाँ परसि भई। दरसि दे इ माँ डप चति िई॥
रूप िुरू कर चेिै डीठा। तचि समाइ होइ तचत्र पईठा॥
जीउ कातढ िै िुम्ह अपसई। वह भा कया, जीव िुम्ह भई॥
कया जो िाि धू प औ सीऊ। कया ि जाि, जाि पै जीऊ॥
भोि िुम्हार तमिा ओतह जाई। जो ओतह तबथा सो िुम्ह कहाँ आई॥
िुम ओतहके घट, वह िुम माहााँ। काि कहााँ पावै वह छाहााँ? ॥

अस वह जोिी अमर भा पर-काया परवेस।


आवै काि, िुरुतह िहाँ , दे खख सो करै अदे स॥20॥

सुति जोिी कै अमर जो करिी। िे वरी तबथा तबरह कै मरिी॥


कवाँि-करी होइ तबिसा जीऊ। जिु रतव दे ख छूतट िा सीऊ॥
जो अस तसद्ध को मारै पारा? । तिपुरुष िेई जरै होइ छारा॥
कह जाइ अब मोर साँदेसू। िज जोि अब, होइ िरे सू॥
तजति जािहु ह ं िुम्ह स ं दू री। िै िि मााँझ िडी वह सूरी॥
िुम्ह परसेद घटे घट केरा। मोतहं घट जीव घटि ितहं बेरा॥
िुम्ह कहाँ पाट तहये महाँ साजा। अब िुम मोर दु हूाँ जि राजा॥
ज ं रे तजयतहं तमति िर रहतहं , मरतहं ि एकै दोउ।
िुम्ह तजउ कहाँ तजति होइ तकछु , मोतहं तजउ होउ सो होउ॥21॥

(1) सबद = व्यवस्था । सरि जाए = स्विा जािा (अवधी) सूरर =सूिी ।
(2) रााँध =पास, समीप । भवाँहीं = तफरिे हैं । अपसवहीं =जािे हैं । मरि-पंख = मृ त्ु के पंख जैसे चींटों को जमिे हैं । पारा =पारद । छरतह
= छि से, युखक्त से । बर =बि से ।
(3) िुदर = राजा के दरबार में हातजरी, मोजरा; अथवा पाठांिर `कदरमस'=युद्ध । साँजोवि = सावधाि । दर = दि , सेिा । बराबर चााँपा = पैर
से र दं कर समिि कर तदया । भुइाँचाि = भूचाि, भूकंप । अिोतप िए = िु प्त हो िए ।
(4) साका पूजी = समय पूरा हुआ । बोिा = वचि, प्रतिज्ञा । ऊभ =ऊाँचा । एतह सेंति = इससे, इसतिये । पातितह कहा...धारा =पािी में
ििवार मारिे से पािी तवदीणा िहीं होिा, वह तफर ज्यों का त्ों बराबर हो जािा है । ि तट ...मारा = जो मरिा है वही उिटा पािी (कोमि
हो ) हो जािा है । धरक = धडक । तबसम = तबषाद (अवध) । ररस अस िासी = क्रोध भी सब प्रकार िि कर तदया है ।
(7) अहा = था । अाँ िरपट = परदा, व्यवधाि । इिराहीं =इिरािे हैं , िवा करिे हैं । करू चूरू = चूर करे , पीस डािे । पै = ही । जि
जीवि...आवा =जि सा यह जीवि चंचि है , यह तदखाई िहीं दे िा है । ठाठ= रचिा, ढााँचा । काठ = जड वस्तु, शरीर ।
(8) जािरा पूजा = यात्रा सफि हुई । पाटा = तसंहासि । करवि तसर सारै = तसर पर आरा चिावै ।
(9) रोजू = रोदि, रोिा । खोजू = च कसी । अिस्त =एक िक्षत्र, जैसे, उतदि अिस्त पंथ जि सोखा । तबसम = तबिा समय के । भाँवि भाँवर
....अचेिा = डोििे हुए भ रं े अथााि् पुितियााँ तििि हो िई ।
(10) कोई = कुमु तदिी, यहााँ सखखयााँ । काि कै किा = काि के रूप । िवेिा =िया ।
(11) प ि पर = पवि के परवािा अथााि् वायुरूप । बेकरारा = बेचैि कैसहु तबरह ि छााँडै, भा सतस िहि िरास। िखि चहूाँ तदतस रोवतहं , अं धर
धरति अकास॥ अं धर = अाँ धेरा ।
(12) िू हररिं क....केहरर = िूिे तसंह से कतट छीिकर उसे हराया । हारर करति है = तिराश होिी है , तहम्मि हारिी है । तिछोहा = तिष्ठु र

(13) तफरर कै भ रं ....मधुबासा = भ रं ों िे तफर मधु वास तिया अथााि् कािी पुितियााँ खुिीं । बररयाईं = जबरदस्ती । दवैं = दबािा है , पीसिा
है । झााँपा = ढका हुआ । साँकेि = संकट । िहि = सूया-रूप रत्नसेि का अदशाि ।
(14) अाँकूरू = अं कुर ।काहू = कभी ।
(15) झारा = झार, ज्वािा । सराि = शिाका, सीख । िूाँजा =िरजा । दिध =दाह । उतिम = उत्तम ।
(16) दु हेिी = दु ुःखी । पिु हि = पल्लतवि होिे, पिपिे हुए
(17) िुम्ह हुाँ ि = िुम्हारे िारा । ओहट =ओट में , दू र । मे रू = मे ि, तमिाप । तमितहं ि तमिे = तमििे पर भी िहीं तमििा । दमि =दमयंिी
। मु कुि होि है = छूटिा है ।
(18) रूप िुम्हार जीउ..फेरर = िुम्हारे रूप (शरीर) मैं अपिे जीव को करके (पर-काय-प्रवेश करके) उसिे मािो दू सरा शरीर प्राप्त तकया ।
(19) करमु खी =कािे मुाँ ह वािी । िििे हा =ििि में , स्विा में । करा = जिा ।चेिा तसखद्ध सो पावै ...मे द = यह शुक का उत्तर है ।
अछे द,अभेद = भेद-भाव का त्ाि ।
(20) अिु =तफर, आिे । मोतह बूझहु ...िवेिा = िया तसद्ध बिाकर उिटा मु झसे पूछिी हो । अपसई = चि दी । सीऊ = शीि । अदे स
करै = िमस्कार करिा है ;`आदे श िुरु' यह प्रणाम में प्रचतिि है ।
(21) िे वरी = तिबटी, छूटी । तिपु रुष = पुरुषाथाहीि । सूरी =शूिी जो रत्नसेि को दी जािे वािी है । परसेद = प्रस्बेद, पसीिा । घट = घटिे पर
। बेरा = दे र, तविं ब ।
रत्नसेि-सूिी-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी

बााँतध िपा आिे जहाँ सूरी। जुरे आई सब तसंघिपूरी॥


पतहिे िुरुतह दे इ कह आिा। दे खख रूप सब कोइ पतछिािा॥
िोि कहतहं यह होइ ि जोिी। राजकुाँवर कोइ अहै तबयोिी॥
काहुतह िाति भएउ है िपा। तहये सो माि, करहु मु ख जपा॥
जस मारै कहाँ बाजा िूरू। सूरी दे खख हाँ सा मं सूरू॥
चमके दसि भएउ उतजयारा। जो जहाँ िहााँ बीजू अस मारा॥
जोिी केर करहु पै खोजू । मकु यह होइ ि राजा भोजू॥

सब पूछतहं , कहु जोिी! जाति जिम औ िााँव।


जहााँ ठााँव रोवै कर हाँ सा सो कहु केतह भाव॥1॥

का पूछहु अब जाति हमारी । हम जोिी औ िपा तभखारी॥


जोतितह क ि जाति, हो राजा। िारर ि कोह, मारर ितहं िाजा॥
तििज तभखारर िाज जे इ खोई। िेतह के खोज परै तजति कोई॥
जाकर जीउ मरै पर बसा। सूरर दे खख सो कस ितहं हाँ सा? ॥
आजु िे ह स होइ तिबेरा। आजु पुहुतम ितज ििि बसेरा॥
आजु कया-पीजर-बाँतद टू टा । आजुतहं प्राि-परे वा छूटा॥
आजु िे ह स ं होइ तििारा। आजु प्रेम-साँि चिा तपयारा॥
आजु अवतध तसर पहुाँ ची, तकए जाहु मु ख राि।
बेति होहु मोतहं मारहु तजति चािहु यह बाि॥2॥

कहे खन्ह साँवरु जेतह चाहतस साँवरा। हम िोतह करतहं केि कर भाँवरा॥
कहे तस ओतह साँवर ं हरर फेरा। मु ए तजयि आह ं जेतह केरा॥
औ साँवर ं पदमावति रामा । यह तजउ िे वछावरर जेतह िामा॥
रकि क बूाँद कया जस अहही। 'पदमावति पदमावति' कहही॥
रहै ि बूाँद बूाँद महाँ ठाऊाँ। परै ि सोई िे इ िे इ िाऊाँ॥
रोंब रोंब िि िास ं ओधा। सूितह सूि बेतध तजउ सोधा॥
हाडतह हाड सबद सो होई। िस िस मााँह उठै धु ति सोई॥

जािा तबरह िहााँ का िूद मााँसु कै हाि? ।


ह ं पुति सााँचा होइ रहा ओतह के रूप समाि॥3॥

जोतितह जबतहं िाढ अस परा । महादे व कर आसि टरा ॥


वै हाँ तस पारबिी स ं कहा । जािहुाँ सूर िहि अस िहा ॥
आजु चढे िढ ऊपर िपा राजै िहा सूर िब छपा ॥
जि दे खै िा क िुक आजू । कीन्ह िपा मारै कहाँ साजू ॥
पारबिी सुति पााँयन्ह परी । चति, महे स ! दे खैं एतह घरी ॥
भेस भााँट भााँतटति कर कीन्हा । औ हिु वंि भीर साँि िीन्हा ॥
आए िुपुि होइ दे खि िािी । वह मू रति कस सिी सभािी ॥

कटक असूझ दे खख कै राजा िरब करे इ ।


दे उ क दशा ि दे खै , दहुाँ का कहाँ जय दे इ ॥4॥

आसि िे इ रहा होइ िपा । `पदमावति पदमावति' जपा ॥


मि समातध िास ं धु ति िािी । जेतह दरसि कारि बैरािी ॥
रहा समाइ रूप औ िाऊाँ । और ि सूझ बार जहाँ जाऊाँ ॥
औ महे स कहाँ कर ं अदे स । जेइ यह पंथ दीन्ह उपदे सू ॥
पारबिी पुति सत् सराहा । औ तफरर मु ख महे स कर चाहा ॥
तहय महे स ज ,ं कहै महे सी । तकि तसर िावतहं ए परदे सी ?॥
मरिहु िीन्ह िुम्हारतह िाऊाँ । िुम्ह तचि तकए रहे एतह ठाऊाँ ॥

मारि ही परदे सी, राखख िे हु एतह बीर ।


कोइ काहू कर िाही जो होइ चिै ि िीर ॥5॥

िे इ साँदेस सुअटा िा िहााँ । सूरी दे तहं रिि कहाँ जहााँ ॥


िे इ साँदेस सुअटा िा िहााँ । सूरी दे तहं रिि कहाँ जहााँ ॥
दे खख रिि हीरामि रोवा । राजा तजउ िोिन्ह हतठ खोवा ॥
दे खख रुदि हीरामि केरा । रोवतह सब, राजा मु ख हे रा ॥
मााँितह सब तबतधिा स ं रोई । कै उपकार छोडावै कोई ॥
कतह सदे स सब तबपति सुिाई । तबकि बहुि, तकछु कहा ि जाई ॥
कातढ प्राि बैठी िे इ हाथा । मरै ि मर ं , तजऔ एक साथा ॥
सुति साँदेस राजा िब हाँ सा । प्राि प्राि घट घट कहाँ बसा ॥

सुअटा भााँट दस ध
ं ी, भए तजउ पर एक ठााँव ।
चति सो जाइ अब दे ख िहाँ जहाँ बैठा रह राव ॥6॥

राजा रहा तदखस्ट के औंधी । रतह ि सका िब भााँट दस धी ॥


कहे तस मे ति कै हाथ कटारी । पु रुष ि आछे बैठ पेटारी ॥
कान्ह कोतप जब मारा कंसू । िब जािा पूरुष कै बंसू ॥
िंध्रबसेि जहााँ ररस - बाढा । जाइ भााँ ट आिे भा ठाढा ॥
बोि िंध्रबसेि ररसाई । कस जोिी, कस भााँट असाई ॥
ठाढ दे ख सव राजा राऊ । बाएाँ हाथ दीन्ह बरम्हाऊ ॥
जोिी पाति, आति िू राजा । आतितह पाति जूझ ितहं छाजा ॥

आति बुझाइ पाति स ं , जूझु ि , राजा ! बूझु ।


िीन्हे खप्पर बार िोतह , तभक्षा दे तह , ि झूझु ॥7॥
जोति ि होइ , आतह सो भोजू । जािहु भेद करहु सो खोजू ॥
भारि ओइ जूझ ज ओधा । होतहं सहाय आइ सब जोधा ॥
महादे व रिघंट बजावा । सु ति कै सबद बरम्हा चति आवा ॥
फिपति फि पिार स ं काढा । अस्ट कुरी िाि भए ठाढा ॥
छप्पि कोतट बसंदर बरा । सवा िाख परबि फरहरा ॥
चढै अत्र िै कृस्न मुरारी । इं द्रिोक सब िाि िोहारी ॥
िैंतिस कोतट दे विा साजा । औ छािबे मे घदि िाजा ॥

िव िाथ चति आवतहं औ च रासी तसद्ध ।


आजु महाभारि चिे , ििि िरुढ औ तिद्ध ॥8॥

भइ अज्ञा को भााँट अभाऊ । बाएाँ हाथ दे इ बरम्हाऊ ॥


को जोिी अस ििरी मोरी । जो दे इ सेंतध चढै िड चोरी ॥
इं द्र डरै तिति िावै माथा । जािि कृस्न सेस जेइ िाथा ॥
बरम्हा डरै चिुर-मु ख जासू । औ पािार डरै बति बासू ॥
मही हिै औ चिै सुमेरू । चााँद सूर औ ििि कुबेरू ॥
मे घ डरै तबजूरी जेतह दीठी । कूरुम डरै धरति जेतह पठी ॥
चह ं आजु मााँि ं धरर केसा । और को कीट पिंि िरे सा ?॥

बोिा भााँट, िरे स सुि ! िरब ि छाजा जीउ ।


कुंभकरि कै खोपरी बूडि बााँचा भीउाँ ॥9॥

रावि िरब तबरोधा रामू । आही िरब भएउ संग्रामू ॥


िस रावि अस को बररबंडा । जेतह दस सीस, बीस भुजदं डा ॥
सूरुज जेतह कै िपै रसोई । तिितहं बसंदर धोिी धोई ॥
सूक सुमंिा, सतस मतसआरा । प ि करै तिति बार बोहारा ॥
जमतहं िाइ कै पाटी बााँधा । रहा ि दू सर सपिे काधा ॥
जो अस बज् टरै ितहं टारा । सोऊ मु वा दु इ िपसी मारा ॥
िािी पूि कोतट दस अहा । रोविहार ि कोई रहा ॥

ओछ जाति कै काहुतह तजति कोई िरब करे इ ।


ओछे पर जो दे उ है जीति-पत्र िेइ दे इ ॥10॥

अब जो भााँट उहााँ हुि आिे । तबिै उठा राजतह ररस िािे ॥


भााँट अहै संकर कै किा । राजा सहुाँ राखैं अरििा ॥
भााँट मीचु पै आपु ि दीसा । िा कहाँ क ि करै अस रीसा ?॥
भएउ रजायसु िंध्रबसेिी । काहे मीचु के चढै िसेिी ? ॥
कहा आति बाति अस पढै ?। करतस ि बुखद्ध भेंट जेतह कढै ॥
जाति भााँि तकि औिुि िावतस । बाएाँ हाथ राज बरम्हावतस ॥
भााँट िााँव का मार ं जीवा ?। अबहूाँ बोि िाइ कै िीवा ॥

िूाँ रे भााँट, ए जोिी , िोतह एतह काहे क संि ? ।


काह छरे अस पावा , काह भएउ तचि -भंि ॥11॥

ज ं सि पूछतस िंध्रब राजा । सि पै कह ं परै ितहं िाजा ॥


भााँटतह काह मीचु स ं डरिा । हाथ कटार, पेट हति मरिा ॥
जंबूदीप तचत्तउर दे सा । तचत्रसेि बड िहााँ िरे सा ॥
रििसेि यह िाकर बेटा । कुि च हाि जाइ ितहं मे टा ॥
खााँडै अचि सुमेरु पहारा । टरै ि ज ं िािै संसारा ॥
दाि-सुमेरु दे ि ितहं खााँिा । जो ओतह मााँि ि औरतह मााँिा ॥
दातहि हाथ उठाएउाँ िाही । और को अस बरम्हाव जाही ॥

िााँव महापािर मोतहं , िेतहक तभखारी ढीठ ।


ज ं खरर बाि कहे ररस िािै, कहै बसीठ ॥12॥

ििखि पुति महे स मि िाजा । भााँट-करा होइ तबिवा राजा ॥


िंध्रबसेि ! िुाँ राजा महा । ह ं महे स-मू रति, सुिु कहा ॥
ज पै बाि होइ भति आिे । कहा चतहय, का भा ररस िािे ॥
राजकुाँवर यह, होतह ि जोिी । सु ति पदमावति भएउ तबयोिी ॥
जंबूदीप राजघर बेटा । जो है तिखा सो जाइ ि मे टा ॥
िुम्हरतह सुआ जाइ ओतह आिा । औ जेतह कर,बर कै िेइ मािा ॥
पुति यह बाि सुिी तसव-िोका । करतस तबयाह धरम है िोका ॥

मााँिै भीख खपर िे इ, मु ए ि छााँडै बार ।


बूझहु, किक-कचोरी भीखख दे हु, ितहं मार ॥13॥

ओहट होहु रे भााँ ट तभखारी । का िू मोतहं दे तह अतस िारी ॥


को मोतहं जोि जिि होइ पारा । जा सहुाँ हे र ं जाइ पिारा ॥
जोिी जिी आव जो कोई । सुिितह त्रासमाि भा सोई ॥
भीखख िे तहं तफरर माितहं आिे । ए सब रै ति रहे िढ िािे ॥
जस हींछा, चाह ं तिन्ह दीन्हा । िातहं बेतध सूरी तजउ िीन्हा ॥
जेतह अस साध होइ तजउ खोवा । सो पिंि दीपक अस रोवा ॥
सुर, िर,मु ति सब िंध्रब दे वा । िेतह को ििै ? करतह तिति सेवा ॥

मोस ं को सरवरर करै ? सुिु, रे झूठे भााँट !


छार होइ ज चाि ं तिज हखस्ति कर ठाट ॥14॥

जोिी तघरर मे िे सब पाछे । उरए माि आए रि काछे ॥


मं तत्रन्ह कहा, सुिहु हो राजा । दे खहु अब जोतिन्ह कर काजा ॥
हम जो कहा िुम्ह करहु ि जूझु । होि आव दर जिि असूझु ॥
खखि इक महाँ झुरमु ट होइ बीिा । दर महाँ चतढ जो रहै सो जीिा ॥
कै धीरज राजा िब कोपा । अं िद आइ पााँव रि रोपा ॥
हखस्त पााँच जो अिमि धाए । तिन्ह अं िद धरर सूड तफराए ॥
दीन्ह उडाइ सरि कहाँ िए । ि तट ि तफरै , िहाँ तह के भए ॥

दे खि रहे अचंभ जोिी , हस्ती बहुरर ि आय ।


जोतिन्ह कर अस जूझब, भूतम ि िािि पाय ॥15॥

कहतहं बाि, जोिी अब आए । खखिक माहाँ चाहि हैं भाए ॥


ज ितह धावतहं अस कै खेिहु । हखस्ति केर जूह सब पेिहु ॥
जस िज पेति होतहं रि आिे । िस बिमे ि करहु साँि िािे ॥
हखस्त क जूह आय अिसारी । हिु वाँि िबै िाँ िूर पसारी ॥
जैसे सेि बीच रि आई । सबै िपेतट िाँ िूर चिाई ॥
बहुिक टू तट भए ि खंडा । बहुिक जाइ परे बरम्हं डा ॥
बहुिक भाँवि सोइ अाँ िरीखा । रहे जो िाख भए िे िीखा ॥

बहुिक परे समु द महाँ , परि ि पावा खोज ।


जहााँ िरब िहाँ पीरा , जहााँ हाँ सी िहाँ रोज ॥16॥

पुति आिे का दे खै राजा । ईसर केर घंट रि बाजा ॥


सुिा संख जो तबस्नू पूरा । आिे हिु वाँि केर िाँिूरा ॥
िीन्हे तफरतहं िोक बरम्हं डा । सरि पिार िाइ मृ दमं डा ॥
बति, बासुतक औ इं द्र िररं दू । राहु, िखि, सूरुज औ चंदू ॥
जावि दािव राच्छस पुरे । आठ ं बज् आइ रि जुरे ॥
जेतह कर िरब करि हुि राजा । सो सब तफरर बैरी होइ साजा ॥
जहवााँ महादे व रि खडा । सीस िाइ पायाँन्ह परा ॥

केतह कारि ररस कीतजए ? ह ं से वक औ चेर ।


जेतह चातहए िेतह दीतजय, बारर िोसाईं केर ॥17॥

पुतिं महे स अब कीन्ह बसीठी । पतहिे करुइ, सोइ अब मीठी ॥


िूाँ िंध्रब राजा जि पूजा । िुि च दह, तसख दे इ को दू जा ?॥
हीरामि जो िुम्हार परे वा । िा तचिउर औ कीन्हे तस सेवा ॥
िेतह बोिाइ पू छहु वह दे सू । दहुाँ जोिी, की िहााँ िरे सू ॥
हमरे कहि ि ज ं िुम्ह मािहु । जो वह कहै सोइ परवााँिहु ॥
जहााँ बारर, बर आवा ओका । करतहं तबयाह धरम बड िोका ॥
जो पतहिे मि माति ि कााँधे । परखै रिि िााँतठ िब बााँधै ॥
रिि छपाए िा छपै, पाररख होइ सो परीख ।
घाति कस टी दीतजए किक-कचोरी भीख ॥18॥

राजे जब हीरामि सुिा । िएउ रोस, तहरदय महाँ िुिा ॥


अज्ञा भई बोिावहु सोई । पं तडि हुाँ िे धोख ितहं होई ॥
एकतहं कहि सहस्त्र धाए । हीरामितहं बेति िे इ आए ॥
खोिा आिे आति माँ जूसा । तमिा तिकतस बहु तदिकर रूसा ॥
अस्तुति करि तमिा बहु भााँिी । राजै सुिा तहये भइ सााँिी ॥
जािहुाँ जरि आति जि परा । होइ फुिवार रहस तहय भरा ॥
राजै पुति पूछी हाँ तस बािा । कस िि तपयर, भएउ मु ख रािा ॥

चिुर वेद िुम पंतडि , पढे शास्त्र औ बेद ।


कहा चढाएहु जोतिन्ह, आइ कीन्ह िढ भेद ॥19॥

हीरामि रसिा रस खोिा । दै असीस, कै अस्तुति बोिा ॥


इं द्रराज राजेसर महा । सु ति होइ ररस, कछु जाइ ि कहा ॥
पै जो बाि होइ भति आिे । से वक तिडर कहै ररस िािे ॥
सुवा सुफि अमृ ि पै खोजा । होहु ि राजा तबक्रम भोजा ॥
ह ं सेवक , िुम आतद िोसाईं । सेवा कर ं तजऔं जब िाईं ॥
जेइ तजउ दीन्ह दे खावा दे सू । सो पै तजउ महाँ बसै, िरे सू ! ॥
जो ओतह साँवरै `एकै िुही' । सोई पंखख जिि रिमु हीं ॥

िै ि बैि औ सरवि सब ही िोर प्रसाद ।


सेवा मोरर इहै तिति बोि ं आतसरबाद ॥20॥

जो अस सेवक जेइ िप कसा । िेतह क जीभ पै अमृ ि बसा ॥


िेतह सेवक के करमतहं दोषू । से वा करि करै पति र षू ॥
औ जेतह दोष तिदोषतह िािा । सेवक डरा, जीउ िे इ भािा ॥
जो पंछी कहवााँ तथर रहिा । िाकै जहााँ जाइ भए डहिा ॥
सप्त दीप तफरर दे खेंउाँ, राजा । जंबूदीप जाइ िब बाजा ॥
िहाँ तचिउरिढ दे खेउाँ ऊाँचा । ऊाँच राज सरर िोतह पहूाँ चा ॥
रििसेि यह िहााँ िरे सू । एतह आिे उाँ जोिी के भेसू ॥

सुआ सुफि िे इ आएउाँ , िेतह िुि िें मु ख राि ।


कया पीि सो िेतह डर, साँवर ं तवक्रम बाि ॥21॥

पतहिे भएउ भााँट सि भाखी । पुति बोिा हीरामि साखी ॥


राजतह भा तिसचय, मि मािा । बााँधा रिि छोरर कै आिा ॥
कुि पूछा च हाि कुिीिा । रिि ि बााँधे होइ मिीिा ॥
हीरा दसि पाि-राँ ि पाके । तबहाँ सि सबै बीजु बर िाके ।
मु द्रा स्रवि तविय स ं चापा । राजपिा उघरा सब झााँपा ॥
आिा काटर एक िुखारू । कहा सो फेर , भा असवारू ॥
फेरा िुरय, छिीसो कुरी । सबै सराहा तसंघिपुरी ॥

कुाँवर बिीस िच्छिा, सहस-तकररि जस भाि ।


काह कस टी कतसए ? कंचि बारह-बाि ॥22॥

दे खख कुाँवर बर कंचि जोिू । `अखस्त अखस्त' बोिा सब िोिू ॥


तमिा सो बंश अं स उतजयारा । भा बरोक िब तििक साँवारा ॥
अतिरुध कहाँ जो तिखा जयमारा । को मे टै ? बािासुर हारा ॥
आजु तमिी अतिरुध कहाँ ऊखा । दे व अिं द, दै ि तसर दू खा ॥
सरि सूर, भुइ सरवर केवा । बिखंड भाँवर होइ रसिे वा ॥
पखच्छउाँ कर बर पुरुब क बारी । जोरी तिखी ि होइ तििारी ॥
मािु ष साज िाख मि साजा । होइ सोइ जो तबतध उपराजा ॥

िए जो बाजि बाजि तजन्ह मारि रि मातहं ।


तफर बाजि िेइ बाजे मं ििचारर उिातहं ॥23॥

बोि िोसाईं कर मैं मािा । काह सो जुिुति उिर कहाँ आिा ?॥


मािा बोि, हरष तजउ बाढा । औ बरोक भा, टीका काढा ॥
दू व तमिे , मिावा भिा । सुपुरुष आपु कहाँ चिा ॥
िीन्ह उिारर जातह तहि जोिू । जो िप करे सो पावै भोिू ॥
वह मि तचि जो एकै अहा । मारै िीन्ह ि दू सर कहा ॥
जो अस कोई तजउ पर छे वा । दे विा आइ करतहं तिति सेवा ॥
तदि दस जीवि जो दु ख दे खा । भा जुि जुि सुख, जाइ ि िे खा ॥

रििसेि साँि बरि पदमावति क तबयाह ॥


मं तदर बेति साँवारा, मादर िूर उछाह ॥24॥

(1) करहु मु ख = हाथ से भी और मु ख से भी । जस = जैसे ही ।


(2) अवतध तसर पहुाँ ची = अवतध तकिारे पहुाँ ची अथााि् पूरी हुई । बेति होहु = जल्दी करो ।
(3) करतहं ....भ रं ा = हम िुम्हें अब सूिी से ऐसा ही छे दें िे जैसा केिकी के कााँटे भ रं े का शरीर छे दिे हैं । हरर = प्रत्ेक । आह ं =हूाँ ।
ओधा = ििा, उिझा जैसे , सतचव सुसेवक भरि प्रबोधे । तिज तिज काज,पाय तसख ओधे ॥ िूद =िूदा । हाि = हाति । समाि =समाया हुआ

(4) िाढ = संकट । दे खि िािी = दे खिे के तिए ।
(5) कर ं अदे सू = आदे श करिा हूाँ , प्रणाम करिा हूाँ । चाहा = िाका । महे सी =पावािी । तहय महे स...परदे सी = पावािी कहिी हैं तक जब
महे श इिके हृदय में हैं िब ये परदे सी क्यों तकसी के सामिे तसर झुकाएाँ । िीर होइ चिै = साथ दे , पास जाकर सहायिा करे ।
(6) हे रा = हे र, िाकिे हैं । दस धं ी = भााँटों की एक जाति । तजउ पर भए = प्राण दे िे पर उद्यि हुए ।
(7) राजा = िंधवासेि । औंधी =िीची । असाई = अिाई बेढंिा ।(भारि = महाभारि का सा युद्ध । ओधा =ठािा, िााँधा । अस्ट कुरी =
अिकुि िाि । बसंदर = वैश्वािर, अति । फरहरा = फडक उठे । अत्र =अस्त्र । िाि िोहारी = सहायिा के तिये द डा । िवोंिाथ =
िोरखपंतथयों के ि िाथ । च रासी तसद्ध = ब द्ध वज्याि योतियों के च रासी तसद्ध ।
(9) अभाऊ = आदर भाव ि जाििे वािा, अतशि, बेअदब । बरम्हाऊ = आशीवााद । बासू = वासु तक । मााँि धरर केसा = बाि पकड कर बुिा
माँ िाऊाँ ।
(10) बररबंड = बिवंि, बिी । िपै = पकािा (था)। सूक = शुक्र । सुमंिा = मं त्री । मतसआरा = मतसंयार, मशािची । बार =िार । बोहारा
करै = झाडू दे िा था । सपिे कााँधा = तजसे उसिे स्वप्न में भी कुछ समझा । कााँधा = मािा, स्वीकार तकया । ओछ = छोटा ।
(11) सहुाँ = सामिे । अरििा = रोक, टे क, अड । िसेिी = सीढी । भेंट जे तह कढै = तजससे इिाम तिकिे । बरम्हावतस = आशीवााद दे िा है ।
काह छरे अस पावा = ऐसा छि करिे से िू क्या पािा है तचिभं ि = तवक्षेप ।
(12) परे ितहं = िाजा चाहे बज् ही ि पडे । महापािर =महापात्र (पहिे भााँटों की पदवी होिी थी ) भााँट करा = भााँ ट के समाि, भााँट की
किा धारण करके । ओहट = ओट, हट परे ।
(15) मेिे = जुटे । उरए = उत्साह या चाव से भरे (उराव = उत्साह, ह सिा ) माि = मल्ल पहिवाि । दर = दि । झुरमु ट = अाँ धेरा ।
होइ बीिा = हुआ चाहिा है । चतढ जो रहै = जो अग्रसर होकर बढिा है । अिमि = आिे । अचंभ = अद् भुि व्यापार ।
(16) अस कै = इस प्रकार । जूह = जूथ । जस = जैसे ही । िस =िैसे ही । बिमे ि = सवारों की पंखक्त । अिसरी = अग्रसर, आिे । भाँवि
= चक्कर खािे हुए । अाँ िरीख = अं िररक्ष, आकाश । िीखा -तिख्या , एक माि जो पोस्ते के दािे के बराबर मािा जािा है । खोज -पिा,
तिशाि रोज रोदि, रोिा
(17) ईसर = महादे व । मृ दमं डा = धू ि से छा िया । तफरर =तवमु ख होकर । बारा = कन्या ।
(18) बसीठी = दू िकमा । पतहिे करुइ = जो पहिे कडवी थी । परवााँिहु = प्रमाण मािो । कााँधै = अाँ िीकार करिा है , स्वीकार करिा है ।
परीख = परखिा है ।
(19) रूसा = रुि । सााँिी = शां ति । फुिवार = प्रफुल्ल । रहस =आिन्द ।
(20) होहु ि...भोजा = िुम तवक्रम के समाि भूि ि करो ।रिमु ही = िाि मुाँ ह वािी
(21) िप कसा = िप में शरीर को कसा । पति = स्वामी । तिदोषतह = तबिा दोष के । बाजा = पहुाँ चा । सरर = बराबरी । साँ वर ं तवक्रम
बाि = तवक्रम के समाि जो राजा िंधवा सेि है उसके कोप का स्मरण करिा हूाँ ; ऊपर यह आया है तक "होहु ि राजा तबक्रम भोजा"। साखी
= साक्षी । मु द्रा स्रवि..चााँपा = तवियपूवाक काि की मु द्रा को पकडा । चााँपा = दबाया, थामा । झााँपा = ढाँ का हुआ । काटर = कट्टर ।
िुखारू = घोडा । िुरय = घोडा । छिीस कुरी = छत्तीसों कुि के क्षतत्रय ।
(23) `अस्त-अस्त' = हााँ हााँ, वाह वाह ! बरोक = बरच्छा, फि-दाि । जयमार = जयमाि । केवा = कमि । उिातहं = उन्हीं के (मं ििाचरण के
तिए) । काह सो जुिुति...आिा = दू सरे उत्तर के तिये क्या युखक्त है ? िीन्ह उिारर....जोिू = रत्नसेि तजसके तिए ऐसा योि साध रहा था
उसे स्विा से उिार िाया । मारै िीन्ह = मार ही डाििा चाहिे थे । ि दू सर कहा = पर दू सरी बाि मुाँ ह से ि तिकिी । छे वा = (दु ुःख)
झेिा, डािा, खेिा ।
रत्नसेि-पद्माविी-तववाह-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी

ििि धरा औ रचा तबयाहू । तसं घि िे वि तफरा सब काहू ॥


बाजि बाजे कोतट पचासा । भा अिं द सिर ं कैिासा ॥
जेतह तदि कहाँ तिति दे व मिावा । सोइ तदवस पदमावति पावा ॥
चााँद सुरुज मति माथे भािू । औ िावतहं सब िखि सोहािू ॥
रतच रतच मातिक मााँडव छावा । औ भुइाँ राि तबछाव तबछावा ॥
चंदि खांभ रचे बहु भााँिी । मातिक-तदया बरतहं तदि रािी ॥
घर घर बंदि रचे दु वारा । जावि ििर िीि झिकारा ॥
हाट बाट सब तसंघि जहाँ दे खहु िहाँ राि ।
धति रािी पदमावति जेतहकै ऐतस बराि ॥1॥

रििसेि कहाँ कापड आए । हीरा मोति पदारथ िाए ॥


कुाँवर सहस दस आइ सभािे । तबिय करतहं राजा साँि िािे ॥
जातहं िाति िि साधे हु जोिू । िे हु राज औ मािहु भोिू ॥
मं जि करहु, भभुि उिारहु । करर अस्नाि तचत्र सब सारहु ॥
काढहु मु द्रा फतटक अभाऊ । पतहरहु कुंडि किक जराऊ ॥
तछरहु जटा, फुिायि िे हु । झारहु केस, मकुट तसर दे हू ॥
काढहु कंथा तचरकुट-िावा । पतहरहु रािा दिि सोहावा ॥

पााँवरर िजहु, दे हु पि प रर जो बााँक िुखार ।


बााँतध म र, तसर छत्र दे इ, बेति होहु असवार ॥2॥

साजा राजा, बाजि बाजे । मदि सहाय दु व दर िाजे ॥


औ रािा सोिे रथ साजा । भए बराि िोहिे सब राजा ॥
बाजि िाजि भा असवारा । सब तसंघि िइ कीन्ह जोहारा ॥
चहुाँ तदतस मतसयर िखि िराई सूरुज चढा चााँद के िाईं ॥
सब तदि िपे जैस तहय माहााँ । िैतस राति पाई सु ख-छाहााँ ॥
ऊपर राि छत्र िस छावा । इं द्रिोक सब दे खै आवा ॥
आजु इं द्र अछरी स ं तमिा । सब कतबिास होतह सोतहिा ॥

धरिी सरि चहूाँ तदतस पूरर रहे मतसयार ।


बाजि आवै मं तदर जह होइ मं ििाचार ॥3॥

पदमावति ध राहर चढी । दहुाँ कस रतव जेतह कहाँ सतस िढी ॥


दे खख बराि सखखन्ह स ं कहा । इन्ह मह सो जोिी को अहा ? ॥
केइ सो जोि िै ओर तिवाहा । भएउ सूर, चढी चााँद तबयाहा ॥
क ि तसद्ध सो ऐस अकेिा । जे इ तसर िाइ पेम सों खेिा ? ॥
का स ं तपिा बाि अस हारी । उिर ि दीन्ह, दीन्ह िेतह बारी ॥
का कहाँ दै उ ऐस तजउ दीन्हा । जेइ जयमार जीति रि िीन्हा ॥
धतन्न पुरुष अस िवै ि आए । औ सुपुरुष होइ दे स पराए ॥

को बररवंड बीर अस , मोतहं दे खै कर चाव ।


पुति जाइतह जिवासतह, सखख,! मोतहं बेति दे खाव ॥4॥

सखी दे खावतहं चमकै बाहू । िू जस चााँद, सुरुज िोर िाहू ॥


छपा ि रहै सूर-परिासू । दे खख काँवि मि होइ तबकासू ॥
ऊ उतजयार जिि उपराहीं । जि उतजयार , सो िेतह परछाहीं ॥
जस रतव, दे खु, उठै परभािा । उठा छत्र िस बीच बरािा ॥
ओंही मााँझ मा दू िह सोई । और बराि संि सब कोई ।
सहस ं किा रूप तवतध िढा । सोिे के रथ आवै चढा ॥
मति माथे, दरसि उतजयारा । स ह तिरखख ितहं जाइ तिहारा ॥

रूपवंि जस दरपि, धति िू जाकर कंि ।


चातहय जैस मिोहर तमिा सो मि-भावंि ॥5॥

दे खा चााँद सूर जस साजा । अस्ट भाव मदि जिु िाजा ॥


हुिसे िै ि दरस मद मािे । हुिसे अधर रं ि-रस-रािे ॥
हुिसा बदि ओप रतव पाई । हुितस तहया कंचुतक ि समाई ॥
हुिसे कुच कसिी-बाँद टू टै । हुिसी भुजा, विय कर फूटे ॥
हुिसी िं क तक रावि राजू । राम िखि दर साजतहं आजू ॥
आजु चााँद-घर आवा सूरू । आजु तसंिार होइ सब चूरू ॥
आजु कटक जोरा है कामू । आजु तबरह स ं होइ संग्रामू ।

अं ि-अं ि सब हुिसे, कोइ किहूाँ ि समाइ ।


ठावतहं ठााँव तबमोही, िइ मु रछा ििु आइ ॥6॥

सखी साँभारर तपयावतहं पािी । राजकुाँवरर काहे कुाँतभिािी ॥


हम ि िोतह दे खावा पीऊ । िू मु रझाति कैस भा जीऊ ॥
सुिहु सखी सब कहतहं तबयाहू । मो कहाँ भएउ चााँद कर राहू ॥
िुम जािहु आवै तपउ साजा । यह सब तसर पर धम धम बाजा ॥
जेिे बरािी औ असवारा । आए सबै चिाविहारा ॥
सो आिम ह ं दे खति झाँ खी । रहि ि आपि दे ख ,ं सखी ! ॥
होइ तबयाह पुति होइतह िविा । िविब िहााँ बहुरर ितहं अविा ॥

अब यह तमिि कहााँ होइ ?परा तबछोहा टू तट ।


िैतस िााँतठ तपउ जोरब जिम ि होइतह छूतट ॥7॥

आइ बजावति बै तठ बरािा । पाि, फूि, सेंदुर सब रािा ॥


जहाँ सोिे कर तचत्तर-सारी । िे इ बराि सब िहााँ उिारी ॥
मााँझ तसंघासि पाट सवारा । दू िह आति िहााँ बैसारा ॥
किक-खंभ िािे चहुाँ पााँिी । मातिक-तदया बरतहं तदि रािी ॥
भएउ अचि ध्रु व जोति पखेरू । फूति बैठ तथर जैस सुमेरू ॥
आजु दै उ ह ं कीन्ह सभािा । जि दु ख कीन्ह िे ि सब िािा ॥
आजु सूर सतस के घर आवा । सतस सूरतह जिु होइ मे रावा ॥

आजु इं द्र होइ आएउाँ सतज बराि कतबिास ।


आजु तमिी मोतहं अपछरा, पूजी मि कै आस ॥8॥

होइ िाि जेविार-पसारा । किक-पत्र पसरे पिवारा ॥


सोि-थार मति मातिक जरे । राव रं क के आिे धरे ॥
रिि-जडाऊ खोरा खोरी । जि जि आिे दस-दस जोरी ॥
िडु वि हीर पदारथ िािे । दे खख तबमोहे पुरुष सभािे ॥
जािहुाँ िखि करतहं उतजयारा । छतप िए दीपक औ मतसयारा ॥
िइ तमति चााँद सुरुज कै करा । भा उदोि िैसे तिरमरा ॥
जेतह मािु ष कहाँ जोति ि होिी । िेतह भइ जोति दे खख वह जोिी ॥

पााँति पााँति सब बैठे, भााँति भााँ ति जेविार ।


किक-पत्र दोिन्ह िर, किक-पत्र पिवार ॥9॥

पतहिे भाि परोसे आिा । जिहुाँ सुबास कपूर बसािा ॥


झािर मााँडे आए पोई । दे खि उजर पाि जस ध ई ॥
िु चुई और सोहारी धरी । एक ि िािी औ सु तठ कोंवरी ॥
खाँडरा बचका औ डु भक री । बरी एकोिर स , कोहड री ॥
पुति साँघािे आए बसाधे । दू ध दही के मु रंडा बााँधे ॥
औ छप्पि परकार जो आए । ितहं अस दे ख, ि कबहूाँ खाए ॥
पुति जाउरर पतछयाउरर आई । तघरति खााँड कै बिी तमठाई ॥

जेंवि अतधक सुबातसि, मुाँ ह महाँ परि तबिाइ ।


सहस स्वाद सो पावै , एक क र जो खाइ ॥10॥

जेंवि आवा, बीि ि बाजा । तबिु बाजि ितहं जेंवै राजा ॥


सव कुाँवरन्ह पुति खैंचा हाथू । ठाकुर जेंव ि जेमवै साथू ॥
तबिय करतहं पंतडि तविािा । काहे ितहं जेंवतह जजमािा ?॥
यह कतबिास इं द्र कर बासू । जहााँ ि अन्न ि माछरर मााँसू ॥
पाि-फूि-आसी सब कोई । िु म्ह कारि यह कीन्ह रसोई ॥
भूख, ि जिु अमृ ि है सूखा । धू प, ि सीअर िींबी रूखा ॥
िींद, ि भुइाँ जिु सेज सपेिी । छाटहुाँ का चिुराई एिी ? ॥

क ि काज केतह कारि तबकि भएउ जजमाि ।


होइ रजायसु सोई बेति दे तहं हम आि ।11॥

िुम पंतडि जािहुाँ सब भेदू । पतहिे िाद भएउ िब वेदू ॥


आतद तपिा जो तवतध अविारा । िाद संि तजउ ज्ञाि साँचारा ॥
सो िुम वरतज िीक का कीन्हा । जेंवि संि भोि तवतध दीन्हा ॥
िै ि, रसि, िातसक, दु इ स्रविा । इि चअरहु संि जेंवै अविा ॥
जेंवि दे खा िै ि तसरािे । जीभतहं स्वाद भुिुति रस जािे ॥
िातसक सबैं बासिा पाई । स्रवितहं काह करि पहुिाई ?॥
िेतह कर होइ िाद स ं पोखा । िब चाररहु कर होइ साँिोषा ॥

औ सो सुितहं सबद एक जातह परा तकछु सूतझ ।


पंतडि ! िाद सूिै कहाँ बरजेहु िुम का बूतझ ॥12॥

राजा ! उिर सुिहु अब सोई । मतह डोिै ज वेद ि होई ॥


िाद, वेद, मद, पेंड जो चारी । काया महाँ िे, िे हु तवचारी ॥
िाद, तहये मद उपिै काया । जहाँ मद िहााँ पेड ितहं छाया ॥
होइ उिमद जूझा सो करै । जो ि वेद-आाँ कुस तसर धरै ॥
जोिी होइ िाद सो सुिा । जेतह सुति काय जरै च िुिा ॥
कया जो परम िंि मि िावा । घूम माति, सुति और ि भावा ॥
िए जो धरमपंथ होइ राजा । तििकर पुति जो सुिै ि छाजा ॥

जस मद तपए घूम कोइ िाद सुिे पै घूम ।


िेतहिें बरजे िीक है , चढै रहतस कै दू म ॥13॥

भइ जेंविार , तफरा खाँडवािी । तफरा अरिजा कुाँहकुाँह-पािी ॥


तफरा पाि, बहुरा सब कोई । िाि तबयाह-चार सब होई ॥
मााँड ं सोि क ििि साँवारा । बंदिवार िाि सब वारा ॥
साजा पाटा छत्र कै छााँहा । रिि-च क पूरा िेतह माहााँ ॥
कंचि-किस िीर भरर धरा । इं द्र पास आिी अपछरा ॥
िााँतठ दु िह दु ितहि कै जोरी । दु औ जिि जो जाइ ि छोरी ॥
वेद पढैं पंतडि िेतह ठाऊाँ । कन्या िुिा रातश िे इ िाऊाँ ॥

चााँद सुरुज दु औ तिरमि, दु औ साँजोि अिू प ।


सुरुज चााँद स ं भूिा, चााँदद सुरुज के रूप ॥14॥

दु ओ िााँव िै िावतहं बारा । करतहं सो पदतमति मं िि चारा ॥


चााँद के हाथ दीन्ह जयमािा । चााँद आति सूरुज तिउ घािा ॥
सूरुज िीन्ह चााँद पतहराई । हार िखि िरइन्ह स्यों पाई ॥
पुति धति भरर अं जुति जि िीन्हा । जोबि जिम कंि कह दीन्हा ॥
कंि िीन्ह, दीन्हा धति हाथा । जोरी िााँतठ दु औ एक साथा ॥
चााँद सुरुज सि भााँवरर िे हीं । िखि मोति िे वछावरर दे हीं ॥
तफरतहं दु औ सि फेर, घुटै कै । सािहु फेर िााँतठ से एकै ॥

भइ भााँवरर, िे वछावरर, राज चार सब कीन्ह ।


दायज कह ं कहााँ िति ? तिखख ि जाइ जि दीन्ह ॥15॥

रििसेि जब दायज पावा । िंध्रबसेि आइ तसर िावा ॥


मािु स तचत्त आिु तकछु कोई । करै िोसाईं सोइ पै होई ॥
अब िुम्ह तसंघिदीप-िोसाईं । हम सेवक अहहीं सेवकाई ॥
जस िुम्हार तचिउरिढ दे सू । िस िुम्ह इहााँ हमार िरे सू ॥
जंबूदीप दू रर का काजू ?। तसंघिदीप करहु अब राजू ॥
रििसेि तबिवा कर जोरी । अस्तुति-जोि जीभ कहाँ मोरी ॥
िुम्ह िोसाइाँ जे इ छार छु डाई । कै मािु स अब दीखन्ह बडाई ॥

ज िुम्ह दीन्ह ि पावा तजवि जिम सुखभोि ।


िािरु खेह पायकै, ह ं जोिी केतह जोि ॥16॥

ध राहर पर दीन्हा बासू । साि खंड जहवााँ कतबिासू ॥


सखी सहसदस सेवा पाई । जिहुाँ चााँद साँि िखि िराई ॥
होइ मं डि सतस के चहुाँ पासा । सतस सूरतह िे इ चढी अकासा ॥
चिु सूरुज तदि अथवै जहााँ । सतस तिरमि िू पावतस िहााँ ॥
िंध्रबसेि ध रहर कीन्हा । दीन्ह ि राजतह, जोितह दीन्हा ॥
तमिीं जाइ सतस के चहुाँ पाहााँ । सूर ि चााँपै पावै छााँहा ॥
अब जोिी िुरु पावा सोई । उिरा जोि, भसम िा ध ई ॥

साि खंड ध राहर, साि रं ि िि िाि ।


दे खि िा कतबिासतह, तदखस्ट-पाप सब भाि ॥17॥
साि खंड साि ं कतबिासा । का बरिों जि ऊपर बासा ॥
हीरा ईंट कपूर तििावा । मियतिरर चंदि सब िावा ॥
चूिा कीन्ह औतट िजमोिी । मोतिहु चातह अतधक िेतह जोिी ॥
तवसुकरमें स हाथ साँवारा । साि खंड साितहं च पारा ॥
अति तिरमि ितहं जाइ तबसेखा । जस दरपि महाँ दरसिि दे खा ॥
भुइाँ िच जािहुाँ समु द तहिोरा । किकखंभ जिु रचा तहं डोरा ॥
रिि पदारथ होइ उतजयारा । भू िे दीपक औ मतसयारा ॥

िहाँ अछरी पदमावति रििसेि के पास ।


साि सरि हाथ जिु औ साि कतबिास ॥18॥

पुति िहाँ रििसेि पिु धारा । जहााँ ि रिि सेज साँवारा ॥


पुिरी ितढ ितढ खंभि काढी । जिु सजीव सेवा सब ठाढी ॥
काहू हाथ चंदि कै खोरी । कोइ सेंदुर, कोइ िहे तसंधोरी ॥
कोइ कुहाँ कुहाँ केसर तिहै रहै । िावै अं ि रहतस जिु चहै ॥
कोई तिहे कुमकुमा चोवा । धति कब चहै , ठातढ मु ख जोवा ॥
कोई बीरा, कोइ िीन्हे -बीरी । कोइ पररमि अति सुिाँध-समीरी ॥
काहू हाथ कस्तूरी मे दू । कोइ तकछु तिहे , िािु िस भेदू ॥

पााँतितह पााँ ति चहूाँ तदतस सब सोंधे कै हाट ।


मााँझ रचा इं द्रासि, पदमावति कहाँ पाट ॥19॥

(1) सोहािू =स भाग्य या तववाह के िीि । राि = िाि । तबछाय = तबछावि । बंदि बंदिवार
(2) िाए = ििाए हुए । तचत्र सारहु = चंदि केसर की ख र बिाओ । अभाउ=ि मािे वािे , ि सोहिे वािे । फुिायि = फुिे ि । दिद =
दििा, ढीिा अं िरखा । पााँवरर =खडाऊाँ ।
(3) दर = दि । िोहिे =साथ में । िइ = झुककर । मतसयर = मसाि । सोतहहिा = सोहिा या सोहर िाम के िीि । मतशयार = मशाि ।
(4) जेतह कहाँ सतस िढी = तजसके तिए चंद्रमा (पद्माविी) बिाई िई । जयमार = जयमाि
(5) िाहु =िाथ, पति । तिरखख = द्दति िडाकर ।
(6) िाजा = िरजा । अस्ट भाव = आठों भावों से, कसिी = अाँ तिया । िं क =कतट और िं का । रावि =(1) रमण करिे वािा ।(2) रावण ।
झाँखी =झीखकर, पछिाकर ।
(8) तचत्तर सारी = तचत्रशािा । जोति पखे रू = पक्षी के समाि एक स्थाि पर जमकर ि रहिे वािा योिी । फूति = आिन्द से प्रफुल्ल होकर ।
िे ि िािा = साथाक हुआ , सफि हुआ, हीिे ििा ।
(9) पिवार = पत्ति । खोरा = कटोरा । मतसयार =मशाि । करा =किा ।
(10) झािर = एक प्रकार का पकवाि ,झिरा । मााँडे = एक प्रकार की चपािी । पाि = पिडी । िु चुई = मै दे की महीि पूरी । सोहारी =
पूरी । कोंवरी = मु िायम । खाँडरा = फेंटे हुए बेसि के, भाप पर पके हुए, च खूाँटे टु कडे जो रसे या दही में तभिोए जािे हैं ; किरा रसाज ।
बचका = बेसि और मै दे को एक में फेंटकर जिे बी के समाि टपका घी में छाििे हैं , तफर दू ध में तभिो कर रख दे िे हैं । एकोिर स =
एकोत्तर शि, एक स एक । कोहाँ ड री = पेठे की बरी । साँधािे = अचार । बसााँधै =सुिंतधि । मु रंडा = भुिे िेहूाँ और िुड के िड् डू; यहााँ
िड् डू । जाउरर = खीर पतछयाउरर = एक प्रकार का तसखरि या शरबि ।
(11) भूखा.....सूखा = यतद भू ख है िो रूखा-सू खा भी मािो अमृ ि है । िाद = शब्दब्रह्म, अिहि िाद ।
(12) तसराि = ठं डे हुए । पोख = पोषण ।
(13) मद = प्रेम मद । पैंड = ईश्वर की ओर िे जािे वािा मािा मोक्ष का मािा । उिमद = उन्मि । तििकर पुति...छाजा = राजधमा में रि
जो राजा हो िए हैं उिका पुण्य िू सुिे िो सोभा दे िा है । चढे ...दू म = मद चडिे पर उमंि में आकर झूमिे िििा है ।
(14) खाँडवािी = शरबि ।
(15) हार िखि....सो पाई = हार क्या पाया मािो चंद्रमा के साथ िारों को भी पाया । त्ों =साथ । घुटै कै = िााँठ को दृढ करके; जैसे,
आि िााँतठ घुतट जाय त्ों माि िााँतठ छु तट जाय ।
(16) आिु = िाए । ििरु = िहीं िो ।
(17) चहुाँ पाहााँ = चारों ओर । चााँपै पावै = दबािे पािा है ।
(18) तििावा =िारा । िच = फशा । भूिे = खो से िए । अछरी =अप्सरा ।
(19) खोरी = कटोरी । तसंधोरी =काठ की सुंदर तडतबया तजसमें खस्त्रयााँ ईंिुर या तसंदूर रखिी हैं । बीरी = दााँि राँ ििे का मं जि । पररमि
=पुषपिंध, इत्र । सुिंध-समीरी = सुिंध वायुवािा । स ध ं े = िंधद्रव्य ।
पद्माविी-रत्नसेि-भेंट-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी

साि खंड ऊपर कतबिासू । िहवााँ िारर-सेज सुख-बासू ॥


चारर खंभ चाररहु तदतस खरे । हीरा-रिि-पदारथ-जरे ॥
मातिक तदया जरावा मोिी । होइ उतजयार रहा िेतह जोिी ॥
ऊपर रािा चाँदवा छावा । औ भु इाँ सुरि तबछाव तबछावा ॥
िेतह महाँ पािक सेज सो डासी । कीन्ह तबछावि फूिन्ह बासी ॥
चहुाँ तदतस िेंडुवा औ ििसूई । कााँची पाट भरी धु ति रूई ॥
तबतध सो सेज रची केतह जोिू । को िहाँ प तढ माि रस भोिू ? ॥

अति सुकुवााँरर सेज सो डासी, छु वै ि पारै कोइ ।


दे खि िवै खखितह खखि, पाव धरि कतस होइ ॥1॥

राजै िपि सेज जो पाई । िााँतठ छोरर धति सखखन्ह छपाई ॥


कहैं , कुाँवर ! हमरे अस चारू । आज कुाँवर कर करब तसंिारू ॥
हरतद उिारर चढाउब रिू । िब तितस चााँद सुरुज स ं संिू ॥
जस चािक-मु ख बूंद सेवािी । राजा-चख जोहि िेतह भााँिी ॥
जोति छरा जिु अछरी साथा । जोि हाथ कर भएउ बेहाथा ॥
वै चािुरर कर िै अपसईं । मं त्र अमोि छीति िे इ िईं ॥
बैठेउ खोइ जरी औ बूटी । िाभ ि पाव , मू रर भइ टू टी ॥

खाइ रहा ठि-िाडू, िंि मं ि बुतध खोइ ।


भा ध राहर बिखंड, िा हाँ तस आव, ि रोइ ॥2॥

अस िप करि िएउ तदि भारी । चारर पहर बीिे जुि चारी ॥


परी सााँझ, पु ति सखी सो आई । चााँद रहा, उपिी जो िराई ॥
पूाँछतहं "िुरू कहााँ, रे चेिा ! । तबिु सतस रे कस सूर अकेिा ?॥
धअिु कमाय तसखे िैं जोिी । अब कस भा तिरधािु तबयोिी ? ॥
कहााँ सो खोएहु तबरवा िोिा । जेतह िें होइ रूप औ सोिा ॥
कअ हरिार पार ितहं पावा । िं धक काहे कुरकुटा खावा ॥
कहााँ छपाए चााँद हमारा ? । जे तह तबिु रै ति जिि अाँ तधयारा " ॥

िै ि क तडया , तहय समु द, िुरु सो िेतह महाँ जोति ।


मि मरतजया ि होइ परे हाथ ि आवै मोति ॥3॥

का पूछहु िुम धािु, तिछोही ! जो िुरु कीन्ह अाँ िर फट ओही ॥


तसतध-िुतटका अब मो संि कहा । भएउाँ रााँि, सि तहये ि रहा ॥
सो ि रूप जास ं मु ख खोि ं । िएउ भरोस िहााँ का बोि ं ? ॥
जहाँ िोिा तबरवा कै जािी । कतह कै साँदेस आि को पािी ? ॥
कै जो पार हरिार करीजै । िंधक दे खख अबतहं तजउ दीजै ॥
िुम्ह जोरा कै सूर मयंकू । पुति तबछोतह सो िीन्ह किं कू ॥
जो एतह घरी तमिावै मोहीं । सीस दे उाँ बतिहारी ओही ॥

होइ अबरक इं िुर भया , फेरर अतिति महाँ दीन्ह ।


काया पीिर होइ किक, ज िुम चाहहु कीन्ह ॥4॥

का बसाइ ज िुरु अस बूझा । चकाबूह अतभमिु ज्य ं जूझा ।


तवष जो दीन्ह अमृ ि दे खराई । िेतह रे तिछ ही को पतियाई ?॥
मरै सोइ जो होइ तििूिा । पीर ि जािै तबरह तबहूिा ॥
पार ि पाव जो िंधक पीया । सो हत्ार कह तकतम जीया ॥
तसखद्ध-िुटीका जा पहाँ िाहीं । क ि धािु पूछहु िेतह पाहीं ॥
अब िेतह बाज रााँि भा डोि ं । होइ सार ि बर कै बोि ं ॥
अबरक कै पुति ईंिुर कीन्हा । सो िि फेरर अतिति महाँ दीन्हा ॥

तमति जो पीिम तबछु रतह काया अतिति जराइ ।


की िेतह तमिे िि िप बुझै, की अब मु ए बुझाइ ॥5॥

सुति कै बाि सखी सब हाँ सी । जािहुाँ रै ति िरई परिसीं ॥


अब सो चााँद ििि महाँ छपा । िािच कै तकि पावतस िपा ?॥
हमहुाँ ि जाितह दहुाँ सो कहााँ । करब खोज औ तबिउब िहााँ ॥
औ अस कहब आतह परदे सी । करतह मया; हत्ा जति िे सी ॥
पीर िुम्हारर सुिि भा छोह । दे उ मिाउ, होइ अस ओहू ॥
िू जोिी तफरर ितप करु जोिू । िो कहाँ क ि राज सुख-भोिू ॥
वह रािी जहवााँ सु ख राजू । बारह अभरि करै सो साजू ॥
जोिी तदढ आसि करै अहतथर धरर मि ठावाँ ।
जो ि सुिा ि अब सुितह बारह अभरि िावाँ ॥6॥

प्रथमै मज्जि होइ सरीरू । पुति पतहरै िि चंदि चीरू ॥


सातज मााँ ति तसर सेंदुर सारे । पुति तििाट रतच तििक साँवारै ॥
पुति अं जि दु हुाँ िैिन्ह करै । औ कुंडि कािन्ह महाँ पतहरै ॥
पुति िातसक भि फूि अमोिा । पुति रािा मु ख खाइ िमोिा ॥
तिउ अभरि पतहरै जहाँ िाईं । औ पतहरे कर काँिि किाई ॥
कतट छु द्रावति अभरि पूरा । पायन्ह पतहरै पायि चूरा ॥
बारह अभरि अहैं बखािे । िे पतहरै बरह ं अस्थािे ॥

पुति सोरह तसंिार जस चाररहु च क कुिीि ।


दीरघ चारर, चारर िघु सुभर च खीि ॥7॥

पदमावति जो साँवारै िीन्हा । पूिउाँ राति दे उ सतस कीन्हा ॥


करर मज्जि िि कीन्ह िहािू । पतहरे चीर, िएउ छतप भािू ॥
रतच पत्रावति, मााँि सदू रु । भरे मोति औ मातिक चूरू ॥
चंदि चीर पतहर बहु भााँिी । मे घघटा जािहुाँ बि-पााँिी ॥
िूाँतथ जो रिि मााँि बैसारा । जािहुाँ ििि टू तट तितस िारा ॥
तििक तििाट धरा िस दीठा । जिहुाँ दु इज पर सुहि बईठा ॥
कािन्ह कुंडि खूाँट औ खूाँटी । जािहुाँ परी कचपची टू टी ॥

पतहरर जराऊ ठातढ भइ, कतह ि जाइ िस भाव ।


मािहुाँ दरपि ििि भा िेतह सतस िार दे खाव ॥8॥

बााँक िै ि औ अं जि-रे खा । खंजि मिहुाँ सरद ऋिु दे खा ॥


जस जस हे र, फेर चख मोरी । िरै सरद महाँ खंजि-जोरी ॥
भ हैं धिु क धिु क पै हारा । िै िन्ह सातध बाि-तबष मारा ॥
करिफूि कािन्ह अति सोभा । सतस-मु ख आइ सूर जिु िोभा ॥
सुराँि अधर औ तमिा िमोरा । सोहे पाि फूि कर जोरा ॥
कुसुमिंध अति सुराँि कपोिा । िेतह पर अिक-भुअंतिति डोिा ॥
तिि कपोि अति कवाँि बईठा । बेधा सोइ जेइ तिि दीठा ॥

दे खख तसंिार अिू प तवतध तबरह चिा िब भाति ।


काि-कस्ट इतम ओिवा, सब मोरे तजउ िाति ॥9॥

का बरि ं अभरि औ हारा । सतस पतहरे िखिन्ह कै मारा ॥


चीर चारू औ चंदि चोिा । हीर हार िि िाि अमोिा ॥
िेतह झााँ पी रोमावति कारी । िातिति रूप डसै हत्ारी ॥
कुच कंचुकी तसराफि टााँड सिोिी । डोिि बााँह भाव िति िोिी ॥
बााँहन्ह बहुटा टााँड सिोिी । डोिि बााँह भाव िति िोिी ॥
िरवन्ह कवि-करी जिु बााँधी। बसा-िं क जािहुाँ दु इ आधी ॥
छु द्रघंट कतट कंचि-िािा । चििै उठतहं छिीस रािा ॥

चूरा पायि अिवट पायाँन्ह परतहं तबयोि ।


तहये िाइ टु क हम कहाँ समदहु मािहुाँ भोि ॥10॥

अस बारह सोरह धति साजै । छाज ि और; आतह पै छाजै ॥


तबिवतहं सखी िहरु का कीजै ?। जेतह तजउ दीन्ह िातह तजउ दीजे ॥
सवरर सेज धति-मि भइ संका । ढाढ िेवाति टे तक कर िं का ॥
अितचन्ह तपउ, काप ं मि मााँहा । का मैं कहब िहब ज बााँहा ॥
बारर बैस िइ प्रीति ि जािी । िरुति भई मै मंि भुिािी ॥
जोबि-िरब ि मैं तकछु चेिा । िे ह ि जाि ं सावाँ तक सेिा ॥
अब सो कंि जो पूतछतह बािा । कस मु ख होइतह पीि तक रािा ॥

ह ं बारी औ दु ितहति, पीउ िरुि सह िेज ।


िा जाि ं कस होइतह चढाँ ि कंि के सेज ॥11॥
सुिु धति ! डर तहरदय िब िाई । ज िति रहतस तमिै ितहं साईं ॥
क ि किी जो भ रं ि राई ? । डार ि टू ट पुहुप िरुआई ॥
मािु तपिा ज तबयाहै सोई । जिम तिबाह कंि साँि होई ॥
भरर जीवि राखै जहाँ चहा । जाइ ि में टा िाकर कहा ॥
िाकहाँ तबिाँ ब ि कीजै बारी । जो तपउ-आयसु सोइ तपयारी ॥
चिहु बेति आयसु भा जैसे । कंि बोिावै रतहए कैसे ? ॥
माि ि करतस, पोढ करु िाडू । माि मरि ररस मािै चााँडू ॥

साजि िे इ पठावा, आयसु जाइ ि मे ट ।


िि,मि, जोबि, सातज के दे इ चिी िे इ भेंट ॥12॥

पदतमति-िवि हं स िए दू री । कुंजर िाज मे ि तसर धू री ॥


बदि दे खख घतट चंद छपािा । दसि दे खख कै बीजु िजािा ॥
खंजि छपे दे खख कै िै िा । तकतकि चपी सुिि मधु बैिा ॥
िीव दे खख कै छपा मयूरू । िं क दे खख कै छपा सुदूरू ॥
बहं न्ह धिु क छपा आकारा । बे िी बासुतक छपा पिारा ॥
खडि छपा िातसका तबसेखी । अमृ ि छपा अधर-रस दे खी ॥
पहुाँ चतह छपी कवि प िारी । जं घ छपा कदिी होइ बारी ।

अछरी रूप छपािीं जबतहं चिी धति सातज ।


जावि िरब-िहे िी सबै छपीं मि िातज ॥13॥

तमिीं िोहिे सखी िराईं ।िे इ चााँ द सूरज पहाँ आई ॥


पारस रूप चााँद दे खराई । दे खि सूरुज िा मु रझाई ॥
सोरह किा तदखस्ट सतस कीन्ही । सहस किा सुरुज कै िीन्ही ॥
भा रतव अस्त, िराई हसी । सूर ि रहा, चााँद परिसी ॥
जोिी आतह, ि भोिी होई । खाइ कुरकुटा िा पै सोई ॥
पदमावति जतस तिरमि िंिा । िू जो कंि जोिी तभखमं िा ॥
आइ जिावतहं `चेिा जािै । आवा िुरू, पायाँ उतठ िािै'॥

बोितहं सबद सहे िी काि िाति, ितह माथ ।


िोरख आइ ठाढ भा, उठु , रे चेिा िाथ !॥14॥

सुति यह सबद अतमय अस िािा । तिद्रा टू तट, सोइ अस जािा ॥


िही बााँह धति सेजवााँ आिी । अं चि ओट रही छतप रािी ॥
सकुचै डरै मितह मि बारी । िहु ि बााँह, रे जोति तभखारी ? ॥
ओहट होतस, जोति ! िोरर चेरी । आवै बास कुरकुटा केरी ॥
दे खख भभूति छूति मोतह िािै । कााँपै चााँद, सूर स ं भािै ॥
जोति िोरर िपसी कै काया । िाति चहै मोरे अाँ ि छाया ॥
बार तभखारर ि मााँितस भीखा । मााँिे आइ सरि पर सीखा ॥

जोति तभखारर कोई माँ तदर ि पैठै पार ।


मााँति िे हु तकछु तभक्षा जाइ ठाढ होइ बार ॥15॥

मैं िुम्ह कारि, पेम-तपयारी । राज छााँतड कै भएउाँ तभखारी ॥


िे ह िुम्हार जो तहये समािा । तचिउर स ं तिसरे उाँ होइ आिा ॥
जस मािति कहाँ भ रं तबयोिी । चढा तबयोि, चिे उाँ होइ जोिी ॥
भ रं खोतज जस पावै केवा । िु म्ह कारि मैं तजउ पर छे वा ॥
भएउाँ तभखारर िारर िुम्ह िािी । दीप -पिाँि होइ अाँ िएउाँ आिी ॥
एक बार मरर तमिे जो आई । दू सरर बार मरै तकि जाई ॥
तकि िेतह मीचु जो मरर कै जीया ?। भा सो अमर, अमृ ि-मधु पीया ॥

