You are on page 1of 192

पे मचंद

कम

दिुिया का सबसे अिमोल रति : 3


शेख मखगूर : 12
शोक का पुरसकार : 27
सांसािरक पेम और दे शपेम : 37
ििकमािदतय का तेगा : 48
आिखरी मंििल : 70
आलहा : 76
िसीहतो का दफतर : 89
रािहठ : 98
िियाचिरि : 107
िमलाप : 124
मिािि : 131
अंधेर : 142
िसफफ एक आिाि : 148
िेकी : 156
बॉक
ँ ा िमींदार : 166
अिाथ लडकी : 176
कमो का फल : 185

2
द ु िि या का स बसे अ िमोल रत ि

िद लिफगार एक कँटीले पेड के िीचे दामि चाक िकये बैठा हुआ खूि के
आँसू बहा रहा था। िह सौनदय फ की दे िी यािी मलका िदलफरे ब का
सचचा और िाि-दे िेिाला पेमी था। उि पेिमयो मे िही िो इि-फुलेल मे
बसकर और शािदार कपडो से सिकर आिशक के िेग मे माशूिकयत का
दम भरते है । बिलक उि सीधे-सादे भोले-भाले िफदाइयो मे िो िंगल और
पहाडो से सर टकराते है और फिरयाद मचाते िफरते है । िदलफरे ब िे उससे
कहा था िक अगर तू मेरा सचचा पेमी है , तो िा और दिुिया की सबसे
अिमोल चीि लेकर मेरे दरबार मे आ। तब मै तुझे अपिी गुलामी मे कबूल
करँगी। अगर तुझे िह चीि ि िमले तो खबरदार इधर रख ि करिा, ििाफ
सूली पर िखंचिा दँग
ू ी। िदलिफगार को अपिी भाििाओं के पदशि
फ का,
िशकिे-िशकायत का, पेिमका के सौनदय फ दशि
फ का तििक भी अिसर ि िदया
गया। िदलफरे ब िे जयोही यह फैसला सुिाया उसके चौबदारो िे गरीब
िदलिफगार को धकके दे कर बाहर ििकाल िदया। और आि तीि िदि से यह
आफत का मारा आदमी उसी कँटीले पेड के िीचे उसी भयािक-मैदाि मे
बैठा हुआ सोच रहा है िक कया करँ। दिुिया की सबसे अिमोल चीि मुझको
िमलेगी? िामुमिकि! और िह है कया? कारँ का खिािा? आबे हयात? खुसरो
का ताि? िामेिम? तखते ताऊस? परिेि की दौलत? िहीं, यह चीिे हरिगि
िहीं। दिुिया मे िरर इिसे भी महँ गी, इिसे भी अिमोल चीिे मौिूद है ,
मगर िह कया है ? कैसे िमलेगी? या खुदा, मेरी मुििकल कयो कर आसाि
होगी।
िदलिफगार इनहीं खयालो मे चककर खा रहा था और अकल कुछ काम
िहीं करती थी। मुिीर शामी को हाितम-सा मददगार िमल गया। ऐ काश,
कोई मेरा भी मददगार हो िाता! ऐ काश, मुझे भी उस चीि का, िो दिुिया
की सबसे बेशकीमत चीि है , िाम बतला िदया िाता! बला से िह चीिे हाथ
ि आती मगर मुझे इतिा तो मालूम हो िाता िक िह िकस िकसम की चीि
है । मै घडे बराबर मोती की खोि मे िा सकता हूँ। मै समुनदर का गीत,
पतथर का िदल, मौत की आिाि और इिसे भी जयादा बेििशाि चीिो की

3
तलाश मे कमर कस सकता हूँ: मगर दिुिया की सबसे अिमोल चीि! यह
मेरी कलपिा की उडाि से बहुत ऊपर है ।
आसमाि पर तारे ििकल आये थे। िदलिफगार यकायक खुदा का िाम
लेकर उठा और एक तरफ को चल खडा हुआ। भूखा-पयासा, िंगे बदि, थकि
से चूर, िह बरसो िीरािो और आबािदयो की खाक छािता िफरा, तलिे कांटो
से छलिी हो गये, शरीर मे हििियां िदखायी दे िे लगी मगर िह चीि, िो
दिुिया की सबसे बेशकीमती चीि थी, ि िमली और ि उसका कुछ ििशाि
िमला।
एक रोि िह भूलता-भटकता एक मैदाि मे िा ििकला िहॉँ हिारो
आदमी गोल बॉध
ँ े खडे थे। बीच मे कई अमामे और चोगेिाले दिियल कािी
अफसरी शाि से बैठे हुए आपस मे कुछ सलाह-मशििरा कर रहे थे और इस
िमात से िरा दरू पर एक सूली खडी थी। िदलिफगार कुछ तो कमिोरी की
ििह से और कुछ यहॉँ की कैिफयत दे खिे के इरादे से िठठक गया। कया
दे खता है , िक कई लोग िंगी तलिारे िलये, एक कैदी को, ििसके हाथ-पैर मे
िंिीरे थीं, पकडे चले आ रहे है । सूली के पास पहुँचकर सब िसपाही रक गये
और कैदी की हथकिडयॉँ-बेिडयॉँ सब उतार ली गयीं। इस अभागे आदमी का
दामि सैकडो बेगुिाहो के खूि के छीटो से रं गीि था और उसका िदल िेकी
के खयाल और रहम की आिाि से िरा भी पिरिचत ि था। उसे काला चोर
कहते थे। िसपािहयो िे उसे सूली के तखते पर खडा कर िदया, मौत की फॉस
ँ ी
उसकी गदफ ि मे िाल दी और िललादो िे तखता खींचिे का इरादा िकया िक
िह अभागा मुििरम चीखकर बोला—खुदा के िासते मुझे एक पल के िलए
फॉस
ँ ी से उतार दो तािक अपिे िदल की आिखरी आरिू ििकाल लूँ। यह
सुिते ही चारो तरफ सनिाटा छा गया। लोग अचमभे मे आकर ताकिे लगे।
कािियो िे एक मरिे िाले आदमी की अंितम याचिा को रद करिा उिचत
ि समझा और बदिसीब पापी काला चोर िरा दे र के िलए फॉस
ँ ी से उतार
िलया गया।
इसी भीड मे एक खूबसूरत भोला-भाला लडका एक छडी पर सिार
होकर अपिे पैरो पर उछल-उछल फिी घोडा दौडा रहा था, और अपिी
सादगी की दिुिया मे ऐसा मगि था िक िैसे िह इस िक सचमुच अरबी
घोडे का शहसिार है । उसका चेहरा उस सचची खुशी से कमल की तरह
िखला हुआ था चनद िदिो के िलए बचपि ही मे हािसल होती है और
4
ििसकी याद हमको मरते दम तक िहीं भूलती। उसका िदल अभी तक पाप
की गदफ और धूल से अछूता था और मासूिमयत उसे अपिी गोद मे िखला
रही थी।
बदिसीब काला चोर फांसी से उतरा। हिारो आंखे उस पर गडी हुई
थीं। िह उस लडके के पास आया और उसे गोद मे उठाकर पयार करिे
लगा। उसे इस िक िह िमािा याद आया िब िह खुद ऐसा ही भोला-
भाला, ऐसा ही खुश ि खुरफम और दिुिया की गंदिगयो से ऐसा ही पाक-साफ
था। मॉँ गोिदयो मे िखलाती थी, बाप बलाएं लेता था और सारा कुिबा िाि
नयोछािर करता था। आह, काले चोर के िदल पर इस िक बीते हुए िदिो की
याद का इतिा असर हुआ िक उसकी आँखो से, ििनहोिे दम तोडती हुई
लाशो को तडपते दे खा और ि झपकीं, आँसू, का एक कतरा टपक पडा।
िदलिफगार िे लपककर उस अिमोल मोती को हाथ मे ले िलया और उसके
िदल िे कहा—बेशक यह दिुिया की सबसे अिमोल चीि है ििस पर तखते
ताऊस और िामेिम और आबे हयात और िरे परिेि सब नयोछािर है ।
इस खयाल से खुश होता, कामयाबी की उममीद मे सरमसत, िदलिफगार
अपिी माशूका िदलफरे ब के शहर मीिोसाबाद को चला। मगर जयो-जयो
मंििले तय होती िाती थीं उसका िदल बैठा िाता था िक कहीं उस चीि
की, ििसे मै दिुिया की सबसे बेशकीमत चीि समझता हूँ, िदलफरे ब की
आंखो मे कद ि हुई तो मै फॉस
ँ ी पर चिा िदया िाऊँगा और इस दिुिया से
िामुराद िाऊँगा। लेिकि िो हो सो हो, अब तो िकसमत आिमाई है ।
आिखरकार पहाड और दिरया तय करते िह शहर मीिोसबाद मे आ पहुँचा
और िदलफरे ब की ियोिी पर िाकर िििती की िक थकाि से टू टा हुआ
िदलिफगर खुदा के फिल से हुकम की तामील करके आया है , और आपके
कदम चूमिा चाहता है । िदलफरे ब िे फौरि अपिे सामिे बुला भेिा और
एक सुिहरे परदे की ओट से फरमाइश की िक िह अिमोल चीि पेश करो।
िदलिफगार िे आशा और भय की एक िििचि मि:िसथित मे िह बूँद पेश
की और उसकी सारी कैिफयत बहुत पुरअसर लफिो मे बयाि की। िदलफरे ब
िे पूरी कहािी बहुत गौर से सुिी और िह भेट हाथ मे लेकर िरा दे र तक
गौर करिे के बाद बोली-िदलिफगार, बेशक तूिे दिुिया की एक बेशकीमत
चीि ढू ं ि ििकाली, तेरी िहममत और तेरी सूझ-बूझ की दाद दे ती हूँ! मगर यह
दिुिया की सबसे बेशकीमती चीि िहीं, इसिलए तू यहॉँ से िा और िफर
5
कोिशश कर, शायद अब की तेरे हाथ िह मोती लगे और तेरी िकसमत मे
मेरी गुलामी िलखी हो। िैसा िक मैिे पहले ही बतला िदया था, मै तुझे फांसी
पर चििा सकती हूँ मगर मै तेरी िॉब
ँ खशी करती हूँ इसिलए िक तुझमे िह
गुण मौिूद है , िो मै अपिे पेमी मे दे खिा चाहती हूँ और मुझे यकीि है िक
तू िरर कभी-ि-कभी कामयाब होगा।
िाकाम और िामुराद िदलिफगार इस माशूकािा इिायत से िरा िदलेर
होकर बोला-ऐ िदल की रािी, बडी मुदत के बाद तेरी ियोिी पर सिदा करिा
िसीब होता है । िफर खुदा िािे ऐसे िदि कब आऍग
ं े, कया तू अपिे िाि दे िे
िाले आिशक के बुरे हाल पर तरस ि खायेगी और कया तू अपिे रप की
एक झलक िदखाकर इस िलते हुए िदलिफगार को आिेिाली सिखतयो को
झेलिे की ताकत ि दे गी? तेरी एक मसत ििगाह के िशे मे चूर होकर मै िह
कर सकता हूँ िो आि तक िकसी से ि बि पडा हो।
िदलफरे ब आिशक की यह चाि भरी बाते सुिकर गुससा हो गयी और
हुकम िदया िक इस दीिािे को खडे -खडे दरबार से ििकाल दो। चोबदार िे
फौरि गरीब िदलिफगार को धकका दे कर यार के कूचे से बाहर ििकाल
िदया।
कुछ दे र तक तो िदलिफगार अपिी ििषु र पेिमका की इस कठोरता पर
आँसू बहाता रहा, और िफर िह सोचिे लगा िक अब कहॉँ िाऊँ। मुदतो रासते
िापिे और िंगलो मे भटकिे के बाद आँसू की यह बूँद िमली थी, अब ऐसी
कौि-सी चीि है ििसकी कीमत इस आबदार मोती से जयादा हो। हिरते
िखज! तुमिे िसकनदर को आबे हयात के कुएँ का रासता िदखाया था, कया
मेरी बॉह
ँ ि पकडोगे? िसकनदर सारी दिुिया का मािलक था। मै तो एक
बेघरबार मुसािफर हूँ। तुमिे िकतिी ही िू बती िकिितयॉँ िकिारे लगायी है ,
मुझ गरीब का बेडा भी पार करो। ए आलीमुकाम ििबरील! कुछ तुमहीं इस
िीमिाि दख
ु ी आिशक पर तरस खाओ। तुम खुदा के एक खास दरबारी हो,
कया मेरी मुििकल आसाि ि करोगे? गरि यह है िक िदलिफगार िे बहुत
फिरयाद मचायी मगर उसका हाथ पकडिे के िलए कोई सामिे ि आया।
आिखर ििराश होकर िह पागलो की तरह दब
ु ारा एक तरफ दब
ु ारा एक तरफ
को चल खडा हुआ।
िदलिफगार िे पूरब से पििम तक और उतर से दिकखि तक िकतिे
ही िंगलो और िीरािो की खाक छािी, कभी बिफफसतािी चोिटयो पर सोया,
6
कभी िराििी घािटयो मे भटकता िफरा मगर ििस चीि की धुि थी िह ि
िमली, यहॉँ तक िक उसका शरीर हििियो का एक ढॉच
ँ ा रह गया।
एक रोि िह शाम के िक िकसी िदी के िकिारे खसताहाल पडा हुआ
था। बेखुदी के िशे से चौका तो कया दे खता है िक चनदि की एक िचता
बिी हुई है और उस पर एक युिती सुहाग के िोडे पहिे सोलहो िसंगार
िकये बैठी है । उसकी िॉध
ँ पर उसक पयारे पित का सर है । हिारो आदमी
गोल बांधे खडे है और फूलो की बरखा कर रहे है । यकायक िचता मे से खुद-
ब-खुद एक लपट उठी। सती का चेहरा उस िक एक पििि भाि से
आलोिकत हो रहा था, िचता की पििि लपटे उसके गले से िलपट गयीं और
दम के दम मे िह फूल-सा शरीर राख कर ढे र हो गया। पेिमका िे अपिे को
पेमी पर नयोछािर कर िदया और दो पेिमयो के सचचे, पििि, अमर पेम की
अिनतम लीला आंख से ओझल हो गयी। िब सब लोग अपिे घरो को लौटे
तो िदलिफगार चुपके से उठा और अपिे चाक-दामि कुरते मे यह राख का
ढे र समेट िलया और इस मुटठी भर राख को दिुिया की सबसे अिमोल
चीि समझता हुआ, सफलता के िशे मे चूर, यार के कूचे की तरफ चला।
अबकी जयो-जयो िह मंििल के करीब आता था, उसकी िहममत बिती िाती
थी। कोई उसके िदल मे बैठा हुआ कह रहा था-अबकी तेरी िीत है और इस
खयाल िे उसके िदल को िो-िो सपिे िदखाये उिकी चचा फ वयथ फ है ।
आिखरकार िह शहर मीिोसबाद मे दािखल हुआ और िदलफरे ब की ऊँची
ियोिी पर िाकर खबर दी िक िदलिफगार सुखर
फ होकर लौटा है , और हुिूर
के सामिे आिा चाहता है । िदलफरे ब िे िांबाि आिशक को फौरि दरबार मे
बुलाया और उस चीि के िलए, िो दिुिया की सबसे बेशकीमती चीि थी,
हाथ फैला िदया। िदलिफगार िे िहममत करके उसकी चांदी िैसे कलाई को
चूम िलया और मुटठी भर राख को उसकी हथेली मे रखकर सारी कैिफयत
िदल को िपघला दे िे िाले लफिो मे कह सुिायी और अपिी सुनदर पेिमका
के होठो से अपिी िकसमत का मुबारक फैसला सुििे के िलए इनतिार करिे
लगा। िदलफरे ब िे उस मुटठीभर राख को आंखो से लगा िलया और कुछ दे र
तक ििचारो के सागर मे िू बे रहिे के बाद बोली-ऐ िाि ििछािर करिे िाले
आिशक िदलिफगार! बेशक यह राख िो तू लाया है , ििसमे लोहे को सोिा
कर दे िे की िसफत है , दिुिया की बहुत बेशकीमत चीि है और मै सचचे
िदल से तेरी एहसािमनद हूँ िक तूिे ऐसी अिमोल भेट दी। मगर दिुिया मे
7
इससे भी जयादा अिमोल चीि है , िा उसे तलाश कर और तब मेरे पास
आ। मै तहे िदल से दआ
ु करती हूँ िक खुदा तुझे कामयाब करे । यह कहकर
िह सुिहरे परदे से बाहर आयी और माशूकािा अदा से अपिे रप का िलिा
िदखाकर िफर ििरो से ओझल हो गई। अभी िदलिफगार के होश-हिास
िठकािे पर ि आिे पाये थे िक चोबदार िे मुलायिमयत से उसका हाथ
पकडकर यार के कूचे से उसको ििकाल िदया और िफर तीसरी बार िह पेम
का पुिारी ििराशा के अथाह समुनदर मे गोता खािे लगा।
िदलिफगार का िहयाब छूट गया। उसे यकीि हो गया िक मै दिुिया मे
उसी तरह िाशाद और िामुराद मर िािे के िलए पैदा िकया गया था और
अब इसके िसिा और कोई चारा िहीं िक िकसी पहाड पर चिकर िीचे कूद
पिू ँ तािक माशूक के िुलमो की फिरयाद करिे के िलए एक हििी भी बाकी
ि रहे । िह दीिािे की तरह उठा और िगरता-पडता एक गगिचुमबी पहाड की
चोटी पर िा पहुँचा। िकसी और समय िह ऐसे ऊँचे पहाड पर चििे का
साहस ि कर सकता था मगर इस िक िाि दे िे के िोश मे उसे िह पहाड
एक मामूली टे करी से जयादा ऊँचा ि ििर आया। करीब था िक िह िीचे
कूद पडे िक हरे -हरे कपडे पहिे हुए और हरा अमामा बांधे एक बुिुग फ एक
हाथ मे तसबीह और दस
ू रे हाथ मे लाठी िलये बरामद हुए और िहममत
बिािेिाले सिर मे बोले-िदलिफगार, िादाि िदलिफगार, यह कया बुििदलो
िैसी हरकत है ! तू मुहबबत का दािा करता है और तुझे इतिी भी खबर िहीं
िक मिबूत इरादा मुहबबत के रासते की पहली मंििल है ? मदफ बि कर
िहममत ि हार। पूरब की तरफ एक दे श है ििसका िाम िहनदोसताि है , िहॉँ
िा और तेरी आरिू पूरी होगी।
यह कहकर हिरते िखज गायब हो गये। िदलिफगार िे शुिकये की
िमाि अदा की और तािा हौसले, तािा िोश और अलौिकक सहायता का
सहारा पाकर खुश-खुश पहाड से उतरा और िहनदोसताि की तरफ चल पडा।
मुदतो तक कांटो से भरे हुए िंगलो, आग बरसािेिाले रे िगसतािो,
किठि घािटयो और अबंधय पित
फ ो को तय करिे के बाद िदलिफगार िहनद
की पाक सरिमीि मे दािखल हुआ और एक ठं िे पािी के सोते मे सफर की
तकलीफे धोकर थकाि के मारे िदी के िकिारे लेट गया। शाम होते-होते िह
एक चिटयल मैदाि मे पहुँचा िहॉँ बेशुमार अधमरी और बेिाि लाशे िबिा
कफि के पडी हुई थीं। चील, कौए और िहशी दिरनदे भरे पडे थे और सारा
8
मैदाि खूि से लाल हो रहा था। यह िराििा दिय दे खते ही िदलिफगार का
िी दहल गया। या खुदा, िकस मुसीबत मे िाि फँसी, मरिेिालो को कराहिा,
िससकिा और एिडयॉँ रगडकर िाि दे िा, दिरनदो का हििियो को िोचिा
और गोित के लोथडो को लेकर भागिा-ऐसा हौलिाक सीि िदलिफगार िे
कभी ि दे खा था। यकायक उसे खयाल आया, यह लडाई का मैदाि है और
यह लाशे सूरमा िसपािहयो की है । इतिे मे करीब से कराहिे की आिाि
आयी। िदलिफगार उस तरफ िफरा तो दे खा िक एक लमबा-तगडा आदमी,
ििसका मदाि
फ ा चेहरा िाि ििकलिे की कमिोरी से पीला हो गया है , िमीि
पर सर झुकाये पडा हुआ है । सीिे से खूि का फविारा िारी है , मगर आबदार
तलिार की मूठ पंिे से अलग िहीं हुई। िदलिफगार िे एक चीथडा लेकर
घाि के मुहं पर रख िदया तािक खूि रक िाये और बोला-ऐ ििॉम
ँ दफ , तू
कौि है ? ििॉम
ँ दफ , तू कौि है ? ििॉम
ँ दफ िे यह सुिकर आँखे खोलीं और िीरो
की तरह बोला—कया तू िहीं िािता मै कौि हूँ, कया तूिे आि इस तलिार
की काट िहीं दे खी? मै अपिी मॉँ का बेटा और भारत का सपूत हूँ। यहं
कहते-कहते उसकी तयौिरयो पर बल पड गये। पीला चेहरा गुससे से लाल हो
गया और आबदार शमशीर िफर अपिा िौहर िदखािे के िलए चमक उठी।
िदलिफगार समझ गया िक यह इस िक मुझे दश
ु मि समझ रहा है , िरमी से
बोला—ऐ ििांमदफ , मै तेरा दिुमि िहीं हूँ। अपिे िति से ििकला हुआ एक
गरीब मुसािफर हूँ। इधर भूलता-भटकता आ ििकला। बराय मेहरबािी मुझसे
यहॉँ की कुल कैिफयत बयाि कर।
यह सुिते ही घायल िसपाही बहुत मीठे सिर मे बोला-अगर तू
मुसािफर है तो आ और मेरे खूि से तर पहलू मे बैठ िा कयोिक यही दो
अंगुल िमीि है िो मेरे पास बाकी रह गयी है और िो िसिाय मौत के कोई
िहीं छीि सकता। अफसोस है िक तू यहॉँ ऐसे िक मे आया िब तेरा
आितथय-सतकार करिे के योगय िहीं। हमारे बाप-दादा का दे श आि हमारे
हाथ से ििकल गया और इस िक हम बेिति है । मगर (पहलू बदलकर)
हमिे हमलािर दिुमि को बता िदया िो लाशे तू दे ख रहा है , यह उि लोगो
की है , िो इस तलिार के घाट उतरे है । (मुसकराकर) और गो िक मै बेिति
हूँ, मगर गिीमत है िक दिुमि की िमीि पर िहीं मर रहा हूँ। (सीिे के
घाि से चीथडा ििकालकर) कया तूिे यह मरहम रख िदया? खूि ििकलिे दे ,
इसे रोकिे से कया फायदा? कया मै अपिे ही दे श मे गुलामी करिे के िलए
9
ििनदा रहूँ? िहीं, ऐसी ििनदगी से मर िािा अचछा। इससे अचछी मौत
मुमिकि िहीं।
ििॉम
ँ दफ की आिाि मििम हो गयी, अंग ढीले पड गये, खूि इतिा
जयादा बहा िक खुद-ब-खुद बनद हो गया। रह-रह-कर एकाध बूंद टपक पडता
था। आिखरकार सारा शरीर बेदम हो गया, िदल की हरकत बनद हो गयी और
आंखे मुंद गयीं। िदलिफगार िे समझा अब काम तमाम हो गया िक
मरिेिाले िे धीमे से कहा-भारतमाता की िय। और उिके सीिे से खूि का
आिखरी कतरा ििकल पडा। एक सचचे दे शपेमी और दे शभक िे दे शभिक का
हक अदा कर िदया। िदलिफगार पर इस दिय का बहुत गहरा असर पडा
और उसके िदल िे कहा, बेशक दिुिया मे खूि के इस कतरे से जयादा
अिमोल चीि कोई िहीं हो सकती। उसिे फौरि खूि की बूंद को, ििसके
आगे यमि का लाल हे च भी है , हाथ मे ले िलया और इस िदलेर रािपूत की
बहादरुी पर है रत करता हुआ अपिे िति की तरफ रिािा हुआ और
सिखतयां झेलता हुआ आिखरकार बहुत िदिो के बाद रप की रािी मलका
िदलफरे ब की ियौिी पर िा पहुँचा और पैगाम िदया िक िदलिफगार सुखर

और कामयाब होकर लौटा है और दरबार मे हाििर होिा चाहता है ।
िदलफरे ब िे उसे फौरि हाििर होिे का हुकम िदया। खुद हसबे मालूम सुिहरे
परदे की ओंट मे बैठी और बोली-िदलिफगार, अबकी तू बहुत िदिो के बाद
िापस आया है । ला, दिुिया की सबसे बेशकीमत चीि कहॉँ है ?
िदलिफगार िे मेहदी-रची हथेिलयो को चूमते हुए खूि का कतरा उस
पर रख िदया और उसकी पूरी कैिफयत पुरिोश लहिे मे कह सुिायी। िह
खामोश भी ि होिे पाया था िक यकायक यह सुिहरा परदा हट गया और
िदलिफगार के सामिे हुसि का एक दरबार सिा हुआ ििर आया, ििसकी
एक-एक िाििीि िुलेखा से बिकर थी। िदलफरे ब बडी शाि के साथ सुिहरी
मसिद पर सुशोिभत हो रही थी। िदलिफगार हुसि का यह ितिलसम दे खकर
अचमभे मे पड गया और िचििलिखत-सा खडा रहा िक िदलफरे ब मसिद से
उठी और कई कदम आगे बिकर उससे िलपट गयी। गािेिािलयो िे खुशी के
गािे शुर िकये, दरबािरयो िे िदलिफगार को ििरे भेट कीं और चॉद
ँ -सूरि
को बडी इजित के साथ मसिद पर बैठा िदया। िब िह लुभाििा गीत बंद
हुआ तो िदलफरे ब खडी हो गयी और हाथ िोडकर िदलिफगार से बोली-ऐ
िॉिँिसार आिशक िदलिफगार! मेरी दआ
ु ऍ ं बर आयीं और खुदा िे मेरी सुि
10
ली और तुझे कामयाब ि सुखर
फ िकया। आि से तू मेरा मािलक है और मै
तेरी लौिी!
यह कहकर उसिे एक रतििटत मंिूषा मँगायी और उसमे से एक
तखती ििकाली ििस पर सुिहरे अकरो से िलखा हुआ था-
‘खूि का िह आिखरी कतरा िो िति की िहफािम मे िगरे दिुिया की
सबसे अिमोल चीि है ।

11
शे ख म खमू र

मु लके िनितििशॉँ के इितहास मे िह अँधेरा िक था िब शाह िकशिर


की फतहो की बाि बडे िोर-शोर के साथ उस पर आयी। सारा दे श
तबाह हो गया। आिादी की इमारते ढह गयीं और िािोमाल के लाले पड
गए। शाह बामुराद खूब िी तोडकर लडा, खूब बहादरुी का सबूत िदया और
अपिे खािदाि के तीि लाख सूरमाओं को अपिे दे श पर चिा िदया मगर
िििेता की पतथर काट दे िेिाली तलिार के मुकाबले मे उसकी यह मदाि
फ ा
िॉब
ँ ािियॉँ बेअसर सािबत हुई। मुलक पर शाह िकशिरकुशा की हुकूमत का
िसकका िम गया और शाह बामुराद अकेला तिहा बेयारो मददगार अपिा
सब कुछ आिादी के िाम पर कुबाि
फ करके एक झोपडे मे ििनदगी बसर
करिे लगा।
यह झोपडा पहाडी इलाके मे था। आस-पास िंगली कौमे आबाद थीं
और दरू-दरू तक पहाडो के िसलिसले ििर आते थे। इस सुिसाि िगह मे
शाह बामुराद मुसीबत के िदि काटिे लगा। दिुिया मे अब उसका कोई दोसत
ि था। िह िदि भर आबादी से दरू एक चटटाि पर अपिे खयाल मे मसत
बैठा रहता था। लोग समझते थे िक यह कोई बहजाि के िशे मे चूर सूफी
है । शाह बामुराद को यो बसर करते एक िमािा बीत गया और ििािी की
ििदाई और बुिापे के सिागत की तैयािरयाँ होिे लगीं।
तब एक रोि शाह बामुराद बसती के सरदार के पास गया और उससे
कहा-मै। अपिी शादी करिा चाहता हूँ। उसकी तरफ से पैगाम सुिकर िह
अचमभे मे आ गया। मगर चूिँ क िदल मे शाह साहब के कमाल और फकीरी
मे गहरा ििशास रखता था, पलटकर ििाब ि दे सका और अपिी कुँआरी
िौििाि बेटी उिको भेट की। तीसरे साल इस युिती की कामिाओं की
िािटका मे एक िौरस पौधा उगा। शाह साहब खुशी के मारे िामे मे फूले ि
समाये। बचचे को गोद मे उठा िलया और है रत मे िू बी हुई मॉँ के सामिे
िोश-भरे लहिे मे बोले—‘खुदा का शुक है िक मुलके िनितििशॉँ का िािरस
पैदा हुआ।’
बचचा बििे लगा। अकल और िहाित मे, िहममत और ताकत मे, िह
अपिी दग
ु िी उमर के बचचो से बिकर था। सुबह होते ही गरीब िरनदा बचचे
का बिाि-िसंगार करके और उसे िािता िखलाकर अपिे काम-धनधो मे लग
12
िाती थी और शाह साहब बचचे की उँ गली पकडकर उसे आबादी से दरू
चटटाि पर ले िाते। िहॉँ कभी उसे पिाते, कभी हिथयार चलािे की मिक
कराते और कभी उसे शाही कायदे समझाते। बचचा था तो कमिसि, मगर
इि बातो मे ऐसा िी लगाता और ऐसे चाि से लगा रहता गोया उसे अपिा
िंश का हाल मालूम है । िमिाि भी बादशाहो िैसा था। गांि का एक-एक
लडका उसके हुकम का फरमाबरदार था। मॉँ उस पर गिफ करती, बाप फूला ि
समाता और सारे गॉि
ँ के लोग समझते िक यह शाह साहब के िप-तप का
असर है ।
बचचा मसऊद दे खते-दे खते एक सात साल का िौििाि शहिादा हो
गया। दे खकर दे खिेिाले के िदल को एक िशा-सा होता था। एक रोि शाम
का िक था, शाह साहब अकेले सैर करिे गये और िब लौटे तो उिके सर
पर एक िडाऊ ताि शोभा दे रहा था। िरनदा उिकी यह हुिलया दे कर सहम
गयी और मुँह से कुछ ि बोल सकी। तब उनहोिे िौििाि मसऊद को गले
से लगाया, उसी िक उसे िहलाया-धुलाया और िब लौटे और एक चटटाि के
तखत पर बैठाकर ददफ -भरे लहिे मे बोले-मसऊद, मै आि तुमसे रखसत
होता हूँ और तुमहारी अमाित तुमहे सौपता हूँ। यह उसी मुलके िनितििशॉँ
का ताि है । कोई िह िमािा था िक यह ताि तुमहारे बदिसीब बाप के सर
पर िेब दे ता था, अब िह तुमहे मुबारक हो। िरनदा! पयारी बीिी! तेरा
बदिकसमत शौहर िकसी िमािे मे इस मुलक का बादशाह था और अब तू
उसकी मिलका है । मैिे यह राि तुमसे अब तक िछपाया था, मगर हमारे
अलग होिे का िक बहुत पास है । अब िछपाकर कया करँ। मसऊद, तुम
अभी बचचे हो, मगर िदलेर और समझदार हो। मुझे यकीि है िक तुम अपिे
बूिे बाप की आिखरी िसीयत पर धयाि दोगे और उस पर अमल करिे की
कोिशश करोगे। यह मुलक तुमहारा है , यह ताि तुमहारा है और यह िरआया
तुमहारी है । तुम इनहे अपिे कबिे मे लािे की मरते दम तक कोिशश करते
रहिा और अगर तुमहारी तमाम कोिशशे िाकाम हो िाये और तुमहे भी यही
बेसरोसामािी की मौत िसीब हो तो यहीं िसीयत तुम अपिे बेटे से कर दे िा
और यह ताि, िो उसकी अमाित होगी, उसके सुपुदफ करिा। मुझे तुमसे और
कुछ िहीं कहिा है । खुदा तुम दोिो को खुशोखुरफम रकखे और तुमहे मुराद को
पहुँचाये।

13
यह कहते-कहते शाह साहब की आँखे बनद हो गयीं। िरनदा दौडकर
उिके पैरो से िलपट गयी और मसऊद रोिे लगा। दस
ू रे िदि सुबह को गॉि

के लोग िमा हुए और एक पहाडी गुफा की गोद मे लाश रख दी।

शा ह िकशिरकुशा िे आधी सदी तक खूब इनसाफ के साथ राि िकया


मगर िकशिरकुशा दोयम िे
अकलमनद बाप के मंिियो को एक िसरे से बखास
िसंहासि पर
फ त कर िदया और अपिी
आते ही अपिे

मिी के मुआिफक िये-िये ििीर और सलाहकार िियुक िकये। सलतित का


काम रोि-ब-रोि िबगडिे लगा। सरदारो िे बेइनसाफी पर कमर बॉध
ँ ी और
हुककाम िरआया पर िोर-िबदफ सतरी करिे लगे। यहॉँ तक िक खािदािे
मुरािदया के एक पुरािे िमकखोर िे मौका अचछा दे खकर बगाित का झंिा
बुलनद कर िदया। आसपास से लोग उसके झंिे के िीचे िमा होिे िाले और
कुछ ही हफतो मे एक बडी फौि कायम हो गयी और मसऊद भी िमकखोर
सरदार की फौि मे आकर मामूली िसपािहयो का काम करिे लगा।
मसऊद का अभी यौिि का आरमभ था। िदल मे मदाि
फ ा िोश और
बािुओं मे शेरो की कूित मौिूद थी। ऐसा लमबा-तडं गा, सुनदर िौििाि
बहुत कम िकसी िे दे खा होगा। शेरो के िशकार का उसे इिक था। दरू-दरू
तक के िंगल दिरनदो से खाली हो गये। सिेरे से शाम तक सैरो-िशकार के
िसिा कोई धंधा ि था। लबोलहिा ऐसा िदलकश पाया था िक ििस िक
मसती मे आकर कोई कौमी गीत छे ड दे ता तो राह चलते मुसािफरो और
पहाडी औरतो का टट लग िाता था। िकतिे ही भोले-भाले िदलो पर उसकी
मोिहिी सूरत िकश थी, िकतिी ही आँखे उसे दे खिे को तरसती और िकतिी
ही िािे उसकी मुहबबत की आग मे घुलती थीं। मगर मसऊद पर अभी तक
िकसी का िाद ू ि चला था। हॉ, अगर उसे मुहबबत थी तो अपिी आबदार
शमशीर से िो उसिे बाप से ििरसे मे पायी थी। इस तेग को िह िाि से
जयादा पयार करता। बेचारा खुद िंगे बदि रहता मगर उसके िलए तरह-तरह
के िमयाि बििाये थे। उसे एक दम के िलए अपिे पहलू से अलग ि
करता। सच है िदलेर िसपाही की तलिार उसकी ििगाहो मे दिुिया की
तमाम चीिो से जयादा पयारी होती है । खासकर िह आबदार खंिर ििसका

14
िौहर बहुत-से मौको पर परखा िा चुका हो। इसी तेग से मसऊद िे िकतिे
ही िंगली दिरनदो को मारा था, िकतिे ही लुटेरो और िाकुओं को मौत का
मिा चखाया था और उसे पूरा यकीि था िक यही तलिार िकसी िदि
िकशिरकुशा दोयम के सर पर चमकेगी और उसकी शहरग के खूि से अपिी
िबाि तर करे गी।
एक रोि िह एक शेर का पीछा करते-करते बहुत दरू ििकल गया।
धूप सखत थी, भूख और पयास से िी बेताब हुआ, मगर िहॉँ ि कोई मेिे का
दरखत ििर आया ि कोई बहता हुआ पािी का सोता ििससे भूख और
पयास की आग बुझाता। है राि और परे शाि खडा था। सामिे से एक चांद
िैसी सुनदर युिती हाथ मे बछी िलए और िबिली की तरह तेि घोडे पर
सिार आती हुई िदखाई दी। पसीिे की मोती िैसी बूँदे माथे पर झलक रही
थीं और अमबर की सुगनध मे बसे हुए बाल दोिो कंधो पर एक सुहािी
बेतकललुफी से िबखरे हुए थे। दोिो की ििगाहे चार हुई और मसऊद का
िदल हाथ से िाता रहा। उस गरीब िे आि तक दिुिया को िला िालिे
िाला ऐसा हुसि ि दे खा था, उसके ऊपर एक सकता-सा छा गया। यह ििाि
औरत उस िंगल मे मिलका शेर अफगाि के िाम से मशहूर थी।
मिलका िे मसऊद को दे खकर घोडे की बाग खींच ली और गम फ लहिे
मे बोली—कया तू िही िौििाि है , िो मेरे इलाके के शेरो का िशकार िकया
करता है ?, बतला तेरी इस गुसताखी की कया सिा दँ ?ू
यह सुिते ही मसऊद की आंखे लाल हो गयीं और बरबस हाथ तलिार
की मूठ पर िा पहुँचा मगर िबत करके बोला-इस सिाल का ििाब खूब
दे ता, अगर आपके बिाय यह िकसी िदलेर मदफ की िबाि से ििकलता!
इि शबदो िे मिलका के गुससे की आग का और भी भडका िदया।
उसिे घोडे को चमकाया और बछी उछालती सर पर आ पहुँची और िार पर
िार करिे शुर िकये। मसऊद के हाथ-पॉि
ँ बेहद थकाि से चूर हो रहे थे।
और मिलका शेर-अफगि बछी चलािे की कला मे बेिोड थी। उसिे चरके
पर चरके लगाये, यहॉँ तक िक मसऊद घायल होकर घोडे से िगर पडा। उसिे
अब तक मिलका के िारो को काटिे के िसिाय खुद एक हाथ भी ि चलाया
था।
तब मिलका घोडे से कूदी और अपिा रमाल फाड-फाडकर मसऊद के
िखम बॉध
ँ िे लगी। ऐसा िदलेर और गैरतमनद ििॉम
ँ दफ उसकी ििर से आि
15
तक ि गुिरा था। िह उसे बहुत आराम से उठिाकर अपिे खेमे मे लायी
और पूरे दो हफते तक उसकी पिरचया फ मे लगी रही। यहॉँ तक िक घाि भर
गया और मसऊद का चेहरा िफर पूरिमासी के चॉद
ँ की तरह चमकिे लगा।
मगर हसरत यह थी िक अब मिलका िे उसके पास आिा-िािा छोड िदया।
एक रोि मिलका शेर अफगाि िे मसऊद को दरबार मे बुलाया और
यह बोली- ऐ घमणिी िौििाि! खुदा का शुक है िक तू मेरी बछी की चोट से
अचछा हो गया, अब मेरे इलाके से िा, तेरी गुसताखी माफ करती हूँ। मगर
आइनदा मेरे इलाके मे िशकार के िलए आिे की िहममत ि करिा। िफलहाल
ताकीद के तौर पर तेरी तलिार छीि ली िाएगी। तािक तू घंमि के िशे से
चूर होकर िफर इधर कदम बिािे की िहममत ि करे ।
मसऊद िे िंगी तलिार िमयाि से खींच ली और कडककर बोला—िब
तक मेरे दम मे दम है , कोई यह तलिार मुझसे िहीं ले सकता। यह सुिते
ही एक दे ि िैसा लमबा तंडगा है कल पहलिाि ललकार कर बिा और
मसऊद की कलाई पर तेगे का तुला हुआ हाथ चलाया। मसऊद िे िार खाली
िदया और समहलकर तेगे का िार िकया तो पहलिाि की गदफ ि की पटटी
तक बाकी ि रही। यह कैिफयत दे खते ही मिलका की आंखो से िचिगािरयां
उडिे लगीं। भयािक गुससे के सिर मे बोली—खबरदार, यह शखस यहॉँ से
ििनदा ि िािे पािे। चारो तरफ से आिमाये हुए मिबूत िसपाही िपल पडे
और मसऊद पर तलिारो और बिछफ यो की बौछार पडिे लगी।
मसऊद का ििसम िखमो से छलिी हो गया। खूि के फविारे िारी थे
और खूि की पयासी तलिारे िबाि खोले बार-बार उसकी तरफ लपकती थीं
और उसका खूि चाटकर अपिी पयास बुझा लेती थीं। िकतिी ही तलिारे
उसकी ढाल से टकराकर टू ट गयीं, िकतिे ही बहादरु िसपाही िखमी होकर
तडपिे लगे और िकतिे ही उस दिुिया को िसधारे । मगर मसऊद के हाथ मे
िह आबदार शमशीर जयो की तयो िबिली की तरह कौधती और सुथराि
करती रही। यहॉँ तक िक इस फि के कमाल को समझिे िाली मिलका िे
खुद उसकी तारीफ का िारा बुलनद िकया। और उस तेग को चूमकर बोली—
मसऊद! तू बहादरुी के समनदर का मगर है । शेरो के िशकार मे िक बबाद

मत कर। दिुिया मे िशकार के अलािा और भी ऐसे मौके है िहां तू अपिे
आबदार तेग का िौहर िदखा सकता है । िा और मुलकोकौम की िखदमत
कर। सैरोिशकार हम िैसी औरतो के िलए छोड दे ।
16
मसऊद के िदल िे गुदगुदाया, पयार की बािी िबाि तक आयी मगर
बाहर ििकल ि सकी और उसी िक िह अपिे िदल मे िकसी की पलको की
टीस िलये हुए तीि हफतो के बाद अपिी बेकरार मां के कदमो पर िा िगरा।

ि
3

मकखोर सरदार की फौि रोि ब रोि बििे लगी। पहले तो िह


अंधेरे के पदे मे शाही खिािो पर हाथ बिाता रहा, धीरे -धीरे एक
बाकायदा फौि तैयार हो गयी, यहॉँ तक िक सरदार को शाही फौिो के
मुकाबले मे अपिी तलिार आिमािे का हौसला हुआ, और पहली लडाई मे
चौबीस िकले इस ियी फौि के हाथ आ गये। शाही फौि िे लडिे मे िरा
भी कसर ि की। मगर िह ताकत, िह िोश, िह िजबा, िो सरदार िमकखोर
और उसके दोसतो के िदलो को िहममत के मैदाि मे आगे बिाता रहता था,
िकशिरकुशा दोयम के िसपािहयो मे गायब था। लडाई के कलाकौशल,
हिथयारो की खूबी और ऊपर िदखाई पडिे िाली शाि-शौकत के िलहाि से
दोिो फौिो का कोई मुकाबला ि था। बादशाह के िसपाही लहीम-शहीम,
लमबे-तडं गे और आिमाये हुए थे। उिके साि-सामाि और तौर-तरीके से
दे खिे िालो के िदलो पर एक िर-सा छा िाता था और िहम भी यह गुमाि
ि कर सकता था िक इस िबदफ सत िमात के मुकाबले मे ििहसथी-सी,
अधिंगी और बेकायदा सरदारी फौि एक पल के िलए भी पैर िमा सकेगी।
मगर ििस िक ‘मारो’ की िदल बिािेिाली पुकार हिा मे गूि
ं ी, एक
अिीबोगरीब ििारा सामिे आया। सरदार के िसपाही तो िारे मारकर आगे
धािा करते थे और बादशाह की फौि भागिे की राह पर दबी हुई ििगाहे
िालती थी। दम के दम मे मोचे गुबार की तरह फट गए और िब मसकात
के मिबूत िकले मे सरदार िमकखोर शाही िकलेदार की मसिद पर
अमीरािा ठाट-बाट से बैठा और अपिी फौि की कारगुिािरयो और
िॉब
ँ ािियो का इिाम दे िे के िलए एक तित मे सोिे के तमंगे मँगिाकर
रकखे तो सबसे पहले ििस िसपाही का िाम पुकारा गया िह िौििाि
मसऊद था।
मसऊद पर इस िक उसकी फौि घमंि करती थी। लडाई के मैदाि मे
सबसे पहले उसी की तलिार चमकती थी और धािे के िक सबसे पहले उसी
के कदम उठाते थे। दिुमि के मोचो मे ऐसा बेधडक घुसता था िैसे
17
आसमाि मे चमकता हुआ लाल तारा। उसकी तलिार के िार कयामत थे
और उसके तीर का ििशािा मौत का संदेश।
मगर टे िी चाल की तकदीर से उसका यह पताप, यह पितषा ि दे खी
गई। कुछ थोडे -से आिमाये हुए अफसर, िििके तेगो की चमक मसऊद के
तेग के सामिे मनद पड गई थी, उससे खार खािे लगे और उसे िमटा दे िे
की तदबीरे सोचिे लगे। संयोग से उनहे मौका भी िलद हाथ आ गया।
िकशिरकुशा दोयम िे बािगयो को कुचलिे के िलए अब की एक
िबदफ सत फौि रिािा की और मीर शुिा को उसका िसपहसालार बिाया िो
लडाई के मैदाि मे अपिे िक का इसफंिदयार था। सरदार िमकखोर िे यह
खबर पायी तो हाथ-पांि फूल गये। मीर शुिा के मुकाबले मे आिा अपिी
हार को बुलािा था। आिखरकार यह राय तय पायी िक इस िगह से आबादी
का ििशाि िमटाकर हम लोग िकलेबनद हो िाएं। उस िक िौििाि मसऊद
िे उठकर बडे पुरिोश लहिे मे कहा:
‘िहीं, हम िकलेबंद ि होगे, हम मैदाि मे रहे गे और हाथोहाथ दिुमि
का मुकाबला करे गे। हमारे सीिो की हििियां ऐसी कमिोर िहीं है िक तीर-
तुपुक के ििशािे बदािफत ि कर सके। िकलेबनद होिा इस बात का ऐलाि है
िक हम आमिे-सामिे िहीं लड सकते। कया आप लोग, िो शाह बामुराद के
िामलेिा है , भूल गये िक इसी मुलक पर उसिे अपिे खािदाि के तीि लाख
सपूतो को फूल की तरह चिा िदया? िहीं, हम हरिगि िकलेबनद ि होगे। हम
दिुमि के मुकाबले मे ताल ठोककर आयेगे और अगर खुदा इनसाफ करिे
िाला है तो िरर हमारी तलिारे दिुमिो से गले िमलेगी और हमारी बिछफ यां
उिके पहलू मे िगह पायेगी।‘
सैकडो ििगाहे मसऊद के पुरिोश चेहरे की तरफ उठ गयी। सरदारो
की तयोिरयो पर बल पड गये और िसपािहयो के सीिे िोश से धडकिे लगे।
सरदार िमकखोर िे उसे गले से लगा िलया और बोले-मसऊद, तेरी िहममत
और हौसले की दाद दे ता हूँ। तू हमारी फौि की शाि है । तेरी सलाह मदाि
फ ा
सलाह है । बेशक हम िकलेबंद ि होगे। हम दिुमि के मुकाबले मे ताल
ठोककर आयेगे और अपिे पयारे िनितििशॉँ के िलए अपिा खूि पािी की
तरह बहायेगे। तू हमारे िलए आगे-आगे चलिेिाली मशाल है और हम सब
आि इसी रोशिी मे कदम आगे बिायेगे।

18
मसऊद िे चुिे हुए िसपािहयो का एक दसता तैयार िकया और कुछ
इस दमखम और कुछ इस िोशखरोश से मीर शुिा पर टू टा िक उसकी सारी
फौि मे खलबली पड गयी। सरदार िमकखोर िे िब दे खा िक शाही फौि
के कदम िगमगा रहे है , तो अपिी पूरी ताकत से बादल और िबिली की
तरह लपका और तेगो से तेगे और बिछफ यो से बिछफ यॉँ खडकिे लगीं। तीि
घंटे तक बला का शोर मचा रहा, यहॉँ तक िक शाही फौि के कदम उखड
गये और िह िसपाही ििसकी तलिार मीर शुिा से गले िमली मसऊद था।
तब सरदारी फौि और अफसर सब के सब लूट के माल पर टू टे और
मसऊद िखमो से चूर और खूि मे रँ गा हूआ अपिे कुछ िाि पर खेलिेिाले
दसतो के साथ मसकात के िकले की तरफ लौटा मगर िब होश िे आंखे
खोलीं और हिास िठकािे हुए तो कया दे खता है िक िह एक सिे हुए कमरे
मे मखमली गदे पर लेटा हुआ है । फूलो की सुहािी महक और लमबी छरहरी
सुनदिरयो के िमघट से कमरा चमि बिा हुआ था। ताजिुब से इधर-उधर
ताकिे लगा िक इतिे मे एक अपसरा-िैसी सुनदर युिती तित मे फूलो का
हार िलये धीरे -धीरे आती हुई िदखायी दी िक िैसे बहार फूलो की िाली पेश
करिे आ रही है । उसे दे खते ही उि लंबी छरहरी सुनदिरयो िे आंखे िबछायीं
और उसकी िहिाई हथेली को चूमा। मसऊद दे खते ही पहचाि गया। यह
मिलका शेर अफगाि थी।
मिलका िे फूलो का हार मसऊद के गले मे िाला। हीरे -ििाहरात उस
पर चिाये और सोिे के तारो से टँ की हुई मसिद पर बडी आि-बाि से बैठ
गयी। साििनदो िे बीि ले-लेकर ििियी अितिथ के सिागत मे सुहागे राग
अलापिे शुर िकये।
यहॉँ तो िाच-गािे की महिफल थी, उधर आपसी िाह िे िये-िये
िशगूफे िखलाये। सरदार िे िशकायत की िक मसऊद िरर दिुमि से िा
िमला है और आि िाि-बूझकर फौि का एक दसता लेकर लडिे को गया
था तािक उसे खाक और खूि मे सुलाकर सरदारी फौि को बेिचराग कर दे ।
इसके सबूत मे कुछ िाली खत भी िदखाये गये और इस कमीिी कोिशश मे
िबाि की ऐसी चालाकी िे काम िलया िक आिखर सरदार को इि बातो पर
यकीि आ गया। पौ फटे िब मसऊद मिलका शेर अफगि के दरबार से
िििय का हार गले मे िाले सरदार को बधाई दे िे गया तो बिाय इसके िक
कददािी का िसरोपा और बहादरुी का तमगा पाये, उसकी खरी-खोटी बातो के
19
तीर का ििशािा बिाया गया और हुकम िमला िक तलिार कमर से खोलकर
रख दे ।
मसऊद सतिमभत रह गया। ये तेगा मैिे अपिे बाप से ििरसे मे पाया
है और यह मेरे िपछले बडपपि िक आिखरी यादगार है । यह मेरी बॉह
ँ ो की
ताकत और मेरा सहयोगी और मददगार है । इसके साथ कैसी समिृतयां िुडी
हुई है , कया मै िीते िी इसे अपिे पहलू से अलग कर दँ ू? अगर मुझ पर
कोई आदमी लडाई के मैदाि से कदम हटािे का इलिाम लगा सकता, अगर
कोई शखत इस तेगे का इसतेमाल मेरे मुकािबले मे जयादा कारगुिारी के
साथ कर सकता, अगर मेरी बॉह
ँ ो मे तेग पकडिे की ताकत ि होती तो खुदा
की कसम, मै खुद ही तेगा कमर से खोलकर रख दे ता। मगर खुदा का शुक
है िक मै इि इलिामो से बरी हूँ। िफर कयो मै इसे हाथ से िािे दँ ू? कया
इसिलए िक मेरी बुराई चाहिेिाले कुछ थोड-से िािहयो िे सरदार िमकखोर
का मि मेरी तरफ से फेर िदया है ? ऐसा िहीं हो सकता।
मगर िफर उसे खयाल आया, मेरी सरकशी पर सरदार और भी गुससा
हो िायेगे और यकीिि मुझे तलिार शमशीर के िोर से छीि ली िायेगी।
ऐसी हालत मे मेरे ऊपर िाि िछडकिेिाले िसपाही कब अपिे को काबू मे
रख सकेगे। िरर आपस मे खूि की ििदयॉँ बहे गी और भाई-भाई का िसर
कटे गा। खुदा ि करे िक मरे सबब से यह ददफ िाक मार-काट हो। यह सोचकर
उसिे चुपके से शमशीर सदरार िमकखोर के बगल मे रख दी और खुद सर
िीचा िकये िबत की इनतहाई कुित से गुससे को दबाता हुआ खेमे से बाहर
ििकल आया।
मसऊद पर सारी फौि गि फ करती थी और उस पर िािे िारिे के
िलए हथेली मे िलये रहती थी। ििस िक उसिे तलिार खोली है , दो हिार
सूरमा िसपाही िमयाि पर हाथ रकखे और शोले बरसाती हुई आँखो से ताकते
किौितयॉँ बदल रहे थे। मसऊद के एक िरा-से इशारे की दे र थी और दम
के दम मे लाशो के ढे र लग िाते। मगर मसऊद बहादरुी ही मे बेिोड ि था,
िबत और धीरि मे भी उसका ििाब ि था। उसिे यह ििललत और
बदिामी सब गिार की, तलिार दे िा गिारा िकया, बगाित का इलिाम लेिा
गिारा िकया और अपिे सािथयो के सामिे सर झुकािा गिारा िकया मगर
यह गिारा ि िकया िक उसके कारण फौि मे बगाित और हुकम ि माििे
का खयाल पैदा हो। और ऐसे िािुक िक मे िबिक िकतिे ही िदलेर,
20
ििनहोिे लडाई की आिमाइश मे अपिी बहादरुी का सबूत िदया था, िबत
हाथ से खो बैठते और गुससे की हालत मे एक-दस
ू रे के गले काटते, खामोश
रहा और उसके पैर िहीं िगमगाये। उसकी बहादरुी का सबूत िदया खामोश
रहा और उसके पैर िहीं िगमगाये। उसकी परे शािी पर िरा भी बल ि
आया, उसके तेिर िरा भी ि बदले। उसिे खूि बरसाती हुई आँखो से दोसतो
को अलििदा कहा और हसरत भरा िदल िलये उठा और एक गुफा मे िछप
बैठा और िब सूरि िू बिे पर िहॉँ से उठा तो उसके िदल िे फैसला कर
िलया था िक बदिामी का दाग माथे से िमटाऊँगा और िािहयो को शिमन
फ दगी
के गिढे मे िगराऊँगा।
मसऊद िे फकीरो का भेष अिखतयार िकया, सर पर लोहे की टोपी के
बिाय लमबी िटाएं बिायीं, ििसम पर ििरहबखतर के बिाय गेरए रं गा का
बािा सिा हाथ मे तलिार के बिाय फकीरो का पयाला िलया। िंग के िारे
के बिाय फकीरो की सदा बुलनद की ओर अपिा िाम शेख मखमूर रख
िदया। मगर यह िोगी दस
ू रे िोिगयो की तरह धूिी रमाकर ि बैठा और ि
उस तरह का पचार शुर िकया। िह दिुमि की फौि मे िाता और िसपािहयो
की बाते सुिता। कभी उिकी मोचब
े िनदयो पर ििगाह दौडाता, कभी उिके
दमदमो और िकलो की दीिारो का मुआइिा करता। तीि बार सरदार
िमकखोर दिुमि के पंिे से ऐसे िक ििकले िबिक उनहे िाि बचिे की
कोई आस ि रही थी। और यह सब शेख मखमूर की करामात थी। िमिकाद
का िकला िीतिा कोई आसाि बात ि थी। पाँच हिार बहादरु िसपाही उसकी
िहफाित के िलए कुबाि
फ होिे को तैयार बैठे थे। तीस तोपे आग के गोले
उगलिे के िलये मुंह खोले हुए थीं और दो हिार सधे हुए तीरनदाि हाथो मे
मौत का पैगाम िलये हुए हुकम का इनतिार कर रहे थे। मगर ििस िक
सरदार िमकखोर अपिे दो हिार बहादरुो के साथ इस िकले पर चिा हो गये
और तीरनदािो के तीर हिा मे उडिे लगे। और िह सब शेख मखमूर की
करामात थी। शाह साहब िहीं मौिूद थे। सरदार दौडकर उिके कदमो पर
िगर पडा और उिके पैरो की धुल माथे पर लगायी।

िक
शिरकुशा दोयम का दरिार सिा हुआ है । अंगूरी शराब का दौर चल
रहा है और दरबार के बडे -बडे अमीर और रईस अपिे दिे के िहसाब

21
से अदब के साथ घुटिा मोडे बैठे है । यकायक भेिदयो िे खबर दी िक मीर
शुिा की हार हुई और िाि से मारे गये। यह सुिकर िकशिरकुशा के चेहरे
पर िचनता िदलेर कौि है िो इस बदमाश सरदार का सर कलम करके हमारे
सामिे पेश करे । इसकी गुसतािखयॉँ अब हद से आगे बिी िाती है । आप ही
लोगो के बडे -बूिो िे यह मुलक तलिार के किोर से मुरािदया खािदाि से
छीिा था। कया आप उनहीं पूरखो की औलाद िहीं है ? यह सुिते ही सरदारो
मे एक सनिाटा छा गया, सबके चेहरे पर हिाइयॉँ उडिे लगीं और िकसी की
िहममत ि पडी िक बादशाह की दाित कबूल करे । आिखरकार शाह
िकशिरकुशा के बुिढे चचा खुद उठे और बोले-ऐ शाह ििॉब
ँ खत! मै तेरी
दाित कबूल करता हूँ, अगरचे मै बुिढा हो गया हूँ और बािुओं मे तलिार
पकडिे की ताकत बाकी िहीं रही, मगर मेरे खूि मे िही गमी और िदल मे
िही िोश है ििसकी बदौलत हमिे यह मुलक शाह बामुराद से िलया था। या
तो मै इस िापाक कुते की हसती खाक मे िमला दँग
ू ा या इस कोिशश मे
अपिी िाि ििसार कर दँग
ू ा, तािक अपिी ऑख
ं ो से सलतित की बबाद
फ ी ि
दे खूँ। यह कहकर अमीर पुरतदबीर िहॉँ से उठा और मुसतैदी से िंगी
तैयािरयो मे लग गया। उसे मालूम था िक यह आिखरी मुकािबला है और
अगर इसमे िाकाम रहे तो मर िािे के िसिाय और कोई चारा िहीं है ।
उधर सरदार िमकखोर धीरे -धीरे रािधािी की तरफ बिता आता था, यकायक
उसे खबर िमली िक अमीर पुरतदबीर बीस हिार पैदल और सिारो के साथ
मुकािबले के िलए आ रहा है ।
यह सुिते ही सरदार िमकखोर की िहममते छुट गयी। अमीर
पुरतदबीर बुिापे के बाििूद अपिे िक का एक ही िसपहसालार था। उसका
िाम सुिकर बडे -बडे बहादरु कािो पर हाथ रख लेते थे। सरदार िमकखोर
का खयाल था िक अमीर कहीं एक कोिे मे बैठे खुदा की इबादत करते होगे।
मगर उिको अपिे मुकािबले मे दे खकर उसके होश उड गये िक कहीं ऐसा ि
हो िक इस हार से हम अपिी सारी िीत खो बैठे और बरसो की मेहित पर
पािी िफर िाय। सबकी यही सलाह हुई िक िापस चलिा ही ठीक है । उस
िक शेख मखमूर िे कहा-ऐ सरदार िमकखोर ! तूिे मुलके िनितििशॉँ को
छुटकारा िदलािे का बीडा उठाया है । कया इनहीं िहममतो से तेरी आरिुएँ पूरी
होगी? तेरे सरदार और िसपािहयो िे कभी मैदाि से कदम पीछे िहीं हटाया,
कभी पीठ िहीं िदखायी, तीरो की बौछार को तुमिे पािी की फुहार समझा
22
और बनदक
ू ो की बाि को फूलो की बहार। कया इि चीिो से इतिी िलदी
तुमहारा िी भर गया? तुमिे यह लडाई सलतित को बिािे के कमीिे इरादे
से िहीं छे डी है । तुम सचचाई और इनसाफ की लडाई लड रहे हो। कया
तुमहारा िोश इतिी िलद ठं िा हो गया? कया तुमहारी इं साफ की तलिार की
पयास इतिी िलद बुझ गयी? तुम खूब िािते हो िक इं साफ और सचचाई की
िीत िरर होगी, तुमहारी इि बहादिुरयो का इिाम खुदा के दरबार से िरर
िमलेगा। िफर अभी से कयो हौसले छोडे दे ते हो? कया बात है , अगर अमीर
पुरतदबीर बडा िदलेर और इरादे का पकका िसपाही है ? अगर िह शेर है तो
तुम शेर मदफ हो; अगर उसकी तलिार लोहे की है तो तुमहारा तेगा फौलाद
का है ; अगर उसके िसपाही िाि पर खेलिेिाले है तो तुमहारे िसपाही भी सर
कटािे के िलए तैयार है । हाथो मे तेगा मिबूत पकडो और खुदा का िाम
लेकर दिुमि पर टू ट पडो। तुमहारे तेिर कहे दे ते है िक मैदाि तुमहारा है ।
इस पुरिोश, तकरीर िे सरदारो के हौसले उभार िदये। उिकी आंखे
लाल हो गई, तलिारे पहलू बदलिे लगीं और कदम बरबस लडाई के मैदाि
की तरफ बिे । शेख मखमूर िे तब फकीरी बािा उतार फेका, फकीरी पयाले
को सलाम िकया और हाथो मे िही तलिार और ढाल लेकर, िो िकसी िक
मसऊद से छीि गये थे, सरदार िमकखोर के साथ-साथ िसपािहयो और
अफसरो का िदल बिाते शेरो की तरह िबफरता हुआ चला। आधी रात का
िक था, अमीर के िसपाही अभी मंििले मारे चले आते थे। बेचारे दम भी ि
लेिे पाये थे िक एकाएक सरदार िमकखोर के आ पहुँचिे की खबर पाई।
होश उड गये और िहममते टू ट गई। मगर अमीर शेर की तरह गरिकर खेमे
से बाहर आया और दम के दम मे अपिी सारी फौि दिुमि के मुकाबले मे
कतार बॉध
ँ कर खडी कर दी िक िैसे माली था िक आया और इधर-उधर
िबखरे हुए फूलो को एक गुलदसते मे सिा गया।
दोिो फौिे काले-काले पहाडो की तरह आमिे-सामिे खडी है । और
तोपो का आग बरसािा जिालामुखी का दिय पसतुत कर रहा था। उिकी
धिगरि आिाि से बला का शोर मच रहा था। यह पहाड धीरे धीरे आगे
बिते गये। यकायक िह टकराये और कुछ इस िोर से टकराये िक िमीि
कॉप
ँ उठी और घमासाि की लडाई शुर हो गई। मसऊद का तेगा इस िक
एक बला हो रहा था, ििधर पहुँचता लाशो के ढे र लग िाते और सैकडो सर
उस पर भेट चि िाते।
23
पौ फटे तक तेगे यो ही खडका िकये और यो ही खूि का दिरया बहता
रहा। िब िदि ििकला तो लडाई का मैदाि मौता का बािार हो रहा था।
ििधर ििगाह उठती थी, मरे हुओं के सर और हाथ-पैर लहू मे तैरते िदखाई
दे ते थे। यकायक शेख मखमूर की कमाि से एक तीर िबिली बिकर ििकला
और अमीर पुरतबीर की िाि के घोसले पर िगरा और उसके िगरते ही शाही
फौि भाग ििकली और सरदारी फौि फतेह का झणिा उठाये रािधािी की
तरफ बिी।

ि ब यह िीत की लहर-िैसी फौि शहर की दीिार के अनदर दािखल


हुई तो शहर के मदफ और औरत, िो बडी मुदत से गुलामी की
सिखतयॉँ झेल रहे थे, उसकी अगिािी के िलए ििकल पडे । सारा शहर उमड
आया। लोग िसपािहयो को गले लगाते थे और उि पर फूलो की बरखा करते
थे िक िैसे बुलबुले थीं िो बहे िलये के पंिे से िरहाई पािे पर बाग मे फूलो
को चूम रही थीं। लोग शेख मखमूर के पैरो की धूल माथे से लगाते थे और
सरदार िमकखोर के पैरो पर खुशी के ऑस
ं ू बहाते थे।
अब मौका था िक मसऊद अपिा िोिगया भेस उतार फेके और
तािोतखत का दािा पेश करे । मगर िब उसिे दे खा िक मिलका शेर अफगि
का िाम हर आदमी की िबाि पर है तो खामोश हो रहा। िह खूब िािता
था िक अगर मै अपिे दािे को सािबत कर दँ ू तो मिलका का दािा खतम हो
िायेगा। मगर तब भी यह िामुमकीि था िक सखत मारकाट के िबिा यह
फैसला हो सके। एक पुरिोश और आरिूमनद िदल के िलए इस हद िबत
करिा मामूली बात ि थी। िब से उसिे होश संभाला, यह खयाल िक मै इस
मुलक का बादशाह हूँ, उसके रगरे शे मे घुल गया था। शाह बामुराद की
िसीयत उसे एक दम को भी ि भूलती थी। िदि को यह बादशाहत के
मिसूबे बाँधता और रात को बादशाहत के सपिे दे खता। यह यकीि िक मै
बादशाह हूँ उसे बादशाह बिाये हुए था। अफसोस, आि िह मंसूबे टू ट गये
और िह सपिा िततर िबतर हो गया। मगर मसऊद के चिरि मे मदाि
फ ा
िबत अपिी हद पर पहुँच गया था। उसिे उफ तक ि की, एक ठं िी आह भी
ि भरी, बिलक पहला आदमी, ििसिे मिलका के हाथो को चूमा और उसको
सामिे सर झुकाया, िह फकीर मखमूर था। हॉँ, ठीक उस िक िब िोिक िह

