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मंगलाचरण
‘प
ु तक का उ1े)य’
ईस प2
ु तक का उदे qय मानवी क@ तपा&दत मायताएं बदलने
का नह(ं हे साथ ह( मानवी के आंतoरक जीवन को बदलने का भी
नह(ं है ।
4सफK ईस प2
ु तक का उदे qय समझने से ह( Fयि1त क@
महानता म ईझाफा नह(ं होगा साथ ह( न समझने से उसक@
महानता म कमी भी नह(ं आयेगी।
चदाकाश गीता
‘आ मा क3 परम शि5त’
थम भाग
8. पi
ु ष और jी को 'शkा दे नी चा@हए। 'शkा का अथF 5या है ?
जीव को उस रहय का पता होना चा@हए क3 वह परमा
मा है ।
पMट!करणः पाठशाला और कालेज म द( जाती 4श$ा सEची 4श$ा
नह(ं है । जीस Xान से जीवामा और परमामा का ऐ1य समझ म आये
वह( सEची 4श$ा है । हम लौIकक जीवन का Xान सामाय तौर पर जो
15 चदाकाश गीता
15. पैड़ पर बहुत सारे फुल खीलते है । फुल गीर जाते है लेXकन
पैड़ लंबे अरसे तक नMट नह! होता उसी तरह B)य चीजE फुल क3 तरह है ,
जो अB)य है वह पैड़ जैसा है ।
पMट!करणः फुल पैड़ पर खीलता है लेIकन पैड़ फुल पर नह(
खीलता। पैड पर खीले फुल क@ तरह lqयमान 3वqव अlqय ईqवर म से
पैदा हुआ है । lqयमान 3वqव फुल क@ तरह न9ट होनेवाला है । अlqय ईqवर
न9टाय नह(ं होता, वह पैड जैसा है ।
26. एकबार तैल मे तले जाने के बाद बीज अंकु`रत न@ह होता,
द!पक मE तैल खतम हो जाने के बाद हम उसे द!पक न@ह कहते है । जब
आ@दनारायण सूयF तप रहा है तब वायुद!पक \यादातर धूंधला लगता है ।
सूयF दु नया को काश दे ता है । मानस को राजा माने तो बLु J को
धानमंjी कहा जाता है । पैडो पर फुल न खीले तो वE सुंदर न@ह लगते।
बीना कारण कोई प`रणाम न@ह होता। अंधकार मE भी काश उपिथत
रहता है । अ8ान अंधेरा है । 8ान काश है । मनुMय को अपना
22 चदाकाश गीता
27. गi
ु अपने 'शMय को कं@टले मागF से राजमागF क3 ओर ले
जाते है । ऐसे 8ानी गi
ु दो तरह के होते है – एक गi
ु ारं 'भक – मूल
8ाता है , दस
ू रे आनुषांगक है । मानवमन जो क3 ारं 'भक मूल गi
ु है ।
दस
ू रे आनुषांगक है । लेXकन दोनो वतंj है मतलब क3 एक दस
ू रे का गi
ु
न@ह है । आनुषांगक है वह आनुषांगक गi
ु है । कुए मE पानी @दखाए वह
आनुषांगक गi
ु है लेXकन जगत के सभी जीवो के Rदय मE बसे गi
ु ह!
जगSगi
ु है ।
पMट!करणः सदगु: वह( है जो मनु9य को जगत के कं&टले मागK
पर से अVयाम के राजमागK पर ले जाते है । ऐसे सदगु: दो तरह के होते
है , एक ारं 4भक-मूल और दस
ू रे आनुषांगक. मानवमन मूल ग:
ु है जो क@
मनु9य के अEछे -बूरे दोनो के 4लए िजDमेवार है । आनुषांगक गु: या गु:
मनु9य को सह( मागK क@ ओर ले जाता है वह( आनुषांगक ग:
ु है । ईqवर
जो क@ सिृ 9ट का सज
ृ नकताK है वह सभी जीवो म बसता है और वह
जग~गु: है ।
28. लोग गi
ु का शर!र दे खकर कर उ:हE गi
ु भाव से पज
ू ते रहते
है । माला के मोती गनने से या पादक
ु ाओ पहन के घुमने से गi
ु नह! बना
जा सकता। गi
ु yzम8ाननी बातE करE अनेकLवध कार के प
थर 'शMयो
24 चदाकाश गीता
को दे तो भी वह सnचा गi
ु न@हं। गi
ु अपने श"दो को कायV से च`रताथF
करE तो ह! वे सnचे गi
ु है । थम अनुभव करे और अनुभूत करने के बाद
दस
ू रे को 8ान दे ना शुi करE ।
पMट!करणः लोग आम तौर पर सोचते है क@ गु: का बाNय दे ह
गु: है । मनु9य अEछs पादक
ु ा पहनकर घूमे या माला के मोती गने तो वह
अEछा गु: न&ह कहा जा सकता। सदगु: बनने के 4लए मनु9य को अपने
आमतव को पहचानना चा&हए। मानवमन के साथ बाNय आवरण को
संबंध न&ह। गु: बनने के 4लए वचन और कमK का ऐ1य आवqयक है
मतलब क@ जो बोले वह( करे और जो करते है वह( बोले। ONमXान क@
बात कर और 4श9यो को अनेक3वध कार के रन द तो वे सदगु: नह(ं है ।
सदगु: वह( है जो उहMने 4सt Iकया हुआ Xान अपने 4श9य को दे और
वह शीखाना तब शु: करे जब उहोने Xान को अनुभव4सt Iकया हो।
29. जीस गi
ु ने अपना दे हभाव मीटा @दया है वह! सnचे गi
ु है
और गi
ु कहलाने लायक है और ऐसे गi
ु से उपर कोई गi
ु न@ह है । ऐसे
गi
ु ई)वर का व*प है और ई)वर ह! ऐसे गi
ु है ।
पMट!करणः दे हभाव को पूण:
K प से 4मटा दे नेवाले ह( गु: बनने के
यो}य है । ऐसे गु: ईqवर के समीप होते हो। अXानी लोग ईqवर और गु:
के बीच म फकK दे खते है । श1कर दध
ू म घूल जाती है या नमक पानी म
पीघल जाता है उसी तरह ऐसे गु: ईqवर म 3वल(न हो जाते है , आस4लए
ऐसे गु: और ईqवर के बीच कोई भेद न&हं रहता।
31. गाय का दध
ू कभी कड़वा न@ह होता है । मनुMय को मुि5त
ाDत करने के 'लए रामे)वरम, बनारस जैसे तीथFधामो पर जाने क3 जiरत
न@ह है । मुि5त के 'लए आव)यकता यह है क3 आंतरमुख से, मन को थोडी
पलो के 'लए िथर Xकया जाएं। प
थर क3 तमाओ के दशFन करने से
ई)वर के दशFन होते न@ह है । प
थर मE मूतF का दशFन करना 'सफF एक
मणा है । सह! 8ान के Yबना मिु 5त संभव न@ह। हमे 'मला हुआ
मनुMयज:म प`रणाम है । ई)वरािDत के 'लए Xफर से यास करना वह
कारण है । हमे कारण और प`रणामक3 शुJ समझ ाDत करनी होगी। हमे
अnछे -बरू े या बरू े या जुे क3 समझ ाDत करनी होगी। यह सब समझने के
बाद शांत ाDत करनी चा@हए।
पMट!करणः ईqवरािwत गाय के दध
ू क@ तरह हरदम अमत
ृ तW
ु य
है । वह सतचत आनंद है । गु: हम ईqवर के ािwत के मागK क@ ओर ले
जा सकते है । पथर क@ तमा के आकार व न&ह कर सकते। तीथKयाGा
26 चदाकाश गीता
करने से Xान ाwत न&ह होता लेIकन उसके 4लए गु: क@ ेरणा आवqयक
है । मनु9य के मनCपी मकKट का खेल दरू करना चा&हए। 3ववेकशि1त
बढानी चा&हए। 4मी-पथर क@ तमाओ के दशKन ईqवर के दशKन नह(ं है।
मन को नरं तर आंतरमुख रखना चा&हए। पथर क@ तमाओ को ईqवर
समझना वह मन क@ मणा है। सह( Xान के ?बना मुि1त संभव नह(ं है ।
हमने मनु9य जम 4लया वह पoरणाम है , वजह है Iफर से ईqवर क@
ािwत। हम कारण पoरणाम क@ समझ मनु9य के जम के उदे qय और
उसके अंत क@ समझ से पानी चा&हए। जीवन का उेश आमा क@ ािwत
से हो सकता है । हमे शुभ-अशुभ-सEचे-जुे का 3ववेक पाना होगा। ईन सभी
बातो का Xान पाकर शांत ाwत करनी चा&हए जो क@ जीवन का ल[य है ।
35. मनुMय को गi
ु के शरण मE जाने के बाद उनका
याग नह!
करना चा@हए. मनुMय का मन @हलते पानी मE गीरते सूयF के तYबंब क3
तरह @हलना नह! चा@हए।
28 चदाकाश गीता
38. दस
ू रो क3 थाल! मE परोसा गया भोजन नह!ं हमE नह!ं खाना
चा@हए। हमE अपना पाj रखना चा@हए और भोजन करना चा@हए।
पMट!करणः बहूत से लोग ईqवर के बारे म दस ू रो ने जो कहा है
या 4लखा उसी से संतु9ट हो जाते है लेIकन वह पयाKwत नह( है। िजस तरह
30 चदाकाश गीता
मनु9य का अपनी $ुधा तwृ त करने के 4लए खाना चा&हए उसी तरह ईqवर
के सा$ाकार करने के 4लए 2वयं यास करना चा&हए।
56. ाणायम करते व5त सांस अंदर लेना उसे परू क कहते है ।
कंु भक मतलब सांस रोकना। रे चक मतलब सांस बाहर नकालना। सांस के
तीन कार नैसगFक होते है । यहां बाहर से कुछ लेना नह!ं है । ईस तरह
सतत अTयास चलता हो तब ाण एक ह! नाडी मE जाता है तब हमे
अंदiनी आनंद क3 अनुभू त होती है । ईस yzमानंद का Lववरण कौन कर
सकता है ? बाहर! दु नया तब भूल! जाती है । हम पराLव)व (yzमांड) मE
ल!न हो जाते है ।
पMट!करणः ाणायम तीन 2तरो से होता है । थम 2तर म जब
हम सांस अंदर लेते है तब उसे “पूरक” कहते है । अंदर ल( हुई सांस रोक@
जाये ततब उसे कंु भक कहते है और रोक@ हुई सांस बाहर नकाल( जाये
तब उसे रे चक कहते है । ईन तीनो सांसो क@ Iया ाकृतक अथाKत
अंद:नी तर(के से होती है । बाहर( वायु क@ मदद के 4सवा ाण खुद
उVवKगत करता है , जीसे ONमानंद कहते है । ONमानंद 3ववरणातीत है ।
बाहर( 3वqव भूला &दया जाता है । हम परा3वqव म पहुंच जाते है । हम
ONमानंद का अनुभव करते है , 1यMक@ हम ONममय हो जाते है।
42 चदाकाश गीता
62. मानवशर!र एक गफ
ु ा जैसा है । ईस गफ
ु ा मE आ
मा का वास
है । शर!र क3 गफ
ु ा मE रहनेवाले आ
मा को मोk क3 'सLJ ाDत करनी
46 चदाकाश गीता
63. भि5त शुi मE वाथFiप होती है , लेXकन धीरे धीरे उसमे वाथF
का त
व कम होता रहता है । जब मनुMय पण
ू
F व 'सJ करते है तब सम
yzमांड के अधपत उनके गi
ु बन जाते है ।
पMट!करणः Fयि1त श: के 2तर म 2वाथKमय होता है । मो$मागK
के ारं भ म आVयािमक 4स3tओ ाwत करने क@ महवाकां$ा होती है
लेIकन साधना म जैसे जैसे गत होती है वैसे वैसे 4सtइ ािwत क@
ईEछा कम हो जाती है और भि1त नः2वाथK होने लगती है । मनु9य जैसे
जैसे मो$ािwत क@ 4स3t ाwत करता है वैसे वैसे ईqवर उसे उसके कमK मे
&दखने लगता है । ससम| 3वqवना अधपत उसके गु: का 2थान लेता है ।
47 चदाकाश गीता
को उससे कोई लाभ नह! है । हमे हरदम 8ान के काश मE रहना चा@हए।
अंधकारवाले मागF पर रोशनी हो तो हमे डर नह!ं लगता। अ8ान के
अंधकार मE जीता मनुMय हरदम डर मE जीता है ।
पMट!करणः जंगल म जाकर गुफा म बैठकर साधना कर रहे लोग
गुफा म रहनेवाले पशु समान है । उनका जगत म कोई उपयोग नह(ं है ।
मन से जगत का याग करने म ह( सEचा याग है । ऐसे लोगो से दरू (
&दखानेवाले पथर xयादा अEछे है 1यMक@ कम से कम उसक@ मदद से
क@तनी दरू ( हमने तय क@ वह पता लग जाता है । 3वचारशील मनु9य को
धीरे धीरे जगत का याग करना चा&हए। उसको जनक 3वदे ह( क@ तरह
जगत म रहता है Iफर भी जगत का याग करना चा&हए। िजस तरह
मनु9य अपनी $ुधातिृ wत से खुद के 4लए लाभ और आनंद ाwत कर
सकता है उसी तरह खुद ईqवर साधना करने से ह( मो$ 4स3t ाwत हो
सकती है । अXान अंधकार है और Xान काश है । Xानी का Xान उनका
श2G है , ईस4लए कं&टले पथ पर चलते व1त उसे डरने क@ जर:रत नह(ं।
अगर मनु9य के अंधकारभरे पथ पर Xान क@ रोशनी छाई हो तो उसे डर
नह( लगता।
उसे आVयािमक बदहझमी होती है । जीस तरह जीनके पेट भरे हुए हो उसे
भूख नह( लगती उसी तरह सांसाoरक आनंदो मे म}न मनु9य को
आVयािमक Xान क@ ईEछा नह( होती, उसी तरह xयादा से xयादा व2G
पहननेवाले को ठं ड के समय ठं ड xयादा लगती है उसी तरह ईिlयो के
आनंद म xयादा से xयादा Fय2त रहनेवाले को ईिlयां xयादा परे शान
करती है । ई्िlय पर संयम उस क@ ओर दल
ु $
K दे कर आ सकता है ।
आVयािमक Xान 4सफK यो}य Fयि1त को ह( दे ना चा&हए।
81. आहार Xकतना लेना उसका कोई नयम नह!ं है । ऐसा भी नह!
