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अग्निसंकल्प

राष्ट्रभग्नि और धर्मरक्षा के ग्निए प्रेररत करती


कग्निताओं का संग्रह
अग्निसंकल्प
कॉपीराइट © २०१६ अग्नििीर

सिामग्नधकार सुरग्नक्षत। इस पुस्तक को सम्पूर्म या आंग्निक रूप से प्रकािक


की पूिम र्ें ग्निग्नित अनुर्ग्नत के ग्निना इिेक्ट्रॉग्ननक या याग्नरिक या
ग्निग्नित या प्रग्नतग्निग्नप के द्वारा या ररकार्डिंग से या अरय ककसी भी
र्ाध्यर् से और ककसी भी स्िरुप र्ें संग्रग्नहत या प्रसाररत नहीं ककया जा
सके गा।

यह पुस्तक प्रस्तुत ग्निषय िस्तु की प्रार्ाग्नर्क और अग्नधकृ त जानकारी


देने के ग्निए िनाई गई है।

जानकारी के ग्निए संपकम करें


books@agniveer.com

पुस्तक आकार एिं संयोजन – रोनक ग्नििेदी

प्रथर् संस्करर् : एग्नप्रि २०१६


अग्निसंकल्प
राष्ट्रभग्नि और धर्मरक्षा के ग्निए प्रेररत करती
कग्निताओं का संग्रह

: िेिक :

िाग्नि िर्ाम
भूग्नर्का

नियुिाओं र्ें र्ातृभूग्नर् के प्रग्नत आदर और सम्र्ान, र्न र्ें राष्ट्रभग्नि की


भािना, और धर्मरक्षा के ग्निए अपने जीिन को िपा देने का भाि पैदा
करने के प्रयास हेतु “अग्निसंकल्प” नार्क यह छोटी सी पुस्तक की रचना
की गई है।
आिा है यह कग्निताएँ युिाओं र्ें राष्ट्रिाद की निचेतना का ग्ननर्ामर्
करने र्ें योगदान देंगी।

। िरदे र्ातरर्् ।

िाग्नि िर्ाम
२२ एग्नप्रि २०१६, राजस्थान
ग्निषय सूची
भूग्नर्का
फू ि नहीं धधकता अंगार हँ ..................................................... १
आयों को सरदेि ................................................................... २
अग्नि संकल्प........................................................................ ४
धधक धधक हे सत्य की अग्नि ................................................... ६
प्रयार् ............................................................................... ८
र्ातृभूग्नर् ......................................................................... १०
र्ादर ए ितन ................................................................... १२
ध्िजा ओर् की .................................................................. १४
हकीकत राय का अर्र िग्निदान ............................................. १६
र्हारार्ा प्रताप ................................................................ २०
िचपन और जिानी ............................................................ २५
दुग्ननया और र्ैं ................................................................... २७
भाई तू क्ट्यों नहीं आया ? ..................................................... २८
र्ाँ ................................................................................. ३०
िेिक पररचय ................................................................... ३३
अग्नििीर - संग्नक्षप्त पररचय .................................................... ३४
फू ि नहीं धधकता अंगार हँ
फू ि नहीं धधकता अंगार हँ र्ैं ।
थके स्िाग्नभर्ान को झकझोरती ििकार हँ र्ैं ।।

सोई भारत की िषों से अरतरात्र्ा ।


निजागरर् की पुकार हँ र्ैं ।।

ग़ुिार्ी िस चु्की है खून र्ें ।


पर क्ांग्नत की टंकार हँ र्ैं ।।

सर अि हर्ारा कभी न झुकेगा ।


ग्निजयर्ािा का िृंगार हँ र्ैं ।।

भस्र् होगी सि दासता र्ानस की ।


सच्चे स्िाधीनता की चचंगार हँ र्ैं ।।

िुझेगा न ये दीपक चाहे ककतना जोर िगा िो ।


हर आँधी तूफान की िेिस हार हँ र्ैं ।।

अग्निर्य हँ अग्निरूप हँ अग्नि का उपासक हँ ।


अग्नि र्ेरी आत्र्ा सत्याग्नि का ही ग्निस्तार हँ र्ैं ।।


आयों को सरदेि
देिभि आयों को अग्नििीर का सरदेि

आयम! उठ कफर भाग्य की उगती उषा के रं ग हैं ।


एक कौतुक है कक ग्नजस से देि दानि दंग हैं ।।

िीि पर तेरे सजाने को सुनहरा ताज है ।


हो रहे अग्नभषेक के तेरे सजीिे साज हैं ।।

कदग्नग्िजय का गीत गाने को कदिाएं हैं अधीर ।


कीर्तम का कािि उडाने को हिाएं हैं अधीर ।।

सभ्यता डायन िनी है, राज्य है रािर् िना ।


क्ू र कौतुक है कक कृ ष्र्ा-कारत दुिासन िना ।।

क्ट्िीि क्ट्यों अजुमन! िडा है? घोर रर्चंडी जगा ।


ििु दि के कदि ग्नहिें, टंकार कर गांडीि का ।।

क्ू रता पर कं स की कफर कृ ष्र् िन कर िार कर ।


िीि रािर् का उडा, िेडा ग्नसया का पार कर ।।


आयों को सरदेि

आज क्ट्यों िंका अग्नधक प्यारी ग्नसया से है तुझे?