24
मिलका के हाथ को चूम रहा था, उसकी ििनदगी भर की लालसाएं आँसू की
एक बूँद बिकर मिलका की मेहदी-रची हथेली पर िगर पडी िक िैसे मसऊद
िे अपिी लालसा का मोती मिलका को सौप िदया। मिलका िे हाथ खींच
िलया और फकीर मखमूर के चेहरे पर मुहबबत से भरी हुई ििगाह िाली।
िब सलतित के सब दरबारी भेट दे चुके, तोपो की सलािमयॉँ दगिे लगीं,
शहर मे धूमधाम का बािार गम फ हो गया और खुिशयो के िलसे चारो तरफ
ििर आिे लगे।
रािगदी के तीसरे िदि मसऊद खुदा की इबादत मे बैठा हुआ था िक
मिलका शेर अफगि अकेले उसके पास आयी और बोली, मसऊद, मै एक
िाचीि तोहफा तुमहारे िलए लायी हूँ और िह मेरा िदल है । कया तुम उसे
मेरे हाथ से कबूल करोगे? मसऊद अचमभे से ताकता रह गया, मगर िब
मिलका की आँखे मुहबबत के िशे मे िू बी हुई पायी तो चाि के मारे उठा
और उसे सीिे से लगाकर बोला—मै तो मुदत से तुमहारी बछी की िोक का
घायल हूँ, मेरी िकसमत है िक आि तुम मरहम रखिे आयी हो।

मु लके िनितििशॉँ अब आिादी और खुशहाली का घर है । मिलका शेर


अफगाि को अभी गदी पर बैठे साल भर से जयादा िहीं गुिरा मगर
सलतित का कारबार बहुत अचछी तरह और खूबी से चल रहा है और इस
बडे काम मे उसका पयारा शौहर मसऊद, िो अभी तक फकीर मखमूर के
िाम से मशहूर है , उसका सलाहकार और मददगार है ।
रात का िक था, शाही दरबार सिा हुआ था, बडे -बडे ििीर अपिे पद
के अिुसार बैठे हुए थे और िौकर िकफ-बकफ ििदफ यॉँ पहिे हाथ बॉध
ँ े खडे थे
िक एक िखदमतगार िे आकर अि फ की-दोिो िहाि की मिलका, एक गरीब
औरत बाहर खडी है और आपके कदमो का बोसा लेिे की गुिािरश करती है ।
दरबारी चौके और मिलका िे ताजिुब-भरे लहिे मे कहा- अनदर हाििर करो।
िखदमतगार बाहर चला गया और िरा दे र मे एक बुििया लाठी टे कती हुई
आयी और अपिी िपटारी से एक िडाऊ ताि ििकालकर बोली तुम लोग इसे
ले लो, अब यह मेरे िकसी काम का िहीं रहा। िमयॉँ िे मरते िक इसे
मसऊद को दे कर कहा था िक तुम इसके मािलक हो, मगर अपिे ििगर के

25
टु कडे मसऊद को ढू ँ ढूँ? रोते-रोते अंधी हो गयी, सारी दिुिया की खाक छािी,
मगर उसका कहीं पता ि लगा। अब ििंदगी से तंग आ गयी हूँ, िीकर कया
करँगी? यह अमाित मेरे पास है , ििसका िी चाहे ले लो।
दरबार मे सनिाटा छा गया। लोग है रत के मारे मूरत बि गये, िक
िैसे एक िादग
ू र था िो उँ गली के इशारे से सबका दम बनद िकए हुआ था।
यकाएक मसऊद अपिी िगह से उठा और रोता हुआ िाकर िरनदा के पैरो
पर िगर पडा। िरनदा अपिे ििगर के टु कडे को दे खते ही पहचाि गयी; उसे
छाती से लगा िलया और िह िडाऊ ताि उसके सर पर रखकर बोली—
साहबो, यही पयारा मसऊद और शाहे बासुराद का बेटा है , तुम लोग इसकी
िरआया हो, यह ताि इसका है , यह मुलक इसका है और सारी िखलकत
इसकी है । आि से िह अपिे मुलक का बादशाह है , अपिी कौम का खािदम।
दरबार मे कयामत का शोर मचिे लगा, दरबारी उठे और मसऊद को
हाथो-हाथ ले िाकर तखत पर मिलका शेर अफगि के बगल मे िबठा िदया।
भेटे दी िािे लगीं, सलािमयॉँ दगिे लगीं, िफीिरयो िे खुशी का गीत गाया
और बािो िे िीत का शोर मचाया। मगर िब िोश की यह खुशी िरा कम
हुई और लोगो िे िरनदा को दे खा तो िह मर गयी थी। आरिुओं के पूरे होते
ही िाि ििकल गयी। गोया आरिुऍ ं रह बिकर उसके िमटटी के ति को
ििनदा रखे हुए थीं।

26
शोक का प ु रसक ार

आ ि तीि िदि गुिर गये। शाम का िक था। मै यूििििसट


फ ी हाल से
खुश-खुश चला आ रहा था। मेरे सैकडो दोसत मुझे बधाइयॉँ दे रहे
थे। मारे खुशी के मेरी बॉछ
ँ े िखली िाती थीं। मेरी ििनदगी की सबसे पयारी
आरिू िक मै एम 0 ए 0 पास हो िाउँ पूरी हो गयी थी और ऐसी खूबी से
ििसकी मुझे तििक भी आशा ि थी। मेरा िमबर अविल था। िाइस
चानसलर िे खुद मुझसे हाथ िमलाया था और मुसकराकर कहा था िक
भगिाि तुमहे और भी बडे कामो की शिक दे । मेरी खुशी की कोई सीमा ि
थी। मै िौििाि था, सुनदर था, सिसथ था, रपये-पैसे की ि मुझे इचछा थी
और ि कुछ कमी, मॉँ-बाप बहुत कुछ छोड गये थे। दिुिया मे सचची खुशी
पािे के िलए ििि चीिो की िररत है िह सब मुझे पाप थीं। और सबसे
बिकर पहलू मे एक हौसलामनद िदल था िो खयाित पाप करिे के िलए
अधीर हो रहा था।
घर आया, दोसतो िे यहॉँ भी पीछा ि छोडा, दाित की ठहरी। दोसतो
की खाितर-तिािो मे बारह बि गये, लेटा िो बरबस खयाल िमस लीलािती
की तरफ िा पहुँचा िो मेरे पडोस मे रहती थी और ििसिे मेरे साथ
बी0 ए 0 का ििपलोमा हािसल िकया था। भागयशाली होगा िह वयिक िो िमस
लीला को बयाहे गा, कैसी सुनदर है ? िकतिा मीठा गला है ! कैसा हँ समुख
सिभाि! मै कभी-कभी उसके यहॉँ पोफेसर साहब से दशि
फ शास मे सहायता
लेिे के िलए िाया करता था। िह िदि शुभ होता था िब पोफेसर साहब घर
पर ि िमलते थे। िमस लीला मेरे साथ बडे तपाक से पेश आती और मुझे
ऐसा मालूम होता था िक मै ईसामसीह की शरण मे आ िाऊँ तो उसे मुझे
अपिा पित बिा लेिे मे आपित ि होगी। िह शैली, बायरि और कीटस की
पेमी थी और मेरी रिच भी िबलकुल उसी के समाि थी। हम िब अकेले
होते तो अकसर पेम और पेम के दशि
फ पर बाते करिे लगते और उसके मुँह
से भािो मे िू बी हुई बाते सुि-सुिकर मेरे िदल मे गुदगदी पैदा होिे लगती
थी। मगर अफसोस मै अपिा मािलक ि था। मेरी शादी एक ऊँचे घरािे मे
कर दी गई थी और अगरचे मैिे अब तब अपिी बीिी की सूरत भी ि दे खी
थी मगर मुझे पूरा-पूरा ििशास था िक मुझे उसकी संगत मे िह आिंद िहीं

27
िमल सकता िो लीला की संगत मे समभि है । शादी हुए दो साल हो चुके थे
मगर उसिे मेरे पास एक खत भी ि िलखा था। मैिे दो-तीि खत िलखे भी,
मगर िकसी का ििाब ि िमला। इससे मुझे एक शक हो गया था िक उसकी
तालीम भी यो ही-सी है ।
आह! कया मै इस लडकी के साथ ििनदगी बसर करिे पर मिबूर
हूँगा?...इस सिाल िे मेरे तमाम हिाई िकलो को ढा िदया िो मैिे अभी-अभी
बिाये थे। कया मै िमस लीला से हमेशा के िलए हाथ धो लूँ? िामुमिकि है ।
मै कुमुिदिी को छोड दँग
ू ा, मै अपिे घरिालो से िाता तोड लूँगा, मै बदिाम
हूँगा, परे शाि हूँगा, मगर िमस लीला को िरर अपिा बिालूँगा।
इनहीं खयालो के असर मे मैिे अपिी िायरी िलखी और उसे मेि पर
खुला छोडकर िबसतर पर लेट रहा और सोचते-सोचते सो गया।
सबेरे उठकर दे खता हूँ तो बाबू ििरं ििदास मेरे सामिे कुसी पर बैठे
है । उिके हाथ मे िायरी थी ििसे सह धयािपूिक
फ पि रहे थे। उनहे दे खते ही
मै बडे चाि से िलपट गया। अफसोस, अब उस दे िोपम सिभाििाले िौििाि
की सूरत दे खिी ि िसीब होगी। अचािक मौत िे उसे हमेशा के िलए हमसे
अलग कर िदया। कुमुिदिी के सगे भाई थे, बहुत सिसथ, सुनदर और हँ समुख,
उम मुझसे दो ही चार साल जयादा थी, उँ चे पद पर िियुक थे, कुछ िदिो से
इसी शहर मे तबदील होकर गए थे। मेरी और उिकी दोसती हो गई थी। मैिे
पूछा-कया तुमिे िायरी पि ली?
ििरं िि- हॉ।ँ
मै- मगर कुमुिदिी से कुछ ि कहिा।
ििरं िि- बहुत अचछा; ि कहूँगा।
मै इस िक िकसी सोच मे हूँ। मेरा ििपलोमा दे खा?
ििरं िि- घर से खत आया है , िपतािी बीमार है , दो-तीि िदि मे िािे
िाला हूँ।
मै- शौक से िाइए, ईशर उनहे िलद सिसथ करे ।
ििरं िि- तुम भी चलोगे, ि मालूम कैसा पडे , कैसा ि पडे ।
मै मुझे तो इस िक मांफ कर दो।
ििरं ििदास यह कहकर चले गये। मैिे हिामत बिायी, कपिे बदले
और िमस लीलीिती से िमलिे का चाि मि मे लेकर चला। िहॉँ िाकर दे खा
तो ताला पिा हुआ था। मालूम हुआ िक िमस लीला सािहबा की तबीयत दो-
28
तीि िदि से खराब थी। आबहिा बदलिे के िलए िैिीताल चली गई थी।
अफसोस, मै हाथ मसलकर रह गया। कया लीला मुझसे िाराि थी? उसिे
मुझे कयो खबर ि दी। लीला कया तू बेिफा है , तुझसे बेिफाई की उममीद ि
थी। फौरि पकका इरादा कर िलया िक आि की िाक से िैिीताल चल दँ।ू
मगर घर आया तो लीला का खत िमला। कॉप
ँ ते हुए हाथो से खोला, िलखा
था-मै बीमार हूँ, मेरे िीिे की कोई उममीद िही है , िाकटर कहते है िक पलेग
है । िब तक तुम आओगे, शायद मेरा िकससा तमाम हो िायेगा। आिखरी
िक तुमसे ि िमलिे का सखत सदमा है । मेरी याद िदल मे कायम रखिा।
मुझे सखत अफसोस है िक तुमसे िमलकर िहीं आयी। मेरा कुसूर माफ
करिा और अपिी अभािगिी लीला को भुला मत दे िा। खत मेरे हाथ से
छूटकर िगर पिा। दिुिया आंखो मे अंधेरी हो गई, मुंह से एक ठं िी आह
ििकली। िबिा एक कण गंिाए मेिे िबसतर बाधां और िैिीताल चलिे को
तैयार हो गया। घर से ििकला ही था िक पोफेसर बोस से मुलाकात हो गई।
कॉलेि से चले आ रहे थे, चेहरे पर शोक िलखा हुआ था। मुझे दे खते ही
उनहोिे िेब से एक तार ििकालकर मेरे सामिे फेक िदया। मेरा कलेिा धक्
से हो गया। आंखो मे अंधेरा छा गया, तार कौि उठाता है , हाय मारकर बैठ
गया। लीला, तू इतिी िलद मुझसे िुदा हो गई।

मै
रोता हुआ घर आया और चारपाई पर मुंह ढॉप
ँ कर खूब रोया।
िैिीताल िािे का इरादा खतम हो गया। दस-बारह िदि तक मै उनमाद
की – सी दशा मै इधर – धर घूमता रहा। दोसतो की सलाह हुई िक कुछ
रोि के िलए कहीं घूमिे चले िाओ। मेरे िदल मे भी यह बात िम गई।
ििकल खिा हुआ और दो महीिे तक ििंधयाचल, पारसिाथ िगैरह पहािियो
मे आिारा िफरता रहा। जयो-तयो करके ियी-ियी िगहो और दियो की सैर
से तिबयत का िरा तसकीि हुई। मै आबू मे था िब मेरे िाम तार पंहुचा
िक मै कॉलेि की अिससटै णट पोफेसरी के िलए चुिा गया हूँ। िी तो ि
चाहता था िक िफर इस शहर मे आऊं, मगर िपनसीपल के खत िे मिबूर
कर िदया। लाचार, लौटा और अपिे काम मे लग गया। ििनदािदली िाम को

29
ि बाकी रही थी। दोसतो की संगत से भागता और हं सी-मिाक से िचि मालू
होती।
एक रोि शाम के िक मै अपिे अंधेरे कमरे मे लेटा हुआ कलपिा
लोक की सैर कर रहा था िक सामिेिाले मकाि से गािे की आिाि आई।
आह, कया आिाि थी, तीर की तरह िदल मे चुभी िाती थी, सिर िकतिा
करण था इस िक मुझे अनदािा हुआ िक गािे मे कया असर होता है ।
तमाम रोगटे खिे हो गये। कलेिा मसोसिे लगा और िदल पर एक अिीब
िेदिा-सी छा गई। आंखो से आंसू बहिे लगे। हाय, यह लीला का पयारा गीत
था:
िपया िमलि है किठि बािरी।

मुझसे िबत ि हो सका, मै एक उनमाद की-सी दशा मे उठा और


िाकर सामिेिाले मकाि का दरिािा खटखटाया। मुझे उस िक यह चेतिा
ि रही िक एक अििबी आदमी के मकाि पर आकर खडे हो िािा और
उसके एकांत मे ििघि िालिा परले दिे की असभयता है ।

एक बुिढया िे दरिािा खोल िदया और मुझे खडे दे खकर लपकी हुई


अंदर गई। मै भी उसके साथ चला गया। दे हलीि तय करते ही एक बडे
कमरे मे पहुंचा। उस पर एक सफेद फश फ िबछा हुआ था। गाितिकये भी रखे
थे। दीिारो पर खूबसूरत तसिीरे लटक रही थीं और एक सोलह-सिह साल
का सुंदर िौििाि ििसकी अभी मसे भीग रही थीं मसिद के करीब बैठा
हुआ हारमोिियम पर गा रहा था। मै कसम खा सकता हूं िक ऐसा सुंदर
सिसथ िौििाि मेरी ििर से कभी िहीं गुिरा। चाल-ढाल से िसख मालूम
होता था। मुझे दे खते ही चौक पिा और हारमोिियम छोिकर खिा हो गया।
शम फ से िसर झुका िलया और कुछ घबराया हुआ-सा ििर आिे लगा। मैिे
कहा-माफ कीििएगा, मैिे आपको बिी तकलीफ दी। आप इस फि के उसताद
मालूम होते है । खासकर िो चीि अभी आप गा रहे थे, िह मुझे पसनद है ।
िौििाि िे अपिी बडी-बडी आँखो से मेरी तरफ दे खा और सर िीचा
कर िलया और होठो ही मे कुछ अपिे िौिसिखयेपि की बात कही। मैिे िफर
पूछा-आप यहाँ कब से है ?
30
िौििाि-तीि महीिे के करीब होता है ।
मै-आपका शुभ िाम।
िौििाि-मुझे मेहर िसंह कहते है ।
मै बैठ गया और बहुत गुसताखािा बेतकललुफी से मेहर िसंह का हाथ
पकिकर िबठा िदया और िफर माफी मांगी। उस िक की बातचीत से मालूम
हुआ िक िह पंिाब का रहिे िाला है और यहां पढिे के िलए आया हुआ है ।
शायद िॉकटरो िे सलाह दी थी िक पंिाब की आबहिा उसके िलए ठीक िहीं
है । मै िदल मे तो झेपा िक एक सकूल के लडके के साथ बैठकर ऐसी
बेतकललुफी से बाते कर रहा हूँ, मगर संगीत के पेम िे इस खयाल को रहिे
ि िदया  रसमी पिरचय क बाद मैिे िफर पाथि
फ ा की िक िही चीि छे ििए।
मेहर िसंह िे आंखे िीची करके ििाब िदया िक मै अभी िबलकुल िौिसिखया
हूं।
मै-यह तो आप अपिी िबाि से किहये।
मेहरिसंह-(झेपकर) आप कुछ फरमाये, हारमोिियम हाििर है ।
मै-इस फि मे िबलकुल कोरा हूं ििा फ आपकी फरमाइश िरर पूरी
करता।
इसके बाद मैिे बहुत आगह िकया मगर मेहर िसंह झेपता ही रहा।
मुझे सिभाित: िशषाचार से घण
ृ ा है । हालांिक इस िक मुझे रखा होिे का
कोई हक ि था मगर िब मैिे दे खा िक यह िकसी तरह ि मािेगा तो िरा
रखाई से बोला-खैर, िािे दीििए। मुझे अफसोस है िक मैिे आप का बहुत
िक बबाद
फ िकया। माफ कीििए। यह कहकर उठ खडा हुआ। मेरी रोिी सूरत
दे खकर शायद मेहर िसंह को उस िक तरस आ गया, उसिे झेपते हुए मेरा
हाथ पकड िलया और बोला-आप तो िाराि हुए िाते है ।
मै-मुझे आपसे िाराि होिे का हक हािसल िहीं।
मेहरिसंह-अचछा बैठ िाइए, मै आपकी फरमाइश पूरी करं गा। मगर मै
अभी िबलकुल अिाडी हूं।
मै बैठ गया और मेहरिसंह िे हारमोिियम पर िही गीत अलापिा शुर
िकया:

िपया िमलि है किठि बािरी।

31
कैसी सुरीली ताि थी, कैसी मीठी आिाि, कैसा बेचैि करिे िाला भाि  उसके
गले मे िह रस था ििसका बयाि िहीं हो सकता। मैिे दे खा िक गाते -गाते
खुद उसकी आंखो मे आंसू भर आये। मुझ पर इस िक एक मोहक सपिे
की-सी दशा छाई हुई थी। एक बहुत मीठा िािुक, ददफ िाक असर िदल पर हो
रहा था ििसे बयाि िहीं िकया िा सकता। एक हरे -भरे मैदाि का िकशा
आंखो के सामिे िखंच गया और लीला, पयारी लीला इस मैदाि पर बैठी हुई
मेरी तरफ हसरतिाक आंखो से ताक रही थी। मैिे एक लमबी आह भरी और
िबिा कुछ कहे उठ खडा हुआ। इस िक मेहर िसंह िे मेरी तरफ ताका,
उसकी आंखो मे मोती के कतरे िबिबाये हुए थे और बोला-कभी-कभी
तशरीफ लाया कीििएगा।
मैिे िसफ इतिा िबाि िदया- मै आपका बहुत कृ तज हूं।

धी
रे -धीरे मेरी यह हालत हो गयी िक िबतक मेहर िसंह के यहां िाकर
दो-चार गािे ि सुि लूं िी को चैि ि आता। शाम हुई और िा
पहुंचा। कुछ दे र तक गािो की बहार लूटता और तब उसे पिाता। ऐसे िहीि
और समझदार लडके को पिािे मे मुझे खास मिा आता था। मालूम होता
था िक मेरी एक-एक बात उसके िदल पर िकश हो रही है । िब तक मै
पिाता िह पूरी िी-िाि से काि लगाये बैठा रहता। िब उसे दे खता, पििे-
िलखिे मे िू बा हुआ पाता। साल भर मे अपिे भगिाि ् के िदये हुए िेहि की
बदौलत उसिे अंगेिी मे अचछी योगयता पाप कर ली। मामूली िचिटठयां
िलखिे लगा और दस
ू रा साल गुिरते-गुिरते िह अपिे सकूल के कुछ छािो
से बािी ले गया। िितिे मुदिरफ स थे, सब उसकी अकल पर है रत करते और
सीधा िे चलि ऐसा िक कभी झूठ-मूठ भी िकसी िे उसकी िशकायत िहीं
की। िह अपिे सारे सकूल की उममीद और रौिक था, लेिकि बाििूद िसख
होिे के उसे खेल-कूद मे रिच ि थी। मैिे उसे कभी िककेट मे िहीं दे खा।
शाम होते ही सीधे घर पर चला आता और पििे-िलखिे मे लग िाता।
मै धीरे -धीरे उससे इतिा िहल-िमल गया िक बिाय िशषय के उसको
अपिा दोसत समझिे लगा। उम के िलहाि से उसकी समझ आियि
फ िक
थी। दे खिे मे १६-१७ साल से जयादा ि मालूम होता मगर िब कभी भी

32
रिािी मे आकर दब
ु ोध किि-कलपिाओं और कोमल भािो की उसके सामिे
वयाखया करता तो मुझे उसकी भंिगमा से ऐसा मालूम होता िक एक-एक
बारीकी को समझ रहा है । एक िदि मैिे उससे पूछा-मेहर िसंह, तुमहारी शादी
हो गई?
मेहर िसंह िे शरमाकर ििाब िदया- अभी िहीं।
मै-तुमहे कैसी औरत पसनद है ?
मेहर िसंह- मै शादी करं गा ही िहीं।
मै-कयो?
मेहर िसंह- मुझ िैसे िािहल गंिार के साथ शादी करिा कोई औरत
पसंद ि करे गी।
मै-बहुत कम ऐसे िौििाि होगे िो तुमसे जयादा लायक हो या तुमसे
जयादा समझ रखते हो।
मेहर िसंह िे मेरी तरफ अचमभे से दे खकर कहा-आप िदललगी करते
है ।
मै-िदललगी िहीं, मै सच कहता हूं। मुझे खुद आिय फ होता है िक इतिे
िदिो मे तुमिे इतिी योगयता कयोकर पैदा कर ली। अभी तुमहे अंगेिी शुर
िकए तीि बरस से जयादा िहीं हुए।
मेहर िसंह –कया मै िकसी पिी-िलखी लेिी को खुश रख सकूंगा।
मै- (िोश से) बेशक 

गमी का मौसम था। मै हिा खािे िशमले गया हुआ था। मेहर िसंह
भी मेरे साथ था। िहां मै बीमार पडा। चेचक ििकल आई, तमाम ििसम मे
फफोले पड गये। पीठ के बल चारपाई पर पडा रहता। उस िक मेहर िसंह िे
मेरे साथ िो-िो एहसाि िकये िह मुझे हमेशा याद रहे गे। िाकटरो की सखत
मिाही थी िक िह मेरे कमरे मे ि आिे। मगर मेहर िसंह आठो पहर मेरे ही
पास बैठा रहता। मुझे िखलाता-िपलाता, िठाता-िबठाता। रात-रात भर चारपाई
के करीब बैठकर िागते रहिा मेहर िसंह ही का काम था। सगा भाई भी
इससे जयादा सेिा िहीं कर सकता था। एक महीिा गुिर गया। मेरी हालत
रोि-ब-रोि िबगडती िाती थी। एक रोि मैिे िॉकटर को मेहर िसंह से कहते
हुए सुिा िक इिकी हालत िािुक है । मुझे यकीि हो गया िक अब ि

33
बचूग
ं ा, मगर मेहर िसंह कुछ ऐसी दिता से मेरी सेिा-सुशष
ू ा मे लगा हुआ था
िक िैसे िह मुझे िबदफ सती मौत के मुहं से बचा लेगा। एक रोि शाम के
िक मै कमरे मे लेटा हुआ था िक िकसी के िससकी लेिे की आिाि आई।
िहां मेहर िसंह को छोडकर और कोई ि था। मैिे पूछा-मेहर िसंह, मेहर िसंह,
तुम रोते हो 
मेहर िसंह िे िबत करके कहा-िहीं, रोऊं कयो, और मेरी तरफ बडी ददफ -
भरी आंखो से दे खा।
मै-तुमहारे िससकिे की आिाि आई।
मेहर िसंह- िह कुछ बात ि थी। घर की याद आ गयी थी।
मै-सच बोलो।
मेहर िसंह की आंखे िफर िबिबा आई। उसिे मेि पर से आइिा
उठाकर मेरे सामिे रख िदया। हे िारायण  मै खुद अपिे को पहचाि ि
सका। चेहरा इतिा जयादा बदल गया था। रं गत बिाय सुख फ के िसयाह हो
रही थी और चेचक के बदिुमा दागो िे सूरत िबगाड दी थी। अपिी यह बुरी
हालत दे खकर मुझसे भी िबत ि हो सका और आंखे िबिबा गई। िह
सौनदयफ ििस पर मुझे इतिा गिफ था िबलकुल ििदा हो गया।

मै
िशमले से िापस आिे की तैयारी कर रहा था। मेहर िसंह उसी रोि
मुझसे ििदा होकर अपिे घर चला गया था। मेरी तिबयत बहुत उचाट
हो रही थी। असबाब सब बंध चुका था िक एक गाडी मेरे दरिािे पर आकर
रकी और उसमे से कौि उतरा ? िमस लीला  मेरी आंखो को ििशास ि हो
रहा था, चिकत होकर ताकिे लगा। िमस लीलािती िे आगे ििकर मुझे
सलाम िकया और हाथ िमलािे को बिाया। मैिे भी बौखलाहट मे हाथ तो
बिा िदया पर अभी तक यह यकीि िहीं हुआ था िक मै सपिा दे ख रहा हूं
या हकीकत है । लीला के गालो पर िह लाली ि थी ि िह चुलबुलापि
बिलक िह बहुत गमभीर और पीली-पीली-सी हो रही थी। आिखर मेरी है रत
कम ि होते दे खकर उसिे मुसकरािे की कोिशश करते हुए कहा-तुम कैसे
िेिणटलमैि हो िक एक शरीफ लेिी को बैठिे के िलए कुसी भी िहीं दे ते 

34
मैिे अंदर से कुसी लाकर उसके िलए रख दी, मगर अभी तक यही
समझ रहा था िक सपिा दे ख रहा हूं।
लीलािती िे कहा-शायद तुम मुझे भूल गए।
मै-भूल तो उम भर िहीं सकता मगर आंखो को एतबार िहीं आता।
लीला- तुम तो िबलकुल पहचािे िहीं िाते।
मै-तुम भी तो िह िहीं रहीं। मगर आिखर यह भेद कया है , कया तुम
सिगफ से लौट आयीं 
लीला-मै तो िैिीताल मे अपिे मामा के यहाँ थी।
मै-और िह िचटठी मुझे िकसिे िलखी थी और तार िकसिे िदया था ?
लीला-मैिे ही।
मै-कयो? तुमिे मुझे यह धोखा कयो िदया? शायद तुम अनदािा िहीं
कर सकतीं िक मैिे तुमहारे शोक मे िकतिी पीडा सही है ।
मुझे उस िक एक अिोखा गुससा आया-यह िफर मेरे सामिे कयो आ
गयी  मर गयी थी तो मरी ही रहती 
लीला-इसमे एक गुर था, मगर यह बाते तो िफर होती रहे गी। आओ
इस िक तुमहे अपिी एक लेिी फेि से इणटोियूस कराऊँ, िह तुमसे िमलिे
की बहुत इचछुक है ।
मैिे अचरि से पूछा-मुझसे िमलिे को  मगर लीलािती िे इसका कुछ
ििाब ि िदया और मेरा हाथ पकडकरी गाडी के सामिे ले गयी। उसमे एक
युिती िहनदस
ु तिी कपडे पहिे बैठी हुई थी। मुझे दे खते ही उठ खडी हुई और
हाथ बिा िदया। मैिे लीला की तरफ सिाल करती हुई आंखो से दे खा।
लीला-कया तुमिे िहीं पहचािा ?
मै-मुझे अफसोस है िक मैिे आपको पहले कभी िहीं दे खा और अगर
दे खा भी हो तो घुंघट की आड से कयोकर पहचाि सकता हूं।
लीला-यह तुमहारी बीिी कुमुिदिी है 
मैिे आियफ के सिर मे कहा- कुमुिदिी यहां 
लीला-कुमुिदिी, मुंह खोल दो और अपिे पयारे पित का सिागत करो।
कुमुिदिी िे कांपते हुए हाथो से िरा-सा घूंघट उठाया। लीला िे सारा
मुंह खोल िदया और ऐसा मालूम हुआ िक िैसे बादल से चांद ििकल आया।
मुझे खयाल आया, मैिे यह चेहरा कहीं दे खा है । कहां? आह, उसकी िाक पर
भी तो िही ितल है , उं गली मे िही अंगूठी भी है ।
35
लीला-कया सोचते हो, अब पहचािा ?
मै-मेरी कुछ अकल काम िहीं करती। हूबहू यही हुिलया मेरे एक पयारे
दोसत मेहर िसंह का है ।
लीला-(मुसकराकर) तुम तो हमेशा ििगाह के तेि बिते थे, इतिा भी
िहीं पहचाि सकते 
मै खुशी से फूल उठा-कुमुिदिी मेहर िसंह के भेस मे  मैिे उसी िक
उसे गले से लगा िलया और खूब िदल खोलकर पयार िकया। इि कुछ कणो
मे मुझे िो खुशी हुई उसके मुकािबले मे ििंदगी-भर की खुिशयां हे च है । हम
दोिो आिलंगि-पाश मे बंधे हुए थे। कुमुिदिी, पयारी कुमुिदिी के मुंह से
आिाि ि ििकलती थी। हां, आंखो से आंसू िारी थे।
िमस लीला बाहर खडी कोमल आंखो से यह दिय दे ख रही थी। मैिे
उसके हाथो को चूमकर कहा-पयारी लीला, तुम सचची दे िी हो, िब तक िियेगे
तुमहारे कृ तज रहे गे।
लीला के चेहरे पर एक हलकी-सी मुसकराहट िदखायी दी। बोली-अब तो
शायद तुमहे मेरे शोक का काफी पुरसकार िमल गया।

36
सांसा िर क प ेम औ र दे शपे म

श हर लंदि के एक पुरािे टू टे -फूटे होटल मे िहां शाम ही से अंधेरा हो


िाता है , ििस िहससे मे फैशिेबुल लोग आिा ही गुिाह समझते है
और िहां िुआ, शराबखोरी और बदचलिी के बडे भयािक दिय हरदम आंख
के सामिे रहते है उस होटल मे, उस बदचलिी के अखाडे मे इटली का
िामिर दे श-पेमी मैिििी खामोश बैठा हुआ है । उसका सुंदर चेहरा पीला है ,
आंखो से िचनता बरस रही है , होठ सूखे हुए है और शायद महीिो से हिामत
िहीं बिी। कपडे मैले-कुचैले है । कोई वयिक िो मैिििी को पहले से ि
िािता हो, उसे दे खकर यह खयाल करिे से िहीं रक सकता िक हो ि हो
यह भी उनहीं अभागे लोगो मे है िो अपिी िासिाओं के गुलाम होकर
िलील से िलील काम करते है ।
मैिििी अपिे ििचारो मे िू बा हुआ है । आह बदिसीब कौम  ऐ
मिलूम इटली कया तेरी िकसमत कभी ि सुधरे गी, कया तेरे सैकडो सपूतो का
खूि िरा भी रं ग ि लायेगा  कया तेरे दे श से ििकाले हुए हिारो िाँििसारो
की आहो मे िरा भी तारीर िहीं। कया तू अनयाय और अतयाचार और
गुलामी के फंदे मे हमेशा िगरफतार रहे गी। शायद तुझमे अभी सुधरिे की,
सितंि होिे की योगयता िहीं आयी। शायद तेरी िकसमत मे कुछ िदिो और
ििललत और बबाद
फ ी झेलिा िलखी है । आिादी, हाय आिादी, तेरे िलए मैिे
कैसे-कैसे दोसत, िाि से पयारे दोसत कुबाि
फ िकए। कैसे-कैसे िौििाि,
होिहारा िौििाि, िििकी माएं और बीिियां आि उिकी कब पर आंसू बहा
रही है और अपिे कषो और आपदाओं से तंग आकर उिके िियोग के कष
मे अभागे, आफत के मारे मैिििी को शाप दे रही है । कैसे-कैसे शेर िो
दिुमिो के सामिे पीठ फेरिा ि िािते थे, कया यह सब कुबािफियां, यह सब
भेटे काफी िहीं है ? आिादी, तू ऐसी कीमती चीज है  हां तो िफर मै कयो
ििनदा रहूं? कया यह दे खिे के िलए िक मेरा पयारा िति, मेरा पयारा दे श,
धोखेबाि-अतयाचारी दिुमिो के पैरो तले रौदा िाए, मेरे पयारे भाई, मेरे
पयारे हमिति, अतयाचार का िशकार बिे। िहीं, मै यह दे खिे के िलए ििनदा
िहीं रह सकता 

37
मैिििी इनहीं खयालो मे िु बा हुआ था िक उसका दोसत रफेती, िो
उसके साथ िििािफसत िकया गया था, इस कोठरी मे दािखल हुआ। उसके हाथ
मे एक िबसकुट का टु कडा था। रफेती उम मे अपिे दोसत से दो-चार बरस
छोटा था। भंिगमा से सजििता झलक रही थी। उसिे मैिििी का कंधा
पकडकर िहलाया और कहा-िोिेफ, यह लो, कुछ खा लो।
मैिििी िे चौककर सर उठाया और िबसकुट दे खकर बोला-यह कहां से
लाये ? तुमहारे पास पैसे कहां थे?
रफेती-पहले खा लो िफर यह बाते पूछिा, तुमिे कल शाम से कुछ िही
खाया है ।
मैिििी-पहले यह बता दो, कहां से लाये। िेब मे तंबाकू का ििबबा भी
ििर आता है । इतिी दौलत कहां हाथ लगी?
रफेती-पूछकर कया करोगे? िही अपिा िया कोट िो मां िे भेिा था,
िगरिी रख आया हूँ।
मैिििी िे एक ठं िी सांस ली, आंखो से आंसू टप-टप िमीि पर िगर
पडे । रोते हुए बोला-यह तुमिे कया हरकत की, िकसमस के िदि आते है , उस
िक कया पहिोगे? कया इटली के एक लखपती वयापारी का इकलौता बेटा
िकसमस के िदि भी ऐसी ही फटे -पुरािे कोट मे बसर करे गा? ऐं?
रफेती-कयो, कया उस िक तक कुछ आमदिी ि होगी, हम-तुम दोिो
िये िोडे बििाएंगे और अपिे पयारे दे श की आिे िाली आिादी के िाम पर
खुिशयां मिाएंगे।
मैिििी-आमदीि की तो कोई सूरत ििर िहीं आती। िो लेख मािसक
पििकाओं के िलए िलखे थे, िह िापस ही आ गये। घर से िो कुछ िमलता
है , िह कब खतम हो चुका है । अब और कौि-सा ििरया है ?
रफेती-अभी िकसमस को हफता भर पडा है । अभी से उसकी कया िफक
करे । और अगर माि लो िहीं कोट पहिा तो कया ? तुमिे िहीं मेरी बीमारी
मे िॉकटर की फीस के िलए मैगिलीि की अंगूठी बेच िाली थी ? मै िलदी ही
यह बात उसे िलखिे िाला हूं, दे खिा तुमहे कैसा बिाती है ।

38
िक
और
समस का िदि है , लंदि मे चारो तरफ खुिशयो का गमफ बािारी है ।
छोटे -बडे , अमीर-गरीब सब अपिे-अपिे घर खुिशयां मिा रहे है

अपिे अचछे से अचछे कपडे पहिकर िगरिाघरो मे िा रहे है । कोई उदास


सूरत ििर िहीं आती। ऐसे िक मैिििी और रे फती दोिो उसी छोटी-सी
अंधेरी कोठरी मे सर झुकाए खामोश बैठे है । मैिििी ठणिी आहे भर रहा है
और रफेती रह-रहकर दरिािे पर आता है और बदमसत शरािबयो को और
िदिो से जयादा बहकते और दीिािेपि की हरकते करते दे खकर अपिी
गरीबी और मुहतािी की िफक दरू करिा चाहता है  अफसोस इटली का
सरताि, ििसकी एक ललकार पर हिारो आदमी अपिा खूि बहािे के िलए
तैयार हो िाते थे, आि ऐसा मुहताि हो रहा है िक उसे खािे का िठकािा
िहीं। यहां तक िक आि सुबह से उसिे एक िसगार भी िहीं िपया। तंबाकू
ही दिुिया की िह िेमत थी ििससे िह हाथ िहीं खींच सकता था और िह
भी आि उसे िसीब ि हुआ। मगर इस िक उसे अपिी िफक िहीं रफेती,
िौििाि, खुशहाल और खूबसूरत होिहार रफेती की िफक िी पर भारी हो
रही है । िह पूछता है िक मुझे कया हक है िक मै एक ऐसे आदमी को अपिे
साथ गरीबी की तकलीफे झेलिे पर मिबूर करं ििसके सिागत के िलए
दिुिया की बस िेमते बांहे खोले खडी है ।
इतिे मे एक िचटठीरसा िे पूछा-िोिेफ मैिििी यहां कहां रहता है ?
अपिी िचटठी लेिा।
रफेती िे खत ले िलया और खुशी के िोश से उछलकर बोला-िोिेफ,
यह लो, मैगिलीि का खत है ।
मैिििी िे चौककर खत ले िलया और बडी बेसबी से खोला। िलफाफा
खोलते ही थोडे -से बालो का एक गुचछा िगर पडा, िो मैगिलीि िे िकसमस
के उपहार के रप मे भेिा था। मैिििी िे उस गुचछे को चूमा और उसे
उठाकर अपिे सीिे की िेब मे खोसे िलया। खत मे िलखा था-
माइ िियर िोिेफ,
यह तुचछ भेट सिीकार करो। भगिाि करे तुमहे एक सौ िकसमय
दे खिे िसीब हो। इस यादगार को हमेशा अपिे पास रखिा और गरीब
मैगिलीि को भूलिा मत। मै और कया िलखूं। कलेिा मुँह को आया िाता

39
है । आय िोिेफ, मेरे पयारे , मेरे सिामी, मेरे मािलक िोिेफ, तू मुझे कब तक
तडपायेगा। अब िबत िहीं होता। आंखो मे आसूं उमडे आते है । मै तेरे साथ
मुसीबते झेलूंगी, भूखो मरं गी, यह सब मुझे गिारा है , मगर तुझसे िुदा रहिा
गिारा िही। तुझे कसम है , तुझे अपिे ईमाि की कसम है , तुझे अपिे िति
की कसम, यहां आ िा, यह आंखे तरस रही है , कब तूझे दे खूंगी। िकसमस
करीब है , मुझे कया, िब तक ििनदा हूं, तेरी हूं।

तुमहारी
मैगिल

मै
गिलीि का घर िसिटिरलैणि मे था। िह एक समि
ृ वयापारी की बेटी
थी और अििनद सुंदरी। आनतिरक सौदय फ मे भी उसका िोड िमलिा
मुििकल था। िकतिे ही अमीर और रईस लोग उसका पागलपि सर मे रखते
थे, मगर िह िकसी को कुछ खयाल मे ि लाती थी। मैिििी िब इटली से
भागा तो िसिटिरलैणि मे आकर शरण ली। मैगिलीि उस िक भोली-भाली
ििािी की गोद मे खेल रही थी। मैिििी की िहममत और कुबािफियो की
तारीफे पहले ही सुि चुकी थी। कभी-कभी अपिी मां के साथ यहां आिे लगी
और आपस का िमलिा-िुलिा िैसे-िैसे बिा और मैिििी के भीतरी सौनदयफ
का जयो-जयो उसके िदल पर गहरा असर होता गया, उसकी मुहबबत उसके
िदल मे पककी होती गयी। यहां तक िक उसिे एक िदि खुद लाि-शम फ को
िकिारे रखकर मैिििी के पैरो पर िसर रख िदया और कहा-मुझे अपिी सेिा
मे सिीकार कर लीििए।
मैिििी पर भी उस िक ििािी छाई हुई थी, दे श की िचनताओं िे
अभी िदल ठं िा िहीं िकया था। ििािी की पुरिोश उममीदे िदल मे लहरे
मार रही थीं, मगर उसिे संकलप कर िलया था िक मै दे श और िाित पर
अपिे को नयौछािर कर दंग
ू ा। और इस संकलप पर कायम रहा। एक ऐसी
सुंदर युिती के िािुक-िािुक होठो से ऐसी दरखिासत सुिकर रद कर दे िा
मैिििी ही िैसे संकलप के पकके, िहयाब के पूरे आदमी का काम था।
मैगिलीि भीगी-भीगी आंखे िलए उठी, मगर ििराश ि हुई थी। इस
असफलता िे उसके िदल मे पेम की आग और भी तेि कर दी और गो
40
आि मैिििी को िसिटिरलैि छोडे कई साल गुिरे मगर िफादार मैगिलीि
अभी तक मैिििी को िहीं भूली। िदिो के साथ उसकी मुहबबत और भी
गािी और सचची होती िाती है ।
मैिििी खत पि चुका तो एक लमबी आह भरकर रफेती से बोला-दे खा
मैगिलीि कया कहती है ?
रफेती-उस गरीब की िाि लेकर दम लोगे 
मैिििी िफर खयाल मे िू बा-मैगिलीि, तू िौििाि है , सुंदर है , भगिाि
िे तुझे अकूत दौलत दी है , तू कयो एक गरीब, दिुखयारे , कंगाल, फककड
परदे श मे मारे -मारे िफरिेिाले आदमी के पीछे अपिी ििनदगी िमटटी मे
िमला रही है  मुझ िैसा मायूस, आफत का मारा हुआ आदमी तुझे कयोकर
खुश रख सकेगा ? िहीं-िहीं, मै ऐसा सिाथी िहीं हूं। दिुिया मे बहुत-से ऐसे
हं समुख खुशहाल िौििाि है िो तुझे खुश रख सकते है , िो तेरी पूिा कर
सकते है । कयो तू उिमे से िकसी को अपिी गुलामी मे िहीं ले लेती। मै तेरे
पेम, सचचे, िेक और िि:सिाथ फ पेम का आदर करता हूं। मगर मेरे िलए,
ििसका िदल दे श और िाित परी समिपत
फ हो चुका है , तू एक पयारी हमददफ
बहि के िसिा और कुछ िहीं हो सकती। मुझमे ऐसी कया खूबी है , ऐसे कौि
से गुण है िक तुझ िैसी दे िी मेरे िलए ऐसी मुसीबते झेल रही है । आह
मैिििी, तू कहीं का िा हुआ। िििके िलए तूिे अपिे को नयौछािर कर
िदया, िह तेरी सूरत से िफरत करते है । िो तेरे हमददफ है , िह समझते है तू
सपिे दे ख रहा है ।
इि खयालो मे बेबस होकर मैिििी ि कलम-दिात ििकाली और
मैगिलीि को खत िलखिा शुर िकया।

पयारी मैगिलीि,
तुमहारा खत उस अिमोल तोहफे के साथ आया। मै तुमहारा हदय से कृ तज
हूं िक तुमिे मुझ िैसे बेकस और बेबस आदमी को इस भेट के कािबल
समझा। मै उसकी हमेशा कद करंगा। यह मेरे पास हमेशा एक सचचे ,
िि:सिाथ फ और अमर पेम की समिृत के रप मे रहे गा और ििस िक यह
िमटटी का शरीर कब की गोद मे िाएगा मेरी आिखरी िसीयत यह होगी िक

41
िह यादगार मेरे ििािे के साथ दफि कर दी िाये। मै शायद खुद उस
ताकत का अनदािा िहीं लगा सकता िो मुझे इस खयाल से िमलती है , िक
दिुिया मे िहां चारो तरफ मेरे बारे मे बदगुमािियां फैल रही है , कम से कम
एक ऐसी िेक औरत है िो मेरी िीयत की सफाई और मेरी बुराइयो से पाक
कोिशश पर सचची ििषा रखती है और शायद तुमहारी हमददी का यकीि है
िक मै ििनदगी की ऐसी किठि परीकाओं मे सफल होता िाता हूं।
मगर पयारी बहि, मुझे कोई तकलीफ िहीं है । तुम मेरी तकलीफो के
खयाल से अपिा िदल मत दख
ु ािा। मै बहुत आराम से हूं। तुमहोरे पेम िैसी
अकयिििध पाकर भी अगर मै कुछ थोडे -से शारीिरक कषो का रोिा रोऊं तो
मुझ िैसा अभागा आदमी दिुिया मे कौि होगा।
मैिे सुिा है , तुमहारी सेहत रोि-ब-रोि िगरती िा रही है । मेरा िी
बेअिखतयार चाहता है िक तुमहे दे खूं। काश, मेरा िदल इस कािबल होता िक
तुमहे भेट चिा सकता। मगर एक पिमुदा फ उदास िदल तुमहारे कािबल िहीं।
मैगिलीि, खुदा के िासते अपिी सेहत का खयाल रकखो, मुझे शायद उससे
जयादा और िकसी बात की तकलीफ ि होगी िक पयारी मैगिलीि तकलीफ मे
है और मेरे िलए  तुमहारा पाकीिा चेहरा इस िक ििगाहो के सामिे है ।
मेगा  दे खो मुझसे िाराि ि हो। खुदा की कसम मै तुमहारे कािबल िहीं हूं।
आि िकसमस का िदि है , तुमहे कया तोहफा भेिूँ। खुदा तुम पर हमेशा
अपिी बेइनतहा बरकतो का साया रकखे। अपिी मां को मेरी तरफ से सलाम
कहिा। तुम लोगो को दे खिे की इचछा है । दे खे कब तक पूरी होती है ।
तुमहारा िोिेफ

इ स िाकये के बाद बहुत िदि गुिर गए। िोिेफ मैिििी िफर इटली
पहुंचा और रोम मे पहली बार ििता के राजय का एलाि िकया गया।
तीि आदमी राजय की वयिसथा के िलए िििािफचत िकये गये। मैिििी भी
उिमे एक था। मगर थोडे ही िदिो मे फांस की जयादितयो और पोिमांट के
बादशाह की दगाबािियो की बदौलत इस ििता के राि का खातमा हो गया
और उसके कमच
फ ारी और मंिी अपिी िािे लेकर भाग ििकले। मैिििी अपिे
ििशसिीय िमिो की दगाबािी और मौका परसती पर पेचोताब खाता हुआ

42
खसताहाल और परे शाि रोम की गिलयो की खाक छािता िफरता था। उसका
यह सपिा िक रोम को मै िरर एक िदि ििता के राि का केद बिाकर
छोिू ं गा, पूरा होकर िफर िततर-िबतर हो गया।
दोपहर का िक था, धूप से परे शाि होकर िह एक पेड की छाया मे
दम लेिे के िलए ठहर गया िक सामिे से एक लेिी आती हुई िदखाई दी।
उसका चेहरा पीला था, कपडे िबलकुल सफेद और सादा, उम तीस साल से
जयादा। मैिििी आतम-ििसमिृत की दशा मे था िक यह सी पेम से वयग
होकर उससे गले िलपट गई। मैिििी िे चौककर दे खा, बोला-पयारी मैगिलीि,
तुम हो  यह कहते-कहते उसकी आंखे भीग गई। मैगिलीि िे रोकर कहा-
िोिेफ  और मुंह से कुछ ि ििकला।
दोिो खामोश कई िमिट तक रोते रहे । आिखर आिखर मैिििी बोला-
तुम यहॉँ कब आयीं, मेगा?
मैगिलीि- मै यहॉँ कई महीिे से हूँ, मगर तुमसे िमलिे की कोई सूरत
िहीं ििकलती थी। तुमहे काम-काि मे िू बा हुआ दे खकर और यह समझकर
िक अब तुमहे मुझ िैसी औरत की हमददी की िररत बाकी िहीं रही, तुमसे
िमलिे की कोई िररत िहीं दे खती थी। (रककर) कयो िोिेफ, यह कया
कारण है िक अकसर लोग तुमहारी बुराई िकया करते है ? कया िह अंधे है ,
कया भगिाि ् िे उनहे आंखे िहीं दी?
िोिेफ- मेगा, शायद िह लोग सच कहते होगे। िफलहाल मुझमे िह
गुण िहीं है िो मै शाि के मारे अकसर कहा करता हूं िक मुझमे है , या
ििनहे तुम अपिी सरलता और पिििता के कारण मुझमे मौिूद समझती
हो। मेरी कमिोिरयां रोि-ब-रोि मुझे मालूम होती िाती है ।
मैगिलीि- िभी तो तुम इस कािबल हो िक मै तुमहारी पूिा करं ।
मुबारक है िह इनसाि िो खुदी को िमटाकर अपिे को हे च समझिे लगे।
िोिेफ, भगिाि के िलए मुझे इस तरह अपिे से मत अलग करो। मै तुमहारी
हो गई हूं और मुझे ििशास है िक तुम िैसे ही पाक-साफ हो िैसा हमारा
ईसू था। यह खयाल मेरे मि पर अंिकत हो गया है और अगर उसमे िरा
कमिोरी आ गई थी तो तुमहारी इस िक की बातचीत िे उसे और भी
पकका कर िदया। बेशक तुम फिरिते हो। मगर मुझे अफसोस है िक दिुिया
मे कयो लोग इतिे तंगिदल और अंधे होते है और खासतौर पर िह लोग
ििनहे मै तंगखयाल से ऊपर समझती थी। रफेती, रसारीिो, पलाइिो, बिाब
फ ास
43
यह सब के सब तुमहारे दोसत है । तुम उनहे अपिा दोसत समझते हो, मगर
िह सब तुमहारे दिुमि है और उनहोिे मुझसे मेरे सामिे सैकडो ऐसी बाते
तुमहारे बारे मे कही है िििका मै मरकर भी यकीि िहीं कर सकती। िह
सब गलत, झूठ बकते है , हमारा पयारा िोिेफ िैसा ही है िैसा मै समझती
थी, बिलक उससे भी अचछा। कया यह भी तुमहारी एक िाती खूबी िहीं है िक
तुम अपिे दिुमिो को भी अपिा दोसत समझते हो?
िोिेफ से अब सब ि हो सका। मैगिलीि के मुरझाये हुए पीले-पीले
हाथो को चूमकर कहा-पयारी मेगा, मेरे दोसत बेकसूर है और मै खूद दोषी हूं।
(रोकर) िोिेफ िो कुछ उनहोिे कहा िह सब मेरे ही इशारे और मिी के
अिुसार था, मैिे तुमसे दगा की मगर मेरी पयारी बहि, यह िसफफ इसिलए था
िक तुम मेरी तरफ से बेपरिाह हो िाओ और अपिी ििािी के बाकी िदि
खुशी से बसर करो। मै बहुत शिमन
फ दा हूं। मैिे तुमहे िरा भी ि समझा था।
मै तुमहारे पेम की गहराई से अपिरिचत था, कयोिक मै िो चाहता था उसका
उलटा असर हुआ। मगर मेगा, मै माफी चाहता हूं।
मैगिलीि- हाय िोिेफ, तुम मुझसे माफी मांगते हो, ऐं, तुम िो दिुिया
के सब इनसािो से जयादा िेक, जयादा सचचे और जयादा लायक हो मगर हाँ,
बेशक तुमिे मुझे िबलकुल ि समझा था िोिेफ  यह तुमहारी गलती थी।
मुझे ताजिुब तो यह है िक तुमहारा ऐसा पतथर का िदल कैसे हो गया।
िोिेफ- मेगा, ईशर िािता है िब मैिे रफेती को यह सब िसखा-
पिाकर तुमहारे पास भेिा है , उस िक मेरे िदल की कया कैिफयत थी। मै िो
दिुिया मे िेकिामी को सबसे जयादा कीमती समझता हूं और मै ििसिे
दिुमिो के िाती हमलो को कभी पूरी तरह काटे िबिा ि छोडा, अपिे मुंह से
िसखाऊं िक िाकर मुझे बुरा कहा  मगर यह केिल इसिलए था िक तुम
अपिे शरीर का धयाि रकखो और मुझे भूल िाओ।
सचचाई यह थी िक मैिििी िे मैगिलीि के पेम को रोि-ब-रोि बिते
दे खकर एक खास िहकमत की थी। उसे खूब मालूम था िक मैगिलीि के
पेिमयो मे से िकतिे ही ऐसे है िो उससे जयादा सुंदर, जयादा दौलतमंद और
जयादा अकलिाले है , मगर िह िकसी को खयाल मे िहीं लाती। मुझमे उसके
िलए िो खास आकषण
फ है , िह मेरे कुछ खास गुण है और अगर मेरे ऐसे
िमि, िििका आदर मैगिलीि भी करती है , उससे मेरी िशकायत करके इि
गुणो को महति उसके िदल से िमटा दे तो िह खुद-ब-खुद भूल िायेगी।
44
पहले तो उसके दोसत इस काम के िलए तैयार ि होते थे मगर इस िर से
िक कहीं मैगिलीि िे घुल-घुलकर िाि दे दी तो मैिििी ििनदगी भर हमे
माफ ि करे गा, उनहोिे यह अिपय काम सिीकार कर िलया था। िह
िसिटिरलैि गये और िहां तक उिकी िबाि मे ताकत थी, अपिे दोसत की
पीठ पीछे बुराई करिे मे खच फ की। मगर मैगिलीि पर मुहबबत का रं ग ऐसा
गहरा चिा हुआ था िक इि कोिशशो का इसके िसिाय और कोई ितीिा ि
हो सकता था िो हुआ। िह एक रोि बेकरार होकर घर से ििकल खडी हुई
और रोम मे आकर एक सराय मे ठहर गई। यहां उसका रोि का िियम था
िक मैिििी के पीछे -पीछे उसकी ििगाह से दरू घूमा करती मगर उसे
आशसत और अपिी सफलता से पसनि पाकर उसे छे डिे का साहस ि
करती थी। आिखरकार िब िफर उस पर असफलताओं का िार हुआ और िह
िफर दिुिया मे बेकस और बेबस हो गया तो मैगिलीि िे समझा, अब इसको
िकसी हमददफ की िररत है । और पाठक दे ख चुके है ििस तरह िह मैिििी
से िमली।

मै
िििी रोम से िफर इं गिलसताि पहुंचा और यहां एक अरसे तक रहा।
सि ् १८७ 0 मे उसे खबर िमली िक िससली की िरआया बगाित पर
आमादा है और उनहे मैदािे-िंग मे लािे के िलए एक उभारिेिाले की िररत
है । बस, िह फौरि िससली पहुंचा मगर उसके िािे से पहले शाही फौि िे
बािगयो को दबा िदया था। मैिििी िहाि से उतरते ही िगरफतार करके एक
कैदखािे मे िाल िदया गया। मगर चूिं क अब िह बहुत बुढिा हो गया था,
शाही हुककम िे इस िर से िक कहीं िह कैद की तकलीफो से मर िाय तो
ििता को संदेह होगा िक बादशाह की पेरणा से िह कतल कर िाला गया,
उसे िरहा कर िदया। ििराश और टू टा हुआ िदल िलये मैिििी िफर
िसिटिरलैि की तरफ रिािा हुआ। उसकी ििनदगी की तमाम उममीदे खाक
मे िमल गई। इसमे शक िहीं िक इटली के एकताबि हो िािे के िदि बहुत
पास आ गये थे मगर उसकी हुकूमत की हालत उससे हरिगि बेहतर ि थी
िैसी आिसटया या िेपलस के शासि-काल मे। अंतर यह था िक पहले िह
एक दस
ू री कौम की जयादितयो से परे शाि थे, अब अपिी कौम के हाथो। इि
ििरं तर असफलताओं िे दिवती मैिििी के िदल मे यह खयाल पैदा िकया

45
िक शायद ििता की राििीितक िशका इस हद तक िहीं हुई है , िक िह
अपिे िलए एक पिातांििक शासि-वयिसथा की बुिियाद िाल सके और इसी
िीयत से िह िसिटिरलैि िा रहा था िक िहां से एक िबदफ सत कौमी
अखबार ििकाले कयोिक इटली मे उसे अपिे ििचारो को फैलािे की इिाित
ि थी। िह रातभर िाम बदलकर रोम मे ठहरा। िफर िहां से अपिी
िनमभूिम िििेिा मे आया और अपिी िेक मां की कब पर फूल चिाये।
इसके बाद िसिटिरलैि की तरफ चला और साल भर तक कुछ ििशसिीय
िमिो की सहायता से अखबार ििकालता रहा। मगर ििरं तर िचंता और कषो
िे उसे िबलकुल कमिोर कर िदया था। सि ् १८७ 0 मे िह सेहत के खयाल से
इं गिलसताि आ रहा था िक आलपस पित
फ की तलहिटयो मे ििमोििया की
बीमारी िे उसके िीिि का अंत कर िदया और िह एक अरमािो से भरा
िदल िलये सिग फ को िसधारा। इटली का िाम मरते दम तक उसकी िबाि
पर था। यहां भी उसके बहुत-से समथक
फ और हमददफ शरीक थे। उसका
ििािा बडी धूम से ििकला। हिारो आदमी साथ थे और एक बडी सुहािी
खुली हुई िगह पर पािी के एक साफ चिमे के िकिारे पर इस कौम के
िलए मर िमटिेिाले को सुला िदया गया।
मैिििी को कब मे सोये हुए आि तीस िदि गुिर गये। शाम का िक
था, सूरि की पीली िकरणे इस तािा कब पर हसरतभरी आंखो से ताक रही
है । तभी एक अधेड खूबसुरत औरत सुहाग के िोडे पहिे , लडखडाती हुई
आयी। यह मैगिलीि थी। उसका चेहरा शोक मे िू बा हुआ था, िबलकुल
मुझाय
फ ा हुआ, िक िैसे अब इस शरीर मे िाि बाकी िहीं रही। िह इस कब
के िसरहािे बैठ गयी और अपिे सीिे पर खुंसे हुए फूल उस पर चिाये, िफर
घुटिो के बल बैठकर सचचे िदल से दआ
ु करती रही। िब खूब अंधेरा हो
गया, बफफ पडिे लगी तो िह चुपके से उठी और खामोश सर झुकाये करीब
के एक गांि मे िाकर रात बसर की और भोर की िेला अपिे मकाि की
तरफ रिािा हुई।
मैगिलीि अब अपिे घर की मािलक थी। उसकी मां बहुत िमािा हुआ
मर चुकी थी। उसिे मैिििी के िाम से एक आशम बििाया और खुद
आशम की ईसाई लेिियो के िलबास मे िहां रहिे लगी। मैिििी का िाम
उसके िलए एक ििहायत पुरददफ और िदलकश गीत से कम ि था। हमददो
और कददािो के िलए उसका घर उिका अपिा घर था। मैिििी के खत
46
उसकी इं िील और मैिििी का िाम उसका ईशर था। आसपास के गरीब
लडको और मुफिलस बीिियो के िलए यही बरकत से भरा हुआ िाम िीििका
का साधि था। मैगिलीि तीि बरस तक ििनदा रही और िब मरी तो
अपिी आिखरी िसीयत के मुतािबक उसी आशम मे दफि की गयी। उसका
पेम मामूली पेम ि था, एक पििि और ििषकलंक भाि था और िह हमको
उि पेम-रस मे िू बी हुई गोिपयो की याद िदलाता है िो शीकृ षण के पेम मे
िंद
ृ ािि की कुंिो और गिलयो मे मंिलाया करती थीं , िो उससे िमले होिे पर
भी उससे अलग थीं और िििके िदलो मे पेम के िसिा और िकसी चीि की
िगह ि थी। मैिििी का आशम आि तक कायम है और गरीब और साधु-
संत अभी तक मैिििी का पििि िाम लेकर िहां हर तरह का सुख पाते है ।

47
ििक मा िदत य का त ेगा

ब हुत िमािा गुिरा, एक रोि पेशािर के मौिे महािगर मे पकृ ित की


एक आियि
फ िक लीला िदखाई पडी। अंधेरी रात थी, बसती से कुछ दरू
बरगद के एक छांहदार पेड के िीचे एक आग की लौ िदखायी पडी और एक
झलमलाते हुए िचराग की तरह ििर आती रही। गांि मे बहुत िलद यह
खबर फैल गयी। िहां के रहिे िाले यह िििचि दिय दे खिे के िलए यहां-िहां
इकटठे हो गये। औरते िो खािा पका रही थीं हाथो मे गूथ
ं ा हुआ आटा लपेटे
बाहर ििकल आयीं। बूिो िे बचचो को कंधे पर िबठा िलया और खांसते हुए
आ खडे हुए। ििेली बहुएँ लाि के मारे बाहर ि आ सकीं मगर दरिािो की
दरारो से झांक-झांककर अपिे बेकरार िदलो को तसकीि दे िे लगीं। उस
गुमबदिुमा पेड के िीचे अंधेरे के उस अथाह समुनदर मे रोशिी का यह
धुध
ं ला शोला पाप के बादलो से िघरी हुई आतमा का सिीि उदाहरण पेश
कर रहा था।
टे किसंह िे जािियो की तरह िसर िहलाकर कहा-मै समझ गया, भूतो
की सभा हो रही है ।
पंिित चेतराम िे ििदािो के समाि ििशास के साथ कहा-तुम कया
िािो मै तह पर पहुंच गया। साँप मिण छोडकर चरिे गया है । इसमे ििसे
शक हो िाकर दे ख आये।
मुंशी गुलाबचंद बोले-इस िक िो िहां िाकर मिण को उठा लाये, उसके
रािा होिे मे शक िहीं। मगर िाि िोिखम है ।
पेमिसंह एक बूिा िाट था। िह इि महातमाओं की बाते बडे धयाि से
सुि रहा था।

पे
मिसंह दिुिया मे िबलकुल अकेला था। उसकी सारी उम लडाइयो मे खचफ
हुई थी। मगर िब ििंदगी की शाम आई और िह सुबह की ििंदगी के
टू टे -फूटे झोपडे मे िफर आया तो उसके िदल मे एक खिािहश पैदा हुई।
अफसोस, दिुिया मे मेरा कोई िहीं  काश, मेरे भी कोई बचचा होता  िो
खिािहश शाम के िक िचिडयो को घोसले मे खींच लाती है और ििस
48
खिािहश से बेकरार होकर िाििर शाम को अपिे थािो की तरफ चलते है ,
िही खिािहश पेमिसंह के िदल मे मौिे मारिे लगी। ऐसा कोई िहीं, ििसे िह
रात के िक कौर बिा-बिा कर िखलाये। ऐसा कोई िहीं, ििसे िह रात के
िक लोिरयां सुिा-सुिाकर सुलाये। यह आकांकाएं पेमिसंह के िदल मे कभी ि
पैदा हुई थीं। मगर सारे िदि का अकेलापि इतिा उदास करिे िाला िहीं
होता िितिा शाम का।
एक िदि पेमिसंह बािार गया हुआ था। रासते मे उसिे दे खा िक एक
घर मे आग लगी हुई है । आग के ऊंचे-ऊंचे िराििे शोले हिा मे अपिे झणिे
लहरा रहे है और एक औरत दरिािे पर खडी सर पीट-पीट कर रो रही है ।
यह बेचारी ििधिा सी थी, उसका बचचा अंदर सो रहा था िक घर मे आग
लग गयी। िह दौडी िक गांि के आदिमयो को अग बुझािे के िलए बुलाये
िक इतिे मे आग िे िोर पकड िलया और अब तमाम िलते हुए शोलो का
उमडा हुआ दिरया उसे उसके पयारे बचचे से अलग िकये हुए था। पेमिसंह के
िदल मे उस औरत की ददफ िाक आहे चुभ गयीं। िह बेधडक आग मे घुस
गया और सोते हुए बचचे को गोद मे लेकर बाहर ििकल आया। ििधिा सी
िे बचचे को गोद मे ले िलया और उसके कोमल गालो को बार-बार चूमकर
आंखो मे आंसू भर लायी और बोली-महाराि, तुम िो कोई हो, मै आि अपिा
बचचा तुमहे भेट करती हूं। तुमहे ईशर िे और भी लडके िदये होगे, उनहीं के
साथ इस अिाथ की भी खबर लेते रहिा। तुमहारे िदल मे दया है , मेरा सब
कुछ अिगि दे िी िे ले िलया, अब इस ति के कपडे के िसिा मेरे पास और
कोई चीि िहीं। मै मिदरूी करके अपिा पेट पाल लूग
ं ी। यह बचचा अब
तुमहारा है ।
पेमिसंह की आंखे िबिबा गयीं, बोला-बेटी, ऐसा ि कहो, तुम मेरे घर
चला और ईशर िे िो कुछ रखा-सूखा िदया है , िह खाओ। मै भी दिुिया मे
िबलकुल अकेला हूं, कोई पािी दे िे िाला िहीं है । कया िािे परमातमा िे इसी
बहािे से हम लोगो को िमलाया हो। शाम के िक िब पेमिसंह घर लौटा तो
उसकी गोद मे एक हं सता हुआ फूल िैसा बचचा था और पीछे -पीछे एक
पीली और मुरझायी औरत। आि पेमिसंह का घर आबाद हुआ। आि से उसे
िकसी िे शाम के िक िदी के िकिारे खामोश बैठे िहीं दे खा।