कहा जाता क3 आहार नह! लेना चा@हए। यो^य आहार वह! नयम है ।
आहार आधा एक चौथाई पानी और नींद के 'लए \यादा चाहत नह! रखनी
चा@हए।
पMट!करणः ईqवर का सा$ाकार चाहते अ
यासीओ के 4लए
योगा
यास के ारं भ म आहार के 4लए कोई नयम नह( है । उनको भूखा
रहना ऐसा नह( है । उनको आहार मयाKदा के साथ लेना है । यो}य आहार
वह( नयम है । अपने आVयािमक अ
यास को चोट न पहुंचे ईस4लए पेट
आधा भरना चा&हए। आधा पानी से भरना चा&हए। अगर संभव हो तो एक
ह( शतK पूर( करनी है क@ नींद क@ चाहत xयादा नह( रखनी चा&हए।
खाते है तो उसका पाचन हो जाता है । िजस तरह अि}न अEछे -बूरे का फकK
जाने ?बना सब 2वाहा करती है ठsक वैसे ह( सEचा कमK 1या है वह हम
जानते हो तो हम जो भी खा सकते है और पचा सकते है । हमारे बाहर(
कमK पर कोई नयंGण नह( होता, लेIकन जब ‘कमK’ 1या है वह हम सह(
तर(के से समझ नह( सकते तब हमारे 4लए सEचा और जूा, अEछे -बूरे का
3ववेक नह( रहता। एसी ि2थत म हमे हमारे बाहर( कमK के 4लए सतकK
रहना है । अगर पाचन अEछा होगा तो मनु9य कुछ भी कर सकता है ।
बाNय कमK अंद:नी कमK को भा3वत नह( करे गा। हमे यो}य नींद और
आहार नय4मत तौर पर लेने है।
84. डर मनुMय के मन का सज
ृ न है । आ
मBिMट के 'लए कोई भय
नह! होता। भय उन लोगो को लगता है , जीनके पास अंदiनी BिMट नह! है ।
अंध यि5त के 'लए गाडी कैसी है उसका Lववरण दे ना संभव नह! है , उसी
62 चदाकाश गीता
मतलब अपने अंदर बसी असदवृ तयां। जीस तरह रामने रावण का नाश
Iकया उसी तरह हमे हमारे अंदर बसी अस~वृ तयM का नाश करना है ।
सीता मतलब हमारा चत। जीस तरह सीताने राम के साथ 3ववाह Iकया
था उसी तरह हमारे चत को हमारे अंतरामा (राम) के साथ 3ववाह करना
होगा। सीता जीस तरह पूण:
K प से राममय हो गये थे उसी तरह चत को
भी आमा म ल(न होना होगा। ल[मण मतलब 3वचारो का अंकुश। ल[मण
जीस तरह परछा क@ तरह राम के साथ चलते थे उसी तरह हमारा
3वचारनयंGण आमा के साथ जूडा रहना चा&हए। कृ9ण मतलब अपने आप
ु ूत मतलब कृ9ण। आमा क@ अनुभूत से
को पहचानना। (आमा) क@ अनभ
शाqवत आमकाश कट होता है ।
कोई रोशनी 4मलती नह( है लेIकन फानुस के शीशे को खुWला Iकया जाता
है तो उसक@ xयोत xयादा का4शत होती है । मन (चत) वासनाओ क@
अशु3t से घरा हुआ है , चत (मन) क@ अशु3tओ दरू क@ जाये तो मन
(चत) क@ रोशनी उxजवल होती है । हम हाथ म 4मी लेते है और मन से
उसे चीनी माने तो वह 4सफK कWपना ह( है लेIकन 4मी का 2व:प बदलता
नह( है । उसी तरह आमा के साथ एक:प हुए जीव क@ शार(oरक मयाKदाएं
कायम रहती है । तन का अधूरापन कायम रहता है और उसका आमा
पूण:
K प से शुt होता है । 4मी, 4मी रहती है और शर(र, शर(र रहता है ।
ईस4लए ह( Xानीलोग शर(र क@ मयाKदाओ के अधीन रहते है । सोये हुए
मनु9य को नाग काटता है तो नाग का काटना उसे मालूम नह( होता उसी
तरह Xानी को उनके शर(र और उसक@ अपूणत
K ा का भाव नह( होता।
ि}लश या Iकसी भी भाषा म 4लखा गया पG पांच-छः म&हने के बEचे को
&दया जाये तो उसे पG म 4लखी बातो से कोई न2बत नह( है । उसी तरह
Xानी भी सांसाoरक बातो पर ल$ नह( दे ते। Xानी के 4लए पथर और ह(रे
के बीच कोई फकK नह( होता। उनम tैतभाव पूण:
K प से न9ट हो जाता है ।
बEचो क@ तरह उनम शर(र का Xान नह( होता। Xानीओ के ाण सुषD
ु ना
म रहता है और वे परONम का शाqवत आनंद ाwत करते है ।
93. बnचा उ} बढने के साथ जैसे जैसे सभी चीजो का 8ान ाDत
करता रहता है वैसे वैसे पहले के 8ान का मूdय रहता नह!। मनुMय सवF8
हो ईस'लए बnचे जैसा हो जाना चा@हए। सnचा 8ानी 6 म@हने के बnचे
जैसा होता है । जीस तरह छोटे बnचे को कुदरती हाजतो के बारे 8ान नह!
होता। उसे दो तरह क3 कुदरती हाजतो मE कोई फकF नह! लगता। 8ानी भी
छोटे बnचे जैसा है , उसे चाहत या नारजगी नह! होती। उनके 'लए झहर या
70 चदाकाश गीता
अमत
ृ दोनो ह! समान होते है । वे दोनो मE से कुछ भी 'मले उसक3 परवा
नह! करते। 8ानीओ को अ:न-वj या क3सी भी चीज क3 ईnछा नह!
होती। वे आ
मा मE म^न बन जाते है ।
पMट!करणः मनु9य को आमशु3t के सवvEच 4शखर पर पहुंचना है
तो उसे Xान-अXान सब भूल जाना चा&हए। उसे छः म&हने के बEचे जैसा
बन जाना चा&हए। िजस तरह छः म&हने का बEचा जगत के बारे म जानता
नह( है । अXान और नः2पहृ ( भाव छोटे बEचे क@ ाकृतक अव2था है
उसके 4लए कोई यास नह( करना पडता। सEचा Xानी छः म&हने के बEचे
जैसा है ष जीस तरह छोटा बEचा अपनी दो कार क@ ाकृतक हाजतो के
?बच का फकK नह( समझता उसी तरह Xानी को अEछे -बूरे के ?बच का फकK
मालूम नह( पडता। भोजन और झहर दोनो उसके 4लए समान है । Xानी को
झहर दे ने का यास करनेवाले को यह सय समझ लेना चा&हए। Xानी
जगत के tैतभाव और रागtैष से पर होता है । Xानी को अEछा भोजन या
जगत क@ चीजो क@ ईEछा नह( होती। वह हरदम आमा क@ म2ती म होता
है और परONम म एकाकार रहकर परम सुख का आनंद ले रहा होता है ।
दस
ू र( सभी चीज न9ट हो सकती है । मन क@ मणा क@ वह शर(र है और
यह क@ आमा 2थायी नह(ं है। यह $णजीवी है । मन क@ ईन मणाएं
“4शव” नह(ं है । 4शव अ3वनाशी है और अ3tतय है ।
103. गi
ु के Yबना 8ान संभव नह! है और गi
ु के Yबना स
य क3
अनुभूत नह! होती। ईस जगत मE Yबना कारण प`रणाम नह! होता। जब
जगत मE अंधकार काश क3 तरह @दखता है तब उसे 8ान कहा जाता है ।
काश वह 8ान है । दं भी बनकर क3तF के पीछो मत भागो।
पMट!करणः सवvतम शाqवत सय क@ अनुभूत के 4लए गु:
अनवायK है । गु: के ?बना सह( Xान ाwत नह( हो सकता। पु2तको से
Xान ाwत नह( होता। सय एक सकारामक सय जो क@ प2
ु तक के Xान
से भी उपर है । सय का Xान 4सफK सEचे गु: दे सकते है । ईस जगत म
?बना वजह पoरणाम संभव नह(। आVयािमक गु:हुआसे &दया
Fयावहाoरक Xान ह( 4श9य को आमा क@ पहचान कराता है। सय 1या
है ? अंधकार म काश के दशKन, अXानता म Xान के दशKन, tैत म एक
का दशKन वह सय है । असय म सय का आ3भाव तब होता हौ जब
tैत का भाव न9ट होता है । अंधकार वह अXानता है और काश वह Xान
है ।हमे कोमल फुल के पीछे छूपे हुए काले नाग क@ तरह नह( बनना है ।
हमे कमK, वचन और 3वचार से शुt होना है ।
107. 'शव (ई)वर) के Sवारा द!या गया संघषF, दःु ख आ@द सह! मE
दःु ख नह! है वह हमारे मन क3 मणा है । जब हम प|ृ वी पर आयE तब भी
हमे कुछ समया हुई थी। अंतकाल मE भी होती है । मनुMय माता के गभF
से बाहर आता है तब आंसु आते है ।
पMट!करणः ईqवर हमे मुिqकल और दःु ख दे ते है , जीसक@ वजह से
हमे जगत के आनंद 4मया है वह समझ म आता है । ईqवर क@ ओर से
द( जाती मुिqकल और दःु ख हIककत म दःु ख नह(ं है । हमे उससे काIफ
लाभ होता है । 1यMक@ हमार( मान4सक #$तजो का 3वकास होता है । ईन
मुिqकल और दःु खो क@ वजह से ईqवर के त हमार( +tा बढती है । हमे
अनुभव होता है क@ हम हमारा भा}य बनाने म Iकतने असमथK है । ईqवर
क@ ओर से &द जाती मुिqकल और दःु ख हमे नुकसान करते है ऐसा
समझना एक मणा है । जम के व1त हमे मुिqकल हुई थी, अंतकाल म
भी मुिqकल होती है । माता के गभK से तब भी आंखे पीडा क@ वजह से
आंसुओ से भर जाती है । यह ाकृतक म जम-मृ यु के साथ जुडा है जो
सूचत करता है क@ जगत म दःु ख के 4सवा कुछ नह( है । ईस जगत म जो
भी सुख &दखाई दे ता है वह चीनी से आवoरत कडवी गोल( क@ तरह है ,
जीसका अंद:नी 2वाद कडवा ह( होता है । ईस4लए मनु9य का परम प3वG
फजK है क@ अपने ह(त म ह( ईqवर के परम सुख का अनुभव कर जो क@
शाqवत है ।
82 चदाकाश गीता
नह!ं है । अफवा या कानो कान सुनी हुई चीजE आनंद नह!ं है । नरं तर
अनुभव से जो अनभ ु ूत होती है वह! शा)वत आनंद है ।
पMट!करणः जीसे हoर कहा जाता है वह मणा है । हoर मतलब
माया। माया वह दे व नह(ं है । हमे माया के अधन नह( होना है । 4शव ह(
महादे व है । 4शव मतलब एक अ3वभाxय, अ3tतय, सावK?Gक, वह( ईqवर
है । Xानी श]दो के भेद भूल जाते है । वे अपनी म2ती और ईEछा के
अनुसार श]दो का अथKघटन करते है । यहां “हoर” श]द का अथK माया है ।
हम माया क@ मणाओ से बु3t9ट नह( होना है । जो परछाई है वह माया
है । मणाओ से बु3t9ट नह( होना है । जो परछाई है वह माया है । मणा
जो क@ 2थूल और सू[म से खडी होती है वह एकसमान है । दोनो के बीच
यह फकK यह है क@ 2थूल चीजो क@ मणा अ3वनाशी के 4लए है । 2थूल
चीजो क@ मणा नाशवंत के 4लए है । सू[म चीजो क@ मणा बहुआयामी
बहु&दशावाल( होती है । हमारा Vयान सांसाoरक बातो म अटका हो तब
बीखरा होता है लेIकन जब वह आमा पर केl(त होता है तब एककेl(
हो जाती है । यह चीज उस चीज से अलग है ऐसा कहना वह( मणा है ।
यह मणा क@ वजह से दो चीजे होने का अहे सास होता है अयथा सब
कुछ एक ह( है । मणा उपि2थत होने क@ वजह मन है । मन का नाश
Iकया जाये अथाKत मन म पैदा होती ईEछाओ को न9ट कर &दया जाये तो
मणा अतीत के 3वषय बन जाती है । हे मनु9य (भूतकाल) चदाकाश म
दे खो और यह दे ख क@ शाqवत आनंद 1या है । आंतरlि9ट से दे खो और
शाqवत आनंद को ाwत कर। बताएं क@ 1या अनभ
ु व होता है । 4सफK दस
ू रो
के मुंह से कह(-सुनी बातो से चचाK न कर। कानोकान कह( बात हIककत
89 चदाकाश गीता
कंु ड'लनी जागृ त का आनंद ाDत करE । ऊठE , तील! माचस क3 पेट! मE है ।
ईस तील! मE काश है । तल! को घसे और अि^न को \\व'लत करE ।
अ8ान अंधकार है , 8ान काश है । कंु डल!नी शा)वत सुख है । वह अव)य
शा)वत सुख है । शा)वत सुख Rदय मE है । अनंत काश अथाFत कंु ड'लनी।
कंु ड'लनी yzमा का काश है । सूय
F काश सूoम काश है । सुष
ु ना मतलब
सूयF नाडी। ईडा मतलब चंB नाडी। Lपंगला तारा ('सतारा) नाडी है । तत
ृ ीय
आंख का बैठना 8ान के 'लए है । ईस नाडी मE 8ान है । ईस नाडी मE
सुषिु Dत-8ान नBा है । ईस नBा मE जागृ त नह! होती। ईस नBा का आनंद
ाDत करE । यह सांस स
य मE िथर होता है । वह चदाकाश है । अंदiनी