देिता क्ट्या है? पिन सुत! पाप का गढ़ फूँ क दे ।।

रार् िनना है तुझ,े घर से ग्ननकि िनिास िे ।


िे! अभी िंका ग्निजय होती तुझे है रास िे ।।

है डरा जाता िृथा क्ट्यों? चसंह के सर पर दहाड ।


िाघ की र्ूछें पकड, दुष्यंत सुत! चहंसक पछाड ।।

गजम से तेरी हृदय संसार के जाएँ दहि ।


प्रेर् की तानें उडा, पाषार् तक जाएँ ग्नपघि ।।

गजम से गंभीर सागर की उर्डती ठाठ हो ।


प्रेर् का कफर से झकोरों र्ें पिन के पाठ हो ।।

- पंग्नडत चर्ूपग्नत


अग्नि संकल्प
कह गया अभी र्न र्ें कोई, सरदेि तुम्हे हर् देते हैं ।
इस घोर युद्ध की िेिा र्ें उदघोष तुम्हे हर् देते हैं ।।

हो भीड उधर और छीड इधर तो चचंता कभी नहीं करना ।


तुर् गरजो चसंहों के सर्ान, रर् िीच कभी ना तुर् डरना ।।

तुर् एक अके िे िडे हुए हो ग्नघरे ििु की सेना से ।


पर चककत करो िैरी दि को अपने भीषर् िि पौरुष से ।।

अंत तो ये ही होगा कक िि ग्नगरा पडा होगा ककसी छोर ।


अग्नि भस्र् कर ग्नििरा देगी इस तन को जाने ककस ओर ।।

पर अग्नि की जाज्िल्यर्ान िपटें इतना कर जायेंगी ।


था कोई हृदय से र्स्ताना, दुग्ननया को कदििा जायेंगी ।।

कु छ घने सयाने नीग्नत की कु छ िात िना कर जायेंगे ।


कु छ होंगे प्रिंसा हाथ ग्निए, कु छ चनंदा कर के जायेंगे ।।


अग्नि संकल्प

पर दूर कहीं इक कोने र्ें हँसता रोता र्ैं होऊंगा ।


कफर कहीं ककसी र्ाता की छाया र्ें चिता िढ़ता हँगा ।।
याद करूँगा जि अतीत, िग्निदान िीच रर् कदया हुआ ।
पाऊंगा र्ुि को तेजस्िी, अग्नि सर् कफर से तपा हुआ ।।

पर कफर से याद िो आएगा जो युद्ध अभी अपराग्नजत है ।


ग्नजस सत्य पे अंग कटाए थे िो सत्य अभी अप्रकाग्नित है ।।

तो िेता हँ संकल्प कक जि तक ििु सैरय ग्निध्िंस न हो ।


ग्निश्रार् नहीं िेना ति तक जि तक कक पूर्म ग्निजय न हो ।।


धधक धधक हे सत्य की अग्नि
धधक धधक हे सत्य की अग्नि, पापाचार स्िाहा कर दे ।
िजी रर्भेरी धर्मयुद्ध की, नस-नस र्ें चचंगारी भर दे ।।

िो चचंगारी उठे सुिग जि, प्रकटे िैकदक धर्म की ज्िािा ।


आयमिीर ग्नभडे पाप, तर्स से, सकि ग्निश्व होिे उग्नजयािा ।।

हँसते-हँसते राष्ट्रदेि के , चरर्ों र्ें र्स्तक धर दे ।


प्रचंड पौरुष से आयों के ,हो जाए जगती दीग्नप्तर्ान ।।

सार्िेद की पािन ऋचाएं, घर-घर हो गुंजायर्ान ।


ऋग्नषओं के युग को िे आये, जगत ग्नपता ऐसा िर दे ।।

परर् िैभि को राष्ट्र प्राप्त हो, सरर्ागम चुने र्ानि जाग्नत ।


‘इदं न र्र्’ का िैकदक दिमन, स्र्रर् रहे पुरिो की थाती ।।

सुि-दुुःि र्ें ना ईि ग्निसारें , िह िैया दे अथिा िर दे ।


ग्ननकिे सत्याग्नि के साधक, िैकदक धर्म की ज्योत जगाने ।।


धधक धधक हे सत्य की अग्नि

त्याग कदए सि ग्निषय आकषमर्, अग्नििीर चिे धर्म िचाने ।


धरा का आँचि इनकी िैया, छत ग्नसर पर इरहें अम्िर दे ।।
धधक धधक हे सत्य की अग्नि, पापाचार स्िाहा कर दे ।
िजी रर्भेरी धर्मयुद्ध की, नस-नस र्ें चचंगारी भर दे ।।