भ रं जो पावै काँवि कहाँ बहु आरति बहु आस ।


भ रं होइ िे वछावरर, काँवि दे इ हाँ तस बास ॥16॥

अपिे मुाँ ह ि बडाई छाजा । जोिी किहुाँ होतहं ितहं राजा ॥


ह ं रािी, िू जोति तभखारी । जोितह भोितह क ि तचन्हारी ?॥
जोिी सबै छं द अस खेिा । िू तभखारर िेतह मातहं अकेिा ॥
प ि बााँतध अपसवतहं अकासा । मिसतहं जातहं िातह के पासा ॥
एही भााँति तसखस्ट सब छरी । एही भेख रावि तसय हरी ॥
भ रं तहं मीचु तियर जब आवा । चंपा-बास िे इ कहाँ धावा ॥
दीपक-जोति दे खख उतजयारी । आइ पााँ खख होइ परा तभखारी ॥

रै ति जो दे खै चंदमु ख सतस िि होइ अिोप ।


िुहुाँ जोिी िस भूिा करर राजा कर ओप ॥17॥

चादतह कहााँ जोति औ करा । सु रुज के जोति चााँद तिरमरा ॥


भ रं बास-चंपा ितहं िे ई । मािति जहााँ िहााँ तजउ दे ई ॥
िुम्ह हुाँ ि भएउाँ पिाँि कै करा । तसंघिदीप आइ उतड परा ॥
सेएउाँ महादे व कर बारू । िजा अन्न, भा पवि अहारू ॥
अस मैं प्रीति िातठ तहय जोरी । कटै ि काटे , छु टै ि छोरी ॥
सीिै भीखख रावितहं दीन्हीं । िूाँ अतस तिठु र अिरपट कीन्हीं ॥

रं ि िुम्हारे तह रािेउाँ, चढे उाँ ििि होइ सूर ।


जहाँ सतस सीिि िहाँ िप ,ं मि हींछा,धति!पूर॥18॥

जोति तभखारी! करतस बहु बािा । कहतस रं ि, दे ख ं ितहं रािा ॥


कापर राँ िे रं ि ितहं होई । उपजे औतट रं ि भि सोई ॥
चााँद के रं ि सुरुज जब रािा । दे खै जिि सााँझ परभािा ।
दितध तबरह तिति होइ अाँ िारा । ओही आाँ च तधकै संसारा ॥
जो मजीठ औटे बहु आचा । सो रं ि जिम ि डोिै रााँचा ॥
जरै तबरह जस दीपक -बािी भीिर जरै , उपर होइ रािी ॥
जरर परास होइ कोइि-भेसू । िब फूिै रािा होइ टे सू ॥

पाि,सुपारी, खैर तजतम मे रइ करै चकचूि ।


ि िति रं ि ि राचै ज िति होइ ि चूि ॥19॥

का, धति! पाि-रं ि, का चूिा । जेतह िि िे ह दाध िेतह दू िा ॥


ह ं िुम्ह िे ह तपयर भा पािू । पे डी हुाँ ि सोिरास बखािू ॥
सुति िुम्हार संसार बड िा । जोि िीन्ह, िि कीन्ह िड िा ॥
करतहं जो तकंिरी िे इ बैरािी । ि िी होइ तबरह कै आिी ॥
फेरर फेरर िि कीन्ह भुाँज िा । औतट रकि राँ ि तहरदय औिा ॥
सूखख सोपारी भा मि मारा । तसरतहं सर िा करवि सारा ॥
हाड चूि भा, तबरहाँ तह दहा । जािै सोइ जो दाध इतम सहा ॥

सोई जाि वह पीरा जे तह दु ख ऐस सरीर ।


रकि-तपयासा होइ जो का जािै पर पीर ?॥20॥

जोतिन्ह बहुि छं द ि ओराहीं । बूाँद सेवािी जैस पराहीं ॥


परतहं भूतम पर होइ कचूरु । परतहं कदति पर होइ कपूरू ॥
परतहं समु द्र खार जि ओही । परतहं सीप ि मोिी होहीं ॥
परतहं मे रु पर अमृ ि होई । परतहं िािमु ख तवष होइ सोई ॥
जोिी भ रं तिठु र ए दोऊ । केतह आपि भए ? कहै ज कोऊ ॥
एक ठााँव ए तथर ि रहाहीं । रस िे इ खेति अिि कहुाँ जाहीं ॥
होइ िृही पुति होइ उदासी । अं ि काि दू व तबसवासी ॥

िेतह स ं िे ह को तदढ करै ? रहतहं ि एक दे स ।


जोिी, भ रं , तभखारी इन्ह स ं दू र अदे श ॥21॥

थि थि िि ि होतहं जेतह जोिी । जि जि सीप ि उपितहं मोिी ॥


बि बि तबररछ ि चंदि होई । िि िि तबरह ि उपिै सोई ॥
जेतह उपिा सो औतट मरर ियऊ । जिम तििार ि कबहूाँ भएऊ ॥
जि अं बुज,रतव रहै अकासा । ज ं इन्ह प्रीति जािु एक पासा ॥
जोिी भ रं जो तथर ि रहाहीं । जेतह खोजतह िेतह पावतहं िाहीं ॥
मैं िोतह पायउाँ आपि जीऊ । छातड सेवाति ि आितह पीऊ ॥
भ रं माििी तमिै ज आई । सो ितज आि फूि तकि जाई ?॥

चंपा प्रीति ि भ रं तह, तदि तदि आिरर बास ।


भ रं जो पावै माििी मु एहु ि छााँ डै पास ॥22॥
ऐसे राजकुवर िहीं माि ं । खेिु सारर पााँसा िब जाि ं ॥
कााँचे बारह परा जो पााँसा । पाके पैंि परी ििु रासा ॥
रहै ि आठ अठारह भाखा । सोरह सिरस रहैं ि राखा ॥
सि जो धरै सो खेििहारा । ढारर इिारह जाइ ि मारा ॥
िूाँ िीन्हे आछतस मि दू वा । ओ जुि सारर जहतस पुति छूवा ॥
ह ं िव िे ह रचों िोतह पाहा । दसव दाव िोरे तहय माहा ॥
ि च पर खेि ं करर तहया । ज िरहे ि होइ स तिया ॥

जेतह तमति तबछु रि औ िपति अं ि होइ ज तिि ।


िेतह तमति िंजि को सहै ? बरु तबिु तमिै तितचंि ॥23॥

बोि ं राति! बचि सुिु साचा । पुरुष क बोि सपथ औ बाचा


यह मि िाएउ िोतहं अस, िारी । तदि िुइ पासा औ तितस सारी ॥
प परर बारतह बार मिाएउ । तसर स खेति पैंि तजउ िाएउ ॥
ह ं अब च क ं पंज िें बाची । िु म्ह तबच िोट ि आवतह काची ॥
पातक उठाएउ आस करीिा । ह ं तजउ िोतह हारा, िुम जीिा ॥
तमति कै जुि ितहं होहु तििारी । कहा बीच दू िी दे तिहारी ? ॥
अब तजउ जिम जिम पासा । चढे उाँ जोि, आएउाँ कतबिासा ॥

जाकर जीऊ बसै जेतह िेतह पुति िाकर टे क ।


किक सोहाि ि तबछु रे , ओतट तमिै होइ एक ॥24॥

तबहाँ सी धति सुति कै सि बािा । तिहचय िू मोरे रं ि रािा ॥


तिहचय भ र कवि-रस सा । जो जेतह मि सो िेतह मि बसा ॥
जब हीरामि भएउ साँदेसी । िुम्ह हुाँ ि माँ डप िइउाँ , परदे सी ॥
िोर रूपिस दे खेउाँ िोिा । जिु , जोिी ! िू मेिेतस टोिा ॥
तसतध-िुतटका जो तदखस्ट कमाई । पारतह मे ति रूप बैसाई ॥
भुिुति दे इ कहाँ मैं िोतह दीठा । काँवि-िै ि होइ भ रं बईठा ॥
िै ि पुहुप, िू अति भा सोभी । रहा बेतध अस, उढा ि िोभी ॥

जाकर आस होइ जे तह, िेतह पु ति िाकरर आस ।


भ रं जो दाधा काँवि कहाँ , कस ि पाव सो बास ? ॥25॥

क ि मोहिी दहुाँ हुति िोही । जो िोतह तबधा सो उपिी मोही ॥


तबिु जि मीि ििफ जस जीऊ । चाितक भइउाँ कहि "पीउ पीउ"॥
जररउाँ तबरह जस दीपक-बािी । पंथ जोहि भइ सीप सेवािी ॥
डातढ डातढ तजतम कोइि भई । भइउाँ चकोरर, िींद तितस िई ॥
िोरे पेम पेम मोतहं भएऊ । रािा हे म अतिति तजतम िएऊ॥
हीरा तदपै ज सूर उदोिी । िातहं ि तकंि पाहि कहाँ जोिी ! ॥
रतव परिासे काँवि तबिासा । िातहं ि तकि मधु कर, तकि बासा ॥

िास ं क ि अाँ िरपट जो अस पीिम पीउ ।


िे वछावरर अब सार ं िि, मि, जोबि, जीउ ॥26॥

हाँ तस पदमावति मािी बािा । तिहचय िू मोरे राँ ि रािा ॥


िू राजा दु हुाँ कुि उतजयारा । अस कै चररतचउाँ मरम िुम्हारा ॥
पै िूाँ जंबूदीप बसेरा । तकतम जािे तस कस तसंघि मोरा ?॥
तकतम जािे तस सो मािसर केवा । सुति सो भ रं भा, तजउ पर छे वा ॥
िा िुाँइ सुिी, ि कबहूाँ दीठी । कैस तचत्र होइ तचितह पईठी ? ॥
ज ितह अतिति करै ितहं भेदू । ि ितह औतट चुवै ितहं मे दू ॥
कहाँ संकर िोतह ऐस िखावा ?। तमिा अिख अस पेम चखावा ॥

जेतह कर सत् साँघािी िे तह कर डर सोइ मे ट ।


सो सि कहु कैसे भा,दु व भााँति जो भेंट ॥27॥

सत् कह ं सुिु पदमाविी । जहाँ सि पुरुष िहााँ सुरसिी ॥


पाएउाँ सुवा, कही वह बािा । भा तिहचय दे खि मु ख रािा ।
रूप िुम्हार सुिेउाँ अस िीका । िा जेतह चढा काहु कहाँ टीका ॥
तचत्र तकएउाँ पुति िे इ िे इ िाऊाँ । िै ितह िाति तहये भा ठाऊाँ ॥
ह ं भा सााँच सुिि ओतह घडी । िुम होइ रूप आइ तचि चढी ॥
ह ं भा काठ मू तिा मि मारे । चहै जो कर सब हाथ िुम्हारे ॥
िुम्ह ज डोिाइहु िबतहं डोिा । म ि सााँस ज दीन्ह ि बोिा ॥

को सोवै, को जािै ? अस ह ं िएउाँ तबमोतह ।


परिट िुपुि ि दू सर, जहाँ दे ख ं िहाँ िोतह ॥28॥

तबहाँ सी धति सुति कै सि भाऊ । ह ं रामा िू रावि राऊ ॥


रहा जो भ रं काँवि के आसा । कस ि भोि मािै रस बासा ?॥
जस िस कहा कुाँवर ! िू मोही । िस मि मोर िाि पुति िोही ॥
जब-हुाँ ि कतह िा पंखख साँदेसी । सुतिउाँ तक आवा है परदे सी ॥
िब-हुि िुम तबिु रहै ि जीऊ । चाितक भइउाँ कहि "तपउ तपऊ ॥
भइउ चकोरर सो पंतथ तिहारी । समु द सीप जस िै ि पसारी ॥
भइउ तबरह दतह कोइि कारी । डार डार तजतम कूतक पुकारी ॥

क ि सो तदि जब तपउ तमिै यह मि रािा िासु ।


वह दु ख दे खै मोर सब, ह ं दु ख दे ख ं िासु ॥29॥

कतह सि भाव भई काँठिािू । जिु कंचि औ तमिा सोहािू ॥


च रासी आसि पर जोिी । खट रस, बंधक चिुर सो भोिी ॥
कुसुम-माि अतस मािति पाई । जिु चम्पा ितह डार ओिाई ॥
किी बेतध जिु भाँवर भुिािा । हिा राहु अरजुि के बािा ॥
कंचि करी जरी िि जोिी । बरमा स ं बेधा जिु मोिी ॥
िाराँ ि जाति कीर िख तदए । अधर आमरस जािहुाँ तिए ॥
क िुक केति करतहं दु ख िं सा । खूाँदतहं कुरितहं जिु सर हं सा ॥

रही बसाइ बासिा चोवा चंदि मे द ।


जुतह अस पदतमति रािी सो जािै यह भेद ॥30॥

रििसेि सो कंि सुजािू । खटरस-पंतडि सोरह बािू ॥


िस होइ तमिे पुरुष औ िोरी ।जैसी तबछु री सारस-जोरी ॥
रची सारर दू ि एक पासा । होइ जुि जुि आवतहं कतबिासा ॥
तपय धति िही, दीखन्ह ििबाहीं । धति तबछु री िािी उर माहीं ॥
िे छतक रस िव केति करे हीं । चोका िाइ अधर-रस िे हीं ॥
धति ि साि, साि औ पााँचा । पु रुष दस िे रह तकतम बााँचा ?॥
िीन्ह तबधााँतसं तबरह धति साजा । औ सब रचि जीि हुि राजा ॥

जिहुाँ औतट कै तमति िए िस दू ि भए एक ।


कंचि कसि कस टी हाथ ि कोऊ टे क ॥31॥

चिुर िारर तचि अतधक तचहूाँ टी । जहााँ पेम बाढे तकमी छूटी ॥
कुरिा काम केरर मिु हारी । कुरिा जेतहं सो ि सुिारी ॥
कुरितहं होइ कंि कर िोखू । कुरितह तकए पाव धति मोखू ॥
जेतह कुरिा सो सोहाि सुभािी । चंदि झेस साम काँठ िािी ॥
िेंद िोद कै जािहु िई । िेंद चातह धति कोमि भई ॥
दाररउाँ , दाख, बेिरस चाखा । तपय के खेि धति जीवि राखा ॥
भएउ बसंि किी मु ख खोिी । बैि सोहावि कोतकि बोिी ॥

तपउ तपउ करि जो सूखख रतह धति चािक की भााँति ।


परी सो बूाँद सीप जिु , मोिी होइ सुख-सांति ॥32॥

भएउ जूझ जस रावि रामा । से ज तबधााँतस तबरह-संग्रामा ॥


िीखन्ह िं क, कंचि-िढ टू टा । कीन्ह तसंिार अहा सब िू टा ॥
औ जोबि मै मंि तवधााँसा । तवचिा तबरह जीउ जो िासा ॥
टू टे अं ि अं ि सब भेसा । छूटी मााँि, भंि भए केसा ॥
कंचुतक चूर, चूर भइ िािी । टू टे हार, मोति छहरािी ॥
बारी, टााँण सिोिी टू टी । बाहूाँ काँिि किाई फूटी ॥
चंदि अंि छूट अस भेंटी । बेसरर टू तट, तििक िा मे टी ॥
पुहुप तसंिार साँवार सब जोबि िवि बसंि ।
अरिज तजतम तहय िाइ कै मरिज कीन्हे उ कंि ॥33॥

तबिय करै पदमावति बािा । सुतध ि, सुराही तपएउ तपयािा ॥


तपय-आयसु माथे पर िे ऊाँ । जो मााँिै िइ िइ तसर दे ऊाँ ॥
पै, तपय ! बचि एक सुिु मोरा । चाखु, तपया ! मधु थोरै थोरा ॥
पेम-सुरा सोई पै तपया । िखै ि कोई तक काहू तदया ॥
चुवा दाख-मधु जो एक बारा । दू सरर बार िे ि बेसाँभारा ॥
एक बार जो पी कै रहा । सु ख-जीवि, सुख-भोजि िहा ॥
पाि फूि रस रं ि करीजै । अधर अधर स ं चाखा कीजै ॥

जो िुम चाह स कर , िा जाि भि मं द ।


जो भािै सो होइ मोतहं िुम्ह, तपउ ! चह ं अिं द ॥34॥

सुिु, धति ! प्रेम-सुरा के तपए । मरि तजयि डर रहै ि तहए ॥


जेतह मद िेतह कहााँ संसारा । को सो घू तम रह, की मिवारा ॥
सो पै जाि तपयै जो कोई । पी ि अघाइ, जाइ परर सोई ॥
जा कहाँ होइ बार एक िाहा । रहै ि ओतह तबिु , ओही चाहा ॥
अरथ दरब सो दे इ बहाई । की सब जाहु, ि जाइ तपयाई ॥
रातिहु दु वस रहै रस-भीजा । िाभि दे ख, ि दे खै छीजा ॥
भोर होि िब पिु ह सरीरू । पाव कूमारी सीिि िीरू ॥

एक बार भरर तपयािा, बार-बार को मााँि ?।


मु हमद तकतम ि पुकारै ऐस दााँव जो खााँि ? ॥35॥

भा तबहाि ऊठा रतव साईं । चहुाँ तदतस आईं िखि िराईं ॥


सब तितस सेज तमिा सतस सूरू । हार चीर बिया भए चूरू ॥
सो धति पाि, चूि भइ चोिी । रि-राँ घीति तिरि भइ भोिी ॥
जािि रै ति भएउ तभिसारा । भई अिस सावि बेकरारा ॥
अिक सुरंतिति तहरदय परी । िारं ि छु व िातिति तबष-भरी ॥
िरी मु री तहय-हार िपेटी । सुरसरर जिु कातिं दी भेंटी ॥
जिु पयाि अरइि तबच तमिी । सोतमि बेिी रोमाविी ॥

िाभी िाभु पुतन्न कै कासीकुंड कहाव ।


दे विा करतहं किप तसर आपुतह दोष ि िाव ॥36॥

तबहाँ तस जिावतहं सखी सयािी । सूर उठा, उठु पदतमति रािी ! ॥


सुिि सूर जिु काँवि तबिासा । मधु कर आइ िीन्ह मधु बासा ॥
जिहुाँ माति तिसयािी बसी । अति बेसाँभार फूति जिु अरसी ॥
िै ि कवाँि जािहुाँ दु इ फूिे । तचिवि मोतह तमररि जिु भूिे ॥
िि ि साँभार केस औ चोिी । तचि अचेि जिु बाउरर भोिी ॥
भइ सतस हीि िहि अस िही । तबथुरे िखि, सेज भरर रही ॥
काँवि मााँह जिु केसरर दीठी । जोबि हुि सो िाँवाइ बईठी ॥

बेति जो राखी इं द्र कहाँ पवि बास ितहं दीन्ह ।


िािेउ आइ भ रं िेतह, किी बेतध रस िीन्ह ॥37॥

हाँ तस हाँ तस पूछतहं सखी सरे खी । मािहुाँ कुमु द चंद्र-मु ख दे खी ॥


रािी ! िुम ऐसी सुकुमारा । फूि बास िि जीव िुम्हारा ॥
सतह ितहं सकहु तहये पर हारू । कैसे सतहउ कंि कर भारू ?॥
मु ख-अं बुज तबिसे तदि रािी । सो कुाँतभिाि कहहु केतह भााँिी ?॥
अधर-काँवि जो सहा ि पािू । कैसे सहा िाि मु ख भािू ?॥
िं क जो पैि दे ि मु रर जाई । कैसे रही ज रावि राई ?॥
चंदि चोव पवि अस पीऊ । भइउ तचत्र सम, कस भा जीऊ ?॥

सब अरिज मरिज भयउ, िोचि तबंब सरोज ।


`सत् कहहु पद्मावति' सखी परीं सब खोज ॥38॥

कह ,ं सखी ! आपस सिभाऊ । ह ं जो कहति कस रावि राऊ ॥


कााँपी भ रं पुहुप पर दे खे । जिु सतस िहि िैस मोतहं िे खे
आजु मरम मैं जािा सोई । जस तपयार तपउ और ि कोई ॥
डर ि िति तहय तमिा ि पीऊ । भािु के तदखस्ट छूतट िा सीऊ ॥
जि खि भािु कीन्ह परिासू । काँवि-किी मि कीन्ह तबिासू ॥
तहये छोह उपिा औ सीऊ । तपउ ि ररसाउ िे उ बरु जीऊ ॥
हुि जो अपार तबरह-दु ख दू खा । जिहुाँ अिस्त-उदय जि सूखा ॥

ह ं राँ ि बहुिै आिति, िहरै जैस समुं द ।


पै तपउ कै चिुराई खसेऊ ि एक बुंद ॥39॥

करर तसंिार िापहाँ का जाऊाँ । ओही दे खहुाँ ठावतहं ठााँऊाँ ॥


ज तजउ महाँ ि उहै तपयारा । िि मि स ं ितहं होइ तििारा ॥
िै ि मााँह है उहै समािा । दे ख िहााँ िातहं कोउ आिा ॥
आपि रस आपुतह पै िे ई । अधर सोइ िािे रस दे ई ॥
तहया थार कुच कंचि िाडू । अिमि भेंट दीन्ह कै चााँडू ॥
हुिसी िं क िं क स ं िसी । रावि रहतस कस टी कसी ॥
जोबि सबै तमिा ओतह जाई । ह ं रे बीच हुाँ ि िइउाँ हे राई ॥

जस तकछु दे इ धरै कहाँ , आपि िे इ साँभारर ।


रसतह िारर िस िीन्हे तस, कीन्हे तस मोतह ठाँ ठारर ॥40॥

अिु रे छबीिी! िोतह छतब िािी । िै ि िुिाि कंि साँि जािी ॥


चंप सुदरसि अस भा सोई । सोिजरद जस केसर होई ॥
बैठ भ रं कुच िाराँ ि बारी । िािे िख, उछरी ं राँ ि-धारी ॥
अधर अधर सों भीज िमोरा । अिकाउर मु रर मु रर िा िोरा ॥
रायमु िी िुम औ रि मु हीं । अतिमु ख िाति भई फुिचुहीं ॥
जैस तसंिार हार स ं तमिी । मािति ऐतस सदा रहु खखिी ॥
पुति तसंिार करू किा िे वारी । कदम सेविी बैठु तपयारी ॥

कुंद किी सम तबिसी ऋिु बसंि औ फाि ।


फूिहु फरहु सदा सुख औ सुखसुफि सोहाि ॥41॥

कतह यह बाि सखी सब धाईं । चंपावति पहाँ जाइ सुिाई ॥


आजु तिराँ ि पद्माविी बारी । जीवि जािहुाँ पवि-अधारी ॥
िरतक िरतक िइ चंदि चोिी । धरतक धरतक तहय उठै ि बोिी ॥
अही ज किी-काँवि रसपूरी । चूर चूर होइ िईं सो चूरी ॥
दे खहु जाइ जैतस कुतभिािी । सुति सोहाि रािी तवहाँ सािी ॥
सेइ साँि सबही पदतमिी िारी । आई जहाँ पदमावति बारी ॥
आइ रूप सो सबही दे खा । सोि-बरि होइ रही सो रे खा ॥

कुसुम फूि जस मरदै , तिराँ ि दे ख सब अं ि ।


चंपावति भइ बारी, चूम केस औ मं ि ॥42॥

सब रतिवास बैठ चहुाँ पासा । सतस-मं डि जिु बैठ अकासा ॥


बोिीं सबै "बारर कुाँतभिािी । करहु साँभार, दे हु खाँडवािी ॥
काँवि किी कोमि राँ ि-भीिी । अति सुकुमारर. िं क कै छीिी ॥
चााँद जैस धति हुि परिासा । सहस करा होइ सूर तबिासा ॥
िेतहके झार िहि अस िही । भइ तिरं ि, मु ख-जोति ि रही ॥
दरब वारर तकछु पुतन्न करे हू । औ िेतह िे इ सन्यातसतह दे हू ॥
भरर कै थार िखि िजमोिी । बारा कीन्ह चंद कै जोिी ॥

कीन्ह अरिजा मरदि औ सखख कीन्ह िहािु ।


पुति भइ च दतस चााँद सो रूप िएउ ठतप भािु ॥43॥

पुति बहु चीर आि सब छोरी । सारी कंचुतक िहर=पटोरी ॥


फुाँतदया और कसतिया रािी । छायि बाँद िाए िुजरािी ॥
तचकवा चीर मघ िा िोिे । मोति िाि औ छापे सोिे ॥
सुरंि चीर भि तसंघिदीपी । कीन्ह जो छापा धति वह छीपी ॥
पेमचा डररया औ च धारी । साम, सेि पीयर, हररयारी ॥
साि रं ि औ तचत्र तचिेरे । भारर कै दीतठ जातहं िहीं हे रे ॥
चाँदि िा औ खरदु क भारी । बााँसपूर तझितमि कै सारी ॥

पुति अभरि बहु काढा, अिबि भोति जराव ।


हे रर फेरर तिति पतहरै , जब जैसे मि भाव ॥44॥

(1) पािक = पिं ि । डासी = तबछाई । िेंडुआ = ितकया । ििसूई = िाि के िीचे रखिे का छोटा ितकया । कााँची = िोटा पट्टा । प तड
=िे टकर । सुकुवााँरर = कोमि ।
(2) िपि =िप करिे हुए । चारू =चार, रीति ,चाि । हरतद उिारर = ब्याह के िि में शरीर में जो हिदी िििी है उसे छु डाकर । रं िू =
अं िराि । छरा = ठिा िया, खोया । कर हाथ से । टू तट भइ = घाटा हुआ , हाति हुई । ठि-िाडू = तवष या िशा तमिा हुआ िड् डू तजसे
पतथकों को खखिाकर ठि िोि बेहोश करिे थे ।
(3) चााँद रहा...िराई = पतद्मिी िो रह िई ,केवि उसकी सखखयााँ तदखाई पडी । तिरधािु = तिस्सार । तबरवा िोिा = (क) अमिोिी िाम
की घास तजसे रसायिी धािु तसद्ध करिे के काम में िािे हैं । (ख) सुंदर वल्ली, पद्माविी । रूप = (क) रूपा (ख) चााँदी । क तडया =
पक्षी जो मछिी पकडिे के तिए पािी के ऊपर माँ डरािा है ।
(4) तिछोही = तिष्ठु र । जो ...ओही = जो उस िुरु (पद्माविी) को िुमिे तछपा तदया है । रााँि =रााँिा । जोरा के = (क) एक बार जोडी
तमिाकर । (ख) िोिे भर रााँिे और िोिे भर चााँदी का दो िोिे चााँदी बिािा रसातयिों की बोिी में जोडा करिा कहिािा है ।
(5) का बसाइ = क्या वश चि सकिा है ? बाज = तबिा । बर = बि ।
(6) िपा = िपस्वी । जति िे सी = ि िे । दै उ मिाउ...ओहु= = ईश्वर को मिा तक उसे (पद्माविी की ) भी वैसी ही दया हो जैसी हम
िोिों को िुझ पर आ रही है ।
(7) फूि = िाक में पहििे की िोंि । छु द्रावति = क्षुद्रघंतटका, करधिी । चूरा = कडा । च क = चार चार का समू ह । कुिीि = उत्तम ।
सुभर = शुभ्र । साँवारे = श्रृंिार को । पत्रावति = पत्रभंि रचिा । दु इज = दू ज का चंद्रमा । सु हि = सुहेि (अिस्त्य) िारा जो दू ज के चंद्रमा
के साथ तदखाई पडिा है और अरबी फारसी काव्य में प्रतसद्ध है । खूाँट = काि का एक चक्राकार िहिा । मािहुाँ दरपि ...दे खाव = मािो
आकाश-रूपी दपाण में जो चंद्रमा और िारे तदखाई पडिे हैं वे इसी पद्माविी के प्रतितबंब हैं ।
(9) खंजि....दे खा = पद्माविी का मु ख चंद्र शरद के पूणा चंद्र के समाि होकर शरद ऋिु का आभास दे िा है । हे र िाकिी है । धिु क =
इं द्रधिु ष । ओिवा =झुका, पडा । काि-कस्ट...िाति= तबरह कहिा है तक यह कािकि आ पडा सब मे रे ही जी के तिये ।
(10) मारा = मािा । झााँपी = ढााँक तदया । उभे = उठे हुए । बहुाँ टा और टााँड = बााँह पर पहििे के िहिे । पायि = पैर का एक िहिा ।
अिवट = अाँ िूठे का एक िहिा । समु दहु = तमिो आतिं िि करो ।
(11) िहरू = दे र, तविंब । साँवरर = स्मरण करके । िेवति = सोच या तचंिा में पड िई । अितचन्ह = अपररतचि । सााँव = श्याम । पूतछतह =
पूछेिा ।
(12) राई = अिु रुक्त हुई । डार ि टू ट...िरुआई = क ि फूि अपिे बोझ से ही डाि से टू ट कर ि तिरा ? पोढ =पुि । िाडू = िाड,
प्यार, प्रेम । चााँडू = िहरी चाहवािा । साजि = पति ।
(13) मेि = डाििा है । सदू रू = शादू ा ि, तसंह । पहुाँ चा =किाई । प िारी = पद्मिाि । खडि छपा = ििवार तछपी (म्यािमें ) बारी होइ =
बिीचे में जाकर । िरब-िहेिी = िवा धारण करिे वािी ।
(14) िोहिे =साथ में । कुरकुटा = अन्न का टु कडा; मोटा रुखा अन्न । पै = तिियवाचक, ही । िाथ = जोिी (िोरखपंथी साधु िाथ कहिािे हैं
)।
(15) बार = िार । पैठ पार = घुसिे पािा है ।
(16) होइ आिा = अन्य अथााि् योिी होकर । केवा = कमि । छे वा = फेंका, डािा खेिा । अाँ िएउाँ = अाँ िेजा, शरीर पर सहा ।
(17) तचन्हारी = जाि पहचाि । छं द = कपट, धू िािा । िेतह मातहं अकेिा = उिमें एक ही धू त्ता है । अपसवतह =जािे हैं । मिसतहं = मि में
ध्याि या कामिा करिे हैं ।अिु ,धति िू तितसअर तितस माहााँ । ह ं तदिअर जेतह कै िू छाहााँ ॥
(18) तितसअर = तिशाकर, चंद्रमा । अिु = तफर, आिे । करा = किा ! िुम्ह हुाँ ि = िुम्हारे तिये । पिाँि कै करा = पिंि के रूप का । बारू
= िार । दे खै...जिि परभािा = संध्या सवेरे जो ििाई तदखाई पडिी है । तधकै = िपिा है । मजीठ = सातहत् में पक्के राि या प्रेम को
मं तजष्ठा राि कहिे हैं । जिम ि डोिै = जन्म भर िहीं दू र होिा चक चूि करै = चूणा करे । चूि = चूिा पत्थर या कंकड जिाकर बिाया
जािा है ।
(20) पेडी हुाँ ि = पेडी ही से ; जो पाि डाि या पेडी ही में पुरािा होिा है उसे भी पेडी ही कहिे हैं । सोिरास = पका हुआ सफेद या पीिा
पाि । बड िा = (क) बडाई । (ख) एक जाति का पाि । िड िा = एक प्रकार का पाि जो जमीि में िाडकर पकाया जािा है । ि िी =
िू िि, िाजी । भुाँज िा कीन्ह = भु िा । औिा = आिा है , आ सकिा है ।
(21) ओराहीं= चुकिे हैं । छं द = छि, चाि । कचूर = हिदी की िरह का एक प धा । दू रर अदे श = दू र ही से प्रणाम ।
(22) ि आितहं पीऊ = दू सरा जि िहीं पीिा । आिरर = अतधक ।
(23) सारी =िोटी पैंि = दााँव । रास = ठीक । सि = सत्, साि का दााँव । इिारह = दस इं तद्रयााँ और मि, ग्यारह का दााँव । दू वा = दु बधा
। जुि सारर = दो िोतटयााँ, कुच । दसवाँ दावाँ = दसवााँ दााँव, अं ि िक पहुाँ चािे वािी चाि । िरहे ि = अधीि, िीचे पडा हुआ । स तिया = तिया,
एक दााँव ,सपत्नी । िंजि = िाश, दु ुःख ।
(24) बाचा = प्रतिज्ञा । पैंि िाएउ = दााँव पर ििाया । च क पं ज = च का पंजा दााँव । छि-कपट,छक्का पंजा । िुम्हतबच.....कााँची =
कच्ची, िोटी िुम्हारे बीच िहीं पड सकिी पातक = पक्की िोटी । जुि तििारा होिा = च सर में युि फूटिा ,जोडा अिि होिा । कहााँ
बीच...दे तिहारी = मध्यस्त होिे वािी दू िी की कहााँ आवश्यकिा रह जािी है ।
(25) साँदेसी = संदेसी = संदेसा िे जािे वािा । िुम्ह हुाँ ि = िुम्हारे तिये । रूप = रूपा, चााँदी ,स्वरूप । बैसाय = बैठाया, जमाया । काँवि-िै ि
...बईठा मे रे िे त्र कमि में िू भ रं ा (पुििी के समाि ) होकर बैठ िया । काँवि कहाँ = कमि के तिए ।
(27) चरतचउाँ = मैं िे भााँपा । बसेरा = तिवासी । केवा = कमि । छे वा = डािा या खेिा ।
(28) िैितह िाति = आाँ खों से िे कर । सााँच = सत् स्वरूप , सााँ चा । रूप, चााँदी ।
(29) रावि = रमण करिे वािा । रावण । जब-हुाँ ि =जब से । सुतिउाँ = (मैं िे ) सुिा िबहुाँ ि = िब से ।
(30) च रासी आसि = योि के और कामशास्त्र के बंधक = कामशास्त्र के बंध । औिाई = झुकाई । राहु = रोहू मछिी । बरमा = छे द करिे
का औजार । िं सा करतह = िि करिे हैं । खूाँदतहं - कुदिे हैं । कुरितहं = हं स आतद के बोििे को कुरिािा कहिे हैं ।
(31) बािू = वणा , दीखप्त, किा । ि री = स्त्री । सारर = च पड । चोका = चूसिे की तक्रया या भाव । चोका िाइ = चूसकर । ि साि =
सोिह श्रृंिार । साि औ पााँचा = बारह आभरण । पुरुष....बााँचा = वे श्रृंिार और आभरण पुरुष की दस उाँ ितियों से कैसे बचे रह सकिे हैं

(32) तचहूाँ टी = तचमटी । कुरिा = क्रीडा । मिु हारी = शांति, िृखप्त । मोखू = मोक्ष , छु टकारा । चातह = अपेक्षा बतिस्बि ।
(33) तबधााँतस = तवध्वंस की िई, तबिड िई । जीउ जो िासा = तजसिे जीव की दशा तबिाड रखी थी । िािी = ििी, बंद । बारी = बातियााँ ।
अरिज = अरिजा िामक सुिंध-द्रव्य तजसका िे प तकया जािा है । मरिज = मिा-दिा हुआ ।
(34) िइ =िवाकर ।
(35) जाइ परर सोई = पडकर सो जािा है । छीजा = क्षति, हाति । पिु ह = पिपिा है । खााँि = कमी हुई ।
(36) रतव =सूया और रत्न सेि । साईं = स्वामी । िखि िराईं = सखखयााँ । बिया = चूडी । पाि =पके पाि सी सफेद या पीिी । चूि = चूणा
। तिराँ ि = तववणा, बदरं ि । आिस =आिस्य-युक्त । छु व = छूिी है । िरी मु री = बाि की कािी िटें मोतियों के हार से तिपटकर उिझीं ।
िाभी िाभु....िाव = िातभ पु ण्य िाभ करके काशीकुंड कहिािी है इसी से दे विा िोि उस पर तसर काटकर मरिे हैं पर उसे दोष िहीं
िििा ।
(37) सुिि सूर...मधु बासा = कमि खखिा अथााि् िे त्र खुिे और भ रं े मधु और सुिंध िेिे बैठे अथााि् कािी पुितियााँ तदखाई पडीं । तिसयािीं
= सुध-बुध खोए हुए । तबथुरे िखि = आभूषण इधर-उधर तबखरे हैं
(38) सरे खी = सयािी, चिुर । फूि बास...िुम्हारा = फूि शरीर और बास जीव । रावि = रमण करिे वािा ,रावण । खोज परी ं = पीछे पडी

(39) मोतहं िे खे = मे रे तहसाब से, मे री समझ में । दू खा = िि हुआ । खसेउ =तिरा ।
(40) चााँडू = चाह। जस तकछु दे इ धरै कहाँ = जैसे वस्तु धरोहर रखे और तफर उसे सहे ज कर िे िे । ठाँ ठारर खुक्ख ।
(41) चंप सुदरसि...होई= = िेरा वह सुंदर चंपा का सा रं ि जदा चमे िी सा पीिा हो िया है । उछरी ं = पडी हुई तदखाई पडीं । धारी =
रखा । िमोरा = िांबूि । अिकाउर = अिकावति । िोरा = िेरा । रायमु िी = एक छोटी सुंदर तचतडया । रिमु हीं = िाि मुाँ ह वािी ।
फुिचुहीं = फुिसुाँघिी िाम की छोटी तचतडया । तसंिार हार = तसंिार को अस्त-व्यस्त करिे वािा िायक, परजािा फूि ।
किा = िकिबाजी, बहािा (अवधी)। िे वारी = दू र कर ,एक फूि । कदम सेविी = चरणों की सेवा करिी हुई, कदं ब ओर सेविी फूि ।
(42) तिरं ि = तववणा, बदरं ि । पवि अधारी = इििी सुकुमार है तक पविही के आधार पर मािो जीवि है । अही = थी। वारी भइ = तिछावरर
हुई । मं ि = मााँि ।
(43) झार = ज्वािा,िेज । वारर =तिछावर करके । वारा कीन्ह = चारों ओर घुमाकर उत्सिा तकया ।
(44) िहर-पटोरी = पुरािी चाि का रे शमी िहररया कपडा । फुाँतदया = िीवी या इजारबंद के फुिरे । कसतिया = कसिी, एक प्रकार की
अाँ तिया । छायि = एक प्रकार की कुरिी । तचकवा तचकट िाम का रे शमी कपडा । मघोिा = मे घवणा अथााि् िीि का राँ िा कपडा । पेमचा
= एक प्रकार का कपडा । च धारी = चारखािा । हररयारी = हरी । तचिेरे = तचतत्रि चाँद ि िा = एक प्रकार का िहाँ िा । खरदु क = कोई
पहिावा । बााँसपूर = ढाके की बहुि महीि िंजेब तजसका थाि बााँस की पििी ििी में आ जािा था । तझितमि = एक बारीक कपडा ।
अिबि = अिेक ।
रत्नसेि-साथी-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी

रत्नसेि िए अपिी सभा । बैठे पाट जहााँ अठ खंभा ॥


आइ तमिे तचिउर के साथी । सबै तबहाँ तस कै दीन्ही हाथी ॥
राजा कर भि मािहु भाई । जेइ हम कहाँ यह भूतम दे खाई ॥
हम कहाँ आिि ज ि िरे सू । ि हम कहााँ, कहााँ यह दे सू ॥
धति राजा िुम्ह राज तबसेखा । जेतह के राज सबै तकछु दे खा ॥
बोितबिास सबै तकछु पावा । कहााँ जीभ जे तह अस्तुति आवा ?॥
अब िुम आइ अाँ िरपट साजा । दरसि कहाँ ि िपावहु राजा ॥

िै ि सेरािे , भूख िइ दे खे दरस िुम्हार ।


िव अविार आजु भा, जीवि सफि हमार ॥1॥

हाँ तस कै राज रजायसु दीन्हा । मैं दरसि कारि एि कीन्हााँ ॥


अपिे जोि िाति अस खेिा । िुरु भएउाँ आपु, कीन्ह िुम्ह चेिा ॥
अहक मोरर पुरुषारथ दे खेहु । िु रु चीखन्ह कै जोि तबसेखेहु ॥
ज िुम्ह िप साधा मोतहं िािी । अब तजति तहये होहु बैरािी ॥
जो जेतह िाति सहै िप जोिू । सो िेतह के साँि मािै भोिू ॥
सोरह सहस पदतमिी मााँिी । सबै दीखन्ह, ितहं काहुतह खााँिी ॥
सब कर मं तदर सोिे साजा । सब अपिे अपिे घर राजा ॥

हखस्त घोर औ कापर सबतहं दीन्ह िव साज ।


भए िृही औ िखपिी, घर घर मािहु राज ॥2॥
(1) हाथी दीन्हीं = हाथ तमिाया । भि मािहु = भिा मिाओ, एहसाि मािो । अं िरपट साजा = आाँ ख की ओट में हुए । िपावहु = िरसाओ ।
सेरािे = ठं डे हुए ।
(2) एि = इििा सब । अहक = िािसा । कााँिी = घटी; कम हुई ।
षट् -ऋिु-वणाि-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी

पदमावति सब सखी बोिाई । चीर पटोर हार पतहराई॥


सीस सबन्ह के सेंदुर पूरा और रािे सब अं ि सेंदुरा॥
चंदि अिर तचत्र सब भरीं ।िए चार जािहु अविारीं॥
जिहु काँवि साँि फूिी कूईं । जिहुाँ चााँद साँि िरई ऊईं॥
धति पदमावति, धति िोर िाहू । जे तह अभरि पतहरा सब काहू॥
बारह अभरि, सोरह तसंिारा । िोतह सह ं ितहं सतस उतजयारा॥
सतस सकिं क रहै ितहं पूजा । िू तिकिं क, ि सरर कोई दू जा॥

काहू बीि िहा कर,काहू िाद मृ दंि ।


सबन्ह अिं द मिावा रहतस कूतद एक संि॥1॥

पदमावति कह सुिहु, सहे िी । हं सो काँवि, िुम कुमु दति-बेिी॥


किस माति हं िेतह तदि आई । पूजा चिहु चढावतहं जाई॥
माँ झ पदमावतिं कर जो बेवािू । जिु परभाि परै िखख भािू ॥
आस-पास बाजि च डोिा । दुं दुतभ, झााँझ, िूर, डफ ढोिा॥
एक संि सब सोंधे-भरी । दे व-दु वार उिरर भइ खरी॥
अपिे हाथ दे व िहिावा । किस सहस इक तघररि भरावा॥
पोिा माँ डप अिर औ चंदि । दे व भरा अरिज औ बंदि॥

कै प्रिाम आिे भई, तविय कीन्ह बहु भााँति ।


रािी कहा चिहु घर, सखी! होति है राति॥2॥

भइ तितस, धति जस सतस परिसी । राजै-दे खख भूतम तफर बसी॥


भइ कटकई सरद-सतस आवा । फेरर ििि रतव चाहै छावा॥
सुति चति भहं -धिु क तफरर फेरा । काम कटाछन्ह कोरतह हे रा॥
जािहु िातहं पैज,तप्रय ! खााँच ं । तपिा सपथ हं आजु ि बााँच ॥ं
काखि ि होइ, रही मतह रामा । आजु करहु रावि संग्रामा॥
सेि तसंिार महूाँ है सजा । िज-पति चाि, अाँ चि-िति धजा॥
िै ि समुद औ खडि िातसका । सरवरर जूझ को मो सहुाँ तटका ?॥

हं रािी पदमावति, मैं जीिा रस भोि ।


िू सरवरर करु िास ं जो जोिी िोतह जोि॥3॥

हं अस जोिी जाि सब कोऊ । बीर तसंिार तजिे मैं दोऊ॥


उहााँ सामु हें ररपु दि माहााँ । इहााँ ि काम-कटक िुम्ह पाहााँ॥
उहा ि हय चतढ कै दि मं ड ं । इहााँ ि अधर अतमय-रस खंड ॥ ं
उहााँ ि खडि िररं दतह मार ं । इहााँ ि तबरह िुम्हार साँघार ॥ं
उहााँ ि िज पेि ं होइ केहरर । इहवााँ कातमिी-तहय हरर॥
उहााँ ि िू ट ं कटक खाँधारू । इहााँ ि जीि ं िोर तसंिारू॥
उहााँ ि कुंभस्थि िज िाव ं । इहााँ ि कुच-किसतह कर िाव ॥ ं

परै बीच धरहररया, प्रेम-राज को टे क ?॥


माितहं भोि छव ऋिु तमति दू व होइ एक॥4॥

प्रथम वसंि िवि ऋिु आई । सुऋिु चैि


बैसाख सोहाई॥
चंदि चीर पतहरर धरर अं िा । सेंदुर दीन्ह तबहाँ तस
भरर मं िा॥
कुसुम हार और पररमि बासू । मियातिरर तछरका कतबिासू॥
स रं सुपेिी फूिि डासी । धति औ कंि तमिे सुखबासी॥
तपउ साँजोि धति जोबि बारी । भ रं पुहुप संि करतहं धमारी॥
होइ फाि भति चााँचरर जोरी । तबरह जराइ दीन्ह जस होरी॥
धति सतस सररस, िपै तपय सूरू । िखि तसंिार होतहं सब चूरू॥

तजन्ह घर कंिा ऋिु भिी, आव बसंि जो तित्त ।


सुख भरर आवतहं दे वहरै , दु ुःख ि जािै तकत्त॥5॥

ऋिु ग्रीषम कै िपति ि िहााँ । जेठ असाढ कंि घर जहााँ॥


पतहरर सुरंि चीर धति झीिा । पररमि मे द रहा िि भीिा॥
पदमावति िि तसअर सुबासा । िै हर राज, कंि-घर पासा॥
औ बड जूड िहााँ सोविारा । अिर पोति, सुख ििे ओहारा॥
सेज तबछावति स रं सुपेिी । भोि तबिास कतहं र सुख सेंिी॥
अधर िमोर कपुर तभमसेिा । चंदि चरतच िाव िि बेिा॥
भा आिं द तसंिि सब कहूाँ । भािवंि कहाँ सुख ऋिु छहूाँ ॥

दाररउाँ दाख िे तहं रस, आम सदाफर डार ।


हररयर िि सुअटा कर जो अस चाखिहार॥6॥

ररिु पावस बरसै, तपउ पावा । सावि भाद ं अतधक सोहावा॥


पदमावति चाहि ऋिु पाई । ििि सोहावि, भूतम सोहाई॥
कोतकि बैि, पााँति बि छूटी । धति तिसरीं जिु बीरबहूटी॥
चमक बीजु, बरसै जि सोिा । दादु र मोर सबद सुतठ िोिा॥
राँ ि-रािी पीिम साँि जािी । िरजे ििि च तं क िर िािी॥
सीिि बूाँद, ऊाँच च पारा । हररयर सब दे खाइ संसारा॥
हररयर भूतम, कुसुंभी चोिा । औ धति तपउ साँि रचा तहं डोिा॥

पवि झकोरे होइ हरष, िािे सीिि बास ।


धति जािै यह पवि है , पवि सो अपिे आस॥7॥

आइ सरद ऋिु अतधक तपयारी आसति ।


कातिक ऋिु उतजयारी॥
पदमावति भइ पूतिउाँ -किा च दतस । चााँद उई तसंघिा॥
सोरह किा तसंिार बिावा । िखि-भरा सूरुज सतस पावा॥
भा तिरमि सब धरति अकासू । सेज साँवारर कीन्ह फुि-बासू॥
सेि तबछावि औ उतजयारी । हाँ तस हाँ तस तमितहं पुरुष औ िारी॥
सोि-फूि भइ पुहुमी फूिी । तपय धति स ,ं धति तपय सं भूिी॥
चख अं जि दे इ खंजि दे खावा । होइ सारस जोरी रस पावा॥

एतह ऋिु कंिा पास जे तह , सुख िेतह के तहय मााँह ।


धति हाँ तस िािै तपउ िरै , धति-िर तपउ कै बााँह॥8॥

ऋिु हे मंि साँि तपएउ तपयािा । अिहि पूस सीि सुख-कािा॥
धति औ तपउ महाँ सीउ सोहािा । दु हुाँन्ह अं ि एकै तमति िािा॥
मि स मि, िि सं िि िहा । तहय सं तहय, तबचहार ि रहा॥
जािहुाँ चंदि िािेउ अंिा । चंदि रहै ि पावै संिा॥
भोि करतहं सुख राजा रािी । उन्ह िे खे सब तसखस्ट जुडािी॥
जूझ दु व जोवि सं िािा । तबच हुाँ ि सीउ जीउ िे इ भािा॥
दु इ घट तमति ऐकै होइ जाहीं । ऐस तमितहं , िबहूाँ ि अघाहीं॥

हं सा केति करतहं तजतम , खूाँ दतहं कुरितहं दोउ ।


सीउ पुकारर कै पार भा, जस चकई क तबछोउ॥9॥

आइ तसतसर ऋिु, िहााँ ि सीऊ । जहााँ माघ फािुि घर पीऊ॥


स रं सुपेिी मं तदर रािी । दिि चीर पतहरतहं बहु भााँिी॥
घर घर तसंघि होइ सुख जोजू । रहाि किहुाँ दु ुःख कर खोजू॥
जहाँ धति पुरुष सीउ ितहं िािा । जािहुाँ काि दे खख सर भािा॥
जाइ इं द्र सं कीन्ह पुकारा । हं पदमावति दे स तिसारा॥
एतह ऋिु सदा समि महाँ सेवा । अब दरसि िें मोर तबछोवा॥
अब हाँ तस कै सतस सूरतहं भेंटा । रहा जो सीउ बीच सो मे टा॥

भएउ इं द्र कर आयसु, बड सिाव यह सोइ ।


कबहुाँ काहु के पार भइ कबहुाँ काहु के होइ॥10॥
(1) चार = ढं ि, चाि, प्रकार । जेतह = तजसकी बद िि । स ह
ं = सामिे । पूजा = पूरा । च डोि = पािकी (के आसपास) । सोंधे = सुिंध ।
बंदि = तसंदूर या रोिी ।
(3) कटकई ==चढाई , सेिा का साज । कोरतह हे रा = कोिे से िाका । पैज खााँच ं = प्रतिज्ञा करिी हूाँ । ह ं = मु झसे । रही मतह = पृथ्वी पर
पडी रही । धजा =ध्वजा, पिाका । सहुाँ = सामिे ।
(4) मं ड ं = शोतभि करिा हूाँ । इहवााँ काम...तहय हरर = यहााँ कातमति के हृदय से काम-िाप को हरकर ठे ििा हूाँ । खाँधारू = स्कंधाबार,
िंबू छाविी । धरहररया = बीच-तबचाव करिे वािा ।
(5) सार = चादर । डासी = तबछाई हुई । दे वहरे = दे वमं तदर में ।
(6) झीिा = महीि । तसअर = शीिि । सोविार = शयिािार । ओहारा = परदे । सुख सेंिी = सुख से ।
(7) चाहति =मिचाही । बरसै जि सोिा = क ध ं े की चमक में पािी की बूाँदें सोिे की बूाँदों सी िििी हैं । कुसुंभी = कुसुम के (िाि) रं ि
का । चोिा = पहिावा । धति जािै ...पास = स्त्री समझिी है तक वह हषा और शीिि वास पवि में है पर वह उस तप्रय में है जो उसके
पास हैं
(8) िखि-भरा-सतस = आभूषणों के सतहि पद्माविी । फुि-बासू = फूिों से सुिंतधि
(9) धति ....सोहािा = शीि दोिों के बीच सोहािे के समाि है जो सोिे के दो टु कडों को तमिाकर एक करिा है । उन्ह िे खे = उिकी
समझ में । तबच हुाँ ि = बीच । खूदतह कुरितहं = उमं ि में क्रीडा करिे हैं । तबछोउ = तबछोह, तवयोि ।
(10) स रं = चादर । रािी = राि में । दिि = एक प्रकार का अाँ िरखा या चोिा । जोज =भोि । खोजू = तिशाि, तचह्न, पिा । सर = बाण,
िीर । जािहु काि = यहााँ इं द्र के पुत्र जयंि की ओर िक्ष्य है । आयसु भएउ = (इं द्र) िे कहा । बड सिाव यह सोइ = यह वही है जो
िोिों को बहुि सिाया करिा है ।
िािमिी-तवयोि-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी

िािमिी तचिउर-पथ हे रा । तपउ जो िए पुति कीन्ह ि फेरा ॥


िािर काहु िारर बस परा । िेइ मोर तपउ मोस ं हरा ॥
सुआ काि होइ िे इिा पीऊ । तपउ ितहं जाि, जाि बरु जीऊ ॥
भएउ िरायि बावि करा । राज करि राजा बति छरा ॥
करि पास िीन्हे उ कै छं दू । तबप्र रूप धरर तझितमि इं दू ॥
मािि भोि िोतपचंद भोिी । िे इ अपसवा जिं धर जोिी ॥
िे इिा कृस्नतह िरुड अिोपी । कतठि तबछोह, तजयतहं तकतम िोपी?॥

सारस जोरी क ि हरर, मारर तबयाधा िीन्ह ? ।


झुरर झुरर पींजर ह ं भई , तबरह काि मोतह दीन्ह ॥1॥

तपउ-तबयोि अस बाउर जीऊ । पतपहा तिति बोिै `तपउ पीऊ' ॥


अतधक काम दाधै सो रामा । हरर िे इ सुबा िएउ तपउ िामा ॥
तबरह बाि िस िाि ि डोिी । रकि पसीज, भींतज िइ चोिी ॥
सूखा तहया, हार भा भारी । हरे हरे प्राि िजतहं सब िारी ॥
खि एक आव पेट महाँ ! सााँसा । खितहं जाइ तजउ, होइ तिरासा ॥
पवि डोिावतहं , सीचतहं चोिा । पहर एक समु जतहं मु ख-बोिा ॥
प्राि पयाि होि को राखा ? । को सुिाव पीिम कै भाखा ?॥

आतज जो मारै तबरह कै, आति उठै िेतह िाति


हं स जो रहा सरीर मह, पााँख जरा, िा भाति ॥2॥

पाट-महादे इ ! तहये ि हारू । समु तझ जीऊ, तचि चेिु साँभारू ॥


भ रं काँवि साँि होइ मे रावा । साँ वरर िे ह मािति पहाँ आवा ॥
पतपहै स्वािी स ं जस प्रीिी । टे कु तपयास; बााँधु मि थीिी ॥
धरितहं जैस ििि स ं िे हा । पितट आव बरषा ऋिु मे हा ॥
पुति बसंि ऋिु आव िबेिी । सो रस, सो मधु कर, सो बेिी ॥
तजति अस जीव करतस िू बारी । यह िररबर पुति उतठतह साँवारी ॥
तदि दस तबिु जि सूखख तबधं सा । पुति सोई सरवर, सोइ हं सा ॥

तमितहं जो तबछु रे साजि, अं कस भेंतट अहं ि ।


िपति मृ ितसरा जे सहैं , िे अद्रा पिु हंि ॥3॥

चढा असाढ, ििि घि िाजा । साजा तबरह दुं द दि बाजा ॥


धू म, साम, धीरे घि धाए । सेि धजा बि-पााँति दे खाए ॥
खडि-बीजु चमकै चहुाँ ओरा । बुंद-बाि बरसतहं घि घोरा ॥
ओिई घटा आइ चहुाँ फेरी । कंि! उबारु मदि ह ं घेरी ॥
दादु र मोर कोतकिा, पीऊ । तिरै बीजु, घट रहै ि जीऊ ॥
पुष्प िखि तसर ऊपर आवा । ह ं तबिु िाह, माँ तदर को छााँवा ?॥
अद्रा िाि, िाति भुइाँ िे ई । मोतहं तबिु तपउ को आदर दे ई ?॥
तजन्ह घर कंिा िे सुखी, तिन्ह िार औ िबा ।
कंि तपयारा बातहरै , हम सुख भूिा सबा ॥4॥

सावि बरस मे ह अति पािी । भरति परी, ह ं तबरह झुरािी ॥


िाि पुिरबसु पीउ ि दे खा । भइ बाउरर , कहाँ कंि सरे खा ॥
रकि कै आाँ सु परतहं भुइाँ टू टी । रें ति चिी जस बीरबहूटी ॥
सखखन्ह रचा तपउ संि तहं डोिा । हररयारर भूतम, कुसुंभी चोिा ॥
तहय तहं डोि अस डोिै मोरा । तबरह झुिाइ दे इ झकझोरा ॥
बाट असूझ अथाह िाँभीरी । तजउ बाउर, भा तफरै भाँभीरी ॥
जि जि बूड जहााँ िति िाकी । मोरर िाव खेवक तबिु थाकी ॥

परबि समु द, अिम तबच, बीहड घि बिढााँख ।


तकतम कै भेंट ं कंि िुम्ह ? िा मोतह पााँव ि पााँख ॥5॥

भा भादों दू भर अति भारी । कैसे भ रं रै ति अाँ तधयारी ॥


मं तदर सूि तपउ अििै बसा । सेज िातििी तफरर तफरर डसा ॥
रह ं अकेति िहे एक पाटी । िै ि पसारर मर ं तहय फाटी ॥
चमक बीजु, घि िरतज िरासा । तबरह काि होइ जीउ िरासा ॥
बरसै मघा झकोरर झकोरर । मोर दु इ िै ि चुवैं जस ओरी ॥
धति सूखै भरे भाद ं माहााँ । अबहुाँ ि आएखन्ह सीचेखन्ह िाहााँ ॥
पुरबा िाि भूतम जि पूरी । आक जवास भई िस झूरी ॥

थि जि भरे अपूर सब, धरति ििि तमति एक ।


जति जोबि अविाह महाँ दे बूडि ,तपउ ! टे क ॥6॥

िाि कुवार, िीर जि घटा । अबहूाँ आउ, कंि! िि िटा ॥


िोतह दे खे, तपउ ! पिु है कया । उिरा चीिु , बहुरर करु मया ॥
तचत्रा तमत्र मीि कर आवा । पतपहा पीउ पुकारि पावा ॥
उआ अिस्त, हररि-घि िाजा । िुरय पिाति चढे रि राजा ॥
स्वाति-बूाँद चािक मु ख परे । समु द सीप मोिी सब भरे ॥
सरवर साँवरर हं स चति आए । सारस कुरितहं , खाँजि दे खाए ॥
भा परिास, कााँस बि फूिे । कंि ि तफरे , तबदे सतह भूिे ॥

तबरह-हखस्त िि सािै , घाय करै तचि चूर ।


वेति आइ, तपउ ! बाजहु, िाजहु होइ सदू र ॥7॥

कातिक सरद-चंद उतजयारी । जि सीिि, ह ं तबरहै जारी ॥


च दह करा चााँद परिासा । जिहुाँ जरैं सब धरति अकासा ॥
िम मि सेज करै अतिदाहू । सब कहाँ चंद, खएउ मोतहं राहू ॥
चहूाँ खंड िािै अाँ तधयारा । ज ं घर िाहीं कंि तपयारा ॥
अबहूाँ , तिठु र ! आउ एतह बारा । परब दे वारी होइ संसारा ॥
सखख झूमक िावैं अाँ ि मोरी । ह ं झुरावाँ , तबछु री मोरर जोरी ॥
जेतह घर तपउ सो मिोरथ पूजा । मो कहाँ तबरह, सवति दु ख दू जा ॥

सखख मािैं तिउहार सब िाइ, दे वारी खेति ।


ह ं का िाव ं कंि तबिु , रही छार तसर मे ति ॥8॥

अिहि तदवस घटा, तितस बाढी । दु भर रै ति, जाइ तकतम िाढी ? ॥


अब यतह तबरह तदवस भा रािी । जर ं तबरह जस दीपक बािी ॥
कााँपै तहया जिावै सीऊ । ि पै जाइ होइ साँि पीऊ ॥
घर घर चीर रचे सब काहू । मोर रूप-राँ ि िे इिा िाहू ॥
पितट ि बहुरा िा जो तबछोई । अबहुाँ तफरै , तफरै राँ ि सोई ॥
वज्-अतिति तबरतहि तहय जारा । सुिुति-सुिुति दिधै होइ छारा ॥
यह दु ख-दिध ि जािै कंिू । जोबि जिम करै भसमं िू ॥

तपउ स कहे हु साँदेसडा, हे भ रं ा ! हे काि !