आकाश मE शा)वत सुख का 'मनार (तंभ) है । यह तंभ वह शांत क3
बैठक है । अपना नBा मE सभान नBा का सुख ाDत करE । यह पशु नBा
नह! है , यह मनुMय क3 नBा है । ईस नBा का आनंद ाDत कर, जो
मनुMय जीवन का Zयेय और उसका अंत है । @दय चkु क3 आZयाि
मक
नBा का लुत उठायE, बोलते, बैठते और वह भी क3सी ईnछा के Yबना
LवचारLव@हन दशा मE ईस @दय नBा का आनंद ाDत करE । सांस, नBा
दोनो पर Zयान के:B!त करE । आंतर और बाहर! सांस से ाकृतक जप करE ।
मन से – च
त से सूoम भि5त करE , अव)य करे । बंधन मुि5त 'सJ करE ।
नरं तर भि5त-अवरोधLव@हन भि5त, नरं तर उपर और नीचे सांस ले। उपर
क3 ओर सांस लेना वह परू क है । सांस को रोकना-नरोध मतलब कंु भक।
जीसमE होता ई)वरदशFन ह! सवसवाF है । भेदबLु J मतलब मै और तुम का
भेद अंतकाल मE पीडाकारक होगा। ईस चीज क3 अनुभूत करने के 'लए
आपको थोडा वाथI होना पडेगा। यह वाथI भाव अथाFत भेदबLु J, लोभबLु J
अंतकाल मE पीडा क3 वजह बनती है । यह लोभवृ त क3 वजह से मौत के
91 चदाकाश गीता
जैसा वेदांत नह(ं लेIकन मणा है । मुि1त अगर 4सt होती है तो मनु9य
(चत) को 4श#$त अqव जैसा बनाता है ।
ईन दोनो के ?बना आहार नह( बना सकते। मुि1त क@ 4स3t के 4लए 3ववेक
और बु3t महवपूणK आवqय1ताएं है । मुि1त तैयार हुआ भोजन है ।
137. अगर आप पण
ू त
F ः शांत ाDत क3 हो तो अj तj घूमने क3
जiरत नह! है । काशी, रामे)वर, गोकणF और दस
ू रे तीथFथानो पर जाने क3
आव)य5ता नह! है । यह सब चदाकाश (द!माग) मE @दखता है। आना और
जाना सब मन क3 मणा है । जब मन क3 शांत 'सJ होती है तब सब
एक मE ह! @दखता है । एक मE ह! सब @दखता है । यह ईnछार@हत दशा है ।
हाथ मE रह! चीज हाथ मE दे खनी चा@हए। आप वह अ:यj कह!ं नह! दे ख
सकते उसी तरह सब अपने Lवचारो से अनुभव ाDत करके करना चा@हए।
पMट!करणः अगर पण ू तK ः शांत 4सt हुई हो तो यहां वहां भटकने क@
आवqय1ता नह( है । दस
ू रे दशKन क@ आवqयकता नह(ं है । मानवमन क@
चंचलता क@ वजह से मनु9य को तीथKधामो म यहां वहां भटकने का मन
109 चदाकाश गीता
139. भूखे लोगो को ह! पता होता है क3 भूख 5या होती है उसी तरह
आ
मा को ह! सवF जगत का पता होता है । जैसे े न टे शन छोडती हे तब
नज@दक के टे शन पर सुचना द! जाती है उसी तरह कूएं मE प
थर फEकने
से आवाझ आती है उसी तरह जब ाण नाडयv मE घूमता है तब दस तरह
के नाद सन
ु ाई दे ते है ।
पMट!करणः मानवी क@ आमा अनंत ईqवर का &ह2सा है । वह
सवKXात है । जैसे भूखे लोगो को ह( मालूम होता है क@ भूख 1या है उसी
तरह सब Xान आमा को होता है । _े न 2टे शन से नीकलती है तब
नज&दक के 2टे शन पर तार भेजा जाता है । जैसे कूएं म पथर फका जाये
तो पानी म गरने से आवाझ हाती है उसी तरह ाण नाडयM म घम
ू ता है
तब नाडयां शुt होती है और दस तरह के नाद उपन होते है । यह बात
बताती है क@ मनु9य क@ अंद:नी शर(र Fयव2था अEछs तरह चल रह( है
और वह ईस बात को भी सूचत करता है क@ कंु ड4लनी चदाकाश म से
सह2Gार क@ ओर गत कर रह( है , जो क@ उसका सह( 2थान है।
111 चदाकाश गीता
140. बंध मुंहवाले बरतन मE पानी उबाला जाये तो परू ! गरमी बरतन
मE केि:Bत होती है । पंप मE से पानी बाहर आता है तब ओमकार का नाद
होता है । हमे जंगल के रातv को छोडकर राजमागF लेना चा@हए। जो शि5त
अधोमागI होती हो उसे ऊZवFमागI करनी चा@हए। मन को मन का थान
समझना चा@हए।
पMट!करणः हमे हमार( कंु ड4लनी को जागत
ृ करके शर(र म ह( उसक@
शि1त को केl(त करनी चा&हए। हमार( शि1तयां सांसाoरक उेशो म
Fयतीत नह( होनी चा&हए। हमे ईिlय के ~वार बंध कर दे ने चा&हए,
जीससे हमार( शि1त Fयतीत न हो। हमे हमार( शि1तयां ऊबलते पानी के
बंध मुंहवाले बरतन म िजस तरह केl(त होती है उसी तरह करनी चा&हए।
ऐसे जब 4सt होगी तब ओमकार के 4सवां कुछ नह( &दखेगा। पानी के पंप
म से पानी नीकलता है तब ओमकारना नाद क@ अनुभूत होती है।
ओमकार हमारे 4लए सवK2व बन जायेगा। सांसाoरक जीवन के जंगल( मागv
का याग करके हमे &दFय जीवन का राजमागK 2वीकार करना चा&हए।
शर(र क@ शि1तयां क@ िजनका मागK अधोगामी हो रहा हो तो उसे
ऊVवKगामी करना चा&हए। मन को उसक@ चदाकाश म रह( ि2थत का Xान
हो तो उसे सातयपण
ू K और संतु9ट रहना चा&हए।
141. Yबना पान क3 जगह मE जैसे नौका तैर नह! सकती उसी तरह
ाण क3 गत न हो तो र5तसंचार नह! होता। र5तसंचार iके तो शर!र मE
गरमी पैदा नह! होती। शर!र मE गरमी पैदा न हो तो आहार का पाचन नह!
होता उसी तरह Yबना अि^न के े न चल नह! स5ती।
पMट!करणः नौका को तैरने के 4लए पतवार क@ जCरत होती है ।
रे लवे-_े न को चलाने के 4लए आग क@ ज:रत होती है उसी तरह शार(oरक
112 चदाकाश गीता
143. िजस तरह लकडी मE से उसी पाट बनाने के 'लए उसे उपर-नीचे
काटना पडता है उसी तरह सांस को शर!र मE उपर-नीचे ले जाना चा@हए।
उसे बLु J मE ले जाना चा@हए और हरदम उसे उपर क3 ओर ले जाना
चा@हए। प
थर को पहाडी के 'शखर क3 ओर फEकने के 'लए काफ3 यास
करने पडते है लेXकन उपर से नीचे क3 ओर प
थर फEकने के 'लए यास
नह! करना पडता। उसी तरह 'शखर पर चढ़ना मुि)कल है लेXकन उतरना
आसान है । ाण के 'लए शर!र छोडना क@ठन है । चीज लेनी आसान है
लेXकन वह वाLपस करना क@ठन है । जो मनुMय अपने 8ान वाLपस नह!
करते वह मानव कहने लायक नह! है । वE गण
ु v के अभाववाले पशु है ।
113 चदाकाश गीता
&हंमत से दु नया 1या कहे गी उसक@ चंता Iकये ?बना यास करता रहता
है । गहर( नंद म सोये मनु9य को भूख क@ अनुभूत नह( होती 1यMक@
उसका मन सुषwु त होता है । योगनlा से मनु9य को ईqवर का सा$ाकार
करके उस म एकाकार होकर जीना चा&हए। ईसे योगनlा कहते है ।
योगनlा 1या है यह समझनेवाले ह( Xानी होते है ।
149. हाथ मE रहे पMु प क3 खु)बु का अनुभव नह! हो सकता। दरू रहे
पMु पो क3 मीठu खु)बु आती है । बnचे जीनके मन का Lवकास नह! हुआ वे
सांसा`रक जीवन क3 चीजो मE फकF नह! समझते। उनका Lवकास होता है
तभी जगत क3 चीजो का फकF उ:हE मालूम होता है । छः म@हने के बnचे को
सांसा`रक जीवन का 8ान नह! होता। उnच कkा के योगीओ ईस तरह के
होते है । जीस तरह छः म@हने के बnचे को ह!रे और कांच क3 गोल! के बीच
117 चदाकाश गीता
का फकF मालूम नह! पडता। उसी तरह सnचे 8ानी को 'मsी और पैसो के
Yबच कोई फकF नह! लगता। वे ईnछार@हत होते है और आ
मा के दशFन
सवFj करते है । आ
मा मE सवF का और सवF मE आ
मा के दशFन करते है ।
उनक3 BिMट अंदiनी होती है। आंतरBिMट अथाFत सूoम Lववेक। सूoम
Lववेक मतलब 'शवशि5त। 'शवशि5त परyzम का वiप है ? परyzम 5या
है , वह आ
मा क3 शि5त है । यह एक का रहय है ।
पMट!करणः अंतर हो तो आनंद रहता है । मनु9य क@तना भी महान
हो अगर वो नज&दक रहता है तो हम उसक@ महानता को दरIकनार करते
है । फुल जब हाथ म होता है तब उसक@ खुqबु हमे ाwत नह( होती लेIकन
दरु जो फुल है उसक@ खुqबु मीठs लगती है । हम दरु रहकर मनु9य क@
महानता का अनुभव कर सकते है । सEचे Xानी बEचे जैसे है उह कोई भेद
क@ अनभ
ु ूत नह( होती। छोटे बEचे को जैसे ह(रे और कांच क@ गोल(ओ म
कोई फकK नह( लगता उसी तरह योगी-Xानीओ के 4लए भी ह(रा या कांच
क@ गोल( एकसमान होती है । सEचा Xानी ईEछार&हत होता है । उसे कोई
भेद &दखाई नह( दे ता वह एक आमा सवKG दे खता है और एक आमा का
दशKन सवK म करता है । सू[म 3ववेकबु3t क@ वजह से उसक@ lि9ट
आंतoरक होती है । जो 2थूल आंखो से नह( &दखाई दे ती। 4शवशि1त मतलब
परONम क@ पराशि1त है । आमा के सा$ाकार से 4शवशि1त का दशKन
संभव होता है । परONम मतलब मानवी का शाqवत आमा है । आमा एक
वा2त3व1ता है । जगत क@ दस
ू र( चीज अवा2त3वक आभासी है ।
पास जाना पडेगा। ईसे ारं भ कहा जाता है और उसका पoरणाम ईqवर का
सा$ाकार है । गु: के चरणो म बैठना वह कारण है और उनका भाव
आमा का सा$ाकार है । ईस जगत म ?बना कारण पoरणाम संभव नह(ं
है ।
157. आ}वk
ृ पर सभी फुल एकसाथ पकते नह! है । सबसे पहले
कnचा आम बनता है और साथ मE प5का आम बनता है । प5के आम खा
सकते है । सभी बातो मE शांत रखना हमे 'सखना है ।
पMट!करणः सब लोग एकसाथ मुि1त ाwत नह( कर सकते, जीस
तरह सब आम एक साथे नह( पकते। हर मनु9य का 2वभाव अलग होता
है । जीस तरह आमM म कEचा आम थम उगता है और साथ म अय
आम पकते जाते है उसी तरह Fयि1त के आमच$ु खूलते है तब अपने
दोष &दखने लगते है और सांसाoरक गुण छोडता जाता है । वह मानव भी
प1के आम जैसा हो जाता है । उनके दग
ू ुण
K राख हो जायगे और उसमे
सुवणK रह जायेगा। मनु9य को अपने चदाकाश म सवvतम शांत ाwत
करनी चा&हए। उसे शांत सब म और सवKG दे खनी चा&हए।
123 चदाकाश गीता
160. दMु ट मनुMय कूएं मE गरे तो हमे उसे डूबने नह! दे ना चा@हए।
हम ऐसा नह! मानते क3 मनुMय सदै व खराब ह! होगा। हमे उसक3 बरू ायv
को दरू कर के स
मागF क3 ओर ले जाना चा@हए।
पMट!करणः कोई बूरा मनु9य कूएं म गरे तो हमे उसे डूबने नह(
दे ना चा&हए। हमे ऐसा मानने क@ ज:रत नह( है क@ बूरा मनु9य कभी
सुधरे गा नह(। कोई भी मनु9य Iकतना भी खराब हो लेIकन हरदम बूरा नह(
रहे गा। कोई बी मनु9य शाqवत तौर पर बूरा नह( होता। आज या कल
उसमे सुधार आयेगा। मानवजीवन का ल[य &दFय जीवन क@ &दशा म
गत करना वह है । हमे बूरे मनु9य को सध
ु ारने के 4लए हरदम यास
करना चा&हए और उसे समागK पर ले जाने का यास करना चा&हए।
165. जो लोग दस
ू रो को शूB कहते है वे खुद शूB है । केले के पौधे
क3 कलम हो और उसमE से अनेकLवध खाSय पदाथF हम बना सकते है ।
केला एक फल है और उसके टुकडे करके उसे तला जाता है तो उसे केला
नह! कहा जाता। उसे हम ‘वेफर’ कहते है । उसी तरह केले मE से बनी
अनेकLवध सामी के नाम अलग अलग होते है । शुi मE एकसाथ सब केले
होते है लेXकन खाSय सामी बहूत सार! बन स5ते है । मूल वiप एक ह!