- आयमिीर िैकदक


प्रयार्
अग्नििीर का सोते चसंहों को प्रयार् सरदेि

करना है प्रयार् र्ुझे अभी युद्ध क्षेि को ।


है ििु जहाँ युद्ध की है दुरदुभी िजा रहा ।।

कर भेग्नडए इकट्ठे िढ़ा चिा है भीड र्ें ।


कदिा के सैरय भेग्नडयों का चसंह को डरा रहा ।।

कहता है सिमश्रेष्ठ हँ कक सैरय है िढ़ा हुआ ।


हैं िाि र्ेरी तरफ अके िा तू िडा हुआ ।।

है सूचना इसे क्ट्या चसंह एक हो तो क्ट्या ।


घातक है िाि भेग्नडयों से चसंह सोया हुआ ।।

घसीटेंगे तेरे सैरय से तुझको ही धरा पर ।


तू चढ़ जा आसर्ान र्ें आ जा या जर्ीं पर ।।

झुंडों से ग्नघरा काँपेगा करता हुआ थरथर ।


ग्नजस कदन दहाडेंगे हर् इस नींद से उठ कर ।।

कहना है आज हर ककसी िैरी से ये हर्ें ।


प्रयार्

ये धर्म चसंहों का है जो है प्रार् सर् हर्ें ।।

देिा जो इसकी ओर यकद ग्नगद्ध दृग्नि से ।


टुकडों र्ें ग्नगना जाएगा इग्नतहास पृष्ठों र्ें ।।

रार्ा नहीं तो रार्ा का भािा तो अभी है ।


कटार म्यान र्ें हैं पर पानी तो अभी है ।।

अि तक तो हो गया जो होना था अनाचार ।


आरम्भ है ये युद्ध का प्रग्नतिोध अभी है ।।

जागो अभी! सुनो र्ेरे सोते हुए चसंहों ।


र्ैं जा रहा हँ रर् को ग्नर्ि पाऊं ना कहीं ।।

उठ जाओ दहाडो और अम्िर को गुंजा दो ।


सिसे ही ये गूंजेगा ककसी एक से नहीं ।।


र्ातृभग्नू र्
िन िून दौडे तन र्ें ग्नजस देि की ग्नर्ट्टी ।
उसके ग्निए प्रार्ों से ज्यादा प्यार पैदा कर ।।

न हो कभी चहंसा यहाँ न हो गर्ो गुस्सा ।


हर दूसरा अपना है ये जज्िात पैदा कर ।।

अंतर नहीं हो तेरी कथनी और करनी र्ें ।


कदि र्ें जिाँ र्ें जो है िो कर्म पैदा कर ।।

हक छीनना दूजे का तेरा हो नहीं पेिा ।


र्जिूर् को हक दे सके िो जान पैदा कर ।।

इज्जत दे औरत को र्ुक़द्दस है िो जहां र्ें ।


कर रक्षा उसकी अपनी र्ाँ की िान पैदा कर ।।

कदि साफ हो तेरा चर्कते कांच के जैसा ।


रूहों र्ें पाकीजा हो ऐसा नार् पैदा कर ।।

सच्चाइयों की राहों का ही तू हो र्ुसाकफर ।


दफन हो झूठ सत्य का तूफान पैदा कर ।।

१०
र्ातृभूग्नर्

इंसाग्ननयत को दे कु दरती इल्र् के तोहफे ।


स्िदेि का दुग्ननया र्ें ऐसा र्ान पैदा कर ।।
दुश्र्न की गोिी के ग्निए फौिाद से सीने ।
चीरे जो जाग्निर्ों को िो हुंकार पैदा कर ।।

दुश्र्न को जाकर के दे पैगार् ए दोस्ती ।


तू प्रेर् की िीर्ा से ये झंकार पैदा कर ।।

अल्िाह है जो र्ौजूद कािा िरीफ र्ें ।


कािी र्ें भी िही है िही है अयोध्या र्ें ।।

भगिान है र्ौजूद हर जरे र्ें इसके ।


ककििा हो यही र्ुल्क िो ईर्ान पैदा कर ।।

अरिों को ज्यों प्यारा अरि ईरानी को ईरान ।


िैसे ही चहंकदयों तुम्हें प्यारा हो ग्नहरदुस्तान ।।

११
र्ादर ए ितन
र्ादर ए ितन से हर्को र्ोहब्ित है िेपनाह ।
िनाम चिती तेग पर सीना अडा देता है कौन ?

िहुत गौरी गजनी आये थे सिार पैगार् ए सैफ ।


देिने आये थे चहंदी तेग चर्काता है कौन ?

िून के दरया थे हर सू िह रहे सरचहंद र्ें ।


र्ाँ थी रोती अरिी िाग्नति को फना करता है कौन ?

खाक करते थे िुतों को पैरों से िो िुतग्निकन ।


होड सी थी हिम को ईर्ान कर देता है कौन ?

कफर कोई रार्ा ग्नििा तो कोई िैरागी उठा ।


गरजा चहंदी धरती पे तकिीर गुंजाता है कौन ?

है अभी तक हल्दीघाटी की कफजा र्ें गूंजता ।


जंग र्ें रार्ा के भािे से जो टकराता है कौन ?

पूछती हैं अि तिक भी अफजिों की चीि ये ।


घर र्ें आकर चीरने िािा ग्नििा आग्निर है कौन ?

१२
र्ादर ए ितन

अिफाक ग्निग्नस्र्ि नार् थे दहित के गोरों के ग्निए ।


िाि के आजाद की नजदीक जा सकता है कौन ?

ख़्िाि र्ें भी कौन हो सकता है सािरकर सा िीर ।


चिती कश्ती से सर्ंदर कू द कर जाता है कौन ?

हर् थे नादाँ गा रहे अि तक तराने गैरों के ।


छोड के अपनों के ककस्से गैर को गाता है कौन ?

हर् हैं गाते ये तराने- आजादी िड्गों ग्निना ।


देिना है िड्ग िहीदी सीने से िगाता है कौन ?

कु छ दीिानापन सा हर्को भी हुआ है अि सिार ।


देिना है िंसी रि रर् िंि िजिाता है कौन?

१३
ध्िजा ओर् की
पूरे संसार को श्रेष्ठ िनाने का संकल्प । व्यथम के जाग्नत िंधन तोड कर
र्ानि र्ाि को एक करने का संकल्प ।

िीरों की उठती उर्ंग िन


सागर की र्चिी तरं ग िन
अर्र फाग का कदव्य रं ग िन
िहरा िहरा ध्िजा ओर् की !

प्रेर् पिन के र्धुर झकोरे


स्नेह सुधा के सुभग ग्नहिोरे
टंकारे के िानक गोरे
आ कफर िन जा ध्िजा ओर् की !

र्ोिी की टंकार गुंजा कफर


ग्निश्व ग्निजय का तार ग्नहिा कफर
िह िैरी से प्यार कदिा कफर
चहुँ कदि चर्का ध्िजा ओर् की !