49
इसी बचचे के िलए सांप की मिण लािे का िििय करके पेमिसंह
आधी रात िक कमर मे तलिार लगाये, चौक-चौककर कदम रखता बरगद के
पेड की तरफ चला।
िब पेड के िीचे पहुंचा तो मिण की दमक जयादा साफ ििर आिे
लगी। मगर सांप का कहीं पता ि था। पेमिसंह बहुत खुश हुआ , शायद सांप
कहीं चरिे गया है । मगर िब मिण को लेिे के िलए हाथ बिाया तो िहां
साफ िमीि के िसिाय और कोई चीि ि िदखाई दी। बूिे िाट का कलेिा
सि से हो गया ओर बदि के रोगटे खडे हो गये। यकायक उसे अपिे सामिे
काई चीि लटकती हुई िदखाई दी। पेमिसंह िे तेगा खींच िलया और उसकी
तरफ लपका मगर दे खा तो िह बरगद की िटा थी। अब पेमिसंह का िर
िबलकुल दरू हो गया। उसिे उस िगह को, िहां से रोशिी की लौ ििकल
रही थी, अपिी तलिार से खोदिा शुर िकया। िब एक िबता िमीि खुद
गयी तो तलिार िकसी सखत चीि से टकरायी और लौ भडक उठी। यह एक
छोटा-सा तेगा था मगर पेमिसंह के हाथ मे आते ही उसकी लपट िैसी
चमक गायब हो गई।

य ह एक छोटा-सा तेगा था, मगर बहुत आबदार। उसकी मूठ मे


अिमोल ििाहरात िडे हुए थो और मूठ के ऊपर ‘ििकमािदतय’ खुदा
हुआ था। यह ििकमािदतय का तेगा था, उस ििकमािदतय का िो भारत का
सूय फ बिकर चमका, ििसके गुि अब तक घर-घर गाये िाते है । इस तेगे िे
भारत के अमर कािलदास की सोहबते दे खी है । ििस िक ििकमािदतय रातो
को िेश बदलकर दख
ु -ददफ की कहािी अपिे कािो सुििे और अतयाचारो की
लीला अपिी संिेदिशील आंखो से दे खिे के िलए ििकलते थे, यही आबदार
तेगा उिके बगल की शोभा हुआ करता था। ििस दया और नयाय िे
ििकमािदतय का िाम अब तक ििनदा रकखा है , उसमे यह तेगा भी उिका
हमददफ और शरीक था। यह उिके साथ उस राििसंहासि पर शोभायमाि
होता था ििस पर रािा भोि को भी बैठिा िसीब ि हुआ।
इस तेगे मे गिब की चमक थी। बहुत िमािे तक िमीि के िीचे
दफि रहिे पर भी उस पर िंग का िाम ि था। अंधेरे घरो मे उससे उिाला
हो िाता था। राि भर चमकते हुए तारे की तरह िगमगाता रहता। ििस

50
तरह चांद बादलो के परदे मे िछप िाता है । मगर उसकी मििम रोशिी छि-
छिकर आती है , उसी तरह िगलाफ के अंदर से उस तेगे की िकरिे ििरो के
तीर मारा करती थीं।
मगर िब कोई वयिक उसे हाथ मे ले लेता तो उसकी चमक गायब हो
िाती थी। उसका यह गुण दे खकर लोग दं ग रह िाते थे।
िहनदस
ु ताि मे इि िदिो शेरे पंिाब की ललकार गूि
ं रही थी।
रणिीतिसंह दािशीलता और िीरता, दया और नयाय मे अपिे समय के
ििकमािदतय थे। उसे घमंिी काबुल को, ििसिे सिदयो तक िहनदोसताि को
सर िहीं उठािे िदया था, खाक मे िमलाकर लाहौर िाते थे। महािगर का
खुला हुआ िदलकश मैदाि और पेडो का आकषक
फ िमघट दे खा तो िहीं पडाि
िाल िदया। बािार लग गए, खेमे और शािमयािे गाड िदये गये। िब रात हुई
तो पचचीस हिार चूलहो का काला धुआं सारे मैदाि और बगीचे पर छा
गया। और इस धुएं के आसमाि मे चूलहो की आग, कंदीले और मशाले ऐसी
मालूम होती थीं गोया अंधेरी रात मे आसमाि पर तारे ििकल आये है ।

शा ही आरामगाह से गािे-बिािे की पुरशार और पुरिोश अिािे आ


रही थीं। िसख सरदारो िे सरहदी िगहो पर सैकडो अफगािी
औरते िगरफतार कर ली थीं, िैसा उि िदिो लडाइयो मे आम तौर पर हुआ
करता था। िही औरते इस िक सायेदार दरखतो के िीचे कुदरती फश फ से
सिी हुई महिफल मे अपिी बेसुरी तािे अलाप रही थीं और महिफल के
लोग ििनहे गािे का आिनद उठािे की इतिी लालसा ि थी, िितिी हं सिे
और खुश होिे की, खूब िोर-िोर से कहकहे लगा-लगाकर हं स रहे थे। कहीं-
कहीं मिचले िसपािहयो िे सिांग भरे थे, िह कुछ मशाले और सैकडो
तमाशाइयो की भीड साथ िलये हुए इधर-उधर धूम मचाते हुए िफरते थे।
सारी फौि के िदलो मे बैठकर िििय की दे िी अपिी लीला िदखा रही थी।
रात के िौ बिे होगे िक एक आदमी काला कंबल ओिे एक बांस का
सोटा िलए शाही खेमे से बाहर ििकला और बसती की तरफ आिहसता-
आिहसता चला। आि महािगर भी खुशी से ऐंठ रहा है । दरिािो पर कई-कई
बितयोिाले चौमुखे दीिट िल रहे है । दरिािो के सहि झाडकर साफ कर

51
िदये गये है । दो-एक िगह शहिाइयां बि रही है और कहीं-कहीं लोग भिि
गा रहे है । काली कमलीिाला मुसािफर इधर-उधर दे खता-भालता गांि चौपाल
मे िा पहुंचा। चौपाल खूब सिा हुआ था और गांि के बडे लोग बैठे हुए
इस महतिपूण फ पश पर बहस कर रहे थे िक महारािा रणिीतिसंह की सेिा
मे कौि-सी भेट पेश की िाए। आि महाराि िे इस गांि को अपिे कदमो
से रोशि िकया है , तो कया इस गांि के बसिेिाले महाराि के कदमो को ि
चूमेगे  ऐसे शुभ अिसर कहां आते है । सब लोग सर झुकाये िचंितत बैठे थे।
िकसी की अकल कुछ काम िहीं करती थी। िहां अिमोल ििाहरात की
िकिितयां कहां ? पूरे घंटे भर तक िकसी िे सर ि उठाया। यकायक बूिा
पेमिसंह खडा हो गया और बोला-अगर आप लोग पसंद करे तो मै
ििकमािदतय की तलिार ििरािे के िलए दे सकता हूँ।
इतिा सुिते ही सबके सब आदमी खुशी से उछल पडे और एक हुललड
सा मच गया। इतिे मे एक मुसािफर कमली ओिे चौपाल के अंदर आया
और हाथ उठाकर बोला-भाइयो, िाह गुर की िय 
चेतराम बोला-तुम कौि हो?
मुसािफर-राहगीर हूं, पेशािर िािा है । रात जयादा आ गई है इसिलए
यहीं लेट रहूंगा।
टे किसंह-हां-हां, आराम से सोओ। चारपाई की िररत हो तो मंगा दं।ू
मुसािफर-िहीं, आप तकलीफ ि करे , मै इसी टाट पर लेट रहूंगा। अभी
आप लोग ििकमािदतय की तलिार की कुछ बातचीत कर रहे थे। यही
सुिकर चला आया। ििा फ बाहर ही पडा रहता। कया यहां िकसी के पास
ििकमािदतय की तलिार है ?
मुसािफर की बातचीत से साफ िािहर होता था िक िह कोई शरीफ
आदमी है । उसकी आिाि मे िह किशश थी िो कािो को अपिी तरफ खींच
िलया करती है । सबकी आंखे उसकी तरफ उठ गई। पंिित चेतराम बोले -िी
हां, असाफ हुआ महाराि ििकमािदतय का तेगा िमीि से ििकला है ।
मुसािफर- यह कयोकर मालूम हुआ िक यह तेगा उनहीं का है ?
चेतराम – उसकी मूठ पर उिका िाम खुदा हुआ है ।
मुसािफर –उिकी तलिार तो बहुत बडी होगी?
चेतराम – िहीं, िह तो एक छोटा-सा िीमचा है ।
मुसािफर – तो िफर उसमे कोई खास गुण होगा।
52
चेतराम – िी हां, उसके गुण अिमोल है । दे खकर अकल दं ग रह िाती
है । िहाँ रख दो, उसमे िलते िचराग की-सी रोशिी पैदा हो िाती है ।
मुसािफर – ओफफोह!
चेतराम- मगर जयोही कोई आदमी उसे हाथ मे ले लेता है , उसकी सारी
चमक-दमक गायब हो िाती है ।
यह अिीब बात सुिकर उस मुसािफर की िही कैिफयत हो गई िो
एक आियि
फ िक कहािी सुििे से बचचो की हो िाया करती है । उसकी आंख
और भंिगमा से अधीरता पकट होिे लगी। िोश से बोला-ििकमािदतय, तुमहारे
पताप को धनय है 
िरा दे र के बाद िफर बोला-िह कौि बुिग
ु फ है िििके पास यह अिमोल
चीि है ?
पेमिसंह िे गिफ से कहा-मेरे पास है ।
मुसािफर- कया मै उसे दे ख सकता हूं?
पेमिसंह – हां, मै आपको सिेरे िदखाऊंगा। मगर िहीं, ठहिरए, सिेरे तो
हम उसे महाराि रणिीतिसंह को भेट करे गे, आपका िी चाहे तो इसी िक
दे ख लीििए।
दोिो आदमी चौपाल से चल खडे हुए। पेमिसंह िे मुसािफर को अपिे
घर मे ले िाकर तेगे के पास खडा कर िदया। इस कमरे मे िचराण ि था
मगर सारा कमरा रोशिी से िगमगा रहा था। मुसािफर िे पुरिोश आिाि
से कहा- ििकमािदतय, तुमहारे पताप को धनय है , इतिा िमािा गुिरिे पर भी
तुमहारी तलिार का तेि कम िहीं हुआ।
यह कहकर उसिे बडे चाि से हाथ बिाकर तेगे को पकड िलया मगर
उसका हाथ लगते ही तेगे की चमक िाती रही और कमरे मे अंधेरा छा
गया।
मुसािफर िे फौरि तेगे को तखत पर रख िदया। उसका चेहरा अब
बहुत उदास हो गया था। उसिे पेमिसंह से कहा- कया तुम यह तेगा रण
िीतिसंह को भेट दोगे? िह इसे हाथ मे लेिे योगय िहीं है ।
यह कहकर मुसािफर तेिी से बाहर ििकल आया। िनृदा दरिािे िर
खडी थी, मुसािफर िे उसके चेहरे की तरफ एक बार गौर से दे खा, मगर कुछ
बोला िहीं।

53
रात आधी से जयादा गुिर चुकी थी। मगर फौि मे शोर-गुल बदसतूर
िारी था। खुशी के हं गामे िे िींद को िसपािहयो की आंखो से दरू भगा िदया।
अगर कोई अंगडाई लेता या ऊंघता ििर आ िाता है तो उसके साथी उसे
एक टांग से खडा कर दे ते है । यकायक यह खबर मशहूर हुई िक महाराि
इसी िक कूच करे गे। लोग ताजिुब मे आ गये िक महाराि िे कयो इस
अंधेरी रात मे सफर करिे की ठािी है  इस िर से िक फौि को इसी िक
कूच करिा पडे गा चारो तरफ खलबली-सी मच गयी। िह खुद थोडे -से
आिमाये हुये सरदारो के साथ रिािा हो गए। इसका कारण िकसी की समझ
मे िहीं आया।
ििस तरह बांध टू ट िािे से तालाब का पािी काबू से बाहर होकर
िारे -शोर के साथ बह ििकलता है , उसी तरह महाराि के िाते ही फौि के
अफसर और िसपाही होश-हिास खोकर मिसतयां करिे लगे।

िृ नदा को ििधिा हुए तीि साल गुिरे है । उसका पित एक बेिफक और


रं गीि िमिाि आदमी था। गािे-बिािे से उसे पेम था। घर की िो कुछ
िमा-िथा थी, िह सरसिती और उसके पुिािरयो को भेट कर दी। तीि लाख
की िायदाद तीि साल के िलए भी काफी ि हो सकी। मगर उसकी कामिा
पूरी हो गई। सरसिती दे िी िे उसे आशीिाद िदया और उसिे संगीत-कला मे
ऐसा कमाल पैदा िकया िक अचछे -अचछे गुिी उसके सामिे िबाि खोलते
िरते थे। गािे का उसे िितिा शौक था, उतिी ही मुहबबत उसे िनृदा से थी।
उसकी िाि अगर गािे मे बसती थी तो िदल िनृदा की मुहबबत से भरा
हुआ था पहले छे डछाड मे और िफर िदलबहलाि के िलए उसिे िनृदा को
कुछ गािा िसखाया। यहां तक िक उसको भी इस अमत
ृ का सिाद िमल गया
और यदिप उसके पित को मरे तीि साल गुिर गये है और उसिे सांसािरक
सुखो को अंितम िमसकार कर िलया है यहां तक िक िकसी िे उसके गुलाब-
के-से होठो पर मुसकराहट की झलक िहीं दे खी मगर गािे की तरफ अभी
तक उसकी तिबयत झुकी हुई थी। उसका मि िब कभी बीते हुए िदिो की
याद से उदास होता है तो िह कुछ गाकर िी बहला लेती है । लेिकि गािे मे
उसका उदे िय इिनदय का आिंद िहीं होता, बिलक िब िह कोई सुंदर राग

54
अलापिे लगती है तो खयाल मे अपिे पित को खुशी से मुसकराते हुए दे खती
है । िही कालपििक िचि उसके गािे की पशंसा करता हुआ िदखाई दे ता है ।
गािे मे उसका लकय अपिे सिगीय पित की समिृत को तािा करिा है ।
गािा उसके ििदीक पितवत धमफ का ििबाह है ।
तीि पहर रात िा चुकी है , आसमाि पर चांद की रोशिी मंद हो
चुकी है , चारो तरफ सनिाटा छाया हुआ है और इि ििचारो को िनम दे िे
िाले सनिाटे मे िनृदा िमीि पर बैठी हुई मििम सिरो मे गा रही है :
बता दे कोई पेमिगर की िगर।
िनृदा की आिाि मे लोच भी है और ददफ भी। उसमे बेचैि िदल को
तसकीि दे िे िाली ताकत भी है और सोये हुए भािो को िगा दे िे की शिक
भी। सुबह के िक पूरब की गुलाबी आभा मे सर उठाये हुए फूलो से लदी हुई
िाली पर बैठकर गािेिाली बुलबुल की चहक मे भी यह घुलािट िहीं होती।
यह िह गािा है ििसे सुिकर अकलुष आतमाएं िसर धुििे लगती है ।
उसकी ताि कािो को छे दती हुई ििगर मे आ पहुंचती है :

बता दे कोई पेमिसंह की िगर।


मै बौरी पग-पग पर भटकूं , काहू की कुछ िािहं खबर।
बता दे कोई पेमिसंह की िगर।

यकायक िकसी िे दरिािा खटखटाया और कई आदमी पुकारिे लगे-


िकसका मकािे है , दरिािा खोलो।
िनृदा चुप हो गयी। पेमिसंह िे उठकर दरिािा खोल िदया। दरिािे के
सहि मे िसपािहयो की एक भीड थी। दरिािा खुलते ही कई िसपाही दहलीि
मे घुस आये और बोले-तुमहारे घर मे कोई गािेिाली रहती है , हम उसका
गािा सुिेगे।
पेमिसंह िे कडी आिाि मे कहा-हमारे यहां कोई गािेिाली िहीं है ।
इस पर कई िसपािहयो िे पेमिसंह को पकड िलया और बोले – तेरे
घर से गािे की आिाि आती थी।
एक िसपाही-बताता कयो िहीं रे , कौि गा रहा है ?
पेमिसंह –मेरी लडकी गा रही थी। मगर िह गािेिाली िहीं है ।
िसपाही-कोई हो, हम तो आि गािा सुिेगे।

55
गुससे से पेमिसंह कांपिे लगा, होठ चबाकर बोला-यारो, हमिे भी अपिी
ििनदगी फौि मे ही काटी है मगर कभी.....
इस हं गामे मे पेमिसंह की बात िकसी िे ि सुिी। एक िौििाि िाट
िे, ििसकी आंखे िशे से लाल हो रही थीं, ललकारकर कहा-इस बुिढे की मूछे
उखाड लो।
िनृदा आंगि मे पतथर की मूरत की तरह खडी यह कैिफयत दे ख रही
थी। िब उसिे दो िसपािहयो को पेमिसंह की मूछ
ं पकडकर खींचते दे खा तो
उससे ि रहा गया, िह ििभय
फ िसपािहयो के बीच मे घुस आयी और ऊंची
आिाि मे बोली-कौि मेरा गािा सुििा चाहता है ।
िसपािहयो िे उसे दे खते ही पेमिसंह को छोड िदया और बोले-हहम सब
तेरा गािा सुिेगे।
िनृदा-अचछा बैठ िाओ, मै गाती हूँ।
इस पर कई िसपािहयो िे ििद की िक इसे पडाि पर ले चले, िहां खूब
रं ग िमेगा।
िब िनृदा िसपािहयो के साथ पडाि की तरफ चली तो पेमिसंह िे
कहा-िनृदा, इिके साथ िाती हो तो िफर इस घर मे पैर ि रखिा।
िनृदा िब पडाि पर पहुंची तो िहॉँ बदमिसतयो का एक तूफाि मचा
हुआ था। िििय की दे िी दिुमि को बबाद
फ करके अब िििेताओं की माििता
और सजििता को पॉि से कुचल रही थी। है िािियत का खूखॉरं शेर दिुमि
के खूि से तप
ृ िे होकर अब माििोिचत भािो का खूि चूस रहा था। िनृदा
को लोग एक सिे हुए खेमे मे ले गये। यहाँ फशी िचराग रोशि थे और
आग-िैसी शराब के दौर चल रहे थे। िनृदा उस कौिे पर सहमी हुई बैठी थी।
िासिा का भूत िो इस िक िदलो मे अपिी शैतािी फौि सिाये बैठा था
कभी आंखो की कमाि से सतीति की िाश करिे िाली तेि तीर चलाता
और कभी मुहँ की कमाि से ममि
फ ेधी बाणो की बौछार करता। िहरीली
शराब मे बुझे हुए तीर िनृदा के कोमल और पििि हदय को छे दते हुए पार
हो िाते थे। िह सोच रही थी-ऐ दोपती की लाि रखिे िाले कृ षण भगिाि ्,
तुमिे धम फ के बनधि से बँधे हुए पाँणििो के होते हुए दोपती की लाि रखी
थी, मैतो दिुिया मे िबलकुल अिाथ हूँ, कया मेरी लाि ि रखोगे ? यह सोचते
हुए उसिे मीरा का यह मशहूर भिि गाया:
िसया रघुिीर भरोसो ऐसो।
56
िनृदा िे यह गीत बडे मोहक िं ग से गाया। उसके मीठे सुरो मे मीरा
का अनदाि पैदा हो गया था। पकट रप मे िह शराबी िसपािहयो के सामिे
बैठी गा रही थी। मगर कलपिा की दिुिया मे िह मुरलीिाले ियाम के
सामिे हाथ बॉध
ँ े खडी उससे पाथि
फ ा कर रही थी।
िरा दे र के िलए उस शोर से भरे हुए महल मे ििसतबधता छा गयी।
इनसाि के िदल मे बैठे हुए है िाि पर भी पेम की यह तिपा दे िे िाली पुकार
अपिा िाद ू चला गयी। मीठा गािा मसत हाथी को भी बस मे कर लेता है ।
पूरे घंटे भर तक िनृदा िे िसपािहयो को मूिति
फ त ् रखा। सहसा घिियाल िे
पॉच
ँ बिाये। िसपाही और सरदार सब चौक पडे । सबका िशा िहरि हो गया।
चालीस कोस की मंििल तय करिी है , फुती के साथ रिािगी की तैयािरयॉँ
होिे लगीं। खेमे उखडिे लगे, सिारो िे घोिो को दािा िखलािा शुर िकया।
एक भगदड-सी मच गयी। उधर सूरि ििकला इधर फौि िे कूच का िं का
बिा िदया। शाम को ििस मैदाि का एक-एक कोिा आबाद था, सुबह को
िहॉँ कुछ भी ि था। िसफफ टू टे -फूटे उखडे चूलहे की राख और खेमो की कीलो
के ििशाि उस शि-शौकत की यादगार मे रप मे रह गये थे।
िह खेमे से बाहर ििकल आयी। कोई बाधक ि हुआ। मगर उसका
िदल धडक रहा था िक कही कोई आकर िफर ि पकड ले। िब िह पेिो के
झुरमुट से बाहर पहुंची तो उसकी िाि मे िाि आयी। बडा सुहािा मौसम
था, ठं डी-ठं डी मसत हिा पेडो के पतो पर धीमे-धीमे चल रही थी और पूरब के
िकिति मे सूय फ भगिाि की अगिािी के िलए लाल मखमल का फशफ
िबछाया िा रहा था। िनृदा िे आगे कदम बढािा चाहा। मगर उसके पांि ि
उठे । पेमिसंह की यह बात िक िसपािहयो के साथ हो िाती हो तो िफर इस
घर मे पैर ि रखिा, उसे याद आ गयी। उसिे एक लमबी सांस ली और
िमीि पर बैठ गई। दिुिया मे अब उसके िलए कोई िठकािा ि था।
उस अिाथ िचिडया की हालत कैसी ददफ िाक है िो िदल मे उडिे की
चाह िलए हुए बहे िलये की कैद से ििकल आती है मगर आिाद होिे पर उसे
मालूम होता है िक उस ििषु र बहे िलये िे उसके परो को काट िदया है । िह
पेडो की सायेदार िािलयो की तरफ बार-बार हसरत की ििगाहो से दे खती है
मगर उड िहीं सकती और एक बेबसी के आलम मे सोचिे लगती है िक
काश, बहे िलया मुझे िफर िपंिरे मे कैद कर लेता िनृदा की हालत एक िक
ऐसी ही ददफ िाक थी।
57
िनृदा कुछ दे र तक इस खयाल मे िू बी रही, िफर िह उठी और धीरे -
धीरे पेमिसंह के दरिािे पर आयी। दरिािा खुला हुआ था मगर िह अनदर
कदम ि रख सकी। उसिे दरोदीिार को हसरत भरी ििगाहो से दे खा आरै
िफर िंगल की तरफ चली गई।


6

हर लाहौर के एक शािदार िहससे मे ठीक सडक के िकिारे एक


अचछा-सा साफ-सुथरा ितमंििले मकाि है । हरी-भरी फूलो िाली
माधिी लतािे उसकी दीिारो और मेहराबो को खूब सिा िदया है । इसी
मकाि मे एक अमीरािा ठाट-बाट से सिे हुए कमरो मे फैली िनृदा एक
मखमली कालीि पर बैठी हुई अपिी सुनदर रं गो और मीठी आिाि िाली
मैिा को पिा रही है । कमरे की दीिारो पर हलके हरे रं ग की कलई है -
खुशिुमा दीिारगीिरयाँ, खूबसूरत तसिीरे उिचत सथािो पर शोभा दे रही है ।
सनदल और खस की पाणिदफ क सुगनध कमरे के अनदर फैली हुई है । एक
बूिी बैठी हुई पंखा झल रही है । मगर इस ऐशय फ और सब सामिगयो के होते
हुए िनृदा का चेहरा उदास है । उसका चेहरा अब और भी पीला ििर आता
है । मौलशी का फूल मुरझा गया है ।
िनृदा अब लाहौर की मशहूर गािेिािलयो मे से एक है । उसे इस शहर
मे तीि महीिे से जयादा िहीं हुए, मगर इतिे ही िदिो मे उसिे बहुत बडी
शोहरत हािसल कर ली है । यहॉँ उिका िाम ियामा मशहूर है । इतिे बडे
शहर मे ििससे ियामा बाई का पता पूछो िह यकीिि बता दे गा। ियामा की
आिाि और अनदाि मे कोई मोिहिी है , ििसिे शहर मे हर को अपिा पेमी
बिा रकखा है । लाहौर मे बाकमाल गािेिािलयो की कमी िहीं है । लाहौर उस
िमािे मे हर कला का केनद था मगर कोयले और बुलबुले बहुत थी। ियामा
िसफफ एक थी। िह धुपद जयादा गाती थी इसिलए लोग उसे धुपदी कहते थे।
लाहौर मे िमयॉँ तािसेि के खािदाि के कई ऊंचे कलाकार है िो राग
और रागिियो मे बाते करते है । िह ियामा का गािा पसनद िहीं करते। िह
कहते है िक ियामा का गािा अकसर गलत होता है । उसे राग ओर
रािगिियो का जाि िहीं। मगर उिकी इस आलोचिा का िकसी पर कुछ
असर िहीं होता। ियामा गलत गाये या सही िह िो कुछ गाती है उसे
सुिकर लोग मसत हो िाते है । उसका भेद यह है िक ियामा हमेशा िदल से

58
गाती है और ििि भािो को िह पकट करती है उनहे खुद भी अिुभि करती
है । िह कठपुतिलयो की तरह तुली हुई अदाओं की िकल िहीं करती है । अब
उसके बगैर महिफले सूिी रहती है । हर पहिफल मे उसका मौिूद होिा
लाििमी हो गया है । िह चाहे शोक ही गाये मगर बगैर संगीत पेिमयो का
िी िहीं भरता। तलिार की बाढ की तरह िह महिफलो की िाि है । उसिे
साधारणििो के हदय मे यहॉँ तक घर िलया है िक िब अपिी पालकी पर
हिा खािे ििकलती है तो उस पर चारो तरफ से फूलो की बौछार होिे लगती
है । महाराि रणिीत िसंह को काबुल से लौटे हुए तीि महीिे गुिर गए,
मगर अभी तक िििय की खुशी मे कोई िलसा िही हुआ। िापसी के बाद
कई िदि तक तो महाराि िकसी कारण से उदास थे, उसके बाद उिके
सिभाि मे यकायक एक बडा पिरिति
फ आया, उनहे काबुल की िििय की
चचा फ से घण
ृ ा-सी हो गई। िो कोई उनहे इस िीत की बधाई दे िे िाता
उसकी तरफ से मुंह फेर लेते थे। िह आितमक उललास िो मौिा महािगर
तक उिके चेहरे से झलकता था, अब िहॉँ ि था। काबुल को िीतिा उिकी
ििंदगी की सबसे बडी आरिू थी। िह मोचा फ िो एक हिार साल तक िहनद ू
रािाओं की कलपिा से बाहर था, उिके हाथो सर हुआ। ििस मुलक िे
िहनदोसताि को एक हिार बरस तक अपिे मातहत रकखा िहॉँ िहनद ू कौम
का झणडा रणिीत िसंह िे उडाया। गििी और काबुल की पहािडयो इनसािी
खूि से लाल हो गयी, मगर रणिीत िसंह खुश िही है । उिके सिभाि की
कायापलट का भेद िकसी की समझ मे िहीं आता । अगर कुछ समझती है
तो िनृदा समझती है ।
तीि महीिे तक महाराि की यही कैिफयत रही। इसके बाद उिका
िमिाि अपिे असली रं ग पर आिे लगा। दरबार की भलाई चाहिे िाले इस
मौके के इनतिार मे थे। एक रोि उनहोिे महाराि से एक शािदार िलसा
करिे की पाथि
फ ा की। पहले तो िह बहुत कुद हुए मगर आिखरकार िमिाि
समझािे िालो की घाते अपिा काम कर गई।
िलसे की तैयािरयॉँ बडे पैमािे पर की िािे लगी। शाही ितृयशाला की
सिािट होिे लगी। पटिा, बिारस, लखिऊ, गिािलयर, िदलली और पूिा की
िामी िेियाओं को सनदे श भेिे गये । िनृदा को भी ििमिण िमला। आि
एक मुदत के बाद उसके चेहरे पर मुसकराहट की झलक िदखाई दी।

59
िलसे की तारीख िििित हो गई। लाहौर की सडको पर रं ग-िबरं गी
झंििया लहरािे लगी। चारो तरफ से िबाब और रािे बडी शाि के साथ सि-
सिकर आिे लगे। होिशयार फराश
फ ो िे ितृयशाला को इतिे सुनदर ढं ग से
सिाया था िक उसे दे खकर लगता था िक ििलास का ििशामसथल है ।
शाम के िक शाही दरबार िमा। महारािा साहब सुिहरे राििसंहासि
पर शोभायमाि हुए। िबाब और रािे, अमीर और रईस, हाथी घोडो पर सिार
अपिी सिधि िदखते हुए एक िलूस बिाकर महाराि की कदमबोसी को
चले। सडक पर दोिो तरफ तमाशाइयो का ठट लगा था। खुशी का रं गो से
भी कोई गहरा संबंध है । ििधर आंख उठती थी। रं ग ही रं ग िदखायी दे ते थे।
ऐसा मालूम होता था िक कोई उमडी हुई िदी रं ग िबरं गे फूलो की कयािरयो
से बहती चली आती है ।
अपिी खुशी के िोश मे कभी-कभी लोग अभदता भी कर बैठते थे।
एक पिणित िी िमिई
फ पहिे सर पर गोल टोपी रकखे तमाशा दे खिे मे लगे
थे। िकसी मिचले िे उिकी तोद पर एक चमगादड िचमटा दी। पंिित िी
बेतहाशा तोद मटकाते हुए भागे। बिा कहकहा पडा। एक और मौलिी साहब
िीची अचकि पहिे हुए दक
ु ाि पर खडे थे। दक
ु ािदार िे कहा-मौलिी साहब,
आपको खडे -खडे तकलीफ होती है , यह कुसी रकखी है , बैठ िाइए। मौलिी
साहब बहुत खुश हुए, सोचिे लगे िक शायद मेरे रप-रं ग से रौब झलक रहा
है । ििा फ दक
ु ािदार कुसी कया दे ता ? दक
ु ािदार आदिमयो के बडे पारखी होते
हे । हिारो आदमी खडे है , मगर उसिे िकसी से बैठिे की पाथि
फ ा ि की।
मौलिी साहब मुसकराते हुए कुसी पर बैठे, मगर बैठते ही पीछे की तरफ
लुिके और िीचे बहती हुई िाली मे िगर पडे । सारे कपडे लथपथ हो गये।
दक
ु ािदार को हिारो खरी-खोटीं सुिायीं। बडा कहकहा पडा। कुसी तीि ही
टांग की थी।
एक िगह कोई अफीमची साहब तमाशा दे खिे आये हुए थे। झुकी हुई
कमर पोपला मुंह, िछदरे -िछदरे सर के बाल और दाढी के बाल, मेहदी से रगे
हुए थे। आंखो मे सुरमा भी था। आप बडे गौर ये सैर करिे मे लगे थे।
इतिे मे एक हलिाई सर पर खोमचा रकखे हुए आया और बोला-खॉँ साहब,
िुमेरात की गुलाबिाली रे ििडयॉँ है । आि पैसे की आध पांि लगा दीं, खा
लीििए ििाफ पछताइएगा। अफीमची साहब िे िेब मे हाथ डाला मगर पैसे ि
थे। हाथ मल कर रह गये, मुँह मे पािी भर आया। गुलाबिाली रे ििडयॉँ पैसे
60
मे आध पाि ि हुए पैसे िहीं तो सेरो तुला लेता। हलिाई ताड गया, बोला-
आप पैसे की कुछ िफक ि करे , पैसे िफर िमल िाएंगे। आप कोई ऐसे िैसे
आदमी थौिे ही है । अफीमची साहब की बॉछ
ँ े िखल गयीं। रह फडक उठी।
आपिे पाि भर-रे ििडयाँ लीं और िी मे कहा। अब पैसा दे िे िाले पर लाित
है । घर से ििकलूँगा ही िही, तो पैसे कया लोगे ? अपिे रमाल मे रे ििियॉँ
लीं। आिशक के िदल मे सब कहॉँ ? मगर जयो ही पहली रे िडी िबाि पर
रकखी िक ितलिमला गये। पागल कुते की तरह पािी की तलाश मे इधर-
उधर दौडिे लगे। ऑख
ं और िाक से पािी बहिे लगा। आधा मुँह खोलकर
ठं िी हिा से िबाि की िलि बुझािे लगे। िब होश ठीक हुए तो हलिाई को
हिारो गािलयां सुिायीं, इस पर लोग खूब हं से। खुशी के मौके पर ऐसी
शरारते अकसर हुआ करती है । और इनहे लोग खूब मुआफी के कािबल
समझते है कयोिक िह खौलती हुई हांिी के उबाल है ।
रात के िौ बिे संगीतशाला से िमघट हुआ। सारा महल िीचे से ऊपर
तक रं ग-िबरं गी हांिडयो और फािूसो से िगमगा रहा था। अनदर झांडो की
बहार थी। बाकमाल कारीगर िे रं गशाला के बीचो-बीच अधर मे लटका हुआ
एक फविारा लगाया था। ििसके सूराखो से खस और केिडा, गुलाब और
सनदल का अरक हलकी फुहारो मे बरस रहा था। महिफल मे अमबर की
बौछार करिे िाली तरािट फैली हुई थी। खुशी अपिी सिखयो-सहे िलयो के
साथ खुिशयां मिा रही थी।
दस बचचे महारािा रणिीतिसंह तशरीफ लाये। उिके बदि पर तंिेब
की एक सफेद अचकि थी और ितरछी पगडी बँधी हुई थी। ििस तरह सूरि
िकिति की रं गीिियो से पाक रहकर अपिी पूरी रोशिी िदखा सकता है ।
उसी तरह हीरे और ििाहरात, दीिा1 और हरीर 1 की पुसतकललुफ सिािट से
मुक रहकर भी महारािा रणिीतिसंह का पताप पूरी तेिी के साथ चमक रहा
था।
चनदिामी शायरो िे महाराि की शाि मे इसी मौके के िलए कासीदे
कहे थे। मगर उपिसथत लोगो के चेहरो से उिके िदलो मे िोश खाता हुआ
संगीत-पेम दे खकर महाराि िे गािा शुर करिे का हुकम कर िदया। तबले
पर थाप पडी, साििनदो िे सुर िमलाया, िींद से झपकती हुई आंखे खुल गयीं
और गािा शुर हो गया।
-----१.रे शमी कपडो के िाम
61

स शाही महिफल मे रात भर मीठे -मीठे गािो की बौछार होती रही।


पीलू और िपरच, दे स और ििभाग के मदभरे झोके चलते रहे । सुनदरी
ितिफकयो िे बारी-बारी से अपिा कमाल िदखाया। िकसी की िािभरी अदाएँ
िदलो मे खुब गयीं, िकसी का िथरकिा कतलेआम कर गया, िकसी की रसीली
तािो पर िाह-िाह मच गई। ऐसी तिबयत बहुत कम थीं ििनहोिे सचचाई के
साथ गािे का पििि आिनद ि उठाया हो।
चार बिे होगे ियामा की बारी आयी तो उपिसथत लोग समहल बैठे।
चाि के मारे लोग आगे िखसकिे लगे। खुमारी से भरी हुई आंखे चौक पडी।
िनृदा महिफल मे आई और सर झुकाकर खडी हो गई। उसे दे खकर लोग
है रत मे आ गये। उसके शरीर पर ि आबदार गहिे थे, खुशरं ग, भडकीली
पेशिाि। िह िसफफ एक गेरए रं ग की साडी पहिे हुए थी। ििस तरह गुलाब
की पंखुरी पर िू बते हुए सूरि की सुिहरी िकरण चमकती है , उसी तरह उसके
गुलाबी होठो पर मुसकराहट झलकती थी। उसका आिमबर से मुक सौदयफ
अपिे पाकृ ितक िैभि की शाि िदखा रहा था। असली सौदय फ बिाि-िसंगार
का मोहताि िहीं होता। पकृ ित के दशि
फ से आतमा को िो आिनद पाप
होता है िह सिे हुए बगीचो की सैर से मुमिकि िहीं। िनृदा िे गाया:

सब िदि िाहीं बराबर िात।

यह गीत इससे पहले भी लोगो िे सुिा था मगर इस िक का–सा


असर कभी िदलो पर िहीं हुआ था। िकसी के सब िदि बराबर िहीं िाते यह
कहाित रोि सुिते थे। आि उसका मतलब समझ मे आया। िकसी रईस को
िह िदि याद आया िब खुद उसके िसर पर तािा था, आि िह िकसी का
गुलाम है । िकसी को अपिे बचपि की लाड-पयार की गोद याद आई, िकसी
को िह िमािा याद आया, िब िह िीिि के मोहक सपिे दे ख रहा था।
मगर अफसोस अब िह सपिा िततर-िबतर हो गया। िनृदा भी बीते हुए िदिो
को याद करिे लगी। एक िदि िह था िक उसके दरिािे पर अताइयो और
गािेिालो की भीि रहती थी। औरखुिशयो की और आि इसके आगे िनृदा
कुछ सोच ि सकीं। दोिो हालातो का मुकािबला बहुत िदल तोडिेिाला था,

62
ििराशा से भर दे िे िाला। उसकी आिाि भारी हो गई और रोिे से गला बैठ
गया।
महारािा रणिीतिसंह ियामा के ति फ ि अनदाि को गौर से दे ख रहे
थे। उिकी तेि ििगाहे उसके िदल मे पहुँचिे की कोिशश कर रही थीं। लोग
अचमभे मे पडे हुए थे िक कयो उिकी िबाि से तारीफ और कददािी की
एक बात भी ि ििकली। िह खुश ि थे, िह खयाल मे िू बे हुए थे। उनहे
हुिलये से साफ पता चल रहा था िक यह औरत हरिगि अपिी अदाओं को
बेचिेिाली औरत िहीं है । यकायक िह उठ खिे हुए और बोले –ियामा,
बह
ृ सपित को मै िफर तुमहारा गािा सुिग
ूँ ा।

िृ नदा के चले िािे के बाद उसका फूल-सा बचचा रािा उठा और आंखे
मलता हुआ बोला-अममां कहॉँ है ?
पेमिसंह िे उसे गोद मे लेकर कहा-अममॉँ िमठाई लेिे गई है ।
रािा खुश हो गया, बाहर िाकर लडको के साथ खेलिे लगा। मगर
कुछ दे र के बाद िफर बोला-अममॉँ िमठाई।
पेमिसंह िे िमठाई लाकर दी। मगर रािा रो-रोकर कहता रहा, अममा
िमठाई। िह शायद समझ गया था िक अममाँ की िमठाई इस िमठाई से
जयादा मीठी होगी।
आिखर पेमिसंह िे उसे कंधे पर चिा िलया और दोपहर तक खेतो मे
घूमता रहा। रािा कुछ दे र तक चुप रहता और िफर चौककर पूछिे लगता-
अममा कहॉँ है ?
बूिे िसपाही के पास इस सिाल का कोई िबाब ि था। िह बचचे के
पास से एक पल को कहीं ि िाता और उसे बतो मे लगाये रहता िक कहीं
िह िफर ि पूछ बैठै, अममा कहॉँ है ? बचचो की समरणशिक कमिोर होती है ।
रािा कई िदिो तक बेकार रहा, आिखर धीरे -धीरे मॉँ की याद उसके िदल से
िमट गई।
इस तरह तीि महीिे गुिर गये। एक रोि शाम के िक रािा अपिे
दरिािे पर खेल रहा था िक िनृदा आती िदखाई दी। रािा िे उसकी तरफ

63
गौर से दे खा, िरा िझझका, िफर दौडकर उसकी टॉगो से िलपट गया और
बोला-अममा, आयी, अममा आयी।
िनृदा की आंखो से आंसू िारी हो गए। उसिे रािा को गोद मे उठा
िलया और कलेिे से लगाकर बोली- बेटा, अभी मै िहीं आयी, िफर कभी
आऊँगी।
रािा इसका मतलब ि समझा। िह उसका हाथ पकडकर खींचता हुआ
घर की तरफ चला। मॉँ की ममता िनृदा को दरिािे तक ले गयी।
मगरचौखट से आगे ि ले िा सकी। रािा िे बहुत खीचा मगर िह आगे ि
बिी। तब रािा की बडी-बडी आंखो मे ऑस
ं ू भर आये । उसके होठ फैल गये
और िह रोिे लगा।
पेमिसंह उसका रोिा सुिकर बाहर ििकल आया, दे खा तो िनृदा खडी
है । चौककर बोला-िनृदा मगर िनृदा कुछ िबाब ि दे सकीं।
पेमिसंह िे िफर कहा- बाहर कयो खडी हो, अनदर आओ। अब तक कहॉँ
थीं ?
िनृदा िे आंसूँ पोछते हुए िबाब िदया- मै अनदर िहीं आऊँगी।
पेमिसंह िे िफर कहा-आओ आओ, अपिे बूिे बाप की बातो का बुरा ि
मािो।
िनृदा – िहीं दादा, मै अनदर कदम िहीं रख सकती।
पेमिसंह – कयो ?
िनृदा-कभी बताऊँगी। मै तुमहारे पास िह तेगा लेिे आयी हूँ।
पेमिसंह िे अचरि मे िाकर पूछा- उसे लेकर कया करोगी ?
िनृदा- अपिी बेइजिती का बदला लूँगी।
पेमिसंह िकससे-रणिीतिसंह से।
पेमिसंह िमीि पर बैठ गया और िनृदा की बातो पर गौर करिे लगा,
िफर बोला– िनृदा, तुमहे मौका कयोकर िमलेगा ?
िनृदा – कभी-कभी धूल के साथ उडकर चींटी आसमाि तक पहुँचती
है ।
पेमिसंह – मगर बकरी शेर से कयोकर लडे गी ?
िनृदा- इस तेगे की मदद से।
पेमिसंह – इस तेगे िे कभी िछपकर खूि िहीं िकया।

64
िनदा – दादा, यह ििकमािदतय का तेगा है । इसिे हमेशा दिुखयारो की
मदद की है ।
पेमिसंह िे तेगा लाकर िनृदा के हाथ मे रख िदया। िनृदा उसे पहलू
मे िछपाकर ििस तरह से आयी थी उसी तरह चली गई। सूरि िू ब गया
था। पििम के िकिति मे रोशिी का कुछ-कुछ ििशाि बाकी था और भैसे
अपिे बछिे को दे खिे के िलए चरागाहो से दौडती हुई आिाि से िमिमयाती
चली आती थीं और िनृदा को रोता छोडकर शाम के अँधेरे िराििे िंगल की
तरफ िा रही थी।

िह
ृ सपित का िदि था। रात के दस बि चुके है । महारािा रणिीतिसंह
अपिे ििलास-भिि मे शोभायमाि हो रहे है । एक रात बितयो िाला झाड
रोशि हे । मािो दीपक-सुंदरी अपिी सहे िलयो के साथ शबिम का घूँघट मुंह
पर डाले हुए अपिे रम मे गि फ मे खोई हुई है । महारािा साहाब के सामिे
िनृदा गेरए रं ग की साडी पहिे बैठी है । उसके हाथ मे एक बीि है , उसी पर
िह एक लुभाििा गीत अलाप रही है ।
महाराि बोले-ियामा, मै तुमहारा गािा सुिकर बहुत खुश हुआ, तुमहे
कया इिाम दँ ू ?
ियामा िे एक ििशेष भाि से िसर झुकाकर कहा-हुिूर के अिखतयार मे
सब कुछ है ।
रणिीतिसंह-िागीर लोगी ?
ियामा – ऐसी चीि दीििए, ििससे आपका िाम हो िाए।
महारािा िे िनृदा की तरफ गौर से दे खा। उसकी सादगी कह रही थी
िक िह धि-दौलत को कुछ िहीं समझती। उसकी दिष की पिििता और
चेहरे की गमभीरता साफ बता रही है िक िह िेिया िही है िो अपिी
अदाओं को बेचती है । िफर पूछा – कोहिूर लोगी ?
ियामा – िह हुिूर के ताि मे अिधक सुशोिभत है ।
महाराि िे आियफ मे पडकर कहा-तुम खुद मॉग
ँ ो।
ियामा िमलेगा - ?
रणिीत िसंह – हॉँ
ियामा – मुझे इनसाफ के खूि का बदला िदया िाय।

65
महाराि रणिीतिसंह चौक पडे । िनृदा की तरफ िफर गौर से दे खा और
सोचिे लगे, इसका कया मतलब है । इनसाफ तो खूि का पयासा िहीं होता,
यह औरत िरर िकसी िािलम रईस या रािा की सताई हुई है । कया अिब
है िक उसका पित कहीं का रािा हो। िरर ऐसा ही है । उसे िकसी िे कतल
कर िदया है । इनसाफ को खूि की पयास इसी हालत मे होती है  इसी िक
इनसाफ खूख
ं ार िाििर हो िाता है । मैिे िायदा िकया िक िह िो मॉग
ँ ेगी
िह दँग
ू ा। उसिे एक बेशकीमती चीि मॉग
ँ ी है , इनसाफ के खूँि का बदला।
िह उसे िमलिा चािहए। मगर िकसका खूि ? रािा िे िफर पहलू बदलकर
सोचा-िकसका खूि ? यह सिाल मेरे िदल मे पैदा ि होिा चािहए। इनसाफ
ििसका ििसका खूंि मॉग
ँ े उसका खूि मुझे दे िा चािहए। इनसाफ के सामिे
सबका खूि बराबर है । मगर इनसाफ को खूि पािे का हक है , इसका फैसला
कौि करे गा ? बैर के बुखार से भरे हुए आदमी के हाथ मे इसका फैसला
िहीं होिा चािहए। अकसर एक कडी बात एक िदल िला दे िे िाला तािा
इनसाफ के िदल मे खूि की पयास पैदा कर दे ता है । इस िदल िलादे िे िाले
तािे की आग उस िक् तक िहीं बुझती िब तक उस पर खूि के छीटे ि
िदये िाऍ।ं मैिे िबाि दे दी है तो गलती हुई । पूरी बात सुिे बगैर, मुझे
इनसाफ के खूि का बदला दे िे का िादा हरिगि ि करिा चािहए था। इि
ििचारो िे रािा को कई िमिट तक अपिे मे खोया हुआ रकखा। आिखर िह
बोला-ियामा, तुम कौि हो ?
िनृदा – एक अिाथ औरत।
रािा- तुमहारा घर कहॉँ है ?
िनृदा – माहिगर मे ।
रणिीतिसंह िे िनृदा को िफर गौर से दे खा। कई महीिे पहले रात के
समय माहिगर मे एक भोली-भाली औरत की िो तसिीर िदल मे िखंची थी
िह इस औरत से बहुत कुछ िमलती-िुलती थी। उस िक आंखे इतिी
बेधडक ि थीं। उस िक ऑख
ं ो मे शम फ का पािी था, अब शोखी की झलक
है । तब सचचा मोती था, अब झूठा हो गया।
महाराि बोले – ियामा, इनसाफ िकसका खूि चाहता है .?
िनृदा – ििसे आप दोषी ठहराये । ििस िदि हुिरू िे रात को
माहिगर मे पडाि िकया था उसी रात को आपके िसपाही मुझे िबरदसती
खींचकर पडाि पर लाये ओर मुझे इस कािबल िहीं रकखा िक लौटकर अपिे
66
घर िा सकूँ। मुझे उिकी िापाक ििगाहो का ििशािा बििा पडा। उिकी
बेबाक ििािो िे उिके शमि
फ ाक इशारो िे मेरी इजित खाक मे िमला दी।
आप िहॉँ मौिूद थे और आपकी बेकस रै यत पर यह िुलम िकया िा रहा
था। कौि मुििरम है ? इनसाफ िकसका खूि चाहता है ? इसका फैसला आप
करे ।
रणिीतिसंह िमीि पर आंखे गडाये सुिते रहे । िनृदा िे िरा दम
लेकर िफर कहिा शुर िकया-मै ििधिा सी हूँ। मेरी इजित और आबर के
रखिाले आप है । पित-िियोग के साढे तीि साल मैिे तपिसििी बिकर काटे
थे। मगर आपके आदिमयो िे मेरी तपसया धूल मे िमला दी। मै इस योगय
िहीं रही िक लौटकर अपिे घर िा सकूँ। अपिे बचचो के िलए मेरी गोद अब
िहीं खुलती। अपिे बूढे बाप के सामिे मेरी गदफ ि िहीं उठती। मै अब अपिे
गॉि
ँ की औरतो से आंखे चुराती हूँ। मेरी इजित लुट गई। औरत की इजित
िकतिी कीमती चीि है , इसे कौि िहीं िािता ? एक औरत की इजित के
पीछे लंका का शािदार राजय िमट गया। एक ही औरत की इजित के िलए
कौरि िंश का िाश हो गया। औरतो की इजित के िलए हमेशा खूि की
ििदयां बही है और राजय उलट गये है । मेरी इजित आपके आदिमयो िे ली
है , इसका िबाबदे ह कौि है । इनसाफ िकसका खूि चाहता है , इसका फैसला
आप करे ।
िनृदा का चेहरा लाल हो गया। महारािा रणिीत िसंह एक गँिार
दे हाती औरत का यह हौसला, यह खयाल और िोशीली बात सुिकर सकते मे
आ गये। कांच का टु कडा टू टकर तेि धारािाला छुरा हो िाता है िहीं
कैिफयत इनसाि के टू टे हुए िदल की है ।
आिखर महाराि िे ठं िी सॉस
ँ ली और हसरतभरे लहिे मे बोले-ियामा,
इं साफ ििसका खूि चाहता है , िह मै हूँ।
इतिा कहिे के साथ महाराि रणिीतिसंह का चेहरा भभक उठा और
िदल बेकाबू हो गया। ततकाल भाििाओं के िशे मे आदमी का िदल
आसमाि की बुलंिदयो तक िा पहुंचता है । कांटे के चुभिे से कराहिेिाला
इनसाि इसी िशे मे मसत होकर खंिर की िोक कलेिे मे चुभो लेता है ।
पिी की बौछार से िरिेिाला इनसाि गले-गले पािी मे अकडता हुआ चला
िाता है । इस हालत मे इनसाि का िदल एक साधारण शिक और असीम
उतसाह अिुभि करिे लगता है । इसी हालात मे इनसाि छोटे -से-छोटे िलील
67
से िलील काम करता है और इसी हालात मे इनसाि अपिे िचि और कमफ
की ऊंचाई से दे िताओं को भी लिजित कर दे ता है । महारािा रणिीतिसंह
अिदगि होकर उठ खडे हुए और ऊंची आिाि मे बोले-ियामा, इनसाफ ििसका
खूि चाहता है , िह मै हूँ  तुमहारे साथ िो िुलम हुआ है उसका िबाबदे ह मै
हूँ। बुिुगो िे कहा है िक ईशर के सामिे रािा अपिे िौकरो की सखती और
िबरदसती का ििममेदार होता है ।
यह कहकर रािा िे तेिी के साथ अचकि के बनद खोल िदये और
िनृदा के सामिे घुटिो के बल, सीिा फैलाकर बैठते हुए बोले – ियामा,
तुमहारे पहलू मे तलिार िछपी हुई है । िह ििकमािदतय की तलिार है । उसिे
िकतिी ही बार नयाय की रका की है । आि एक अभागे रािा के खूि से
उसकी पयास बुझा दो बेशक िह रािा अभागा है ििसके राजय मे अिाथो
पर अतयाचार होता है ।
िनृदा के िदल मे अब एक िबरदसत तबदीली पैदा हुई , बदले की
भाििा िे पेम और आदर को िगह दी। रणिीतिसंह िे अपिी ििममेदारी
माि ली, िह उसके सामिे मुििरम की है िसयत मे इनसाफ की तलिार का
ििशािा बििे के िलए खडे है , उिकी िाि अब उसकी मुटठी मे है । उनहे
मारिा या ििलािा अब उसका अिखतयार है ।
यह खयाल उसकी बदले की भाििा को ठं िा कर दे िे के िलए काफी
थे। पताप ओर ऐशय फ िब अपिे सिणफ-िसंहासि से उतरकर दया की याचिा
करिे लगता है तो कौि ऐसा हदय है िो पसीि ि िाएगा ? िनृदा िे िदल
पर सब करके पहलू से खंिर ििकाला मगर िार ि कर सकीं। तलिार उसके
हाथ से छूटकर िगर पडी।
महाराि रणिीतिसंह समझ गये िक औरत की िहममत दगा दे गई ।
िह बडी तेिी से लपके और तेगे को हाथ मे उठा िलया। यकायक दािहिा
हाथ पागलो िैसे िोश के साथ ऊपर को उठा। िह एक बार िोर से बोले
‘िाह गुरकी िय’ और करीब था िक तलिार सीिे मे िू ब िाय, िबिली
कौधकर बादल के सीिे मे घुसिे ही िाली थी िक िनृदा एक चीख मारकर
उठी और रािा के ऊपर उठे हुए हाथ को अपिे दोिो हाथो से मिबूत पकड
िलया। रणिीतिसंह िे झटका दे कर हाथ छुडािा चाहा मगर कमिोर औरत
िे उिके हाथ को इस तरह िकडा था िक िैसे मुहबबत िदल को िकड लेती
है । बेबस होकर बोले-ियामा, इनसाफ को अपिी पयास बुझािे दो।
68
ियामा िे कहा-महाराि उसकी पयास बुझ गई। यह तलिार इसकी
गिाह है ।
महाराि िे तेगे को दे खा। इस िक उसमे दि
ू के चॉद
ँ की चमक थी।
सतय और नयाय के चमकते हुए सूरि िे उस चॉद
ँ को अलोिकत कर िदया
था।
-िमािा, फरिरी १९११

69
आिखर ी म ं ििल

आ ह ? आि तीि साल गुिर गए, यही मकाि है , यही बाग है , यही


गंगा का िकिारा, यही संगमरमर का हौि। यही मै हूँ और यही
दरोदीिार। मगर इि चीिो से िदल पर कोई असर िहीं होता। िह िशा िो
गंगा की सुहािी और हिा के िदलकश झौको से िदल पर छा िाता था। उस
िशे के िलए अब िी तरस-िरस के रह िाता है । अब िह िदल िही रहा।
िह युिती िो ििंदगी का सहारा थी अब इस दिुिया मे िहीं है ।
मोिहिी िे बडा आकषक
फ रप पाया था। उसके सौदय फ मे एक
आियि
फ िक बात थी। उसे पयार करिा मुििकल था, िह पूििे के योगय थी।
उसके चेहरे पर हमेशा एक बडी लुभाििी आितमकता की दीिप रहती थी।
उसकी आंखे िििमे लाि और गंभीरता और पिििता का िशा था, पेम का
सोत थी। उसकी एक-एक िचतिि, एक-एक िकया एक-एक बात उसके हदय
की पिििता और सचचाई का असर िदल पर पैदा करती थी। िब िह अपिी
शमीली आंखो से मेरी ओर ताकती तो उसका आकषण
फ और असकी गमी मेरे
िदल मे एक जिारभाटा सा पैदा कर दे ती थी। उसकी आंखो से आितमक
भािो की िकरिे ििकलती थीं मगर उसके होठो पेम की बािी से अपिरिचत
थे। उसिे कभी इशारे से भी उस अथाह पेम को वयक िहीं िकया ििसकी
लहरो मे िह खुद ितिके की तरह बही िाती थी। उसके पेम की कोई सीमा
ि थी। िह पेम ििसका लकय िमलि है , पेम िहीं िासिा है । मोिहिी का
पेम िह पेम था िो िमलिे मे भी िियोग के मिे लेता है । मुझे खूब याद है
एक बार िब उसी हौि के िकिारे चॉद
ँ िी रात मे मेरी पेम – भरी बातो से
ििभोर होकर उसिे कहा था-आह  िह आिाि अभी मेरे हदय पर अंिकत है ,
‘िमलि पेम का आिद है अंत िहीं।’ पेम की समसया पर इससे जयादा
शिदार, इससे जयादा ऊंचा खयाल कभी मेरी ििर मे िहीं गुिरा। िह पेम
िो िचताििो से पैदा होता है और िियोग मे भी हरा-भरा रहता है , िह
िासिा के एक झोके को भी बदािफत िहीं कर सकता। संभि है िक यह मेरी
आतमसतुित हो मगर िह पेम, िो मेरी कमिोिरयो के बाििूद मोिहिी को
मुझसे था उसका एक कतरा भी मुझे बेसुध करिे के िलए काफी था। मेरा
हदय इतिा ििशाल ही ि था, मुझे आिय फ होता था िक मुझमे िह कौि-सा
70
गुण था ििसिे मोिहिी को मेरे पित पेम से ििहल कर िदया था। सौनदयफ,
आचरण की पिििता, मदाि
फ गी का िौहर यही िह गुण है ििि पर मुहबबत
ििछािर होती है । मगर मै इिमे से एक पर भी गि फ िहीं कर सकता था।
शायद मेरी कमिोिरयॉँ ही उस पेम की तडप का कारण थीं।
मोिहिी मे िह अदाये ि थीं ििि पर रं गीली तबीयते िफदा हो िाया
करती है । ितरछी िचतिि, रप-गि फ की मसती भरी हुई आंखे, िदल को मोह
लेिे िाली मुसकराहट, चंचल िाणी, उिमे से कोई चीि यहॉँ ि थी! मगर ििस
तरह चॉद
ँ की मििम सुहािी रोशिी मे कभी-कभी फुहारे पडिे लगती है , उसी
तरह िििछल पेम मे उसके चेहरे पर एक मुसकराहट कौध िाती और आंखे
िम हो िातीं। यह अदा ि थी, सचचे भािो की तसिीर थी िो मेरे हदय मे
पििि पेम की खलबली पैदा कर दे ती थी।

शा म का िक था, िदि और रात गले िमल रहे थे। आसमाि पर


मतिाली घटाये छाई हुई थीं और मै मोिहिी के साथ उसी हौि के
िकिारे बैठा हुआ था। ठणिी-ठणिी बयार और मसत घटाये हदय के िकसी
कोिे मे सोते हुए पेम के भाि को िगा िदया करती है । िह मतिालापि िो
उस िक हमारे िदलो पर छाया हुआ था उस पर मै हिारो होशमंिदयो को
कुबाि
फ कर सकता हूँ। ऐसा मालूम होता था िक उस मसती के आलम मे
हमारे िदल बेताब होकर आंखो से टपक पडे गे। आि मोिहिी की िबाि भी
संयम की बेिडयो से मुक हो गई थी और उसकी पेम मे िू बी हुई बातो से
मेरी आतमा को िीिि िमल रहा था।
एकाएक मोिहिी िे चौककर गंगा की तरफ दे खा। हमारे िदलो की
तरह उस िक गंगा भी उमडी हुई थी।
पािी की उस उिदगि उठती-िगरती सतह पर एक िदया बहता हुआ
चला िाता था और और उसका चमकता हुआ अकस िथरकता और िाचता
एक पुचछल तारे की तरह पािी को आलोिकत कर रहा था। आह! उस िनही-
सी िाि की कया िबसात थी! कागि के चंद पुिे, बांस की चंद तीिलयां,
िमटटी का एक िदया िक िैसे िकसी की अतप
ृ लालसाओं की समािध थी
ििस पर िकसी दख
ु बँटािेिाले िे तरस खाकर एक िदया िला िदया था

71
मगर िह िनहीं-सी िाि ििसके अिसतति का कोई िठकािा ि था, उस
अथाह सागर मे उछलती हुई लहरो से टकराती, भँिरो से िहलकोरे खाती, शोर
करती हुई लहरो को रौदती चली िाती थी। शायद िल दे िियो िे उसकी
ििबल
फ ता पर तरस खाकर उसे अपिे आंचलो मे छुपा िलया था।
िब तक िह िदया िझलिमलाता और िटमिटमाता, हमददफ लहरो से
झकोरे लेता िदखाई िदया। मोिहिी टकटकी लगाये खोयी-सी उसकी तरफ
ताकती रही। िब िह आंख से ओझल हो गया तो िह बेचैिी से उठ खडी
हुई और बोली- मै िकिारे पर िाकर उस िदये को दे खग
ूँ ी।
ििस तरह हलिाई की मिभािि पुकार सुिकर बचचा घर से बाहर
ििकल पडता है और चाि-भरी आंखो से दे खता और अधीर आिािो से
पुकारता उस िेमत के थाल की तरफ दौडता है , उसी िोश और चाि के साथ
मोिहिी िदी के िकिारे चली।
बाग से िदी तक सीिियॉँ बिी हुई थीं। हम दोिो तेिी के साथ िीचे
उतरे और िकिारे पहुँचते ही मोिहिी िे खुशी के मारे उछलकर िोर से कहा-
अभी है ! अभी है ! दे खो िह ििकल गया!
िह बचचो का-सा उतसाह और उिदगि अधीरता िो मोिहिी के चेहरे
पर उस समय थी, मुझे कभी ि भूलेगी। मेरे िदल मे सिाल पैदा हुआ, उस
िदये से ऐसा हािदफ क संबंध, ऐसी ििहलता कयो? मुझ िैसा किितिशूनय वयिक
उस पहे ली को िरा भी ि बूझ सका।
मेरे हदय मे आशंकाएं पैदा हुई। अंधेरी रात है , घटाये उमडी हुई, िदी
बाि पर, हिा तेि, यहॉँ इस िक ठहरिा ठीक िहीं। मगर मोिहिी! िह चाि-
भरे भोलेपि की तसिीर, उसी िदये की तरफ आँखे लगाये चुपचाप खडी थी
और िह उदास िदया जयो िहलता मचलता चला िाता था, ि िािे कहॉँ िकस
दे श!
मगर थोडी दे र के बाद िह िदया आँखो से ओझल हो गया। मोिहिी िे
ििराश सिर मे पूछा-गया! बुझ गया होगा?
और इसके पहले िक मै ििाब दँ ू िह उस िोगी के पास चली गई,
ििस पर बैठकर हम कभी-कभी िदी की सैरे िकया करते थे, और पयार से
मेरे गले िलपटकर बोली-मै उस िदये को दे खिे िाऊँगी िक िह कहॉँ िा रहा
है , िकस दे श को।

72
यह कहते-कहते मोिहिी िे िाि की रससी खोल ली। ििस तरह पेडो
की िािलयॉँ तूफाि के झोको से झंकोले खाती है उसी तरह यह िोगी
िॉि
ँ ािोल हो रही थी। िदी का िह िराििा ििसतार, लहरो की िह भयािक
छलॉग
ँ े, पािी की िह गरिती हुई आिाि, इस खौफिाक अंधेरे मे इस िोगी
का बेडा कयोकर पार होगा! मेरा िदल बैठ गया। कया उस अभागे की तलाश
मे यह िकिती भी िू बेगी! मगर मोिहिी का िदल उस िक उसके बस मे ि
था। उसी िदये की तरह उसका हदय भी भाििाओं की ििराट, लहरो भरी,
गरिती हुई िदी मे बहा िा रहा था। मतिाली घटाये झुकती चली आती थीं
िक िैसे िदी के गले िमलेगी और िह काली िदी यो उठती थी िक िैसे
बदलो को छू लेगी। िर के मारे आँखे मुंदी िाती थीं। हम तेिी के साथ
उछलते, कगारो के िगरिे की आिािे सुिते, काले-काले पेडो का झूमिा दे खते
चले िाते थे। आबादी पीछे छूट गई, दे िताओं को बसती से भी आगे ििकल
गये। एकाएक मोिहिी चौककर उठ खडी हुई और बोली- अभी है ! अभी है !
दे खो िह िा रहा है ।
मैिे आंख उठाकर दे खा, िह िदया जयो का तयो िहलता-मचलता चला
िाता था।