सो धति तबरहै जरर मु ई, िेतह क धु वााँ हम्ह िाि ॥9॥

पूस जाड थर थर िि कााँपा । सुरुज जाइ िं का-तदतस चााँपा ॥


तबरह बाढ, दारुि भा सीऊ । काँतप काँतप मर ,ं िे इ हरर जीऊ ॥
कंि कहााँ िाि ं ओतह तहयरे । पंथ अपार, सूझ ितहं तियरे ॥
स रं सपेिी आवै जूडी । जािहु सेज तहवंचि बूडी ॥
चकई तितस तबछूरे तदि तमिा । ह ं तदि राति तबरह कोतकिा ॥
रै ति अकेति साथ ितहं सखी । कैसे तजयै तबछोही पखी ॥
तबरह सचाि भएउ िि जाडा । तजयि खाइ औ मु ए ि छााँडा ॥

रकि ढु रा मााँसू िरा, हाड भएउ सब संख ।


धति सारस होइ ररर मु ई, पाउ समे टतह पंख ॥10॥

िािेउ माघ, परै अब पािा । तबरह काि भएउ जड कािा ॥


पहि पहि िि रूई झााँपै । हहरर हहरर अतधक तहय कााँपै॥
आइ सूर होइ िपु, रे िाहा । िोतह तबिु जाड ि छूटै माहा ॥
एतह माह उपजै रसमू िू । िू सो भ रं , मोर जोबि फूिू ॥
िै ि चुवतहं जस महवट िीरू । िोतह तबिु अं ि िाि सर-चीरू ॥
टप टप बूाँद परतहं जस ओिा । तबरह पवि होइ मारै झोिा ॥
केतह क तसंिार, क पतहरु पटोरा । िीउ ि हार, रही होइ डोरा ॥

िुम तबिु कापै धति तहया, िि तििउर भा डोि ।


िेतह पर तबरह जराइ कै चहै उढावा झोि ॥11॥

फािुि पवि झकोरा बहा । च िुि सीउ जाइ ितहं सहा ॥


िि जस तपयर पाि भा मोरा । िेतह पर तबरह दे इ झकझोरा ॥
िररवर झरतह झरतहं बि ढाखा । भइ ओिं ि फूति फरर साखा ॥
करतहं बिसपति तहये हुिासू । मो कहाँ भा जि दू ि उदासू ॥
फािु करतहं सब चााँचरर जोरी । मोतह िि िाइ दीन्ह जस होरी ॥
ज पै पीउ जरि अस पावा । जरि-मरि मोतहं रोष ि आवा ॥
राति-तदवस सब यह तजउ मोरे । िि ं तिहोर कंि अब िोरे ॥

यह िि जारों छार कै, कह ं तक `पवि ! उडाव' ।


मकु िेतह मारि उतड परै कंि धरै जहाँ पाव ॥12॥

चैि बसंिा होइ धमारी । मोतहं िे खे संसार उजारी ॥


पंचम तबरह पंच सर मारे । रकि रोइ सिर ं बि ढारै ॥
बूतड उठे सब िररवर-पािा । भीतज मजीठ, टे सु बि रािा ॥
ब रे आम फरैं अब िािै । अबहुाँ आउ घर, कंि सभािे ! ॥
सहस भाव फूिीं बिसपिी । मधु कर घूमतहं साँवरर माििी ॥

मोकहाँ फूि भए सब कााँटे । तदखस्ट परि जस िाितहं चााँटे ॥


तफर जोबि भए िाराँ ि साखा । सुआ-तबरह अब जाइ ि राखा ॥

तघररि परे वा होइ, तपउ ! आउ बेति ,परु टू तट ।


िारर पराए हाथ है , िोह तबिु पाव ि छूतट ॥13॥

भा बैसाख िपति अति िािी । चोआ चीर चंदि भा आति ॥


सूरुज जरि तहवंचि िअका । तबरह -बजाति स ह ं रथ हााँका ॥
जरि बजातिति करु, तपउ ! छाहााँ । आइ बुझाउ, अाँ िारन्ह माहााँ ॥
िोतह दरसि होइ सीिि िारी । आइ आति िें करु फुिवारी ॥
िातिउाँ जरै , जरै जस भारू । तफर तफर भूंजेतस, िजेउाँ ि बारू ॥
सरवर-तहया घटि तिति जाई । टू क-टू क होइ कै तबहराई ॥
तबहरि तहया करहु, तपउ ! टे का । दीठी-दवाँिरा मे रवहु एका ॥

काँवि जो मािसर तबिु जि िएउ सुखाइ ।


कवहुाँ बेति तफरर पिु है ज तपउ सींचै आइ ॥14॥

जेठ जरै जि चिै िु वारा । उठतह बवंडर परतहं अाँ िारा ॥


तबरह िातज हिु वंि होइ जािा । िं का-दाह करै ििु िािा ॥
चाररहु पवि झकोरे आिी । िं का दातह पिं का िािी ॥
दतह भइ साम िदी कातिं दी । तबरह क आति कतठि अति मंदी ॥
उठै आति औ आवै आाँ धी । िै ि ि सूझ, मर दु ुःख-बााँधी ॥
अधजर भइउ, मााँसु ििु सूखा । िािेउ तबरह काि होइ भूखा ॥
मााँसु खाइ सब हाडन्ह िािै । अबहुाँ आउ; आवि सुति भािै ॥

तिरर, समु द्र, सतस, मे घ, रतब सतह ि सकतहं वह आति ।


मु हमद सिी सरातहए, जरै जो अस तपउ िाति ॥15॥

िपै िाति अब जेठ-असाढी । मोतह तपउतबिु छाजति भइ िाढी ॥


िि तििउर भा, झूर ं खरी । भइ बरखा, दु ख आिरर जरी ॥
बंध िातहं औ कंध ि कोई । बाि ि आव कह ं का रोई ?॥
सााँतठ िातहं ,जि बाि को पूछा ?। तबिु तजउ तफरै मूाँ ज-ििु छूाँछा ॥
भइ दु हेिी टे क तबहूिी । थााँभ िातह उतठ सकै ि थूिी ॥
बरसै मे ह, चुवतहं िैिाहा । छपर छपर होइ रतह तबिु िाहा ॥
कोर ं कहााँ ठाट िव साजा ?। िु म तबिु कंि ि छाजि छाजा ॥

अबहूाँ मया-तदस्ट करर, िाह तिठु र ! घर आउ ।


माँ तदर उजार होि है , िव कै आई बसाउ ॥16॥

रोइ िाँवाए बारह मासा । सहस सहस दु ख एक एक सााँसा ॥


तिि तिि बरख बरख परर जाई । पहर पहर जुि जुि ि सेराई ॥
सो ितहं आवै रूप मु रारी । जास ं पाव सोहाि सुिारी ॥
सााँझ भए झुरु झुरर पथ हे रा । क ति सो घरी करै तपउ फेरा ?॥
दतह कोइिा भइ कंि सिे हा । िोिा मााँसु रही ितहं दे हा ॥
रकि ि रहा, तबरह िि िरा । रिी रिी होइ िै िन्ह ढरा ॥
पाय िाति जोरै धति हाथा । जारा िे ह, जुडावहु, िाथा ॥

बरस तदवस धति रोइ कै, हारर परी तचि झंखख ।


मािु ष घर घर बतझ कै, बूझै तिसरी पंखख ॥17॥

भई पुछार, िीन्ह बिवासू । बै ररति सवति दीन्ह तचिवााँसू ॥


होइ खर बाि तबरह ििु िािा । ज तपउ आवै उडतह ि कािा ॥
हाररि भई पंथ मैं सेवा । अब िहाँ पठव ं क ि परे वा ?॥
ध री पंडुक कहु तपउ िाऊाँ । ज ं तचि रोख ि दू सर ठाऊाँ ॥
जातह बया होइ तपउ काँठ िवा । करै मे राव सोइ ि रवा ॥
कोइि भई पुकारति रही । महरर पुकारै `िे इ िे इ दही'
पेड तििोरी औ जि हं सा । तहरदय पैतठ तबरह कटिं सा ॥

जेतह पखी के तिअर होइ कहै तबरह कै बाि ।


सोई पं खी जाइ जरर, िररवर होइ तिपाि ॥18॥

कुहुतक कुहुतक जस कोइि रोई । रकि-आाँ सु घुाँघुची बि बोई ॥


भइ करमु खी िै ि िि रािी । को सेराव ? तबरहा-दु ख िािी ॥
जहाँ जहाँ ठातढ होइ विबासी । िहाँ िहाँ होइ घुाँ घुतच कै रासी ॥
बूाँद बूाँद महाँ जािहुाँ जीऊ । िुंजा िूाँतज करै `तपउ पीऊ '॥
िेतह दु ख भए परास तिपािे । िोहू बुतड उठे होइ रािे ॥
रािे तबंब भीतज िेतह िोहू । परवर पाक, फाट तहय िोहूाँ ॥
दै ख ं जहााँ होइ सोइ रािा । जहााँ सो रिि कहै को बािा ? ॥

ितहं पावस ओतह दे सरा:ितहं हे वंि बसंि ।


िा कोतकि ि पपीहरा, जेतह सु ति आवै कंि ॥19॥

(1) पथ हे रा = रास्ता दे खिी है । िािर = िायक । बावाँि करा = वामि रूप । छरा = छिा । करि = राजा कणा । छं दू = छि-छं दू ,
धू त्तािा । तझितमि = कवच (सीकडों का) । अपसवा चि तदया । पींजर = पंजर, ठटरी ।
(2) बाउर = बाविा । हरे हरे =धीरे धीरे । िारी = िाडी । चोिा = शरीर,पहर । एक...बोिा = इििा अस्पि बोि तिकाििा है तक मििब
समझिे में पहरों िि जािे हैं । हं स = हं स और जीव ।
(3) पाट महादे व = पट्ट महादे वी, पटरािी मे रावा = तमिाप । टे कु तपयास = प्यास सह । बााँधु मि थीिी = मि में खस्थरिा बााँध । तजति = मि
। पिु हंि = पल्लतवि होिे हैं , पिपिे हैं ।
(4) िाजा = िरजा । धू म = धू मिे रं ि के । ध रे = धवि, सफेद । ओिई = झुकी । िे ई िाति = खेिों में िे वा ििा , खेि पािी से भर िए
। िार = ि रव,अतभमाि ।
(5) मे ह = मे घ । भरति परी = खेिों में भरिी ििी । सरे ख = चिुर भाँभीरी = एक प्रकार का पतिंिा जो संध्या के समय बरसाि में आकाश
में उडिा तदखाई पडिा है ।
(6)दू भर = भारी कतठि । भर ं = काटू ाँ , तबिाऊाँ; । अििै = अन्यत्र । िरासा = डरािा है ओरी = ओििी । पुरबा = एक िक्षत्र ।
(7) िटा = तशतथि हुआ । पिु है = पिपिी है । उिरा चीिु = तचत्त से उिरी या भूिी बाि ध्याि में िा । तचत्रा = एक िक्षत्र । िुरय =
घोडा । पिाति = जीि कसकर । घाय = घाव । बाजु = िडो । िाजहु = िरजो । सदू र = शादू ा ि, तसंह ।
(8) झुमक = मिोरा झूमक िाम का िीि । झुरावाँ = सूखिी हूाँ । जिम = जीवि ।
(9) दू भर = भारी, कतठि । िाहू =िाथ । सो घति तवरहै ...िाि = अथााि् वही धु आाँ िििे के कारण मािों भ रं े और क ए कािे हो िए ।
(10) िं का तदतस = दतक्षण तदशा को । चााँपा जाइ = दबा जािा है । कोतकिा = जिकर कोयि (कािी) हो िई । सचाि = बाज । जाडा =
जाडे में । ररर मु ई = रटकर मर िई । पीउ ...पंख = तप्रय आकर अब पर समे टे ।
(11) जडकािा = जाडे के म तसम में । माहा = माघ से । महवट = मघवट, माघ की झडी । चीरू = चीर, घाव । सर =बाण । झोिा मारिा
= बाि के प्रकोप से अं ि का सुन्न हो जािा । केतह क तसंिार ? = तकसका श्रृंिार ? कहााँ का श्रृंिार करिा ? पटोरा = एक प्रकार का रे शमी
कपडा । डोरा = क्षीण होकर डोरे के समाि पििी । तििउर = ििके का समू ह । झोि = राख , भस्म;
(12) ओिि = झुकी हुई । तिहोर िि ं = यह शरीर िुम्हारे तिहोरे िि जाय, िुम्हारे काम आ जाय ।
(13) पंचम = कोतकि का स्वर या पंचम राि । सिर ं = सारे । बूतड उठे ...पािा = िए पत्तों में ििाई मािों रक्त में भीििे के कारण है
। तघररि परे वा = तिरहबाज कबूिर या क तडल्ला पक्षी । िारर = िाडी, स्त्री ।
(14) तहं वचि िाका = उत्तरायण हुआ । तबरह-बजाति...हााँका = सूया िो सामिे से हटकर उत्तर की ओर खखसका हुआ चििा है , उसके स्थाि
पर तवरहाति िे सीधे मे री ओर रथ हााँका भारू =भाड । सरवर-तहया ....िािों का पािी जब सूखिे िििा हथ िब पािी सूखे हुए स्थाि में
बहुि सी दरारें पड जािी हैं तजससे बहुि से खािे कटे तदखाई पडिे हैं । दवाँिरा = वषाा के आरम्भ की झडी । मे रवहु एका = दरारें पडिे
के कारण जो खंड खंड हो िए हैं उन्हें तमिाकर तफर एक कर दो । बडी सुंदर उखक्त है ।
(15) िु वार = िू । िातज = िरज कर । पिं का = पिं ि । मं दी = धीरे धीरे जिािे वािी ।
(16) तििउर = तििको का ठाट । झूर ं = सूखिी हूाँ । बंध = ठाट बााँधिे के तिये रस्सी । कंध ि कोई = अपिे ऊपर भी कोई िहीं है ।
सााँतठ िातठ = पूाँजी िि हुई । मूाँ ज ििु छूाँछा = तबिा बंधि की मूाँ ज के ऐसा शरीर । थााँम = खंभा । थूिी = िकडी की टे क । छपर छपर
= िराबोर । कोर ं = छाजि की ठाट में ििे बााँस या िकडी । िव कै = िए तसर से
(17) सहस सहस सााँस = एक एक दीघा तिश्वास सहस्त्रों दु खों से भरा था, तफर बारह महीिे तकििे दु ुःखों से भरे बीिे होंिे । तिि
तिि....परर जाई = तिि भर समय एक एक वषा के इििा पड जािा है । सेराई = समाप्त होिा है । सोहाि = स भाग्य, सोहािा । सुिारी
= वह स्त्री , सुिाररि । झुरर = सूखकर ।
(18) पुछार = पूछिे वािी, मयूर । तचिवााँस = तचतडया फाँसािे का एक फंदा । कािा = खस्त्रयााँ बै ठै क वे को दे खकर कहिी हैं तक ` तप्रय आिा
हो िो उड जा' ।हाररि थकी हुई, एक पक्षी । ध री = सफेद, एक तचतडया । पंडुक = पीिी , एक तचतडया । तचि रोख = हृदय में रोष, एक
पक्षी । जातह बया = साँदेश िे कर जा और तफर आ । काँठिवा = ििे में ििािे वािा । ि रवा = ि रवयुक्त, बडा; ि रा पक्षी । दही = दतध,
जिाई । पेड = पेड पर । जि = जि में ।तििोरी = िेतिया मै िा । कटिं सा = काटिा और िि करिा है , (ख) कटिास या िीिकंठ ।
तिपाि = पत्रहीि ।
(19) घुाँघची = िुंजा । सेराव = ठं डा करे । तबंब = तबंबाफि ।
िािमिी-संदेश-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी

तफरर तफरर रोव, कोइ िहीं डोिा । आधी राति तबहं िम बोिा ॥
"िू तफरर तफरर दाहै सब पााँखी । केतह दु ख रै ति ि िावतस आाँ खी"
िािमिी कारि कै रोई । का सोवै जो कंि-तबछोई ॥
मितचि हुाँ िे ि उिरै मोरे । िैि क जि चुतक रहा ि मोरे ॥
कोइ ि जाइ ओतह तसंििदीपा । जेतह सेवाति कहाँ िै िा सीपा ॥
जोिी होइ तिसरा सो िाहू । िब हुाँ ि कहा साँदेस ि काहू ॥
तिति पूछ ं सब जोिी जंिम । कोइ ि कहै तिज बाि, तबहं िम !॥

चाररउ चक्र उजार भए, कोइ ि साँदेसा टे क ।


कह ं तबरह दु ख आपि, बैतठ सुिहु दाँ ड एक ॥1॥

िास ं दु ख कतहए, हो बीरा । जे तहं सुति कै िािै पर पीरा ॥


को होइ तभउ अाँ िवे पर -दाहा । को तसंघि पहुाँ चावै चाहा ?॥
जहाँ वााँ कंि िए होइ जोिी । ह ं तकंिरी भइ झूरर तबयोिी ॥
वै तसंिी पूरी, िुरु भेंटा । ह ं भइ भसम, ि आइ समे टा ॥
कथा जो कहै आइ ओतह केरी । पााँवर होउाँ , जिम भरर चेरी ॥
ओतह के िुि साँवरि भइ मािा । अबहुाँ ि बहुरा उतडिा छािा ॥
तबरह िुरू, खप्पर कै हीया । पवि अधार रहै सो जीया ॥

हाड भए सब तकंिी, िसैं भई सब िााँति ।


रोवाँ रोवाँ िें धु ति उठैं , कह ं तबथा केतह भााँति ? ॥2॥

पदमावति स ं कहे हु, तबहं िम । कंि िोभाइ रही करर संिम ॥


िू घर घरति भई तपउ-हरिा । मोतह िि दीन्हे तस जप औ बरिा ॥
रावट किक सो िोकहाँ भएऊ । रावट िं क मोतहं कै िएऊ ॥
िोतह चैि सुख तमिै सरीरा । मो कहाँ तहये दुं द दु ख पूरा ॥
हमहुाँ तबयाही संि ओतह पीऊ । आपुतह पाइ जािु पर-जीऊ ॥
अबहुाँ मया करु, करु तजउ फेरा । मोतहं तजयाउ कंि दे इ मे रा ॥
मोतहं भोि स ं काज ि बारी । स हं दीतठ कै चाहिहरी ॥

सवति ि होतह िू बैररति, मोर कंि जेहतह हाथ ।


आति तमिाव एक बेर, िोर पााँय मोर माथ ॥3॥

रििसेि कै माइ सुरसिी । िोपीचंद जतस मै िाविी ॥


आाँ धरर बूतढ होइ दु ख रोवा । जीवि रिि कहााँ दहुाँ खोवा ॥
जीवि अहा िीन्ह सो काढी । भइ तविु टे क, करै को ठाढी ?॥
तबिु जीवि भइ आस पराई । कहााँ सो पूि खंभ होइ आई ॥
िै ि दीठ ितहं तदया बराहीं । घर अाँ तधयार पूि ज िाहीं ॥
को रे चिै सरवि के ठााँऊ । टे क दे ह औ टे कै पाऊाँ ॥
िुम सरवि होइ कााँवरर सजा । डार िाइ अब काहे िजा ?॥

"सरवि! सरवि!" ररर मु ई मािा कााँवरर िाति ।


िुम्ह तबिु पाति ि पावैं, दसरथ िावै आति ॥4॥

िे इ सो साँदेश तबहं िम चिा । उठी आति सिर ं तसंििा ॥


तबरह-बजाति बीच को ठे घा ?। धू म सो उठा साम भए मे घा ॥
भररिा ििि िू क अस छूटे । होइ सब िखि आइ भुइाँ टू टे ॥
जहाँ जहाँ भूतम जरी भा रे हू । तबरह के दाघ भई जिु खेहू ॥
राहु केिु, जब िं का जारी । तचििो उडी चााँद महाँ परी ॥
जाइ तबहं िम समु द डफारा । जरे मच्छ पािी भा खारा ॥
दाधे बि बीहड, जड, सीपा । जाइ तिअर भा तसंघिदीपा ॥

समु द िीर एक िररवर, जाइ बैठ िेतह रूख ।


ज िति कहा सदे स ितह, ितहं तपयास, ितहं भूख ॥5॥

रििसेि बि करि अहे रा । कीन्ह ओही िररवर-िर फेरा ॥


सीिि तबररछ समु द के िीरा । अति उिंि ओ छााँह िाँभीरा ॥
िुरय बााँतध कै बैठ अकेिा । साथी और करतहं सब खेिा ॥
दे खि तफरै सो िररवर-साखा । िाि सुिै पंखखन्ह कै भाखा ॥
पंखखि महाँ सो तबहं िम अहा । िािमिी जास ं दु ख कहा ॥
पूछतहं सबै तबहं िम िामा । अह मीि! काहै िुम सामा ?॥
कहे तस "मीि! मासक दु इ भए । जंबूदीप िहााँ हम िए ॥

ििर एक हम दे खा, िढ तचिउर ओतह िााँव ।


सो दु ख कह ं कहााँ िति, हम दाढे िेतहं ठावाँ ॥6॥

जोिी होइ तिसरा सो राजा । सू ि ििर जािहु धुं ध बाजा ॥


िािमिी है िाकरर रािी । जरी तबरह, भइ कोइि-बािी ॥
अब िति जरर भइ होइतह छारा । कही ि जाइ तबरह कै झारा ॥
तहया फाट वहव जबतहं कूकी । परै आाँ सु सब होइ होइ िू की ॥
चहूाँ खंड तछटकी वह आिी । धरिी जरति ििि कहाँ िािी ॥
तबरह-दवा को जरि बुझावा ?। जेतह िािै सो स ह ं ैं धावा ॥
ह ं पुति िहााँ सो दाढै िािा । िि भा साम, जीउ िे इ भािा ॥

का िुम हाँ सहु िरब कै, करहु समु द महाँ केति ।


मति ओतह तबरहा बस परै , दहै अतिति जो मे ति"॥7॥

सुति तचिउर-राजा मि िुिा । तबतद-साँदेस मैं कास ं सुिा ॥


को िररवरर पर पंखख-बे खा । िािमति कर कहै साँदेसा ?॥
को िुाँ मीि मि-तचत्त-बसेरु । दे व तक दािव पवि पखेरू ?॥
ब्रह्म तबस्नु बाचा है िोही । सो तिज बाि कहै िू मोही ॥
कहााँ सो िािमिी िैं दे खी ।कहे तस तबरह जस मितहं तबसेखी ॥
ह ं सोई राजा भा जोिी । जे तह कारि वह ऐतस तबयोिी ॥
जस िूाँ पंखख महूाँ तदि भर ं । चाह ं कबतह जाइ उतड पर ं ॥
पंखख! आाँ खख िेतह मारि िािी सदा रहातहं ।
कोइ ि साँदेसी आवतहं , िेतह क साँदेश कहााँतहं ॥8॥

पूछतस कहा साँदेस-तबयोिू । जोिी भए ि जाितस भोिू ॥


दतहिे संख ि तसंिी पूरै । बाएाँ पूरर राति तदि झूरै ॥
िेति बैि जस बावाँ तफराई । परा भाँवर महाँ सो ि तिराई ॥
िुरय, िाव, दतहिे रथ हााँका । बाएाँ तफरै कोहााँर क चाका ॥
िोतहं अस िाहीं पं खख भुिािा । उडे सो आव जिि महाँ जािा ॥
एक दीप का आएउाँ िोरे । सब संसार पााँय-िर मोरे ॥
दतहिे तफरै सो अस उतजयारा । जस जि चााँद सुरुज मतियारा ॥

मु हमद बाईं तदतस िजा, एक स्रवि, एक आाँ खख ।


जब िें दातहि होइ तमिा बोि पपीहा पााँखख ॥9॥

ह ं धु व अचि स ं दातहति िावा । तफर सुमरु तचिुउर-िढ आवा ॥


दे खेउाँ िोरे माँ तदर घमोई । मािु िोतह आाँ धरर भइ रोई ॥
जस सरवि तबिु अंधी अं धा । िस ररर मु ई, िोतह तचि बाँधा ॥
कहे तस मर ,ं को कााँवरर िे इ ?। पू ि िातहं , पािी को िे ई ?॥
िई तपयास िाति िेतह साथा । पाति दीन्ह दशरथ के हाथा ॥
पाति ि तपये, आति पै चाहा । िोतह अस सुि जिमे अस िाहा ॥
होइ भिीरथ करु िहाँ फेरा । जातह सवार, मरि कै बेरा ॥

िू सपूि मािा कर , अस परदे स ि िे तह ।


अब िाईं मु इ होइतह, मु ए जाइ िति िेतह ॥10॥

िािमति दु ख तबरह अपारा । धरिी सरि जरै िेतह झारा ॥


ििर कोट घर बाहर सूिा । ि तज होइ घर पुरुष-तबहूिा ॥
िू कााँवरू परा बस टोिा । भूिा जोि, छरा िोतह िोिा ॥
वह िोतह कारि मरर भइ छारा । रही िाि होइ पवि अधारा ॥
कहुाँ बोितह `मो कहाँ िे इ खाहू'। मााँसु ि, काया रचै जो काहू ॥
तबरह मयूर, िाि वह िारी । िू मजार करु बेति िोहारी ॥
मााँसु तिरा, पााँजर होइ परी । जोिी ! अबहुाँ पहुाँ चु िे इ जरी ॥

दे खख तबरह-दु ख िाकर मैं सो िजा बिवास ।


आएउाँ भाति समु द्रिट िबहुाँ ि छाडै पास ॥11॥

अस परजरा तबरह कर िठा । मे घ साम भए धूम जो उठा ॥


दाढा राहु, केिु िा दाधा । सूरज जरा, चााँद जरर आधा ॥
औ सब िखि िराईं जरहीं । टू टतहं िू क धरति महाँ परहीं ॥
जरै सो धरिी ठावतहं ठाऊाँ । दहतक पिास जरै िेतह दाऊ ॥
तबरह-सााँस िस तिकसै झारा । दतह दतह परबि होतहं अाँ िारा ॥
भाँवर पिंि जरैं औ िािा । कोइि, भुजइि, डोमा कािा ॥
बि-पंखी सब तजउ िे इ उडे । जि महाँ मच्छ दु खी होइ बुडे ॥

महूाँ जरि िहाँ तिकसा, समु द बुझाएउाँ आइ ।


समु द, पाि जरर खार भा, धुाँ आ रहा जि छाइ ॥12॥

राजै कहा, रे सरि साँदेसी । उिरर आउ, मोतहं तमिु , रे तबदसी ॥


पाय टे तक िोतह िाय ं तहयरे । प्रे म-साँदेस कहहु होइ तियरे ॥
कहा तबहं िम जो बिवासी । "तकि तिरही िें होइ उदासी ?॥
"जेतह िरवर-िर िुम अस कोऊ । कोतकि काि बराबर दोऊ ॥
"धरिी महाँ तवष-चारा परा । हाररि जाति भूतम पररहरा ॥
"तफर ं तबयोिी डारतह डारा । कर ं चिै कहाँ पंख साँवारा ॥
"तजयै क घरी घटति तिति जाहीं । सााँझतहं जीउ रहै , तदि िाहीं ॥

ज ितह तफर ं मु कुि होइ पर ं ि पींजर मााँह ।


जाउ बेति थि आपिे , है जेतह बीच तिबाह"" ॥13॥

कतह संदेस तबहं िम चिा । आति िाति सिर ं तसघिा ॥


घरी एक राजा िोहराबा । भा अिोप, पुति तदखस्ट ि आवा ॥
पंखी िावाँ ि दे खा पााँखा । राजा होइ तफरा कै सााँखा ॥
जस है रि वह पंखख हे रािा । तदि एक हमहूाँ करब पयािा ॥
ज िति प्राि तपंड एक ठाऊाँ । एक बार तचिउर िढ जाऊाँ ॥
आवा भाँवर मं तदर महाँ केवा । जीउ साथ िे इ िएउ परे वा ॥
िि तसंघि, मि तचिउर बसा । तजउ तबसाँभर िातिति तजतम डसा ॥

जेति िारर हाँ तस पूछतहं अतमय-बचि तजउ-िंि ।


रस उिरा, तबष चतढ रहा, िा ओतह िंि ि मं ि ॥14॥

बररस एक िेतह तसंिि भएऊ । भ ि तबिास करि तदि ियऊ ॥


भा उदास ज सुिा साँदेसू । साँवरर चिा मि तचिउर दे सू ॥
काँवि उदास जो दे खा भाँवरा । तथर ि रहै अब मािति साँवरा ॥
जोिी, भवरा, पवि परावा । तकि सो रहै जो तचत्त उठावा ?॥
ज ं पै काढ दे इ तजउ कोई । जोिी भाँवर ि आपि होई ॥
िजा कवि मािति तहय घािी । अब तकि तथर आछै अति , आिी ॥
िंध्रबसेि आव सुति बारा । कस तजउ भएउ उदास िुम्हारा ?॥

मैं िुम्हही तजउ िावा, दीन्ह िै ि महाँ बास ।


ज िुम होहु उदास ि यह काकर कतबिास ? ॥15॥

(1) कारि कै = करुणा करके (अवध) िब हुाँ ि = िब से । टे क = ऊपर िे िा है ।


(2) बीरा = भाई । तभउाँ = भीम । अाँ िवै = अं ि पर सहे । चाहा = खबर । पााँवरर = जूिी ।
(3) घर = अपिे घर में ही । घरति = घर वािी, िृतहणी । रावट = महि । िं क =जििी हुई िंका । चाहिहारी = दे खिे वािी ।
(4) खंभ = सहारा । बराहीं जििे हैं । सरवि = `श्रमणकुमार' तजसकी कथा उत्तरापथ में घर घर प्रतसद्ध है । कााँवरर = बााँस के डं डे के दोिों
छोरों पर बाँधे हुए झाबे, तजिमे िीथायात्री िोि िंिाजि आतद िे कर चिा करिे हैं । (सरवि अपिे मािा = तपिा को कााँवरर में बैठाकर ढोया
करिे थे )। ठे घा = तटका, ठहरा । डफारा = तचल्लाया ।
(7) धुाँ ध बाजा = धुं ध या अं धकार छाया । बािी = वणा की । भइ होइतह = हुई होिी । झार = ज्वािा । िू की = िु क । दवा = दावाति ।
(8) बसेरू = वसिे वािा । तदि भर ं = तदि तबिािा हूाँ । महूाँ = मैं भी ।
(9) दतहिे संख = दतक्षणाविा शंख िहीं फूाँकिा । झूरै = सूखिा है । तिराई = पािी के ऊपर आिा है । िोतहं अस...भुिािा = पक्षी िेरे
ऐसा िहीं भूिे हैं , वे जाििे हैं तक हम उडिे के तिए इस संसार में आए हैं । मतियार = र िक, चमकिा हुआ । मु हमद बााँई...आाँ खख =
मु म्मद कतव िे बाईं ओर आाँ ख और काि करिा छोड तदया (जायसी कािे थे भी) अथााि् वाम मािा छोडकर दतक्षण मािा का अिु सरण तकया
। बोि = कहिािा है ।
(10) दातहि िावा = प्रदतक्षणा की । घमोई = सत्ािासी या भाँडभााँढ िामक कंटीिा प धा जो खंडहरों या उजडे मकािों में प्रायुः उििा है ।
सबार = जल्दी ।
(11) ि तज = ि, ईश्वर ि करे (अवध) । कााँवरू =कामरूप में जो जादू के तिये प्रतसद्ध है । िोिा = िोिा चमारी जो जादू में एक थी ।
मजार = तबल्ली । जरी = जडी-बूटी ।
(12) परजरा = प्रज्वतिि हुआ, जिा । िठा = िट्ठा, ढे र । दाऊाँ = दवाति । भुजइि = भुजंिा िाम का कािा पक्षी । डोमा कािा = बडा क वा
जो सवाांि कािा होिा है । सरि साँदेसी = स्विा से (ऊपर से) साँदेसा कहिे वािा । तिरही = िृ ह । हाररि...पररहरा = कहिे हैं , हाररि भूतम
पर पैर िहीं रखिा; चंिुि में सदा िकडी तिए रहिा है तजससे पै र भूतम पर पैर ि पडे । चिै कहाँ = चििे के तिए ।
(14) िोहरावा = पुकारा । सााँखा =शंका, तचंिा । तपंड = शरीर । मं तदर महाँ केवा = कमि (पद्माविी) के घर में । तबसाँभर = बेसाँभाि, सुध-
बुध भूिा हुआ । जेति िारर = तजििी खस्त्रयााँ हैं सब तजउ िंि = जी की बाि (ित्त्व) ।
(15) परावा = पराए, अपिे िहीं । तचत्त उठावा = जािे का संकल्प या तवचार तकया । तहय घािी = हृदय में िाकर ।
रत्नसेि-तबदाई-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी

रििसेि तबिवा कर जोरी । अस्तुति जोि जीभ ितहं मोरी ॥


सहस जीभ ज होतहं , िोसाईं । कतह ि जाइ अस्तु ति जहाँ िाईं ॥
कााँच रहा िुम कंचि कीन्हा । िब भा रिि जोति िुम दीन्हा ॥
िंि जो तिरमि-िीर कुिीिा । िार तमिे जि होइ मिीिा ॥
पाति समु द्र तमिा होइ सोिी । पाप हरा, तिरमि भा मोिी ॥
िस ह ं अहा मिीिी किा । तमिा आइ िुम्ह, भा तिरमिा ॥
िुम्ह मि आवा तसंघिपुरी । िुम्ह िैं चढा राज औ कुरी ॥

साि समु द िुम राजा, सरर ि पाव कोइ खाट ।


सबै आइ तसर िावतहं जहाँ िुम साजा पाट ॥1॥

अब तबििी एक कर ,ं िोसाईं । ि िति कया जीउ जब िाईं ॥


आवा आजु हमार परे वा । पािी आति दीन्ह मोतहं दे वा !॥
राज-काज औ भुइाँ उपराहीं । सत्रु भाइ सम कोई िाहीं ॥
आपि आपि करतहं सो िीका । एकतहं मारर एक चह टीका ॥
भए अमावस िखिन्ह राजू । हम्ह कै चंद चिावहु आजू ॥
राज हमार जहााँ चति आवा । तिखख पठइति अब होइ परावा ॥
उहााँ तियर तदल्ली सुििािू । होइ जो भ र उठे तजतम भािू ॥

रहहु अमर मतह ििि िति िुम मतह िे इ हम्ह आउ ॥


सीस हमार िहााँ तिति जहााँ िुम्हारा पाउ ॥2॥

राजसभा पुति उठी सवारी । 'अिु , तबििी राखखय पति भारी ॥


भाइन्ह माहाँ होइ तजति फूटी । घर के भेद िंक अस टू टी ॥
तबरवा िाइि सूखै दीजै । पावै पाति तदखस्ट सो कीजै ॥
आति रखा िुम दीपक िे सी । पै ि रहै पाहुि परदे सी ॥
जाकर राज जहााँ चति आवा । उहै दे स पै िाकहाँ भावा ॥
हम िुम िैि घाति कै राखे ।ऐतस भाख एतह जीभ िभाखे ॥
तदवस दे हु सह कुसि तसधावतहं । दीरघ आइ होइ, पुति आवतहं "॥

सबतह तवचार परा अस, भा िविे कर साज ।


तसखद्ध ििे स मिावतहं , तबतध पुरवहु सब काज ॥3॥

तबिय करै पदमावति बारी । "ह ं तपउ ! जैसी कुंद िे वारी ॥


मोतह अतस कहााँ सो मािति बेिी । कदम सेविी चंप चमे िी ॥
ह तसंिारहार सज िािा ।पुहुप किी अस तहरदय िािा ॥
ह ं सो बसंि कर ं तिति पूजा । कुसुम िुिाि सुदरसि कूजा ॥
बकुचि तबिव ं रोस ि मोही । सुिु बकाउ ितज चाहु ि जूही ॥
िािसेर जो है मि िोरे । पूतज ि सकै बोि सरर मोरे ॥
होइ सदबरि िीन्ह मैं सरिा । आिे करु जो, कंि ! िोतह करिा "॥

केि बारर समु झावै , भाँवर ि कााँटे बेध ।


कहै मर ं पै तचिउर, जज्ञ कर ं असुमेध ॥4॥

िवि-चार पदमावति सुिा । उठा धसतक तजउ औ तसर धु िा ॥


िहबर िैि आए भरर आाँ सू । छााँडब यह तसंघि कतबिासू ॥
छााँतडउाँ िै हर, चतिउाँ तबछ ई । एतह रे तदवस कहाँ ह ं िब रोई ॥
छााँतडउाँ आपि सखी सहे िी । दू रर िवि, ितज चतिउाँ अकेिी ॥
जहााँ ि रहि भएउ तबिु चािू । होितह कस ि िहााँ भा कािू ॥
िै हर आइ काह सुख दे खा ?। जिु होइिा सपिे कर िे खा ॥
राखि बारर सो तपिा तिछोहा । तकि तबयातह अस दीन्ह तबछोहा ?॥

तहये आइ दु ख बाजा, तजउ जािहु िा छें तक ।


मि िेवाि कै रोवै हर मं तदर कर टे तक ॥5॥

पुति पदमावति सखी बोिाई । सु ति कै िवि तमिै सब आईं ॥


तमिहु, सखी! हम िहाँ वााँ जाहीं । जहााँ जाइ पु ति आउब िाहीं ॥
साि समु द्र पार वह दे सा । तकि रे तमिि, तकि आव साँदेसा ॥
अिम पंथ परदे स तसधारी । ि जि ं कुसि तक तबथा हमारी ॥
तपिै ि छोह कीन्ह तहय माहााँ । िहाँ को हमतहं राख ितह बाहााँ ? ॥
हम िुम तमति एकै साँि खेिा । अं ि तबछोह आति तिउ मे िा ॥
िुम्ह अस तहि संघिी तपयारी ।तजयि जीउ ितहं कर ं तििारी ॥

कंि चिाई का कर ं आयसु जाइ ि मे तट ।


पुति हम तमितहं तक िा तमितहं , िे हु सहे िी भेंतट ॥6॥

धति रोवि रोवतहं सब सखी । हम िुम्ह दे खख आपु कहाँ झाँखी ॥


िुम्ह ऐसी ज रहै ि पाई । पुति हम काह जो आतहं पराई ॥
आतद अं ि जो तपिा हमारा । ओहु ि यह तदि तहये तबचारा ॥
छोह ि कीन्ह तिछोही ओहू । का हम्ह दोष िाि एक िोहूाँ ॥
मकु िोहूाँ कर तहया तचरािा । पै सो तपिा ि तहये छोहािा ॥
औ हम दे खा सखी सरे खा । एतह िै हर पाहुि के िे खा ॥
िब िेइ िै हर िाहीं चाहा । ज ससुरारर होइ अति िाहा ॥
चािि कहाँ हम अविरीं, चिि तसखा ितहं आय ।
अब सो चिि चिावै, क राखै ितह पाय ?॥7॥

िुम बारी, तपउ दु हुाँ जि राजा । िरब तकरोध ओतह पै छाजा ॥


सब फर फूि ओतह के साखा । चहै सो िूरै, चाहै राखा ॥
आयसु तिहे रतहहु तिति हाथा । सेवा कररहु िाइ भुइाँ माथा ॥
बर पीपर तसर उभ जो कीन्हा । पाकरर तिन्हतहं छीि फर दीन्हा ॥
ब ररं जो प तढ सीस भुइाँ िावा । बड फि सुफि ओतह जि पावा ॥
आम जो फरर कै िवै िराहीं । फि अमृ ि भा सब उपराहीं ॥
सोइ तपयारी तपयतह तपरीिी । रहै जो आयसु सेवा जीिी ॥

पत्रा कातढ िवि तदि दे खतह, क ि तदवस दहुाँ चाि ।


तदसासूि चक जोतििी स ह ं ि चतिए, काि ॥8॥

अतदि सूक पखच्छउाँ तदतस राहू । बीफै दखखि िं क-तदतस दाहू ॥


सोम सिीचर पुरुब ि चािू । मंिि बुद्ध उिर तदतस कािू ॥
अवतस चिा चाहै ज कोई । ओषद कह ,ं रोि ितहं होई ॥
मं िि चिि मेि मु ख धतिया ।चिि सोम दे खै दरपतिया ॥
सूकतहं चिि मे ि मु ख राई । बीफै चिै दखखि िुड खाई ॥
अतदति िाँबोि मे ति मु ख मंडै । बायतबरं ि सिीचर खंडै ॥
बुद्धतहं दही चिहु कर भोजि । ओषध इहै , और ितहं खोजि ॥

अब सुिु चक्र जोतििी, िे पुति तथर ि रहातहं ।


िीस ं तदवस चंद्रमा आठो तदसा तफरातहं ॥9॥

बारह ओिइस चारर सिाइस । जोतिति पररच्छउाँ तदसा ििाइस ॥


ि सोरह च तबस औ एका । दखक्खि पुरुष कोि िेइ टे का ॥
िीि इिारह छतबस अठारहु । जोतिति दखक्खि तदसा तबचारहु ॥
दु इ पचीस सत्रह औ दसा । दखक्खि पतछउाँ कोि तबच बसा ॥
िेरस िीस आठ पंद्रहा । जोतिति उत्तर होतहं पुरुब सामु हा ॥
च दह बाइस ओितिस सािा । जोतिति उत्तर तदतस कहाँ जािा ॥
बीस अठारह िेरह पााँचा । उत्तर पतछउाँ कोि िेइ िाचा ॥

एकइस औ छ जोतिति उिर पुरुब के कोि ।


यह िति चक्र जोतिति बााँचु ज चह तसध होि ॥10॥

पररवा, िवमी पुरुब ि भाए । दू इज दसमी उिर अदाए ॥


िीज एकादतस अितिउ मारै । च तथ दु वादतस िै ऋि वारे ॥
पााँचइाँ िेरतस दखखि रमे सरी । छतठ च दतस पखच्छउाँ परमे सरी ॥
सिमी पूतिउाँ बायब आछी । अठइाँ अमावस ईसि िाछी ॥
तितथ िछत्र पुति बार कहीजै । सुतदि साथ प्रस्थाि धरीजै ॥
सिुि दु घररया ििि साधिा । भद्रा औ तदकसूि बााँचिा ॥
चक्र जोतमिी ििै जो जािै । पर बर जीति िखच्छ घर आिै ॥

सुख समातध आिं द घर कीन्ह पयािा पीउ ।


थरथराइ िि कााँपै धरतक धरतक उठ जीउ ॥11॥

मे ष, तसंह धि पूरुब बसै । तबरखख, मकर कन्या जम-तदसै ॥


तमथुि िुिा औ कुंभ पछाहााँ । करक, मीि, तबरतछक उिराहााँ ॥
िवि करै कहाँ उिरै कोई । सिमु ख सोम िाभ बहु होई ॥
दतहि चंद्रमा सुख सरबदा । बाएाँ चंद ि दु ख आपदा ॥
अतदि होइ उत्तर कहाँ कािू । सोम काि बायब ितहं चािू ॥
भ म काि पखच्छउ, बुध तिऋिा । िुरु दखक्खि और सुक अििइिा ॥
पूरब काि सिीचर बसै । पीतठ काि दे इ चिै ि हाँ सै ॥

धि िछत्र औ चंद्रमा औ िारा बि सोइ ।


समय एक तदि िविै िछमी केतिक होइ ॥12॥

पतहिे चााँद पुरुब तदतस िारा । दू जे बसै इसाि तवचारा ॥


िीजे उिर औ च थे बायब । पचएाँ पखच्छउाँ तदसा ििाइब ॥
छठएाँ िै ऋि, दखक्खि सिए । बसै जाइ अितिउाँ सो अठएाँ ॥
िवए चंद्र सो पृतथबी बासा । दसएाँ चंद जो रहै अकासा ॥
ग्यरहें चंद पुरुब तफरर जाई । बहु किे स स ं तदवस तबहाई ॥
असुति, भरति, रे विी भिी । मृ ितसर, मूि, पुिरबसु बिी ॥
पुर्ष्, ज्येष्ठा, हरि, अिु राधा । जो सुख चाहै पूजै साधा ॥

तितथ, िछत्र और बार एक अस्ट साि खाँड भाि ।


आतद अं ि बुध सो एतह दु ख सुख अं कम िाि ॥13॥

परवा, छतट्ठ, एकादतस िं दा । दु इज, सत्तमी, िादतस मं दा ॥


िीज, अस्टमी, िेरतस जया । च तथ चिुरदतस िवमी खया ॥
पूरि पूतिउाँ , दसमी, पााँचै । सुक्रै िं दै, बुध भए िाचै ॥
अतदि स ं हस्त िखि तसतध ितहए । बीफै पुर्ष् स्रवि सतस कतहए ॥
भरति रे विी बुध अिु राधा । भए अमावस रोतहति साधा ॥
राहु चंद्र भू संपतत्त आए । चंद िहि िब िाि सजाए ॥
सति ररकिा कुज अज्ञा िोजै । तसखद्ध-जोि िुरु पररवा कीजै ॥

छठे िछत्र होइ रतव, ओतह अमावस होइ ।


बीचतह पररबा ज तमिै सुरुज-िहि िब होई ॥14॥

`चिहु चिहु' भा तपउ कर चािू । घरी ि दे ख िे ि तजउ कािू ॥


समतद िोि पुति चढी तबवािा । जेतह तदि डरी सो आइ िुिािा ॥
रोवतहं माि तपिा औ भाई । कोउ ि टे क ज कंि चिाई ॥
रोवतहं सब िै हर तसंघिा । िे इ बजाइ कै राजा चिा ॥
िजा राज रावि, का केहू ? । छााँ डा िं क तबभीषि िे हु ॥
भरीं सखी सब भेंटि फेरा । अं ि कंि स ं भएउ िुरेरा ॥
कोउ काहू कर िातहं तिआिा । मया मोह बााँधा अरुझािा ॥

कंचि-कया सो रािी रहा ि िोिा मााँसु ।


कंि कस टी घाति कै चूरा िढै तक हााँसु ॥15॥

जब पहुाँ चाइ तफरा सब कोऊ । चिा साथ िुि अविुि दोऊ ॥


औ साँि चिा िवि सब साजा । उहै दे इ अस पारे राजा ॥
डोिी सहस चिीं साँि चेरी । सबै पदतमिी तसंघि केरी ॥
भिे पटोर जराव साँवारे । िाख चारर एक भरे पेटारे ॥
रिि पदारथ मातिक मोिी । कातढ भाँडार दीन्ह रथ जोिी ॥
परखख सो रिि पारखखन्ह कहा । एक अक दीप एक एक िहा ॥
सहसि पााँति िुरय कै चिी । औ स पााँ ति हखस्त तसंघिी ॥

तिखिी िाति ज िे खै, कहै ि परै जोरर ।


अब,खरब दस, िीि, संख औ अरबुद पदु म करोरर ॥16॥

दे खख दरब राजा िरबािा । तदखस्ट माहाँ कोई और ि आिा ॥


ज मैं होहुाँ समु द के पारा । को है मोतहं सररस संसारा ॥
दरब िे िरब, िोभ तबष-मू री । दत्त ि रहै , सत्त होइ दू री ॥
दत्त सत्त हैं दू ि ं भाई । दत्त ि रहै , सत्त पै जाई ॥
जहााँ िोभ िहाँ पाप साँघािी । साँतच कै मरै आति कै थािी ॥
तसद्ध जो दरब आति कै थापा। कोई जार, जारर कोइ िापा ॥
काहू चााँद, काहु भा राहू । काहू अमृ ि, तवष भा काहू ॥

िस भुिाि मि राजा । िोभ पाप अाँ धकूप ।


आइ समु द्र ठाढ भा कै दािी कर रूप ॥17॥

(1)कुरी = कुि, कुिीििा । खाट =खटािा है , ठहरिा है । सरर ि पाव....खाट = बराबरी करिे में कोई िहीं ठहर सकिा ।
(2) दे वा = हे दे व ! उपराहीं = ऊपर । िीका करतहं = अपिा तसक्का जमािे हैं । िीका =थाप । हम्ह कै चााँद....आजू = उि िक्षत्रों के
बीच चंदमा ( उिका स्वामी) बिाकर हमें भेतजए । भोर प्रभाि , भूिा हुआ, असावधाि । मतह िेइ...आउ = पृथ्वी पर हमारी आयु िे कर ।
(3) राजसभा = रत्नसेि के सातथयों की सभा सवारी = सब । अिु = हााँ, यही बाि है । फूटी....फूट । दीपक िे सी = पद्माविी ऐसा प्रज्वतिि
करके । पाहुि = अतितथ ।
(4) मािति = अथााि् िािमिी । कदम सेविी = चरण सेवा करिी है , कदं ब और सफेद िुिाब । ह तसंिारहार...िािा = हार के बीच पडे
हुए डोरे के समाि िुम हो । पु हुप-किी िािा = किी के हृदय के भीिर इस प्रकार पैठे हुए हो । बकुचि = बद्धांजति, जुडा हुआ हाथ;
िुच्छा । बकाउ = बकाविी । िािसेर = िािमिी, एक फूि । बोि = एक झाडी जो अरब, शाम की ओर होिी है । कोि बारर = केिकी,
रूपवािा, तकििा ही वह स्त्री । धसतक उठा = दहि उठा िहबर = िीिे । होितह...कािू = जन्म िे िे ही क्यों ि मर िई ? बाजा = पडा ।
िेवाि = सोच, तचंिा । हर मं तदर = प्रत्ेक घर में ।
(6) तबथा = दु ुःख तिउ मे िा = ििे पडा ।
(7) झंखी = झीखी, पछिाई । का हम्ह दोष....िोहूाँ = हम िोिों को एक िेहूाँ के कारण क्या ऐसा दोष ििा ( मु सिमािों के अिु सार तजस
प धे के फि को खुदा के मिा करिे पर भी ह वा िे आदम को खखिाया था वह िेहूाँ था । इसी तितषद्ध फि के कारण खुदा िे ह वा को
शाप तदया और दोिों को बतहश्त से तिकाि तदया)। तचरािा = बीच से तचर िया । छोहािा = दया की । सरे खा = चिुर ।
(8) िूरै = िोडे । ऊभ = ऊाँचा, उठा हुआ । ब रं र = ििा । प तढ = िे ट कर । िराहा = िीचे । सेवा जीिा = सेवा में सबसे जीिी हुई
अथााि् बढकर रहे ।
(9) अतदि = आतदत्वार । सूक = शुक्र । खंडै = चबाय ।
(10) दसा = दस । सामु हा = सामिे । बााँचु = िू बच ।
(11) ि भाए = िहीं अच्छा है । अदाएाँ = वाम, बुरा । अितिउ = आिेय तदशा । मारै = घािक है । वारै = बचावे । रमे सरी = िक्ष्मी ।
परमे सरी दे वी । बायब = वायव्य । ईसि = ईसाि कोण । िाछी = िक्ष्मी । सिुि दु घररया = दु घररया मु हूत्ता जो होरा के अिु सार तिकािा
जािा है और तजसमें तदि का तवचार िहीं तकया जािा राि तदि को दो दो घतडयों में तवभक्त करके रातश के अिु सार शुभाशुभ का तवचार
तकया जािा है ।
(12) तबरतछक = वृतिक रातश । उिरे = तिकिे । अििइिा = आिेय तदशा ।
(14) िंदा = आिं ददातयिी, शुभ । मं दा = अशुभ । जया = तवजय । दे िेवािी । खया = क्षय करिे वािी । सति ररकिा = शति ररक्ता, शतिवार
ररक्ता तितथ या खािी तदि ।
(15) समतद = तवदा के समय तमिकर (समदि = तबदाई; जैसे, तपिृ समदि अमावस्या) । आइ िु िािा = आ पहुाँ चा । टे क = पकडिा है । का
केहू = और कोई क्या है ? िुरेरा = दे खा-दे खी, साक्षात्कार । एक एक दीप....िहा = एक एक रत्न का मोि एक एक िीप था ।
(17) दत्त = दाि । सत्त = सत् । साँतच कै = संतचि करके । तसद्ध जो... थापा = जो तसद्ध हैं वे द्रव्य को अति ठहरािे हैं । थापा =
थापिे हैं , ठहरािे हैं । दािी = दाि िे िे वािा, तभक्षुक । कै दािी कर रूप = मं िि का रूप धरकर ।
दे शयात्रा खंड / मतिक मोहम्मद जायसी

बोतहि भरे , चिा िे इ रािी । दाि मााँति सि दे खै दािी ॥


िोभ ि कीजै, दीजै दािू ।दाि पुतन्न िें होइ कल्ािू ॥
दरब-दाि दे वै तबतध कहा । दाि मोख होइ, बााँचै मू रू ॥
दाि करै रच्छा माँ झ िीरा । दाि खेइ कै िावै िीरा ॥
दाि करि दै दु इ जि िरा । रावि संचा अतिति महाँ जरा ॥
दाि मे रु बतढ िाति अकासा । सैंति कुबेर मु ए िेतह पासा ॥

चातिस अं स दरब जहाँ एक अं स िहाँ मोर ।


िातहं ि जरै तक बूडै, तक तितस मू सतहं चोर ॥1॥

सुति सो दाि राजै ररस मािी । केइ ब राएतस ब रे दािी ॥


सोई पुरुष दरब जेइ सैंिी । दरबतहं िैं सुिु बािैं एिी ॥
दरब िें िरब करै जे चाहा । दरब िें धरिी सरि बेसाहा ॥
दरब िें हाथ आव कतविासू । दरब िें अछरी चााँड ि पासू ॥
दरब िें तिरिुि होइ िुिवंिा । दरब िें कुबज होइ रूपवंिा ॥
दरब रहै भुइाँ तदपै तििारा । अस मि दरब दे इ को पारा ?॥
दरब िें धरम करम औ राजा । दरब िें सुद्ध बुखद्ध बि िाजा ॥

कहा समु द्र , रे िोभी ! बैरी दरब, ि झााँपु ।


भएउ ि काहू आपि, मूाँ द पेटारी सााँपु ॥2॥

आधे समु द िे आए िाहीं । उठी बाउ आाँ धी उिराहीं ॥


िहरैं उठी ं समु द उिथािा । भूिा पंथ, सरि तियरािा ॥
अतदि आइ ज पहुाँ चै काऊ । पाहि उडै सो घाऊ ॥
बोतहि चिे जो तचिउर िाके । भए कुपंथ, िंक-तदतस हााँके ॥
जो िे इ भार तिबाह ि पारा । सो का िरब करै कंधारा ?॥
दरब-भार साँि काहु ि उठा । जेइ सैिा िाही स ं रुठा ॥
िहे पखाि पंखख ितहं उडै । `म र म र' जो करै सो बुडै ॥

दरब जो जाितह आपका, भूितहं िरब मिातहं ।


ज रे उठाइ ि िे इ सके, बोरर चिे जि मातहं ॥3॥
केवट एक तबभीषि केरा । आव मच्छ कर करि अहे रा ॥
िं का कर राकस अति कारा । आवै चिा होइ अाँ तधयारा ॥
पााँच मूाँ ड, दस बाहीं िाही । दतह भा सावाँ िं क जब दाही ॥
धु आाँ उठै मु ख सााँस साँघािा । तिकसै आति कहै ज बािा ॥
फेंकरे मूं ड चाँवर जिु िाए । तिकतस दााँि मुाँ ह-बाहर आए ॥
दे इ रीछ कै रीछ डे राइ । दे खि तदखस्ट धाइ जिु खाई ॥
रािे िै ि तियर ज आवा । दे खख भयावि सब डर खावा ॥

धरिी पायाँ सरि तसर, जिहुाँ सहस्राबाहु ।


चााँद सूर और िखि महाँ अस दे खा जस राहु ॥4॥

बोतहि बहे , ि माितह खेवा । राजतहं दे खख हाँ सा मि दे वा ॥


बहुिै तदितह बार भइ दू जी । अजिर केरर आइ भुख पूजी ॥
यह पदतमिी तवभीषि पावा । जािहु आजु अजोध्या छावा ॥
जािहु रावि पाई सीिा । िं का बसी राम कहाँ जीिा ॥
मच्छ दे खख जैसे बि आवा । टोइ टोइ भु इाँ पावाँ उठावा ॥
आइ तियर होइ तकन्ह जोहारू । पूछा खेम कुसि बेवहारू ॥
जो तबस्वासघाि कर दे वा । बड तबसवास करै कै सेवा ॥

कहााँ, मीि! िुम भूिेहु औ आएहु केतह घाट ?।


ह ं िुम्हार अस सेवक, िाइ दे उाँ िोतह बाट ॥5॥

िाढ परे तजउ बाउर होई । जो भति बाि कहै भि सोई ॥


राजै राकस तियर बोिावा । आिे कीन्ह, पंथ जिु पावा ॥
करर तवस्वास राकसतह बोिा । बोतहि फेरू, जाइ ितहं डोिा ॥
िू खेवक खेवकन्ह उपराहीं । बोतहि िीर िाउ ितह बाहीं ॥
िोतहं िें िीर घाट ज पाव ं िोतिररही िोडे र पतहराव ं ॥
कुंडि स्रवि दे उाँ पतहराई । महरा कै स प
ं ं महराई ॥
िस मैं िोरर पुराव ं आसा । रकसाई कै रहै ि बासा ॥

राजै बीरा दीन्हा, ितहं जािा तबसवास ॥


बि अपिे भख कारि होइ मच्छ कर दास ॥6॥

राकस कहा िोसाइाँ तबिािी । भि सेवक राकस कै जािी ॥


जतहया िं क दही श्रीरामा । से व ि छााँडा दतह भा सामा ॥
अबहूाँ सेव कर ं साँि िािे । मिुष भुिाइ होउाँ िे तह आिे ॥
सेिुबंध जहाँ राघव बााँधा । िहाँ वााँ चढ ं भार िे इ कााँधा ॥
पै अब िुरि धाि तकछु पाव ं । िुरि खेइ ओतह बााँध चढाव ं ॥
िुरि जो दाि पाति हाँ तस दीजै । थोरै दाि बहुि पुति िीजै ॥
सेव कराइ जो दोजै दािू । दाि िातहं , सेवा कर मािू ॥

तदया बुझा, सि िा रहा हुि तिरमि जेतह रूप ।


आाँ धी वोतहि उडाइ कै िाइ कीन्ह अाँ धकूप ॥7॥

जहााँ समु द मझधार माँ डारू । तफरै पाति पािार-दु आरू ॥


तफर तफरर पाति ठााँव ओतह मरै । फेरर ि तिकसै जो िहाँ परै ॥
ओही ठााँब मतहरावि-पुरी । परे हिका िर जम-कािर छु री ॥
ओही ठााँव मतहरावि मारा । पूरे हाड जिु खरे पहारा ॥
परी रीढ जो िे तह कै पीठी । से िुबंध अस आवै दीठी ॥
राकस आइ िहााँ के जुरे । बोतहि भाँवर-चक महाँ परे ॥
तफरै ििै बोतहि िस आई । जस कोहााँर धरर चाक तफराई ॥

राजै कहा, रे राकस ! जाति बूतझ ब रातस ।


सेिुबंध यह दे खै; कस ि िहााँ िेइ जातस ॥8॥

`सेिुबंध' सुति राकस हाँ सा । जािहु सरि टू तट भुइाँ खसा ॥


को बाउर ? बाउर िुम दे खा । जो बाउर, भख िाति सरे खा ॥
पााँखी जो बाउर घर माटी । जीभ बढाइ भखै सब चााँटी ॥
बाउर िुम जो भखै कहाँ आिे । िबतहं ि समझे, पंथ भुिािे ॥
मतहरावि कै रीढ जो परी । कहहु सो सेिुबंध, बुतध छरी ॥
यह िो आतह मतहरावि-पुरी । जहवााँ सरि तियर, घर दु री ॥
अब पतछिाहु दरब जस जोरा । करहु सरि चतढ हाथ मरोरा ॥

जो रे तजयि मतहरावि िे ि जिि कर भार ।


सो मरर हाड ि िे इिा, अस होइ परा पहार ॥9॥

बोतहि भवाँतहं , भाँवै सब पािी । िाचतहं राकस आस िुिािी ॥


बूडतहं हस्ती , घोर, मािवा । चहुाँ तदतश आइ जुरे माँ स-खवा ॥
ििखि राज-पंखख एक आवा । तसखर टू ट जस डसि डोिावा ॥
परा तदखस्ट वह राकस खोटा । िाकेतस जैस हखस्त बड मोटा ॥
आइ होही राकस पर टू टा । ितह िे इ उडा, भाँवर जि छूटा ॥
बोतहि टू क टू क सब भए । एहु ि जािा कहाँ चति िए ॥
भए राजा रािी दु इ पाटा । दू ि ं बहे , चिे दु इ बाटा ॥

काया जीउ तमिाइ कै, मारर तकए दु इ खंड ।


िि रोवै धरिी परा; जीउ चिा बरम्हं ड ॥10॥

(1) जूरू = जोडिा । साँचा = सं तचि तकया । दाि = दाि से । सैंति सहे जकर ; संतचि करके
(2) सैंति = संतचि तकया । एिी = इििी । बेसाहा = खरीदिे हैं । कुबुज =कुबडा । दरब रहै तििारा = द्रव्य धरिी में िढा रहिा है और
चमकिा है माथा (असंिति का यह उदाहरण इस कहावि के रूप में भी प्रतसद्ध है ,: िाडा है माँ डार , बरि है तििार") दे इ को पारा = क ि
दे सकिा है । मूाँ द = मूाँ दा हुआ, बंद ।
(3) उिराही = उत्तर की हवा अतदि = बुरातदि । काऊ = कभी । मिातहं = मि में ।
(4) साँघािा = संि। फेंकरे = िं िे; तबिा टोपी या पिडी के (अवधी) चाँवर जिु िाए = चाँवर के से खडे बाि ििाए हुए । चााँद, सूर, िखि =
पद्माविी, राजा और सखखयााँ ।
(5) दे वा = दे व, राक्षस । बि = बििा । िाइ दे उाँ िोतह बाट = िुझे रास्ते पर ििादू ाँ ।
(6)ि तिररही = किाई में पहििे का, खस्त्रयों का, एक िहिा जो बहुि से दािों को िूाँथ कर बिाया जािा है । िोडर = िोडा, किाई में पहििे
का िहिा । महरा = मल्लहों का सरदार । रकसाई = राक्षसपि । बासा = िंध । तबसवास = तवश्वासघाि ।
(7) जतहया = जब । पाति = हाथ हाथ से । हुि था । जेतह = तजससे ।
(8) माँ डारू = दह, िड्ढा । हिका = तहिोर, िहर । िर = िीचे । ब रातस = बाविा होिा है िू ।
(9) जो बाउर...सरे खा = पािि भी अपिा भक्ष्य ढूढिे के तिये चिुर होिा है । पााँखी = पतिंिा । घरमाटी = तमट्टी के घर में । छरी = छिी
िई, भ्रांि हुई ।
(10) भाँवंतह = चक्कर खािे हैं । आस िुिािी = आशा जािी रही । मािवा = मिु र्ष् । डहि = डै िा, पर ।
िक्ष्मी-समु द्र-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी

मु रतछ परी पदमावति रािी । कहााँ जीउ, कहाँ पीउ, ि जािी ॥


जािहु तचत्र-मू तत्ता ितह िाई । पाटा परी बही िस जाई ॥
जिम ि सहा पवि सुकुवााँरा । िेइ सो परी दु ख-समु द अपारा ॥
ितछमी िााँव समु द कै बेटी । िेतह कहाँ िखच्छ होइ जहाँ भेंटी ॥
खेिति अही सहे तिन्ह सेंिी । पाटा जाइ िाि िेतह रे िी ॥
कहे तह सहे िी "दे खहु पाटा । मू रति एक िाति बतह घाटा ॥
ज दे खा, तिवई है सााँसा । फूि मु वा, पै मु ई ि बासा ॥

रं ि जो रािी प्रेम के ,जािहु बीर बहूतट ।


आइ बही दतध-समु द महाँ , पै रं ि िएउ ि छूतट ॥1॥

ितछमी िखि बिीस ं िखी । कहे तस "ि मरै , साँभारहु, सखी !॥


कािर पिरा ऐस सरीरा । पवि उडाइ परा माँ झ िीरा ॥
िहरर झकोर उदतध-जि भीजा । िबहूाँ रूप-रं ि ितहं छीजा "
आपु सीस िे इ बैठी कोरै । पवि डोिावै सखख चहुाँ ओरै ॥
बहुरर जो समु तझ परा िि जीऊ । मााँिेतस पाति बोति कै पीऊ ॥
पाति तपयाइ सखी मु ख धोई । पदतमति जिहुाँ कवाँि साँि कोईं ॥
िब ितछमी दु ख पूछा ओही । तिररया समु तझ बाि कछु मोहीं ॥

दे खख रूप िोर आिर, िाति रहा तचि मोर ।


केतह ििरी कै िािरी, काह िााँव धति िोर ?" ॥2॥

िै ि पसार दे ख धि चेिी । दे खै काह, समु द कै रे िी ॥


आपि कोइ ि दे खेतस िहााँ । पू छेतस, िुम ह को? ह ं कहााँ ?॥
कहााँ सो सखी काँवि साँि कोई । सो िाहीं मोतहं कहााँ तबछोई ॥
कहााँ जिि महाँ पीउ तपयारा । जो सुमेरु, तबतध िरुअ साँवारा ॥
िाकर िरुई प्रीति अपारा । चढी तहये जिु चढा पहारा ॥
रह ं जो िरुइ प्रीति स ं झााँपी । कैसे तजऔं भार-दु ख चााँपी? ॥
काँवि करी तजतम चूरी िाहााँ । दीन्ह बहाइ उदतध जि माहााँ ॥

आवा पवि तबछोह कर, पाि परी बेकरार ।


िररवर िजा ज चूरर कै, िाि ं केतह के डार ? ॥3॥

कहे खन्ह" ि जाितहं हम िोर पीऊ । हम िोतहं पाव रहा ितहं जीऊ ॥
पाट परी आई िुम बही । ऐस ि जाितहं दु हुाँ कहाँ अही" ।
िब सुतध पदमावति मि भई । सवरर तबछोह मु रुतछ मरर िई ॥
िै ितहं रकि-सुराही ढरै । जिहुाँ रकि तसर काटे परै ॥
खि चेिै खि होइ बेकरारा । भा चंदि बंदि सब छारा ॥
बाउरर होइ परी पुति पाटा । दे हुाँ बहाइ कंि जेतह घाटा ॥
को मोतहं आति दे इ रतच होरी । तजयि ि तबछु रै सारस-जोरी ॥

जेतह तसर परा तबछोहा, दे हु ओतह तसर आति ।


िोि कहैं यह तसर चढी, ह ं सो जर ं तपउ िाति ॥4॥

काया-उदतध तचिव तपउ पााँहा । दे ख ं रिि सो तहरदय माहााँ ॥


जिहुाँ आतह दरपि मोर हीया । िेतह महाँ दरस दे खावै पीया ॥
िै ि तियर, पहुाँ चि सुतठ दू री । अब िेतह िाति मर ं मैं झूरी ॥
तपउ तहरदय महाँ भेंट ि होई । को रे तमिाव, कह ं केतह रोई ?॥
सााँस पास तिति आवै जाई । सो ि साँदेस कहै मोतहं आई ॥
िै ि क तडया होइ माँ डराहीं । तथरतक मार पै आवै िाहीं ॥
मि भाँवरा भा काँवि-बसेरी । होइ मरतजया ि आिै हे री ॥

साथी आतथ तिआतथ जो सकै साथ तिरबातह ।


ज तजउ जारे तपउ तमिै , भेंटु रे तजउ ! जरर जातह ॥5॥

सिी होइ कहाँ सीस उघारा । घि महाँ बीजु घाव तजतम मारा ॥
सेंदुर, जरै आति जिु िाई । तसर कै आति साँभारर ि जाई ॥
छूतट मााँि अस मोति-तपरोई । बारतहं बार जरै ज ं रोई ॥
टू टतहं मोति तबछोह जो भरै । सावि-बूाँद तिरतहं जिु झरे ॥
भहर भहर कै जोबि बरा । जािहुाँ किक अतिति महाँ परा ॥
अतिति मााँि, पै दे इ ि कोई । पाहुि पवि पाति सब कोई ॥
खीि िं क टू टी दु खभरी । तबिु रावि केतह बर होइ खरी ॥

रोवि पंखख तबमोहे जस कोतकि-अरं भ ।


जाकर किक-ििा सो तबछु रा पीिम खंभ ॥6॥

ितछमी िाति बुझावै जीऊ ।"िा मरु बतहि! तमतितह िोर पीऊ ॥
पीउ पाति, होइ पवि -अधारी । जतस ह ं िहूाँ समु द कै बारी ॥
मैं िोतह िाति िे उाँ खटवाटू । खोजतह तपिा जहााँ िति घाटू ॥
ह ं जेतह तमि ं िातह बड भािू । राजपाट औ दे ऊाँ सोहािू "॥
कतह बुझाइ िे इ मं तदर तसधारी । भइ जेविार ि जेंवै बारी ॥
जेतह रे कंि कर होइ तबछोवा । कहाँ िेतह भूख, कहााँ सुख-सोवा ?॥
कहााँ सुमेरु, कहााँ वह सेसा । को अस िेतह स ं कहै साँदेसा ?॥

ितछमी जाइ समु द पहाँ रोइ बाि यह चाति ।


कहा समु द "वह घट मोरे , आति तमिाव ं काति" ॥7॥

राजा जाइ िहााँ बतह िािा । जहााँ ि कोइ साँदेसी कािा ॥


िहााँ एक परबि अस डूाँिा । जहाँ वााँ सब कपूर औ मूाँ िा ॥
िेतह चतढ हे र कोइ ितहं साथा । दरब सैंति तकछु िाि ि हाथा ॥
अहा जो रावि िं क बसेरा । िा हे राइ, कोइ तमिा ि हे रा ॥
ढाढ मारर कै राजा रोवा । केइ तचिउरिढ-राज तबछोवा ?॥
कहााँ मोर सब दरब भाँडारा । कहााँ मोर सब कटक खाँधारा ?॥
कहााँ िुरंिम बााँका बिी । कहााँ मोर हस्ती तसंघिी ? ॥

कहाँ रािी पदमावति जीउ बसै जे तह पाहाँ ।


'मोर मोर' कै खोएउाँ , भूति िरब अविाह ॥8॥

भाँवर केिकी िुरु जो तमिावै । मााँिै राज बेति सो पावै ॥


पदतमति-चाह जहााँ सु ति पाव ं । पर ं आति औ पाति धाँ साव ं ॥
खोज ं परबि मे रु पहारा । चढ ं सरि औ पर ं पिारा ॥
कहााँ सो िुरु पाव ं उपदे सी । अिम पंथ जो कहै िवेसी ॥
परे उाँ समु द्र माहाँ अविाहा । जहााँ ि वार पार, ितह थाहा ॥
सीिा-हरि राम संग्रामा । हिु वाँि तमिा ि पाई रामा ॥
मोतहं ि कोइ, तबिव ं केतह रोई । को बर बााँतध िवेसी होई ?॥

भाँवर जो पावा काँवि कहाँ , मि चीिा बहु केति ।


आइ परा कोइ हस्ती, चूर कीन्ह सो बेति ॥9॥

कातह पुकार ,ं का पहाँ जाऊाँ । िाढे मीि होइ एतह ठाऊाँ ॥


को यह समु द मथै बि िाढै । को मतथ रिि पदारथ काढै ? ॥
कहााँ सो बरह्मा, तबसुि महे सू । कहााँ सुमेरु, कहााँ वह सेसू? ॥
को अस साज दे इ मोतहं आिी । बासुतक दाम, सुमेरु मथािी ॥
को दतध-समु द मथै जस मथा ? करिी सार ि कतहए कथा ॥
ज ितह मथै ि कोइ दे इ जीऊ । सूधी अाँ िुरर ि तिकसै घीऊ ॥
िे इ िि मोर समुद भा बटा । िाढ परै ि िे इ परिटा ॥

िीति रहा अब ढीि होइ पेट पदारथ मे ति ।


को उतजयार करै जि झााँपा चंद उघेति ?॥10॥

ए िोसाइाँ ! िू तसरजि हारा । िु इाँ तसरजा यह समु द अपारा ॥


िुइाँ अस ििि अंिररख थााँभा । जहााँ ि टे क, ि थूति, ि खााँभा ॥
िुइाँ जि ऊपर धरिी राखी । जिि भार िे इ भार ि थाकी ॥
चााँद सुरुज औ िखिन्ह -पााँिी । िोरे डर धावतहं तदि रािी ॥
पािी पवि आति औ माटी । सब के पीठ िोरर है सााँ टी ॥
सो मू रुख औ बाउर अं धा । िोतह छााँतड तचि औरतह बंधा ॥
घट घट जिि िोरर है दीठी । ह ं अं धा जेतह सूझ ि पीठी ॥

पवि होइ भा पािी, पाति होइ भा आति ।


आति होइ भा माटी, िोरखधं धै िाति ॥11॥

िुइाँ तजउ िि मे रवतस दे इ आऊ । िुही तबछोवतस, करतस मे राऊ ॥


च दह भुवि सो िोरे हाथा । जहाँ िति तबधु र आव एक साथा ॥
सब कर मरम भेद िोतह पाहााँ । रोवाँ जमावतस टू टै जाहााँ ॥
जाितस सबै अवस्था मोरी । जस तबछु री सारस कै जोरी ॥
एक मु ए ररर मु वै जो दू जी । रहा ि जाइ, आउ अब पूजी ॥
झूरि िपि बहुि दु ख भरऊाँ । किप ं मााँथ बेति तिस्तरऊाँ ॥
मर ं सो िे इ पदमावति िाऊाँ । िुइाँ करिार करे तस एक ठाऊाँ ॥

दु ख स ं पीिम भेंतट कै, सुख स ं सोव ि कोइ ।


एतह ठााँव मि डरपै, तमति ि तबछोहा होइ ॥12॥

कतह कै उठा समु द पहाँ आवा । कातढ कटार िीउ महाँ िावा ॥
कहा समु द्र, पाप अब घटा । बाह्मि रूप आइ परिटा ॥
तििक दु वादस मस्तक कीन्हे । हाथ किक-बैसाखी िीन्हे ॥
मु द्रा स्रवि, जिे ऊ कााँधे । किक-पत्र धोिी िर बााँधे ॥
पााँवरर किक जराऊाँ पाऊाँ । दीखन्ह असीस आइ िेतह ठाऊाँ ॥
कहतस कुाँवर! मोस ं सि बािा । काहे िाति करतस अपघािा ॥
पररहाँ स मरस तक क तिउ िाजा । आपि जीउ दे तस केतह काजा ॥

तजति कटार िर िावतस, समु तझ दे खु मि आप ।


सकति जीउ ज ं काढै , महा दोष औ पाप ॥13॥
को िुम्ह उिर दे इ, हो पााँडे । सो बीिै जाकर तजउ भााँडे ॥
जंबूदीप केर ह ं राजा । सो मैं कीन्ह जो करि ि छाजा ॥
तसंघिदीप राजघर-बारी । सो मैं जाइ तबयाही िारी ॥
बहु बोतहि दायज उि दीन्हा । िि अमोि तिरमर भरर िीन्हा ॥
रिि पदारथ मातिक मोिी । हुिीि काहु के संपति ओिी ॥
बहि,घोड, हस्ती तसंघिी । और साँि कुाँवरर िाख दु इ चिीं ।
िे िोहिे तसंघि पदतमिी । एक सो एक चातह रुपमिी ॥