है उसी तरह सब जीवो मE ‘ओमकार’ नाद एक ह! है ।
पMट!करणः शूl वे लोग है जो दस
ू रो को शूl कहते है । मनु9य
ईqवर म से पैदा हुआ है और अंतगोवा ईqवर म 3वल(न हो जानेवाला है ।
जात का फकK $णजीवी है । केले क@ शाखा एक हो तो उसम से अनेक3वध
खा~य साम|ी बनेगी। केला एक फल है लेIकन उसके टुकडे करके तला
जाये तो उसे हम केले क@ वेफर कहते है उसी तरह केले के अनेक3वध
Fयंजनो को हम केला नह( कहते उसी तरह मूल 2वCप एक ह( है । एक
अ3वभाxय ईqवर म से वै3वVयपूणK ONमांड का जम होता है । हम दे खते है
क@ वह 3व3वधता दे खनेलायक है । ईस सार( सिृ 9ट म छन ए1ता है ।
ए1ता म 3व3वधता का सा$ाकार करना वह मानवजीवन का ल[य है ।
ओमकार का नाद सभी ाणीओं म एकसमान है । ओमकार एक अ3वभाxय
और शाqवत है । ओमकार सारे 3वqव म Fयाwत है ।
168. उसी तरह हमे सभी बातो क3 समझ ाDत करनी चा@हए। एक
चीज िथर खडी है । दस
ू र! काम करती है । सब एकदस
ू रे का अनुसरण करते
है । वे :याय और अ:याय दोनो से अ8ात होते है । :याय 5या है वह
समझने के बाद अ:याय के सामने झक
ू े गा नह!ं। :यायपण
ू F यि5त के 'लए
अ:याय करना मुि)कल है । ऐसा मनुMय कभी जूठ नह!ं बोलेगा। भले ह!
उसक3 जीभ तूट जाये। अ:यायी यि5त को सब चा@हए होता है । :यायपण
ू F
यि5त को कुछ भी नह! चा@हए। वह कभी क3सी से डरता नह! है ।
अ:यायी यि5तओ के मन जगत क3 ग
ू थी मE फंसे रहते है। हर यि5त
का फझF है क3 :याय 5या है और अ:याय 5या है ।
पMट!करणः मनु9य को याय और अयाय 1या है उसक@ समझ
होनी चा&हए। यह Xान ?बना का मनु9य दस
ू रे का अनुसरण करे गा। ईस
जगत म बहुत सारे लोग दस
ू रे का अनुसरण करते है । यायपण
ू K Fयि1त को
अयाय करना मुिqकल है तो अयायी Fयि1त को अयाय करना आसान
होता है । सEचा मनु9य कभी जूठ नह( बोलेगा भले उसक@ जीभ के टुकडे
जूठ न बोलने के 4लए हो जाये। अयायी और जूठे लोग हरदम सांसाoरक
जीवन मे म}न रहते है । नजर से &दखता है वह सब उह चा&हए होता है ।
132 चदाकाश गीता
सEचा मनु9य ईEछार&हत होता है । उसे कुछ नह( चा&हए। उसे क@सी का
भय नह( लगता। सारे 3वqव म समा हुआ है । उसे सांसाoरक जीवन क@
कोई खेवना नह( होती। हमारा प3वG फझK है क@ 1या यायपूणK है और
1यां अयायपूणK है है और वह हमारे आमा क@ पहचान करने का है ।
कहते है । जीव मतलब मनोवृ तयां। परमा
मा अथाFत गाढ मौन जो तीन
गण
ु ो से पर होते है । वे खराब और अnछा कुछ समझते नह!ं, गमI-ठं ड से
पर होते है वह गण
ु र@हत है , व*पह!न, शू:य है ।
पMट!करणः मनु9य जममृ यु के च1कर म से जब उसे सब म एक
का अनुभव होता है तब मु1त हो जाता है । जो लोग अचल तौर पर ‘एक’
के भाव म ि2थर हो जाते है तब वे चाहे तब मर सकते है । ऐसे लोग
ईEछार&हत होते है । बहुत म एक क@ अनुभूत बहूत ह( स[ू म चीज है ।
वै3वVय म ए1ता का अनभ ु व करना वह मानवजीवन का ल$ है। एक lि9ट
मतलब सभी म आमा का अनभ
ु व करना वह है । आंतरदशKन मतलब ईqवर
का दशKन सवK बातो म करना वह है । ईसे जीवामा और परमामा का
एकव कहा जाता है । जीवामा और परमामा (ि2पoरट) मूलतः एक ह( है
Iफरभी जीव का अि2तव अलग होता है । खास तौर पर तब जब क@ वह
सांसाoरक वृ तयM म म2त होते है । परमामा गाढ मौन है जो क@ तीन
गुण-सव, रजस, तमस से पर होते है । उह बूरा-अEछा, गम-ठं ड क@सी
बात क@ अनभ
ु ूत नह( होती। परमामा सवvपर( है । वह सह( अथK म
ि2थतX है , वह गुणर&हत, 2व:पर&हत शुt 2वव:प है ।
173. मत
ृ क चीज मE गत नह!ं होती, वह आवाजर@हत होती है तो
जीLवत चीजो को आवाझ क3 मणा होती है । उसमE चेतना होती है । सजीव
ाणीओ मE हु'लया और गत होती है । आवाझ से सचेत जीवो को आवाझ
क3 मणा होती है । उनमE yzम काश होता है । ाणीओ क3 सचेतन
अवथा मE काश है । मानवी को :याय और अ:याय क3 अनुभू त होती है ।
नन &ेणी के ाणीओ मE ईस तरह के भेद नह! होते। मनुMय सिृ Mट के
सवF ाणीओं मE &ेMठ है । मनुMय के 'लए ईस जगत मE कुछ भी असंभव
नह! है । मनुMय yzमांड मे है और yzमांड मनुMय मE है । मनुMय ाणीओ मE
&ेMठ ाणी है लेXकन मनुMय का द!माग चंचल है । मनुMय मE आलोक और
परलोक दोनो एकाकार हो जाते है । 'शवलोक द!घFचkु है । 'शवनाडी मतलब
सुष
ु णा नाडी और वह yzमनाडी कह! जाती है । 'शवलोक के दे वता ओर
कुछ नह! लेXकन 'शवशि5त है । माया 'शव मE है । सजFन और Lवनाश 'शव
क3 माया है । yzमा मE सभी छ:न शि5तयां है । आ
मा, yzमा, जागृ त
चेतना, तकF, नBा, ध`र, अ8ान सारा बाहर! जगत उसमE समाया है ।
पMट!करणः मनु9य म रहे ाणो क@ वजह से उसमे गत होती है ।
मत
ृ क चीजो म गत नह(ं होती। वह आवाझर&हत है । जी3वत चीजो म
चेतना होती है और वह मानवमन क@ मणा है । सचेत ाणीओ क@ परछाई
और गत होती है । उनम 3वचारशि1त होती है । ाणीओ आवाझ से सचेत
होने क@ वजह से उनम आवाझ क@ मणा होती है । मनु9य म रह( चेतना
या सचेतन अव2था उनमे रहनेवाला ONमकाश है । मनु9य याय और
अयाय का फकK समझ सकता है । नDन क$ा के ाणीओ के 4लए यह
शि1त नह( होती। सिृ 9ट के सज
ृ नकताK का मनु9य +े9ठ और उतम ाणी
है । उसम न4भK1ता हो तो जगत म कुछ भी 4सt करना उसके 4लए
136 चदाकाश गीता
दे ते है । Jैतभाव का अनभ
ु व करना वह नकF के समान है । पण
ू F एक
व का
भाव वह मुि5त है । पूणF भि5त वह मुि5त है । पण
ू F शांत, अवरोधर@हत
शांत वह मनुMयजीवन का लoय है । यह योगानंद ह! परमानंद है ।
महासागर सभी नद!यv से बडा होता है । महासागर क3 सीमा नह!ं होती।
महासागर के जल को नापना असंभव है । संसार को
याग कर भि5त
करना संभव नह!ं है । हमे संसार मE रहकर मुि5त ाDत करनी है और वह
संसार मE रहकर भि5त करते करते, ईnछा अथाFत संसार! ईnछार@हत दशा
मतलब मुि5त। मुि5त 'मले तो परमानंद 'मलेगा, शा)वत 8ान
(समझदार!) 'मलेगी। शा)वत शांत वह उnचतम सुख है क3 वह
मनुMयजीवन का लk है । जब मन शा)वत सुख मE तैरता हौ तब उसे
मुि5त कहा जाता है । भि5त शा)वत सुख क3 िथत है ।
पMट!करणः ईqवर के सा$ाकार के 4लए सू[म 3ववेक जCर( है ।
सू[म 3ववेक मतलब उपध। सू[म है वह 2थूल म छूपा है । ईqवर सू[म है ,
ईस4लए वह जगत क@ हर 2थूल बातो म समाया है । सू[म 3ववेक का
मूल2थान दयाकाश (चदाकाश) है , जब कंु ड4लनी को चदाकाश म
मि2त9क तक ले जाया जाता है तब सांसे एक ह( रहती है और उसे
अंद:नी सांस कहते है । यह उEचतम ि2थत तब ONमांड हमारे अंदर रहता
है । हम एक परम शि1त का 3वकास करगे, जीससे ONमांड ट(का रहता है ।
ऐसी ि2थत म हम सब कुछ हमारे अंदर दे ख सकते है । सब तरह के
अलग अलग पoरवतKन हमारे अंदर दे ख सकगे। ऐसी ि2थत म जगत क@
सभी घटनाएं हमारे चत म दे ख सकगे। सिृ 9ट के 3वनाश और सज
ृ न दोनो
को चदाकाश म दे ख सकगे। tैतभाव से बडा नकK कोई नह( है ।
एकामभाव वह मुि1त है । अचलतापूणK भि1त वह मुि1त है । भि1त वह
138 चदाकाश गीता
181. अि^न मल
ू तः अंदiनी चीज है। अि^न सभी मE &ेMठ है । सम
सिृ Mट का मूल अि^न है । थम हमे साkा
कार करना चा@हए और बाद मE
उसका लाभ अ:य को दे ना चा@हए। हमारा मनुMय के तौर पर उnचतम
फझF है । जब आपको दःु ख क3 अनुभू त होती है तब उस चीज का याल
रखना है क3 दस
ू रो को हमारे जैसा ह! ददF होता है । अगर आप को भूख क3
अनुभूत होती है तो दस
ू रो को भी आपक3 तरह भूख लगती है । हमE यह
सोचना चा@हए क3 हमारा लoय वह दस
ू रो का भी लoय है । जो डो5टर कोई
दवा जानता हो और दस
ू रे को म
ृ युपयत बताता है तो वह मनुMय नह!