स िदये को दे खते हम बहुत दरू ििकल गए। मोिहिी िे यह राग
अलापिा शुर िकया:
मै सािि से िमलि चली

कैसा तडपा दे िे िाला गीत था और कैसी ददफ भरी रसीली आिाि। पेम
और आंसुओं मे िू बी हुई। मोहक गीत मे कलपिाओं को िगािे की बडी
शिक होती है । िह मिुषय को भौितक संसार से उठाकर कलपिालोक मे
पहुँचा दे ता है । मेरे मि की आंखो मे उस िक िदी की पुरशोर लहरे , िदी
िकिारे की झूमती हुई िािलयॉँ, सिसिाती हुई हिा सबिे िैसे रप धर िलया
था और सब की सब तेिी से कदम उठाये चली िाती थीं , अपिे सािि से
िमलिे के िलए। उतकंठा और पेम से झूमती हुई ऐ युिती की धुंधली सपिे-
िैसी तसिीर हिा मे, लहरो मे और पेडो के झुरमुट मे चली िाती िदखाई
दे ती और कहती थी- सािि से िमलिे के िलए! इस गीत िे सारे दिय पर
उतकंठा का िाद ू फूंक िदया।

73
मै सािि से िमलि चली
सािि बसत कौि सी िगरी मै बौरी िा िािूँ
िा मोहे आस िमलि की उससे ऐसी पीत भली
मै सािि से िमलि चली
मोिहिी खामोश हुई तो चारो तरफ सनिाटा छाया हुआ था और उस
सनिाटे मे एक बहुत मििम, रसीला सििपिल-सिर िकिति के उस पार से या
िदी के िीचे से या हिा के झोको के साथ आता हुआ मि के कािो को
सुिाई दे ता था।
मै सािि से िमलि चली
मै इस गीत से इतिा पभािित हुआ िक िरा दे र के िलए मुझे खयाल
ि रहा िक कहॉँ हूँ और कहॉँ िा रहा हूँ। िदल और िदमाग मे िही राग गूि

रहा था। अचािक मोिहिी िे कहा-उस िदये को दे खो। मैिे िदये की तरफ
दे खा। उसकी रोशिी मंद हो गई थी और आयु की पूि
ं ी खतम हो चली थी।
आिखर िह एक बार िरा भभका और बुझ गया। ििस तरह पािी की बूँद
िदी मे िगरकर गायब हो िाती है , उसी तरह अंधेरे के फैलाि मे उस िदये
की हसती गायब हो गई ! मोिहिी िे धीमे से कहा, अब िहीं िदखाई दे ता! बुझ
गया! यह कहकर उसिे एक ठणिी सांस ली। ददफ उमड आया। आँसुओं से
गला फंस गया, िबाि से िसफफ इतिा ििकला, कया यही उसकी आिखरी
मंििल थी? और आँखो से आँसू िगरिे लगे।
मेरी आँखो के सामिे से पदाफ-सा हट गया। मोिहिी की बेचैिी और
उतकंठा, अधीरता और उदासी का रहसय समझ मे आ गया और बरबस मेरी
आंखो से भी आँसू की चंद बूंदे टपक पडीं। कया उस शोर-भरे , खतरिाक,
तूफािी सफर की यही आिखरी मंििल थी?
दस
ू रे िदि मोिहिी उठी तो उसका चेहरा पीला था। उसे रात भर िींद
िहीं आई थी। िह किि सिभाि की सी थी। रात की इस घटिा िे उसके
ददफ -भरे भािुक हदय पर बहुत असर पैदा िकया था। हँ सी उसके होठो पर यूँ
ही बहुत कम आती थी, हॉँ चेहरा िखला रहता थां आि से िह हँ समुखपि भी
िबदा हो गया, हरदम चेहरे पर एक उदासी-सी छायी रहती और बाते ऐसी
िििसे हदय छलिी होता था और रोिा आता था। मै उसके िदल को इि
खयालो से दरू रखिे के िलए कई बार हँ सािे िाले िकससे लाया मगर उसिे
उनहे खोलकर भी ि दे खा। हॉँ, िब मै घर पर ि होता तो िह किि की
74
रचिाएं दे खा करती मगर इसिलए िहीं िक उिके पििे से कोई आिनद
िमलता था बिलक इसिलए िक उसे रोिे के िलए खयाल िमल िाता था और
िह कििताएँ िो उस िमािे मे उसिे िलखीं िदल को िपघला दे िे िाले ददफ -
भरे गीत है । कौि ऐसा वयिक है िो उनहे पिकर अपिे आँसू रोक लेगा। िह
कभी-कभी अपिी कििताएँ मुझे सुिाती और िब मै ददफ मे िू बकर उिकी
पशंसा करता तो मुझे उसकी ऑख
ं ो मे आतमा के उललास का िशा िदखाई
पडता। हँ सी-िदललगी और रं गीिी मुमिकि है कुछ लोगो के िदलो पर असर
पैदा कर सके मगर िह कौि-सा िदल है िो ददफ के भािो से िपघल ि
िाएगा।
एक रोि हम दोिो इसी बाग की सैर कर रहे थे। शाम का िक था
और चैत का महीिा। मोिहिी की तिबयत आि खुश थी। बहुत िदिो के बाद
आि उसके होठो पर मुसकराहट की झलक िदखाई दी थी। िब शाम हो गई
और पूरिमासी का चॉद
ँ गंगा की गोद से ििकलकर ऊपर उठा तो हम इसी
हौि के िकिारे बैठ गए। यह मौलिसिरयो की कतार ओर यह हौि मोिहिी
की यादगार है । चॉद
ँ िी मे िबसात आयी और चौपड होिे लगी। आि तिबयत
की तािगी िे उसके रप को चमका िदया था और उसकी मोहक चपलताये
मुझे मतिाला िकये दे ती थीं। मै कई बािियॉँ खेला और हर बार हारा। हारिे
मे िो मिा था िह िीतिे मे कहॉ।ँ हलकी-सी मसती मे िो मिा है िह
छकिे और मतिाला होिे मे िहीं।
चॉद
ँ िी खूब िछटकी हुई थी। एकाएक मोिहिी िे गंगा की तरफ दे खा
और मुझसे बोली, िह उस पार कैसी रोशिी ििर आ रही है ? मैिे भी ििगाह
दौडाई, िचता की आग िल रही थी लेिकि मैिे टालकर कहा- सॉझ
ँ ी खािा
पका रहे है ।
मोिहिी को ििशास िहीं हुआ। उसके चेहरे पर एक उदास मुसकराहट
िदखाई दी और आँखे िम हो गई। ऐसे दख
ु दे िे िाले दिय उसके भािुक
और ददफ मंद िदल पर िही असर करते थे िो लू की लपट फूलो के साथ
करती है ।
थोडी दे र तक िह मौि, िििला बैठी रही िफर शोकभरे सिर मे
बोली-‘अपिी आिखरी मंििल पर पहुँच गया!’
-िमािा, अगसत-िसतमबर १९११

75
आलहा

आ लहा का िाम िकसिे िहीं सुिा। पुरािे िमािे के चनदे ल रािपूतो


मे िीरता और िाि पर खेलकर सिामी की सेिा करिे के िलए
िकसी रािा महारािा को भी यह अमर कीितफ िहीं िमली। रािपूतो के िैितक
िियमो मे केिल िीरता ही िहीं थी बिलक अपिे सिामी और अपिे रािा के
िलए िाि दे िा भी उसका एक अंग था। आलहा और ऊदल की ििनदगी
इसकी सबसे अचछी िमसाल है । सचचा रािपूत कया होता था और उसे कया
होिा चािहये इसे िलस खूबसूरती से इि दोिो भाइयो िे िदखा िदया है ,
उसकी िमसाल िहनदोसताि के िकसी दस
ू रे िहससे मे मुििकल से िमल
सकेगी। आलहा और ऊदल के माके और उसको कारिामे एक चनदे ली किि
िे शायद उनहीं के िमािे मे गाये, और उसको इस सूबे मे िो लोकिपयता
पाप है िह शायद रामायण को भी ि हो। यह कििता आलहा ही के िाम से
पिसि है और आठ-िौ शतािबदयॉँ गुिर िािे के बाििूद उसकी िदलचसपी
और सििफपयता मे अनतर िहीं आया। आलहा गािे का इस पदे श मे बडा
िरिाि है । दे हात मे लोग हिारो की संखया मे आलहा सुििे के िलए िमा
होते है । शहरो मे भी कभी-कभी यह मणििलयॉँ िदखाई दे िाती है । बडे लोगो
की अपेका सिस
फ ाधारण मे यह िकससा अिधक लोकिपय है । िकसी मििलस
मे िाइए हिारो आदमी िमीि के फश फ पर बैठे हुए है , सारी महािफल िैसे
बेसुध हो रही है और आलहा गािे िाला िकसी मोिे पर बैठा हुआ आपिी
अलाप सुिा रहा है । उसकी आिि आिियकतािुसार कभी ऊँची हो िाती है
और कभी मििम, मगर िब िह िकसी लडाई और उसकी तैयािरयो का ििक
करिे लगता है तो शबदो का पिाह, उसके हाथो और भािो के इशारे , ढोल की
मदाि
फ ा लय उि पर िीरतापूण फ शबदो का चुसती से बैठिा, िो िडाई की
कििताओं ही की अपिी एक ििशेषता है , यह सब चीिे िमलकर सुििे िालो
के िदलो मे मदाि
फ ा िोश की एक उमंग सी पैदा कर दे ती है । बयाि करिे
का ति फ ऐसा सादा और िदलचसप और िबाि ऐसी आमफहम है िक उसके
समझिे मे िरा भी िदककत िहीं होती। िणि
फ और भािो की सादगी, कला
के सौदयफ का पाण है ।

76
रािा परमालदे ि चनदे ल खािदाि का आिखरी रािा था। तेरहिीं
शाताबदी के आरमभ मे िह खािदाि समाप हो गया। महोबा िो एक मामूली
कसबा है उस िमािे मे चनदे लो की रािधािी था। महोबा की सलतित
िदलली और कनिौि से आंखे िमलाती थी। आलहा और ऊदल इसी रािा
परमालदे ि के दरबार के सममिित सदसय थे। यह दोिो भाई अभी बचचे ही
थे िक उिका बाप िसराि एक लडाई मे मारा गया। रािा को अिाथो पर
तरस आया, उनहे रािमहल मे ले आये और मोहबबत के साथ अपिी रािी
मिलिहा के सुपुदफ कर िदया। रािी िे उि दोिो भाइयो की परििरश और
लालि-पालि अपिे लडके की तरह िकया। ििाि होकर यही दोिो भाई
बहादरुी मे सारी दिुिया मे मशहूर हुए। इनहीं िदलािरो के कारिामो िे महोबे
का िाम रोशि कर िदया है ।

बडे लिइया महोबेिाला


िििके बल को िार ि पार

आलहा और ऊदल रािा परमालदे ि पर िाि कुबाि


फ करिे के िलए
हमेशा तैयार रहते थे। रािी मिलिहा िे उनहे पाला, उिकी शािदयां कीं, उनहे
गोद मे िखलाया। िमक के हक के साथ-साथ इि एहसािो और समबनधो िे
दोिो भाइयो को चनदे ल रािा का िॉिँिसार रखिाला और रािा परमालदे ि
का िफादार सेिक बिा िदया था। उिकी िीरता के कारण आस-पास के
सैकिो घमंिी रािा चनदे लो के अधीि हो गये। महोबा राजय की सीमाएँ िदी
की बाि की तरह फैलिे लगीं और चनदे लो की शिक दि
ू के चॉद
ँ से बिकर
पूरिमासी का चॉद
ँ हो गई। यह दोिो िीर कभी चैि से ि बैठते थे। रणकेि
मे अपिे हाथ का िौहर िदखािे की उनहे धुि थी। सुख -सेि पर उनहे िींद ि
आती थी। और िह िमािा भी ऐसा ही बेचैिियो से भरा हुआ था। उस
िमािे मे चैि से बैठिा दिुिया के परदे से िमट िािा था। बात-बात पर
तलिांरे चलतीं और खूि की ििदयॉँ बहती थीं। यहॉँ तक िक शािदयाँ भी
खूिी लडाइयो िैसी हो गई थीं। लडकी पैदा हुई और शामत आ गई। हिारो
िसपािहयो, सरदारो और समबिनधयो की िािे दहे ि मे दे िी पडती थीं। आलहा
और ऊदल उस पुरशोर िमािे की यचची तसिीरे है और गोिक ऐसी हालतो
ओर िमािे के साथ िो िैितक दब
ु ल
फ ताएँ और ििषमताएँ पाई िाती है , उिके

77
असर से िह भी बचे हुए िहीं है , मगर उिकी दब
ु ल
फ ताएँ उिका कसूर िहीं
बिलक उिके िमािे का कसूर है ।


कॉट
लहा का मामा मािहल एक काले िदल का, मि मे दे ष पालिे िाला
आदमी था। इि दोिो भाइयो का पताप और ऐशयफ उसके हदय मे
ँ े की तरह खटका करता था। उसकी ििनदगी की सबसे बडी आरिू यह
थी िक उिके बडपपि को िकसी तरह खाक मे िमला दे । इसी िेक काम के
िलए उसिे अपिी ििनदगी नयौछािर कर दी थी। सैकडो िार िकये , सैकडो
बार आग लगायी, यहॉँ तक िक आिखरकार उसकी िशा पैदा करिेिाली
मंिणाओं िे रािा परमाल को मतिाला कर िदया। लोहा भी पािी से कट
िाता है ।
एक रोि रािा परमाल दरबार मे अकेले बैठे हुए थे िक मािहल आया।
रािा िे उसे उदास दे खकर पूछा, भइया, तुमहारा चेहरा कुछ उतरा हुआ है ।
मािहल की आँखो मे आँसू आ गये। मककार आदमी को अपिी भाििाओं पर
िो अिधकार होता है िह िकसी बडे योगी के िलए भी किठि है । उसका िदल
रोता है मगर होठ हँ सते है , िदल खुिशयो के मिे लेता है मगर आँखे रोती है ,
िदल िाह की आग से िलता है मगर िबाि से शहद और शककर की
ििदयॉँ बहती है ।
मािहल बोला-महाराि, आपकी छाया मे रहकर मुझे दिुिया मे अब
िकसी चीि की इचछा बाकी िहीं मगर ििि लोगो को आपिे धूल से उठाकर
आसमाि पर पहुँचा िदया और िो आपकी कृ पा से आि बडे पताप और
ऐशयि
फ ाले बि गये, उिकी कृ तघता और उपदि खडे करिा मेरे िलए बडे द ु:ख
का कारण हो रही है ।
परमाल िे आियफ से पूछा- कया मेरा िमक खािेिालो मे ऐसे भी लोग
है ?
मािहल- महाराि, मै कुछ िहीं कह सकता। आपका हदय कृ पा का
सागर है मगर उसमे एक खूंखार घिडयाल आ घुसा है ।
-िह कौि है ?
-मै।

78
रािा िे आियािफनित होकर कहा-तुम!
मिहल- हॉँ महाराि, िह अभागा वयिक मै ही हूँ। मै आि खुद अपिी
फिरयाद लेकर आपकी सेिा मे उपिसथत हुआ हूँ। अपिे समबिनधयो के पित
मेरा िो कतवफय है िह उस भिक की तुलिा मे कुछ भी िहीं िो मुझे आपके
पित है । आलहा मेरे ििगर का टु कडा है । उसका मांस मेरा मांस और उसका
रक मेरा रक है । मगर अपिे शरीर मे िो रोग पैदा हो िाता है उसे िििश
होकर हकीम से कहिा पडता है । आलहा अपिी दौलत के िशे मे चूर हो रहा
है । उसके िदल मे यह झूठा खयाल पैदा हो गया है िक मेरे ही बाहु-बल से
यह राजय कायम है ।
रािा परमाल की आंखे लाल हो गयीं, बोला-आलहा को मैिे हमेशा
अपिा लडका समझा है ।
मािहल- लडके से जयादा।
परमाल- िह अिाथ था, कोई उसका संरकक ि था। मैिे उसका पालि-
पोषण िकया, उसे गोद मे िखलाया। मैिे उसे िागीरे दीं, उसे अपिी फौि का
िसपहसालार बिाया। उसकी शादी मे मैिे बीस हिार चनदे ल सूरमाओं का
खूि बहा िदया। उसकी मॉँ और मेरी मिलिहा िषो गले िमलकर सोई है और
आलहा कया मेरे एहसािो को भूल सकता है ? मािहल, मुझे तुमहारी बात पर
ििशास िहीं आता।
मािहल का चेहरा पीला पड गया। मगर समहलकर बोला- महाराि, मेरी
िबाि से कभी झूठ बात िहीं ििकली।
परमाह- मुझे कैसे ििशास हो?
मिहल िे धीरे से रािा के काि मे कुछ कह िदया।

आ लहा और ऊदल दोिो चौगाि के खेल का अभयास कर रहे थे।


लमबे-चौडे मैदाि मे हिारो आदमी इस तमाशे को दे ख रहे थे।
गेद िकसी अभागे की तरह इधर-उधर ठोकरे खाता िफरता था। चोबदार िे
आकर कहा-महाराि िे याद फरमाया है ।

79
आलहा को सनदे ह हुआ। महाराि िे आि बेिक कयो याद िकया? खेल बनद
हो गया। गेद को ठोकरो से छुटटी िमली। फौरि दरबार मे चौबदार के साथ
हाििर हुआ और झुककर आदाब बिा लाया।
परमाल िे कहा- मै तुमसे कुछ मॉग
ँ ूँ? दोगे?
आलहा िे सादगी से ििाब िदया-फरमाइए।
परमाल-इिकार तो ि करोगे?
आलहा िे कििखयो से मािहल की तरफ दे खा समझ गया िक इस
िक कुछ ि कुछ दाल मे काला है । इसके चेहरे पर यह मुसकराहट कयो?
गूलर मे यह फूल कयो लगे? कया मेरी िफादारी का इमतहाि िलया िा रहा
है ? िोश से बोला-महाराि, मै आपकी िबाि से ऐसे सिाल सुििे का आदी
िहीं हूँ। आप मेरे संरकक, मेरे पालिहार, मेरे रािा है । आपकी भँिो के इशारे
पर मै आग मे कूद सकता हूँ और मौत से लड सकता हूँ। आपकी आजा
पाकर मे असमभि को समभि बिा सकता हूँ आप मुझसे ऐसे सिाल ि
करे ।
परमाल- शाबाश, मुझे तुमसे ऐसी ही उममीद है ।
आलहा-मुझे कया हुकम िमलता है ?
परमाल- तुमहारे पास िाहर घोडा है ?
आलहा िे ‘िी हॉ’ँ कहकर मािहल की तरफ भयािक गुससे भरी हुई
आँखो से दे खा।
परमाल- अगर तुमहे बुरा ि लगे तो उसे मेरी सिारी के िलए दे दो।
आलहा कुछ ििाब ि दे सका, सोचिे लगा, मैिे अभी िादा िकया है
िक इिकार ि करँगा। मैिे बात हारी है । मुझे इिकार ि करिा चािहए।
िििय ही इस िक मेरी सिािमभिक की परीका ली िा रही है । मेरा इिकार
इस समय बहुत बेमौका और खतरिाक है । इसका तो कुछ गम िहीं। मगर
मै इिकार िकस मुँह से करँ, बेिफा ि कहलाऊँगा? मेरा और रािा का
समबनध केिल सिामी और सेिक का ही िहीं है , मै उिकी गोद मे खेला हूँ।
िब मेरे हाथ कमिोर थे, और पॉि
ँ मे खडे होिे का बूता ि था, तब उनहोिे
मेरे िुलम सहे है , कया मै इिकार कर सकता हूँ?
ििचारो की धारा मुडी- मािा िक रािा के एहसाि मुझ पर अििगिती
है मेरे शरीर का एक-एक रोआँ उिके एहसािो के बोझ से दबा हुआ है मगर
कििय कभी अपिी सिारी का घोडा दस
ू रे को िहीं दे ता। यह किियो का धमफ
80
िहीं। मै रािा का पाला हुआ और एहसािमनद हूँ। मुझे अपिे शरीर पर
अिधकार है । उसे मै रािा पर नयौछािर कर सकता हूँ। मगर रािपूती धमफ
पर मेरा कोई अिधकार िहीं है , उसे मै िहीं तोड सकता। ििि लोगो िे धमफ
के कचचे धागे को लोहे की दीिार समझा है , उनहीं से रािपूतो का िाम
चमक रहा है । कया मै हमेशा के िलए अपिे ऊपर दाग लगाऊँ? आह! मािहल
िे इस िक मुझे खूब िकड रखा है । सामिे खूंखार शेर है ; पीछे गहरी खाई।
या तो अपमाि उठाऊँ या कृ तघि कहलाऊँ। या तो रािपूतो के िाम को
िु बोऊँ या बबाद
फ हो िॉऊ
ँ । खैर, िो ईशर की मिी, मुझे कृ तघि कहलािा
सिीकार है , मगर अपमािित होिा सिीकार िहीं। बबाद
फ हो िािा मंिूर है ,
मगर रािपूतो के धमफ मे बटटा लगािा मंिूर िहीं।
आलहा सर िीचा िकये इनहीं खयालो मे गोते खा रहा था। यह उसके
िलए परीका की घडी थी ििसमे सफल हो िािे पर उसका भििषय ििभरफ
था।
मगर मािहला के िलए यह मौका उसके धीरि की कम परीका लेिे
िाला ि था।
िह िदि अब आ गया ििसके इनतिार मे कभी आँखे िहीं थकीं।
खुिशयो की यह बाि अब संयम की लोहे की दीिार को काटती िाती थी।
िसि योगी पर दब
ु ल
फ मिुषय की िििय होती िाती थी। एकाएक परमाल िे
आलहा से बुलनद आिाि मे पूछा- िकस दििधा मे हो? कया िहीं दे िा चाहते?
आलहा िे रािा से आंखे िमलाकर कहा-िी िहीं।
परमाल को तैश आ गया, कडककर बोला-कयो?
आलहा िे अििचल मि से उतर िदया-यह रािपूतो का धमफ िहीं है ।
परमाल-कया मेरे एहसािो का यही बदला है ? तुम िािते हो, पहले तुम
कया थे और अब कया हो?
आलहा-िी हॉँ, िािता हूँ।
परमाल- तुमहे मैिे बिाया है और मै ही िबगाड सकता हूँ।
आलहा से अब सब ि हो सका, उसकी आँखे लाल हो गयीं और
तयोिरयो पर बल पड गये। तेि लहिे मे बोला- महाराि, आपिे मेरे ऊपर िो
एहसाि िकए, उिका मै हमेशा कृ तज रहूँगा। कििय कभी एहसाि िहीं
भूलता। मगर आपिे मेरे ऊपर एहसाि िकए है , तो मैिे भी िो तोडकर
आपकी सेिा की है । िसफफ िौकरी और िामक का हक अदा करिे का भाि
81
मुझमे िह ििषा और गमी िहीं पैदा कर सकता ििसका मै बार-बार पिरचय
दे चुका हूँ। मगर खैर, अब मुझे ििशास हो गया िक इस दरबार मे मेरा
गुिर ि होगा। मेरा आिखरी सलाम कबूल हो और अपिी िादािी से मैिे िो
कुछ भूल की है िह माफ की िाए।
मािहल की ओर दे खकर उसिे कहा- मामा िी, आि से मेरे और आपके
बीच खूि का िरिता टू टता है । आप मेरे खूि के पयासे है तो मै भी आपकी
िाि का दिुमि हूँ।

आ लहा की मॉँ का िाम दे िल दे िी था। उसकी िगिती उि हौसले


िाली उचच ििचार िसयो मे है ििनहोिे िहनदोसताि के िपछले
कारिामो को इतिा सपह
ृ णीय बिा िदया है । उस अंधेरे युग मे भी िबिक
आपसी फूट और बैर की एक भयािक बाि मुलक मे आ पहुँची थी,
िहनदोसताि मे ऐसी ऐसी दे िियॉँ पैदा हुई िो इितहास के अंधेरे से अंधेरे
पनिो को भी जयोितत कर सकती है । दे िल दे िी से सुिा िक आलहा िे
अपिी आि को रखिे के िलए कया िकया तो उसकी आखो भर आए। उसिे
दोिो भाइयो को गले लगाकर कहा- बेटा ,तुमिे िही िकया िो रािपूतो का
धम फ था। मै बडी भागयशािलिी हूँ िक तुम िैसे दो बात की लाि रखिे िाले
बेटे पाये है ।
उसी रोि दोिो भाइयो महोबा से कूच कर िदया अपिे साथ अपिी
तलिार और घोडो के िसिा और कुछ ि िलया। माल –असबाब सब िहीं छोड
िदये िसपाही की दौलत और इजित सबक कुछ उसकी तलिार है । ििसके
पास िीरता की समपित है उसे दस
ू री िकसी समपित की िररत िहीं।
बरसात के िदि थे, िदी िाले उमडे हुए थे। इनद की उदारताओं से
मालामाल होकर िमीि फूली िहीं समाती थी । पेडो पर मोरो की रसीली
झिकारे सुिाई दे ती थीं और खेतो मे ििििनतता की शराब से मतिाल
िकसाि मलहार की तािे अलाप रहे थे । पहािडयो की घिी हिरयािल पािी
की दपि
फ –िैसी सतह और िगंली बेल बूटो के बिाि संिार से पकृ ित पर
एक यौिि बरस रहा था। मैदािो की ठं िी-ठिीं मसत हिा िंगली फूलो की
मीठी मीठी, सुहािी, आतमा को उललास दे िेिाली महक और खेतो की लहराती
हुई रं ग िबरं गी उपि िे िदलो मे आरिुओं का एक तूफाि उठा िदया था।

82
ऐसे मुबारक मौसम मे आलहा िे महोबा को आिखरी सलाम िकया । दोिो
भाइयो की आँखे रोते रोते लाल हो गयी थीं कयोिक आि उिसे उिका दे श
छूट रहा था । इनहीं गिलयो मे उनहोिे घुटिे के बल चलिा सीखा था, इनही
तालाबो मे कागि की िािे चलाई थीं, यही ििािी की बेिफिकयो के मिे लूटे
थे। इिसे अब हमेशा के िलए िाता टू टता था। दोिो भाई आगे बढते िाते
थे , मगर बहुत धीरे -धीरे । यह खयाल था िक शायद परमाल िे रठिेिालो
को मिािे के िलए अपिा कोई भरोसे का आदमी भेिा होगा। घोडो को
समहाले हुए थे, मगर िब महोबे की पहािडयो का आिखरी ििशाि ऑख
ं ो से
ओझल हो गया तो उममीद की आिखरी झलक भी गायब हो गयी। उनहोिे
िििका कोई दे श िथा एक ठं िी सांस ली और घोिे बढा िदये। उिके
िििास
फ ि का समाचार बहुत िलद चारो तरफ फैल गया। उिके िलए हर
दरबार मे िगह थीं, चारो तरफ से रािाओ के सदे श आिे लगे। कनिौि के
रािा ियचनद िे अपिे रािकुमार को उिसे िमलिे के िलए भेिा। संदेशो से
िो काम ि ििकला िह इस मुलाकात िे पूरा कर िदया। रािकुमार की
खाितदािरयाँ और आिभगत दोिो भाइयो को कनिौि खींच ले िई। ियचनद
आंखे िबछाये बैठा था। आलहा को अपिा सेिापित बिा िदया।

आ लहा और ऊदल के चले िािे के बाद महोबे मे तरह-तरह के अंधेर


शुर हुए। परमाल कमिी शासक था। मातहत रािाओं िे बगाित
का झणिा बुलनद िकया। ऐसी कोई ताकत ि रही िो उि झगडालू लोगो को
िश मे रख सके। िदलली के राि पथ
ृ िीराि की कुछ सेिा िसमता से एक
सफल लडाई लडकर िापस आ रही थी। महोबे मे पडाि िकया। अकखड
िसपािहयो मे तलिार चलते िकतिी दे र लगती है । चाहे रािा परमाल के
मुलािियो की जयादती हो चाहे चौहाि िसपािहयो की, तिीिा यह हुआ िक
चनदे लो और चौहािो मे अिबि हो गई। लडाई िछड गई। चौहाि संखया मे
कम थे। चंदेलो िे आितथय-सतकार के िियमो को एक िकिारे रखकर
चौहािो के खूि से अपिा कलेिा ठं िा िकया और यह ि समझे िक मुठठी
भर िसपािहयो के पीछे सारे दे श पर ििपित आ िाएगी। बेगुिाहो को खूि
रं ग लायेगा। पथ
ृ िीराि को यह िदल तोडिे िाली खबर िमली तो उसके गुससे

83
की कोई हद ि रही। ऑध
ं ी की तरह महोबे पर चि दौडा और िसरको, िो
इलाका महोबे का एक मशहूर कसबा था, तबाह करके महोबे की तरह बिा।
चनदे लो िे भी फौि खडी की। मगर पहले ही मुकािबले मे उिके हौसले पसत
हो गये। आलहा-ऊदल के बगैर फौि िबि दल
ू हे की बारात थी। सारी फौि
िततर-िबतर हो गयी। दे श मे तहलका मच गया। अब िकसी कण पथ
ृ िीराि
महोबे मे आ पहुँचेगा, इस िर से लोगो के हाथ-पॉि
ँ फूल गये। परमाल अपिे
िकये पर बहुत पछताया। मगर अब पछतािा वयथफ था। कोई चारा ि दे खकर
उसिे पथ
ृ िीराि से एक महीिे की सिनध की पाथि
फ ा की। चौहाि रािा युि
के िियमो को कभी हाथ से ि िािे दे ता था। उसकी िीरता उसे कमिोर,
बेखबर और िामुसतैद दिुमि पर िार करिे की इिाित ि दे ती थी। इस
मामले मे अगर िह इि िियमो को इतिी सखती से पाबनद ि होता तो
शहाबुदीि के हाथो उसे िह बुरा िदि ि दे खिा पडता। उसकी बहादरुी ही
उसकी िाि की गाहक हुई। उसिे परमाल का पैगाम मंिूर कर िलया।
चनदे लो की िाि मे िाि आई।
अब सलाह-मशििरा होिे लगा िक पथ
ृ िीराि से कयोकर मुकािबला
िकया िाये। रािी मिलिहा भी इस मशििरे मे शरीक थीं। िकसी िे कहा,
महोबे के चारो तरफ एक ऊँची दीिार बिायी िाय ; कोई बोला, हम लोग
महोबे को िीराि करके दिकखि को ओर चले। परमाल िबाि से तो कुछ ि
कहता था, मगर समपण
फ के िसिा उसे और कोई चारा ि िदखाई पडता था।
तब रािी मिलिहा खडी होकर बोली :
‘चनदे ल िंश के रािपूतो, तुम कैसी बचचो की-सी बाते करते हो? कया
दीिार खडी करके तुम दिुमि को रोक लोगे? झािू से कहीं ऑध
ं ी रकती है !
तुम महोबे को िीराि करके भागिे की सलाह दे ते हो। ऐसी कायरो िैसी
सलाह औरते िदया करती है । तुमहारी सारी बहादरुी और िाि पर खेलिा अब
कहॉँ गया? अभी बहुत िदि िहीं गुिरे िक चनदे लो के िाम से रािे थरात
फ े थे।
चनदे लो की धाक बंधी हुई थी, तुमिे कुछ ही सालो मे सैकडो मैदाि िीते,
तुमहे कभी हार िहीं हुई। तुमहारी तलिार की दमक कभी मनद िहीं हुई।
तुम अब भी िही हो, मगर तुममे अब िह पुरषाथ फ िहीं है । िह पुरषाथफ
बिाफल िंश के साथ महोबे से उठ गया। दे िल दे िी के रठिे से चिणिका
दे िी भी हमसे रठ गई। अब अगर कोई यह हारी हुई बािी समहाल सकता है
तो िह आलहा है । िही दोिो भाई इस िािुक िक मे तुमहे बचा सकते है ।
84
उनहीं को मिाओ, उनहीं को समझाओं, उि पर महोते के बहुत हक है । महोबे
की िमटटी और पािी से उिकी परििरश हुई है । िह महोबे के हक कभी भूल
िहीं सकते, उनहे ईशर िे बल और ििदा दी है , िही इस समय िििय का
बीडा उठा सकते है ।’
रािी मिलिहा की बाते लोगो के िदलो मे बैठ गयीं।

ि गिा भाट आलहा और ऊदल को कनिौि से लािे के िलए रिािा


हुआ। यह दोिो भाई रािकुँिर लाखि के साथ िशकार खेलिे िा रहे
थे िक िगिा िे पहुँचकर पणाम िकया। उसके चेहरे से परे शािी और िझझक
बरस रही थी। आलहा िे घबराकर पूछा—किीशर, यहॉँ कैसे भूल पडे ? महोबे
मे तो खैिरयत है ? हम गरीबो को कयोकर याद िकया?
िगिा की ऑख
ं ो मे ऑस
ं ू भर िाए, बोला—अगर खैिरयत होती तो
तुमहारी शरण मे कयो आता। मुसीबत पडिे पर ही दे िताओं की याद आती
है । महोबे पर इस िक इनद का कोप छाया हुआ है । पथ
ृ िीराि चौहाि महोबे
को घेरे पडा है । िरिसंह और िीरिसंह तलिारो की भेट हो चुके है । िसरको
सारा राख को ढे र हो गया। चनदे लो का राि िीराि हुआ िाता है । सारे दे श
मे कुहराम मचा हुआ है । बडी मुििकलो से एक महीिे की मौहलत ली गई है
और मुझे रािा परमाल िे तुमहारे पास भेिा है । इस मुसीबत के िक हमारा
कोई मददगार िहीं है , कोई ऐसा िहीं है िो हमारी िकममत बॅधाये। िब से
तुमिे महोबे से िहीं है , कोई ऐसा िहीं है िो हमारी िहममत बँधाये। िब से
तुमिे महोबे से िाता तोडा है तब से रािा परमाल के होठो पर हँ सी िहीं
आई। ििस परमाल को उदास दे खकर तुम बेचैि हो िाते थे उसी परमाल
की ऑख
ं े महीिो से िींद को तरसती है । रािी मिहलिा, ििसकी गोद मे तुम
खेले हो, रात-िदि तुमहारी याद मे रोती रहती है । िह अपिे झरोखे से कनिैि
की तरफ ऑख
ं े लगाये तुमहारी राह दे खा करती है । ऐ बिाफल िंश के सपूतो
! चनदे लो की िाि अब िू ब रही है । चनदे लो का िाम अब िमटा िाता है । अब
मौका है िक तुम तलिारे हाथ मे लो। अगर इस मौके पर तुमिे िू बती हुई
िाि को ि समहाला तो तुमहे हमेशा के िलए पछतािा पडे गा कयोिक इस
िाम के साथ तुमहारा और तुमहारे िामी बाप का िाम भी िू ब िाएगा।

85
आलहा िे रखेपि से ििाब िदया—हमे इसकी अब कुछ परिाह िहीं
है । हमारा और हमारे बाप का िाम तो उसी िदि िू ब गया, िब हम बेकसूर
महोबे से ििकाल िदए गए। महोबा िमटटी मे िमल िाय, चनदे लो को िचराग
गुल हो िाय, अब हमे िरा भी परिाह िहीं है । कया हमारी सेिाओं का यही
पुरसकार था िो हमको िदया गया? हमारे बाप िे महोबे पर अपिे पाण
नयौछािर कर िदये, हमिे गोडो को हराया और चनदे लो को दे िगि का
मािलक बिा िदया। हमिे यादिो से लोहा िलया और किठयार के मैदाि मे
चनदे लो का झंिा गाड िदया। मैिे इनही हाथो से कछिाहो की बिती हुई लहर
को रोका। गया का मैदाि हमीं िे िीता, रीिॉँ का घमणि हमीं िे तोडा। मैिे
ही मेिात से िखराि िलया। हमिे यह सब कुछ िकया और इसका हमको यह
पुरसकार िदया गया है ? मेरे बाप िे दस रािाओं को गुलामी का तौक
पहिाया। मैिे परमाल की सेिा मे सात बार पाणलेिा िखम खाए, तीि बार
मौत के मुँह से ििकल आया। मैिे चालीस लडाइयॉँ लडी और कभी हारकर
ि आया। ऊदल िे सात खूिी माके िीते। हमिे चनदे लो की बहादरुी का िं का
बिा िदया। चनदे लो का िाम हमिे आसमाि तक पहुँचा िदया और इसके
यह पुरसकार हमको िमला है ? परमाल अब कयो उसी दगाबाि मािहल को
अपिी मदद के िलए िहीं बुलाते ििसको खुश करिे के िलए मेरा दे श
ििकाला हुआ था !
िगिा िे ििाब िदया—आलहा ! यह रािपूतो की बाते िहीं है । तुमहारे
बाप िे ििस राि पर पाण नयौछािर कर िदये िही राि अब दिुमि के पांि
तले रौदा िा रहा है । उसी बाप के बेटे होकर भी कया तुमहारे खूि मे िोश
िहीं आता? िह रािपूत िो अपिे मुसीबत मे पडे हुए रािा को छोडता है ,
उसके िलए िरक की आग के िसिा और कोई िगह िहीं है । तुमहारी
मातभ
ृ ूिम पर बबाद
फ ी की घटा छायी हुई है । तुमहारी माऍ ं और बहिे दिुमिो
की आबर लूटिेिाली ििगाहो को ििशािा बि रही है , कया अब भी तुमहारे
खूि मे िोश िहीं आता? अपिे दे श की यह दग
ु त
फ दे खकर भी तुम कनिौि
मे चैि की िींद सो सकते हो?
दे िल दे िी को िगिा के आिे की खबर हुई। असिे फौरि आलहा को
बुलाकर कहा—बेटा, िपछली बाते भूल िाओं और आि ही महोबे चलिे की
तैयारी करो।

86
आलहा कुछ िबाि ि दे सका, मगर ऊदल झुँझलाकर बोला—हम अब
महोबे िहीं िा सकते। कया तुम िह िदि भूल गये िब हम कुतो की तरह
महोबे से ििकाल िदए गए? महोबा िू बे या रहे , हमारा िी उससे भर गया, अब
उसको दे खिे की इचछा िहीं हे । अब कनिौि ही हमारी मातभ
ृ ूिम है ।
रािपूतिी बेटे की िबाि से यह पाप की बात ि सुि सकी, तैश मे
आकर बोली—ऊदल, तुझे ऐसी बाते मुंह से ििकालते हुए शम फ िहीं आती ?
काश, ईशर मुझे बॉझ
ँ ही रखता िक ऐसे बेटो की मॉँ ि बिती। कया इनहीं
बिाफल िंश के िाम पर कलंक लगािेिालो के िलए मैिे गभ फ की पीडा सही
थी? िालायको, मेरे सामिे से दरू हो िाओं। मुझे अपिा मुँह ि िदखाओं। तुम
िसराि के बेटे िहीं हो, तुम ििसकी राि से पैदा हुए हो िह िसराि िहीं
हो सकता।
यह ममान
फ तक चोट थी। शम फ से दोिो भाइयो के माथे पर पसीिा आ
गया। दोिो उठ खडे हुए और बोले- माता, अब बस करो, हम जयादा िहीं सुि
सकते, हम आि ही महोबे िायेगे और रािा परमाल की िखदमत मे अपिा
खूि बहायेगे। हम रणकेि मे अपिी तलिारो की चमक से अपिे बाप का
िाम रोशि करे गे। हम चौहाि के मुकािबले मे अपिी बहादरुी के िौहर
िदखायेगे और दे िल दे िी के बेटो का िाम अमर कर दे गे।

दो िो भाई कनिौि से चले, दे िल भी साथ थी। िब िह रठिेिाले अपिी


मातभ
ृ ूिम मे पहुँचे तो सूखे धािो मे पािी पड गया, टू टी हुई िहममते
बंध गयीं। एक लाख चनदे ल इि िीरो की अगिािी करिे के िलए खडे थे।
बहुत िदिो के बाद िह अपिी मातभ
ृ ूिम से िबछुडे हुए इि दोिो भाइयो से
िमले। ऑख
ं ो िे खुशी के ऑस
ं ू बहाए। रािा परमाल उिके आिे की खबर
पाते ही कीरत सागर तक पैदल आया। आलहा और ऊदल दौडकर उसके पांि
से िलपट गए। तीिो की आंखो से पािी बरसा और सारा मिमुटाि धुल
गया।
दिुमि सर पर खडा था, जयादा आितथय-सतकार का मौकर ि था, िहीं
कीरत सागर के िकिारे दे श के िेताओं और दरबार के कमच
फ ािरयो की राय
से आलहा फौि का सेिापित बिाया गया। िहीं मरिे-मारिे के िलए सौगनधे

87
खाई गई। िहीं बहादरुो िे कसमे खाई िक मैदाि से हटे गे तो मरकर हटे गे।
िहीं लोग एक दस
ू रे के गले िमले और अपिी िकसमतो को फैसला करिे
चले। आि िकसी की ऑख
ं ो मे और चेहरे पर उदासी के िचनह ि थे , औरते
हॅ स-हँ स कर अपिे पयारो को ििदा करती थीं, मदफ हँ स-हँ सकर िसयो से अलग
होते थे कयोिक यह आिखरी बािी है , इसे िीतिा ििनदगी और हारिा मौत
है ।
उस िगह के पास िहॉँ अब और कोई कसबा आबाद है , दोिो फौिो
को मुकाबला हुआ और अठारह िदि तक मारकाट का बािार गम फ रहा। खूब
घमासाि लडाई हुई। पथ
ृ िीराि खुद लडाई मे शरीक था। दोिो दल िदल
खोलकर लडे । िीरो िे खूब अरमाि ििकाले और दोिो तरफ की फौिे िहीं
कट मरीं। तीि लाख आदिमयो मे िसफफ तीि आदमी ििनदा बचे -एक
पथ
ृ िीराि, दस
ू रा चनदा भाट तीसरा आलहा। ऐसी भयािक अटल और
ििणाय
फ क लडाई शायद ही िकसी दे श और िकसी युग मे हुई हो। दोिो ही
हारे और दोिो ही िीते। चनदे ल और चौहाि हमेशा के िलए खाक मे िमल
गए कयोिक थािेसर की लडाई का फैसला भी इसी मैदाि मे हो गया।
चौहािो मे िितिे अिुभिी िसपाही थे, िह सब औरई मे काम आए।
शहाबुदीि से मुकािबला पडा तो िौिसिखये, अिुभिहीि िसपाही मैदाि मे लाये
गये और ितीिा िही हुआ िो हो सकता था। आलहा का कुद पता ि चला
िक कहॉँ गया। कहीं शमफ से िू ब मरा या साधू हो गया।
ििता मे अब तक यही ििशास है िक िह ििनदा है । लोग कहते है
िक िह अमर हो गया। यह िबलकुल ठीक है कयोिक आलहा सचमुच अमर है
अमर है और िह कभी िमट िहीं सकता, उसका िाम हमेशा कायम रहे गा।
--िमािा, िििरी १९१२

88
िसी हत ो का द फत र

बा बू अकयकुमार पटिा के एक िकील थे और बडे िकीलो मे समझे


िाते थे। यािी रायबहादरुी के करीब पहुँच चुके थे। िैसा िक
अकसर बडे आदिमयो के बारे मे मशहूर है , इि बाबू साब का लडकपि भी
बहुत गरीबी मे बीता था। मॉँ-बाप अब अपिे शैताि लडको को िॉट
ँ ते-िॉप
ँ टते
तो बाबू अकयकुमार का िाम िमसाल के तौर पर पेश िकया िाता था—
अकय बाबू को दे खो, आि दरिािे पर हाथी झूमता है , कल पििे को तेल
िहीं मयससर होता था, पुआल िलाकर उसकी ऑच
ं मे पिते, सडक की
लालटे िो की रोशिी मे सबक याद करते। ििदा इस तरह आती है । कोई-कोई
कलपिाशील वयिक इस बात के भी साकी थे िक उनहोिे अकय बाबू को
िुगिू की रोशिी मे पिते दे खा है िुगिू की दमक या पुआल की ऑच
ं मे
सथायी पकाश हो सकता है , इसका फैसला सुििेिालो की अकल पर था।
कहिे का आशय यह है िक अकयकुमार का बचपि का िमािा बहुत ईषयाफ
करिे योगय ि था और ि िकालत का िमािा खुशिसीिबयो की िह बाि
अपिे साथ लाया ििसकी उममीद थी। बाि का िजक ही कया, बरसो तक
अकाल की सूरत थीं यह आशा िक िसयाह गाउि कामधेिु सािबत होगा और
दिुलया की सारी िेमते उसके सामिे हाथ बॉध
ँ े खडी रहे गी, झूठ ििकली।
काला गाउि काले िसीब को रोशि ि कर सका। अचछे िदिो के इनतिार मे
बहुत िदि गुिर गए और आिखरकार िब अचछे िदि आये, िब गािफ ि
पािटफ यो मे शरीक होिे की दािते आिे लगीं, िब िह आम िलसो मे
सभापित की कुसी पर शोभायमाि होिे लगे तो ििािी िबदा हो चुकी थी
और बालो को िखिाब की िररत महसूस होिे लगी थी। खासकर इस कारण
से िक सुनदर और हँ समुख हे मिती की खाितरदारी िररी थी ििसके शुभ
आगमि िे बाबू अकयकुमार के िीिि की अिनतम आकांका को पूरा कर
िदया था।
2

िि
स तरह दािशीलता मिुषय की दग
ु ुण
फ ो को िछपा लेती है उसी तरह
कृ पणता उसके सदण
ु ो पर पदा फ िाल दे ती है । कंिूस आदमी के
दिुमि सब होते है , दोसत कोई िहीं होता। हर वयिक को उससे िफरत होती
89
है । िह गरीब िकसी को िुकसाि िहीं पहूँचाता, आम तौर पर िह बहुत ही
शािनतिपय, गमभीर, सबसे िमलिुल कर रहिेिाला और सिािभमािी वयिक
होता हे मगर कंिूसी काला रं ग है ििस पर दस
ू रा कोई रं ग, चाहे िकतिा ही
चटख कयो ि हो, िहीं चि सकता। बाबू अकयकुमार भी कंिूस मशहूर थे,
हालॉिँक िैसा कायदा है , यह उपािध उनहे ईषया फ के दरबार से पाप हुई थी।
िो वयिक कंिूस कहा िाता हो, समझ लो िक िह बहुत भागयशाली है और
उससे िाह करिे िाले बहुत है । अगर बाबू अकयकुमार कौिडयो को दॉत
ँ से
पकडते थे तो िकसी का कया िुकसाि था। अगर उिका मकाि बहुत ठाट-
बाट से िहीं सिा हुआ था, अगर उिके यहॉँ मुफतखोर ऊँघिेिाले िौकरो की
फौि िहीं थी, अगर िह दो घोडो की िफटि पर कचहरी िहीं िाते थे तो
िकसी का कया िुकसाि था। उिकी ििनदगी का उसूल था िक कौिडयो की
तुम िफक रखो, रपये अपिी िफक आप कर लेगे। और इस सुिहरे उसूल का
कठोरता से पालि करिे का उनहे पूरा अिधकार था। इनहीं कौिडयो पर
ििािी की बहारे और िदल की उमंगे नयौछािर की थीं। ऑख
ं ो की रोशिी
और सेहत िैसी बडी िेमत इनहीं कौिडयो पर चिाती थीं। उनहे दॉत
ँ ो से
पकडते थे तो बहुत अचछा करते थे, पलको से उठािा चािहए था।
लेिकि सुनदर हँ समुख हे मिती का सिभाि इसके िबलकुल उलटा था।
अपिी दस
ू री बहिो की तरह िह भी सुख-सुििधा पर िाि दे ती थी और गो
बाबू अकयकुमार ऐसे िादाि और ऐसे रखे-सूखे िहीं थे िक उसकी कद करिे
के कािबल कमिोिरयो की कद ि करते (िहीं, िह िसंगार और सिािट की
चीिो को दे खकर कभी-कभी खुश होिे की कोिशश भी करते थे) मगर कभी-
कभी िब हे मिती उिकी िेक सलाहो ही परिाह ि करके सीमा से आगे बि
िाती थी तो उस िदि बाबू साहब को उसकी खाितर अपिी िकालत की
योगयता का कुछ-ि-कुछ िहससा िरर खचफ करिा पडता था।
एक रोि िब अकयकुमार कचहरी से आये तो सुनदर और हँ समुख
हे मिती िे एक रं गीि िलफाफा उिके हाथ मे रख िदया। उनहोिे दे खा तो
अनदर एक बहुत िफीस गुलाबी रं ग का ििमंिण था। हे मिती से बोले—इि
लोगो को एक-ि-एक खबत सूझता ही रहता है । मेरे खयाल मे इस डामैिटक
परफारमेस की कोई िररत ि थीं।
हे मिती इि बातो के सुििे की आदी थी, मुसकराकर बोली—कयो, इससे
बेहतर और कौि खुशी को मौकर हो सकता है ।
90
अकय कुमार सगझ गये िक अब बहस-मुबािहसे की िररत आ गई,
समहाल बैठे और बोले—मेरी िाि, बी० ए० के इमतहाि मे पास होिा कोई
गैर-मामूली बात िहीं है , हिारो िौििाि हर साल पास होते रहते है । अगर
मेरा भाई होता तो मै िसफफ उसकी पीठ ठोककर कहता िक शाबाश, खूब
मेहित की। मुझे डामा खेलिे का खयाल भी ि पैदा होता। िाकटर साहब तो
समझदार आदमी है , उनहे कया सूझी !
हे मिती—मुझे तो िािा ही पडे गा।
अकयकुमार—कयो, कया िादा कर िलया है ?
हे मिती—िाकटर साहब की बीिी खुद आई थी।
अकयकुमार—तो मेरी िाि, तुम भी कभी उिके घर चली िािा, परसो
िािे की कया िररत है ?
हे मिती—अब बता ही दँ ू, मुझे िाियका का पाटफ िदया गया है और मैिे
उस मंिरू कर िलया है ।
यह कहकर हे मिती िे गि फ से अपिे पित की तरफ दे खा, मगर
अकयकुमार को इस खबर से बहुत खुशी िहीं हुई। इससे पहले दो बार
हे मिती शकुनतला बि चुकी थी। इि दोिो मौको पर बाबू साहब को काफी
खच फ करिा पडा था। उनिे िर हुआ िक अब की हफते मे िफर घोष कमपिी
दो सौ का िबल पेश करे गी। और इस बात की सखत िररत थी िक अभी से
रोक-थाम की िाय। उनहोिे बहुत मुलायिमयत से हे मिती का हाथ पकड
िलया और बहुत मीठे और मुहबबत मे िलपटे हुए लहिे मे बोले—पयारी, यह
बला िफर तुमिे अपिे सर ले ली। अपिी तकलीफ और परे शािी का
िबलकुल खयाल िहीं िकया। यह भी िहीं सोचा िक तुमहारी परे शािी तुमहारे
इस पेमी को िकतिा परे शाि करती है । मेरी िाि, यह िलसे िैितक दिष से
बहुत आपितििक होते है । इनहीं मौको पर िदलो मे ईषयाफ के बीि बोये िाते
है । यहीं, पीठ पीछे बुराई करिे की आदत पडती है और यहीं तािेबािी और
िोकझोक की मिक होती है । फलॉँ लेिी हसीि है , इसिलए उसकी दस
ू री बहिो
का फि फ है िक उससे िले। मेरी िाि, ईशर ि करे िक कोई िाही बिे मगर
िाह करिे के योगय बििा तो अपिे अिखतयार की बात िहीं। मुझे भय है
िक तुमहारा दाहक सौनदय फ िकतिे ही िदलो को िलाकर राख कर दे गा।
पयारी हे म,ू मुझे दख
ु है िक तुमिे मूझसे पूछे बगैर यह ििमंिण सिीकार कर

91
िलया। मुझे ििशास है , अगर तुमहे मालूम होता िक मै इसे पसनद ि करँ गा
तो तुम हरिगि सिीकार ि करतीं।
सुनदर और हँ समुख हे मिती इस मुहबबत मे िलपटी हुई तकरीर को
बिािहर बहुत गौर से सुिती रही। इसके बाद िाि-बूझकर अििाि बिते
हुए बोली—मैिे तो यह सोचकर मंिूर कर िलया था िक कपडे सब पहले ही
के रकखे हुए है , जयादा सामाि की िररत ि होगी, िसफफ चनद घंटो की
तकलीफ है और एहसाि मुफत। िाकटरो को िाराि करिा भी तो अचछी बात
िहीं है । मगर अब ि िाऊँगी। मै अभी उिको अपिी मिबूरी िलखे दे ती हूँ।
सचमुच कया फायदा, बेकार की उलझि।
यह सुिकर िक कपडे सब पहले के रकखे हुए है , कुछ जयादा खच फ ि
होगा, अकयकुमार के िदल पर से एक बडा बोझ उठ गया। िाकटरो को
िाराि करिा भी तो अचछी बात िहीं । यह िुमला भी मािी से खाली ि
था। बाबू साहब पछताये िक अगर पहले से यह हाल मालूम होता तो काहे
को इस तरह रखा-सूखा उपदे शक बििा पडता। गदफ ि िहलाकर बोले—िहीं-
िहीं मेरी िाि, मेरा मंशा यह हरिगि िहीं िक तुम िाओं ही मत। िब तुम
ििमंिण सिीकार कर चुकी हो तो अब उससे मुकरिा इनसािियत से हटी हुई
बात मालूम होती है । मेरी िसफफ यह मंशा थी िक िहॉँ तक मुमिकि हो, ऐसे
िलसो से दरू रहिा चािहये।
मगर हे मिती िे अपिा फैसला बहाल रकखा—अब मै ि िाऊँगी।
तुमहारी बाते िगरह मे बांध लीं।

दू सरे िदि शाम को अकयकुमार हिाखोरी को ििकले। आिनद बाग उस


िक िोबि पर था। ऊंचे-ऊंचे सरो और अशोक की कतारो के बीच, लाल
बिरी से सिी हुई सडक ऐसी खूबसूरत मालूम होती थी िक िैसे कमल के
पतो मे फूल िखलो हुआ है या िोकदार पलको के बीच मे लाल मतिाली
आंखे िेब दे रही है । बाबू अकयकुमार इस कयारी पर हिा के हलके -फुलके
तािगी दे िेिाले झोको को मिा उठाते हुए एक सायेदार कुंि मे िा बैठे। यह
उिकी खास िगह थी। इस इिायतो की बसती मे आकर थोडी दे र के िलए
उिके िदल पर फूलो के िखलेपि और पतो की हिरयाली का बहुत ही िशीला

92
असर होता था। थोडी दे र के िलए उिका िदल भी फूल की तरह िखल िाता
था। यहॉँ बैठे उनहे थोडी दे र हुई थी िक उनहे एक बूिा आदमी अपिी तरफ
आता हुआ िदखायी िदया। उसिे सलाम िकया और एक मोहरदार बनद
िलफाफा दे कर गायब हो गया। अकय बाबू िे िलफाफा खोला और उसकी
अमबरी महक से रह फडक उठी। खत का मिमूि यह था:
‘मेरे पयारे अकय बाबू, आप इस िाचीि के खत को पिकर बहुत है रत
मे आएंगे, मगर मुझे आशा है िक आप मेरी इस िढठाई को माफ करे गे।
आपके आचार-ििचार, आपकी सुरिच और आपके रहि-सहि की तारीफे सुि-
सुिकर मेरे िदल मे आपके िलए एक पेम और आदर का भाि पैदा हो गया
है । आपके सादे रहि-सहि िे मुझे मोिहत कर िलया है । अगर हया-शमफ मेरा
दामि ि पकडे होती तो मै अपिी भाििाओं को और भी सपष शबदो मे
पकािशत करती। साल भर हुआ िक मैिे सामानय पुरषो की दब
ु ल
फ ताओं से
ििराश होकर यह इरादा कर िलया था िक शेष िीिि खुिशयो को सपिा
दे खिे मे काटू ँ गी। मैिे ढू ं ढा, मगर ििस िदल की तलाश थी, ि िमला। लेिकि
िब से मैिे आपको दे खा है , मुदतो की सोयी हुई उमंगे िाग उठी है । आपके
चेहरे पर सुनदरता और ििािी की रोशिी ि सही मगर कलपिा की झलक
मौिूद है , ििसकी मेरी ििगाह मे ियादा इजित है हालॉिँक मेरा खयाल है
िक अगर आपको अपिे बिहरं ग की िचनता होती तो शायद मेरे अिसतति का
दब
ु ल
फ अंश जयादा पसनि होता। मगर मै रप की भूखी िहीं हूँ। मुझे एक
सचचे, पदशि
फ से मुक, सीिे मे िदल रखिेिाले इनसाि की चाह है और मैिे
उसे पा िलया। मैिे एक चतुर पििु बबे की तरह समुनदर की तह मे बैठकर
उस रति को ढू ं ढ ििकाला है , मेरी आपसे केिल यह पाथि
फ ा है िक आप कल
रात को िाकटर िकचलू के मकाि पर तशरीफ लाये। मै आपका बहुत एहसाि
मािूँगी। िहॉँ एक हरे कपडे पहिे सी अशोको के कुंि मे आपके िलए आंखे
िबछाये बैठी ििर आयेगीं।’
इस खत को अकयकुमार िे दोबारा पिा। इसका उिके िदल पर कया
असर हुआ, यह बयाि करिे की िररत िहीं। िह ऋिषयो िहीं थे, हालॉिँक
ऐसे िािुक मौके पर ऋिषयो का िफसल िािा भी असमभि िहीं। उनहे एक
िशा-सा महसूस होिे लगा। िरर इस परी िे मुझे यहॉँ बैठे दे खा होगा। मैिे
आि कई िदि से आईिा भी िहीं दे खा, िािे चेहरे की कया कैिफयत हो रही
है । इस खयाल से बेचैि होकर िह दौडे हुए एक हौि पर गए और उसके
93
साफ पािी मे अपिी सूरत दे खी, मगर संतोष ि हुआ। बहुत तेिी से कदम
बिाते हुए मकाि की तरफ चले और िाते ही आईिे पर ििगाह दौडाई।
हिामत साफ िहीं है और साफा कमबखत खूबसूरती से िहीं बँधा। मगर तब
भी मुझे कोई बदस
ू रत िहीं कह सकता। यह िरर कोई आला दरिे की पिी-
िलखी, ऊँचे ििचारो िाली सी है । ििाफ मामूली औरतो की ििगाह मे तो दौलत
और रप के िसिा और कोई चीि िँचती ही िहीं। तो भी मेरा यह फूहडपि
िकसी सुरिच-समपनि सी को अचछा िहीं मालूम हो सकता। मुझे अब इसका
खयाल रखिा होगा। आि मेरे भागय िागे है । बहुत मुदत के बाद मेरी कद
करिेिाला एक सचचा िौहरी ििर आया है । भारतीय िसयो शम फ और हया
की पुतली होती है । िब तक िक अपिे िदल की हलचलो से मिबूर ि हो
िाये िह ऐसा खत िलखिे को साहस िहीं कर सकतीं।
इनहीं खयालो मे बाबू अकयकुमार िे रात काटी। पलक तक िहीं
झपकी।

दू सरे िदि सुबह दस बिे तक बाबू अकयकुमार िे शहर की सारी


फैशिेबुल दक
ु ािो की सैर की। दक
ु ािदार है रत मे थे िक आि बाबू साहब
यहॉँ कैसे भूल पडे । कभी भूलकर भी ि झॉक
ँ ते थे, यह कायापलट कयोकर
हुई? गरि, आि उनहोिे बडी बेददी से रपया खच फ िकया और िब घर चले
तो िफटि पर बैठिे की िगह ि थी।
हे मिती िे उिके माथे पर से पसीिा साफ करके पूछा—आि सबेरे से
कहॉँ गायब हो गये? अकयकुमार िे चेहरे को िरा गमभीर बिाकर ििाब
िदया—आि ििगर मे कुछ ददफ था, िाकटर चिढा के पास चला गया था।
हे मिती के सुनदर हँ सते हुए चेहरे पर मुसकराहट-सी आ गयी, बोली—
तुमिे मुझसे िबलकुल ििक िहीं िकया? ििगर का ददफ भयािक मिफ है ।
अकयकुमार—िाकटर साहब िे कहा है , कोई िरिे की बात िहीं है ।
हे मिती—इसकी दिा िा० िकचलू के यहॉँ बहुत अचछी िमलती है ।
मालूम िहीं, िाकटर चिढा मिफ की तह तक पहुँचे भी या िहीं।
अकयकुमार िे हे मिती की तरफ एक बार चुभती हुई ििगाहो से दे खा
और खािा खािे लगे। इसके बाद अपिे कमरे मे िाकर बैठै। शाम को िब
िह पाकफ, घंटाघर, आिनद बाग की सैर करते हुए िफटि पर िा रहे थे तो