पदमाविी जि रूपमति, कहाँ िति कह ं दु हेि ।


िेतहं समु द्र महाँ खोएउाँ , ह ं का तजओ अकेि ?॥14॥

हाँ सा समु द, होइ उठा अाँ जोरा । जि बूडा सब कतह कतह 'मोरा ॥
िोर होइ िोतह परे ि बेरा । बूतझ तबचारर िहुाँ केतह केरा ॥
हाथ मरोरर धु िै तसर झााँखी । पै िोतह तहये ि अघरै आाँ खी ॥
बहुिै आइ रोइ तसर मारा । हाथ ि रहा झूठ संसारा ॥
जो पै जिि होति फुर माया । सैंिि तसखद्ध ि पावि, राया ! ॥
तसद्धै दरब ि सैंिा िाडा । दे खा भार चूतम कै छाडा ॥
पािी कै पािी महाँ िई । िू जो तजया कुसि सब भई ॥

जा कर दीन्ह कया तजउ, िे इ चाह जब भाव ।


धि ितछमी सब थअकर, िे इ ि का पतछिावा ?॥15॥

अिु , पााँडे! पुरुषतह का हािी । ज पाव ं पदमावति रािी ॥


ितप कै पावा ,तमिी कै फूिा । पुति िेतह ख इ सोइ पथ भूिा ॥
पुरुष ि आपति िारर सराहा । मु ए िए साँवरै पै चाहा ॥
कहाँ अस िारी जिि उपराहीं ?। कहाँ अस जीवि कै सुख-छाहीं ? ॥
कहाँ अस रहस भोि अब करिा । ऐसे तजए चातह भि मरिा ॥
जहाँ अस परा समु द िि दीया । िहाँ तकतम तजया चहै मरजीया ? ॥
जस यह समु द दीन्ह दु ख मोकााँ । दे इ हत्ा झिर ं तसविोका ॥

का मैं ओतह क िसअवा, का साँवरा सो दााँव ?।


जाइ सरि पर होइतह एतह कर मोर तियाव ॥16॥

ज िु मु वा, तकि रोवतस खरा ? िा मु इ मरै , ि र वै मरा ॥


जो मरर भा औ छााँडेतस काया । बहुरर ि करै मरि कै दााँया ॥
जो मरर भएउ ि बूडै िीरा । बहा जाइ िािै पै िीरा ॥
िुही एक मैं बाउर भेंटा । जैस राम, दसरथ कर बेटा ॥
ओहू िारर कर परा तबछोवा । एतह समु द महाँ तफरर तफरर रोवा ॥
उदतध आइ िेइ बंधि कीन्हा । इति दशमाथ अरमपद दीन्हा ॥
िोतह बि िातहं -मूाँ दु अब आाँ खी । िाव िीर, टे क बैसाखी ॥

बाउर अं ध प्रेम कर सुिि िु बतध भा बाट ।


तितमष एक महाँ िे इिा पदमावति जेतह घाट ॥17॥

पदमावति कहाँ दु ख िस बीिा । जस असोक-बीरो िर सीिा ॥


किक ििा दु इ िाराँ ि फरी । िेतह के भार उतठ होइ ि खरी ॥
िेतह पर अिक भुअंतिति डसा । तसर पर चढै तहये परिसा ॥
रही मृ िाि टे तक दु ख-दाधी । आधी काँवि भई, सतस आधी ॥
ितिि -खंड दु इ िस कररहाऊ । रोमाविी तबछूक कहाऊाँ ॥
रही टू तट तजतम कंचि-िािू । को तपउ मे रवै, दे इ सोहािू ॥
पाि ि खाइ करै उपवासू । फुि सूख, िि रही ि बासू ॥

ििि धरति जि बुतड िए, बूडि होइ तिसााँस ।


तपउ तपउ चािक ज्यों ररै , मरै सेवाति तपयास ॥18॥

ितछमी चंचि िारर परे वा । जेतह सि होइ छरै कै सेवा ॥


रििसेि आवै जेतह घाटा । अिमि होइ बैठी िेतह बाटा ॥
औ भइ पदमावति कै रूपा । कीन्हे तस छााँह जरै जहाँ धू पा ॥
दे खख सो काँवि भाँवर होइ धावा । सााँस िीन्ह, वह बास ि पाबा ॥
तिरखि आइ िच्छमी दीठी । रििसेि िब दीन्ही पीठी ॥
ज भति होति िच्छमी िारी । ितज महे स कि होि तभखारी ?॥
पुति धति तफरर आिे होइ रोई । पुरुष पीतठ कस दीन्ह तिछोई ?॥

ह ं रािी पदमावति, रििसेि िू पीउ ।


आति समु द महाँ छााँडेहु, अब रोव ं दे इ जीउ ॥19॥

मैं ह ं सोइ भाँवर औ भोजू िे ि तफर ं मािति कर ख जू ॥


मािति िारर, भाँवर पीऊ । ितह वह बास रहै तथर जीऊ ॥
का िुइाँ िारर बैतठ अस रोई । फूि सोइ पै बास ि सोई ॥
भाँवर जो सब फूिि कर फेरा । बास ि िे इ माितितह हे रा ॥
जहााँ पाव मािति कर बासू । वारै जीउ िहााँ होइ दासू ॥
तकि वह बास पवि पहुाँ चावै । िव िि होइ, पेट तजउ आवै ॥
ह ं ओतह बास जीउ बति दे ऊाँ । और फूि कै बास ि िेऊाँ ॥

भाँवर माितितह पै चहै , कााँट ि आवै दीतठ ।


सह ं ैं भाि खाइ, पै तफरर कै दे इ ि पीतठ ॥20॥

िब हाँ तस कह राजा ओतह ठाऊाँ । जहााँ सो मािति िे इ चिु , जाऊाँ ॥


िे इ सो आइ पदमावति पासा । पाति तपयावा मरि तपयासा ॥
पािी तपया काँवि जस िपा । तिकसा सुरुज समु द महाँ छपा ॥
मैं पावा तपउ समु द के घाटा । राजकुाँवर मति तदपै ििाटा ॥
दसि तदपै जस हीरा जोिी । िै ि-कचोर भरे जिु मोिी ॥
भुजा िं क डर केहरर जीिा । मू रि कान्ह दे ख िोपीिा ॥
जस राजा िि दमितह पूछा । िस तबिु प्राि तपंड है छूाँछा ॥

जस िू पतदक पदारथ, िैस रिि िोतह जोि ।


तमिा भाँवर मािति कहाँ , करहु दोउ तमति भोि ॥21॥

पतदक पदारथ खीि जो होिी । सुिितह रिि चढी मु ख जोिी ॥


जािहुाँ सूर कीन्ह परिासू । तदि बहुरा, भा काँवि-तबिासू ॥
काँवि जो तबहाँ तस सूर-मु ख दरसा । सूरुज काँवि तदखस्ट स ं परसा ॥
िोचि-काँवि तसरी-मु ख सूरू । भएउ अिं द दु हूाँ रस-मू रू ॥
मािति दे खख भाँवर िा भूिी । भाँवर दे खख मािति बि फूिी ॥
दे खा दरस, भए एक पासा । वह ओतह के, वह ओतह के आसा ॥
कंचि दातह दीखन्ह जिु जीऊ । ऊवा सूर, छूतटिा सीऊ ॥

पायाँ परी धति पीउ के, िै िन्ह सों रज मे ट ।


अचरज भएउ सबन्ह कहाँ , भइ सतस कवितहं भेंट ॥22॥

तजति काहू कह होइ तबछोऊ । जस वै तमिै तमिै सब कोऊ ॥


पदमावति ज पावा पीऊ । जिु मरतजयतह परा िि जीऊ ॥
कै िे वछावरर िि मि वारी । पायन्ह परी घाति तिउ िारी ॥
िव अविार दीन्ह तबतध आजू । रही छार भइ मािु ष-साजू ॥
राजा रोव घाति तिउ पािा । पदमावति के पायन्ह िािा ॥
िि तजउ महाँ तबतध दीन्ह तबछोऊ । अस ि करै ि चीन्ह ि कोऊ ॥
सोई मारर छार कै मे टा । सोइ तजयाइ करावै भेंटा ॥

मु हमद मीि ज मि बसै, तबतध तमिाव ओतह आति ।


संपति तबपति पुरुष कहाँ , काह िाभ, का हाति ॥23॥

िछमी स ं पदमावति कहा । िुम्ह प्रसाद पायउाँ जो चहा ॥


ज सब खोइ जातह हम दोऊ । जो दे खै भि कहै ि कोऊ ॥
जे सब कुाँवर आए हम साथी । औ जि हखस्त, घोड औ आथी ॥
ज पावैं, सु ख जीवि भोिू । िातहं ि मरि भरि दु ख रोिू ॥
िब िछमी िइ तपिा के ठाऊाँ । जो एतह कर सब बूड सो पाऊाँ ॥
िब सो जरी अमृ ि िे इ आवा । जो मरे हुि तिन्ह तछररतक तजयावा ॥
एक एक कै दीन्ह सो आिी । भा साँिोष मि राजा रािी ॥
आइ तमिे सब साथी, तहति तमति करतहं अिं द ।
भई प्राप्त सुख-सं पति, िएउ छूतट दु ख-िं द ॥24॥

और दीन्ह बहु रिि पखािा । सोि रूप ि मितहं ि आिा ॥


जे बहु मोि पदारथ िाऊाँ । का तिन्ह बरति कह ं िुम्ह ठाऊाँ ॥
तिन्ह कर रूप भाव को कहै । एक एक िि चुति चुति कै िहे ॥
हीर-फार बहु-मोि जो अहे । िे इ सब िि चुति चुति कै िहे ॥
ज एक रिि भाँजावै कोई । करै सोइ जो मि महाँ होई ॥
दरब-िरब मि िएउ भुिाई । हम सब िक्ष्छ मितहं ितहं आई ॥
िघु दीरघ जो दरब बखािा । जो जेतह चतहय सोइ िे इ मािा ॥

बड औ छोट दोउ सम, स्वामी -काज जो सोइ ।


जो चातहय जे तह काज कहाँ , ओतह काज सो होइ ॥25॥

तदि दस रहे िहााँ पहुिाई । पु ति भए तबदा समु द स ं जाई ॥


िछमी पसमावति स ं भेंटी । औ िेतह कहा `मोरर िू बेटी" ॥
दीन्ह समु द्र पाि कर बीरा । भरर कै रिि पदारथ हीरा ॥
और पााँच िि दीन्ह तबसेखे । सरवि सुिा, िैि ितहं दे खे ॥
एक ि अमृ ि, दू सर हं सू । औ िीसर पंखी कर बंसू ॥
च थ दीन्ह सावक-सादू रू । पााँचवाँ परस, जो कंचि-मू रू ॥
िरुि िुरंिम आति चढाए । जि -मािु ष अिुवा साँि िाए ॥

भेंट-घााँट कै समतद िब तफरे िाइकै माथ ।


जि-मािु ष िबहीं तफरे जब आए जििाथ ॥26॥

जिन्नाथ कहाँ दे खा आई । भोजि रींधा भाि तबकाई ॥


राजै पदमावति स ं कहा । सााँ तठ िातठ, तकछु िााँतठ ि रहा ॥
सााँतठ होइ जे तह िेतह सब बोिा । तिसाँठ जो पुरुष पाि तजतम डोिा ॥
सााँठतह रं क चिै झ रं ाई । तिसाँठराव सब कह ब राई ॥
सााँतठतह आव िरब िि फूिा । तिसाँठतह बोि, बुखद्ध बि भूिा ॥
सााँतठतह जाति िींद तितस जाई । तिसाँठतह काह होइ औंघाई ॥
सााँतठतह तदखस्ट, जोति होइ िै िा । तिसाँठ होइ, मु ख आव ि बैिा ॥

सााँतठतह रहै सातध िि, तिसाँठतह आिरर भूख ।


तबिु िथ तबररछ तिपाि तजतम ठाढ ठाढ पै सूख ॥ 27॥

पदमावति बोिी सुिु राजा । जीउ िए धि क िे काजा ?॥


अहा दरब िब कीन्ह ि िााँठी । पुति तकि तमिै िखच्छ ज िाठी ॥
मु किी सााँतठ िााँतठ जो करै । सााँ कर परे सोइ उपकरै ॥
जेतह िि पंख, जाइ जहाँ िाका । पैि पहार होइ ज थाका ॥
िछमी दीन्ह रहा मोतहं बीरा । भरर कै रिि पदारथ हीरा ॥
कातढ एक िि बेति भाँजावा । बहुरी िखच्छ, फेरर तदि पावा ॥
दरब भरोस करै तजति कोई । सााँभर सोइ िााँ तठ जो होई ॥

जोरर कटक पुति राजा घर कहाँ कीन्ह पयाि ।


तदवसतह भािु अिोप भा, बासुतक इं द्र सकाि ॥28॥

(1) ि जािी = ि जािें । अही = थी । सेंिी = से । रे िी = बािू का तकिारा । िीवइ = स्त्री में ।
(2) कािर = कािज । पिरा = पििा । उडाइ = उडकर । क रै = िोद में । बोति कै = पुकारकर । समु तझ = सुध करके ।
(3) चेिी = चेि करके, होश में आकर । दे खै काह = दे खिी क्या है तक । झााँपी = आच्छातदि । चााँपी = दबी हुई । चूरी = चूणा तकया ।
िाि ं केहतह के डार = तकसकी डाि ििूाँ अथााि् तकसका सहारा िूाँ ?
(4) पाव = पाया । साँवरर = स्मरण करके । सर तचिा ।
(5) तथरतक मार = तथरकिा या चारों ओर िाचिा है । साथी....तिरबातह = साथी वही है जो धि और दररद्रिा दोिों में साथ तिभा सके ।
आतथ = सार,पूाँजी । तिआतथ = तिधा ििा । घि महाँ ...मारा = कािे बािों के बीच मााँि ऐसी है जैसे तबजिी की दरार । भहर भहर =
जिमिािा हुआ । मााँि = मााँििी है । पाहुि पवि...सब कोई = मे हमाि समझ कर सब पािी दे िी हैं और हवा करिी हैं ।बर = बि,सहारा
। अरं भ = रं भ, िाद, कूक ।
(7) बुझावै िाति = समझािे -बुझािे ििी । बारी = िडकी । िे उाँ खटवाटू = खटपाटी िूाँ िी; रूसकर काम-धंधा छोड पडी रहूाँ िी (खस्त्रयों का
रूसकर खािा-पीिा छोड खाट पर इसतिये पड रहिा तक जब िक मे री बाि ि मािी जायिी ि उठूाँिी, `खटपाटी' िे िा कहिािा है ) सुख-
सोवा = सुख से सोिा (साधारण तक्रया का यह रूप बाँििा से तमििा है ।) कहााँ सुमेरु...सेसा = आकाश पािाि का अं िर । बाि चाति =
बाि चिाई ।
(8)डूाँिा = टीिा। खाँधारा = स्कंधावार , डे रा, िंबू । अविाह = अथाह (समु द्र) में ।
(9) चाह = खबर । दाँ साव ं = धाँ सूाँ । िवेसी = खोजी, ढूाँढाँिेवािा, िवेषणा करिे वािा । बर वााँतध = रे खा खींचकर, दृढ प्रतिज्ञा करके ( आजकि
`वरै या बााँतध' बोििे हैं )
(10) मीि होइ = जो तमत्र हो । िाढे =संकट के समय में । दाम = रस्सी । करिी सार ..कथा = करिी मु ख्य है , बाि कहिे से क्या है ?
बटा भा = बटाऊ हुआ, चि तदया । ढीि होइ रहा = चुपचाप बै ठा रहा । उघे ति = खोिकर ।
(11) थााँबा = ठहराया, तटकाया । थूति = िकडी का बल्ला जो टे क के तिये छप्पर के िीचे खडा तकया जािा है । भार ि थाकी = भार से
िहीं थकी । सब के पीतठ....सााँटी = सब की पीठ पर िेरी छडी है , अथााि् सब के ऊपर िेरा शासि है ।
(12) मेरवतस = िू तमिािा है । आउ = आयु । तबछोवतस = तबछोह करिा है । मे राऊ = तमिाप । जाहााँ = जहााँ । किप ं = काटू ाँ । करे तस
= िुम करिा ।
(13) पाप अब घटा = यह िो बडा पाप मे रे तसर घटा चाहिा है । बैसाखी = िाठी । पााँवरर = खडाऊाँ । पाऊाँ = पााँव में । काहे िति =
तकस तिये । अपघाि = आत्मघाि । पररहाँ स = ईर्ष्ाा ।
(14) िुम्ह = िुम्हें। भााँडे = घट में , शरीर में । ओिी = उििी चातह । चातह =बढकर । रूपमिी = रूपविी । दु हेि = दु ख ।
(15) िोर...होइ...बेरा = िेरा होिा िो िेरा बेडा िु झसे दू र ि होिा । झााँ खी = झीखकर । उघरे = खुििी है । सैंिि तसखद्ध...राया = िो
हे राजा ! िुम द्रव्य संतचि करिे हुए तसखद्ध पा ि जािे । पािी कै...िई = जो वस्तुएाँ (रत्न आतद) पािी की थी ं वे पािी में िई । िे इ चाह =
तिया ही चाहे । जब भाव = जब चाहे ।
(16) अिु = तफर, आिे । फूिा = प्रफुल्ल हुआ । चातह = अपेक्षा, बतिस्बि । मोकााँ = मोकहाँ , मु झको । दे इ हत्ा = तसर पर हत्ा चढाकर ।
दााँव = बदिा िे िे का म का ।
(17) मरर भा = मर चुका । दायााँ = दााँव, आयोजि । बाट भा = रास्ता पकडा ।
(18) बीर = तबरवा, पेड । दाधी = जिी हुई । कररहाउाँ = कमर, कतट । तबछूक = तबच्छू । सेवाति =स्वाति िक्षत्र में ।
(19) छरै = छििी है । बाटा = मािा में । अिमि = आिे । दीठी = दे खा । दीन्ही पीठी = पीठ दी, मुाँ ह फेर तिया ।
(20) खोज = पिा । कर फेरा = फेरा करिा है । हे रा = ढूाँढिा है । वारै = तिछावर करिा है । िव = िया । भाि = भािा ।
(21) िे इ चिुाँ, जाउाँ = यतद िे चिे िो जाऊाँ । छपा = तछपा हुआ । कचोर = कटोरा । िोपीिा = िोपी । दमितह = दमयंिी को । तपंड =
शरीर । छूाँछा = खािी । पतदक = ििे में पहििे का एक च खूाँटा िहिा तजसमें रत्न जडे जािे हैं ।
(22) पतदक पदारथ = अथााि् पद्माविी । बहुरा = ि टा, तफरा । मू रू = मू ि, जड । एक पासा = एक साथ । सीऊ = सीि । रज मे ट =
आाँ सुओं से पैर की भूि धोिी है । भइ सतस काँवितह भेंट = शतश, पद्माविी का मु ख और कमि, राजा के चरण ।
(23) घाति तिउ = िरदि िीचे झुकाकर । मािु ष साजू = मिु र्ष्-रूप में । घाति तिउ पािा = ििे में दु पट्टा डािकर । पािा = पिडी । िि
तजउ ...चीन्ह ि कोऊ = शरीर और जीव के बीच ईश्वर िे तवयोि तदया; यतद वह ऐसा ि करे िो उसे कोई ि पहचािे ।
(24) िुम्ह = िुम्हारे । आथी = पूाँजी ,धि । जरी = जडी ।
(25) पखािा = िि, पत्थर । सोि = सोिा । रूप = चााँदी िुम्ह ठाऊाँ = िुम्हारे तिकट, िुमसे । हीर-फार = हीरे के टु कडे । फार = फाि ,
किरा, टु कडा । हम सम िच्छ = हमारे ऐसे िाखों हैं ।
(26) पहुिाई = मे हमािी । तबसेखे = तवशेष प्रकार के । बंसू =वंश, कुि । सावक-सादू रू = शादू ा ि-शावक, तसंह का बच्चा । परस = पारस
पत्थर । कंचि-मू रू = सोिे का मू ि, अथााि् सोिा उत्पन्न करिे वािा । जि-मािु ष = समु द्र के मिु र्ष् । अिुवा = पथ-प्रदशाक संि िाए =
संि में ििा तदए । भेंट-घाट = भेंट-तमिाप । समतद =तबदा करके ।
(27) रींधा =पका हुआ । सााँतठ = पूाँजी, धि । िातठ = िि हुई । झ रं ाई = झूमकर । कह = कहिे हैं । औंघाई = िींद । सातध िि = शरीर
को संयि करके । आिरर = बढी हुई, अतधक । िथ = पूाँजी ।
(28) िाठी = िि हुई । मु किी = बहुि सी, अतधक । सााँकर परे = संकट पडिे पर । उपकरै = उपकार करिी है , काम आिी है । सााँभर =
संबि, राह का खचा । सकाि = डरा ।
तचत्त र-आिमि-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी

तचिउर आइ तियर भा राजा । बहुरा जीति, इं द्र अस िाजा ॥


बाजि बाजतहं , होइ अाँ दोरा । आवतहं बहि हखस्त औ घोरा ॥
पदमावति चमडोि बईठी । पुति िइ उितट सरि स ं दीठी ॥
यह मि ऐंठा रहै ि सूझा । तबपति ि साँवरे संपति-अरुझा ॥
सहस बररस दु ख सहै जो कोई । घरी एक सुख तबसरै सोई ॥
जोिी इहै जाति मि मारा । ि हु ं ाँ ि यह मि मरै अपारा ॥
रहा ि बााँधा बााँधा जेही । िेतिया मारर डार पुति िेही ॥

मु हमद यह मि अमर है , केहुाँ ि मारा जाइ ॥


ज्ञाि तमिै ज एतह घटै , घटिै घटि तबिाइ ॥1॥

िािमिी कहाँ अिम जिावा । िई िपति बरषा जिु आवा ॥


रही जो मु इ िातिति जतस िुचा । तजउ पाएाँ िि कै भइ सुचा ॥
सब दु ख जस केंचुरर िा छूटी । होइ तिसरी जिु बीरबहूटी ॥
जतस भुइाँ दतह असाढ पिु हाई । परतहं बूाँद औ सोंतध बसाई ॥
ओतह भााँति पिु ही सुख-बारी । उठी कररि िइ कोंप साँवारी ॥
हुितस िंि तजतम बातढतह िे ई । जोबि िाि तहिोरैं दे ई ॥
काम, धिु क सर िे इ भइ ठाढी । भािेउ तबरह रहा जो डाढी ॥

पूछतहं सखी सहे िरी, तहरदय दे खख अिं द ।


आजु बदि िोर तिरमि, अहैं उवा जस चंद ॥2॥

अब िति रहा पवि, सखख िािा । आजु िाि मोतहं सीअर िािा ॥
मतह हुिसै जस पावस-छाहााँ । िस उपिा हुिास मि माहााँ ॥
दसवाँ दावाँ कै िा जो दसहरा । पिटा सोइ िाव िे इ महरा ॥
अब जोबि िंिा होइ बाढा । औटि कतठि मारर सब काढा ॥
हररयर सब दे ख ं संसारा । िए चार जिु भा अविारा ॥
भािेउ तबरह करि जो दाहू । भा मु ख चंद, छूतट िा राहू ॥
पिु हे िै ि, बााँह हुिसाहीं । कोउ तहिु आवै जातह तमिाहीं ॥

कहितह बाि सखखन्ह स ,ं ििखि आबा भााँट ।


राजा आइ तिअर भा, मं तदर तबछावहु पाट ॥3॥

सुति िेतह खि राजा कर िाऊाँ । भा हुिास सब ठााँवतहं ठाऊाँ ॥


पिटा जिु बरषा-ऋिु राजा । जस असाढ आवै दर साजा ॥
दे खख सो छत्र भई जि छाहााँ । हखस्त-मे घ ओिए जि माहााँ ॥
सेि पूरर आई घि घोरा । रहस-चाव बरसै चहुाँ ओरा ॥
धरति सरि अव होइ मे रावा । भरीं सररि औ िाि ििावा ॥
उठी िहतक मतह सुिितह िामा । ठावतहं ठावाँ दू ब अस जामा ॥
दादु र मोर कोतकिा बोिे । हुि जो अिोप जीभ सब खोिे ॥

होइ असवार जो प्रथमै तमिै चिे सब भाइ ।


िदी अठारह िंडा तमिीं समु द कह जाइ ॥4॥

बाजि िाजि राजा आवा ।ििर चहूाँ तदतस बाज बधावा ॥


तबहाँ तस आइ मािा स ं तमिा । राम जाइ भेंटी क तसिा ॥
साजै मं तदर बंदिवारा । होइ िाि बहु मं ििचारा ॥
पदमावति कर आव बेवािू । िािमिी तजउ महाँ भा आिू ॥
जिहुाँ छााँह महाँ धू प दे खाई । िै सइ झार िाति ज आई ॥
सही ि जाइ सवति कै झारा । दु सरे मं तदर दीन्ह उिारा ॥
भई उहााँ चहुाँ खंड बखािी । रििसेि पदमावति आिी ॥

पुहुप िंध संसार महाँ , रूप बखाति ि जाइ ।


हे म सेि जिु उघरर िा, जिि पाि फहराइ ॥5॥

बैठ तसंघासि, िोि जोहारा । तिधिी तिरिुि दरब बोहारा ॥


अितिि दाि तिछावरर कीन्हा । माँ ििन्ह दाि बहुि कै दीन्हा ॥
िे इ के हखस्त महाउि तमिे । िु िसी िे इ उपरोतहि चिे ॥
बेटा भाइ कुाँवर जि आवतहं । हाँ तस हाँ तस राजा कंठ ििावतहं ॥
िे िी िए, तमिे अरकािा । पाँवरतहं बाजै घहरर तिसािा ॥
तमिे कुाँवर, कापर पतहराए । दे इ दरब तिन्ह घरतहं पठाए ॥
सब कै दसा तफरी पुति दु िी । दाि-डााँि सबही जि सुिी ॥

बाजैं पााँच सबद तिति, तसखद्ध बखाितहं भााँट ।


छतिस कूरर, षट दरसि, आइ जुरे ओतह पाट ॥6॥

सब तदि राजा दाि तदआवा । भइ तितस, िािमिी पहाँ आवा ॥


िािमिी मु ख फेरर बईठी । स ह ं ि करै पुरुष स ं दीठी ॥
ग्रीषम जरि छााँतड जो जाइ । सो मु ख क ि दे खावै आई ?॥
जबतहं जरै परबि बि िािै । उठी झार, पंखी उतड भािे ॥
जब साखा दे कै औ छाहााँ । को ितहं रहतस पसारै बाहााँ ॥
को ितहं हरतष बैठ िेतह डारा । को ितहं करै केति कुररहारा ?॥
िू जोिी होइिा बैरािी । ह ं जरर छार भएउाँ िोतह िािी ॥

काह हाँ स िुम मोस ,ं तकएउ ओर स ं िह ।


िुम्ह मु ख चमकै बीजुरी, मोतहं मु ख बररसै मे ह ॥7॥
िािमति िू पतहति तबयाही । कतठि प्रीति दाहै जस दाही ॥
बहुिै तदिि आव जो पीऊ । धति ि तमिै धति पाहि जीऊ ॥
पाहि िोह पोढ जि दोऊ । िे ऊ तमितहं ज होइ; तबछोऊ ।
भिे तह सेि िंिाजि दीठा । जमु ि जो साम, िीर अति मीठा ॥
काह भएउ िि तदि दस दहा । ज बरषा तसर ऊपर अहा ॥
कोइ केहु पास आस कै हे रा । धति ओतह दरस-तिरास ि फेरा ॥
कंठ िाइ कै िारर मिाई । जरी जो बेति सींतच पिु हाई ॥

सबै पंखख तमति आइ जोहारे , ि तट उहै भइ भीर ॥


ज भा मे र भएउ राँ ि रािा । िािमिी हाँ तस पूछी बािा ॥8॥

कहहु, कंि! ओतह दे स िोभािे । कस धति तमिी, भोि कस मािे ॥


ज पदमावति सुतठ होइ िोिी । मोरे रूप की सरवरर होिी ?॥
जहााँ रातधका िोतपन्ह माहााँ । चंद्रावति सरर पूज ि छाहााँ ॥
भाँवर-पुरुष अस रहै ि राखा । िजै दाख, महुआ-सर चाखा ॥
ितज िािेसर फूि सोहावा काँवि तबसैंधतहं स ं मि िावा ॥
ज अन्हवाइ भरै अरिजा । ि हु ं ाँ तबसायाँध वह ितहं िजा ॥

काह कह ं ह ं िोस ,ं तकछु ि तहये िोतह भाव ।


इहााँ भाि मु ख मोस ,ं उहााँ जीउ ओतह ठााँव ॥9॥

कतह दु ख कथा ज रै ति तबहािी । भएउ भोर जहाँ पदतमति रािी ॥


भािु दे ख सतस-बदि मिीिा । काँवि-िै ि रािे, ििु खीिा ॥
रे ति िखि िति कीन्ह तबहािू । तबकि भई दे खा जब भािू ॥
सूर हाँ सै, सतस रोइ डफारा । टू ट आाँ सु जिु िखिन्ह मारा ॥
रहै ि राखी होइ तिसााँसी । िहाँ वा जाहु जहााँ तितस बासी ॥
ह ं कै िे ह कुआाँ महाँ मे िी । सींचै िाति झुरािी बेिी ॥
िै ि रहे होइ रहाँ ट क घरी । भरी िे ढारी, छूाँछी भरी ॥

सुभर सरोवर हं स चि, घटितह िए तबछोइ ।


कंबि ि प्रीिम पररहरै , सूखख पंक बरू होइ ॥10॥

पदमावति िुइाँ जीउ परािा । तजउ िें जिि तपयार ि आिा ॥


िुइ तजतम काँवि बसी तहय माहााँ । ह ं होइ अति बेधा िोतह पाहााँ ॥
मािति-किी भाँवर ज पावा । सो ितज आि फूि तकि भावा ? ॥
मैं ह ं तसंघि कै पदतमिी । सरर ि पूज जंबू-ितििी ॥
ह ं सुिंध तिरमि उतजयारी । वह तबष-भरी डे रावति कारी ॥
मोरी बास भाँवर साँि िाितहं । ओतह दे खि मािु ष डरर भाितहं ॥
ह ं पुरुषन्ह कै तचिवि दीठी । जेतहके तजउ अस अह ं पईठी ॥

ऊाँचे ठााँव जो बैठे , करै ि िीचतह संि ।


जहाँ सो िातिति तहरकै कररया करै सो अं ि ॥11॥

पिु ही िािमिी कै बारी । सोिे फूि फूति फुिवारी ॥


जावि पंखख रहे सब दहे । सबै पंखख बोिि िहिहे ॥
साररउाँ सुवा महरर कोतकिा । रहसि आइ पपीहा तमिा ॥
हाररि सबद, महोख सोहावा । काि कुराहर करर सुख पावा ॥
भोि तबिास कीन्ह कै फेरा । तबहाँ सतहं , रहसतहं , करतहं बसेरा ॥
िाचतहं पंडुक मोर परे वा । तबफि ि जाइ काहुकै सेवा ॥
होइ उतजयार सूर जस िपै । खू सट मु ख ि दे खावै छपै ॥

संि सहे िी िािमति, आपति बारी माहाँ ।


फूि चुितहं , फि िूरतहं , रहतस कूतद सुख-छााँह ॥12॥

(1) अाँ दोरा = अं दोर , हिचि, शोर (आं दोि)। चंडोि =पािकी । सरि स ं ईश्वर से । िेतिया = सींतिया तवष । िे तिया....िेही = चाहे उसे
िेतिया तवष से ि मारे । केहुाँ = तकसी प्रकार ।
(2) िुच = त्वचा, केंचिी । सुचा = सूचिा ,सुध,खबर । सोंतध बसाई = सुिंध से बस जािी है या सोंधी महकिी है । कररि = कल्ला । कोंप
= कोंपि ।
(3) िािा = िरम । दसवाँ दावाँ = दशम दशा, मरण । महरा = सरदार । औटि = िाप । िए चार = िए तसर से ।
(4) दर =दि । रहस-चाव = आिं द-उत्साह । िहतक उठी = िहिहा उठी । हुि =थे । अठारह िंडा िदी = अवध में जि साधारण के बीच
यह प्रतसद्ध है तक समु द्र में अठारह िंडे (अथााि् 72) ितदयााँ तमििी हैं
(5) बेवाि = तवमाि । तजउ महाँ भा आिू = जी में कुछ और भाव हुआ । झार = िपट, ईर्ष्ाा, डाह । ज =अब । उिारा । हे म सेि = सफेद
पािा या बफा ।
(6) बहुि कै = बहुि सा । जि = तजससे । अरकािा = अरकािे द िि, सरदार उमरा । दु िी = दु तिया में । डााँि = डं का । पााँ च सबद =
पंच शब्द , पााँच बाजे-िंत्री,िाि, झााँझ, ििाडा और िुरही । छतिस कूरर = छत्तीसों कुि के क्षतत्रय । षट दरसि = (िक्षण से) छुः शास्त्रों के
वक्ता ।
(7) तदआवा = तदिाया । कुररहारा = किरव , कोिाहि ।
(8) पोढ=दृढ, मजबूि, कडे । फरे सहस साखा होइ दाररउाँ , दाख , जाँभीर । फरे सहस...भीर = अथााि् िािमिी में फीर य वि-श्री और रस आ
िया और राजा के अं ि अं ि उससे तमिे ।
(9) मे र = मे ि, तमिाप । िोिी = सुंदर । िािसेर = अथााि् िािमिी । काँवि = अथााि् पद्माविी । तबसैंधा = तबसायाँध िंधवािा, मछिी की सी
िंधवािा । भाव = प्रेम भाव ।
(10) दे ख = दे खा । भािू = सूया, रत्नसेि । डफारा = ढाढ मारिी है । मारा = मािा । कुआाँ महाँ मे िी = मु झे िो कुएाँ में डाि तदया, अथााि्
तकिारे कर तदया । झुराि = सूखी । घरी = घडा । सुभर = भरा हुआ ।
(11) बेधा िोतह पाहााँ = िेरे पास उिझ िया हूाँ । डे रावति = डराविी । तहरके = सटे । कररया = कािा ।
(12) पिु ही = पल्लतवि हुई, पिपी । िहहे = आिन्द-पूवाक । कुराहर = कोिाहि । जस = जैसे ही । खूसट = उल्लू । िूरतह = िोडिी हैं ।
िािमिी-पद्माविी-तववाद-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी

जाही जू ही िेतह फुिवारी । दे खख रहस रतह सकी ि बारी ॥


दू तिन्ह बाि ि तहये समािी । पदमावति पहाँ कहा सो आिी ॥
िािमिी है आपति बारी । भाँवर तमिा रस करै धमारी ॥
सखी साथ सब रहसतहं कूदतहं । औ तसंिार-हार सब िूाँथतहं ॥
िुम जो बकावरर िुम्ह स ं भर िा । बकुचि िहै चहै जो करिा ॥
िािमिी िािेसरर िारी । काँवि ि आछे आपति बारी ॥
जस सेविीं िुिाि चमे िी । िैतस एक जिु वहू अकेिी ॥

अति जो सुदरसि कूजा , तकि सदबरिै जोि ?


तमिा भाँवर िािेसररतह , दीन्ह ओतह सुख-भोि ॥1॥

सुति पदमावति ररस ि साँभारी । सखखन्ह साथ आई फुिवारी ॥


दु व सवति तमति पाट बईठी । तहय तवरोध, मु ख बािैं मीठी ॥
बारी तदखस्ट सुरंि सो आई । पदमावति हाँ तस बाि चिाई ॥
बारी सुफि अहैं िुम रािी । है िाई, पै िाइ ि जािी ॥
िािेसर औ मािति जहााँ । साँििराव ितहं चाही िहााँ ॥
रहा जो मधु कर काँवि-तपरीिा । िाइउ आति करीितह रीिा ॥
जह अतमिीं पाकै तहय माहााँ । िहाँ ि भाव ि राँ ि कै छाहााँ ॥

फूि फूि जस फर जहााँ , दे खहु तहये तबचारर ।


आाँ ब िाि जेतह बारी जााँबु काह िेतह बारर ? ॥2॥

अिु , िुम कही िीक यह सोभा । पै फि सोइ भाँवर जेतह िोभा ॥


साम जााँबु कस्तूरी चोवा । आाँ ब ऊाँच, तहरदय िेतह रोवााँ ॥
िेतह िुि अस भइ जााँबु तपयारी । िाई आति मााँझ कै बारी ॥
जि बाढे बतह इहााँ जो आई । है पाकी अतमिी जेतह ठाईं ॥
िुाँ कस पराई बारी दू खी । िजा पाति, धाई मुाँ ह-सूखी ॥
उठै आति दु इ डार अभेरा । क ि साथ िहाँ बैरी केरा ॥
जो दे खी िािेसर बारी । ििे मरै सब सूआ सारी ॥

जो सरवर-जि बाढै रहै सो अपिे ठााँव ।


ितज कै सर औ कुंडतह जाइ ि पर-अं बराव ॥3॥

िुइाँ अाँ बराव िीन्हा का जूरी ?। काहे भई िीम तवष-मू री ॥


भई बैरर तकि कुतटि कटे िी । िेंदू टें टी चातह कसेिी ॥
दाररउाँ दाख ि िोरर फुिवारी । दे खख मरतहं का सूआ सारी ?॥
औ ि सदाफर िुराँज जाँभीरा । िािे कटहर बडहर खीरा ॥
काँवि के तहरदय भीिर केसर । िेतह ि सरर पूजै िािेसर ॥
जहाँ कटहर ऊमर को पूछै ?। बर पीपर का बोितहं छूाँछै ॥
जो फि दे खा सोई फीका । िरब ि करतहं जाति मि िीका ॥
रहु आपति िू बारी, मोस ं जूझु, ि बाजु ।
मािति उपम ि पूजै वि कर खूझा खाजु ॥4॥

जो कटहर बडहर झडबेरी । िोतह अतस िाहीं, कोकाबेरी ! ॥


साम जााँबु मोर िुराँज जाँभीरा । करुई िीम ि छााँह िाँभीरा ॥
िररयर दाख ओतह कहाँ राख ं । िििि जाउाँ सवति ितहं भाख ं ॥
िोरे कहे होइ मोरर काहा ?। फरे तबररछ कोइ ढे ि ि बाहा ॥
िवैं सदाफर सदा जो फरई । दाररउाँ दे खख फातट तहय मरई ॥
जयफर ि ि ं सोपारर छोहारा । तमररच होइ जो सहै ि झारा ॥
ह ं सो पाि रं ि पूज ि कोई । तबरह जो जरै चूि जरर होई ॥

िाजतहं बूतड मरतस ितहं ,, उतभ उठावतस बााँह ।


ह ं रािी, तपय राजा; िो कहाँ जोिी िाह ॥5॥

ह ं पदतमति मािसर केवा । भाँवर मराि करतहं मोरर सेवा ॥


पूजा-जोि दई हम्म िढी । और महे स के माथे चढी ॥
जािै जिि काँवि कै करी । िोतह अस ितहं िातिति तबष-भरी ॥
िुइाँ सब तिए जिि के िािा । कोइि भेस ि छााँडेतस कािा ॥
िू भुजइि, ह ं हाँ तसति भोरी । मोतह िोतह मोति पोति कै जोरी ॥
कंचि-करी रिि िि बािा । जहााँ पदारथ सोह ि आिा ॥
िू ि राहु, ह ं सतस उतजयारी । तदितह ि पूजै तितस अाँ तधयारी ॥

ठातढ होतस जे तह ठाईं मतस िािै िेतह ठाव ।


िेतह डर रााँध ि बैठ ं मकु सााँवरर होइ जाव ॥6॥

काँवि सो क ि सोपारी रोठा । जेतह के तहये सहस दस कोठा ॥


रहै ि झााँपै आपि िटा । सो तकि उघेति चहै परिटा ॥
काँवि-पत्र िर दाररउाँ , चोिी । दे खे सूर दे तस है खोिी ॥
ऊपर रािा, भीिर तपयरा । जार ं ओतह हरतद अस तहयरा ॥
इहााँ भाँवर मु ख बािन्ह िावतस । उहााँ सुरुज कह हाँ तस बहरावतस ॥
सब तितस ितप ितप मरतस तपयासी । भोर भए पावतस तपय बासी ॥
सेजवााँ रोइ रोइ तितस भरसी । िू मोस ं का सरवरर करसी ?॥

सुरुज-तकरि बहरावै, सरवर िहरर ि पूज ।


भाँवर तहया िोर पावै, धू प दे ह िोरर भूाँज ॥7॥

मैं ह ं काँवि सुरुज कै जोरी । ज तपय आपि ि का चोरी ?॥


ह ं ओतह आपि दरपि िे ख ं । कर ं तसंिार, भोर मु ख दे ख ं ॥
मोर तबिास ओतहक परिासू । िू जरर मरतस तिहारर अकासू ॥
ह ं ओतह स ,ं वह मोस ं रािा । तितमर तबिाइ होि परभािा ॥
काँवि के तहरदय महाँ जो िटा । हरर हर हार कीन्ह, का घटा ?॥
जाकर तदवस िेतह पहाँ आवा । कारर रै ति तकि दे खै पावा ?॥
िू ऊमर जेतह भीिर माखी । चाहतहं उडै मरि के पााँखी ॥

धू प ि दे खतह, तबषभरी ! अमृ ि सो सर पाव ।


जेतह िािति डस सो मरै , िहरर सुरुज कै आव ॥8॥

फूि ि काँवि भािु तबिु ऊए । पािी मै ि होइ जरर छूए ॥


तफरतहं भाँवर िारे ियिाहााँ । िीर तबसाइाँ ध होइ िोतह पाहााँ ॥
मच्छ कच्छ दादु र कर बासा । बि अस पंखख बसतहं िोतह पासा ॥
जे जे पंखख पास िोतह िए । पािी महाँ सो तबसाइाँ ध भए ॥
ज उतजयार चााँद होइ ऊआ । बदि किं क डोम िे इ छूआ ॥
मोतह िोतह तितस तदि कर बीचू । राहु के साथ चााँद कै मीचू ॥
सहस बार ज धोवै कोई । ि हु तबसाइाँ ध जाइ ि धोई ॥

काह कह ं ओतह तपय कहाँ , मोतह तसर धरे तस अाँ िारर ।


िेतह के खेि भरोसे िुइ जीिी, मैं हारर ॥9॥

िोर अकेि का जीतिउाँ हारू । मैं जीतिउाँ जि कर तसंिारू ॥


बदि तजतिउाँ सो सतस उतजयारी । बेिी तजतिउाँ भुअंतिति कारी ॥
िै िन्ह तजतिउाँ तमररि के िै िा । कंठ तजतिउाँ कोतकि के बैिा ॥
भह ं तजतिउाँ अरजुि धिु धारी । िीउ तजतिउाँ िमचूर पुछारी ॥
िातसक तजतिउाँ पुहुप तिि, सूआ । सूक तजतिउाँ बेसरर होइ ऊआ ॥
दातमति तजतिउाँ दसि दमकाहीं । अधर-रं ि जीतिउाँ तबंबाहीं ॥
केहरर तजतिउाँ , िं क मैं िीन्हीं । तजतिउाँ मराि, चाि वे दीन्ही ॥

पुहुप-बास मियतिरर तिरमि अं ि बसाई ।


िू िातिति आसा-िु बुध डसतस काहु कहाँ जाइ ॥10॥

का िोतहं िरब तसंिार पराए । अबहीं िै तहं िू ट सब ठाएाँ ॥


ह ं सााँवरर सिोि मोर िै िा । सेि चीर, मु ख चािक-बैिा ॥
िातसक खरि, फूि धु व िारा । भ ह ं ैं धिु क ििि िा हारा ॥
हीरा दसि सेि औ सामा । चपै बीजु ज तबहाँ सै बामा ॥
तबद्रूम अधर रं ि रस-रािे । जूड अतमय अस, रतब ितहं िािे ॥
चाि ियंद िरब अति भारी । बसा िं क, िािेसर - करी ॥
सााँवरर जहााँ िोति सुतठ िीकी । का सरवरर िू करतस जो फीकी ॥

पुहुप-बास औ पवि अधारी काँवि मोर िरहे ि ।


चह ं केस धरर िाव ,ं िोर मरि मोर खेि ॥11॥

पदमावति सुति उिर ि सही । िािमिी िातिति तजतम िही ॥


वह ओतह कहाँ ,वह ओतह कहाँ िहा । काह कह ं िस जाइ ि कहा ॥
दु व िवि भरर जोबि िाजैं । अछरी जिहुाँ अखारे बाजैं ॥
भा बाहुाँ ि बाहुाँ ि स ं जोरा । तहय स ं तहय, कोइ बाि ि मोरा ॥
कुच सों कुच भइ स ह ं ैं अिी । िवतहं ि िाए, टू टतहं ििी ॥
कुंभस्थि तजतम िज मैमंिा । दू व आइ तभरे च दं िा ॥
दे विोक दे खि हुि ठाढे । ििे बाि तहय, जातहं ि काढे ॥

जिहुाँ दीन्ह ठििाडू दे खख आइ िस मीचु ।


रहा ि कोइ धरहररया करै दु हुन्ह महाँ बीचु ॥12॥

पवि स्रवि राजा के िािा । कहे तस िडतहं पदतमति औ िािा ॥


दू ि सवति साम औ िोरी । मरतहं ि कहाँ पावतस अतस जोरी ॥
चति राजा आवा िे तह बारी । जरि बुझाई दू ि िारी ॥
एक बार जेइ तपय मि बूझा । सो दु सरे स ं काहे क जूझा ?॥
अस तियाि मि आव ि कोई । कबहुाँ राति, कबहुाँ तदि होई ॥
धू प छााँह दोउ तपय के रं िा । दू ि तमिी रहतहं एक संिा ॥
जूझ छााँ तड अब बूझहु दोऊ । सेवा करहु सेव-फि होऊ ॥

िंि जमु ि िुम िारर दोउ, तिखा मु हम्मद जोि ।


सेव करहु तमति दू ि ि मािहु सुख भ ि ॥13॥

अस कतह दू ि िारर मिाई । तबहाँ तस दोउ िब कंठ ििाई ॥


िे इ दोउ संि माँ तदर महाँ आए । सोि-पिाँ ि जहाँ रहे तबछाए ॥
सीझी पााँच अमृ ि-जेविारा । औ भोजि छप्पि परकारा ॥
हुिसीं सरस खजहजा खाई । भोि करि तबहाँ सी रहसाई ॥
सोि-माँ तदर ििमति कहाँ दीन्हा । रूप-माँ तदर पदमावति िीन्हा ॥
मं तदर रिि रिि के खंभा । बैठा राज जोहारै सभा ॥
सभा सो सबै सुभर मि कहा । सोई अस जो िुरु भि कहा ॥

बहु सुिंध, बहु भ ि सुख, कुरितहं केति करातहं ।


दु हुाँ स ं केति तिि मािै , रहस अिाँ द तदि जातहं ॥14॥

(1) धमारी करै = होिी की सी धमार या क्रीडा करिा है । िुम जो बकावरर ...भर िा = िुम जो बकाविी फूि हो क्या िुमसे राजा का जी
िहीं भरिा ? बकुचि िहे ...करिा = जो वह करिा फूि को पकडिा या आतिं िि करिा चाहिा है । िािेसरर = िािकेसर । काँवि ि....
आपति बारी = काँवि (पद्माविी) अपिी बारी या घर में िहीं है अथााि् घर िािमिी का जाि पडिा है । जस सेविीं..चमे िी = जैसे सेविी
और िुिािा आतद (खस्त्रयााँ) िािमिी की सेवा करिी हैं वैसे ही एक पतद्मिी भी है । अति जो ....सदबरिै जोि = जो भाँवरा सुदरसि फूि
पर िूाँजेिा वह सदबिा (िेंदा) के योग्य कैसे रह जायिा ?
(2) संििराव = साँििरा िीबू ; संिि राव, राजा का साथ । अतमिीं इमिी; ि तमिी हुई; तवरतहणी । ि राँ ि = िारं िी; िए आमोद-प्रमोद ।
(3) अिु = और । िजा पातक = सरोवर का जि छोडा । अभेरा = तभडं ि, रिडा । सारी = साररका, मै िा । सरवर-जि = सरोवर के जि में
। बाढै =बढिा है ?
(4) िुइाँ अाँ बराव...जूरी =िूिे अपिे अमराव में इकट्ठा ही क्या तकया है ? ऊमर = िूिर । ि बाजु = ि िड । खूझा खाजु = खर पिवार,
िीरस फि ।
(5) झडबेरी = झडबेर, जंििी बेर । कोकाबेरी =कमतििी । िि िि जाउ = चाहे िि जाऊाँ; िििि िीबू । सवति ितहं भाख ं = सपत्नी का
िाम ि िूाँ । कोइ ढे ि ि बाहा = कोई ढे िा ि फेंके (उससे क्या होिा है ) ऊभी = उठाकर
(6) केवा = कमि कािा = क वापि भुजइि = भुजंिा पक्षी । पोि = कााँच या पत्थर की िुररया । मतस =स्याही रााँध = पास, समीप ।
(7) रोठा = रोडा, टु कडा । जेतह के तहये ..कोठा = काँवि िट्टे के भीिर बहुि से बीज कोष होिे हैं । िटा = काँवििट्टा । उघेति = खोिकर
। दाररउाँ = अिार के समाि काँवििट्टा जो िेरा स्ति है । तितस भरसी = राि तबिािी है िू । करसी = िू करिी है । सरवर...पूज = िाि
की िहर उसके पास िक िहीं पहुाँ चिी; वह जि के ऊपर उठा रहिा है । भूाँज = भूििी है ।
(8) हरर हर हार कीन्ह = कमि की मािा तवष्णु और तशव पहििे हैं । मरि के पााँखी = कीडों को जो पंख अं ि समय में तिकििे हैं ।
(9) जरर = जड, मूि । डोम छूआ = प्रवाद है तक चंद्रमा डोमों के ऋणी हैं वे जब घेरिे हैं िब ग्रहण होिा है
(10) आसािु बुध = सुिंध की आशा से सााँप चंदि में तिपटे रहिे हैं ।
(11) तसंिार पराए = दू सरों से तिया तसंिार जैसा तक ऊपर कहा है । जूड अतमय ...िािे = उि अधरों में बािसूया की ििाई है पर वे
अमृ ि के समाि शीिि हैं ; िरम िहीं । िािेसर-करी = िािेसर फूि की किी । िरहे ि िीचे पडा हुआ, अधीि ।
(12) बाजैं = िडिी हैं । बाि ि मोरा = बाि िहीं मोडिी, अथााि् िडाई से हटिी िहीं । अिी = िोक । ििी = चोिी के बंद । च दं िा =
स्याम दे श का एक प्रकार का हाथी;अथवा थोडी अवस्था का उद्दं ड पशु (बैि, घोडे आतद के तिये इस शब्द का प्रयोि होिा है ) ठििाडू =
ठिों के िड् डू तजन्हें खखिाकर वे मु सातफरों को बेहोश करिे हैं । धरहररया = झिडा छु डािे वािा । बीचु करै = दोिों को अिि करे , झिडा
तमटाए ।
रत्नसेि-संिति-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी

जाएउ िािमति िािसेितह । ऊाँच भाि, ऊाँचै तदि रै ितह ॥


काँविसेि पदमावति जाएउ । जािहुाँ चंद धरति मइाँ आएउ ॥
पंतडि बहु बुतधवंि बोिाए । रातस बरि औ िरह ििाए ॥
कहे खन्ह बडे दोउ राजा होहीं । ऐसे पूि होतहं सब िोहीं ॥
िव ं खंड के राजन्ह जाहीं । औ तकछु दुं द होइ दि माहीं ॥
खोति भाँडारतहं दाि दे वावा । दु खी सुखी करर माि बढावा ॥
जाचक िोि, िुिीजि आए । औ अिं द के बाज बधाए ॥

बहु तकछु पावा जोतितसन्ह औ दे इ चिे असीस ।


पुत्र, कित्र, कुटुं ब सब जीयतहं कोतट बरीस ॥1॥

(1) जाएउ = उत्पन्न तकया, जिा । ऊाँचे तदि रै ितह = तदि-राि में वैसा ही बढिा िया । दुं द = झिडा, िडाई ।
राघव-चेिि-दे स-तिकािा-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी

राघव चेिि चेिि महा । आऊ सरर राजा पहाँ रहा ॥


तचि चेिा जािे बहु भेऊ । कतब तबयास पंतडि सहदे ऊ ॥
बरिी आइ राज कै कथा । तपंिि महाँ सब तसंघि मथा ॥
जो कतब सुिै सीस सो धु िा । सरवि िाद बेद सो सुिा ॥
तदखस्ट सो धरम-पंथ जेतह सूझा । ज्ञाि सो जो परमारथ बूझा ॥
जोति, जो रहै समातध समािा । भोति सो, िुिी केर िुि जािा ॥
बीर जो ररस मारै , मि िहा । सोइ तसिार कंि जो चहा ॥

बेि-भेद जस बररुतच, तचि चेिा िस चेि ।


राजा भोज चिुरदस ,भा चेिि स ं हे ि ॥1॥

होइ अचेि घरी ज आई । चेिि कै सब चेि भुिाई ॥


भा तदि एक अमावस सोई । राजै कहा `दु इज कब होई ?'॥
राघव के मु ख तिकसा `आजू' । पंतडिन्ह कहा`काखि, महराजू' ॥
राजै दु व तदसा तफरर दे खा । इि महाँ को बाउर, को सरे खा ॥
भुजा टे तक पं तडि िब बोिा । `छााँडतहं दे स बचि ज डोिा' ॥
राघव करै जाखखिी-पूजा । चहै सो भाव दे खावै दू जा ॥
िेतह ऊपर राघव बर खााँचा । `दु इज आजु ि पाँ तडि सााँचा' ॥

राघव पूतज जाखखिी, दु इज दे खाएतस सााँझ ।


बेद-पंथ जे ितहं चितहं िे भूितहं बि मााँझ ॥2॥
पाँतडिन्ह कहा परा ितहं धोखा । क ि अिस्त समु द जेइ सोखा ॥
सो तदि िएउ सााँझ भइ दू जी । दे खी दु इज घरी वह पूजी ॥
पाँतडिन्ह राजतह दीन्ह असीसा । अब कस यह कंचि और सीसा ॥
ज यह दु इज काखि कै होिी । आजु िेज दे खि सतस-जोिी ॥
राघव तदखस्टबंध कखि खेिा । सभा मााँझ चेटक अस मे िा ॥
एतह कर िुरु चमाररि िोिा । तसखा कााँवरू पाढि टोिा ॥
दु इज अमावस कहाँ जो दे खावै । एक तदि राहु चााँद कहाँ िावै ॥

राज-बार अस िुिी ि चातहय जेतह टोिा कै खोज ।


एतह चेटक औ तवद्या छिा जो राजा भोज ॥3॥

राघव -बैि जो कंचि रे खा । कसे बाति पीिर अस दे खा ॥


अज्ञा भई, ररसअि िरे सू । मारहु िातहं , तिसारहु दे सू ॥
झूठ बोति तथर रहै ि रााँचा । पंतडि सोइ बेद-मि-सााँचा ॥
वेद-वचि मु ख सााँच जो कहा । सो जुि-जुि अहतथर होइ रहा ॥
खोट रिि सोई फटकारै । केतह घर रिि जो दाररद हरै ?॥
चहै िखच्छ बाउर कतब सोई । जहाँ सुरसिी, िखच्छ तकि होई ?॥
कतविा-साँि दाररद मतिभंिी । कााँटे-कूाँट पुहुप कै संिी ॥

कतव ि चेिा, तवतध िुरू; सीप से वािी-बूाँद ।


िेतह मािु ष कै आस का ज मरतजया समुं द ?॥4॥

एतह रे बाि पदमावति सुिी । दे स तिसारा राघव िुिी ॥


ज्ञाि-तदखस्ट धति अिम तबचारा । भि ि कीन्ह अस िुिी तिसारा ॥
जेइ जाखखिी पू तज सतस काढा । सूर के ठााँव करै पुति ठाढा ॥
कतव कै जीभ खडि हरिािी । एक तदतस आति, दु सर तदतस पािी ॥
तजति अजुिुति काढै मु ख भोरे । जस बहुिे , अपजस होइ थोरे ॥
रािी राघव बेति हाँ कारा । सूर-िहि भा िे हु उिारा ॥
बाम्हि जहााँ दखच्छिा पावा । सरि जाइ ज होई बोिावा ।

आवा राघव चेिि, ध राहर के पास ।


ऐस ि जािा िे तहयै, तबजुरी बसै अकास ॥5॥

पदमावति जो झरोखे आई । तिहकिं क सतस दीन्ह तदखाई ॥


ििखि राभव दीन्ह असीसा । भएउ चकोर चंदमु ख दीसा ॥
पतहरे सतस िखिन्ह कै मारा । धरिी सरि भएउ उतजयारा ॥
औ पतहरै कर कंकि-जोरी । िि िािे जेतह महाँ ि कोरी ॥
काँकि एक कर कातढ पवारा । काढि हार टू ट औ मारा ॥
जािहुाँ चााँद टू ट िे इ िारा । छु टी अकास काि कै धारा ॥
जािहु टू तट बीजु भुइाँ परी । उठा च तध राघव तचि हरी ॥

परा आइ भुइाँ कंकि, जिि भएउ उतजयार ।


राघव तबजुरी मारा, तबसाँभर तकछ ि साँभार ॥6॥

पदमावति हाँ तस दीन्ह झरोखा । ज यह िुिी मरै , मोतहं दोखा ॥


सबै सहे िी दै खै धाईं । `चेिि चेिु' जिावतहं आई ॥
चेिि परा, ि आवै चैिू । सबै कहा `एतह िाि परे िु' ॥
कोई कहै , आतह सतिपािू । कोई कहै , तक तमरिी बािू ॥
कोइ कह, िाि पवि झर झोिा । कैसेहु समु तझ ि चेिि बोिा ॥
पुति उठाइ बैठाएखन्ह छाहााँ पू छतहं , क ि पीर तहय माहााँ ?॥
दहुाँ काहू के दरसि हरा । की ठि धू ि भूि िोतह छरा ॥

की िोतह दीन्ह काहु तकछु , की रे डसा िोतह सााँप ?।


कहु सचेि होइ चेिि, दे ह िोरर कस कााँप ॥7॥

भएउ चेि चेिि तचि चेिा । िै ि झरोखे , जीउ साँकेिा ॥


पुति जो बोिा मति बुतध खोवा । िै ि झरोखा िाए रोवा ॥
बाउर बतहर सीस पै धू िा । आपति कहै , पराइ ि सुिा ॥
जािहु िाई काहु ठि री । खि पुकार, खि बािैं ब री ॥
ह ं रे ठिा एतह तचिउर माहााँ । कास ं कह ,ं जाउाँ केतह पाहााँ॥
यह राजा सठ बड हत्ारा । जेइ राखा अस ठि बटपारा ॥
िा कोइ बरज, ि िाि िोहारी । अस एतह ििर होइ बटपारी ॥

तदखस्ट दीन्ह ठििाडू, अिक-फााँस परे िीउ ।


जहााँ तभखारर ि बााँचै, िहााँ बााँच को जीऊ ?॥8॥

तकि धोराहर आइ झरोखे ?। िे इ िइ जीउ दखच्छिा-धोखे ॥


सरि ऊइ सतस करै अाँ जोरी । िेतह िे अतधक दे हुाँ केतह जोरी ?॥
िहााँ सतसतह ज होति वह जोिी । तदि होइ राति , रै ति कस होिी ?॥
िेइ हं कारर मोतहं काँकि दीन्हा । तदखस्ट जो परी जीउ हरर िीन्हा ॥
िै ि-तभखारर ढीठ सिछाँ डा । िािै िहााँ बाि होइ िडा ॥
िै ितहं िै ि जो बेतध समािे । सीस धु िै तिसरतहं ितहं िािे ॥
िवतहं ि आए तििज तभखारी । िबतहं ि िाति रही मु ख कारी ॥

तकि करमु हें िैि भए, जीउ हरा जेतह वाट ।


सरवर िीर-तिछोह तजतम दरतक दरतक तहय फाट ॥9॥

सखखन्ह कहा चेितस तबसाँमारा । तहये चेिु जेतह जातस ि मारा ॥


ज कोइ पावै आपि मााँिा । िा कोइ मरै , ि काहू खााँिा ॥
वह पदमावति आतह अिू पा । बरति ि जाइ काहु के रूपा ॥
जो दे खा सो िुपुि चति िएउ । परिट कहााँ, जीउ तबिु भएउ ॥
िुम्ह अस बहुि तबमोतहि भए । धु ति धु ति सीस जीउ दे इ िए ॥
बहुिन्ह दीन्ह िाइ कै िीवा । उिर दे इ ितहं , मारै जीवा ॥
िुइाँ पै मरतहं होइ जरर भूई । अबहुाँ उघेिु काि कै रूई ॥

कोइ मााँिे ितहं पावै, कोइ मााँिे तबिु पाव ।


िू चेिि औरतह समु झावै, िोकहाँ को समु झाव ?॥10॥

भएउ चेि, तचि चेिि चेिा । बहुरर ि आइ सह ं दु ख एिा ॥


रोवि आइ परे हम जहााँ ।रोवि चिे , क ि सुख िहााँ ?॥
जहााँ रहे संस तजउ केरा । क ि रहति ? चति चिै सबेरा ॥
अब यह भीख िहााँ होइ माि ं । दे इ एि जेतह जिम ि खााँि ं ॥
अस कंकि ज पाव ं दू जा । दाररद हरै , आस मि पूजा ॥
तदल्ली ििर आतद िुरकािू । जहााँ अिाउदीि सुििािू ॥
सोि ढरै जेतह के टकसारा । बारह बािी चिै तदिारा ॥

काँवि बखाि ं जाइ िहाँ जहाँ अति अिाउदीि ।


सुति कै चढै भािु होइ, रिि जो होइ मिीि ॥11॥

(1) आऊ सरर = आयु पयांि, जन्म भर । चेिा = ज्ञाि प्राप्त । भेऊ = भेद, ममा । तपंिि = छं द या कतविा में । तसंघि मथा = तसंघिदीप की
सारी कथा मथकर वणाि की । मि िहा = मि को वश में तकया । राजा भोज चिुरदस = च दहों तवद्याओं में राजा भोज के समाि ।
(2) होइ अचेि ,..ज आई = जब संयोि आ जािा है िब चेिि भी अचेि हो जािा है ; बुखद्धमाि भी बुखद्ध खो बैठिा है ।भुजा टे तक = हाथ
मारकर , जोर दे कर । जाखखिी = यतक्षणी । बर खााँचा = रे खा खीचकर कहा , जोर दे कर कहा ।
(3) क ि अिस्त...सोखा = अथााि् इििी अतधक प्रत्क्ष बाि को क ि पी जा सकिा है ? अब कस सीसा = अब यह कैसा कंचि कंचि और
सीसा सीसा हो िया । काखि कै = कि को। तदखस्टबंध = इं द्रजाि, जादू । चेटक = माया । चमाररति िोिा = कामरूप की प्रतसद्ध जादू िरिी
िोिा चमारी । एक तदि राहु चााँद कहाँ िावै = जब चाहे चंद्रग्रहण कर दे ; पद्माविी के कारण बादशाह की चढाई का संकेि भी तमििा है ।
(4) फटकरै = फटक दे । मतिभंिी = बुखद्ध भ्रि करिे वािा । िेतह मािु ष कै आस का = उसको मिु र्ष् की क्या आशा करिी चातहए ? अिम
= आिम, पररणाम । जाखखिी = यतक्षणी । सूर के ठााँव ..ठाढा = सूया की जिह दू सरा सूया खडा कर दे । (राजा पर बादशाह को चढा िािे
का इशारा है )हरिािी = हरिाि की ििवार प्रतसद्ध थी । अजु िुति = अिहोिी बाि, अयुक्त बाि । भोरे = भूिकर । जस बहुिे....थोरे =
यश बहुि करिे से तमििा है , अपयश थोडे ही में तमििा है । उिारा = तिछावर तकया हुआ दाि ।
(6) कोरी = बीस की संख्या । पवारा = फेंका । च तं ध उठा = आाँ खों में चकाच ध ं हो िई ।
(7) सतिपािू = सतन्नपाि, तत्रदोष ।
(8) साँकेिा = संकट में ।ठिोरी िाई = ठि तिया; सुध-बुध िि करके ठक कर तिया । ब री = बाविों की सी । बरज = मिा करिा है ।
िोहारर िििा = पुकार सुिकर सहायिा के तिये आिा ।
(9) दखच्छिा-धोखे = दतक्षणा का धोखा दे कर । जोरी = पटिर, उपमा । तदि होइ राति = िो राि में भी तदि होिा और राि ि होिी । हाँ कारर
= बुिाकर । सिछाँ डा = सत् छोडिे वािा । समािे = खींचिे से । िबतहं ि....कारी = िभी ि (उसी कारण से ) आाँ खों के मुाँ ह में
कातिमा ( कािी-पुििी । िि रही है । सरवर िीर ....फाट = िािाब के सूखिे पर उसकी जमीि में चारों ओर दरारें सी पड जािी है ।
(10) बरति ि जाइ....रूपा = तकसी के साथ उसकी उपमा िहीं दी जा सकिी ।भूई = सरकंडे का धू आ । उघेिु....रूई = सुिकर चेि
कर, काि की रूई खोि ।
(11) एिा = इििा । संस = शंशय । क ि रहति = वहााँ का रहिा क्या ? दे इ एि...खााँि ं = इििा दो तक तफर मु झे कमी ि हो । सोि ढरै
= सोिा ढििा है , सोिे के तसक्के ढािे जािे हैं । बारहबािी = चोखा । तदिारा = दीिार िाम का प्रचतिि तसिे का तसक्का । अति = भ रं ा ।
राघव-चेिि-तदल्ली-िमि-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी

राघव चेिि कीन्ह पयािा । तदल्ली ििर जाइ तियरािा ॥


आइ साह के बार पहूाँ चा । दे खा राज जिि पर ऊाँचा ॥
छतत्तस िाख िुरुक असवारा । िीस सहस हस्ती दरबारा ॥
जहाँ िति िपै जिि पर भािू । िहाँ िति राज करै सुििािू ॥
चहूाँ खाँड के राजा आवतहं । ठाढ झुरातहं , जोहार ि पावतहं ॥
मि िेवाि कै राघव झूरा । िातहं उवार, जीउ-डर पूरा ॥
जहाँ झुरातहं दीन्हें तसर छािा । िहाँ हमार को चािै बािा ? ॥

वार पार ितहं सूझै, िाखि उमर अमीर ।


अब खुर-खेह जाहुाँ तमति, आइ परे उाँ एतह भीर ॥1॥

बादशाह सब जािा बूझा । सरि पिार तहये महाँ सूझा ॥


ज राजा अस सजि ि होई । काकर राज, कहााँ, कर कोई ॥
जिि-भार उन्ह एक साँभारा । ि तथर रहै सकि संसारा ॥
औ अस ओतहक तसंघासि ऊाँचा । सब काहू पर तदखस्ट पहूाँ चा ॥
सब तदि राजकाज सुख-भोिी । रै ति तफरै घर घर होइ जोिी ॥
राव रं क जावि सब जािी । सब कै चाह िे इ तदि रािी ॥
पंथी परदे सी जि आवतहं । सब कै चाह दू ि पहुाँ चावतहं ॥

एहू वाि िहाँ पहुाँ ची, सदा छत्र सु ख-छाहाँ !