जय जय जय पािण्ड िंडनी
जय जय जय दुश्चररत दंडनी
जय जय जय सद्धर्म र्ंडनी
दुिहर सुिदा ध्िजा ओर् की !

१४
ध्िजा ओर् की

कफर ऋग्नषयों के सार् गान हों


र्नुज र्ाि के िेद प्रार् हों
जीि जात िांधि सर्ान हों
ऐसा युग िा ध्िजा ओर् की !

ओर् ओर् का कर उच्चारर्


ग्ननि कदन करती जा प्रभु पूजन
अग्निरत चचंतन अग्निरत ग्नसर्रर्
यह रस िरसा ध्िजा ओर् की !

ककस दीपक की ज्िािा है तू


ककस उर की र्ग्नर्र्ािा है तू
उतरी ज्यों सुर िािा है तू
ग्नगरी ग्ननि िोभा ध्िजा ओर् की !

हर् सि तुझ पर प्रार् िार दें


जननी पर जी जान िार दें
सुि संपत सम्र्ान िार दें
यह िर दे जा ध्िजा ओर् की !

- पंग्नडत चर्ूपग्नत

१५
हकीकत राय का अर्र िग्निदान
हजारों आिाजें एक साथ उठ रही थीं- अपना धर्म छोड दे । पर िेर
अकम्प िडा था । र्ाता की आँि र्ें आंसू थे । उसने र्ाँ के आंसू पोंछे ।
जल्िाद के आगे सर तान ग्निया, अगिे ही पि िो पािन सर र्ातृभूग्नर्
की गोद र्ें था । िािक र्र चुका था पर धर्म जी उठा था । ये था
हकीकत राय का अर्र िग्निदान ।

ककतना भी दुुःि हो िोक तुर् नहीं करना ।


है कृ ष्र् का सरदेि िोक र्त करना ।।

याद आये जि कदि र्ें अपने दुिों की ।


तुर् याद कोई िग्निदान कर िेना ।।

चौदह साि का िािक एक हकीकत था ।


जंजीरों र्ें जकडा िडा दरिार र्ें था ।।

काजी ने पूछा क्ट्या है ईर्ान क़ु िूि ?


रहना है ग्नजरदा तुझको या र्रना है क़ु िूि ?

उसने चेहरा उठा के देिा काजी की तरफ ।


सिकी नजरें थीं उठीं िेककन िािक की तरफ ।।

१६
हकीकत राय का अर्र िग्निदान

स्याने सि कह रहे थे कर िे ईर्ान क़ु िूि ।


िोर सि ओर से होता था कर ईर्ान क़ु िूि ।।

नर् आँिों से एक िार िस र्ाँ को देिा ।


उन आँिों र्ें आंसू का सर्ंदर देिा ।।

एक हाथ से था पोंछता र्ाँ के आंसू ।


दूजे हाथ से था पोंछता अपने आंसू ।।

ग्नहि गए ये नजारा देि पत्थर भी ।


रुक रुक के देिने िगे पररं दे भी ।।

इतने र्ें अचानक एक िोर हुआ ।


तकिीर का नारा कफर िुिंद हुआ ।।

काजी ने कहा कफर से- है ईर्ान क़ु िूि ?


भीड से िोर उठा- कर िे ईर्ान क़ु िूि ।।

इतने र्ें हकीकत गरजा सुन काजी !


तुर् कहते हो र्ैं कर िूं ईर्ान क़ु िूि ?

हकीकत को तो िस रार् का है नार् किूि ।


रार् के भि कभी िनते हैं गुिार् ए रसूि ?

१७
हकीकत राय का अर्र िग्निदान

‘धर्म ग्नजस जीने से िो जाए िो जीना है कफजूि’ ।


धर्म ग्नजस र्रने से जी जाए िो र्रना है र्ंजूर ।।

धर्म प्यारा है र्ुझे है नहीं ईर्ान क़ु िूि ।


तेरा दीं तुझको र्ुिारक नहीं ईर्ान क़ु िूि ।।

छाया था सन्नाटा र्ुगि के िेर्े र्ें ।


कदि िेर का है क्ट्या इस किेजे र्ें ।।

काजी ने कहा कर दो सर इसका किर् ।


गुस्ताि को र्ारो करो कफतने को ितर् ।।

था तैयार भी जल्िाद कार् करने को ।


तििार जो उठी तो िगी गदमन को ।।

अगिे ही पि िो सर हुआ जुदा तन से ।


एक धुन सी उठ रही थी उस गदमन से ।।

धर्म की राह र्ें र्र जाते हैं र्रने िािे ।


‘र्रके जी उठते हैं जी जाँ से गुजरने िािे’ ।।

ककतना ही अँधेरा क्ट्यों न हो दुग्ननया र्ें ।


ककतनी ही ग्निपग्नि क्ट्यों न हों जीिन र्ें

१८
हकीकत राय का अर्र िग्निदान

हरा के उनको धर्म पे िढते जाना ।


िग्निदान हकीकत का सुनाते जाना… ।।

१९
र्हारार्ा प्रताप
भारत र्ाँ के कु छ दर्दार पुि ऐसे हैं ग्नजरहोंने ग्निपग्नि के सर्य र्ें भी
दुग्ननया र्ें इस देि का नार् गुज
ं ाये रिा । र्हारार्ा प्रताप ऐसा ही एक
नार् है ।
र्हारार्ा प्रताप के जीिन की कु छ घटनाएं इस कग्निता र्ें हैं ।