94
उिके होठो पर लाली और गालो पर ििािी की गुलाबी झलक मौिूद थीं।
तो भी पकृ ित के अनयाय पर, ििसिे उनहे रप की समपदा से िंिचत रकखा
था, उनहे आि िितिा गुससा आया, शायद और कभी ि आया हो। आि िह
पतली िाक के बदले अपिा खूबसूरत गाउि और ििपलोमा सब कुछ दे िे क
िलए तैयार थे।
िाकटर साहब िकचलू का खूबसूरत लताओं से सिा हुआ बँगला रात के
िक िदि का समॉँ िदखा रहा था। फाटक के खमभे , बरामदे की मेहराबे, सरो
के पेडो की कतारे सब िबिली के बलबो से िगमगा रही थीं। इनसाि की
िबिली की कारीगरी अपिा रं गारं ग िाद ू िदखा रही थी। दरिािे पर
शुभागमि का बनदििार, पेडो पर रं ग-िबरं गे पकी, लताओं मे िखले हुए फूल,
यह सब इसी िबिली की रोशिी के िलिे है । इसी सुहािी रोशिी मे शहर के
रईस इठलाते िफर रहे है । अभी िाटक शुर करिे मे कुछ दे र है । मगर
उतकणठा लोगो को अधीर करिे पर लगी है । िाकटर िकचलू दरिािे पर खडे
मेहमािो का सिागत कर रहे है । आठ बिे होगे िक बाबू अकयकुमार बडी
आि-बाि के साथ अपिी िफटि से उतरे । िाकटर साहब चौक पडे , आि यह
गूलर मे कैसे फूल लग गए। उनहोिे बडे उतसाह से आगे बिकर बाबू साहब
का सिागत िकया और सर से पॉि
ँ तक उनहे गौर से दे खा। उनहे कभी
खयाल भी ि हुआ था िक बाबू अकयकुमार ऐसे सुनदर सिीले कपडे पहिे
हुए गबर िौििाि बि सकते है । कायाकलप का सटष उदाहरण ऑख
ं ो के
सामिे खडा था।
अकय बाबू को दे खते ही इधर-उधर के लोग आकर उिके चारो ओर
िमा हो गए। हर शखस है रत से एक-दस
ू रे का मुंह ताकता था। होठ रमाल
की आड ढू ं ढिे लगे, ऑख
ं े सरगोिशयॉँ करिे लगीं। हर शखस िे गैरमामूली
तपाक से उिका िमजाि पूछा। शरािबयो की मििलस और पीिे की मिाही
करिे िाली हिरते िाइि की तशरीफआिरी का िजजारा पेश हो गया।
अकय बाबू बहुत झेप रहे थे। उिकी ऑख
ं े ऊपर को ि उठती थीं।
इसिलए िब िमिाजापुिसय
फ ो को तूफाि दरू हुआ तो उनहोिे अपिी हरे कपडो
िाली सी की तलाश मे चारो तरफ एक ििगाह दौडायी और िदल मे कहा—
यह शोहदे है , मसखरे , मगर अभी-अभी उिकी ऑख
ं े खुली िाती है । मै िदखा
दँग
ू ा िक मुझ पर भी सुनदिरयो की दिष पडती है । ऐसी सुनदिरयॉँ भी है िो
सचचे िदल से मेरे िमिाज की कैिफयत पूछती है और िििसे अपिा ददे िदल
95
कहिे मे मै भी रं गीि-बयाि हो सकता हूँ। मगर उस हरे कपडो िाली पेिमका
का कहीं पता ि था। ििगो चारो तरफ से घूम-घामकर िाकाम िापस आयीं।
आध घंटे के बाद िाटक शूर हुआ। बाबू साहब ििराश भाि से पैर उठाते
हुए िथयेटर हाल मे गए और कुसी पर बैठ गए। बैठ कया गए, िगर पडे । पदाफ
उठा। शकुनतला अपिी दोिो सिखयो के साथ िसर पर घडा रकखे पौदो को
सींचती हुई िदखाई दी। दशक
फ बाग-बाग हो गये। तारीफो के िार िाबुलनद
हुए। शकुनतला का िो कालपििक िचि िखंच सकता है , िह ऑख
ं ो के सामिे
खडा था—िही पेिमका का खुलापि, िही आकषक
फ गमभीरता, िही मतिाली
चाल, िही शमीली ऑख
ं े। अकय बाबू पहचाि गए यह सुनदर हॅ समुख हे मिती
थी।
बाबू अकयकुमार का चेहरा गुससे से लाल हो गया। इसिे मुझसे िादा
िकया था िक मै िाटक मे ि िाऊँगी। मैिे घंटो इस समझाया। अपिी
असमथत
फ ा िलखिे पर तेयार थी। मगर िसफफ-दस
ू रो को िरझािे और लुभािे के
िलए, िसफफ दस
ू रो के िदलो मे अपिे रप और अपिी अदाओं को िाद ू फूँकिे
के िलए, िसफफ दस
ू री औरतो को िलािे के िलए उसिे मेरी िसीहतो का और
अपिे िादे का, यहॉँ तक िक मेरी अपसनिता का भी िरा भी खयाल ि
िकया !
हे मिती िे भी उडती हुई ििगाहो से उिकी तरफ दे खा। उिके बॉक
ँ पि
पर उसे िरा भी ताजिुब ि हुआ। कम-से-कम िह मुसकरायी िहीं।
सारी महिफल बेसध
ु हो रही थी। मगर अकयबाबू का िी िहॉ। ि
लगता थां िह बार-बार उठके बाहर िाते, इधर-उधर बेचैिी से ऑख
ं े फाड-फाड
दे खते और हर बार झुंझलाकर िापस आते। चहॉँ तक िक बारह बि गए और
अब मायूस होकर उनहोिे अपिे-आप को कोसिा शुर िकया—मै भी कैसा
अहमक हूँ। एक शोख औरत के चकमे मे आ गया। िरर इनहीं बदमाशो मे
से िकसी की शरारत होगी। यह लोग मुझे दे ख-दे खकर कैसा हँ सते थे! इनहीं
मे से िकसी मसखरे िे यह िशगूफा छोडा है । अफसोस ! सैकडो रपये पर
पािी िफर गया, लिजित हुआ सो अलग। कई मुकदमे हाथ से गए। हे मिती
की ििगाहो मे िलील हो गया और यह सब िसफफ इि हािहयो की खाितर !
मुझसे बडा अहमक और कौि होगा !
इस तरह अपिे ऊपर लाित भेिते, गुससे मे भरे हुए िे िफर महािफल
की तरफ चले िक एकाएक एक सरो के पेड के िीचे िह हिरतिसिा सुनदरी
96
उनहे इशारे से अपिी तरफ बुलाती हुई ििर आयी। खुशी के मारे उिकी
बॉछ
ँ े िखल गई, िदलोिदमाग पर एक िशा-सा छा गया। मसती के कदम
उठाते, झूमते और ऐंठते उस सी के पास आये और आिशकािा िोश के साथ
बोले—ऐ रप की रािी, मै तुमहारी इस कृ पा के िलए हदय से तुमहारा कृ तज
हूँ। तुमहे दे खिे के शौक मे इस अधमरे पेमी की ऑख
ं े पथरा गई और अगर
तुमहे कुछ दे र तक और यह ऑख
ं े दे ख ि पातीं तो तुमहे अपिे रप के मारे
हुए की लाश पर हसरत के ऑस
ं ू बहािे पडते। कल शाम ही से मेरे िदल की
िो हालत हो रही है , उसका ििक बयाि की ताकत से बाहर है । मेरी िाि, मै
कल कचहरी ि गया, और कई मुकदमे हाथ से खोए। मगर तुमहारे दशि
फ से
आतमा को िो आिनद िमल रहा है , उस पर मै अपिी िाि भी नयोछािर
कर ससकता हूँ। मुझे अब धैयफ िहीं है । पेम की आग िे संयम और धैयफ को
िलाकर खाक कर िदया है । तुमहे अपिे हुसि के दीिािे से यह पदा फ करिा
शोभा िहीं दे ता। शमा और परिािा मे पदा फ कैसा। रप की खाि और ऐ
सौनदय फ की आतमा ! तेरी मुहबबत भरी बातो िे मेरे िदल मे आरिुओं का
तूफाि पैदा कर िदया है । अब यह िदल तुमहारे ऊपर नयोछािर है और यह
िाि तुमहारे चरणो पर अिपत
फ है ।
यह कहते हुए बाबू अकयकुमार िे आिशको िैसी िढठाई से आगे बिकर
उस हिरतिसिा सुनदरी का घूँघट उठा िदया और हे मिती को मुसकराते
दे खकर बेअिखतयार मुँह से ििकला—अरे ! और िफर कुछ मुंह से ि ििकला।
ऐसा मालूम हुआ िक िैसे ऑख
ं ो के सामिे से पदा फ हट गया। बोले।– यह
सब तुमहारी शरारत थी?
सुनदर, हँ समुख हे मिती मुसकरायी और कुछ ििाब दे िा चाहती थीं, मगर
बाबू अकयकुमार िे उस िक जयादा सिाल-ििाब का मौका ि दे खा। बहुत
लिजित होते हुए बोले—हे मित, अब मुंह से कुद मत कहो, तुम िीतीं मै हार
गया। यह हार कभी ि भूलेगी।
--िमािा, मई-िूि 1992

97
राि हठ

द शहरे के िदि थे, अचलगि मे उतसि की तैयािरयॉँ हो रही थीं। दरबारे


आम मे राजय के मंिियो के सथाि पर अपसराऍ ं शोभायमाि थीं।
धमश
फ ालो और सरायो मे घोडे िहििहिा रहे थे। िरयासत के िौकर, कया छोटे ,
कया बडे , रसद पहुँचािे के बहािे से दरबािे आम मे िमे रहते थे। िकसी
तरह हटाये ि हटते थे। दरबारे खास मे पंिित और पुिारी और महनत लोग
आसि िमाए पाठ करते हुए ििर आते थे। िहॉँ िकसी राजय के कमच
फ ारी
की शकल ि िदखायी दे ती थी। घी और पूिा की सामगी ि होिे के कारण
सुबह की पूिा शाम को होती थी। रसद ि िमलिे की ििह से पंिित लोग
हिि के घी और मेिो के भोग के अिगिकुंि मे िालते थे। दरबारे आम मे
अंगेिी पबनध था और दरबारे खास मे राजय का।
रािा दे िमल बडे हौसलेमनद रईस थे। इस िािषक
फ आिनदोतसि मे िह
िी खोलकर रपया खचफ करते। ििि िदिो अकाल पडा, राजय के आधे आदमी
भूखो तडपकर मर गए। बुखार, है िा और पलेग मे हिारो आदमी हर साल
मतृयु का गास बि िाते थे। रािय ििधि
फ था इसिलए ि िहॉँ पाठशालाऍ ं
थीं, ि िचिकतसालय, ि सडके। बरसात मे रिििास दलदल हो िाता और
अँधेरी रातो मे सरे शाम से घरो के दरिािे बनद हो िाते। अँधेरी सडको पर
चलिा िाि िोिखम था। यह सब और इिसे भी जयादा कषपद बाते सिीकार
थीं मगर यह किठि था, असमभि था िक दग
ु ा फ दे िी का िािषक
फ आिनदोतसि
ि हो। इससे राजय की शाि बटटा लगिे का भय था। राजय िमट िाए,
महलो की ईटे िबक िाऍ ं मगर यह उतसि िरर हो। आस पास के रािे-रईस
आमंिित होते, उिके शािमयािो से मीलो तक संगमरमर का एक शहर बस
िाता, हफतो तक खूब चहल-पहल धूम-धाम रहती। इसी की बदौलत
अचलगि का िाम अटलगि हो गया था।

म गर कुंिर इनदरमल को रािा साहब की इि मसतािा कारफिाइयो मे


िबलकुल आसथा ि थी। िह पकृ ित से एक बहुत गमभीर और
सीधासादा िियुिक था। यो गिब का िदलेर, मौत के सामिे भी ताल
98
ठोककर उतर पडे मगर उसकी बहादरुी खूि की पयास से पाक थी। उसके
िार िबिा पर की िचिडयो या बेिबाि िाििरो पर िहीं होते थे। उसकी
तलिार कमिोरो पर िहीं उठती थी। गरीबो की िहमायत, अिाथो की
िसफािरशे, ििधि
फ ो की सहायता और भागय के मारे हुओं के घाि की मरहम-
पटटी इि कामो से उसकी आतमा को सुख िमलता था। दो साल हुए िह
इं दौर कालेि से ऊँची िशका पाकर लौटा था और तब से उसका यह िोश
असाधारण रप मे बिा हुआ था, इतिा िक िह साधरण समझदारी की
सीमाओं को लॉच
ँ गया था, चौबीस साल का लमबा-तडं गा है कल ििाि, धि
ऐशय फ के बीच पला हुआ, ििसे िचनताओं की कभी हिा तक ि लगी, अगर
रलाया तो हँ सी िे। िह ऐसा िेक हो, उसके मदाि
फ ा चेहरे पर िचनतल को
पीलापि और झुिरफ यॉँ ििर आये यह एक असाधारण बात थी। उतसि का
शुभ िदि पास आ पहुँचा था, िसफफ चार िदि बाकी थे। उतसि का पबनध पूरा
हो चुका था, िसफफ अगर कसर थी तो कहीं-कहीं दोबारा ििर िाल लेिे की।
तीसरे पहर का िक था, रािा साहब रिििास मे बैठे हुए कुछ चुिी हुई
अपसराओं का गािा सुि रहे थे। उिकी सुरीली तािो से िो खुशी हो रही थी;
उससे कहीं जयादा खुशी यह सोचकर हो रही थी िक यह तरािे पोिलिटकल
एिेणट को भडका दे गे। िह ऑख
ं े बनद करके सुिेगा और खुशी के मारे
उछल-उछल पडे गा।
इस ििचार से िो पसनिता होती थी िह तािसेि की तािो मे भी
िहीं हो सकती थी। आह, उसकी िबाि से अििािे ही, ‘िाह-िाह’ ििकल
पडे गी। अिब िहीं िक उठकर मुझसे हाथ िमलाये और मेरे चुिाि की तारीफ
करे इतिे मे कुंिर इं दरमल बहुत सादा कपडे पहिे सेिा मे उपिसथत हुए और
सर झुकाकर अिभिादि िकया। रािा साहब की ऑख
ं े शम फ से झुक गई, मगर
कुँिर साहब का इस समय आिा अचछा िहीं लगा। गािेिािलयो को िहॉँ से
उठ िािे का इशारा िकया।
कुंिर इनदरमल बोले —महाराि, कया मेरी िबिती पर िबलकुल धयाि ि
िदया िायेगा?
रािा साहब की गदी के उतरािधकारी रािकुमार की इजित करते थे
और मुहबबत तो कुदरती बात थी, तो भी उनहे यह बेमौका हठ पसनद ि
आता था। िह इतिे संकीण फ बुिि ि थे िक कुंिर साहब की िेक सलाहो की
कद ि करे । इससे िििय ही राजय पर बोझ बिता िाता था ओर िरआया
99
पर बहुत िुलम करिा पडता था। मै अंधा िहीं हूँ िक ऐसी मोटी-मोटी बाते
ि समझ सकूँ। मगर अचछी बाते भी मौका -महल दे खकर की िाती है ।
आिखरकार िाम और यश, इजित और आबर भी कोई चीि है ? िरयासत मे
संगमरमर की सडके बििा दँ ,ू गली-गली मदरसे खोल दँ ,ू घर-घर कुऍ ं खोदिा
दँ ू, दिाओं की िहरे िारी कर दँ ू मगर दशहरे की धूम -धाम से िरयासत की
िो इजजत और िाम है िह इि बातो से कभी हािसल िहीं हो सकता। यह
हो सकता है िक धीरे -धीरे यह खचफ घटा दँ ू मगर एकबारगी ऐसा करिा ि तो
उिचत है और ि समभि। ििाब िदया—आिखर तुम कया चाहते हो? कया
दशहरा िबलकुल बनद कर दँ ?ू
इनदरमल िे रािा साहब के तेिर बदले हुए दे खे, तो आदरपूिक
फ बोले—
मैिे कभी दशहरे के उतसि के िखलाफ मुह
ं से एक शबद िहीं ििकाला, यह
हमारा िातीय पि फ है , यह िििय का शुभ िदि है , आि के िदि खुिशयॉँ
मिािा हमारा िाती कतवफय है । मुझे िसफफ इि अपसराओं से आपित है , िाच-
गािे से इस िदि की गमभीरता और महता िू ब िाती है ।
रािा साहब िे वयंगय के सिर मे कहा—तुमहारा मतलब है िक रो-
रोकर िशि मिाऍं, मातम करे ।
इनदरमल िे तीखे होकर कहा—यह नयाय के िसिानतो के िखलाफ
बात है िक हम तो उतसि मिाऍं, और हिारो आदमी उसकी बदौलत मातम
करे । बीस हिार मिदरू एक महीिे से मुफत मे काम कर रहे है , कया उिके
घरो मे खुिशयॉँ मिाई िा रही है ? िो पसीिा बहाये िह रोिटयो को तरसे
और ििनहोिे हरामकारी को अपिा पेशा बिा िलया है , िह हमारी महिफलो
की शोभा बिे। मै अपिी ऑख
ं ो से यह अनयाय और अतयाचार िहीं दे ख
सकता। मै इस पाप-कम फ मे योग िहीं दे सकता। इससे तो यही अचछा है
िक मुंह िछपाकर कहीं ििकल िाऊँ। ऐसे राि मे रहिा, मै अपिे उसूलो के
िखलाफ और शमि
फ ाम समझता हूँ।
इनदरमल िे तैश मे यह धष
ृ तापूण फ बाते कीं। मगर िपता के पेम को
िगािे की कोिशश िे रािहठ के सोए हुए काले दे ि को िगा िदया। रािा
साहब गुससे से भरी हुई ऑख
ं ो से दे खकर बोले—हॉँ, मै भी यही ठीक
समझता हूँ। तुम अपिे उसूलो के पकके हो तो मै भी अपिी धुि का पूरा हूँ।

100
इनदरमल िे मुसकराकर रािा साहब को सलाम िकया। उसका मुसकरािा घाि
पर िमक हो गया। रािकुमार की ऑख
ं ो मे कुछ बूँदे शायद मरहम का काम
दे तीं।

रा
गूि
िकुमार िे इधर पीठ फेरी, उधर रािा साहब िे िफर अपसराओं को
बुलाया और िफर िचत को पफुिललत करिेिाले गािो की आिािे
ँ िे लगीं। उिके संगीत-पेम की िदी कभी इतिे िोर-शोर से ि उमडी थी,
िाह-िाह की बाि आई हुई थी, तािलयो का शोर मचा हुआ था और सुर की
िकिती उस पुरशोर दिरया मे िहं िोले की तरह झूल रही थी।
यहॉँ तो िाच-गािे का हं गामा गरम था और रिििास मे रोिे-पीटिे का।
रािी भाि कुँिर दग
ु ा फ की पूिा करके लौट रही थी िक एक लौिी िे आकर
यह ममान
फ तक समाचार िदया। रािी िे आरती का थाल िमीि पर पटक
िदया। िह एक हफते से दग
ु ाफ का वत रखती थीं। मग
ृ छाले पर सोती और दध

का आहार करती थीं। पॉि
ँ थराय
फ े, िमीि पर िगर पडी। मुरझाया हुआ फूल
हिा के झोके को ि सह सका। चेिरयॉँ समहल गयीं और रािी के चारो तरफ
गोल बांधकर छाती और िसर पीटिे लगीं। कोहराम मच गया। ऑख
ं ो मे
ऑस
ं ूं ि सही, ऑच
ं लो से उिका पदाफ िछपा हुआ था, मगर गले मे आिाि तो
थी। इस िक उसी की िररत थी। उसी की बुलनदी और गरि मे इस समय
भागय की झलक िछपी हुई थी।
लौिियॉँ तो इस पकार सिािमभिक का पिरचय दे िे मे वयसत थीं और
भािकुँिर अपिे खयालो मे िू बी हुई थीं। कुंिर से ऐसी बेअदबी कयोकर हुई ,
यह खयाल मे िहीं आता। उसिे कभी मेरी बातो का ििाब िहीं िदया, िरर
रािा की जयादती है ।
इसिे इस िाच-रं ग का ििरोध िकया होगा, िकया ही चािहए। उनहे कया,
िो कुछ बिेगी-िबगडे गी उसे ििममे लगेगी। यह गुससेिर है ही। झलला गये
होगे। उसे सखत-सुसत कहा होगा। बात की उसे कहॉँ बदािफत, यही तो उसमे
बडा ऐब है , रठकर कहीं चला गया होगा। मगर गया कहॉँ? दग
ु ा फ ! तुम मेरे
लाल की रका करिा, मै उसे तुमहारे सुपुदफ करती हूँ। अफसोस, यह गिब हो
गयाह। मेरा राजय सूिा हो गया और इनहे अपिे राग-रं ग की सूझी हुई है ।
यह सोचते-सोचते रािी के शरीर मे कँपकँपी आ गई, उठकर गससे से कॉप
ँ ती

101
हुई िह बेधडक िाचगािे की महिफल की तरफ चली। करीब पहुँची तो
सुरीली तािे सुिाई दीं। एक बरछी-सी ििगर मे चुभ गयी। आग पर तेल पड
गया।
रािी को दे खते ही गािेिािलयो मे एक हलचल-सी मच गई। कोई िकसी
कोिे मे िा िछपी, कोई िगरती-पडती दरिािे की तरफ भागी। रािा साहब िे
रािी की तरफ घूरकर दे खा। भयािक गुससे का शोला सामिे दहक रहा था।
उिकी तयोिरयो पर भी बल पड गए। खूि बरसाती हुई ऑख
ं े आपस मे
िमलीं। मोम िे लोहे को सामिा िकया।
रािी थराय
फ ी हुई आिाि मे बोली—मेरा इनदरमल कहॉँ गया? यह कहते-
कहते उसकी आिाि रक गई और होठ कॉप
ँ कर रह गए।
रािा िे बेरखी से ििाब िदया—मै िहीं िािता।
रािी िससिकयॉँ भरकर बोली—आप िहीं िािते िक िह कल तीसरे पहर
से गायब है और उसका कहीं पता िहीं? आपकी इि िहरीली िािगिो िे यह
ििष बोया है । अगर उसका बाल भी बॉक
ँ ा हुआ तो उसके ििममेदार आप
होगे।
रािा िे तुसी से कहा—िह बडा घमणिी और िबिकहा हो गया है , मै
उसका मुंह िहीं दे खिा चाहता।
रािी कुचले हुए सॉप
ँ की तरह ऐंठकर बोली—रािा, तुमहारी िबाि से
यह बाते ििकल रही है ! हाय मेरा लो, मेरी ऑख
ं ो की पुलती, मेरे ििगर का
टु कडा, मेरा सब कुछ यो अलोप हो िाए और इस बेरहम का िदल िरा भी ि
पसीिे ! मेरे घर मे आग लग िाए और यहॉँ इनद का अखाडा सिा रहे ! मै
खूि के आँसू रोऊँ और यहॉँ खुशी के राग अलापे िाएं !
रािा के िथिे फडकिे लगे, कडककर बोले—रािी भािकुंिर अब िबाि
बनद करो। मै इससे ियादा िहीं सुि सकता। बेहतर होगा िक तुम महल मे
चली िाओ।
रािी िे िबफरी हुई शेरिी की तरह गदफ ि उठाकर कहा—हॉँ, मै खुद िाती
हूँ। मै हुिरू के ऐश मे ििघि िहीं िालिा चाहती, मगर आपको इसका
भुगताि करिा पडे गा। अचलगि मे या तो भाि कुँिर रहे गी या आपकी
िहरीली, ििषैली पिरयॉँ !
रािा पर इस धमकी को कोई असर ि हुआ। गैिे की ढाल पर कचचे
लोहे का असर कया हो सकता है ! िी मे आया िक साफ-साफ कह दे , भाि
102
कुंिर चाहे रहे या ि रहे यह पिरयां िरर रहे गी लेिकि आपिे को रोककर
बोले—तुमको अिखतयार है , िो ठीक समझो िह करो।
रािी कुछ कदम चलकर िफर लौटीं और बोली—ििया-हठ रहे गी या
रािहठ?
रािा िे ििषकम सिर मे उतर िदया—इस िक तो रािहठ ही रहे गी।

रा िी भािकुंिर के चले िािे के बाद रािा दे िमल िफर अपिे कमरे मे


आ बैठे, मगर िचिनतत और मि िबलकुल बुझा हुआ, मुदे के समाि।
रािी की सखत बातो से िदल के सबसे िािुक िहससो मे टीस और िलि हो
रही थी। पहले तो िह अपिे ऊपर झुंझलाए िक मैिे उसकी बातो को कयो
इतिे धीरि से सुिा मगर िब गुससे की आग धीमी हुई और िदमाग का
सनतुलि िफर असली हालत पर आया तो उि घटिाओं पर अपिे मि मे
ििचार करिे लगे। नयायिपय सिभाि के लोगो के िलए कोध एक चेताििी
होती है , ििससे उनहे अपिे कथि और आचार की अचछाई और बुराई को
िॉच
ं िे और आगे के िलए सािधाि हो िािे का मौका िमलता है । इस कडिी
दिा से अकसर अिुभि को शिक संकट को वयापकता और िचनति को
सिगता पाप होती है । रािा सोचिे लगे—बेशक िरयासत के अनदरिी हालात
के िलहाि से यह सब िाच-रं ग बेमौका है । बेशक िह िरआया के साथ अपिा
फि फ िहीं अदा कर रहे थे। िह इि खचो और इस िैितक धबबे को िमटािे
के िलए तैयार थे, मगर इस तरह िक िुकाचीिी करिे िाली ऑख
ं े उसमे कुछ
और मतलब ि ििकाल सके। िरयासत की शाि कायम रहे । इतिा इनदरमल
से उनहोिे साफ कह िदया था िक अगर इतिे पर भी अपिी ििद से बाि
िहीं आता तो उसकी िढठाई है । हर एक मुमिकि पहलू से गौर करिे पर
रािा साहब के इस फैसले मे िरा भी फेर फार ि हुआ। कुंिर का यो गायब
हो िािा िरर िचनता की बात है और िरयासत के िलए उसके खतरिाक
ितीिे हो सकते है मगर िह अपिे आप को इि ितीिो की ििममदािरयो से
िबलकुल बरी समझते थे। िह यह मािते थे िक इनदरमल के चले िािे के
बाद उिका यह महिफले िमािा बेमौका और दस
ू रो को भडकािेिाला था
मगर इसका कुंिर के आिखरी फैसले पर कया असर पड सकता है ? कुंिर ऐसा

103
िादॉँ, िातिुबक
े ार और बुििदल तो िहीं है िक आतमहतया कर ले, हॉँ, िह दो-
चार िदि इधर-उधर आिारा घूमेगा और अगर ईशर िे कुछ भी िििेक उसे
िदया तो िह दख
ु ी और लिजित होकर िरर चला आएगा। मै खुद उसे ढू ँ ि
ििकालूँगा। िह ऐसा कठोर िहीं है िक अपिे बूिे बाप की मिबूरी पर कुछ
भी धयाि ि दे ।
इनदरमल से फािरग होकर रािा साहब का धयाि रािी की तरफ पहुँचा
और िब उसकी आग की तरह दहकती हुई बाते याद आयीं तो गुससे से
बदि मे पसीिा आ गया और िह बेताब होकर उठकर टहलिे लगे। बेशक, मै
उसके साथ बेरहमी से पेश आया। मॉँ को अपिी औलाद ईमाि से भी जयादा
पयारी होती है और उसका रष होिा उिचत था मगर इि धमिकयो के कया
मािे? इसके िसिा िक िह रठकर मैके चली िाए और मुझे बदिाम करे , िह
मेरा और कया कर सकती है ? अकलमनदो िे कहा है िक औरत की आि
बेिफा होती है , िह मीठे पािी की चंचल, चुलबुली-चमकीली धारा है , ििसकी
गोद मे चहकती और िचमटती है उसे बालू का ढे र बिाकर छोडती है । यही
भािकुँिर है ििसकी िािबरदािरयां मुहबबत का दिा फ रखती है । आह , कया
िह िपछली बाते भूल िाऊँ ! कया उनहे िकससा समझकर िदल को तसकीि
दँ।ू
इसी बीच मे एक लौडी िे आकर कहा िक महारािी िे हाथी मँगिाया
है और ि िािे कहॉँ िा रही है । कुछ बताती िहीं। रािा िे सुिा और मुँह
फेर िलया।

श हर इनदौर से तीि मील दरू उतर की तरफ घिे पेडो के बीच मे एक


तालाब है ििसके चॉद
ँ ी-िैसे चेहरे से काई का हरा मखमली घूँघट
कभी िहीं उठता। कहते है िकसी िमािे मे उसके चारो तरफ पकके घाट बिे
हुए थे मगर इस िक तो िसफफ यह अिशिुत बाकी थी िो िक इस दिुिया मे
अकसर ईट-पतथर की यादगारी से जयादा िटकाऊ हुआ करती है ।
तालाब के पूरब मे एक पुरािा मिनदर था, उसमे िशि िी राख की
धूिी रमाये खामोश बैठे हुए थे। अबाबीले और िंगली कबूतर उनहीं अपिी
मीठी बोिलयॉँ सुिाया करते। मगर उस िीरािे मे भी उिके भको की कमी ि
थी। मंिदर के अनदर भरा हुआ पािी और बाहर बदबूदार कीचड, इस भिक के

104
पमाण थे। िह मुसािफर िो इस तालाब मे िहाता उसके एक लोटे पािी से
अपिे ईशर की पयास बुझाता था। िशि िी खाते कुछ ि थे मगर पािी
बहुत पीते थे। उिकी ि बुझिेिाली पयास कभी ि बुझती थी।
तीसरे पहर का िक था। किार की धूप तेि थी। कुंिर इनदरमल अपिे
हिा की चालिाले घोडे पर सिार इनदौर की तरफ से आए और एक पेड की
छाया मे ठहर गए। िह बहुत उदास थे। उनहोिे घोडे को पेड से बॉध
ँ िदया
और खुद िीि के ऊपर िालिेिाला कपडा िबछाकर लेट रहे । उनहे अचलगि
से ििकले आि तीसरा िदि है मगर िचनताओं िे पलक िहीं झपकिे दी।
रािी भािकुंिर उसके िदल से एक पल के िलए भी दरू ि होती थी। इस िक
ठणिी हिा लगी तो िींद आ गई। सपिे मे दे खिे लगा िक िैसे रािी आई है
और उसे गले लगाकर रो रही है । चौककर ऑख
ं े खोलीं तो रािी सचमुच
सामिे खडी उसकी तरफ ऑस
ं ू भरी ऑख
ं ो से ताक रही थीं। िह उठ बैठा
और मॉँ के पैरो को चूमा। मगर रािी िे ममता से उठाकर गले लगा लेिे के
बिाय अपिे पॉि
ँ हटा िलए और मुंह से कुछ ि बोली।
इनदरमल िे कहा—मॉँ िी, आप मुझसे िाराि है ?
रािी िे रखाई से ििाब िदया—मै तुमहारी कौि होती हूँ !
कुंिर —आपको यकीि आए ि आए, मै िब से अचलगि से चला हूँ
एक पल के िलए भी आपका खयाल िदल से दरू िहीं हुआ। अभी आप ही को
सपिे मे दे ख रहा था।
इि शबदो िे रािी का गुससा ठं िा िकया। कुँिर की ओर से िििित
होकर अब िह रािा का धयाि कर रही थी। उसिे कुंिर से पूछा —तुम तीि
िदि कहॉँ रहे ?
कुंिर िे िािाब िदया —कया बताऊँ, कहॉँ रहा। इनदौर चला गया था
िहॉँ पोिलिटकल एिेणट से सारी कथा कह सुिाई।
रािी िे यह सुिा तो माथा पीटकर बोली—तुमिे गिब कर िदया।
आग लगा दी।
इनदरमल—कया करँ , खुद पछताता हूँ, उस िक यही धुि सिार थी।
रािी—मुझे ििि बातो का िर था िह सब हो गई। अब कौि मुंह
लेकर अचलगि िायेगे।
इनदरमल—मेरा िी चाहता है िक अपिा गला घोट लूँ।

105
रािी—गुससा बुरी बला है । तुमहारे आिे के बाद मैिे रार मचाई और
कुद यही इरादा करके इनदौर िा रही थी, रासते मे तुम िमल गए।
यह बाते हो ही रही थीं िक सामिे से बहे िलयो और सॉि
ँ िियो की एक
लमबी कतार आती हुई िदखाई दीं। सॉड
ँ िियो पर मदफ सिार थे। सुरमा लगी
ऑख
ं ो िाले, पेचदार िुलफोिाले। बहे िलयो मे हुसि के िलिे थे। शोख ििगाहे ,
बेधडक िचतििे, यह उि िाच-रं ग िालो का कािफला था िो अचलगि से
ििराश और िखनि चला आता था। उनहोिे रािी की सिारी दे खी और कुंिर
का घोडा पहचाि िलया। घमणि से सलाम िकया मगर बोले िहीं। िब िह
दरू ििकल गए तो कुंिर िे िोर से कहकहा मारा। यह िििय का िारा था।
रािी िे पूछा—यह कया कायापलट हो गई। यह सब अचलगि से लौटे
आते है और ऐि दशहरे के िदि?
इनदरमल बडे गि फ से बोले—यह पोिलिटकल एिेणट के इिकारी तार
के किरिमे है , मेरी चाल िबलकुल ठीक पडी।
रािी का सनदे ह दरू हो गया। िरर यही बात है यह इिकारी तार की
करामात है । िह बडी दे र तक बेसुध-सी िमीि की तरफ ताकती रही और
उसके िदल मे बार-बार यह सिाल पैदा होता था, कया इसी का िाम रािहठ
है ।
आिखरी इनदरमल िे खामोशी तोडी—कया आि चलिे का इरादा है िक
कल?
रािी—कल शाम तक हमको अचलगि पहुँचिा है , महाराि घबराते होगे।

-िमािा, िसतमबर १९१२

106
ििय ा-चिर ि

से
ठ लगिदास िी के िीिि की बिगया फलहीि थी। कोई ऐसा माििीय,
आधयाितमक या िचिकतसातमक पयत ि था िो उनहोिे ि िकया हो।
यो शादी मे एक पतीवत के कायल थे मगर िररत और आगह से िििश
होकर एक-दो िहीं पॉच
ँ शािदयॉँ कीं, यहॉँ तक िक उम के चालीस साल गुिए
गए और अँधेरे घर मे उिाला ि हुआ। बेचारे बहुत रं िीदा रहते। यह धि-
संपित, यह ठाट-बाट, यह िैभि और यह ऐशय फ कया होगे। मेरे बाद इिका
कया होगा, कौि इिको भोगेगा। यह खयाल बहुत अफसोसिाक था। आिखर
यह सलाह हुई िक िकसी लडके को गोद लेिा चािहए। मगर यह मसला
पािरिािरक झगडो के कारण के सालो तक सथिगत रहा। िब सेठ िी िे
दे खा िक बीिियो मे अब तक बदसतूर कशमकश हो रही है तो उनहोिे िैितक
साहस से काम िलया और होिहार अिाथ लडके को गोद ले िलया। उसका
िाम रखा गया मगिदास। उसकी उम पॉच
ँ -छ: साल से जयादा ि थी। बला
का िहीि और तमीिदार। मगर औरते सब कुछ कर सकती है , दस
ू रे के
बचचे को अपिा िहीं समझ सकतीं। यहॉँ तो पॉच
ँ औरतो का साझा था।
अगर एक उसे पयार करती तो बाकी चार औरतो का फज था िक उससे
िफरत करे । हॉँ, सेठ िी उसके साथ िबलकुल अपिे लडके की सी मुहबबत
करते थे। पिािे को मासटर रकखे, सिारी के िलए घोडे । रईसी खयाल के
आदमी थे। राग-रं ग का सामाि भी मुहैया था। गािा सीखिे का लडके िे
शौक िकया तो उसका भी इं तिाम हो गया। गरि िब मगिदास ििािी पर
पहुँचा तो रईसािा िदलचािसपयो मे उसे कमाल हािसल था। उसका गािा
सुिकर उसताद लोग कािो पर हाथ रखते। शहसिार ऐसा िक दौडते हुए घोडे
पर सिार हो िाता। िील-िौल, शकल सूरत मे उसका-सा अलबेला ििाि
िदलली मे कम होगा। शादी का मसला पेश हुआ। िागपुर के करोडपित सेठ
मकखिलाल बहुत लहराये हुए थे। उिकी लडकी से शादी हो गई। धूमधाम
का ििक िकया िाए तो िकससा िियोग की रात से भी लमबा हो िाए।
मकखिलाल का उसी शादी मे दीिाला ििकल गया। इस िक मगिदास से
जयादा ईषया फ के योगय आदमी और कौि होगा? उसकी ििनदगी की बहार
उमंगो पर भी और मुरादो के फूल अपिी शबिमी तािगी मे िखल-िखलकर

107
हुसि और तािगी का समाँ िदखा रहे थे। मगर तकदीर की दे िी कुछ और
ही सामाि कर रही थी। िह सैर-सपाटे के इरादे से िापाि गया हुआ था िक
िदलली से खबर आई िक ईशर िे तुमहे एक भाई िदया है । मुझे इतिी खुशी
है िक जयादा असे तक ििनदा ि रह सकूँ। तुम बहुत िलद लौट आओं।
मगिदास के हाथ से तार का कागि छूट गया और सर मे ऐसा
चककर आया िक िैसे िकसी ऊँचाई से िगर पडा है ।

म गिदास का िकताबी जाि बहुत कम था। मगर सिभाि की


सजििता से िह खाली हाथ ि था। हाथो की उदारता िे, िो समिृि
का िरदाि है , हदय को भी उदार बिा िदया था। उसे घटिाओं की इस
कायापलट से दख
ु तो िरर हुआ, आिखर इनसाि ही था, मगर उसिे धीरि
से काम िलया और एक आशा और भय की िमली-िुली हालत मे दे श को
रिािा हुआ।
रात का िक था। िब अपिे दरिािे पर पहुँचा तो िाच-गािे की
महिफल सिी दे खी। उसके कदम आगे ि बिे लौट पडा और एक दक
ु ाि के
चबूतरे पर बैठकर सोचिे लगा िक अब कया करिा चािहऐ। इतिा तो उसे
यकीि था िक सेठ िी उसक साथ भी भलमिसी और मुहबबत से पेश
आयेगे बिलक शायद अब और भी कृ पा करिे लगे। सेठािियॉँ भी अब उसके
साथ गैरो का-सा िताि
फ ि करे गी। मुमिकि है मझली बहू िो इस बचचे की
खुशिसीब मॉँ थीं, उससे दरू-दरू रहे मगर बाकी चारो सेठािियो की तरफ से
सेिा-सतकार मे कोई शक िहीं था। उिकी िाह से िह फायदा उठा सकता
था। ताहम उसके सिािभमाि िे गिारा ि िकया िक ििस घर मे मािलक की
है िसयत से रहता था उसी घर मे अब एक आिशत की है िसयत से ििनदगी
बसर करे । उसिे फैसला कर िलया िक सब यहॉँ रहिा ि मुिािसब है , ि
मसलहत। मगर िाऊँ कहॉं? ि कोई ऐसा फि सीखा, ि कोई ऐसा इलम
हािसल िकया ििससे रोिी कमािे की सूरत पैदा होती। रईसािा िदलचिसपयॉँ
उसी िक तक कद की ििगाह से दे खी िाती है िब तक िक िे रईसो के
आभूषण रहे । िीििका बि कर िे सममाि के पद से िगर िाती है । अपिी
रोिी हािसल करिा तो उसके िलए कोई ऐसा मुििकल काम ि था। िकसी

108
सेठ-साहूकार के यहॉँ मुिीम बि सकता था, िकसी कारखािे की तरफ से
एिेट हो सकता था, मगर उसके कनधे पर एक भारी िुआ रकखा हुआ था,
उसे कया करे । एक बडे सेठ की लडकी ििसिे लाड-पयार मे पिरििरश पाई,
उससे यह कंगाली की तकलीफे कयोकर झेली िाऍग
ं ीं कया मकखिलाल की
लाडली बेटी एक ऐसे आदमी के साथ रहिा पसनद करे गी ििसे रात की रोटी
का भी िठकािा िहीं ! मगर इस िफक मे अपिी िाि कयो खपाऊँ। मैिे
अपिी मिी से शादी िहीं की मै बराबर इिकार करता रहा। सेठ िी िे
िबदफ सती मेरे पैरो मे बेडी िाली है । अब िही इसके ििममेदार है । मुझ से
कोई िासता िहीं। लेिकि िब उसिे दब
ु ारा ठं िे िदल से इस मसले पर गौर
िकया तो िचाि की कोई सूरत ििर ि आई। आिखकार उसिे यह फैसला
िकया िक पहले िागपुर चलूँ, िरा उि महारािी के तौर-तरीके को दे खूँ, बाहर-
ही-बाहर उिके सिभाि की, िमिाि की िॉच
ँ करँ। उस िक तय करँगा िक
मुझे कया करके चािहये। अगर रईसी की बू उिके िदमाग से ििकल गई है
और मेरे साथ रखी रोिटयॉँ खािा उनहे मंिरू है , तो इससे अचछा िफर और
कया, लेिकि अगर िह अमीरी ठाट-बाट के हाथो िबकी हुई है तो मेरे िलए
रासता साफ है । िफर मै हूँ और दिुिया का गम। ऐसी िगह िाऊँ िहॉँ िकसी
पिरिचत की सूरत सपिे मे भी ि िदखाई दे । गरीबी की ििललत िहीं रहती,
अगर अिििबयो मे ििनदगी बसरा की िाए। यह िाििे -पहचाििे िालो की
कििखयाँ और किबितयॉँ है िो गरीबी को यनिणा बिा दे ती है । इस तरह
िदल मे ििनदगी का िकशा बिाकर मगिदास अपिी मदाि
फ ा िहममत के
भरोसे पर िागपुर की तरफ चला, उस मललाह की तरह िो िकिती और पाल
के बगैर िदी की उमडती हुई लहरो मे अपिे को िाल दे ।

शा म के िक सेठ मकखिलाल के सुंदर बगीचे मे सूरि की पीली


िकरणे मुरझाये हुए फूलो से गले िमलकर ििदा हो रही थीं। बाग
के बीच मे एक पकका कुऑ ं था और एक मौलिसरी का पेड। कुँए के मुँह पर
अंधेरे की िीली-सी िकाब थी, पेड के िसर पर रोशिी की सुिहरी चादर। इसी
पेड मे एक िौििाि थका-मांदा कुऍ ं पर आया और लोटे से पािी भरकर
पीिे के बाद िगत पर बैठ गया। मािलि िे पूछा- कहॉँ िाओगे? मगिदास िे

109
ििाब िदया िक िािा तो था बहुत दरू, मगर यहीं रात हो गई। यहॉँ कहीं
ठहरिे का िठकािा िमल िाएगा?
मािलक- चले िाओ सेठ िी की धमश
फ ाला मे, बडे आराम की िगह है ।
मगिदास-धमश
फ ाले मे तो मुझे ठहरिे का कभी संयोग िहीं हुआ। कोई
हिफ ि हो तो यहीं पडा रहूँ। यहाँ कोई रात को रहता है ?
मािलक- भाई, मै यहॉँ ठहरिे को ि कहूँगी। यह बाई िी की बैठक है ।
झरोखे मे बैठकर सेर िकया करती है । कहीं दे ख-भाल ले तो मेरे िसर मे एक
बाल भी ि रहे ।
मगिदास- बाई िी कौि?
मािलक- यही सेठ िी की बेटी। इिनदरा बाई।
मगिदास- यह गिरे उनहीं के िलए बिा रही हो कया?
मािलि- हॉँ, और सेठ िी के यहॉँ है ही कौि? फूलो के गहिे बहुत पसनद
करती है ।
मािदास- शौकीि औरत मालूम होती है ?
मािलक- भाई, यही तो बडे आदिमयो की बाते है । िह शौक ि करे तो
हमारा-तुमहारा ििबाह कैसे हो। और धि है िकस िलए। अकेली िाि पर दस
लौिियॉँ है । सुिा करती थी िक भगिाि आदमी का हल भूत िोतता है िह
ऑख
ं ो दे खा। आप-ही-आप पंखा चलिे लगे। आप-ही-आप सारे घर मे िदि
का-सा उिाला हो िाए। तुम झूठ समझते होगे, मगर मै ऑख
ं ो दे खी बात
कहती हूँ।
उस गि फ की चेतिा के साथ िो िकसी िादाि आदमी के सामिे अपिी
िािकारी के बयाि करिे मे होता है , बूिी मािलि अपिी सिज
फ ता का पदशि

करिे लगी। मगिदास िे उकसाया- होगा भाई, बडे आदमी की बाते ििराली
होती है । लकमी के बस मे सब कुछ है । मगर अकेली िाि पर दस लौिियॉँ ?
समझ मे िहीं आता।
मािलि िे बुिापे के िचडिचडे पि से ििाब िदया- तुमहारी समझ मोटी हो
तो कोई कया करे ! कोई पाि लगाती है , कोई पंखा झलती है , कोई कपडे
पहिाती है , दो हिार रपये मे तो सेिगाडी आयी थी, चाहो तो मुँह दे ख लो,
उस पर हिा खािे िाती है । एक बंगािलि गािा-बिािा िसखाती है , मेम
पिािे आती है , शासी िी संसकृ त पिाते है , कागद पर ऐसी मूरत बिाती है
िक अब बोली और अब बोली। िदल की रािी है , बेचारी के भाग फूट गए।
110
िदलली के सेठ लगिदास के गोद िलये हुए लडके से बयाह हुआ था। मगर
राम िी की लीला सतर बरस के मुदे को लडका िदया, कौि पितयायेगा। िब
से यह सुिाििी आई है , तब से बहुत उदास रहती है । एक िदि रोती थीं। मेरे
सामिे की बात है । बाप िे दे ख िलया। समझािे लगे। लडकी को बहुत चाहते
है । सुिती हूँ दामाद को यहीं बुलाकर रकखेगे। िारायि करे , मेरी रािी दध
ू ो
िहाय पतो फले। माली मर गया था, उनहोिे आड ि ली होती तो घर भर के
टु कडे मॉग
ँ ती।
मगिदास िे एक ठणिी सॉस
ँ ली। बेहतर है , अब यहॉँ से अपिी
इजित-आबर िलये हुए चल दो। यहॉँ मेरा ििबाह ि होगा। इिनदरा रईसिादी
है । तुम इस कािबल िहीं हो िक उसके शौहर बि सको। मािलि से बोला-ता
धमश
फ ाले मे िाता हूँ। िािे िहॉँ खाट-िाट िमल िाती है िक िहीं, मगर रात
ही तो काटिी है िकसी तरह कट ही िाएगी रईसो के िलए मखमली गदे
चािहए, हम मिदरूो के िलए पुआल ही बहुत है ।
यह कहकर उसिे लुिटया उठाई, िणिा समहाला और ददफ भरे िदल से
एक तरफ चल िदया।
उस िक इिनदरा अपिे झरोखे पर बैठी हुई इि दोिो की बाते सुि रही
थी। कैसा संयोग है िक सी को सिग फ की सब िसिियॉँ पाप है और उसका
पित आिरो की तरह मारा-मारा िफर रहा है । उसे रात काटिे का िठकािा
िहीं।


की एक दक
गिदास ििराश ििचारो मे िू बा हुआ शहर से बाहर ििकल आया
और एक सराय मे ठहरा िो िसफफ इसिलए मशहूर थी, िक िहॉँ शराब
ु ाि थी। यहॉँ आस-पास से मिदरू लोग आ-आकर अपिे दख
ु को
भुलाया करते थे। िो भूले-भटके मुसािफर यहॉँ ठहरते, उनहे होिशयारी और
चौकसी का वयािहािरक पाठ िमल िाता था। मगिदास थका-मॉद
ँ ा ही, एक
पेड के िीचे चादर िबछाकर सो रहा और िब सुबह को िींद खुली तो उसे
िकसी पीर-औिलया के जाि की सिीि दीका का चमतकार िदखाई पडा
ििसकी पहली मंििल िैरागय है । उसकी छोटी-सी पोटली, ििसमे दो-एक
कपडे और थोडा-सा रासते का खािा और लुिटया-िोर बंधी हुई थी, गायब हो
गई। उि कपडो को छोडकर िो उसके बदर पर थे अब उसके पास कुछ भी

111
ि था और भूख, िो कंगाली मे और भी तेि हो िाती है , उसे बेचैि कर रही
थी। मगर दि सिभाि का आदमी था, उसिे िकसमत का रोिा रोया िकसी
तरह गुिर करिे की तदबीरे सोचिे लगा। िलखिे और गिणत मे उसे अचछा
अभयास था मगर इस है िसयत मे उससे फायदा उठािा असमभि था। उसिे
संगीत का बहुत अभयास िकया था। िकसी रिसक रईस के दरबार मे उसकी
कद हो सकती थी। मगर उसके पुरषोिचत अिभमाि िे इस पेशे को
अिखयतार करिे इिाित ि दी। हॉँ, िह आला दिे का घुडसिार था और यह
फि मिे मे पूरी शाि के साथ उसकी रोिी का साधि बि सकता था यह
पकका इरादा करके उसिे िहममत से कदम आगे बिाये। ऊपर से दे खिे पर
यह बात यकीि के कािबल िही मालूम होती मगर िह अपिा बोझ हलका
हो िािे से इस िक बहुत उदास िहीं था। मदाि
फ ा िहममत का आदमी ऐसी
मुसींबतो को उसी ििगाह से दे खता है ,ििसमे एक होिशयार ििदाथी परीका
के पशो को दे खता है उसे अपिी िहममत आिमािे का, एक मुििकल से
िूझिे का मौका िमल िाता है उसकी िहममत अििािे ही मिबूत हो
िाती है । अकसर ऐसे माके मदाि
फ ा हौसले के िलए पेरणा का काम दे ते है ।
मगिदास इस िोश से कदम बिाता चला िाता था िक िैसे कायमाबी की
मंििल सामिे ििर आ रही है । मगर शायद िहाँ के घोडो िे शरारत और
िबगडै लपि से तौबा कर ली थी या िे सिाभाििक रप बहुत मिे मे धीमे -
धीमे चलिे िाले थे। िह ििस गांि मे िाता ििराशा को उकसािे िाला
ििाब पाता आिखरकार शाम के िक िब सूरि अपिी आिखरी मंििल पर
िा पहुँचा था, उसकी किठि मंििल तमाम हुई। िागरघाट के ठाकुर
अटलिसहं िे उसकी िचनता मो समाप िकया।
यह एक बडा गाँि था। पकके मकाि बहुत थे। मगर उिमे पेतातमाऍ ं
आबाद थीं। कई साल पहले पलेग िे आबादी के बडे िहससे का इस कणभंगुर
संसार से उठाकर सिग फ मे पहुच िदया था। इस िक पलेग के बचे-खुचे िे
लोग गांि के िौििाि और शौकीि िमींदार साहब और हलके के कारगुिार
ओर रोबीले थािेदार साहब थे। उिकी िमली-िुली कोिशशो से गॉि
ँ मे सतयुग
का राि था। धि दौलत को लोग िाि का अिाब समझते थे ।उसे गुिाह
की तरह छुपाते थे। घर-घर मे रपये रहते हुए लोग किफ ले-लेकर खाते और
फटे हालो रहते थे। इसी मे ििबाह था । कािल की कोठरी थी, सफेद कपडे
पहििा उि पर धबबा लगािा था। हुकूमत और िबरद्फसती का बािार गमफ
112
था। अहीरो को यहाँ आँिि के िलए भी दध
ू ि था। थािे मे दध
ू की िदी
बहती थी। मिेशीखािे के मुहिरफ र दध
ू की कुिललयाँ करते थे। इसी
अंधेरिगरी को मगिदास िे अपिा घर बिाया। ठाकुर साहब िे असाधारण
उदारता से काम लेकर उसे रहिे के िलए एक माकि भी दे िदया। िो केिल
बहुत वयापक अथो मे मकाि कहा िा सकता था। इसी झोपडी मे िह एक
हफते से ििनदगी के िदि काट रहा है । उसका चेहरा िदफ है । और कपडे
मैले हो रहे है । मगर ऐसा मालूम होता है िक उस अब इि बातो की
अिुभूित ही िही रही। ििनदा है मगर ििनदगी रखसत हो गई है । िहममत
और हौसला मुििकल को आसाि कर सकते है ऑध
ं ी और तुफाि से बचा
सकते है मगर चेहरे को िखला सकिा उिके सामथय फ से बाहर है टू टी हुई
िाि पर बैठकरी मलहार गािा िहममत काम िही िहमाकत का काम है ।
एक रोि िब शाम के िक िह अंधरे मे खाट पर पडा हुआ था। एक
औरत उसके दरिारिे पर आकर भीख मांगिे लगी। मगिदास का आिाि
िपरिचत िाि पिी। बहार आकर दे खा तो िही चमपा मािलि थी। कपडे
तार–तार, मुसीबत की रोती हुई तसबीर। बोला-मािलि ? तुमहारी यह कया
हालत है । मुझे पहचािती हो।?
मािलि िे चौकरक दे खा और पहचाि गई। रोकर बोली –बेटा, अब
बताओ मेरा कहाँ िठकािा लगे? तुमिे मेरा बिा बिाया घर उिाड िदया ि
उसे िदि तुमसे बात करती िे मुझे पर यह िबपत पडती। बाई िे तुमहे
बैठे दे ख िलया, बाते भी सुिी सुबह होते ही मुझे बुलाया और बरस पडी
िाक कटिा लूग
ँ ी, मुंह मे कािलख लगिा दँग
ू ी, चुडैल, कुटिी, तू मेरी बात
िकसी गैर आदमी से कयो चलाये? तू दस
ू रो से मेरी चचाफ करे ? िह कया तेरा
दामाद था, िो तू उससे मेरा दख
ु डा रोती थी? िो कुछ मुंह मे आया
बकती रही मुझसे भी ि सहा गया। रािी रठे गी अपिा सुहाग लेगी! बोली-
बाई िी, मुझसे कसूर हुआ, लीििए अब िाती हूँ छींकते िाक कटती है तो
मेरा ििबाह यहाँ ि होगा। ईशर िे मुंह िदया है तो आहार भी दे गा चार
घर से माँगूँगी तो मेरे पेट को हो िाऐगा।। उस छोकरी िे मुझे खडे
खडे ििकलिा िदया। बताओ मैिे तुमसे उसकी कौि सी िशकायत की थी?
उसकी कया चचा फ की थी? मै तो उसका बखाि कर रही थी। मगर बडे
आदिमयो का गुससा भी बडा होता है । अब बताओ मै िकसकी होकर रहूँ?
आठ िदि इसी िदि तरह टु कडे माँगते हो गये है । एक भतीिी उनहीं के यहाँ
113
लौिियो मे िौकर थी, उसी िदि उसे भी ििकाल िदया। तुमहारी बदौलत, िो
कभी ि िकया था, िह करिा पडा तुमहे कहो का दोष लगाऊं िकसमत मे िो
कुछ िलखा था, दे खिा पडा।
मगिदास सनिाटे मे िो कुछ िलखा था। आह िमिाि का यह हाल है , यह
घमणि, यह शाि! मािलि का इतमीिि िदलाया उसके पास अगर दौलत होती
तो उसे मालामाल कर दे ता सेठ मकखिलाल की बेटी को भी मालूम हो
िाता िक रोिी की कूंिी उसी के हाथ मे िहीं है । बोला -तुम िफक ि करो,
मेरे घर मे आराम से रहो अकेले मेरा िी भी िहीं लगता। सच कहो तो मुझे
तुमहारी तरह एक औरत की तलाशा थी, अचछा हुआ तुम आ गयीं।
मािलि िे आंचल फैलाकर असीम िदया– बेटा तुम िुग-िुग िियो
बडी उम हो यहॉँ कोई घर िमले तो मुझे िदलिा दो। मै यही रहूँगी तो मेरी
भतीिी कहाँ िाएगी। िह बेचारी शहर मे िकसके आसरे रहे गी।
मगिलाल के खूि मे िोश आया। उसके सिािभमाि को चोट लगी।
उि पर यह आफत मेरी लायी हुई है । उिकी इस आिारागदी को ििममेदार
मै हूँ। बोला–कोई हि फ ि हो तो उसे भी यहीं ले आओ। मै िदि को यहाँ
बहुत कम रहता हूँ। रात को बाहर चारपाई िालकर पड रहा करँ गा। मेरी
िहि से तुम लोगो को कोई तकलीफ ि होगी। यहाँ दस
ू रा मकाि िमलिा
मुििकल है यही झोपडा बडी मुििकलो से िमला है । यह अंधेरिगरी है िब
तुमहरी सुभीता कहीं लग िाय तो चली िािा।
मगिदास को कया मालूम था िक हिरते इिक उसकी िबाि पर बैठे
हुए उससे यह बात कहला रहे है । कया यह ठीक है िक इिक पहले माशूक के
िदल मे पैदा होता है ?

िा गपुर इस गॉि से बीस मील की दरूी पर था। चममा उसी िदि


चली गई और तीसरे िदि रमभा के साथ लौट आई। यह उसकी
भतीिी का िाम था। उसक आिे से झोपिे मे िाि सी पड गई। मगिदास
के िदमाग मे मािलि की लडकी की िो तसिीर थी उसका रमभा से कोई
मेल ि था िह सौदयफ िाम की चीि का अिुभिी िौहरी था मगर ऐसी सूरत
ििसपर ििािी की ऐसी मसती और िदल का चैि छीि लेिेिाला ऐसा
आकषण
फ हो उसिे पहले कभी िहीं दे खा था। उसकी ििािी का चॉद
ँ अपिी

114
सुिहरी और गमभीर शाि के साथ चमक रहा था। सुबह का िक था
मगिदास दरिािे पर पडा ठणिी–ठणिी हिा का मिा उठा रहा था। रमभा
िसर पर घडा रकखे पािी भरिे को ििकली मगिदास िे उसे दे खा और एक
लमबी साँस खींचकर उठ बैठा। चेहरा-मोहरा बहुत ही मोहम। तािे फूल की
तरह िखला हुआ चेहरा आंखो मे गमभीर सरलता मगिदास को उसिे भी
दे खा। चेहरे पर लाि की लाली दौड गई। पेम िे पहला िार िकया।
मगिदास सोचिे लगा-कया तकदीर यहाँ कोई और गुल िखलािे िाली
है ! कया िदल मुझे यहां भी चैि ि लेिे दे गा। रमभा, तू यहाँ िाहक आयी,
िाहक एक गरीब का खूि तेरे सर पर होगा। मै तो अब तेरे हाथो िबक
चुका, मगर कया तू भी मेरी हो सकती है ? लेिकि िहीं, इतिी िलदबािी ठीक
िहीं िदल का सौदा सोच-समझकर करिा चािहए। तुमको अभी िबत करिा
होगा। रमभा सुनदरी है मगर झूठे मोती की आब और ताब उसे सचचा िहीं
बिा सकती। तुमहे कया खबर िक उस भोली लडकी के काि पेम के शबद से
पिरिचत िहीं हो चुके है ? कौि कह सकता है िक उसके सौनदय फ की िािटका
पर िकसी फूल चुििेिाले के हाथ िही पड चुके है ? अगर कुछ िदिो की
िदलबसतगी के िलए कुछ चािहए तो तुम आिाद हो मगर यह िािुक
मामला है , िरा समहल के कदम रखिा। पेशेिर िातो मे िदखाई पडिेिाला
सौनदयफ अकसर िैितक बनधिो से मुक होता है ।
तीि महीिे गुिर गये। मगिदास रमभा को जयो जयो बारीक से
बारीक ििगाहो से दे खता तयो–तयो उस पर पेम का रं ग गाढा होता
िाता था। िह रोि उसे कुँए से पािी ििकालते दे खता िह रोि घर मे
झािु दे ती, रोि खािा पकाती आह मगिदास को उि जिार की रोिटयां मे
मिा आता था, िह अचछे से अचछे वयंििो मे, भी ि आया था। उसे अपिी
कोठरी हमेशा साफ सुधरी िमलती ि िािे कौि उसके िबसतर िबछा दे ता।
कया यह रमभा की कृ पा थी? उसकी ििगाहे शमीली थी उसिे उसे कभी
अपिी तरफ चचंल आंखो स ताकते िही दे खा। आिाि कैसी मीठी उसकी
हं सी की आिाि कभी उसके काि मे िही आई। अगर मगिदास उसके पेम
मे मतिाला हो रहा था तो कोई ताजिुब की बात िही थी। उसकी भूखी
ििगाहे बेचैिी और लालसा मे िु बी हुई हमेशा रमभा को ढु ढां करतीं। िह िब
िकसी गाँि को िाता तो मीलो तक उसकी ििदी और बेताब ऑख
ं े मुड–
मूडकर झोपडे के दरिािे की तरफ आती। उसकी खयाित आस पास फैल गई
115
थी मगर उसके सिभाि की मुसीित और उदारहयता से अकसर लोग
अिुिचत लाभ उठाते थे इनसाफपसनद लोग तो सिागत सतकार से काम
ििकाल लेते और िो लोग जयादा समझदार थे िे लगातार तकािो का
इनतिार करते चूिं क मगिदास इस फि को िबलकुल िहीं िािता था।
बाििूद िदि रात की दौड धूप के गरीबी से उसका गला ि छुटता। िब िह
रमभा को चककी पीसते हुए दे खता तो गेहूँ के साथ उसका िदल भी िपस
िाता था ।िह कुऍ ं से पािी ििकालती तो उसका कलेिा ििकल आता । िब
िह पडोस की औरत के कपडे सीती तो कपडो के साथ मगिदास का िदल
िछद िाता। मगर कुछ बस था ि काबू।
मगिदास की हदयभेदी दिष को इसमे तो कोई संदेह िहीं था िक उसके
पेम का आकषण
फ िबलकुल बेअसर िही है ििा फ रमभा की उि िफा से भरी
हुई खाितरदिरयो की तुक कैसा िबठाता िफा ही िह िाद ू है रप के गि फ का
िसर िीचा कर सकता है । मगर। पेिमका के िदल मे बैठिे का मादा उसमे
बहुत कम था। कोई दस
ू रा मिचला पेमी अब तक अपिे िशीकरण मे
कामायाब हो चुका होता लेिकि मगिदास िे िदल आशिक का पाया था और
िबाि माशूक की।
एक रोि शाम के िक चमपा िकसी काम से बािार गई हुई थी और
मगिदास हमेशा की तरह चारपाई पर पडा सपिे दे ख रहा था। रमभा अदभूत
छटा के साथ आकर उसके समिे खिी हो गई। उसका भोला चेहरा कमल की
तरह िखला हुआ था। और आखो से सहािुभूित का भाि झलक रहा था।
मगिदास िे उसकी तरफ पहले आिय फ और िफर पेम की ििगाहो से दे खा
और िदल पर िोर िालकर बोला-आओं रमभा, तुमहे दे खिे को बहुत िदि से
आँखे तरस रही थीं।
रमभा िे भोलेपि से कहा-मै यहां ि आती तो तुम मुझसे कभी ि
बोलेते।
मगिदास का हौसला बढा, बोला-िबिा मिी पाये तो कुता भी िही
आता।
रमभा मुसकराई, कली िखल गई–मै तो आप ही चली आई।
मगिदास का कलेिा उछल पडा। उसिे िहममत करके रमभा का हाथ
पकड िलया और भािािेश से कॉपती हुई आिाि मे बोला–िहीं रमभा ऐसा
िही है । यह मेरी महीिो की तपसया का फल है ।
116
मगिदास िे बेताब होकर उसे गले से लगा िलया। िब िह चलिे
लगी तो अपिे पेमी की ओर पेम भरी दिष से दे खकर बोली–अब यह पीत
हमको ििभािी होगी।
पौ फटिे के िक िब सूयफ दे िता के आगमि की तैयािरयॉँ हो रही थी
मगिदास की आँखे खुली रमभा आटा पीस रही थी। उस शांितपूणफ सनिाटे मे
चककी की घुमर–घुमर बहुत सुहािी मालूम होती थी और उससे सूर िमलाकर
आपिे पयारे ढं ग से गाती थी।
झुलिियाँ मोरी पािी मे िगरी
मै िािूं िपया मौको मिैहै
उलटी मिािि मोको पडी
झुलिियाँ मोरी पािी मे िगरी
साल भर गुिर गया। मगिदास की मुहबबत और रमभा के सलीके ि
िमलकर उस िीराि झोपडे को कुंि बाग बिा िदया। अब िहां गाये थी। फूलो
की कयािरयाँ थीं और कई दे हाती ढं ग के मोिे थे। सुख–सुििधा की अिेक
चीिे िदखाई पडती थी।
एक रोि सुबह के िक मगिदास कही िािे के िलए तैयार हो रहा था
िक एक समभांत वयिक अंगेिी पोशाक पहिे उसे ढू ढं ता हुआ आ पहुंचा और
उसे दे खते ही दौडकर गले से िलपट गया। मगिदास और िह दोिो एक
साथ पिा करते थे। िह अब िकील हो गया। था। मगिदास िे भी अब
पहचािा और कुछ झेपता और कुछ िझझकता उससे गले िलपट गया। बडी
दे र तक दोिो दोसत बाते करते रहे । बाते कया थीं घटिाओं और संयोगो की
एक लमबी कहािी थी। कई महीिे हुए सेठ लगि का छोटा बचचा चेचक की
ििर हो गया। सेठ िी िे दख
ु क मारे आतमहतया कर ली और अब
मगिदास सारी िायदाद, कोठी इलाके और मकािो का एकछि सिामी था।
सेठािियो मे आपसी झगडे हो रहे थे। कमच
फ ािरयो ि गबि को अपिा ढं ग
बिा रकखा था। बिी सेठािी उसे बुलािे के िलए खुद आिे को तैयार थी,
मगर िकील साहब िे उनहे रोका था। िब मदिदास ि मुसकाराकर पुछा–
तुमहो कयोकर मालूम हुआ िक मै। यहाँ हूँ तो िकील साहब िे फरमाया-
महीिे भर से तुमहारी टोह मे हूँ। सेठ मकखलाल िे अता-पता बतलाया। तूम
िदलली पहुँचे और मैिे अपिा महीिे भर का िबल पेश िकया।

117
रमभा अधीर हो रही थी। िक यह कौि है और इिमे कया बाते हो
रही है ? दस बिते-बिते िकील साहब मगिदास से एक हफते के अनदर आिे
का िादा लेकर ििदा हुए उसी िक रमभा आ पहुँची और पूछिे लगी-यह
कौि थे। इिका तुमसे कया काम था?
मगिदास िे ििाब िदया- यमराि का दत
ू ।
रमभा–कया असगुि बकते हो!
मगि-िहीं िहीं रमभा, यह असगुि िही है , यह सचमुच मेरी मौत का
दत
ू था। मेरी खुिशयो के बाग को रौदिे िाला मेरी हरी-भरी खेती को उिाडिे
िाला रमभा मैिे तुमहारे साथ दगा की है , मैिे तुमहे अपिे फरे ब क िाल मे
फाँसया है , मुझे माफ करो। मुहबबत िे मुझसे यह सब करिाया मै मगििसहं
ठाकूर िहीं हूँ। मै सेठ लगिदास का बेटा और सेठ मकखिलाल का दामाद
हूँ।
मगिदास को िर था िक रमभा यह सुिते ही चौक पडे गी ओर शायद
उसे िािलम, दगाबाि कहिे लगे। मगर उसका खयाल गलत ििकला! रमभा
िे आंखो मे ऑस
ं ू भरकर िसफफ इतिा कहा-तो कया तुम मुझे छोडकर चले
िाओगे?
मगिदास िे उसे गले लगाकर कहा-हॉ।ँ
रमभा–कयो?
मगि–इसिलए िक इिनदरा बहुत होिशयार सुनदर और धिी है ।
रमभा–मै तुमहे ि छोिू ँ गी। कभी इिनदरा की लौिी थी, अब उिकी सौत
बिूँगी। तुम िितिी मेरी मुहबबत करोगे। उतिी इिनदरा की तो ि करोगे,
कयो?
मगिदास इस भोलेपि पर मतिाला हो गया। मुसकराकर बोला-अब
इिनदरा तुमहारी लौिी बिेगी, मगर सुिता हूँ िह बहुत सुनदर है । कहीं मै
उसकी सूरत पर लुभा ि िाऊँ। मदो का हाल तुम िही िािती मुझे अपिे
ही से िर लगता है ।
रमभा िे ििशासभरी आंखो से दे खकर कहा-कया तुम भी ऐसा करोगे?
उँ ह िो िी मे आये करिा, मै तुमहे ि छोिू ँ गी। इिनदरा रािी बिे, मै लौिी
हूँगी, कया इतिे पर भी मुझे छोड दोगे?
मगिदास की ऑख
ं े िबिबा गयीं, बोला–पयारी, मैिे फैसला कर िलया
है िक िदलली ि िाऊँगा यह तो मै कहिे ही ि पाया िक सेठ िी का
118
सिगि
फ ास हो गया। बचचा उिसे पहले ही चल बसा था। अफसोस सेठ िी
के आिखरी दशि
फ भी ि कर सका। अपिा बाप भी इतिी मुहबबत िही कर
सकता। उनहोिे मुझे अपिा िािरस बिाया है । िकील साहब कहते थे। िक
सेठािरयो मे अिबि है । िौकर चाकर लूट मार-मचा रहे है । िहॉँ का यह हाल
है और मेरा िदल िहॉँ िािे पर रािी िहीं होता िदल तो यहाँ है िहॉँ कौि
िाए।
रमभा िरा दे र तक सोचती रही, िफर बोली-तो मै तुमहे छोड दँग
ू ीं इतिे
िदि तुमहारे साथ रही। ििनदगी का सुख लुटा अब िब तक ििऊँगी इस
सूख का धयाि करती रहूँगी। मगर तुम मुझे भूल तो ि िाओगे? साल मे
एक बार दे ख िलया करिा और इसी झोपडे मे।
मगिदास िे बहुत रोका मगर ऑस
ं ू ि रक सके बोले–रमभा, यह बाते
िे करो, कलेिा बैठा िाता है । मै तुमहे छोड िही सकता इसिलए िही िक
तुमहारे उपर कोई एहसाि है । तुमहारी खाितर िहीं, अपिी खाितर िह शाित
िह पेम, िह आिनद िो मुझे यहाँ िमलता है और कहीं िही िमल सकता।
खुशी के साथ ििनदगी बसर हो, यही मिुषय के िीिि का लकय है । मुझे
ईशर िे यह खुशी यहाँ दे रकखी है तो मै उसे कयो छोडू ँ ? धि–दौलत को
मेरा सलाम है मुझे उसकी हिस िहीं है ।
रमभा िफर गमभीर सिर मे बोली-मै तुमहारे पॉि की बेडी ि बिूँगी।
चाहे तुम अभी मुझे ि छोडो लेिकि थोडे िदिो मे तुमहारी यह मुहबबत ि
रहे गी।
मगिदास को कोडा लगा। िोश से बोला-तुमहारे िसिा इस िदल
मे अब कोई और िगह िहीं पा सकता।
रात जयादा आ गई थी। अषमी का चॉद
ँ सोिे िा चुका था। दोपहर
के कमल की तरह साफ आसमि मे िसतारे िखले हुए थे। िकसी खेत के
रखिाले की बासुरी की आिाि, ििसे दरूी िे तासीर, सनिाटे ि सुरीलापि
और अँधेरे िे आितमकता का आकषण
फ दे िदया। था। कािो मे आ िा रही
थी िक िैसे कोई पििि आतमा िदी के िकिारे बैठी हुई पािी की लहरो से
या दस
ू रे िकिारे के खामोश और अपिी तरफ खीचिेिाले पेडो से अपिी
ििनदगी की गम की कहािी सुिा रही है ।
मगिदास सो गया मगर रमभा की आंखो मे िीद ि आई।

119

सु बह हुई तो मगिदास उठा और रमभा पुकारिे लगा। मगर


रमभा रात ही को अपिी चाची के साथ िहां से कही चली गयी
मगिदास को उसे मकाि के दरो दीिार पर एक हसरत-सी छायी हुई मालूम
हुई िक िैसे घर की िाि ििकल गई हो। िह घबराकर उस कोठरी मे गया
िहां रमभा रोि चककी पीसती थी, मगर अफसोस आि चककी एकदम
िििल थी। िफर िह कुँए की तरह दौडा गया लेिकि ऐसा मालूम हुआ िक
कुँए िे उसे ििगल िािे के िलए अपिा मुह
ँ खोल िदया है । तब िह बचचो
की तरह चीख उठा रोता हुआ िफर उसी झोपडी मे आया। िहॉँ कल रात
तक पेम का िास था। मगर आह, उस िक िह शोक का घर बिा हुआ था।
िब िरा ऑसू थमे तो उसिे घर मे चारो तरफ ििगाह दौडाई। रमभा की
साडी अरगिी पर पडी हुई थी। एक िपटारी मे िह कंगि रकखा हुआ था। िो
मगिदास िे उसे िदया था। बति
फ सब रकखे हुए थे, साफ और सुधरे ।
मगिदास सोचिे लगा-रमभा तूिे रात को कहा था-मै तुमहे छोड दग
ु ीं। कया
तूिे िह बात िदल से कही थी।? मैिे तो समझा था, तू िदललगी कर रही है ।
िहीं तो मुझे कलेिे मे िछपा लेता। मै तो तेरे िलए सब कुछ छोडे बैठा था।
तेरा पेम मेरे िलए सक कुछ था, आह, मै यो बेचैि हूं, कया तू बेचैि िही है ?
हाय तू रो रही है । मुझे यकीि है िक तू अब भी लौट आएगी। िफर सिीि
कलपिाओं का एक िमघट उसक सामिे आया- िह िािुक अदाएँ िह
मतिाली ऑख
ं े िह भोली भाली बाते, िह अपिे को भूली हुई-सी मेहरबािियॉँ
िह िीिि दायी। मुसकाि िह आिशको िैसी िदलिोइयाँ िह पेम का िाश,
िह हमेशा िखला रहिे िाला चेहरा, िह लचक-लचककर कुएँ से पािी लािा,
िह इनतािार की सूरत िह मसती से भरी हुई बेचैिी-यह सब तसिीरे उसकी
ििगाहो के सामिे हमरतिाक बेताबी के साथ िफरिे लगी। मगिदास िे एक
ठणिी सॉस ली और आसुओं और ददफ की उमडती हुई िदी को मदाि
फ ा
िबत से रोककर उठ खडा हुआ। िागपुर िािे का पकका फैसला हो गया।
तिकये के िीच से सनदक
ू की कुँिी उठायी तो कागि का एक टु कडा ििकल
आया यह रमभा की ििदा की िचटटी थी-
पयारे ,

120
मै बहुत रो रही हूँ मेरे पैर िहीं उठते मगर मेरा िािा िररी है । तुमहे
िागाऊँगी। तो तुम िािे ि दोगे। आह कैसे िाऊं अपिे पयारे पित को कैसे
छोिू ँ ! िकसमत मुझसे यह आिनद का घर छुडिा रही है । मुझे बेिफा ि
कहिा, मै तुमसे िफर कभी िमलूँगी। मै िािती हूँ। िक तुमिे मेरे िलए यह
सब कुछ तयाग िदया है । मगर तुमहारे िलए ििनदगी मे। बहुत कुछ उममीदे
है मै अपिी मुहबबत की धुि मे तुमहे उि उममीदो से कयो दरू रकखूँ! अब
तुमसे िुदा होती हूँ। मेरी सुध मत भूलिा। मै तुमहे हमेशा याद रखूगीं। यह
आिनद के िलए कभी ि भूलेगे। कया तूम मुझे भूल सकोगे?

