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अपहठि गद्ांश :
संसार के सभी धरम मे एक बाि समान है , वह है रन, ईसवर भकककित ।ापना दवारा हम अपने हद्
के भाव ।भु के समसुख रखिे है और कुछ न कुछ उस शकककिमान से माँगिे हैत जब हाम मारग हीं
सका िो हम गान करके है त परपरन का फक उनिमहो, इसके लकएकमे अपने अंदर उििम वविार
और एकाग मन उिपनन कोिे है कक्योक वविारही मिुप् को ड्ड पहुँििे है ्ा उससे सुरि करे है त
्ह मन बदा ही ।बक और िंिक है त ्ह जड होिे हुए भी सोिे - जागिे कभी भी िैन नहीं केिात
कजिनी दे र हम जागिे रहि है , उिनी दे र्ह कुछ न कुछ सोििा हुआ भटकिा रहिा है त अव ।शन
( आरन व ।विन
(). मन की तनबरकिा
(90 की बु
र उद
(). मन की तनबरकिा
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अपहठि गद्ांश :
दे श के ।पम राष््ि राजेद ।साद सादगी और ईमानदारी केलकए शुर से ववि्ाि पेत सविंतिा
आदोकन के
दौरान गाँधीजी ने उनह मीडड्ा ।भारी बना्ात कांगेस की गतिववरध्य की कौन सी खबर ।कालशि
इसका तनणार् राजेद बावू को करना होिा पात वह अखवार मे खबर भी खुद ही पहुँिािे पेत एक
बार वह इकाहाबाद के
कौड ।ेस गएत उस सम् कौड ।ेस के संपादक सी॰ वाई. रिंिामखणा पेत उनकी राजेद बानू से गहरी
दोसिी पीत जब
जेरा रस पहँि ि गेट पर बैठे िपरासी ने कहा, 'इस सम् आप उनसे नहीं लमक सकिेत उनके पास
कई बैठे
हुए हैत आपको इिजार करना पडेगात रज बाबू ने अपना काडर उसे दे िे हुए, कहा, 'ठीक है , ्ह उने दे
दोत जब वह
खाकी हो जाएँ िो सने बुका केगेत िपरासी ने काडर रिंिामखणा की मेज पर रख हद्ा | उस सम्
ठं ड ज्ादा पी और
ह्की बँूद बाँदी भी हो रही पीत राजेद बाबू भीग ग पेत का्ारक् के बाहर कुछ मजदरू अंगीढी
पेतराजेदर बाजू भी वहीं बैठ गएत काफर दे र वाद रिंिामखणा की नजर उस काडर पर पडी वह नंगे
और उनहयने िपरासी से पूछा, '्ह काडर दे ने वाके सजजन कहाँ है !' िपरासी ने कहा, 'वहाँ बैठ कर
आग िाप रह हं त मने
हे रक लक्ा पात रिंिामखणा को दे खकर राजे बाबू भी आ गएत दोनय गके लमकेत रिंिामखणा ने कहा,
'आज इसकी
गकिी से आपको बहुि िककी हुईत' ोफर वह िपरासी को डटे हुए बोके, िुमने राजर बावू को रोका
कक्य ? राजेद
बाबू का नाम सुनि ही िपरासी काँपने कगा और माफी माँगिे हुए बोका, मैने आपको पहनाना नहीं
साहबत मुझे कर
दे ' शेर बावू बोके, 'िुमने कोई गकिी की ही नहीँ िो मार को माँगिे होत िुमने अपनी ड्ूटी
ईमानदारी से तनभाई
(}.. वे िप
ु िाप वापस कौटगए,
(₪). िपरासी की किरव्तनष्ठ से ।भाववि हुए
(#). रे स मे दाखखक हो गए