र्ुगि काि र्ें पैदा हुआ िो िािक कहिाया रार्ा ।


होते जौहर ग्नचिौड दुगम कफर िरसा र्ेघ िन के रार्ा ।।

हरर्ों र्ें जाती थीं ििना िना कृ ष्र् द्रौपदी का रार्ा ।


रौंदी भूग्नर् ज्यों कं स र्ुगि िना कं स को अररसूदन रार्ा ।।

छोडा था साग्नथयों ने भी साथ चि पडा युद्ध इकिा रार्ा ।


चेतक का पग हाथी र्स्तक ज्यों नभ से कू द पडा रार्ा ।।

र्ानचसंह भयभीत हुआ जि भािा फैं क कदया रार्ा ।


देिी िग्नि तप िीर व्रती हाथी भी कांप गया रार्ा ।।

चहुँ ओर रहे ररपु घेर देि सोचा िग्निदान करूँ रार्ा ।


ििु को र्ृगों का झुण्ड जान चसंहों सा टूट पडा रार्ा ।।

देिा झािा यह दृश्य कहा अि सूयामस्त होने को है ।


सि ओर अँधेरा िरस रहा िो डू िा आयम भानु रार्ा ।।

२०
र्हारार्ा प्रताप

गरजा झािा के भी होते ररपु कै से छु एगा तन रार्ा ।


िे ग्निया छि अपने ग्नसर पर अग्नििम्ि ग्ननकि जाओ रार्ा ।।
हुंकार भरी ििु को यह र्ैं हँ रार्ा र्ैं हँ रार्ा ।

नृप भेज सुरग्नक्षत िाहर िुद िग्नि दे दी कह जय हो रार्ा ।


कह नर्स्कार भारत भूग्नर् रग्नक्षत करना रक्षक रार्ा!

चेतक था दौड रहा सरपट जंगि र्ें ग्निए हुए रार्ा ।


आ रहा ििुदि पीछे ही नहीं छु ए ििु स्िार्ी रार्ा ।।

आगे आकर एक नािे पर हो गया पार िेकर रार्ा ।


रह गए ििु हाथों र्िते चेतक िििान ििी रार्ा ।।

िे पार गया पर अि हारा चेतक ग्नगर पडा ग्निए रार्ा ।


थे अश्रु भरे नयनों र्ें जि देिा चेतक प्यारा रार्ा ।।

अश्रु ग्निए आँिों र्ें ग्नसर रि कदया अश्व गोदी रार्ा ।


स्िार्ी रोते र्ेरे चेतक! चेतक कहता र्ेरे रार्ा !

हो गया ग्निदा स्िार्ी से अि इकिा छोड गया रार्ा ।


परताप कहे ग्निन चेतक अि रार्ा है नहीं रहा रार्ा ।।

सुन चेतक र्ेरे साथी सुन जि तक ये नार् रहे रार्ा ।


र्ेरा पररचय अि तू होगा कक िो है चेतक का रार्ा !

अि िन र्ें भटकता राजा है पत्थर पे सोता है रार्ा ।

२१
र्हारार्ा प्रताप

दो रटक्कड सूिे ग्नििा रहा िच्चों को पत्नी को रार्ा ।।

थे अकिर्ंद आते कहते अकिर से संग्नध करो रार्ा ।


है यही तरीका नहीं तो कफर िन िन भटको भूिे रार्ा ।।

हर िार यही उिर होता झािा का ऋर् ऊपर रार्ा ।


प्रार्ों से प्यारे चेतक का अपर्ान करे कै से रार्ा ।।

एक कदन िच्चे की रोटी पर झपटा ग्नििाि देिा रार्ा ।


हृदय पर ज्यों ग्निजिी टूटी अंदर से टूट गया रार्ा ।।

िे कागज ग्निि िैठा, अकिर! संग्नध स्िीकार करे रार्ा ।


भेजा है दूत अकिर के द्वार ज्यों चपंजरे र्ें नाहर रार्ा ।।

देिा अकिर िह संग्नध पि िह िोिा आज झुका रार्ा ।


रह रह के दंग उरर्ि हुआ कह आज झुका है नभ रार्ा ।।

ग्निश्व ग्निजय तो आज हुई िोिो कि आएगा रार्ा ।


कि र्ेरे चरर्ों को झुकने कि झुक कर आएगा रार्ा ।।

पर इतने र्ें ही िोि उठा पृथ्िी यह िेि नहीं रार्ा ।


अकिर िोिा ग्निि कर पूछो िगता है यह ग्नििा रार्ा ।।

पृथ्िी ने ग्नििा रार्ा को क्ट्या िात है क्ट्यों ग्नपघिा रार्ा ?


पग्नश्चर् से सूरज क्ट्यों ग्ननकिा सरका कै से पिमत रार्ा ?

२२
र्हारार्ा प्रताप

चातक ने कै से ग्नपया नदी का पानी िता िता रार्ा ?


र्ेिाड भूग्नर् का पूत आज क्ट्यों रर् से डरा डरा रार्ा ?

भारत भूग्नर् का चसंह िंधेगा अकिर के चपंजरे रार्ा ?


दुयोधन िाँधे कृ ष्र् तो क्ट्या होगी कृ ष्र्ा रग्नक्षत रार्ा ?
अि कौन िचायेगा सतीत्ि अििा का िता िता रार्ा ?
अि कौन िचाए पग्निग्ननयाँ जौहर से तेरे ग्निन रार्ा?