बाम्हि एक बार है , काँकि जराऊ बाहाँ ॥2॥

मया साह मि सुिि तभखारी । परदे सी को? पूछु हाँ कारी ॥


हम्ह पुति जािा है परदे सा । क ि पंथ, िविब केतह भेसा ?॥
तदल्ली राज तचंि मि िाढी । यह जि जैस दू ध कै साढी ॥
सैंति तबिोव कीन्ह बहु फेरा । मतथ कै िीन्ह घीउ मतह केरा ॥
एतह दतह िे इ का रहै तढिाई । साढी काढु दही जब िाईं ॥
एतह दतह िे इ तकि होइ होइ िए । कै कै िरब खेह तमति िए ॥
रावि िं क जारर सब िापा । रहा ि जोबि, आव बुढापा ॥

भीख तभखारी दीतजए, का बाम्हि का भााँट ।


अज्ञा भइ हाँ कारहु, धरिी धरै तििाट ॥3॥

राघव चेिि हुि जो तिरासा । ििखि बेति बोिावा पासा ॥


सीस िाइ कै दीन्ह असीसा । चमकि िि कंकि कर दीसा ॥
अज्ञा भइ पुति राघव पाहााँ । िू मं िि, कंकि का बाहााँ ?॥
राघव फेरर सीस भुइाँ धरा । जुि जुि राज भािु कै करा ॥
पदतमति तसंघिदीप क रािी । रििसेि तचिउरिढ आिी ॥
काँवि ि सरर पूजै िेतह बासा । रूप ि पूजै चंद अकासा ॥
जहााँ काँवि सतस सूर ि पूजा । केतह सरर दे उाँ, और को दू जा ? ॥

सोइ रािी संसार-मति दतछिा कंकि दीन्ह ।


अछरी-रूप दे खाइ कै जीउ झरोखे िीन्ह ॥4॥

सुति कै उिर सातह मि हाँ सा । जािहु बीजु चमतक परिसा ॥


कााँच-जोि जेतह कंचि पावा । मं िि िातह सुमेरु चढावा ॥
िावाँ तभखारर जीभ मु ख बााँची । अबहुाँ साँभारर बाि कहु सााँची ॥
कहाँ अस िारर जिि उपराहीं । जेतह के सूरुज सतस िाहीं ?॥
जो पदतमति सो मं तदर मोरे । साि दीप जहााँ कर जोरे ॥
साि दीप महाँ चुति चुति आिी । सो मोरे सोरह सै रािी ॥
ज उन्ह कै दे खतस एक दासी । दे खख िोि होइ िोि तबिासी ॥
चहूाँ खंड ह ं चक्कवै, जस रतब िपै अकास ।
ज पदतमति ि मोरे , अछरी ि कतबिास ॥5॥

िुम बड राज छत्रपति भारी । अिु बाम्हि मैं अह ं तभखारी ॥


चारउ खंड भीख कहाँ बाजा । उदय अस्त िुम्ह ऐस ि राजा ॥
धरमराज औ सि कति माहााँ । झूठ जो कहै जीभ केतह पाहााँ ?॥
तकछु जो चारर सब तकछु उपराहीं । िे एतह जंबू दीपतह िाहीं ॥
पदतमति, अमृ ि, हं स, सदू रू । तसंघिदीप तमितहं पै मू रू ॥
साि ं दीप दे खख ह ं आवा । िब राघव चेिि कहवावा ॥
अज्ञा होइ, ि राख ं धोखा । कह ं सबै िाररन्ह िुि-दोषा ॥

इहााँ हखस्तिी, संखखिी औ तचतत्रति बहु बास ।


कहााँ पदतमिी पदु म सरर, भाँवर तफरै जेतह पास ?॥6॥

(1) बार = िार । ठाढ झुरातहं = खडे खडे सूखिे हैं । जोहार सिाम । िेवाि = तचंिा, सोच । झूरा = व्याकुि होिा है , सूखिा है । िातहं
उबार = यहााँ िुजर िहीं । दीन्हें तसर छािा = छत्रपति राजा िोि । उमर = उमरा, सरदार । खुर-खेह = घोडों की टापों से उठी धू ि में ।
(2) सजि = होतशयार । रै ति तफरै ....जोिी को जोिी के भेस में प्रजा की दशा दे खिे को घूमिा है । चाह = खबर ।
(3) मया साह मि = बादशाह के मि में दया हुई । सैति = संतचि करके । तबिोव कीन्ह = मथा । मतह = पृथ्वी ; मही, मट्ठा । दतह िे इ =
तदल्ली में ; दही िे कर । खेह = धू ि, तमट्टी ।
(4) हुि = था । संसार मति = जिि में मतण के समाि ।
(5) जेतह कंचि पावा = तजससे सोिा पाया । िावाँ तभखारर...बााँची = तभखारी के िाम पर अथााि् भीखारी समझकर िेरे मुाँ ह में जीभ बची हुई
है , खींच िहीं िी िई । िोि = िावण्य, स द ं या । होइ िोि तबिासीं = िू िमक की िरह िि जाय । चक्कवै = चक्रविी ।
(6) अिु = और, तफर । भीख कहाँ = तभक्षा के तिए । बाजा = पहुाँ चिा है , डटिा है । उदय-अस्त = उदयाचि से अस्ताचि िक । तकतछ जो
चारर...उपराहीं = जो चार चीजें सबसे ऊपर हैं । मू रू = मू ि, असि । बहुबास = बहुि सी रहिी हैं ।
स्त्री-भेद-वणाि-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी

पतहिे कह ं हखस्तिी िारी । हस्ती कै परकीरति सारी ॥


तसर औ पायाँ सुभर तिउ छोटी । उर कै खीति, िं क कै मोटी ॥
कुंभस्थि कुच,मद उर माहीं । िवि ियंद,ढाि जिु बाहीं ॥
तदखस्ट ि आवै आपि पीऊ । पु रुष पराएअ ऊपर तजऊ ॥
भोजि बहुि, बहुि रति चाऊ । अछवाई ितहं , थोर बिाऊ ॥
मद जस मं द बसाइ पसेऊ । औ तबसवातस छरै सब केऊ ॥
डर औ िाज ि एक तहये । रहै जो राखे आाँ कुस तदये ॥

िज-िति चिै चहूाँ तदतस, तचिवै िाए चोख ।


कही हखस्तिी िारर यह, सब हखस्तन्ह के दोख ॥1॥

दू सरर कह ं संखखिी िारी । करै बहुि बि अिप-अहारी ॥


उर अति सुभर, खीि अति िंका । िरब भरी, मि करै ि संका ॥
बहुि रोष, चाहै तपउ हिा । आिे घाि ि काहू ििा ॥
अपिै अिं कार ओतह भावा । दे खख ि सकै तसंिार परावा ॥
तसंघ क चाि चिै डि ढीिी । रोवााँ बहुि जााँघ औ फीिी ॥
मोतट , मााँसु रुतच भोजि िासू । औ मु ख आव तबसायाँध बासू ॥
तदखस्ट, तिरहुडी, हे र ि आिे । जिु मथवाह रहै तसर िािे ॥

सेज तमिि स्वामी कहाँ िावै उर िखबाि ।


जेतह िुि सबै तसंघ के सो संखखति, सुििाि !॥2॥

िीसरर कह ं तचतत्रिी िारी । महा चिुर रस-प्रेम तपयारी ॥


रूप सुरूप, तसंिार सवाई । अछरी जैतस रहै अछवाई ॥
रोष ि जािै , हाँ सिा-मु खी । जेतह अतस िारी कंि सो सुखी ॥
अपिे तपउ कै जािै पूजा । एक पुरुष ितज आि ि दू जा ॥
चंदबदति, राँ ि कुमु तदति िोरी । चाि सोहाइ हं स कै जोरी ॥
खीर खााँड रुतच, अिप अहारू । पाि फूि िेतह अतधक तपयारू ॥
पदतमति चातह घातट दु इ करा । और सबै िुि ओतह तिरमरा ॥
तचतत्रति जैस कुमु द-राँ ि सोइ बासिा अं ि ।
पदतमति सब चंदि अतस, भाँवर तफरतहं िेतह संि ॥3॥

च थी कह ं पदतमिी िारी । पदु म-िंध सतस दे उ साँवारी ॥


पदतमति जाति पदु म-राँ ि ओही । पदु म-बास, मधु कर साँि होहीं ॥
िा सुतठ िााँबी, िा सुतठ छोटी । िा सुतठ पािरर, िा सुतठ मोटी ॥
सोरह करा रं ि ओतह बािी । सो, सुििाि !पदतमिी जािी ॥
दीरघ चारर, चारर िघु सोई । सु भर चारर, चहुाँ खीि होई ॥
औ सतस-बदि दे खख सब मोहा । बाि मराि चिि िति सोहा ॥
खीर अहार ि कर सुकुवााँरी । पाि फूि के रहै अधारी ॥

सोरह करा साँपूरि औ सोरह तसं िार ।


अब ओतह भााँति कहि ह ं जस बरिै संसार ॥4॥

प्रथम केस दीरघ मि मोहै । औ दीरघ अाँ िुरी कर सोहै ॥


दीरघ िै ि िीख िहाँ दे खा । दीरघ िीउ, कंठ तिति रे खा ॥
पुति िघु दसि होतहं जिु हीरा । औ िघु कुच उत्तंि जाँभीरा ॥
िघु तििाट छूइज परिासू । औ िाभी िघु, चंदि बासू ॥
िातसक खीि खरि कै धारा । खीि िं क जिु केहरर हारा ॥
खीि पेट जािहुाँ ितहं आाँ िा । खीि अधर तबद्रु म-राँ ि-रािा ॥
सुभर कपोि, दे ख मु ख सोभा । सुभर तििंब दे खख मि िोभा ॥

सुभर किाई अति बिी, सुभर जंघ, िज चाि ।


सोरह तसंिार बरति कै , करतहं दे विा िाि ॥5॥

(1) अछवाई = सफाई । बिाऊ = बिाव तसंिार । बसाइ = दु िांध करिा है । चोख = चंचििा या िे त्र
(2) सुभर = भरा हुआ । चाहै तपउ हिा = पति को कभी कभी मारिे द डिी है । घाि ि ििा = कुछ िहीं समझिी, पसंिे बराबर िहीं
समझिी । फीिी = तपंडिी । िरहुाँ डी = िीचा । हे र = दे खिी है । मथवाह = झािरदार पट्टी जो भडकिे वािे घोडों के मत्थे पर इसतिये बााँध
दी जािी है तजसमें वे इधर उधर की वस्तु दे ख ि सकें । जेतह िुि सबै तसंघ के = कतव िे शायद शंखखिी के स्थाि पर `तसंतघिी' समझा है ।
(3) सवाई = अतधक । अछवाई = साफ, तिखरी । चातह = अपेक्षा, बतिस्बि । घातट =घटकर । करा = किा । बासिा = बास, महाँ क ।
(4) सुतठ = खूब, बहुि । दीरघ चारर...होइ = ये सोिह श्रृंिार के तवभाि हैं ।
(5) दीरघ = िं बे । िीख = िीखे । तिति = िीि । केहरर हारा = तसंह िे हार कर दी । आाँ िा = अाँ िडी । सुभर = भरे हुए । िाि =
िािसा ।
पद्माविी-रूप-चचाा-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी

वह पदतमति तचिउर जो आिी । काया कुंदि िादसबािी ॥


कुंदि किक िातह ितहं बासा । वह सुिंध जस काँवि तबिासा ॥
कुंदि किक कठोर सो अं िा । वह कोमि, राँ ि पुहुप सुरंिा ॥
ओतह छु इ पवि तबररछ जे तह िािा । सोइ मियातिरर भएउ सुभािा ॥
काह ि मू ठी-भरी ओतह दे ही ?। अतस मू रति केइ दे उ उरे ही ?॥
सबै तचिेर तचत्र कै हारे । ओतहक रूप कोइ तिखै ि पारे ॥
कया कपूर, हाड सव मोिी । तिन्हिें अतधक दीन्ह तबतध जोिी ॥

सुरुज-तकररि जतस तिरमि, िेतहिें अतधक सरीर ।


सह ं तदस्ट ितहं जाइ करर, िै िन्ह आवै िीर ॥1॥

सतस-मु ख जबतहं कहै तकछु बािा । उठि ओठ सूरुज जस रािा ॥


दसि दसि स ं तकररि जो फूटतहं । सब जि जिहुाँ फुिझरी छूटतहं ॥
जािहुाँ सतस महाँ बीजु दे खावा । च तं ध परै तकछु कहै ि आवा ॥
कधं ि अह जस भाद - ं रै िी । साम रै ति जिु चिै उडै िी ॥
जिु बसंि ऋिु कोतकि बोिी । सुरस सुिाइ मारर सर डोिी ॥
ओतह तसर सेस िाि ज हरा । जाइ सरि बेिी होइ परा ॥
जिु अमृ ि होइ बचि तबिासा । काँवि जो बास बास धति पासा ॥

सबै मितह हरर जाइ मरर जो दे खै िस चार ।


पतहिे सो दु ख बरति कै, बरि ओतहक तसंिार ॥2॥
तकि ह ं रहा काि कर काढा । जाइ ध रहर िर भा ठाढा ॥
तकि वह आइ झरोखै झााँकी । िै ि कुराँ तिति, तचिवति बााँकी ॥
तबहाँ तस सतस िरईं जिु परी । की सो रै ति छूटीं फुिझरी ॥
चमक बीजु जस भाद ं रै िी । जिि तदखस्ट भरर रही उडै िी ॥
काम-कटाछ तदखस्ट तवष बसा । िातिति-अिक पिक महाँ डसा ॥
भहं धिु ष, पि काजर बूडी । वह भइ धािु क, ह ं भा ऊडी ॥
मारर चिी, मारि हू हाँ सा । पाछे िाि रहा, ह ं डाँ सा ॥

काि घाति पाछे रखा, िरुड ि मं िर कोइ ।


मोरे पेट वह पैठा, कास ं पुकार ं रोइ ? ॥3॥

बेिी छोरर झार ज केसा । रै ति होइ ,जि दीपक िे सा ॥


तसर हुि तबसहर परे भुइाँ बारा । सिर ं दे स भएउ अाँ तधयारा ॥
सकपकातहं तवष-भरे पसारे । िहरर-भरे िहकतहं अति कारे ॥
जािहुाँ िोटतहं चढे भुअंिा । बेधे बास मियतिरर-अं िा ॥
िु रतहं मु रतहं जिु माितहं केिी । िाि चढे मािति कै बेिी ॥
िहरैं दे इ जिहुाँ कातिं दी । तफरर तफरर भाँवर होइ तचि-बंदी ॥
चाँवर ढु रि आछै चहुाँ पासा । भाँ वर ि उडतहं जो िु बुधे बासा ॥

होइ अाँ तधयार बीजु धि िााँपै जबतह चीर ितह झााँ प ।


केस-िाि तकि दे ख मैं , साँवरर साँवरर तजय कााँप ॥4॥

मााँि जो मातिक सेंदुर-रे खा । जिु बसंि रािा जि दे खा ॥


कै पत्रावति पाटी पारी । औ रुतच तचत्र तबतचत्र साँवारी ॥
भए उरे ह पुहुप सब िामा । जिु बि तबखरर रहे घि सामा ॥
जमु िा मााँझ सुरसिी मं िा । दु हुाँ तदतस रही िरं तििी िंिा ॥
सेंदुर-रे ख सो ऊपर रािी । बीरबहूतटन्ह कै जतस पााँिी ॥
बति दे विा भए दे खी सेंदूरू । पूजै मााँि भोर उतट सूरू ॥
भोर सााँझ रतब होइ जो रािा । ओतह रे खा रािा होइ िािा ॥

बेिी कारी पुहुप िे इ तिकसी जमु िा आइ ।


पूज इं द्र आिं द स ं सेंदुर सीस चढाइ ॥5॥

दु इज तििाट अतधक मतियारा । संकर दे खख माथ िहाँ धारा ॥


यह तिति दु इज जिि सब दीसा । जिि जोहारै दे इ असीसा ॥
सतस जो होइ ितहं सरवरर छाजै । होइ सो अमावस छतप मि िाजै ॥
तििक साँवारर जो चुन्नी रची । दु इज मााँझ जिहुाँ कचपची ॥
सतस पर करवि सारा राहू । िखिन्ह भरा दीन्ह बड दाहू ॥
पारस-जोति तििाटतह ओिी । तदखस्ट जो करै होइ िेतह जोिी ॥
तसरी जो रिि मााँि बैठारा । जािहु ििि टू ट तितस िारा ॥

सतस औ सूर जो तिरमि िेतह तििाट के ओप ।


तितस तदि द रर ि पूजतहं , पु ति पुति होतहं अिोप ॥6॥

भ हैं साम धिु क जिु चढा । बेझ करै मािु ष कहाँ िढा ॥
चंद क मू तठ धिु क वह िािा । काजर मिच, बरुति तबष-बािा ॥
जा सहुाँ हे र जाइ सो मारा । तिररवर टरतहं भ ह ं जो टारा ॥
सेिुबंध जेइ धिु ष तबिाडा । उह धिु ष भ ह ं न्ह स ं हारा ॥
हारा धिु ष जो बेधा राहू । और धिु ष कोइ ििै ि काहू ॥
तकि सो धिु ष मैं भ ह ं न्ह दे खा । िाि बाि तिन्ह आउ ि िे खा ॥
तिन्ह बािन्ह झााँझर भा हीया । जो अस मारा कैसे जीया ?॥

सूि सूि िि बेधा, रोवाँ रोवाँ सब दे ह ।


िस िस महाँ िे साितहं , हाड हाड भए बेह ॥7॥

िै ि तचत्र एतह रूप तचिेरा । काँवि-पत्र पर मधुकर फेरा ॥


समु द-िरं ि उठतह जिु रािे । डोितह औ घूमतहं रस-मािे ॥
सरद-चंद महाँ खंजि-जोरी । तफरर तफरर िरै बहोरर बहोरी ॥
चपि तबिोि डोि उन्ह िािे । तथर ि रहै चंचि बैरािे ॥
तिरखख अघातहं ि हत्ा हुाँ िे । तफरर तफरर स्रविन्ह िाितहं मिे ॥
अं ि सेि, मु ख साम सो ओही । तिरछे चितहं सूध ितहं होहीं ॥
सुर, िर, िंध्रब िाि कराहीं । उथिे चितहं सरि कहाँ जाहीं ॥

अस वै ियि चक्र दु इ भाँवर समुद उिथातहं ।


जिु तजउ घाति तहं डोितहं िे इ आवतहं , िे इ जातहं ॥8॥

िातसक-खडि हरा धति कीरू । जोि तसंिार तजिा औ बीरू ॥


सतस-मुाँ ह स ह ं ाँ खडि दे इ रामा । रावि स ं चाहै संग्रामा ॥
दु हुाँ समु द्र महाँ जिु तबच िीरू । सेिु बंध बााँधा रघुबीरू ॥
तिि के पुहुप अस िातसक िासू । औ सुिंध दीन्ही तबतध बासू ॥
हीर-फूि पतहरे उतजयारा । जिहुाँ सरद सतस सोतहि िारा ॥
सोतहि चातह फूि वह ऊाँचा । धावतहं िखि, ि जाइ पहूाँ चा ॥
ि जि ं कैस फूि वह िढा । तबितस फूि सब चाहतहं चढा ॥

अस वह फूि सुबातसि भएउ िातसका-बंध ।


जेि फूि ओतह तहरकतहं तिन्ह कहाँ होइ सुिंध ॥9॥

अधर सुरंि, पाि अस खीिे । रािे-रं ि, अतमय-रस-भीिे ॥


आछतहं तभजे िाँबोि स ं रािे । जिु िुिाि दीसतहं तबहाँ सािे ॥
मातिक अधर, दसि जिु हीरा । बैि रसाि, कााँड मु ख बीरा ॥
काढे अधर डाभ तजतम चीरा । रुतहर चुवै ज खााँडै बीरा ॥
ढारै रसतह रसतह रस-िीिी । रकि-भरी औ सुराँि राँ िीिी ॥
जिु परभाि राति रतव-रे खा । तबिसे बदि काँवि जिु दे खा ॥
अिक भुअंतिति अधरतह राखा । िहै जो िातिति सो रस चाखा ॥

अधर अधर रस प्रेम कर, अिक भुअंतिति बीच ।


िब अमृ ि-रस पावै जब िातिति ितह खींच ॥10॥

दसि साम पािन्ह-राँ ि-पाके । तबिसे काँवि मााँह अति िाके ॥


ऐतस चमक मु ख भीिर होई । जिु दाररउाँ औ साम मकोई ॥
चमकतहं च क तबहाँ स ज िारी । बीजु चमक जस तितस अाँ तधयारी ॥
सेि साम अस चमकि दीठी । िीिम हीरक पााँति बईठी ॥
केइ सो िढे अस दसि अमोिा । मारै बीजु तबहाँ तस ज बोिा ॥
रिि भीतज रस-रं ि भए सामा । ओही छाज पदारथ िामा ॥
तकि वै दसि दे ख रस-भीिे । िे इ िइ जोति, िै ि भए हीिे ॥

दसि-जोति होइ िै ि-मि तहरदय मााँझ पईठ ।


परिट जि अाँ तधयार जिु , िुपुि ओतह मैं दीठ ॥11॥

रसिा सुिहु जो कह रस-बािा । कोतकि बैि सुिि मि रािा ॥


अमृ ि-कोंप जीभ जिु िाई । पाि फूि अतस बाि सोहाई ॥
चािक-बैि सुिि होइ सााँिी । सु िै सो परै प्रेम-मधु मािी ॥
तबरवा सूख पाव जस िीरू । सु िि बैि िस पिु ह सरीरू ॥
बोि सेवाति-बूाँद जिु परहीं । स्रवि-सीप-मु ख मोिी भरहीं ॥
धति वै बैि जो प्राि-अधारू । भूखे स्रवितहं दे तहं अहारू ॥
उन्ह बैिन्ह कै कातह ि आसा । मोहतह तमररि बीि-तवस्वासा ॥

कंठ सारदा मोहै , जीभ सुरसिी काह ?


इं द्र, चंद्र, रतव दे विा सबै जिि मुख चाह ॥12॥

स्रवि सुिहु जो कुंदि-सीपी । पतहरे कुंडि तसंघिदीपी ॥


चााँद सुरुज दु हुाँ तदतस चमकाहीं । िखिन्ह भरे तिरखख ितहं जाहीं ॥
खखि खखि करतहं बीजु अस कााँपा । अाँ बर-मे घ महाँ रहतहं ि झााँपा ॥
सूक सिीचर दु हुाँ तदतस मिे । होतहं तििार ि स्रविन्ह-हुाँ िे ॥
कााँपि रहतहं बोि जो बैिा । स्रविन्ह ज िाितह तफर िै िा ॥
जस जस बाि सखखन्ह स ं सुिा । दु हुाँ तदतस करतहं सीस वै धु िा ॥
खूाँट दु व अस दमकतहं खूाँटी । जिहु परै कचपतचया टू टी ॥
वेद पुराि ग्रंथ जि स्रवि सुिि तसखख िीन्ह ।
िाद तविोद राि रस-बंधक स्रवि ओतह तबतध दीन्ह ॥13॥

काँवि कपोि ओतह अस छाजै । और ि काहु दे उ अस साजै ॥


पुहुक-पंक रस-अतमय साँवारे । सुराँि िेंद िाराँ ि रििारे ॥
पुति कपोि वाएाँ तिि परा । सो तिि तबरह-तचिति कै करा ॥
जो तिि दे ख जाइ जरर सोई । बएाँ तदखस्ट काहु तजति होई ॥
जािहुाँ भाँवर पदु म पर टू टा । जीउ दीन्ह औ तदए ि छूटा ॥
दे खि तिि िै िन्ह िा िाडी । और ि सूझै सो तिि छााँडी ॥
िेतह पर अिक मति-जरर डोिा । छु बै सो िातिति सुरंि कपोिा ॥

रच्छा करै मयूर वह, िााँतघ ि तहय पर िोट ।


ितहरे जि को छु इ सकै, दु ई पहार के ओट ॥14॥

िीउ मयूर केरर जस ठाढी । कुंदै फेरर कुंदे रै काढी ॥


धति वह िीउ का बरि ं करा । बााँक िुरंि जिहुाँ ितह परा ॥
तघररि परे वा िीउ उठावा । चहै बोि िमचूर सुिावा ॥
िीउ सुराही कै अस भई । अतमय तपयािा कारि िई ॥
पुति िेतह ठााँव परी तिति रे खा । िेइ सोइ ठााँव होइ जो दे खा ॥
सुरुज-तकररति हुाँ ि तिउ तिरमिी । दे खे बेति जाति तहय चिी ॥
कंचि िार सोह तिउ भरा । सातज काँवि िेतह ऊपर धरा ॥

िातिति चढी काँवि पर , चतढ कै बैठ कमं ठ ।


कर पसार जो काि कहाँ , सो िािै ओतह कंठ ॥15॥

किक दं ड भुज बिी किाई । डााँडी-काँवि फेरर जिु िाई ॥


चंदि खााँभतह भुजा साँवारी । जािहुाँ मे ति काँवि-प िारी ॥
िेतह डााँडी साँि कवाँि-हथोरी । एक काँवि कै दू ि जोरी ॥
सहजतह जािहु मे ह ाँ दी रची । मु कुिाहि िीन्हें जिु घुाँघची ॥
कर-पल्लव जो हथोररन्ह साथा । वै सब रकि भरे िेतह हाथा ॥
दे खि तहया कातढ जिु िे ई । तहया कातढ कै जाई ि दे ई ॥
किक-अाँिूठी औ िि जरी । वह हत्ाररि िखिन्ह भरी ॥

जैसी भुजा किाई, िेतह तबतध जाइ ि भाखख ।


कंकि हाथ होइ जहाँ , िहाँ दरपि का साखख ? ॥16॥

तहया थार, कुच किक-कचोरा । जािहुाँ दु व तसरीफि-जोरा ॥


एक पाट वै दू ि राजा । साम छत्र दू िहुाँ तसर छाजा ॥
जािहुाँ दोउ िटु एक साथा । जि भा िटू ,चढै ितहं हाथा ॥
पािर पेट आतह जिु पूरी । पाि अधार, फूि अस फूरी ॥
रोमाविी ऊपर िटु घूमा । जािहु दोउ साम औ रूमा ॥
अिक भुअंतिति िेतह पर िोटा । तहय -घर एक खेि दु इ िोटा ॥
बाि पिार उठे कुच दोऊ । िााँतघ सरन्ह उन्ह पाव ि कोऊ ॥

कैसहु िवतहं ि िाए , जोबि िरब उठाि ।


जो पतहिे कर िावै , सो पाछे रति माि ॥17॥

भृंि-िं क जिु मााँझ ि िािा । दु इ खंड-ितिि मााँझ जिु िािा ॥


जब तफरर चिी दे ख मैं पाछे । अछरी इं द्रिोक जिु काछे ॥
जबतहं चिी मि भा पतछिाऊ । अबहूाँ तदखस्ट िाति ओतह ठाऊ ।
अछरी िातज छपीं िति ओही । भईं अिोप, ि परिट होहीं ॥
हं स िजाइ मािसर खेिे । हस्ती िातज धू रर तसर मे िे ॥
जिि बहुि तिय दे खी महूाँ । उदय अस्त अस िारर ि कहूाँ ॥
मतहमं डि ि ऐतस ि कोई । ब्रह्मंडि ज होइ िो होई ॥

बरिे उाँ िारर, जहााँ िति, तदखस्ट झरोखे आइ ।


और जो अही अतदस्ट धति, सो तकछु बरति ि जाइ ।18॥

का धति कह ं जैतस सुकुमारा । फूि के छु ए होइ बेकरारा ॥


पखुरी काढतह फूिि सेंिी । सोई डासतहं स रं सपेिी ॥
फूि समू चै रहै ज पावा । व्याकुि होइ िींद ितहं आवा ॥
सहै ि खीर, खााँड औ घीऊ । पाि-अधार रहै िि जीऊ ॥
िस पािन्ह कै काढतह हे री । अधर ि िडै फााँस ओतह केरी ॥
मकरर क िार िेतह कर चीरू । सो पतहरे तछरर जाइ सरीरू ॥
पािि पावाँ, क आछै पाटा । िे ि तबछाव चिै ज बाटा ॥

घाति िै ि ओतह राखखय, पि ितहं कीतजय ओट ।


पेम का िु बुधा पाव ओतह, काह सो बड का छोट ॥19॥

ज राघव धति बरति सुिाई । सु िा साह, िइ मु रछा आई ॥


जिु मू रति वह परिट भई । दरस दे खाइ मातहं छतप िई ॥
जो जो मं तदर पदतमति िे खी । सुिा ज काँवि कुमु द अस दे खी ॥
होइ मािति धति तचत्त पईठी । और पुहुप कोउ आव ि दीठी ॥
मि होइ भाँवर भएउ बैरािा । काँवि छााँतड तचि और ि िािा ॥
चााँद के रं ि सुरुज जस रािा । और िखि सो पूछ ि बािा ॥
िब कह अिाउदीं जि-सूरू । िे उाँ िारर तचिउर कै चूरू ॥

ज वह पदतमति मािसर, अति ि मतिि होइ जाि ।


तचिउर महाँ जो पदतमिी फेरर उहै कहु बाि ॥20॥

ए जिसूर ! कह ं िुम्ह पाहााँ । और पााँच िि तचिउर माहााँ ॥


एक हं स है पंखख अमोिा । मोिी चुिै, पदारथ बोिा ॥
दू सर िि ज अमृ ि-बसा । सो तवष हरै िाि कर डसा ॥
िीसर पाहि परस पखािा ।िोह छु ए होइ कंचि-बािा ॥
च थ अहै सादू र अहे री । जो बि हखस्त धरै सब घेरी ॥
पााँचव िि सो िहााँ िाििा । राजपंखख पे खा िरजिा ॥
हररि रोझ कोइ भाति ि बााँचा । दे खि उडै सचाि होइ िाचा ॥

िि अमोि अस पााँच भेंट समु द ओतह दीन्ह ।


इसकंदर जो ि पावा सो सायर धाँ तस िीन्ह ॥21॥

पाि दीन्ह राघव पतहरावा । दस िज हखस्त घोड सो पावा ॥


औ दू सर कंकि कै जोरी । रिि िाि ओतह बतत्तस कोरी ॥
िाख तदिार दे वाई जेंवा । दाररद हरा समु द कै सेवा ॥
ह जेतह तदवस पदतमिी पाव ं । िोतह राघव तचिउर बैठाव ं ॥
पतहिे करर पााँच ं िि मू ठी । सो िि िे उाँ जो किक-अाँ िूठी ॥
सरजा बीर पुरुष बररयारू । िाजि िाि, तसंघ असवारू ॥
दीन्ह पत्र तिखख, बेति चिावा । तचिउर-िढ राजा पहाँ आवा ॥

राजै पत्र बाँचावा, तिखी जो करा अिे ि ।


तसंिि कै जो पदतमिी, पठै दे हु िेतह बेि ॥22॥

(1)बासा = महक, सुिंध । ओतह छु इ ....सभािा = उसको छूकर वायु तजि पेडों में ििी वे मियातिरर चंदि हो िए । काह ि मू तठ...दे ही
= उस मु ट्ठी भर दे ह में क्या िहीं है ? तचिेर = तचत्रकार ।
(2) सामरै ति = अाँधेरी राि । उडै िी = जुििू । सर = बाण । चार = ढं ि, ढब । दु ख = उसके दशाि से उत्पन्न तवकििा ।
(3) काि कर काढा = काि का चुिा हुआ ।पि =पिक । बूडी = डूबी हुई । धािु क = धिु ष चिािे वािी । ऊडी = पिडु ब्बी तचतडया ।
घाति....रखा = डाि रखा ।
(4) झार = झारिी है । जि दीपक िे सा = राि समझकर िोि दीया जिािे िििे हैं । तसर हुाँ ि = तसर से । तबसहर =तबषधर, सााँप ।
सकपकातहं = तहििे डोििे हैं । िहकतहं = िहरािे हैं , झपटिे हैं । िु रतहं = िोटिे हैं । तफरर तफरर भाँवर = पािी के भाँवर में चक्कर खाकर
। बन्दी = कैद , बाँधुवा । ढु रि आछै = ढरिा रहिा है । झााँप = ढााँकिी है ।
(5) पत्रावति = पत्रभंि-रचिा । पाटी = मााँि के दोिों ओर बैठाए हुए बाि । उरे ह =तवतचत्र सजावट । बि = बिि । पूजै = पू जि करिा है

(6) मतियारा = कांतिमाि् = सोहाविा । चुन्नी = चमकी या तसिारे जो माथे या कपोिों पर तचपकाए जािे हैं । पारस-जोति = ऐसी ज्योति
तजससे दू सरी वस्तु को ज्योति हो जाय । तसरी = श्री िाम का आभूषण । ओप = चमक । पूजतहं = बराबरी को पहुाँ चिे हैं ।
(7) बेझ करै बेध करिे के तिये । पिच = पिंतचका, धिु ष की डोरी । तबहाडा = िि तकया । धिु ष जो बेधा राहू = मत्स्यबेध करिे वािा
अजुाि का धिु ष । आउ ि िे खा = आयु को समाप्त समझा । बेह = बेध, छे द । (8) िै ि तचत्र...तचिेरा = िे त्रों का तचत्र इस रूप से तचतत्रि
हुआ है । तचिेरा = तचतत्रि तकया िया । बहोरर बहोरी = तफर तफर ।तफरर तफरर = घूम घूम कर । मिे सिाह = करिे में । अाँ ि
सेि...ओही = आाँ खों के सफेद डे िे और कािी पुितियााँ । िाि = िािसा ।
(9) कीरू = िोिा । सोतहि िारा = सुहेि िारा जो चंद्रमा के पास रहिा है । तबितस फूि..चढा = फूि जो खखििे हैं मािों उसी पर तिछा
वर होिे के तिये ।
(10) काढे अधर...चीर = जैसे कुश का चीरा ििा हो ऐसे पििे ओठ हैं जो खााँडै बीरा = जब बीडा चबािी है । जिु परभाि...दे खा =
मािों तवकतसि कमिमु ख पर सूया की िाि तकरिें पडी हों ।िाके = तदखाई पडे । मकोई = जंििी मकोय जो कािी होिी है । तकि वै
दसि...भीिे = कहााँ से मैं िे उि रं ि-भीिे दााँिों को दे खा ।
(12) कोंप = कोंपि, िया कल्ला । सााँिी = शां ति । मािी =माि कर । तबरवा पेड । सूख = सू खा हुआ । पिु ह = पिपिा है , हरा होिा है ।
बीि तबस्वासा = बीि समझकर ।
(13) कुंदि सीपी = कुंदि की सीप (िाि के सीपों का आधा सं पुट ) अं बर = वस्त्र । खूाँट = कोिा, ओर । खूाँटी = खूाँट िाम का िहिा
कचपतचया = कृतत्तका िक्षत्र । पुहुप पंक = फूि का कीचड या पराि । कै करा = के रूप, के समाि । बाएाँ तदखस्ट...होई= तकसी की बाईं
ओर ि जाय क्योंतक वहााँ तिि है । िा िाडी = िड िया । दु इ पहार = अथााि् कुच ।
(15) कुदै = खराद पर । कुाँदे रै = कुाँदे रे िे । करा =किा, शोभा । तघररि परे वा = तिरह बाज कबूिर । िमचूर = मु िाा । िेइ सोइ
ठााँव...दे खा = जो उसे दे खिा है वह उसी जिह ठक रह जािा है । जाति तहय चिी = हृदय में बस जािी है । िातिति = अथााि् केश ।
कमं ठ = कछु ए के समाि पीठ या खोपडी ।
(16) डााँडी काँवि ....िाई = कमििाि उिटकर रखा हो । कर-पल्लव = उाँ ििी । साखख = साक्षी । कंिि हाथ...साखख = हाथ कंिि
को आरसी क्या ?
(17) कचोरा = कटोरा । पाट = तसंहासि । साम छत्र = अथााि् कुच का श्याम अग्रभाि । िट् टू = िट् टू । फूरी = फूिी । साम = शाम
(सीररया) का मु ल्क जो अरब के उत्तर है । घर =खािा, कोठा । िोटा = िोटी । पिार = प्राकार या परकोटे पर ।
(18) दे ख = दे खा । खेिे = चिे िए । ब्रह्माँडि = स्विा ।
(19) बेकरारा = बेचैि । डासतहं = तबछािी हैं । स रं = चादर । फााँस = कडा िंिु । मकरर क िार = मकडी के जािे सा महीि । तछरर
जाइ = तछि जािा है । पािाँ ि पााँव...पाटा= = पैर या िो पिं ि पर रहिे हैं या तसंहासि पर । िे ि = रे शमी कपडे की चादर, िे त्र ।
(20) मातहं = भीिर हृदय के । जो जो मं तदर...दे खी = अपिे घर की तजि तजि खस्त्रयों को पतद्मिी समझ रखा था वे पतद्मिी (काँवि) का
वृत्तांि सुििे पर कुमु तदिी के समाि िििे ििी ं । चूरू कै = िोडकर । मतिि = हिोत्साह ।
(21) पदारथ = बहुि उत्तम बोि । परस पखािा = पारस पत्थर । सादू र शादू ा ि तसंह । िाििा = िििे वािा, तशकार करिे वािा । िरजि =
िरजिे वािा । रोझ = िीििाय । सचाि =बाज । सायर समु द्र ।
(22) जेंवा =दतक्षणा में । िाजि िाि = िाि का कोडा । करा = किा से, चिुराई से ।
बादशाह-चढाई-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी

सुति अस तिखा उठा जरर राजा । जाि दै उ िडतप घि िाजा॥


का मोतहं तसं घ दे खावतस आई । कह ं ि सारदू ि धरर खाई ॥
भिे तहं साह पुहुमीपति भारी । मााँ ि ि कोउ पुरुष कै िारी ॥
जो सो चक्कवै िाकहाँ राजू । माँ तदर एक कहाँ आपि साजू ॥
अछरी जहााँ इं द्र पै आवै । और ि सुिै ि दे खै पावै ॥
कंस राज जीिा ज कोपी । कान्ह ि दीन्ह काहु कहाँ िोपी ॥
को मोतहं िें अस सूर अपारा । चढै सरि, खतस परै पिारा ॥

का िोतहं जीउ मराब ं सकि आि के दोस ?


जो ितहं बुझै समु द्र-जि सो बुझाइ तकि ओस ?॥1॥

राजा ! अस ि होहु ररस-रािा । सुिु होइ जूड, ि जरर कहु बािा ॥


मैं ह ं इहााँ मरै कहाँ आवा । बादशाह अस जाति पठावा ॥
जो िोतह भार, ि औरतह िे िा । पूछतह काति उिर है दे िा ॥
बादशाह कहाँ ऐस ि बोिू । चढै ि परै जिि महाँ डोिू ॥
सूरतह चढि ि िाितह बारा । िपै आति जेतह सरि पिारा ॥
परबि उडतहं सूर के फूाँके । यह िढ छार होइ एक झूाँके ॥
धाँ सै सुमेरु, समु द िा पाटा । पुहुमी डोि, सेस-फि फाटा ॥

िास ं क ि िडाई ? बैठहु तचिउर खास ।


ऊपर िे हु चाँदेरी, का पदतमति एक दास ?॥2॥

ज पै घरति जाइ घर केरी । का तचिउर, का राज चाँदेरी ॥


तजउ ि िे इ घर कारि कोई । सो घर दे इ जो जोिी होई ॥
ह ं रिथाँभउर-िाह हमीरू । कितप माथ जेइ दीन्ह सरीरू ॥
ह ं सो रिििसेि सक-बंधी । राहु बेतध जीिा सैरंधी ॥
हिु वाँि सररस भार जेइ कााँधा । राघव सररस समु द जो बााँधा ॥
तबक्रम सररस कीन्ह जेइ साका । तसंघिदीप िीन्ह ज िाका ॥
ज अस तिखा भएउाँ ितहं ओछा । तजयि तसंघ कै िह को मोछा ?॥
दरब िे ई ि माि ,ं सेव कर ं ितह पाउ ।
चाहै ज सो पदतमिी तसंघिदीपतह जाउ ॥3॥

बोिु ि, राजा ! आपु जिाई । िीन्ह दे वतिरर और तछिाई ॥


साि दीप राज तसर िावतहं । औ साँि चिी पदतमिी आवतहं ॥
जेतह कै सेव करै संसारा । तसंघिदीप िे ि तकि बारा ?॥
तजति जाितस यह िढ िोतह पाहीं । िाकर सबै, िोर तकछु िाहीं ॥
जेतह तदि आइ िढी कहाँ छे तकतह । सरबस िे इ, हाथ को टे तकतह ?॥
सीस ि छााँडै खेह के िािे । सो तसर छार होइ पुति आिे ॥
सेवा करु ज तजयि िोतह, भाई । िातहं ि फेरर मााँख होइ जाई ॥

जाकर जीवि दीन्ह िेतह अिमि सीस जोहारर ।


िे करिी सब जािै , काह पुरुष का िारर ॥4॥

िुरुक! जाइ कहु मरै ि धाई । होइतह इसकंदर कै िाई ॥


सुति अमृ ि कदिीबि धावा । हाथ ि चढा, रहा पतछिावा ।
औ िेतह दीप पिाँि होइ परा । अतिति-पहार पााँव दे इ जरा ॥
धरिी िोह, सरि भा िााँबा । जीउ दीन्ह पहुाँ चि कर िााँबा ॥
यह तचिउरिढ सोइ पहारू । सू र उठै िब होइ अाँ िारू ॥
ज पै इसकंदर सरर िीन्हीं । समु द िे हु धाँ तस जस वै िीन्ही ॥
जो छरर आिै जाइ तछिाई । िेतह छर औ डर होइ तमिाई ॥
महूाँ समु तझ अस अिमि सतज राखा िढ साजु ।
काखि होइ जे तह आवि सो चति आवै आजु ॥5॥

सरजा पितट साह पहाँ आवा । दे व ि मािै बहुि मिावा ॥


आति जो जरै आति पै सू झा । जरि रहै , ि बुझाए बूझा ॥
ऐसे माथ ि टावै दे वा । चढै सु िेमााँ मािै सेवा ॥
सुति कै अस रािा सुििािू । जैसे िपै जेठ कर कर भािू ॥
सहस करा रोष अस भरा । जे तह तदतस दे खै िेइ तदतस जरा ॥
तहं दू दे व काह बर खााँचा ? सरिहु अब ि सूर स ं बााँचा ॥
एतह जि आति जो भरर मु ख िीन्हा । सो साँि आति दु हुाँ जि कीन्हा ॥

रिथंभउर जस जरर बुझा तचिउर परै सो आति ।


फेरर बुझाए िा बुझै, एक तदवस ज िाति ॥6॥

तिखा पत्र चाररहु तदतस धाए । जावि उमरा बेति बोिाए ॥


दुं द-घाव भा, इं द्र सकािा । डोिा मे रु, सेस अकुिािा ॥
धरिी डोति, कमठ खरभरा । मथि-अरं भ समु द महाँ परा ॥
साह बजाइ कढा, जि जािा । िीस कोस भा पतहि पयािा ॥
तचिउर स ह ं बाररिह िािी । जहाँ िति सुिा कूच सुििािी ॥
उतठ सरवाि ििि िति छाए । जािहु रािे मे घ दे खाए ॥
जो जहाँ िहाँ सूिा जािा । आइ जोहार कटक सब िािा ॥
हखस्त घोड औ दर पुरुष जावि बेसरा ऊाँट ।

जहाँ िहाँ िीन्ह पिािै , कटक सरह अस छूट ॥


चिे पंथ बेसर सुििािी । िीख िुरंि बााँक किकािी ॥7॥

कारे , कुमइि, िीि, सुपेिे । खखंि कुरं ि, बोज दु र केिे ॥


अबिक, अरबी-िखी तसराजी । च घर चाि, समाँ द भि, िाजी ॥
तकरतमज, िु करा, जरदे , भिे । रूपकराि, बोिसर, चिे ॥
पाँचकल्ाि, साँजाब, बखािे । मतह सायर सब चुति चुति आिे ॥
मु शकी औ तहरतमजी, एराकी । िु रकी कहे भोथार बुिाकी ॥
तबखरी चिे जो पााँ तितह पााँिी । बरि बरि औ भााँतितह भााँिी ॥

तसर औ पूाँछ उठाए चहुाँ तदतस सााँस ओिातह ।


रोष भरे जस बाउर पवि-िुरास उढातहं ॥8॥

िोहसार हस्ती पतहराए । मे घ साम जिु िरजि आए ॥


मे घतह चातह अतधक वै कारे । भएउ असूझ दे खख अाँ तधयारे ॥
जतस भाद ं तितस आवै दीठी । सरि जाइ तहरकी तिन्ह पीठी ॥
सवा िाख हस्ती जब चािा । परवि सतहि सबै जि हािा ॥
चिे ियंद माति मद आवतहं । भाितहं हस्ती िंध ज पावतहं ॥
ऊपर जाइ ििि तसर धाँ सा । औ धरिी िर कहाँ धसमसा ॥
भा भुइाँचाि चिि जि जािी । जहाँ पि धरतह उठै िहाँ पािी ॥

चिि हस्त जि कााँपा, चााँपा सेस पिार ।


कमठ जो धरिी िे इ रहा, बैतठ िएउ िजभार ॥9॥

चिे जो उमरा मीर बखािे । का बरि ं जस उन्ह कर बािे ॥


खुरासाि औ चिा हरे ऊ । ि र बाँिािा रहा ि केऊ ॥
रहा ि रूम-शाम-सुििािू । कासमीर, ठट्ठा मुििािू ॥
जावि बड बड िुरुक कै जािी । मााँड बािे औ िुजरािी ॥
पटिा, उडीसा के सब चिे । िे इ िज हखस्त जहााँ िति भिे ॥
कवाँरु, कामिा औ तपंडवाए । दे वतिरर िे इ उदयतिरर आए ॥
चिा परबिी िे इ कुमाऊाँ । खतसया मिर जहााँ िति िाऊाँ ॥

उदय अस्त ितह दे स जो को जािै तिन्ह िााँव ?॥


साि दीप िव खंड जुरे आई एक ठााँव ॥10॥

धति सुििाि जेतहक संसारा । उहै कटक अस जोरै पारा ॥


सबै िुरुक-तसरिाज बखािे । िबि बाज औ बााँधे बािे ॥
िाखि मार बहादु र जंिी । जाँबुर, कमािै िीर खदं िी ॥
जीभा खोति रअि स ं मढे । िे तजम घाति एरातकन्ह चडै ॥
चमकतहं पाखर सार-साँवारी । दरपि चातह अतधक उतजयारी ॥
बरि बरि औ पााँतितह पााँिी । चिी सो सेिा भााँतितह भााँिी ॥
बेहर बेहर सब कै बोिी । तबतध यह खाति कहााँ दहुाँ खोिी ?॥

साि साि जोजि कर एक तदि होइ पयाि ।


अतिितह जहााँ पयाि होइ पतछितह िहााँ तमिाि ॥11॥

डोिे िढ, िढपति सब कााँपै । जीउ ि पेट;हाथ तहय चााँपै ॥


कााँपा रिथाँभउर िढ डोिा । िरवर िएउ झुराइ, ि बोिा ॥
जूिािढ औ चंपािे री । कााँपा माड ं िे इ चाँदेरी ॥
िढ िुवातियर परी मथािी । औ अाँ तधयार मथा भा पािी ॥
कातिं जर महाँ परा भिािा । भािे उ जयिढ, रहा ि थािा ॥
कााँपा बााँधव, िरवर रािा । डर रोहिास तबजयतिरर मािा ॥
कााँप उदयतिरर, दे वतिरर डरा । िब सो छपाइ आपु कहाँ धरा ॥

जावि िढ औ िढपति सब कााँपै जस पाि ।


का कहाँ बोति स हाँ भा बादसाह कर छाि ?॥12॥

तचिउरिढ औ कुंभििे रै । साजै दू ि जैस सुमेरै ॥


दू िन्ह आइ कहा जहाँ राजा । चढा िुरुक आवै दर साजा ॥
सुति राजा द राई पािी । तहं दू-िावाँ जहााँ िति जािी ॥
तचिउर तहं दुि कर अस्थािा । सत्रु िुरुक हठी कीन्ह पयािा ॥
आव समु द्र रहै ितहं बााँधा । मैं होई मे ड भार तसर कााँधा ॥
पुरवहु साथ, िुम्हारर बडाई । िातहाँ ि सि को पार छाँ डाई ॥
ज ितह मे ड, रहै सुखसाखा । टू टे बारर ज इ ितहं राखा ॥

सिी ज तजउ महाँ सि धरै , जरै ि छााँडै साथ ।


जहाँ बीरा िहाँ चूि है पाि, सोपारी, काथ ॥13॥

करि जो राय साह कै सेवा । तिन्ह कहाँ आइ सुिाव परे वा ॥


सब होइ एकमिे जो तसधारे । बादसाह कहाँ आइ जोहारे ॥
है तचिउर तहं दुन्ह कै मािा । िाढ परे ितज जाइ ि िािा ॥
रििसेि िहाँ ज हर साजा । तहं दुन्ह मााँझ आतह बड राजा ॥
तहं दुन्ह केर पिाँि कै िे खा । द रर परतहं अतििी जहाँ दे खा ॥
कृपा करहु तचि बााँधहु धीरा । िािरू हमतहं दे ह हाँ तस बीरा ॥
पुति हम जाइ मरतहं ओतह ठाऊाँ । मे तट ि जाइ िाज स ं िाऊाँ ॥
दीन्ह साह हाँ तस बीरा, और िीि तदि बीच ।
तिन्ह सीिि को राखै, तजितहं अतिति महाँ मीच ? ॥14॥

रििसेि तचिउर महाँ साजा । आइ बजार बैठ सब राजा ॥


िोवाँर बैस, पवााँर सो आए । औ िहि ि आइ तसर िाए ॥
पत्ती औ पाँचवाि, बघेिे । अिरपार, च हाि, चाँदेिे ॥
िहरवार, पररहार जो कुरे । औ किहं स जो ठाकुर जुरे ॥
आिे ठाढ बजावतहं ढाढी ।पाछे धु जा मरि कै काढी ॥
बाजतहं तसंिी, संख औ िूरा । चं दि खेवरे , भरे सेंदूरा ॥
सतज संग्राम बााँध सब साका । छााँडा तजयि, मरि सब िाका ॥

ििि धरति जेइ टे का, िेतह का िरू पहार ।


ज ितह तजउ काया महाँ , परै सो अाँ िवै भार ॥15॥

िढ िस सजा ज चाहै कोई । बररस बीस िति खााँि ि होई ॥


बााँके चातह बााँक िढ कीन्हा । औ सब कोट तचत्र कै िीन्हा ॥
खंड खंड च खंड साँवारा । धरी तवषम िोिन्ह कै मारा ॥
ठााँवतह ठााँव िीन्ह तिन्ह बााँटी । रहा ि बीचु जो साँचरे चााँटी ॥
बैठे धािु क काँिुरि काँिुरा । भूतम ि आाँ टी अाँ िुरि अाँ िुरा ॥
औ बााँधे िढ िज मिवारे । फाटै भूतम होतहं ज ठारे ॥
तबच तबच बुजा बिे चहुाँ फेरी । बाजतहं िबि, ढोि औ भेरी ॥

भा िढ राज सुमेरु जस, सरि छु वै पै चाह ।


समु द ि िे खे िावै, िंि सहसमु ख काह ? ॥16॥

बादशाह हतठ कीन्ह पयािा । इं द्र भाँडार डोि भय मािा ॥


िबे िाख असवार जो चढा । जो दे खा सो िोहे -मढा ॥
बीस सहस घहरातहं तिसािा । िििंजतहं भेरी असमािा ॥
बैरख ढाि ििि िा छाई । चिा कटक धरिी ि समाई ॥
सहस पााँति िज मत्त चिावा । धाँ सि अकास, धरि भुइाँ आवा ॥
तबररतछ उचारर पेतड स ं िे हीं । मस्तक झारर डारर मु ख दे हीं ॥
चढतहं पहार तहये भय िािू । बिखाँड खोह ि दे खतहं आिू ॥

कोइ काहू ि साँभारै , होि आव िस चााँप ।


धरति आपु कहाँ कााँपै, सरि आपु कहाँ कााँप ॥17॥

चिीं कमािै तजन्ह मु ख िोिा । आवतहं चिी, धरति सब डोिा ॥


िािे चक्र बज् के िढे । चमकतहं रथ सोिे सब मढे ॥
तिन्ह पर तवषम कमािैं धरीं । सााँचे अिधािु कै ढरीं ॥
स स मि वै पीयतहं दारू । िाितहं जहााँ सो टू ट पहारू ॥
मािी रहतहं रथन्ह पर परी । सत्रु न्ह महाँ िे होतहं उतठ खरी ॥
ज िािै संसार ि डोितहं । होइ भुइकंप जीभ ज खोितहं ॥
सहस सहस हखस्तन्ह कै पााँिी । खींचतह रथ, डोितहं ितहं मािी ॥

िदी िार सब पाटतहं जहााँ धरतह वै पाव ।


ऊाँच खाि बि बीहड होि बराबर आव ॥18॥

कह ं तसंिार जैतस वै िारी । दारू तपयतहं जै तस मिवारी ॥


उठै आति ज छााँडतह सााँसा । धु आाँ ज िािै जाइ अकासा ॥
कुच िोिा दु इ तहरदय िाए । चंचि धु जा रहतहं तछटकाए ॥
रसिा िू क रहतहं मु ख खोिे । िं का जरै सो उिके बोिे ॥
अिक जाँजीर बहुि तिउ बााँधे । खींचतहं हस्ती, टू टतहं कााँधे ॥
बीर तसंिार दोउ एक ठाऊाँ । सत्रुसाि िढभंजि िाऊाँ ॥

तििक पिीिा माथे, दसि बज् के बाि ।


जेतह हे रतहं िे तह मारतहं , चुरकुस करतहं तिदाि ॥19॥

जेतह जेतह पंथ चिी वै आवतहं । िहाँ िहाँ जरै , आति जिु िावतहं ॥
जरतहं जो परवि िाति अकासा । बिखाँड तधकतहं परास के पासा ॥
िैंड ियदाँ जरे भए कारे । औ बि-तमररि रोझ झवाँकारे ॥
कोइि, िाि काि औ भाँवरा । और जो जरे तिितहं को साँवरा ॥
जरा समु द्र पािी भा खारा । जमु िा साम भई िेतह घारा ॥
धु आाँ जाम, अाँ िररख भए मे घा । ििि साम भा धुाँ आ जो ठे घा ॥
सुरुज जरा चााँद औ राहू । धरिी जरी, िं क भा दाहू ॥

धरिी सरि एक भा, िबहु ि आति बुझाइ ॥


उठे बज् जरर डु ं िवै, धूम रहा जि छाइ ॥20॥

आवै डोिि सरि पिारा । कााँपै धरति, ि अाँ िवै भारा ॥


टू टतहं परबि मे रु पहारा । होइ चकचूि उडतहं िेतह झारा ॥
सि-खाँड धरिी भइ षटखंडा । ऊपर अि भए बरम्हं डा ॥
इं द्र आइ तिन्ह खंडन्ह छावा । चतढ सब कटक घोड द रावा ॥
जेतह पथ चि ऐरावि हाथी । अबहुाँ सो डिर ििि महाँ आथी ॥
औ जहाँ जातम रही वह धू री । अबहुाँ बसै सो हररचाँद-पूरी ॥
ििि छपाि खेह िस छाई । सू रुज छपा, रै ति होइ आई ॥

िएउ तसकंदर कजररबि, िस होइिा अाँ तधयार ।


हाथ पसारे ि सूझै, बरै िाि मतसयार ॥21॥

तदितहं राति अस परी अचाका । भा रतव अस्त, चंद्र रथ हााँका ॥


मं तदर जिि दीप परिसे । पंथी चिि बसेरै बसे ॥
तदि के पंखख चरि उतड भािे । तितसके तिसरर चरै सब िािे ॥
काँवि साँकेिा, कुमु तदति फूिी । चकवा तबछु रा, चकई भूिी ॥
चिा कटक-दि ऐस अपूरी । अतिितह पािी, पतछितह धू री ॥
मतह उजरी, सायर सब सूखा । विखाँड रहे उ ि एक रूखा ॥
तिरर पहार सब तमति िे माटी । हखस्त हे रातहं िहााँ होइ चााँटी ॥

तजन्ह घर खेह हे रािे , हे रि तफरि सो खेह ।


अब ि तदस्ट िब आवै अं जि िैि उरे ह ॥22॥

एतह तवतध होि पयाि सो आवा । आइ साह तचिउर तियरावा ॥


राजा राव दे ख सब चढा । आव कटक सब िोहे -मढा ॥
चहुाँ तदतस तदखस्ट परा िजजूहा । साम-घटा मे घन्ह अस रूहा ॥
अध ऊरध तकछु सूझ ि आिा । सरििोक घुम्मरतहं तिशािा ॥
चतढ ध राहर दे खतह रािी । धति िुइ अस जाकर सुििािी ॥
की धति रििसेि िुइाँ राजा । जा कह िुरुक कटक अस साजा ॥
बेरख ढाि केरर परछाहीं । रै ति होति आवै तदि माहीं ॥

अं ध-कूप भा आवै , उडि आव िस छार ।


िाि ििावा पोखर धू रर भरी जेविार ॥23॥

राजै कहा करहु जो करिा । भएउ असूझ, सूझ अब मरिा ॥


जहाँ िति राज साज सब होऊ । ििखि भएउ सजोउ साँजोऊाँ ॥
बाजे िबि अकूि जुझाऊ । चडै कोतप सब राजा राऊ ॥
करतहं िुखार पवि स ं रीसा । कंध ऊाँच, असवार ि दीसा ॥
का बरि ं अस ऊाँच िुखारा । दु इ प री पहुाँ चै असवारा ॥
बााँधे मोरछााँह तसर सारतहं । भााँजतह पूछ चाँवर जिु ढारतहं ॥
सजे सिाहा, पहुाँ ची , टोपा । िोहसार पतहरे सब ओपा ॥

िैसे चाँवर बिाए औ घािे ििझंप ।


बाँधे सेि िजिाह िहाँ ,जो दे खै सो कंप ॥24॥

राज-िुरंिम बरि ं काहा ? आिे छोरर इं द्ररथ-बाहा ॥


ऐस िुरंिम परतहं ि दीठी । धति असवार रहतहं तिन्ह पीठी !॥
जाति बािका समु द थहाए । सेि पूाँछ जिु चाँवर बिाए ॥
बरि बरि पाखर अति िोिे । जािहु तचत्र साँवारे सोिे ॥
मातिक जडे सीस औ कााँधे । चाँवर िाि च रासी बााँधे ॥
िािे रिि पदारथ हीरा । बाहि दीन्ह, दीन्ह तिन्ह बीरा ॥
चढतहं कुाँवर मि करतहं उछाहू । आिे घाि िितहं ितहं काहू ॥
सेंदुर सीस चढाए, चंदि खेवरे दे ह ।
सो िि कहा िु काइय अं ि होइ जो खेह ॥25॥

िज मै माँि तबखरे रजबारा । दीसतहं जिहुाँ मे घ अति कारा ॥


सेि ियंद, पीि औ रािे । हरे साम घूमतहं मद मािे ॥
चमकतहं दरपि िोहे सारी । जिु परबि पर परी अाँ बारी ॥
तसरी मे ति पतहराई सूाँडैं । दे खि कटक पााँय िर रूदैं ॥
सोिा मे ति कै दं ि साँवारे । तिररवर टरतहं सो उन्ह के टारे ॥
परबि उितट भूतम महाँ मारतहं । परै जो भीर पत्र अस झारतहं ॥
अस ियंद साजै तसंघिी । मोटी कुरुम-पीतठ किमिी ॥

ऊपर किक-मं जुसा िाि चाँवर और ढार ।


भिपति बैठे भाि िे इ औ बैठे धिु कार ॥ 26॥

असु-दि िज-दि दू ि साजे । औ घि िबि जुझाऊ बाजे ॥


माथे मु कुट ,छत्र तसर साजा । चढा बजाइ इं द्र अस राजा ॥
आिे रथ सेिा सब ठाढी । पाछे धु जा मरि कै काढी ॥
चढा बजाइ चढा जस इं दू । दे विोक िोहिे भए तहं दू ॥
वैसे ही राजा रत्नसेि के साथ तहन्हदू िोि चिे ।
जािहु चााँद िखि िे इ चढा । सू र कै कटक रै ति-मतस मढा ॥
ज िति सूर जाइ दे खरावा । तिकतस चााँद घर बाहर आवा ॥
ििि िखि जस ििे ि जाहीं । तिकतस आए िस धरिी माहीं ॥

दे खख अिी राजा कै जि होइ िएउ असूझ ।


दहुाँ कस होवै चाहै चााँद सूर के जूझ ॥27॥

(1)दै उ = (दै व) आकाश में । माँ तदर एक कहाँ ...साजू = घर बचािे भर को मेरे पास भी सामाि है पै = ही कोपी = कोप करके । सकि
= भरसक । दोस = दोष ।
(2) रािा िाि । जो िोतह भार ...िे िा = िेरी जवाबदे ही िेरे ऊपर है । डोिू = हिचि । बारा = दे र । जेतह = तजसकी ।
(3) घरति = िृतहणी , स्त्री । तजउ ि िे इ = चाहे जी ही ि िे िे । हमीरू = रणथंभ र का राजा हमीर । सक-बंधी = साका चिािे वािा ।
सैरंधी = सैरंध्री ,द्र पदी । राहु = रोहू मछिी । जाउ =जावै ।
(4) आपु जिाई = अपिे को बहुि बडा प्रकट करके । तछिाई = कोई स्त्री (1) सीस ि छााँडै...िािे = धु ि पड जािे से तसर ि कटा, छोटी
सी बाि के तिये प्राण ि दे । माख = क्रोध, िाराजिी ।
(5) कै िाई = की सी दशा । धरिी िोह...िााँबा = उस आि के पहाड की धरिी िोहे के समाि दृढ है और उसकी आाँ च से आकाश
िाम्रवणा हो जािा है । ज पै इसकंदर....कीन्ही = जो िुमिे तसकंदर की बराबरी की है िो । छर और डर = छि और भय तदखािे से ।
(6) दे व = राजा ; राक्षस । सुिेमााँ = यहूतदयों का बादशाह सुिेमाि तजसिे दे वों और पररयों को जीिकर वश में कर तिया था । बर खााँचा =
क्या हठ तदखािा है । रिथाँभउर = रण- थंभ र का प्रतसद्ध वीर हमीर अिाउद्दीि से िडकर मारा िया था ।
(7) दुं द घाव = डं के पर चोट । सकािा = डरा । अरं भ = शोर । बाररिाह = बारिाह, दरबार (1) बाररिह िािी = दरबार बढा । सरवाि =
झंडा या िंबू । सूिा = सोया हुआ । दर = दि, सेिा । बेसरा = खच्चर । विािे िीन्ह = घोडे कसे । सरह = शिभ, तटड्डी ।
(8) किकािी = एक प्रकार के घोडे जो िदहे से कुछ ही बडे और बडे कदमबाज होिे हैं । कुमइि = कुमै ि । खखंि = सफेद घोडा, तजसके
मुाँ ह पर का पट्टा और चारों सुम िुिाबीपि तिए हों । कुरं ि = कुिं ि । िखी = िाखी । तसराजी = शीराज के । च घर = सरपट या पोइयााँ
चाि, तकरतमज = तकरतमजी रं ि के । िुरास = बेि ।
(9) िोहसार = फ िाद । अाँ तधयारा = कािे । तहरकी = ििी,सटी । तिन्ह = उिकी । हस्ती = तदग्गज । िर कहाँ = िीचे को । उठै िहाँ
पािी = िड्ढा हो जािा है और िीचे से पािी तिकि पडिा है ।
(10) बािे = वेश, सजावट । हरे ऊ = हरे व, `हरउअिी' सरस्विी, प्राचीि पारसी हरह्वे िी या अरिंदाब िदी के आसपास का प्रदे श, जो तहं दूकुश के
दतक्षण-पतिम पडिा है । ि र =ि ड; वंि दे श की राजधािी । शाम = अरब के उत्तर शाम का मु ल्क । कामिा, तपंडवा = कोई प्रदे श । मिर
अराकाि जहााँ मि िाम की जाति रहिी है ।
(11) जाँबुर = जंबूर, एक प्रकार की िोप जो ऊाँटों पर चििी थी । कमाि = िोप । खदं िी = खदं ि, बाण । जीभा =जीभ । ितजम एक प्रकार
की कमाि तजसमें डोरी के स्थाि पर िोहे का सीकड ििा रहिा है और तजससे एक प्रकार की कसरि करिे हैं । एरातकन्ह = एराक दे श के
घोडों पर । पाखर = िडाई की झूि । सार = िोहा । बहर-बहर = अिि-अिि । मााँडो िे ई = मााँड िढ से िे कर । मथािी परी = हिचि
मचा । अाँ तधयार = अाँ तधयार और खटोिा, दतक्षण के दो स्थाि । पाि = पत्ता । बोति = चढाई बोिकर । छाि = छत्र ।
(13) जैस सुमेरै = जैसे सुमेरु ही हैं । दर = दि । पािी = पत्री , तचट्ठी । मे ड = बााँध । बााँधा = ऊपर तिया । िातहं ि सि...छाँ डाई =
िहीं िो हमारा सत् (प्रतिज्ञा) क ि छु डा सकिा है , अथााि् मैं अकेिे ही अडा रहूाँ िा । टू टे = बााँध टू टिे पर । बारर = बारी ,बिीचा ।
(14) राय = राजा । परे वा = तचतडयााँ, यहााँ दू ि । ज हर = िडाई के समय की तचिा जो िढ में उस समय िैयार की जािी थी जब राजपूि
बडे भारी शत्रु से िडिे तिकििे थे और तजसमें हार का समाचार पािे ही सब खस्त्रयााँ कूद पडिी थी ं । पिाँि कै िे खा = पिंिों का सा हाि
है । बीरा दे हु = तबदा करो तक हम वहााँ जाकर राजा की ओर से िडें ।
(15) कुरै = कुि । दाढी = बाजा बजािे वािी एक जाति । खे वे = ख र ििाए हुए । अाँ िवै = ऊपर िे िा है , सहिा है ।
(16) िस = ऐसा । खााँि = सामाि की कमी । बााँके चातह बााँक = तवकट से तवकट । मारा = मािा, समू ह । बीचु = अं िर, खािी जिह ।
साँचरे = चिे । चााँटी = चींटी । ठारे = ठाढे , खडे । सहसमु ख = सहस्त्र धारावािी ।
(17) इं द्र-भाँडार = इं द्रिोक । बैरख = बैरक, झंडे । पेतड = पेडी, ििा । आिू = आिे चााँप = रे िपेि , धक्का ।
(18) कमािें = िोपें । चक्र = पतहए । दारू = बारूद; शराब । मािी = `दारू'शब्द का प्रयोि कर चुके हैं इसतिये । बषाबर = समिि ।
(19) कह ं तसंिार...मिवारी = इि पद्यों में िोपों को स्त्री के रूपक में तदखाया है । िररवि = िाटं क िाम का काि का िहिा। टू टतहं कााँधे
= सातथयों के कंधे टू ट जािे हैं । बीर तसंिार = वीररस । बाि = िोिे । हे रतहं = िाकिी हैं । चुरकुि = चकिाचूर ।
(20) तधकतहं = िपिे हैं । परास के बिखाँड = पिाश के िाि फूि जो तदखाई दे िे हैं वे मािों वि के िपे हुए अं श हैं । िैंड = िैंडा रोझ
= िीििाय । झवाँकारे = झााँवरे । ठे वा = ठहरा , रुका । डु ं िवै = डूाँिर, पहाड । उठे बज् जरर....छाइ = इस वज् से (जैसे तक इं द्र के
वज् से ) पहाड जि उठे ।
(21) चकचूि = चकिाचूर । सि-खाँड....षटखंडा = पृथ्वी पर की इििी धू ि ऊपर उडकर जा जमी तक पृथ्वी के साि खंड या स्तर के
स्थाि पर छुः ही खंड रह िए और ऊपर के िोकों के साि के स्थाि पर आठ खंड हो िए । जेतह पथ...आथी = ऊपर जो िोक बि िए
उि पर इं द्र ऐरावि हाथी िे कर चिे तजसके चििे का मािा ही आकाशिंिा है । आथी = है । हररचंद पूरी = वह िोक तजसमें हररिंद्र िए ।
मतसयार = मशाि ।
(22) अचाका = अचािक , एकाएक । साँकेिा = संकुतचि हुआ । अपूरी = भरा हुआ । अतिितह पािी...धू री = अििी सेिा को िो पािी
तमििा है पर तपछिी को धू ि ही तमििी है । उजरी = उजडी । तजन्ह घर खेह...खेह = तजिके घर धू ि में खो िए हैं , अथााि् संसार के
मायामोह में तजन्हें परिोक िहीं तदखाई पडिा है । उरे ह = ििाये ।
(23) रूहा = चढा । सुििािी = बादशाहि । की धति...राजा = या िो राजा िू धन्य है । बैरख = झंडा । परछाहीं = परछाईं से । जेबिार
= िोिों को रसोई में ।
(24) साँजोऊ = िैयारी । अकूि -एकाएक, सहसा अथवा बहुि से । जुझाऊ =युद्ध के । िु खार = घोडा । रीसा = ईर्ष्ाा , बराबरी । प री =
सीढी के डं डे । मोरछााँह = मोरछि । सिाहा = बकिर । पहुाँ ची = बचािे का आवरण । ओपा = चमकिे हैं । ििझंप = ििे की झूि
(िोहे की) । िजिाह = हाथी की झूि ।
(25) इं द्ररस-बाहा = इं द्र का रथ खींचिे वािे । बािका = घोडे । पाखर = झूि । च रासी = घुघुरुओं का िुच्छा । बाहि दीन्ह....बीरा =
तजिको सवारी के तिये वे घोडे तदए उन्हें िडाई का बीडा भी तदया । घाि िितहं ितहं = कुछ िही समझिे । सेंदूर = यहााँ रोिी समझिा
चातहये । खेवरे = ख रे , ख र ििाए हुए
(26) रजबारा = राजिार । दरपि = चार-आईि ;बकिर । िोहे सारी = िोहे की बिी । अाँ बारी = मं डपदार ह दा । तसरी = माथे का िहिा ।
रूाँ दैं = र द
ं िे हैं । किमिी = खि बिाई । माँ जूसा = ह दा । ढार = ढाि । भिपति = भािा चिािे वािे । धिु कार = धिु ष चिािे वािे ।
(27) असुदि = अश्वदि । दे विोक ...इं द्र = जैसे इं द्र के साथ दे विा चििे हैं सूर के कटक = बादशाह की फ ज । रै ति मतस = राि की
अाँ धेरी । चााँद = राजा रत्नसेि । िखि = राजा की सेिा । अिी = सेिा । होवै चाहै = हुआ चाहिा है ।
राजा-बादशाह-युद्ध-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी

इहााँ राज अस सेि बिाई । उहााँ साह कै भई अवाई ॥


अतििे द रे आिे आए । पतछिे पाछ कोस दस छाए ॥
साह आइ तचिउर िढ बाजा । हस्ती सहस बीस साँि साजा ॥
ओिइ आए दू ि दि साजे । तहं दू िुरक दु व रि िाजे ॥
दु व समु द दतध उदतध अपारा । दू ि मे रू खखखखंद पहारा ॥
कोतप जुझार दु व तदतस मे िे । औ हस्ती हस्ती सहुाँ पेिे ॥
आाँ कुस चमतक बीजु अस बाजतहं । िरजतहं हखस्त मे घ जिु िाजतहं ॥

धरिी सरि एक भा , जूहतह ऊपर जूह ।


कोई टरै ि टारे , दू ि बज्-समू ह ॥1॥

हस्ती सहुाँ हस्ती हतठ िाजतहं । जिु परबि परबि स ं बाजतहं ॥


िरु ियंद ि टारे टरहीं । टू टतहं दााँि, माथ तिरर परही ॥
परबि आइ जो परतहं िराहीं । दर महाँ चााँतप खेह तमति जाहीं ॥
कोइ हस्ती असवारतह िे हीं । सूाँ ड समे तट पायाँ िर दे हीं ॥
कोइ असवार तसंघ होइ मारतहं । हति कै मस्तक सूाँड उपारतहं ॥
िरब ियंदन्ह ििि पसीजा । रुतहर चूवै धरिी सब भीजा ॥
कोइ मै मंि साँभारतहं िाहीं । िब जाितहं जब िुद तसर जाहीं ॥

ििि रुतहर जस बरसै धरिी बहै तमिाइ ।


तसर धर टू तट तबिातहं िस पािी पंक तबिाइ ॥2॥

आठ ं बज् जुझ जस सुिा । िेतह िें अतधक भएउ च िुिा ॥


बाजतहं खडि उठै दर आिी । भुइाँ जरर चहै सरि कहाँ िािी ॥
चमकतहं बीजु होइ उतजयारा । जेतह तसर परै होइ दु इ फारा ॥
मे घ जो हखस्त हखस्त सहुाँ िाजतहं । बीजु जो खडि खडि स ं बाजतहं ॥
बरसतहं सेि बाि होइ कााँदो । जस बरसै सावि औ भादों ॥
झपटतहं कोतप, परतहं िरवारी । औ िोिा ओिा जस भारी ॥
जूझे बीर कह ं कहाँ िाईं । िे इ अछरी कैिास तसधाईं ॥

स्वातम-काज जो जूझे, सोइ िए मु ख राि ।


जो भािे सि छााँ तड कै मतस मु ख चढी पराि ॥3॥

भा संग्राम ि भा अस काऊ । िोहे दु हुाँ तदतस भए अिाऊ ॥


सीस कंध कतट कतट भुइाँ परे । रुतहर सतिि होइ सायर भरे ॥
अिाँ द बधाव करतहं मसखावा । अब भख जिम जिम कहाँ पावा ॥
चसं ठ जोतिति खप्पर पूरा । तबि जंबुक घर बाजतहं िूरा ॥
तिद्ध चीि सब मााँडो छावतहं । काि किोि करतहं औ िावतहं ॥
आजु साह हतठ अिी तबयाही । पाई भुिुति जै तस तचि चाही ॥
जेइाँ जस मााँसू भखा परावा । िस िेतह कर िे इ औरन्ह खावा ॥

काहू साथ ि िि िा, सकति मु ए सब पोखख ।


ओछ पूर िेतह जािब, जो तथर आवि जोखख ॥4॥

चााँद ि टरै सूर स ं कोपा । दू सर छत्र स ह


ं कै रोपा ॥
सुिा साह अस भएउ समू हा । पेिे सब हखस्तन्ह के जूहा ॥
आज चााँद िोर कर ं तिपािू । रहै ि जि महाँ दू सर छािू ॥
सहस करा होइ तकररि पसारा । छें का चााँद जहााँ िति िारा ॥
दर-िोहा दरपि भा आवा । घट घट जािहु भािु दे खावा ॥
अस क्रोतधि कुठार िे इ धाए । अतिति-पहर जरि जिु आए ॥
खडाँ ि-बीजु सब िुरुक उठाए । ओडि चााँद काि कर पाए ॥

जिमि अिी दे खख कै धाइ तदखस्ट िेतह िाति ।


छु ए होइ जो िोहा मााँझ आव िे तह आति ॥5॥

सूरुज दे खख चााँद मि िाजा । तबिसा काँवि, कुमुद भा राजा ॥


भिे तह चााँद बड होइ तदतस पाई। तदि तदिअर सहुाँ क ि बडाई ?॥
अहे जो िखि चंद साँि िपे । सूर के तदखस्ट ििि महाँ छपे ॥
कै तचंिा राजा मि बूझा । जो होइ सरि ि धरिी जूझा ॥
िढपति उिरर िडै ितहं धाए । हाथ परै िढ हाथ पराए ॥
िढपति इं द्र ििि-िढ िाजा । तदवस ि तिसर रै ति कर राजा ॥
चंद रै ति रह िखिन्ह मााँझा । सु रुज के स ह
ं ि होइ, चहै सााँ झा ॥

दे खा चंद भोर भा सूरुज के बड भाि ।


चााँद तफरा भा िढपति, सूर ििि-िढ िाि ॥6॥

कटक असूझ अिाउतदं -साही । आवि कोइ ि साँभारै िाही ॥


उदतध-समु द जस िहरैं दे खी । ियि दे ख, मु ख जाइ ि िे खी ॥
केिे िजा तचिउर कै घाटी । केिे बजावि तमति िए माटी ॥
केिेन्ह तिितहं दे इ िव साजा । कबहुाँ ि साज घटै िस राजा ॥
िाख जातहं आवतहं दु इ िाखा । फरै झरै उपिै िव साखा ॥
जो आवै िढ िािै सोई । तथर होइ रहै ि पावै कोई ॥
उमरा मीर रहे जहाँ िाईं । सबहीं बााँतट अिं िैं पाईं ॥

िाि कटक चाररहु तदतस, िढतह परा अतिदाहु ।


सुरुज िहि भा चाहै , चााँदतह जस राहु ॥7॥

अथवा तदवस , सूर भा बसा । परी रै ति, सतस उवा अकसा ॥


चााँद छत्र दे इ बैठा आई । चहुाँ तदतस िखि दीन्ह तछटकाई ॥
िखि अकासतह चढे तदपाहीं । टु तट टु तट िू क परतहं , ि बुझाहीं ॥
परतहं तसिा जस परै बजािी । पाहि पाहि स ं उठ आिी ॥
िोिा परतहं , कोल्हहु ढरकाहीं । चूर करि चाररउ तदतस जाहीं
ओिई घटा बरस झरर िाई । ओिा टपकतहं , परतहं तबछाई ॥
िुरुक ि मु ख फेरतहं िढ िािे । एक मरै , दू सर होइ आिे ॥

परतहं बाि राजा के, सकै को सिमु ख कातढ ।


ओिई सेि साह कै रही भोर िति ठातढ ॥8॥
भएउ तबहािु , भािु पुति चढा । सहसहु करा तदवस तबतध िढा ॥
भा धावा िढ कीन्ह िरे रा । कोपा कटक िाि चहुाँ फेरा ॥
बाि करोर एक मु ख छूटतहं । बाजतहं जहााँ फोंक िति फूटतहं ॥
िखि ििि जस दे खतहं घिे । िस िढ-कोटन्ह बािन्ह हिे ॥
बाि बेतध साही कै राखा । िढ भा िरुड फुिावा पााँखा ॥
ओतह राँ ि केरर कतठि है बािा । ि पै कहै होइ मु ख रािा ॥
पीतठ ि दे तहं घाव के िािे । पै ि पैि भुइाँ चााँपतहं आिे ॥

चारर पहर तदि जूझ भा, िढ ि टू ट िस बााँक ।


िरुअ होि पै आवै तदि तदि िाकतह िाक ॥9॥

छें का कोट जोर अस कीन्हा । घु तस कै सरि सुराँि तिन्ह दीन्हा ॥


िरिज बााँतध कमािैं धरीं । बज्-आति मु ख दारू भरीं ॥
हबसी रूमी और तफरं िी । बड बड िुिी और तिन्ह संिी ॥
तजन्हके िोट कोट पर जाहीं । जेतह िाकतहं चूकतहं िेतह िाहीं ॥
अस्ट धािु के िोिा छूटतहं । तिरतहं पहार चूि होइ फूटतहं ॥
एक बार सब छूटतहं िोिा । िरजै ििि, धरति सब डोिा ॥
फूटतहं कोट फूट जिु सीसा । ओदरतहं बुरुज जातहं सब पीसा ॥

िं का-रावट जस भई, दाह परी िढ सोइ ।


रावि तिखा जरै कहाँ , कहहु अजर तकतम होइ ॥10॥

राजिीर िािै िढ थवई । फूटै जहााँ साँवारतहं सबई ॥


बााँके पर सुतठ बााँक करे हीं । रातितह कोट तचत्र कै िे हीं ॥
िाजतहं ििि चढा जस मे घा । बररसतहं बज्, सीस को ठे िा ? ॥
स स मि के बरसतहं िोिा । बरसतहं िुपक िीर जस ओिा ॥
जािहुाँ परतहं सरि हुि िाजा । फाटे धरति आइ जहाँ राजा ॥
िरिज चूर चूर होइ परहीं । हखस्त घोर मािु ष संघरहीं ॥
सबै कहा अब परिै आई । धरिी सरि जूझ जिु िाई ॥

आठ बज् जुरे सब एक डु ाँ िवै िाति ।


जिि जरै चाररउ तदतस, कैसैतह बुझै ि आति ॥11॥

िबहूाँ राजा तहये ि हारा । राज-प रर पर रचा अखारा ॥


सोह साह कै बैठक जहााँ । समु हें िाच करावै िहााँ ॥
जंत्र पखाउज औ जि बाजा । सु र मादर रबाब भि साजा ॥
बीिा बेिु कमाइच िहे । बाजे अमृ ि िहाँ िहिहे ॥
चंि उपंि िाद सुर िूरा । महुअर बंतस बाज भरपूरा ॥
हुडक बाज, डफ बाज िाँभीरा । औ बाजतहं बहु झााँझ मजीरा ॥
िंि तबिंि सुभर घििारा । बाजतहं सबद होइ झिकारा ॥

जि-तसंिार मिमोहि पािुर िाचतहं पााँच ।


बादसाह िढ छें का, राजा भूिा िाच ॥12॥

बीजाििर केर सब िुिी । करतहं अिाप जैस ितहं सुिी ॥


छव राि िाए साँि िारा । सिरी कटक सुिै झिकारा ॥
प्रथम राि भैरव तिन्ह कीन्हा । दू सर मािकोस पुति िीन्हा ॥
पुति तहं डोि राि भि िाए । मे घ मिार मे घ बररसाए ॥
पााँचवाँ तसरी राि भि तकया । छठवााँ दीपक बरर उठ तदया ॥
ऊपर भए सो पािुर िाचतहं । िर भए िुरुक कमािैं खााँचतहं ॥
िढ माथे होइ उमरा झुमरा । िर भए दे ख मीर औ उमरा ॥

सुति सुति सीस धु ितहं सब, कर मति मति पतछिातहं ।


कब हम माथ चढतहं ओतह िै िन्ह के दु ख जातहं ॥13 ॥

छव राि िावतहं पािुरिी । औ पुति छत्तीस रातििी ॥


औ कल्ाि कान्हरा होई । राि तबहाि केदारा सोई ॥
परभािी होइ उठै बेिािा । आसावरी राि िुिमािा ॥
धिातसरी औ सूहा कीन्हा । भएउ तबिावि, मारू िीन्हा ॥
रामकिी, िट, ि री िाई । धु ति खममाच सो राि सुिाई ॥
साम िूजरी पुति भि भाई । साराँ ि औ तबभास मुाँ ह आई ॥
पुरबी, तसंधी, दे स, बरारी । टोडी िोंड स ं भई तिरारी ॥

सबै राि औ रातििी सुरै अिापतह ऊाँच ।


िहााँ िीर कहाँ पहुाँ चै तदखस्ट जहााँ ि पहूाँ च ?॥14॥

जहवााँ स हं साह कै दीठी । पािु रर तफरि दीखन्ह िहाँ पीठी ॥


दे खि साह तसंघासि िूाँजा । कब िति तमररि चााँद िोतह भूजा ॥
छााँडतहं बाि जातहं उपराही । का िैं िरब करतस इिराही ? ॥
बोिि बाि िाख भए ऊाँचे । कोइ कोट, कोइ प रर पहूाँ चे ॥
जहााँिीर किउज कर राजा । ओतह क बाि पािुरर के िािा ॥
बाजा बाि, जााँघ िस िाचा । तजउ िा सरि, परा भुइाँ सााँचा ॥
उडसा िाच, िचतिया मारा । रहसे िुरुक बजाइ कै िारा ॥

जो िढ साजै िाख दस, कोतट उठावै कोतट ।


बादशाह जब चाहै छपै ि क तिउ ओट ॥15॥

राजै प रर अकास चढाई । परा बााँध चहुाँ फेर ििाई ॥


सेिुबंध जस राघव बााँधा । परा फेर, भुइाँ भार ि कााँधा ॥
हिु वाँि होइ सब िाि िोहारू । चहुाँ तदतस ढोइ ढोइ कीन्ह पहारू ॥
सेि फतटक अस िािै िढा । बााँ ध उठाइ चहूाँ िढ मढा ॥
खाँड खाँड ऊपर होइ पटाऊ । चुत्र अिे क, अिे क कटाऊ ॥
सीढी होति जातहं बहु भााँिी । जहााँ चढै हखस्ति कै पााँिी ॥
भा िरिज कस कहि ि आवा । जिहुाँ उठाइ ििि िे इ आवा ॥

राहु िाि जस चााँदतहं िस िढ िािा बााँध ।


सरब आति अस बरर रहा , ठााँव जाइ को कााँध ॥16॥

राजसभा सब मिै बईठी । दखख ि जाइ, मूाँ तद िइ दीठी ॥


उठा बााँध, चहुाँ तदतस िढ बााँधा । कीजै बेति भार जस कााँधा ॥
उपजै आति आति जस बोई । अब मि कोई आि ितहं होई ॥
भा िेवहार ज चााँचरर जोरी । खे ति फाि अब िाइय होरी ॥
समतद फाि मे तिय तसर धू री । कीन्ह जो साका चातहय पूरी ॥
चंदि अिर मियतिरर काढा । घर घर कीन्ह सरा रतच ठाढा ॥
ज हर कहाँ साजा रतिवासू । तजन्ह सि तहये कहााँ तिन्ह आाँ सू ?॥

पुरुषन्ह खडि साँभारे , चंदि खेवरे दे ह ।


मे हररन्ह सेंदुर मे िा, चहतहं भई जरर खेह ॥17॥

आठ बररस िढ छें का रहा । धति सुििाि तक राजा महा ॥


आइ साह अाँ बराव जो िाए । फरे झरे पै िढ ितहं पाए ॥
ज िोर ं ि ज हर होई । पदतमति हाथ चढै ितहं सोई ॥
एतह तबतध ढीि दीन्ह, िब िाईं । तदल्ली िै अरदासै आईं ॥
पतछउाँ हरे व दीखन्ह जो पीठी । सो अब चढा स ह ं कै दीठी ॥
तजन्ह भुइाँ माथ ििि िेइ िािा । थािे उठे , आव सब भािा ॥
उहााँ साह तचिउरिढ छावा । इहााँ दे स अब होइ परावा ॥

तजन्ह तजन्ह पंथ ि िृि परि, बाढे बेर बबूर ।


तितस अाँ तधयारी जाइ िब बेति उठै ज सूर ॥18॥

(1) बाजा = पहुाँ चा । िाजे = िरजे । दतध = दतधसमु द्र । उदतध = पािी का समु द्र । खखखखंद = तकखकंधा पवाि । सहुाँ = सामिे । पेिे =
जोर से चिाए । जूह = यूथ, दि ।
(2) िराहीं = िीचे । दर = दि । चााँतप = दबकर । िरब = मदजि । िुद = तसर का िूदा । तमिाइ = धू ि तमिाकर ।
(3) आठ ं बज् = आठों वज्ों का । दर = दि में । फारा = फाि , टु कडा । सेि बरछे । होइ =होिा है । कााँदो = कीचड । मु ख राि =
िाि मु ख िे कर, सुखारू होकर । मतस = कातिमा, स्याही । पराि = भाििे हुए ।
(4) काऊ = कभी । िोहे = हतथयार । अिाऊ = आिे, सामिे । िूरा = िुरही । मााँडो = मं डप । अिी सेिा । सकति = शखक्त भर, भरसक
। पोखख = पोषण करके । ओछ = ओछा, िीच । पूर = पूरा । जोखख आवति = तवचारिा आिा है । जो तथर आवि जोखख = जो ऐसे शरीर
को खस्थर समझिा आिा है ।
(5) चााँद = राजा । सूर बादशाह । समू हा = शत्रुसेिा की भीड । छािू = छत्र । दर िोहा = सेिा के चमकिे हुए हतथयार । ओडि = ढाि,
रोकिे की वस्तु । ओडि चााँद....पाए = चंद्रमा के बचाव के तिये समय-तवशेष (रातत्र) तमिा जब तक सूया सामिे िहीं आिा । जिमि =
झिझिािी हुई । जिमि ....िाति = राजा िे िढ पर से बादशाह की चमकिी हुई सेिा को दे खा । छु ए....आति = यतद िोहा सूया के
सामिे होिे से िप जािा है िो जो उसे छु ए रहिा है उसके शरीर में भी िरमी आ जािी है , अथााि् सूया के समाि शाह की सेिा का प्रकाश
दे ख शस्त्रधारी राजा को जोश चढ आया ।
(6) काँवि = बादशाह । कुमु द = कुमु द के समाि संकुतचि । तदि...बडाई = तदि में सूया के सामिे उसकी क्या बडाई है ? िपे = प्रिापयुक्त
थे । जो होइ सरि..झूझा = जो स्विा (ऊाँचे िढ) पर हो वह िीचे उिरकर युद्ध िहीं करिा । हाथ परै िढ = िू ट हो जाय िढ में । भा
िढपति = तकिे में हो िया , अथााि् सूया के सामिे िहीं आया ।
(7) उदतध समुद्र = पािी का समु द्र । केिेन्ह...साजा = ि जािे तकििों को िए िए सामाि दे िा है । िस राजा = ऐसा बडा राजा वह
अिाउद्दीि है । अिं िै = बाजू, सेिा का एक एक पक्ष । अतिदाह = अतिदाह। सुरुज िहि ....राहु = सूया (बादशाह)-- चंद्रमा (राजा) के
तिए ग्रहण-रूप हुआ चाहिा है , वह चंद्रमा (राजा) के तिये राहु-रूप हो िया है ।
(8) भा बासा = अपिे डे रे में तटकाि हुआ । िखि = राजा के सामं ि और सैतिक िू क = अति के समाि बाण । उठ =उठिी है । कोल्हहु =
कोल्हहू । ढरकाहीं = िु ढकाए जािे हैं । सकै को.....कातढ = उि बाणों के सामिे सेिा को क ि आिे तिकाि सकिा है ।
(9) िरे रा = घेरा । एक मु ख = एक ओर । बाजतहं = पडिे हैं । फोंक = िीर का तपछिा छोर तजसमें पर ििे रहिे हैं । बाजतहं जहााँ
...फूटतह = जहााँ पडिे है तपछिे छोर िक फट जािे हैं , ऐसे जोर से वे चिाए जािे हैं । राँ ि = रण-रं ि । िाक = िाका, मु ख्य-स्थाि ।
(10) सुराँि = सुरंि, जमीि के िीचे खोदकर बिाया हुआ मािा । िरिज = परकोटे का वह बुजा तजसपर िोप चढाई जािी है । कमािैं = िोपें
। दारू = बारूद । तफरं िी = पुिा -िािी भारि में सबसे पहिे आए पुिािातियों के तिये प्रयुक्त हुआ) िोट = िोिे । ओदरतहं = ढह जािे हैं
। रावट =महि । अजर = जो ि जिे ।
(11) थवई = मकाि बिािे वािे । तचत्र = ठीक, दु रुस्त । िुपक = बंदूक । बाजा = पडिे हैं । धरिी सरि = आकाश और पृथ्वी के बीच ।
डु ं िवा = टीिा ।
(12) समु हें = सामिे । मादर = मदा ि, एक प्रकार का ढोि । रबाब = एक बाजा । कमाइच = सारं िी बजािे की कमाि । उपंि = एक बाजा
। िूरा =िूर, िुरही । महुअर = सूखी िुमडी का बिा बाजा तजसे प्रायुः साँपेरे बजािे हैं । हुडु क = डमरू की िरह का बाजा तजसे प्रायुः कहार
बजािे हैं । िंि = िंत्री । घििार = बडा झााँझ ।
(13) ऊपर भए; िर भए = ऊपर से; िीचे से । िढ माथे = तकिे के तसरे पर । उमरा झुमरा = झूमर, िाच ।
(14) पहूाँ च = पहुाँ चिी है ।
(15) तफरि = तफरिे हुए । तसंघासि = तसंहासि पर = िूाँजा = िरजा । तमररि = मृ ि अथााि् मृिियिी । भूजा = भोि करे िा ।
(15) भए ऊाँचे = ऊपर की ओर चिाए िए । सााँचा= शरीर । उडसा = भंि हो िया । िारा = िाि, िािी ।
(16) अकास चढाई== और ऊाँचे पर बिवाई । चहुाँ फेर ििाई = चारों ओर ििाकर । मढा = घेरा । पटाऊ = पटाव। ििि िेइ = आकाश
िक । को कााँध = उस जिह जािे का भार क ि ऊपर िे सकिा है ?
(17) मिै = सिाह करिे के तिये । कीजै बेति...कााँधा = जैसा भारी युद्ध आपिे तिया है उसी के अिु सार कीतजए, यही सिाह सबिे दी ।
समतद = एक दू सरे से अं तिम तबदा िे कर । साका कीन्ह = कीतिा स्थातपि की है चातहय पूरी = पूरी होिी चातहए । सरा = तचिा । ज हर =
िढ तघर जािे पर जब राजपूि िढ की रक्षा िहीं दे खिे थे िब खस्त्रयााँ शत्रु के हाथ में ि पडिे पाएाँ इसके तिये पहिे ही से तचिा िैयार रखिे
थे । ( जब िढ से तिकिकर पुरुष िडाई में काम आ जािे थे िब खस्त्रयााँ चट तचिा में कूद पडिी थी । यही ज हर कहिािा था ) खेवरे =
क र ििाई । मे हररन्ह = खस्त्रयों । खेह = राख ।
(18) आइ साह अाँ वराव...पाए = बादशाह िे आकर जो आम के पेड ििाए वे बडे हुए, फिकर झड भी िए पर िढ िहीं टू टा । जो िोर ं =
बादशाह कहिा है तक यतद िढ को िोडिा हूाँ िो । अरदासैं = अजादाश्त, प्राथािापत्र । हरे व = हे राि प्रदे श का पुरािा िाम । थाि उठे =
बादशाह की जो स्थाि स्थाि पर च तकयााँ थी वह उठ िईं । तजन्ह....बबूर = तजि तजि रास्तों में घास भी उिकर बाधक िहीं हो सकिी थी
उिमें बादशाह के रहिे से बेर और बबूि उि आए हैं ।
राजा-बादशाह-मे ि-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी

सुिा साह अरदासै पढीं । तचंिा आि आति तचि चढी ॥


ि अिमि मि चीिै कोई । ज आपि चीिा तकछु होई ॥
मि झूठा, तजउ हाथ पराए । तचंिा एक तहये दु इ ठाएाँ ॥
िढ स ं अरुतझ जाइ िब छूटै । होइ मे राव, तक सो िढ टू टै ॥
पाहि कर ररपु पाहि हीरा । बेध ं रिि पाि दे इ बीरा ॥
सुरजा सेंति कहा यह भेऊ । पितट जाहु अब माि हु सेऊ ॥
कहु िोतह स ं पदतमति ितहं िे ऊाँ । चूरा कीन्ह छााँतड िढ दे ऊाँ ॥

आपि दे स खाहु सब औ चंदेरी िे हु ।


समु द जो समदि कीन्ह िोतह िे पााँच िि दे हु ॥1॥

सुरजा पितट तसं घ चतढ िाजा । अज्ञा जाइ कही जहाँ राजा ॥
अबहूाँ तहये समु झु रे , राजा । बादसाह स जू झ ि छाजा ॥
जेतह कै दे हरी पृतथवी सेई । चहै ि मारै औ तजउ िे ई ॥
तपंजर माहाँ ओतह कीन्ह परे वा । िढपति सोइ बााँच कै सेवा ॥
ज िति जीभ अहै मु ख िोरे । साँवरर उघेिु तबिय कर जोरे ॥
पुति ज जीभ पकरर तजउ िे ई । को खोिे , को बोिे दे ई ?॥
आिे जस हमीर मै मंिा । ज िस करतस िोरे भा अं िा ॥

दे खु ! काखि िड टू टै , राज ओतह कर होइ ।


करु सेवा तसर िाइ कै, घर ि घािु बुतध खोइ ॥2॥

सरजा ! ज हमीर अस िाका । और तिवातह बााँ तध िा साका ॥


ह ं सक- बंधी ओतह अस िाहीं । ह ं सो भोज तवक्रम उपराहीं ॥
बररस साठ िति सााँतठ ि कााँिा । पाति पहार चुवै तबिु मााँिा ॥
िेतह ऊपर ज पै िढ टू टा । सि सकबंधी केर ि छूटा ॥
सोरह िाख कुाँवर हैं मोरे । परतहं पिाँि जस दीप- अाँ जोरे ॥
जेतह तदि चााँचरर चाह ं जोरी । समद ं फािु िाइ कै होरी ॥
ज तितस बीच, डरै ितहं कोई । दे खु ि काखि काह दहुाँ होई ॥

अबतहं ज हर सातज कै कीन्ह चह ं उतजयार ।


होरी खेि ं रि कतठि, कोइ समे टै छार ॥3॥

अिु राजा सो जरै तिआिा । बादसाह कै सेव ि मािा ॥


बहुिन्ह अस िढ कीन्ह सजविा । अं ि भई िं का जस रविा ॥
जेतह तदि वह छें कै िढ घाटी । होइ अन्न ओही तदि माटी ॥
िू जाितस जि चुवै पहारू । सो रोवै मि साँवरर साँघारू ॥
सूितह सूि साँवरर िढ रोवा । कस होइतह ज होइतह ढोवा ॥
साँवरर पहार सो ढारै आाँ सू । पै िोतह सूझ ि आपि िासू ॥
आजु काखि चाहै िढ टू टा । अबहुाँ मािु ज चाहतस छूटा ॥

हैं जो पााँच िि िो पहाँ िे इ पााँचो कहाँ भेंट ॥


मकु सो एक िुि मािै , सब ऐिुि धरर मे ट ॥4॥

वह िुम्हारे इस एक ही िुण से सब अविुणों को भूि जाय ।


अिु सरजा को मे टै पारा । बादसाह बड अहै िुम्हारा ॥
ऐिुि मे तट सकै पुति सोई । औ जो कीन्ह चहै सो होई ॥
िि पााँच दे इ दे उाँ भाँडारा । इसकंदर स ं बााँचै दारा ॥
ज यह बचि ि माथे मोरे । सेवा कर ं ठाढ कर जोरे ॥
पै तबिु सपथ ि अस मि मािा । सपथ बोि बाचा-परवािााँ ॥
खंभ जो िरुअ िीन्ह जि भारू । िेतह क बोि ितहं टरै पहारू ॥
िाव जो मााँझ भार हुाँ ि िीवा । सरजै कहा मं द वह जीवा ॥

सरजै सपथ कीन्ह छि बैितह मीठै मीठ ।


राजा कर मि मािा , मािा िुरि बसीठ ॥5॥

हं स किक पींजर-हुाँ ि आिा । औ अमृ ि िि परस-पखािा ॥


औ सोिहार सोि के डााँडी । सारदू ि रूपे के कााँडी ॥
सो बसीठ सरजा िे इ आवा । बादसाह कहाँ आति मे रावा ॥
ए जिसूर भूतम-उतजयारे । तबििी करतहं काि मतस-कारे ॥
बड परिाप िोर जि िपा । िव खंड िोतह को ितहं छपा ?॥
कोह छोह दू ि िोतह पाहााँ । मारतस धू प, तजयावतस छाहााँ ॥
जो मि सूर चााँद स ं रूसा । िहि िरासा, परा माँ जूसा ॥

भोर होइ ज िािै उठतहं रोर कै काि ।


मतस छूटै सब रै ति कै, काितह केर अभाि ॥6॥

करर तबििी अज्ञा अस पाई । "कािहु कै मतस आपुतह िाई ॥


पतहिे तह धिु ष िवै जब िािै । काि ि तटकै, दे खख सर भािै ॥
अबहूाँ िे सर स हं ैं होहीं । दे खैं धिु क चितहं तफरर त्ोंहीं ॥
तिन्ह कािन्ह कै क ि बसीठी । जो मु ख फेरर चितहं दे इ पीठी ॥
जो सर स ह ं होतहं संग्रामा । तकि बि होतहं सेि वै सामा ?॥
करै ि आपि ऊजर केसा । तफरर तफरर कहै परार साँदेसा ॥
काि िाि ए दू ि बााँके । अपिे चिि साम वै आाँ के ॥
"कैसेहु जाइ ि मे टा भएउ साम तिन्ह अं ि ।
सहस बार ज धोवा िबहुाँ ि िा वह रं ि ॥7॥

"अब सेवा जो आइ जोहारे । अबहूाँ दे खु सेि की कारे ॥


कह ं जाइ ज सााँच, ि डरिा । जहवााँ सरि िातहं िहाँ मरिा ॥
काखि आव िढ ऊपर भािू । जो रे धिु क, स ह ं होइ बािू "
पाि बसीठ मया करर पावा । िीन्ह पाि, राजा पहाँ आवा ॥
जस हम भेंट कीन्ह िा कोहू । सेवा मााँझ प्रीति औ छोहू ॥
काखि साह िढ दे खै आव । से वा करहु जेस मि भावा ॥
िुि स ं चिै जो बोतहि बोझा । जहाँ वााँ धिु क बाि िहाँ सोझा ॥

भा आयसु अस राजघर, बेति दै करहु रसोइ ।


ऐस सुरस रस मेरवहु जेतह स ं प्रीति-रस होइ ॥8॥

(1) चीिे = सोचे, तवचारे । तचंिा एक...ठाएाँ = एकहृदय में द ओर की तचंिा ििी । िढ स . ं ..टू टै = बादशाह सोचिा है तक िढ िे िे में
जब उिझ िए हैं िब उससे िभी छूट सकिे हैं जब या िो मे ि हो जाय या िढ टू टे । पाहि कर ररपु ....हीरा = हीरे पत्थर का शत्रु हीरा
पत्थर ही होिा है अथााि् हीरा हीरे से ही कटिा है । पाि दे इ बीरा = ऊपर से मे ि करके । मािहु सेऊ = आज्ञा मािो । चूरा कीन्ह = एक
प्रकार से िोडा हुआ िढ । खाहु = भोि करो । समदि कीन्ह = तबदा के समय भेंट में तदए थे ।
(2) उघेिु = तिकाि। हमीर = रिथंभ र का राजा, हमीरदे व जो अिाउद्दीि से िडकर मारा िया था । िस = वैसा । घर ि घािु = अपिा घर
ि तबिाड ।
(3) िाका = ऐसा तबचारा ॥ सााँ तठ = सामाि । कााँिा कम होिा । समद ं = तबदा के समय का तमििा तमिूाँ । जो तितस बीच....दहुाँ होई =
(सरजा िे जो कहा था तक `दे खु काखि िढ टू टै ' इसके उत्तर में राजा कहिा है तक) एक राि बीच में पडिी है (अभी राि भर का समय
है ) िो कोई डर की बाि िहीं; दे ख िो कि क्या होिा है ?
(4) अिु = तफर । सजविा = िैयारी । रविा = रावण । अन्न माटी होइ = खािा पीिा हराम हो जायिा । साँघारू = संहार, िाश । ढोवा =
िू ट । मकु सो एक िुि....मे ट = शायद
(5) को भेट पारा = इस बाि को क ि तमटा सकिा है तक । भाँ डारा = भंडार से । जो यह बचि = जो बादशाह का इििा ही कहिा है िो
मे रे तसर मत्थे पर से । बाचा-परवााँिा = बचि का प्रमाण है । िाव जो मााँ झ...िीवा = जो तकसी बाि का बोझ अपिे ऊपर िेकर बीच में
िरदि हटािा है । छि = छि से । बसीठ मािा = सुिह का साँदेस माि तिया ।
(6) सोिहार= समु द्र का पक्षी । कााँडी = तपंजरा ? तबििी करतहं काि मतस कारे = हे सूया ! क ए तबििी करिे हैं तक उिकी कातिमा ( दोष,
अविुण) दू र कर दे अथााि् राजा के दोष क्षमा कर । कोह = क्रोध । छोह = दया, अिु ग्रह । धू प = धू प से । छाहााँ = छााँह में , अपिी छाया
में । परा माँ जूसा = झाबे में पड िया अथााि् तघर िया । काितह केर अभाि = क ए का ही अभाग्य है तक उसकी कातिमा ि छूटी ।
(7) कािहु कै मतस...िाई = क वै की स्याही िुम्हीं िे ििा िी है (छि करके) वे क ए िहीं हैं । पतहिे तह...भािै = जो क वा होिा है वह
ज्योंही धिु ष खींचा जािा है भाि जािा है । अबहूाँ ..होहों = वे िो अब भी यतद उिके सामिे बाण तकया जाय िो िुरंि िडिे के तिये तफर
पडें िे । धिु क = युद्ध के तिये चढी कमाि, टे ढापि, कुतटििा । सर = शर िीर, िाि, सरोवर । जो सर....सामा = जो िडाई में िीर के
सामिे आिे हैं वे श्वेि बििे कािे कैसे हो सकिे हैं ? करै ि आपि....साँदेसा = िू अपिे को शुद्ध और उज्ज्वि िहीं करिा, केवि क वों की
िरह इधर का उधर साँदेसा कहिा है (कतव िोि िातयकाओं का क ए से साँदेशा कहिा वणाि करिे हैं )। अपिे चिि...आाँ के = वे एक बाि
पर दृढ रहिे हैं और सदा वही कातिमा ही प्रकट करिे हैं पर िू अपिे को और का और प्रकट करके छि करिा है ।
(8) अब सेवा...जोहारे = उन्होंिे मे ि कर तिया है , िू अब भी दे ख सकिा है तक श्वेि हैं या कािे अथााि् वे छि िहीं करें िे । जो रे धिु क
..बािू = जो अब वह तकिे में मे रे जािे पर तकसी प्रकार की कुतटििा करे िा िो उसके सामिे तफर बाण होिा ( धिु ष टे ढा होिा है और
बाण सीधा ) । िुि = िूि, रस्सी । जहाँ वा धिु क ....सोझा = जहााँ कुतटििा हुई तक सामिे सीधा बाण िैयार है ।
बादशाह -भोज- खंड / मतिक मोहम्मद जायसी

छािर मे ढा बड औ छोटे । धरर धरर आिे जहाँ िति मोटे ॥


हररि, रोझ, िििा बि बसे । चीिर िोइि, झााँख औ ससै ॥
िीिर, बटई, िवा ि बााँचे । सारस, कूज , पुछार जो िाचे ॥
धरे परे वा पंडुक हे री । खेहा, िुडरू और बिेरी ॥
हाररि, चरि, चाह बाँतद परे । बि-कुक्कुट, जि-कुक्कुट धरे ॥
चकई चकवा और तपदारे । िकटा, िे दी, सोि सिारे ॥
मोट बडे सो टोइ टोइ धरे । ऊबर दू बर खुरुक ि, चरे ॥

कंठ परी जब छूरी रकि ढु रा होइ आाँ सु ।


तकि आपि िि पोखा भखा परावा मााँसु ?॥1॥

धरे माछ पतढिा औ रोहू । धीमर मारि करै ि छोहू ॥


तसधरी, स रर, धरी जि िाढे । टें िर टोइ टोइ सब काढे ॥
सींिी भाकुर तबति सब धरी । पथरी बहुि बााँब बििरी ॥
मारे चरख औ चाि तपयासी । जि ितज कहााँ जातहं जिबासी ?॥
मि होइ मीि चरा सुख-चारा । परा जाि को दु ख तिरुवारा ?॥
मााँटी खाय मच्छ ितहं बााँचे । बााँचतह काह भोि-सुख-रााँचे ?॥
मारै कहाँ सब अस कै पािे । को उबार िेतह सरवर-घािे ?॥

एतह दु ख कााँटतह सारर कै रकि ि राखा दे ह ।


पंथ भुिाइ आइ जि बाझे झूठे जिि सिे ह ॥2॥

दे खि िोहूाँ कर तहय फाटा । आिे िहााँ होव जहाँ आटा ॥


िब पीसे जब पतहिे धोए । कपरछाति मााँडे, भि पोए ॥
चढी कराही, पाकतहं पूरी । मु ख महाँ परि होतह सो चूरी ॥
जािहुाँ िपि सेि औ उजरी । िै िू चातह अतधक वै कोंवरी ॥
मु ख मे िि खि जातहं तबिाई । सहस सवाद सो पाव जो खाई ॥
िु चुई पोइ पोइ तघउ-मे ई । पाछे छाति खााँड-रस मे ई ॥
पूरर सोहारी कर तघउ चूआ । छु अि, डरन्ह को छूआ ? ॥

कही ि जातहं तमठाई, कहि मीठ सुतठ बाि ।


खाि अघाि ि कोई, तहयरा जाि सेराि ॥3॥

चढे जो चाउर बरति ि जाहीं । बरि बरि सब सुिाँध बसाहीं ॥


रायभोि औ काजर-रािी । तझिवा, रुदवा, दाउदखािी ॥
बासमिी, कजरी, रििारी । मधु कर, ढे िा, झीिासारी ॥
तघउकााँद औ कुाँवरतबिासू । रामबास आवै अति बासू ॥
ििं चूर िाची अति बााँके । सोिखरीका कपुरा पाके ॥
कोरहि,बडहि, जडहि तमिा । औ संसारतििक खाँडतविा ॥
धतिया दे वि और अजािा । कहाँ िति बरि ं जावि धािा ॥

सोंधे सहस बरि, अस सुिंध बासिा छूतट ।


मधु कर पुहुप जो बि रहे आइ परे सब टू तट ॥4॥

तिरमि मााँसु अिू प बघारा । िेतह के अव बरि ं परकारा ॥


कटु वा, बटु वा तमिा सुबासू । सीझा अिबि भााँति िरासू ॥
बहुिै सोंधे तघउ महाँ िरे । कस्तूरी केसर स ं भरे ॥
सेंधा िोि परा सब हााँडी । काटी कंदमू र कै आाँ डी ॥
सोआ स फ ं उिारे घिा । तिन्ह िें अतधक आव बासिा ॥
पाति उिारतहं िाकतहं िाका । घीउ परे ह मातहं सब पाका ॥
औ िीन्हें मााँसुन्ह के खंडा । िािे चुरै सो बड बड हं डा ॥

छािर बहुि समू ची धरी सरािन्ह भूाँतज ।


जो अस जेंवि जेंवै उठै सींघ अस िूाँतज ॥5॥

भूाँतज समोसा तघउ महाँ काढे । ि ि ं मररच तजन्ह भीिर ठाढे ॥


और मााँसु जो अिबि बााँटा । भए फर फूि, आम औ भााँटा ॥
िाराँ ि, दाररउाँ , िुराँज, जभीरा । औ तहं दवािा, बािम खीरा ॥
कटहर बडहर िेउ साँवारे । िररयर, दाख, खजूर, छोहारे ॥
औ जावि जो खजहजा होहीं । जो जेतह बरि सवाद सो ओहीं ॥
तसरका भेइ कातढ जिु आिे । कवाँि जो कीन्ह रहे तबिसािे ॥
कीन्ह मसेवरा, सीतझ रसोई । जो तकछु सबै मााँसु स ं होई ॥

बारी आइ पुकारे तस िीन्ह सबै करर छूाँछ ।


सब रस िीन्ह रसोई, को अव मोकहाँ पूछ ॥6॥

काटे माछ मे ति दतध धोए । औ पखारर बहु बार तिचोए ॥


करुए िेि कीन्ह बसवारू । मे थी कर िब दीन्ह बघारू ॥
जुिुति जुिुति सब मााँछ बघारे । आम चीरर तिन्ह मााँझ उिारे ॥
औ परे ह तिन्ह चुटपुट राखा । सो रस सुरस पाव जो चाखा ॥
भााँति भााँति सब खााँडर िरे । अं डा िरर िरर बेहर धरे ॥
घीउ टााँक महाँ सोंध सेरावा । ि ि ं मररच िेतह ऊपर िावा ॥
कुहुाँ कुहुाँ परा कपूर-बसावा । िख िें बघारर कीन्ह अरदावा ॥
तघररि परे ह रहा िस हाथ पहुाँ च िति बूड ।
तबररध खाइ िव जोबि स तिररया स ं ऊड ॥7॥

भााँति भााँति सीझीं िरकारी । कइउ भााँति कोहाँ डि कै फारी ॥


बिे आति ि आ परबिी । रयिा कीन्ह कातट रिी रिी ॥
चूक िाइ कै रींधे भााँटा । अरुई कहाँ भि अरहि बाटा ॥
िोरई, तचतचडा, डें डसी िरी । जीर धुाँ िार झार सब भरी ॥
परवर कुाँदरू भूाँजे ठाढे । बहुि तघउ महाँ चुरमु र काढे ॥
करुई कातढ करै िा काटे । आदी मे ति िरे कै खाटे ॥
रींधे ठाढ सेब के फारा । छ तं क साि पुति सोंध उिारा ॥

सीझीं सब िरकारी भा जेंवि सव ऊाँच ।


दहुाँ का रुचै साह कहाँ , केतह पर तदखस्ट पहुाँ च ॥8॥

तघउ कराह भरर, बेिर धरा । भााँति भााँति के पाकतहं बरा ॥


एक ि आदी मररच स ं पीठा । दू सर दू ध खााँड स मीठा ॥
भई मु ि छी मररचैं परी । कीन्ह मु ि रा औ बहु बरी ॥
भईं मे थ री, तसरका परा । सोंतठ िाइ कै जरसा धरा ॥
माठा मतह मतहयाउर िावा । भीज बरा िै िू जिु खावा ॥
खंडै कीन्ह आमचुर परा । ि ि ं िायची स ं खाँडवरा ॥
कढी साँवारी और फुि री । औ खाँडवािी िाइ बर री ॥

ररकवाँच कीखन्ह िाइ कै, हींि मररच औ आद ।


एक खंड ज खाइ ि पावै सहस सवाद ॥9॥

िहरी पातक, ि ि ं औ िरी । परी तचर ज ं ी औ खरहरी ॥


तघउ महाँ भीाँतज पकाए पेठा । औ अमृ ि िुरंब भरे मे टा ॥
चुंबक-िोहाँ डा औटा खोवा । भा हिु वा तघउ िरि तिचोवा ॥
तसखरि सोंध छिाई िाढी । जामी दू ध दही कै साढी ॥
दू ध दही कै मु रंडा बााँधे । और साँधािे अिबि साधे ॥
भइ जो तमठाई कही ि जाई । मु ख मे िि खि जाइ तबिाई ॥
मोिीचूर, छाि औ ठोरी । माठ, तपराकैं और बुाँद री ॥

फेरी पापर भूाँजे, भा अिे क परकार ।


भइ जाउरर पतछयाउरर; सीझी सब जेविार ॥10॥

जि परकार रसोइ बखािी । िि सब भई पाति स ं सािी ॥


पािी मू ि, पररख ज कोई । पािी तबिा सवाद ि होई ॥
अमृ ि-पाि सह अमृ ि आिा । पािी स ं घट रहै परािा ॥
पािी दू ध औ पािी घीऊ । पाति घटे , घट रहै ि जीऊ ॥
पािी मााँझ समािी जोिी । पातितह उपजै मातिक मोिी ॥
पातितह स ं सब तिरमि किा । पािी छु ए होइ तिरमिा ॥
सो पािी मि िरब ि करई । सीस िाइ खािे पि धरई ॥

मु हमद िीर िाँभीर जो भरे सो तमिे समुंद ।


भरै िे भारी होइ रहे , छूाँछे बाजतहं दुं द ॥11॥

(1) रोझ = िीििाय । िििा = एक विमृि । चीिर = तचत्रमृ ि । िोइि = कोई मृ ि । झााँ ख = एक प्रकार का बडा जंििी तहरि; जैसे -
ठाढे तढि बाघ, तबि, तचिे तचिवि झााँख मृ ि शाखा मृ ि सब रीतझ रीतझ रहे हैं । ससे = खरहे । पुछार = मोर । खेहा = केहा, बटे र की िरह
की एक तचतडया । जुडरू = कोई पक्षी । बिेरी = भरिाज, भरुही । चरि = बाज की जाति की एक तचतडया । चाह = चाहा िामक जिपक्षी
। तपदारे = तपद् ््दे । िकटा = एक छोटी तचतडया सोि, सिारे =कोई पक्षी । खुरुक = खटका । पतढिा =पाठीि मछिी, पतहिा । रोहू, तसधरी,
स री टें िरा, सींिी, भाकुर, पथरी, बििरी, चरख, तपयासी = मछतियों के िाम । बााँब = बाम मछिी जो दे खिे में सााँप तक िरह िििी है । चाि
= चेिवा मछिी । तिरुवारा = छु डाए ।
(2) रााँचे = अिु रक्त, तिप्त । िेतह सरवर-घािे = उस सरोवर में पडे हुए को क ि बचा सकिा है । ( जीवपक्ष में संसार -सािर में पडे हुए
का क ि उद्धार कर सकिा है । एतह मु ख...दे ह = इसी दु ख से िो मछिी िे शरीर में कााँटे ििाकर, रक्त िहीं रखा। िपि जििी हुई ,
िरम िरम । िैिू = िविीि , मक्खि । कोंवरी = कोमि । तघउ मे ई = घी का मोयि दी हुई । कहि म मीठ ...बाि = उिके िाम िेिे
से मुाँ ह मीठा हो जािा है ।
(4) काजर-रािी = रािी काजि िाम का चावि । रायभोि, तझिवा, रुदवा, दाउदखािी, बासमिी, कजरी मधु कर, ढे िा, झीिासारी, तघउकााँदो, कुाँवर-
तबिास, रामबास, िवाँिचूर, िाची, सोिखररका, कपूरी, संसारतििक, खाँडतविा, धतिया, दे वि = चाविों के िाम । पुहुप = फूिों पर ।
(5) कटु वा = खंड खंड कटा हुआ । बटु आ = तसि पर बटा या तपसा हुआ । अिबि = तवतवध,अिे क। िरासू = ग्रास, क र । िरे = ििे हुए
। आाँ डी = अं ठी, िााँठ । िाकतहं िाका =िवा दे खिे हैं । परे ह = रसा, शोरबा । सरािन्ह = तसखचों पर, शिाकाओं पर । िूाँतज उठे ।
(6) ठाढे = खडी, समू ची । भए फर...भााँटा = मााँस ही अिे क प्रकार के फि-फूि के रूप में बिा है । तहं दवािा = िरबूज, किींदा । बािम
खीरा = खीरे की एक जाति । खजहजा = खािे के फि । तसरका भेइ...आिे = मािों तसरके में तभिोए हुए फि समू चे िाकर रखे िए हैं
(तसरके में पडे हुए फि ज्यों के त्ों रहिे हैं ) । मसेवरा = मााँ स की बिी चीजें सीतझ = पक्की, तसद्ध हुई । बारी = काछी या मािी । बारी
आइ...छूाँछ = मािी िे पुकार मचाई तक मे रे यहााँ जो फि-फूि थे वे सब िो मु झे खािी करके िे तिए अथााि् वे सब मााँस ही के बिा तिए
िए ।
(7) पखारर = धोकर । बसवारू = छ क ं । परे ह = रसा । खााँडर = कििे । िरर = ििकर । बेहर = अिि । टााँक =बरिि, कटोरा ।
सेरावा = ठं ढा तकया । िख = एक िंधद्रव्य । अरदावा = कुचिा या भुरिा । पहुाँ च िति =पहुाँ चा या किाई िक । ऊड = तववाह करे या
रखे (ऊढ)।
(8) फारी = फाि, टु कडे । ि आ = घीया, कद् दू । रयिा = रायिा । रिी रिी = महीि महीि । चूक = खटाई । रींधे =पकाए । अरहि =
चिे की तपसी दाि जो िरकारी में पकािे समय डािी जािी है रे हि । बाटा = पीसा । डें डसी = कुम्हडे की िरह की एक िरकारी,
तटं ड,(तटतडस) िरी = ििी । धुाँ िार =छ कं । चुरमु र = कुरकुरे । करुई कातड = कडवापि तिकािकर (िमक हल्दी के साथ मिकर ) । कै
खाटै = खट्टे करके । फारा = फाि, टु कडे ।
(9) बेिर = उदा या मूाँ ि का रवादार आटा, धुाँ वााँस । बरा =बडा । पीठा पीसा िया । मुाँ ि छी = मूाँ ि का पक वाि । मुाँ ि रा = मूाँि की पक डी
। मे थ री = एक प्रकार की बडी । खरसा = एक पकवाि । मतहयाउर = मट्ठे में पका चावि । िै िू = िविीि, मक्खि । बर री =बढी ।
ररकवाँच = अरुई या कच्चू के पत्ते पीठी में िपेटकर बिाए हुए बडे । आद = अदरक ।
(10) िहरी = बडी और हरी मटर के दािों की खखचडी । खरहरी = खररक, छु हारा । िुरंब = शीरे में रखे हुए आम । मे टा = तमट्टी के बरिि
, मटके ।िोहाँ डा = िोहे का सििा । मु रंडा = पािी तिथार कर तपंडाकार बाँधा दही या छे िा । साँधािे = अचार । छाि = एक तमठाई । टोरी
= ठ र । तपराकैं = िोतझया । बुाँ दोरी = बुाँतदया । पतछयाउरर = मट्ठे में तभिोई बुाँतदया । सीझी = तसद्ध हुई,पकी ।
(11) जि = तजििी । िि = उििी । पािी मू ि ....कोई = जो कोई तवचार कर दे खे िो पािी ही सबका मू ि है । अमृ ि-पाि = अमृ ि
पाि के तिये । दुं द = ठक ठक ।
तचत्त रिढ-वणाि-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी

जेवााँ साह जो भएउ तबहािा । िढ दे खै िविा सुििािा ॥


कवाँि-सहाय सूर साँि िीन्हा । राघव चेिि आिे कीन्हा ॥
ििखि आइ तबवााँि पहूाँ चा । मि िें अतधक, ििि िें ऊाँचा ॥
उघरी पवाँरर, चिा सुििािू । जािहु चिा ििि कहाँ भािू ॥
पवाँरी साि, साि खाँड बााँके । साि खंड िाढ दु इ िाके ॥
आजु पवाँरर-मु ख भा तिरमरा । ज सुििाि आइ पि धरा ॥
जिहुाँ उरे ह कातट सब काढी । तचत्र क मू रति तबिवतहं ठाढी ॥

िाखि बैठ पवाँररया तजन्ह िें िवतहं करोरर ।


तिन्ह सब पवाँरर उघारे , ठाढ भए कर जोरर ॥1॥

साि पाँवरी किक-केवरा । सािो पर बाजतहं िररयारा ॥


साि रं ि तिन्ह साि ं पाँवरी । िब तिन्ह चढै तफरै िव भाँवरी ॥
खाँड खाँड साज पिाँ ि औ पीढी । जािहुाँ इं द्रिोक कै सीढी ॥
चंदि तबररछ सोह िहाँ छाहााँ । अमृ ि-कुंड भरे िेतह माहााँ ॥
फरे खजहजा दाररउाँ दाखा । जोज ओतह पंथ जाइ सो चाखा ॥
किक-छत्र तसंघासि साजा । पैठि पाँवरर तमिा िे इ राजा ॥
बादशाह चतढ तचिउर दे खा । सब संसार पााँव िर िे खा ॥

दे खा साह ििि-िढ इं द्रिोक कर साज ।


कतहय राज फुर िाकर सरि करै अस राज ॥2॥

चडी िढ ऊपर संिि दे खी । इं द्रसभा सो जाति तबसेखी ॥


िाि ििावा सरवर भरे । औ अाँबराव चहूाँ तदतस फरे ॥
कुआाँ बावरी भााँतितह भााँिी । मठ मं डप साजे चहुाँ पााँिी ॥
राय रं क घर घर सुख चाऊ । किक-माँ तदर िि कीन्ह जडाऊ ॥
तितस तदि बाजतहं मादर िूरा । रहस कूद सब भरे सेंदूरा ॥
रिि पदारथ िि जो बखािे । घू रन्ह मााँह दे ख छहरािे ॥
माँ तदर माँ तदर फुिवारी बारी । बार बार बहु तचत्र सेंवारी ॥
पााँसासारर कुाँवर सब खेितहं , िीिन्ह स्रवि ओिातहं ।
चैि चाव िस दे खा जिु िढ छें का िातहं ॥3॥

दे खि साह कीन्ह िहाँ फेरा । जहाँ माँ तदर पदमावति केरा ॥


आस पास सरवर चहुाँ पासा । मााँझ मं तदर िु िाि अकासा ॥
किक साँवारर ििन्ह सब जरा । ििि चंद जिु िखिन्ह भरा ॥
सरवर चहुाँ तदतस पुरइि फूिी । दे खि बारर रहा मि भूिी ॥
कुाँवरर सहसदस बार अिोरे । दु हुाँ तदतस पाँवरर ठातढ कर जोरे ॥
सारदू ि दु हुाँ तदतस ितढ काढे । िििाजतहं जािहुाँ िे ठाढे ॥
जावि कतहए तचत्र कटाऊ । िावि पवाँररन्ह बिे जडाऊ ॥

साह माँ तदर अस दे खा जिु कैिास अिू प ।


जाकर अस ध राहर सो रािी केतह रूप ॥4॥

िााँघि पाँवर िए खाँड सािा । सिएाँ भूतम तबछावि रािा ॥


आाँ िि साह ठाढ भा आई । माँ तदर छााँह अति सीिि पाई ॥
चहूाँ पास फुिवारी बारी । मााँझ तसंहासि धरा साँवारी ॥
जिु बसंि फूिा सब सोिे । फि औ फूि तबितस अति िोिे ॥
जहााँ जो ठााँव तदखस्ट महाँ आवा । दरपि भाव दरस दे खरावा ॥
िहााँ पाट राखा सुििािी । बैठ साह, मि जहााँ सो रािी ॥
कवि सुभाय सूर स ं हाँ सा । सूर क मि चााँदतह पहाँ बसा ॥

सो पै जािै ियि-रस तहरदय प्रेम-अाँ कूर ।


चंद जो बसै चकोर तचि ियितह आव ि सूर ॥5॥

रािी ध राहर उपराहीं । करै तदखस्ट ितहं िहााँ िराहीं ॥


सखी सरे खी साथ बईठी । िपै सूर, सतस आव ि दीठी ॥
राजा सेव करै कर जोरे । आजु साह घर आवा मोरे ॥
िट िाटक, पािुरर औ बाजा । आइ अखाड मााँह सब साजा ॥
पेम क िु बुध बतहर औ अंधा । िाच-कूद जािहुाँ सब धंधा ॥
जािहुाँ काठ िचावै कोइ । जो िाचि सो प्रिट ि होई ॥
परिट कह राजा स ं बािा । िुपुि प्रेम पदमावति रािा ॥

िीि िाद अस धं धा, दहक तबरह कै आाँ च ।


मि कै डोरर िाि िहाँ , जहाँ सो ितह िुि खााँच ॥6॥

िोरा बादि राजा पाहााँ । रावि दु व दु व जिु बाहााँ ॥


आइ स्रवि राजा के िािे । मू तस ि जातह पुरुष जो जािे ॥
बाचा परखख िुरुक हम बूझा । परिट मे र, िुपुि छि सूझा ॥
िुम ितहं कर िुरुक स ं मे रू । छि पै करतहं अं ि कै फेरू ॥
बैरी कतठि कुतटि जस कााँटा । सो मकोय रह राखै आाँ टा ॥
सत्रु कोट जो आइ अिोटी । मीठी खााँड जेंवाएहु रोटी ॥
हम िेतह ओछ क पावा घािू । मू ि िए साँि ि रहै पािू ॥

यह सो कृस्न बतिराज जस, कीन्ह चहै छर-बााँध ।


हम्ह तबचार अस आवै, मे र ि दीतजय कााँध ॥7॥

सुति राजतहं यह बाि ि भाई । जहााँ मे र िहाँ ितहं अधमाई ॥


मं दतह भि जो करै सोई । अं ितह भिा भिे कर होई ॥
सत्र जो तबष दे इ चाहै मारा । दीतजय िोि जाति तवष-हारा ॥
तबष दीन्हें तबसहर होइ खाई । िोि तदए होइ िोि तबिाई ॥
मारे खडि खडि कर िे इ । मारे िोि िाइ तसर दे ई ॥
क रव तवष जो पंडवन्ह दीन्हा । अं ितह दााँव पंडवन्ह िीन्हा ॥
जो छि करै ओतह छि बाजा । जैसे तसंघ माँ जूसा साजा ॥

राजै िोि सुिावा, िाि दु हुि जस िोि ।


आए कोहाइ माँ तदर कहाँ , तसंघ छाि अब िोि ॥8॥

राजा कै सोरह सै दासी । तिन्ह महाँ चुति काढी च रासी ॥


बरि बरि सारी पतहराई । तिकतस माँ तदर िें सेवा आईं ॥
जिु तिसरी सब वीरबहूटी । रायमु िी पींजर-हुि छूटी ॥
सबै परथमै जोबि सोहैं । ियि बाि औ साराँ ि भ ह ं ैं ॥
मारतहं धिु क फेरर सर ओही । पतिघट घाट धिु क तजति मोही ॥
काम-कटाछ हितहं तचि-हरिी । एक एक िें आिरर बरिी ॥
जािहुाँ इं द्रिोक िें काढी । पााँ तितह पााँति भईं सब ठाढी ॥

साह पूछ राघव पहाँ , ए सब अछरी आतहं ।


िुइ जो पदतमति बरिी, कहु सो क ि इि मातह ॥9॥

दीरघ आउ, भूतमपति भारी । इि महाँ िातहं पदतमिी िारी ।


यह फुिवारर सो ओतह के दासी । कहाँ केिकी भवर जहाँ बासी ॥
वह ि पदारथ, यह सब मोिी । कहाँ ओह दीप पिाँि जेतह जोिी ॥
ए सब िरई सेव कराहीं । कहाँ वह सतस दे खि छतप जाहीं ॥
ज िति सूर क तदखस्ट अकासू । ि िति सतस ि करै परिासू ॥
सुति कै साह तदस्ट िर िावा । हम पाहुि, यह माँ तदर परावा ॥
पाहुि ऊपर हे रै िाहीं । हिा राहु अजुाि परछाहीं ॥

िपै बीज जस धरिी, सूख तबरह के घाम ।


कब सुतदखस्ट सो बररसै, िि िररवर होइ जाम ॥10॥

सेव करैं दासी चहुाँ पासा । अछरी मिहुाँ इं द्र कतबिासा ॥


कोउ पराि कोउ िोटा िाईं । साह सभा सब हाथ धोवाई ॥
कोई आिे पिवार तबछावतहं । कोई जेंवि िे इ िे इ आवतहं ॥
मााँडे कोइ जातह धरर जूरी । कोई भाि परोसतह पूरी ॥
कोई िे इ िे इ आवतहं थारा । कोइ परसतह छप्पि परकारा ॥
पतहरर जो चीर परोसै आवतहं । दू सरतस और बरि दे खरावतहं ॥
बरि बरि पतहरे हर फेरा । आव झुंड जस अछररन्ह केरा ॥

पुति साँधाि बहु आितहं , परसतहं बूकतह बूक ।


करतहं साँवार िोसाई, जहााँ परै तकछु चूक ॥11॥

जािहु िखि करतहं सब सेवा । तबिु सतस सूरतहं भाव ि जेंवा ॥


बहु परकार तफरतहं हर फेरे । हे रा बहुि ि पावा हे रे ॥
परी ं असूझ सबै िरकारी । िोिी तबिा िोि सब खारी ॥
मच्छ छु वै आवतहं ितड काटा । जहााँ कवाँि िहाँ हाथ ि औंटा ॥
मि िािेउ िेतह कवाँि के दं डी । भावै िातहं एक किउं डी ॥
सो जेंवि ितहं जाकर भूखा । िेतह तबि िाि जिहुाँ सब सूखा ॥
अिभावि चाखै वेरािा । पंचामृ ि जािहुाँ तवष िािा ॥

बैतठ तसंघासि िूंजै, तसंघ चरै ितहं घास ।


ज िति तमररि ि पावै, भोजि करै उपास ॥12॥

पाति तिए दासी चहुाँ ओरा । अमृ ि मािहुाँ भरे कचोरा ॥


पािी दे तहं कपूर कै बासा । सो ितहं तपयै दरसकर प्यासा ॥
दरसि-पाति दे इ ि जीऔं ।तबिु रसिा ियितहं स ं पीऔं ॥
पतपहा बूाँद-सेवातिति अघा । क ि काज ज बररसै मघा ?॥
पुतह िोटा कोपर िे इ आई । कै तिरास अब हाथ धोवाई ॥
हाथ जो धोवै तबरह करोरा । साँ वरर साँवरर मि हाथ मरोरा ॥
तबतध तमिाव जास ं मि िािा । जोरतह िूरर प्रेम कर िािा ॥

हाथ धोइ जब बैठा, िीन्ह ऊतब कै सााँस ।


साँवरा सोइ िोसाईं दे ई तिरासतह आस ॥13॥

भइ जेविार तफरा खाँडवािी । तफरा अरिजा कुहकुह-पािी ॥


िि अमोि जो थारतह भरे । राजै सेव आतिकै धरै ॥
तबििी कीन्ह घाति तिउ पािा । ए जिसूर ! सीउ मोतहं िािा ॥
ऐिुि-भरा कााँप यह जीऊ । जहााँ भािु िहाँ रहै ि सीऊ ॥
चाररउ खंड भािु अस िपा । जेतह के तदखस्ट रै ति-मतस छपा ॥
औ भािु तह अस तिरमि किा । दरस ज पावै सो तिरमिा ॥
कवि भािु दे खे पै हाँ सा । औ भा िेहु चातह परिसा ॥

रिि साम ह ं रै ति मतस, ए रतब ! तितमर साँघार ।


करु सो कृपा-तदखस्ट अब, तदवस दे तह उतजयार ॥14॥

सुति तबििी तबहाँ सा सुििािू । सहस करा तदपा जस भािू ॥


ए राजा ! िुइ सााँच जुडावा । भइ सुतदखस्ट अब, सीउ छु डावा ॥
भािु क सेवा जो कर जीऊ । िे तह मतस कहााँ, कहााँ िे तह सीऊ ?॥
खाहु दे स आपि करर सेवा । और दे उाँ मााँड िोतह, दे वा ! ॥
िीक-पखाि पुरुष कर बोिा । धु व सुमेरु ऊपर ितहं डोिा ॥
फेरर पसाउ दीन्ह िि सूरू । िाभ दे खाइ िीन्ह चह मू रू ॥
हाँ तस हाँ तस बोिै , टै के कााँधा । प्रीति भुिाइ चहै छि बााँधा ॥

माया-बोि बहुि कै साह पाि हाँ तस दीन्ह ।


पतहिे रिि हाथ कै चहै पदारथ िीन्ह ॥15॥

माया-मोह-तबबस भा राजा । साह खेि सिराँ ज कर साजा ॥


राजा ! है ज िति तसर घामू । हम िुम घररक करतहं तबसरामू ॥
दरपि साह भीति िहाँ िावा । दे ख ं जबतह झरोखे आवा ॥
खेितहं दु औ साह औ राजा । साह क रुख दरपि रह साजा ॥
प्रेम क िु बुध तपयादे पाऊाँ । िाकै स ह
ं चिै कर ठाऊाँ ॥
घोडा दे इ फरजीबाँद िावा । जे तह मोहरा रुख चहै सो पावा ॥
राजा पीि दे इ शह मााँिा । शह दे इ चाह मरै रथ-खााँिा ॥