तुमहारी पयारी
रमभा

म गिदास को िदलली आए हुए तीि महीिे गुिर चुके है । इस बीच


उसे सबसे बडा िो िििी अिुभि हुआ िह यह था िक रोिी की
िफक और धनधो की बहुतायत से उमडती हुई भाििाओं का िोर कम िकया।
िा सकता है । डे ढ साल पहले का बिफक िौििाि अब एक समझदार और
सूझ-बूझ रखिे िाला आदमी बि गया था। सागर घाट के उस कुछ िदिो
के रहिे से उसे िरआया की इि तकलीफो का िििी जाि हो गया, था िो
कािरनदो और मुखतारो की सिखतयो की बदौलत उनहे उठािी पडती है ।
उसिे उसे िरयासत के इनतिाम मे बहुत मदद दी और गो कमच
फ ारी दबी
िबाि से उसकी िशकायत करते थे। और अपिी िकसमतो और िमािे क
उलट फेर को कोसिे थे मगर िरआया खुशा थी। हॉँ, िब िह सब धंधो से
फुरसत पाता तो एक भोली भाली सूरतिाली लडकी उसके खयाल के पहलू मे
आ बैठती और थोडी दे र के िलए सागर घाट का िह हरा भरा झोपडा और
उसकी मिसतया ऑखे के सामिे आ िातीं। सारी बाते एक सुहािे सपिे की
तरह याद आ आकर उसके िदल को मसोसिे लगती लेिकि कभी कभी खूद
बखुद-उसका खयाल इिनदरा की तरफ भी िा पहूँचता गो उसके िदल मे
रमभा की िही िगह थी मगर िकसी तरह उसमे इिनदरा के िलए भी एक
कोिा ििकल आया था। ििि हालातो और आफतो िे उसे इिनदरा से बेिार
कर िदया था िह अब रखसत हो गयी थीं। अब उसे इिनदरा से कुछ हमददी

121
हो गयी । अगर उसके िमिाि मे घमणि है , हुकूमत है तकललूफ है शाि है
तो यह उसका कसूर िहीं यह रईसिादो की आम कमिोिरयां है यही उिकी
िशका है । िे िबलकुल बेबस और मिबूर है । इि बदते हुए और संतुिलत
भािो के साथ िहां िह बेचि
ै ी के साथ रमभा की याद को तािा िकया करता
था िहा इिनदरा का सिागत करिे और उसे अपिे िदल मे िगह दे िे के िलए
तैयार था। िह िदि दरू िहीं था िब उसे उस आिमाइश का सामिा करिा
पडे गा। उसके कई आतमीय अमीरािा शाि-शौकत के साथ इिनदरा को ििदा
करािे के िलए िागपुर गए हुए थे। मगिदास की बितयत आि तरह तरह
के भािो के कारण, िििमे पतीका और िमलि की उतकंठा ििशेष थी, उचाट
सी हो रही थी। िब कोई िौकर आता तो िह समहल बैठता िक शायद
इिनदरा आ पहुँची आिखर शाम के िक िब िदि और रात गले िमले रहे थे,
ििािखािे मे िोर शारे के गािे की आिािो िे बहू के पहुचिे की सूचिा
दी।
सुहाग की सुहािी रात थी। दस बि गये थे। खुले हुए हिादार सहि
मे चॉद
ँ िी िछटकी हुई थी, िह चॉद
ँ िी ििसमे िशा है । आरिू है । और
िखंचाि है । गमलो मे िखले हुए गुलाब और चममा के फूल चॉद
ँ की सुिहरी
रोशिी मे जयादा गमभीर ओर खामोश ििर आते थे। मगिदास इिनदरा से
िमलिे के िलए चला। उसके िदल से लालसाऍ ं िरर थी मगर एक पीडा भी
थी। दशि
फ की उतकणठा थी मगर पयास से खोली। मुहबबत िही पाणो को
िखचाि था िो उसे खीचे िलए िाताथा। उसके िदल मे बैठी हुई रमभा शायद
बार-बार बाहर ििकलिे की कोिशश कर रही थी। इसीिलए िदल मे धडकि
हो रही थी। िह सोिे के कमरे के दरिािे पर पहुचा रे शमी पदा फ पडा हुआ
था। उसिे पदाफ उठा िदया अनदर एक औरत सफेद साडी पहिे खडी थी। हाथ
मे चनद खूबसूरत चूिडयो के िसिा उसके बदि पर एक िेिर भी ि था।
जयोही पदा फ उठा और मगिदास िे अनदरी हम रकखा िह मुसकाराती हुई
उसकी तरफ बढी मगिदास िे उसे दे खा और चिकत होकर बोला। “रमभा !“
और दोिो पेमािेश से िलपट गये। िदल मे बैठी हुई रमभा बाहर ििकल आई
थी।
साल भर गुिरिे के िाद एक िदि इिनदरा िे अपिे पित से कहा। कया
रमभा को िबलकुल भूल गये? कैसे बेिफा हो! कुछ याद है , उसिे चलते िक
तुमसे या िबिती की थी?
122
मगिदास िे कहा- खूब याद है । िह आिाि भी कािो मे गूि रही है ।
मै रमभा को भोली –भाली लडकी समझता था। यह िहीं िािता था िक
यह ििया चिरि का िाद ू है । मै अपिी रमभा का अब भी इिनदरा से जयादा
पयार करता हूं। तुमहे िाह तो िहीं होती?
इिनदरा िे हं सकर ििाब िदया िाह कयो हो। तूमहारी रमभा है तो कया
मेरा गििसहं िहीं है । मै अब भी उस पर मरती हूं।
दस
ू रे िदि दोिो िदलली से एक राषीय समारोह मे शरीक होिे का
बहािा करके रिािा हो गए और सागर घाट िा पहुचे। िह झोपडा िह
मुहबबत का मिनदर िह पेम भिि फूल और िहरयाली से लहरा रहा था
चमपा मािलि उनहे िहाँ िमली। गांि के िमींदार उिसे िमलिे के िलए आये।
कई िदि तक िफर मगििसह को घोडे ििकालिा पिे । रमभा कुए से पािी
लाती खािा पकाती। िफर चककी पीसती और गाती। गाँि की औरते िफर
उससे अपिे कुते और बचचो की लेसदार टोिपयां िसलाती है । हा, इतिा िरर
कहती िक उसका रं ग कैसा ििखर आया है , हाथ पािं कैसे मुलायम यह पड
गये है िकसी बडे घर की रािी मालूम होती है । मगर सिभाि िही है , िही
मीठी बोली है । िही मुरौित, िही हँ समुख चेहरा।
इस तरह एक हफते इस सरल और पििि िीिि का आिनद उठािे के
बाद दोिो िदलली िापस आये और अब दस साल गुिरिे पर भी साल मे
एक बार उस झोपडे के िसीब िागते है । िह मुहबबत की दीिार अभी तक
उि दोिो पेिमयो को अपिी छाया मे आराम दे िे के िलए खडी है ।

-- िमािा , िििरी 1913

123
िम ला प

ला ला जािचनद बैठे हुए िहसाब–िकताब िाँच रहे थे िक उिके


सुपुि बाबू िािकचनद आये और बोले- दादा, अब यहां पडे –पडे िी
उसता गया, आपकी आजा हो तो मौ सैर को ििकल िाऊं दो एक महीिे मे
लौट आऊँगा।
िािकचनद बहुत सुशील और िियुिक था। रं ग पीला आंखो के िगदफ
हलके सयाह धबबे कंधे झुके हुए। जािचनद िे उसकी तरफ तीखी ििगाह से
दे खा और वयंगपण फ सिर मे बोले –कयो कया यहां तुमहारे िलए कुछ कम
िदलचिसपयॉँ है ?
जािचनद िे बेटे को सीधे रासते पर लोिे की बहुत कोिशश की थी
मगर सफल ि हुए। उिकी िॉट
ँ -फटकार और समझािा-बुझािा बेकार हुआ।
उसकी संगित अचछी ि थी। पीिे िपलािे और राग-रं ग मे िू बा रहता था।
उनहे यह िया पसताि कयो पसनद आिे लगा, लेिकि िािकचनद उसके
सिभाि से पिरिचत था। बेधडक बोला- अब यहॉँ िी िहीं लगता। किमीर की
बहुत तारीफ सुिी है , अब िहीं िािे की सोचिा हूँ।
जािचनद- बेहरत है , तशरीफ ले िाइए।
िािकचनद- (हं सकर) रपये को िदलिाइए। इस िक पॉच
ँ सौ रपये की
सखत िररत है ।
जािचनद- ऐसी िफिूल बातो का मझसे ििक ि िकया करो, मै तुमको
बार-बार समझा चुका।
िािकचनद िे हठ करिा शुर िकया और बूिे लाला इिकार करते रहे ,
यहॉँ तक िक िािकचनद झूँझलाकर बोला- अचछा कुछ मत दीििए, मै यो ही
चला िाऊँगा।
जािचनद िे कलेिा मिबूत करके कहा- बेशक, तुम ऐसे ही िहममतिर
हो। िहॉँ भी तुमहारे भाई-बनद बैठे हुए है ि!
िािकचनद- मुझे िकसी की परिाह िहीं। आपका रपया आपको मुबारक
रहे ।

124
िािकचनद की यह चाल कभी पट िहीं पडती थी। अकेला लडका था,
बूिे लाला साहब ढीले पड गए। रपया िदया, खुशामद की और उसी िदि
िािकचनद किमीर की सैर के िलए रिािा हुआ।

म गर िािकचनद यहॉँ से अकेला ि चला। उसकी पेम की बाते आि


सफल हो गयी थीं। पडोस मे बाबू रामदास रहते थे। बेचारे सीधे-सादे
आदमी थे, सुबह दफतर िाते और शाम को आते और इस बीच िािकचनद
अपिे कोठे पर बैठा हुआ उिकी बेिा लडकी से मुहबबत के इशारे िकया
करता। यहॉँ तक िक अभागी लिलता उसके िाल मे आ फॅसी। भाग िािे के
मंसूबे हुए।
आधी रात का िक था, लिलता एक साडी पहिे अपिी चारपाई पर
करिटे बदल रही थी। िेिरो को उतारकर उसिे एक सनदक
ू चे मे रख िदया
था। उसके िदल मे इस िक तरह-तरह के खयाल दौड रहे थे और कलेिा
िोर-िोर से धडक रहा था। मगर चाहे और कुछ ि हो, िािकचनद की तरफ
से उसे बेिफाई का िरा भी गुमाि ि था। ििािी की सबसे बडी िेमत
मुहबबत है और इस िेमत को पाकर लिलता अपिे को खुशिसीब समझ रही
थी। रामदास बेसुध सो रहे थे िक इतिे मे कुणिी खटकी। लिलता चौककर
उठ खडी हुई। उसिे िेिरो का सनदक
ू चा उठा िलयां एक बार इधर-उधर
हसरत-भरी ििगाहो से दे खा और दबे पॉि
ँ चौक-चौककर कदम उठाती
दे हलीि मे आयी और कुणिी खोल दी। िािकचनद िे उसे गले से लगा
िलया। बगघी तैयार थी, दोिो उस पर िा बैठे।
सुबह को बाबू रामदास उठे , लिलत ि िदखायी दी। घबराये, सारा घर
छाि मारा कुछ पता ि चला। बाहर की कुणिी खुली दे खी। बगघी के ििशाि
ििर आये। सर पीटकर बैठ गये। मगर अपिे िदल का द 2 दफ िकससे कहते।
हँ सी और बदिामी का िर िबाि पर मोहर हो गया। मशहूर िकया िक िह
अपिे िििहाल और गयी मगर लाला जािचनद सुिते ही भॉप
ँ गये िक
किमीर की सैर के कुछ और ही मािे थे। धीरे -धीरे यह बात सारे मुहलले मे
फैल गई। यहॉँ तक िक बाबू रामदास िे शमफ के मारे आतमहतया कर ली।

125

मु हबबत की सरगिमय
फ ां ितीिे की तरफ से िबलकुल बेखबर होती है ।
िािकचनद ििस िक बगघी मे लिलत के साथ बैठा तो उसे इसके
िसिाय और कोई खयाल िे था िक एक युिती मेरे बगल मे बैठी है , ििसके
िदल का मै मािलक हूँ। उसी धुि मे िह मसत थां बदिामी का डर, कािूि
का खटका, िीििका के साधि, उि समसयाओं पर ििचार करिे की उसे उस
िक फुरसत ि थी। हॉँ, उसिे किमीर का इरादा छोड िदया। कलकते िा
पहुँचा। िकफायतशारी का सबक ि पिा था। िो कुछ िमा-िथा थी, दो
महीिो मे खच फ हो गयी। लिलता के गहिो पर िौबत आयी। लेिकि
िािकचनद मे इतिी शराफत बाकी थी। िदल मिबूत करके बाप को खत
िलखा, मुहबबत को गािलयॉँ दीं और ििशास िदलाया िक अब आपके पैर
चूमिे के िलए िी बेकरार है , कुछ खच फ भेििए। लाला साहब िे खत पिा,
तसकीि हो गयी िक चलो ििनदा है खैिरयत से है । धूम-धाम से
सतयिारायण की कथा सुिी। रपया रिािा कर िदया, लेिकि ििाब मे िलखा-
खैर, िो कुछ तुमहारी िकसमत मे था िह हुआ। अभी इधर आिे का इरादा
मत करो। बहुत बदिाम हो रहे हो। तुमहारी ििह से मुझे भी िबरादरी से
िाता तोडिा पडे गा। इस तूफाि को उतर िािे दो। तुमहे खच फ की तकलीफ
ि होगी। मगर इस औरत की बांह पकडी है तो उसका ििबाह करिा, उसे
अपिी बयाहता सी समझो।
िािकचनद िदल पर से िचनता का बोझ उतर गया। बिारस से
माहिार ििीफा िमलिे लगा। इधर लिलता की कोिशश िे भी कुछ िदल को
खींचा और गो शराब की लत ि टू टी और हफते मे दो िदि िरर िथयेटर
दे खिे िाता, तो भी तिबयत मे िसथरता और कुछ संयम आ चला था। इस
तरह कलकते मे उसिे तीि साल काटे । इसी बीच एक पयारी लडकी के बाप
बििे का सौभागय हुआ, ििसका िाम उसिे कमला रकखा।

ती सरा साल गुिरा था िक िािकचनद के उस शािनतमय िीिि मे


हलचल पैदा हुई। लाला जािचनद का पचासिॉँ साल था िो
िहनदोसतािी रईसो की पाकृ ितक आयु है । उिका सिगि
फ ास हो गया और
126
जयोही यह खबर िािकचनद को िमली िह लिलता के पास िाकर चीखे
मार-मारकर रोिे लगा। ििनदगी के िये-िये मसले अब उसके सामिे आए।
इस तीि साल की सँभली हुई ििनदगी िे उसके िदल शोहदे पि और
िशेबािी क खयाल बहुत कुछ दरू कर िदये थे। उसे अब यह िफक सिार
हुई िक चलकर बिारस मे अपिी िायदाद का कुछ इनतिाम करिा चािहए,
ििा फ सारा कारोबार मे अपिी िायदाद का कुछ इनतिाम करिा चािहए, ििाफ
सारा कारोबार धूल मे िमल िाएगा। लेिकि लिलता को कया करँ। अगर इसे
िहॉँ िलये चलता हूँ तो तीि साल की पुरािी घटिाएं तािी हो िायेगी और
िफर एक हलचल पैदा होगी िो मुझे हूककाम और हमिोहलयॉँ मे िलील
कर दे गी। इसके अलािा उसे अब कािूिी औलाद की िररत भी ििर आिे
लगी यह हो सकता था िक िह लिलता को अपिी बयाहता सी मशहूर कर
दे ता लेिकि इस आम खयाल को दरू करिा असमभि था िक उसिे उसे
भगाया है लिलता से िािकचनद को अब िह मुहबबत ि थी ििसमे ददफ
होता है और बेचैिी होती है । िह अब एक साधारण पित था िो गले मे पडे
हुए ढोल को पीटिा ही अपिा धम फ समझता है , ििसे बीबी की मुहबबत उसी
िक याद आती है , िब िह बीमार होती है । और इसमे अचरि की कोई बात
िही है अगर ििंदगीं की ियी ियी उमंगो िे उसे उकसािा शुर िकया।
मसूबे पैदा होिे लेगे िििका दौलत और बडे लोगो के मेल िोल से सबंध
है मािि भाििाओं की यही साधारण दशा है । िािकचनद अब मिबूत इराई
के साथ सोचिे लगा िक यहां से कयोकर भागूँ। अगर लिाित लेकर िाता
हूं। तो दो चार िदि मे सारा पदा फ फाश हो िाएगा। अगर हीला िकये िाता
हूँ तो आि के तीसरे िदि लिलता बिरस मे मेरे सर पर सिार होगी कोई
ऐसी तरकीब ििकालूं िक इि समभाििओं से मुिक िमले। सोचते-सोचते उसे
आिखर एक तदबीर सुझी। िह एक िदि शाम को दिरया की सैर का
बाहािा करके चला और रात को घर पर ि अया। दस
ू रे िदि सुबह को एक
चौकीदार लिलता के पास आया और उसे थािे मे ले गया। लिलता है राि थी
िक कया मािरा है । िदल मे तरह-तरह की दिुशचनताये पैदा हो रही थी िहॉँ
िाकर िो कैिफयत दे खी तो दिूिया आंखो मे अंधरी हो गई िािकचनद के
कपडे खूि मे तर-ब-तर पडे थे उसकी िही सुिहरी घडी िही खूबसूरत छतरी,
िही रे शमी साफा सब िहाँ मौिूद था। िेब मे उसके िाम के छपे हुए कािफ
थे। कोई संदेश ि रहा िक िािकचनद को िकसी िे कतल कर िाला दो तीि
127
हफते तक थािे मे तककीकाते होती रही और, आिखर कार खूिी का पता चल
गया पुिलस के अफसरा को बडे बडे इिाम िमले।इसको िासूसी का एक
बडा आियफ समझा गया। खूिी िेपेम की पितदिनदता के िोश मे यह काम
िकया। मगर इधर तो गरीब बेगुिाह खूिी सूली पर चिा हुआ था। और िहाँ
बिारस मे िािक चनद की शादी रचायी िा रही थी।

ला
5

ला िािकचनद की शादी एक रईस घरािे मे हुई और तब धीरे


धीरे िफर िही पुरािे उठिे बैठिेिाले आिे शुर हुए िफर िही
मििलसे िमीं और िफर िही सागर-ओ-मीिा के दौर चलिे लगे। सयंम का
कमिोर अहाता इि ििषय –िासिा के बटमारो को ि रोक सका। हॉँ, अब
इस पीिे िपलािे मे कुछ परदा रखा िाता है । और ऊपर से थोिी सी
गमभीरता बिाये रखी िाती है साल भर इसी बहार मे गुिरा ििेली बहूघर
मे कुि कुिकर मर गई। तपेिदक िे उसका काम तमाम कर िदया। तब
दस
ू री शादी हुई। मगर इस सी मे िािकचनद की सौनदय फ पेमी आंखो के
िलए िलए कोई आकषण
फ ि था। इसका भी िही हाल हुआ। कभी िबिा रोये
कौर मुंह मे िही िदया। तीि साल मे चल बसी। तब तीसरी शादी हुई। यह
औरत बहुत सुनदर थी अचछी आभूषणो से सुसिजित उसिे िािकचनद के
िदल मे िगह कर ली एक बचचा भी पैदा हुआ था और िािकचनद
गाहफ िसथक आिंदो से पिरिचत होिे लगा। दिुिया के िाते िरशते अपिी
तरफ खींचिे लगे मगर पलेग के िलए ही सारे मंसूबे धूल मे िमला िदये।
पितपाणा सी मरी, तीि बरस का पयारा लडका हाथ से गया। और िदल पर
ऐसा दाग छोड गया ििसका कोई मरहम ि था। उचछशख
ं ृ लता भी चली गई
ऐयाशी का भी खातमा हुआ। िदल पर रं िोगम छागया और तिबयत संसार
से ििरक हो गयी।
6

िी
िि की दघ
ु ट
फ िाओं मे अकसर बडे महति के िैितक पहलू िछपे हुआ
करते है । इि सइमो िे िािकचनद के िदल मे मरे हुए इनसाि को
भी िगा िदया। िब िह ििराशा के यातिापूण फ अकेलपि मे पडा हुआ इि
घटिाओं को याद करता तो उसका िदल रोिे लगता और ऐसा मालूम होता
िक ईशर िे मुझे मेरे पापो की सिा दी है धीरे धीरे यह खयाल उसके िदल

128
मे मिबूत हो गया। ऊफ मैिे उस मासूम औरत पर कैसा िूलम िकया कैसी
बेरहमी की! यह उसी का दणि है । यह सोचते-सोचते लिलता की मायूस
तसिीर उसकी आखो के सामिे खडी हो िाती और पयारी मुखडे िाली कमला
अपिे मरे हूए सौतेल भाई के साथ उसकी तरफ पयार से दौडती हुई िदखाई
दे ती। इस लमबी अििध मे िािकचनद को लिलता की याद तो कई बार
आयी थी मगर भोग ििलास पीिे िपलािे की उि कैिफयातो िे कभी उस
खयाल को िमिे िहीं िदया। एक धुधला-सा सपिा िदखाई िदया और िबखर
गया। मालूम िहीदोिो मर गयी या ििनदा है । अफसोस! ऐसी बेकसी की
हालत मे छोउ़़कर मैिे उिकी सुध तक ि ली। उस िेकिामी पर िधककार
है ििसके िलए ऐसी ििदफ यता की कीमत दे िी पडे । यह खयाल उसके िदल
पर इस बुरी तरह बैठा िक एक रोि िह कलकता के िलए रिािा हो गया।
सुबह का िक था। िह कलकते पहुँचा और अपिे उसी पुरािे घर को
चला। सारा शहर कुछ हो गया था। बहुत तलाश के बाद उसे अपिा पुरािा
घर ििर आया। उसके िदल मे िोर से धडकि होिे लगी और भाििाओं मे
हलचल पैदा हो गयी। उसिे एक पडोसी से पूछा-इस मकाि मे कौि रहता
है ?
बूिा बंगाली था, बोला-हाम यह िहीं कह सकता, कौि है कौि िहीं है ।
इतिा बडा मुलुक मे कौि िकसको िािता है ? हॉँ, एक लडकी और उसका बूिा
मॉँ, दो औरत रहता है । ििधिा है , कपडे की िसलाई करता है । िब से उसका
आदमी मर गया, तब से यही काम करके अपिा पेट पालता है ।
इतिे मे दरिािा खुला और एक तेरह-चौदह साल की सुनदर लडकी
िकताि िलये हुए बाहर ििकली। िािकचनद पहचाि गया िक यह कमला है ।
उसकी ऑख
ं ो मे ऑस
ं ू उमड आए, बेआिखतयार िी चाहा िक उस लडकी को
छाती से लगा ले। कुबेर की दौलत िमल गयी। आिाि को समहालकर बोला-
बेटी, िाकर अपिी अममॉँ से कह दो िक बिारस से एक आदमी आया है ।
लडकी अनदर चली गयी और थोडी दे र मे लिलता दरिािे पर आयी। उसके
चेहरे पर घूँघट था और गो सौनदयफ की तािगी ि थी मगर आकषण
फ अब भी
था। िािकचनद िे उसे दे खा और एक ठं िी सॉस
ँ ली। पितवत और धैय फ और
ििराशा की सिीि मूित फ सामिे खडी थी। उसिे बहुत िोर लगाया, मगर
िबत ि हो सका, बरबस रोिे लगा। लिलता िे घूंघट की आउ़़ से उसे दे खा
और आिय फ के सागर मे िू ब गयी। िह िचि िो हदय-पट पर अंिकत था,
129
और िो िीिि के अलपकािलक आिनदो की याद िदलाता रहता था, िो
सपिो मे सामिे आ-आकर कभी खुशी के गीत सुिाता था और कभी रं ि के
तीर चुभाता था, इस िक सिीि, सचल सामिे खडा था। लिलता पर ऐ
बेहोशी छा गयी, कुछ िही हालत िो आदमी को सपिे मे होती है । िह वयग
होकर िािकचनद की तरफ बिी और रोती हुई बोली-मुझे भी अपिे साथ ले
चलो। मुझे अकेले िकस पर छोड िदया है ; मुझसे अब यहॉँ िहीं रहा िाता।
लिलता को इस बात की िरा भी चेतिा ि थी िक िह उस वयिक के
सामिे खडी है िो एक िमािा हुआ मर चुका, ििा फ शायद िह चीखकर
भागती। उस पर एक सपिे की-सी हालत छायी हुई थी, मगर िब
िािकचिद िे उसे सीिे से लगाकर कहा ‘लिलता, अब तुमको अकेले ि
रहिा पडे गा, तुमहे इि ऑख
ं ो की पुतली बिाकर रखूँगा। मै इसीिलए तुमहारे
पास आया हूँ। मै अब तक िरक मे था, अब तुमहारे साथ सिग फ को सुख
भोगूग
ँ ा।’ तो लिलता चौकी और िछटककर अलग हटती हुई बोली-ऑख
ं ो को
तो यकीि आ गया मगर िदल को िहीं आता। ईशर करे यह सपिा ि हो!

-िमािा, िूि १९१३

130
मि ाि ि

बा बू दयाशंकर उि लोगो मे थे ििनहे उस िक तक सोहबत का मिा


िहीं िमलता िब तक िक िह पेिमका की िबाि की तेिी का मिा
ि उठाये। रठे हुए को मिािे मे उनहे बडा आिनद िमलता िफरी हुई ििगाहे
कभी-कभी मुहबबत के िशे की मतिाली ऑख
ं े से भी जयादा मोहक िाि
पडतीं। आकषक
फ लगती। झगडो मे िमलाप से जयादा मिा आता। पािी मे
हलके-हलके झकोले कैसा समॉँ िदखा िाते है । िब तक दिरया मे धीमी-धीमी
हलचल ि हो सैर का लुतफ िहीं।
अगर बाबू दयाशंकर को इि िदलचिसपयो के कम मौके िमलते थे तो
यह उिका कसूर ि था। िगिरिा सिभाि से बहुत िेक और गमभीर थी, तो
भी चूिं क उिका कसूर ि था। िगिरिा सिभाि से बहुत िेक और गमभीर थी,
तो भी चूिं क उसे अपिे पित की रिच का अिुभि हो चुका था इसिलए िह
कभी-कभी अपिी तिबयत के िखलाफ िसफफ उिकी खाितर से उिसे रठ
िाती थी मगर यह बे-िींि की दीिार हिा का एक झोका भी ि समहाल
सकती। उसकी ऑख
ं े, उसके होठ उसका िदल यह बहुरिपये का खेल जयादा
दे र तक ि चला सकते। आसमाि पर घटाये आतीं मगर सािि की िहीं,
कुआर की। िह डरती, कहीं ऐसा ि हो िक हँ सी-हँ सी से रोिा आ िाय।
आपस की बदमिगी के खयाल से उसकी िाि ििकल िाती थी। मगर इि
मौको पर बाबू साहब को िैसी-िैसी िरझािे िाली बाते सूझतीं िह काश
ििदाथी िीिि मे सूझी होतीं तो िह कई साल तक कािूि से िसर मारिे के
बाद भी मामूली कलकफ ि रहते।

द याशंकर को कौमी िलसो से बहुत िदलचसपी थी। इस िदलचसपी की


बुिियाद उसी िमािे मे पडी िब िह कािूि की दरगाह के मुिाििर थे
और िह अक तक कायम थी। रपयो की थैली गायब हो गई थी मगर कंधो
मे ददफ मौिूद था। इस साल कांफेस का िलसा सतारा मे होिे िाला था।
िियत तारीख से एक रोि पहले बाबू साहब सतारा को रिािा हुए। सफर की
तैयािरयो मे इतिे वयसत थे िक िगिरिा से बातचीत करिे की भी फुसत
फ ि

131
िमली थी। आिेिाली खुिशयो की उममीद उस किणक िियोग के खयाल के
ऊपर भारी थी।
कैसा शहर होगा! बडी तारीफ सुिते है । दकि सौनदय फ और संपदा की
खाि है । खूब सैर रहे गी। हिरत तो इि िदल को खुश करिेिाले खयालो मे
मसत थे और िगिरिा ऑख
ं ो मे आंसू भरे अपिे दरिािे पर खडी यह
कैिफयल दे ख रही थी और ईशर से पाथि
फ ा कर रही थी िक इनहे खैिरतय से
लािा। िह खुद एक हफता कैसे काटे गी, यह खयाल बहुत ही कष दे िेिाला
था।
िगिरिा इि ििचारो मे वयसत थी दयाशंकर सफर की तैयािरयो मे।
यहॉँ तक िक सब तैयािरयॉँ पूरी हो गई। इकका दरिािे पर आ गया। िबसतर
और टं क उस पर रख िदये और तब ििदाई भेट की बाते होिे लगीं।
दयाशंकर िगिरिा के सामिे आए और मुसकराकर बोले-अब िाता हूँ।
िगिरिा के कलेिे मे एक बछी-सी लगी। बरबस िी चाहा िक उिके
सीिे से िलपटकर रोऊँ। ऑस
ं ुओं की एक बाि-सी ऑख
ं े मे आती हुई मालूम
हुई मगर िबत करके बोली-िािे को कैसे कहूँ, कया िक आ गया?
इयाशंकर-हॉँ, बिलक दे र हो रही है ।
िगिरिा-मंगल की शाम को गाडी से आओगे ि?
दयाशंकर-िरर, िकसी तरह िहीं रक सकता। तुम िसफफ उसी िदि मेरा
इं तिार करिा।
िगिरिा-ऐसा ि हो भूल िाओ। सतारा बहुत अचछा शहर है ।
दयाशंकर-(हँ सकर) िह सिग फ ही कयो ि हो, मंगल को यहॉँ िरर आ
िाऊँगा। िदल बराबर यहीं रहे गा। तुम िरा भी ि घबरािा।
यह कहकर िगिरिा को गले लगा िलया और मुसकराते हुए बाहर
ििकल आए। इकका रिािा हो गया। िगिरिा पलंग पर बैठ गई और खूब
रोयी। मगर इस िियोग के दख
ु , ऑस
ं ुओं की बाि, अकेलेपि के ददफ और तरह-
तरह के भािो की भीड के साथ एक और खयाल िदल मे बैठा हुआ था ििसे
िह बार-बार हटािे की कोिशश करती थी-कया इिके पहलू मे िदल िहीं है !
या है तो उस पर उनहे पूरा-पूरा अिधकार है ? िह मुसकराहट िो ििदा होते
िक दयाशंकर के चेहरे र लग रही थी, िगिरिा की समझ मे िहीं आती थी।

132
स तारा मे बडी धूधम थी। दयाशंकर गाडी से उतरे तो िदीपोश
िालंिटयरो िे उिका सिागात िकया। एक िफटि उिके िलए तैयार
खडी थी। उस पर बैठकर िह कांफेस पंडाल की तरफ चले दोिो तरफ
झंिियॉँ लहरा रही थीं। दरिािे पर बनदिारे लटक रही थी। औरते अपिे
झरोखो से और मदफ बरामदो मे खडे हो-होकर खुशी से तािलयॉँ बािते थे।
इस शाि-शौकत के साथ िह पंडाल मे पहुँचे और एक खूबसूरत खेमे मे
उतरे । यहॉँ सब तरह की सुििधाऍ ं एकि थीं, दस बिे कांफेस शुर हुई। िका
अपिी-अपिी भाषा के िलिे िदखािे लगे। िकसी के हँ सी-िदललगी से भरे हुए
चुटकुलो पर िाह-िाह की धूम मच गई, िकसी की आग बरसािेिाले तकरीर
िे िदलो मे िोश की एक तहर-सी पेछा कर दी। ििदतापूण फ भाषणो के
मुकाबले मे हँ सी-िदललगी और बात कहिे की खुबी को लोगो िे जयादा
पसनद िकया। शोताओं को उि भाषणो मे िथयेटर के गीतो का-सा आिनद
आता था।
कई िदि तक यही हालत रही और भाषणो की दििट से कांफेस को
शािदार कामयाबी हािसल हुई। आिखरकार मंगल का िदि आया। बाबू साहब
िापसी की तैयािरयॉँ करिे लगे। मगर कुछ ऐसा संयोग हुआ िक आि उनहे
मिबूरि ठहरिा पडा। बमबई और यू.पी. के डे लीगेटो मे एक हाकी मैच ठहर
गई। बाबू दयाशंकर हाकी के बहुत अचछे िखलाडी थे। िह भी टीम मे
दािखल कर िलये गये थे। उनहोिे बहुत कोिशश की िक अपिा गला छुडा लूँ
मगर दोसतो िे इिकी आिाकािी पर िबलकुल धयाि ि िदया। साहब, िो
जयादा बेतकललुफ थे, बोल-आिखर तुमहे इतिी िलदी कयो है ? तुमहारा दफतर
अभी हफता भर बंद है । बीिी साहबा की िारािगी के िसिा मुझे इस
िलदबािी का कोई कारण िहीं िदखायी पडता। दयाशंकर िे िब दे खा िक
िलद ही मुझपर बीिी का गुलाम होिे की फबितयॉँ कसी िािे िाली है ,
ििससे जयादा अपमािििक बात मदफ की शाि मे कोई दस
ू री िहीं कही िा
सकती, तो उनहोिे बचाि की कोई सूरत ि दे खकर िापसी मुलतिी कर दी।
और हाकी मे शरीक हो गए। मगर िदल मे यह पकका इरादा कर िलया िक
शाम की गाडी से िरर चले िायेगे, िफर चाहे कोई बीिी का गुलाम िहीं,
बीिी के गुलाम का बाप कहे , एक ि मािेगे।

133
खैर, पांच बिे खेल शुिू हुआ। दोिो तरफ के िखलाडी बहुत तेि थे
ििनहोिे हाकी खेलिे के िसिा ििनदगी मे और कोई काम ही िहीं िकया।
खेल बडे िोश और सरगमी से होिे लगा। कई हिार तमाशाई िमा थे।
उिकी तािलयॉँ और बिािे िखलािडयो पर मार बािे का काम कर रहे थे और
गेद िकसी अभागे की िकसमत की तरह इधर-उधर ठोकरे खाती िफरती थी।
दयाशंकर के हाथो की तेिी और सफाई, उिकी पकड और बेऐब ििशािेबािी
पर लोग है राि थे, यहॉँ तक िक िब िक खतम होिे मे िसफफ एक िमिट
बाकी रह गया था और दोिो तरफ के लोग िहममते हार चुके थे तो
दयाशंकर िे गेद िलया और िबिली की तरह ििरोधी पक के गोल पर पहुँच
गये। एक पटाखे की आिाि हुई, चारो तरफ से गोल का िारा बुलनद हुआ!
इलाहाबाद की िीत हुई और इस िीत का सेहरा दयाशंकर के िसर था-
ििसका ितीिा यह हुआ िक बेचारे दयाशंकर को उस िक भी रकिा पडा
और िसफफ इतिा ही िहीं, सतारा अमेचर कलब की तरफ से इस िीत की
बधाई मे एक िाटक खेलिे का कोई पसताि हुआ ििसे बुध के रोि भी
रिािा होिे की कोई उममीद बाकी ि रही। दयाशंकर िे िदल मे बहुत
पेचोताब खाया मगर िबाि से कया कहते! बीिी का गूलाम कहलािे का डर
िबाि बनद िकये हुए था। हालॉिँक उिका िदल कह रहा था िक अब की दे िी
रठे गी तो िसफफ खुशामदो से ि मािेगी।

बा बू दयाशंकर िादे के रोि के तीि िदि बाद मकाि पर पहुँचे।


सतारा से िगिरिा के िलए कई अिूठे तोहफे लाये थे। मगर उसिे
इि चीिो को कुछ इस तरह दे खा िक िैसे उिसे उसका िी भर गया है ।
उसका चेहरा उतरा हुआ था और होठ सूखे थे। दो िदि से उसिे कुछ िहीं
खाया था। अगर चलते िक दयाशंकर की आंख से आ़ँसू की चनद बूद
ं े
टपक पडी होतीं या कम से कम चेहरा कुछ उदास और आिाि कुछ भारी हो
गयी होती तो शायद िगिरिा उिसे ि रठती। आँसुओं की चनद बूँदे उसके
िदल मे इस खयाल को तरो-तािा रखतीं िक उिके ि आिे का कारण चाहे
ओर कुछ हो ििषु रता हरिगि िहीं है । शायद हाल पूछिे के िलए उसिे तार
िदया होता और अपिे पित को अपिे सामिे खैिरयत से दे खकर िह बरबस

134
उिके सीिे मे िा िचमटती और दे िताओं की कृ तज होती। मगर आँखो की
िह बेमौका कंिूसी और चेहरे की िह ििषु र मुसकाि इस िक उसके पहलू
मे खटक रही थी। िदल मे खयाल िम गया था िक मै चाहे इिके िलए मर
ही िमटू ँ मगर इनहे मेरी परिाह िहीं है । दोसतो का आगह और ििद केिल
बहािा है । कोई िबरदसती िकसी को रोक िहीं सकता। खूब! मै तो रात की
रात बैठकर काटू ँ और िहॉँ मिे उडाये िाऍ !ं
बाबू दयाशंकर को रठो के मिािे मे ििषेश दकता थी और इस मौके
पर उनहोिे कोई बात, कोई कोिशश उठा िहीं रखी। तोहफे तो लाए थे मगर
उिका िाद ू ि चला। तब हाथ िोडकर एक पैर से खडे हुए, गुदगुदाया, तलुिे
सहलाये, कुछ शोखी और शरारत की। दस बिे तक इनहीं सब बातो मे लगे
रहे । इसके बाद खािे का िक आया। आि उनहोिे रखी रोिटयॉँ बडे शौक से
और मामूली से कुछ जयादा खायीं-िगिरिा के हाथ से आि हफते भर बाद
रोिटयॉँ िसीब हुई है , सतारे मे रोिटयो को तरस गये पूिियॉँ खाते-खाते आँतो
मे बायगोले पड गये। यकीि मािो िगिरिि, िहॉँ कोई आराम ि था, ि कोई
सैर, ि कोई लुतफ। सैर और लुतफ तो महि अपिे िदल की कैिफयत पर
मुिहसर है । बेिफकी हो तो चिटयल मैदाि मे बाग का मिा आता है और
तिबयत को कोई िफक हो तो बाग िीरािे से भी जयादा उिाड मालूम होता
है । कमबखत िदल तो हरदम यहीं धरा रहता था, िहॉँ मिा कया खाक आता।
तुम चाहे इि बातो को केिल बिािट समझ लो, कयोिक मै तुमहारे सामिे
दोषी हूँ और तुमहे अिधकार है िक मुझे झूठा, मककार, दगाबाि, िेिफा, बात
बिािेिाला िो चाहे समझ लो, मगर सचचाई यही है िो मै कह रहा हूँ। मै
िो अपिा िादा पूरा िहीं कर सका, उसका कारण दोसतो की ििद थी।
दयाशंकर िे रोिटयो की खूब तारीफ की कयोिक पहले कई बार यह
तरकीब फायदे मनद सािबत हुई थी, मगर आि यह मनि भी कारगर ि हुआ।
िगिरिा के तेिर बदले ही रहे ।
तीसरे पहर दयाशंकर िगिरिा के कमरे मे गये और पंखा झलिे लगे;
यहॉँ तक िक िगिरिा झुँझलाकर बोल उठी-अपिी िािबरदािरयॉँ अपिे ही
पास रिखये। मैिे हुिरू से भर पाया। मै तुमहे पहचाि गयी, अब धोखा िही
खािे की। मुझे ि मालूम था िक मुझसे आप यो दगा करे गे। गरि ििि
शबदो मे बेिफाइयो और ििषु रताओं की िशकायते हुआ करती है िह सब इस
िक िगिरिा िे खचफ कर िाले।
135

शा म हुई। शहर की गिलयो मे मोितये और बेले की लपटे आिे लगीं।


सडको पर िछडकाि होिे लगा और िमटटी की सोधी खुशबू उडिे
लगी। िगिरिा खािा पकािे िा रही थी िक इतिे मे उसके दरिािे पर इकका
आकर रका और उसमे से एक औरत उतर पडी। उसके साथ एक महरी थी
उसिे ऊपर आकर िगिरिा से कहा—बहू िी, आपकी सखी आ रही है ।
यह सखी पडोस मे रहिेिाली अहलमद साहब की बीिी थीं। अहलमद
साहब बूिे आदमी थे। उिकी पहली शादी उस िक हुई थी, िब दध
ू के दॉत

ि टू टे थे। दस
ू री शादी संयोग से उस िमािे मे हुई िब मुँह मे एक दॉत
ँ भी
बाकी ि था। लोगो िे बहुत समझाया िक अब आप बूिे हुए, शादी ि कीििए,
ईशर िे लडके िदये है , बहुए़ँ है , आपको िकसी बात की तकलीफ िहीं हो
सकती। मगर अहलमद साहब खुद बुढिे और दिुिया दे खे हुए आदमी थे, इि
शुभिचंतको की सलाहो का ििाब वयािहािरक उदाहरणो से िदया करते थे—
कयो, कया मौत को बूिो से कोई दिुमिी है ? बूिे गरीब उसका कया िबगाडते
है ? हम बाग मे िाते है तो मुरझाये हुए फूल िहीं तोडते , हमारी आँखे तरो-
तािा, हरे -भरे खूबसूरत फूलो पर पडती है । कभी-कभी गिरे िगैरह बिािे के
िलए किलयॉँ भी तोड ली िाती है । यही हालत मौत की है । कया यमराि को
इतिी समझ भी िहीं है । मै दािे के साथ कह सकता हूँ िक ििाि और
बचचे बूिो से जयादा मरते है । मै अभी जयो का तयो हूँ , मेरे तीि ििाि भाई,
पॉच
ँ बहिे, बहिो के पित, तीिो भाििे, चार बेटे, पॉच
ँ बेिटयॉँ, कई भतीिे, सब
मेरी आँखो के सामिे इस दिुिया से चल बसे। मौत सबको ििगल गई मगर
मेरा बाल बॉक
ँ ा ि कर सकी। यह गलत, िबलकुल गलत है िक बूिे आदमी
िलद मर िाते है । और असल बात तो यह है िक िबाि बीिी की िररत
बुिापे मे ही होती है । बहुएँ मेरे सामिे ििकलिा चाहे और ि ििकल सकती
है , भाििे खुद बूिी हुई, छोटे भाई की बीिी मेरी परछाई भी िही दे ख सकती
है , बहिे अपिे-अपिे घर है , लडके सीधे मुंह बात िहीं करते। मै ठहरा बूिा,
बीमार पिू ँ तो पास कौि फटके, एक लोटा पािी कौि दे , दे खूँ िकसकी आँख
से, िी कैसे बहलाऊँ? कया आतमहतया कर लूँ। या कहीं िू ब मरँ? इि दलीलो
के मुकािबले मे िकसी की िबाि ि खुलती थी।

136
गरि इस ियी अहलमिदि और िगिरिा मे कुछ बहिापा सा हो गया
था, कभी-कभी उससे िमलिे आ िाया करती थी। अपिे भागय पर सनतोष
करिे िाली सी थी, कभी िशकायत या रं ि की एक बात िबाि से ि
ििकालती। एक बार िगिरिा िे मिाक मे कहा था िक बूिे और ििाि का
मेल अचछा िहीं होता। इस पर िह िाराि हो गयी और कई िदि तक ि
आयी। िगिरिा महरी को दे खते ही फौरि ऑग
ं ि मे ििकल आयी और गो
उस इस िक मेहमाि का आिा िागिारा गुिरा मगर महरी से बोली-बहि,
अचछी आयीं, दो घडी िदल बहलेगा।
िरा दे र मे अहलमिदि साहब गहिे से लदी हुई, घूंघट ििकाले,
छमछम करती हुई आँगि मे आकर खडी हो गई। िगिरिा िे करीब आकर
कहा-िाह सखी, आि तो तुम दल
ु िहि बिी हो। मुझसे पदा फ करिे लगी हो
कया? यह कहकर उसिे घूघ
ं ट हटा िदया और सखी का मुंह दे खते ही चौककर
एक कदम पीछे हट गई। दयाशंकर िे िोर से कहकहा लगाया और िगिरिा
को सीिे से िलपटा िलया और िििती के सिर मे बोले-िगिरिि, अब माि
िाओ, ऐसी खता िफर कभी ि होगी। मगर िगिरिि अलग हट गई और
रखाई से बोली-तुमहारा बहुरप बहुत दे ख चुकी, अब तुमहारा असली रप
दे खिा चाहती हूँ।

द याशंकर पेम-िदी की हलकी-हलकी लहरो का आिनद तो िरर उठािा


चाहते थे मगर तूफाि से उिकी तिबयत भी उतिा ही घबराती थी
िितिा िगिरिा की, बिलक शायद उससे भी जयादा। हदय-पििति
फ के िितिे
मंि उनहे याद थे िह सब उनहोिे पिे और उनहे कारगर ि होते दे खकर
आिखर उिकी तिबयत को भी उलझि होिे लगी। यह िे मािते थे िक
बेशक मुझसे खता हुई है मगर खता उिके खयाल मे ऐसी िदल िलािेिाली
सिाओं के कािबल ि थी। मिािे की कला मे िह िरर िसिहसत थे मगर
इस मौके पर उिकी अकल िे कुछ काम ि िदया। उनहे ऐसा कोई िाद ू
ििर िहीं आता था िो उठती हुई काली घटाओं और िोर पकडते हुए
झोको को रोक दे । कुछ दे र तक िह उनहीं खयालो मे खामोश खडे रहे और
िफर बोले-आिखर िगिरिि, अब तुम कया चाहती हो।

137
िगिरिा िे अतयनत सहािुभूित शूनय बेपरिाही से मुह
ँ फेरकर कहा-
कुछ िहीं।
दयाशंकर-िहीं, कुछ तो िरर चाहती हो ििा फ चार िदि तक िबिा
दािा-पािी के रहिे का कया मतलब! कया मुझ पर िाि दे िे की ठािी है ?
अगर यही फैसला है तो बेहतर है तुम यो िाि दो और मै कतल के िुमफ मे
फॉस
ँ ी पाऊँ, िकससा तमाम हो िाये। अचछा होगा, बहुत अचछा होगा, दिुिया
की परे शािियो से छुटकारा हो िाएगा।
यह मनतर िबलकुल बेअसर ि रहा। िगिरिा आँखो मे आँसू भरकर
बोली-तुम खामखाह मुझसे झगडिा चाहते हो और मुझे झगडे से िफरत है ।
मै तुमसे ि बोलती हूँ और ि चाहती हूँ िक तुम मुझसे बोलिे की तकलीफ
गिारा करो। कया आि शहर मे कहीं िाच िहीं होता, कहीं हाकी मैच िहीं है ,
कहीं शतरं ि िहीं िबछी हुई है । िहीं तुमहारी तिबयत िमती है , आप िहीं
िाइए, मुझे अपिे हाल पर रहिे दीििए मै बहुत अचछी तरह हूँ।
दयाशंकर करण सिर मे बोले-कया तुमिे मुझे ऐसा बेिफा समझ िलया
है ?
िगिरिा-िी हॉँ, मेरा तो यही तिुबाफ है ।
दयाशंकर-तो तुम सखत गलती पर हो। अगर तुमहारा यही खयाल है
तो मै कह सकता हूँ िक औरतो की अनतदफ िष के बारे मे िितिी बाते सुिी है
िह सब गलत है । िगरिि, मेरे भी िदल है ...
िगिरिा िे बात काटकर कहा-सच, आपके भी िदल है यह आि ियी
बात मालूम हुई।
दयाशंकर कुछ झेपकर बोले-खैर िैसा तुम समझो। मेरे िदल ि सही,
मेर ििगर ि सही, िदमाग तो साफ िािहर है िक ईशर िे मुझे िहीं िदया
ििा फ िकालत मे फेल कयो होता? गोया मेरे शरीर मे िसफफ पेट है , मै िसफफ
खािा िािता हूँ और सचमुच है भी ऐसा ही, तुमिे मुझे कभी फाका करते
िहीं दे खा। तुमिे कई बार िदि-िदि भर कुछ िहीं खाया है , मै पेट भरिे से
कभी बाि िहीं आया। लेिकि कई बार ऐसा भी हुआ है िक िदल और ििगर
ििस कोिशश मे असफल रहे िह इसी पेट िे पूरी कर िदखाई या यो कहो
िक कई बार इसी पेट िे िदल और िदमाग और ििगर का काम कर िदखाया
है और मुझे अपिे इस अिीब पेट पर कुछ गि फ होिे लगा था मगर अब
मालूम हुआ िक मेरे पेट की अिीब पेट पर कुछ गि फ होिे लगा था मगर
138
अब मालूम हुआ िक मेरे पेट की बेहयाइयॉँ लोगो को बुरी मालूम होती है ...इस
िक मेरा खािा ि बिे। मै कुछ ि खाऊंगा।
िगिरिा िे पित की तरफ दे खा, चेहरे पर हलकी-सी मुसकराहट थी, िह
यह कर रही थी िक यह आिखरी बात तुमहे जयादा समहलकर कहिी चािहए
थी। िगिरिा और औरतो की तरह यह भूल िाती थी िक मदो की आतमा को
भी कष हो सकता है । उसके खयाल मे कष का मतलब शारीिरक कष था।
उसिे दयाशंकर के साथ और चाहे िो िरयायत की हो, िखलािे-िपलािे मे
उसिे कभी भी िरयायत िहीं की और िब तक खािे की दै ििक मािा उिके
पेट मे पहुँचती िाय उसे उिकी तरफ से जयादा अनदे शा िहीं होता था।
हिम करिा दयाशंकर का काम था। सच पूिछये तो िगिरिा ही की सिखयतो
िे उनहे हाकी का शौक िदलाया ििाफ अपिे और सैकडो भाइयो की तरह उनहे
दफतर से आकर हुकके और शतरं ि से जयादा मिोरं िि होता था। िगिरिा िे
यह धमकी सुिी तो तयोिरयां चिाकर बोली-अचछी बात है , ि बिेगा।
दयाशंकर िदल मे कुछ झेप-से गये। उनहे इस बेरहम ििाब की
उममीद ि थी। अपिे कमरे मे िाकर अखबार पििे लगे। इधर िगिरिा
हमेशा की तरह खािा पकािे मे लग गई। दयाशंकर का िदल इतिा टू ट गया
था िक उनहे खयाल भी ि था िक िगिरिा खािा पका रही होगी। इसिलए
िब िौ बिे के करीब उसिे आकर कहा िक चलो खािा खा लो तो िह
ताजिुब से चौक पडे मगर यह यकीि आ गया िक मैिे बािी मार ली। िी
हरा हुआ, िफर भी ऊपर से रखाई से कहा-मैिे तो तुमसे कह िदया था िक
आि कुछ ि खाऊँगा।
िगिरिा-चलो थोडा-सा खा लो।
दयाशंकर-मुझे िरा भी भूख िहीं है ।
िगिरिा-कयो? आि भूख िहीं लगी?
दयाशंकर-तुमहे तीि िदि से भूख कयो िहीं लगी?
िगिरिा-मुझे तो इस ििह से िहीं लगी िक तुमिे मेरे िदल को चोट
पहुँचाई थी।
दयाशंकर-मुझे भी इस ििह से िहीं लगी िक तुमिे मुझे तकलीफ दी
है ।
दयाशंकर िे रखाई के साथ यह बाते कहीं और अब िगिरिा उनहे
मिािे लगी। फौरि पॉस
ँ ा पलट गया। अभी एक ही कण पहले िह उसकी
139
खुशामदे कर रहे थे, मुििरम की तरह उसके सामिे हाथ बॉध
ँ े खडे , िगडिगडा
रहे थे, िमनिते करते थे और अब बािी पलटी हुई थी, मुििरम इनसाफ की
मसिद पर बैठा हुआ था। मुहबबत की राहे मकडी के िालो से भी पेचीदा है ।
दयाशंकर िे िदि मे पितजा की थी िक मै भी इसे इतिा ही है राि
करँगा िितिा इसिे मुझे िकया है और थोडी दे र तक िह योिगयो की तरह
िसथरता के साथ बैठे रहे । िगिरिा ि उनहे गुदगुदाया, तलुिे खुिलाये, उिके
बालो मे कंघी की, िकतिी ही लुभािे िाली अदाएँ खच फ कीं मगर असर ि
हुआ। तब उसिे अपिी दोिो बॉह
ँ े उिकी गदफ ि मे डाल दीं और याचिा और
पेम से भरी हुई आँखे उठाकर बोली-चलो, मेरी कसम, खा लो।
फूस की बॉध
ँ बह गई। दयाशंकर िे िगिरिा को गले से लगा िलया। उसके
भोलेपि और भािो की सरलता िे उिके िदल पर एक अिीब ददफ िाक असर
पेदा िकया। उिकी आँखे भी गीली हो गयीं। आह, मै कैसा िािलम हूँ, मेरी
बेिफाइयो िे इसे िकतिा रलाया है , तीि िदि तक उसके आँसू िहीं थमे,
आँखे िहीं झपकीं, तीि िदि तक इसिे दािे की सूरत िहीं दे खी मगर मेरे
एक िरा-से इिकार िे, झूठे िकली इिकार िे, चमतकार कर िदखाया। कैसा
कोमल हदय है ! गुलाब की पंखुडी की तरह, िो मुरझा िाती है मगर मैली
िहीं होती। कहॉँ मेरा ओछापि, खुदगिी और कहॉँ यह बेखुदी, यह तयागा, यह
साहस।
दयाशंकर के सीिे से िलपटी हुई िगिरिा उस िक अपिे पबल
आकषण
फ से अिके िदल को खींचे लेती थी। उसिे िीती हुई बािी हारकर
आि अपिे पित के िदल पर कबिा पा िलया। इतिी िबदफ सत िीत उसे
कभी ि हुई थी। आि दयाशंकर को मुहबबत और भोलेपि की इस मूरत पर
िितिा गि फ था उसका अिुमाि लगािा किठि है । िरा दे र मे िह उठ खडे
हुए और बोले-एक शतफ पर चलूग
ँ ा।
िगिरिा-कया?
दयाशंकर-अब कभी मत रठिा।
िगिरिा-यह तो टे िी शतफ है मगर...मंिरू है ।
दो-तीि कदम चलिे के बाद िगिरिा िे उिका हाथ पकड िलया और
बोली-तुमहे भी मेरी एक शतफ माििी पडे गी।
दयाशंकर-मै समझ गया। तुमसे सच कहता हूँ, अब ऐसा ि होगा।

140
दयाशंकर िे आि िगिरिा को भी अपिे साथ िखलाया। िह बहुत
लिायी, बहुत हीले िकये, कोई सुिेगा तो कया कहे गा, यह तुमहे कया हो गया
है । मगर दयाशंकर िे एक ि मािी और कई कौर िगिरिा को अपिे हाथ से
िखलाये और हर बार अपिी मुहबबत का बेददी के साथ मुआििा िलया।
खाते-खाते उनहोिे हँ सकर िगिरिा से कहा-मुझे ि मालूम था िक तुमहे
मिािा इतिा आसाि है ।
िगिरिा िे िीची ििगाहो से दे खा और मुसकरायी, मगर मुँह से कुछ ि
बोली।
--उदफ ू ‘पेम पचीसी’ से

141
अँ धे र

िा गपंचमी आई। साठे के ििनदािदल िौििािो िे रं ग-िबरं गे िॉिँघये


बििाये। अखाडे मे ढोल की मदाि
फ ा सदाये गूि
ँ िे लगीं। आसपास
के पहलिाि इकटठे हुए और अखाडे पर तमबोिलयो िे अपिी दक
ु ािे सिायीं
कयोिक आि कुिती और दोसतािा मुकाबले का िदि है । औरतो िे गोबर से
अपिे आँगि लीपे और गाती-बिाती कटोरो मे दध
ू -चािल िलए िाग पूििे
चलीं।
साठे और पाठे दो लगे हुए मौिे थे। दोिो गंगा के िकिारे । खेती मे
जयादा मशककत िहीं करिी पडती थी इसीिलए आपस मे फौिदािरयॉँ खूब
होती थीं। आिदकाल से उिके बीच होड चली आती थी। साठे िालो को यह
घमणि था िक उनहोिे पाठे िालो को कभी िसर ि उठािे िदया। उसी तरह
पाठे िाले अपिे पितदं िदयो को िीचा िदखलािा ही ििनदगी का सबसे बडा
काम समझते थे। उिका इितहास ििियो की कहािियो से भरा हुआ था।
पाठे के चरिाहे यह गीत गाते हुए चलते थे:

साठे िाले कायर सगरे पाठे िाले है सरदार

और साठे के धोबी गाते:

साठे िाले साठ हाथ के िििके हाथ सदा तरिार।


उि लोगि के ििम िसाये ििि पाठे माि लीि अितार।।

गरि आपसी होड का यह िोश बचचो मे मॉँ दध


ू के साथ दािखल होता था
और उसके पदशि
फ का सबसे अचछा और ऐितहािसक मौका यही िागपंचमी
का िदि था। इस िदि के िलए साल भर तैयािरयॉँ होती रहती थीं। आि
उिमे माके की कुिती होिे िाली थी। साठे को गोपाल पर िाि था, पाठे को
बलदे ि का गरा।फ दोिो सूरमा अपिे-अपिे फरीक की दआ
ु एँ और आरिुएँ
िलए हुए अखाडे मे उतरे । तमाशाइयो पर चुमबक का-सा असर हुआ। मौिे के
चौकीदारो िे लटठ और िणिो का यह िमघट दे खा और मदो की अंगारे की
तरह लाल आँखे तो िपछले अिुभि के आधार पर बेपता हो गये। इधर

142
अखाडे मे दॉि
ँ -पेच होते रहे । बलदे ि उलझता था, गोपाल पैतरे बदलता था।
उसे अपिी ताकत का िोम था, इसे अपिे करतब का भरोसा। कुछ दे र तक
अखाडे से ताल ठोकिे की आिािे आती रहीं, तब यकायक बहुत-से आदमी
खुशी के िारे मार-मार उछलिे लगे, कपडे और बति
फ और पैसे और बताशे
लुटाये िािे लगे। िकसी िे अपिा पुरािा साफा फेका, िकसी िे अपिी बोसीदा
टोपी हिा मे उडा दी साठे के मिचले ििाि अखाडे मे िपल पडे । और
गोपाल को गोद मे उठा लाये। बलदे ि और उसके सािथयो िे गोपाल को लहू
की आँखो से दे खा और दॉत
ँ पीसकर रह गये।

द स बिे रात का िक और सािि का महीिा। आसमाि पर


घटाए़ँ छाई थीं। अंधेरे का यह हाल था िक िैसे रोशिी का अिसतति
काली

ही िहीं रहा। कभी-कभी िबिली चमकती थी मगर अँधेरे को और जयादा


अंधेरा करिे के िलए। मेढको की आिािे ििनदगी का पता दे ती थीं ििाफ और
चारो तरफ मौत थी। खामोश, िराििे और गमभीर साठे के झोपडे और
मकाि इस अंधेरे मे बहुत गौर से दे खिे पर काली-काली भेडो की तरह ििर
आते थे। ि बचचे रोते थे, ि औरते गाती थीं। पािििातमा बुिढे राम िाम ि
िपते थे।
मगर आबादी से बहुत दरू कई पुरशोर िालो और ढाक के िंगलो से
गुिरकर जिार और बािरे के खेत थे और उिकी मेडो पर साठे के िकसाि
िगह-िगह मडै या डाले खेतो की रखिाली कर रहे थे। तले िमीि, ऊपर
अंधेरा, मीलो तक सनिाटा छाया हुआ। कहीं िंगली सुअरो के गोल, कहीं
िीलगायो के रे िड, िचलम के िसिा कोई साथी िहीं, आग के िसिा कोई
मददगार िहीं। िरा खटका हुआ और चौके पडे । अंधेरा भय का दस
ू रा िाम
है , िब िमटटी का एक ढे र, एक ठू ँ ठा पेड और घास का ढे र भी िािदार चीिे
बि िाती है । अंधेरा उिमे िाि डाल दे ता है । लेिकि यह मिबूत हाथोिाले,
मिबूत ििगरिाले, मिबूत इरादे िाले िकसाि है िक यह सब सिखतयॉ।
झेलते है तािक अपिे जयादा भागयशाली भाइयो के िलए भोग-ििलास के
सामाि तैयार करे । इनहीं रखिालो मे आि का हीरो, साठे का गौरि गोपाल

143
भी है िो अपिी मडै या मे बैठा हुआ है और िींद को भगािे के िलए धीमे
सुरो मे यह गीत गा रहा है :
मै तो तोसे िैिा लगाय पछतायी रे

अचाकि उसे िकसी के पॉि


ँ की आहट मालूम हुई। िैसे िहरि कुतो की
आिािो को काि लगाकर सुिता है उसी तरह गोपल िे भी काि लगाकर
सुिा। िींद की औघ
ं ाई दरू हो गई। लटठ कंधे पर रकखा और मडै या से बाहर
ििकल आया। चारो तरफ कािलमा छाई हुई थी और हलकी-हलकी बूंदे पड
रही थीं। िह बाहर ििकला ही था िक उसके सर पर लाठी का भरपूर हाथ
पडा। िह तयोराकर िगरा और रात भर िहीं बेसध
ु पडा रहा। मालूम िहीं उस
पर िकतिी चोटे पडीं। हमला करिेिालो िे तो अपिी समझ मे उसका काम
तमाम कर डाला। लेिकि ििनदगी बाकी थी। यह पाठे के गैरतमनद लोग थे
ििनहोिे अंधेरे की आड मे अपिी हार का बदला िलया था।

गो
पाल िाित का अहीर था, ि पिा ि िलखा, िबलकुल अकखड। िदमागा
रौशि ही िहीं हुआ तो शरीर का दीपक कयो घुलता। पूरे छ: फुट का
कद, गठा हुआ बदि, ललकाि कर गाता तो सुििेिाले मील भर पर बैठे हुए
उसकी तािो का मिा लेते। गािे-बिािे का आिशक, होली के िदिो मे महीिे
भर तक गाता, सािि मे मलहार और भिि तो रोि का शगल था। ििडर
ऐसा िक भूत और िपशाच के अिसतति पर उसे ििदािो िैसे संदेह थे।
लेिकि ििस तरह शेर और चीते भी लाल लपटो से िरते है उसी तरह लाल
पगडी से उसकी रह असाधारण बात थी लेिकि उसका कुछ बस ि था।
िसपाही की िह िराििी तसिीर िो बचपि मे उसके िदल पर खींची गई थी,
पतथर की लकीर बि गई थी। शरारते गयीं, बचपि गया, िमठाई की भूख गई
लेिकि िसपाही की तसिीर अभी तक कायम थी। आि उसके दरिािे पर
लाल पगडीिालो की एक फौि िमा थी लेिकि गोपाल िखमो से चूर , ददफ से
बेचैि होिे पर भी अपिे मकाि के अंधेरे कोिे मे िछपा हुआ बैठा था।
िमबरदार और मुिखया, पटिारी और चौकीदार रोब खाये हुए ढं ग से खडे
दारोगा की खुशामद कर रहे थे। कहीं अहीर की फिरयाद सुिाई दे ती थी, कहीं
मोदी रोिा-धोिा, कहीं तेली की चीख-पुकार, कहीं कमाई की आँखो से लहू
144
िारी। कलिार खडा अपिी िकसमत को रो रहा था। फोहश और गनदी बातो
की गमब
फ ािारी थी। दारोगा िी ििहायत कारगुिार अफसर थे, गािलयो मे
बात करते थे। सुबह को चारपाई से उठते ही गािलयो का ििीफा पिते थे।
मेहतर िे आकर फिरयाद की-हुिूर, अणिे िहीं है , दारोगािी हणटर लेकर दौडे
औश उस गरीब का भुरकुस ििकाल िदया। सारे गॉि
ँ मे हलचल पडी हुई थी।
कांिसटे बल और चौकीदार रासतो पर यो अकडते चलते थे गोया अपिी
ससुराल मे आये है । िब गॉि
ँ के सारे आदमी आ गये तो िारदात हुई और
इस कमबखत गोलाल िे रपट तक ि की।
मुिखया साहब बेत की तरह कॉप
ँ ते हुए बोले-हुिूर, अब माफी दी िाय।
दारोगािी िे गािबिाक ििगाहो से उसकी तरफ दे खकर कहा-यह
इसकी शरारत है । दिुिया िािती है िक िुम फ को छुपािा िुम फ करिे के
बराबर है । मै इस बदकाश को इसका मिा चखा दँग
ू ा। िह अपिी ताकत के
िोम मे भूला हुआ है , और कोई बात िहीं। लातो के भूत बातो से िहीं
मािते।
मुिखया साहब िे िसर झुकाकर कहा-हुिूर, अब माफी दी िाय।
दारोगािी की तयोिरयॉँ चि गयीं और झुंझलाकर बोले-अरे हिूर के
बचचे, कुछ सिठया तो िहीं गया है । अगर इसी तरह माफी दे िी होती तो
मुझे कया कुते िे काटा था िक यहॉँ तक दौडा आता। ि कोई मामला, ि
ममाले की बात, बस माफी की रट लगा रकखी है । मुझे जयादा फुरसत िहीं
है । िमाि पिता हूँ, तब तक तुम अपिा सलाह मशििरा कर लो और मुझे
हँ सी-खुशी रखसत करो ििा फ गौसखॉँ को िािते हो, उसका मारा पािी भी
िही मॉग
ँ ता!
दारोगा तकिे ि तहारत के बडे पाबनद थे पॉच
ँ ो िक की िमाि पिते
और तीसो रोिे रखते, ईदो मे धूमधाम से कुबािफियॉँ होतीं। इससे अचछा
आचरण िकसी आदमी मे और कया हो सकता है !