यह पि ग्नर्िा रार्ा को जि ग्नधक्कार र्ुझे ग्नधक्कार र्ुझे ।


कहकर ऐसा िह िैठ गया अि पश्चाताप हुआ रार्ा ।।

चेतक झािा को याद ककया कफर फू ट फू ट रोया रार्ा ।


िोिा इस पापकर्म पर तुर् अि क्षर्ा करो अपना रार्ा ।।

और ग्निि भेजा पृथ्िी को कक नहीं ग्नपघि सके ऐसा रार्ा ।


सूरज ग्ननकिेगा पूरि से, नहीं सरक सके पिमत रार्ा ।।

चातक है प्रतीक्षारत कक कि होगी िषाम पहिी रार्ा ।


भारत भूग्नर् का पुि हँ कफर रर् से डरने का प्रश्न कहाँ?

भारत भूग्नर् का चसंह नहीं अकिर के चपंजरे र्ें रार्ा ।


दुयोधन िाँध सके कृ ष्र् ऐसा कोई कृ ष्र् नहीं रार्ा ।।

जि तक जीिन है इस तन र्ें ति तक कृ ष्र्ा रग्नक्षत रार्ा ।

२३
र्हारार्ा प्रताप

अि और नहीं होने देगा जौहर पग्निग्ननयों का रार्ा !

२४
िचपन और जिानी
जिानी आयी और िचपन ग्निदा हो गया ! पर जाते जाते िचपन कु छ
कह गया ! िचपन की जिानी को सीि, इस कग्निता र्ें ।

जिानी से कु छ यूँ कहके िौटा िचपन ।


पाकीजगी आँिों की सिार्त रिना ।।

ताक़त से कभी फू ि र्सिना नहीं तुर् ।


ताकत से उन फू िों की ग्नहफाजत करना ।।

कर्जोर पर कभी नहीं जिर करना ।


पाकीजगी हाथों की सिार्त रिना ।।

र्जिूर् को अक्ट्सर दिाती है दुग्ननया ।


कर जुल्र् खतर् उसकी ग्नहर्ायत करना ।।

कदि फू ि और िदन को पत्थर करना ।


िदकार औ जाग्निर् की क़यार्त िनना ।।

िाजारों र्ें सजी हैं र्ाँ िहन ककसी की ।


तू अपनी र्ाँ सर्झके िगाित करना ।।

२५
िचपन और जिानी

दुग्ननया कहेगी िे िे जिानी के र्जे ।


पाकीजगी तू कदि की सिार्त रिना ।।
भगिान ने तो ग्नजस्र् कर कदया है जिाँ ।
कदि आँिों से र्गर तुर् िच्चे रहना ।।

जिानी से कु छ यूँ कहके िौटा िचपन ।


पाकीजगी आँिों की सिार्त रिना ।।

२६
दुग्ननया और र्ैं
दुग्ननया को प्यार करना ।
है िुद को प्यार करना ।।

हो चोट गैर पर तो ।
कदि र्ेरा भी दुिाना ।।

हर होंठ पे हंसी हो ।
िि र्ेरे ग्नििग्नििाना ।।

कर्जोर िाजुओं की ।
ताकत र्ुझे िनाना ।।

नीिार् हो जो इज्जत ।
आँचि र्ुझे िनाना ।।

भगिान दुग्ननया तेरी ।


र्ेरी इसे िनाना ।।

इसका र्ुझे िनाना ।


र्ेरी इसे िनाना… ।।

२७
भाई तू क्ट्यों नहीं आया ?
उसने भाई को पुकारा होगा, पर कोई नहीं आया । सर्ाज र्ें दुिासन तो
सि हैं, कृ ष्र् कौन िनेगा?

कानों र्ें यकायक उठी िेिस सी ग्नससककयां


र्ैंने पिट के देिा तो इक िडकी थी िहाँ
जि गौर से देिा तो आसर्ान फट गया
जो चि िसी िो र्ेरी िहन थी िडी िहाँ

देिा तो र्ुझे ददम का सैिाि फट पडा


आँिों र्ें उसके जुल्र् का तूफान फट पडा
पूछा जि उसने भाई तू क्ट्यों नहीं आया
गैरों ने देि क्ट्या ककया तू क्ट्यों नहीं आया

िो चोट ग्नजस्र् पर ग्निए चुपचाप िडी थी


िहित के ग्ननिाँ तन पे थे पर र्ौन िडी थी
छह र्दों की नार्दी से अके िी िडी थी
आग्निर र्ें उसे िेने को कफर र्ौत िडी थी

तन िून से िथपथ था आँचि ग्नगरा ग्निया


सर उसने र्ेरी िाँह र्ें अपना ग्नछपा ग्निया
र्ंजर ये देि पत्थर कदि भी ग्नपघि गए
सूरज ने भी ये देि िुद को ग्नछपा ग्निया

२८
भाई तू क्ट्यों नहीं आया ?

िो िोिी क्ट्या रािी है िस धागे का एक नार्


क्ट्या िहन की ग्नहफाजत भाई का नहीं कार् ?
दुिासनों ने कफर से घसीटी है द्रौपदी
क्ट्यों कृ ष्र् ने िचाया नहीं िहन का सम्र्ान ?