पीितह पीि दे खावा भए दु औ च दाि ।


राजा चहै बुदा भा, शाह चहै शह-माि ॥16॥

सूर दे ख ज िरई-दासी । जहाँ सतस िहााँ जाइ परिासी ॥


सुिा जो हम तदल्ली सुििािू । दे खा आजु िपै जस भािू ॥
ऊाँच छत्र जाकर जि माहााँ । जि जो चााँह सब ओतह कै छाहााँ ॥
बैतठ तसंघासि िरबतह िूंजा । एक छत्र चाररउ खाँड भूजा ॥
तिरखख ि जाइ स ह ं ओतह पाहीं । सबै िवतहं करर तदखस्ट िराहीं ॥
मति माथे, ओतह रूप ि दू जा । सब रुपवंि करतहं ओतह पूजा ॥
हम अस कसा कस टी आरस । िहूाँ दे खु कस कंचि, पारस ॥

बादसाह तदल्ली कर तकि तचिउर महाँ आव ।


दे खख िे हु पदमावति ! जेतह ि रहै पतछिाव ॥17॥

तबिसे कुमु द कसे सतस ठाऊ । तबिसै काँवि सुिे रतब-िाऊाँ ॥


भइ तितस, सतस ध राहर चढी । सोरह किा जैस तबतध िढी ॥
तबहाँ तस झरोखे आइ सरे खी । तिरखख साह दरपि महाँ दे खी ॥
होितह दरस परस भा िोिा । धरिी सरि भएउ सब सोिा ॥
रुख मााँिि रुख िा सहुाँ भएऊ । भा शह-माि, खेि तमतट िएऊ ॥
राजा भेद ि जािै झााँपा । भा तबसाँभार, पवि तबिु कााँपा ॥
राघव कहा तक िाति सोपारी । िे इ प ढावतहं सेज साँवारी ॥

रै ति बीति िइ, भोर भा, उठा सूर िब जाति ।


जो दे खै सतस िाहीं, रही करा तचि िाति ॥18॥

भोजि-प्रेम सो जाि जो जेंवा । भाँवरतह रुचै बास-रस-केवा ॥


दरस दे खाइ जाइ सतस छपी । उठा भािु जस जोिी िपी ॥
राघव चेति साह पहाँ ियउ । सूरज दे खख कवाँि तबसमयऊ ॥
छत्रपिी मि कीन्ह सो पहुाँ चा । छत्र िुम्हार जिि पर ऊाँचा ॥
पाट िुम्हार दे विन्ह पीठी । सरि पिार रहै तदि दीठी ॥
छोह िे पिु हतहं उकठे रूखा । कोह िें मतह सायर सब सूखा ॥
सकि जिि िुम्ह िावै माथा । सब कर तजयि िुम्हारे हाथा ॥

तदितह ियि िाएहु िुम, रै ति भएहु ितहं जाि ।


कस तितचंि अस सोएहु, काह तबिाँ ब अस िाि ?॥19॥
दे खख एक क िुक ह ं रहा । रहा अाँ िरपट, पै ितहं अहा ॥
सरवर दे ख एक मैं सोई । रहा पाति, पै पाि ि होई ॥
सरि आइ धरिी महाँ छावा । रहा धरति, पै धरि ि आवा ॥
तिन्ह महाँ पुति एक मं तदर ऊाँचा । करन्ह अहा, पर कर ि पहुाँ चा ॥
िेतह मं डप मू रति मैं दे खी । तबिु िि, तबिु तजउ जाइ तबसेखी ॥
पूरि चंद होइ जिु िपी । पारस रूप दरस दे इ छपी ॥
अब जहाँ चिुरदसी तजउ िहााँ । भािु अमावस पावा कहााँ ।

तबिसा काँवि सरि तितस, जिहुाँ ि तक िइ बीजु ।


ओतह राहु भा भािु तह, राघव मितहं पिीजु ॥20॥

अति तबतचत्र दे खा सो ठाढी । तचि कै तचत्र, िीन्ह तजउ काढी ॥


तसंघ-िं क, कुंभस्थि जोरू । आाँ कुस िाि, महाउि मोरू ॥
िेतह ऊपर भा काँवि तबिासू । तफरर अति िीन्ह पुहुप मधु -बासू ॥
दु इ खंजि तबच बैठाउ सूआ । दु इज क चााँद धिु क िे इ ऊआ ॥
तमररि दे खाई िवि तफरर तकया । सतस भा िाि, सूर भा तदया ॥
सुतठ ऊाँचे दे खि वह उचका । तदखस्ट पहुाँ तच, कर पहुाँ तच ि सका ॥
पहुाँ च-तबहूि तदस्ट तकि भई ?। ितह ि सका, दे खि वह िई ॥

राघव ! हे रि तजउ िएउ, तकि आछि जो असाध ।


यह िि राख पााँख कै सकै ि, केतह अपराध ?॥21॥

राघव सुिि सीस भुइ धरा । जु ि जुि राज भािु कै करा ॥


उहै किा, वह रूप तबसरखी । तिसचै िुम्ह पदमावति दे खी ॥
केहरर िं क, कुाँभस्थि तहया । िीउ मयूर, अिक बेतधया ॥
काँवि बदि औ बास सरीरू । खंजि ियि, िातसका कीरू ॥
भह ं धिु क, सतस-दु इज तििाट्ठ । सब रातिन्ह ऊपर ओतह पाटू ॥
सोई तमररि दे खाइ जो िएऊ । वेिी िाि, तदया तचि भएऊ ॥
दरपि महाँ दे खी परछाहीं । सो मू रति, भीिर तजउ िाहीं ॥

सबै तसंिार-बिी धति, अब सोई मति कीज ।


अिक जो िटकै अधर पर सो ितह कै रस िीज ॥22॥

(1) जेवााँ = भोजि तकया । तबहाि = सबेरा । मि िें अतधक = मि से अतधक बेिवािा । पवाँरर = ड्य ढी । िाढ = कतठि । िाके = च तकयााँ
। तजन्ह िें िवतहं करोरर = तजिके सामिे करोडों आदमी आवें िो सहम जायाँ ।
(2) घररयारा = घंटे । तफरै = जब तफरै । भाँवरी चक्कर । पीढी = तसंहासि । िे खा = समझा, समझ पडा । फुर = सचमु च ।
(3) साँिति = सभा । सुख चाउ = आिन्द मं िि । मादर = मदा ि, एक प्रकार ढोि । घूरन्ह = कूडे खािों में । छहरािे = तिखरे हुए ।
पााँसासारर = च पड । ओिातहं = झुके या ििे ।
(4) पुरइि = कमि । अिोरे = रखवािी या सेवा में खडी है । सारदू ि = तसंह । िििाजतहं = िरजिे हैं । कटाऊ = कटाव, बेिबूटे ।
(5) रािा = िाि । दरपि भाव....दे करावा = दपाि के समाि ऐसा साफ झखाझक है तक प्रतितबंब तदखाई पडिा है । अकूर = अं कुर ।
ियितहं ि आव = िजर में िहीं जाँचिा है ।
(6) उपराही = ऊपर । सूर = सूया के समाि बादशाह । सतस = चंद्रमा के समाि राजा । सतस...दीठी = सूया के सामिे चंद्रमा (राजा) की
ओर िजर िहीं जािी है । अखाडा = अखाडा; राँ िभूतम ; जैसे इं द्र का अखाडा । जािहुाँ सब धं धा = मािो िाच-कूद िो संसार का काम ही है
यह समझकर उस ओर ध्याि िहीं दे िा है । कह = कहिा है । दहक = तजससे दहकिा है । िुि = डोरी । खााँच = खींचिी है ।
(7) रावि = सामं ि । दु व जिु वाहााँ = मािो राजा की दोिों भुजाएाँ हैं । स्रवि िािे = काि में ििकर सिाह दे िे ििे । मू तस ि जातहं = िू टे
िहीं जािे हैं । बाचा परखख ...बूझा = उस मु सिमाि की मैं बाि परखकर समझ िया हूाँ । मे र = मे ि । कै फेरू = घुमा तफराकर । बैरी
= शत्रु; भेर का पेड । सो मकोय रह....आाँ टा = उसे मकोय की िरह (कााँटे तिए हुए) रहकर ओट या दााँव में रख सकिे हैं । आाँ टा =
दााँव । अिोटी = छें का । ओछ = ओछे , िीच । पावा धािू = दााँव पेच समझ िया । मू ि िए ...पािू = उसिे सोचा है तक राजा को
पकड िें िो सेिा-सामं ि आप ही ि रह जायाँिे । कृस्न = तवष्णु, वामि । छर-बााँध = छि का आयोजि । कााँध दीतजय = स्वीकार कीतजए ।
(8) तबष-हार = तवष हरिे वािा । तबसहर = तवषधर , सााँप । होइ िोि तबिाई = िमक की िरह िि जािा है । कर िे ई = हाथ में िे िा है ।
मारे िोि = िमक से मारिे से , अथााि् िमक का एहसाि ऊपर डाििे से । बाजा = ऊपर पडिा है । िोि जस िाि = अतप्रय ििा, बुरा
ििा । कोहार = रूठकर । मतधर = अपिे घर । छाि = बााँधिी है । िोि = रस्सी । तसंध....िोि= = तसंह अब रस्सी से बाँधा चाहिा है

(9) रायमुिी = मु तिया िाम की छोटी सुंदर तचतडया । सारं ि = धिु ष ।
(10) आउ = आयु । कहाँ केिकी....बासी = वह केिकी यहााँ कहााँ है (अथााि् िहीं है ) तजस पर भ रं े बसिे हैं । पदारथ = रत्न । ज िति
सूर....परिासू = जब िक सूया ऊपर रहिा है िब िक चंद्रमा का उदय िहीं होिा; अथााि् जब िक आपकी दृति ऊपर ििी रहे िी िब िक
पतद्मिी िहीं आएिी । हे रै = दे खिा है । हिा राहु अजुाि परछाहीं = जैसे अजुाि िे िीचे छाया दे खकर मत्स्य का बेध तकया था वैसे ही आप
को तकसी प्रकार दपाण आतद में उसकी छाया दे खकर ही उसे प्राप्त करिे का उद्योि करिा होिा । सूख = सूखिा है ।
(11) पिवार = बडा पत्ति । माडे = एक प्रकार की चपािी । जूरी = िड्डी ििाकर । साँधाि = अचार । बूकतह बूक = चंिुि भर भरकर ।
करतहं साँवार िोसाईं = डर के मारे ईश्वर का स्मरण करिे िििी हैं ।
(12) िखि = पतद्मिी की दातसयााँ । सतस = पतद्मिी । जेंवा = भोजि करिा । बहु परकार = बहुि प्रकार की खस्त्रयााँ । परी ं असू झ = आाँ ख
उिपर िहीं पडिी । िोिी = सुंदरी पतद्मिी । िोि सब खारी = सब खारी िमक के समाि कडवी िििी हैं । आवतहं ितड = िड जािे हैं ।
ि आटा = िहीं पहुाँ चिा है । काँवि के डं डी = मृणाि रूप पतद्मिी में । किउाँ डी = दासी । अिभावि = तबिा मि से । बैरािा = तवरक्त ।
उपास = उपवास ।
(13) कचोरा = कटोरा । अघा = अघािा है , िृप्त होिा है । मघा = मघा िक्षत्र । कोपर एक प्रकार का बडा थाि या पराि । हाथ धोवाईं =
बादशाह िे मािों पतद्मिी के दशाि से हाथ धोया ।तवरह करोरा = हाथ जो धोिे के तिए मििा है मािो तबरह खरोच रहा है । हाथ मरोरा =
हाथ धोिा है , मािो पछिाकर हाथ मििा है ।
(14) सेव = सेवा में । घाति तिउ पािा = ििे में पिडी डािकर ( अधीििासूचक) सीऊ = शीि । रै ति-मतस = राि की कातिमा । िेहु
चातह = उससे भी बढकर । साँघार = िि कर ।
(15) तदपा = चमका । मतस = कातिमा । खाहु = भोि करो । मााँड = मााँड िढ । दे वा = दे व , राजा । िीक-पखाि = पत्थर की िीक सा
(ि तमटिे वािा) पसाउ = प्रसाद,भेंट । मू रू = मू िधि । प्रीति = प्रीति से । छि = छि से । रिि = राजा रत्नसेि । पदारथ =पतद्मिी ।
(16)घररक = एक घडी , थोडी दे र । भीति = दीवार में । िावा ििाया । रह साजा ििा रहिा है तपयादे पाऊाँ = पैदि । तपयादे = शिरं ज
की एक िोटी । फरजी = शिरं ज का वह मोहरा जो सीधा और टे ढा दोिों चििा है । फरजीबं द = वह घाि तजसमें तकसी प्यादे के जोर पर
बादशाह को ऐसी शह दे िा है तजससे तवपक्षी की हार होिी है । सह = बादशाह को रोकिे वािा घाि । रथ = शिरं ज का वह मोहरा तजसे
आजकि ऊंट कहिे हैं । ( जब चिुरंि का पुरािा खेि तहं दुस्ताि से फारस-अरब की ओर िया िब वहााँ `रथ' के स्थाि पर `ऊाँट' हो िया)
बुदा = खेि में वह अवस्था तजसमें तकसी पक्ष के सब मोहरे मारे जािे हैं , केवि बादशाह बच रहिा है ; यह आधी हार मािी जािी है । शह-
माि = पूरी हार ।
(17) सूर दे ख...िरई दासी = दासी रूप िक्षत्रों िे जब सूया-रूप बादशाह को दे खा । जहाँ सतस....परिासी = जहााँ चंद्र-रूप पदमाविी थी
वहााँ जाकर कहा । परिासी = प्रकट तकया, कहा । भूजा = भोि करिा है । आरस = आदशा , दपाण । कसा कस टी आरस = दपाण में
दे खकर परीक्षा की । तकि आव = तफर कहााँ आिा है , अथााि् ि आएिा ।
(18)कहे सतस ठाऊाँ = इस जिह चंद्रमा है , यह कहिे से । सुिे = सुििे से । परस भा िोिा = पारस या स्पशामतण का स्पशा सा हो िया ।
रुख = शिरं ज का रुख । रुख = सामिा । भा शहमाि = शिरं ज में पूरी हार हुई ; बादशाह बेसुध या मिवािा हो िया । झााँपा = तछपा, िुप्त
। भा तबसाँभार = बादशाह बेसुध हो िया िाति सोपारी = सुपारी के टु कडे तििििे में छािी मे म रुक जािे से कभी कभी एकबारिी पीडा होिे
िििी है तजससे आदमी बैचैि हो जािा है ; इसी को सुपारी िििा कहिे हैं । दे खै = जो उठकर दे खिा है िो । करा = किा, शोभा ।
(19) भोजि-प्रेम = प्रेम का भोजि (इस प्रकार के उिटे समास जायसी में प्रायुः तमििे हैं - शायद फारसी के ढं ि पर हों ) सो जाि = वह
जाििा है । बास-रस - केवा = केवा-बास-रस अथााि् कमि का िंध और रस । सूरुज दे खख....तबसमसऊ = (वहााँ जाकर दे खा तक)
सूया-बादशाह कमि-पतद्मिी को दे खकर स्तब्ध हो िया है । तदि = प्रतितदि । पिु हतहं = पिपिे हैं । उकठे = सूखे । िुम्ह = िुम्हें । तदितहं
ियि....जाि = तदि के सोये सोये आप राि होिे पर भी ि जािे तितचंि = बेखबर ।
(20)रहा अाँ िरपट...अहा = परदा था भी और िहीं भी था अथाा ि् परदे के कारण मैं उस िक पहुाँ च िहीं सकिा था । पर उसकी झिक
दे खिा था; यह जिि ब्रह्म और जीव के बीच परदा है पर इसमें उसकी झिक भी तदखाई पडिी है । रहा पाति ...ि होई = उसमें पािी था
पर उस िक पहुाँ चकर मैं पी िहीं सकिा था । सरवर = वह दपा ण ही यहााँ सरोवर के समाि तदखाई पडा । सरि आइ धरिी ...आवा =
सरोवर में आकाश (उसका प्रतितबंब) तदखाई पडिा है पर उसे कोई छू िहीं सकिा । धरति = धरिी पर । धरि ि आवा = पकडाई िहीं
दे िा था । करन्ह अहा = हाथों में ही था । अब जहाँ चिुरदसी.. ..कहााँ = च दस के चंद्र के समाि जहााँ पतद्मिी है जीव िो वहााँ है ,
अमावस्या में सूया (शाह) िो है ही िहीं । वह िो चिुदाशी में हैं ; चिुदाशी में ही उसे अद् भुि ग्रहण िि रहा है । ि तक िई = चमक उठी,
तदखाई पड िई ।
(21) तचि कै तचत्र = तचत्त या हृदय में अपिा तचत्र पैठाकर । कुंभस्थि जोरू = हाथी के उठे हुए मस्तकों का जोडा (अथााि् दोिों कुच)
आाँ कुस िाि = सााँपों (अथााि् बाि की िटों) का अं कुश । मोरू = मयूर । तमररि = अथााि् मृ िियिी पद्माविी । िवि तफरर तकया = पीछे
तफरकर चिी िई । सतस भा िाि = उसके पीछे तफरिे से चंद्रमा के स्थाि पर िाि हो िया, अथााि् मु ख के स्थाि पर वेणी तदखाई पडी ।
सूर भा तदया = उस िाि को दे खिे ही सूया (बादशाह) दीपक के समाि िेज हीि हो िया ( ऐसा कहा जािा है तक सााँप के सामिे दीपक
की ि तझितम िािे िििी है ।) पहुाँ च तबहूाँ ि.....तकि भई ? जहााँपहुाँ िहीं हो सकिी वहााँ दृति क्यों जािी है ? हे रि िएउ = दे खिे ही मे रा
जीव चिा िया । तकि आछि जो असाद = जो वश में िहीं था वह रहिा कैसे ? यह िि....अपराध = यह तमट्टी का शरीर पंख ििाकर
क्यों िहीं जा सकिा, इसिे क्या अपराध तकया है ?
(22) बेतधया = बेध करिे वािा अं कुश । ओतह = उसका । तदया तचि भएऊ = वह िुम्हारा तचत्र था जो िाि के सामिे दीपक के समाि िेज
हीि हो िया मति कीज = ऐसी सिाह या युखक्त कीतजए । अिक....रस िीज = सााँप की िरह जो िटें हैं उन्हें पकडकर अधर रस िीतजए
( राजा को पकडिे का इशारा करिा है ) ।
रत्नसेि-बंधि-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी

मीि भै मााँिा बेति तबवािू । चिा सूर, साँवरा अस्थािू ॥


चिि पंथ राखा ज पाऊ । कहााँ रहै तथर चिि बटाऊ ॥
पंथी कहााँ कहााँ सुसिाई । पंथ चिै िब पंथ सेराई ॥
छर कीजै बर जहााँ ि आाँ टा । िीजै फूि टाररकै कााँटा ॥
बहुि मया सुति राजा फूिा । चिा साथ पहुाँ चावै भूिा ॥
साह हे िु राजा स ं बााँधा । बािन्ह िाइ िीन्ह, ितह कााँधा ॥
तघउ मधु साति दीन्ह रस सोई । जो मुाँ ह मीठ, पेट तबष होई ॥

अतमय-बचि औ माया को ि मुएउ रस-भीज ?।


सत्रु मरै ज अमृ ि, तकि िा कहाँ तबष दीज ? ॥1॥

चााँद घरतह ज सूरुज आवा । होइ सो अिोप अमावस पावा ॥


पूछतहं िखि मिीि सो मोिी । सोरह किा ि एक जोिी ॥
चााँद क िहि अिाह जिावा । राज भूि ितह साह चिावा ॥
पतहि ं पाँवरर िााँतघज आवा । ठाढ होइ राजतह पतहरावा ॥
स िुषार, िेइस िज पावा । दुं दुतभ औ च घडा तदयावा ॥
दू जी पाँवरर दीन्ह असवारा । िीतज पाँवरर िि दीन्ह अपारा ॥
च तथ पाँवरर दे इ दरब करोरी । पाँचईं दु इ हीरा कै जोरी ॥

छठइाँ पाँवरर दे इ मााँड , सिईं दीन्ह चाँदेरर ।


साि पाँवरर िााँघि िृ पतहं िे इिा बााँतध िरे रर ॥2॥

एतह जि बहुि िदी-जि जूडा । कोउ पार भा, कोऊ बूडा ॥


कोउ अं ध भा आिु ि दे खा । कोउ भएउ तडतठयार सरे खा ॥
राजा कहाँ तबधाय भइ माया । ितज कतबिास धरा भुइाँ पाया ॥
जेतह कारि िढ कीन्ह अिोठी । तकि छााँडै ज आवै मू ठी ?॥
सत्रुतह कोउ पाव ज बााँधी । छोतड आपु कहाँ करै तबयाधी ॥
चारा मे ति धरा जस माछू । जि हुाँ ि तिकतस मु वै तकि काछू ?॥
सत्रू िाि पेटारी मूाँ दा । बााँधा तमररि पैि ितहं खूाँदा ॥

राजतह धरा, आति कै िि पतहरावा िोह ।


ऐस िोह सो पतहरै चीि सातम कै दोह ॥3॥

पायाँन्ह िाढी बेडी परी । सााँकर िीउ, हाथ हथकरी ॥


औ धरर बााँतध माँ जूषा मे िा । ऐस सत्रु तजति होइ दु हेिा !॥
सुति तचिउर महाँ परा बखािा । दे स दे स चाररउ तदतस जािा ॥
आजु िरायि तफरर जि खूाँदा । आजु सो तसंघ माँ जूषा मूाँ दा ॥
आजु खसे रावि दस माथा । आजु कान्ह कािीफि िाथा ॥
आजु पराि कंस कर ढीिा । आजु मीि संखासुर िीिा ॥
आजु परे पंडव बतद माहााँ । आजु दु सासि उिरीं बाहााँ ॥

आजु धरा बति राजा, मे िा बााँतध पिार ।


आजु सूर तदि अथवा, भा तचिउर अाँ तधयार ॥4॥

दे व सुिैमा के बाँतद परा । जह िति दे व सबै सि-हरा ॥


सातह िीन्ह ितह कीन्ह पयािा । जो जहाँ सत्रु सो िहााँ तबिािा ॥
खुरासाि औ डरा हरे ऊ । कााँपा तबदर, धरा अस दे ऊ !॥
बााँध ,ं दे वतिरर, ध िातिरी । कााँपी तसखस्ट, दोहाई तफरी ॥
उबा सूर, भइ सामुाँ ह करा । पािा फूट, पाति होइ ढरा ॥
दुं दुतह डाड दीन्ह, जहाँ िाईं । आइ दं डवि कीन्ह सबाईं ॥
दुं द डााँड सब सरितह िई । भूतम जो डोिी अहतथर भई ॥

बादशाह तदल्ली महाँ , आइ बैठ सु ख-पाट ॥


जेइ जेइ सीस उठावा धरिी धरा तििाट ॥5॥

हबसी बाँदवािा तजउ-बधा । िे तह स प ं ा राजा अतिदधा ॥


पाति पवि कहाँ आस करे ई । सो तजउ बतधक सााँस भर दे ई ॥
मााँिि पाति आति िे इ धावा । मुाँ िरी एक आति तसर िावा ॥
पाति पवि िुइ तपया सो तपया । अब को आति दे इ पािीया ?॥
िब तचिउर तजउ रहा ि िोरे । बादसाह है तसर पर मोरे ॥
जबतह हाँ कारे है उतठ चििा । सकिी करै होइ कर मििा ॥
करै सो मीि िााँढ वाँतद जहााँ । पाि फूि पहुाँ चावै िहााँ ॥

जब अं जि मुाँ ह, सोवा; समु द ि साँवरा जाति ।


अब धरर कातढ मच्छ तजतम, पािी मााँिति आति ॥6॥
पुति चति दु इ जि पूछै आए । ओउ सुतठ दिध आइ दे खराए ॥
िुइाँ मरमु री ि कबहुाँ दे खी । हाड जो तबथुरै दे खख ि िे खी ॥
जािा ितहं तक होब अस महूाँ । ख जे ख ज ि पाउब कहूाँ ॥
अब हम्ह उिर दे हु, रे दे वा । क िे िरब ि मािे तस सेवा ॥
िोतह अस बुि िातड खति मूाँ दे । बहुरर ि तिकतस बार होइ खूाँदे ॥
जो जस हाँ सा िो िैसे रोवा । खे िि हाँ सि अभय भुइाँ सोवा ॥
जस अपिे मु ह काढे धू वााँ । मे िेतस आति िरक के कूआाँ ॥

जरतस मरतस अब बााँधा िैस िाि िोतह दोख ।


अबहुाँ मााँिु पदतमिी, ज चाहतस भा मोख ॥7॥

पूछतहं बहुि, ि बोिा राजा । िीन्हे तस जोउ मीचु कर साजा ॥


खति िडवा चरिन्ह दे इ राखा । तिि उतठ दिध होतहं ि िाखा ॥
ठााँव सो सााँकर औ अाँ तधयारा । दू सर करवट िे इ ि पारा ॥
बीछी सााँप आति िहाँ मे िा । बााँ का आइ छु आवतहं हे िा ॥
धरतहं साँडासन्ह , छूटै िारी । राति-तदवस दु ख पहुाँ चै भारी ॥
जो दु ख कतठि ि सहै पहारू । सो अाँ िवा मािु ष-तसर भारू ॥
जो तसर परै आइ सो सहै । तकछु ि बसाइ, काह स ं कहै ?॥

दु ख जारै , दु ख भूाँजै, दु ख खोवै सब िाज ।


िाजहु चातह अतधक दु ख दु खी जाि जेतह बाज ॥8॥

(1) मीि भै = तमत्र से । सेराई = समाप्त होिा है । छर = छि । बर = बि । ि आाँ टा = िहीं पूरा पडिा है । हे िु = प्रेम । तघउ मधु ।
कहिे हैं , घी और शहद बराबर तमिािे से तवष हो जािा है । मुाँ ह = मुाँ ह में । पेट = पेट में ।
(2) चााँद पद्माविी । सूरुज=बादशाह । िखि = अथााि् पद्माविी की सखखयााँ । अिाह = आिे से, पहिे से । राज भूिि = राजा भूिा हुआ है
। पतहरावा = राजा को खखिाि पहिाई । च घडा = एक प्रकार का बाजा । माड = माड िढ । चाँदेरर = चाँदेरी का राज्य । िरे रर = घेरकर ।
एतह जि...(यह संसार समु द्र है ) इसमें बहुि सी ितदयों का जि इकट्ठा हुआ है , अथााि् इसमें बहुि िरह के िोि हैं । आिु = आिम ।
तडतठयार = दृतिवािा । सरे खा = चिुर । ितज कतबिास....पाया = तकिे से िीचे उिरा; सुख के स्थाि से दु ुःख के स्थाि में तिरा । अिोठी
= अिोठा, छे का, घेरा । जि हुाँ ि...काछू = वही कछु वा है जो जि से िहीं तिकििा और िहीं मरिा । सत्रू....माँ दा = शत्रु रूपी िाि को
पेटारी में बंद कर तिया । पैि िहीं खूाँदा = एक कदम भी िहीं कूदिा । चीि सातम कै दोह = जो स्वामी का द्रोह मि में तबचारिा है ।
(4) ऐसे शत्र दु हेिा = शत्रु भी ऐसे दु ख में ि पडे । बखािा = चचाा । जि खूाँदा = संसार में आकर कूदे । मूाँ दा बंद तकया । मीि = मत्स्य
अविार । पंडव = पांडव ।
(5) दे व = राजा, दै त् । सुिेमााँ = यहूतदयों के बादशाह सुिेमाि िे दे वों और पररयों को वश में तकया था । बाँतद परा = कैद में पडा । सि-
हरा = सत् छोडे हुए; तबिा सत् के । धरा अस दे उ = तक ऐसे बडे राजा को पकड तिया । दुं दुतह = दुं दुभी या ििाडे पर । डााँड दीन्ह =
डं डा या चोट मारी ।
(6) बाँदवािा = बन्दीिृह का रक्षक, दरोिा । तजउ-बधा = बतधक, जल्लाद । अतिदधा = आि से जिे हुए । सााँस भर = सााँस भर रहिे के तिये
पािीया = पािी । तजउ रहा = जी में यह बाि िहीं रही तक । सकिी = बि । जब अं जि मुाँ ह सोवा = जब िक अन्न-जि मुाँह में पडिा
रहा िब िक िो सोया तकया ।
(7) मरपुरी = यमपुरी हाड जो....िे खी = तबखरी हुई हतड्डयों को दे खकर भी िुझे उसका चेि ि हुआ । महूाँ = मैं भी । खोज = पिा । बार
होइ खूाँदे = अपिे िार पर पैर ि रखा । धू वााँ = िवा या क्रोध की बािि । िस =ऐसा । मााँि = बुिा भेज । िढवा = िड्ढा । चरिन्ह दे इ
राखा = पैरों को िड्ढे में िाड तदया । बााँका = धरकारों का टे ढा औजार तजससे वे बााँस छीििे हैं । हे िा = डोम । साँडास = संसी, तजससे
पकडकर िरम बटिोई उिारिे हैं । िाजहु चातह = ब्रज से भी बडकर । बाज = पडिा है ।
पद्माविी-िािमिी-तबिाप-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी

पदमावति तबिु कंि दु हेिी । तबिु जि काँवि सूखी जस बेसी ॥


िाढी प्रीति सो मोस ं िाए । तदल्ली कंि तितचंि होइ छाए
सो तदल्ली अस तिबहुर दे सू । कोइ ि बहुरा कहै साँदेसू ॥
जो िविै सो िहााँ कर होई । जो आवै तकछु जाि ि सोई ॥
अिम पंथ तपय िहााँ तसधावा । जो रे िएउ सो बहुरर ि आवा ॥
कुवााँ धार जि जैस तबछ वा । डोि भरे िै िन्ह धति रोवा ॥
िे जुरर भई िाह तबिु िोहीं । कुवााँ परी, धरर काढतस मोहीं ॥

िै ि डोि भरर ढार, तहये ि आति बुझाइ ।


घरी घरी तजउ आवै, घरी घरी तजउ जाइ ॥1॥

िीर िाँभीर कहााँ, हो तपया । िुम्ह तबिु फाटै सरवर-हीया ॥


िएहु हे राइ, परे हु केतह हाथा ?। चिि सरोवर िीन्ह ि साथा ॥
चरि जो पंखख केति कै िीरा । िीर घटे कोई-आव ि िीरा ॥
काँवि सूख, पखुरी बेहरािी । िति िति कै तमति छार हे रािी ॥
तबरह-रे ि कंचि िि िावा । चूि चूि कै खेह मे रावा ॥
किक जो कि कि होइ बेहराई । तपय कहाँ ?छार समे टै आई ॥
तबरह पवि वह छार सरीरू । छारतह आति मे रावहु िीरू ॥

अबहुाँ तजयावहु कै मया, तबंथुरी छार समे ट ।


िइ काया, अविार िव होइ िुम्हारे भेंट ॥2॥

िै ि-सीप मोिी भरर आाँ सू । टु तट टु तट परतहं करतहं िि िासू ॥


पतदक पदारथ पदतमति िारी । तपय तबिु भइ क डी बर बारी ॥
साँि िे इ िएउ रिि सब जोिी । कंचि-कया कााँच कै पोिी ॥
बूडति ह ं दु ख-दिध िाँभीरा । िुम तबिु , कंि !िाव को िीरा ?॥
तहये तबरह होइ चढा पहारू । चि जोबि सतह सकै ि भारू ॥
जि महाँ अतिति सो जाि तबछूिा । पाहि जरतहं , होतहं सब चूिा ॥
क िै जिि, कंि ! िुम्ह पाव ं । आजु आति ह ं जरि बुझाव ं ॥

क ि खंड ह ं हे र ,ं कहााँ बाँधे ह ,ं िाह ।


हे रे किहुाँ ि पाव ,ं बसै िु तहरदय माहाँ ॥3॥

िािमतितह `तपय तपय' रट िािी । तितस तदि िपै मच्छ तजतम आिी ॥
भाँवर, भुजंि कहााँ, हो तपया । हम ठे घा िुम काि ि तकया ॥
भूति ि जातह कवि के पाहााँ । बााँधि तबिाँ ब ि िािै िाहा ॥
कहााँ सो सूर पास ह ं जाऊाँ । बााँधा भाँवर छोरर कै िाऊाँ ॥
कहााँ जाउ को कहै साँदेसा ? ।जाउाँ सो िहाँ जोतिति के भेसा ॥
फारर पटोरतह पतहर ं कंथा । ज मोतहं कोउ दे खावै पंथा ॥
वह पंथ पिकन्ह जाइ बोहार ं । सीस चरि कै िहााँ तसधार ं ॥

को िुरु अिुवा होइ, सखख ! मोतह िावै पथ मााँह ।


िम मि धि बति बति कर ं जो रे तमिावै िाह ॥4॥

कै कै कारि रोवै बािा । जिु टू टतहं मोतिन्ह तक मािा ॥


रोवति भई, ि सााँस साँभारा । िै ि चुवतहं जस ओरति-धारा ॥
जाकर रिि परै पर हाथा । सो अिाथ तकतम जीवै, िाथा ! ॥
पााँच रिि ओतह रिितह िािे । बेति आउ, तपय रिि सभािे ! ॥
रही ि जोति िै ि भए खीिे । स्रवि ि सुि , बैि िुम िीिे ॥
रसितहं रस ितहं एक भावा । िातसक और बास ितहं आवा ॥
ितच ितच िुम्ह तबिु अाँ ि मोतह िािे । पााँच दितध तबरह अब जािे ॥

तबरह सो जारर भसम कै चहै , चहै उडावा खेह ।


आइ जो धति तपय मे रवै, करर सो दे इ िइ दे ह ॥5॥

तपय तबिु व्याकुि तबिपै िािा । तबरहा-िपति साम भए कािा ॥


पवि पाति कहाँ सीिि पीऊ ? । जेतह दे खे पिु है िि जीऊ ॥
कहाँ सो बास मियतिरर िाहा । जेतह कि परति दे ि िि बाहााँ॥
पदतमति ठतिति भई तकि साथा । जेतहं िें रिि परा पर-हाथा ॥
होइ बसंि आवहु तपय केसरर । दे खे तफर फूिै िािेसरर ॥
िुम्ह तबिु , िाह ! रहै तहय िचा । अब ितहं तबरह-िरुड स बचा ॥
अब अाँ तधयार परा, मतस िािी । िुम्ह तबिु क ि बुझावै आिी ?॥

िै ि ,स्रवि, रस रसिा सबै खीि भए, िाह ।


क ि सो तदि जेतह भेंतट कै, आइ करै सुख-छााँह ॥6॥

(1)तिबहुर = जहााँ से कोई ि ि टे । िे जुरर = रस्सी, डोरी ।


(2) बह = बहिा है , उडा उडा तफरिा है । छारतह....िीरू = िुम जि होकर धूि के कणों को तमिाकर फीर शरीर दो ।
(3) पोिी = िुररया । चि =चंचि, अखस्थर । बीछु िा = तबछोह । जि महाँ ....तबछूिा = तवयोि को जि में की आि समझो, तजससे पत्थर के
टु कडे तपघि कर चूिा हो जािे हैं ( चूिे के कडे टु कडों पर पािी पडिे ही वे िरम होकर िि जािे हैं )।
(4) आिी = आि में । ठे घा = सहारा या आश्रय तिया । सूर = भ रं े का प्रतििं िी सूया । बोहारों = झाडू ििाऊाँ । सीस चरि कै = तसर को
पैर बिाकर अथााि् तसर के बि चिकर ।
(5) कारण = कारुण्य, करुणा, तविाप ओरति = ओििी । पााँच रिि = पााँचों इं तद्रयााँ । ओतह रिितह िािे = उस रत्नसेि की ओर ििे हैं ।
ितच ितच =जि जिकर, िपिे से । पााँच = पााँच इं तद्रयााँ ।
(6) िािा = िािमिी । िरुड = िरूड जो िाि (यहााँ िािमिी) का शत्रु है ।
दे वपाि-दू िी-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी

कुंभििेर-राय दे वपािू । राजा केर सत्रु तहय -सािू ॥


वह पै सुिा तक राजा बााँधा । पातछि बैर साँवरर छर साधा ॥
सत्रु-साि िब िे वरै सोई । ज घर आब सत्रु कै जोई ॥
दू िी एक तबररध िेतह ठाऊाँ । बाम्हि जाति, कुमोतदति िाऊाँ ॥
ओतह हाँ कारर कै बीरा दीन्हा । िोरे बर मैं बर तजउ कीन्हा ॥
िुइ जो कुमोतदति काँवि के तियरे । सरि जो चााँद बसै िोतह तहयरे ॥
तचिउर महाँ जो पदतमति रािी । कर बर छर स ं दे मोतहं आिी ॥

रूप जिि-मि-मोहि औ पदमावति िावाँ ।


कोतट दरब तितह दे इह ,ं आति करतस एतह ठावाँ ॥1॥

कुमु तदति कहा `दे खु, ह ं सो ह ं । मािु ष काह, दे विा मोह ं ॥


जस कााँवरु चमाररति िोिा । को ितहं छर पाढि कै टोिा ॥
तबसहर िाचतहं पाढि मारे । औ धरर मूाँ दतह घाति पेटारे ॥
तबररछ चिै पाढि कै बोिा । िदी उितट बह, परबि डोिा ॥
पढि हरै पंतडि मि ितहरे । और को अं ध, िूाँि औ बतहरै ॥
पाढि ऐस दे विन्ह िािा । मािु ष कहाँ पाढि स ं भािा ?॥
चतढ अकास कै काढि पािी । कहााँ जाइ पदमावति रािी' ॥

दू िी बहुि पैज कै बोिी पाढि बोि ।


जाकर सत्त सुमेरू है , िािे जिि ि डोि ॥2॥

दू िी बहुि पकावि साधे । मोतििाडू औ खर रा बााँधे ॥


माठ, तपराकैं, फैिी, पापर । पतहरे बूतझ दू ि के कापर ॥
िे इ पूरी भरर डाि अछूिी । तचिउर चिी पैज कै दू िी ॥
तबररध बेस ज बााँधे पाऊ । कहााँ सो जोबि, तकि बेवसाऊ ?॥
िि बूढा, मि बूढ ि होई । बि ि रहा, पै िािच सोई ।
कहााँ सो रूप जिि सब रािा । कहााँ सो हखस्त जस मािा ॥
कहााँ सो िीख ियि, िि ठाढा । सबै मारर जोबि-पि काढा ॥

मु हमद तबरतध जो िइ चिै , काह चिै भुइाँ टोह ।


जोबि-रिि हे राि है , मकु धरिी महाँ होइ ॥3॥

आइ कुमोतदिी तचिउर चढी । जोहि-मोहि पाढि पढी ॥


पूतछ िीन्ह रतिवास बरोठा । पैठी पाँवरी भीिर कोठा ॥
जहााँ पदतमिी सतस उतजयारी । िे इ दू िी पकवाि उिारी ॥
हाथ पसारर धाइ कै भेंटी । "चीन्हा ितहं , राजा कै बेटी ?॥
ह ं बाम्हति जेतह कुमु तदति िाऊाँ । हम िुम उपिे एकै ठाऊाँ ॥
िावाँ तपिा कर दू बे बेिी । सोइ पुरोतहि िाँधरबसेिी ॥
िुम बारी िब तसंघिदीपा । िीन्हे दू ध तपयाइउाँ सीपा ॥

ठााँव कीन्ह मैं दू सर कुाँभििेरै आइ ।


सुति िुम्ह कहाँ तचिउर महाँ , कतहउाँ तक भेट ं जाइ ॥4॥

सुति तिसचै िै हर कै कोई । िरे िाति पदमावति रोई ॥


िै ि-ििि रतब अाँ तधयारे । सतस-मु ख आाँ सु टू ट जिु िारे ॥
जि अाँ तधयार िहि धति परा । कब िति सखी िखिन्ह तितस भरा ॥
माय बाप तकि जिमी बारी । िीउ िूरर तकि जिम ि मारी ?॥
तकि तबयातह दु ख दीन्ह दु हेिा । तचिउर पंथ कंि बाँतद मेिा ॥
अब एतह तजयि चातह भि मरिा । भएउ पहार जन्म दु ख भरिा ॥
तिकतस ि जाइ तििज यह जीऊ । दे ख ं माँ तदर सूि तबिु पीऊ ॥

कुहुतक जो रोई सतस िखि िै ि हैं राि चकोर ।


अबहूाँ बोिैं िेतह कुहुक कोतकि, चािक, मोर ॥5॥
कुमु तदति कंठ िाति सुठी रोई । पुति िे इ रूप-डार मु ख धोई ॥
िुइ सतस-रूप जिि उतजयारी । मु ख ि झााँपु तितस होइ अाँ तधयारी ॥
सुति चक र-कोतकि-दु ख दु खी । घुाँघची भई िै ि करमु खी ॥
केि धाइ मरै कोइ बाटा । सोइ पाव जो तिखा तििाटा ॥
जो तबतध तिखा आि ितहं होई । तकि धावै, तकि र वै कोई ॥
तकि कोउ हींछ करै ओ पूजा । जो तबतध तिखा होइ ितहं दू जा ॥
जेतिक कुमु तदति बैि करे ई । िस पदमावति स्रवि ि दे ई ॥

सेंदुर चीर मैि िस, सूखख रही जस फूि ।


जेतह तसंिार तपय ितजिा जिम ि पतहरै भूि ॥6॥

िब पकवाि उघारा दू िी । पदमावति ितहं छु वै अछूिी ॥


मोतह अपिे तपय केर खमारू । पाि फूि कस होइ अहारू ?॥
मोकहाँ फूि भए सब कााँटै । बााँतट दे हु ज चाहहु बााँटै ॥
रिि छु वा तजन्ह हाथन्ह सेंिी । और ि छु व ं सो हाथ साँकेिी ॥
ओतह के राँ ि भा हाथ माँ जीठी । मु किा िे उाँ ि घुाँघची दीठी ॥
िै ि करमु हें, रािी काया । मोति होतहं घुाँ घची जेतह छाया ॥
अस कै ओछ िै ि हत्ारे । दे खि िा तपउ, िहै ि पारे ॥

का िोर छु व ं पकवाि, िुड करुवा, तघउ रूख ।


जेतह तमति होि सवाद रस, िे इ सो िएउ तपउ भूख ॥7॥

कुमु तदति रही काँवि के पासा । बैरी सूर, चााँद कै आसा ॥


तदि कुाँतभिाति रही, भइ चूरू । तबितस रै ति बािन्ह कर भूरू ॥
कस िुइ बारर ! रहतस कुाँभिािी । सूखख बेति जस पाव ि पािी ॥
अबही काँवि करी िुइाँ बारी । कोवाँरर बैस, उठि प िारी ॥
बेिी िोरर मै ति औ रूखी । सरवर माहाँ रहतस कस सूखी ?॥
पाि-बेति तबतध कया जमाई । सींचि रहै िबतह पिु हाई ॥
करु तसंिार सुख फूि िमोरा । बैठु तसघासि, झूिु तहडोरा ॥

हार चीर तिति पतहरहु, तसर कर करहु साँभार ।


भोि माति िे हु तदि दस, जोबि जाि ि बार ॥8॥

तबहाँ तस जो जोबि कुमु तदति कहा । काँवि ि तबबिसा, संपुट रहा ॥


ए कुमु तदति! जोबि िेतह माहा । जो आछै तपउ के सुख-छाहााँ ॥
जाकर छत्र सो बाहर छावा । सो उजार घर क ि बसावा ?॥
अहा ि राजा रिि अाँ जोरा । केतहक तसंघासि, केतहक पटोरा ? ॥
को पािक प ढै , को माढी ? सोविहार परा बाँतद िाढी ॥
चहुाँ तदतस यह घर भा अाँ तधयारा । सब तसंिार िे इ साथ तसधारा ॥
कया बेति िब जाि ं जामी । सींचिहार आव घर स्वामी ॥

ि ितह रह ं झुरािी ज ितह आव सो कंि ।


एतह फूि, एतह सें र िव होइ उठै बसंि ॥9॥

तजति िुइ, बारर ! करतस अस जीऊ । ज ितह जोबि ि ितह पीऊ ॥


पुरुष संि आपि केतह केरा । एक कोहााँइ, दु सर सहुाँ हे रा ॥
जोबि-जि तदि तदि जस घटा । भाँवर छपाि, हं स परिटा ॥
सुभर सरोवर ज ितह िीरा । बहु आदर, पंखी बहु िीरा ॥
िीर घटे पुति पूछ ि कोई । तबरतस जो िीज हाथ रह सोई ॥
ज िति कातिं दी, होतह तबरासी । पुति सुरसरर होइ समु द परासी ॥
जोबि भवाँर, फूि िि िोरा । तबररध पहुाँ तच जस हाथ मरोरा ॥

कृस्न जो जोबि कारिै िोतपिन्ह कै साथ ।


छरर कै जाइतह बािपै, धिु क रहै िोरे हाथ ॥10॥

ज तपउ रििसेि मोर राजा । तबिु तपउ जोबि क िे काजा ॥


ज पै तजउ ि जोबि कहे । तबिु तजउ जोबि काह सो अहे ?॥
ज तजउ ि यह जोबि भिा । आपि जैस करै तिरमिा ॥
कुि कर पुरुष-तसंघ जेतह खेरा । िेतह थर कैस-तसयार बसेरा ?॥
तहया फार कूकुर िेतह केरा । तसंघतहं ितज तसयार-मु ख हे रा ॥
जोबि -िीर घटे का घटा ?। सत्त के बर ज ितहं तहय फटा ॥
सघि मे घ होइ साम बरीसतहं । जोबि िव िररवर होइ दीसतह ॥

रावि पाप जो तजउ धरा दु व जििमुाँ ह कार ।


राम सत्त जो मि धरा. िातह छरै को पार ? ॥11॥

तकि पावतस पुति जोबि रािा । मै माँ ाँ ि, चढा साम तसर छािा ॥
जोबि तबिा तबररध होइ िाऊाँ । तबिु जोबि थाकै सब ठाऊाँ ॥
जोबि हे रि तमिै ि हे रा । सो ज जाइ, करै ितहं फेरा ॥
हैं जो केस िि भाँवर जो बसा । पुति बि होतहं , जिि सब हाँ सा ॥
सेंवर सेव ि तचत्त करु सूआ । पुति पतछिातह अं ि जब भूआ ।
रूप िोर जि ऊपर िोिा । यह जोबि पाहुि चि होिा ॥
भोि तबिास केरर यह बेरा । माति िे हु, पुति को केतह केरा ? ॥

उठि कोंप जस िररवर िस जोबि िोतह राि ।


ि िति रं ि िे हु रतच, पुति सो तपयर होइ पाि ॥12॥

कुमु तदति-बैि सुिि तहय जरी । पदतमति-उरतह आति जिु परी ॥


रं ि िाकर ह ं जार ं कााँचा । आपि ितज जो पराएतह रााँचा ।
दू सर करै जाइ दु इ बाटा । राजा दु इ ि होतहं एक पाटा ॥
जेतह के जीउ प्रीति तदढ होई । मु ख सोहाि स ं बैठे सोई ॥
जोबि जाउ, जाउ सो भाँवरा । तपय कै प्रीति ि जाइ, जो साँवरा ॥
एतह जि ज तपउ करतहं ि फेरा । ओतह जि तमितहं ज तदितदिहे रा ॥
जोबि मोर रिि जहाँ पीऊ । बति िेतह तपउ पर जोबि जीऊ ॥

भरथरर तबछु रर तपंििा आतह करि तजउ दीन्ह ।


ह ं पातपति जो तजयि ह ,ं इहै दोष हम कीन्ह ॥13॥

पदमावति ! सो क ि रस ई । जेतह परकार ि दू सर होई ॥


रस दू सर जेतह जीभ बईठा । सो जािै रस खाटा मीठा ॥
भाँवर बास बहु फूिन्ह िे ई । फूि बास बहु भाँवरन्ह दे ई ॥
दू सर पुरुष ि रस िुइ पावा । तिन्ह जािा तजन्ह िीन्ह परावा ॥
एक चुल्लू रस भरै ि हीया । ज ितह ितहं तफर दू सर पीया ॥
िोर जोबि जस समु द तहिोरा । दे खख दे खख तजउ बूडै मोरा ॥
रं ि और ितहं पाइय बैसे । जरे मरे तबिु पाउब कैसे ?॥

दे खख धिु क िोर िै िा, मोतहं िाि तबष-बाि ।


तबहाँ तस काँवि जो मािै , भाँवर तमिाव ं आि ॥14॥

कुमु तदति ! िुइ बैररति, ितहं धाई । िुइ मतस बोति चढावतस आई ॥
तिरमि जिि िीर कर िामा । ज मतस परै होइ सो सामा ॥
जहाँ वा धरम पाप ितहं दीसा । किक सोहाि मााँझ जस सीसा ॥
जो मतस परे होइ सतस कारी । सो मतस िाइ दे तस मोतहं िोरी ॥
कापर महाँ ि छूट मतस-अं कू । सो मतस िे इ मोतहं दे तस किं कू ॥
साम भाँवर मोर सूरुज करा । और जो भाँवर साम मतस-भरा ॥
काँवि भवरर-रतब दे खै आाँ खी । चंदि-बास ि बैठै माखी ॥

साम समु द मोर तिरमि रििसेि जिसेि ।


दू सर सरर जो कहावै सो तबिाइ जस फेि ॥15॥

पदतमति ! पुति मतस बोि ि बैिा । सो मतस दे खु दु हुाँ िोरे ििा ॥


मतस तसंिार, काजर सब बोिा । मतस क बुंद तिि सोह कपोिा ॥
िोिा सोइ जहााँ मतस-रे खा । मतस पुिररन्ह तिन्ह स ं जि दे खा ॥
जो मतस घाति ियि दु हुाँ िीन्ही । सो मतस फेरर जाइ ितहं कीन्हीं ॥
मतस-मु द्रा दु इ कुच उपराहीं । मतस भाँवरा जे कवि भाँवाहीं ॥
मतस केसतहं , मतस भ ह ं उरे ही । मतस तबिु दसि सोह ितहं दे हीं ।
सो कस सेि जहााँ मतस िाही ?। सो कस तपंड ि जेतह परछाहीं ?॥
अस दे वपाि राय मतस, छत्र धरा तसर फेर ।
तचिउर राज तबसररिा िएउ जो कुंभििेर ॥16॥

सुति दे वपाि जो कुंभििे री । पंकजिै ि भ ह ं -धिु फेरी ॥


सत्रु मोरे तपउ कर दे वपािू । सो तकि पूज तसंघ सरर भािू ?॥
दु ुःख-भरा िि जेि ि केसा । िेतह का साँदेस सुिावतस, बेसा ?॥
सोि िदी अस मोर तपउ िरुवा । पाहि होइ परै ज हरुवा ।
जेतह ऊपर अस िरुवा पीऊ । सो कस डोिाए डोिै जीऊ ?॥
फेरि िै ि चेरर स छूटी । भइ कूटि कुटिी िस कूटीं ॥
िाक-काि काटे खन्ह, मतस िाई । मूाँ ड मूाँ तड कै िदह चढाई ॥

मु हमद तबतध जेतह िरु िढा का कोई िेतह फूाँक ।


जेतह के भार जि तथर रहा, उडै ि पवि के झूाँक ॥17॥

(1) राजा केर = राजा रत्नसेि का । तहय सािू = हृदय में कसकिे वािा । पै = तििय । छर = छि । सत्रु-साि िब िे वरै = शत्रु के मि
की कसर िब पूरी पूरी तिकििी है । िे वरै = पूरी होिी है । जोइ = जोय, स्त्री ।
(2) का ितहं छर = क ि िहीं छिा िया ? पाढि कै = पढिे हुए । पाढि = पढं ि, मं त्र जो पढा जािा है , टोिा, मं त्र, जादू । भािा = बचकर जा
सकिा है । पैज = प्रतिज्ञा ।
(3) पकावि = पकवाि । साधे = बिवाए । खर रा = खाँड रा, खााँ ड या तमस्री के िड् डू । बूतझ = खूब सोच समझकर । कापर कपडे । डाि
= डिा या बडा थाि । ज बााँधे पाऊाँ = पैर बााँध तदए अथााि् बेबस कर तदया । बेवसाऊ = व्यवसाय, रोजिार । िि ठाढा = ििी हुई दे ह ।
(4) जोहि-मोहि = दे खिे ही मोहिे वािा । बरोठा = बैठकखािा । चीन्हा ितहं = क्या िहीं पहचािा ? जेतह = तजसका । उपिे उत्पन्न हुए ।
िीन्हे = िोद में तिए । सीपा = सीप में रखकर; शुखक्त में ।
(5) िै हर मायका; पीहर । िै ि-ििि = ििि-ियि, िे त्र- रूपी आकाश ।जिमी = जिी , पैदा की । बारी = िडकी । थुरर = िोडकर, मरोडाँ कर
। जिम = जन्मकाि में ही । कंि बाँतद = पति की कैद में । तजयि चातह = जीिे की अपेक्षा । कुहुतक = कूक कर । ितह कुहुक = उसी
कूक से, उसी कूक को िे कर ।
(6) सुतठ = खूब । रूप-डार = चााँदी का थाि या पराि । केि = तकििा ही । हींछ =इच्छा । बैि करे ई = बकवाद करिी है । भूि =
भूि, भूिकर भी ।
(7) उघारा = खोिा । खभारू = खभार, शोक । हाथन्ह सें ति = हाथों से । हााँथ साँकेिी = हाथ से बटोरकर । मु कुिा िे उाँ....दीठी = हाथ में
मोिी िे िे ही हाथों की ििाई से वह िाि हो जािा है ; रािी = िाि । छाया िाि और कािी छाया से ।
(8) काँवि = अथााि् पद्माविी । बैरी सूर.. ..आसा = कुमु तदिी का बैरी सूया है और वह कुमु तदिी चंद्र की आशा में है अथााि् उस दू िी का
रत्नसेि शत्रु है और वह दू िी पद्माविी को प्राप्त करिे की आशा में है । तबितस रै ति....भूरू = रत्नसेि के अभावरूपी राि में तवकतसि या
प्रसन्न होकर बािों से भुिाया चाहिी है । रहतस = िू रहिी है । कोवाँरर = कोमि । प िारर = मृ णाि । बार = दे र
(9) अाँ जोरा = प्रकाशवािा । माढी = मं च, मतचया । बाँतद = बंदी में । एतह फूि = इसी फूि से ।
(10) कोहााँइ = रूठिी है । सहुाँ सामिे । भाँवर = पािी का भाँवर; भ रं े के समाि कािे केश । भाँवर छपाि....परिटा = पािी का भाँवर िया
और हं स आया अथााि् कािे केश ि रह िए , सफेद बाि हुए । तबरतस जो िीज = जो तबिस िीतजए , जो तबिास कर िीतजए । ज िति
कातिं तद....परासी = जब िक कातिं दी या जमु िा है तविास कर िे तफर िो िंिा में तमिकर, िंिा होकर, समु द्र में द डकर जािा ही पडे िा,
अथााि् जब िक कािे बािों का य विव है िब िक तविास कर िे तफर िो सफेद बािोंवािा बुढापा आवेिा और मृ त्ु की ओर झपट िे
जायिा । तबरासी । परासी = िू भाििी है अथााि भािेिी ।
(10) जोबि भाँवर....िोरा = इस समय जोबिरूपी भ रं ा (कािे केश) है और फूि सा िेरा शरीर है । तबररध = वृद्धावस्था । हाथ मरोरा =
इस फूि को हाथ से मि दे िा । बाि = िीर वणा, कांति । धिु क = टे ढी कमर ।
(11) आपि जैस = अपिे ऐसा । खेरा = घर, बस्ती । थर = स्थि, जिह । फार =फाडे । सत् के...फटा = यतद सत्त के बि से हृदय ि
फटे अथााि् प्रीति में अं िर ि पडे (पािी घटिे से िाि की जमीि में दरारें पड जािी हैं ) । छरै को पार = क ि छि सकिा है ।
(12) रािा = ितिि । साम तसर छािा = अथााि् कािे ; केश । थाके = थक जािा है । बि = बििों के समाि श्वेि । चि होिा = चि
दे िेवािा है । कोंप = कोंपि, कल्ला । राँ ि िे हु रतच = रं ि िो, भोि-तविास कर िो । कााँचा कच्चा । रााँचा = अिु रक्त हुआ । जाइ दु इ बाटा
= दु िाति को प्राप्त होिा है । जाउ = चाहे चिा जाय । भाँवरा = कािे केश । जो साँवरा = तजसका स्मरण तकया करिी हूाँ । ज तदि तदि
हे रा = यतद ििािार ढूाँढिी रहूाँ िी ।
(14) क ति रसोई = तकस काम की रसोई है ? जेतह परकार....होई = तजसमे दू सरा प्रकार ि हो, जो एक ही प्रकार की हो । दू सर पुरुष =
दू सरे पुरुष का । बैसे = बैठे रहिे से , उद्योि ि करिे से । आि = दू सरा ।
(15) धाई = धाय, धात्री । मतस चढावतस = मे रे ऊपर िू स्याही पोििी है । जस सीसा =जैसे सीसा िहीं तदखाई पडिा है । िाइ ििाकर ।
कापर = कपडा । सरर = बराबरी का; िदी ।
(16) = घाति िीन्ही = डाि रखी है । मु द्रा = मु हर । उपराहीं = ऊपर । भाँवाहीं = घूमिे हैं । काँवि = कमि को , कमि के चारों ओर ।
सो कस.....िाहीं = ऐसी सफेदी कहााँ जहााँ स्याही िहीं, अथााि् स्याही के भाव के तविा सफेदी की भाविा हो ही िहीं सकिी ।तपंड =
साकार वस्तु या शरीर जेतह = तजसमें ।
(17) भ ह ं = धिु फेरी = क्रोध से टे ढी भ ं की । सरर पूज = बराबरी को पहुाँ च सकिा है दु ुःख भरा िि....केसा = शरीर में तजििे रोयें या
बाि िहीं उििे दु ुःख भरे हुए हैं । सोि िदी....िरुवा = महाभारि में तशिा िाम एक ऐसी िदी का उल्लेख है तजसमें कोई हिकी चीज
डाि दी जाय िो भी डूब जािी है और पत्थर हो जािी है (मे िखस्थिीज िे भी ऐसा ही तिखा है । िढवाि के कुछ सोिों के पािी में इििा रे ि
और चूिा रहिा है तक पढी हुई िकडी पर क्रमशुः जमकर उसे पत्थर के रूप में कर दे िा है ) पाहि होइ....हरुवा = हिकी वस्तु भी हो
िो उसमें पडिे पर पत्थर हो जािी है । चेरर = दातसयााँ । छूटीं = द डीं । कूटि = कुटाई, प्रहार । कुटिी = कुतट्टिी, दू िी । झूाँक = झोंका ।
बादशाह-दू िी-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी

रािी धरमसार पुति साजा । बंतद मोख जेतह पावतहं राजा ॥


जावि परदे सी चति आवतहं । अन्नदाि औ पािी पावतहं ॥
जोति जिी आवतहं जि कंथी । पूछै तपयतह, जाि कोइ पंथी ॥
दाि जो दे ि बाहाँ भइ ऊाँची । जाइ साह पहाँ बाि पहूाँ ची ॥
पािुरर एक हुति जोति-सवााँिी । साह अखारे हुाँ ि ओतह मााँिी ॥
जोतिति-भेस तबयोतिति कीन्हा । सींिी-सबद मू ि िाँि िीन्हा ॥
पदतमति पहाँ पठई करर जोतिति । बेति आिु करर तबरह-तबयोतिति ॥

चिुर किा मि मोहि, परकाया-परवेस ।


आइ चढी तचिउरिढ होइ जोतिति के भेस ॥1॥

मााँिि राजबार चति आई । भीिर चेररन्ह बाि जिाई ॥


जोतिति एक बार है कोई । मााँिै जैतस तबयोतिति सोई ॥
अबहीं िव जोबि िप िीन्हा । फारर पटोरतह कंथा कीन्हा ॥
तबरह-भभूि, जटा बैरािी । छािा कााँध, जाप काँठिािी ॥
मु द्रा स्रवि, िातहं तथर जीऊ । िि तिरसूि, अधारी पीऊ ॥
छाि ि छाहाँ , धू प जिु मरई । पावाँ ि पाँवरी , भूभुर जरई ॥
तसंिी सबद, धाँ धारी करा । जरै सो ठााँव पावाँ जहाँ धरा ॥

तकंिरी िहे तबयोि बजावै, बारतह बार सुिाव ।


ियि चक्र चाररउ तदतस (हे रतहं ) दहुाँ दरसि कब पाव ॥2॥

सुति पदमावति माँ तदर बोिाई । पूछा "क ि दे स िें आई ?॥


िरुि बैस िोतह छाज ि जोिू । केतह कारि अस कीन्ह तबयोिू" ॥
कहे तस तबरह-दु ख जाि ि कोई । तबरहति जाि तबरह जेतह होई ॥
कंि हमार िएउ परदे सा । िेतह कारि हम जोतिति भेसा ॥
काकर तजउ, जोबि औ दे हा । ज तपउ िएउ, भएउ सब खेहा ॥
फारर पटोर कीन्ह मैं कंथा । जहाँ तपउ तमितहं िे उाँ सो पंथा ॥
तफर ,ं कर ं चहुाँ चक्र पुकारा । जटा परी ं, का सीस साँभारा ?॥

तहरदय भीिर तपउ बसै, तमिै ि पूछ ं कातह ?॥


सूि जिि सब िािै, ओतह तबिु तकछु ितहं आतह ॥3॥

स्रवि छे द महाँ मु द्रा मे िा । सबद ओिाउाँ कहााँ तपउ खेिा ॥


िेतह तबयोि तसंिी तिति पूर ं । बार बार तकंिरी िे इ झूर ं ॥
को मोतहं िे इ तपउ कंठ ििावै । परम अधारी बाि जिावै ॥
पााँवरर टू तट चिि, पर छािा । मि ि भरै , िि जोबि बािा ॥
िइउाँ पयाि, तमिा ितहं पीऊ । करवि िीन्ह, दीन्ह बति जीऊाँ ॥
जाइ बिारस जाररउाँ कया । पाररउाँ तपंड िहाइउाँ िया ॥
जिन्नाथ जिरि कै आई । पुति दु वाररका जाइ िहाई ॥

जाइ केदार दाि िि, िहाँ ि तमिा तिन्ह आाँ क ।


ढूाँतढ अजोध्या आइउाँ सरि दु वारी झााँक ॥4॥

िउमु ख हररिार तफर कीखन्हउाँ । ििरकोट कतट रसिा दीखन्हउाँ ॥


ढूतढउाँ बाििाथ कर टीिा । मथुरा मतथउाँ , िसो तपउ मीिा ॥
सुरुजकुंड महाँ जाररउाँ दे हा । बद्री तमिा ि जास ं िे हा ॥
रामकुंड, िोमति, िुरुिारू । दातहिवरि कीन्ह कै बारू ॥
सेिुबंध, कैिास, सुमेरू । िइउाँ अिकपुर जहााँ कुबेरू ॥
बरम्हावरि ब्रह्मावति परसी । बेिी-संिम सीतझउाँ करसी ॥
िीमषार तमसररख कुरुछे िा । िोरखिाथ अस्थाि समे िा ॥

पटिा पुरुब सो घर घर हााँ तड तफररउाँ संसार ।


हे रि कहूाँ ि तपउ तमिा, िा कोइ तमिविहार ॥5॥
बि बि सब हे रेउाँ िव खंडा । जि जि िदी अठारह िंडा ॥
च सठ िीरथ के सब ठाऊाँ । िे ि तफररउाँ ओतह तपउ कर िाऊाँ ॥
तदल्ली सब दे खखउाँ िुरकािू । औ सुििाि केर बंतदखािू ॥
रििसेि दे खखउाँ बाँतद माहााँ । जरै धू प, खि पाव ि छाहााँ ॥
सब राजतह बााँधे औ दािे । जोिति जाि राज पि िािे ॥
का सो भोि जेतह अं ि ि केऊ । यह दु ख िे इ सो िएउ सुखदे ऊ ॥
तदल्ली िावाँ ि जािहु ढीिी । सुतठ बाँतद िातढ,तिकस िहीं कीिी ॥

दे खख दिध दु ख िाकर अबहुाँ कया ितहं जीउ ।


सो धि कैसे दहुाँ तजयै जाकर बाँतद अस पीउ ? ॥6॥

पदमावति ज सुिा बाँतद पीऊ । परा अतिति महाँ मािहुाँ घीऊ ।


द रर पायाँ जोतिति के परी । उठी आति अस जोतिति जरी ॥
पायाँ दे तह, दु इ िै िन्ह िाऊाँ । िे इ चिु िहााँ कंि जेतह ठाऊाँ ॥
तजन्ह िै िन्ह िुइ दे खा पीऊ । मोतहं दे खाउ, दे हुाँ बति जीऊ ॥
सि औ धरम दे हुाँ सब िोहीं । तपउ कै बाि कहै ज मोहीं ॥
िुइ मोर िुरू, िोरर ह ं चेिी । भू िी तफरि पंथ जेतह मे िी ॥
दं ड एक माया करु मोरे । जोतिति होउाँ , चि ं साँि िोरे ॥

सखखन्ह कहा, सुिु रािी करहु ि परिट भेस ।


जोिी जोिवै िुपुि मि िे इ िुरु कर उपदे स ॥7॥

भीख िे हु, जोतिति ! तफरर मााँिू । कंि ि पाइय तकए सवााँिू ॥


यह बड जोि तबयोि जो सहिा । जेहुाँ पीउ राखै िेहुाँ रहिा ॥
घर ही महाँ रहु भई उदासा । अाँ जुरी खप्पर, तसंिी सााँसा ॥
रहै प्रेम मि अरुझा िटा । तबरह धाँ धारर, अिक तसर जटा ॥
िै ि चक्र हेरे तपउ-कंथा । कया जो कापर सोई कंथा ॥
छािा भूतम, ििि तसर छािा । रं ि करि रह तहरदय रािा ॥
मि -मािा फेरै िाँि ओही । पााँच भूि भसम िि होहीं ॥