कहलायेगा। Lव)व का उnचतम 8ान ई)वर का 8ान है । यह 8ान अ:य को
142 चदाकाश गीता
उपयोग नह! हो सकता। उसे अि^न मE पीघलाकर उसके अंदर का कचरा दरू
करना चा@हए तभी वह का'शत होता है उसी तरह मन का कचरा ईnछा
और rोध है उसका नाश होना चा@हए।
पMट!करणः अंध मानवी के 4लए रोशनी कुछ काम क@ नह( है भले ह(
वह मोमबती हाथ म रखकर खडा हो उसी तरह Xान और Xानी का ईस
संसार के लोगो के 4लए कोई उपयोग नह( है । भले ह( वह उन लोगो के
साथ रहता हो। जीस तरह लोगो के पेट भरे हो उनको xयादा आहार क@
आवqय1ता नह( होती उसी तरह जो लोग आVयाम के उEचतम 2तर पर
पहुंचे है उनके 4लए अय क@ कोई मदद क@ आवqय1ता नह( होती। वह
आमसंतु9ट रहे गा और परम शांत उसमे होगी। हमार( भूख 4सफK खूqबू
लेने से संतु¡ट नह( होती। भूख क@ तिृ wत के 4लए आहार लेना ज:र( है ा
हमे ईqवर के परम सुख के बारे म Iकताब पढकर या उसके बारे म सुनकर
परम शांत ाwत नह( होगी। हमे अनुभूत करनी पडती है । सुवणK का
टुकडा हाथ म हो तो उसका कुछ उपयोग नह( होता लेIकन उसे पीघालकर
उसम से कचरा दरू Iकया जाता है तभी वह का4शत होता है। ईसी तरह
मन का मैल ोध और ईEछाएं दरू क@ जाये तभी मन शुt होता है । ऐसा
होता है तब आमसा$ाकार होता है ।
है । पेट( म पडे बीज कभी अंकुoरत नह( होते। भू4म म उगाये गये बीज को
अगर खाद और पानी &दया जाता है तो यो}य:प से 3वक4सत होता है ।
हमारा मानस आमा के त केl(त नह( होगा तो आमसंतोष ाwत नह(
होता। वह पेट( म पके हुए बीज जैसा है । जब मनु9य आमा क@ ओर
Vयान केl(त करता है तब आमा के परमसुख का अनुभव करता है । ईस
के 4लए हमे अ
यास करना चा&हए और अनुभूत करनी चा&हए। हम ह(
हमारे सुख या दःु ख के 4लए जवाबदे ह होते है । ईqवर मनु9य के कायK म
दखल नह( करते। हमारे हरएक कायK के 4लए कोई तIया (oरए1शन)
नह( होती। हमारे दःु ख या सुख के 4लए 4सफK हम ह( जवाबदे ह होते है ।
अEछे कमK के पoरणाम अEछे होते है और बूरे कमK के बूरे होते है । जब
मनु9य नवृ त के ऊEचतम 2तर पर हो तब ईqवर क@ परमशि1त का
अनुभव होता है ।
पoरपूणत
K ा- मुि1त के दे वता-3वqव के शहं शाह को 4श$ा दे ने क@ शि1त-ये
सब अवधूत के ल$ण है । अवधूत सवKशि1तमान होता है – वह ईqवर के
साथ एक हो जाता है ।
205. जीस तरह छाता मनुMय को धारण नह! करती लेXकन मनुMय
छाता धारण करता है उसी तरह मन मनुMय को पकड के रखता है लेXकन
मन क3 वृ तयां ह! नMट हो जाये बाद मE भेद नMट हो जाती है । ऐसे मनुMय
को कोई ईnछा नह! रहती। वह सं:यासी है , वह योगी है । मनुMय जीसके
पास मE मन है वह सब चाहते है लेXकन मनुMय जीसका मन नह! उसका
सब उसीमE है । जीस तरह ट!मर मE सभी तरह का सामान होता है उसी
तरह मनुMयमन के जीसने जीता है उनमE सारा जगत समाया हुआ है ।
पMट!करणः जीस तरह मनु9य छाते को धारण करता है , छाता
मनु9य को धारण नह( करता उसी तरह मनु9य माया को चपके रहता है ,
माया नह(। माया के पास मनु9य को पकडने के 4लए हाथ या पांव नह(ं है ।
मानवी का मन है । माया का 4शकार बनता है लेIकन जैसे ह( मनु9य मन
का नाश करता है वैसे ह( सब भेद न9ट हो जाते है । मन जैसे ह( न9ट
होता है तब मनु9य ईEछार&हत हो जाता है । ईEछार&हत मनु9य ह( संयासी
168 चदाकाश गीता
उनके 4लए दःु ख का कोई कारण नह( होता उसी तरह सिृ 9ट म सवKG
ONमदशKन करनेवाले को कोई भय क@ वजह नह( होती। एक ONम को दस
ू रे
ONम के भय म रहने क@ कोई वजह नह( है । ऐसे लोग एक lि9टवाले
होते है । ऐसे लोगो के 4लए सब ‘एक’ होता है । ईEछा उन लोगो म होती है ,
जो भौतक lि9ट से दे खते है । ईEछाएं मानवी को काम करने से ेoरत
करती है । मनु9य ईस जगत म खुद को पसंद हो उसे ाwत करने के 4लए
यास करता है लेIकन अगर मनु9य ईEछार&हत दशा पर पहुंचा है तो वह
पूण:
K प से नवृ त के 2तर पर पहुंचता है । पूण:
K प से ऊEछार&हत होने क@
ि2थत जीवनमुि1त क@ ि2थत है । कमKफल क@ अपे$ा न हो वह
जीवनमुि1त है । यह ि2थत अवधूत क@ है । यह ि2थत अत स[
ू म है । ईस
चीज का अनुभव Iकया जा सकता है लेIकन 3ववरण नह( &दया जा सकता।
Xानीओ को आंतरlि9ट होती है । Xानीओने मानस को जीता है । ईस4लए
Xानीओ सवKG एक (मन) तव के अनुभव करते है । Xानीओ सिृ 9ट के
सज
ृ नकताK के दशKन सिृ 9ट मे करते है और सार( सिृ 9ट का दशKन ईqवर म
करते है । Xानीओ म भेदबु3t नह( होती। Xानीओने एक अ3वभाxय ईqवर
का सा$ाकार Iकया होता है । 2थूल ि2थत म भेद होता है । सू[म ि2थत
म सब एक होता है । ाण एक और अ3वभाxय होता है । ाण सिृ 9ट के
सभी ाणीओ मे एकसमान होता है ।
सांस अथाKत ‘ाण’ का अंदर बाहर होना उसके ऊपर ह( सभी Iयाओ का
आधार है । सांस अटक जाती है तो सभी Iयाओ का अंत आ जाता है ।
ईस4लए ना4सका से सांस ले वह( सह( Iया है । ये सब Iयाएं बंधन है ।
अEछे और बूरे कमK दोनो बंधन है । एकमाG ाण 2थान सEचा कमK है ,
जीसमे कोई बंधन नह( होते। ाण सिृ 9ट के सभी ाणीओ म एकसमान
होता है । जीस तरह लोकल _े न और ए1सेस _े न दोनो म एकसमान
शि1त होती है ।
आमा तत
ृ ीय आंख (&दFय) का 2थान है । दयाकाश एक गुफा है ।
जीवामा को परमामा क@ गफ
ु ा म रहना है । पु:ष और 2Gी शार(oरक
भेदभाव है । भेद क@ वजह से 2Gी पु:ष बनती है और पु:ष 2Gी बनता है ।
2Gी और पु:ष म बाहर( शर(र और कायK का फकK होता है लेIकन दोनो म
सू[म तव एकसमान रहता है । अगर 2Gी म बु3t और आमा एक हो गये
हो तो पु:ष बन जाती है । पु:ष या 2Gी बनना उनके आंतoरक 2वभाव पर
नभKर होता है , उनके 2थूल शर(र पर नह(। भि1त 2Gी-पु:ष के भेद ?बना
4सt हो सकती है । कूएं के पंप म से 2ू पु:ष या 2Gी कोई भी घूमाएं तो
भी पानी एकसमान ह( बाहर आता है उसी तरह भि1त जीन लोगो का मन
शुt हो उस 2Gी या पु:ष क@सी से भी 4सt हो सकता है । Xानीओ को
4लंगभेद नह( होते। उनके &हसाब से सब समान होते है । 4शवशि1त पु:ष
या 2Gी दोनो म एकसमान ह( होती है । ईqवर क@ शि1त मनु9य 2Gी या
पु:ष हो लेIकन समान ह( होती है ।
हरदम 4शव पर Vयान केl(त करो। 4शव शु: म एक ह( थे। शु: म 4सफK
4शवशि1त एक ह( थे। शाqवत आनंद वह ईqवर संर$क है । ईEछार&हत
ि2थत ह( शाqवत आनंद है । जो ?Gगुणर&हत है वह ईEछार&हत है । ईEछा
हक@कत म मनु9य म रहनेवाले तीन गुणो का पoरणाम है। ईEछार&हत
ि2थत का एक सEचा गुण 3वक4सत करना है । आमा शर(र का राजा है ।
आमा मुि1त का दे वता है । आमा का दशKन 2व म करो। मनु9यजम
ईqवर क@ सिृ 9ट म +े9ठ है । 3वqव म मनु9य से बडी कोई योन नह( है ।
अरे ! खुद ईqवरने भी परमामा के सा$ाकार के 4लए मनु9यजम 4लया
था। मनु9यजम सEचा जम है। मनु9य जो क@ दे श के भेद बनाता है वह
2व का +े9ठ उपयोग करे तो सवKशि1तमान है ।
227. जैसे द!पक Yबना तैल के जल नह! सकता उसी तरह सांस
Yबना शर!र चल नह! सकता। Yबना पतवार नांव लoय तक पहुंच नह!
सकती। ट!मर भांप क3 ऊजाF से चलती है और बLु J केDटन है , नांव
ट!मर क3 तरह चल नह!ं सकती। सं:यासी ट!मर जैसे है , जो लोगो मE
सारा Lव)व हो वे ट!मर जैसे होते है । जो लोग सांसा`रक आनंदो मE ल!न
रहते है वे नांव जैसे होते है । ट!मर क3 टोच पर मागFदशFक काश (द!पक)
होता है उसी तरह yzमरं सं:यासी के मागFदशFक (द!पक) जैसा है ।
सं:यासी का मन Rदयाकाश मE ल!न हो गया होता है । सं:यासी काश है ।
192 चदाकाश गीता
वे लोगो का कोई ल[य नह( होता। उनक@ कोई ि2थत नह( होती। बु3t
नह( होती और कोई सा$ाकार के 4लए संतुि9ट नह( होती। उन लोगो के
मन अंकु4शत नह( होने क@ वजह से आVयािमक बातो म कुछ खास 4सt
नह( कर सकते। ईस4लए मनु9य को मन पर Vयान केl(त करना चा&हए
और ईqवर चंतन करना चा&हए। हे मनु9य! ाण के आवागमन पर Vयान
केl(त कर! ाण को यो}य:प से अंदर लो। सांस लेते व1त नाद पर
Vयान केl(त करो। वह नाद जो क@ सांस क@ गत म से उपन होता है
उस सांस क@ गत पर Vयान केl(त करो। जो सांसे हम अंदर क@ ओर
लेते है । अंतरनाद और अंतराण पर 3वqवास रख। गहर( और xयादा गहर(
सांस लो जीससे अंतरनाद जो क@ सांस क@ गत से पैदा होता है वह कान
को सुनाई दे ता है । 4सफK और 4सफK ाण का 3वचार करो ओर कोई बात का
नह(। खाना, पीना, आना-खडा रहना ये सब आमा के उtार के 4लए
उपयोगी नह( है । शाqवत आमा का सा$ाकार Iकजीये। खाना बनाओ
लेIकन अपने 4लए। दस
ू रोने पकाया हुआ खाना खाने क@ ईEछा न रख।
अनुभव खुद करो। 2व के यासो से ह( आमा का स$ाकार कर। दसू रे
लोग आपका उtार करे उसके बारे म न सोचे। खुद ह( यास करे और
ल[य को ाwत करे । हे मन! जो करो वह +tा से करे । +tा से महान और
कुछ नह( है । +tा महानतम है ।
?बना के पैड पर वायु टकराता है तो कोई आवाझ नह( उपन होता उसी
तरह मत
ृ -ाण3व&हन शर(र म से कोई तभाव 4मलता नह( है । ईस 2थूल
जगत म ?बना ाणो के कोई ाणी जी3वत नह( रह सकता। ाण ह( ाणी
के 4लए सव£सवाK है ।
235. योग के ारं 'भक अTयासु के 'लए कोई नि)चत आहार नह!
बाताया गया है । अTयासु के 'लए मन क3 शांत ह! आहार है । सभी कला
मे &ेMठ कला वह yzमLवSया है । वह कला जीसके Sवारा ई)वर क3
अनुभूत होती है । यह कला धन से नह! खर!द! जाती। यह कला मान या
अपमान से नह! खर!द! जाती तो बाहर! क3तF से भी ाDत नह! कर सकते।
वह 'सफF अचल भि5त से ह! ाDत क3 जा सकती है । भि5त के Yबना
मुि5त नह! है । मुि5त 'सफF सूoम भि5त के Sवारा ह! 'मल सकती है ।
yzमानंद 'सफF बातE नह! है लेXकन ठोस अनभ
ु व है । ईसे ह! सत-चत-आनंद
कहते है । नरं तर और \यादा से \यादा अनुभव से ह! वह 'सJ हो सकता
है । yzमानंद का जीसने साkा
कार Xकया है उसके 'लए सवF है मतलब क3
ई)वर वयं है ।
पMट!करणः राजयोग म नवद(#$त साधक के 4लए कोई निqचत
आहार नह( बताया गया है ज:रत 4सफK अ
यासु के 4लए शांत ाwत करने
क@ है । सभी 3व~याओं म +े9ठ ONम3व~या है । वह कला परमONम को
201 चदाकाश गीता
पMट!करणः सज
ृ न मन का लगाव है लेIकन मन का नाश कर द(या
जाये तब सिृ 9ट का अि2तव नह( रहता। उस व1त सब एक और
अ3t3वतय होता है । शर(र 4सफK ल[य ाwत करने का साधन है , साVय
नह(। मनु9य का ल[य ईqवर का सा$ाकार है । शि1त आमा क@ होती है ।
जगत के सबसे ऊंचा 4शखर बाहर नह( लेIकन मनु9य के द(माग म होता
है । ONमरं जो क@ द(माग म है वह सबसे ऊंचा 4शखर है । ONमरं आमा
क@ बैठक है । यह चेतना का आकाश है । मनु9य का सबसे बडा आधार
चदाकाश का है । कंु ड4लनी क@ बैठक चदाकाश म है । अ}न वह छा कमल
है , जो कंु ड4लनी का आधार है । अ}न से शु: करके कंु ड4लनी सह2Gार क@
ओर गत करती है । सह2Gार हजारो पतीओवाला द(माग म रहनेवाला
कमल है । _े न म याGा करना वह आमा का 3वचार है । _े न दो तरह क@
होती है – एक मेल और दस
ू र( लोकल _े न। मेल _े न मतलब हठयोगी और
लोकल _े न मतलब राजयोगी। हठयोगी म जुनुन होता है और गु2सा होने
क@ छोट( सी भी वजह 4मले तो वह गु2सा हो जाता है । राजयोगी लोकल
_े न क@ तरह धीमा लेIकन शांत होता है । सुख वह ओर कुछ नह(, मन क@
शांत 4मलना वह है । लोकल _े न और मेल _े न का फकK 4सफK समय का ह(
होता है । दोनो म एकसमान शि1त हो ऐसा ह( हठयोगी और राजयोगी का
है । दोनो म शि1त एकसमान होती है । फकK 4सफK उस शि1त का 3वकास
है । राजयोगी हठयोगी से भी xयादा अEछा होता है । लोकल _े न और मेल
_े न दोनो का वेग समान है लेIकन समय का ह( फकK होता है उसी तरह
राजयोगी और हठयोगी दोनो के बीच समय का फकK होता है । साधना के
ारं भ म सब हठयोगी होते है लेIकन पूणK व के 2तर पर वे राजयोगी होते
है । साधना का समय पूरा हो और नवद(#$त योगी पयाKwत अनुभव ाwत
204 चदाकाश गीता
ओम ् ओम ् ओम ् ओम ् ओम ्
209 चदाकाश गीता
दस
ू रा खंड (चदाकाश गीता)
241. अंध यि5त के 'लए @दन और रात के बीच कोई फकF नह!