मु िखया साहब दबे पॉि


ँ गुपचुप ढं ग से गौरा के पास और बोले-यह
दारोगा बडा कािफर है , पचास से िीचे तो बात ही िहीं करता। अबबल

145
दिे का थािेदार है । मैिे बहुत कहा, हुिूर, गरीब आदमी है , घर मे कुछ
सुभीता िहीं, मगर िह एक िहीं सुिता।
गौरा िे घूँघट मे मुँह िछपाकर कहा-दादा, उिकी िाि बच िाए, कोई
तरह की आंच ि आिे पाए, रपये-पैसे की कौि बात है , इसी िदि के िलए तो
कमाया िाता है ।
गोपाल खाट पर पडा सब बाते सुि रहा था। अब उससे ि रहा गया।
लकडी गॉठ
ँ ही पर टू टती है । िो गुिाह िकया िहीं गया िह दबता है मगर
कुचला िहीं िा सकता। िह िोश से उठ बैठा और बोला-पचास रपये की
कौि कहे , मै पचास कौिडयॉँ भी ि दँग
ू ा। कोई गदर है , मैिे कसूर कया िकया
है ?
मुिखया का चेहरा फक हो गया। बडपपि के सिर मे बोले-धीरे बोलो,
कहीं सुि ले तो गिब हो िाए।
लेिकि गोपाल िबफरा हुआ था, अकडकर बोला-मै एक कौडी भी ि
दँग
ू ा। दे खे कौि मेरे फॉस
ँ ी लगा दे ता है ।
गौरा िे बहलािे के सिर मे कहा-अचछा, िब मै तुमसे रपये माँगूँतो
मत दे िा। यह कहकर गौरा िे, िो इस िक लौडी के बिाय रािी बिी हुई
थी, छपपर के एक कोिे मे से रपयो की एक पोटली ििकाली और मुिखया के
हाथ मे रख दी। गोपाल दॉत
ँ पीसकर उठा, लेिकि मुिखया साहब फौरि से
पहले सरक गये। दारोगा िी िे गोपाल की बाते सुि ली थीं और दआ
ु कर
रहे थे िक ऐ खुदा, इस मरदद
ू के िदल को पलट। इतिे मे मुिखया िे बाहर
आकर पचीस रपये की पोटली िदखाई। पचीस रासते ही मे गायब हो गये थे।
दारोगा िी िे खुदा का शुक िकया। दआ
ु सुिी गयी। रपया िेब मे रकखा
और रसद पहुँचािे िालो की भीड को रोते और िबलिबलाते छोडकर हिा हो
गये। मोदी का गला घुंट गया। कसाई के गले पर छुरी िफर गयी। तेली िपस
गया। मुिखया साहब िे गोपाल की गदफ ि पर एहसाि रकखा गोया रसद के
दाम िगरह से िदए। गॉि
ँ मे सुखर
फ हो गया, पितषा बि गई। इधर गोपाल िे
गौरा की खूब खबर ली। गाँि मे रात भर यही चचा फ रही। गोपाल बहुत बचा
और इसका सेहरा मुिखया के िसर था। बडी ििपित आई थी। िह टल गयी।
िपतरो िे, दीिाि हरदौल िे, िीम तलेिाली दे िी िे, तालाब के िकिारे िाली
सती िे, गोपाल की रका की। यह उनहीं का पताप था। दे िी की पूिा होिी
िररी थी। सतयिारायण की कथा भी लाििमी हो गयी।
146

िफ
र सुबह हुई लेिकि गोपाल के दरिािे पर आि लाल पगिडयो के
बिाय लाल सािडयो का िमघट था। गौरा आि दे िी की पूिा करिे
िाती थी और गॉि
ँ की औरते उसका साथ दे िे आई थीं। उसका घर सोधी-
सोधी िमटटी की खुशबू से महक रहा था िो खस और गुलाब से कम मोहक
ि थी। औरते सुहािे गीत गा रही थीं। बचचे खुश हो-होकर दौडते थे। दे िी के
चबूतरे पर उसिे िमटटी का हाथी चिाया। सती की मॉग
ँ मे सेदरु िाला।
दीिाि साहब को बताशे और हलुआ िखलाया। हिुमाि िी को लििू से
जयादा पेम है , उनहे लििू चिाये तब गाती बिाती घर को आयी और
सतयिारायण की कथा की तैयािरयॉँ होिे लगीं । मािलि फूल के हार, केले
की शाखे और बनदििारे लायीं। कुमहार िये-िये िदये और हॉिँियाँ दे गया।
बारी हरे ढाक के पतल और दोिे रख गया। कहार िे आकर मटको मे पािी
भरा। बिई िे आकर गोपाल और गौरा के िलए दो ियी-ियी पीिियॉँ बिायीं।
िाइि िे ऑग
ं ि लीपा और चौक बिायी। दरिािे पर बनदििारे बँध गयीं।
ऑग
ं ि मे केले की शाखे गड गयीं। पिणित िी के िलए िसंहासि सि गया।
आपस के कामो की वयिसथा खुद-ब-खुद अपिे िििित दायरे पर चलिे लगी
। यही वयिसथा संसकृ ित है ििसिे दे हात की ििनदगी को आिमबर की ओर
से उदासीि बिा रकखा है । लेिकि अफसोस है िक अब ऊँच-िीच की
बेमतलब और बेहूदा कैदो िे इि आपसी कतवफयो को सौहादफ सहयोग के पद
से हटा कर उि पर अपमाि और िीचता का दागालगा िदया है ।
शाम हुई। पिणित मोटे रामिी िे कनधे पर झोली िाली, हाथ मे शंख
िलया और खडाऊँ पर खटपट करते गोपाल के घर आ पहुँचे। ऑग
ं ि मे टाट
िबछा हुआ था। गॉि
ँ के पितिषत लोग कथा सुििे के िलए आ बैठे। घणटी
बिी, शंख फुंका गया और कथा शुर हुई। गोपाल भी गािे की चादर ओिे एक
कोिे मे फूंका गया और कथा शुर हुई। गोिाल भी गािे की चादर ओिे एक
कोिे मे दीिार के सहारे बैठा हुआ था। मुिखया, िमबरदार और पटिारी िे
मारे हमददी के उससे कहा—सतयिारायण क मिहमा थी िक तुम पर कोई
ऑच
ं ि आई।

147
गोपाल िे अँगडाई लेकर कहा—सतयिारायण की मिहमा िहीं, यह
अंधेर है । --िमािा, िुलाई १९१३

148
सु बह का िक था। ठाकुर दशि
आि रात को चनदगहण
फ िसंह के घर मे एक हं गामा बरपा था।
होिे िाला था। ठाकुर साहब अपिी बूिी
ठकुराइि के साथ गंगािी िाते थे इसिलए सारा घर उिकी पुरशोर तैयारी
मे लगा हुआ था। एक बहू उिका फटा हुआ कुता फ टॉक
ँ रही थी, दस
ू री बहू
उिकी पगडी िलए सोचती थी, िक कैसे इसकी मरममत करँ़ं दोिो लडिकयॉँ
िािता तैयार करिे मे तललीि थीं। िो जयादा िदलचसप काम था और बचचो
िे अपिी आदत के अिुसार एक कुहराम मचा रकखा था कयोिक हर एक
आिे-िािे के मौके पर उिका रोिे का िोश उमंग पर होत था। िािे के िक
साथा िािे के िलए रोते, आिे के िक इसिलए रोते िकशरीिी का बॉट
ँ -बखरा
मिोिुकूल िहीं हुआ। बिी ठकुराइि बचचो को फुसलाती थी और बीच-बीच
मे अपिी बहुओं को समझाती थी-दे खो खबरदार ! िब तक उगह ि हो िाय,
घर से बाहर ि ििकलिा। हँ िसया, छुरी ,कुलहाडी , इनहे हाथ से मत छुिा।
समझाये दे ती हूँ, माििा चाहे ि माििा। तुमहे मेरी बात की परिाह है । मुंह
मे पािी की बूंदे ि पडे । िारायण के घर ििपत पडी है । िो साधु—िभखारी
दरिािे पर आ िाय उसे फेरिा मत। बहुओं िे सुिा और िहीं सुिा। िे मिा
रहीं थीं िक िकसी तरह यह यहॉ ँ से टले। फागुि का महीिा है , गािे को तरस
गये। आि खूब गािा-बिािा होगा।
ठाकुर साहब थे तो बूिे, लेिकि बूिापे का असर िदल तक िहीं पहुँचा
था। उनहे इस बात का गि फ था िक कोई गहण गंगा-सिाि के बगैर िहीं
छूटा। उिका जाि आिय फ ििक था। िसफफ पिो को दे खकर महीिो पहले
सूयफ-गहण और दस
ू रे पिो के िदि बता दे ते थे। इसिलए गाँििालो की ििगाह
मे उिकी इजित अगर पिणितो से जयादा ि थी तो कम भी ि थी। ििािी
मे कुछ िदिो फौि मे िौकरी भी की थी। उसकी गमी अब तक बाकी थी,
मिाल ि थी िक कोई उिकी तरफ सीधी आँख से दे ख सके। सममि
लािेिाले एक चपरासी को ऐसी वयािहािरक चेताििी दी थी ििसका उदाहरण
आस-पास के दस-पॉच
ँ गॉि
ँ मे भी िहीं िमल सकता। िहममत और हौसले के
कामो मे अब भी आगे-आगे रहते थे िकसी काम को मुििकल बता दे िा,
उिकी िहममत को पेिरत कर दे िा था। िहॉँ सबकी िबािे बनद हो िाएँ, िहॉँ

149
िे शेरो की तरह गरिते थे। िब कभी गॉि
ँ मे दरोगा िी तशरीफ लाते तो
ठाकुर साहब ही का िदल-गुदा फ था िक उिसे आँखे िमलाकर आमिे-सामिे
बात कर सके। जाि की बातो को लेकर िछडिेिाली बहसो के मैदाि मे भी
उिके कारिामे कुछ कम शािदार ि थे। झगडा पिणित हमेशा उिसे मुँह
िछपाया करते। गरि, ठाकुर साहब का सिभािगत गि फ और आतम-ििशास
उनहे हर बरात मे दल
ू हा बििे पर मिबूर कर दे ता था। हॉँ, कमिोरी इतिी
थी िक अपिा आलहा भी आप ही गा लेते और मिे ले-लेकर कयोिक रचिा
को रचिाकार ही खूब बयाि करता है !

ि ब दोपहर होते-होते ठाकुराइि गॉि


ँ से चले तो सैकडो आदमी उिके
साथ थे और पककी सडक पर पहुँचे, तो यािियो का ऐसा तॉत
ँ ा लगा
हुआ था िक िैसे कोई बािार है । ऐसे-ऐसे बुिे लािठयॉँ टे कते या िोिलयो पर
सिार चले िाते थे ििनहे तकलीफ दे िे की यमराि िे भी कोई िररत ि
समझी थी। अनधे दस
ू रो की लकडी के सहारे कदम बिाये आते थे। कुछ
आदिमयो िे अपिी बूिी माताओं को पीठ पर लाद िलया था। िकसी के सर
पर कपडो की पोटली, िकसी के कनधे पर लोटा-िोर, िकसी के कनधे पर
काँिर। िकतिे ही आदिमयो िे पैरो पर चीथडे लपेट िलये थे, िूते कहॉँ से
लाये। मगर धािमक
फ उतसाह का यह िरदाि था िक मि िकसी का मैला ि
था। सबके चेहरे िखले हुए, हँ सते-हँ सते बाते करते चले िा रहे थे कुछ औरते
गा रही थी:
चॉद
ँ सूरि दि
ू ो लोक के मािलक
एक िदिा उिहूँ पर बिती
हम िािी हमहीं पर बिती

ऐसा मालूम होता था, यह आदिमयो की एक िदी थी, िो सैकडो छोटे -


छोटे िालो और धारो को लेती हुई समुद से िमलिे के िलए िा रही थी।
िब यह लोग गंगा के िकिारे पहुँचे तो तीसरे पहर का िक था लेिकि
मीलो तक कहीं ितल रखिे की िगह ि थी। इस शािदार दिय से िदलो पर
ऐसा रोब और भिक का ऐसा भाि छा िाता था िक बरबस ‘गंगा माता की
िय’ की सदाये बुलनद हो िाती थीं। लोगो के ििशास उसी िदी की तरह
150
उमडे हुए थे और िह िदी! िह लहराता हुआ िीला मैदाि! िह पयासो की
पयास बुझािेिाली! िह ििराशो की आशा! िह िरदािो की दे िी! िह पिििता
का सोत! िह मुटठी भर खाक को आशय दे िेिीली गंगा हँ सती-मुसकराती थी
और उछलती थी। कया इसिलए िक आि िह अपिी चौतरफा इजित पर
फूली ि समाती थी या इसिलए िक िह उछल-उछलकर अपिे पेिमयो के गले
िमलिा चाहती थी िो उसके दशि
फ ो के िलए मंििल तय करके आये थे! और
उसके पिरधाि की पशंसा िकस िबाि से हो, ििस सूरि से चमकते हुए तारे
टॉक
ँ े थे और ििसके िकिारो को उसकी िकरणो िे रं ग-िबरं गे, सुनदर और
गितशील फूलो से सिाया था।
अभी गहण लगिे मे धणटे की दे र थी। लोग इधर-उधर टहल रहे थे।
कहीं मदािरयो के खेल थे, कहीं चूरििाले की लचछे दार बातो के चमतकार।
कुछ लोग मेिो की कुिती दे खिे के िलए िमा थे। ठाकुर साहब भी अपिे
कुछ भको के साथ सैर को ििकले। उिकी िहममत िे गिारा ि िकया िक
इि बािार िदलचिसपयो मे शरीक हो। यकायक उनहे एक बडा-सा शािमयािा
तिा हुआ ििर आया, िहॉँ जयादातर पिे -िलखे लोगो की भीड थी। ठाकुर
साहब िे अपिे सािथयो को एक िकिारे खडा कर िदया और खुद गि फ से
ताकते हुए फश फ पर िा बैठे कयोिक उनहे ििशास था िक यहॉँ उि पर
दे हाितयो की ईषयाफ--दिष पडे गी और समभि है कुछ ऐसी बारीक बाते भी
मालूम हो िायँ तो उिके भको को उिकी सिज
फ ता का ििशास िदलािे मे
काम दे सके।
यह एक िैितक अिुषाि था। दो-ढाई हिार आदमी बैठे हुए एक
मधुरभाषी िका का भाषणसुि रहे थे। फैशिेबुल लोग जयादातर अगली पंिक
मे बैठे हुए थे ििनहे किबितयो का इससे अचछा मौका िहीं िमल सकता
था। िकतिे ही अचछे कपडे पहिे हुए लोग इसिलए दख
ु ी ििर आते थे िक
उिकी बगल मे ििमि शण
े ी के लोग बैठे हुए थे। भाषण िदलचसत मालूम
पडता था। ििि जयादा था और चटखारे कम, इसिलए तािलयॉँ िहीं बिती
थी।

िका िे अपिे भाषण मे कहा—
मेरे पयारे दोसतो, यह हमारा और आपका कतवफय है । इससे जयादा महतिपूणफ,
जयादा पिरणामदायक और कौम के िलए जयादा शुभ और कोई कतवफय िहीं
151
है । हम मािते है िक उिके आचार-वयिहार की दशा अतयंत करण है । मगर
ििशास माििये यह सब हमारी करिी है । उिकी इस लजिाििक सांसकृ ितक
िसथित का ििममेदार हमारे िसिा और कौि हो सकता है ? अब इसके िसिा
और कोई इलाि िहीं है िक हम उस घण
ृ ा और उपेका को; िो उिकी तरफ
से हमारे िदलो मे बैठी हुई है , घोये और खूब मलकर धोये। यह आसाि काम
िहीं है । िो कािलख कई हिार िषो से िमी हुई है , िह आसािी से िहीं
िमट सकती। ििि लोगो की छाया से हम बचते आये है , ििनहे हमिे
िाििरो से भी िलील समझ रकखा है , उिसे गले िमलिे मे हमको तयाग
और साहस और परमाथ फ से काम लेिा पडे गा। उस तयाग से िो कृ षण मे
था, उस िहममत से िो राम मे थी, उस परमाथ फ से िो चैतनय और गोििनद
मे था। मै यह िहीं कहता िक आप आि ही उिसे शादी के िरिते िोिे या
उिके साथ बैठकर खाये-िपये। मगर कया यह भी मुमिकि िहीं है िक आप
उिके साथ सामानय सहािुभूित, सामानय मिुषयता, सामानय सदाचार से पेश
आये? कया यह सचमुच असमभि बात है ? आपिे कभी ईसाई िमशििरयो को
दे खा है ? आह, िब मै एक उचचकोिट का सुनदर, सुकुमार, गौरिण फ लेिी को
अपिी गोद मे एक काला–कलूटा बचच िलये हुए दे खता हूँ ििसके बदि पर
फोडे है , खूि है और गनदगी है —िह सुनदरी उस बचचे को चूमती है , पयार
करती है , छाती से लगाती है —तो मेरा िी चाहता है उस दे िी के कदमो पर
िसर रख दँ।ू अपिी िीचता, अपिा कमीिापि, अपिी झूठी बडाई, अपिे हदय
की संकीणत
फ ा मुझे कभी इतिी सफाई से ििर िहीं आती। इि दे िियो के
िलए ििनदगी मे कया-कया संपदाएँ, िहीं थी, खुिशयॉँ बॉह
ँ े पसारे हुए उिके
इनतिार मे खडी थी। उिके िलए दौलत की सब सुख-सुििधाएँ थीं। पेम के
आकषण
फ थे। अपिे आतमीय और सिििो की सहािुभूितयॉँ थीं और अपिी
पयारी मातभ
ृ ूिम का आकषण
फ था। लेिकि इि दे िियो िे उि तमाम िेमतो,
उि सब सांसािरक संपदाओं को सेिा, सचची ििसिाथ फ सेिा पर बिलदाि कर
िदया है ! िे ऐसी बडी कुबािफियॉँ कर सकती है , तो हम कया इतिा भी िहीं
कर सकते िक अपिे अछूत भाइयो से हमददी का सलूक कर सके? कया हम
सचमुच ऐसे पसत-िहममत, ऐसे बोदे , ऐसे बेरहम है ? इसे खूब समझ लीििए
िक आप उिके साथ कोई िरयायत, कोई मेहरबािी िहीं कर रहे है । यह उि
पर कोई एहसाि िहीं है । यह आप ही के िलए ििनदगी और मौत का सिाल
है । इसिलए मेरे भाइयो और दोसतो, आइये इस मौके पर शाम के िक पििि
152
गंगा िदी के िकिारे काशी के पििि सथाि मे हम मिबूत िदल से पितजा
करे िक आि से हम अछूतो के साथ भाई-चारे का सलूक करे गे, उिके तीि-
तयोहारो मे शरीक होगे और अपिे तयोहारो मे उनहे बुलायेगे। उिके गले
िमलेगे और उनहे अपिे गले लगायेगे! उिकी खुिशयो मे खुश और उिके ददो
मे ददफ मनद होगे, और चाहे कुछ ही कयो ि हो िाय, चाहे तािा-ितशो और
ििललत का सामिा ही कयो ि करिा पडे , हम इस पितजा पर कायम रहे गे।
आप मे सैकडो िोशीले िौििाि है िो बात के धिी और इरादे के मिबूत
है । कौि यह पितजा करता है ? कौि अपिे िैितक साहस का पिरचय दे ता है ?
िह अपिी िगह पर खडा हो िाय और ललकारकर कहे िक मै यह पितजा
करता हूँ और मरते दम तक इस पर दिता से कायम रहूँगा।

सू रि गंगा की गोद मे िा बैठा था और मॉँ पेम और गि फ से मतिाली


िोश मे उमडी हुई रं ग केसर को शमात
फ ी और चमक मे सोिे की
लिाती थी। चार तरफ एक रोबीली खामोशी छायी थीं उस सनिाटे मे
संनयासी की गमी और िोश से भरी हुई बाते गंगा की लहरो और
गगिचुमबी मंिदरो मे समा गयीं। गंगा एक गमभीर मॉँ की ििराशा के साथ
हँ सी और दे िताओं िे अफसोस से िसर झुका िलया, मगर मुँह से कुछ ि
बोले।
संनयासी की िोशीली पुकार िफिां मे िाकर गायब हो गई, मगर उस
मिमे मे िकसी आदमी के िदल तक ि पहुँची। िहॉँ कौम पर िाि दे िे िालो
की कमी ि थी: सटे िो पर कौमी तमाशे खेलिेिाले कालेिो के होिहार
िौििाि, कौम के िाम पर िमटिेिाले पिकार, कौमी संसथाओं के मेमबर,
सेकेटरी और पेिसिे ट, राम और कृ षण के सामिे िसर झुकािेिाले सेठ और
साहूकार, कौमी कािलिो के ऊँचे हौसलोिाले पोफेसर और अखबारो मे कौमी
तरिककयो की खबरे पिकर खुश होिे िाले दफतरो के कमच
फ ारी हिारो की
तादाद मे मौिूद थे। आँखो पर सुिहरी ऐिके लगाये, मोटे -मोटे िकीलो क
एक पूरी फौि िमा थी। मगर संनयासी के उस गम फ भाषण से एक िदल भी
ि िपघला कयोिक िह पतथर के िदल थे ििसमे ददफ और घुलािट ि थी,

153
ििसमे सिदचछा थी मगर कायफ-शिक ि थी, ििसमे बचचो की सी इचछा थी
मदो का–सा इरादा ि था।
सारी मििलस पर सनिाटा छाया हुआ था। हर आदमी िसर झुकाये
िफक मे िू बा हुआ ििर आता था। शिमद
ि गी िकसी को सर उठािे ि दे ती थी
और आँखे झेप मे मारे िमीि मे गडी हुई थी। यह िही सर है िो कौमी
चचो पर उछल पडते थे, यह िही आँखे है िो िकसी िक राषीय गौरि की
लाली से भर िाती थी। मगर कथिी और करिी मे आिद और अनत का
अनतर है । एक वयिक को भी खडे होिे का साहस ि हुआ। कैची की तरह
चलिेिाली िबाि भी ऐसे महाि ् उतरदाियति के भय से बनद हो गयीं।

ठा
5

कुर दशि
फ िसंह अपिी िगी पर बैठे हुए इस दिय को बहुत गौर और
िदलचसपी से दे ख रहे थे। िह अपिे मािमक
फ ििशासो मे चाहे कटटर
हो या ि हो, लेिकि सांसकृ ितक मामलो मे िे कभी अगुिाई करिे के दोषी
िहीं हुए थे। इस पेचीदा और िराििे रासते मे उनहे अपिी बुिि और िििेक
पर भरोसा िहीं होता था। यहॉ ं तकफ और युिक को भी उिसे हार माििी
पडती थी। इस मैदाि मे िह अपिे घर की िसयो की इचछा पूरी करिे ही
अपिा कतवफय समझते थे और चाहे उनहे खुद िकसी मामले मे कुछ एतराि
भी हो लेिकि यह औरतो का मामला था और इसमे िे हसतकेप िहीं कर
सकते थे कयोिक इससे पिरिार की वयिसथा मे हलचल और गडबडी पैदा हो
िािे की िबरदसत आशंका रहती थी। अगर िकसी िक उिके कुछ िोशीले
िौििाि दोसत इस कमिोरी पर उनहे आडे हाथो लेते तो िे बडी बुििमता से
कहा करते थे—भाई, यह औरतो के मामले है , उिका िैसा िदल चाहता है ,
करती है , मै बोलिेिाला कौि हूँ। गरि यहॉँ उिकी फौिी गमफ-िमिािी उिका
साथ छोड दे ती थी। यह उिके िलए ितिलसम की घाटी थी िहॉँ होश-हिास
िबगड िाते थे और अनधे अिुकरण का पैर बँधी हुई गदफ ि पर सिार हो
िाता था।
लेिकि यह ललकार सुिकर िे अपिे को काबू मे ि रख सके। यही
िह मौका था िब उिकी िहममते आसमाि पर िा पहुँचती थीं। ििस बीडे
को कोई ि उठाये उसे उठािा उिका काम था। ििि
फ ाओं से उिको आितमक
पेम था। ऐसे मौके पर िे ितीिे और मसलहत से बगाित कर िाते थे और
154
उिके इस हौसले मे यश के लोभ को उतिा दखल िहीं था िितिा उिके
िैसिगक
फ सिाभाि का। ििा फ यह असमभि था िक एक ऐसे िलसे मे िहॉँ
जाि और सभयता की धूम-धाम थी, िहॉँ सोिे की ऐिको से रोशिी और
तरह-तरह के पिरधािो से दीप िचनति की िकरणे ििकल रही थीं , िहॉँ
कपडे -लते की िफासत से रोब और मोटापे से पितषा की झलक आती थी,
िहॉँ एक दे हाती िकसाि को िबाि खोलिे का हौसला होता। ठाकुर िे इस
दिय को गौर और िदलचसपी से दे खा। उसके पहलू मे गुदगुदी-सी हुई।
ििनदािदली का िोश रगो मे दौडा। िह अपिी िगह से उठा और मदाि
फ ा
लहिे मे ललकारकर बोला-मै यह पितजा करता हूँ और मरते दम तक उस
पर कायम रहूँगा।

इ तिा सुििा था िक दो हिार आँखे अचमभे से उसकी तरफ ताकिे


लगीं। सुभािअललाह, कया हुिलया थी—गाढे की ढीली िमिई
फ , घुटिो तक
चिी हुई धोती, सर पर एक भारी-सा उलझा हुआ साफा, कनधे पर चुिौटी और
तमबाकू का िििी बटु आ, मगर चेहरे से गमभीरता और दिता सपष थी। गिफ
आँखो के तंग घेरे से बाहर ििकला पडता था। उसके िदल मे अब इस
शािदार मिमे की इजित बाकी ि रही थी। िह पुरािे िको का आदमी था
िो अगर पतथर को पूिता था तो उसी पतथर से िरता भी था, ििसके िलए
एकादशी का वत केिल सिासथय-रका की एक युिक और गंगा केिल
सिासथयपद पािी की एक धारा ि थी। उसके ििशासो मे िागिृत ि हो
लेिकि दिुिधा िहीं थी। यािी िक उसकी कथिी और करिी मे अनतर ि था
और ि उसकी बुिियाद कुछ अिुकरण और दे खादे खी पर थी मगर
अिधकांशत: भय पर, िो जाि के आलोक के बाद ििृतयो के संसकार की
सबसे बडी शिक है । गेरए बािे का आदर और भिक करिा इसके धम फ और
ििशास का एक अंग था। संनयास मे उसकी आतमा को अपिा अिुचर बिािे
की एक सिीि शिक िछपी हुई थी और उस ताकत िे अपिा असर िदखाया।
लेिकि मिमे की इस है रत िे बहुत िलद मिाक की सूरत अिखतयार की।
मतलबभरी ििगाहे आपस मे कहिे लगीं—आिखर गंिार ही तो ठहरा! दे हाती
है , ऐसे भाषण कभी काहे को सुिे होगे, बस उबल पडा। उथले गिढे मे इतिा
पािी भी ि समा सका! कौि िहीं िािता िक ऐसे भाषणो का उदे िय

155
मिोरं िि होता है ! दस आदमी आये, इकटठे बैठ, कुछ सुिा, कुछ गप-शप मारी
और अपिे-अपिे घर लौटे , ि यह िक कौल-करार करिे बैठे, अमल करिे के
िलए कसमे खाये!
मगर ििराश संनयासी सो रहा था—अफसोस, ििस मुलक की रोशिी मे
इतिा अंधेरा है , िहॉँ कभी रोशिी का उदय होिा मुििकल ििर आता है । इस
रोशिी पर, इस अंधेरी, मुदाफ और बेिाि रोशिी पर मै िहालत को, अजाि को
जयादा ऊँची िगह दे ता हूँ। अजाि मे सफाई है और िहममत है , उसके िदल
और िबाि मे पदा फ िहीं होता, ि कथिी और करिी मे ििरोध। कया यह
अफसोस की बात िहीं है िक जाि और अजाि के आगे िसर झुकाये? इस
सारे मिमे मे िसफफ एक आदमी है , ििसके पहलू मे मदो का िदल है और गो
उसे बहुत सिग होिे का दािा िहीं लेिकि मै उसके अजाि पर ऐसी हिारो
िागिृतयो को कुबाि
फ कर सकता हूँ। तब िह पलेटफाम फ से िीचे उतरे और
दशि
फ िसंह को गले से लगाकर कहा—ईशर तुमहे पितजा पर कायम रखे।
--िमािा, अगसत-िसतमबर १९१३

156
सा िि का महीिा था। रे िती रािी िे पांि मे मेहंदी रचायी, मांग-चोटी
संिारी और तब अपिी बूिी सास िे िाकर बोली—अममां िी, आि
भी मेला दे खिे िाऊँगी।
रे िती पिणित िचनतामिण की पती थी। पिणित िी िे सरसिती की
पूिा मे जयादा लाभ ि दे खकर लकमी दे िी की पूिा करिी शुर की थी।
लेि-दे ि का कार-बार करते थे मगर और महाििो के ििपरीत खास-खास
हालतो के िसिा पचचीस फीसदी से जयादा सूद लेिा उिचत ि समझते थे।
रे िती की सास बचचे को गोद मे िलये खटोले पर बैठी थी। बहू की
बात सुिकर बोली—भीग िाओगी तो बचचे को िुकाम हो िायगा।
रे िती—िहीं अममां, कुछ दे र ि लगेगी, अभी चली आऊँगी।
रे िती के दो बचचे थे—एक लडका, दस
ू री लडकी। लडकी अभी गोद मे
थी और लडका हीरामि सातिे साल मे था। रे िती िे उसे अचछे -अचछे कपडे
पहिाये। ििर लगिे से बचािे के िलए माथे और गालो पर कािल के टीके
लगा िदये, गुिडयॉँ पीटिे के िलए एक अचछी रं गीि छडी दे दी और अपिी
सहे िलयां के साथ मेला दे खिे चली।
कीरत सागर के िकिारे औरतो का बडा िमघट था। िीलगूं घटाएं
छायी हुई थीं। औरते सोलह िसंगार िकए सागर के खुले हुए हरे -भरे सुनदर
मैदाि मे सािि की िरमिझम िषाफ की बहार लूट रही थीं। शाखो मे झूले पडे
थे। कोई झूला झूलती कोई मलहार गाती, कोई सागर के िकिारे बैठी लहरो से
खेलती। ठं िी-ठं िी खुशगिार पािी की हलकी-हलकी फुहार पहािडयो की
ििखरी हुई हिरयािल, लहरो के िदलकश झकोले मौसम को ऐसा बिा रहे थे
िक उसमे संयम िटक ि पाता था।
आि गुिडयो की ििदाई है । गुिडयां अपिी ससुराल िायेगी। कुंआरी
लडिकयॉँ हाथ-पॉि
ँ मे मेहदी रचाये गुिडयो को गहिे-कपडे से सिाये उनहे
ििदा करिे आयी है । उनहे पािी मे बहाती है और छकछक-कर सािि के
गीत गाती है । मगर सुख-चैि के आंचल से ििकलते ही इि लाड-पयार मे
पली हुई गुिडयो पर चारो तरफ से छिडयो और लकिडयो की बौछार होिे
लगती है ।
157
रे िती यह सैर दे ख रही थी और हीरामि सागर की सीिियो पर और
लडिकयो के साथ गुिडयॉँ पीटिे मे लगा हुआ था। सीिियो पर काई लगी हुई
थीं अचािक उसका पांि िफसला तो पािी मे िा पडा। रे िती चीख मारकर
दौडी और सर पीटिे लगी। दम के दम मे िहॉँ मदो और औरतो का ठट लग
गया मगर यह िकसी की इनसािियत तकािा ि करती थी िक पािी मे
िाकर मुमिकि हो तो बचचे की िाि बचाये। संिारे हुए बाल ि िबखर
िायेगे! धुली हुई धोती ि भींग िाएगी! िकतिे ही मदो के िदलो मे यह
मदाि
फ ा खयाल आ रहे थे। दस िमिट गुिरे गये मगर कोई आदमी िहममत
करता ििर ि आया। गरीब रे िती पछाडे खा रही थीं अचािक उधर से एक
आदमी अपिे घोडे पर सिार चला िाता था। यह भीड दे खकर उतर पडा
और एक तमाशाई से पूछा—यह कैसी भीड है ? तमाशाई िे ििाब िदया—एक
लडका िू ब गया है ।
मुसािफर –कहां?
तमाशाई—िहां िह औरत खडी रो रही है ।
मुसािफर िे फौरि अपिी गािे की िमिई
फ उतारी और धोती कसकर
पािी मे कूद पडा। चारो तरफ सनिाटा छा गया। लोग है राि थे िक यह
आदमी कौि है । उसिे पहला गोता लगाया, लडके की टोपी िमली। दस
ू रा
गोता लगाया तो उसकी छडी हाथ मे लगी और तीसरे गोते के बाद िब
ऊपर आया तो लडका उसकी गोद मे था। तमाशाइयो िे िोर से िाह-िाह का
िारा बुलनद िकया। मां दौडकर बचचे से िलपट गयी। इसी बीच पिणित
िचनतामिण के और कई िमि आ पहुँचे और लडके को होश मे लािे की
िफक करिे लगे। आध घणटे मे लडके िे आँखे खोल दीं। लोगो की िाि मे
िाि आई। िाकटर साहब िे कहा—अगर लडका दो िमिट पािी मे रहता तो
बचिा असमभि था। मगर िब लोग अपिे गुमिाम भलाई करिे िाले को
ढू ं ििे लगे तो उसका कहीं पता ि था। चारो तरफ आदमी दौडाये, सारा मेला
छाि मारा, मगर िह ििर ि आया।

158
बी
स साल गुिर गए। पिणित िचनतामिण का कारोबार रोि ब रोि
बिता गया। इस बीच मे उसकी मां िे सातो यािाएं कीं और मरीं तो
ठाकुरदारा तैयार हुआ। रे िती बहू से सास बिी, लेि-दे ि, बही-खाता हीरामिण
के साथ मे आया हीरामिण अब एक हष-पुष लमबा-तगडा िौििाि था। बहुत
अचछे सिभाि का, िेक। कभी-कभी बाप से िछपाकर गरीब असािमयो को यो
ही किफ दे िदया करता। िचनतामिण िे कई बार इस अपराध के िलए बेटे को
ऑख
ं े िदखाई थीं और अलग कर दे िे की धमकी दी थी। हीरामिण िे एक
बार एक संसकृ त पाठशाला के िलए पचास रपया चनदा िदया। पिणित िी
उस पर ऐसे कुि हुए िक दो िदि तक खािा िहीं खाया । ऐसे अिपय पसंग
आये िदि होते रहते थे, इनहीं कारणो से हीरामिण की तबीयत बाप से कुछ
िखंची रहती थीं। मगर उसकी या सारी शरारते हमेशा रे िती की साििश से
हुआ करती थीं। िब कसबे की गरीब ििधिाये या िमींदार के सताये हुए
असािमयो की औरते रे िती के पास आकर हीरामिण को आंचल फैला—
फैलाकर दआ
ु एं दे िे लगती तो उसे ऐसा मालूम होता िक मुझसे जयादा
भागयिाि और मेरे बेटे से जयादा िेक आदमी दिुिया मे कोई ि होगा। तब
उसे बरबस िह िदि याद आ िाता तब हीरामिण कीरत सागर मे िू ब गया
था और उस आदमी की तसिीर उसकी आँखो के सामिे खडी हो िाती
ििसिे उसके लाल को िू बिे से बचाया था। उसके िदल की गहराई से दआ

ििकलती और ऐसा िी चाहता िक उसे दे ख पाती तो उसके पांि पर िगर
पडती। उसे अब पकका ििशास हो गया था िक िह मिुषय ि था बिलक कोई
दे िता था। िह अब उसी खटोले पर बैठी हुई, ििस पर उसकी सास बैठती
थी, अपिे दोिो पोतो को िखलाया करती थी।
आि हीरामिण की सताईसिीं सालिगरह थी। रे िती के िलए यह िदि
साल के िदिो मे सबसे अिधक शुभ था। आि उसका दया का हाथ खूब
उदारता िदखलाता था और यही एक अिुिचत खच फ था ििसमे पिणित
िचनतामिण भी शरीक हो िाते थे। आि के िदि िह बहुत खुश होती और
बहुत रोती और आि अपिे गुमिाम भलाई करिेिाले के िलए उसके िदल से
िो दआ
ु एँ ििकलतीं िह िदल और िदमाग की अचछी से अचछी भाििाओं मे
रं गी होती थीं। उसी िदि की बदौलत तो आि मुझे यह िदि और यह सुख
दे खिा िसीब हुआ है !

159
ए क िदि हीरामिण िे आकर रे िती से कहा—अममां, शीपुर िीलाम पर
चिा हुआ है , कहो तो मै भी दाम लगाऊं।
रे िती—सोलहो आिा है ?
हीरामिण—सोलहो आिा। अचछा गांि है । ि बडा ि छोटा। यहॉँ से दस
कोस है । बीस हिार तक बोली चि चुकी है । सौ-दौ सौ मे खतम हो िायगी।
रे िती-अपिे दादा से तो पूछो
हीरामिण—उिके साथ दो घंटे तक माथापचची करिे की िकसे फुरसत
है ।
हीरामिण अब घर का मािलक हो गया था और िचनतामिण की एक ि
चलिे पाती। िह गरीब अब ऐिक लगाये एक गदे पर बैठे अपिा िक
खांसिे मे खचफ करते थे।
दस
ू रे िदि हीरामिण के िाम पर शीपुर खतम हो गया। महािि से
िमींदार हुए अपिे मुिीम और दो चपरािसयो को लेकर गांि की सैर करिे
चले। शीपुरिालो को खबर हुई। िये िमींदार का पहला आगमि था। घर-घर
ििरािे दे िे की तैयािरयॉँ होिे लगीं। पांचते िदि शाम के िक हीरामिण गांि
मे दािखल हुए। दही और चािल का ितलक लगाया गया और तीि सौ
असामी पहर रात तक हाथ बांधे हुए उिकी सेिा मे खडे रहे । सिेरे
मुखतारे आम िे असािमयो का पिरचय करािा शुर िकया। िो असामी
िमींदार के सामिे आता िह अपिी िबसात के मुतािबक एक या दो रपये
उिके पांि पर रख दे ता । दोपहर होते-होते पांच सौ रपयो का ढे र लगा हुआ
था।
हीरामिण को पहली बार िमींदारी का मिा िमला, पहली बार धि और
बल का िशा महसूस हुआ। सब िशो से जयादा तेि, जयादा घातक धि का
िशा है । िब असािमयो की फेहिरसत खतम हो गयी तो मुखतार से बोले—
और कोई असामी तो बाकी िहीं है ?
मुखतार—हां महाराि, अभी एक असामी और है , तखत िसंह।
हीरामिण—िह कयो िहीं आया ?
मुखतार—िरा मसत है ।
हीरामिण—मै उसकी मसती उतार दँग
ू ा। िरा कोई उसे बुला लाये।

160
थोडी दे र मे एक बूिा आदमी लाठी टे कता हुआ आया और दणिित ्
करके िमीि पर बैठ गया, ि ििर ि िियाि। उसकी यह गुसताखी दे खकर
हीरामिण को बुखार चि आया। कडककर बोले—अभी िकसी िमींदार से पाला
िही पडा है । एक-एक की हे कडी भुला दँग
ू ा!
तखत िसंह िे हीरामिण की तरफ गौर से दे खकर ििाब िदया—मेरे
सामिे बीस िमींदार आये और चले गये। मगर कभी िकसी िे इस तरह
घुडकी िहीं दी।
यह कहकर उसिे लाठी उठाई और अपिे घर चला आया।
बूिी ठकुराइि िे पूछा—दे खा िमींदार को कैसे आदमी है ?
तखत िसंह—अचछे आदमी है । मै उनहे पहचाि गया।
ठकुराइि—कया तुमसे पहले की मुलाकात है ।
तखत िसंह—मेरी उिकी बीस बरस की िाि-पिहचाि है , गुिडयो के
मेलेिली बात याद है ि?
उस िदि से तखत िसंह िफर हीरामिण के पास ि आया।

छ: महीिे के बाद रे िती को भी शीपुर दे खिे का शौक हुआ। िह और


उसकी बहू और बचचे सब शीपुर आये। गॉि
ँ की सब औरते उससे
िमलिे आयीं। उिमे बूिी ठकुराइि भी थी। उसकी बातचीत, सलीका और
तमीि दे खकर रे िती दं ग रह गयी। िब िह चलिे लगी तो रे िती िे कहा—
ठकुराइि, कभी-कभी आया करिा, तुमसे िमलकर तिबयत बहुत खुश हुई।
इस तरह दोिो औरतो मे धीरे -धीरे मेल हो गया। यहाँ तो यह
कैिफयत थी और हीरामिण अपिे मुखतारे आम के बहकाते मे आकर तखत
िसंह को बेदखल करिे की तरकीबे सोच रहा था।
िेठ की पूरिमासी आयी। हीरामिण की सालिगरह की तैयािरयॉँ होिे
लगीं। रे िती चलिी मे मैदा छाि रही थी िक बूिी ठकुराइि आयी। रे िती िे
मुसकराकर कहा—ठकुराइि, हमारे यहॉँ कल तुमहारा नयोता है ।
ठकुराइि-तुमहारा नयोता िसर-आँखो पर। कौि-सी बरसगॉठ
ँ है ?
रे िती उितीसिीं।

161
ठकुराइि—िरायि करे अभी ऐसे-ऐसे सौ िदि तुमहे और दे खिे िसीब
हो।
रे िती—ठकुराइि, तुमहारी िबाि मुबारक हो। बडे -बडे िनतर-मनतर
िकये है तब तुम लोगो की दआ
ु से यह िदि दे खिा िसीब हुआ है । यह तो
सातिे ही साल मे थे िक इसकी िाि के लाले पड गये। गुिडयो का मेला
दे खिे गयी थी। यह पािी मे िगर पडे । बारे , एक महातमा िे इसकी िाि
बचायी । इिकी िाि उनहीं की दी हुई है बहुत तलाश करिाया। उिका पता
ि चला। हर बरसगॉठ
ँ पर उिके िाम से सौ रपये ििकाल रखती हूँ। दो
हिार से कुछ ऊपर हो गये है । बचचे की िीयत है िक उिके िाम से शीपुर
मे एक मंिदर बििा दे । सच मािो ठकुराइि, एक बार उिके दशि
फ हो िाते
तो िीिि सफल हो िाता, िी की हिस ििकाल लेते।
रे िती िब खामोश हुई तो ठकुराइि की आँखो से आँसू िारी थे।
दस
ू रे िदि एक तरफ हीरामिण की सालिगरह का उतसि था और दस
ू री
तरफ तखत िसंह के खेत िीलाम हो रहे थे।
ठकुराइि बोली—मै रे िती रािी के पास िाकर दहुाई मचाती हूँ।
तखत िसंह िे ििाब िदया—मेरे िीते-िी िहीं।

अ साि का महीिा आया। मेघराि िे अपिी पाणदायी उदारता िदखायी।


शीपुर के िकसाि अपिे-अपिे खेत िोतिे चले। तखतिसंह की
लालसा भरी आँखे उिके साथ-साथ िातीं, यहॉँ तक िक िमीि उनहे अपिे
दामि मे िछपा लेती।
तखत िसंह के पास एक गाय थी। िह अब िदि के िदि उसे चराया
करता। उसकी ििनदगी का अब यही एक सहारा था। उसके उपले और दध

बेचकर गुिर-बसर करता। कभी-कभी फाके करिे पड िाते। यह सब मुसीबते
उसिे झेलीं मगर अपिी कंगाली का रोिा रोिे केिलए एक िदि भी हीरामिण
के पास ि गया। हीरामिण िे उसे िीचा िदखािा चाहा था मगर खुद उसे ही
िीचा दे खिा पडा, िीतिे पर भी उसे हार हुई, पुरािे लोहे को अपिे िीच हठ
की आँच से ि झुका सका।
एक िदि रे िती िे कहा—बेटा, तुमिे गरीब को सताया, अचछा ि िकया।

162
हीरामिण िे तेि होकर ििाब िदया—िह गरीब िहीं है । उसका घमणि
मै तोड दँग
ू ा।
दौलत के िशे मे मतिाला िमींदार िह चीि तोडिे की िफक मे था
िो कहीं थी ही िहीं। िैसे िासमझ बचचा अपिी परछाई से लडिे लगता है ।

सा ल भर तखतिसंह िे जयो-तयो करके काटा। िफर बरसात आयी।


उसका घर छाया ि गया था। कई िदि तक मूसलाधर मेह बरसा
तो मकाि का एक िहससा िगर पडा। गाय िहॉँ बँधी हुई थी, दबकर मर गयीं
तखतिसंह को भी सखत चोट आयी। उसी िदि से बुखार आिा शुर हुआ।
दिा –दार कौि करता, रोिी का सहारा था िह भी टू टा। िािलम बेददफ
मुसीबत िे कुचल िाला। सारा मकाि पािी से भरा हुआ, घर मे अिाि का
एक दािा िहीं, अंधेरे मे पडा हुआ कराह रहा था िक रे िती उसके घर गयी।
तखतिसंह िे आँखे खोलीं और पूछा—कौि है ?
ठकुराइि—रे िती रािी है ।
तखतिसंह—मेरे धनयभाग, मुझ पर बडी दया की ।
रे िती िे लिजित होकर कहा—ठकुराइि, ईशर िािता है , मै अपिे बेटे
से है राि हूँ। तुमहे िो तकलीफ हो मुझसे कहो। तुमहारे ऊपर ऐसी आफत
पड गयी और हमसे खबर तक ि की?
यह कहकर रे िती िे रपयो की एक छोटी-सी पोटली ठकुराइि के
सामिे रख दी।
रपयो की झिकार सुिकर तखतिसंह उठ बैठा और बोला—रािी, हम
इसके भूखे िहीं है । मरते दम गुिाहगार ि करो
दस
ू रे िदि हीरामिण भी अपिे मुसािहबो को िलये उधर से िा ििकला।
िगरा हुआ मकाि दे खकर मुसकराया। उसके िदल िे कहा, आिखर मैिे उसका
घमणि तोड िदया। मकाि के अनदर िाकर बोला—ठाकुर, अब कया हाल है ?
ठाकुर िे धीरे से कहा—सब ईशर की दया है , आप कैसे भूल पडे ?
हीरामिण को दस
ू री बार हार खािी पडी। उसकी यह आरिू िक
तखतिसंह मेरे पॉि
ँ को आँखो से चूमे, अब भी पूरी ि हुई। उसी रात को िह
गरीब, आिाद, ईमािदार और बेगरि ठाकुर इस दिुिया से ििदा हो गया।

163

बू िी ठकुराइि अब दिुिया मे अकेली थी। कोई उसके गम का शरीक और


उसके मरिे पर आँसू बहािेिाला ि था। कंगाली िे गम की आँच और
तेि कर दी थीं िररत की चीिे मौत के घाि को चाहे ि भर सके मगर
मरहम का काम िरर करती है ।
रोटी की िचनता बुरी बला है । ठकुराइि अब खेत और चरागाह से
गोबर चुि लाती और उपले बिाकर बेचती । उसे लाठी टे कते हुए खेतो को
िाते और गोबर का टोकरा िसर पर रखकर बोझ मे हॉफ
ँ ते हुए आते दे खिा
बहुत ही ददफ िाक था। यहाँ तक िक हीरामिण को भी उस पर तरस आ गया।
एक िदि उनहोिे आटा, दाल, चािल, थािलयो मे रखकर उसके पास भेिा।
रे िती खुद लेकर गयी। मगर बूिी ठकुराइि आँखो मे आँसू भरकर बोला—
रे िती, िब तक आँखो से सूझता है और हाथ-पॉि
ँ चलते है , मुझे और
मरिेिाले को गुिाहगार ि करो।
उस िदि से हीरामिण को िफर उसके साथ अमली हमददी िदखलािे
का साहस ि हुआ।
एक िदि रे िती िे ठकुराइि से उपले मोल िलये। गॉि
ँ मे पैसे के तीस
उपले िबकते थे। उसिे चाहा िक इससे बीस ही उपले लूँ। उस िदि से
ठकुराइि िे उसके यहॉँ उपले लािा बनद कर िदया।
ऐसी दे िियॉँ दिुिया मे िकतिी है ! कया िह इतिा ि िािती थी िक
एक गुप रहसय िबाि पर लाकर मै अपिी इि तकलीफो का खातमा कर
सकती हूँ! मगर िफर िह एहसाि का बदला ि हो िाएगा! मसल मशहूर है
िेकी कर और दिरया मे िाल। शायद उसके िदल मे कभी यह खयाल ही िहीं
आया िक मैिे रे िती पर कोई एहसाि िकया।
यह ििादार, आि पर मरिेिाली औरत पित के मरिे के बाद तीि
साल तक ििनदा रही। यह िमािा उसिे ििस तकलीफ से काटा उसे याद
करके रोगटे खडे हो िाते है । कई-कई िदि ििराहार बीत िाते। कभी गोबर
ि िमलता, कभी कोई उपले चुरा ले िाता। ईशर की मिी! िकसी की घर भरा
हुआ है , खािेिाल िहीं। कोई यो रो-रोकर ििनदगी काटता है ।
बुििया िे यह सब दख
ु झेला मगर िकसी के सामिे हाथ िहीं फैलाया।

164

ही रामिण की तीसिीं सालिगरह आयी। ढोल की सुहािी आिाि सुिायी


दे िे लगी। एक तरफ घी की पूिडयां पक रही थीं, दस
ू री तरफ तेल की।
घी की मोटे बाहणो के िलए, तेल की गरीब-भूखे-िीचो के िलए।
अचािक एक औरत िे रे िती से आकर कहा—ठकुराइि िािे कैसी हुई
िाती है । तुमहे बुला रही है ।
रे िती िे िदल मे कहा—आि तो खैिरयत से काटिा, कहीं बुििया मर
ि रही हो।
यह सोचकर िह बुििया के पास ि गयी। हीरामिण िे िब दे खा,
अममॉँ िहीं िािा चाहती तो खुद चला। ठकुराइि पर उसे कुछ िदिो से दया
आिे लगी थी। मगर रे िती मकाि के दरिािे ते उसे मिा करिे आयी। या
रहमिदल, िेकिमिाि, शरीफ रे िती थी।
हीरामिण ठकुराइि के मकाि पर पहुँचा तो िहॉँ िबलकुल सनिाटा
छाया हुआ था। बूिी औरत का चेहरा पीला था और िाि ििकलिे की हालत
उस पर छाई हुई थी। हीरामिण िे िो से कहा—ठकुराइि, मै हूँ हीरामिण।
ठकुराइि िे आँखे खोली और इशारे से उसे अपिा िसर ििदीक लािे
को कहा। िफर रक-रककर बोली—मेरे िसरहािे िपटारी मे ठाकुर की हििियॉँ
रखी हुई है , मेरे सुहाग का सेदरु भी िहीं है । यह दोिो पयागराि भेि दे िा।
यह कहकर उसिे आँखे बनद कर ली। हीरामिण िे िपटारी खोली तो
दोिो चीिे िहफाित के साथ रकखी हुई थीं। एक पोटली मे दस रपये भी
रकखे हुए िमले। यह शायद िािेिाले का सफरखचफ था!
रात को ठकुराइि के कषो का हमेशा के िलए अनत हो गया।
उसी रात को रे िती िे सपिा दे खा—सािि का मेला है , घटाएँ छाई हुई
है , मै कीरत सागर के िकिारे खडी हूँ। इतिे मे हीरामिण पािी मे िफसल
पडा। मै छाती पीट-पीटकर रोिे लगी। अचािक एक बूिा आदमी पािी मे
कूदा और हीरामिण को ििकाल लाया। रे िती उसके पॉि
ँ पर िगर पडी और
बोली—आप कौि है ?
उसिे ििाब िदया—मै शीपुर मे रहता हूँ, मेरा िाम तखतिसंह है ।
शीपुर अब भी हीरामिण के कबिे मे है , मगर अब रौिक दोबाला हो
गयी है । िहॉँ िाओ तो दरू से िशिाले का सुिहरा कलश िदखाई दे िे लगता

165
है ; ििस िगह तखत िसंह का मकाि था, िहॉँ यह िशिाला बिा हुआ है ।
उसके सामिे एक पकका कुआँ और पककी धमश
फ ाला है । मुसािफर यहॉँ ठहरते
है और तखत िसंह का गुि गाते है । यह िशिाला और धमश
फ ाला दोिो उसके
िाम से मशहूर है ।
उदफ ू ‘पेमपचीसी’ से

166
बाँ का िमी ंदा र

ठा कुर पदम
ु ि िसंह एक पितिषत िकील थे और अपिे हौसले और
िहममत के िलए सारे शहर मे मिहूर। उिके दोसत अकसर कहा
करते िक अदालत की इिलास मे उिके मदाि
फ ा कमाल जयादा साफ तरीके
पर िािहर हुआ करते है । इसी की बरकत थी िक बाबिूद इसके िक उनहे
शायद ही कभी िकसी मामले मे सुखर
फ ई हािसल होती थी, उिके मुििककलो
की भिक-भाििा मे िरा भर भी फकफ िहीं आता था। इनसाफ की कुसी पर
बैठिेिाले बडे लोगो की िििर आिादी पर िकसी पकार का सनदे ह करिा
पाप ही कयो ि हो, मगर शहर के िािकार लोग ऐलाििया कहते थे िक
ठाकुर साहब िब िकसी मामले मे ििद पकड लेते है तो उिका बदला हुआ
तेिर और तमतमाया हुआ चेहरा इनसाफ को भी अपिे िश मे कर लेता है ।
एक से जयादा मौको पर उिके िीिट और ििगर िे िे चमतकार कर िदखाये
थे िहॉँ िक इनसाफ और कािूि के ििाब दे िदया। इसके साथ ही ठाकुर
साहब मदाि
फ ा गुणो के सचचे िौहरी थे। अगर मुििककल को कुिती मे कुछ
पैठ हो तो यह िररी िहीं था िक िह उिकी सेिाएँ पाप करिे के िलए
रपया-पैसा दे । इसीिलए उिके यहॉँ शहर के पहलिािो और फेकैतो का हमेशा
िमघट रहता था और यही िह िबदफ सत पभािशाली और वयािहािरक कािूिी
बारीकी थी ििसकी काट करिे मे इनसाफ को भी आगा-पीछा सोचिा पडता।
िे गि फ और सचचे गि फ की िदल से कदर करते थे। उिके बेतकललुफ घर की
ियोिियॉँ बहुत ऊँची थी िहॉँ झुकिे की िररत ि थी। इनसाि खूब िसर
उठाकर िा सकता था। यह एक ििशसत कहािी है िक एक बार उनहोिे
िकसी मुकदमे को बाििूद बहुत िििती और आगह के हाथ मे लेिे से
इिकार िकया। मुििककल कोई अकखड दे हाती था। उसिे िब आरिू-िमनित
से काम ििकलते ि दे खा तो िहममत से काम िलया। िकील साहब कुसी से
िीचे िगर पडे और िबफरे हुए दे हाती को सीिे से लगा िलया।

ध ि और धरती के बीच आिदकाल से एक आकषण


साधारण गुरतिाकषण
फ है । धरती मे
फ के अलािा एक खास ताकत होती है , िो हमेशा

167
धि को अपिी तरफ खींचती है । सूद और तमससुक और वयापार, यह दौलत
की बीच की मंििले है , िमीि उसकी आिखरी मंििल है । ठाकुर पदम
ु ि िसंह
की ििगाहे बहुत असे से एक बहुत उपिाऊ मौिे पर लगी हुई थीं। लेिकि
बैक का एकाउणट कभी हौसले को कदम िहीं बिािे दे ता था। यहॉँ तक िक
एक दफा उसी मौिे का िमींदार एक कतल के मामले मे पकडा गया। उसिे
िसफफ रसमो-िरिाि के मािफक एक आसामी को िदि भर धूप और िेठ की
िलती हुई धूप मे खडा रखा था लेिकि अगर सूरि की गमी या ििसम की
कमिोरी या पयास की तेिी उसकी िािलेिा बि िाय तो इसमे िमींदार की
कया खता थी। यह शहर के िकीलो की जयादती थी िक कोई उसकी
िहमायत पर आमदा ि हुआ या मुमिकि है िमींदार के हाथ की तंगी को
भी उसमे कुछ दखल हो। बहरहाल, उसिे चारो तरफ से ठोकरे खाकर ठाकुर
साहब की शरण ली। मुकदमा ििहायत कमिोर था। पुिलस िे अपिी पूरी
ताकत से धािा िकया था और उसकी कुमक के िलए शासि और अिधकार
के तािे से तािे िरसाले तैयार थे। ठाकुर साहब अिुभिी सँपेरो की तरह सॉप