रािी है नार् भाई का िहनों को िचाना


रािी है नार् र्दम का औरत को िचाना
रािी है नार् अजनिी को िहन िनाना
कफर िहन की रक्षा र्ें जी जान िगाना

पर यहाँ तो दस्तूर हैं हैिानों के जारी


िुद अपने ही होते हैं कई िार ग्निकारी
हर एक की जुिां पे हैं र्ाँ िहन की गािी
हर एक जिां गंदी है हर आँि है कािी

हे भाई तू सि िहनों की रक्षा सदा करना


दुिासनों की दुग्ननया र्ें श्रीकृ ष्र् तुर् िनना
हर द्रौपदी के सर पे अपना हाथ िढ़ाना
र्ानिता क्ट्या होती है ये दुग्ननया को कदिाना

इतना था कहना उसका कक िो र्ंद हो गई


इस भाई के हाथों र्ें िो ग्नििीन हो गयी
दुग्ननया के सफर को यहीं पे ित्र् कर चिी
भगिान की गोदी र्ें कहीं दूर हो चिी…

२९
र्ाँ
िचपन र्ें िोई कहीं गुग्नडया सी कभी िडी हो जाती र्ाँ ।
कफर छोड एक कदन र्ात ग्नपता दुल्हन सी ग्निदा हो जाती र्ाँ ।।

सि छोड र्ीत ररश्ते नाते नए घर को िसाने जाती र्ाँ ।


एक कदन गोदी र्ें फू ि ग्नििा जग र्ें कफर र्ाँ िन जाती र्ाँ ।।

अंधेरों र्ें हर्को यूं िपेट नौ र्ाह छु पा रिती है र्ाँ ।


दुग्ननया के उजािे देती है कफर कदि र्ें छु पा िेती है र्ाँ ।।

भगिान नजर आता है नहीं पर पास नजर आती है र्ाँ


नरही अग्नियाँ ना िोजें िुदा िो िोज रहीं कै सी है र्ाँ ।।

रोते हैं कभी कदि के टुकडे तो आँि ग्नभगो िेती है र्ाँ ।


हँसते हैं कभी उसके िच्चे तो ददम भुिा देती है र्ाँ ।।

र्न पे पत्थर रि कर जो कभी हिके से डपट देती है र्ाँ ।


िच्चों की िुिी की िाग्नतर पर दुग्ननया से टकरा जाती र्ाँ ।।

दुग्ननया कहती है िािररया पर कफक् कहाँ करती है र्ाँ ।


दुग्ननया है चिती ज्ञान अकि से कदि से िस चिती है र्ाँ ।।

३०
र्ाँ

तुतिाते होठों की तरं ग र्ें िुद भी तुतिाती है र्ाँ ।


हाथों को थार्कर नरहे पग धरती पे चििाती है र्ाँ ।।
उस तुतिाते िडिाते िचपन को र्जिूत िनाती र्ाँ ।
ग्नगरने से पहिे िाँह फै िा सीने से िगा िेती है र्ाँ ।।

चोट िगी िािक तन पर ितपथ िेककन हो जाती र्ाँ ।


दिा हो जाते उसके आंसू दुआ िो िुद हो जाती र्ाँ ।।

नहीं है कोई पीर पैगम्िर नहीं कोई योगी ग्निन र्ाँ ।


र्ूरत भगिान की क्ट्या देिूं जि पास िडी हो र्ेरी र्ाँ ।।

दुग्ननया ने कहा अििा उसको ये क्ट्या सर्झेंगे क्ट्या है र्ाँ


कं सों का काि रर् की गुंजार कहीं कृ ष्र् िना देती हैं र्ाँ ।।

अग्नभर्रयु कटा चहुँ ओर ग्नघरा उस िीर का आकद अंत है र्ाँ ।


र्हारार्ा की तििार ग्नििाजी की टंकार र्ें जीजा र्ाँ ।।

िग्नियों के ििों र्ें रर्ती र्ाँ िूरों के िून र्ें िहती र्ाँ ।
अग्नि की धधक र्ें रहती र्ाँ िीरों की जीत र्ें िसती र्ाँ ।।

र्ेरी भी नहीं तेरी भी नहीं िो तो होती सिकी सांझी र्ाँ ।


ना चहंद ू की ना र्ुग्नस्िर् की र्ाँ तो िस एक होती है र्ाँ ।।

र्ानि! तू न यूं घूर उसे, िो कभी िनेगी एक कदन र्ाँ ।


तेरे जैसे एक िािक को कफर िडा करे गी एक कदन र्ाँ ।।

३१
र्ाँ

है िो भी तन र्न से िैसी जैसी है तेरी प्यारी र्ाँ ।


उसकी इज्जत भी िैसी है जैसी है तेरी प्यारी र्ाँ ।।

सम्र्ान तू कर इतना उसका हर चेहरा याद कदिाए र्ाँ ।


कह गैर को र्ाँ, कक याद रिे तुझे र्रने पर भी तेरी र्ाँ ।।

३२
िेिक पररचय

ग्निज्ञान, धर्म, इग्नतहास, र्ुग्नस्िर् िासन, र्ुगि काि, र्जहिी कट्टरपंथ


और आतंकिाद के देि-ग्निख्यात ग्निद्वान। सैंकडों भटके हुए नौजिानों को
आतंकिाद के रास्ते से छु डा कर इंसाग्ननयत पर िाने िािे युिा जादूगर।
ज्ििंत र्ुद्दों पर कई चहंदी और अंग्रेजी पुस्तकों के िेिक, कग्नि, ििा

और िैज्ञाग्ननक। ग्निश्वग्निख्यात भारतीय प्रौद्योग्नगकी संस्थान (IIT

Bombay) से ग्निक्षा प्राप्त, और भारत सरकार द्वारा प्रग्नतग्नष्ठत

INSPIRE Faculty पुरस्कार से सम्र्ाग्ननत। अंतरामष्ट्रीय ख्याग्नत प्राप्त


िैज्ञाग्ननक जनमल्स र्ें अनेक िोध-पिों के िेिक। डॉ िाग्नि िर्ाम ितमर्ान
र्ें अग्नििीर के अध्यक्ष हैं।