होता। उ:हE बाzय काश का कोई मzतव नह! होता। उसमE 8ान का काश
बहुत \यादा होता है । अंध यि5त के 'लए शार!`रक वiप का कोई मह
व
नह! होता। अंध यि5त क3 भौतक आंख दे खती नह! है । ईस'लए उनके
@दय चkु तेजोमय होते है । अंध यि5त पागल का Lववरण उसके पशF से
अनुभव करके नह! कर सकता।
पMट!करणः अंध Fयि1त के 4लए &दन और रात के बीच कोई फकK
नह( होता उसी तरह अXानी Fयि1त मतलब शाqवत सय के Xान ?बना
का मनु9य – ईqवर के Xान ?बना का मनु9य को Xानी और सांसाoरक
जीवन म ल(न Fयि1त – के बीच कोई फकK नह( है । ऐसे मनु9य के 4लए
दोनो एकसमान है । नाशवंत और चरं जीवी दोनो के बीच कोई अंतर नह(
है । सभी चीजो को अपने lि9टकोण से दे खने क@ आदत हो जाती है और
अनत ईqवर को सDमान-मयाKदा2प:प Fयि1त समझते है । वह ईqवर और
3वqव के बीच म कोई फकK महसूस नह(ं करता। अंध Fयि1त के 4लए बाहर(
काश कोई मायने नह(ं रखता। अंध होने क@ वजह से वह बाहर( काश
का अनुभव नह( कर सकता। अXानी Fयि1त खुद को 2वनभKर Fयि1त
समझता है और बाहर( मदद क@ ज:रत नह( है ऐसा मानता है । अXान
क वजह से वह ऐसा मानने के 4लए ेoरत होता है क@ सांसाoरक जीवन से
छोट(-मोट( चीजो के Xान के आधार पर खुद ईqवर को पण
ू :
K प से समजता
है ऐसा &दखावा करता है । ईस4लए वह दस
ू रो क@ मदद नह( लेता है । अंध
Fयि1त को भौतक आंख नह( होती लेIकन उसम Xान का काश अत
212 चदाकाश गीता
उसी तरह अXानी मानवी के 4लए जगत म कोई Xानी नह( है । सभी उसके
जैसे जीवन के सह( ल[य से अXान, जुेपन क@ वजह 1या होती है ? वे
जू को ह( सय समजते है , 1यMक@ उनके मन को जुे क@ आदत हो गई
है । वे जू के साथ एक:प हो गये है । रं गीन ऐनक पहननेवाले को जगत
रं गीन &दखता है , वह जैसा है वैसा नह( &दखता है । मनु9य अगर अपनी
कमजोर( को समजे तो उसमे वा3पस गलती नह( करता। ऐसा मनु9य सय
1या है वह अनुभव करने के बाद समज सकता है । सय का अि2तव
(जूा) असय से अलग होता है । ईसी पल से उसके &दFय च$ु खुल
जायगे। सू[म 3ववेकवाला मनु9य खुद के 4लए 1या अEछा है या 1या बूरा
है उसका अनुभव ाwत कर सकता है । ऐसा मनु9य राजमागK 1या है वह
समजेगा और सह( &दशा म आगे बढता हुआ अंततोगवा ईिEछत ल[य को
ाwत करे गा।
243. जीस तरह नद!यां सागर मE वेश करती है उसी तरह अnछu और
बरू ! दोनो चीजE आ
मा मE वेश करती है । दोनो चीजE आ
मा को समLपFत
होती है । अnछा और बरू ा दोनो आ
मा मE से पैदा होते है । वे जहां से आये
है वह!ं वेश करते है । मन जगत मE शभ
ु -अशुभ कमF का कारण है । मन
आ
मा क3 शि5त है । आ
मा क3 शि5त कोई \यादा या कम नह! कर
सकता। जो होनेवाला है वह होकर ह! रहता है । शा)वत कायदे के अनुसार
वह होगा।
पMट!करणः जीस तरह सभी नद(यां समुl म वेश करती है उसी
तरह अEछा-बरू ा सब कुछ आमा म वेश करता है । जीस तरह सभी
नद(यM का ल[य सागर होता है। सागर जो क@ अपoरवतKनीय और शाqवत
है उसम 4मल जाने का ल[य है उसी तरह अEछा-बरू ा दोनो ह( आमा म
215 चदाकाश गीता
244. बीज पैड मE से पैदा नह!ं होता। बीज क3 श*आत है । बीज पैड
पर से गरता है और वह बीज छोटा पौधा और बाद मE पैड बनता है । उसी
तरह सिृ Mट का है । बीज एक शi
ु आत है उसका अंत नह! है । आप जहां भी
दे खोगे वहां बीज ह! @दखEगे।
पMट!करणः बीज व$
ृ म से पैदा नह(ं होता। बीज जैसे एक शु:आत
है उसी तरह ईqवर ONमांड म से उपन नह(ं होते। ONमांड का ारं भ
ईqवर से ह( हुआ था। बीज पैड पर से गरता है और वह बीज छोटा पौधा
और बाद म बडा पैड बनता है उसी तरह मनु9य का आमा ईqवर का
सू[मातसू[म भाग है । आमा जो क@ शर(र के दे हमांस म बंधा हुआ है ।
उसे अपनी सभी कमजोर(ओं के साथ मशः गत करनी है और वह तब
216 चदाकाश गीता
तक क@ वह सज
ृ नकताK म 4मल न जाये तब तक! यह सिृ 9ट क@ Iया
है । बीज क@ श:आत है , लेIकन अंत नह(ं है । आप जहां तक दे खोगे वहां
आपको वह( बीज &दखेगा जैसे बीज पैड क@ और भ3व9य के बीज का ारं भ
है वैसे ह( मूलभूत कृत सिृ 9ट के ारं भ क@ वजह है ।
अगर क@सी चीज म लगाव नह( रखता तो परम शांत ाwत होती है ।
ईस4लए ह( संतलोग बार बार कहते है क@ शांत न9ठा म है अथात आनंद
याग म है । मायार&हत-लगावर&हत (नोन-अटे चमेट) दशा म ह( मुि1त है ।
मायार&हत-लगावर&हत दशा म परम आनंद है । ईEछाओं से बडा कोई नकK
नह( है । ईEछाएं ह( ईस जगत के दःु ख क@ वजह है । ईEछाएं अनंत है ।
ईEछाओं म बढौतर( होती रहती है और असंतु9ट रहनेवाल( ईEछाओं क@
वजह से मन हरदम दःु खी रहता है । ईस4लए ह( ईEछार&हत दशा परम
आनंद क@ वजह बनता है । परम आनंद 4शवशि1त म है । 4शवशि1त वह
lqय और अlqय दोनो के Xाता है । 4शवशि1त सवKशि1तमान और
सावK?Gक है ।
252. द!पक को तैल से भरE और \योत जलाओ। जैसे जैसे तैल घटता
जायेगा वैसे वैसे द!पक क3 बाती छोट! होती जाती है और काश rमशः
कम होने लगता है लेXकन Xफर से द!पक मE तैल भरा जाये और \योत
जलाई जाये तो द!पक का तेज पव
ू व
F त ् हो जाता है । ऐसा 8ानी के अंदiनी
जीवन का है । योगी का मान'सक जीवन पानी मE रहे मखन क3 तरह है ।
मखन पानी मE डूबता नह! है और पानी के ऊपर तैरता रहता है । शर!र
पानी के जैसा है और आ
मा मखन जैसा है । सूoम बLु J को मितMक मE
के:B!त करनी चा@हए। बLु J को सुष
ु ना के 'सर पर के:B!त करनी चा@हए।
मन और बLु J दोनो मितMक मE होने चा@हए। मन बLु J मे होना चा@हए
और बLु J मन मE होनी चा@हए। Lववेक 'सफF बLु J से ह! पैदा होता है और
यह Lववेक ह! जीवा
मा और परमा
मा क3 एका
म5ता को भाLवत करता
है ।
226 चदाकाश गीता
स
वगण
ु कहा जाता है । स
य-प
थर मE 'लखे अkरो जैसा है । सांसा`रक
जीवन क3 बातE लेट पर चाक से 'लखे गये अkरो क3 तरह होती है ।
पMट!करणः एक नाoरयल म से अनेक नाoरयल पैदा होते है । एक
Xानी म से अनेक Xानी पैदा होते है । नाoरयल क@ जड काट( जाये तो
नाoरयल का पैदा होना बंध हो जाता है । वासना नाoरयल क@ जड क@ तरह
होती है । उसे जड से काटनी चा&हए और उसके 4लए 3ववेक का ऊपयोग
करना चा&हए। वासना जब पूण:
K प से न9ट न क@ जाये तब तक पूण:
K प से
शांत ाwत होती है । मनु9य साधुगुण, सवगुण, शांत और सभी गुणो तबी
ाwत कर सकते है जब नः2प&ृ हता (नोन-अटे चमेट) के 2तर पर पहुंचता
है । जब बु3t ि2थर हो तब सवगुण कहा जाता है । सय पथर पर 4लखे
अ$रो जैसा है । सांसाoरक जीवन क@ बात पथरपाची पर 4लखे चाक के
ल$णो जैसी है । सय हरदम सामाय रहता है लेIकन सांसाoरक बात तुरंत
ह( भूला द( जाती है ।
256. जो लोग दध
ू खर!दने जाते है उ:हE गाय क3 Xकं मत नह! पछ
ू नी
चा@हए उसी तरह जो लोग आ
मा क3 खोज मE होते है उ:हE शर!र के चीजv
क3 चंता नह!ं करनी चा@हए। जीसने आ
मा को 'सJ Xकया है वह ना`रयल
के सुखे कोपरे जैसा है मतलब उसे शर!र से लगाव नह! होता। अगर रसी
को जला @दया जाये तो वह खाक हो जाती है बाद मE उसक3 रसी नह!ं
229 चदाकाश गीता
उह ईqवर 4स3t भूल जानी चा&हए। उह माया के सय 2व:प को
समजना चा&हए। उन लोगो को नयानंद क@ अनुभूत करनी चा&हए। हे
मन! यह शाqवत आनंद को पचा लो! यह शाqवत आनंद को ाwत करो!
तारक ONम के आनंद को पीओ! मि2त9क म तारक होने से ाwत हो रहा
कंु ड4लनी का सुख! हे मन! सम| बाहर( 3वqव को तारक म रखो! तारक को
ONमांड म Fयाwत शि1तओं से भर दो! ‘तारक’ म जीन लोगोन यह सुख
ाwत Iकया है वे जममृ यु के बंधनो से दरू हो जाते है । उहMने जीवन का
ल[य 4सt कर 4लया है , ईस4लए ह( हम हमारे मन को तारक पर केl(त
करना चा&हए। जाग:कता, 2वwन और सुषुिwत। 3ववेक क@ शि1त
आमXानी क@ चाबी है । आमXान के 4लए बु3t बहुत ह( महवपूणK है ।
ती बु3t के ?बना मनु9य ‘2व’ का मतलब आमा का Xान ाwत नह( कर
सकता। ती बु3t ताले क@ चाबी जैसी है और हमे अपने उकृ9ट लाभ के
4लए उसका उपयोग करना चा&हए। िजस तरह खजाने क@ चाबी के 4लए
मनु9य को सतकK रहना चा&हए उसी तरह मनु9य को अपने मि2त9क म
रह( बु3t के 4लए सतकK रहना चा&हए। मनु9य को बु3t पर हरदम Vयान
केl(त करना चा&हए। पानी तब तक ह( गमK रहता है जब तक वह अि}न
पर होता है , जैसे ह( उसे भू4म पर रखा जाता है , वह धीरे धीरे ठं डा हो
जाता है , उसी तरह जब तक बु3t पर Vयान केl(त Iकया जायेगा तब
तक ह( वह ती और अचूक रहे गी। जैसे ह( हम हमारा Vयान बु3t पर से
हटा लगे तो बु3t 4शथल होने लगेगी। मन म रह( बु3t अि}न पर रखे
गए गमK पानी क@ तरह जैसी है । बु3t हरदम सतकK और दोषर&हत होनी
चा&हए उसी तरह +tा क@ अEछs तरह परवा करनी चा&हए। जीव कमरे म
बंधे हुए बछडे जैसा है । बछडे को हरदम कमरे से बाहर जाने क@ आतुरता
234 चदाकाश गीता
&ीकृMणापFणम ् अतु
ॐ, ॐ, ॐ, ॐ, ॐ
239 चदाकाश गीता
तत
ृ ीय 3वभाग
263. मनुMय जीसे ईnछा नह!ं है उसे वतंj ई)वर क3 जiरत नह!ं है ।
उन लोगो को कुछ भी यास करने क3 आव)य5ता नह! है । जब मन
ईि:Bयो के पदाथV के पीछे दौडता है तब एक के:B! करने के 'लए अTयास
ज*र! है । मनुMय को सांस चल रह! हो तब तक बLु J पर Zयान के:B!त
करना चा@हए। जीतने समय मE सांस-नाडी धबकती रहे तब उतना समय
Zयान के:B!त करना चा@हए। मनुMय पानी मE बह न जाए उसके 'लए
तैरना 'सख लेना चा@हए। माया को महामाया से जीतना चा@हए। माया 5या
है ? जब मन ईि:Bयv के Lवषयो के पीछे दौडता है तब LवLवध कार क3
ईnछाएं उ
प:न होती है । हक3कत मE हम ना`रयल के वk
ृ को चीपकते है ।
243 चदाकाश गीता
ना`रयल का वk
ृ हमे चीपकता नह!ं है उसी तरह माया को हाथ-पग नह!ं
होते क3 वह हमे पकड कर रखे?