के िबल मे हाथ िहीं िालते थे लेिकि इस मौके पर उनहे सूखी मसलहत के
मुकाबले मे अपिी मुरादो का पलला झुकता हुआ ििर आया। िमींदार को
इतमीिाि िदलाया और िकालतिामा दािखल कर िदया और िफर इस तरह
िी-िाि से मुकदमे की पैरिी की, कुछ इस तरह िाि लडायी िक मैदाि से
िीत का िं का बिाते हुए ििकले। ििता की िबाि इस िीत का सेहरा
उिकी कािूिी पैठ के सर िहीं, उिके मदाि
फ ा गुणो के सर रखती है कयोिक
उि िदिो िकील साहब ििीरो और दफाओं की िहममततोड पेचीदिगयो मे
उलझिे के बिाय दं गल की उतसाहििफक िदलचिसपयो मे जयादा लगे रहते थे
लेिकि यह बात िरा भी यकीि करिे के कािबल िहीं मालूम होती। जयादा
िािकाि लोग कहते है िक अिार के बमगोलो और सेब और अंगूर की
गोिलयो िे पुिलस के, इस पुरशोर हमले को तोडकर िबखेर िदया गरि िक
मैदाि हमारे ठाकुर साहब के हाथ रहा। िमींदार की िाि बची। मौत के मुँह
से ििकल आया उिके पैरो पर िगर पडा और बोला—ठाकुर साहब, मै इस
कािबल तो िहीं िक आपकी िखदमत कर सकूँ। ईशर िे आपको बहुत कुछ
िदया है लेिकि कृ षण भगिाि ् िे गरीब सुदामा के सूखे चािल खुशी से
कबूल िकए थे। मेरे पास बुिुगो की यादगार छोटा-सा िीराि मौिा है उसे
आपकी भेट करता हूँ। आपके लायक तो िहीं लेिकि मेरी खाितर इसे कबूल
168
कीििए। मै आपका िस कभी ि भूलूँगा। िकील साहब फडक उठे । दो-चार
बार ििसपह
ृ बैरािगयो की तरह इनकार करिे के बाद इस भेट को कबूल कर
िलया। मुंह-मॉग
ँ ी मुराद िमली।
3

इ स मौिे के लोग बेहद सरदश और झगडालू थे, ििनहे इस बात का गिफ


था िक कभी कोई िमींदार उनहे बस मे िहीं कर सका। लेिकि िब
उनहोिे अपिी बागिोर पदम
ु ि िसंह के हाथो मे िाते दे खी तो चौकिडयॉँ भूल
गये, एक बदलगाम घोडे की तरह सिार को कििखयो से दे खा, किौितयॉँ
खडी कीं, कुछ िहििहिाये और तब गदफ िे झुका दीं। समझ गये िक यह
ििगर का मिबूत आसि का पकका शहसिार है ।
असाि का महीिा था। िकसाि गहिे और बति
फ बेच -बेचकर बैलो की
तलाश मे दर-ब-दर िफरते थे। गॉि
ँ ो की बूिी बिियाइि ििेली दल
ु हि बिी
हुई थी और फाका करिे िाला कुमहार बरात का दल
ू हा था मिदरू मौके के
बादशाह बिे हुए थे। टपकती हुई छते उिकी कृ पादिष की राह दे ख रही थी।
घास से ढके हुए खेत उिके ममतापूण फ हाथो के मुहताि। ििसे चाहते थे
बसाते थे, ििस चाहते थे उिाडते थे। आम और िामुि के पेडो पर आठो
पहर ििशािेबाि मिचले लडको का धािा रहता था। बूिे गदफ िो मे झोिलयॉँ
लटकाये पहर रात से टपके की खोि मे घूमते ििर आते थे िो बुिापे के
बाििूद भोिि और िाप से जयादा िदलचसप और मजेदार काम था। िाले
पुरशोर, ििदयॉँ अथाह, चारो तरफ हिरयाली और खुशहाली। इनहीं िदिो ठाकुर
साहब मौत की तरह, ििसके आिे की पहले से कोई सूचिा िहीं होती, गॉि

मे आये। एक सिी हुई बरात थी, हाथी और घोडे , और साि-सामाि, लठै तो
का एक िरसाला-सा था। गॉि
ँ िे यह तूमतडाक और आि-बाि दे खी तो रहे -
सहे होश उड गये। घोडे खेतो मे ऐंडिे लगे और गुि
ं े गिलयो मे। शाम के
िक ठाकुर साहब िे अपिे असािमयो को बुलाया और बुलनद आिाि मे बोले
—मैिे सुिा है िक तुम लोग सरकश हो और मेरी सरकशी का हाल तुमको
मालूम ही है । अब ईट और पतथर का सामिा है । बोलो कया मंिूरहै ?
एक बूिे िकसाि िे बेद के पेड की तरह कॉप
ँ ते हुए ििाब िदया—
सरकार, आप हमारे रािा है । हम आपसे ऐंठकर कहॉँ िायेगे।

169
ठाकुर साहब तेिर बदलकर बोले—तो तुम लोग सब के सब कल सुबह
तक तीि साल का पेशगी लगाि दािखल कर दो और खूब धयाि दे कर सुि
लो िक मै हुकम को दहुरािा िहीं िािता ििा फ मै गॉि
ँ मे हल चलिा दँग
ू ा
और घरो को खेत बिा दँग
ू ा।
सारे गॉि
ँ मे कोहराम मच गया। तीि साल का पेशगी लगाि और
इतिी िलदी िुटािा असमभि था। रात इसी है स-बैस मे कटी। अभी तक
आरिू-िमनित के िबिली िैसे असर की उममीद बाकी थी। सुबह बडी
इनतिार के बाद आई तो पलय बिकर आई। एक तरफ तो िोर िबदफ सती
और अनयाय-अतयाचार का बािार गम फ था, दस
ू री तरफ रोती हुई आँखो, सदफ
आहो और चीख-पुकार का, ििनहे सुििेिाला कोई ि था। गरीब िकसाि
अपिी-अपिी पोटिलयॉँ लादे , बेकस अनदाि से ताकते, ऑख
ं े मे याचिा भरे
बीिी-बचचो को साथ िलये रोते-िबलखते िकसी अजात दे श को चले िाते थे।
शाम हुई तो गॉि
ँ उिड गया।

य ह खबर बहुत िलद चारो तरफ फैल गयी। लोगो को ठाकुर साहब के
इनसाि होिे पर सनदे ह होिे लगा। गॉि
ँ िीराि पडा हुआ था। कौि
उसे आबाद करे । िकसके बचचे उसकी गिलयो मे खेले। िकसकी औरते कुओं
पर पािी भरे । राह चलते मुसािफर तबाही का यह दिय आँखो से दे खते और
अफसोस करते। िहीं मालूम उि िीरािे दे श मे पडे हुए गरीबो पर कया
गुिरी। आह, िो मेहित की कमाई खाते थे और सर उठाकर चलते थे, अब
दस
ू रो की गुलामी कर रहे है ।
इस तरह पूरा साल गुिर गया। तब गॉि
ँ के िसीब िागे। िमीि
उपिाऊ थी। मकाि मौिूद। धीरे -धीरे िुलम की यह दासताि फीकी पड
गयी। मिचले िकसािो की लोभ-दिष उस पर पडिे लगी। बला से िमींदार
िािलम है , बेरहम है , सिखतयॉँ करता है , हम उसे मिा लेगे। तीि साल की
पेशगी लगाि का कया ििक िह िैसे खुश होगा, खुश करे गे। उसकी गािलयो
को दआ
ु समझेगे, उसके िूते अपिे सर-आँखो पर रकखेगे। िह रािा है , हम
उिके चाकर है । ििनदगी की कशमकश और लडाई मे आतमसममाि को
ििबाहिा कैसा मुििकल काम है ! दस
ू रा अषाि आया तो िह गॉि
ँ िफर बगीचा
बिा हुआ था। बचचे िफर अपिे दरिािो पर घरौदे बिािे लगे, मदो के

170
बुलनद आिाि के गािे खेतो मे सुिाई िदये ि औरतो के सुहािे गीत
चिककयो पर। ििनदगी के मोहक दिय िदखाई दे िे लगे।
साल भर गुिरा। िब रबी की दस
ू री फसल आयी तो सुिहरी बालो को
खेतो मे लहराते दे खकर िकसािो के िदल लहरािे लगते थे। साल भर परती
िमीि िे सोिा उगल िदया थां औरते खुश थीं िक अब के िये -िये गहिे
बििायेगे, मदफ खुश थे िक अचछे -अचछे बैल मोल लेगे और दारोगा िी की
खुशी का तो अनत ही ि था। ठाकुर साहब िे यह खुशखबरी सुिी तो दे हात
की सैर को चले। िही शािशौकत, िही लठै तो का िरसाला, िही गुि
ं ो की फौि!
गॉि
ँ िालो िे उिके आदर सतकार की तैयािरयॉँ करिी शुर कीं। मोटे -तािे
बकरो का एक पूरा गला चौपाल के दरिाि पर बाँधां लकडी के अमबार लगा
िदये, दध
ू के हौि भर िदये। ठाकुर साहब गॉि
ँ की मेड पर पहुँचे तो पूरे एक
सौ आदमी उिकी अगिािी के िलए हाथ बॉध
ँ े खडे थे। लेिकि पहली चीि
ििसकी फरमाइश हुई िह लेमिेि और बफफ थी। असािमयो के हाथो के तोते
उड गये। यह पािी की बोतल इस िक िहॉँ अमत
ृ के दामो िबक सकती थी।
मगर बेचारे दे हाती अमीरो के चोचले कया िािे। मुििरमो की तरह िसर
झुकाये भौचक खडे थे। चेहरे पर झेप और शम फ थी। िदलो मे धडकि और
भय। ईशर! बात िबगड गई है , अब तुमहीं समहालो।,’
बफफ की ठणिक ि िमली तो ठाकुर साहब की पयास की आग और भी
तेि हुई, गुससा भडक उठा, कडककर बोले—मै शैताि िहीं हूँ िक बकरो के
खूि से पयास बुझाऊँ, मुझे ठं िा बफफ चािहए और यह पयास तुमहारे और
तुमहारी औरतो के आँसुओं से ही बुझेगी। एहसािफरामोश, िीच मैिे तुमहे
िमीि दी, मकाि िदये और है िसयत दी और इसके बदले मे तुम ये दे रहे हो
िक मै खडा पािी को तरसता हूँ! तुम इस कािबल िहीं हो िक तुमहारे साथ
कोई िरयायत की िाय। कल शाम तक मै तुममे से िकसी आदमी की सूरत
इस गॉि
ँ मे ि दे खूँ ििा फ पलय हो िायेगा। तुम िािते हो िक मुझे अपिा
हुकम दहुरािे की आदत िहीं है । रात तुमहारी है , िो कुछ ले िा सको, ले
िाओ। लेिकि शाम को मै िकसी की मिहूस सूरत ि दे खूँ। यह रोिा और
चीखिा िफिू है , मेरा िदल पतथर का है और कलेिा लोहे का, आँसुओं से िहीं
पसीिता।
और ऐसा ही हुआ। दस
ू री रात को सारे गॉि
ँ कोई िदया िलािेिाला
तक ि रहा। फूलता-फलता गॉि
ँ भूत का िे रा बि गया।
171

ब हुत िदिो तक यह घटिा आस-पास के मिचले िकससागोयो के िलए


िदलचिसपयो का खिािा बिी रही। एक साहब िे उस पर अपिी
कलम। भी चलायी। बेचारे ठाकुर साहब ऐसे बदिाम हुए िक घर से ििकलिा
मुििकल हो गया। बहुत कोिशश की गॉि
ँ आबाद हो िाय लेिकि िकसकी
िाि भारी थी िक इस अंधेर िगरी मे कदम रखता िहॉँ मोटापे की सिा
फॉस
ँ ी थी। कुछ मिदरू-पेशा लोग िकसमत का िुआ खेलिे आये मगर कुछ
महीिो से जयादा ि िम सके। उिडा हुआ गॉि
ँ खोया हुआ एतबार है िो
बहुत मुििकल से िमता है । आिखर िब कोई बस ि चला तो ठाकुर साहब
िे मिबूर होकर आरािी माफ करिे का काम आम ऐलाि कर िदया लेिकि
इस िरयासत से रही-सही साख भी खो दी। इस तरह तीि साल गुिर िािे
के बाद एक रोि िहॉँ बंिारो का कािफला आया। शाम हो गयी थी और पूरब
तरफ से अंधेरे की लहर बिती चली आती थी। बंिारो िे दे खा तो सारा गॉि

िीराि पडा हुआ है ।, िहॉँ आदिमयो के घरो मे िगि और गीदड रहते थे। इस
ितिलसम का भेद समझ मे ि आया। मकाि मौिूद है , िमीि उपिाऊ है ,
हिरयाली से लहराते हुए खेत है और इनसाि का िाम िहीं! कोई और गॉि

पास ि था िहीं पडाि िाल िदया। िब सुबह हुई, बैलो के गलो की घंिटयो िे
िफर अपिा रित-संगीत अलापिा शुर िकया और कािफला गॉि
ँ से कुछ दरू
ििकल गया तो एक चरिाहे िे िोर-िबदफ सती की यह लमबी कहािी उनहे
सुिायी। दिुिया भर मे घूमते िफरिे िे उनहे मुििकलो का आदी बिा िदया
था। आपस मे कुद मशििरा िकया और फैसला हो गया। ठाकुर साहब की
ियोिी पर िा पहुँचे और ििरािे दािखल कर िदये। गॉि
ँ िफर आबाद हुआ।
यह बंिारे बला के चीमड, लोहे की-सी िहममत और इरादे के लोग थे
िििके आते ही गॉि
ँ मे लकमी का राि हो गया। िफर घरो मे से धुएं के
बादल उठे , कोलहाडो िे िफर धुएँ ओर भाप की चादरे पहिीं, तुलसी के चबूतरे
पर िफर से िचराग िले। रात को रं गीि तिबयत िौििािो की अलापे सुिायी
दे िे लगीं। चरागाहो मे िफर मिेिशयो के गलले िदखाई िदये और िकसी पेड
के िीचे बैठे हुए चरिाहे की बॉस
ँ ुरी की मििम और रसीली आिाि ददफ और
असर मे िू बी हुई इस पाकृ ितक दिय मे िाद ू का आकषण
फ पैदा करिे लगी।

172
भादो का महीिा था। कपास के फूलो की सुख फ और सफेद िचकिाई,
ितल की ऊदी बहार और सि का शोख पीलापि अपिे रप का िलिा
िदखाता था। िकसािो की मडै या और छपपरो पर भी फल-फूल की रं गीिी
िदखायी दे ती थी। उस पर पािी की हलकी-हलकी फुहारे पकृ ित के सौदय फ के
िलए िसंगार करिेिाली का कमा दे रही थीं। ििस तरह साधुओं के िदल
सतय की जयोित से भरे होते है , उसी तरह सागर और तालाब साफ-शफफाफ
पािी से भरे थे। शायद रािा इनद कैलाश की तरािट भरी ऊँचाइयो से
उतरकर अब मैदािो मे आिेिाले थे। इसीिलए पकृ ित िे सौनदय फ और
िसिियो और आशाओं के भी भणिार खोल िदये थे। िकील साहब को भी सैर
की तमनिा िे गुदगुदाया। हमेशा की तरह अपिे रईसािा ठाट-बाट के साथ
गॉि
ँ मे आ पहुँचे। दे खा तो संतोष और ििििनतता के िरदाि चारो तरफ
सपष थे।

गाँ
ििालो िे उिके शुभागमि का समाचार सुिा, सलाम को हाििर हुए।
िकील साहब िे उनहे अचछे -अचछे कपडे पहिे, सिािभमाि के साथ
कदम िमलाते हुए दे खा। उिसे बहुत मुसकराकर िमले। फसल का हाल-चाल
पूछा। बूिे हरदास िे एक ऐसे लहिे मे ििससे पूरी ििममेदारी और चौधरापे
की शाि टपकती थी, ििाब िदया—हुिरू के कदमो की बरकत से सब चैि
है । िकसी तरह की तकलीफ िहीं आपकी दी हुई िेमत खाते है और आपका
िस गाते है । हमारे रािा और सरकार िो कुछ है , आप है और आपके िलए
िाि तक हाििर है ।
ठाकुर साहब िे तेबर बदलकर कहा—मै अपिी खुशामद सुििे का
आदी िहीं हूँ।
बूिे हरदास के माथे पर बल पडे , अिभमाि को चोट लगी। बोला—मुझे
भी खुशामद करिे की आदत िहीं है ।
ठाकुर साहब िे ऐंठकर ििाब िदया—तुमहे रईसो से बात करिे की
तमीि िहीं। ताकत की तरह तुमहारी अकल भी बुिापे की भेट चि गई।
हरदास िे अपिे सािथयो की तरफ दे खा। गुससे की गमी से सब की
आँख फैली हुई और धीरि की सदी से माथे िसकुडे हुए थे। बोला—हम

173
आपकी रै यत है लेिकि हमको अपिी आबर पयारी है और चाहे आप
िमींदार को अपिा िसर दे दे आबर िहीं दे सकते।
हरदास के कई मिचले सािथयो िे बुलनद आिाि मे ताईद की—
आबर िाि के पीछे है ।
ठाकुर साहब के गुससे की आग भडक उठी और चेहरा लाल हो गया,
और िोर से बोले—तुम लोग िबाि समहालकर बाते करो ििा फ ििस तरह
गले मे झोिलयॉँ लटकाये आये थे उसी तरह ििकाल िदये िाओगे। मै पदम
ु ि
िसंह हूँ, ििसिे तुम िैसे िकतिे ही हे कडो को इसी िगह कुचलिा िाला है ।
यह कहकर उनहोिे अपिे िरसाले के सरदार अिुि
फ िसंह को बुलाकर कहा—
ठाकुर, अब इि चीिटयो के पर ििकल आये है , कल शाम तक इि लोगो से
मेरा गॉि
ँ साफ हो िाए।
हरदास खडा हो गया। गुससा अब िचिगारी बिकर आँखो से ििकल
रहा था। बोला—हमिे इस गॉि
ँ को छोडिे के िलए िहीं बसाया है । िब तक
िियेगे इसी गॉि
ँ मे रहे गे, यहीं पैदा होगे और यहीं मरे गे। आप बडे आदमी है
और बडो की समझ भी बडी होती है । हम लोग अकखड गंिार है । िाहक
गरीबो की िाि के पीछ मत पिडए। खूि-खराबा हो िायेगा। लेिकि आपको
यही मंिूर है तो हमारी तरफ से आपके िसपािहयो को चुिौती है , िब चाहे
िदल के अरमाि ििकाल ले।
इतिा कहकर ठाकुर साहब को सलाम िकया और चल िदया। उसके
साथी गि फ के साथ अकडते हुए चले। अिुि
फ िसंह िे उिके तेिर दे खे। समझ
गया िक यह लोहे के चिे है लेिकि शोहदो का सरदार था, कुछ अपिे िाम
की लाि थी। दस
ू रे िदि शाम के िक िब रात और िदि मे मुठभेड हो रही
थी, इि दोिो िमातो का सामिा हुआ। िफर िह धौल-धपपा हुआ िक िमीि
थरा फ गयी। िबािो िे मुंह के अनदर िह माके िदखाये िक सूरि िर के मारे
पििछम मे िा िछपा। तब लािठयो िे िसर उठाया लेिकि इससे पहले िक
िह िाकटर साहब की दआ
ु और शुिकये की मुसतहक हो अिुि
फ िसंह िे
समझदारी से काम िलया। ताहम उिके चनद आदिमयो के िलए गुड और
हलदी पीिे का सामाि हो चुका था।
िकील साहब िे अपिी फौि की यह बुरी हालते दे खीं, िकसी के कपडे
फटे हुए, िकसी के ििसम पर गदफ िमी हुई, कोई हॉफ
ँ ते-हॉफ
ँ ते बेदम (खूि
बहुत कम ििर आया कयोिक यह एक अिमोल चीि है और इसे िं िो की
174
मार से बचा िलया गया) तो उनहोिे अिुि
फ िसंह की पीठ ठोकी और उसकी
बहादरुी और िॉब
ँ ािी की खूब तारीफ की। रात को उिके सामिे लििू और
इमरितयो की ऐसी िषाफ हुई िक यह सब गदफ -गुबार धुल गया। सुबह को इस
िरसाले िे ठं िे -ठं िे घर की राह ली और कसम खा गए िक अब भूलकर भी
इस गॉि
ँ का रख ि करे गे।
तब ठाकुर साहब िे गॉि
ँ के आदिमयो को चौपाल मे तलब िकया।
उिके इशारे की दे र थी। सब लोग इकटठे हो गए। अिखतयार और हुकूमत
अगर घमंि की मसिद से उतर आए तो दिुमिो को भी दोसत बिा सकती
है । िब सब आदमी आ गये तो ठाकुर साहब एक-एक करके उिसे बगलगीर
हुए ओर बोले—मै ईशर का बहु ऋणी हूँ िक मुझे गॉि
ँ के िलए ििि
आदिमयो की तलाश थी, िह लोग िमल गये। आपको मालूम है िक यह गॉि

कई बार उिडा और कई बार बसा। उसका कारण यही था िक िे लोग मेरी
कसौटी पर पूरे ि उतरते थे। मै उिका दिुमि िहीं था लेिकि मेरी िदली
आरिू यह थी िक इस गॉि
ँ मे िे लोग आबाद हो िो िुलम का मदो की
तरह सामिा करे , िो अपिे अिधकारो और िरआयतो की मदो की तरह
िहफाित करे , िो हुकूमत के गुलाम ि हो, िो रोब और अिखतयार की तेि
ििगाह दे खकर बचचो की तरह िर से सहम ि िाऍ।ं मुझे इतमीिाि है िक
बहुत िुकसाि और शिमद
ि गी और बदिामी के बाद मेरी तमनिाएँ पूरी हो
गयीं। मुझे इतमीिाि है िक आप उलटी हिाओं और ऊँची-ऊँची उठिेिाली
लहरो का मुकाबला कामयाबी से करे गे। मै आि इस गॉि
ँ से अपिा हाथ
खींचता हूँ। आि से यह आपकी िमिलकयत है । आपही इसके िमींदार और
मािलक है । ईशर से मेरी यही पाथि
फ ा है िक आप फले-फूले ओर सरसबि हो।
इि शबदो िे िदलो पर िाद ू का काम िकया। लोग सिािमभिक के
आिेश से मसत हो-होकर ठाकुर साहब के पैरो से िलपट गये और कहिे लग
़े—हम आपके, कदमो से िीते-िी िुदा ि होगे। आपका-सा कददाि और
िरआया-परिर बुिग
ु फ हम कहॉँ पायेगे। िीरो की भिक और सहिुभूित, िफादारी
और एहसाि का एक बडा ददफ िाक और असर पैदा करिे िाला दिय आँखो
के सामिे पेश हो गया। लेिकि ठाकुर साहब अपिे उदार िििय पर दि रहे
और गो पचास साल से जयादा गुिर गये है । लेिकि उनहीं बंिारो के िािरस
अभी तक मौिा साहषगंि के माफीदार है । औरते अभी तक ठाकुर पदम
ु ि
िसंह की पूिा और मनिते करती है और गो अब इस मौिे के कई िौििाि
175
दौलत और हुकूमत की बुलंदी पर पहुँच गये है लेिकि गूिे और अकखड
हरदास के िाम पर अब भी गि फ करते है । और भादो सुदी एकादशी के िदि
अभी उसी मुबारक फतेह की यादगार मे िश मिाये िाते है ।

—िमािा, अकूबर १९१३

176
अिा थ लड की

से
ठ पुरषोतमदास पूिा की सरसिती पाठशाला का मुआयिा करिे के बाद
बाहर ििकले तो एक लडकी िे दौडकर उिका दामि पकड िलया। सेठ
िी रक गये और मुहबबत से उसकी तरफ दे खकर पूछा—कया िाम है ?
लडकी िे ििाब िदया—रोिहणी।
सेठ िी िे उसे गोद मे उठा िलया और बोले—तुमहे कुछ इिाम िमला?
लडकी िे उिकी तरफ बचचो िैसी गंभीरता से दे खकर कहा—तुम चले
िाते हो, मुझे रोिा आता है , मुझे भी साथ लेते चलो।
सेठिी िे हँ सकर कहा—मुझे बडी दरू िािा है , तुम कैसे चालोगी?
रोिहणी िे पयार से उिकी गदफ ि मे हाथ िाल िदये और बोली—िहॉँ
तुम िाओगे िहीं मै भी चलूँगी। मै तुमहारी बेटी हूँगी।
मदरसे के अफसर िे आगे बिकर कहा—इसका बाप साल भर हुआ
िही रहा। मॉँ कपडे सीती है , बडी मुििकल से गुिर होती है ।
सेठ िी के सिभाि मे करणा बहुत थी। यह सुिकर उिकी आँखे भर
आयीं। उस भोली पाथि
फ ा मे िह ददफ था िो पतथर-से िदल को िपघला सकता
है । बेकसी और यतीमी को इससे जयादा ददफ िाक ढं ग से िािहर किा
िामुमिकि था। उनहोिे सोचा—इस िनहे -से िदल मे ि िािे कया अरमाि
होगे। और लडिकयॉँ अपिे िखलौिे िदखाकर कहती होगी, यह मेरे बाप िे
िदया है । िह अपिे बाप के साथ मदरसे आती होगी, उसके साथ मेलो मे
िाती होगी और उिकी िदलचिसपयो का ििक करती होगी। यह सब बाते
सुि-सुिकर इस भोली लडकी को भी खिािहश होती होगी िक मेरे बाप होता।
मॉँ की मुहबबत मे गहराई और आितमकता होती है ििसे बचचे समझ िहीं
सकते। बाप की मुहबबत मे खुशी और चाि होता है ििसे बचचे खूब समझते
है ।
सेठ िी िे रोिहणी को पयार से गले लगा िलया और बोले—अचछा, मै
तुमहे अपिी बेटी बिाऊँगा। लेिकि खूब िी लगाकर पििा। अब छुटटी का
िक आ गया है , मेरे साथ आओ, तुमहारे घर पहुँचा दँ।ू
यह कहकर उनहोिे रोिहणी को अपिी मोटरकार मे िबठा िलया।
रोिहणी िे बडे इतमीिाि और गिफ से अपिी सहे िलयो की तरफ दे खा। उसकी

177
बडी-बडी आँखे खुशी से चमक रही थीं और चेहरा चॉद
ँ िी रात की तरह िखला
हुआ था।

से
ठ िे रोिहणी को बािार की खूब सैर करायी और कुछ उसकी पसनद
से, कुछ अपिी पसनद से बहुत-सी चीिे खरीदीं, यहॉँ तक िक रोिहणी
बाते करते-करते कुछ थक-सी गयी और खामोश हो गई। उसिे इतिी चीिे
दे खीं और इतिी बाते सुिीं िक उसका िी भर गया। शाम होते -होते रोिहणी
के घर पहुँचे और मोटरकार से उतरकर रोिहणी को अब कुछ आराम िमला।
दरिािा बनद था। उसकी मॉँ िकसी गाहक के घर कपडे दे िे गयी थी।
रोिहणी िे अपिे तोहफो को उलटिा-पलटिा शुर िकया—खूबसूरत रबड के
िखलौिे, चीिी की गुिडया िरा दबािे से चूँ-चूँ करिे लगतीं और रोिहणी यह
पयारा संगीत सुिकर फूली ि समाती थी। रे शमी कपडे और रं ग -िबरं गी
सािडयो की कई बणिल थे लेिकि मखमली बूटे की गुलकािरयो िे उसे खूब
लुभाया था। उसे उि चीिो के पािे की िितिी खुशी थी, उससे जयादा उनहे
अपिी सहे िलयो को िदखािे की बेचैिी थी। सुनदरी के िूते अचछे सही
लेिकि उिमे ऐसे फूल कहॉँ है । ऐसी गुिडया उसिे कभी दे खी भी ि होगी।
इि खयालो से उसके िदल मे उमंग भर आयी और िह अपिी मोिहिी
आिाि मे एक गीत गािे लगी। सेठ िी दरिािे पर खडे इि पििि दिय का
हािदफ क आिनद उठा रहे थे। इतिे मे रोिहणी की मॉँ रिकमणी कपडो की एक
पोटली िलये हुए आती िदखायी दी। रोिहणी िे खुशी से पागल होकर एक
छलॉग
ँ भरी और उसके पैरो से िलपट गयी। रिकमणी का चेहरा पीला था,
आँखो मे हसरत और बेकसी िछपी हुई थी, गुप िचंता का सिीि िचि मालूम
होती थी, ििसके िलए ििंदगी मे कोई सहारा िहीं।
मगर रोिहणी को िब उसिे गोद मे उठाकर पयार से चूमा मो िरा दे र
के िलए उसकी ऑख
ं ो मे उनमीद और ििंदगी की झलक िदखायी दी।
मुरझाया हुआ फूल िखल गया। बोली—आि तू इतिी दे र तक कहॉँ रही, मै
तुझे ढू ँ ििे पाठशाला गयी थी।
रोिहणी िे हुमककर कहा—मै मोटरकार पर बैठकर बािार गयी थी।
िहॉँ से बहुत अचछी-अचछी चीिे लायी हूँ। िह दे खो कौि खडा है ?
मॉँ िे सेठ िी की तरफ ताका और लिाकर िसर झुका िलया।

178
बरामदे मे पहुँचते ही रोिहणी मॉँ की गोद से उतरकर सेठिी के पास
गयी और अपिी मॉँ को यकीि िदलािे के िलए भोलेपि से बोली—कयो, तुम
मेरे बाप हो ि?
सेठ िी िे उसे पयार करके कहा—हॉँ, तुम मेरी पयारी बेटी हो।
रोिहणी िे उिसे मुंह की तरफ याचिा-भरी आँखो से दे खकर कहा—
अब तुम रोि यहीं रहा करोगे?
सेठ िी िे उसके बाल सुलझाकर ििाब िदया—मै यहॉँ रहूँगा तो काम
कौि करे गा? मै कभी-कभी तुमहे दे खिे आया करँगा, लेिकि िहॉँ से तुमहारे
िलए अचछी-अचछी चीिे भेिूँगा।
रोिहणी कुछ उदास-सी हो गयी। इतिे मे उसकी मॉँ िे मकाि का
दरिािा खोला ओर बडी फुती से मैले िबछािि और फटे हुए कपडे समेट कर
कोिे मे िाल िदये िक कहीं सेठ िी की ििगाह उि पर ि पड िाए। यह
सिािभमाि िसयो की खास अपिी चीि है ।
रिकमणी अब इस सोच मे पडी थी िक मै इिकी कया खाितर-तिािो
करँ। उसिे सेठ िी का िाम सुिा था, उसका पित हमेशा उिकी बडाई िकया
करता था। िह उिकी दया और उदारता की चचाए
फ ँ अिेको बार सुि चुकी
थी। िह उनहे अपिे मि का दे िता समझा कतरी थी, उसे कया उमीद थी िक
कभी उसका घर भी उसके कदमो से रोशि होगा। लेिकि आि िब िह शुभ
िदि संयोग से आया तो िह इस कािबल भी िहीं िक उनहे बैठिे के िलए
एक मोिा दे सके। घर मे पाि और इलायची भी िहीं। िह अपिे आँसुओं को
िकसी तरह ि रोक सकी।
आिखर िब अंधेरा हो गया और पास के ठाकुरदारे से घणटो और
िगाडो की आिािे आिे लगीं तो उनहोिे िरा ऊँची आिाि मे कहा—बाईिी,
अब मै िाता हूँ। मुझे अभी यहॉँ बहुत काम करिा है । मेरी रोिहणी को कोई
तकलीफ ि हो। मुझे िब मौका िमलेगा, उसे दे खिे आऊँगा। उसके पालिे-
पोसिे का काम मेरा है और मै उसे बहुत खुशी से पूरा करँगा। उसके िलए
अब तुम कोई िफक मत करो। मैिे उसका ििीफा बॉध
ँ िदया है और यह
उसकी पहली िकसत है ।
यह कहकर उनहोिे अपिा खूबसूरत बटु आ ििकाला और रिकमणी के
सामिे रख िदया। गरीब औरत की आँखे मे आँसू िारी थे। उसका िी बरबस

179
चाहता था िक उसके पैरो को पकडकर खूब रोये। आि बहुत िदिो के बाद
एक सचचे हमददफ की आिाि उसके मि मे आयी थी।
िब सेठ िी चले तो उसिे दोिो हाथो से पणाम िकया। उसके हदय
की गहराइयो से पाथि
फ ा ििकली—आपिे एक बेबस पर दया की है , ईशर
आपको इसका बदला दे ।
दस
ू रे िदि रोिहणी पाठशाला गई तो उसकी बॉक
ँ ी सि-धि आँखो मे
खुबी िाती थी। उसतािियो िे उसे बारी-बारी पयार िकया और उसकी
सहे िलयॉँ उसकी एक-एक चीि को आिय फ से दे खती और ललचाती थी।
अचछे कपडो से कुछ सिािभमाि का अिुभि होता है । आि रोिहणी िह
गरीब लडकी ि रही िो दस
ू रो की तरफ िििश िेिो से दे खा करती थी।
आि उसकी एक-एक िकया से शैशिोिचत गिफ और चंचलता टपकती थी और
उसकी िबाि एक दम के िलए भी ि रकती थी। कभी मोटर की तेिी का
ििक था कभी बािार की िदलचिसपयो का बयाि, कभी अपिी गुिडयो के
कुशल-मंगल की चचा फ थी और कभी अपिे बाप की मुहबबत की दासताि।
िदल था िक उमंगो से भरा हुआ था।
एक महीिे बाद सेठ पुरषोतमदास िे रोिहणी के िलए िफर तोहफे और
रपये रिािा िकये। बेचारी ििधिा को उिकी कृ पा से िीििका की िचनता से
छुटटी िमली। िह भी रोिहणी के साथ पाठशाला आती और दोिो मॉँ-बेिटयॉँ
एक ही दरिे के साथ-साथ पितीं, लेिकि रोिहणी का िमबर हमेशा मॉँ से
अविल रहा सेठ िी िब पूिा की तरफ से ििकलते तो रोिहणी को दे खिे
िरर आते और उिका आगमि उसकी पसनिता और मिोरं िि के िलए
महीिो का सामाि इकटठा कर दे ता।
इसी तरह कई साल गुिर गये और रोिहणी िे ििािी के सुहािे हरे -
भरे मैदाि मे पैर रकखा, िबिक बचपि की भोली-भाली अदाओं मे एक खास
मतलब और इरादो का दखल हो िाता है ।
रोिहणी अब आनतिरक और बाह सौनदय फ मे अपिी पाठशाला की िाक
थी। हाि-भाि मे आकषक
फ गमभीरता, बातो मे गीत का-सा िखंचाि और गीत
का-सा आितमक रस था। कपडो मे रं गीि सादगी, आँखो मे लाि-संकोच,
ििचारो मे पिििता। ििािी थी मगर घमणि और बिािट और चंचलता से
मुक। उसमे एक एकागता थी ऊँचे इरादो से पैदा होती है । िसयोिचत उतकषफ
की मंििले िह धीरे -धीरे तय करती चली िाती थी।
180

से
ठ िी के बडे बेटे िरोतमदास कई साल तक अमेिरका और िमि
फ ी की
युििििसिफटयो की खाक छाििे के बाद इं िीिियिरं ग ििभाग मे कमाल
हािसल करके िापस आए थे। अमेिरका के सबसे पितिषत कालेि मे उनहोिे
सममाि का पद पाप िकया था। अमेिरका के अखबार एक िहनदोसतािी
िौििाि की इस शािदार कामयाबी पर चिकत थे। उनहीं का सिागत करिे
के िलए बमबई मे एक बडा िलसा िकया गया था। इस उतसि मे शरीक
होिे के िलए लोग दरू-दरू से आए थे। सरसिती पाठशाला को भी ििमंिण
िमला और रोिहणी को सेठािी िी िे ििशेष रप से आमंिित िकया।
पाठशाला मे हफतो तैयािरयॉँ हुई। रोिहणी को एक दम के िलए भी चैि ि
था। यह पहला मौका था िक उसिे अपिे िलए बहुत अचछे -अचछे कपडे
बििाये। रं गो के चुिाि मे िह िमठास थी, काट-छॉट
ँ मे िह फबि ििससे
उसकी सुनदरता चमक उठी। सेठािी कौशलया दे िी उसे लेिे के िलए रे लिे
सटे शि पर मौिूद थीं। रोिहणी गाडी से उतरते ही उिके पैरो की तरफ झुकी
लेिकि उनहोिे उसे छाती से लगा िलया और इस तरह पयार िकया िक िैसे
िह उिकी बेटी है । िह उसे बार-बार दे खती थीं और आँखो से गि फ और पेम
टपक पडता था।
इस िलसे के िलए ठीक समुनदर के िकिारे एक हरे -भरे सुहािे मैदाि
मे एक लमबा-चौडा शािमयािा लगाया गया था। एक तरफ आदिमयो का
समुद उमडा हुआ था दस
ू री तरफ समुद की लहरे उमड रही थीं , गोया िह भी
इस खुशी मे शरीक थीं।
िब उपिसथत लोगो िे रोिहणी बाई के आिे की खबर सुिी तो हिारो
आदमी उसे दे खिे के िलए खडे हो गए। यही तो िह लडकी है । ििसिे
अबकी शासी की परीका पास की है । िरा उसके दशि
फ करिे चािहये। अब
भी इस दे श की िसयो मे ऐसे रति मौिूद है । भोले-भाले दे शपेिमयो मे इस
तरह की बाते होिे लगीं। शहर की कई पितिषत मिहलाओं िे आकर रोिहणी
को गले लगाया और आपस मे उसके सौनदय फ और उसके कपडो की चचाफ
होिे लगी।
आिखर िमसटर पुरषोतमदास तशरीफ लाए। हालॉिँक िह बडा िशष
और गमभीर उतसि था लेिकि उस िक दशि
फ की उतकंठा पागलपि की हद

181
तक िा पहुँची थी। एक भगदड-सी मच गई। कुिसय
फ ो की कतारे गडबड हो
गई। कोई कुसी पर खडा हुआ, कोई उसके हतथो पर। कुछ मिचले लोगो िे
शािमयािे की रिससयॉँ पकडीं और उि पर िा लटके कई िमिट तक यही
तूफाि मचा रहा। कहीं कुिसय
फ ां टू टीं, कहीं कुिसय
फ ॉँ उलटीं, कोई िकसी के ऊपर
िगरा, कोई िीचे। जयादा तेि लोगो मे धौल-धपपा होिे लगा।
तब बीि की सुहािी आिािे आिे लगीं। रोिहणी िे अपिी मणिली के
साथ दे शपेम मे िू बा हुआ गीत शुर िकया। सारे उपिसथत लोग िबलकुल
शानत थे और उस समय िह सुरीला राग, उसकी कोमलता और सिचछता,
उसकी पभािशाली मधुरता, उसकी उतसाह भरी िाणी िदलो पर िह िशा-सा
पैदा कर रही थी ििससे पेम की लहरे उठती है , िो िदल से बुराइयो को
िमटाता है और उससे ििनदगी की हमेशा याद रहिे िाली यादगारे पैदा हो
िाती है । गीत बनद होिे पर तारीफ की एक आिाि ि आई। िहीं तािे
कािो मे अब तक गूि
ँ रही थीं।
गािे के बाद िििभनि संसथाओं की तरफ से अिभिनदि पेश हुए और
तब िरोतमदास लोगो को धनयिाद दे िे के िलए खडे हुए। लेिकि उिके
भाषाण से लोगो को थोडी ििराशा हुई। यो दोसतो की मणिली मे उिकी
िकृ ता के आिेग और पिाह की कोई सीमा ि थी लेिकि सािि
फ ििक सभा
के सामिे खडे होते ही शबद और ििचार दोिो ही उिसे बेिफाई कर िाते
थे। उनहोिे बडी-बडी मुििकल से धनयिाद के कुछ शबद कहे और तब अपिी
योगयता की लिजित सिीकृ ित के साथ अपिी िगह पर आ बैठे। िकतिे ही
लोग उिकी योगयता पर जािियो की तरह िसर िहलािे लगे।
अब िलसा खतम होिे का िक आया। िह रे शमी हार िो सरसिती
पाठशाला की ओर से भेिा गया था, मेि पर रखा हुआ था। उसे हीरो के गले
मे कौि िाले? पेिसिे णट िे मिहलाओं की पंिक की ओर ििर दौडाई। चुििे
िाली आँख रोिहणी पर पडी और ठहर गई। उसकी छाती धडकिे लगी।
लेिकि उतसि के सभापित के आदे श का पालि आिियक था। िह सर
झुकाये हुए मेि के पास आयी और कॉप
ँ ते हाथो से हार को उठा िलया। एक
कण के िलए दोिो की आँखे िमलीं और रोिहणी िे िरोतमदास के गले मे
हार िाल िदया।
दस
ू रे िदि सरसिती पाठशाला के मेहमाि ििदा हुए लेिकि कौशलया
दे िी िे रोिहणी को ि िािे िदया। बोली—अभी तुमहे दे खिे से िी िहीं भरा,
182
तुमहे यहॉँ एक हफता रहिा होगा। आिखर मै भी तो तुमहारी मॉँ हूँ। एक मॉँ
से इतिा पयार और दस
ू री मॉँ से इतिा अलगाि!
रोिहणी कुछ ििाब ि दे सकी।
यह सारा हफता कौशलया दे िी िे उसकी ििदाई की तैयािरयो मे खचफ
िकया। सातिे िदि उसे ििदा करिे के िलए सटे शि तक आयीं। चलते िक
उससे गले िमलीं और बहुत कोिशश करिे पर भी आँसुओं को ि रोक सकीं।
िरोतमदास भी आये थे। उिका चेहरा उदास था। कौशलया िे उिकी तरफ
सहािुभूितपूण फ आँखो से दे खकर कहा—मुझे यह तो खयाल ही ि रहा, रोिहणी
कया यहॉँ से पूिा तक अकेली िायेगी? कया हि फ है , तुमहीं चले िाओ, शाम
की गाडी से लौट आिा।
िरोतमदास के चेहरे पर खुशी की लहर दौड गयी, िो इि शबदो मे ि
िछप सकी—अचछा, मै ही चला िाऊँगा। िह इस िफक मे थे िक दे खे िबदाई
की बातचीत का मौका भी िमलता है या िहीं। अब िह खूब िी भरकर
अपिा ददे िदल सुिायेगे और मुमिकि हुआ तो उस लाि-संकोच को, िो
उदासीिता के परदे मे िछपी हुई है , िमटा दे गे।

र िकमणी को अब रोिहणी की शादी की िफक पैदा हुई। पडोस की औरतो


मे इसकी चचा फ होिे लगी थी। लडकी इतिी सयािी हो गयी है , अब
कया बुिापे मे बयाह होगा? कई िगह से बात आयी, उिमे कुछ बडे पितिषत
घरािे थे। लेिकि िब रिकमणी उि पैमािो को सेठिी के पास भेिती तो िे
यही ििाब दे ते िक मै खुद िफक मे हूँ। रिकमणी को उिकी यह टाल-मटोल
बुरी मालूम होती थी।
रोिहणी को बमबई से लौटे महीिा भर हो चुका था। एक िदि िह
पाठशाला से लौटी तो उसे अममा की चारपाई पर एक खत पडा हुआ िमला।
रोिहणी पििे लगी, िलखा था—बहि, िब से मैिे तुमहारी लडकी को बमबई मे
दे खा है , मै उस पर रीझ गई हूँ। अब उसके बगैर मुझे चैि िहीं है । कया मेरा
ऐसा भागय होगा िक िह मेरी बहू बि सके? मै गरीब हूँ लेिकि मैिे सेठ िी
को रािी कर िलया है । तुम भी मेरी यह िििती कबूल करो। मै तुमहारी
लडकी को चाहे फूलो की सेि पर ि सुला सकूँ , लेिकि इस घर का एक-एक

183
आदमी उसे आँखो की पुतली बिाकर रखेगा। अब रहा लडका। मॉँ के मुँह से
लडके का बखाि कुछ अचछा िहीं मालूम होता। लेिकि यह कह सकती हूँ
िक परमातमा िे यह िोडी अपिी हाथो बिायी है । सूरत मे , सिभाि मे, ििदा
मे, हर दिष से िह रोिहणी के योगय है । तुम िैसे चाहे अपिा इतमीिाि कर
सकती हो। ििाब िलद दे िा और जयादा कया िलखूँ। िीचे थोडे -से शबदो मे
सेठिी िे उस पैगाम की िसफािरश की थी।
रोिहणी गालो पर हाथ रखकर सोचिे लगी। िरोतमदास की तसिीर
उसकी आँखो के सामिे आ खडी हुई। उिकी िह पेम की बाते, िििका
िसलिसला बमबई से पूिा तक िहीं टू टा था, कािो मे गूि
ं िे लगीं। उसिे एक
ठणिी सॉस
ँ ली और उदास होकर चारपाई पर लेट गई।


5

रसिती पाठशाला मे एक बार िफर सिािट और सफाई के दिय


िदखाई दे रहे है । आि रोिहणी की शादी का शुभ िदि। शाम का
िक, बसनत का सुहािा मौसम। पाठशाला के दारो-दीिार मुसकरा रहे है और
हरा-भरा बगीचा फूला िहीं समाता।
चनदमा अपिी बारात लेकर पूरब की तरफ से ििकला। उसी िक
मंगलाचरण का सुहािा राग उस रपहली चॉद
ँ िी और हलके-हलके हिा के
झोको मे लहरे मारिे लगा। दल
ू हा आया, उसे दे खते ही लोग है रत मे आ गए।
यह िरोतमदास थे।
दल
ू हा मणिप के िीचे गया। रोिहणी की मॉँ अपिे को रोक ि सकी,
उसी िक िाकर सेठ िी के पैर पर िगर पडी। रोिहणी की आँखो से पेम और
आनदद के आँसू बहिे लगे।
मणिप के िीचे हिि-कुणि बिा था। हिि शुर हुआ, खुशबू की लपेटे
हिा मे उठीं और सारा मैदाि महक गया। लोगो के िदलो-िदमाग मे तािगी
की उमंग पैदा हुई।
िफर संसकार की बारी आई। दल
ू हा और दल
ु हि िे आपस मे हमददी;
ििममेदारी और िफादारी के पििि शबद अपिी िबािो से कहे । िििाह की
िह मुबारक िंिीर गले मे पडी ििसमे ििि है , सखती है , पाबिनदयॉँ है
लेिकि ििि के साथ सुख और पाबिनदयो के साथ ििशास है । दोिो िदलो
मे उस िक एक ियी, बलिाि, आितमक शिक की अिुभूित हो रही थी।
184
िब शादी की रसमे खतम हो गयीं तो िाच-गािे की मििलस का दौर
आया। मोहक गीत गूि
ँ िे लगे। सेठ िी थककर चूर हो गए थे। िरा दम
लेिे के िलए बागीचे मे िाकर एक बेच पर बैठ गये। ठणिी-ठणिी हिा आ
रही आ रही थी। एक िशा-सा पैदा करिे िाली शािनत चारो तरफ छायी हुई
थी। उसी िक रोिहणी उिके पास आयी और उिके पैरो से िलपट गयी। सेठ
िी िे उसे उठाकर गले से लगा िलया और हँ सकर बोले—कयो, अब तो तुम
मेरी अपिी बेटी हो गयीं?
--िमािा, िूि १९१४

185
कमो का फल

मु झे हमेशा आदिमयो के परखिे की सिक रही है और अिुभि के


आधार पर कह सकता हूँ िक यह अधययि िितिा मिोरं िक, िशकापद
और उदधाटिो से भरा हुआ है , उतिा शायद और कोई अधययि ि होगा।
लेिकि अपिे दोसत लाला साईदयाल से बहुत असे तक दोसती और
बेतकललुफी के समबनध रहिे पर भी मुझे उिकी थाह ि िमली। मुझे ऐसे
दब
ु ल
फ शरीर मे जािियो की-सी शािनत और संतोष दे खकर आिय फ होता था
िो एक िािुक पौधे की तरह मुसीबतो के झोको मे भी अचल और अटल
रहता था। जयो िह बहुत ही मामूली दरिे का आदमी था ििसमे मािि
कमिोिरयो की कमी ि थी। िह िादे बहुत करता था लेिकि उनहे पूरा करिे
की िररत िहीं समझता था। िह िमथयाभाषी ि हो लेिकि सचचा भी ि
था। बेमुरौित ि हो लेिकि उसकी मुरौित िछपी रहती थी। उसे अपिे
कतवफय पर पाबनद रखिे के िलए दबाि ओर ििगरािी की िररत थी,
िकफायतशारी के उसूलो से बेखबर, मेहित से िी चुरािे िाला, उसूलो का
कमिोर, एक ढीला-ढाला मामूली आदमी था। लेिकि िब कोई मुसीबत िसर
पर आ पडती तो उसके िदल मे साहस और दिता की िह िबदफ सत ताकत
पैदा हो िाती थी ििसे शहीदो का गुण कह सकते है । उसके पास ि दौलत
थी ि धािमक
फ ििशास, िो ईशर पर भरोसा करिे और उसकी इचछाओं के
आगे िसर झुका दे िे का सोत है । एक छोटी-सी कपडे की दक
ु ाि के िसिाय
कोई िीििका ि थी। ऐसी हालतो मे उसकी िहममत और दिता का सोता
कहॉँ िछपा हुआ है , िहॉँ तक मेरी अनिेषण-दिष िहीं पहुँचती थी।

बा प के मरते ही मुसीबतो िे उस पर छापा मारा कुछ थोडा-सा किफ


ििरासत मे िमला ििसमे बराबर बिते रहिे की आियि
फ िक शिक
िछपी हुई थी। बेचारे िे अभी बरसी से छुटकारा िहीं पाया था िक महािि
िे िािलश की और अदालत के ितलसमी अहाते मे पहुँचते ही यह छोटी-सी
हसती इस तरह फूली ििस तरह मशक फलती है । ििगी हुई। िो कुछ िमा-
िथा थी; बति
फ -भॉड
ँ े , हॉि
ँ ी-तिा, उसके गहरे पेट मे समा गये। मकाि भी ि
186
बचा। बेचारे मुसीबतो के मारे साईदयाल का अब कहीं िठकािा ि था। कौडी-
कौडी को मुहताि, ि कहीं घर, ि बार। कई-कई िदि फाके से गुिर िाते।
अपिी तो खैर उनहे िरा भी िफक ि थी लेिकि बीिी थी, दो-तीि बचचे थे,
उिके िलए तो कोई-ि-कोई िफक करिी पडती थी। कुिबे का साथ और यह
बेसरोसामािी, बडा ददफ िाक दिय था। शहर से बाहर एक पेड की छॉह
ँ मे यह
आदमी अपिी मुसीबत के िदि काट रहा था। सारे िदि बािारो की खाक
छािता। आह, मैिे एक बार उस रे लिे सटे शि पर दे खा। उसके िसर पर एक
भारी बोझ था। उसका िािुग, सुख-सुििधा मे पला हुआ शरीर, पसीिा-पसीिा
हो रहा था। पैर मुििकल से उठते थे। दम फूल रहा था लेिकि चेहरे से
मदाि
फ ा िहममत और मिबूत इरादे की रोशिी टपकती थी। चेहरे से पूणफ
संतोष झलक रहा था। उसके चेहरे पर ऐसा इतमीिाि था िक िैसे यही
उसका बाप-दादो का पेशा है । मै है रत से उसका मुंह ताकता रह गया। दख

मे हमददी िदखलािे की िहममत ि हुई। कई महीिे तक यही कैिफयत रही।
आिखरकार उसकी िहममत और सहिशिक उसे इस किठि दग
ु म
फ घाटी से
बाहर ििकल लायी।

थो
डे ही िदिो के बाद मुसीबतो िे िफर उस पर हमला िकया। ईशर
ऐसा िदि दिुमि को भी ि िदखलाये। मै एक महीिे के िलए बमबई
चला गया था, िहॉँ से लौटकर उससे िमलिे गया। आह, िह दिय याद करके
आि भी रोगटे खडे हो िाते है । ओर िदल िर से कॉप
ँ उठता है । सुबह का
िक था। मैिे दरिािे पर आिाि दी और हमेशा की तरह बेतकललुफ अनदर
चला गया, मगर िहॉँ साईदयाल का िह हँ समुख चेहरा, ििस पर मदाि
फ ा
िहममत की तािगी झलकती थी, ििर ि आया। मै एक महीिे के बाद
उिके घर िाऊँ और िह आँखो से रोते लेिकि होठो से हँ सते दौडकर मेरे
गले िलपट ि िाय! िरर कोई आफत है । उसकी बीिी िसर झुकाये आयी
और मुझे उसके कमरे मे ले गयी। मेरा िदल बैठ गया। साईदयाल एक
चारपाई पर मैले-कुचैले कपडे लपेटे, आँखे बनद िकये, पडा ददफ से कराह रहा
था। ििसम और िबछौिे पर मिकखयो के गुचछे बैठे हुए थे। आहट पाते ही
उसिे मेरी तरफ दे खा। मेरे ििगर के टु कडे हो गये। हििियो का ढॉच
ँ ा रह
गया था। दब
ु ल
फ ता की इससे जयादा सचची और करणा तसिीर िहीं हो

187
सकती। उसकी बीिी िे मेरी तरफ ििराशाभरी आँखो से दे खा। मेरी आँसू भर
आये। उस िसमटे हुए ढॉच
ँ े मे बीमारी को भी मुििकल से िगह िमलती होगी,
ििनदगी का कया ििक! आिखर मैिे धीरे पुकारा। आिाि सुिते ही िह बडी-
बडी आँखे खुल गयीं लेिकि उिमे पीडा और शोक के आँसू ि थे, सनतोष
और ईशर पर भरोसे की रोशिी थी और िह पीला चेहरा! आह, िह गमभीर
संतोष का मौि िचि, िह संतोषमय संकलप की सिीि समिृत। उसके पीलेपि
मे मदाि
फ ा िहममत की लाली झलकती थी। मै उसकी सूरत दे खकर घबरा
गया। कया यह बुझते हुए िचराग की आिखरी झलक तो िहीं है ?
मेरी सहमी हुई सूरत दे खकर िह मुसकराया और बहुत धीमी आिाि
मे बोला—तुम ऐसे उदास कयो हो, यह सब मेरे कमो का फल है ।

म गर कुछ अिब बदिकसमत आदमी था। मुसीबतो को उससे कुछ


खास मुहबबत थी। िकसे उममीद थी िक िह उस पाणघातक रोग से
मुिक पायेगा। िाकटरो िे भी ििाब दे िदया था। मौत के मुह
ं से ििकल
आया। अगर भििषय का िरा भी जाि होता तो सबसे पहले मै उसे िहर दे
दे ता। आह, उस शोकपूण फ घटिा को याद करके कलेिा मुंह को आता है ।
िधककार है इस ििनदगी पर िक बाप अपिी आँखो से अपिी इकलौते बेटे
का शोक दे खे।
कैसा हँ समुख, कैसा खूबसूरत, होिहार लडका था, कैसा सुशील, कैसा
मधुरभाषी, िािलम मौत िे उसे छॉट
ँ िलया। पलेग की दहुाई मची हुई थी।
शाम को िगलटी ििकली और सुबह को—कैसी मिहूस, अशुभ सुबह थी—िह
ििनदगी सबेरे के िचराग की तरह बुझ गयी। मै उस िक उस बचचे के पास
बैठा हुआ था और साईदयाल दीिार का सहारा िलए हुए खामोशा आसमाि
की तरफ दे खता था। मेरी और उसकी आँखो के सामिे िािलम और बेरहम
मौत िे उस बचे को हमारी गोद से छीि िलया। मै रोते हुए साईदयाल के
गले से िलपट गया। सारे घर मे कुहराम मचा हुआ था। बेचारी मॉँ पछाडे खा
रही थी, बहिे दौि-दौडकर भाई की लाश से िलपटती थीं। और िरा दे र के
िलए ईषयाफ िे भी समिेदिा के आगे िसर झुका िदया था—मुहलले की औरतो
को आँस बहािे के िलए िदल पर िोर िालिे की िररत ि थी।

188
िब मेरे आँसू थमे तो मैिे साईदयाल की तरफ दे खा। आँखो मे तो
आँसू भरे हुए थे—आह, संतोष का आँखो पर कोई बस िहीं, लेिकि चेहरे पर
मदाि
फ ा दिता और समपण
फ का रं ग सपष था। इस दख
ु की बाि और तूफािो
मे भी शािनत की िैया उसके िदल को िू बिे से बचाये हुए थी।
इस दिय िे मुझे चिकत िहीं सतिमभत कर िदया। समभाििाओं की
सीमाएँ िकतिी ही वयापक हो ऐसी हदय-दािक िसथित मे होश-हिास और
इतमीिाि को कायम रखिा उि सीमाओं से परे है । लेिकि इस दिष से
साईदयाल मािि िहीं, अित-मािि था। मैिे रोते हुए कहा—भाईसाहब, अब
संतोष की परीका का अिसर है । उसिे दिता से उतर िदया—हॉँ, यह कमो का
फल है ।
मै एक बार िफर भौचक होकर उसका मुंह ताकिे लगा।

ले
िकि साईदयाल का यह तपिसियो िैसा धैय फ और ईशरे चछा पर भरोसा
अपिी आँखो से दे खिे पर भी मेरे िदल मे संदेह बाकी थे। मुमिकि है ,
िब तक चोट तािी है सब का बाँध कायम रहे । लेिकि उसकी बुिियादे िहल
गयी है , उसमे दरारे पड गई है । िह अब जयादा दे र तक दख
ु और शोक की
िहरो का मुकाबला िहीं कर सकता।
कया संसार की कोई दघ
ु ट
फ िा इतिी हदयदािक, इतिी ििमम
फ , इतिी
कठोर हो सकता है ! संतोष और दिता और धैय फ और ईशर पर भरोसा यह
सब उस आँधी के समाि घास-फूस से जयादा िहीं। धािमक
फ ििशास तो कया,
अधयातम तक उसके सामिे िसर झुका दे ता है । उसके झोके आसथा और
ििषा की िडे िहला दे ते है ।
लेिकि मेरा अिुमाि गलत ििकला। साईदयाल िे धीरि को हाथ से
ि िािे िदया। िह बदसतूर ििनदगी के कामो मे लग गया। दोसतो की
मुलाकाते और िदी के िकिारे की सैर और तफरीह और मेलो की चहल-
पहल, इि िदलचिसपयो मे उसके िदल को खींचिे की ताकत अब भी बाकी
थी। मै उसकी एक-एक िकया को, एक-एक बात को गौर से दे खता और
पिता। मैिे दोसती के िियम-कायदो को भुलाकर उसे उस हालत मे दे खा
िहॉँ उसके ििचारो के िसिा और कोई ि था। लेिकि उस हालत मे भी

189
उसके चेहरे पर िही पुरषोिचत धैय फ था और िशकिे-िशकायत का एक शबद
भी उसकी िबाि पर िहीं आया।

इ सी बीच मेरी छोटी लडकी चनदमुखी ििमोििया की भेट चि गयी। िदि


के धंधे से फुरसत पाकर िब मै घर पर आता और उसे पयार से गोद
मे उठा लेता तो मेरे हदय को िो आिनद और आितमक शिक िमलती
थी, उसे शबदो मे िहीं वयक कर सकता। उसकी अदाएँ िसफफ िदल को
लुभािेिाली िहीं गम को भुलािेिाली है । ििस िक िह हुमककर मेरी गोद मे
आती तो मुझे तीिो लोक की संपित िमल िाती थी। उसकी शरारते िकतिी
मिमोहक थीं। अब हुकके मे मिा िहीं रहा, कोई िचलम को िगरािेिाला
िहीं! खािे मे मिा िहीं आता, कोई थाली के पास बैठा हुआ उस पर हमला
करिेिाला िहीं! मै उसकी लाश को गोद मे िलये िबलख-िबलखकर रो रहा
था। यही िी चाहता था िक अपिी ििनदगी का खातमा कर दँ।ू यकायक मैिे
साईदयाल को आते दे खा। मैिे फौरि आँसू पोछ िाले और उस िनहीं-सी
िाि को िमीि पर िलटाकर बाहर ििकल आया। उस धैय फ और संतोष के
दे िता िे मेरी तरफ संिेदिशील की आँखो से दे खा और मेरे गले से
िलपटकर रोिे लगा। मैिे कभी उसे इस तरह चीखे मारकर रोते िहीं दे खा।
रोते-रोते उसी िहचिकयॉँ बंध गयीं, बेचैिी से बेसुध और बेहार हो गया। यह
िही आदमी है ििसका इकलौता बेटा मरा और माथे पर बल िहीं आया। यह
कायापलट कयो?

इ स शोक पूण फ घटिा के कई िदि बाद िबिक दख


ु ी िदल समहलिे लगा,
एक रोि हम दोिो िदी की सैर को गये। शाम का िक था। िदी कहीं
सुिहरी, कहीं िीली, कहीं काली, िकसी थके हुए मुसािफर की तरह धीरे -धीरे
बह रही थी। हम दरू िाकर एक टीले पर बैठ गये लेिकि बातचीत करिे को
िी ि चाहता था। िदी के मौि पिाह िे हमको भी अपिे ििचारो मे िु बो
िदया। िदी की लहरे ििचारो की लहरो को पैदा कर दे ती है । मुझे ऐसा
मालूम हुआ िक पयारी चनदमुखी लहरो की गोद मे बैठी मुसकरा रही है । मै
चौक पडा ओर अपिे आँसुओं को िछपािे के िलए िदी मे मुंह धोिे लगा।

190
साईदयाल िे कहा—भाईसाहब, िदल को मिबूत करो। इस तरह कुिोगे तो
िरर बीमार हो िाओगे।
मैिे ििाब िदया—ईशर िे िितिा संयम तुमहे िदया है , उसमे से थोडा-
सा मुझे भी दे दो, मेरे िदल मे इतिी ताकत कहॉ।ँ
साईदयाल मुसकराकर मेरी तरफ ताकिे लगे।
मैिे उसी िसलिसले मे कहा—िकताबो मे तो दिता और संतोष की
बहुत-सी कहािियॉँ पिी है मगर सच मािो िक तुम िैसा दि, किठिाइयो मे
सीधा खडा रहिे िाला आदमी आि तक मेरी ििर से िहीं गुिरा। तुम
िािते हो िक मुझे मािि सिभाि के अधययि का हमेशा से शौक है लेिकि
मेरे अिुभि मे तुम अपिी तरह के अकेले आदमी हो। मै यह ि मािूग
ँ ा िक
तुमहारे िदल मे ददफ और घुलािट िहीं है । उसे मै अपिी आँखो से दे ख चुका
हूँ। िफर इस जािियो िैसे संतोष और शािनत का रहसय तुमिे कहॉँ िछपा
रकखा है ? तुमहे इस समय यह रहसय मुझसे कहिा पडे गा।
साईदयाल कुछ सोच-ििचार मे पड गया और िमीि की तरफ ताकते
हुए बोला—यह कोई रहसय िहीं, मेरे कमो का फल है ।
यह िाकय मैिे चौथी बार उसकी िबाि से सुिा और बोला—ििि,
कमो का फल ऐसा शिकदायक है , उि कमो की मुझे भी कुछ दीका दो। मै
ऐसे फलो से कयो िंिचत रहूँ।
साईदयाल िे वयाथापूण फ सिर मे कहा—ईशर ि करे िक तुम ऐसा कमफ
करो और तुमहारी ििनदगी पर उसका काला दाग लगे। मैिे िो कुछ िकया
है , ि मुझे ऐसा लजिाििक और ऐसा घिृणत मालूम होता है िक उसकी मुझे
िो कुछ सिा िमले, मै उसे खुशी के साथ झेलिे को तैयार हूँ। आह! मैिे एक
ऐसे पििि खािदाि को, िहॉँ मेरा ििशास और मेरी पितषा थी, अपिी
िासिाओं की गनदगी मे िलथेडा और एक ऐसे पििि हदय को ििसमे
मुहबबत का ददफ था, िो सौनदयफ-िािटका की एक अिोखी-ियी िखली हुई कली
थी, और सचचाई थी, उस पििि हदय मे मैिे पाप और ििशासघात का बीि
हमेशा के िलएबो िदया। यह पाप है िो मुझसे हुआ है और उसका पलला उि
मुसीबतो से बहुत भारी है िो मेरे ऊपर अब तक पडी है या आगे चलकर
पिे गी। कोई सिा, कोई दख
ु , कोई कित उसका पायिित िहीं कर सकती।
मैिे सपिे मे भी ि सोचा था िक साईदयाल अपिे ििशासो मे इतिा
दि है । पाप हर आदमी से होते है , हमारा मािि िीिि पापो की एक लमबी
191
सूची है , िह कौि-सा दामि है ििस पर यह काले दाग ि हो। लेिकि िकतिे
ऐसे आदमी है िो अपिे कमो की सिाओं को इस तरह उदारतापूिक

मुसकराते हुए झेलिे के िलए तैयार हो। हम आग मे कूदते है लेिकि िलिे
के िलए तैयार िहीं होते।
मै साईदयाल को हमेशा इजित की ििगाह से दे खता हूँ , इि बातो को
सुिकर मेरी ििरो मे उसकी इजित ितगुिी हो गयी। एक मामूली
दिुियादार आदमी के सीिे मे एक फकीर का िदल िछपा हुआ था ििसमे
जाि की जयोित चमकती थी। मैिे उसकी तरफ शिापूणफ आँखो से दे खा और
उसके गले से िलपटकर बोला—साईदयाल, अब तक मै तुमहे एक दि सिभाि
का आदमी समझता था, लेिकि आि मालूम हुआ िक तुम उि पििि
आतमाओं मे हो, िििका अिसतति संसार के िलए िरदाि है । तुम ईशर के
सचचे भक हो और मै तुमहारे पैरो पर िसर झुकाता हूँ।
—उदफ ू ‘पेम पचीसी’ से

192

You might also like