३३
अग्नििीर - संग्नक्षप्त पररचय

भारत के दो सिामग्नधक प्रग्नतग्नष्ठत ग्निक्षा संस्थानों - भारतीय प्रौद्योग्नगकी


संस्थान और भारतीय प्रिंधन संस्थान (IIT and IIM) से ग्निक्षा प्राप्त
एक िैज्ञाग्ननक योगी श्री संजीि नेिर द्वारा संस्थाग्नपत अग्नििीर आज
धर्म, दिमन, ग्निज्ञान और आध्यात्र् के परस्पर सर्रिय से उठी एक िग्नि
िन कर उभरा है जो सर्ाज र्ें र्नुष्य के व्यग्निगत, सार्ाग्नजक, और
आग्नत्र्क ग्निकास र्ें अतुल्य योगदान दे सके । प्राचीन िेदों के गूढ़ रहस्यों
से िेकर भगिद्गीता के कर्म संदि े तक और गीता से िेकर िास्तग्निक
योग तक की हर ग्नसग्नद्ध और िग्नि को र्ानि र्ाि के कल्यार् र्ें िगाने
के दृढ़ संकल्प के साथ अग्नििीर कर्मक्षेि र्ें दृढ़ता से िडा है। हजारों
ग्नर्िों के पि, ईर्ेि और धरयिाद संदि
े अग्नििीर के साथमक प्रयासों की
एक झिक देते हैं। िीरता, ओज, कर्म और पुरुषाथम से ओतप्रोत अग्नििीर
के िैकदक संदि
े ों के साथ आत्र्हत्या के ग्निचारों, क्षोभ, अिसाद, हार,
रोग, और दुुःि से ग्रग्नसत सैंकडों िोगों र्ें नया जीिन जीने की राह कफर
से पैदा हुई। ककसी भी प्रकार के अरयाय के ग्निरुद्ध डट कर िडने और उस
पर ग्निजयी होने की साग्नत्िक भािना कफर से प्रिि हुई।
िग्नििािी अरयायी के सार्ने डर, सर्झौते, सर्पमर् और झूठे
इग्नतहास के कारर् जर्ीन र्ें दफन कर कदए गए र्ुद्दों को भारतीय
जनर्ानस र्ें दोिारा जीग्नित करने के पीछे अग्नििीर एक र्ुख्य कारक
है। सर्ाज र्ें जात पात और चिंगभेद को ग्नर्टाने के उद्देश्य से िुरू ककए
गए अग्नििीर दग्नित यज्ञ आज जहाँ सार्ाग्नजक एकता की नयी ग्नर्साि
िन कर उभरे हैं िहीं सकदयों पुरानी इस सर्स्या के सर्ाधान का र्ागम
भी प्रिस्त करते हैं। र्जहिी कट्टरता और कठर्ुल्िा र्ानग्नसकता से िस्त
र्ुग्नस्िर् र्ग्नहिाओं के अग्नधकारों की एकर्ाि आिाज िनकर उभरने

३४
िािे अग्नििीर ने एक से ज़्यादा िीग्नियों की ररिायत, तीन तिाक़,
हिािा, और जिरदस्ती र्जहिी िेश्यािृग्नि और िि ग्नजहाद के ग्नखिाफ
आिाज िुिंद की। इसके फिस्िरूप कट्टरपंथी ग्ननिाने पर आने के
िािजूद अग्नििीर ने सैंकडों र्ग्नहिाओं को र्जहिी दहितगदी से ग्ननजात
कदिाई। अग्नििीर की ऑनिाइन तत्काि सहायता सेिा ने ककतनी ही
ऐसी चजंदग्नगयों र्ें कफर से र्ुस्कु राहट ग्नििेरी।
देि र्ें िढ़ते आतंकिाद, कट्टरता और असुरक्षा के र्ाहौि के िीच
अग्नििीर ने ग्ननुःिस्त्र आत्र्रक्षा की कायमिािा की नींि डािी। देि के कई
संिेदनिीि िहरों और स्थानों र्ें ग्ननयग्नर्त अग्नििीर कायमिािाएँ
असुरग्नक्षत िगम र्ें आत्र्रक्षा की भािना पैदा करती हैं। सैंकडों युिा जो
भटक कर आतंकिाद और र्जहिी कट्टरपंथ के रास्ते पर चि पडे थे ,
उनको िापस र्ानिता र्ें िाने का श्रेय अग्नििीर को जाता है। भारत के
इग्नतहास की ककतािों र्ें आक्ांतों और हर्िािरों के िर्मनाक हर्िों को
इग्नतहास का सुनहरा दौर िताने की िर्मनाक ररिायत को अग्नििीर ने
ही पहिी िार अकाट्य प्रर्ार्ों, तथ्यों और तकों के साथ इतने संिेग के
साथ ध्िस्त ककया है कक सरकारें भूि सुधार को ग्नििि हैं।
सार्ाग्नजक एकता, र्ग्नहिा अग्नधकार, र्ानि अग्नधकार, र्जहिी
कट्टरता, इग्नतहास और धर्ों के तुिनात्र्क अध्ययन पर कई प्रार्ाग्नर्क
पुस्तकों के प्रकािन से जहाँ अग्नििीर ने दीघमकाग्निक सुधार की एक ठोस
नींि रिी है िहीं योग, आध्यात्र्, सनातन चहंद ू धर्म और जीत ि जोि
की प्रेरर्ा देने िािी अतुल्य पुस्तकों से र्ानि र्ाि को प्रेर्, एकता और
िीरता के िैकदक पथ पर चिने के ग्निए प्रेररत ककया है।
अग्नििीर से जुग्नडए और साथमक जीिन का आनंद िीग्नजए।

३५
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