पMट!करणः जो मनु9य को ईEछाएं नह( होती उसे अलग ईqवर क@
ज:रत नह(ं है । उन लोगो को कुछ 4सt करने के 4लए यास नह(ं करना
है । अ
यास तब तक जCर( है जब तक मन ईिlयो के 3वषय के पीछे
दौडता है । मन को एका| करने के 4लए अ
यास आवqयक है । जब तक
शर(र म सांसे चल रह( हो तब तक मनु9य को बु3t पर Vयान केl(त
करना चाह(ए। मन को ईिlयो से अलग करना चा&हए। हम जो भी कमK
कर तो मन उसम आस1त रहना चा&हए। मनु9य जब पानी म हो तब बह
न जाए उसके 4लए तैरना 4सख लेना चा&हए उसी तरह सांसाoरक बातो म
रहनेवाले मनु9य को मान4सक तौर पर दु यवी बातो से अलग कैसे रहना है
वह 4सखना चा&हए। ऐसा होगा तभी मनु9य जगत के tैत म से मु1त हो
स1ता है और अनास1त रह सकता है और तभी माया से पर हो सकता है ।
माया को महामाया से जीतना चा&हए। ईसका 1या मतलब है ? ईस जगत
म माया के दो कार है-एक माया जो जगत म है वह जगत के tैत को
अधीन है । दस
ू र( माया ईस tैतभाव से अलग है । महामाया वह परONम के
साथ क@ एकाम1ता है और Xान 2वC3पणी है । महामाया क@ मदद से
मनु9य को जगत क@ माया को जीतना है । महामाया वह Xान का काश है
और माया वह और कुछ नह(ं है लेIकन सांसाoरक जीवन क@ आसि1त है
ईस4लए बहKम को पहचान कर मनु9य को जगत को भूल जाना चा&हए और
माया से अगल होना चा&हए। जब मनु9य नाoरयल के पैड को चीपकता है
तब मनु9य नाoरयल के पैड को चीपकता है , पैड मनु9य को नह( चीपकता।
उसी तरह मनु9य माया के साथ चीपकता है । माया मनु9य के साथ
244 चदाकाश गीता
नह(ं। उसी तरह हमे हमारा ल[य बु3t पर केिlत करना चा&हए और मन
को दयाकाश म एकाकार कर दे ना चा&हए। यह जब 4सt होता है तब हम
शाqवत शांत ाwत कर सकते है , जीसे “नयानंद” कहते है ।
रहना हो तो उसके पास अगाध शांत और धैयF होना चा@हए। शांत हजारो
सांसा`रक लोगो के साथ रहने के 'लए आव)यक है ।
पMट!करणः मनु9य को Xान और भि1त के 4लए आज और आज ह(
यास करना चा&हए। हमे मृ यु कब आयेगी उसका पता नह( है । Xान और
भि1त ाwत करके हमे मृ यु के समुख रहना चा&हए। Xान ाwत करने के
4लए कोई वt
ृ या युवा नह( होता। Xान कोई भी समय और 2थान को
ल$ म रखे बगैर ाwत Iकया जा सकता है । जब हमार( Xान3पपासा
जाग:क हो तब वह समय मुि1त 4सt करने का है । जब हमे बूख लगती
है तब वह( समय भोजन |हण करने के 4लए है । जीन लोगो को Xान के
4लए भूख नह( है उह मुि1त के 4लए तजार करना पडेगा। तब तक क@
जब तक उह मुि1त के 4लए भूख जगे। ईसी तरह जीह भूख लगती नह(
है उह भोजन के 4लए राह दे खनी चा&हए। हम सब म भि1त के 4लए ती
ईEछा होनी चा&हए। +tा जीतनी बलवान उतनी भि1त lढ और xयादा
होती है । अि}न जीतना xयादा उतना ह( पानी xयादा उबलता है । +tा गम
है और 3वqवास उबलता पानी है । शांत वह &दमाग म बफK जैसी होती है ।
शांत हम हर कार क@ संतुि9ट दान करती है और बफK क@ तरह हमारे
&दमाग को ठं डा रखती है । शांत से पूणK संतोष ाwत होता है और मन को
बफK क@ तरह ठं डा करती है । शांत थम आमसंतोष दान करती है और
वह बाNय Cप से कट होता है । जीसने पूण:
K प से शांत ाwत क@ है वह
पूण:
K प से संतु9ट होता है और उसका मन शुt हो जाता है । ईस जगत म
शांत से xयादा कुछ नह(ं है । जीसने शांत ाwत क@ है वह ईEछाओ से परे
होता है । मन क@ शांत के 4लए एक :पया भी खचK नह( करना पडता।
दानधमK के 4लए मनु9य को खचK करना पडता है , जो क@ आवqयक है । वह
264 चदाकाश गीता
शांत के 4लए ती ईEछा रखनेवाला मन। जब मनु9य खुद शांत से भरपुर
हो तब उसके आसपास के लोग भी शांत का अनभ
ु व करते है । शांत क@
लहरे चुंबक@य लहे रो क@ तरह सभी &दशाओं म शांत फैलाते है । एक ह(
Fयि1त शांत से भरा हो वह पयाKwत है । उस Fयि1त के आसपास के हजारो
लोग शांत का अनभ
ु व करते है। हजारो लोगो क@ भीड म वेश करनेवाले
साधु म ऐसी शांत होती होती है जैसे क@ शेर के पास जानेवाले 4शकार( म
होती है । सांसाoरक लोग Xानी को उनके दःु खो क@ बाते कहकर दःु ख क@
अनुभूत कराते है लेक@न संत को सांसाoरक बातो से ?बलकुल 3वपoरत ऐसे
लोगो के साथ रहने के 4लए धीरज ाwत करनी पडती है । संतने जीसका
याग Iकया है वह भुगतना पडता है । खास तौर पर अXानीओ के जीवन
क@ बात। एक साधु को ईस जगत म जीने के 4लए बहुत ह( शांत और
धैयK क@ आवqयकता होती है । सांसाoरक लोगो म रहनेवाले साधु के 4लए
शांत और धैयK बहुत ह( उपयोगी है ।
276. मेले मE LवLवध कार क3 चीजE लाई जाती है उसी तरह शांत
का अनुभव LवLवध कार से करना चा@हए। हम हजारो लोगो क3 भीड मE
होते है तब हमे Bढ नधाFर रखना चा@हए। जब हम गलत तर!के से सोचे
क3 हम हजारो लोगो के बीच मE है तब (Jैत) JंJ का भाव हमारे अंदर पैदा
होता है । जीस तरह एरोDलेन धरती क3 मदद के Yबना उडता है उसी तरह
हमे शर!र क3 मदद के Yबना कायF करना सीखना चा@हए। हमार! Bढ
मा:यता का बीज – म यह शर!र नह! ऐसा हमारे Rदय मE थआLपत कर
दे ना चा@हए। थका हुआ मुसाXफर सूरज के धूप मE \यादा समय रहने के
बाद आ&य पाने के 'लए पहाड क3 ओर जाता है और पैड के नीचे आराम
करता है तब वह थकान भूल जाता है उसी तरह जीनके मन ई)वर क3
265 चदाकाश गीता
गलत 3वचार करते है तो 3वचार हमारे अंदर वेश कर जाता है। हम अगर
ऐसे मान ले क@ हम भीड से अलग है तो हम और भीड अलग है वनाK भीड
और हम एक हो जाते है । हमे लगता है क@ हम और भीड दोनो ईqवर का
ह( एक &ह2सा है तो tैत का 3वचार हमे आता नह( है उसी तरह हमे
लगता है क@ 3व3वध ईEछाएं और वासनाएं और आमा परमामा म से
उपन होते है तो ईEछाओ और वासनाओ का भय नह(ं रहे गा। ऐसा हो तो
ईEछाएं और वासनाएं अपना सांसाoरक मागK बदलकर ईqवरसा$ाकार के
मागK म सहायक होगा। ईqवरने हम ईEछाएं ईस4लए द( है हम उनक@
ईEछा कर और सांसाoरक जीवन म फंसे नह(ं। हमे शर(र से 2वतंG होने का
यास करना चा&हए और 2वतंG होना चा&हए। जीस तरह एरोwलेन पृ वी से
अलग रहता है । शर(र का अि2तव हमे भूल जाना चा&हए। शर(र परछांई
जैसा होना चा&हए। मायता का बीज क@ म{ शर(र नह(ं हूं वह हमारे दय
म lढ हो जाना चा&हए। जीस मनु9य का मन ईqवर म ल(न है वह सभी
चंताओ को भूल जाता है उसी तरह एक मुसाIफर धूप म xयादा चलने के
बाद पहाड क@ गोद म पैडो क@ छाया म सार( थकान भूल जाता है । जब
मनु9य का मन पूण:
K प से ईqवर म समा जाता है तब मेरेपन का भाव
न9ट होता है ऐसे क@ जीस तरह सूरज क@ गम पैड क@ छाया म बैठते है
तब भूल जाते है । जब हम घर म होते है तब छाते क@ आवqयकता नह(
होती। जब हम घर से बाहर नीकलते है तभी छाते क@ जCरत होती है । जब
हम ईqवर के महल म होते है तब सांसाoरक जीवन म आनंद क@
आवqय1ता नह( होती। ईqवर का परमसुख सांसाoरक जीवन के आनंद से
भी कह(ं xयादा अEछा है । सांसाoरक जीवन का आनंद हमारे 4लए ईस4लए
जCर( है क@ जीससे ईqवर का परमसुख जो अनंत तौर पर xयादा अEछा है
267 चदाकाश गीता
277. जीस तरह सुवणF बारबार अि^न मE पीघलकर शुJ होता है उसी
तरह Lववेक का बारबार अTयास से सूoमबLु J का'शत होती है। हमे हमारे
अंदर रहे जगत को दे खना चा@हए। हमार! बLु J ह! हमारे मोk का साधन
है । जीसे “धारणा” कहा जाता है और वह ओर कुछ नह!ं लेक3न Lवषय क3
पMट समज है । ईस समज से हम आ
मा के \यादा पास आते है । हमे
प
ु तक से अनुभव नह! 'मलता। थम अनुभव और बाद मE उस अनुभव के
आधार पर XकताबE 'लखी जाती है । पैड बीज मE है । बीज पैड मE नह!ं है।
268 चदाकाश गीता
पागल लगेगा। दस
ू र( ओर योगी जीससे नाशवंत दु नया के पाश3वक भोग
भोगनेवाला मनु9य पागल लगता है । कभी सांसाoरक जीवन के मनु9य का
मन ईqवर क@ ओर ेर(त होता है । ईस4लए जो योगी भी करता है वह बात
उसे भी सEची लगती है । मन पवन म रखी Cई क@ तरह कांपता है ।
मनु9य को मन को lढ और ि2थर करने के 4लए ईqवर के 4लए भावना
ाwत करनी चा&हए। भि1त Cई पर डाले हुए पानी जैसी होती है । जीसे
वायु उडा नह( सकता। जीस तरह Cई पर पानी डालने से उसका उडना बंध
Iकया जा सकता है वैसे मन क@ चंचलता को ईqवर पर Vयान केिlत
करने से पूण:
K प से न9ट Iकया जा सकता है । मन को Xान के जप से
गला करना चा&हए जीससे मन और चत ईEछाओ से मु1त हो जाये।
Xान वह मन क@ ईEछाओ के 3व:t दवा है । ईस जगत म बंधनर&हत
रहना वह मो$ है । ईस4लए हर एक मनु9य मो$ ाwत करे वह जCर( है ।
मनु9य को सांसाoरक जगत के सभी कमK करते करते आमा का चंतन
करना संभव होता है । यह नरं तर Vय़ान सह( Vयान है । अगर मोटर का
चालक वाहन के गतच को छोड दे ता है तो मोटर Iकसी भी &दशा म
चल( जाती है और खतरे का :प ाwत करती है । मोटर के ाईवर क@ तरह
जैसे हमारा Vयान हरदम वाहन के गतच पर रहता है अथाKत बु3t पर
Vयान केिlत करना चा&हए। जीससे बु3t ईधरउधर न हो जाये। बु3t को
हरदम आमा का 3वचार करते रहना चा&हए और ि2थर और एक केl(
होना चा&हए। मन आंतoरक Vयान करना चा&हए। आंतरlि9ट से सू[म बु3t
का 3वकास होना चा&हए। हे मन! बु3t क@ मदद से चेतना के 3वqव म
वेश करे ! हे मन! सदाय संतु9ट रहो! परछाई से कभी 4मत न हो!