कुंडि सोइ सुिु तपउ-कथा, पाँवरर पााँव पर रे हु ।


दं डक िोरा बादितह जाइ अधारी िे हु ॥8॥

(1) धरमसार = धमा शािा, सदाबिा , खैरािखािा । मोख पावतहं = छूटें । जि = तजििे । हुति = थी । जोति-सवााँिी = जोतिि का स्वााँि बिािे
वािी । अखारे हुाँ ि = रं िशािा से, िाचघर से । मााँिा = बुिा भेजा । िाँि = ित्त्व । किा मिमोहि = मि मोहिे की किा में ।
(2) राजबार = राजिार । बार = िार । िि तिरसूि....पीऊ = सारा शरीर ही तत्रशूिमय हो िया है और अधारी के स्थाि पर तप्रय ही है
अथााि् उसी का सहारा है । पवाँ री = चट्टी या खडाऊाँ । भूभुर = धू प से िपी धू ि या बािू । धाँ धारी = िोरखधं धा ।
(3) छाज ि = िहीं सोहिा । खे हा = धू ि, तमट्टी । चहुाँ चक्र = पृथ्वी के चारों खूाँट में । आतह = है ।
(4) ओिाउाँ = झुकिी हूाँ , झुककर काि ििािी हूाँ । सबद ओिाउाँ ...खेिा = आहट िे िे के तिए काि ििाए रहिी हूाँ तक तप्रय कहााँ िया ।
झूरों = सूखिी हूाँ । अधारी = सहारा दे िेवािी । पर पडिा है । बािा = िवीि । जािरण । दाि = दािा, िप्त मु द्रा िी । तिन्ह = उस तप्रय
का । आाँ क = तचन्ह, पिा । सरिदु वारी = अयोध्या में एक स्थाि ।
(5) िउमु ख = िोमु ख िीथा, िंिोत्तरी का वह स्थाि जहााँ से िंिा तिकििी है । िािरकोट, जहााँ दे वी का स्थाि है । कतट रसिा दीखन्हउाँ = जीभ
काटकर चढाई । बाििाथ कर टीिा = पंजाब में तसंध और झेिम के बीच पडिे वािे िमक के पहाडों की एक चोटी । मीिा = तमिा
सुरुजकुंड = अयोध्या, हररिार आतद कई िीथों में इस िाम के कुंड हैं । बद्री = बदररकाश्रम में । कै बारू = कई बार । अिकपुर =
अिकापुरी । ब्रह्मावति = कोई िदी । करसी = करीषाति में ; उपिों की आि में । हााँतड तफररउाँ = छाि डािा, ढूाँढ डािा, टटोि डािा ।
(6) राज पििािे = राजा िे प्रणाम तकया । ि केऊ = पास में कोई ि रह जाय । िे इ िएउ = िे िे या भोििे िया । सुखदे ऊ = सुख
दे िेवािा िुम्हारा तप्रय । तदल्ली िावाँ = तदल्ली या तढल्ली इस िाम से ।सुतठ = खूब । कीिी = कारािार के िार का अिाि । अबहुाँ कया ितहं
जीउ = अब भी मे रे होश तठकािे िहीं ।
(7) माया = मया, दया ।
(8) तफरर मााँिू = जाओ, और जिह घूम कर मााँिो । सवााँि = स्वााँि, िकि, आडं बर । यह बड....सहिा = तवयोि का जो सहिा है यही बडा
भारी योि है । जेहुाँ = जैसे, ज्यों, तजस प्रकार । िेहुाँ = त्ों , उस प्रकार । तसंिी सााँसा = िं बी सााँस िे िे को ही तसंिी फूाँकिा समझो । िटा =
िटरमािा । रहै प्रेम....िटा = तजसमें उिझा हुआ मि है उसी प्रेम को िटरमािा समझो । छािा = मृ िछािा । िाँि = ित्त्व या मं त्र ।
पााँचों भूि...होहीं = शरीर के पंचभूिों को ही रमी हुई भभूि या भस्म समझो । पाँवरर पााँच पर रे हु = पााँव पर जो धू ि ििे उसी को खडाऊाँ
समझ । अधारी = अड्डे के आकार की िकडी तजसे सहारे के तिये साधु रखिे हैं । अधारी िे हु = सहारा िो ।
पद्मावति-िोरा-बादि-संवाद-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी

सखखन्ह बुझाई दिध अपारा । िइ िोरा बादि के बारा ॥


चरि-काँवि भुइाँ जिम ि धरे । जाि िहााँ िति छािा परे ॥
तिसरर आए छत्री सुति दोऊ । िस कााँपे जस कााँप ि कोऊ ॥
केस छोरर चरिन्ह-रज झारा । कहााँ पावाँ पदमावति धारा ?॥
राखा आति पाट सोिवािी । तबरह-तबयोतिति बैठी रािी ॥
दोउ ठाढ होइ चाँवर डोिावतहं । "माथे छाि, रजायसु पावतहं ॥
उितट बहा िंिा कर पािी । से वक-बार आइ जो रािी ॥

का अस कस्ट कीन्ह िुम्ह, जो िुम्ह करि ि छाज ।


अज्ञा होइ बेति सो , जीउ िुम्हारे काज " ॥1॥

कहो रोइ पदमावति बािा । िै िन्ह रकि दीख जि रािा ॥


उथि समुद जस मातिक-भरे । रोइतस रुतहर-आाँ सु िस ढरे ॥
रिि के रं ि िैि पै वार ं । रिी रिी कै िोहू ढार ं ॥
भाँवरा ऊपर काँवि भवाव ं । िे इ चिु िहााँ सूर जहाँ पाव ं ॥
तहय कै हरतद, बदि कै िोहू । तजउ बति दे उाँ सो साँवरर तबछोहू ॥
परतहं आाँ सु जस सावि-िीरू । हररयरर भूतम, कुसुंभी चीरू ॥
चढी भुअाँतिति िट िट केसा । भइ रोवति जोतिति के भेसा ॥

बीर बहूटी भइ चिीं, िबहुाँ रहतहं ितहं आाँ सु ।


िै ितहं पंथ ि सूझै , िािेउ भाद ं मासु ॥2॥

िुम िोरा बादि खाँभ दोऊ । जस रि पारथ और ि कोऊ ॥


ढु ख बरखा अब रहै ि राखा । मू ि पिार, सरि भइ साखा ॥
छाया रही सकि मतह पूरी । तबरह-बेति भइ बातढ खजूरी ।
िेतह दु ख िे ि तबररछ बि बाढे । सीस उघारे रोवतहं ठाढे ॥
पुहुतम पूरर, सायर दु ुःख पाटा । क डी केर बेहरर तहय फाटा ॥
बेहरा तहये खजूर क तबया । बेहर िातहं मोर पाहि-तहया ॥
तपय जेतह बाँतद जोतिति होइ धाव ं । ह ं बाँतद िे उाँ, तपयतह मु कराव ं ।

सूरुज िहि-िरासा, काँवि ि बैठे पाट ।


महूाँ पंथ िेतह िविब, कंि िए जेतह बाट ॥3॥

िोरा बादि दोउ पसीजे । रोवि रुतहर बूतड िि भीजे ॥


हम राजा स ं इहै कोहााँिे । िुम ि तमि , धररहैं िुरकािे ।
जो मति सुति हम िये कोहााँई । सो तिआि हम्ह माथे आई ॥
ज िति तजउ, ितहं भाितहं दोऊ । स्वातम तजयि तकि जोतिति होऊ ॥
उए अिस्त हखस्त जब िाजा । िीर घटे घर आइतह राजा ॥
बरषा िए, अिस्त ज दीतठतह । पररतह पिाति िुरंिम पीतठतह ॥
बेधों राहु, छोडावहुाँ सूरू । रहै ि दु ख कर मू ि अाँ कूरू॥

सोइ सुर, िुम ससहर, आति तमिाव ं सोइ ।


िस दु ख महाँ सुख उपजै, रै ति माहाँ तदति होइ ॥4॥

िीन्ह पाि बादि औ िोरा । "केतह िे इ दे उाँ उपम िुम्ह जोरा ?॥


िुम सावंि, ि सरवरर कोऊ । िुम्ह हिु वंि अं िद सम दोऊ ॥
िुम अरजुि औ भीम भुवारा । िुम बि रि-दि-मं डिहारा ॥
िुम टारि भारन्ह जि जािे । िुम सुपुरुष जस करि बखािे ॥
िुम बिबीर जैस जिदे ऊ । िुम संकर औ मािकदे ऊ ॥
िुम अस मोरे बादि िोरा । काकर मु ख हे र ,ं बाँतदछोरा ? ॥
जस हिु वाँि राघव बाँतद छोरी । िस िुम छोरर मे रावहु जोरी ॥

जैसे जरि िखाघर, साहस कीन्हा भीउाँ ।


जरि खंभ िस काढहु, कै पुरुषारथ जीउ ॥5॥

रामिखि िुम दै ि-साँघारा । िुमहीं घर बिभद्र भुवारा ॥


िुमही द्रोि और िंिेउ । िुम्ह िेख ं जैसे सहदे ऊ ॥
िुमही युतधतष्ठर औ दु रजोधि । िुमतहं िीि िि दोउ संबोधि ॥
परसुराम राघव िुम जोधा । िुम्ह परतिज्ञा िें तहय बोधा ॥
िुमतहं सत्रुहि भरि कुमारा । िुमतहं कृस्न चािू र साँघारा ॥
िुम परदु म्न औ अतिरुध दोऊ । िुम अतभमन्यु बोि सब कोऊ ॥
िुम्ह सरर पूज ि तवक्रम साके । िुम हमीर हररचाँद सि आाँ के ॥

जस अति संकट पंडवन्ह भएउ भीवाँ बाँतद छोर ।


िस परबस तपउ काडहु, राखख िे हु भ्रम मोर "॥6॥

िोरा बादि बीरा िीन्हा । जस हिु वंि अं िद बर कीन्हा ॥


सजहु तसंघासि, िािहु छािू । िु म्ह माथे जुि जुि अतहबािू ॥
काँवि-चरि भुइाँ धरर दु ख पावहु । चतढ तसंघासि माँ तदर तसघावहु ॥
सुिितहं सूर काँवि तहय जािा । केसरर-बरि फूि तहय िािा ॥
जिु तितस महाँ तदि दीन्ह दे खाई । भा उदोि, मतस िई तबिाई ॥
चढी तसंघासि झमकति चिी । जािहुाँ चााँद दु इज तिरमिी ॥
औ साँि सखी कुमोद िराईं । ढारि चाँवर माँ तदर िे इ आईं ॥

दे खख दु इज तसं घासि संकर धरा तििाट ।


काँवि-चरि पदमाविी िे इ बैठारी पाट ॥7॥

(1) बारा = िार पर । कााँपे = च क ं पडे । सोिवािी = सुिहरी । माथे छाि = आपके माथे पर सदा छत्र बिा रहे ! बार = िार । का = क्या
। िुम्ह ि छाज = िुम्हें िहीं सोहिा ।
(2) दीख = तदखाई पडा । रािा = िाि । उिथ = उमडिा है । रुतहर । रं ि = रं ि पर । पै = अवश्य; तििय । भाँवरा = रत्नसेि । काँवि =
िे त्र (पतद्मिी के)। हरतद = कमि के भीिर छािे का रं ि पीिा होिा है । बदि कै िोहू = कमि के दि का रं ि रक्त होिा है ।
(3) खंभ = खंभे, राज्य के आधार-स्वरूप । पारथ = पाथा, अजुाि । बरखा = बषाा में । िे तह दु ख िे ि ...बाढे = उसी दु ुःख की बाढ को
िे कर जंिि के पेड बढकर इििे ऊाँचे हुए हैं । बेहरर = तवदीणा होकर । जेतह बाँतद = तजस बंदीिृह में । मु कराव ं = मु क्त कराऊाँ,छु डाऊाँ ।
(4) िुरकाि = मु सिमाि िोि । उए अिस्त = के उदय होिे पर, शरि् आिे पर । हखस्त जब िाजा = हाथी चढाई पर िरजेंिे; या हस्त िक्षत्र
िरजेिा । आइतह = आवेिा । दीतठतह = तदखाई दे खा । पररतह पिाति...पीतठतह = घोडों की पीठ पर जीि पडे िी चढाई के तिये घोडे कसे
जायाँिे । अाँ कुर । ससहर = शशधर, चंद्रमा ।
(5) िीन्ह पाि = बीडा तिया, प्रतिज्ञा की । केतह...जोरा = यहााँ से पद्माविी के वचि हैं । सावंि = सामं ि । भुवारा = भूपाि । टारि भारन्ह
= भार हटािे वािे । करि =कणा । मािकदे ऊ = मािदे व । बाँतदछोर = बंधि छु डािे वािे । िखाघर = िाक्षािृह । खंभ = राज्य का स्तंभ,
रत्नसेि ।
(6) दै ि साँभारा = दै त्ों का संहार करिे वािे । िंिेऊ = िााँिेय, भीष्म-तपिामह । िुम्ह िे ख ं = िु मको समझिी हूाँ । संबोधि = ढाढस दे िेवािे ।
िुम्ह परतिज्ञा = िुम्हारी प्रतिज्ञा से । बोधा = प्रबोध, िसल्ली । सि आाँ के = सत् की रे खा खींची है । भ्रम = प्रतिष्ठा, सम्माि ।
(7) बर = बि । अतहबािू = स भाग्य सोहाि । उदोि = प्रकाश । दे खख दु इज...तििाट = दू ज के चंद्रमा को दे ख उसे बैठिे के तिये तशवजी
िे अपिा ििाट- रूपी तसंहासि रखा अथााि् अपिे मस्तक पर रखा ।
िोरा-बादि-युद्ध-यात्रा-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी

बादि केरर जस वै माया । आइ िहे तस बादि कर पाया॥


बादि राय! मोर िुइ बारा । का जाितस कस होइ जुझारा॥
बादसाह पुहुमीपति राजा । सिमु ख होइ ि हमीरतह छाजा॥
छतत्तास िाख िुरय दर साजतहं । बीस सहस हस्ती रि िाजतहं ॥
जबहीं आइ चढै दि ठटा । दीखि जैतस ििि घि घटा॥
चमकतहं खड़ि जो बीजु समािा । घुमरतहं िििाजतहं िीसािा॥
बररसतहं सेि बाि घिघोरा । धारज धार ि बााँतधातह िोरा॥
जहााँ दिपिी दति मरतहं , िहााँ िोर का काज।
आजु िवि िोर आवै, बैतठ मािु सुख राज॥1॥

मािु! ि जाितस बािक आदी । ह ं बादिा तसंह रिबादी॥


सुति िजजूह अतधाक तजउ िपा । तसंघ क जाति रहै तकतमछपा?॥
ि िति िाज ि िाज तसंघेिा । स ह ं साह स ं जुर ं अकेिा॥
को मोतहं स ह ं होइ मै मंिा । फार ं सूाँड़, उखार ं दं िा॥
जुर ं स्वातम साँकरे जस ढारा । पे ि ं जस दु रजोधाि भारा॥
अं िद कोतप पााँव जस राखा । टे क ं कटक छिीस िाखा॥
हिु वाँि सररस जंघ बर जोर ं । दह ं समु द्र, स्वातम बाँतद छोर ॥

सो िुम, मािु जस वै। मोंतह ि जािहु बार।
जहाँ राजा बति बााँधा छोर ं पै तठ पिार॥2॥

बादि िवि जूझ कर साजा । िैसेतह िवि आइ घर बाजा॥


का बरि ं िविे कर चारू । चंद्रबदति रुतच कीन्ह तसंिारू॥
मााँि मोति भरर सेंदुर पूरा । बैठ मयूर, बााँक िस जूरा॥
भह ं ैं धािु क टकोरर परीखे । काजर िै ि, मार सर िीखे॥
घाति कचपची टीका सजा । तििक जो दे ख ठााँव तजउ िजा॥
मति कुंडि डोिैं दु इ òविा । सीस धा्ु ितहं सुति सुति तपउ िविा॥
िातिति अिक, झिक उर हारू । भयउ तसंिार कंि तबिु भारू॥
िवि जो आवा पाँवरर महाँ , तपउ िविे परदे स।
सखी बुझावतहं तकतम अिि, बुझै सो केतह उपदे स?॥3॥

माति िवि सो घूाँघुट काढी । तबिवै आइ बार भइ ठाढी॥


िीखे हे रर चीर ितह ओढा । कंि ि हे र, कीखन्ह तजउ पोढा॥
िब धाति तबहाँ तस कीन्ह सहुाँ दीठी । बादि ओतह दीखन्ह तफररपीठी॥
मु ख तफराइ मि अपिे रीसा । चिि ि तिररया कर मु ख दीसा॥
भा तमि मे ष िारर के िे खे । कस तपउ पीतठ दीखन्ह मोतहं दे खे॥
मकु तपउ तदखस्ट समािे उसािू । हुिसी पीतठ कढाव ं फािू ॥
कुच िूाँबी अब पीतठ िड़ोव ं । िहै जो हूतक, िाढ रस धाोव ॥

रह ं िजाइ ि तपउ चिै , िह ं ि कह मोतहं ढीठ।
ठातढ िेवाति तक का कर ,ं दू भर दु औ बईठ॥4॥

िाज तकए ज तपउ ितहं पाब ं । िज ं िाज कर जोरर मिाव ॥ ं


करर हठ कंि जाइ जेतह िाजा । घूाँघुट िाज आवा केतह काजा॥
िब धाति तबहाँ तस कहा ितह फेंटा । िारर जो तबिबै कंि ि मे टा॥
आजु िवि ह ं आई िाहााँ । िुम ि, कंि! िविहु रि माहााँ॥
िवि आव धाति तमिै के िाईं । क ि िवि ज तबछु रै साईं॥
धाति ि िै ि भरर दे खा पीऊ । तपउ ि तमिा धाति स ं भरर जीऊ॥
जहाँ अस आस भरा है केवा । भाँवर ि िजै बास रसिे वा॥
पायाँन्ह धारा तििाट धाति, तबिय सुिहु, हो राय!।
अिकपरी फाँदवार होइ, कैसेहु िजै ि पाय॥5॥

छााँड़घ फेंट धाति! बादि कहा । पुरुष िवि धाति फेंट ि िहा॥
जो िुइ िवि आइ, िजिामी । िवि मोर जहाँ वा मोर स्वामी॥
ज िति राजा छूतट ि आवा । भावै बीर, तसंिार ि भावा॥
तिररया भूतम खड़ि कै चेरी । जीि जो खड़ि होइ िेतह केरी॥
जेतह घर खड़ि मोंछ िेतहं िाढी । जहााँ ि खड़ि मोंछ ितहं दाढी॥
िब मुाँ ह मोछ, जीउ पर खेि ं । स्वातम काज इं द्रासि पेि ॥

पुरुष बोति कै टरै ि पाछू । दसि ियंद, िीउ ितहं काछू॥
िुइ अबिा धाति! कुबुतधा बुतधा, जािै काह जुझार।
जेतह पुरुषतह तहय बीररस, भावै िेतह ि तसंिार॥6॥

ज िुम चहहु जूतझ, तपउ! बाजा । कीन्ह तसंिार जूझ मैं साजा॥
जोबि आइ स ह ं होइ रोपा । तबखरा तबरह, काम दि कोपा॥
बहे उ बीररस सेंदुर मााँिा । रािा रुतहर खड़ि जस िााँिा॥
भह ं ैं धािु क िै ि सर साधो । काजर पिच, बरुति तबष बााँधो॥
जिु कटाछ स्यों साि साँवारे । िखतसख बाि सेि अतियारे ॥
अिक फााँस तिउ मे ि असूझा । अधार अधार स ं चाहतहं जू झा॥
कुंभस्थि कुच दोउ मैमंिा । पेि ं स ह ं , साँभारहु, कंिा?॥
कोप तसंिार, तबरह दि, टू तट होइ दु इ आधा।
पतहिे मोतहं संग्राम कै, करहु जूझ कै साधा॥7॥

एक तबिति ि मािै िाहााँ । आति परी तचि उर धाति माहााँ॥


उठा जो धा्ू म िै ि करवािे । िािे परै ऑंसु झहरािे ॥
भीजै हार, चीर तहय चोिी । रही अछूि कंि ितहं खोिी॥
भीजी अिक छु ए कतट मं डि । भीजे काँवि भाँवर तसर फुंदि॥
चुइ चुइ काजर ऑंचर भीजा । िबहुाँ ि तपउ कर रोवाँ पसीजा॥
ज िुम कंि! जूझ तजउ कांधा । िुम तकय साहस, मैं सि बााँधा1॥
रि संग्राम जूतझ तजति आवहु । िाज होइ ज पीतठ दे खावहु॥
िुम्ह तपउ साहस बााँधा, मैं तदय मााँि सेंदूर।
दोउ साँभारे होइ साँि, बाजै मादर िूर॥8॥

(1) जस वै=यह 'यशोदा' शब्द का प्राकृि या अप्रभंश रूप है । पाया=पैर। जुझारा=युध्द। ठटा=समू ह बााँधाकर।
(2) आदी=तििांि, तबिकुि। तसंघेिा=तसंह का बच्चा। मै मंिा=मस्त हाथी। स्वातम साँकरे =स्वामी के संकट के समय में । जस ढारा=ढाि के समाि
होकर। पेि =ं जोर से चिाऊाँ। भारा=भािा। टे क =
ं रोक िूाँ । जंघ बर जोर =
ं जााँघों में बि िाऊाँ। बार=बािक।
(3) जूझ=युध्द। िवि=वधा्ू का प्रथम प्रवेश। चारू=रीति-व्यवहार। बााँक=बााँका, सुंदर। जूरा=बाँधाी हुई चोटी का िुच्छा। टकोरर=टं कार दे कर।
परीखे=परीक्षा की, आजमाया। घाति=डािकर, ििाकर। कचपची=कृतत्ताका िक्षत्रा; यहााँ चमकी।
(4) बार=िार। हे र=िाकिा है । पोढा=कड़ा। तमि मे ष=आिा पीछा, सोच-तवचार। मकु...सािू =शायद मे री िीखी दृति का साि उसके हृदय में पैठ
िया है । हुिसी...फािू =वह साि पीठ की ओर हुिसकर जा तिकिा है इससे मैं वह िड़ा हुआ िीर का फि तिकिवा दू ाँ । कूच
िूाँबी...िड़ोव =ं जैसे धााँसे हुए कााँ टे आतद को िूाँबी ििाकर तिकाििे हैं वैसे ही अपिी कुचरूपी िुंबी जरा पीठ से ििाऊाँ। िहै
ज ...धाोव = ं पीड़ा से च क ं कर जब वह मु झे पकड़े िब मैं िाढे रस से उसे धाो डािूाँ अथााि् रसमि कर दू ाँ । िेवाति=तचंिा में पड़ी हुई।
दु औ=दोिों बािें।

(5) तमिै के िाईं=तमििे के तिए। फाँदवार=फंदा।


(6) पुरुष िवि=पुरुष के चििे समय। बीर=वीर रस। मोंछ=मूाँ छें। दसि ियंद...काछू=वह हाथी के दााँि के समाि है (जो तिकिकर पीछे िहीं
जािे), कछु ए की िदा ि के समाि िहीं, जो जरा सी आहट पाकर पीछे घुस जािा है ।
(7) बाजा चहहु=िड़िा चाहिे हो। पिच=धािु ष की डोरी। अतियारे =िु कीिे , िीखे। कोप=कोपा है । मोतहं =मु झसे।
(8) तचि उर=(क) मि और हृदय में , (ख) तचत्ता र। आति परी माहााँ=इस पं खक्त में कतव िे आिे चिकर तचत्ता र की खस्त्रायों के सिी होिे का
संकेि भी तकया है । करुवािे =कड़वे धा्ु एाँ से दु खिे ििे। कतटमं डि=करधािी। फुंदि=चोटी का फुिरा।
1. कई प्रतियों में यह पाठ है -
छााँतड चिा, तहरदय दे इ दाहू । तिठु र िाह आपि ितहं काहू॥
सबै तसंिार भीतजभुइाँ चूवा । छार तमिाइ कंि ितह छूवा॥
रोए कंि ि बहुरै , िेतह रोए का काज?
कंि धारा मि जूझ रि, धाति साजा सर साज॥
िोरा-बादि-युद्ध-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी

मिैं बैतठ बादि औ िोरा । सो मि कीज परै ितहं भोरा ॥


पुरुष ि करतहं िारर-मति कााँची । जस ि शाबा कीन्ह ि बााँची ॥
परा हाथ इसकंदर बैरी । सो तकि छोतड कै भई बाँदेरी ?॥
सुबुतध सो ससा तसं घ कहाँ मारा । कुबुतध तसंघ कूआाँ परर हारा ॥
दे वतहं छरा आइ अस आाँ टी । सज्जि कंचि, दु जाि माटी ॥
कंचि जुरै भए दस खंडा । फूतट ि तमिै कााँच कर भंडा ॥
जस िुरकन्ह राजा छर साजा । िस हम सातज छोडावतहं राजा ॥

पुरुष िहााँ पै करै छर जहाँ बर तकए ि आाँ ट ।


जहााँ फूि िहाँ फूि है , जहााँ कााँट िहाँ कााँट ॥1॥

सोरह सै चंडोि साँवारे । कुाँवर सजोइि कै बैठारे ॥


पदमावति कर सजा तबवािू । बै ठ िोहार ि जािै भािू ॥
रतच तबवाि सो सातज साँवारा । चहुाँ तदतस चाँवर करतहं सब ढारा ॥
सातज सबै चंडोि चिाए । सुराँि ओहार, मोति बहु िाए ॥
भए साँि िोरा बादि बिी । कहि चिे पदमावति चिी ॥
हीरा रिि पदारथ झूितहं । दे खख तबवाि दे विा भूितहं ॥
सोरह सै संि चिीं सहे िी । काँवि ि रहा, और को बेिी ?॥

राजतह चिीं छोडावै िहाँ रािी होइ ओि ।


िीस सहस िुरर खखंची साँि, सोरह सै चंडोि ॥2॥

राजा बाँतद जेतह के स प ं िा । िा िोरा िेतह पहाँ अिमिा ॥


टका िाख दस दीन्ह अाँ कोरा । तबििी कीखन्ह पायाँ ितह िोरा ॥
तविवा बादसाह स ं जाई । अब रािी पदमावति आई ॥
तबििी करै आइ ह ं तदल्ली । तचिउर कै मोतह स्यो है तकल्ली ॥
तबििी करै , जहााँ है पूजी । सब भाँडार कै मोतह स्यो कूाँजी ॥
एक घरी ज अज्ञा पाव ं । राजतह स तं प माँ तदर महाँ आव ं ॥
िब रखवार िए सुििािी । दे खख अाँ कोर भए जस पािी ॥

िीन्ह अाँ कोर हाथ जेतह, जीउ दीन्ह िेतह हाथ ।


जहााँ चिावै िहाँ चिै , फेरे तफरै ि माथ ॥3॥

िोभ पाप कै िदी अाँ कोरा । सत्त ि रहै हाथ ज बोरा ॥


जहाँ अाँ कोर िहाँ िीक ि राजू । ठाकुर केर तबिासै काजू ॥
भा तजउ तघउ रखवारन्ह केरा । दरब-िोभ चंडोि ि हे रा ॥
जाइ साह आिे तसर िावा । ए जिसूर ! चााँद चति आवा ॥
जावि हैं सब िखि िराईं । सोरह सै चाँड ि सो आईं ॥
तचिउर जेति राज कै पूाँजी । िे इ सो आइ पदमावति कूाँजी ॥
तबििी करै जोरर कर खरी । िे इ स प ं ं राजा एक घरी ॥

इहााँ उहााँ कर स्वामी ! दु औ जिि मोतहं आस ॥


पतहिे दरस दे खावहु ि पठवहु कतबिास ॥4॥

आज्ञा भई, जाइ एक घरी । छूाँतछ जो घरी फेरर तबतध भरी ॥


चति तबवाि राजा पहाँ आवा । साँ ि चंडोि जिि सब छावा ॥
पदमावति के भेस िोहारू । तिकतस कातट बाँ तद कीन्ह जोहारू ॥
उठा कोतप जस छूटा राजा । चढा िुरंि, तसंघ अस िाजा ॥
िोरा बादि खााँडै काढे । तिकतस कुाँवर चतढ चतढ भए ठाढे ॥
िीख िुरंि ििि तसर िािा ।केहुाँ जुिुति करर टे की बािा ॥
जो तजउ ऊपर खडि साँभारा । मरिहार सो सहसन्ह मारा ॥

भई पुकार साह स ं ,सतस औ िखि सो िातहं ।


छरकै िहि िरासा, िहि िरासे जातहं ॥5॥

िे इ राजा तचिउर कहाँ चिे । छूटे उ तसंघ, तमररि खिभिे ॥


चढा सातह चतढ िाति िोहारी । कटक असूझ परी जि कारी ॥
तफरर िोरा बादि स ं कहा । िहि छूतट पु ति चाहै िहा ॥
चहुाँ तदतस आवै िोपि भािू । अब इहै िोइ, इहै मै दािू ॥
िुइ अब राजतह िे इ चिु िोरा । ह ं अब उितट जुर ं भा जोरा ॥
वह च िाि िुरुक कस खेिा । होइ खेिार रि जुर ं अकेिा ॥
ि पाव ं बादि अस िाऊाँ । ज मै दाि िोइ िे इ जाऊाँ ॥

आजु खडि च िाि ितह कर ं सीस-ररपु िोइ ।


खेि ं स ह
ं साह स ,ं हाि जिि महाँ होइ ॥6॥

िब अिमि होइ िोरा तमिा । िु इ राजतह िे इ चिु , बादिा !॥


तपिा मरै जो साँकरे साथा । मीचु ि दे इ पूि के माथा ॥
मैं अब आउ भरी औ भूाँजी । का पतछिाव आउ ज पू जी ?॥
बहुिन्ह मारर मर ं ज जूझी । िु म तजति रोएहु ि मि बूझी ॥
कुाँवर सहस साँि िोरा िीन्हे । और बीर बादि साँि कीन्हे ॥
िोरतह समतद मे घ अस िाजा । चिा तिए आिे करर राजा ॥
िोरा उितट खेि भा ठाडा । पूरुष दे खख चाव मि बाढा ॥

आव कटक सुििािी, ििि छपा मतस मााँझ ।


परति आव जि कारी, होि आव तदि सााँझ ॥7॥

होइ मै दाि परी अब िोई । खेि हार दहुाँ काकरर होई ॥


जोबि-िुरी चढी जो रािी । चिी जीति यह खेि सयािी ॥
कतट च िाि, िोइ कुच साजी । तहय मै दाि चिी िे इ बाजी ॥
हाि सो करै िोइ िे इ बाढा । कूरी दु व पैज कै काढा ॥
भइाँ पहार वै दू ि कूरी । तदखस्ट तियर, पहुाँ चि सुतठ दू री ॥
ठाढ बाि अस जािहु दोऊ । सािै तहये ि काढै कोऊ ॥
साितहं तहय, ि जातहं सतह ठाढे । साितहं मरै चहै अिकाढे ॥

मु हमद खेि प्रेम कर ितहर कतठि च िाि ।


सीस ि दीजै िोइ तजतम, हाि ि होइ मै दाि ॥8॥

तफरर आिे िोरा िब हााँका । खे ि ,ं कर ं आजु रि-साका ॥


ह ं कतहए ध िातिरर िोरा । टर ं ि टारे , अं ि ि मोरा ॥
सोतहि जैस ििि उपराहीं । मे घ-घटा मोतह दे खख तबिाहीं ॥
सहस सीस सेस सम िे ख ं । सहस िै ि इं द्र सम दे ख ं ॥
चाररउ भुजा चिुरभुज आजू । कंस ि रहा और को साजू ?
ह ं होइ भीम आजु रि िाजा । पाछे घाति डु ं िवै राजा ॥
होइ हिु वाँि जमकािर ढाह ं । आजु स्वातम सााँकरे तिबाह ं ॥
होइ िि िीि आजु ह ं दे हुाँ समु द महाँ में ड ।
कटक साह कर टे क ं होइ सुमेरु रि बेंड ॥9॥

ओिई घटा चहूाँ तदतस आई । छूटतहं बाि मे घ-झरर िाई ॥


डोिै िातहं दे व अस आदी । पहुाँ चे आइ िुरुक सब बादी ॥
हाथन्ह िहे खडि हरिािी । चमकतहं सेि बीजु कै बािी ॥
सोझ बाि जस आवतहं िाजा । बासुतक डरै सीस जिु वाजा ॥
िे जा उठे डरै मि इं दू । आइ ि बाज जाति कै तहं दू ॥
िोरै साथ िीन्ह सब साथी । जस मै मंि सूाँड तबिु हाथी ॥
सब तमति पतहति उठ िी कीन्ही । आवि आइ हााँक रि दीन्ही ॥

रुंड मुं ड अब टू टतह स्यो बखिर औ कूाँड ।


िुरय होतहं तबिु कााँधे, हखस्त होतहं तबिु सूाँड ॥10॥

ओिवि आइ सेि सुििािी । जािहुाँ परिय आव िुिािी ॥


िोहे सेि सूझ सब कारी । तिि एक कहूाँ ि सूझ उघारी ॥
खडि फोिाद िुरुक सब काढे । दरे बीजु अस चमकतहं ठाढे ॥
पीिवाि िज पेिे बााँके । जािहुाँ काि करतहं दु इ फााँके ॥
जिु जमकाि करतसं सब भवााँ । तजउ िे इ चहतहं सरि अपसवााँ ।
सेि सरप जिु चाहतहं डसा । िे तहं कातढ तजउ मु ख तबष-बसा ॥
तिन्ह सामु हाँ िोरा रि कोपा । अं िद सररस पावाँ भुइाँ रोपा ॥

सुपुरुष भाति ि जािै , भुइाँ ज तफरर िे इ ।


सूर िहे दोऊ कर स्वातम -काज तजउ दे इ ॥11॥

भइ बिमे ि, सेि घिघोरा । औ िज-पेि; अकेि सो िोरा ॥


सहस कुाँवर सहस सि बााँधा । भार-पहार जूझ कर कााँधा ॥
ििे मरै िोरा के आिे । बाि ि मोर घाव मु ख िािे ॥
जैस पिंि आति दाँ तस िे ई । एक मु वै, दू सर तजउ दे ई ॥
टू टतहं सीस, अधर धर मारै । िोटतहं कंधतह कंध तिरारै ॥
कोई परतहं रुतहर होइ रािे । कोई घायि घूमतहं मािे ॥
कोइ खुरखेह िए भरर भोिी । भसम चढाइ परे होइ जोिी ॥

घरी एक भारि भा, भा असवारन्ह मे ि ।


जूतझ कुाँवर सब तिबरे , िोरा रहा अकेि ॥12॥

िोरै दे ख सातथ सब जूझा । आपि काि तियर भा, बूझा ॥


कोतप तसं घ सामु हाँ रि मे िा । िाखन्ह स ं ितहं मरै अकेिा ॥
िे इ हााँतक हखस्तन्ह कै ठटा । जै से पवि तबदारै घटा ॥
जेतह तसर दे इ कोतप करवारू । स्यो घोडे टू टै असवारू ॥
िोटतहं सीस कबंध तििारे । माठ मजीठ जिहुाँ रि ढारे ॥
खेति फाि सेंदुर तछरकावा । चाचरर खेति आति जिु िावा ॥
हस्ती घोड धाइ जो धू का । िातह कीन्ह सो रुतहर भभूका ॥

भइ अज्ञा सुििािी, "बेति करहु एतह हाथ ।


रिि जाि है आिे तिए पदारथ साथ " ॥13॥

सबै कटक तमति िोरतह छे का । िूाँजि तसंघ जाइ ितहं टे का ॥


जेतह तदतस उठै सोइ जिु खावा । पितट तसं घ िेतह ठावाँ ि आवा ॥
िुरुक बोिावतहं , बोिै बाहााँ । िोरै मीचु धरी तजउ माहााँ ॥
मु ए पुति जूतझ जाज, जिदे ऊ । तजयि ि रहा जिि महाँ केऊ ॥
तजति जािहु िोरा सो अकेिा । तसंघ के मोंछ हाथ को मे िा ?
तसंघ तजयि ितहं आपु धरावा । मु ए पाछ कोई तघतसयावा ॥
करै तसंघ मु ख -स हतहं दीठी । ज िति तजयै दे इ ितहं पीठी ॥

रििसेि जो बााँधा , मतस िोरा के िाि ।


ज िति रुतधर ि धोव ं ि िति होइ ि राि ॥14॥

सरजा बीर तसंघ चतढ िाजा । आइ स ह


ं िोरा स बाजा ॥
पहिवाि सो बखािा बिी । मदद मीर हमजा औ अिी ॥
िाँ धउर धरा दे व जस आदी । और को बर बााँधै, को बादी ?
मदद अयूब सीस चतढ कोपे । महामाि जेइ िावाँ अिोपे ॥
औ िाया सािार सो आए । जेइ क रव पंडव तपंड पाए ॥
पहुाँ चा आइ तसंघ असवारू । जहााँ तसंघ िोरा बररयारू ॥
मारे तस सााँि पेट महाँ धाँ सी । काढे तस हुमु तक आाँ ति भुइाँ खसी ॥

भााँट कहा, धति िोरा ! िू भा रावि राव ।


आाँ ति समे तट बााँतध कै िुरय दे ि है पाव ॥15॥

कहे तस अं ि अब भा भुइाँ परिा । अं ि ि खसे खेह तसर भरिा ॥


कतह कै िरतज तसंघ अस धावा । सरजा सारदू ि पहाँ आवा ॥
सरजै िीन्ह सााँि पर घाऊ । परा खडि जिु परा तिहाऊ ॥
बज् क सााँि, बज् कै डााँडा । उठा आति िस बाजा खााँडा ॥
जािहु बज् बज् स ं बाजा । सब ही कहा परी अब िाजा ॥
दू सर खडि कंध पर दीन्हा । सरजे ओतह ओडि पर िीन्हा ॥
िीसर खडि कूाँड पर िावा । कााँध िुरुज हुि, घाव ि आवा ॥

िस मारा हतठ िोरे , उठी बज् के आति ।


कोइ तियरे ितहं आवै तसंघ सदू रतह िाति ॥16॥

िब सरजा कोपा बररबंडा । जिहु सदू र केर भुजदं डा ॥


कोतप िरतज मारे तस िस बाजा । जािहु परी टू तट तसर िाजा ।
ठााँठर टू ट, फूट तसर िासू । स्यो सुमेरू जिु टू ट अकासू ॥
धमतक उठा सब सरि पिारू । तफरर िइ दीतठ, तफरा संसारू ॥
भइ परिय अस सबही जािा । काढा कढि सरि तियरािा ॥
िस मारे तस स्यो घोडै काटा । घरिी फातट, सेस-फि फाटा ॥
ज अति तसंह बरी होइ आई । सारदू ि स ं क ति बडाई ?॥

िोरा परा खेि महाँ , सुर पहुाँ चावा पाि ।


बादि िे इिा राजा, िे इ तचिउर तियराि ॥17॥

(1) मिैं = सिाह करिे हैं । कीज = कीतजए । ि शाबा = तसकंदरिामा के अिु सार एक रािी तजसके यहााँ तसकंदर पहिे दू ि बि कर िया था
। उसिे तसकंदर को पहचाि कर भी छोड तदया । पीछे तसकंदर िे उसे अपिा अधीि तमत्र बिाया और उसिे बडी धूमधाम से तसकंदर की
दावि की दे वतह छरा = राजा को उसिे (अिाउद्दीि िे ) छिा । आइ अस आाँ ठी = इस प्रकार अमठी पर चढकर अथााि् कब्जे में आकर भी
। भंडा = भााँडा, बरिि । ि आाँ ट = िहीं पार पा सकिे
(2) चंडोिा = पािकी । कुाँवर = राजपूि सरदार । सजोइि = हतथयारों से िैयार । बैठ िोहार...भािू = पद्माविी के तिये जो पािकी बिीं
थी उसके भीिर एक िु हार बैठा, इस बाि का सूया को भी पिा ि ििा । ओहार = पािकी ढााँ किे का परदा । काँवि...जब पद्माविी ही
िहीं रही िब और सखखयों का क्या ? ओि होइ = ओि होकर, इस शिा पर बादशाह के यहााँ रहिे जाकर तक राजा छोड तदए जायाँ कोई
व्यखक्त जमािि के ि र पर यतद रख तिया जािा है िो उसे ओि कहिे हैं ) । िुरर = घोतडयााँ ।
(3) स प ं िा = दे खरे ख में , सुपुदािी में । अिमिा = आिे पहिे । अाँ कोर = भेंट, घूस, ररश्वि । स्यो = साथ, पास । तकल्ली = कुंजी । पािी भए
= िरम हो िए । हाथ जेतह = तजसके हाथ से ।
(4) तघउ भा = तपघिकर िरम हो िया । ि हे रा = ििाशी िहीं िी, जााँच िहीं की । इहााँ उहााँ कर स्वामी = मे रा पति राजा । कतबिास =
स्विा, यहााँ शाही महि ।
(5) छूाँतछ...भरी = जो घडा खािी था ईश्वर िे तफर भरा, अथााि् अच्छी घडी तफर पिटी । जस = जैसे ही । तजउ ऊपर = प्राण रक्षा के
तिये । छर कै िहि....जातहं = तजिपर छि से ग्रहण ििाया था वे ग्रहण ििाकर जािे हैं ।
(6) कारी कातिमा, अं धकार । तफरर = ि टकर, पीछे िाककर । िोइ = िोय, िेंद । जोरा = खेि का जोडा या प्रतििं िी । िोइ िे इ जाऊाँ =
बल्ले से िेंद तिकाि िे जाऊाँ । सीस ररपु = शत्रु के तसर पर । च िाि = िेंद मारिे का डं डा । हाि = कंप, हिचि ।
(7) अिमि = आिे ।साँकरे साथ = संकट की खस्थति में । समतद = तबदा िे कर । पुरुष = योद्धा । मतस = अं धकार ।
(8) िोई = िेंद । खेि = खेि में । काकरर = तकसकी । हाि करै = हिचि मचावै, मैदाि मारे । कूरी = धु स या टीिा तजसे िेंद को िाँ घािा
पडिा है । पैज = प्रतिज्ञा । अिकाढे = तबिा तिकािे ।
(9) हााँका = ििकारा । िोरा = िोरा सामं ि ; श्वेि । सोतहि = सुहैि, अिस्त्य िारा । डु ाँ िवै = टीिा या धु स्स । पीछे घाति..राजा = रत्नसेि
को पहाड या धु स्स के पीछे रखकर । सााँकरे = संकट में । तिबाहों = तिस्तार करू ाँ । बेंड = बेंडा, आडा ।
(10) दे व = दै त् । आदी = तबिकुि, पूरा । बादी = शत्रु । हरिािी = हरिाि की ििवार प्रतसद्ध थी । बािी = कां ति, चमक । िाजा = वज्
। इं दू = इं द्र । आइ ि बाज...तहं दू = कहीं तहं दू जािकर मु झ पर ि पडे । िोरै = िोरा िे । उठ िी = पहिा धावा । स्यो = साथ । कुाँड
=िोहे की टोपी जो िडाई में पहिी जािी है ।
(11) ओिवि = झुकिी और उमडिी हुई । िोहे = िोहे से । सूझ = तदखाई पडिी है । फोिाद = फ िाद । करतहं दु इ फााँके = चीरिा
चाहिे हैं । फााँके = टु कडे । जककाि = यम का खााँडा, एक प्रकार का खााँडा । भवााँ करतहं = घूमिे हैं । अपसवााँ चहतहं = चि दे िा चाहिे
हैं । सेि = बरछे । सरप = सााँ प । भुइाँ िे इ = तिर पडे सूर = शूि भािा ।
(12) बिमे ि = घोडो का बाि से बाि तमिाकर चििा, सवारों की पंखक्त का धावा । अधर धर मारै = धड या कबंध अधर में वार करिा है ।
कंध = धड । तिरारै = तबल्कुि, यहााँ से वहााँ िक ।भोिी = भोि-तविास करिे वािे सरदार थे । भारि = घोर युद्ध । कुाँवर = िोरा के साथी
राजपूि । तिबरे = समाप्त हुए ।
(13) िोरै = िोरा िे । करवारू = करवाि, ििवार । स्यो = साथ । टू टै = कट जािा है । तििारे = अिि । धू का = झुका । रुतहर = रुतधर
से । भभूका = अं िारे सा िाि । एतह हाथ करहु = इसे पकडो ।
(14) िूाँजि = िरजिा हुआ । टे का = पकडा । पितट तसंह...आवा = जहााँ से आिे बढिा है वहााँ पीछे हटकर िहीं आिा । बोिै बाहााँ (वह
मुाँ ह से िहीं बोििा है ) उसकी बाहें खडकिी हैं । िोरै = िोरा िे । जाज, जिदे ऊ = जाजा और जिदे व कोई ऐतिहातसक वीर जाि पडिे हैं
। तघतसयावा = घसीटे , तघतसयावे । रििसेि जो....िाि = रत्नसेि जो बााँधे िए इसका किं क िोरा के शरीर पर ििा हुआ है । रुतहर =
रुतहर से । राि = िाि, अथााि् किं क रतहि ।
(15) मीर हमजा = मीर हमजा मु हम्मद साहब के चचा थे तजिकी बीरिा की बहुि सी कखल्पि कहातियााँ पीछे से जोडी िईं । िाँ धउर =
िं ध रदे व िामक एक कखल्पि तहं दू राजा तजसे मीर हमजा िे जीि कर अपिा तमत्र बिाया था ; मीर हमजा के दास्ताि में यह बडे डीि-ड ि
का बडा भारी वीर कहा िया है । मदद.अिी = मािो इि सब वीरों की छाया उसके ऊपर थी । बर बााँधे = हठ या प्रतिज्ञा करके सामिे
आए । वादी = शत्रु । महामाि = कोई क्षतत्रय राजा या वीर । जेइ = तजसिे । सािार = शायद सािार मसऊद िाजी (िाजी तमयााँ) बररयारू
= बिवाि । हुमु तक = जोर से । काढे तस हुमु तक = सरजा िे जब भािा जोर से खींचा । खसी =तिरी ।
(16) सरजै = सरजा िे । जिु परा तिहाऊ = मािो तिहाई पर पडा (अथााि् सााँि को ि काट सका) डााँडा = दं ड या खंि । ओडि = ढाि
। कूाँड = िोहे का टोप । िुरुज = िुजा, िदा । कााँध िुरुज हुि = कंधे पर िुजा था (इससे) । िाति = मु ठ भेड या युद्ध में ।
(17) बररवंडा = बिवाि । सदू र = शादू ा ि । िस बाजा = ऐसा आघाि पडा । ठााँठर = ठठरी । तफरा संसारू = आाँ खों के सामिे संसार ि
रह िया । स्यो = सतहि । सुर पहुाँ चाया पाि = दे विाओं िे पाि का बीडा, अथााि् स्विा का तिमंत्रण तदया ।
बंधि-मोक्ष; पद्माविी-तमिि-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी

पदमावति मि रही जो झूरी। सुिि सरोवर-तहय िा पूरी ॥


अद्रा मतह-हुिास तजतम होई । सुख सोहाि आदर भा सोई ॥
ितिि िीक दि कीन्ह अाँ कूरू । तबिसा काँवि उवा जब सूरू ॥
पुरइति पूर साँवारे पािा । औ तसर आति धरा तबतध छािा ॥
िािेउ उदय होइ जस भोरा । रै ति िई, तदि कीन्ह अाँ जोरा ॥
अखस्त अखस्त कै पाई किा । आिे बिी कटक सब चिा ॥
दे खख चााँद पदतमति रािी । सखी कुमोद सबै तबिसािी ॥

िहि छूट तदतिअर कर, सतस स ं भएउ मे राव ।


माँ तदर तसंघासि साजा, बाजा ििर बधाव ॥1॥

तबहाँ तस चााँद दे इ मााँि सेंदूरू । आरति करै चिी जहाँ सूरू ॥


औ िोहि सतस िखि िराईं । तचिउर कै रािी जहाँ िाईं ॥
जिु बसंि ऋिु पिु ही छूटीं । की सावि महाँ भीर बहूटी ॥
भा अिं द, बाजा घि िूरू । जिि राि होइ चिा सेंदूरू ॥
डफ मृ दंि मं तदर बहु बाजे । इं द्र सबद सुति सबै सो िाजै ॥
राजा जहााँ सूर परिासा । पदमावति मु ख-काँवि तबिासा ॥
कवाँि पााँय सूरुज के परा । सूरुज कवाँि आति तसर धरा ॥

सेंदुर फूि िमोि स ,ं सखी सहे िी साथ ।


धति पूजे तपउ पायाँ दु इ, तपउ पूजा धति माथ ॥2॥

पूजा क ति दे उाँ िुम्ह राजा ? । सबै िुम्हार; आव मोतह िाजा ॥


िि मि जोबि आरति करऊाँ । जीव कातढ िे वछावरर धरऊाँ ॥
पंथ पूरर कै तदखस्ट तबछाव ं । िु म पि धरहु, सीस मैं िाव ं ॥
पायाँ तिहारि पिक ि मार ं । बरुिी सेंति चरि-रज झार ं ॥
तहय सो मं तदर िुम्हरै , िाहा । िै ि-पंथ पैठहु िेतह माहााँ ॥
बैठहु पाट छत्र िव फेरी । िुम्हरे िरब िरुइ मैं चेरी ॥
िुम तजउ, मैं िि ज ितह मया । कहै जो जीव करै स कया ॥

ज सूरज तसर ऊपर , ि रे काँवि तसर छाि ।


िातहं ि भरे सरोवर, सूखे पुरइि-पाि ॥3॥

परतस पाय राजा के रािी । पुति आरति बादि कहाँ आिी ॥


पूजे बादि के भुजदं डा । िुरय के पायाँ दाब कर-खंडा ॥
यह िजिवि िरब जो मोरा । िुम राखा, बादि औ िोरा ॥
सेंदुर-तििक जो आाँ कुस अहा । िुम राखा, माथे ि रहा ॥
काछ कातछ िुम तजउ पर खेिा । िुम तजउ आति माँ जूषा मे िा ॥
राखा छाि, चाँवर औधारा । राखा छु त्रघंट-झिकारा ॥
िुम हिु वि होइ धु जा पईठे । िब तचिउर तपय आय बईठे ॥

पुति जिमत्त चढावा, िे ि तबछाई खाट ।


बाजि िाजि राजा,आइ बैठ सुखपाट ॥4॥

तितस राजै रािी कंठ िाई । तपउ मरर तजया, िारर जिु पाई ॥
रति रति राजै दु ख उिसारा । तजयि जीउ ितहं होउाँ तििारा ॥
कतठि बंतद िुरुकन्ह िे इ िहा । ज साँवरा तजउ पेट ि रहा ॥
घाति तििड ओबरी िे इ मे िा । सााँकरर औ अाँ तधयार दु हेिा ॥
खि खि करतहं सडासन्ह आाँ का । औ तिति डोम छु आवतहं बााँका ॥
पाछे सााँ प रहतह चहुाँ पासा । भोजि सोइ, रहै भर सााँसा ॥
रााँध ि िहाँ वा दू सर कोई । ि जिों पवि पाति कस होई ॥

आस िुम्हारर तमिि कै, िब सो रहा तजउ पेट ।


िातहं ि होि तिरास ज ,तकि जीवि, तकि भेंट ? ॥5॥

िुम्ह तपउ ! आइ-परी अतस बेरा । अब दु ख सुिहु काँवि-धति केरा ॥


छोतड िएउ सरवर महाँ मोहीं । सरवर सूखख िएउ तबिु िोहीं ॥
केति जो करि हं स उतड ियऊ । तदतिअर तिपट सो बैरी भयऊ ॥
िईं ितज िहरैं पुरइति-पािा । मु इउाँ धू प, तसर रहे उ ि छािा ॥
भइउाँ मीि,िि ििफै िािा । तबरह आइ बैठा होइ कािा ॥
काि चोंच, िस सािै , िाहा । जब बंतद िोरर साि तहय माहााँ ॥
कहों`काि! अब िहाँ िे इ जाही । जहाँ वा तपउ दे खै मोतहं खाही' ॥

काि औ तिद्ध ि खंडतहं , का मारहं , बहु मं तद ?।


एतह पतछिावै सुतठ मु इउाँ , िइउाँ ि तपउ साँि बंतद ॥6॥

िेतह ऊपर का कह ं जो मारी । तबषम पहार परा दु ख भारी ॥


दू िी एक दे वपाि पठाई । बाह्मति-भेस छरै मोतहं आई ॥
कहै िोरर ह ं आहुाँ सहे िी । चति िे इ जाउाँ भाँवर जहाँ , बेिी !॥
िब मैं ज्ञाि कीन्ह, सि बााँधा । ओतह कर बोि िाि तबष-सााँधा ॥
कहूाँ काँवि ितहं करि अहे रा । चाहै भाँवर करै सै फेरा ॥
पााँच भूि आिमा िे वाररउाँ । बारतहं बार तफरि मि माररउाँ ॥
रोइ बुझाइउाँ आपि तहयरा । कंि ि दू र, अहै सुतठ तियरा ॥

फूि बास, तघउ छीर जेउाँ तियर तमिे एक ठाइाँ ।


िस कंिा घट-घर कै तजइउाँ अतिति कहाँ खाइाँ ॥7॥

(1) झूरी रही = सूख रही थी । अखस्त, अखस्त = वाहवाह । तदतिअर = तदिकर, सूया ।
(3) आरति = आरिी । पूरर कै = भरकर । सेंति = से । िुम्हरै = िुम्हारा ही । िरुइ = िरुई, ि रवमयी । छाि = छत्र (कमि के बीच छत्ता
होिा भी है )
(4) िुरयके....कर खंडा = बादि के घोडे के पैर भी दाबे अपिे हाथ से । सेंदुर तििक ...अहा = सींदू र की रे खा जो मु झ िजिातमिी के
तसर पर अं कुश के समाि है अथााि् मु झ पर दाब रखिे वािे मे रे स्वामी का (अथााि् स भाग्य का) सूचक है । िुम तजउ...मे िा िुमिे मे रे
शरीर में प्राण डािे । औधारा = ढारा । छु द्रघं ट = घुाँघरूदार करधिी । िे ि = रे शमी चादर; जैसे, ओढे िे ि तपछ रा -िीि ।
(5) रति रति = रत्ती रत्ती, थोडा थोडा करके सब । उिसारा = तिकािा, खोिा, प्रकट तकया । तििड = बेडी । ओबरी = िंि कोठरी । आाँ का
करतह = दािा करिे थे । बााँका = हाँ तसए की िरह झुका हुआ टे ढा औजार तजससे घरकार बााँस छीििे हैं । भोजि सोइ...सााँ सा = भोजि
इििा ही तमििा था तजििे से सााँस या प्राण बिा रहे । रााँध = पास, समीप ।
(6) िुम्ह तपउ...बेरा = िुम पर िो ऐसा समय पडा । ि खंडतहं = िहीं खािे थे, िहीं चबािे थे । का मारतहं , बहु मं तद = वे मु झे क्या मारिे,
मैं बहुि क्षीण हो रही थी ।
(7) मारी = मार, चोट । सााँधा = सिा, तमिा । कहूाँ काँवि...सै फेरा = चाहै भ रं ा (पुरुष) स जिह फेरे ििाए पर कमि (स्त्री) दू सरों को
फाँसािे िहीं जािा ।पााँच भूि...माररउाँ = तफर योतििी बिकर उस योतििी के साथ जािे की इच्छा हुई पर अपिे शरीर और आत्मा को घर
बैठे ही वश तकया और योतििी होकर िार-िार तफरिे की इच्छा को रोका । जेउाँ = ज्यों, तजस प्रकार । फुि बास...खाइ = जैसे फि में
महाँ क और दु ध में घी तमिा रहिा है वैसे ही अपिे शरीर में िुम्हें तमिा समझकर इििा संिाप सहकर मैं जीिी रही ।
रत्नसेि-दे वपाि-युद्ध-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी
सुति दे वपाि राय कर चािू । राजतह कतठि परा तहय सािू ॥
दादु र किहुाँ काँवि कहाँ पेखा । िादु र मु ख ि सूर कर दे खा ॥
अपिे राँ ि जस िाच मयूरू । िेतह सरर साध करै िमचूरू ॥
जों िति आइ िुरुक िढ बाजा । ि िति धरर आि ं ि राजा ॥
िींद ि िीन्ह, रै ति सब जािा । होि तबहाि जाइ िढ िािा ॥
कुंभििेर अिम िड बााँका । तबषम पंथ चतढ जाइ ि झााँका ॥
राजतह िहााँ िएउ िे इ कािू । होइ सामु हाँ रोपा दे वपािू ॥

दु व अिी सिमु ख भइाँ , िोहा भएउ असूझ ।


सत्र जूतझ िब िे वरै , एक दु व महाँ जूझ ॥1॥

ज दे वपाि राव रि िाजा । मोतह िोतह जू झ एक झा, राजा !॥


मे िेतस सााँि आइ तबष-भरी । मे तट ि जाइ काि कै घरी ॥
आइ िातभ पर सााँि बईठी । िातभ बेतध तिकसी सो पीठी ॥
चिा मारर,िब राजै मारा । टू ट कंध, धड भएउ तििारा ॥
सीस कातट कै बैरी बााँधा । पावा दााँव बैर जस साधा ॥
तजयि तफरा आएउ बि-भरा । मााँझ बाट होइ िोहै धरा ॥
कारी घाव जाइ ितहं डोिा । रही जीभ जम िही, को बोिा ?॥

सुतध बुतध ि सब तबसरी, भार परा मझ बाट ।


हखस्त घोर को काकर ? घर आिी िइ खाट ॥2॥

(1) पेखा = दे खिा है । िादु र = चमिादर । सूर = सूया । सरर =बराबरी । िोहा भएउ = युद्ध हुआ । िे वरे = समाप्त हो, तिबटे ।
(2) एक झा = अकेिे , िं ियुद्ध । चिा मारर...मारा =वह भािा मारकर चिा जािा था िब राजा रत्नसेि िे तफरकर उसपर भी वार तकया ।
बैरी = शत्रु दे वपाि को मााँझ बाट...धरा = आधे रास्ते पहुाँ चकर हतथयार छोड तदया । कारी = िहरा, भारी । भार परा माँ झ बाट = बोझ की
िरह राजा रत्नसेि बीच रास्ते में तिर पडे ।
राजा-रत्न-सेि-वैकुंठवास-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी

ि िही सााँस पे ट महाँ अही । ज ितह दसा जीउ कै रही ॥


काि आइ दे खराई सााँटी । उठी तजउ चिा छोतडं कै माटी ॥
काकर िोि, कुटुाँ ब, घर बारू । काकर अरथ दरब संसारू ॥
ओही घरी सब भएउ परावा । आपि सोइ जो परसा, खावा ॥
अहे जे तहिू साथ के िे िी । सबै िाि काढै िेतह बेिी ॥
हाथ झारर जस चिै जुवारी । िजा राज, होइ चिा तभखारी ॥
जब हुि जीउ, रिि सब कहा । भा तबिु जीउ, ि क डी िहा ॥

िढ स पं ा बादि कहाँ िए तटकतठ बतस दे व ।


छोडी राम अजोध्या, जो भावै सो िे व ॥1॥

(1) सााँटी = छडी । आपि सोइ...खावा = अपिा वही हुआ जो खाया और दू सरे को खखिाया । िे िी = पािे वािे । हुि = था । तटकतठ =
तटकठी, अरथी तजसपर मु रदा िे जािे हैं । दे व = राजा । जो भावै सो िे व = जो चाहे सो िे ।
पद्माविी-िािमिी-सिी-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी

पदमावति पुति पतहरर पटोरी । चिी साथ तपउ के होइ जोरी ॥


सूरुज छपा, रै ति होइ िई । पूिो-सतस सो अमावस भई ॥
छोरे केस, मोति िर छूटीं । जािहुाँ रै ति िखि सब टू टीं ॥
सेंदुर परा जो सीस अघारा । आति िाति चह जि अाँ तधयारा ॥
यही तदवस ह ं चाहति, िाहा । चि ं साथ, तपउ ! दे इ ििबाहााँ ॥
सारस पंखख ि तजयै तििारे । ह ं िुम्ह तबिु का तजऔं, तपयारे ॥
िे वछावरर कै िि छहराव ं । छार होउाँ साँि, बहुरर ि आव ं ॥

दीपक प्रीति पिाँि जेउाँ जिम तिबाह करे उाँ ।


िे वछावरर चहुाँ पास होइ कंठ िाति तजउ दे उाँ ॥1॥

िािमिी पदमावति रािी । दु व महा सि सिी बखािी ॥


दु व सवति चतढ खाट बईठी ं । औ तसविोक परा तिन्ह दीठी ॥
बैठ कोइ राज औ पाटा । अं ि सबै बैठे पुति खाटा ॥
चंदि अिर काठ सर साजा । औ िति दे इ चिे िे इ राजा ॥
बाजि बाजतहं होइ अिूिा । दु व कंि िे इ चाहतहं सूिा ॥
एक जो बाजा भएउ तबयाहू । अब दु सरे होइ ओर-तिबाहू ॥
तजयि जो जरै कंि के आसा । मु एाँ रहतस बैठे एक पासा ॥

आजु सूर तदि अथवा, आजु रे ति सतस बूड ।


आजु िातच तजउ दीतजय, आजु आति हम्ह जूड ॥2॥

.सर रतच दाि पुतन्न बहु कीन्हा । साि बार तफरर भााँवरर िीन्हा ॥
एक जो भााँवरर भईं तबयाही । अब दु सरे होइ िोहि जाहीं ॥
तजयि, कंि ! िुम हम्ह िर िाई । मु ए कंठ ितहं छोडाँ तहं ,साईं !
औ जो िााँतठ, कंि ! िुम्ह जोरी । आतद अं ि ितह जाइ ि छोरी ।
यह जि काह जो अछतह ि आथी । हम िुम, िाह ! दु हुाँ जि साथी ॥
िे इ सर ऊपर खाट तबछाई । प ढ ं ी दु व कंि िर िाई ॥
िािी ं कंठ आति दे इ होरी । छार भईं जरर, अं ि ि मोरी ॥

रािीं तपउ के िे ह िइाँ , सरि भएउ रििार ।


जो रे उवा , सो अथवा; रहा ि कोइ संसार ॥3॥

वै सहिवि भईं जब जाई । बादसाह िड छें का आई ॥


ि िति सो अवसर होइ बीिा । भए अिोप राम औ सीिा ॥
आइ साह जो सुिा अखारा । होइिा राति तदवस उतजयारा ॥
छार उठाइ िीन्ह एक मू ठी । दीन्ह उडाइ, तपरतथमी झूठी ॥
सिररउ कटक उठाई माटी । पु ि बााँधा जहाँ जहाँ िढ-घाटी ॥
ज ितह ऊपर छार ि परै । ि ितह यह तिस्ना ितहं मरै ॥
भा धावा, भइ जूझ असूझा । बादि आइ पाँवरर पर जूझा ॥

ज हर भइ सब इस्तरी, पुरुष भए संग्राम ।


बादसाह िढ चूरा, तचिउर भा इसिाम ॥4॥

(1) आति िाति ...अाँ तधयार = कािे बािों के बीच िाि तसंदूर मािो यह सूतचि करिा था तक अाँ धेरे संसार में आि ििा चाहिी है ।छहराऊाँ
=तछिराऊाँ ।
(2) महासि = सत् में तिन्ह दीतठ परा = उन्हें तदखाई पडा । बै ठी चाहे बैठे । खाटा = अथी, तटकठी । अिूिा होइ = आिे होकर । सूिा
चहतहं = सोिा चाहिी हैं । बाजा = बाजे से । ओर तिबाहू = अं ि का तिवााह । रहतस = प्रसन्न होकर । बूड = डूबा । हम्ह = हमें हमारे
तिये । जूड = ठं ढी ।
(3) सर = तचिा । िोहि =साथ । हम्ह िर िाई = हमें ििे ििाया । अं ि ितह = अं ि िक । अछतह = है । आथी = सार; पूाँजी, अखस्तत्व ।
अछतह ि आथी । जो खस्थर या सारवाि् िहीं रििार = िाि, प्रेममय या आभापूणा
(4) सहिवि भईं = पति के साथ सहिमि तकया, सिी हुई । ि िति...बीिा = िब िक िो वहााँ सब कुछ हो चुका था । अखारा = अखाडे
। या सभा में ,दरबार में । िढ घाटी = िढ की खाईं । पुि बााँधा...घाटी = सिी खस्त्रयों एक मु ट्ठी राख इििी हो िई तक उसिे जिह जिह
खाईं पट िई और पुि सा बाँध िया । ज ितह = जबिक । तिस्ना = िृष्णा । ज हर भइाँ = राजपूि प्रथा के अिु सार जि मरीं । संग्राम भए
= खेि रहे , िडकर मरे । तचिउर भा इसिाम = तचत्त रिढ में भी मु सिमािी अमिदारी हो िई ।
उपसंहार / मतिक मोहम्मद जायसी

मैं एतह अरथ पंतडिन्ह बूझा । कहा तक हम्ह तकछु और ि सूझा ॥


च दह भुवि जो िर उपराहीं । िे सब मािु ष के घट माहीं ॥
िि तचिउर, मि राजा कीन्हा । तहय तसंघि, बुतध पदतमति चीन्हा ॥
िुरू सुआ जेइ पंथ दे खावा । तबिु िुरु जिि को तिरिुि पावा ?॥
िािमिी यह दु तिया-धंधा । बााँचा सोइ ि एतह तचि बंधा ॥
राघव दू ि सोई सैिािू । माया अिाउदीं सुििािू ॥
प्रेम-कथा एतह भााँति तबचारहु । बूतझ िे हु ज बूझै पारहु ॥

िुरकी, अरबी, तहं दुई, भाषा जिी आतहं ।


जेतह महाँ मारि प्रेम कर सबै सराहैं िातह ॥1॥

मु हमद कतब यह जोरर सुिावा । सुिा सो पीर प्रेम कर पावा ॥


जोरी िाइ रकि कै िे ई । िातढ प्रीति ियिन्ह जि भेई ॥
औ मैं जाति िीि अस कीन्हा । मकु यह रहै जिि महाँ चीन्हा ॥
कहााँ सो रििसेि अब राजा ?। कहााँ सुआ अस बुतध उपराजा ?॥
कहााँ अिाउदीि सुििािू ?। कहाँ राघव जेइ कीन्ह बखािू ?॥
कहाँ सुरूप पदमावति रािी?। कोइ ि रहा, जि रही कहािी ॥
धति सोई जस कीरति जासू । फूि मरै , पै मरै ि बासू ॥

केइ ि जिि बेंचा, कइ ि िीन्ह जस मोि ?


जो यह पढै कहािी हम्ह साँवरै दु इ बोि ॥2॥

मु हमद तबररध बैस जो भई । जोबि हुि, सो अवस्था िई ॥


बि जो िएउ कै खीि सरीरू । दीखस्ट िई िै ितहं दे इ िीरू ॥
दसि िए कै पचा कपोिा । बैि िए अिरुच दे इ बोिा ॥
बुतध जो िई दे ई तहय बोराई । िरब िएउ िरहुाँ ि तसर िाई ॥
सरवि िए ऊाँच जो सुिा । स्याही िई, सीस भा धु िा ॥
भवाँर िए केसतह दे इ भूवा । जोबि िएउ जीति िे इ जूवा ॥
ज ितह जीवि जोबि-साथा । पु ति सो मीचु पराए हाथा ॥

तबररध जो सीस डोिावै, सीस धु िै िेतह रीस ।


बूढी आऊ होहु िुम्ह, केइ यह दीन्ह असीस ? ॥3॥

(1) एतह = इसका । पं तडिन्ह = पंतडिों से । कहा...सूझा =उन्होंिे कहा, हमे िो तसवा इसके और कुछ िहीं सूझिा है तक । ऊपराहीं =
ऊपर । तिरिुि = ब्रह्म, ईश्वर ।
(2) जोरी िाइ .....भेई = इस कतविा को मैं िे रक्त की िे ई ििा कर जोडा है और िाढी प्रीति को आाँ सुओं से तभिो-तभिोकर िीिा तकया
है । चीन्हा = तचह्न, तिशाि । उपराजा = उत्पन्न तकया । अब बुतध उपराजा = तजसिे राजा रत्नसे ि के मि में ऐसी बुखद्ध उत्पन्न की । केइ ि
जिि जस बेचा = तकसिे इस संसार में थोडे के तिये अपिा यश िहीं खोया? अथााि् ऐसे बहुि से िोि ऐसे हैं । हम्ह साँवरे = हमें याद
करे िा । दु इ बोि = दो शब्दों में ।
(3) पचा = तपचका हुआ । अिरुच = अरुतचकर । बोराई = बाविापि । िरहुाँ ि = िीचे की ओर । धु िा = धु िी रूई । भुवा = कााँस के फूि
। ज ितह हाथा = कतव कहिा है तक जबिक तजंदिी रहे जवािी के साथ रहे , तफर जब दू सरे का आतश्रि होिा पडे िब िो मरिा ही अच्छा
है । रीस = ररस या क्रोध से । केइ.....असीस तकसिे व्यथा ऐसा आशीवााद तदया ?

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