उसम एकाकार हो जाओ जीसका कोई पयाKय नह(ं है ।
278 चदाकाश गीता
_े न का 2थुल भाग है उसी तरह शर(र आमा के 4लए 2थुल भाग है । Xान
भांप है । भांप _े न क@ सू[म शि1त है । जो ाण को &दमाग म रहनेवाले
सह2Gार क@ ओर ेर(त करती है । 3ववेक गत है । +tा रे ल क@ पटर( है ।
पटर( के ?बना _े न चल नह( सकती। +tा के ?बना मुि1त 4सt न हो सके।
ाईवर (चालक) और बुtइ है । जीस तरह _े न का ाईवर गत को नयं?Gत
करके &दशा दे ता है उसी तरह मानवशर(र म बु3t ाण को सह2Gार जो
&दमाग म है उसक@ ओर ेर(त करती है । ईस4लए बुtइ ाईवर है । जीस
तरह बोईलर बडे तौर पर पानी भांप पैदा करने के 4लए |हण करता है
उसी तरह मनु9यशर(र म पाचन णाल( आहार |हण करती है । जीससे
शर(र स$म रह सके। ईस4लए पाचन णाल( बोईलर है । एिजन म 3व3वध
2ू होते है उसी तरह मानवशर(र म 3व3वध असंय नाडीया होती है ।
ईस4लए नाडीयां 2ू है । ये सब समजकर आमा को सू[म बु3t के मागK
पर शाqवत शआंत 4सt करने दो। _े न जीस तरह पटर( पर चलती है उसी
तरह 3ववेक को सू[म बु3t के मागK पर आगे बढने दो। 3ववेक को बु3t का
मागKदशKन 4मलते रहना चा&हए।
बीज एवं गट
ु ल! क3 तरह अलग हो जाते है । जो लोग सदै व सोचते है क3
म शर!र नह!ं हूं। उनके 'लए अलग समाध क3 ज*र नह!ं है । वे शा)वत
समाध का आनंद लेते है । पण ू F समाध-'शवांत समाध-मनोलया समाध।
ऐसे लोग जो हरदम 8ान क3 साकर मE पीघल गये है उनके 'लए साकर
अलग चीज नह!ं रहती। ऐसे लोग बाहर! कायF और बाहर! Lवशअव से अलग
है और उसक3 ओर नि)चंत होते है ।
पMट!करणः नरं तर अ
यास से Vयान, मन, +tा को एकाकार कर
दो। सतत अ
यास से tैत भाव अlqय हो जाता है । हरदम Vयान से दोनो
मरो के बीच काश का सू[म ?बंद ु कट होने दो। जीव को 4शव के साथ
कंु ड4लनी को सह2Gार क@ ओर मि2त9क मे एक होने दो। सू[म बु3t और
3ववेक का रा2ता ाwत कर ओमकार म चत को ि2थर करो। धारणा म
ि2थर और समाध के परमसुख का आनंद ाwत करते रहे । मन को
एककेl( करके आमा का भFयता का सतत 3वचार करते रहे । चत को
चेतना के आकाश म ि2थर करने के 4लए समाध एकमाG साधन है । हे
जीव! चेतना आकाश म वेश करे ! बंधनो से मु1त हो जाओ। उसके 4लए
ईस जगत का अि2तव नह(ं है । वह सारे 3वqव को खुद म दे खता है और
सारे 3वqव म वह खुद को दे खता है । उसके 4लए खुद और जगत एकसमान
है । उसके 4लए जगत का अि2तव उससे अलग नह(ं है । हे मन! शर(रभाव
से मु1त हो। चत को साधना के 4सवा ि2थर करना मुिqकल है । अ
यास
चत को पहाड जैसा अडग करने के 4लए और खास तौर पर सांसाoरक
बातो के बीच अचल रहने के 4लए जCर( है । जो लोग सदै व समाध म
रहते है वे शर(र का अि2तव पूण:
K प से भूल जाते है । ऐसे लोगो के 4लए
2थुल और सू[म का भेद सुखे आम क@ गुटल( और बीज मVय म पतले
294 चदाकाश गीता
म और मेरे मत
ृ ाय हो जाते है। म
ृ यु का भय सदा के 'लए नMट हो जाता
है । यह ई)वरािDत के मागF मE अवरोध है । जब स
य 'सJ हो तब म
ृ यु
बाहर! प`रिथत बन जाती है । जैसे क3 बाहर! Lव)व भूलकर नBाधीन हो
गये हो। यह िथत आंत`रक प`रिथत से अलग नह!ं है । ईि:Bयां
आंतरमुख हुई ईि:Bयां म और मेरा सूoम अणु जैसा हो जाता है और परम
मE एकाकार हो जाता है । जब जीव आकिमक तौर पर नBा मE से जागत ृ
होता है और बाहर! जगत से 8ात होता है तभी नBा के सह! व*प का
खयाल आता है । यह 8ान क3 िथत है । ज:म-म
ृ यु का कारण ईnछाएं है ।
यह ईnछाओ क3 वजह से परछाई वातLवक @दखती है । यह ईnछाए मनुMय
के अंकुश मE रहती है । जो लोग क3 LववेकबLु J जागत
ृ है उ:हE म
ृ यु का भय
नह!ं होता। मन का अंकुश ईnछाओ Sवारा होने से हमे आनंदो और
मुि)कलो के 'लए आसान कर दे ता है लेक3न अगर ईnछाओ को मनुMय
नयंYjत करते है तो आनंद और दःु खो के घटनाrम मE पडता नह!ं। मन
ईnछाओ के अधीन होने से मनMु य को ईnछातिृ Dत के 'लए बाहर! मदद क3
आव)य5ता होती है । जब मनुMय कुछ आदतो का गल
ु ाम बन जाता है तब
वह नन तर के ज:मो क3 वजह बनता है । ईस'लए मनुMय को अपनी
आदतो के त नि)चंत रहना चा@हए। ईसके 'लए Bढ नधाFर ज*र! होता
है । तरं ग-कdपना पर नभFर कायF नरं तर नह! होते। LववेकबLु J से हुए कायF
लंबे समय तक अथाFत दे ह @टके तब तक @टकता है । संकdप हरदम नह!
होता। संकdप बLु J से नन तर है । संकdप तजFनी अंगल
ु ! जैसा है । बLु J
मZयमा अंगल
ु ! जैसी है । वासना अथाFत नि)चत बात के 'लए गहरा
आकषFण। यह वासना का ज:म क3 वजह है । वासनाएं जो शर!र के साथ
जूडी हूई है वह पानी के बल
ु बल
ु े क3 तरह B)य और अB)य होती है । शर!र
298 चदाकाश गीता
अभी-बाद मE पानी मE बल
ु बल
ु े @दखते है और अB)य होते है उसी तरह आना
जाना उसका रहता है । वे िथर नह!ं है लेक3न आ
मा के साथ जूडी
वासनाएं थायी है । शर!र कृत को अधीन है लेक3न आ
मा नह! है ।
हमार! वासनाओ के 'लए हमे दस
ू रा ज:म लेना पडता है । वासना का Lवशेष
वiप होता है । यह वiप आंत`रक तौर पर य5त होता है । वह खास
प`रवार मE शर!र के वiप मE य5त होता है । ऐसी वासनायु5त यि5त जो
कुछ कमF करे उसमे 'सफF शर!र ह! काम करता है । ऐसी वासनाएं अ'लDत
रहती है और वासना अनुसार का शर!र पैदा होता है । शर!र के 'लए
वासनाओ क3 तिृ Dत करना असंभव है । जब एक वासना क3 प`रतिृ Dत होती
है तब उसक3 जगह पर असंय वासनाओ के जाले पैदा होते है और
ईस'लए वासनाओ के अनंतकाल तक संतुMट करने के 'लए शर!र को ट!के
रहना पडता है लेक3न यह बात शर!र को भाLवत नह! करती। यह शर!र
yzमांड के नयम अनुसार मयाF@दत समय के 'लए रहती है । जो मनुMय क3
समज के बाहर है । प|ृ वी पर के अित
व के मयाF@दत समय मE शर!र के
मन क3 ईnछाए प`रपण
ू F करने का कायF असंभव है ।
पMट!करणः ओमकार सारे नीर आकाश म Fयाwत है । ओमकार पानी
क@ खाई जैसा है । ओमकार झरने के पानी क@ तरह सभी &दशाओ म फैलता
है । ओमकार हमार( आंतर और बाहर( दोनो ओर फैलता है और उसका
2वरपु तकK (कारण) होता है । ओमकार ONमांड का सज
ृ न, लालनपालन और
नाश करता है । ओमकार पूण:
K प से 3वराम म होता है । 1यMक@ वह
आंदोलनर&हत है । ऐसा Xानी जीसने परमतव को 4सt Iकया है अथाKत जो
ईशअवर के साथ एकाकार हो गया है उसके 4लए ओमकार ह( सवK2व है ।
उसके 4लए सिृ 9ट का उदगम 2थआन ओम है और ओम म सिृ 9ट 3वल(न
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एकCप होने दो। जीव और 4शव का 4मलन ओमकार म होने दो। हे मन!
तत
ृ ीय च$ु से जगत के गुणो और 2व:पो को दे खो। हे मन! (&दFय) जगत
क@ चीजो को ईqवर याग क@ तरह दे खो। हे मन! भु को उनक@ सिृ 9ट म
दे खो। मन क@ शंकाओ को खाक म पoरवतKत होने दो! शर(र के षडoरपओ
ु
को जलाकर खाक कर दो। ईस खाक को शर(र पर लगा दो। पूणK याग
आपके चरणो म होना चा&हए। ईसी तरह 4शव म वेश &दFय च$ुओ से
करो। आप 4शव और 4शव आप बन जाओ। 4शव और हमारा भेद पांच
ईिlयो के पांच अि}न के मVय म डाल दो! सभी शंकाओ को दयपूवक
K
ईस अि}न म डाल दो! सव, रजस, तमस के गुणो को डालकर ायिqचत
करो। ईEछार&हत-शंकार&हत होकर मुि1त का अमत
ृ पीओ तब जब आप
सय को 4सt करोगे तब आपको मृ यु का भय नह( रहता। सय एक
शाqवत अि2तव है । जीसका कोई पयाKय नह(ं है । ईqवर एक ह( सय है ।
दस
ू रा सब कुछ 4मया है । जब ईqवर का सा$ाकार होता है । जब तक
सय को 4सt करोगे तब जीवन-मरण के चो न9ट हो जाते है । सय का
सा$ाकार होने के बाद मै और मेरे का भेद दस
ु रा कुछ नह(ं लेक@न मृ यु
का भेद है । जब ये अनुभूत अि2तव म होती है तब Fयि1त lFयो से उपर
नह(ं होता। ईस4लए मृ यु से पर नह(ं है । ये सब संवेदनाए ईqवर के
सा$ाकार मे अवरोध है । जब सय का सा$ाकार होता है तब मृ यु एक
बाहर( ि2थत बन जाती है जैसे क@ आप बाहर( जगत को भूलकर सो गये
है ! मनु9य का आमा अ3वनाशी है उसी तरह अनुभव होता है और मृ यु से
4स¨प शर(र म पoरवतKन आता है । आमा सदै व एक ह( है । यह शर(र त
उदासीनता क@ ि2थत को आंतoरक जीवन कहा जाता है । ईिlयो को
आंतरमुख कर &दया जाता है । जब ईिlयां आंतoरक &दशा म जाती है तब
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दे नेवाले मE अचल बनने दो। यह! सह! भि5त है । यह! शा)वत शांत है ।
यह! वका'शत भि5त है । ईसे सत कहा जाता है । ईस कार क3 भि5त
ईस जगत और बाद के जगत दोनो से उपर है । यह भि5त अथाFत शा)वत
आनंद से भरा मन। शा)वत आनंद से भरा मन सभी चीजो का बीज है ।
शा)वत आनंद से भर मन सभी चीजो का सूoम बीज है । ईसका Lवकास
Lववेक बLु J से करना चा@हए। शा)वत आनंद से भरा मन गण
ु ोर@हत होता
है । वह गण
ु ोर@हत है ओर अिल yzमांड क3 वजह है । ईसे सजFक कहा
जाता है । वह सारे घटनाrम का साधन है । ईस जगत के 'लए एक स
य
है , यह! एक है । जो आंतर और बाहर दोनो Lव)व मE याDत है। वह 8ान
उnचतम और नन कkा का है । उnच कkा का अथाFत अZयाि
मक और
नन अथाFत लौXकक बातो का 8ान। वह पापर@हत आ
मा है । वह
जगदगi
ु है । वह yzमकाश है । वह जगत माता और Lपता है । वह
ओमकार मE रहा Yबंद ु है । वह मा, ओम महान है । वह चल और दे ख सके
ऐसा होता है । ओम एक अकF है । संतो उसे स
य कहते है । ओम! ओम!
पMट!करणः भि1त वह 2वयं ल[य है , ल[य4स3t का साधन नह(ं है ।
भि1त 4सफK भि1त के 4लए क@ जाती है । ईEछार&हत भि1त सांसाoरक
भोगो के 4लए नह(ं है । यह ईEछार&हत भि1त जीसे आVयािमक पoरभाषा
म पराभि1त कहा जाता है वह कृत के साथ जूडती नह(ं है। वह कृत
के नयमो से पर है । यह भि1त जगत के क9टो से मुि1त ाwत करने के
4लए नह( है । भि1त और जगत के क9टो के बीच कोई संबंध नह(ं हो।
क9ट आये तो Fयि1त को भि1तमागK म से गर नह(ं जाना चा&हए। लेक@न
उस मागK पर आगे बढना चालु रखना चा&हए। जीसतरह छsपकल( IकWले
क@ &दवार से चीपककर रहती है और छोडती नह( है उसी तरह हमारे
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